कानून से खिलवाड़ करती हत्याएं

लेखक- डा.अर्जिनबी यूसुफ शेख

साल 2018 की 30 जुलाई को सामाजिक कार्यकर्ता और अकोला में आम आदमी पार्टी के नेता मुकीम अहमद और उन के साथ बुलढाणा, साखरखेड़ा के शफी कादरी की हत्या कर दी गई. हत्या करने वाले ने उन्हें अपने यहां रात खाने पर बुलाया, फिर उन का अपहरण हो जाने की खबर सामने आई. 4-5 दिन बाद उन की लाश बुलढाणा जंगल में बोरी में सड़ती पाई गई.

इसी महीने के आखिर में वाडेगांव के सरपंच आसिफ खान मुस्तफा खान को एक महिला नेता द्वारा अपनी बहन के घर बुला कर अपने बेटे और उस के दोस्तों के साथ मिल कर उस की हत्या कर मोर्णा नदी में म्हैसांग पुल से लाश को फेंके जाने की खबर सामने आई.

कहा जाता है कि सरपंच आसिफ खान और उस महिला नेता के बीच नाजायज संबंधों के चलते इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया.

मई, 2019 में किसनराव हुंडी वाले की सार्वजनिक न्यास, सहायक संस्था निबंधक कार्यालय के सामने अग्निशमन यंत्र के उपकरण को इस्तेमाल कर भरी दोपहरी में हत्या कर दी गई. महापौर के पति रिटायर्ड पुलिस अफसर और उस के 3 बेटों को इस सिलसिले में गिरफ्तार किया गया.

ऐसी घटनाएं इनसानियत को शर्मसार कर रही हैं. जिस की हत्या हो जाती है, वह तो इस दुनिया से विदा हो जाता है, पीछे रह जाता है उस का तड़पता हुआ परिवार. पर सवाल यह है कि क्यों बढ़ रही हैं रोजाना ऐसी वारदातें? क्या लोगों का कानून पर से विश्वास घट गया है कि वह इंसाफ नहीं दिला पाएगा या फिर कानून के प्रति यह डर ही नहीं है कि सजा भुगतनी भी होगी? क्यों लोग कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं? क्यों किसी की जान लेना आसान खेल बन गया है? वगैरह.

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बढ़ती हत्याएं और आएदिन मौब लिंचिंग की वारदातें इशारा कर रही हैं कि इनसानियत शर्मसार हो रही है. यह वहशियाना काम करते समय करने वाले के मन में यह क्यों नहीं आता कि वह कुछ गलत कर रहा है? धर्म के नाम पर हो या किसी चोरीडकैती के मामले में शक, लोगों के साथ बहुत ही गलत बरताव किया जाता है. किसी एक की मति मारी गई हो और वह कुछ गलत काम करने पर उतारू हो जाए तो बात अलग है, पर सारी भीड़ की मति मारी जाना, सब के द्वारा बेदर्दी से किसी एक के साथ पेश आना, उसे सरेआम बेइज्जत करना या सजा देना कितना उचित है?

कुछ दिन पहले 2 वीडियो क्लिप मेरे सामने आईं, जिन्हें देख कर मैं खुद ही शर्मिंदा हो गई. एक वीडियो में किसी दूरदराज इलाके में रहने वाली 20-22 साल की लड़की और लड़के को पूरी तरह नंगा कर भीड़ लड़की से लड़के को कंधे पर बिठा कर चलने के लिए कह रही थी. जिस के दिल में जो आ रहा था, वह उन के साथ वही कर रहा था. कोई लड़के के अंग को छेड़ता, कोई उन्हें थप्पड़, तो कोई लात मारता. गुस्साई भीड़ उन्हें दौड़ा रही थी और वे बेबस हो कर सब सह रहे थे.

इसी तरह दूसरी वीडियो क्लिप में एक 55-60 साल की औरत को पूरी तरह नंगा कर भीड़ दौड़ा रही थी. उस के साथ भी वह मनमाना सुलूक कर रही थी. किसी ने उसे पीछे से जोर की लात मारी, तो वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी, फिर उठ कर बेबस हो कर दौड़ने लगी.

आखिर ऐसे क्या अपराध होंगे इन के? क्यों भीड़ को यह नहीं लगता कि इन्हें नंगा कर के वह पूरी इनसानियत को नंगा कर रही है? क्यों ऐसे घटिया काम करने वालों को पकड़ा नहीं जाता? क्यों कानून बेबसों का सहारा नहीं बन पाता? क्यों आंखें मूंद कर अंधे की तरह सब भीड़ में शामिल हो जाते हैं और किसी बेबस को ऐसी सजा देते हैं, जिस से वह जिंदा होते हुए भी मरे समान हो जाए?

अगर कोई गलत करता है तो एक इनसान होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि उसे गलत करने से रोकें और यदि न रोक पाएं, तो कम से कम उस गलत काम करने वाले का साथ न दें. एक बेकुसूर को भी अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दें. कानून पर विश्वास करें. सच हमेशा जीतता है, भले ही वह कुछ समय के लिए परेशान हो. हत्याओं के सिलसिले में भी इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.

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याद रखा जाना चाहिए कि किसी की हत्या कर के उस के परिवार वालों की खुशियों को लूट लेने का किसी को कोई हक नहीं है.

एनआरसी से खौफजदा भारत के नागरिक

नैशनल रजिस्टर सिटीजन्स औफ इंडिया यानी एनआरसी में नाम दर्ज कराने का मामला शहर से ले कर गांव तक में खासकर मुसलिम समुदाय में चर्चा का मुद्दा बना हुआ है. बहुत से लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे दहशत में जी रहे हैं. कुछ भक्तगण इस मुगालते में हैं कि ऐसे मुसलिम, जिन के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं, वे पाकिस्तान और बंगलादेश वापस चले जाएंगे. उन की सारी जमीनजायदाद हम लोगों की हो जाएगी.

इस मामले पर शाक्य बीरेंद्र मौर्य का कहना है, ‘‘भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी औफ इंडिया’ में, राहुल सांस्कृत्यायन ने ‘वोल्गा से गंगा’ किताब में और तकरीबन सभी इतिहासकारों ने इस बात को माना है कि आर्य बाहर से आए हुए हैं और विदेशी हैं.

‘‘21 मई, 2001 को ‘टाइम्स औफ इंडिया’ ने छापा था कि आर्य विदेशी हैं. इन का डीएनए भारत के लोगों से मैच नहीं करता. इन सब पुरानी बातों के अलावा साल 2018 में एक नए शोध में फिर इस बात की तसदीक हुई कि आर्य बाहर से आए हुए हैं और विदेशी हैं.

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‘‘जब इतिहासकारों और मैडिकल साइंस ने मान लिया है कि आर्य विदेशी हैं, तो इन विदेशी नागरिकों का एक बार फिर से डीएनए टैस्ट करा कर इन की पहचान कर, इन को वापस भेजना चाहिए. लेकिन दुख की बात है कि भारत में जो खुद विदेशी हैं, आज वही नागरिकता का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं और मूल भारतीय सांसद, विधायक, नेता, मंत्री सब मूकदर्शक बने तमाशा देख रहे हैं. अगर आप में जरा भी राष्ट्र प्रेम बचा है तो लोकसभा और राज्यसभा में इस मुद्दे को बेबाकी से उठाइए.’’

