Editorial: किसानों के नाम पर राजनीति, असल में सिर्फ व्यापार

Editorial: सरकार का मानना है या कहिए कि उस का बहाना है कि उस ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बात इसलिए नहीं मानी कि वह भारत के बाजार को अमेरिका के खेतों से आए अनाज और डेयरी प्रोडक्ट्स को सस्ते में देश में बिकने की छूट नहीं देना चाहती थी. सरकार ने अमेरिका को भारत से जाने वाले सामान पर 25 से 40 फीसदी की कस्टम ड्यूटी लगने दी पर अपने किसानों को बचा लिया है.

अफसोस यह है कि सरकार इस बात में उतनी ही गलतबयानी कर रही है जितनी वह नोटबंदी, टैक्सबंदी, तालाबंदी और अब बिहार वाली वोटबंदी में कर रही है. सरकार को, इस सरकार को किसानों से कोई प्यार नहीं उमड़ रहा. इस सरकार के लिए पुराणों के अनुसार किसान आम वैश्य या शूद्र हैं जो ऊंची जातियों की सेवा करने के लिए बने हैं. हमारी वर्णव्यवस्था में तो वैश्यों का काम खेती करना था क्योंकि उस युग में शायद व्यापार न के बराबर था.

शूद्र जो शायद आज के पिछड़े हैं और किसान बन गए हैं और वैश्य जो दुकानदार बन गए हैं, सरकार यानी राज्य के लिए बेमतलब के हैं. सरकार उन्हें नहीं बचा रही, वह उन मुट्ठी भर धन्ना सेठों को बचा रही है जिन्होंने आज किसानों की बनाई चीजों पर पूरी तरह कब्जा कर लिया है. आज किसान को अपना सामान घरों में सीधे बेचने नहीं दिया जाता. उसे मंडी में बेचना होता है या सरकार को.

सरकार ने इस तरह का ढांचा बना लिया है कि देश का किसान मेहनत कर के जो भी अनाज, दूध, गन्ना, फलफूल पैदा करता है तुरंत बड़ी, बहुत बड़ी कंपनियों के हाथों में चला जाता है, वह भी मनमाने दामों पर. मंडी और सुपर मंडी कौमेडिटी ऐक्सचेंज पर धन्ना सेठों का कब्जा है या सरकारों का. यही ताकत है जिस से वोटों को खरीदा जाता है.

भारत चाहे दुनिया की चौथी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था है और सब से तेज बढ़ने वाली हो, उस की 80 फीसदी जनता, चाहे गांवकसबों में रह रही हो या शहरों की स्लम बस्तियों में, जानवरों की तरह रहती है. 2 डौलर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन आय पर. 700-800 डौलर सालाना. अमेरिका में किसानों की प्रति व्यक्ति आय 20,000 डौलर सालाना के आसपास है.

अमेरिका को भारत के खेती के सामान न आने देने का मतलब है कि सदियों से जो किसानों को लूटने का ढांचा बना है जिसे पौराणिक युग से आज तक चलाया जा रहा है, टूट न जाए. अमेरिकी जिस क्षेत्र में घुसते हैं वहां का नक्शा बदल देते हैं. वे गाडि़यों में घुसे तो अंबेसडर गाड़ी बननी बंद हो गई. मशीनों में घुसे तो लुहारों की जगह नईनई मशीनें आ गईं. अमेरिका के पीछेपीछे यूरोप, चीन और जापान भी आ जाएंगे और वे न सिर्फ खेती में उथलपुथल कर देंगे, गांवों का सामाजिक नक्शा भी बदल देंगे. सवर्णों की सामाजिक, सरकारी व राजनीतिक रोबदारी का युग खत्म कर देंगे.

भारत ने डोनाल्ड ट्रंप से बैर लिया है क्योंकि यहां के नेता, चाहे किसी की तरफ बैठे हों, नौकरशाह, व्यापारी, किसी भी तरह से गांवों का कायापलट होता नहीं देखना चाहते. उन्होंने पहले जम कर जीएम बीजों को नहीं आने दिया था. आज की फर्टिलाइजर व पैस्टीसाइड व इनसैक्टिसाइड को जमीन के लिए नुकसानदेय कह कर रोकते हैं. डोनाल्ड ट्रंप भारत का भला नहीं चाहते पर असल में अमेरिकी सामान के साथसाथ अमेरिकी सोच, जो अब खुद सड़ने लगी है, आएगी. भारत के आका उसे गांवों में नहीं घुसने देना चाहते क्योंकि वहीं से सस्ते, भूखे, जानवरों की तरह रहने वाले मजदूर मिल रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप जैसे तो आतेजाते रहेंगे पर एक बार अमेरिकियों के लिए भारत की खेती के दरवाजे खुल गए तो वे ऐसे छा जाएंगे जैसे अमेरिकी तकनीक पर बने मोबाइल देश पर छा गए हैं जिन के बलबूते पर किसान अब मजबूत सरकार को हिला सकते हैं.

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भारतीय जनता पार्टी बिहार में मतदाता सूचियों को महज जांच करने का काम कर के वही कर रही है जो उस का पुराना, बहुत पुराना मकसद रहा है. भारतीय जनता पार्टी नहीं चाहती कि किसी भी तरह से देश के दलित, शूद्र (पिछड़े) जो हिंदू आबादी के 80-85 फीसदी हैं, ऊंची जातियों के बराबर बैठ सकें.

1757 में अंगरेजों ने जब प्लासी की लड़ाई के बाद राज करना शुरू किया तो उन्हें सिपाहियों की जरूरत हुई. उन्होंने बंगाल इंफैंट्री खड़ी की पर उस में उन्हें 5 फुट 6 इंच से ऊपर के केवल ऊंची जातियों के ब्राह्मण और राजपूत जो बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में खाली घरों में बैठे पुरोहिताई कर रहे थे या कुछ भूमिहार बन कर खेती कर रहे थे, अंगरेजों के यहां नौकरी कर के भारतीयों पर गोलियां चलाना तो उन्होंने सीख लिया पर अपना ऊंचापन नहीं छोड़ पाए और इन की अपनी जाति का सवाल अंगरेज कमांडर के हुक्म से ऊपर होता?था. कितनी ही बार इन लोगों ने उस कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया जहां नौकरी कोई गुलामी नहीं थी-क्यों-इसलिए कि ये नीची जातियों के लोगों के साथ उठबैठ नहीं सकते थे.

आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने न जाने क्यों इन दबदबे वाले ऊंची जातियों के संविधान सभा में भारी नंबरों में होने के बावजूद हरेक को वोट का हक दे दिया. नेहरूअंबेडकर ने 21 साल से ऊपर वालों को वोट का हक दिया तो राजीव गांधी ने इस घटा कर 18 साल कर दिया. जिन का इस बार जन्म ही पिछले जन्मों के पापों के कारण दलित या शूद्र जाति में हुआ है, वे भला कैसे ऊंची जातियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर बैठ सकते हैं, रामविलास पासवान जैसे के बेटे चिराग पासवान या जतिन राम मांझी की यह जुर्रत कैसे है कि वे ऊंची जातियों के साथ एक टेबल पर बैठे सकें.

उन के पर काटना जरूरी है और अब भारतीय जनता पार्टी ने यह काम चुनाव आयोग को दिया है, विदेशी वोटरों को ढूंढ़ने के बहाने. असल में मतदाता सूचियों से दलितों अतिदलितों, पिछड़ों और अतिपिछड़ों में से काफियों के वोट काटने का काम ही चुनाव आयोग को दिया गया है. टीएन शेषन का जमाना गया जब चुनाव आयोग प्रधानमंत्री तक को आदेश दे सकता था. आज तो चुनाव आयोग जीहुजूर है.

वोट का हक ही ऐसा है जिस से भारतीय जनता पार्टी में अब कईकई लैवलों पर पिछड़ों को बैठाना पड़ रहा है. वे लोग जिन्होंने 1757 से 1857 तक अपने गोरे मालिकों के खिलाफ वे बंदूकें बारबार उठाई थीं जिन से वे हिंदुस्तानियों को ही डराया करते थे, अब पौराणिक राज लाना चाहते हैं. बिहार की गहन मतदाता सूची जांच उसी का पहला पर आखिरी कदम नहीं है.

क्या पिछड़े और दलित इस खेल को समझेंगे? शायद नहीं. उन के दिमागों में पिछले जन्मों के कर्मों के फल की कहानी इस तरह से फिट है कि वोट का हक छिनने को भी वे पिछले जन्म के पाप का फल मानेंगे. वे इस जन्म में और ज्यादा सेवा कर के अगले जन्म में ऊंची जाति में पैदा होने का इंतजार करेंगे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का नहीं. Editorial

Social Problem: लव जिहाद का जंजाल

Social Problem: दूसरे धर्म के लड़के से शादी करना कोई गुनाह नहीं होना चाहिए पर हर धर्म इस पर न सिर्फ नाकभौं चढ़ाता है, मरनेमारने को भी तैयार हो जाता है. धर्म के कारण चाहे न लड़के के बदन में कोई कोढ़ हो, न पैसा हो, लड़की को कोई कैंसर जैसी बीमारी न हो पर धर्मों ने ऐसा जाल बुन रखा है मानो दूसरे धर्म में शादी करना ऐसा है जैसे कोरोना के मरीज से शादी हो रही हो.

दिल्ली के पास रह रही गाजियाबाद की सोनिका चौहान की जिंदगी उस के मांबाप और आसपास के लोगों ने मुहाल कर रखी है क्योंकि उस ने एक खातेपीते मुसलिम घर के लड़के अकबर से शादी कर ली. हिंदू गैंग इसे लव जिहाद मान कर अकबर को भी परेशान कर रहे हैं और सोनिका के मांबाप से उन्होंने सोनिका को किडनैप करवाने की एफआईआर भी लिखवा दी. अकबर 16 दिन जेल में काट कर आया और तब उसे जमानत पर छोड़ा गया. मामला तो लंबा चलेगा और कब सोनिका के घर वाले उस को मनवा लें कि उस ने अपने प्रेमी से बहकावे व धोखे में शादी कर ली, पता नहीं.

यह शादी अगस्त, 2022 में हुई थी पर 3 साल बाद भी हिंदू गैंगों का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ है.

अकबर व सोनिका एकदूसरे को बचपन से जानते थे और एक ही इलाके में रहते थे. शादी उन्होंने स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत की थी इसलिए 3 साल की गुंडागर्दी के बाद भी दोनों आराम से नहीं रह पा रहे.

यह हाल हजारों जोड़ों का देशभर में हो रहा है जिन्होंने किसी दूसरे धर्म में शादी की, जबकि स्पैशल मैरिज ऐक्ट इसे वाजिब मानता है. जहां भाजपा सरकारों ने इस तरह की शादियों पर कानून बनाए भी हैं, वे भी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार काफी लचीले बनाने पड़े हैं और इन शादियों को मुश्किल बनाया गया, पूरी तरह गैरकानूनी नहीं. धार्मिक गैंगों के दबाव में पुलिस वालों को दखल देना पड़ता है.

इस की जड़ में दोनों धर्मों के दुकानदारों के पैसे खोने का डर है. हर ऐसी शादी का मतलब है कि जो दानदक्षिणा पंडितों या मुल्लाओं को मिलती है, वह बंद हो जाएगी. यही नहीं, ऐसी शादी से होने वाले बच्चों का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि उन्हें 18 साल का होने पर धर्म चुनने का हक होता है. हर धर्म जन्म से ही बच्चों पर अपना हक जमाने लगता है और उन के जरीए कमाई करना शुरू कर देता है. तरहतरह की रीतियां धर्म के दुकानदार की मौजूदगी में उसे पैसा दे कर होती हैं. ऐसे में कोई ग्राहक को यों ही क्यों खोने दे?

लव जिहाद का नाम ले कर हिंदू गुंडों को एकजुट होने का मौका मिलता है. गाय तस्करी, मूर्ति को तोड़ना और लव जिहाद गुंडागर्दी के बड़े मौके होते हैं. खाली बैठे कट्टर हिंदू युवाओं को कमाई का अच्छा मौका हर लव जिहाद में मिलता है. इसे ऐसे ही कोई हाथ से क्यों निकलने दे?

अफसोस है कि सरकार अब युवाओं के हकों की जगह दोनों धर्मों के गुरगों की धौंस को बढ़ावा दे रही है. यह युवाओं के दिल की पुकार पर हमला है. प्रेम और शादी युवाओं का मौलिक हक है और धर्म की पैसा वसूलने की जो फटी सी मैली सी चादर उन्हें दी जाती है उस से प्रेम का जोर छिपता नहीं है. इस फटी चादर को तो सदियों पहले फेंक दिया जाना चाहिए था, पर आज भी सोनिका और अकबर जैसों के लिए यह आफत है. Social Problem

Social Issue: औरतों पर जोरजुल्म नेता सब से आगे

Social Issue, विधायकों और सांसदों पर बलात्कार के आरोप

151 वर्तमान सांसदविधायक ऐसे हैं, जिन्होंने औरतों के ऊपर जोरजुल्म से जुड़े मामले घोषित किए हैं, जिस में स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग (आईपीसी-354) विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री का अपहरण करना, या उत्प्रेरित करना (आईपीसी-366) संबंधी मामले दर्ज हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में 14 विधायकों और 2 सांसदों पर रेप के आरोप हैं. भाजपा और कांग्रेस के 5-5 विधायकोंसांसदों पर ये आरोप हैं.

इस में भाजपा के 3 विधायक और 2 सांसद हैं. वहीं, कांग्रेस के 5 विधायकों पर इस तरह के आरोप हैं. आम आदमी पार्टी, भारत आदिवासी पार्टी, बीजू जनता दल, तेलुगु देशम पार्टी के 1-1 विधायक शामिल हैं.

