डिप्रेशन का शिकार हो गई थी ये HOT एक्ट्रेस, अब ‘गुड न्यूज’ से होगी वापसी

फिल्म ‘गोलमाल रिटर्न्स’ से चर्चा में आई मौडल और अभिनेत्री अंजना सुखानी मुंबई की है, उन्हें बचपन से ही कुछ अलग करने का शौक था, पर फिल्मी बैकग्राउंड से न होने की वजह से उन्हें अभिनय क्षेत्र में काफी संघर्ष करने पड़े, लेकिन उसका अमिताभ बच्चन के साथ विज्ञापन में आना और कुछ फिल्मों में अच्छी भूमिका मिलने की वजह से उसकी पहचान बनी, लेकिन बीच में कुछ पारिवारिक लोगों के गुजर जाने की वजह से उसने फिल्मों से दूरी बना ली और डिप्रेशन में चली गयी.

ढाई साल बाद गुड न्यूज से वापसी…

फिल्मों में वह ढाई साल बाद वापसी फिल्म ‘गुड न्यूज़’ से कर रही है, जिसमें उसने अक्षय कुमार की बहन की भूमिका निभाई है. जो एक लीगल एडवाईजर है और दोनों को कानून के बारें में राय देती है.

अंजना अपनी इस चरित्र से बहुत खुश है, क्योंकि बहुत सालों बाद फिल्मों में भी बहन की भूमिका दर्शकों को देखने को मिलेगी. रिश्तों और भूमिका के बारें में पूछे जाने पर वह कहती है कि मैंने वाकई इस बारें में नहीं सोचा है कि आजकल फिल्मों से भाई-बहन या रिश्तेदारों की भूमिका तक़रीबन उठ गयी है और ये रिश्ते दैनिक जीवन में भी कम होते जा रहे है, जबकि रिश्ते ही आपको अच्छा महसूस करवाते है.

परिवार ने निकाला डिप्रेशन से बाहर…

आगे अंजना कहती है- जब व्यक्ति किसी चुनौती से गुजरता है तो परिवार ही उसे सहारा देती है. हर किसी के जीवन में परिवार मुख्य है और ये हर किसी की सुख दुःख में शामिल होता है. मुझे याद है जब में डिप्रेशन में चली गयी थी तो मेरे भाई ने मुझसे कहा था कि मुझे प्रोफेशनल हेल्प की जरुरत है, जबकि मैं इसे समझ नहीं पा रही थी. मेरे माता-पिता और भाई की वजह से ही मैं इससे जल्दी निकल पायी. परिवार ही आपकी जिंदगी को जीना आसान बनाती है इसलिए इसकी कद्र सभी को करने की जरुरत है,क्योंकि आज की भाग दौड़ की जिंदगी में लोग रिश्तों को भूलते जा रहे है,यही वजह है कि आज मानसिक रोगियों की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है, जो पहले कभी नहीं था और ये चिंता का विषय है.

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परिवार का सहयोग अंजना को हमेशा से था आज जिस मुकाम पर वह है उसकी क्रेडिट वह परिवार को ही देती है. वह कहती है कि ये इस फिल्म में निर्देशक ने भी महसूस किया है. जब व्यक्ति मानसिक समस्याओं से गुजरता है तो परिवार का कोई सदस्य ऐसा होना चाहिए जो उसे सही गलत निर्णय को बताने के लिए हो और वही मेरी भूमिका भी है. दो ढाई साल बाद ये फिल्म मुझे मिली है और मैं इस गुड न्यूज़ से बहुत खुश हूं.

मां नहीं चाहती थी फिल्मों में आऊं…

अंजना का फिल्मों में आना एक इत्तफाक ही था,क्योंकि आज से 10 साल पहले उसकी मां नहीं चाहती थी कि वह फिल्मों में काम करें. वह किसी को इंडस्ट्री में जानती नहीं थी. उसकी अकेले कि जर्नी थी. पहली फिल्म के बाद माँ को लगा कि ये उसकी जर्नी है और वह ये यही करेगी. अंजना बताती है कि फिल्म को करते हुए मुझे समझ में आया कि फिल्मी बैकग्राउंड न होने के बावजूद मैं इस काम को एन्जॉय कर रही हूँ. अभिनय को सीखने के लिए मैंने कई वर्कशौप किये थे. मेरे हिसाब से अभिनय कोई सीखा नहीं सकता ये आपके अंदर होनी चाहिए, जिसके लिए मौके की जरुरत होती है. मैंने कुछ समय के लिए ब्रेक लिया और अब दूसरी पारी में अभिनय कर रही हूं. उसी दिशा में आगे अच्छा काम करने का प्रयास कर रही है.