प्रोफैसर अलखदेव प्रसाद अचल ने बताया, ‘‘केंद्र सरकार द्वारा 10 करोड़ मुसलिम, ओबीसी, एससी व एसटी की नागरिकता खत्म करने की कोशिश की जा रही है. कैसे आप की नागरिकता खत्म होगी?

‘‘भारत सरकार सभी नागरिकों से कोई ऐसा दस्तावेज देने के लिए कह रही है, जिस से यह साबित हो पाए कि वह या उस के पूर्वज साल 1971 से पहले भी भारत के नागरिक थे. बहुत से लोगों के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं होगा, जिसे वे सुबूत के रूप में पेश कर सकें.

‘‘जो लोग साल 1971 के बाद पैदा हुए, जिन के पास जमीनजायदाद होगी या जो लोग जमींदार थे, जिन की जमीनजायदाद है और खतियान में उन का नाम है, वे तो खतियान निकाल कर साबित कर देंगे कि 1971 से पहले भी भारत के नागरिक थे. लेकिन बाकी लोग ऐसा साबित नहीं कर पाएंगे.

‘‘भारत के नागरिकों में कितने लोग थे, जिन के पास साल 1971 से पहले जमीनजायदाद रही होगी? चंद लोगों के पास 1971 से पहले जमीन रही होगी. सिर्फ मुसलिम ही नहीं, बल्कि पिछडे़ और दलितों का एक बहुत बड़़ा तबका नागरिकता के इस पचड़े में फंस जाएगा.

‘‘फिर लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए सरकारी दफ्तरों में दौड़ लगाएंगे और भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने हाथपैर जोड़ेंगे कि उन की नागरिकता बचा ली जाए.’’

क्या कहता है संविधान

अनुच्छेद 5 में बताया गया है कि जब संविधान लागू हो रहा था तो उस वक्त कौन भारत का नागरिक होगा. अगर कोई व्यक्ति भारत में जनमा था या जिस के माता या पिता में से कोई भारत में जनमा हो या अगर कोई व्यक्ति संविधान लागू होने से पहले कम से कम 5 सालों तक भारत में रहा हो, तो वह भारत का नागरिक होगा.

नागरिकता का अधिकार

ऐसे में भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को एक अधिकार दिया गया है कि कैसे वे लोगों से पैसा ले कर उन की नागरिकता बहाल कर दें. सिटीजनशिप ऐक्ट के जरीए उन्हें यह अधिकार दिया गया है.

सिटीजनशिप ऐक्ट में कोई भी व्यक्ति यह घोषणा कर सकता है कि वह नागरिक नहीं तो कम से कम इस देश में शरणार्थी तो है ही. फिर वह सिटीजनशिप ऐक्ट में नागरिकता के लिए आवेदन करे. अगर वह मुसलिम नहीं है तो उस के आवेदन पर विचार किया जाएगा.

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अगर वह मुसलिम है तो आवेदन ही नहीं कर सकता, क्योंकि सिटीजनशिप ऐक्ट में ही ऐसा प्रावधान है कि इस ऐक्ट में सिर्फ उन्हीं लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जो मुसलिम नहीं हैं.

मुसलिमों को नागरिकता देने का प्रावधान इस कानून के अंदर है ही नहीं, इसलिए मुसलिम आवेदन भी नहीं कर पाएंगे.

फिर करोड़ों दलित, आदिवासी और पिछडे़, जिन के पास 1971 से पहले कोई जमीनजायदाद नहीं थी, उन्हें शरणार्थी घोषित कर के सालों तक उन से वोट

देने का अधिकार भी छीन लिया जाएगा और उन से नागरिकता के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगवाए जाएंगे.

यह चक्कर कब खत्म होगा, कोई नहीं जानता, क्योंकि राजीव गांधी के जमाने से ऐसा ही चक्कर असम के लोग लगा रहे हैं और पिछले 30 सालों से उन्हें वोट देने के अधिकार को बहाल रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

आने वाले 50 साल तक भूमिहीन याद रखें, इस में वे सभी भूमिहीन लोग शामिल हैं, जो 1971 से पहले भूमिहीन थे, 1971 के बाद जिन लोगों ने आरक्षण पा कर नौकरी पाई और खुद जमीन खरीद ली, वे भी नागरिकता नहीं बचा पाएंगे क्योंकि आप को 1971 से पहले के दस्तावेज देने हैं. पिछडे़ व दलित और पूरे देश में अपनी नागरिकता को बहाल रखने के लिए संघर्ष करते दिख जाएंगे. इस का क्या नतीजा होगा, पता नहीं.

लेकिन उन के संघर्ष करने का एक अवसर होगा. मुसलिमों के पास ऐसा कोई अवसर नहीं होगा, क्योंकि कानून में ही उन को आवेदन देने का प्रावधान नहीं है. जिन मुसलिमों के पास साल 1971 से पहले अपने पूर्वज को इस देश का नागरिक साबित करने का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं होगा, उन्हें बंगलादेशी घोषित कर दिया जाएगा. उन के सारे नागरिक अधिकार खत्म हो जाएंगे.

हो सकता है कि उन के घर या मकान भी सरकार कब्जे में ले ले. ऐसे शरणार्थी लोगों को शहर के किसी बाहरी इलाकों में डिटैंशन सैंटर में डाल दिया जाएगा.

इस बारे में इंजीनियर सनाउल्लाह अहमद रिजवी ने बताया, ‘‘आप कल्पना नहीं कर सकते कि लोगों को कितनी परेशानी होगी. कितने शर्म की बात है कि आजादी के 70 साल बाद भी इस देश के नागरिक को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी.

‘‘जिन लोगों के भूकंप, बाढ़ जैसी आपदा में कागजात खो गए हों या किसी गरीब ने अपनी अशिक्षा के चलते न बना पाया हो, उन बेचारों पर तो जैसे मुसीबत आ पड़ी है.’’

ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुसलिम नहीं फंसेंगे. असम में 19 लाख में से तकरीबन 14 लाख गैरमुसलिम हैं, वैसे ही हर राज्य में उन की तादाद होगी.

तब गैरमुसलिमों यानी हिंदुओं को भी नहीं बख्शा जाएगा और रिफ्यूजी मान कर ही कुछ दिनों की नागरिकता दी जाएगी. वे बैठेबिठाए पाकिस्तानी या बंगलादेशी बन जाएंगे.

जरा गौर से सोचिए और इस काले कानून का विरोध कीजिए. खुश होने वाले यह जान लें कि जिस तरह गांधी, मौलाना, आजाद, भगत सिंह व अशफाकउल्ला ने मिल कर हमें अंगरेजों से नजात दी थी, वैसे ही आज उन के ख्वाबों के साथ जीने वाले लोग मिल कर इन काले अंगरेजों से भी लडें़गे और इस काले कानून का विरोध करेंगे.

