मायानगरी मुंबई में अपनी पहली दस्तक से बेहद उत्साहित हैं ये भोजपुरी गायक

भोजपुरी फिल्मों में सिंगर से एक्टर बनने की परम्परा पुरानी रही है. मनोज तिवारी, निरहुआ, पवन सिंह और खेसारी लाल यादव इसके सबूत हैं और अब इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए एक और गायक नागेन्द्र उजाला नायक बनकर सिल्वर स्क्रीन पर उजाला फैलाने के लिए तैयार हैं.

दीपावली के दिन गायक और नायक नागेन्द्र उजाला की एक साथ दो फिल्मों का शुभ मूहुर्त मुम्बई के अंधेरी पश्चिम में स्थित कुमार शानू के सना स्टुडिओ में सम्पन्न हुआ. अंजुम तरन्नुम आर्ट्स के बैनर तले निर्मित हो रही पहली भोजपुरी फिल्म “काला तिल पे दिल आ गईल” और ओमकार फिल्मस् प्रस्तुत निर्माता अनिल एस मेहता व हिरा लाल शाह की फिल्म “बगल वाली जान मारेली” के गाने नागेंद्र उजाला के स्वर में रिकौर्ड किये गए. दोनों फिल्मो के गीतकार अर्जुन शर्मा और संगीतकार मनोज बंटी हैं. काला तिल पे दिल आ गईल के निर्देशक शामी एम् इरफान और “बगल वाली जान मारेली” के निर्देशक अनिल एस मेहता है.

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आपको बता दे कि, लोक गायक नागेन्द्र उजाला की मुंबई में यह पहली रिकौर्डिंग थी. पिछले कई वर्षो से लोगो को अपनी गायकी से दीवाना बनाने वाले इस गायक ने अपने गाने वाराणसी, पटना और दिल्ली में अब तक रिकौर्ड किये हैं. उनके स्वर तथा अभिनय से सजे सैकड़ो गाने एल्बम आपको यूट्यूब पर मिल जायेंगे.

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गायक और नायक नागेन्द्र उजाला की बौलीवुड में यह पहली दस्तक है और नागेंद्र उजाला की पार्श्वगायन के क्षेत्र में शुरुआत भी. फिलहाल दोनों फिल्मो में वह नायक हैं उनका गाया गीत उनके ही ऊपर फिल्मबद्ध होगा. मीडिया से बातचीत के दौरान प्रतिभावान गायक और नायक नागेन्द्र उजाला ने कहा कि, गायन मेरी प्राथमिकता है. मैं बौलीवुड के दूसरे नायको के लिए भी गाना  चाहता हूं. बस मुझे बौलीवुड का और आप सबका प्यार आशीर्वाद चाहिए.

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जिंदा इंसान पर भारी मरा जानवर

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़, जो अन्य पिछड़ा वर्ग के तेली तबके से है, इस बात से खफा हो गया था कि राजकुमार वाल्मीकि मरी गाय को घसीट क्यों रहा था? वह अपने सिर पर उठा कर क्यों नहीं ले जा रहा था? सड़क पर घसीटे जाने से गौमाता की बेइज्जती हो गई और जिस की सजा राजकुमार वाल्मिकी को भीड़ के सामने दे दी गई.

कोटा की सांगोद नगरपालिका में मरे जानवरों को उठाने का जिम्मा राजकुमार वाल्मीकि के पास है. वह एक मरी हुई गाय को घसीट कर ले जा रहा था, तभी कुछ नवहिंदुत्ववादी लोगों की नजर उस पर पड़ती है. ये लोग खुद सदियों तक ब्राह्मणों के अत्याचार सहते रहे, पर आज उन से ज्यादा धार्मिक हैं और हिंदुत्व की माता के प्रति एकदम सम्मान उमड़ पड़ता है.

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वे राजकुमार वाल्मीकि को रोक देते हैं और नगरपालिका के चेयरमैन देवकीनंदन राठौड़ को बुलाया जाता है. उस ने जैसे ही मामला देखा तो तो वह राजकुमार को मांबहन की गालियां देते हुए उस पर टूट पड़ा.

थप्पड़ों व रस्सियों से पीटते हुए राजकुमार को सम झाया जाता है कि हम ने हमारी मृत मां को ठिकाने लगाने के लिए तु झे जिम्मा दिया था. उस को कंधों पर उठा कर ले जाना चाहिए.

नगरपालिका चेरयमैन ने ठेका देते हुए शायद अर्थियों, फूलमालाओं की व्यवस्था भी टैंडर में की होगी. अपनी माता के अंतिम संस्कार के लिए महल्ले वालों को भी कंधा देने की बात लिखी होगी, क्योंकि अकेला इनसान तो अर्थी उठा कर नहीं ले जा सकता.

भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है. जब वह दलित वाल्मीकि नौजवान की मृत गाय के लिए गालियां देते हुए पिटाई कर रहा था, तब उस के सैकड़ों समर्थक वीडियो बना कर उसे वायरल कर रहे थे और भाजपा नेता को उकसाने का काम कर रहे थे.

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इस घटना की एफआईआर दर्ज हो चुकी है. हर जगह इस काम की निंदा हो रही है. प्रदेश के सफाई वाले, वाल्मीकि समाज और दलित बहुजन संगठन भयंकर गुस्से में हैं. इस घटना के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं. चेतावनी दी गई है कि आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही नहीं की गई तो राज्यभर की सफाई व्यवस्था ठप कर दी जाएगी.

आखिर एक मरे हुए जानवर की इज्जत के लिए जिंदा दलित की इज्जत को क्यों बारबार तारतार किया जा रहा है? पुराने समय से ही गांवों में मरे पशु घसीट कर ही फेंक जाते रहे हैं. शहरों में ट्रैक्टरट्रौली में ले जाए जाते हैं, पर सांगोद के इस ठेकेदार को ट्रौली के पैसे नहीं मिलते थे. इस के चलते वह मरी गाय को घसीटते हुए ले जा रहा था.

झज्जर में भी मरे पशु की चमड़ी निकालते समय 5 दलित जिंदा जला दिए गए थे. उन की हत्या पर अफसोस जताने के बजाय विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन नेता गिरिराज किशोर ने कहा था, ‘हमारे लिए मरी हुई गाय जिंदा दलितों से ज्यादा पवित्र है.’

पिछले 20-25 सालों में वाल्मीकि समाज का बहुत हिंदुत्वकरण किया गया है. इन की बस्तियों में खूब शाखाएं लगाई जाती हैं. सेवा भारती के प्रकल्प चलते हैं. वंचित बस्ती भाजपाई गौभक्तों की सब से बड़ी प्रयोगशाला बन जाती है.

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सांगोद जैसी घटनाओं से दलित वाल्मीकियों को अपनी औकात सम झ आ जानी चाहिए कि उन की जगह एक मरे जानवर से भी कमतर है.

जिस तरह का लिंचिंग वाला समाज बनाया गया और दलित चुप रहे कि गाय के नाम पर मुसलिम मारा जा रहा है, हमारा क्या? आज हालात ये हैं कि मुसलिम जिंदा गायों के नाम पर लिंच किए जा रहे हैं और दलित मरी गायों के लिए, पर हर जगह चुप्पी है. मोहन भागवत तो कहते हैं कि इस तरह के कामों को लिंचिंग का नाम दे कर बदनाम किया जा रहा है.