कानून के बारें में महिलाओं में जागरूकता की कमी 

अंजना ये मानती है कि हमारे देश में कानून के बारें में महिलाओं में जागरूकता में कमी है और इसकी जानकारी समय-समय पर किसी भी माध्यम से देने की जरुरत है, लेकिन आज महिलाएं पहले से जागरूक हो चुकी है. आज जो भी आन्दोलन होता है, उसमें महिलाएं भी सामान रूप से भागीदार होती है और ये अच्छी बात है. इन सबमें परिवार का सहयोग होने की भी जरुरत है.

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मैं किसी से प्रतियोगिता नहीं करती…

अंजना के आगे अब सबसे अधिक अच्छी फिल्में करने की चुनौती है, जिसके लिए उसे अधिक एग्रेसिव होने की जरुरत है, क्योंकि अभी नयी-नयी प्रतिभाओं की बाढ़ सी आ गई है. पहले माता-पिता फिल्मों में बच्चों को डालना पसंद नहीं करते थे, अब तो 3 साल के बच्चे भी रियलिटी शो में भाग लेते है. इस बदलाव से हर कोई अच्छा काम चाहता है, पर उसके बारें में वह अधिक नहीं सोचती, उसे खुद अच्छा काम करने की इच्छा है. वह किसी से कोई प्रतियोगिता नहीं करती. वह आगे कहती है कि चुनौती मेरे लिए हर रोज होती है. इसे मैं अच्छा समझती हूं.

महिलाओं को कभी डरना नहीं चाहिए

मैं स्पोर्ट्स पर्सन की बायोपिक करना चाहती हूँ, क्योकि खेल के अलावा वे कई मानसिक परिस्थितियों से भी गुजरते है. जिसे मैं पर्दे पर लाना चाहती हूं. साल 2020 में अंजना का सन्देश है कि महिलाओं को कभी डरना नहीं चाहिए, आप जो चाहती है, उसे अवश्य करें और यहीं सोच उसके खुद की भी है, जिसे उसने अपने जीवन में उतारा है.

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अलविदा 2019: इस साल क्रिकेट की दुनिया में रहा इन महिला खिलाड़ियों का बोलबाला

भारतीय महिला क्रिकेट टीम के चर्तित युवा महिला क्रिकेटर जो किसी स्तर पर पुरुष क्रिकेटर से कम नहीं है, तो आइये 2019 के कुछ प्रसिद्ध क्रिकेटरों के बारे में जानते है .

* मिताली राज :- भारतीय कप्तान मिताली राज 200 वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट मैच खेलने वाली पहली महिला क्रिकेटर बन गई, लेकिन इस धुरंधर खिलाड़ी के लिए 200 वनडे महज एक आंकड़ा है. मिताली ने जनवरी 1999 में इंग्लैंड के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू किया था. कप्तानी करने उतरी मिताली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना 20वां साल पूरा किया.

* स्मृति मंधाना :- स्मृति मंधाना को मिली आईसीसी महिला वनडे और टी20 टीम ऑफ द ईयर में बनाया है. वनडे क्रिकेट में स्मृति मंधाना का रिकॉर्ड काफी जबरदस्त है. उन्होंने 51 वनडे मुकाबलों में 43.08 की प्रभावी औसत से 2,025 रन बनाए हैं. इसमें उनके नाम चार शतक और 17 अर्धशतक उनके नाम है.

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All set for the home series against South Africa 😇 See you soon Surat!! 🤩

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*झूलन गोस्वामी :- यह वुमन टीम इंडिया की कपिल देव हैं . पिछले कई सालों से लगातार बेहतरीन गेंदबाजी करके कई रिकौर्ड अपने नाम किया है. 225 वनडे विकेट, 321 इंटरनेशनल विकेट का महान रिकौर्ड भी उन्हें नाम है. इस साल आईसीसी ने महिला वनडे और टी20 टीम ऑफ द ईयर में उन्हें भी स्थान दिया है.

