फिल्म ‘टोनी’ के पोस्टरों और ट्रेलर के खिलाफ ईसाई समुदाय में रोष, पढ़ें खबर

रुस्तम, इकबाल, मुम्बई-वाराणसी एक्सप्रेस जैसी कई ब्लौकबस्टर फिल्मों के लेखक रहे विपुल के. रावल अब फिल्म ‘टोनी’ के जरिए बतौर निर्देशक अपना डेब्यू करने जा रहे हैं. उल्लेखनीय है कि इस फिल्म के ट्रेलरों और पोस्टरों को पिछले हफ्ते ही जारी किया गया था. यह फिल्म साइकोलौजी के चार ऐसे छात्रों की कहानी हैं, जिनका सामना टोनी नामक एक ऐसे सीरियल किलर से हो जाता है, जो एक पादरी की हत्या करने की बात को कुबूल कर लेता है. इस बीच, सिरिल दारा नामक शख्स का दावा है कि फिल्म में इस तरह से ईसाई समुदाय का चित्रण किये जाने से पूरा ईसाई समुदाय काफी गुस्से में है और ऐसे में फिल्मकार के खिलाफ पुलिस में एक शिकायत भी दर्ज कराई गई है.

गौरतलब है कि फिल्म के लेखक और निर्देशक विपुल के. रावल ने जारी किये गये एक बयान के जरिए कहा, “यह फिल्म टोनी नामक एक सीरियल किलर पर आधारित है. ऐसे में फिल्म में धार्मिक तत्वों का इस्तेमाल करना लाजिमी हो जाता है. मेरी फिल्म को बिना किसी काट-छांट के सेंट्रल बोर्ड औफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) की ओर से हरी झंडी मिल चुकी है. ऐसे में पोस्टरों में बदलाव अथवा ट्रेलर को वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है.”

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पुलिस में शिकायत दर्ज करानेवाले सिरिल दारा के मुताबिक, “मैं एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हूं और मैं सभी धर्मों का समान रूप से आदर करता हूं. इस फिल्म के तमाम पोस्टरों और ट्रेलरों के माध्यम से कैथलिक और प्रोटेस्टेन्ट्स के बीच दरार पैदा करने की कोशिश जा रही है और एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं इसे कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता हूं. इससे दोनों समुदाय की भावनाएं आहत होंगी. फिल्म में एक कैथलिक शख्स को सीरियल किलर के तौर पर पेश किया जा रहा है. मुझे लगता है कि इस फिल्म को बनाने के पीछे की विपुल के. रावल की नीयत सही नहीं है और इसके पीछे उ‌नका अपना ही कोई एजेंडा छिपा है.”

सिरिल दारा ने हमें बताया कि आग्रीपाडा पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर ने उनकी शिकायत को दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी है, मगर न तो इस संबंध में कोई एफआईआर दर्ज की गयी है और न ही कोई एनसी. मगर उनका यह भी दावा है कि इस मसले पर कई पादरी, बिशप और चर्च भी उनके साथ खड़े हैं. उनके मुताबिक, चर्च और ईसाई समुदाय मिलकर सार्वजनिक तौर पर विरोध जताने की तैयारी में हैं, मगर वो नफरत फैलाने के पक्ष में नहीं हैं और इसीलिए उन्होंने इस तरह के विरोध को फिलहाल के लिए रोक रखा है. उनका यह भी कहना है कि इसी वजह से वे फिल्म को कानूनी और शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शित नहीं किये जाने के पक्ष में हैं.

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ईसाई समुदाय और फ़िल्मकार विपुल के. रावल के बीच की इस लड़ाई के जल्द सुलझने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं. विपुल कहते हैं, “सबसे पहली बात तो यह है कि मेरे पोस्टरों के जरिए पूरे समुदाय की भावनाएं आहत नहीं हुईं हैं, बल्कि ऐसे लोगों के एक छोटे से समूह ने इस पर नाराज़गी जताई है, जो मेरे रचनात्मकता को आधार बनाकर सस्ती पब्लिसिटी बटोरना चाहते हैं.

अगर सिरिल दारा का यह दावा है कि कई पादरी उनके साथ हैं, तो वो मुझे निजी तौर पर उन सभी के नाम बताने से क्यो‌ कतरा रहे हैं? मैं निजी तौर पर सभी को ट्रेलर दिखाने के लिए तैयार हूं और उनसे यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि आखिर उन्हें इन ट्रेलरों में क्या गलत लगा? जरूरत पड़ी तो इसपर मैं बहस करने के लिए भी राजी हूं. मैं उनसे गुज़ारिश करता हूं कि किसी भी तरह के नतीजे पर पहुंचने से पहले वो आकर फिल्म देखें. जब तक कि कोर्ट मुझे कोई दिशा-निर्देश नहीं देती, मैं फिल्म में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं करनेवाला हूं. इसके लिए मैं अपनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक जाकर लड़ने के लिए भी तैयार बैठा हूं.”

फिल्म ‘टोनी’ साइकोलौजी के चार ऐसे छात्रों की कहानी है, जो चर्च के कंफेशन बौक्स में चोरी से एक कैमरा लगा देते हैं. फिर इसी कैमरा में हुई रिकौर्डिंग के जरिए उन्हें पता चलता है कि एक सीरियल किलर ने एक हत्या को लेकर कुबूलनामा दिया है. इन चारों की जिंदगी उस वक्त एक अजीब मोड़ ले लेती है, जब उनका सामना खुद टोनी से हो जाता है और फिर ये सभी उसके साथ लोगों की हत्या के लिए निकलते हैं. इस फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में यशोधन राणा, अक्षय वर्मा, मनोज चंडालिया, महेश जिलोवा. कबीर चिलवल , जिनल बेलानी, मनोज चंदीला  नज़र आएंगे. उल्लेखनीय है कि इस फिल्म का लेखन, निर्माण और निर्देशन विपुल के रावल ने किया है.

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Bigg Boss 13: बिग बौस ने दिया घरवालों को ‘शौकिंग इविक्शन’ का नया झटका, ये सदस्य होंगे घर से बेघर

बिग बौस सीजन 13 जब से शुरू हुआ है तब से घर में रह रहे सदस्यों और दर्शकों को एक के बाद एक झटकों का सामना करना पड़ रहा है. इन दिनों जहां एक तरफ कैप्टेंसी टास्क में सभी सदस्य अपनी जी जान लगा रहे हैं घर का कैप्टन बनने के लिए तो वहीं दूसरी तरफ बिग बौस ने घर वालों को एक और झटका दे दिया है. सबसे पहले बिग बौस ने घर के सदस्यों को वो नाम लेने को कहा जिसका योगदान घर में सबसे कम रहा है.

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ये दोनों सदस्य हो सकते हैं घर से बेघर…

इसके बाद बिग बौस शो के मेकर्स ने एक प्रोमो रिलीज किया है जिसमें बिग बौस ने बताया कि जिन सदस्यों का भी उन्होनें नाम लिया है वो सदस्य घर से बेघर हो जाएगा. इसी के चलते प्रोमो में साफ दिखाई दे रहा है कि घरवालों ने सबसे ज्यादा नाम भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव का और टेलिवीजन क्वीन रश्मि देसाई का लिया है.