इस घटना पर दलित चिंतक भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘‘सांगोद की घटना का सभी जगह विरोध होना चाहिए, एट्रोसिटी ऐक्ट में जो मुकदमा दर्ज हुआ है, उस पर तुरंत कार्यवाही हो. भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ की तुरंत गिरफ्तारी हो. भाजपा उसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करे और पीडि़त नौजवान को इंसाफ मिले.

‘‘जब तक यह न हो, हमें संवैधानिक तरीके से आंदोलन चलाना होगा. गंदगी करने वाले समाज को सफाई करने वाले समाज का मजबूत जवाब जानना चाहिए. जिन की माता गाय है, उन को ही उसे संभालना चाहिए, हम क्यों उठाएं किसी की मरी हुई मांओं को?’’

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वेलेंसिया की भूल: भाग 1

बात 7 जून, 2019 की है. उस समय सुबह के यही कोई 4 बजे थे. सैलानियों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले गोवा राज्य के मडगांव की रहने वाली जूलिया फर्नांडीस अपने साथ 4-5 रिश्तेदारों को ले कर कुडतरी पुलिस थाने पहुंची. वह किसी अनहोनी की आशंका से घबराई हुई थी.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर ने जूलिया से थाने में आने की वजह पूछी तो उस ने अपना परिचय देने के बाद कहा कि उस की बहन वेलेंसिया फर्नांडीस कल से गायब है, उस का कहीं पता नहीं लग रहा है.

‘‘उस की उम्र क्या थी और कैसे गायब हुई?’’ ड्यूटी अफसर ने पूछा.

‘‘वेलेंसिया की उम्र यही कोई 30 साल थी. रोजाना की तरह वह कल सुबह 8 बजे अपनी ड्यूटी पर गई थी. वह मडगांव के एक जानेमाने मैडिकल स्टोर पर नौकरी करती थी. अपनी ड्यूटी पर जाते समय वेलेंसिया काफी खुश थी. क्योंकि आज से 10 दिनों बाद उस का जन्मदिन आने वाला था, उन का परिवार उस के जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मनाता था.

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‘‘घर से निकलते समय वह कह कर गई थी कि आज उसे घर लौटने में देर हो जाएगी. फिर भी वह 9 बजे तक घर पहुंच जाएगी. उस का कहना था कि ड्यूटी के बाद वह मौल जा कर जन्मदिन की पार्टी की कुछ शौपिंग करेगी.

‘‘मगर ऐसा नहीं हुआ. रात 9 बजे के बाद भी जब वेलेंसिया नहीं आई तो घर वालों की चिंता बढ़ गई. उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया गया तो उस का फोन नहीं मिला. इस के बाद सारे नातेरिश्तेदारों और उस की सभी सहेलियों को फोन कर के उस के बारे में पूछा गया. लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.’’ जूलिया फर्नांडीस ने बताया.

जूलिया फर्नांडीस और उन के साथ आए रिश्तेदारों की सारी बातें सुन कर ड्यूटी अफसर ने वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने वेलेंसिया का फोटो लेने के बाद आश्वासन दिया कि पुलिस वेलेंसिया को खोजने की पूरी कोशिश करेगी.

वेलेंसिया की गुमशुदगी की शिकायत को अभी 4 घंटे भी नहीं हुए थे कि वेलेंसिया के परिवार वालों को उस के बारे में जो खबर मिली, उसे सुन कर पूरा परिवार हिल गया.

दरअसल, सुबहसुबह वायना के कुडतरी पुलिस थाने से लगभग 7 किलोमीटर दूर रीवन गांव के जंगल में कुछ लोगों ने सफेद रंग की चादर में एक लाश देखी तो उन में से एक शख्स ने इस की जानकारी गोवा पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने वायरलैस द्वारा यह सूचना शहर के सभी पुलिस थानों में प्रसारित कर दी.

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जिस जंगल में लाश मिलने की सूचना मिली थी, वह इलाका मडगांव केपे पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, सूचना मिलते ही केपे थाने की पुलिस लगभग 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस को वहां काफी लोग खड़े मिले.

इस बीच जंगल में लाश मिलने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंच गई थी. देखते ही देखते वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने मुआयना किया तो सफेद रंग की चादर में बंधे शव के थोड़े से पैर दिखाई दे रहे थे, जिस से लग रहा था कि शव किसी महिला का हो सकता है. जब पुलिस ने चादर खोली तो वास्तव में शव युवती का ही निकला.

मृतका के हाथपैर एक नायलौन की रस्सी से बंधे थे और गले में उस का दुपट्टा लिपटा हुआ था. लेकिन हत्यारे ने उस का चेहरा इतनी बुरी तरह से विकृत कर दिया था कि उसे पहचानना आसान नहीं था. हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि उस की शिनाख्त न हो सके.

फिर भी पुलिस को अपनी काररवाई तो करनी ही थी. सब से पहले मृतका की शिनाख्त जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. मृतका के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मामले की सूचना देने के बाद केपे पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया. खोजी कुत्ते से पुलिस को एक साक्ष्य मिल गया. शव सूंघने के बाद वह वहां से कुछ दूर झाडि़यों में पहुंच कर भौंकने लगा. पुलिस ने वहां खोजबीन की तो एक मोबाइल फोन मिला. जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

केपे थाना पुलिस घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि दक्षिणी गोवा के एसपी अरविंद गावस अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और केपे थाने के थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर लौट गए.

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इस के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए गोवा के जिला अस्पताल भेज दी.

थाने लौट कर थानाप्रभारी ने मृतका की शिनाख्त पर जोर दिया. क्योंकि बिना शिनाख्त के मामले की तफ्तीश आगे बढ़ना संभव नहीं थी. इस के लिए थानाप्रभारी ने गोवा शहर और जिलों के सभी पुलिस थानों में मृतका का फोटो भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

कुडतरी थाने में जब लाश की फोटो हुलिए के साथ पहुंची तो वहां के थानाप्रभारी को एक दिन पहले अपने थाने में दर्ज वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना याद आ गई. बरामद लाश का हुलिया वेलेंसिया के हुलिए से मिलताजुलता था. कुडतरी थानाप्रभारी ने उसी समय केपे के थानाप्रभारी को फोन कर इस बारे में बात की.

जीवित नहीं मृत मिली वेलेंसिया

इस के बाद उन्होंने तुरंत वेलेंसिया के परिवार वालों को थाने बुला कर उन्हें लाश की शिनाख्त करने के लिए केपे थाने भेज दिया. केपे थानाप्रभारी ने जिला अस्पताल की मोर्चरी ले जा कर युवती की लाश वेलेंसिया के घर वालों को दिखाई. चेहरे से तो नहीं, लेकिन कपड़ों और चप्पलों को देखते ही घर वाले फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाश की शिनाख्त वेलेंसिया फर्नांडीस के रूप में की.

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थानाप्रभारी ने उन्हें सांत्वना दे कर शांत कराया. इस के बाद उन से पूछताछ की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उन्होंने केस की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर बंद हालत में मिले मोबाइल की सिम निकाल कर उन्होंने दूसरे फोन में डाली और मोबाइल की काल हिस्ट्री खंगालने लगे. इस जांच में एक नंबर संदिग्ध लगा.