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बरसों से अपने गांवकसबों से दूर रह रहे लोग, सारे कामकाज छोड़ कर जमीनों की मिल्कीयत और रिहाइश के सुबूत लेने के लिए अपने गांव आएंगे. इन में से कुछ यह भी पाएंगे कि कर्मचारी व पदाधिकारी से सांठगांठ कर के लोगों ने अपनी जमीनों की मिल्कीयत बदल दी है. बहुत बडे़ पैमाने पर संपत्ति के विवाद सामने आएंगे. खूनखराबा भी होगा.

ये दस्तावेज नहीं होंगे मान्य

आधारकार्ड, पैनकार्ड दिखा कर आप अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकते. जो लोग यह सम झ रहे हैं कि एनआरसी के तहत सरकारी कर्मचारी घरघर आ कर कागज देखेंगे, यह उन की भूल होगी. नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की होगी, सरकार की नहीं.

इस के अलावा जिस की नागरिकता जहां से सिद्ध होगी, उसे शायद हफ्तों वहीं रहना पडे़. करोड़ों लोगों के कामकाज छोड़ कर लाइनों में लगे होने से देश का उद्योग, व्यापार और वाणिज्य, और सरकारी व गैरसरकारी दफ्तरों का कामकाज चौपट होगा.

अर्थव्यवस्था पर असर

सनक में लाई गई नोटबंदी और जल्दबाजी में लाए गए जीएसटी ने पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है. इक्कादुक्का घुसपैठियों को छोड़ कर ज्यादातर वास्तविक लोग ही परेशान होंगे.

श्रीलंकाई, नेपाली और भूटानी मूल के लोग, जो सदियों से इस पार से उस पार आतेजाते रहते हैं, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने में दांतों से पसीना आ जाएगा. जाहिर है, इन में से ज्यादातर हिंदू ही होंगे.

लगातार अपनी जगह बदलते रहने वाले आदिवासी समुदायों को तो सब से ज्यादा दिक्कत आने वाली है. वन क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोग वहां की जमीनों पर वन अधिकार कानून के तहत अपना कब्जा तो साबित कर नहीं पा रहे हैं, वे नागरिकता कैसे साबित करेंगे?

दूरदराज के पहाड़ी और वन क्षेत्रों में रहने वाले लोग, घुमंतू समुदाय, अकेले रहने वाले बुजुर्ग, अनाथ बच्चे, बेसहारा महिलाएं, विकलांग लोग और भी इस से प्रभावित होंगे.

इन की होगी चांदी

इस में कुछ लोगों की पौबारह भी हो जाएगी. बडे़ पैमाने पर दलाल सामने आएंगे. जिस के पास पैसा है, वे नागरिक न होने के बावजूद फर्जी कागजात बनवा लेंगे. नागरिकता साबित करने में सब से ज्यादा दिक्कत उसे होगी, जो सब से ज्यादा लाचार, बेबस और वंचित हैं.

बनेंगे डिटैंशन सैंटर

जो लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे, उन के लिए देश में डिटैंशन सैंटर बनेंगे. इन सैंटरों को बनाने और चलाने में देश के अरबों रुपए खर्च होंगे. कुलमिला कर देश के सामाजिक, माली और राजनीतिक हालात बेहाल हो जाएंगे.

अगर फार्म भरना पड़े

वकील शेख बिलाल का सु झाव है कि सभी नियमों को बहुत ही ध्यान से पढे़ं और भरें. धर्म वाले कौलम में मुसलिम लोग इसलाम लिखें और समुदाय के कौलम में मुसलिम लिखें. इस के अलावा कुछ भी न जोडें़ जैसे शिया, सुन्नी, अहले, हदीस, तबलीग जमात वगैरह.

किसी फार्म को भरने के लिए किसी अधिकारी या कर्मचारी पर निर्भर न रहें. अपना नाम और बाकी डिटेल खुद ही भरें या अपने किसी भरोसेमंद आदमी से भरवाएं. फार्म भरने में बाल पैन का इस्तेमाल करें.

देश के सभी राज्यों में एनआरसी और कैब का विरोध स्वयंसेवी संगठन, शिक्षण संस्थान और राजनीतिक दल के साथसाथ लेखक व पत्रकार अपनेअपने लैवल से कर रहे हैं. इसे सुप्रीम कोर्ट में भी ले जाया गया है.

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देश को आजाद कराने वाले और अपनी जान की कुरबानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानी व हमारे राष्ट्रभक्तों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस आजादी के लिए हम सबकुछ लुटा रहे हैं, उस भारत का हश्र यह होगा. गुजरात में नर्मदा किनारे सैकड़ों मीटर की ऊंचाईर् पर खड़े पटेल अपने सपनों के भारत को बरबाद होता देखते रहेंगे.

असम में जो दस्तावेज मांगे गए

असम में रहने वाले लोगों को सूची ए में दिए गए कागजातों में से कोई एक जमा करना था. इस के अलावा दूसरी सूची बी में दिए गए दस्तावेजों में से किसी एक को दिखाना था जो कि आप अपने पूर्वजों से संबंध साबित कर सकें. लिस्ट ए में मांगे गए मुख्य दस्तावेजों की लिस्ट :

द्य 1951 का एनआरसी. द्य 24 मार्च, 1971 तक का मतदाता सूची में नाम. द्य जमीन का मालिकाना हक या किराएदार होने का रिकौर्ड. द्य नागरिकता प्रमाणपत्र. द्य स्थायी निवास प्रमाणपत्र. द्य शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र. द्य किसी भी सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी लाइसैंस. द्य सरकार या सरकारी उपक्रम के तहत सेवा या नियुक्ति को प्रमाणित करने वाला दस्तावेज. द्य राज्य के ऐजूकेशन बोर्ड या यूनिवर्सिटी के प्रमाणपत्र. द्य अदालत के आदेश रिकौर्ड. द्य पासपोर्ट. द्य कोई भी एलआईसी पौलिसी.

ऊपर दिए गए दस्तावेजों में से कोई भी 24 मार्च, 1971 के बाद का नहीं होना चाहिए. अगर किसी नागरिक के पास इस तारीख से पहले का दस्तावेज नहीं है तो 24 मार्च, 1971 से पहले का अपने पिता या दादा के डौक्यूमैंट्स में से किसी एक को दिखा कर अपने पिता या दादा से संबंध स्थापित करना होगा. दी गई लिस्ट बी डौक्यूमैंट में उन का नाम होना चाहिए:

जन्म प्रमाणपत्र, भूमि दस्तावेज, बोर्ड या विश्वविद्यालय का प्रमाणपत्र, बैंक, एलआईसी, पोस्ट औफिस रिकौर्ड, राशनकार्ड, मतदाता सूची में नाम.

कानूनी रूप से स्वीकार किए गए दूसरे दस्तावेज-

शादीशुदा औरतों के केस में सर्कल अधिकारी या ग्राम पंचायत सचिव द्वारा दिया गया प्रमाणपत्र.