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किन सदस्यों का रहा घर में योगदान सबसे कम…

दरअसल पहले तो बिग बौस ने घरवालों को सिर्फ वो नाम लेने को कहा जिनका योगदान घर में सबसे कम रहा है, पर इसके बाद घरवालों को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब बिग बौस ने इस बात का ऐलान किया कि ये प्रक्रिया घर से बेघर होने के लिए है. सबसे ज्यादा नाम जो सामने आए हैं वो सिर्फ खेसारी लाल यादव और रश्मि देसाई के ही हैं.

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कब होगा ये शौकिंग इविक्शन…

अब देखना ये होगा कि इस शौकिंग इविक्शन में खेसारी लाल यादव और रश्मि देसाई में से कौन होगा घर से बेघर. ये अभी तक तय नहीं हुआ है कि ये इविक्शन आज के आने वाले एपिसोड में होगा या फिर सलमान खान खुद वीकेंड के वौर में इन दोनो में से किसी एक को करेंगे घर से बेघर.

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दूसरी जाति में शादी, फायदे ही फायदे

किसी ब्राह्मण परिवार में पलाबढ़ा अर्जुन जाति के फर्क या भेदभाव को नहीं मानता था. अपनी पढ़ाई पूरी करतेकरते उसे एक दूसरी जाति की लड़की से प्यार हो गया. उस ने अपने परिवार को बताया, तो घर में कुहराम मच गया. अर्जुन के पिता ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें ब्राह्मण लड़की से ही शादी  करनी है, नहीं तो हम तुम्हारे टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.’’ अर्जुन ने अपने मातापिता को बहुत समझाया, पर किसी ने उस की एक न सुनी. उसे समझ आ गया कि परिवार का साथ नहीं मिलेगा और उन्हें एकदूसरे से दूर कर दिया जाएगा. अर्जुन उस लड़की रीता को ले कर मिरजापुर से दिल्ली आ गया, जहां वह कुछ दिन अपने दोस्त के घर रहा और वहीं उन्होंने आर्यसमाज रीति से शादी कर ली. उस के दोस्त ने उसे नौकरी भी दिलवा दी.

अर्जुन का कहना है, ‘‘सब को छोड़ कर हमें यहां आना पड़ा. मैं अब किसी को अपना पता भी नहीं दे सकता. अगर पता दे दिया, तो आज भी समस्या खड़ी हो सकती है. ‘‘मैं ने सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से मदद चाही, पर किसी से कोई मदद नहीं मिली. ऐसा कोई कानून नहीं है, जो मेरे जैसे लोगों की मदद करे. हमारा कानून दूसरी जाति में शादी करने की इजाजत देता है, पर उन लोगों की हिफाजत नहीं कर पाता, जो अपनी जाति से बाहर शादी कर लेते हैं.

‘‘जाति और धर्म के नाम पर प्यार को कब तक दबाया जाता रहेगा  आजादी के इतने साल बाद भी यही सुनने को मिलता है कि ब्राह्मण लड़के को ब्राह्मण लड़की से ही शादी करनी है, नीची जाति की लड़की से नहीं. ‘‘जीवनसाथी चुनने का हक सब को मिलना चाहिए. धर्म और जातिवाद की इस सामाजिक बुराई ने कई जिंदगी बरबाद की हैं.’’

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दूसरी जाति में शादी करने का तो भारतीय समाज की एकता बढ़ाने में बड़ा योगदान हो सकता है. ऐसी शादियों से नुकसान तो कुछ है ही नहीं, फायदे ही फायदे हैं, जैसे:

* दूसरी जाति में शादी के चलन को अपना कर समाज में छोटी मानी जाने वाली जातियों को भी ऊपर उठने का मौका दिया जा सकता है.

* ऐसी कामयाब शादियां आने वाली पीढ़ी को भी धार्मिक पाखंडों और आडंबरों से छुटकारा दिलाने में मददगार होती हैं.

* दूसरी जाति में शादी करने वाले ही अपने समाज के साथसाथ दूसरे समाज के प्रति भी सब्र के साथ अपने विचार रखते हैं.

* सामाजिक विरोध का सामना करने के लिए ऐसे पतिपत्नी को बहुत मजबूत होना पड़ता है. एकदूसरे का साथ देते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते हुए यह रिश्ता मजबूत होता चला जाता है. भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए समाज में ऐसी शादियां खुशी से स्वीकार कर लेनी चाहिए.

* लड़कालड़की दोनों ने अपनी मरजी से शादी की होती है, इसलिए वे रिश्ता निभाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ते. दोनों ही यह सोचते हैं कि उन्हें ही एकदूसरे का साथ देना है. परिवार वालों से कोई उम्मीद नहीं होती और किसी को अपने फैसले का मजाक उड़ाने का मौका नहीं देना होता है. पतिपत्नी ज्यादा ईमानदारी से यह रिश्ता निभाने की कोशिश करते हैं.

* इन के बच्चे भी हर धर्म का आदर करना सीख जाते हैं. दोनों धर्मों के बुरे रीतिरिवाज छोड़ कर पतिपत्नी अपनी सुखी शादीशुदा जिंदगी के लिए नई दुनिया बसा कर केवल सुखदायी बातों पर ही ध्यान देते हैं.

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* समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड, आडंबर जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए ऐसी शादियां बड़ी फायदेमंद साबित होती हैं.

* सामाजिक भेदभाव, एकदूसरे के धर्म को नीचा दिखाना, यह सब रोकने के लिए समाज को दूसरी जाति में शादी स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.

* दोनों धर्मों के त्योहारों का मजा ले कर जिंदगी में एक जोश सा बना रहता है, मिलजुल कर एकदूसरे के रंग में रंग कर जीने का मजा ही कुछ और होता है.

* आजकल के बच्चे तो गर्व से अपने दोस्तों को बताते हैं कि उन के मम्मीपापा ने दूसरी जाति में शादी की है. ऐसे नौजवान अपने मातापिता को आदर से देखते हैं. उन के मातापिता ने यह रिश्ता जोड़ने के लिए कितने सुखदुख झेले हैं, यह बात उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाती है.

* जहां औनर किलिंग जैसी शर्मनाक बातें समाज को गिरावट की ओर ले जाती हैं, वहीं ऐसी शादियों के समर्थन में उठे कदम उम्मीद की किरण बन कर राह भी दिखाते हैं.

* बड़े शहरों में तो अब उतना विरोध नहीं दिखता, पर छोटे शहरों, कसबों में आज भी होहल्ला मचाया जाता है. धर्म की जंजीरों में जकड़े लोग दूसरे समुदाय को अच्छी नजर से देख ही नहीं पाते. हर धर्म अपने को ही अच्छा कहता है. ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना कहीं देखने को नहीं मिलती, फिर जब यह कहा जाता है कि छोटा शहर, छोटी सोच, तो ऐसे लोगों को बुरा भी बहुत लगता है, पर अपने को बदलने के लिए भी ये लोग कतई तैयार नहीं हैं.