वह नंबर शैलेश वलीप के नाम पर लिया गया था. शैलेश वलीप ने 7 जून, 2019 को ही वेलेंसिया से बातें की थीं. पुलिस टीम जब शैलेश वलीप के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर मिली उस की बहन भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकी. पुलिस ने जब उस की बहन से बात की तो वेलेंसिया और शैलेश वलीप के संबंधों की पुष्टि हो गई.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि वेलेंसिया की हत्या में जरूर शैलेश का हाथ रहा होगा. इसलिए उस की तलाश सरगरमी से शुरू हो गई. थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने शैलेश को गोवा के अमोल कैफे में दबोच लिया. पुलिस टीम ने जिस समय उसे गिरफ्तार किया, उस समय वह शराब के नशे में धुत था.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

नोटबंदी, GST और 370 हटानाः दिखने में अच्छे, असल में बेहद नुकसानदेह

शुरू में तो गरीबों को लगा कि जो मंच पर कहा गया है वही सच है कि अमीर लोगों के घरों से कमरे भरभर कर नोट निकलेंगे, काले धन का सफाया हो जाएगा, अमीरों का पैसा सरकारी खजाने से हो कर गरीबों तक आ जाएगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ और गरीबों को न सिर्फ लाइनों में खड़ा होना पड़ा, अपनी दिहाडि़यों का नुकसान करना पड़ा और उसी वजह से आज सारे उद्योगधंधे बंद होने के कगार पर आ गए हैं.

चतुर नेता वही होता है जो अपनी एक गलती को छिपाने के लिए दूसरी बड़ी गलती करे और फिर तीसरी. हर गलती का सुहावना रूप भी हो जो दिखे, नीचे चाहे भयंकर सड़न और बदबू हो. जीएसटी भी ऐसा ही था, नए टैक्स भी ऐसे ही थे और कश्मीर में की गई आधीअधूरी कार्यवाही भी ऐसी रही.

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तीनों एक से बढ़ कर एक. दिखने में अच्छे, पर असल में बेहद नुकसानदेय.

नोटबंदी के बाद नोटों की कुल गिनती बाजार में कम होने के बजाय बढ़ गई है. 3 साल बाद भी भारतीय रिजर्व बैंक से छपे नोटों की गिनती बढ़ रही है जबकि सरकार हर भुगतान औनलाइन करने को कह रही है. लोग अब अपना पैसा नकदी में रखने लगे हैं. उन्हें तो अब बैंकों पर भी भरोसा नहीं है. जिस काले धन को निकालने के कसीदे पढ़े गए थे और भगवा सोशल मीडिया ने झूठे, बनावटी किस्से और वीडियो रातदिन डाले थे, वे सब अब दीवाली के फुस पटाखे साबित हुए हैं.

अब पैसा धन्ना सेठ नहीं रख रहे, क्योंकि 2000 रुपए के नोटों को नहीं रखा जा रहा है. यह आम आदमी रख रहा है, गरीब रख रहा है, 2000 रुपए के नोट जो पहले 38 फीसदी थे अब घट कर 31 फीसदी रह गए हैं. साफ है कि लोग 500 और 100-200 रुपए के नोट रख रहे हैं. ये गरीब हैं. ये जोखिम ले रहे हैं कि उन के नोट चोरी हो जाएं, गल जाएं, जल जाएं, पर ये बैंक अकाउंट में नहीं रख रहे.

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जीएसटी का भी यही हुआ है. ‘एक देश एक टैक्स’ के नाम पर लोगों को जी भर के बहलाया गया. पूजापाठी जनता जो सोचती है कि उस के सारे दुखों को दूर करने का मंत्र मंदिर या उस के पंडों के पास है, इस पर खूब खुश हुई. अब एकएक कर के सख्त जीएसटी कानून में ढीलें देनी पड़ रही हैं.

इस साल निर्मला सीतारमन ने अमीरों पर 7 फीसदी का टैक्स बढ़ाया था. 3 महीने में उन की हेकड़ी निकल गई और टैक्स वापस ही नहीं लिया गया कुछ छूट और दे दी गई.

‘एक देश एक संविधान एक कानून’ के नाम पर कश्मीर के बारे में अनुच्छेद 370 और 35ए को संविधान से लगभग हटाया गया, पर क्या हुआ? न कश्मीरी लड़कियां देश के बाकी हिस्से के तैयार बैठे भगवाई सोशल मीडिया रणबांकुरों को मिलीं, न ही कश्मीर में जमीन के प्लाट. उलटे देश अरबों रुपए खर्च कर के एक विशाल जेल चला रहा है जहां खाना भी कैदियों को नहीं दिया जा रहा. जो किया गया और जैसे किया गया, उस से साफ है कि 2 पीढ़ी तक तो कश्मीरी भारत को अपना नहीं समझेगा, दूसरे दर्जे का नागरिक बन कर रहना पड़ेगा. आखिर इसी देश का हिंदू सवर्ण भी तो 2000 साल गुलाम बन कर रहा है, कभी शकों का, कभी हूणों का, कभी लोधियों का, कभी मुगलों का और आखिर में अंगरेजों का.

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आज भी देश का पिछड़ा और दलित वर्ग दूसरे दर्जे का नागरिक है. इन में अब कश्मीरी भी शामिल हो गए हैं.

आतंकवादी सीमा के बाहर से नहीं आ रहे. वे छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी नहीं हैं. वे नक्सलबाड़ी में भी नहीं हैं और न ही दिल्ली की जानीमानी संस्था जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हैं. वे हमारे देश के सैकड़ों थानों में हैं, पुलिस की वरदी में. उत्तर प्रदेश के पिलखुआ के इलाके के एक थाने में एक सिक्योरिटी गार्ड की घंटों की पिटाई के बाद हुई मौत का समाचार तो यही कहता है कि घरघर, महल्लेमहल्ले में यदि किसी आतंकवादी से डर लगना चाहिए तो वह खाकी वरदी में आने वाले से लगना चाहिए.

इस गार्ड प्रदीप तोमर को पुलिस चौकी में बुलाया गया था पूछताछ के लिए. प्रदीप तोमर अपने 10 साल के बेटे को साथ ले गया था. बेटे को बाहर बैठा कर अंदर चौकी में 8-10 पुलिस वालों ने घंटों उसे मारापीटा और उस पर पेचकशों से हमला किया. दर्द से कराहते प्रदीप तोमर को पानी तक नहीं दिया गया और तब तक मारा गया जब तक वह मर नहीं गया. उस की लाश पर पिटाई और पेचकशों के निशान मौजूद थे.

इन आतंकवादियों को पूरे शासन के सिस्टम का बचाव मिलता है. कोई किसी को 4 थप्पड़ मार दो तो पुलिस वाले पिटने वाले और पीटने वाले दोनों के लिए 10 दिन की रिमांड ले लेते हैं, पर यहां एक आदमी को वहशियाना तरीके से मारने के बाद सिर्फ सस्पैंड किया गया है. 10-20 दिन में जब लोग इस मामले को भूल जाएंगे, ये पुलिसकर्मी नए शिकार की तलाश में लग जाएंगे पूरी वरदी में.

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हिंदी फिल्म ‘दृश्यम’ में इसी तरह की एक महिला आईजी और उस के पुलिसकर्मियों की क्रूरता को अच्छीखासी तरह दिखाया गया था और फिल्म बनाने वाले ने सिर्फ नौकरी से निकलने की सजा दिखाई थी. जेल में पुलिस वाले जाएं, यह तो हम क्या, दुनिया के किसी देश में नहीं दिखाया जा सकता. यही तो पुलिस वालों को आतंकवादी बनाता है.

आतंकवादियों और पुलिस वालों के आतंक के पीछे सोच एक ही है. आतंकवादी भी तो यही कहते हैं कि वे जुल्म ढहाने वाली सरकार के खिलाफ काम कर रहे हैं. वे लुटेरे नहीं, डाकू नहीं, जनता को बचाने के लिए हत्याएं कर रहे हैं. पुलिस वाले भी यही कहते हैं कि वे जनता को बचाने के लिए चोरउचक्कों से जबरदस्ती उगलवाते हैं और कभीकभी कस्टोडियल डैथ हो जाए तो क्या हो गया?