महिला मुख्यमंत्री होने के बाद भी देश का पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है, जो औरतों पर होने वाले जोरजुल्म में नंबर एक पर बना हुआ है. वर्तमान में पश्चिम बंगाल में 25, आंध्र प्रदेश में 21 और ओडिशा में 17 विधायकोंसांसदों पर महिला अपराध से संबंधित मामले दर्ज हैं, जबकि भाजपा के 55, कांग्रेस के 44, आम आदमी पार्टी के 13 विधायकसांसदों इस तरह के आरोप हैं.

मौजूदा दौर में जनप्रतिनिधियों पर इस तरह के आपराधिक आरोप लगने के चलते भारत में चुनाव सुधार की मांग भी बढ़ती जा रही है. एडीआर रिपोर्ट राजनीतिक दलों के लिए अपने उम्मीदवारों की गहन जांच करने और सार्वजनिक पद चाहने वालों के आपराधिक रिकौर्ड के बारे में मतदाताओं को जागरूक करती है. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बहाल करने के लिए भारतीय राजनीति में ज्यादा पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत है.

भारत के नागरिकों, समाजिक संगठनों और राजनीतिक नेताओं को यह तय करना है कि आपराधिक बैकग्राउंड के शख्स को सार्वजनिक पद पर न बिठाएं, ताकि देश की अखंडता और राजनीति में सुचिता बरकरार रहे.

संविधान की प्रस्तावना में यह साफ लिखा है कि भारतीय संविधान जनता से शक्ति प्राप्त करता है. जनता दागी छवि वाले नेताओं को न चुन कर भारतीय राजनीति में सुधार ला सकती है. मगर अफसोस की बात यह है कि इन पदों पर चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर लोगों पर गंभीर किस्म के आपराधिक मामले दर्ज रहते हैं.

शादीशुदा औरतों पर जोरजुल्म करने के मामले केवल गरीब या मिडिल क्लास परिवारों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि हाईप्रोफाइल सोसाइटी में भी औरतें महफूज नहीं हैं. मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक के परिवार की एक बहू काम्या भी इस जोरजुल्म की शिकार हुई हैं.

कांग्रेस विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल के छोटे भाई देवेंद्र सिंह बघेल से काम्या दुबे की शादी 8 फरवरी, 2018 को धूमधाम से हुई थी. शादी के बाद से ही काम्या, देवेंद्र और उन की मां पीथमपुर में रहने लगे थे.

काम्या यही सम?ाती थीं कि उन के पति ‘बघेल फिलिंग्स’ नाम के पैट्रोलपंप पर जाते हैं. पर शादी के कुछ ही दिनों बाद घर में काम करने वाले एक नौकर ने काम्या को बताया कि उन के पति घर से कारोबार संभालने की बजाय शराब पीने के लिए जाते हैं.

काम्या के सपने जल्द ही बिखरने लगे थे. उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था कि इस तरह एक इज्जतदार परिवार के? लोग उन्हें धोखा दे कर उन पर जोरजुल्म करेंगे.

पर जब काम्या के सब्र का बांध टूटा, तो 13 मई, 2025 को वे महिला पुलिस थाना पहुंचीं, जहां पर एसीपी निधि सक्सेना और थाना प्रभारी अंजना दुबे को अपने साथ हुए जोरजुल्म की जानकारी देते हुए लिखित में शिकायत दर्ज कराई.

भोपाल महिला थाना पुलिस ने इस मामले में कांग्रेस विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल, उन की पत्नी शिल्पा सिंह बघेल, भाई देवेंद्र सिंह बघेल, मां चंद्रकुमारी और बहन शीतल सिंह बघेल के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 85, 351(2), 3(5) और दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धाराओं 3 और 4 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

नेता प्रतिपक्ष पर भी गंभीर आरोप

मध्य प्रदेश के कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार पर भी अपनी पत्नी पर जोरजुल्म करने के अलावा अपनी लिवइन पार्टनर सोनिया भारद्वाज की हत्या का गंभीर आरोप लग चुका है.

इस मामले में मार्च, 2025 में उन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पैशल लीव पिटीशन दायर की गई है. यह पिटीशन और किसी ने नहीं, बल्कि उमंग सिंघार की पहली पत्नी प्रतिमा मुदगल ने दायर की है.

मामला 16 मई, 2021 का है. उमंग सिंघार के भोपाल वाले बंगले के बैडरूम में सोनिया भारद्वाज की लाश मिली थी. पुलिस ने तब आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या का केस दर्ज किया था. उस समय उमंग सिंघार के एक आईपीएस रिश्तेदार के दबाव में पुलिस ने महिला की मौत के मामले को सुसाइड में बदल दिया था.

उमंग सिंघार की पत्नी प्रतिमा मुदगल ने इस मामले में एक याचिका दायर की है, जिस में उन्होंने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. याचिका में प्रतिमा मुदगल ने कहा है कि मृतक सोनिया के बेटे ने डीजीपी को एक खत लिखा था, जिस में बेटे ने कहा था कि उस की मां की जान ली गई है, पर उमंग सिंघार और पुलिस ने मिल कर मामले को दूसरा रूप दे दिया है.

पुलिस में मामला दर्ज होने के बाद केस ट्रायल के लिए पहुंच गया. इसी बीच एफआईआर रद्द करने के लिए हाईकोर्ट जबलपुर में अपील की गई. कोर्ट ने सुनवाई के बाद 5 जनवरी, 2022 को एफआईआर रद्द करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता पहली पत्नी ने इसी आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है.

उमंग सिंघार की पत्नी प्रतिमा मुदगल ने अब खुल कर इस का विरोध कर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई है. 142 पन्ने की याचिका में प्रतिमा मुद्गल ने साल 2022 में जबलपुर हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिस के तहत उमंग सिंघार को क्लीनचिट दी गई थी.

उमंग सिंघार ने 16 अप्रैल, 2022 को भोपाल में प्रतिमा मुद्गल से शादी की थी. प्रतिमा ने आरोप लगाते हुए कहा है कि शादी के 2 महीने बाद उमंग सिंघार का बरताव बदल गया था. वे उन्हें मानसिक रूप से सताने लगे थे. उमंग सिंघार ने उन्हें कई बार जान से मारने की धमकी भी दी थी. इस पूरे मामले की शिकायत उन्होंने धार थाने में की थी.

बहू को सुसाइड करने पर मजबूर किया

कानून की शपथ लेने वाले मंत्री भी जातबिरादरी की खाई को पाटने की बजाय उसे और गहरा करने पर आमादा हैं. इस का सुबूत मध्य प्रदेश के एक कैबिनेट मंत्री पर लगे आरोप दे रहे हैं.

मार्च, 2018 में मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार के तब के मंत्री रामपाल सिंह की बहू ने खुदकुशी कर अपनी जान दे दी थी, क्योंकि मंत्री और उन का परिवार उसे अपनी बहू मानने को राजी नहीं था.

राजपूत जाति के मंत्री के दूसरे बेटे गिरजेश प्रताप सिंह ने 20 जून, 2017 को आर्य समाज मंदिर में उदयपुरा की प्रीति रघुवंशी से लवमैरिज की थी, जो मंत्री को नागवार गुजरी थी.

रामपाल सिंह अपने बेटे के इस ब्याह को सामाजिक तौर पर मंजूरी देने को तैयार नहीं थे और उस की दूसरी शादी कराने पर तुले हुए थे.

जब गिरिजेश की पत्नी प्रीति को पता चला कि उस के ससुर ने पति की दूसरी सगाई इंदौर में करा दी है, तो प्रीति रघुवंशी ने फांसी लगा कर अपनी जान दे दी. मामला मीडिया में आने के बाद भी मंत्री रामपाल लगातार प्रीति को अपनी बहू मानने से इनकार करते रहे, लेकिन उन का बेटा गिरिजेश प्रीति के अस्थि विसर्जन में शामिल हुआ था.

हालांकि, इस घटना के बाद रामपाल सिंह को रघुवंशी समाज के विरोध का सामना करना पड़ा था और उन का राजनीतिक कैरियर भी खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है.

सताने में नेता कम नहीं हैं

हमारे देश में औरतों पर होने वाले जोरजुल्म का मुद्दा एक गंभीर चिंता की बात बना हुआ है. देश में रोजाना औरतों पर जोरजुल्म की वारदातें हो रही हैं, पर सरकार इन्हें रोकने में नाकाम ही रही है. औरतों सताने में जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि भी पीछे नहीं हैं.

एडीआर यानी एसोसिएशन औफ डैमोक्रेटिक रिफौर्म्स की ओर से जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि औरतों को सताने में जनप्रतिनिधियों की लंबी लिस्ट है.

इस लिस्ट में हिमाचल प्रदेश के भी एक जनप्रतिनिधि का नाम शामिल है. हिमाचल प्रदेश से 4 लोकसभा और 3 राज्यसभा सांसद आते हैं, जबकि 68 विधायक हिमाचल विधानसभा के सदस्य हैं. इन में से एक विधायक का नाम एडीआर की रिपोर्ट में शामिल है.

हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले की चिंतपूर्णी सीट से कांग्रेस विधायक सुदर्शन बबलू पर भी महिला अपराध से जुड़ा मामला दर्ज है.

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, उन पर महिला अपराध से जुड़ी आईपीसी की धारा 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द, इशारा या कृत्य) के तहत एक मामला दर्ज है.

वैसे, हिमाचल प्रदेश के अलावा मणिपुर, दादर नगर हवेली और दमन और दीव ही 2 ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां 1-1 जनप्रतिनिधि के खिलाफ महिला अपराध से जुड़े मामले चल रहे हैं.

इस के बाद गोवा, असम में 2-2, पंजाब, ?ारखंड में 3-3, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु में 4-4, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, केरल में 5-5 जनप्रतिनिधि इस लिस्ट में शामिल हैं.

इस के अलावा राजस्थान में 6, कर्नाटक में 7, बिहार में 9, महाराष्ट्र और दिल्ली में 13-13, ओडिशा में 17, आंध्र प्रदेश में 21 और पश्चिम बंगाल में सब से ज्यादा 25 सांसद और विधायक इस लिस्ट में शामिल हैं. Social Issue

Bhojpuri Star Pawan Singh की कार कलैक्शन में शामिल हुई एक और कार

Bhojpuri Star Pawan Singh: भोजपुरी सिनेमा जगत के जानेमाने ऐक्टर, गायक और पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह अकसर सुर्खियों में बने रहते हैं. आप को बता दें, पवन सिंह को गाड़ियों का काफी शौक है और इसी बात को ले कर वे एक बार फिर चर्चा का विषय बन गए हैं. खबरों की मानें तो पवन सिंह की कार कलैक्शन में एक और महंगी गाड़ी जुड़ने वाली है और उन्होंने इस गाड़ी की टैस्ट ड्राइव लेने के साथसाथ सभी फीचर्स को भी चैक कर लिया है.

जी हां, पावर स्टार पवन सिंह ने हाल ही में टोयोटा कंपनी की लैंड क्रूजर के लेटैस्ट मौडल को बुक किया है और ऐसा कहा जा रहा है कि इसी नवरात्र वे इस गाड़ी की डिलिवरी भी ले लेंगे. बात करें अगर गाड़ी के बारे में तो इस गाड़ी का मौडल है लैंड क्रूजर LC300 GR-Sport, जिसे कंपनी ने साल 2025 में ही लौंच किया है. और तो और इस गाड़ी की कीमत 3 करोड़ के करीब है. इस खबर को सुनने के बाद पावर स्टार पवन सिंह के फैंस काफी ऐक्साइटेड दिखाई दे रहे हैं.

आप को बता दें, हाल ही में टी सीरीज के औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक गाने की अनाउंसमैंट हुई है जिस में भोजपुरी स्टार पवन सिंह के साथ बौलीवुड ऐक्ट्रैस जरीन खान नजर आने वाली हैं. इस गाने का नाम है ‘प्यार में हैं हम‘ और इसे आवाज दी है पवन सिंह और पायल देव ने. यह गाना 20 अगस्त को रिलीज होने वाला है और फैंस पवन सिंह के इस अपकमिंग गाने को ले कर भी काफी खुश नजर आ रहे हैं. Bhojpuri Star Pawan Singh

News Story In Hindi: वोट काटने का खेल

News Story In Hindi: ‘‘आप सभी का अशोका राज्य में स्वागत है. जनमत नियंत्रण समिति एक सर्वे करा रही है, जिस में हमें लोगों के घरघर जा कर उन से जानकारी हासिल करनी है. हमें यह खबर मिली है कि पिछले सर्वे का आंकड़ा फर्जी था. हमारे सर्वश्रेष्ठ गुरुजी इस बात से नाराज हैं कि बहुत से बाहरी लोग नाम बदल कर यहां रह रहे हैं, इसलिए आप सभी को उन्होंने अपने खर्चे पर यहां बुलाया है,’’ उस भगवाधारी ने विजय और अनामिका के साथ आए और भी दूसरे नौजवानों को इस सर्वे का मकसद बताते हुए कहा.

‘‘पर आप ने ऐसे नौजवानों को ही क्यों इस काम के लिए चुना, जिन की अभी शादी नहीं हुई है?’’ एक लड़के ने सवाल किया.

‘‘हमारे देश में नौजवानों की कोई कमी नहीं है. बहुत से नौजवानों को तो इतना पढ़नेलिखने के बाद भी कोई रोजगार नहीं मिल पाता है. हमारे सर्वश्रेष्ठ गुरुजी चाहते हैं कि जरूरतमंद को काम मिले और उन का राष्ट्रवाद का मकसद भी हासिल हो जाए,’’ उस भगवाधारी ने कहा.