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* दूसरी जाति में शादी करने वालों के बच्चों में भी दूसरों के मुकाबले ज्यादा मजबूत जींस होते हैं. ये बच्चे एक ही जाति के पतिपत्नी के बच्चों से ज्यादा होशियार होते हैं.

* ऐसी शादियों का एक बड़ा फायदा यह भी है कि दहेज प्रथा का यहां कोई वजूद नहीं रहता.

* जहां एक ओर अपनी जातबिरादरी में शादी तय करते समय लड़की की बोली लगाई जाती है, वहीं दूसरी तरफ ऐसी शादी सिर्फ प्यार, विश्वास और समर्पण पर टिकी होती है. दहेज, रुपएपैसे से इन्हें कोई मतलब नहीं होता. मिलजुल कर घर बसाते हैं. न कोई लालच, न किसी से कोई उम्मीद.

तो जब समाज की बेहतरी के लिए दूसरी जाति में शादी करने के इतने फायदे हैं, तो लोगों को एतराज क्यों है ? वैसे भी ‘जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी’ की तर्ज पर प्यार करने वालों का साथ दे कर उन्हें सुखी शादीशुदा होने की शुभकामनाएं ही क्यों न दें. समाज से धार्मिक आडंबर, जातिवाद, पाखंड, अंधविश्वास, दहेज मिट जाएगा, तो भला तो सब का ही होगा न.

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मोरे बालम गए कलकत्ता

बालम, कलकत्ता और गोरी का बहुत ही गहरा रिश्ता है. गोरी परेशान है. उस की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ है… यह सोचसोच कर कि बालम का काम बारबार कलकत्ता में ही क्यों होता है? चलो मान लिया काम होता भी है तो पूरे दफ्तर में अकेले उसी के बालम रह गए हैं क्या, जिन्हें बारबार कलकत्ता भेज दिया जाता है? बालमजी भी इतना खुश हो कर कलकत्ता ही क्यों जाते हैं जबकि देश

के मानचित्र पर अनेक शहर हैं. फिर कलकत्ता में ऐसी कौन सी डोर बंधी है जो गोरी के बालम को खींच रही है और बालम भी गोरी के लटकेझटके, नाजनखरे, प्यारमुहब्बत सब बिसार कर उधर ही खिंचे चले जाते हैं?

गोरी विरह की आग में जल रही है, ऊपर से बरसात उस की इस आग को ठीक उसी तरह भड़काने का काम कर रही है जैसे होम में घी करता है. गोरी के दिल से फिल्मी गाने के ये बोल निकल रहे हैं, ‘हायहाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी…’

पर न तो कोई गोरी की हालत समझ रहा है, न ही उस का गीत सुन रहा है. गोरी के दिल का बोझ बढ़ता गया और आखिरकार उस ने अपनी पीड़ा हमउम्र सखियों को बताई. उस की पीड़ा सुन कर सखियां भी उदास हो गईं. एक बोली, ‘‘रे सखी, कहीं तेरे बालम का दिल वहां की किसी सांवलीसलोनी पर तो नहीं आ गया है?’’

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‘‘ऐसा नहीं हो सकता. हमारी इतनी प्यारी सखी को छोड़ कहीं नहीं जाएगा जीजा,’’ दूसरी सखी डपटते हुए बोली. तभी तीसरी सखी बोली, ‘‘अरी, हम ने तो सुना है कि वहां की औरतें काला जादू जानती हैं और मर्दों को अपने बस में कर लेती हैं?’’

‘‘हां री, मैं ने भी बचपन में अपनी दादी से यही सुना था कि जो भी मरद कलकत्ता गए वे कभी न लौटे. फिर वहां की लुगाइयां मर्दों को भेड़बकरा या तोता कुछ भी बना डालती हैं जादू से और अपने यहां पालती हैं. उन की लुगाइयां बेचारी ऐसी ही जिंदगीभर इंतजार करती हैं उन का,’’ एक सखी ने उस में जोड़ा. ‘‘हां री, मैं ने भी सुना है यह तो… कलकत्ता गए मर्द कभी न आते वापस.’’

‘‘ऐसा हुआ तो हम कहां जाएंगे?’’ गोरी का कलेजा बैठने लगा, बहुत कोशिश कर के भी खुद को रोक न पाई और बुक्का फाड़ कर रो पड़ी, ‘‘हाय रे, मैं क्या करूं, कहां जाऊंगी मैं. कहीं वे भेड़बकरा बन गए तो मेरे किस काम के रह जाएंगे… एक तो पहले ही शक्ल बकरे जैसी थी, ऊपर से जादू से बकरा बना ही दिया तो कहां रखूंगी मैं उन्हें.’’ सारी सखियां उस की बातों पर हंसने लगीं. सभी सखियां मिल कर गोरी को चुप कराने लगीं, ‘अरी, रो मत. हम तो तुझ से मजाक कर रही थीं… यह सच नहीं है. ऐसा कुछ नहीं होता… जीजा बहुत जल्द आ जाएंगे,’ और उसे समझाबुझा कर घर भेज दिया.

गोरी घर तो आ गई, पर उस के मन का बोझ कई गुना बढ़ गया था. वह मन ही मन समझ रही थी कि जो बातें सखियों ने कहीं, वे झूठ नहीं थीं, क्योंकि उस ने भी वैसी बातें सुन रखी थीं… पर उस का बालम तो नहीं सुनता. इस बार तो कई महीनों से वापस नहीं आया. उसे अचानक याद आया कि उस का बालम कई बार कह भी चुका है कि कलकत्ता की लुगाइयां बड़ी सलोनी होती हैं. वह पहले क्यों न समझी. गोरी की रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया. पर यह बालम भी कैसा बेदर्द है. वह एक फोन तक नहीं कर रहा उस से बात करने को… बताओ, उस फिल्मी हीरोइन के बालम ने तो रंगून से भी फोन किया था कि तुम्हारी याद सताती है… और यह मेरा बालम है जो कलकत्ता से भी फोन नहीं कर रहा.

ऊपर से दिनभर सास के ताने सुनने को मिलते हैं, ‘‘ये आजकल की लड़कियां भी बिना खसम के रह ही न सकें, जाने काहे की आग लगी है? हम भी तो कभी जवान थे. हमारे वे तो 6-6 महीने के लिए परदेश जाते थे कमाने को… हम ने तो यों आंसू न बहाए थे… पूरे घर के काम और करे थे. ‘‘मर्द और बैल कभी खूंटा से बांध के रखे जाते हैं भला. उन्हें तो काम करना ही पड़ेगा तभी तो पेट भरेंगे सब का.’’

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गोरी बेचारी चुपचाप ताने सुनसुन कर घर के काम कर रही थी. वैसे भी हमारी बहुओं में चुप रहने की आदत होती है. उस ने ठान लिया था कि इस बार बालम बस वापस आ जाएं, फिर उन्हें कहीं भी जाने देगी, पर कलकत्ता नहीं जाने देगी, चाहे कुछ भी हो जाए. वह अपने पति के रास्ते को वैसे ही रोकेगी जैसे गोपियों ने उद्धव का रथ रोका था जब वे कान्हा को ले कर मथुरा जा रहे थे.