जैसे आजकल नाथूराम गोडसे को पूजा जाने लगा है, वैसे ही आतंकवादियों को हो सकता है कभी पूजा जाने लगे. पुलिस वालों को तो वहशीपन के बावजूद इज्जत और पैसा दोनों एकदम मिल जाते हैं न.

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Bigg Boss 13: रश्मि देसाई को झूठ बोलना पड़ा भारी, फैंस ने ऐसे सुनाई खरी-खोटी

बिग बौस सीजन 13 की शुरूआत से ही दर्शकों को लड़ाई झगड़े देखने को मिले और इसका सबसे बड़ा कारण था कि इस सीजन का फिनाले सिर्फ 4 ही हफ्तों में आने वाला है. फिनाले के चलते हर कंटेस्टेंट इसी उम्मीद में लगे हैं कि उन्हें हर हाल में सबको पीछे छोड़ फिनाले तक पहुंचना है. ये बात तो हम सब जानते हैं कि बिग बौस का ऐसा कोई एपिसोड नहीं जाता जब घर में लड़ाई झगड़े देखने को ना मिलें, लेकिन इस बार कंटेस्टेंट रश्मि देसाई पर काफी बड़ा बोम्ब गिरा है.

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पारस छाबड़ा ने जीता टिकेट टू फिनाले…

दरअसल बीते एपिसोड में हुए टिकेट टू फिनाले ‘बीबी होम डिलीवरी’ टास्क के विनर पारस छाबड़ा रहे और इसी के साथ उन्होंने शो के अगले पड़ाव के लिए अपनी दोस्त माहिरा शर्मा को साथ ले जाने का वादा किया. टिकेट टू फिनाले टास्क में सभी घरवालों के बीच काफी अनबन होती नजर आई और इसका एकमात्र कारण था कि सभी घरवालों के बीच फिनाले तक पहुंचने की दौड़ लगी हुई है. इसी के चलते इस टास्क के बाद कंटेस्टेंट रश्मि देसाई इंटरनेट पर काफी ट्रोल होती नजर आईं.

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#rashmidesai हुईं ट्रोल…

टास्क के चलते आरती सिंह और रश्मि देसाई के बीच काफी लड़ाई हुई और इसका कारण ये था कि रश्मि ने डिलीवरी गर्ल के लिए आरती का नाम नहीं लिया, जिसके बादे से आरती रश्मि पर बुरी तरह गुस्सा हो गईं. इसी वजह से सोशल मीडियो पर लोगों ने रश्मि को ट्रोल करना शुरू कर दिया और #rashmidesai लिख लोगों ने उनके खिलाफ बुरा भला बोलना शुरू कर दिया. एक इंटरनेट यूजर नें तो रश्मि को लोमड़ी तक बोल दिया.

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चलिए आपको दिखाते हैं वो ट्वीट्स जिसमें लोगों नें कंटेस्टेंट रश्मि देसाई को बुरी तरह ट्रोल किया है.

Bigg Boss 13: बेघर होते ही सिद्धार्थ डे ने खोली इन सदस्यों की पोल, जानें कौन हैं ‘डबल ढोलकी’

बिग बौस सीजन 13 की शुरूआत से ही दर्शकों को लड़ाई झगड़े देखने को मिले और इसका सबसे बड़ा कारण था कि इस सीजन का फिनाले सिर्फ 4 ही हफ्तों में आने वाला है. फिनाले के चलते हर कंटेस्टेंट इसी उम्मीद में लगे हैं कि उन्हें हर हाल में सबको पीछे छोड़ फिनाले तक पहुंचना है. हाल ही में हुए वीकेंड के वौर में जहां एक तरफ दिवाली के मौके पर सलमान खान ने किसी को भी घर से बेघर नहीं किया था तो वहीं दूसरी तरफ मिड वीक एविक्शन में कंटेस्टेंट सिद्धार्थ डे को रातों रात घर से बेघर कर दिया गया.

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सोशल मीडिया पर शेयर किया गरदन का घाव…

कंटेस्टेंट सिद्धार्थ डे नें बिग बौस के घर से बाहर आते ही एक के बाद एक घरवालों पर वार करने शुरू कर दिए. सबसे पहले तो उन्होनें आरती सिंह और शहनाज गिल को निशाना बनाया और अपनी गरदन का घाव सोशल मीडिया पर शेयर किया. उनका ये घाव तब का है जब नोमिनेशन टास्क के चलते आरती और शहनाज ने उन पर भारी मात्रा में मिर्ची पाउडर और ब्लीच पाउडर का इस्तमाल किया था जिससे कि उनकी गरदन जल गई थी.

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असीम रियाज और शहनाज गिल पर साधा निशाना…

इसके बाद सिद्धार्थ डे की एक वीडियो सोशल मीडियो पर काफी वायरल हो रही है जिसमें सिद्धार्थ ने असीम रियाज और शहनाज गिल पर निशाना साधा है. सिद्धार्थ डे ने असीम रियाज को बिग बौस 13 के घर का सबसे शातिर सदस्य बताया तो वहीं दूसरी तरफ उन्होनें शहनाज गिल के बारे में बात करते हुए बताया कि वे डबल ढ़ोलकी हैं और समय के साथ अपनी टीम बदल लेती हैं.

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सिद्धार्थ शुक्ला को बताया चालाक…

इसके चलते, सिद्धार्थ डे का मानना है कि, असीम की जगह सबसे शातिर सिद्धार्थ शुक्ला को कहा जाना चाहिए. वह हमेशा गेम खेलते हैं. वह बात अलग है कि, लोगों का ध्यान उसकी चालाकी पर नहीं जाता. उन्होनें शेफाली बग्घा के बारे में बात करते हुए उन्हे अपना बेस्ट फ्रेंड बताया.

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4 वाइल्डकार्ड एंट्रीज…

बता दें, बिग बौस के घर के अंदर 4 वाइल्डकार्ड एंट्रीज हो चुकी हैं जिसमें से भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव, शेफाली जरीवाला, विकास पाठक (हिंदुस्तानी भाउ), और तेहसीन पूनावाला का नाम शामिल है. वो बात अलग है कि इनमें से कोई भी अभी तक घरवालों से रू-ब-रू नहीं हुआ है लेकिन देखने वाली बात अब ये होगी कि घरवाले जब इन वाइल्डकार्ड एंट्रीज से मिलेंगे तो उनका कैसा रिएक्शन होगा.

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ड्रग्स चख भी मत लेना: भाग 2

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2-3 घंटेउस बार में गुजार कर वह वापस आई तो मुग्धा काफी बहकीबहकी और दार्शनिकों की सी बातें कर रही थी कि जीवन नश्वर है, जवानी बारबार नहीं आती, इसे जीभर कर एंजौय करना चाहिए. अच्छी बात यह रही कि मुग्धा ने उसे नशे के लिए बाध्य नहीं किया था. हां, पहली बार स्नेहा ने सिगरेट के एकदो कश लिए थे जो चौकलेट फ्लेवर की थी.