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* पूनम यादव- भारतीय महिला क्रिकेट टीम की लेग स्पिनर पूनम यादव को इस वर्ष का अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया. वह इस वर्ष आईसीसी महिला वनडे और टी20 टीम ऑफ द ईयर स्थान बनाने में कमयाब हुई है.

* शिखा पांडे :- शिखा पांडे भारतीय महिला सीनियर क्रिकेटर में मशहूर नाम में एक है. . उन्होंने 9 मार्च 2014 को बांग्लादेश के खिलाफ खेलते हुए अपने अंतरराष्ट्रीय ट्वेंटी 20 की शुरुआत किया था . कई रिकॉर्ड इनके नाम है. शिखा पांडे ने इस महिला विश्व कप में अपनी गेंदबाजी से सभी का दिल जीत लिया था. इस वर्ष आईसीसी महिला वनडे और टी20 टीम औफ द ईयर की सूची में इनका भी नाम है.

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* दीप्ति शर्मा: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्पिनर दीप्ति शर्मा ने इस एक अद्भुत रिकॉर्ड अपने अपने नाम किया है. चार ओवर के स्पैल में 8 रन देकर तीन विकेट चटकाए. इसके साथ ही वह एक टी-20 मैच में इतने मेडन डालने वाली पहली भारतीय हैं. इस साल आईसीसी महिला टी20 टीम की सूची में दीप्ति शर्मा इकलौती भारतीय महिला क्रिकेटर हैं.

 

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Feeling energetic after today’s training at NCA

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झारखंड में क्यों नहीं जीत पाई भाजपा ये 26 आदिवासी सीटें? कहीं ये इन बिलों की वजह तो नहीं

साल 2019 भाजपा के लिए ज्यादा अच्छा नहीं रहा. दो बड़े प्रदेशों से सत्ता का छिनना बीजेपी को रास नहीं आ रहा. लेकिन इन हारों के पीछे भाजपा की कुछ कमियां जरुर थीं. महाराष्ट्र में जनता ने बहुमत दिया लेकिन 30 साल का रिश्ता मुख्यमंत्री पद के लिए तोड़ दिया गया. शायद ये जो गठबंधन टूटा था उसमें कहीं न कहीं शिवसेना को समझ आ गया था कि महाराष्ट्र की राजनीति से उनका पत्ता साफ होता जा रहा है. खैर, सबसे ज्यादा चिंतनीय बात तो ये है कि झारखंड का सीएम भी अपनी सीट नहीं बचा सके. उनको सरयू राय ने हरा दिया. सरयू राय भी बीजेपी के बागी नेता थे और रघुबर दास की नीतियों से खफा थे.

अगर मुख्यमंत्री रहते हुए रघुवर दास कुछ विवादित विधेयक विधानमंडल से पास न कराते तो विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति अच्छी हो सकती थी. ये दो विधेयक छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) में संशोधन से जुड़े थे. इन दोनों विधेयकों का जिन 28 विधानसभा क्षेत्रों की आदिवासी जनता पर असर पड़ना था, वहां की 26 सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है. भाजपा सिर्फ खूंटी और तोरपा ही जीत पाई। राज्य में भाजपा से आदिवासियों की नाराजगी के पीछे यही दोनों विधेयक जिम्मेदार माने जा रहे हैं.

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दरअसल, रघुवर सरकार ने विपक्ष के वॉकआउट के बीच छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम(एसपीटी) में संशोधन के लिए बिल पास कराए थे. भूमि अधिग्रहण कानूनों में भी रघुवर सरकार ने संशोधन की कोशिशें की थी. ये कानून कभी आदिवासियों की जमीनों से जुड़े अधिकारों की रक्षा के लिए बने थे.

सरकार की ओर से इन कानूनों में संशोधन से आदिवासियों को अपने अधिकारों का हनन होता दिखा. विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाते हुए काफी विरोध किया. बाद में गृह मंत्रालय की आपत्तियों के बाद राष्ट्रपति ने भी हस्ताक्षर करने से इन्कार करते हुए विधेयक को लौटा दिया था. इस घटना के बाद आदिवासियों को लगने लगा कि राज्य की रघुवर सरकार उनके अधिकारों के विपरीत काम कर रही है.