उस भगवाधारी के साथ खड़ी एक जवान लड़की, जिस ने खुद भगवा धारण किया हुआ था, ने बताया, ‘‘आप सब के रहने के लिए यह सरकारी स्कूल खाली करा दिया गया है. वैसे भी यहां कोई पढ़ने नहीं आता है और यह स्कूल बंद सा ही समझो.’’

वाकई उस स्कूल की हालत बड़ी जर्जर थी. कुल 4 कमरे थे. हर कमरे में लाइन से चारपाई बिछी थी. एक लाइन लड़कों के लिए तो दूसरी लाइन पर लड़कियों के सोने का इंतजाम था. टौयलेट थोड़ा दूर था और एक अस्थायी बाथरूम का भी इंतजाम किया गया था.

अनामिका ने विजय से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘यार, यह कहां फंसा दिया तुम ने मुझे.’’

विजय बोला, ‘‘मेरे एक दोस्त ने रिक्वैस्ट की थी कि यह सर्वे करा दो, तो मैं ने हां बोल दिया. यार, यहां भी एक तरह का एडवैंचर रहेगा और हम दोनों को करीब आने का मौका भी मिलेगा.’’

‘‘आप सब लोग अब आराम कीजिए. आप के भोजन का इंतजाम कर दिया गया है. हम कल से सर्वे करेंगे. लोगों से जरूरी जानकारी के फार्म आप को कल दे दिए जाएंगे. आप को लोगों से उन के बारे में पता कर के हर किसी से 500 रुपए लेने हैं.

‘‘यह कोई फीस नहीं नहीं है, बल्कि इन पैसों से उन्हें धार्मिक यात्रा पर भेजा जाएगा, ताकि उन का जीवन धन्य हो जाए,’’ उस भगवाधारी ने कहा.

‘‘पर यहां के लोग तो गरीब लगते हैं. हम उन से 500 रुपए कैसे मांगेंगे? अगर उन्होंने मना कर दिया तो?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘यही तो मेन मुद्दा है. असली राष्ट्रवादी धार्मिक यात्रा के लिए पैसे देने से मना नहीं करेगा. जो मना करेगा, उसे हम बाहरी मान लेंगे, जो यहां नाम बदल कर रह रहे हैं.

‘‘हमारे सर्वश्रेष्ठ गुरुजी का मकसद यही है कि अशोका राज्य में सिर्फ राष्ट्रवादी लोग ही रहेंगे, ताकि यह राज्य खुशहाल बन सके,’’ उस भगवाधारी ने बताया.

‘‘आप ने एक बात तो बताई ही नहीं,’’ भगवाधारी के साथ आई उस जवान लड़की ने कहा.

‘‘कौन सी बात?’’ उस भगवाधारी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘यही कि जो भी आदमी अपनी सही जानकारी देगा, उसे मंदिरों में जाने का हक मिलेगा. इस से राष्ट्रवाद को मजबूती मिलेगी और समाज का कल्याण भी होगा,’’ उस जवान लड़की ने बताया.

‘‘तुम ने सही याद दिलाया. तुम जैसी जागरूक साथी की वजह से ही हमारे सर्वश्रेष्ठ गुरुजी की मुहिम कामयाब हो कर रहेगी,’’ उस भगवाधारी ने मुसकराते हुए कहा.

रात के 9 बज चुके थे. अब स्कूल में सिर्फ वही लोग थे, जो यह सर्वे करने यहां अशोका राज्य में आए थे.

हालांकि, लड़के और लड़कियों के बिस्तर अलगअलग थे, पर रात के अंधेरे में कुछ जोड़े एक ही बिस्तर पर गुटरगूं कर रहे थे. वहां कोई रोकटोक नहीं थी.

विजय और अनामिका भी एक ही चारपाई पर थे. विजय ने अनामिका के बालों में हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, कुछ दिनों की बात है. सर्वे के बहाने हम एकसाथ रहेंगे और कुछ पैसे भी बना लेंगे.’’

‘‘पर विजय, मुझे दाल में कुछ काला लग रहा है. इन लोगों के इरादे सही नहीं लग रहे हैं. यह तो गरीबों के साथ जबरदस्ती है. 500 रुपए में मोक्ष का सपना दिखाया जा रहा है. जो भी पैसे देने में आनाकानी करेगा, उसे इस राज्य से भगा दिया जाएगा,’’ अनामिका ने विजय के कंधे पर सिर रखते हुए कहा.

विजय ने अनामिका को अपनी मजबूत बांहों में भींचते हुए कहा, ‘‘कल की कल देखेंगे. अभी तो इस रात का मजा लेते हैं.’’

अनामिका विजय को बेतहाशा चूमने लगी और उन दोनों ने चादर ओढ़ ली.

अगले दिन वे दोनों एक घर के सामने खड़े थे. वहां 2 बूढ़े पतिपत्नी रहते थे. बूढ़ा लाठी टेकता हुआ उन दोनों के पास आया और 10 रुपए निकाल कर बोला, ‘‘बेटा, तुम लोगों को फार्म में जो भरना है, खुद ही भर लो. हमें बताया गया था कि 5 रुपए के हिसाब से हम दोनों के 10 रुपए बनते हैं.

‘‘हमें इस उम्र में धार्मिक यात्रा पर जाना है. पूरी जिंदगी हम दोनों ने यहां के मंदिर के दर्शन नहीं किए हैं. हमें वह चौखट भी पार करनी है.

‘‘मैं ने किसी तरह 1,000 रुपए का इंतजाम किया है. फार्म में किसी तरह की गलती मत करना वरना ऊपर जा कर हम अपने भगवान को क्या मुंह दिखाएंगे.’’

इतने में वह भगवाधारी वहां आया और विजय से बोला, ‘‘हम ने इन दोनों की पहले ही जांचपड़ताल कर ली है. ये दोनों हमारे राज्य में रहने के लिए फिट हैं. सर्वश्रेष्ठ गुरुजी का आदेश है कि इन्हें मोक्ष मिलना ही चाहिए.’’

‘‘पर जब पहले से ही सबकुछ हो चुका है, तो फिर यह सर्वे किस काम का है?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘तुम इस पचड़े में मत पड़ो और मैं जो फार्म तुम लोगों को दे रहा हूं, उन पर दस्तखत कर दो. 20 फार्म हैं. ये सभी फर्जी लोग हैं. इन्हें हमारे राज्य से बाहर भेज दिया जाएगा. 5 रुपए के हिसाब से तुम्हारे 100 रुपए हुए. इन्हें रख लो,’’ वह भगवाधरी बोला.

अनामिका ने अपना सिर पकड़ लिया. राष्ट्रवाद के नाम पर यह कैसा खेल चल रहा था, जो उस की समझ से परे था.

‘‘यार विजय, जब इस छोटे से सर्वे में इतनी बड़ी धांधली हो रही है, तो बिहार में विपक्ष जो सरकार पर चुनाव आयोग के जरीए लाखों वोट काटने का इलजाम लगा रहा है, वह भी तो कहीं न कहीं सच ही होगा न,’’ अनामिका बोली.

‘‘बात में तो दम है. जब से यह मामला उछला है, बिहार विधानसभा चुनाव से ज्यादा यह मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है. पर आम जनता को अगर यह मामला सम?ाना हो तो वह कहां जाए? हमारे देश में वंचित समाज के लोग कितने कम जागरूक हैं, यह कड़वा सच किसी से छिपा नहीं है,’’ विजय ने मानो सरकार पर ताना मारा.

‘‘जहां तक अखबारों, न्यूज चैनलों खासकर बीबीसी की रिपोर्टिंग की बात करें तो मोटामोटा मामला कुछ यों है कि ‘सर’ यानी स्पैशल इंटैंसिव रिवीजन का प्रोसैस 1 जुलाई, 2025 से शुरू हुआ है. इस के तहत 1 अगस्त, 2025 को लिस्ट का ड्राफ्ट पब्लिश किया जाना था और आखिरी लिस्ट 30 सितंबर, 2025 को पब्लिश होगी. इस से पहले इतने बड़े लैवल पर यह प्रोसैस आखिरी बार साल 2003 में हुआ था.

‘‘चिंता की बात यह है कि जो 11 दस्तावेज लोगों से मांगे जा रहे हैं, वे बड़े पैमाने पर लोगों के पास मुहैया नहीं हैं. एक सर्वे में साफ निकल कर आया है कि 63 फीसदी लोगों के पास वे कागजात नहीं हैं, जो उन से मांगे जा रहे हैं.

‘‘यहां सब से बड़ा सवाल यह है कि जो हाशिए पर खड़े समुदाय हैं, जैसे दलित, वंचित और औरतें… क्या वे सचमुच इस तरह की जद्दोजेहद में अपनी बात उठा पाएंगे और अपने फार्म जमा कर पाएंगे?’’ अनामिका बोली.

‘‘पौइंट तो तुम्हारा एकदम सही है,’’ विजय बोला.

‘‘इस के उलट 24 जून, 2025 को चुनाव आयोग ने अपने एक प्रैस नोट में कहा था कि बिहार में वोटरों की
लिस्ट का आखिरी बार स्पैशल इंटैंसिव रिवीजन साल 2003 में किया गया था. उस के बाद कई लोगों की मौत होने, लोगों के दूसरी जगह चले जाने और गैरकानूनी तौर पर लोगों के बसने की वजह से फिर से एक स्पैशल इंटैंसिव रिवीजन की जरूरत है.

‘‘यह भी कहा था कि जिन लोगों का नाम साल 2003 की वोटर लिस्ट में आता है, उन्हें बस चुनाव आयोग की तरफ से जारी एक फार्म भरना होगा. जिन का नाम नहीं आता, उन्हें जन्म के साल के मुताबिक दस्तावेज देने होंगे. जिन का जन्म 1 जुलाई, 1987 के पहले हुआ है, उन्हें अपने जन्मस्थल या जन्मतिथि के दस्तावेज देने होंगे.

‘‘जिन का जन्म 1 जुलाई, 1987 से 2 दिसंबर, 2004 के बीच हुआ है, उन्हें अपने साथ अपने मातापिता में से किसी एक के दस्तावेज देने होंगे. जिन का जन्म 2 दिसंबर, 2004 के बाद हुआ है, उन्हें अपने दस्तावेज के साथ अपने मातापिता के भी दस्तावेज देने होंगे.

‘‘जिन के मातापिता का नाम साल 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल है, उन्हें अपने मातापिता के दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, सभी वोटरों को चुनाव आयोग की तरफ से जारी किया गया फार्म भरना होगा,’’ अनामिका ने बताया.

‘‘तो इस में दिक्कत क्या है? लोग फार्म भरें और इस मुसीबत से छुटकारा पा लें,’’ विजय बोला.

‘‘दिक्कत यह है कि सरकार के अपने ही आंकड़े बताते हैं कि चुनाव आयोग जो दस्तावेज मांग रहा है, वे ज्यादातर लोगों के पास मुहैया नहीं हैं. साल 2022 में बिहार में हुए जातिगत सर्वे के मुताबिक सिर्फ 14 फीसदी लोग 10वीं पास हैं. जिन के पास पक्का मकान है, उन की तादाद 60 फीसदी से भी कम है. चुनाव आयोग के अपने आंकड़े बताते हैं कि 21 फीसदी वोटर बिहार से बाहर रहते हैं.

‘‘ऐसे में लोगों के दस्तावेज जुटा पाना बहुत चैलेंजिंग है. वह भी इतने कम समय में. वैसे भी इस मसले पर अनपढ़ क्या, पढ़ेलिखे लोगों में भी जागरूकता की भारी कमी है,’’ अनामिका ने अपनी बात रखी.

‘‘ओह, यही वजह है कि चुनाव आयोग के इस प्रोसैस को ले कर सभी विपक्षी दल एकजुट हो कर सवाल उठा रहे हैं कि आखिर बिहार चुनाव से महज 3 महीने पहले ही इस की जरूरत क्यों महसूस हुई?

‘‘मैं ने भी पढ़ा था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि चुनाव आयोग भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है और बैकडोर से एनआरसी लागू करने की कोशिश की जा रही है.

‘‘हाल ही में राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे पर सवाल उठाते हुए कहा था कि जो चोरी महाराष्ट्र में हुई, वही चोरी अब बिहार में करने की तैयारी है,’’ विजय बोला.

‘‘पर वे 11 दस्तावेज कौन से हैं, जो चुनाव आयोग मांग रहा है?’’ विजय ने थोड़ा रुक कर सवाल किया.

‘‘पहला दस्तावेज है केंद्र या राज्य सरकार या पब्लिक सैक्टर यूनिट के नियमित कर्मचारी या पैंशनर को जारी किया गया कोई भी पहचानपत्र या पैंशन भुगतान आदेश. दूसरा है 1 जुलाई, 1987 से पहले सरकार या स्थानीय अधिकारियों या बैंकों या पोस्ट औफिस या एलआईसी या पीएसयू द्वारा भारत में जारी किया गया कोई भी पहचानपत्र या प्रमाणपत्र या फिर दस्तावेज. तीसरा है सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जन्म प्रमाणपत्र. चौथा है पासपोर्ट.