रूम पर आ कर उसे बार के उन्मुक्त दृश्य और मुग्धा की बातें याद आती रहीं कि ड्रग्स का अपना एक अलग मजा है जिसे एक बार चखने में कोई हर्ज नहीं, फिर तो जिंदगी में यह मौका मिलना नहीं है और यह कोई गुनाह नहीं बल्कि उम्र और वक्त की मांग है. आजकल हर कोई इस का लुत्फ लेता है. इस से एनर्जी भी मिलती है और अपने अलग वजूद का एहसास भी होता है.

अगले सप्ताह वह फिर मुग्धा के साथ गई और इस बार हुक्के के कश भी लिए. कश लेते ही वह मानो एक दूसरी दुनिया में पहुंच गई. नख से ले कर शिख तक एक अजीब सा करंट शरीर में दौड़ गया. फिर यह हर रोज का सिलसिला हो गया. शुरू में उस का खर्च मुग्धा उठाती थी. अब उलटा होने लगा था. मुग्धा का खर्च स्नेहा उठाती थी, जो एक बार में 2 हजार रुपए के लगभग बैठता था.

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स्नेहा झूठ बोल कर घर से ज्यादा पैसे मंगाने लगी. यहां तक तो बात ठीकठाक रही. लेकिन एक दिन मुग्धा के एक दोस्त अभिषेक (बदला नाम) के कहने पर उस ने चुटकीभर एक सफेद पाउडर जीभ पर रख लिया तो मानो जन्नत जमीन पर आ गई. अभिषेक ने इतनाभर कहा था. इस हुक्कासिगरेट में कुछ नहीं रखा रियल एंजौय करना है तो इसे एक बार चख कर देखो.

स्नेहा की कहानी बहुत लंबी है जिस का सार यह है कि वह अब पार्टटाइम कौलगर्ल बन चुकी है और हर 15 दिन में होशंगाबाद रोड स्थित एक फार्महाउस जाती है जहां नशे का सारा सामान खासतौर से उस सफेद पाउडर की 10 ग्राम के लगभग की एक पुडि़या मुफ्त मिलती है. एवज में उसे अभिषेक और उस के 3-4 रईस दोस्तों का बिस्तर गर्म करना पड़ता है जो अब उसे हर्ज की बात नहीं लगती. यह उस की मजबूरी हो गई है.

अब स्नेहा उस पाउडर के बगैर रह नहीं पाती. लेकिन उस की सेहत गिर रही है. उसे कभी भी डिप्रैशन हो जाता है, नींद नहीं आती, डाइजैशन खराब हो चला है. और सब से अहम बात, वह अपनी ही निगाह में गिर चुकी है. मम्मीपापा से वह पहले की तरह आंख मिला कर आत्मविश्वास से बात नहीं कर पाती. जैसेतैसे पढ़ कर पास हो जाती है.

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स्नेहा के दोस्तों का दायरा काफी बढ़ गया है और उस की कई नई फ्रैंड्स भी उस फार्महाउस में जाती हैं, मौजमस्ती करती हैं, सैक्स करती हैं, नशा करती हैं और दूसरे दिन दोपहर को रूम पर वापस आ कर प्रतिज्ञा भी करती हैं कि अब नहीं जाएंगी. लेकिन नशे की लत उन की यह प्रतिज्ञा हर 15 दिन में कच्चे धागे की तरह तोड़ देती है.

कहानी (दो)

24 वर्षीय प्रबल (बदला हुआ नाम) भी इंजीनियरिंग का छात्र है. फर्स्ट ईयर से ही वह होस्टल में रह रहा है. सिगरेट तो वह कालेज में दाखिले के साथ ही पीने लगा था लेकिन अब कोकीन और हेरोइन भी लेने लगा है.

स्नेहा की तरह वह भी अपने एक दोस्त के जरिए इस लत का शिकार हुआ था. पैसे कम पड़ने लगे तो सप्लायर ने उसे रास्ता सुझाया कि मुंबई जाओ और यह माल बताई गई जगह पर पहुंचा दो. आनेजाने के खर्चे के अलावा 5 हजार रुपए और महीनेभर की पुडि़या मुफ्त मिलेगी. प्रस्ताव सुन कर वह डर गया कि पुलिस ने पकड़ लिया तो… जवाब मिला कि संभल कर रहोगे तो ऐसा होगा नहीं. अगर पुडि़या चाहिए तो यह तो करना ही पड़ेगा.

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ऐसा नहीं है कि प्रबल ने इस लत से छुटकारा पाने की कोशिश न की हो. लेकिन मनोचिकित्सक की सलाह पर वह ज्यादा दिन तक अमल नहीं कर पाया और दवाइयां भी वक्त पर नहीं खा पाया. एक नशामुक्ति केंद्र भी वह गया, कसरत की, बताए गए निर्देशों का पालन किया लेकिन 3-4 महीने बाद ही फिर तलब लगी तो वह वापस उसी दुनिया में पहुंच गया. अब हर 2-3 महीने में वह पुणे, नागपुर, जलगांव, नासिक और मुंबई दिया गया माल पहुंचाता है और 4-6 महीने के लिए बेफिक्र हो जाता है.

प्रबल की परेशानी यह है कि अगर कभी पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो फिर वह कहीं का नहीं रह जाएगा. आएदिन अखबारों में छापे की खबरें पढ़ कर वह और परेशान हो जाता है और अपने भीतर की घबराहट से बचने के लिए ज्यादा नशा करने लगता है. वह समझ रहा है कि वह ड्रग माफिया का बहुत छोटा प्यादा बन चुका है, लेकिन इस के अलावा उसे कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा कि इस चक्रव्यूह से कैसे निकले.

लगता नहीं कि बिना किसी हादसे के वह बाहर निकल पाएगा और निकल भी पाया तो उस का भविष्य क्या होगा, यह कहना मुश्किल है. लेकिन इसी दौरान उसे इस रहस्यमयी कारोबार के कुछ गुर और रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग्स के नाम रट गए हैं, मसलन हेरोइन, कोकीन, एलएसडी, क्रिस्टल मेथ, प्वाइंट यानी गांजे वाली सिगरेट और चरस सहित कुछ नए नाम जैसे मारिजुआना, फेंटेनी वगैरहवगैरह.

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नुकसान ही नुकसान

ये ड्रग्स युवाओं को हर लिहाज से खोखला कर रहे हैं जिन के सेवन से 2-4 घंटे का स्वर्ग तो भोगा जा सकता है लेकिन बाकी जिंदगी नर्क बन कर रह जाती है. तमाम ड्रग्स सीधे नर्वस सिस्टम पर प्रभाव डालते हैं, जिन के चलते नशेड़ी वर्तमान से कट कर ख्वाबोंखयालों की एक काल्पनिक दुनिया में पहुंच जाता है जहां कोई चिंता, तनाव या परेशानी नहीं होती, होता है तो एक सुख जो आभासी होता है.

ड्रग्स सेवन के शुरुआती कुछ दिन तो शरीर और दिमाग को होने वाले नुकसानों का पता नहीं चलता लेकिन 4-6 महीने बाद ही इन के दुष्परिणाम दिखना शुरू हो जाते हैं. सिरदर्द, डिप्रैशन, चक्कर आना, भूख न लगना, हाजमा गड़बड़ाना, कमजोरी और थकान इन में प्रमुख हैं.

इन कमजोरियों से बचने के लिए इलाज कराने के बाद युवा ड्रग्स की खुराक बढ़ा देते हैं. यही एडिक्शन का आरंभ और अंत है. यहीं से वे आर्थिक रूप से भी खोखले होना शुरू हो जाते हैं और पैसों के लिए छोटेबड़े जुर्म करने से नहीं हिचकिचाते. चेन स्नैचिंग, बाइक और मोबाइल चोरी, छोटीमोटी स्मगलिंग इन में खास है जिन में कई युवा पकड़े जाते हैं और अपना कैरियर व भविष्य चौपट कर बैठते हैं.

