शनिवार का दिन था. दोपहर के तकरीबन 2 बजे थे. उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के शाहगंज कसबे की रहने वाली शीला खरीदारी करने बाजार जा रही थीं. वे अभी घर से कुछ ही दूर गई थीं कि तभी रास्ते में उन्हें 14-15 साल का एक लड़का मिला जिस ने उन्हें ‘माताजी’ कहते हुए पूछा, ‘‘आप लंगड़ा कर क्यों चल रही हैं? क्या आप घुटनों के दर्द से परेशान हैं?’’

उस लड़के के मुंह से इतना सुनना था कि शीला ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, मैं काफी समय से घुटनों के दर्द से परेशान हूं. मेरे पति को भी इसी मर्ज ने जकड़ रखा है. वे तो खाट पर पड़े हुए हैं. उन को कहांकहां नहीं दिखाया लेकिन तमाम इलाज कराने के बाद भी मर्ज बढ़ता ही जा रहा है. समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे ठीक होगा...’’

शीला की बात अभी पूरी भी नहीं हो पाई थी कि वह लड़का बोल पड़ा, ‘‘माताजी, मेरे मातापिता भी इसी तरह परेशान हुआ करते थे जिन्हें एक बाबाजी ने चंद दिनों में ही भलाचंगा कर दिया...’’

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उस लड़के की बात अभी खत्म भी नहीं हो पाई थी कि एक आदमी उन्हीं की ओर आता दिखाई दिया. उस की ओर इशारा करते हुए वह लड़का बोला, ‘‘लीजिए, बाबाजी भी आ गए. मैं आप से इन्हीं की बातें कर रहा था.’’

तब तक वह आदमी भी उन के करीब आ चुका था. उस लड़के ने हाथ जोड़ कर उसे प्रणाम किया और देखते ही देखते वहां से गायब हो गया.

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