‘‘5वां है मान्यताप्राप्त बोर्ड या यूनिवर्सिटी द्वारा जारी मैट्रिक या शैक्षिक प्रमाणपत्र. छठा है सक्षम राज्य प्राधिकारी द्वारा जारी स्थायी निवास प्रमाणपत्र. 7वां है वन अधिकार प्रमाणपत्र. 8वां है ओबीसी या एससी या एसटी या सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी कोई भी जाति प्रमाणपत्र. 9वां है नैशनल रजिस्ट्रार औफ सिटीजन्स (जहां भी यह मौजूद है). 10वां है राज्य या स्थानीय अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया परिवार रजिस्टर. 11वां है सरकार द्वारा जारी कोई भी भूमि या घर आवंटन प्रमाणपत्र.’’

‘‘अरे, इस तरह के भी सर्टिफिकेट होते हैं क्या इस देश में?’’ विजय ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘स्पैशल इंटैंसिव रिवीजन के पहले चरण के बाद यह बात सामने आई थी कि राज्य के तकरीबन 8 फीसदी वोटर यानी 65 लाख वोटरों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए हैं,’’ अनामिका ने अपनी बात को आगे बढ़ाया.

‘‘इस पर तुर्रा यह कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि ऐसा जरूरी नहीं है कि वह उन वोटरों के नाम की लिस्ट भी पब्लिश करे जिन के नाम बिहार की वोटर लिस्ट के ड्राफ्ट रोल में शामिल नहीं हैं.’’

‘‘यह मामला बेहद गंभीर है. सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में अपना पक्ष रखना चाहिए और जिस तरह से विपक्ष को वोट चोरी का मामला लगा है, सरकार और चुनाव आयोग से पूरे मामले पर अपना रुख साफ करने के आदेश देने चाहिए.

‘‘एक आम आदमी के पास वोट की ताकत होती है. अगर वही उस से छिन जाएगी, तो फिर देश में लोकतंत्र होने का कोई मतलब नहीं बनता है. तानाशाही पर रोक लगनी ही चाहिए,’’ विजय ने कहा.

थोड़ी देर के लिए वहां चुप्पी छा गई थी.

अशोका राज्य की हमारी काल्पनिक कहानी ने बिहार के वोटरों की समस्या पर जो बात की है, वह बहुत गंभीर है और सरकार को इस पर अपना रुख साफ करना चाहिए, वरना चुनाव आयोग को कठघरे में ऐसे ही खड़ा किया जाएगा. News Story In Hindi

Family Story In Hindi: किराए की बीवी

Family Story In Hindi, लेखिका – टी. बेगम

संतरी को गली में रात के एक बजे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी तो वह चौंक उठा. उस ने उसी ओर लपकते हुए ‘कौन है?’ की तेज आवाज उछाली, फिर एक झन्नाटेदार सीटी बजा दी.

संतरी और सीटी की आवाज सुन कर वह साया जरा तेजी से आगे बढ़ने लगा. संतरी भी सावधानी से उस साए की ओर बढ़ा. अचानक वह साया तेजी से एक दरवाजे के सामने जा खड़ा हुआ, फिर उस ने घबराहट में दरवाजे पर दस्तक दी.

दरवाजा खुला और उसी पल संतरी भी वहां आ पहुंचा. खंभे के लट्टू की रोशनी में संतरी ने दरवाजा खोलने वाले नौजवान को फटकार लगाते हुए कहा, ‘‘अपने घर की औरतों को इतनी रात तक अकेला छोड़ देते हो, तुम्हें कुछ भी खयाल नहीं कि जमाना कैसा?है?’’

वह नौजवान उस संतरी के मुंह की ओर देखने लगा, तो वह फिर भुनभुनाया, ‘‘अब मेरा मुंह क्या देख रहे हो… औरत को अंदर करो और किवाड़ लगाओ.’’

संतरी सीटी बजाता हुआ आगे की ओर बढ़ गया. उस नौजवान ने तब अपने दरवाजे पर दस्तक देने वाली लड़की के चेहरे की ओर देखा और हौले से बोला, ‘‘आइए, अंदर आ जाइए.’’

वह लड़की झिझकती हुई अंदर आ गई. नौजवान ने एक पलंग की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘अगर आप को रातभर यहीं रुकना है तो पलंग पर आराम से सो सकती हैं,’’ इतना कह कर वह दूसरे कमरे की ओर बढ़ गया.

वह लड़की देर रात तक पलंग पर लेटी हुई सोचती रही, फिर पता नहीं कब उस की आंख लग गई.

सुबह जब वह लड़की उठी तो उस ने महसूस किया कि वह देर तक सोती रही है. काफी धूप निकल आई थी. उस के पलंग के पास एक मेज पर उस के लिए नाश्ता रखा हुआ था.

उसी पल वह नौजवान वहां आ गया. उस ने लड़की को गुसलखाने का रास्ता बताया.

नहाधो कर वह लड़की नाश्ता करने लगी, फिर बोली, ‘‘आप ने तो यह भी नहीं पूछा कि मैं कौन हूं और कहां से आई हूं? आप ने अनजान लड़की पर भरोसा कर उसे ऐसे ही शरण दे दी?’’

उस लड़की की बात सुन कर वह नौजवान हंसा, फिर धीमे से बोला, ‘‘रात को तुम्हारे चेहरे से लग रहा था कि तुम आफत की मारी हो. तुम कौन हो और कहां से आई हो? यह तो अब तुम खुद ही बताओ.’’

उस लड़की के चेहरे पर उदासी छा गई. वह पलभर को चुप रही, फिर हिम्मत बटोर कर बोली, ‘‘मैं अच्छी नहीं हूं, मैं एक ‘कालगर्ल’ हूं, यानी अपना जिस्म बेचती हूं. एक रात के मैं 4-5 सौ रुपए कमा लेती हूं.

‘‘मेरे कुछ बंधे ग्राहक हैं, जो फोन कर के मुझे बुला लेते हैं.

‘‘कल रात जिस ग्राहक ने बुलाया था, उस ने कुछ ज्यादा ही वक्त ले लिया, इसीलिए इस गली को पैदल ही पार कर रही थी कि संतरी पीछे लग गया. मजबूर हो कर आप के घर पर दस्तक दे डाली.’’

वह नौजवान उस की बात सुन कर संजीदा हो गया, फिर उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या?है?’’

लड़की के होंठों पर इस बार मुसकराहट नाच उठी, ‘‘मेरे ग्राहक मुझे अलगअलग नामों से जानते हैं. कोई रेहाना के नाम से जानता है तो कोई सुरैया के नाम से. कुछ मुझे शांति देवी कहते हैं तो कुछ गीता देवी.

असली नाम तो मैं खुद भी भूल गई हूं. अगर कुछ सही याद है तो वह है मेरा फोन नंबर.’’

यह कहते हुए उस लड़की की आंखों में आंसू भर आए. उन्हें अपने रूमाल से पोंछती हुई वह बोली, ‘‘आप को देख कर जिंदगी में पहली बार लगा कि किसी शरीफ आदमी के घर में रात गुजारी है… नहीं तो यहां के नेताओं, अफसरों, सेठों ने स्याह रातों में मुझे खूब भोगा है.

‘‘मुझे कच्ची उम्र से ही फांस लिया गया था. अच्छा, अब मैं चलती हूं. आप के घर बिताई यह रात जिंदगीभर याद रहेगी.’’

वह लड़की अपना बैग उठा कर जाने ही वाली थी कि अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. नौजवान ने उठ कर दरवाजा खोला, तो सामने अपनी मां को देख कर चौंका, ‘‘मांजी, आप… अचानक…?’’

घर में दाखिल होते हुए वे अधेड़ उम्र की औरत बोलीं, ‘‘हां, मैं अब अपना फैसला सुनाने आई हूं. तुझे अब शादी करनी ही होगी. मैं ने लड़की देख ली है. फोटो साथ लाई हूं. अब तुझे इनकार नहीं करने दूंगी.’’

अचानक नौजवान की मां की नजर उस लड़की पर पड़ी. वह चौंकते हुए बोली, ‘‘अच्छा तो तू शादी कर भी लाया. खैर, मुझे तेरी पसंद मंजूर है. लड़की अच्छी है, मुझे तो बहू ही चाहिए थी.’’

उस लड़की की मांग में सिंदूर भरा था, इसलिए मां को धोखा हुआ.

मां ने उस लड़की के सिर पर हाथ फेर कर पूछा, ‘‘बहू, क्या नाम है तेरा?’’

‘‘जी… जी… सावित्री,’’ उस लड़की ने हकलाते हुए कहा.

‘‘अच्छा नाम है, हमेशा सुखी रहो,’’ मां ने फिर उस के सिर पर हाथ फेरा. फिर वे गुसलखाने में चली गईं. तभी वहीं से आवाज आई, ‘‘अनिल, आज बहू को मैं खाना बना कर खिलाऊंगी.’’

नौजवान ने लड़की की ओर देखा और धीरे से बोल, ‘‘सावित्री… या जो नाम हो तुम्हारा, अब तुम्हें 5-6 दिन यहीं रुकना होगा. तुम्हें बहू का रोल अदा करना होगा. मैं हर रात के 500 रुपए तुम्हें दूंगा. तुम्हारे नुकसान की कम से कम भरपाई ही कर पाऊंगा. मेरी आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है. मां के जाते ही तुम भी चली जाना.’’

लड़की ने मुसकराते हुए उस की बात मान ली.

उस लड़की को 5 रातों तक उस के साथ एक ही पलंग पर सोना पड़ा. हर रात बीतने पर वह लड़की के हाथ पर 500 रुपए रख देता. वह लड़की मुसकरा कर उन्हें ले लेती.

छठे दिन मां जाने की तैयारी करने लगीं. लड़की ने तय कर लिया कि उन के जाते ही वह भी चली जाएगी. उस ने नौजवान के नाम एक खत लिखा और उसे तकिए के नीचे रख दिया. खत में उस ने लिखा था:

‘अनिल बाबू,

‘आप के साथ जो 5 रातें गुजारी हैं, उन्हें मैं हमेशा याद रखूंगी. मेरी फीस तो मेरे जिस्म को भोगने की है, सिर्फ साथ सोने की नहीं. आप ने तो मुझे हाथ तक नहीं लगाया, इसलिए मैं आप के सारे रुपए इस खत के साथ रखे जा रही हूं. हां, एक सौ का नोट आप की यादगार के रूप में ले जा रही हूं. बिना मिले जा रही हूं, इस के लिए माफ कर देना.’

अनिल की मां अपनी अटैची के साथ रिकशे में बैठ कर चली गईं. कुछ ही देर बाद वह लड़की भी रवाना हो गई. उस ने चाबी पड़ोस की एक औरत को दे कर अनिल को दे देने के लिए कह दिया.

शाम को जब अनिल घर आया तो घर पर उस की मां मिलीं. उन्होंने बताया कि वे अपना कुछ सामान भूल गई थीं, इसलिए लौट आईं. फिर अनिल को मालूम हुआ कि अजनबी लड़की जा चुकी है. वह कुछ उदास हो गया.

मां ने कहा, ‘‘तकिए के नीचे तेरी किराए की बीवी का खत रखा है, उसे पढ़ ले.’’

मां की बात सुन कर अनिल का शर्म से सिर झुक गया. फिर वह खत पढ़ने लगा.

अगले दिन सुबहसुबह उस लड़की के दरवाजे पर दस्तक हुई. दरवाजा खोलने पर उस के मुंह से अचानक ही निकल गया, ‘‘मांजी, आप…?’’

‘‘हां, मैं…’’ अनिल की मां अंदर आते हुए बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हें खत रखते देख लिया था. पढ़ कर जाना कि तुम अनिल की असली नहीं, किराए की बीवी हो.’’

इतना कह कर मां ने गौर से उस लड़की के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की. उस सुंदर लड़की के चेहरे पर कई रंग आए और गए. फिर उस ने अपना बैग उठा कर कंधे से लटकाया और सख्त आवाज में बोली, ‘‘जब आप को पता चल ही गया था कि मैं क्या हूं तो फिर मेरा पता मालूम कर आप यहां क्यों आईं? खैर, मैं जा रही हूं. मैं आज दिन में ही ‘बुक’ हूं.’’

मां भी थोड़ी सख्त आवाज में बोलीं, ‘‘तो हम भी तुम्हें ‘बुक’ करने आए हैं. अनिल के लिए तुम्हें बुक करना है. पूरी जिंदगी के लिए. बोलो, मंजूर है?’’

वह लड़की ठगी सी कुछ देर के लिए खड़ी रह गई. फिर उस की आंखों में खुशी के आंसू छलछला आए. उस ने मां के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. मां उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगीं. Family Story In Hindi

Best Hindi Story: कैद

Best Hindi Story, लेखिका – नेहा अरोरा

‘‘अरे, क्यों रो रही है? अच्छा ही हुआ चला गया, तेरी जिंदगी नरक बना रखी थी,’’ श्यामा ने रोती हुई जीनत को चुप कराते हुए कहा. उस की आवाज में कड़वाहट तो थी, पर करुणा भी थी.

श्यामा की बात सुन कर एक पल को जीनत ने उसे नजर उठा कर देखा. उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. उस के हाथ पर गरम चिमटे से लगी मार में अभी भी चीस उठ रही थी, लेकिन जिस ने उसे यह चीस दी थी, वह जिंदा साहिल था, पर अब उस के सामने मुर्दा साहिल था, जो न उसे मार सकता था, न गाली दे सकता था.

जीनत थोड़ा और पीछे हो कर दरवाजे से टेक ले कर बैठ गई. वहां कुछ ही लोग थे. साहिल के घर वालों ने बहुत पहले ही उस की हरकतों से तंग आ कर उस से रिश्ता तोड़ लिया था और जीनत के घर वालों ने उसे समझासमझा कर थक कर अपनी दूरी बना ली थी, पर जीनत सबकुछ जानतेसमझते, सहते हुए भी अलग नहीं हो पाई.