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लड़कियों की तो और भी दुर्गति होती है. उन्हें आसानी से देहव्यापार में ड्रग्स के सौदागर धकेल देते हैं. स्नेहा और मुग्धा जैसी लाखों युवतियां पार्टटाइम कौलगर्ल बन जाती हैं. इन में फिर न आत्मविश्वास रह जाता है और न ही स्वाभिमान. छोटेबड़े नेता, कारोबारी, ऐयाश अफसर और रईसजादे इन युवतियों को भोगते हैं और इन्हें इस दलदल में बनाए रखने के लिए पैसे और ड्रग्स देते व दिलवाते हैं. और जब वे भार बनने लगती हैं तो उन्हें शिवानी शर्मा की तरह कीड़ेमकोड़े की तरह मार दिया जाता है.

चखना मत

इस गोरखधंधे के खात्मे के लिए जिस इच्छाशक्ति की जरूरत है वह न तो नेताओं में है, न अफसरों में. उलटे, वे तो अपनी हवस और पैसों के लिए इस काले कारोबार को और बढ़ावा देते हैं.

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के खेल विभाग के एक आदतन नशेड़ी छात्र के मुताबिक, ड्रग्स सेवन की लत एक वाक्य ‘एक बार चख कर तो देख’ से शुरू होती है और जो फिर कभी खत्म नहीं होती. खत्म कुछ युवा हो जाते हैं जो घबरा कर या डिप्रैशन के चलते खुदकुशी कर लेते हैं.

इस खिलाड़ी छात्र का कहना है कि इस चक्कर में कभी कोई युवा भूल कर भी न पड़े. इसलिए उसे एक बार चखने की जिद या आग्रह से बच कर रहना चाहिए. देशभर के होस्टल कैंपस में यह कारोबार फैला है जिस के कभी खत्म होने की कोई उम्मीद नहीं है.

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कई बार युवा साथियों को जानबूझ कर इन जानलेवा नशे की तरफ खींचते हैं. इस के लिए उन्हें लालच दिया जाता है और दबाव भी बनाया जाता है. फिर ड्रग आकाओं के इशारे पर नाचने के अलावा इन के पास कोई और रास्ता नहीं रह जाता. युवतियां नशे के कारोबार की सौफ्ट टारगेट होती हैं जिन्हें ड्रग्स की लत लगा कर बड़े होटलों, फार्महाउसों और बंगलों तक में भेजा जाता है. ये लड़कियां जिंदगीभर पछताती रहती हैं कि काश, पहली बार ड्रग चखी न होती, तो आज उन की यह हालत न होती.

ड्रग्स और उस के कारोबारियों के खिलाफ हर कहीं मुहिम चलती है लेकिन जल्द ही दम तोड़ देती है क्योंकि ड्रग माफियाओं का शिकंजा इतना कसा हुआ है कि उस पर इन अभियानों का कोई असर नहीं होता.

कामयाब: भाग 2

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उस के बाद के कुछ दिन बेहद व्यस्तता में बीते. स्कूल में समयसमय पर किसी नामी हस्ती को बुला कर विविध विषयों पर व्याख्यान आयोजित होते रहते थे जिस से बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके. इस बार का विषय था ‘व्यक्तित्व को आकर्षक और खूबसूरत कैसे बनाएं.’ विचार व्यक्त करने के लिए एक जानीमानी हस्ती आ रही थी.

आयोजन को सफल बनाने की जिम्मेदारी मुख्याध्यापिका ने चित्रा को सौंप दी. हाल को सुनियोजित करना, नाश्तापानी की व्यवस्था के साथ हर क्लास को इस आयोजन की जानकारी देना, सब उसे ही संभालना था. यह सब वह सदा करती आई थी पर इस बार न जाने क्यों वह असहज महसूस कर रही थी. ज्यादा सोचने की आदत उस की कभी नहीं रही. जिस काम को करना होता था, उसे पूरा करने के लिए पूरे मनोयोग से जुट जाती थी और पूरा कर के ही दम लेती थी पर इस बार स्वयं में वैसी एकाग्रता नहीं ला पा रही थी. शायद अभिनव और रमा उस के दिलोदिमाग में ऐसे छा गए थे कि  वह चाह कर भी न उन की समस्या का समाधान कर पा रही थी और न ही इस बात को दिलोदिमाग से निकाल पा रही थी.

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आखिर वह दिन आ ही गया. नीरा कौशल ने अपना व्याख्यान शुरू किया. व्यक्तित्व की खूबसूरती न केवल सुंदरता बल्कि चालढाल, वेशभूषा, वाक्शैली के साथ मानसिक विकास तथा उस की अवस्था पर भी निर्भर होती है. चालढाल, वेशभूषा और वाक्शैली के द्वारा व्यक्ति अपने बाहरी आवरण को खूबसूरत और आकर्षक बना सकता है पर सच कहें तो व्यक्ति के व्यक्तित्व का सौंदर्य उस का मस्तिष्क है. अगर मस्तिष्क स्वस्थ नहीं है, सोच सकारात्मक नहीं है तो ऊपरी विकास सतही ही होगा. ऐसा व्यक्ति सदा कुंठित रहेगा तथा उस की कुंठा बातबात पर निकलेगी. या तो वह जीवन से निराश हो कर बैठ जाएगा या स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के लिए कभी वह किसी का अनादर करेगा तो कभी अपशब्द बोलेगा. ऐसा व्यक्ति चाहे कितने ही आकर्षक शरीर का मालिक क्यों न हो पर कभी खूबसूरत नहीं हो सकता, क्योंकि उस के चेहरे पर संतुष्टि नहीं, सदा असंतुष्टि ही झलकेगी और यह असंतुष्टि उस के अच्छेभले चेहरे को कुरूप बना देगी.

मान लीजिए, किसी व्यक्ति के मन में यह विचार आ गया कि उस का समय ठीक नहीं है तो वह चाहे कितने ही प्रयत्न कर ले सफल नहीं हो पाएगा. वह अपनी सफलता की कामना के लिए कभी मंदिर, मसजिद दौड़ेगा तो कभी किसी पंडित या पुजारी से अपनी जन्मकुंडली जंचवाएगा.

मेरे कहने का अर्थ है कि वह प्रयत्न तो कर रहा है पर उस की ऊर्जा अपने काम के प्रति नहीं, अपने मन के उस भ्रम के लिए है…जिस के तहत उस ने मान रखा है कि वह सफल नहीं हो सकता.

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अब इस तसवीर का दूसरा पहलू देखिए. ऐसे समय अगर उसे कोई ग्रहनक्षत्रों का हवाला देते हुए हीरा, पन्ना, पुखराज आदि रत्नों की अंगूठी या लाकेट पहनने के लिए दे दे तथा उसे सफलता मिलने लगे तो स्वाभाविक रूप से उसे लगेगा कि यह सफलता उसे अंगूठी या लाकेट पहनने के कारण मिली पर ऐसा कुछ भी नहीं होता.