उस दिन सुबहसुबह सचमुच आहट हुई और दरवाजे पर बालम को देख गोरी खुशी में पति से ऐसे लिपट गई मानो चंदन के पेड़ पर सांप लिपटे हों. वह तो ऐसे ही लिपटी रहती अगर सास ने सुमधुर आवाज में उस के पूरे खानदान की आरती न उतारी होती. गालियों की बौछारों ने उस के अंदर से फूटे प्रेम के झरने को बहने से तुरंत रोक दिया.

गोरी ने अपनी भावनाओं को रोका और चुपचाप अपने कामों में जुट गई. भले ही उस की आंखें बालम पर टिकी थीं. आखिरकार इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं और गोरी का बालम से मिलन हुआ. पर यह मिलन स्थायी तो नहीं था… गोरी के दिल में हरदम डर लगा रहता, बालम फिर से न कहें कलकत्ता जाने की. गोरी अपने बालम की हर इच्छा का खयाल रखती ताकि उसे जाने की याद न आए. वह प्यारमनुहार से बालम के दिल को टटोलने की कोशिश कर रही थी जिस की डोर का एक सिरा कलकत्ता में बंधा तो है, पर किस से? पर अब तक कामयाब न हो सकी. सो बालम के प्रेम में मगन हो गई.

अभी कुछ ही दिन प्रेम की नदी में डुबकियां लगाते बीते थे कि बालमजी ने फिर कलकत्ता का राग अलापा. इधर उन का अलाप शुरू हुआ… उधर गोरी ने ऐसा रुदन शुरू किया कि बालम के स्वर हिलने लगे. गोरी जमीन में लोटपोट हो कर दहाड़ें मार रही थी… बालम बेचारा हैरानपरेशान उसे जितना चुप कराने की कोशिश करता, गोरी उतनी ही तेज आवाज में अपना रोना शुरू कर देती. सारा घर, सारा महल्ला इकट्ठा हो गया.

सासू ने भी अपने चिरपरिचित अंदाज में गोरी को चुप होने का आदेश दिया, पर आज तो गोरी ने उन की भी न सुनी. उस का रैकौर्डर एक ही जगह फंस गया था कि इस बार बालम को कलकत्ता नहीं जाने दूंगी. जितने लोग उतने उपाय. कोई कहे इस पर भूतनी आ गई है, इसे तांत्रिक बाबा के पास ले चलो… कोई चप्पल सुंघाने की सलाह दे रहा था… कोई कह रहा था कि इस के खसम का किसी कलकत्ते वाली से टांका भिड़ा है. उस के बारे में गोरी को पता लग गया है इसलिए इतना फैल रही है. बालम बेचारा अपने माथे पर हाथ धर के बैठ गया. सब मिल कर गोरी से जानने की कोशिश कर रहे थे कि ऐसी क्या वजह है कि वह अपने बालम को कलकत्ता नहीं जाने देना चाहती.

पर गोरी पर तो जैसे सच्ची में भूत सवार था. वह दहाड़ें मारमार कर रोए जा रही थी और कलकत्ता पर गालियां बरसा रही थी. यह नाटक और कई घंटे चलता, पर इतने में किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. कुछ देर तक तो पुलिस के सामने भी यह नाटक चालू रहा, पर फिर दरोगाजी ने डंडा फटकार कर कहा, ‘‘इस को, इस की सास को और पति को ले चलो और जेल में डाल दो. सारा सच सामने आ जाएगा…’’

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जेल का नाम सुनते ही गोरी के रोने पर झटके से ब्रेक लग गया. वह एक सांस में बोली, ‘‘हमें न भेजना अपने बालम को कलकत्ता, वहां की औरतें काला जादू जानती हैं, इसे जादू से बकरा बना कर अपने घर में बांध लेंगी, फिर हमारा क्या होगा?’’ और गोरी फिर से रोने लगी. गोरी की बात सुन कर बाकी लोग हंसने लगे. गोरी रोना बंद कर मुंहबाए सब को देखने लगी… उस ने देखा कि बालम भी हंस रहा है… ‘‘धत पगली, ऐसा किस ने कह दिया तुम से. इस जमाने में ऐसी कहानी कहां से सुन ली…’’ बालम ने उसे मीठी फटकार लगाई.

‘‘मैं ने बचपन में सुना था ऐसा, जो भी बालम कलकत्ता जाते, कभी वापस नहीं आते और मेरी सब सखियों ने भी तो ऐसा ही कहा,’’ गोरी ने बताया. अब सासूजी बोलीं, ‘‘ये कौन सी सखियां हैं तेरी… मुझे बता, मैं खबर लूं उन की. बताओ छोरी का दिमाग खराब कर के धर दिया… कोई भी लुगाई यह सुनेगी, उस बेचारी का कलेजा तो धसक ही जाएगा…

‘‘चल, अब तू भीतर चल. कहीं न जाएगा तेरा बालम… और तुम सब भी अपनेअपने घर को जाओ. यहां कोई मेला थोड़े ही न लगा है.’’ सब अपने रास्ते चल दिए और दारोगाजी भी हंसते हुए वापस चले गए. आखिर गोरी की जीत जो हो गई थी. उस के बालम बकरा बनने से बच जो गए थे.

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फैशन के मामले में सुष्मिता सेन से कम नही हैं उनके बौयफ्रेंड, देखें लुक्स

हाल ही में 19 नवम्बर को बोलीवुड इंजस्ट्री की जानी मानी एक्ट्रेस सुष्मिता सेन ने अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया था. सुष्मिता के बर्थडे के अवसर पर उनके बौयफ्रेंड ने उन्हें एक बहतरीन सरप्राइज दिया था जिसे देख सुष्मिता काफी खुश दिखाई दीं. आपको बता दें, सुष्मिता सेन के बौयफ्रेंड का नाम रोहमन शौल है. रोहमन सुष्मिता से 14 साल छोटे हैं लेकिन जब रोहमन ने उन्हें प्रोपोज किया तो सुष्मिता मना ना कर पाईं और उन्होनें साथ में एक दूसरे को डेट करने का प्लैन किया.

रोहमन शौल एक बहतरीन मौडल हैं और वे आए दिन अपने फैंस के लिए अपने औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट से अपने गजब के लुक्स शेयर करते रहते हैं. तो आज हम आपको दिखाते हैं रोहमन शौल के कुछ चुनिंदा लुक्स जिसे आप जरूर ट्राय करना चाहेंगे.

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इंडो वेस्टर्न लुक…

इस लुक में रोहमन शौल ने येल्लो कलर का ट्रेंडी इंडो वेस्टर्न कैरी किया हुआ है जो बेहद कमाल का लग रहा है. इस लुक के साथ रोहमन ने व्हाइट कलर का पयजामा पहना हुआ है जो इस लुक के साथ काफी जच रहा है. आप भी ये लुक अपने किसी फैमिली फंक्शन में ट्राय कर सबको इम्प्रेस कर सकते हैं.