ऐसा नहीं है कि जीनत को ऐसा खयाल ही नहीं आया, पर जब भी उस ने अपना मन बनाया, कुछ न कुछ ऐसा हुआ कि वह वापस साहिल के पास आ गई.

जीनत को पता था कि अगर वह साहिल को छोड़ कर गई तो साहिल जिंदा नहीं रह पाएगा और वह उस की मौत की जिम्मेदारी अपने सिर नहीं लेना चाहती थी.

यह वही साहिल था, जिस के साथ जीनत ने जीनेमरने की कसमें खाई थीं, साथ निभाने का वादा किया था, कई खूबसूरत साल बिताए थे… उसे छोड़ कर वह कैसे जाती?

जीनत और साहिल ने अपनी पसंद से निकाह किया था. दोनों एकदूसरे पर जान छिड़कते थे. घर वालों ने भी इस रिश्ते को मंजूरी दे दी थी.

कोई कमी नहीं थी. न परिवारों में और न ही दोनों की जोड़ी में. सब इतना बढि़या चल रहा था, पर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि…

एक दिन साहिल काम पर से जल्दी लौट आया था. उस ने सोचा था कि जीनत को सरप्राइज देगा, लेकिन उस दिन जो सरप्राइज उसे मिला, वह उस की जिंदगी ले गया.

साहिल के पास घर की एक चाबी थी. धीरे से वह दबे पैर घर के भीतर आ गया था. उसे लगा था कि इस समय जीनत आराम कर रही होगी, इसलिए वह बैडरूम की तरफ चल दिया.

पर बैडरूम से आती किसी की धीमी आवाज से साहिल का माथा थोड़ा ठनका. उस ने धीरे से बैडरूम के दरवाजे की दरार से झांका, तो बिस्तर पर जीनत को अपने ही चचेरे भाई इफ्तार के साथ देख कर जैसे एक पल को उस को चक्कर ही आ गया. उन दोनों का ही ध्यान उस की तरफ नहीं गया था.

साहिल ने किसी तरह खुद को संभाला और जैसे आया था, वैसे ही वापस चला गया.

उस दिन के बाद वह साहिल शायद मर चुका था और उस की जगह एक दूसरे साहिल ने ले ली थी, इसलिए तो घर वालों को यह नया साहिल पहचान में नहीं आ रहा था.

साहिल ने अपने मुंह से उस दिन की बात कभी किसी के आगे नहीं कही, जीनत से भी नहीं. उस ने बहुत मौके दिए जीनत को कि वह यह घर छोड़ कर चली जाए.

जीनत को एहसास तो हो गया था कि शायद साहिल को पता चल चुका है, लेकिन उस ने जब भी जानने की कोशिश की, साहिल ने कुछ नहीं कहा.

जीनत ने घर छोड़ कर जाने का मन भी बना लिया था, लेकिन जब उस ने यह बात इफ्तार को बताई, तो उस ने फौरन वहां से तबादला ले लिया और पलट कर जीनत का फोन तक उठाना बंद कर दिया.

जीनत और साहिल दोनों अपने ही अंदर घुट रहे थे. इसी घुटन में साहिल ने शराब पीना शुरू कर दिया.

उस के घर वाले इस सब की वजह नहीं समझ पा रहे थे. उन्होंने साहिल को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन सब बेकार.

साहिल ने अब नशे में जीनत पर हाथ तक उठाना शुरू कर दिया था. जब वह नशे में चूर हो कर गिर पड़ता, तब जीनत उसे बिस्तर पर सही से लिटाती, चादर उढ़ाती.

नशे की हालत में गिरने के बाद साहिल के आंखों के कोनों से आंसू बह रहे होते. उन्हें देख कर जीनत का दिल पिघल जाता. उसे कई बार लगता खुद बता दे साहिल को तो शायद यह घुटन कम हो जाती, लेकिन साहिल जीनत को देखते ही भड़क जाता और जीनत को मौका ही नहीं मिल पाता.

जीनत पहले वाले साहिल की याद को मन में संजोए इंतजार करती रहती, पर उसे भी पता था कि साहिल की इस हालत की वही जिम्मेदार है और यह अपराधबोध उसे सब चीजों के बावजूद वहीं रोके रखता.

पता नहीं क्यों साहिल ने यह बात कभी किसी के आगे नहीं बताई. जीनत के घर वाले, साहिल के खुद के घर वाले साहिल को कोसते रहे, समझाते रहे और एक दिन तो साहिल के अब्बू ने उसे तमाचा भी लगा दिया, लेकिन साहिल के मुंह से फिर भी एक भी शब्द नहीं निकला.

आज भी साहिल इसी तरह नशे में चूर घर आया था. जीनत ने जब तक रोटी प्लेट में ला कर रखी, वह ठंडी हो गई थी.

साहिल गुस्से में पता नहीं क्याक्या बड़बड़ाता हुआ रसोईघर में आया और जीनत के हाथ से गरम चिमटा छीना और उस का हाथ पकड़ कर उस पर दाग दिया.

जीनत की चीख निकल गई और उस ने हाथ को छुड़ाने के लिए जोर से झटका दिया.

साहिल उस झटके से एकदम लड़खड़ा गया और पीछे की ओर गिरा. उस का सिर दीवार से जा टकराया.

जीनत भाग कर आई और उस ने साहिल को बहुत हिलाया, लेकिन शायद वह अब इस घुटन से आजाद हो गया था.

पता नहीं अब तक कौन किस की कैद में था. Best Hindi Story

Long Hindi Story: बस खाली करो – पहला भाग

Long Hindi Story: दिल्ली में कई साल से रहते हुए भी हसामुद्दीन इस शहर को ठीक ढंग से देख नहीं पाया था. कभी प्लान करता, तो पैसे न होते, जब पैसे होते, तो कारखाने की छुट्टी न होती. जब छुट्टी होती, तो कुछ घरेलू काम पड़ जाता था.

लेकिन उस शनिवार को हसामुद्दीन अपने कमरे से यह सोच कर निकला था कि आज तो कनाट प्लेस में घूमनाफिरना होगा. उस की इच्छा तो मैट्रो से जाने की हुई थी, लेकिन किराया ज्यादा होने की वजह से वह डीटीसी की नारंगी क्लस्टर बस में ही चढ़ गया, जो टर्मिनल से ही भर चुकी थी. फिर भी उसे सब से पीछे वाली एक सीट मिल गई थी.

उसी समय 2 लड़के पिछले दरवाजे की सीढि़यों पर आ कर बैठ गए. टर्मिनल से चलने तक बस में और ज्यादा भीड़ हो गई थी.

कई आदमी हसामुद्दीन के सामने खड़े थे. उस ने ‘पत्ते शाह बाबा’ को याद किया और कहा, ‘‘अगर सीट न मिलती तो आज खड़े हो कर ही जाना पड़ता.’’

जब बस अगले बस स्टौप पर रुकी, तो वहां से एक ट्रांसजैंडर पिछले दरवाजे से बस में चढ़ी, जो काफी पतली थी. उस का चेहरा लंबा और गोरा रंग था.

उस ने ‘हायहाय’ कहते हुए अपनी हथेलियों से 2 बार ताली बजाई. उस के माथे पर लाल गोल टीका लगा था. नाक में नथ और कान में झुमकी थी.

उस का साधारण सा सूटसलवार था. उस की क्लीन शेव, जो गहरे हरे रंग की थी, को चेहरे पर लगी सफेद क्रीम ने छिपा रखा था. उस ने अपने बाल ऊपर कर के टाइट बांधे हुए थे, जिन में गर्द भी भरा था और रूसी भी नजर आ रही थी.

हसामुद्दीन ने सोचा, ‘ताली बजाना इन लोगों की अपनी एक अलग पहचान है…’

तब तक वह ट्रांसजैंडर सवारियों से पैसे मांगने लगी थी. ताली बजाते हुए उस ने हसामुद्दीन से कहा, ‘‘दे न भाई.’’

हसामुद्दीन ने हाथ के इशारे से कहा, ‘‘मेरे 5 रुपए कंडक्टर के पास बकाया हैं. आप उन से ले लो.’’

हसामुद्दीन की यह बात सुन कर वह ट्रांसजैंडर मुंह बना कर आगे बढ़ गई.

हसामुद्दीन अपनी सीट से उचक कर देखने लगा कि कंडक्टर से उस ट्रांसजैंडर ने पैसे लिए या नहीं. अगर ले लिए होंगे, तो वह कंडक्टर से अपने पैसे नहीं मांगेगा.

अरे, यह क्या… वह ट्रांसजैंडर तो कंडक्टर के पास गई ही नहीं. हसामुद्दीन को अफसोस हुआ कि उसे कुछ दे देना चाहिए था.

जब हसामुद्दीन अपनी सीट से उचक कर उस ट्रांसजैंडर को देख रहा था, तब कुछ लोगों को लगा कि वह अगले बस स्टौप पर उतरेगा.

उसे उचकता देख कर एक आदमी ने दूसरे आदमी को संकेत करते हुए कहा, ‘‘वहां बैठ जाओ.’’

लेकिन हसामुद्दीन तो दोबारा अपनी सीट पर बैठ गया. तब कुछ लोग ट्रांसजैंडर और उसे देखने लगे.

एक लड़के ने हसामुद्दीन को देख कर अपने चेहरे पर मंद सी मुसकराहट दिखाई. अगले बस स्टौप पर वह ट्रांसजैंडर उतर गई.

उस लड़के के रिऐक्शन पर हसामुद्दीन ने अपना मुंह नीचे कर लिया और सोचा, ‘देश में जातिवाद, छुआछूत, बंधक मजदूर, लिंग असमानता, दहेज प्रथा, औरतों पर घरेलू हिंसा, बाल

यौन शोषण, धार्मिक हिंसा, दलितों आदिवासियों का शोषण जैसे बहुत से मुद्दे हैं, फिर ट्रांसजैंडर को हीन भावना से देखना तो परिवार और समाज से ही मिलता है. पर क्या ये लोग हमारी तरह इनसान नहीं हैं?

‘सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल, 2014 को ट्रांसजैंडर समुदाय को तीसरे लिंग के रूप में मंजूरी तो दे दी थी, पर समाज का नजरिया अभी भी बदला नहीं है…’

हसामुद्दीन ने अपनी दाईं तरफ बैठे एक आदमी को देखा. उस के देखने पर उस आदमी ने पूछा, ‘‘भाई साहब, अभी मैडिकल कितना दूर है? आने से पहले मुझे बता देना.’’

हसामुद्दीन ने अपना सिर ‘हां’ में हिलाया और उस आदमी से पूछा, ‘‘क्या आप इलाज कराने जा रहे हैं?’’

‘‘नहीं, कोई और भरती है,’’ उस आदमी ने कहा.

‘‘अभी मैं उस ट्रांसजैंडर के बारे में सोच रहा था. ऐसे बहुत से ट्रैफिक सिगनल पर, रेल में लोगों से भीख
मांगते दिख जाते हैं. इन की हालत बहुत पतली है.’’

वह आदमी बोला, ‘‘पर भाई साहब, पैसे न देने पर ये लोगों से बदतमीजी करते हैं. किसी के घर खुशी होने पर ये उस के घर जाते हैं और मुंहमांगे पैसे ले कर ही वहां से टलते हैं. ऐसा माना जाता है कि इन में लोगों को दुआ और बद्दुआ देने की ताकत होती है. लोगों को इन से डर भी लगता है.’’

‘‘लेकिन बहुत से लोग तो इन्हें ‘छक्का’ कह कर मजाक उड़ाते हैं. अगर ऐसा किसी के साथ होगा, तो वह आप के खिलाफ कड़ा रुख ही अपनाएगा न?

‘‘अगर बसों, रेलगाडि़यों में ये नरमी बरतेंगे, तो मुझे नहीं लगता कि लोग इन्हें सही से जीने भी देंगे. जहां जातिधर्म, क्षेत्र, भाषा, रंगरूप के नाम पर लोगों को जिंदा जला डालते हों, तो ऐसे समाज में ये क्या करें?

‘‘सही माने में देखें तो इन्होंने जीने के लिए अपना ऐसा रुख किया है. इन को समाज में अच्छी तरह बसाने के बारे में हम सभी को सोचना चाहिए,’’ हसामुद्दीन ने कहा.

उस आदमी ने कहा, ‘‘आप की बात ठीक है, लेकिन क्षेत्र के विधायक, सांसद इन के बारे में क्यों नहीं सोचते हैं? लोग तो एकदूसरे को ‘हिजड़ा’ बोल कर बेइज्जती करते हैं. आप ने बसों और ट्रेनों में सफर करते समय इन्हें लोगों से पैसे मांगते देखा होगा.

‘‘इन में से ज्यादातर तो नकली होते हैं, जो हिजड़ों जैसा हुलिया बना कर लोगों को ठगते हैं. उन में से कइयों की तो पोल भी खुल चुकी है,’’ उस आदमी ने अपनी बात रखी.

जसोला अपोलो बस स्टौप से कुछ और सवारियां चढ़ीं, लेकिन वे लड़के सीढि़यों पर ज्यों के त्यों बैठे रहे.
जब एक आदमी बस से उतरने के लिए उन के पीछे खड़ा हुआ, तब उन लड़कों में से एक ने उसे हड़काते हुए कहा, ‘‘अबे, यहीं उतरेगा क्या?’’

लेकिन उस आदमी ने तनते हुए कहा, ‘‘क्या कह रहा है बे?’’

वे लड़के उस आदमी की बात सुन कर चुप तो हो गए, लेकिन उसे घूरने लगे. उस आदमी के चेहरे पर डर का भाव तो नहीं था, पर वह दाएंबाएं देख कर चुप रहा.