सुपरहिट भोजपुरी फिल्मों के निर्देशन में ब्रांड बन चुकें हैं ‘चन्द्र पन्त’

भोजपुरी सिनेमा में निर्देशक चन्द्र पन्त का नाम सुपरहिट फिल्में देने के मामले में सबसे ऊपर है. हाल ही में उनके निर्देशन में प्रदर्शित हुई फिल्म निरहुआ चलल लंदन, सिनेमाहालों में अप्रत्यासित भीड़ खींचने में कामयाब हुई है. इस फिल्म में भोजपुरी सिनेमा के जुबली स्टार अभिनेता दिनेश लाल यादव निरहुआ और ब्यूटी क्वीन आम्रपाली दूबे ने मुख्य भूमिका निभाई थी. हाल ही में उन्होंने बड़ी बजट वाली फिल्म “रण” की शूटिंग पूरी भी की है. इस फिल्म में रियल सुपरस्टार आनंद ओझा और भोजपुरी सनसनी काजल रघवानी मुख्य भुमिका में नजर आने वाले है.  इसके अलावा वह इन दिनों कई फिल्मों के निर्देशन की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं.

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मूलरूप से नेपाल के रहने वाले चन्द्र पन्त ने नेपाली फिल्म इंडस्ट्री से अपने कैरियर की शुरुआत की थी. और फिल्मों में उन्होंने एक स्टंट मैन के रूप में अपने कैरियर को आगे बढाया. बाद में उन्होंने भोजपुरी इंडस्ट्री में फिल्मों के निर्देशन की तरफ कदम रखा. उनके निर्देशन में बनी भोजपुरी की पहली फिल्म ही सुपरहिट रही थी. चन्द्र पन्त में एक साथ कई हुनर भी है. वह बौक्सिंग,कराटे और टैकवान्डो खिलाड़ी के रूप में भी प्रसिद्ध है. इसी लिए वह फिल्मों में निर्देशक और एक्शन निर्देशन की जिम्मेदारी साथ ही सँभालते हुए नजर आते हैं.

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अगर चन्द्र पंत के पसंदीदा अभिनेताओं की बात करें तो उन्होंने बतौर निर्देशक आनंद ओझा के साथ सबसे अधिक फिल्में की हैं. इसके अलावा उन्होंने 40 नेपाली फिल्मे व 10 भोजपुरी फिल्मे और 2 हिन्दी फिल्मों में निर्देशकीय जिम्मेदारी संभाली है. नेपाली सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए 8 नेशनल अवार्ड भी मिल चुकें हैं .

अगर चन्द्र पन्त की माने तो यह साल उनके लिए गोल्डेन ईयर साबित होगा. क्यों की इस वर्ष उनके निर्देशन में निर्देशन में बनी तीन फिल्मे रिलीज होने को तैयार हैं. उनका मानना है की उनके निर्देशन में बनी फिल्म रण को देखने के बाद लोगों का भोजपुरी सिनेमा को लेकर नजरीया बदलने की पूरी उम्मीद है.  इस साल उनके निर्देशन में बन रही एक फिल्म की पूरी शूटिंग यूरोप के खुबसूरत लोकेशन में होगी . तो यह फिल्म भी इसी साल रिलीज किये जाने की तैयारी है. माना जा रहा है की निर्देशक चन्द्र पन्त आने वाले दिनों में भोजपुरी सिनेमां में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

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निरहुआ चलल लन्दन का ट्रेलर लिंक-

निरहुआ चलल लन्दन फिल्म का लिंक-

Bigg Boss 13: सिद्धार्थ ने दिखाया अपना असली रूप, सेलेब्स और फैंस ने किए ऐसे टवीट्स

बिग बौस सीजन 13 का हर एपिसोड काफी हंगामों भरा रहा है और इसी कारण बिग बौस का ये सीजन बाकी सीजन के मुकाबले काफी सफल भी हुआ है. इस सीजन में हर कंटेस्टेंट ने अपना असली रूप दिखाया है. जहां एक तरफ दर्शकों को घर में हद पार करती लड़ाइयां नजर आई हैं तो वहीं दूसरी तरफ घरवालों के बीच प्यार भी दिखाई दिया है. पंजाब की कैटरीना कैफ कहे जाने वाली कंटेस्टेंट शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला में हुए प्यार और टकरार ने लोगों के खूब एंटरटेन किया और ये सिलसिला अभी रुका नही है.

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सिद्धार्थ की इस आदत ने किया शहनाज को तंग…

बिग बौस का पिछला एपिसोड काफी धमाके भरा रहा है. जहां हर एपिसोड में शहनाज गिल सिद्धार्थ शुक्ला से मजे लेती और चिढ़ाती दिखाई देती हैं तो वहीं कल के एपिसोड में सिद्धार्थ ने शहनाज से काफी मजे लिए हैं. दरअसल, शहनाज और सिद्धार्थ के बीच हर समय किसी ना किसी बात को लेकर खट्टी मीठी नोंक झोंक चलती रहती है लेकिन आजकल शहनाज सिद्धार्थ की एक आदत से काफी तंग आ चुकी हैं.

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सबको दिखाई दिया सिद्धार्थ का ये नया रूप…

जब भी सिद्धार्थ पारस छाबड़ा और माहिरा शर्मा के साथ बैठते हैं तो वो बात शहनाज को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती और सिद्धार्थ का माहिरा से बात करना तो जैसे शहनाज बरदाश्त ही नहीं कर पाती. इसी बात का फायदा उठा कर सिद्धार्थ ने कल के एपिसोड में शहनाज से खूब पंगे लिए और उन्हें चिढ़ाने की पूरी पूरी कोशिश की और सिद्धार्थ इसमें सफल भी हुए. जहां अभी तक हर किसी को लग रहा था कि सिद्धार्थ शुक्ला काफी गुस्सैल है और सिर्फ खुद से ही मतलब रखते है, वहीं बीती रात लोगों को उनका ये मजेदार रुप भी देखने को मिला जिसकी तारीफ फैंस से लेकर सेलेब्स सबने की.

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सिद्धार्थ के इस मजेदार रूप की तारीफ फैंस और सेलेब्स ने ट्वीट करके की, तो चलिए आपको दिखाते हैं कुछ ट्वीट्स-

नोमिनेशन टास्क में सबने किया माहिरा को टारगेट…

जब से शहनाज सिद्धार्थ को पारस छाबड़ा और माहिरा शर्मा से बात करने को रोकती हैं तब से ही पारस और माहिरा शहनाज को इस बात से चिढ़ाते हैं कि वे जैलस होती हैं और ये बात सुन कर शहनाज काफी परेशान भी हो जाती हैं. अगर बात करें आने वाले नोमिनेशन टास्क की बिग बौस के मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए एक प्रोमो में साफ दिखाई दे रहा है कि हर कोई माहिरा शर्मा को टारगेट करता दिखाई दे रहा है जिसमें शहनाज गिल भी शामिल हैं.

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सबके सामने खुद को एक्सपोज करेगी वेदिका, जल्द होगी कार्तिक-नायरा की शादी

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है देखने के लिए दिन ब दिन दर्शकों को उत्साह बढ़ता जा रहा है और इसकी एकमात्र वजह ये है कि की सभी को इंजतार है कि आखिर कब कार्तिक और नायरा की राहें एक होंगी और कब वे शादी के बंधन में बंधेंगे. जब भी दर्शकों को लगता है कि अब कार्तिक और नायरा मिलने वाले हैं और उनकी शादी हो जाएगी तभी शो में कुछ ऐसा ट्विस्ट आता है कि ये दोनों मिलते मिलते रह जाते हैं. कुछ समय पहले वेदिका ने सभी के सामने कार्तिक के हाथ में नायरा का हाथ थमाया था और कहा था कि उन दोनों के बीच में वो तो क्या कोई भी नहीं आ सकता है.