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ट्रेंडी लुक…

 

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Styled by @soodpranav

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इस लुक में रोहमन शौल ने ग्रे कलर के कुर्ते के साथ यैल्लो कलर का ट्राउसर और साथ ही कुर्ते के ऊपर यैल्लो कलर का ही ब्लेजर पहना हुआ है. इस कुर्ते और ब्लेजर का कौम्बीनेशन काफी ट्रेंडी लग रहा है तो अगर आपको भी है नए ट्रैंड्स अपनाने का शौंक को जरूर ट्राय करें रोहमन का ये लुक.

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लौंग कोट…

विंटर्स में लौंग कोट काफी सूट करता है तो इसी के साथ रोहमन शौल ने भी अपना एक लौंग कोट वाला लुक फैंस के साथ शेयर किया है जिसे उन्होनें व्हाइट हाई नेक टी-शर्ट के साथ कैरी किया हुआ है. इस लुक के साथ उन्होनें ब्लैक कलर की जींस पहनी हुई है. आप भी ये लुक अपने कौलेज में ट्राय कर लड़कियों को इम्प्रेस कर सकते हैं.

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फ्लावर प्रिंट इंडो वेस्टर्न…

रोहमन शौल का ये फ्लावर प्रिंट इंडो वेस्टर्न काफी ट्रेंडी लग रहा है. इस लुक में रोहमन ने ब्लू कलर के कुर्ते के ऊपर ब्लू कलर का ही फ्लावर प्रिंट इंडो वेस्टर्न पहना हुआ है. इसी के साथ उन्होनें क्रीम कलर की पयजामी पहनी हुई है. आप ये ट्रंडी लुक किसी भी फंक्शन में ट्राय कर सकते हैं.

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हौलीवुड स्टार ‘लुसी लियू’ ने किया अनुपम खेर के शो का निर्देशन

अभिनेता अनुपम खेर अपने शो ‘न्यू एम्सटर्डम’ में डा. विजय कपूर का किरदार निभा कर वेस्ट में जाना माना नाम बन चुके है. अक्सर उन्हें हौलीवुड में अपने दोस्तों के साथ समय बिताते हुए देखा जाता है. वे बेहद ही उत्साहित नजर आए जब हाल ही में हौलीवुड स्टार लुसी लियू ने अनुपम खेर के मेडिकल ड्रामा शो के एक एपिसोड का निर्देशन किया.

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‘चार्लीज एंजेल्स’ और ‘किल बिल टू’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्मों में किया है काम…

बता दें की लुसी लियू ने ‘चार्लीज एंजेल्स’ और ‘किल बिल टू’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्में की हैं. इसके बारे में बात करते हुए, दिग्दज अभिनेता अनुपम खेर ने कहा, “जब हम पहली बार मिले तो उन्होंने सबसे पहले ये बात कही कि हमें एक एक्टर के तौर पर काम करना होगा, मैंने कहा किसी न किसी दिन जरूर. उन्होंने मेरा काम देखा है यही अपने आप में एक तारीफ है. इस बात से मैं बहुत खुश हुआ.”

लुसी लियू के बारे में अनुपम खेर ने कहा…

एक एक्टर द्वारा दूसरे एक्टर को डायरेक्ट करने के बारे में बात करते हुए अनुपम खेर कहते हैं, “एक अभिनेता को डायरेक्ट करते हुए देखना बहुत ही दिलचस्प है, खासकर जब वो एक युवा और ऊर्जावान अभिनेता हो. यह सभी के लिए एक सरप्राइज था. साथी एक्टर को डायरेक्ट करते हुए देखना खुशी की बात है. अन्य लोग जिन्होंने निर्देशन किया है, वे निर्देशक हैं, लेकिन एक अभिनेता अपने निर्देशन में निश्चित रूप से कुछ नया एलिमेंट लेकर आता है. मैंने उनके साथ दो दिन का काम किया है. वो माइंड ब्लोइंग हैं. उनका दृष्टिकोण बहुत अलग है. ”

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Bigg Boss 13: देवोलीना के बाद इस कंटेस्टेंट पर आया सिद्धार्थ का दिल, की होठों की तारीफ

बिग बौस सीजन 13 के पिछले एप्सोड्स में अपने देखा कि कैसे दो जिगरी दोस्त यानी कि सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज के बीच काफी ज्यादा लड़ाई हुई और इन दोनों की ये लड़ाई हाथापाई तक पर उतर आई थी. इसी बीच जब पंजाब की कैटरीना कैफ कहे जाने वाली एक्ट्रेस यानी शहनाज गिल ने सिद्धार्थ को सपोर्ट किया था तो बिग बौस के फैंस को बिल्कुल पसंद नहीं आया था और फैंस ने शहनाज को ट्वीटर पर जमकर खरी खोटी सुनाई थी.

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शेफाली नें किया माहिरा के होठों पर कमेंट…

इन सब लड़ाई झगड़ों के बीच कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला और देवोलीना भट्टाचार्या में कुछ प्यार भरे पल भी दर्शकों को देखने को मिले. इन प्यार भरे पलों ने ना सिर्फ सबको एंटरटेन किया बल्कि सिद्धार्थ और देवोलीना के रिश्ते पर भी काफी असर पड़ा. अगर बात करें ‘स्वयंवर’ टास्क की तो उस टास्क में जैसे ही शहनाज ने शेफाली को बुलाकर फल खिलाने को कहा तभी, माहिरा शर्मा बीच में कूद कर उनके आने-जाने और स्टाइल पर कमेंट करने लगी और ये बात शेफाली को बिल्कुल पसंद नहीं आई और शेफाली नें माहिरा के होठों पर कमेंट कर दिया.

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सिद्धार्थ ने भी कहा ‘बड़े होठ वाली छिपकली’…

शेफाली के इस कमेंट पर माहिरा काफी परेशान नजर आईं और इस दौरान माहिरा ने वहां बैठे सिद्धार्थ शुक्ला से पूछा कि क्या उनके होठ वाकई में खराब हैं? बिना देरी किए सिद्धार्थ शुक्ला ने जवाब दिया, ‘मैं वही कहूंगा जो हिंदुस्तानी भाऊ ने कहा था, बड़े होठ वाली छिपकली.’ सिद्धार्थ के इस कमेंट पर माहिरा काफी शौक्ड हो गईं पर उन्होनें कुछ रिएक्ट नहीं किया.

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सिद्धार्थ को माहिरा के होंठ आए पसंद…

इसके बाद सिद्धार्थ जब बेडरूम में लेटे हुए थे तब फिर से माहिरा उनके पास आईं और एक बार फिर से अपने होठों को लेकर उनसे सवाल किया ‘कि क्या उनका वही मतलब था जो उन्होंने उस वक्त कहा था’? इस पर सिद्धार्थ कहते हैं कि वो झूठ बोल रहे थे और उन्हें माहिरा के होठ पसंद हैं. इसके बाद सिद्धार्थ माहिरा की तारीफ करते हुए कहते हैं कि “लड़कियां ऐसे बड़े होठ पाने के लिए इंजेक्शन्स लेती है. आपके तो नैचुरली ऐसे है, आपको तो इस पर गर्व होना चाहिए.”