बस आगे बढ़ती जा रही थी. हरकेश नगर ओखला बस स्टौप पर कुछ और सवारियां चढ़ीं और उतरीं. बस रुकते ही एक आदमी दौड़ता हुआ उन लड़कों के सामने आ कर बोला, ‘‘भाई, यह बस मैडिकल जाएगी?’’

एक लड़के ने उस से कहा, ‘‘अबे, नहीं जाएगी.’’

जब वह आदमी कुछ पीछे हटने लगा, तभी कंडक्टर ने उसे आवाज दी, ‘‘हां, जाएगी.’’

वह आदमी उन लड़कों के बगल से होता हुआ हड़बड़ी में अंदर आया और उन्हें डांटते हुए कहा, ‘‘अबे, तू तो कह रहा था कि बस मैडिकल नहीं जाएगी…’’

इस पर वे दोनों लड़के तमतमाते हुए खड़े हो गए और उन में से एक ने कहा, ‘‘देखने में सही लग रहा है, जहां जा रहा है सही से जा, नहीं तो पीछे आ. अभी तेरी सारी गरमी निकालता हूं.’’

उस आदमी ने दूसरी सवारियों से कहा, ‘‘बताएं, क्या इस की गलती नहीं है… ऊपर से कह रहा है कि गरमी निकाल दूंगा.’’

उन में से एक लड़का बोला, ‘‘बस में गरमी बहुत है, तू पीछे आ…’’

उन के बीच में न कंडक्टर कुछ बोल रहा था, न सवारियां ही कुछ बोल रही थीं. बस, सब यह तमाशा देख रहे थे.

उन दोनों के बीच होती बहस के बीच हसामुद्दीन हिम्मत करते हुए बड़बड़ाया, ‘‘लड़ो मत, शांत हो जाओ.’’

कंडक्टर बिलकुल शांत हो कर अपनी जगह पर बैठा था और ड्राइवर निश्चिंत भाव से बस चला रहा था. उन्हें इस लफड़े से कोई मतलब नहीं था.

बस में अब पीछे उतनी भीड़ नहीं थी. बस आश्रम बस स्टौप पार कर चुकी थी.

उन लड़कों में एक लड़का सांवला था. उस की उम्र 15-16 साल के बीच होगी. उस के दांत साफ दिखे, कान में बाली पहनी हुई थी. दूसरे लड़के की उम्र 20-22 साल के बीच होगी, जिस के बाएं हाथ पर जगहजगह गहरे कट के निशान थे, जो उभरे हुए दिख रहे थे. उस लड़के के दांत मटमैले और रंग साफ था.

बाल भूरे थे, जो उलझे हुए थे.

छोटा लड़का उस से कह रहा था, ‘‘भाई, मुझे घर जाना है, कुछ पैसे दे दे…’’

बड़ा लड़का लंपटता से बोला, ‘‘अबे, ‘स्टाफ’ बोल कर चला जा.’’

उस लड़के के ‘स्टाफ’ कहने पर हसामुद्दीन को याद याद आया कि जब दिल्ली में ब्लूलाइन बसें चला करती थीं, उन में स्कूलकालेज के बच्चे और दबंगई करने वाले दूसरे लोग अपनेअपने ‘स्टाफ’ चलाते थे और ब्लूलाइन वाले डीटीसी बसों के ड्राइवर और कंडक्टर से मिलीभगत कर के डीटीसी बसों को रुकवा लेते थे और अपनी बसें पहले चलवाते थे.

सभी ब्लूलाइन प्राइवेट बसें थीं, जो ठेके पर चला करती थीं. उन्हें चलाने वाले अपने रूट पर ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगा कर 2-3 गुना पैसे कमाने के चक्कर में बड़ी तेज रफ्तार से चलते थे, जिस से आएदिन हादसे होते रहते थे.

लोग इन को दिल्ली की ‘हत्यारी ब्लूलाइन बसें’ भी कहते थे. लेकिन सितंबर, 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने इन सभी ब्लूलाइन बसों को बंद कर दिया था.

उस बड़े लड़के की गरदन पर त्रिशूल और डमरू का टैटू बना हुआ था और उस के दाएं हाथ पर ‘जय माता दी’ गुदा हुआ था. उस की पैंट सरकी हुई थी और अंडरवियर के साथ अंदर की तरफ एक पेचकस जैसा कुछ ठुंसा दिख रहा था.

जब वह लड़का उस आदमी को धमकाने के लिए खड़ा हुआ, तब उस ने अपने बाएं हाथ में लोहे के एक कड़े को कस कर फंसा लिया था, जिसे देख कर हसामुद्दीन डर गया था.

उस लड़के से नजर बचाते हुए हसामुद्दीन ने जल्दी से अपना मोबाइल पैंट की जेब में रखा. उसे लगा कि कहीं वह मोबाइल न छीन ले.

तभी बस की बाईं तरफ की सीटों पर बैठी 2 औरतों में किसी बात को ले कर गालीगलौज शुरू हुआ.

एक ने दूसरी से कहा, ‘‘सही से बैठो.’’

दूसरी ने कहा, ‘‘तझे बैठने की तमीज नहीं है.’’

दूसरी औरत बूढ़ी थी. कंडक्टर ने समझाया, ‘‘माताजी, गलत मत बोलो.’’

उस लड़के ने कंडक्टर से कहा, ‘‘अबे, तुझे चाकू चाहिए, तो मुझ से ले ले. मेरे पास है. नहीं तो मैं इन दोनों को ठीक कर देता हूं. बहुत देर से ‘चैंचैं’ लगा रखी है.’’

कंडक्टर ने उस लड़के की बात का जवाब नहीं दिया. कुछ सवारियां और कंडक्टर की दखलअंदाजी से वे दोनों औरतें चुप हुईं.

बस के ज्यादातर मर्द इन औरतों के बीच हुई बहस को सीरियसली नहीं ले रहे थे. वे उन की बहस को केवल हंसी की बात समझ रहे थे. बस के अंदर उन औरतों के अगलबगल खड़े मर्द तो मंदमंद मुसकरा रहे थे, जबकि पीछे वाले कुछ लोग ठहाके मार रहे थे.

दरअसल, ज्यादातर मर्द समाज औरतों को इनसान ही नहीं मानता है, न ही उन की बातों को गंभीरता से लेता है. सही माने में मर्द औरतों को समझाना ही नहीं चाहते हैं, क्योंकि वे खुद को बेहतर समझते हैं, जबकि औरतें मर्दों से किसी भी मामले में पीछे नहीं हैं. वे पुलिस, सैनिक, डाक्टर, व्यापारी, टीचर, प्रोफैसर, ड्राइवर हैं. और तो और मर्दों को पैदा करने वाली भी वे ही हैं.

लाजपत नगर बस स्टौप पर कुछ और सवारियां उतर गईं. हसामुद्दीन के बाईं तरफ एक सीट खाली हो गई और एक सीट उस से आगे की भी खाली हुई.

कंडक्टर ने उन लड़कों को मान देते हुए कहा, ‘‘भाई, सीट पर बैठ जाओ.’’

बड़ा लड़का कुछ संकोच करते हुए हसामुद्दीन के बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गया और दूसरा लड़का आगे वाली सीट पर बैठा.

हसामुद्दीन उस बड़े लड़के से कुछ डरा हुआ था, फिर भी उस से पूछा, ‘‘तुम बदरपुर में रहते हो?’’

उस लड़के ने धीरे से कहा, ‘‘नहीं, दक्षिणपुरी में.’’

उस लड़के के मुंह से बदबू आ रही थी. उस ने कहा, ‘‘सरजी, मैं आप को जानता हूं. मैं ने आप को बदरपुर के एक स्कूल में देखा है.’’

यह सुन कर हसामुद्दीन को कुछ राहत मिली. सोचा कि कहीं किसी स्कूल के कार्यक्रम में देख लिया होगा.

हसामुद्दीन ने उस लड़के से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे मम्मीपापा हैं?’’

उस लड़के ने कहा, ‘‘सरजी, सब हैं, लेकिन दुनिया बड़ी जालिम है, हमें जीने नहीं देती है.’’

हसामुद्दीन को लगा कि वह लड़का पूरी बात नहीं आप ही बता रहा है.

हसामुद्दीन ने कहा, ‘‘तुम कुछ काम सीख लो और जिंदगी में आगे बढ़ो. जो भी तुम्हारे साथ बुरा हुआ, वह बीत गया है. उसे छोड़ कर आगे बढ़ो. अपनी जिंदगी क्यों बरबाद कर रहे हो…’’

उस लड़के ने कहा, ‘‘सरजी, दुनिया बहुत खराब है. क्या काम करें, आप ही बताओ?’’

हसामुद्दीन ने कहा, ‘‘भाई, बहुत से काम हैं. मोटर मेकैनिक का काम सीख लो, बिजली का काम सीख लो, और भी बहुत से काम हैं.’’

उस लड़के ने दोबारा कहा, ‘‘सरजी, दुनिया जीने नहीं देती,’’ कह कर वह अपना सिर दिखाने लगा और बोला, ‘‘इस में डाक्टरों ने गलत आपरेशन कर दिया था.’’

लेकिन हसामुद्दीन ने उस चोट को देखने की कोशिश नहीं की, क्योंकि उसे ऐसा करना सही नहीं लग रहा था.

फिर उस लड़के ने कहा, ‘‘सरजी, 50 रुपए दे दो.’’

हसामुद्दीन के मन में उस लड़के को 50 रुपए देने की बात आई, लेकिन वह 20 रुपए ही देने लगा, जिसे

वह लड़का नहीं ले रहा था. उस ने कहा, ‘‘सरजी, इतने कम पैसे मैं नहीं लेता.’’

लेकिन हसामुद्दीन ने उस लड़के के हाथ में जबरदस्ती पैसे रख दिए और कहा, ‘‘कुछ खा लेना.’’

उस लड़के ने कहा, ‘‘सरजी, इतने में कहां कुछ मिलता है…’’ और अपने साथी के साथ वह एम्स (मैडिकल) वाले बस स्टौप पर उतर गया.

उस लड़के ने बात तो ठीक कही थी. इस जमाने में पैसे कीमत ही कहां है. महंगाई के दौर में आम आदमी की जिंदगी कितनी मुश्किल हो गई है.

उन दोनों लड़कों के उतरने पर बस कंडक्टर ने सवारियों से कहा, ‘‘ये दोनों जेबकतरे थे. इन से कौन बहस करे…’’

बस कंडक्टर ने एक बात और कही, ‘‘शनिवार के दिन दिल्ली की बसों में किसी की जेब नहीं कटती है.’’

हसामुद्दीन की बाईं तरफ एक सीट छोड़ कर एक अधेड़ उम्र का आदमी बैठा था.

हसामुद्दीन ने उस आदमी से कहा, ‘‘ये लड़के पहले ऐसा नहीं होंगे, जैसा हम ने इन्हें फिलहाल देखा है.

किसी के हालात उसे क्या से क्या बना देते हैं. मुझे लगा कि मैं ने एक लड़के को कहीं देखा है. जन्म से कोई बुरा या अच्छा नहीं होता है. अच्छा या बुरा बनने में भी समय लगता है. यह समाज उसे अच्छा या बुरा बनाता है.

उस अधेड़ आदमी ने हसामुद्दीन की तरफ देख कर कहा, ‘‘आप की बात तो ठीक है, पर बच्चे समझते कहां हैं…’’

हसामुद्दीन ने उस आदमी से पूछा, ‘‘आप कहां जा रहे हैं?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘केंद्रीय सचिवालय.’’

‘‘क्या आप सरकारी नौकरी में हैं?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘नहीं… एक क्लब है, वहीं पर काम करता हूं.’’

‘‘आप कब से वहां काम कर रहे हैं?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘पिछले 3 साल से.’’

‘‘बड़ा क्लब है?’’

हां. उस क्लब में बहुत से लोग काम करते हैं, लेकिन सब ठेकेदारी पर हैं.’’

‘‘आप पहले कहां काम करते थे?’’

‘‘साउथ ऐक्सटैंशन में एक होटल है, मैं वहीं पर कुक था.’’

हसामुद्दीन ने पूछा, ‘‘आप ने कितने साल वहां काम किया?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘25 साल से ज्यादा ही.’’

‘‘फिर तो आप को छोड़ना नहीं चाहिए था.’’

‘‘क्या करें, मालिक ने लौकडाउन का फायदा उठाते हुए 18 लोगों को निकाल दिया, जिन में मैं भी शामिल था.’’

‘‘वहां पर तो आप परमानैंट होंगे?’’

‘‘हां, छुट्टियां भी मिलती थीं. अभी भी वहां पर बहुत लोग काम करते हैं, लेकिन सब ठेकेदारी पर हैं. हमारी तो वहां एक यूनियन भी थी. मालिक ने धीरेधीरे सभी को निकालना शुरू कर दिया था.’’

हसामुद्दीन ने कहा, ‘‘मालिक को यूनियन से डर होता है.’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘डर तो होता है, क्योंकि यूनियन होने से कामगार को एक तरह की सिक्योरिटी मिलती है. अगर किसी ने कामगार को उचित वेतन नहीं दिया है, तब यूनियन मैनेजमैंट के सामने अपनी बात रखती है. यूनियन न होने से कामगार अपनी बात को मजबूती से और बिना डर के नहीं रख सकता है.’’