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पल्लवी ने भड़काया वेदिका को…

इस दौरान दर्शकों को लगा था कि अब तो कार्तिक और नायरा की शादी हो ही जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि वेदिका की दोस्त पल्लवी ने वेदिका को अच्छे से भड़काया और उसके बाद वेदिका ने फैसला लिया कि वे कार्तिक की पत्नी के रुप में अपना दर्जा हासिल करके ही रहेगी. पिछले कुछ एपिसोड में आपने देखा कि वेदिका नायरा को बचाने के लिए कार्तिक से सौदा करती है कि वे नायरा से शादी नहीं करेगा. ऐसे में मजबूरन कार्तिक को सब कुछ मानना पड़ता है.

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क्या वेदिका खुद को करेगी एक्सपोज…

वेदिका और पल्लवी द्वारा रचाए सभी शषयत्रों की खबर नायरा को लग चुकी है जिसके बाद वे सब कुछ जाके दादी को बताएगी. आने वाले एपिसोड्स में आप देखेंगे की नायरा वेदिका की सच्चाई सभी के सामने रखने वाली है और वेदिका को एक्सपोज करने में दादी नायरा का पूरा पूरा साथ देगी. ऐसे में एक खबर ये भी आ रही है कि आने वाले एपिसोड में कुछ ऐसा भी हो सकता है कि वेदिका को अपनी गलती का एहसास हो जाएगा.

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कैसे रिएक्ट करेगा गोयनका और सिंघानिया परिवार…

वेदिका को जैसे ही अपनी गलती का एहसास होगा तो वे खुद आपने आप को सबके सामने एक्सपोज कर देगी और सब सच्चाई बता देगी. अब देखने वाली बात ये होगी की वेदिका की सच्चाई जानने के बाद किस तरह से रिएक्ट करने वाला है गोयनका और सिंघानिया परिवार.

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फिल्म ‘जन्मदाता’ के सेट पर बोल्ड अंदाज में नजर आ रही हैं ये भोजपुरी एक्ट्रेस, देखें फोटोज

भोजपुरी सिनेमा में अपने अभिनय और खूबसूरती के लिए धमाल मचाने वाली अदाकारा कनक यादव की इन दिनों भोजपुरी फिल्म जन्मदाता के सेट से ली गई तस्वीरें खूब वायरल हो रहीं हैं. इस फिल्म की शूटिंग यूपी के सोनभद्र की खुबसूरत लोकेशन्स में की जा रही है. इस फिल्म में कनक के अपोजिट हर्षवर्धन निराला हैं तो विलेन की मुख्य भूमिका विलन अयाज खान निभा रहें हैं. इस फिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के अनपरा में 1 जनवरी से चल रही है.

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इस फिल्म की कहानी  मार – धाढ़, रोमांटिक, लव, इमोशन से भरपूर है. फिल्म की कहानी डाक्टर की लापरवाही के चलते बर्बाद हुए परिवार के इर्दगिर्द घूमती हुई दिखाई पड़ने वाली है. इस फिल्म में कनक यादव ने उस डाक्टर के बेटी कनक का रोल निभाया है. और डाक्टर के लापरवाही से जिस व्यक्ति का परिवार उजड़ता है उस व्यक्ति के बेटे का रोल हीरो हर्षवर्धन निराला नें निभाया है, जिसका नाम कार्तिक है.

फिल्म में दोनों के बीच प्यार, तड़प और अलगाव को बहुत ही नेचुरल तरीके से फिल्माया जा रहा है. फिल्म से जुडी टीम को आशा है की फिल्म की कहानी आम लोगों से जुडी होने के चलते दर्शक इसे खूब पसंद करेगें. इस फिल्म का निर्माण डायमंड म्यूजिक एंटरटेनमेंट बैनर तले किया जा रहा है. फिल्म के निर्देशन का जिम्मा संभाला है रुस्तम अली  चिश्ती ने और निर्माता हाँ सुशील सिंह हैं.

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कनक यादव के पापुलैरिटी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की सोनभद्र में चल रही इस फिल्म के शूटिंग के दौरान कनक यादव के फैन्स की भीड़ उनकी एक झलक पाने को बेताब होती दिखाई पड़ रही हैं. ऐसे में फिल्म यूनिट को इनकी सुरक्षा का कड़ा इंतजाम करना पड़ा है. लेकिन कनक ने अपने फैन्स को निराश भी नहीं किया और वह फिल्म के शूटिंग के दौरान अपने फैन्स की भीड़ में लोगों के साथ सेल्फी देती भी नजर आई है.

इस दौरान उन्होंने कहा की आज अभिनय की दुनियां में उनका जो भी मुकाम है. वह सिर्फ दर्शकों और फैन्स की बदौलत ही है. ऐसे में वह अपने फैन्स को निराश नहीं करना चाहतीं हैं. इस फिल्म में शूटिंग के दौरान की कुछ तस्वीरें उनके ही फैन्स ने उतार ली थी जो अब सोसल मीडिया पर खूब शेयर की जा रहीं है. कनक यादव ने छोटे पर्दे से लेकर कई भोजपुरी फिल्मों में बतौर लीड भूमिका निभाई है जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया था.

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साधना पटेल नहीं बन पाई बैंडिट क्वीन

पिछड़े तबके के बुद्धिविलास पटेल मध्य प्रदेश के विंघ्य इलाके के चित्रकूट के गांव बगहिया पुरवा के बाशिंदे थे. उन की 3 औलादों में साधना सब से बड़ी थी. हालांकि साधना पढ़ाईलिखाई में होशियार थी, लेकिन उस की ख्वाहिश जिंदगी में कुछ ऐसा करने की थी, जिस से लोग उसे याद रखें.

जिस उम्र में लड़कियां कौपीकिताबें सीने से लगाए शोहदों से बचती जमीन में आंखें धंसाए स्कूल जा रही होती थीं, उस उम्र में साधना अपने किसी बौयफ्रैंड के साथ जंगल में कहीं मौजमस्ती कर रही होती थी.

जाहिर है कि बहुत कम उम्र में ही वह रास्ता भटक बैठी थी तो इस के जिम्मेदार पिता बुद्धिविलास भी थे, जिन के घर आएदिन डाकुओं का आनाजाना लगा रहता था. नामी और इनामी डाकू चुन्नी पटेल का तो उन से इतना याराना था कि जिस दिन वह घर आता था, तो तबीयत से दारू, मुरगा की पार्टी होती थी.

चुन्नी पटेल को साधना चाचा कह कर बुलाती थी और अकसर उस की उंगलियां बंदूक से खेला करती थीं.

साधना की हरकतें देख चुन्नी पटेल अकसर कहा करता था कि एक दिन यह लड़की पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी.

ऐसा हुआ भी और उजागर 18 नवंबर, 2019 को हुआ, जब सतना पुलिस ने 50,000 इनामी की इस दस्यु सुंदरी, जिसे ‘जंगल की शेरनी’ भी कहा जाता था, को कडियन मोड़ के जंगल से गिरफ्तार कर लिया.