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पीछे से आकर लगाया गले…

इसके बाद माहिरा ने सिद्धार्थ के साथ अपने पुराने झगड़े सुलझाए और उन्हें अपनी टीम में आने का भी औफर दिया. इससे पहले जब माहिरा शेफाली पर किचन में गुस्सा हो रही थीं तो सिद्धार्थ ने उन्हें पीछे से आकर गले भी लगाया था. सिद्धार्थ शुक्ला और माहिरा शर्मा की इन बातों पर दर्शक काफी हैरान हो रहे हैं कि आखिर ये इन दोनों का गेम प्लैन है या फिर सच में दोनों को बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं.

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डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 1

चेन्नई के वेल्लाचीरी के बहुचर्चित प्रिंस शांता कुमार हत्याकांड की गवाही पूरी हो चुकी थी. 29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. साथ ही आदेश दिया कि प्रिंस शांताकुमार के हत्यारे पी. राजगोपाल, डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 7 जुलाई, 2019 तक कोर्ट में सरेंडर करना होगा.

दरअसल, 19 मार्च, 2009 को चेन्नई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने प्रिंस शांताकुमार की हत्या और हत्या की साजिश करार देते हुए इस केस के सभी दोषियों को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. साथ ही हत्याकांड के मुख्य आरोपी और डोसा किंग के नाम से मशहूर पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया था, जिस में से 50 लाख रुपए मृतक की पत्नी जीवज्योति को दिए जाने थे. शेष रकम कोर्ट में जमा करानी थी.

हाईकोर्ट ने जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका सिरे से खारिज कर दी और हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए 7 जुलाई, 2019 तक हाईकोर्ट, चेन्नई में सरेंडर करने का आदेश दिया था.

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पी. राजगोपाल ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए एक चाल चली. सरेंडर करने की आखिरी तारीख से 3 दिन पहले यानी 4 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल नाटकीय ढंग से तमिलनाडु के वाडापलानी स्थित विजया अस्पताल में जा कर भरती हो गया.

अस्पताल में उसे औक्सीजन मास्क लगा दी गई. समाचार पत्रों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया को इस बात का पता तब चला जब उस की औक्सीजन मास्क लगी फोटो सामने आई. खबर थी कि प्रिंस शांताकुमार का हत्यारा डोसा किंग पी. राजगोपाल गंभीर रूप से बीमार होने की वजह से विजया अस्पताल में भरती है.

पी. राजगोपाल ने ये चाल जेल जाने से बचने के लिए चली थी ताकि कोर्ट को उस पर दया आ जाए और उसे जेल जाने से बचा ले. अस्पताल में भरती होने के 4 दिन बाद यानी 9 जुलाई, 2019 को वह मास्क लगाए एंबुलेंस से चेन्नई हाईकोर्ट में सरेंडर करने जा पहुंचा.

कोर्ट ने उसे 7 जुलाई तक की मोहलत दे रखी थी, लेकिन दिमाग का शातिर राजगोपाल कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए जानबूझ कर 2 दिन बाद कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचा था, जबकि उस के पांचों साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने पहले ही सरेंडर कर दिया था.

पी. राजगोपाल के वकील ने उसे बचाने के लिए कोर्ट के सामने उस के गंभीर रूप से बीमार होने के दस्तावेज पेश किए. लेकिन हाईकोर्ट ने उस की एक नहीं सुनी. न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान कोर्ट को उस के बीमार होने की कोई सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए उसे जेल जाना होगा.

जेल से अस्पताल पहुंचा राजगोपाल

कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल को हिरासत में ले कर पुजहाल जेल भिजवा दिया. ऐसा करना कोर्ट की विवशता थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था. जेल जाने के 10 दिनों बाद पी. राजगोपाल की तबीयत सचमुच बिगड़ गई.

18 जुलाई को उसे जेल से निकाल कर सरकारी अस्पताल स्टेनली मैडिकल कालेज, चेन्नई में भरती कराया गया. तबीयत में कोई सुधार न होता देख राजगोपाल के बेटे ने अधिकारियों से इजाजत ले कर उसे इलाज के लिए उसे एक निजी अस्पताल में भरती कराया. अगले दिन इलाज के दौरान सुबह करीब 10 बजे पी. राजगोपाल ने दम तोड़ दिया. राजगोपाल की मौत के साथ शांताकुमार के एक हत्यारे की कहानी का अंत हो गया.

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प्रिंस शांताकुमार कौन था? पी. राजगोपाल ने उस की हत्या क्यों की या करवाई, वह हत्यारा कैसे बना? इन सवालों से साइड बाई साइड निकली कहानी रोचक और रोमांचक है. प्याज उगाने वाले एक मामूली किसान का बेटा पी. राजगोपाल पिता की कर्मस्थली से भाग कर कैसे फर्श से अर्श तक पहुंचा, इस कहानी को जानने के लिए हमें पी. राजगोपाल के शुरुआती जीवन के पन्नों को पलटना होगा.

राजगोपाल मूलरूप से तमिलनाडु के तूतीकोरिन के पुन्नाइयादी का रहने वाला था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. उस के पिता प्याज की खेती करते थे. इस कहानी की शुरुआत होती है 1973 से. पिता की ख्वाहिश थी कि राजगोपाल खेती में उन का हाथ बंटाए ताकि प्याज का पुश्तैनी कारोबार चलता रहे. प्याज की पैदावार ही उन के परिवार के भरणपोषण का एकमात्र साधन थी.

राजगोपाल मांबाप का एकलौता बेटा था. उसे पिता के साथ खेती करना मंजूर नहीं था. वह गांव छोड़ कर चेन्नई (तब मद्रास) चला आया. चेन्नई के के.के. नगर में उस ने किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली.

करीब 8 साल तक उस ने किराने की दुकान चलाई. इसी दौरान उस की दुकान पर एक ज्योतिषी आया. ज्योतिषी ने बताया कि अगर वह किराने की दुकान के बजाए रेस्टोरेंट खोले तो ज्यादा मुनाफा होगा.

राजगोपाल ने ज्योतिषी की बात मान ली. उस ने किराने की दुकान बंद कर के उसी जगह पर छोटा सा रेस्टोरेंट खोल लिया. उस ने रेस्टोरेंट को नाम दिया— सर्वना भवन. अपने रेस्टोरेंट में उस ने डोसा, इडली, पूड़ी और वड़ा बेचना शुरू किया.

वह दौर ऐसा था, जब अधिकांश भारतीय बाहर खाने के बारे में सोचते तक नहीं थे, लेकिन राजगोपाल ने रिस्क लिया. उस ने डोसा, पूड़ी, वड़ा और इडली बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना शुरू किया. साथ ही मसाले भी अच्छी क्वालिटी के लगाए.

कीमत रखी प्रति थाली सिर्फ 1 रुपया. नतीजा यह हुआ कि उसे एक महीने में 10 हजार रुपए का घाटा हो गया. लेकिन वह न तो कारोबार में हुए घाटे से पीछे हटा और न ही गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता किया.