हसामुद्दीन ने कहा, ‘‘आप उस क्लब में क्यों नहीं एक यूनियन बना लें?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘अब ट्रेड यूनियन बनाना आसान काम नहीं है. सरकार ने ट्रेड यूनियन बनाने के लिए नियमों में बड़ी कड़ाई की है. पहले जहां 7 लोग मिल कर यूनियन बना लेते थे, अब कुल कामगारों का 10 फीसदी कर दिया गया है. न 10 फीसदी कामगार होंगे, न यूनियन बनेगी. अब कारखाना और फैक्टरी के अंदर धरनाप्रदर्शन करने की भी छूट नहीं है. सरकार केवल पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रही है.’’

हसामुद्दीन ने कहा, ‘‘जब ट्रेड यूनियनें नहीं होंगी, तब कामगारों की आवाज कौन उठाएगा?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘अब आवाज ही कौन उठा रहा है… जो हैं वे बहुत कमजोर हैं. देखिए, इस क्लब में काम करते हुए मुझे 3 साल हो गए हैं, लेकिन कोई छुट्टी नहीं मिलती है. जिस दिन काम करने नहीं गए, उस दिन की दिहाड़ी नहीं मिलती है.’’

हसामुद्दीन ने पूछा, ‘‘आप को यहां कितने पैसे मिलते हैं?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘15,000 मिलते हैं, लेकिन आनेजाने का किराया और छुट्टी निकल लूं, तो 10,000 बच जाते हैं. लेकिन भाई साहब, बगैर छुट्टी के कैसे काम चलेगा. बस, यही सोचता हूं कि खाली बैठने से अच्छा है कि कुछ करता रहूं.’’

हसामुद्दीन ने कहा, ‘‘आप के बच्चे तो बड़े हो गए होंगे…’’

‘‘जी…’’ उस आदमी ने कहा.

‘‘कहां रहते आप हैं?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘विनय नगर, फरीदाबाद में.’’

‘‘किराए पर रहते हैं?’’

‘‘नहीं. 30 गज का प्लौट ले कर बना लिया है. उसी में रहते हैं.’’

हसामुद्दीन ने उस आदमी के पीले और जंग लगे हुए दांत देख कर पूछा, ‘‘क्या आप गुटका या पान मसाला खाते हैं?’’

‘‘नहीं, पर बीड़ी जरूर पीता हूं.’’

हसामुद्दीन ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और कहा, ‘‘आप वादा कीजिए कि आज से बीड़ी नहीं पीएंगे?’’

उस आदमी ने अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया, लेकिन कहा, ‘‘वादा कर के तोड़ना नहीं चाहता हूं.’’

हसामुद्दीन ने उसे एक सलाह दी, ‘‘आप आलू, प्याज, फल बेचने का अपना काम करें. इतना पैसा तो आप फरीदाबाद में ही कमा लेंगे.

उस आदमी ने कहा, ‘‘एक बार ढाबा शुरू किया था, लेकिन चला नहीं.’’

वह आदमी केंद्रीय सचिवालय उतरने लगा, तब हसामुद्दीन ने कहा, ‘‘मैं ने आप को 2 बातें बताई हैं. एक बीड़ी न पीने की और दूसरी अपना कोई काम करने की.’’

उस आदमज ने कहा, ‘‘बिलकुल भाई साहब, मैं आप की बात याद रखूंगा.’’

हसामुद्दीन सोचने लगा, ‘‘आमजन में बेरोजगारी के चलते ही ठेकेदारी प्रथा फलफूल रही है और नवउदारवादी नीति का मतलब है कि काम ज्यादा, पैसे कम और न कोई छुट्टी, न कोई स्वास्थ्य सुरक्षा और न ही कोई दूसरा फायदा. इस नीति ने केवल पूंजीपतियों को मजबूत किया है. सरकार की इच्छाशक्ति से ही इस देश में ठेकेदारी प्रथा को खत्म किया जा सकता है या लोग ठेकेदारी पर काम ही न करें.’’

निजीकरण पर हसामुद्दीन को अपनी कालोनी के एक साथी दशरथ ठाकुर की बात याद आई. वे कहते हैं, ‘सरकारी मुलाजिम खुद इस के लिए जिम्मेदार हैं. जिस की नौकरी लग जाती है, वह खुद को सरकारी दामाद समझने लगता है.’

दशरथ ठाकुर रेलवे महकमे से रिटायर हो चुके हैं. हसामुद्दीन ने उन से एक बार पूछा था, ‘‘क्या रेलवे में सभी मुलाजिम काम नहीं करते हैं?’’

तब उन्होंने कहा था, ‘‘सरकारी मुलाजिम देरी से आता है और जल्दी घर चला जाता है.’’

हसामुद्दीन इस बारे में विचार करता है कि कैंटीन में चाय पीना, सिगरेट फूंकना या किसी से बात करने का मतलब यह नहीं है कि वह काम नहीं करता है. कुछ मुलाजिम कामचोर जरूर होते हैं, लेकिन उन्हें कड़ाई से दुरुस्त किया जा सकता है न कि उदारवादी लोककल्याणकारी व्यवस्था को बदल कर पूंजीवादी व्यवस्था लागू कर दिया जाए. अंगरेजी राज में भी तो सरकारी स्कूल थे. सरकारी रेलवे और डाक महकमे थे. तब वहां काम होता था, तो आज क्यों नहीं हो पा रहा है? क्या केवल डर से ही लोग सही से काम करेंगे?

निजीकरण तो इस का कोई हल नहीं है.

फैक्टरी मालिक ग्रैच्युटी नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि नवउदारवादी नीति तो केवल टैंपरेरी नौकरी देने के पक्ष में है. आज बड़ेबड़े उद्योगों में भी टैंपरेरी नौकरियां ही दी जा रही हैं.

पूंजीपतियों के पक्षधर कहते हैं, ‘भाई, सभी को परमानैंट नौकरी नहीं दी जा सकती है…’ यह सोच हमारे समाज में तेजी से बढ़ाई गई है. पर लोग यह क्यों नहीं सोचते कि कोई पूंजीपति खुद पूंजीपति नहीं बनता है, उसे मजदूर और मुलाजिम पूंजीपति बनाता है. क्या पूंजीपति मजे नहीं करते हैं? उन के बच्चों की शादी में करोड़ों रुपए खर्च नहीं होते हैं?

खर्च करना गलत नहीं है, क्योंकि एक का खर्च होना भी तो अर्थशास्त्र में दूसरे की आमदनी है. सरकारी मुलाजिमों की आड़ में तो प्राइवेट कंपनियों में काम कर रहे मजदूरों, दूसरे मुलाजिमों के हकों को इन बीते दशकों में तेजी से हड़प लिया गया है.

7 लोग मिल कर यूनियन क्यों नहीं बना सकते हैं, जबकि धर्म को बचाने के लिए 4 लोग खड़े हो कर होहल्ला कर सकते हैं? कामगारों का हक क्या हक नहीं है? किसी कंपनी के मालिक ने किसी को रोजगार दे कर क्या उसे अपना गुलाम बना लिया है?

हसामुद्दीन को बस की सीढि़यों पर बैठे उस बड़े लड़के की याद आई, जिस के शरीर पर टैटू खुदे थे. क्या वे पैदाइशी थे या समाज ने ही उसे इतना धर्मभीरू बना दिया? अच्छेबुरे की परवाह न करते हुए उस ने अपने धर्म को ज्यादा अहमियत दी, लेकिन धर्म भी एक पदार्थ है… निकालने वाले तो उस में से अच्छीअच्छी चीजें निकाल कर अपनी जिंदगी संवार लेते हैं.

दूसरी तरफ सांप्रदायिक और धार्मिक अवसरवादी तत्त्व हैं, जो ऐसे लड़कों का इस्तेमाल हैं, क्योंकि धर्मभीरूता और पक्षधरता तो हर आदमी में होती है, लेकिन सांप्रदायिकता उस के अनुपात को बढ़ा देती है.

वे दोनों लड़के भयमुक्त लग रहे थे, लेकिन उन्हें भी भूख और प्यास लगती है. उन्होंने बस में कुछ लोगों को धमकाया भी था.

आदमी में डर होता है, पर जिसे सजा का डर न हो तो वह भयमुक्त हो जाता है या व्यवस्था ही अमानवीय हो जाए, तब आदमी का डर खत्म हो जाता है. अगर आदमी की जीने की चाह ही मर जाए, तब भी आदमी को डर नहीं लगता है.

कालोनी के साथी दशरथ ठाकुर को अब सरकारी नौकरियों में कमियां नजर आती हैं, जबकि वे खुद सरकारी मुलाजिम थे. उन का पैर रेल से कट गया था. रेलवे ने उन्हें अपने महकमे में दूसरा काम दिया, उन का इलाज करवाया. यहां तक कि नकली पैर भी लगवाया. उन की रेलवे की पैंशन है, पर प्राइवेट सैक्टर में काम कर रहे कामगारों के साथ होने वाले हादसों में मालिक उन्हें बाहर का रास्ता ही दिखा देते हैं.

इतने में हसामुद्दीन को कंडक्टर की आवाज सुनाई देने लगी, ‘‘अरे भाई, बस खाली कर दो…’’

बस मिंटो रोड तक पहुंच गई थी. हसामुद्दीन बस से उतर कर मिंटो ब्रिज से होता हुआ रीगल सिनेमा की तरफ चल दिया. Long Hindi Story

Story In Hindi: अछूत की तलाशी

Story In Hindi: समसपुर पंचायत में चौधरी साहब का काफी दबदबा था. आखिर हो भी क्यों न. मुसहर टोले का शायद ही कोई ऐसा आदमी था, जो चौधरी साहब का कर्जदार न हो या उन के खेत और ईंटभट्ठे में मजदूरी न करता हो.

देवन भी चौधरी साहब का खेतिहर मजदूर था. इंदिरा आवास योजना के तहत उस के पास रहने को पक्का मकान था. वह कभी चौधरी साहब के खेत में तो कभी ईंटभट्ठे पर मजदूरी किया करता था. मजदूरी से जो भी अनाज या पैसा मिलता था, उसी से देवन का गुजारा होता था.

3 साल पहले टीबी के मरीज देवन ने अपनी बीमारी के इलाज के लिए 10,000 रुपए सैकड़ा की दर से 5,000 रुपए चौधरी साहब से उधार लिए थे. वह हर महीने ब्याज का बाकायदा भुगतान भी कर दिया करता था.

पर पिछले 2 महीने से लगातार बीमार रहने के चलते देवन चौधरी साहब के ईंटभट्ठे पर नहीं जा रहा था. इस वजह से वह मूलधन तो दूर 2 महीने से ब्याज तक नहीं चुका पाया था.

चौधरी साहब जितनी आसानी से ब्याज पर रुपए लगाते थे, उस से कई गुना सख्ती से वसूली करने के लिए भी बदनाम थे. 2 महीने तक देवन जब काम पर नहीं पहुंचा और ब्याज भी नहीं भिजवाया, तो एक शाम चौधरी साहब खुद 4 लठैतों को ले कर मुसहर टोले की ओर चल दिए.

देवन की झोपड़ी के पास पहुंच कर चौधरी साहब के एक लठैत ने आवाज लगाई, ‘‘अरे देवना, कहां है रे… निकल बाहर…’’

आवाज सुन कर देवन किसी तरह लाठी टेकता हुआ बाहर निकला.

37 साल का गबरू जवान दिखने वाला देवन आज टीबी की वजह से 60 साल की उम्र वाला हड्डियों का ढांचा सा दिख रहा था.

‘‘अरे, मालिक आप…पाय लागूं …’’ बोल कर देवन ने चौधरी साहब के जूते को पकड़ लिया.

चौधरी साहब पैर से देवन के हाथों को ?ाटकते हुए चिल्लाए, ‘‘अरे, छू कर मेरा धरम भ्रष्ट करेगा क्या?’’

एक लठैत देवन द्वारा छुए गए चौधरी साहब के जूते को गमछे से साफ करने लगा.

‘‘ए देवना, चल फटाफट निकाल दो महीने का ब्याज… 1,000 रुपए,’’ चौधरी साहब चिल्लाए.

‘‘आप को तो पता ही है मालिक, 2 महीने से लगातार तबीयत बिगड़ी हुई है. दवादारू के चक्कर में ही जमा किया हुआ सारा रुपयापैसा खर्च हो गया,’’ देवन ने अपनी मजबूरी जाहिर की.

‘‘ऐ सुन… हम यहां तुम्हारी रामकथा सुनने नहीं, बल्कि सूद लेने आए हैं,’’ चौधरी साहब ने हड़काया.

‘‘मालिक, 3 साल से तो हर महीने समय पर 500 रुपए दे ही देते थे, बस इधर 2 महीने से तबीयत ज्यादा बिगड़ गई, तो काम पर नहीं जा सके, इसलिए ब्याज रुक गया…’’ देवन बोला.

‘‘चल, तलाशी दे… कितना माल छिपा रखा है अपनी अंटी में,’’ कमर से बंधी अंटी पर नजर टिकाते हुए चौधरी साहब ने बीच में टोकते हुए पूछा.

देवन ने अंटी से सौ के 3, पचास के 3, बीस के 2 और एक दस का एक नोट निकाल कर दिखाते हुए हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘मालिक, अभी हमारे पास ब्याज देने के पैसे नहीं हैं. ये बस 500 रुपए हैं, जिन से आज इलाज की आखिरी दवा लेने शहर में डाक्टर के पास जाना है.

‘‘डाक्टर साहब ने कहा है कि आज आखिरी खुराक लेने के एक हफ्ते बाद मैं पूरी तरह से ठीक हो जाऊंगा… मालिक, एक बार तबीयत ठीक हो जाने दीजिए, फिर मैं आप के ईंटभट्ठे पर काम कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा.’’