ऐसे बनी डाकू

एक मामूली से घर की बला की खूबसूरत दिखने व लगने वाली साधना पटेल के डाकू बनने की कहानी भी उस की जिंदगी की तरह कम दिलचस्प नहीं. कम उम्र में ही साधना पटेल को सैक्स का चसका लग गया था, जिस से पिता बुद्धिविलास परेशान रहने लगे थे.

बेटी को रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने उसे अपनी बहन के घर भागड़ा गांव भेज दिया, लेकिन इस से कोई फायदा नहीं हुआ. उलटे, वह यह जान कर हैरान हो उठी कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी है और उन के उस की बूआ से नाजायज संबंध हैं. तब साधना को पहली बार सैक्स को ले कर मर्दों की कमजोरी सम झ आई थी.

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लेकिन सैक्स की अपनी लत और कमजोरी से वह कोई सम झौता नहीं कर पाई. बूआ के यहां कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए उस के जिस्मानी ताल्लुकात एक ऐसे नौजवान से बन गए, जो उस का मुंहबोला भाई था.

एक दिन बूआ ने हमबिस्तरी करते दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया, तो साधना घबरा उठी.

साधना को डर था कि बूआ के कहने पर चुन्नीलाल उसे और उस के आशिक को मार डालेगा, इसलिए वह जान बचाने के लिए बीहड़ों में कूद पड़ी.

यह साल 2015 की बात है, जब उस की मुलाकात नामी डकैत नवल धोबी से हुई. नवल धोबी औरतों के मामले में बड़ा सख्त था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों की बरबादी की बड़ी वजह होती हैं, इसलिए वह गिरोह में उन्हें शामिल नहीं करता था.

कमसिन साधना पटेल को देखते ही नवल धोबी का मन डोल उठा और अपने उसूल छोड़ते हुए उस ने साधना को न केवल गिरोह में, बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया.

अब तक साधना कपड़ों की तरह आशिक बदलती रही थी, लेकिन नवल की हो जाने के बाद उस ने इसी बात में बेहतरी और भलाई सम झी कि अब कहीं और मुंह न मारा जाए. कुछ दिन बड़े इतमीनान और सुकून से कटे.

इसी दौरान साधना ने डकैती के कई गुर और सलीके से हथियार चलाना सीखा. नवल के साथ मिल कर उस ने कई वारदातों को अंजाम भी दिया.

नवल के साथ साधना का नाम भी चल निकला, लेकिन एक दिन पुलिस ने नवल को कई साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया, जिस से उस का गिरोह तितरबितर हो उठा. नवल की गिरफ्तारी साधना की बैंडिट क्वीन बन जाने की ख्वाहिश पूरी करने वाली साबित हुई.

साधना ने गिरोह के बाकी सदस्यों को ले कर अपना खुद का गिरोह बना डाला और बेखौफ हो कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सभी सदस्य हालांकि उसे ‘साधना जीजी’ कहते थे, लेकिन कई मर्दों से वह सैक्स संबंध बनाती रही.

फिर आया एक मोड़

अपना खुद का गिरोह बनाने के शुरुआती दौर में साधना रंगदारी वसूलती थी, लेकिन यह भी उसे सम झ आ रहा था कि अगर नामी डाकू बनना है और खौफ बनाए रखना है तो जरूरी है कि किसी ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाए जिस की चर्चा दूरदूर तक हो.

इसी गरज से साल 2018 में साधना ने नयागांव थाने के तहत आने वाले पालदेव गांव के छोटकू सेन को अगवा कर लिया. छोटकू सेन से वह गड़े खजाने के बारे में पूछती रहती थी. लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया तो साधना ने बेरहमी से उस की उंगलियां काट दीं.

साधना की गिरफ्त से छूट कर छोटकू ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो इस कांड की चर्चा वाकई वैसी ही हुई जैसा कि वह चाहती थी.

इस कांड के बाद साधना के नाम का सिक्का बीहड़ों में चल निकला और इसी दौरान उस की जिंदगी में पालदेव गांव का ही नौजवान छोटू पटेल आया. छोटू के पिता ने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखाते समय उस के अगवा हो जाने का अंदेशा जताया था.

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कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चला कि छोटू साधना का नया आशिक है और उसे अगवा नहीं किया गया है, बल्कि वह अपनी मरजी से साधना के साथ रह रहा है, तो पुलिस ने उसे भी डकैत घोषित कर उस के सिर 10,000 रुपए का इनाम रख दिया.

छोटू 6 अगस्त, 2019 को गायब हुआ था, लेकिन हकीकत में इस के पहले भी वह साधना से मिला करता था और दोनों जंगल में रंगरलियां मनाते थे. बाद में छोटू गांव वापस लौट आता था.

सच जो भी हो, लेकिन यह तय है कि साधना वाकई छोटू से दिल लगा बैठी थी और उस की ख्वाहिश पूरी करने के लिए कभीकभी जींसशर्ट उतार कर साड़ी भी पहन लेती थी. छोटू भी उस पर जान देने लगा था, इसलिए उस के साथ रहने लगा था.

सितंबर, 2019 में पुलिस ने नामी और 7 लाख रुपए के इनामी डाकू बबली कोल को उस के साथ व साले लवकेश को ऐनकाउंटर में मार गिराया तो राज्य में खासी हलचल मची थी.

बबली कोल गिरोह के दबदबे और चर्चों के चलते साधना को कोई भाव नहीं देता था. अब तक हालांकि उस के खिलाफ आधा दर्जन मामले दर्ज हो चुके थे, लेकिन बबली के कारनामों के सामने वे कुछ भी नहीं थे.

बहरहाल, बबली कोल की मौत के बाद विंध्य के बीहड़ों में 21 साला साधना का एकछत्र राज हो गया, लेकिन जिस फुरती से पुलिस डाकुओं का सफाया कर रही थी, उस से घबराई साधना पटेल को अंडरग्राउंड हो जाना ही बेहतर लगा.

छोटू के साथ वह  झांसी और दिल्ली में रही और पूरी तरह घरेलू औरत बन कर रही. हालांकि यह जिंदगी वह 4 महीने ही जी पाई. बड़े शहरों के खर्चे भी ज्यादा होते हैं, लिहाजा जब पैसों की तंगी होने लगी, तो उस ने फिर वारदात की योजना बनाई और बीहड़ लौट आई.

पुलिस को मुखबिरों के जरीए जब यह बात मालूम हुई तो उस ने जाल बिछा कर 17 नवंबर, 2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश में भी साधना पटेल कई वारदातों को अंजाम दे चुकी थी, लेकिन वहां किसी थाने में उस के खिलाफ किसी ने मामला दर्ज नहीं कराया था. इस के बाद भी पुलिस ने उस पर 30,000 रुपए के इनाम का ऐलान किया था.

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अब साधना पटेल जेल में बैठी मुकदमोें की सुनवाई और सजा के इंतजार में काट रही है, लेकिन उस की कहानी बताती है कि उस के डाकू बनने में सब से बड़ी गलती तो उस के पिता की ही है, जिन की मौत के बाद साधना बेलगाम हो गई थी.