पी. राजगोपाल की मेहनत रंग लाई. बीतते वक्त के साथ कुछ ऐसा हुआ कि चेन्नई में अगर किसी का बाहर खाने का मन होता तो उस की पहली पसंद सर्वना भवन ही होती थी. उस के स्टाफ में जितने भी कर्मचारी थे, सब को अच्छी सैलरी देनी शुरू कर दी.

निचले स्तर के कर्मचारियों को उस ने मैडिकल की सुविधा भी देनी शुरू कर दी. नतीजा यह निकला कि उस का स्टाफ उसे अन्नाची (बड़ा भाई) कहने लगा. पी. राजगोपाल के अच्छे व्यवहार से उस के कर्मचारी उसे दिल से चाहते थे. अगर उसे छींक भी आ जाती तो वे तड़प उठते थे.

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अरबपति बनने की राह पर

राजगोपाल की मेहनत और निष्ठा से उस का कारोबार चल निकला. नतीजा यह निकला कि राजगोपाल का ज्योतिषी पर भरोसा बढ़ गया. बहरहाल, जो भी हो वक्त के साथ कारोबार इतना बढ़ा कि राजगोपाल ने रेस्टोरेंट की चेन शुरू कर दी. धीरेधीरे लोग राजगोपाल का नाम भूल गए और उसे डोसा किंग के नाम से जानने लगे.

ज्योतिषी की सलाह पर राजगोपाल ने रंगीन कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. वह झक सफेद पैंट और शर्ट पहनने लगा. साथ ही माथे पर चंदन का बड़ा टीका भी लगाता.

इतना ही नहीं, उस ने अपने रेस्टोरेंट में अपने ज्योतिषी की तसवीर भी लगवा दी. जीवन में आए इस बदलाव की वजह से उस ने ज्योतिषी को भगवान का दरजा दे दिया. ज्योतिषी जो कहता, राजगोपाल वही करता था.

20 साल के अंदर राजगोपाल का सर्वना भवन देश में ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर हो गया. सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, हौंगकौंग, सऊदी अरब, ओमान, कतर, बहरीन, कुवैत, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्वीडन, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इटली और रोम में भी राजगोपाल के आउटलेट्स खुल गए.

डोसा किंग पी. राजगोपाल की किस्मत आसमान में तारे की तरह चमक रही थी. कारोबार में नोट बरस रहे थे. डोसे की कमाई से उस के पास इतने पैसे आ गए कि वह नोटों के बिस्तर पर सोने लगा. उसी दौरान पी. राजगोपाल ने एक नहीं, 2-2 शादियां कीं. लेकिन दोनों पत्नियां उस के साथ नहीं टिकीं और हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चली गईं.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंधविश्वास करे शर्मसार

शनिवार का दिन था. दोपहर के तकरीबन 2 बजे थे. उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के शाहगंज कसबे की रहने वाली शीला खरीदारी करने बाजार जा रही थीं. वे अभी घर से कुछ ही दूर गई थीं कि तभी रास्ते में उन्हें 14-15 साल का एक लड़का मिला जिस ने उन्हें ‘माताजी’ कहते हुए पूछा, ‘‘आप लंगड़ा कर क्यों चल रही हैं? क्या आप घुटनों के दर्द से परेशान हैं?’’

उस लड़के के मुंह से इतना सुनना था कि शीला ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, मैं काफी समय से घुटनों के दर्द से परेशान हूं. मेरे पति को भी इसी मर्ज ने जकड़ रखा है. वे तो खाट पर पड़े हुए हैं. उन को कहांकहां नहीं दिखाया लेकिन तमाम इलाज कराने के बाद भी मर्ज बढ़ता ही जा रहा है. समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे ठीक होगा…’’

शीला की बात अभी पूरी भी नहीं हो पाई थी कि वह लड़का बोल पड़ा, ‘‘माताजी, मेरे मातापिता भी इसी तरह परेशान हुआ करते थे जिन्हें एक बाबाजी ने चंद दिनों में ही भलाचंगा कर दिया…’’

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उस लड़के की बात अभी खत्म भी नहीं हो पाई थी कि एक आदमी उन्हीं की ओर आता दिखाई दिया. उस की ओर इशारा करते हुए वह लड़का बोला, ‘‘लीजिए, बाबाजी भी आ गए. मैं आप से इन्हीं की बातें कर रहा था.’’

तब तक वह आदमी भी उन के करीब आ चुका था. उस लड़के ने हाथ जोड़ कर उसे प्रणाम किया और देखते ही देखते वहां से गायब हो गया.

ऐसे फंसती चली गईं शीला

शीला ने उस आदमी की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘हमें भी कुछ उपाय बताएं, ताकि मैं और मेरे पति इस दर्द से छुटकारा पा लें.’’

शीला की बात सुन कर वह आदमी तपाक से बोला, ‘‘यह दर्द कोई मर्ज नहीं बल्कि शनिदेव का प्रकोप है जिस ने आप के पूरे परिवार को जकड़ रखा है. इस पर दवा और डाक्टर का कोई असर नहीं होने वाला है. इस से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता है कि सोने के गहनों से शनिदेव की पूजा कर के इस बला से बचो.’’

उस आदमी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अगर आप इस बाधा से अभी और हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहती हैं तो सिर्फ सोने के जेवर ले कर आएं…’’

उस आदमी ने जेवर लाने की विधि बताई और बोला, ‘‘यह काम सूरज डूबने से पहले करना होगा. और हां, इस बात का खयाल रखना कि इस बीच कोई आप को टोके नहीं, वरना आप का बुरा हो जाएगा.’’

अपने शब्दों के जरीए उस आदमी ने शीला को इस कदर भरमजाल में जकड़ लिया था कि वे उस पर यकीन करती चली गईं. वे बाजार जाने के बजाय सीधे घर गईं और अपने गहनों के साथ तीनों बेटियों के भी गहनों को एक पोटली में ले कर उस आदमी द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गईं.

वहां वह आदमी पहले से ही बैठा हुआ था. उस के आसपास 2-4 और लोग भी बैठे हुए थे. 2 औरतें भी बैठी हुई थीं. बगल में हवन वगैरह का सामान रखा हुआ था.

वहां पहुंच कर शीला ने अपने साथ लाए जेवर, जिन में सोने का एक हार, सोने की 4 चेन, सोने की  6 अंगूठियां, 2 झाले, 2 मांग टीके, 2 कंगन, 2 झुमके, एक नैकलैस वगैरह जिन की कीमत तकरीबन 7 लाख रुपए थी, उस आदमी को सौंप कर उसी के बगल में बैठ गईं.

शीला के हाथों से पोटली अपने हाथों में लेने के बाद वह आदमी उन्हें सामने बैठने के साथ आंखों को बंद कर ध्यान लगाने की बोल गया.

आंखें मूंद कर बैठने के बाद शीला को एक मंत्र भी पढ़ने के लिए कह गया और वह आदमी खुद भी मंत्र पढ़ने लगा.