वस्तुत: यह सफलता उसे उस अंगूठी या लाकेट पहनने के कारण नहीं मिली बल्कि उस की सोच का नजरिया बदलने के कारण मिली है. वास्तव में उस की जो मानसिक ऊर्जा अन्य कामों में लगती थी अब उस के काम में लगने लगी. उस का एक्शन, उस की परफारमेंस में गुणात्मक परिवर्तन ला देता है. उस की अच्छी परफारमेंस से उसे सफलता मिलने लगती है. सफलता उस के आत्मविश्वास को बढ़ा देती है तथा बढ़ा आत्मविश्वास उस के पूरे व्यक्तित्व को ही बदल डालता है जिस के कारण हमेशा बुझाबुझा रहने वाला उस का चेहरा अब अनोखे आत्मविश्वास से भर जाता है और वह जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता जाता है. अगर वह अंगूठी या लाकेट पहनने के बावजूद अपनी सोच में परिवर्तन नहीं ला पाता तो वह कभी सफल नहीं हो पाएगा.

इस के आगे व्याख्याता नीरा कौशल ने क्या कहा, कुछ नहीं पता…एकाएक चित्रा के मन में एक योजना आकार लेने लगी. न जाने उसे ऐसा क्यों लगने लगा कि उसे एक ऐसा सूत्र मिल गया है जिस के सहारे वह अपने मन में चलते द्वंद्व से मुक्ति पा सकती है, एक नई दिशा दे सकती है जो शायद किसी के काम आ जाए.

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दूसरे दिन वह रमा के पास गई तथा बिना किसी लागलपेट के उस ने अपने मन की बात कह दी. उस की बात सुन कर वह बोली, ‘‘लेकिन अभिजीत इन बातों को बिलकुल नहीं मानने वाले. वह तो वैसे ही कहते रहते हैं. न जाने क्या फितूर समा गया है इस लड़के के दिमाग में… काम की हर जगह पूछ है, काम अच्छा करेगा तो सफलता तो स्वयं मिलती जाएगी.’’

‘‘मैं भी कहां मानती हूं इन सब बातों को. पर अभिनव के मन का फितूर तो निकालना ही होगा. बस, इसी के लिए एक छोटा सा प्रयास करना चाहती हूं.’’

‘‘तो क्या करना होगा?’’

‘‘मेरी जानपहचान के एक पंडित हैं, मैं उन को बुला लेती हूं. तुम बस अभिनव और उस की कुंडली ले कर आ जाना. बाकी मैं संभाल लूंगी.’’

नियत समय पर रमा अभिनव के साथ आ गई. पंडित ने उस की कुंडली देख कर कहा, ‘‘कुंडली तो बहुत अच्छी है, इस कुंडली का जाचक बहुत यशस्वी तथा उच्चप्रतिष्ठित होगा. हां, मंगल ग्रह अवश्य कुछ रुकावट डाल रहा है पर परेशान होने की बात नहीं है. इस का भी समाधान है. खर्च के रूप में 501 रुपए लगेंगे. सब ठीक हो जाएगा. आप ऐसा करें, इस बच्चे के हाथ से मुझे 501 का दान करा दें.’’

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प्रयोग चल निकला. एक दिन रमा बोली, ‘‘चित्रा, तुम्हारी योजना कामयाब रही. अभिनव में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ गया. जहां कुछ समय पूर्व हमेशा निराशा में डूबा बुझीबुझी बातें करता रहता था, अब वही संतुष्ट लगने लगा है. अभी कल ही कह रहा था कि ममा, विपिन सर कह रहे थे कि तुम्हें डिवीजन का हैड बना रहा हूं, अगर काम अच्छा किया तो शीघ्र प्रमोशन मिल जाएगा.’’

रमा के चेहरे पर छाई संतुष्टि जहां चित्रा को सुकून पहुंचा रही थी वहीं इस बात का एहसास भी करा रही थी, कि व्यक्ति की खुशी और दुख उस की मानसिक अवस्था पर निर्भर होते हैं. ग्रहनक्षत्रों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. अब वह उस से कुछ छिपाना नहीं चाहती थी. आखिर मन का बोझ वह कब तक मन में छिपाए रहती.

‘‘रमा, मैं ने तुझ से एक बात छिपाई पर क्या करती, इस के अलावा मेरे पास कोई अन्य उपाय नहीं था,’’ मन कड़ा कर के चित्रा ने कहा.

‘‘क्या कह रही है तू…कौन सी बात छिपाई, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

‘‘दरअसल उस दिन तथाकथित पंडित ने जो तेरे और अभिनव के सामने कहा, वह मेरे निर्देश पर कहा था. वह कुंडली बांचने वाला पंडित नहीं बल्कि मेरे स्कूल का ही एक अध्यापक था, जिसे सारी बातें बता कर, मैं ने मदद मांगी थी तथा वह भी सारी घटना का पता लगने पर मेरा साथ देने को तैयार हो गया था,’’ चित्रा ने रमा को सब सचसच बता कर झूठ के लिए क्षमा मांग ली और अंदर से ला कर उस के दिए 501 रुपए उसे लौटा दिए.

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‘‘मैं नहीं जानती झूठसच क्या है. बस, इतना जानती हूं कि तू ने जो किया अभिनव की भलाई के लिए किया. वही किसी की बातों में आ कर भटक गया था. तू ने तो उसे राह दिखाई है फिर यह ग्लानि और दुख कैसा?’’

‘‘जो कार्य एक भूलेभटके इनसान को सही राह दिखा दे वह रास्ता कभी गलत हो ही नहीं सकता. दूसरे चाहे जो भी कहें या मानें पर मैं ऐसा ही मानती हूं और तुझे विश्वास दिलाती हूं कि यह बात एक न एक दिन अभिनव को भी बता दूंगी, जिस से कि वह कभी भविष्य में ऐसे किसी चक्कर में न पड़े,’’ रमा ने उस की बातें सुन कर उसे गले से लगाते हुए कहा.

रमा की बात सुन कर चित्रा के दिल से एक भारी बोझ उठ गया. दुखसुख, सफलताअसफलता तो हर इनसान के हिस्से में आते हैं पर जो जीवन में आए कठिन समय को हिम्मत से झेल लेता है वही सफल हो पाता है. भले ही सही रास्ता दिखाने के लिए उसे झूठ का सहारा लेना पड़ा पर उसे इस बात की संतुष्टि थी कि वह अपने मकसद में कामयाब रही.

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‘उजड़ा चमन’ फिल्म रिव्यू, जैसा नाम वैसा हाल

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः मंगत कुमार पाठक

निर्देशकः अभिषेक पाठक

कलाकारः सनी सिंह,मानवी गगरू,सौरभ शुक्ला,ग्रुशा कपूर,ऐश्वर्या सखूजा, करिश्मा शर्मा,अतुल कुमार

अवधिः दो घंटे

हीन ग्रथि से उबरने के साथ साथ इंसान की असली सुंदरता उसके लुक शारीरिक बनावट पर नही बल्कि उसके अंतर्मन में निहित होती है,उसके स्वभाव में होती है. इस मुद्दे पर एक हीन ग्रथि के शिकार  तीस वर्षीय प्रोफेसर, जिसके सिर पर बहुत कम बाल है,की कहानी को हास्य के साथ पेश करने वाली फिल्म ‘‘उजड़ा चमन’’ फिल्मकार अभिषेक पाठक लेकर आए हैं. मगर वह बुरी तरह से असफल रहे हैं.फिल्म दस मिनट के लिए भी दर्शक को बांधकर नहीं रखती.

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कहानीः

2017 की सफल कन्नड़ फिल्म ‘‘ओंडू मोट्टेया कठे’’ की हिंदी रीमेक ‘उजड़ा चमन‘ की कहानी दिल्ली युनिवर्सिटी के हंसराज कौलेज में लेक्चरर प्रोफेसर के रूप में कार्यरत 30 वर्षीय चमन कोहली (सनी सिंह) की दुःखद दास्तान है, जो कि सिर पर बहुत कम बाल यानी कि गंजा होने के कारण हर किसी के हंसी का पात्र बनते हैं.