असम से बुलंद हुआ बगावत का  झंडा

हाजगह : असम के गुवाहाटी का हातीगांव. तारीख : 12 दिसंबर, 2019. समय : शाम के 6.15 बजे.

स्कूल में पढ़ने वाला एक 16 साला छात्र सैम स्टेफर्ड अपनी मां से मोबाइल फोन पर कहता है, ‘‘मां, नागरिकता कानून का विरोध करने के लिए सभी लोग गुवाहाटी की सड़कों पर उतर आए हैं. मैं भी वहीं हूं. मेरी चिंता मत करना.’’

सैम स्टेफर्ड तलासील प्लेग्राउंड में हो रहे विरोध प्रदर्शन में ‘नो कैब’ का नारा लगाते हुए अपने घर लौट रहा था कि अचानक पुलिस की गोली चली और कुछ देर छटपटाने के बाद सैम स्टेफर्ड का शरीर शांत हो गया.

दिसंबर का महीना असम के लिए अच्छा नहीं रहा. पूरा गुवाहाटी शहर 10 दिसंबर से परेशान था. इस परेशानी की वजह नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को लोकसभा में पास कराना था. इस के विरोध में उत्तरपूर्व क्षेत्रीय छात्र संघ ने 11 घंटे का पूर्वोत्तर बंद रखा था.

नया नागरिकता बिल पास होने के बाद इस के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए और रैलियां निकालीं. सड़कों पर टायर जला कर विरोध प्रदर्शन के साथ असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और वित्त मंत्री हिमंत विश्व सरमा मुरदाबाद के नारे लगाए गए.

पूर्वोत्तर में चारों तरफ नागरिकता कानून के विरोध की आग भड़की. दिसपुर सचिवालय के सामने सरेआम उपद्रवियों ने गाडि़यों में आग लगाई. अहिंसक आंदोलन को हिंसा का रूप लेने में देर नहीं लगी. पुलिस ने बारबार लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोडे़.

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इस के बाद सेना को सड़कों पर उतारा गया और कर्फ्यू लगाने के साथ इंटरनैट सेवा बंद कर दी गई. यही रवैया ऊपरी असम के तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चबुआ, गोलाघाट, तेजपुर समेत पूर्वोत्तर में यह आंदोलन और ज्यादा बढ़ा.

क्या है नागरिकता कानून

नागरिकता कानून, 2019 के मुताबिक, सीमा से सटे पड़ोसी देश बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैरमुसलिमों को भारतीय नागरिकता मिलेगी. इतिहास गवाह है कि इन नागरिकों का बो झ अकेले असम को उठाना पड़ेगा. ऐसे में असमिया समाज के वजूद पर सवालिया निशान लगना लाजिमी है.

नागरिकता के सवाल पर जिस तरीके से विरोध जताया जा रहा है, वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर 6 साल तक चले असम आंदोलन की शुरुआत हो सकती है. नागरिकता कानून, 2019 को ले कर राज्य की विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, संगठन, शिल्पी समाज, वरिष्ठ नागरिकों और पढे़लिखे लोगों के बीच यह मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है.

भूल आखिर कहां हुई

पूर्वोत्तर बंद के दौरान आल असम छात्र संघ की जिम्मेदारी थी कि सबकुछ शांतिपूर्वक रहे, लेकिन इस संघ ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. इस के बदले डिब्रूगढ़ में असम कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई ने कहा था कि 11 दिसंबर को यह बिल राज्यसभा में पास होगा. ऐसे में असम की जनता अपने घरों से बाहर निकल कर रेल, सड़क, केंद्र व राज्य सरकार के कामकाज में बाधा पहुंचाए.

मीडिया का रोल

नागरिकता कानून, 2019 को ले कर हो रहे आंदोलन पर राज्य के इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने निष्पक्षता के साथ खबरें पेश नहीं कीं. लोगों ने देखा कि सड़कों पर विरोध जता रहे प्रदर्शनकारी चिल्ला रहे थे, हालात बेकाबू हो रहे थे.

उस समय ज्यादातर टैलीविजन रिपोर्टर चिल्लाचिल्ला कर बोल रहे थे कि आप सभी अपने घरों से निकल आएं, असम की रक्षा का सवाल है.

असमझौते का पालन

नागरिकता कानून, 2019 का विरोध पूर्वोत्तर में तूल पकड़ता जा रहा है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और असम गण परिषद  के विधायक प्रफुल्ल कुमार महंत ने वही पुराना राग दोहराते हुए कहा कि यह कानून स्थानीय निवासियों का विरोध और गैरमुसलिम घुसपैठियों का समर्थन करता है. हम ने इस का विरोध किया है. असम आंदोलन में 855 लोग शहीद हुए थे. बाद में केंद्र सरकार और आसू के बीच सम झौता हुआ. इस सम झौते का पूरी तरह से पालन होना चाहिए.

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हिंसा भड़काने वाला कौन

नागरिकता कानून, 2019 के खिलाफ और असमिया जाति की सुरक्षा को ले कर राज्य की जनता सड़कों पर उतर आई है. उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. लोग विरोध जताते हुए गुवाहाटी महानगर की सड़कों पर नारेबाजी करते हुए दिसपुर सचिवालय की ओर बढ़ रहे थे. इस बीच कुछ शरारती तत्त्व तैयारी के साथ भीड़ में घुस आए और विरोध के नाम पर हिंसा की आग कुछ इस कदर फैलाई थी कि सरकारी संपत्तियों का नुकसान हुआ.

पुलिस और केंद्र को यह गुमान है कि पिछले कुछ सालों की तरह वह लोगों को डराधमका कर हर तरह की नाराजगी को नजरअंदाज किया जा सकता है. यह गरूर है.

अब तक 5 मारे गए

विरोध जताने के लिए सड़कों पर उतरे लोगों पर पुलिस को मजबूर हो कर फायरिंग करनी पड़ी, क्योंकि उग्र भीड़ हिंसा पर उतारू हो गई थी. पुलिस की गोली से मारे गए लोगों में 16 साल का सैम स्टेफर्ड, 18 साल का दीपांजल दास, 25 साल का ईश्वर नायक, 25 साल का अब्दुल आलिम और डिब्रूगढ़ में मारा गया 32 साल का विजेंद्र पांगि शामिल है.

राज्य सरकार की भूल

गुवाहाटी शहर जब आग की लपटों में था, मशाल अंतिम सीमा पार कर चुकी थी, तब राज्य की भाजपा सरकार की नींद खुली. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल समेत इन के मंत्री, विधायकों और आला अधिकारी सो कर उठे. दरअसल, इस कानून को ले कर राज्य के 80 फीसदी लोगों के पास सही जानकारी नहीं है.

प्रदेश भाजपा सरकार के पास अपना सूचना और जनसंपर्क विभाग है. इस विभाग के रहते हुए भी इस बारे में राज्य की जनता को जानबू झ कर सही जानकारी नहीं दी गई. या यों कहिए कि भाजपा सरकार इस मामले में भी ऐसे ही नाकाम रही है, जैसे विकास के मामले में पिछड़ रही है.