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मंत्र पढ़ने के साथ उस आदमी ने शीला की पोटली से गहने निकाल कर अपनी झोली में डाल दिए और एक डब्बे में मिट्टी वगैरह भर कर उसे धागे से बांध दिया और शीला को आंखें खोलने की बोल कर उन्हें वह डब्बा पकड़ाते हुए बोला, ‘‘अब आप घर जाएं और इस डब्बे को सोमवार की सुबह सूरज की किरणें निकलने से पहले थाली में फूल रख कर मेरे बताए सिद्ध मंत्र को पढ़ने के साथ खोलिएगा.’’

उस आदमी ने अगले हफ्ते उन के घर आने की कहते हुए अपनी बात पूरी की. शीला को पूरी तरह से भरोसा हो चला था कि अब उन को दर्द से छुटकारा मिलने वाला है.

हासिल हुआ पछतावा

यह अंधविश्वास शीला के लिए घातक साबित होने के लिए काफी था. उस आदमी ने उन्हें चेता रखा था कि उस के द्वारा बताए गए पूजापाठ में वे किसी को हमराज नहीं बनाएंगी वरना दुखों से छुटकारा नहीं मिलेगा.

डरीसहमी शीला ने भी कुछ ऐसा ही किया. सोमवार की सुबह उन्होंने गहनों से भरा डब्बा खोला तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. डब्बे में गहनों की जगह मिट्टी वगैरह थी.

लाखों रुपए के गहनों को लुटा बैठने के बाद शीला को दर्द से छुटकारा तो क्या मिला उन की परेशानियां और बढ़ गईं. मारे शर्म के वे किसी से कुछ कह भी नहीं पा रही थीं.

देश में आज भी ऐसे लोगों की भरमार है जो अंधविश्वास जैसी अधकचरी बातों पर भरोसा करते चले आ रहे हैं. शीला जिस लड़के और उस के द्वारा बताए गए शख्स को जानती तक नहीं थीं, उन की बातों में आ कर वे परिवार वालों को बताए बगैर घर के 7 लाख रुपए के जेवरात को लुटा बैठीं.

औरतों को जागरूक कर रही बांदा की समाजसेविका छाया सिंह कहती हैं,

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‘‘जब तक औरतें अधकचरी जानकारी से बाहर निकलते हुए खुद जागरूक होने और परिवार को जागरूक करने का काम नहीं करेंगी तब तक समाज में उन्हें बराबरी का हिस्सा मिलने वाला नहीं है.

‘‘बाबाओं के अलावा सड़कछाप चोलाधारियों की शरण में जाने और उन की अधकचरी बातों में आने से नुकसान ही होता है. ऐसे में लोगों को बेखौफ हो कर ऐसे मामलों की पुलिस को सूचना देनी चाहिए.’’

* ऐसे लोगों के चक्कर में पड़े ही नहीं.

परिवार के लोगों को पूरी बात बताएं.

* ऐसे मामलों में बिना देर किए पुलिस को सूचना दें, ताकि कार्यवाही हो सके.

* परेशानी, बीमारी की हालत में माहिर डाक्टर की सलाह लें न कि ऐसे बाबाओं और फकीरों की जो आप को लूट कर चलते बनें.

* एक डाक्टर के बताए इलाज से आराम न मिले तो दूसरे को दिखाएं. देश में माहिर डाक्टरों की कमी नहीं है.

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ऐतिहासिक होगा पहला डे-नाइट टेस्ट मैच, जानिए लाल गेंद से कैसे अलग है पिंक गेंद?

भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक डे-नाइट टेस्ट मैच कोलकाता में खेला जाना है. हर क्रिकेट प्रेमी इस पल का बेसब्री से इंतजार भी कर रहा है. खिलाड़ी भी इसको लेकर खासा उत्साहित हैं और जमकर पसीना भी बना रहे हैं. ये मैच कोलकाता स्थित ईडन गार्डन्स में खेला जाएगा. इसके लिए तैयारियां भी पूरी हो चुकी हैं और दोनों टीमें कोलकाता पहुंच भी चुकी हैं.

दिन-रात टेस्ट मैच गुलाबी गेंद से खेला जाएगा और इस मैच को लेकर अब सबकी नजरें इस बात पर लगी हुई हैं कि क्या इस मैच में यह गेंद रिवर्स स्विंग होगी या नहीं. इस बीच, बीसीसीआई के अधिकारियों ने बताया है कि मैदान पर रिवर्स स्विंग हासिल करने के लिए गुलाबी गेंद की सिलाई हाथ से की गई है ताकि यह रिवर्स स्विंग में मददगार साबित हो सके.

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अधिकारी ने कहा, “गुलाबी गेंद को हाथ से सिलकर तैयार किया गया है ताकि यह अधिक से अधिक रिवर्स स्विंग हो सके. इसलिए गुलाबी गेंद से स्विंग हासिल करने में अब कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.” गुलाबी गेंद को बनाने में लगभग सात से आठ दिन का समय लगाता है और फिर इसके बाद इस पर गुलाबी रंग के चमड़े लगाए जाते हैं. एक बार जब चमड़ा तैयार हो जाता है तो फिर उन्हें टुकड़ों में काट दिया जाता है, जो बाद में गेंद को ढंक देता है.

इसके बाद इसे चमड़े की कटिंग से सिला जाता है और एक बार फिर से रंगा जाता है और फिर इसे सिलाई करके तैयार किया जाता है. गेंद के भीतरी हिस्से की सिलाई पहले ही कर दी जाती है और फिर बाहर के हिस्से की सिलाई होती है. एक बार मुख्य प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो फिर गेंद को अंतिम रूप से तौलने और उसे बाहर भेजने से पहले उस पर अच्छी तरह से रंग चढ़ाया जाता है. गुलाबी गेंद पारंपरिक लाल गेंद की तुलना में थोड़ा भारी है.

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गुलाबी गेंद को लेकर टीम इंडिया के सामने कई चुनौतियां हैं.गुलाबी गेंद से स्पिनर्स को ज्यादा मदद नहीं मिलेगी. दिलीप ट्रॉफी में गुलाबी गेंद से खेलते हुए कुलदीप यादव को ये मुश्किल हुई थी. वहीं गेंद रिवर्स स्विंग भी नहीं होगी क्योंकि गुलाबी गेंद की चमक बनाए रखने के लिए लाख का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. अबतक खेले गए 11 डे-नाइट टेस्ट में तेज गेंदबाजों का औसत 24 के करीब रहा है जबकि स्पिनर्स का 32 के करीब.

दूसरी ओर तेज गेंदबाजों को खेलना बल्लेबाजों के लिए चुनौती होगी. 2016 में गुलाबी गेंद से हुए एक घरेलू मैच में मोहम्मद शमी को खेलना बल्लेबाजों के लिए असंभव हो गया था. बांग्लादेश और टीम इंडिया में ज्यादातर खिलाड़ियों को गुलाबी गेंद से खेलने का अनुभव नहीं है. टीम इंडिया में सिर्फ चेतेश्वर पुजारा, मयंक अग्रवाल, ऋषभ पंत, और कुलदीप यादव फर्स्ट क्लास डे-नाइट क्रिकेट खेले हैं. वहीं रोहित, विराट, रहाणे, अश्विन, उमेश जैसे खिलाड़ी पहली बार गुलाबी गेंद से खेलेंगे.

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