उनके विद्यार्थी भी कक्षा में उन्हें ‘उजड़ा चमन’ कह कर मजाक उड़ाते हैं. इसी समस्या के चलते उनकी शादी नहीं हो रही है, इससे चमन के पिता (अतुल कुमार   )और माता (ग्रुशा कपूर ) बहुत परेशान हैं. यह परेशानी तब और अधिक बढ़ जाती है जब एक ज्योतिषी गुरू जी (सौरभ शुक्ला) भविष्यवाणी कर देते हैं कि यदि 31 की उम्र से पहले चमन की शादी न हुई, तो वह संन्यासी हो जाएंगे. इसलिए चमन शादी के लिए लड़की तलाशने के लिए कई जुगाड़ लगाते हैं.

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टिंडर पर दोस्ती करना शुरू करते हैं. दूसरों की शादी में जाकर लड़कियों के आगे पीछे मंडराते हैं. अपने गंजेपन को छिपाने के लिए विग लगाने से लेकर ट्रांसप्लांट तक की सोचते हैं, लेकिन बात नहीं बनती. अचानक टिंडर के कारण उनकी मुलाकात एक मोटी लड़की अप्सरा (मानवी गगरू) से होती है. पर जब दोनों सामने आते हैं, तो कहानी किस तरह हिचकोले लेती है, वह तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा.

लेखनः

फिल्मकार ने एक बेहतरीन विषय को चुना,मगर पटकथा व संवाद लेखक दानिश खान ‘बाल नहीं, तो लड़की नहीं‘ पर ही दो घंटे तक इस तरह चिपके रहे कि दर्शक कहने लगा ‘कहां फंसाओ नाथ. ’इंटरवल से पहले गंजेपन के चलते मजाक के ही दृश्य हैं,जो कि जबरन ठूंसे गए नजर आते है.

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हंसराज हंस कालेज के अंदर के दृश्य,खासकर प्रिंसिपल के आफिस के अंदर का दृश्य इस कदर अविश्वसनीय और फूहड़ लगता है कि आम दर्शक को भी लेखक की सोच पर तरस आने लगता है. लेखक चमन के किरदार को भी सही ढंग से नहीं गढ़ पाए. वह कभी सभ्य व संवेदनाशील लगते हैं, तो कभी बहुत गंदे नजर आते हैं. पिता व पुत्र के बीच के रिश्ते व संवाद भी फूहड़ता की सारी सीमाएं तोड़ते हैं. चमन के पिता ‘लड़का प्योर है’ व ‘वर्जिन है’ कई बार दोहराते हैं.जिसके कोई मायने नहीं.

निर्देशनः

कुछ वर्ष पहले अभिषेक पाठक ने पानी पर एक बेहतरीन डाक्यूमेंटरी फिल्म बनायी थी,जिसके लिए उन्हे पुरस्कृत भी किया गया था.उस वक्त वह एक संजीदा निर्देशक रूप में उभरे थे. मगर ‘उजड़ा चमन’देखकर यह अहसास नही होता उन्ही अभिषेक पाठक ने इसका निर्देशन किया है. निर्देशन में भी खामियां हैं. निर्देशकीय व लेखक की कमजोरी के चलते पूरी फिल्म में हीनग्रंथि की बात उभरकर आती ही नही है.

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अभिनयः

सनी सिंह की यह पहली फिल्म नहीं है. मगर पूरी फिल्म में वह एकदम सपाट चेहरा लिए ऐसे इंसान नजर आते हैं, जिसके अंदर किसी तरह की कोई भावना नही होती. वह इस फिल्म में सोलो हीरो बनकर आए हैं, पर वह इसका फायदा उठाते हुए बेहतरीन अदाकारी दिखाने  का मौका खो बैठे. जबकि छोटे किरदार में मानवी गगरू अपनी छाप छोड़ जाती हैं. अतुल कुमार, ग्रुशा कपूर, गौरव अरोड़ा, करिश्मा शर्मा, ऐश्वर्या सखूजा, शारिब हाशमी ने ठीक ठाक काम किया है.

Bigg Boss के घर में सिद्धार्थ शुक्ला की एक्स गर्लफ्रेंड की हुई एंट्री, आएगा नया ट्विस्ट

टेलीविजन इंडस्ट्री का सबसे ज्यादा टी.आर.पी गेन करने वाला कलर्स टी.वी का रीएलिटी शो बिग बौस के सीजन 13 में अब मामला गंभीर होता दिखाई दे रहा है. जहां एक तरफ बीते दिनों मिड वीक एविक्शन में कंटेस्टेंट सिद्धार्थ डे को घर से बेघर कर दिया गया तो वहीं दूसरी तरफ 4 लोगों ने घर के अंदर वाइल्डकार्ड एंट्री भी मारी है जिसमें से भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव, शेफाली जरीवाला, विकास पाठक (हिंदुस्तानी भाउ), और तेहसीन पूनावाला का नाम शामिल है.

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इन हसीनाओं के साथ जुड़ चुका है सिदधार्थ शुक्ला का नाम…

टेलिविजन के मोस्ट एलिजिबल बैचलर कहे जाने वाले एक्टर सिदधार्थ शुक्ला लड़कियों के बीच काफी पौपुलर है और इस बात का अंदाजा को आप इसी से लगा सकते हैं कि इतनी ज्यादा दुश्मनी के बाद भी रश्मि देसाई ने सिद्धार्थ शुक्ला से दोस्ती करने की कोशिश की. रश्मि देसाई के अलावा सिदधार्थ शुक्ला का नाम दृष्टि धामी, स्मिता बंसल और आरती सिंह जैसी हसीनाओं के साथ जुड़ चुका है.

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कैसे करेंगे सिदधार्थ शुक्ला रिएक्ट…

खबरों के उनुसार, बिग बौस के घर के अंदर एक ऐसी एक्ट्रेस की एंट्री हो चुकी है जो मोस्ट एलिजिबल बैचलर यानी सिदधार्थ शुक्ला की एक्स गर्लफ्रेंड रह चुकी हैं. अभी तक वे घर में किसी से रू-ब-रू नहीं हुई हैं लेकिन देखने वाली बात ये होगी कि अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को देख सिद्धार्थ शुक्ला कैसे रिएक्ट करेंगे, और उस एक्स गर्लफ्रेंड का नाम है शेफाली जरीवाला. जी हां, एक इंटरव्यू के दौरान ये सामने आया है कि शेफाली सिदधार्थ शुक्ला की एक्स गर्लफ्रेंड कह चुकी हैं.

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शादी से पहले किया ब्रेक-अप…

बता दें, शेफाली जरीवाला नें सौन्ग कांटा लगा से काफी पौपुलैरिटी गेन की थी और वे हरमीत म्यूजिक बैंड ‘मीत ब्रोज’ का हिस्सा भी रह चुकी हैं. खबरों की माने तो काफी लंबे समय तक शेफाली जरीवाला और सिदधार्थ शुक्ला का रिलेशन चला था पर शेफाली ने हरमीत से शादी करने के लिए सिद्धार्थ शुक्ला के साथ ब्रेक-अप कर लिया था. ऐसे में अब देखने वाली बात ये होगी कि, जब सिद्धार्थ शुक्ला और शेफाली का आमना सामना होगा तो, शो में क्या नया बदलाव दर्शकों को देखने को मिलने वाला है.

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