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क्रिसमस पार्टी में नायरा को मिलेगा वेदिका के खिलाफ सबूत, क्या कार्तिक जान पाएगा सच?

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है लंबे समय से दर्शकों को फेवरेट बना हुआ है. इस शो के दर्शकों को काफी समय से इस बात का इंतजार है कि आखिर कब कार्तिक और नायरा शादी के बंधन में बंधेंगे. जब जब दर्शकों को लगता है कि कार्तिक और नायरा अब एक हो जाएंगे उसी वक्त कहानी में कुछ ऐसा ट्विस्ट आता है और वेदिका अपनी कोई ऐसी चाल चलती है जिससे कि नायरा और कार्तिक मिलते मिलते रह जाते हैं. इस सब के बीच आने वाले एपिसोड में दर्शकों को शो में क्रिसमस पार्टी होती दिखाई देने वाली है जो कि वेदिका ही प्लैन करेगी.

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नायरा बनेगी सांता क्लाज…

आप देखेंगे कि गोयनका हाउस में जो क्रिसमस पार्टी होगी वो वेदिका ने कायरव के लिए रखी है. ताकी कायरव की खुशी देखकर कार्तिक खुश हो जाए और वेदिका से उसकी नाराजगी दूर हो जाए. दूसरी तरफ इस पार्टी में नायरा सांता क्लाज बनकर आएगी ताकी वो वेदिका के खिलाफ सबूत इक्ठ्ठा कर सके. दरअसल, नायरा और दादी को पता चल चुका है कि पार्टी में वेदिका से मिलने कोई शख्स आएगा जिसे पल्लवी ने भेजा है. अब नायरा यहां वेदिका और उस आदमी की बात सुनने की कोशिश करेगी.

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वेदिका को होगा शक

जैसा कि पिछले एपिसोड में आपने देखा कि नायरा को वेदिका की सच्चाई पता चल जाती है और नायरा सब बातें जाके दादी को बताती है. उसके बाद नायरा और दादी मिलकर वेदिका की सच्चाई सबके सामने लाने का प्लैन करते है और इसीलिए नायरा सांता के भेस में क्रिसमस पार्टी में एंट्री लेती है. पर इस दौरान वेदिका को शक हो जाएगा कि नायरा ही सांता क्लाज है और वो उसकी दाढ़ी भी खींच लेगी. इसी के चलते दर्शकों को ये देखने में मजा आने वाला है कि जब वेदिका सांता की दाढ़ी खीचेगी तो उस में से नायरा नहीं बल्कि दादी निकलेगी.

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मिलकर भी नहीं मिल पाएंगे कार्तिक-नायरा…

यहां कार्तिक-नायरा भी एक-दूसरे से टकराएंगे. लेकिन नायरा अपनी पहचान छुपा लेगी और वहां से चली जाएगी. हालांकि कार्तिक को इस बात का एहसास होगा कि नायरा आस-पास ही है. अब देखने वाली बाद ये होगी की क्या नायरा का प्लैन सफल हो पाएगा और वे वेदिका के खिलाफ सबूत इकठ्ठा कर पाएगी या नही.

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Bigg Boss के घर में मचा बवाल, शहनाज ने जड़ा सिद्धार्थ को थप्पड़ तो मधुरिमा ने मारी विशाल को चप्पल

बिग बौस के पिछले हफ्ते घर के अंदर माहिरा शर्मा ने अपने ब्रेकफास्ट बनाने की ड्यूटी को लेकर खूब फुटेज खाई और इस दौरान रश्मि देसाई से उनका काफी भगड़ा भी हुआ जिसे बीते वीकेंड के वौर में शो के होस्ट सलमान खान ने काफी सुलझाने की कोशिश की. रश्मि देसाई का कहना ये था कि माहिरा अपनी ड्यूटी ठीक तहर से नहीं करती और हर बार वे खाना बनाने को लेकर सबको जताती रहती हैं पर माहिरा ने ये कहा कि वे किसी को इस बात पर नहीं जताती की उन्होनें खाना बनाया है. इस बात को लेकर पिछले दिनों घर में खूब हंगामा होता दिखाई दिया. अगले एपिसोड का प्रोमो देख तो ऐसा लग रहा है जैसे बिग बौस के घर के अंदर लड़कियों का हंगामा बढ़ते ही जा रहा है.

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पारस ने रश्मि को कहा एहसान फरामोश…

वीकेंड के वौर में जहां एक तरफ सलमान खान ने सभी घरवालों की क्लास लगाई तो वहीं दूसरी तरफ अजय देवगन और काजोल ने घरवालों के साथ खूब मस्ती भी की. इस दौरान कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा ने अजय और काजोल के सामने माहिरा का पक्ष लेते हुए रश्मि, विशाल और असीम को एहसान फरामोश और बेवकूफ कहा जो कि रश्मि को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. इस बात पर भी सलमान खान पारस से काफी नाराज होते नजर आए.

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शहनाज गिल मे मारा सिद्धार्थ को चांटा…

खैर, अगर हम आने वाले एपिसोज की बात करें तो घर के अंदर कुछ ऐसा होने वाला है जिसकी किसी को भी कोई उम्मीद नहीं होगी. इस सीजन घर के अंदर धक्का-मुक्की करना तो जैसे आम हो गया है लेकिन बात थप्पड़ मारने तक आ जाएगी ये किसी ने नहीं सोचा होगा. जी हां, आने वाले एपिसोड में कुछ ऐसा ही होता नजर आने वाला है जिसमें पंजाब की कैटरीना कैफ यानी शहनाज गिल ने अपने सबसे करीबी दोस्त सिद्धार्थ शुक्ला के मुंह पर थप्पड़ जड़ दिया है जिसके बाद शुक्ला काफी गुस्से में नजर आ रहे हैं.

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मधुरिमा ने बरसाई विशाल पर चप्पलें…

इतना ही नहीं घर की एक और जोड़ी के बीच हाथापाई होती दिखाई दी जिसमें मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह शामिल हैं. सामने आए इस प्रोमो में मधुरिमा विशाल आदित्य सिंह को चिढ़ाते हुए कहती हैं कि वह उनके लिए चाय लेकर आएं पर विशाल उनकी बात सुनकर भड़क जाते है और उन्हें खरी खोटी सुना देते हैं. विशाल की बातें मधुरिमा के बरदाश्त के बाहर हो जाती हैं और वे सभी के सामने विशाल को अपनी चप्पल से मारना शुरू कर देती हैं.

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कौन जाएगा घर के बाहर…

इस दौरान विशाल अपना आपा खो बैठते हैं और वेअपना माइक उतार कर फेंक देते हैं और कन्फेशन रूम में जाकर बिग बौस से ये कहते हैं कि या तो इस घर में वो रहेंगे या मधुरिमा. इस दौरान बिग बौस ये कहते सुनाई देते हैं कि आप दोनों में से जो इस घर में नहीं रहना चाहता वे बाहर निकल सकता है और घर का मेन गेट खोल देते हैं.

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तो अब देखने वाली बात ये होगी की शहनाज के थप्पड़ का जवाब सिद्धार्थ कैसे देते हैं और विशाल और मधुरिमा में से कौन जाएगा घर के बाहर.

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