‘‘चल ड्रामेबाज, गांव की सरकारी डिस्पैंसरी में इलाज न करा कर शहर में जाएगा डाक्टर को दिखाने…’’ इतना कह कर चौधरी साहब ने एक लठैत को कुछ इशारा किया.

उस लठैत ने एक झटके में 500 रुपए देवन के हाथ से छीन कर चौधरी साहब को थमा दिए.

‘‘यह तो हुआ एक महीने का ब्याज, बाकी एक महीने का भी निकाल फटाफट,’’ नोटों को उलटपुलट कर जांचते हुए चौधरी साहब गुर्राए.

‘‘सच कह रहे हैं मालिक, बच्चे की कसम… ये पैसे मुझे दे दीजिए, दवा मंगवानी है साहब… ठीक होने के बाद मैं आप का सारा कर्जा चुका दूंगा,’’ गिड़गिड़ाते हुए देवन रोने लगा.

बाहर होहल्ला सुन कर देवन की बीवी गोद में 8 महीने के बेटे को ले कर बाहर निकल आई. वह सारी बात को समझ चुकी थी.

वह भी पति के साथ गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘हुजूर, एक भी पैसा नहीं है अभी… आप यह पैसा हमारे मालिक को दे दीजिए… दवा लानी है… बाद में ये मजदूरी कर के धीरेधीरे आप का सारा पैसा लौटा देंगे.’’

चौधरी साहब ने ऊपर से नीचे तक देवन की बीवी को ताड़ा. गठीले शरीर वाली गोरीचिट्टी देवन की बीवी ने एक मैलीकुचैली साड़ी से किसी तरह अपने अधनंगे बदन को ढका हुआ था. गोद में लिए हुए बच्चे के अंग पर कोई भी कपड़ा नहीं था.

बिना ब्लाउज के साड़ी से ढकी छाती पर आंखें गड़ाते हुए चौधरी साहब कुटिलता से मुसकराए, फिर बोले, ‘‘क्या रे, तुम दोनों प्राणी हम को बेवकूफ सम?ाते हो… पैसा घर में छिपा कर रखा है और यहां मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हो.’’

‘‘सच कहते हैं हुजूर, एक भी रुपया नहीं है घर में,’’ देवन ने जवाब दिया.

‘‘तो चल तलाशी दे घर की,’’ इतना बोल कर चौधरी साहब ने देवन की बीवी की गोद से बच्चा ले कर देवन को थमा दिया और उस की पत्नी की बांह पकड़ कर झोपड़ी के अंदर ले जाने लगे.

थोड़ी देर पहले देवन को अछूत कहने वाले चौधरी साहब को उस की बीवी का शरीर छूते समय छूतअछूत से कोई मतलब नहीं था.

‘‘मालिक, रुक्मिणी को छोड़ दीजिए, हम चलते हैं साथ में,’’ देवन टोकते हुए बोला.

चौधरी साहब के इशारे पर लठैतों ने देवन को घेर लिया. तलाशी के नाम पर चौधरी साहब देवन की बीवी के साथ घर के अंदर चले गए और दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया.

आधा घंटे बाद चौधरी साहब कुरते के बटन लगाते हुए बाहर निकले और बोला, ‘‘सही कह रहा था देवना… पैसा नहीं था अंदर…’’

गोद में बच्चा लिए देवन बिलखबिलख कर रो रहा था. अंदर निढाल पड़ी उस की बीवी, जो कल तक अछूत मानी जाती थी, आज पराए मर्द की छुअन से खुद को दूषित महसूस कर रही थी.

चौधरी साहब ने लठैतों को चलने का इशारा किया और मूंछ पर उंगली फेरते हुए देवन से कहा, ‘‘तुझे पता है न देवन, मैं सूद से समझौता नहीं करता… इस बार तो 2 महीने का ब्याज बराबर हो गया, बाकी अगले महीने से समय पर दे देना, नहीं तो हमें आ कर इसी तरह घर की तलाशी लेनी पड़ेगी.’’ Story In Hindi

Family Story In Hindi: बड़का घराना की हार

Family Story In Hindi: 55 साल के बजरंगी सिंह ने जब विधवा दुर्गा देवी को अपने घर के कामकाज के लिए रखा तो उन की नीयत में खोट था. दुर्गा देवी ने वह काम छोड़ दिया. गांव वालों के कहने पर वह मुखिया का चुनाव लड़ बैठी. उस के सामने थी बजरंगी सिंह की बहू और बड़का घराना की शान. क्या दुर्गा देवी लोहा ले पाई?

गांव में धीरेधीरे भोर का उजाला फैल रहा था. पूरब की ओर खेतों के किनारे खड़े पेड़ों की कतार पर लालिमा ऐसे बिखर रही थी, जैसे किसी ने कूची से रंग भर दिया हो.

यह गांव बेलाडीह कहलाता था. वही गांव जहां एकएक घर की कहानी कई पीढि़यों तक फैली रहती थी. यहीं, इसी गांव के बीचोंबीच एक बड़ा सा पक्का मकान था, लोग उसे ‘बड़का घराना’ कहते थे. मालिक थे बजरंगी सिंह.

एक समय ऐसा था जब बजरंगी सिंह की हुकूमत पूरे इलाके में चलती थी. उन के बापदादा जमींदार थे. गांव के आधे खेतों पर उन्हीं का कब्जा था.

बजरंगी सिंह की उम्र होगी तकरीबन 55 साल. शरीर गठीला, मूंछ तनी हुई, चाल में अकड़. पर वक्त ने जैसे उन की रियासत का कद थोड़ाथोड़ा काटना शुरू कर दिया था. नए कानून, नई पीढ़ी और बदलते हालात ने ‘बड़का घराना’ के रसूख को हिला दिया था.

उसी गांव में रहती थी दुर्गा देवी.

40 के आसपास की औरत. रंग सांवला, कद औसत, आंखों में अजीब सी हिम्मत. पति की मौत के बाद वह अपने 4 बच्चों को ले कर अकेली रह रही थी. तो सब से बड़ी बेटी 10वीं जमात में पढ़ती थी, तो सब से छोटा बेटा अभी 3 साल का था. घर में दो वक्त की रोटी का भी भरोसा नहीं था.

पति रमेंद्र की मौत के बाद दुर्गा देवी के दिन ऐसे बीते जैसे रात खत्म ही नहीं हो रही. गांव के लोगों ने शुरूशुरू में सहारा दिया, लेकिन धीरेधीरे सब अपनीअपनी दुनिया में लग गए. उस के पास खेती लायक जमीन थी ही नहीं. मजदूरी से जो मिलता, उसी से गुजारा होता.

बच्चे रोज पेटभर खाना मांगते और दुर्गा देवी मन ही मन टूटती. वह गांव के हर बड़े आदमी के दरवाजे पर मदद की उम्मीद ले कर गई, पर कहीं से कुछ खास सहारा नहीं मिला.

तभी गांव के सब से रसूखदार आदमी बजरंगी सिंह ने उसे बुलाया और कहा, ‘‘देखो दुर्गा, हम को घर में झाड़ूपोंछा के लिए एक औरत चाहिए. तुम आ जाओ. महीने के 2,000 रुपए देंगे. इस से तुम्हारे राशनपानी का भी इंतजाम हो जाएगा.’’

दुर्गा देवी ने सोचा, ‘2,000 कम हैं, पर बच्चों के लिए कुछ तो होगा.’

मजबूरी में दुर्गा देवी ने हां कर दी. काम शुरू हुआ. वह रोज सुबह बजरंगी सिंह के घर पहुंचती. वह घर बड़ा था और पुरानी जमींदारी के ठाटबाट की गवाही देता था.

बजरंगी सिंह अकेले रहते थे. उन की पत्नी शहर में बहूबेटों के पास रहती थीं.

दुर्गा देवी को पहले दिन ही बजरंगी सिंह की नजर का मतलब समझ आ गया. उन की आंखों में वही लालच, वही वहशी चमक थी, जिस से गांव की हर औरत डरती थी.

एक दिन बजरंगी सिंह ने दुर्गा देवी का हाथ पकड़ लिया. वह कांप गई और बोली, ‘‘मालिक, छोड़ दीजिए. हम मजदूरी करने आए हैं, यह मत कीजिए.’’

यह सुन कर बजरंगी सिंह हंस पड़े और बोले, ‘‘अरे, इतना घबराती क्यों हो? मैं तुम्हारा भला ही तो करूंगा. यहां जितनी मजदूरी करोगी, उस से ज्यादा कमा सकती हो.’’

दुर्गा देवी को लगा जैसे कोई उसे आग में धकेल रहा हो. वह भाग कर बाहर निकल गई, पर मन में डर बैठ गया कि अगर काम छोड़ दिया तो बच्चों को क्या खिलाएगी?

उसी समय गांव में पंचायत चुनाव की सरगर्मी शुरू हो चुकी थी. इस बार मुखिया का पद महिला के लिए रिज्वर्ड सीट थी. ‘बड़का घराना’ चाहता था कि बजरंगी सिंह की बहू चुनाव लड़े.

‘‘सीट हमारी होगी…’’ बजरंगी सिंह हर सभा में दहाड़ते थे, ‘‘गांव का मुखिया हमेशा ‘बड़का घराना’ से ही होगा.’’

पर गांव की नई पीढ़ी अब पुरानी दहशत में नहीं जीती थी. कई नौजवान चाहते थे कि कोई गरीब घर की औरत खड़ी हो. किसी ने दुर्गा देवी का नाम सुझाया.

यह सुन कर दुर्गा देवी हंस पड़ी और बोली, ‘‘तुम लोग पागल हो गए हो क्या? हम कैसे चुनाव लड़ेंगे… खर्चा कहां से आएगा?’’

पर उन नौजवानों ने ठान लिया था. धीरेधीरे बहुत सी औरतें भी दुर्गा देवी के साथ जुड़ गईं.

‘‘तुम्हारी जीत हमारी जीत होगी,’’ एक औरत ने दुर्गा देवी से कहा.

बजरंगी सिंह को जब यह खबर लगी कि दुर्गा देवी चुनाव लड़ रही है, तो वे तिलमिला उठे.

‘‘एक विधवा हमारे सामने खड़ी होगी? अपनी औकात भूल गई है,’’ बजरंगी सिंह ने अपने चमचों से कहा.

इस के बाद बजरंगी सिंह दुर्गा देवी के खिलाफ अफवाहें फैलाने लगे. उन का कोई चमचा कहता, ‘‘दुर्गा तो लालची औरत है, उसे पंचायत की कुरसी चाहिए.’’

कोई चमचा कहता, ‘‘बजरंगीजी का घर छोड़ कर अब राजनीति में जाएगी.’’

दुर्गा देवी को धमकी दी जाने लगी कि अगर वह चुनाव लड़ेगी, तो बुरा होगा.

पर दुर्गा देवी नहीं डरी. उस ने घरघर जा कर लोगों से बातें कीं. अपने भाषणों में कहा, ‘‘भाइयो, मैं गरीब हूं, पर आप की बहनबेटी हूं. अगर आप साथ दें तो हम सब इस गांव में तरक्की ला सकते हैं.’’

चुनाव नजदीक आते ही सियासी माहौल गरम हो गया. बजरंगी सिंह की बहू जीप में घूमघूम कर वोट मांगती. पंडालों में दावतें होतीं. शराब का दौर चलता. मटनचिकन का पार्टी होती.

दुर्गा देवी के पास न गाड़ी थी, न पैसे. वह पैदल गलियों में घूमघूमकर हर घर के लोगों से मिलती. लोगों का हुजूम नारे लगाता कि ‘हमारा मुखिया कैसा हो दुर्गा भाभी जैसा हो’.

एक दिन बजरंगी सिंह ने दुर्गा देवी को धमकाया, ‘‘दुर्गा, अगर तू ने चुनाव से नाम वापस नहीं लिया, तो इस का अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

दुर्गा देवी ने बजरंगी सिंह की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘मालिक, अब डरने का वक्त निकल गया. जो होगा, देखा जाएगा.’’

वोटिंग का दिन आया. गांव में भीड़ उमड़ पड़ी. औरतें पहली बार इतने जोश से वोट देने आईं. दोनों तरफ के समर्थक नारेबाजी कर रहे थे.

शाम को गिनती शुरू हुई. पहले दौर में बजरंगी सिंह की बहू आगे थी, पर उस के बाद धीरेधीरे दुर्गा देवी के वोट बढ़ने लगे.

रात के 12 बजे नतीजा आया. दुर्गा देवी 112 वोटों से जीत गई. गांव में हंगामा मच गया. औरतें नाचने लगीं. बच्चे पटाके फोड़ने लगे. ‘दुर्गा भाभी जिंदाबाद’ के नारे लगने लगे.

बजरंगी सिंह का चेहरा उतर गया. उन की बहू रोतेरोते कमरे में बंद हो गई.

दुर्गा देवी गाजेबाजे और फूलमाला से लदी घर लौटी. उस ने अपने बच्चों को गले लगाया और कहा, ‘‘अब हमारे गांव में गरीबों की भी आवाज होगी.’’

अगली सुबह गांव की गलियां अलग ही लग रही थीं. लोग कहते, ‘अब समय बदल गया. ‘बड़का घराना’ की नहीं, सब की पंचायत होगी. सब की बात सुनी जाएगी और उन का समाधान किया जाएगा.’

दुर्गा देवी ने सब से वादा किया, ‘‘हम गांव में स्कूल और डिस्पैंसरी खुलवाएंगे. अब पंचायत सिर्फ अमीरों की नहीं रहेगी.’’

बजरंगी सिंह पहली बार निराश हो कर घर के ओसारे में बैठे थे. उन का ‘बड़का घराना’ जैसे ढह चुका था. Family Story In Hindi

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