सूत्रों का कहना है कि आदिवासियों की नाराजगी के कारण उत्तरी और दक्षिणी छोटा नागपुर और संथाल प्रमंडल में उनके लिए आरक्षित कुल 28 सीटों के चुनाव में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा. इन 28 में से भाजपा को 26 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.

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खतरे में पड़ी ‘नायरा’ की जान, ‘वेदिका’ की वजह से रुकी ‘नायरा-कार्तिक’ की शादी

स्टार प्लस के शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों हाई बोलटेज ड्रामा चल रहा है. मेकर्स ने दोबारा टीआरी चार्ट में नंबर वन पर जगह बनाने के लिए शो में नए-नए ट्विस्ट ला रहे हैं. ‘वेदिका’ की ‘नायरा’ और ‘कार्तिक’ की शादी को रोकने का प्लान पूरा होता नजर आ रहा है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

 ‘वेदिका’ तलाक रोकने के लिए चलती है चाल

अब तक आपने देखा कि ‘वेदिका’ और ‘कार्तिक’ के साथ कोर्ट जाती है, लेकिन ‘वेदिका’ रास्ते में दरगाह जाने के लिए ‘कार्तिक’ कहती है ताकि उन्हें कोर्ट जाने में देरी हो जाए.

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‘नायरा’ करेगी ‘वेदिका’ का प्लान फेल

‘वेदिका’ जानबूझ कर तलाक के पेपर्स को फेक देती है, जो कि ‘नायरा’ के हाथ लग जाते हैं. वहीं ‘नायरा’ भी ‘वेदिका’ और ‘कार्तिक’ को तलाक के पेपर्स देने के लिए दरगाह जाती है.

‘नायरा’ की पड़ी खतरे में जान

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि ‘नायरा’ दरगाह पहुंचेगी और वह ‘कार्तिक’ से मिलेगी. दूसरी तरफ दरगाह में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा होगा, जिसके चलते जब ‘नायरा’ ‘कार्तिक’ को तलाक के पेपर्स देगी तो उनके ऊपर ईंटें और सरिये गिर जाएंगी.

क्या बच पाएगी ‘नायरा’

इसी बीच ‘नायरा’ के सरिया लगने से ब्लीडिंग होनी शुरू हो जाएगी और ‘कार्तिक’ अपना हेल्थ छोड़कर ‘नायरा’ को अस्पताल ले जाएगा. इसी के साथ वह बाकी घरवालों को फोन करके ‘नायरा’ के एक्सीडेंट की खबर भी देगा.

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बता दें, ‘वेदिका’ तलाक रोकने के लिए इससे पहले भी कईं चाले चल चुकी है, जिसको लेकर दादी को ‘वेदिका’ पर शक रहता है. अब देखना ये है कि क्या दादी एक बार फिर ‘नायरा’ के एक्सीडेंट को देखते हुए ‘वेदिका’ को बेनकाब कर पाएंगी या ‘वेदिका’ एक बार फिर ‘नायरा’ और ‘कार्तिक’ की शादी को रोकने में कामयाब हो जाएगी.

पिता के रिकशा से आईएएस तक का सफर

लेखक- डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

दुकान जब बंद हो जाती तो वे रात में बनारस की सड़कों पर रिकशा चलाते थे. उन के 4 बच्चे थे, 3 बेटियां और सब से छोटा बेटा, जिस का नाम गोविंद रखा गया था.

पिता ने कुछ पैसे जोड़ कर धीरेधीरे एक रिकशे से 4 रिकशे बना लिए. समय बीतता रहा. पिता ने तीनों बेटियों को बीए तक पढ़ाया और उन की शादी कर दी.

इस परिवार का सब से छोटा सदस्य गोविंद बहुत मेधावी था. वे लोग जिस महल्ले में रहते थे, उस के बगल में ही एक पौश कालोनी थी. 12 साल का गोविंद चूंकि मेधावी था, इसलिए पौश कालोनी के एक बच्चे से उस की दोस्ती हो गई.

एक दिन गोविंद उस के घर गया, जहां दोस्त के पिताजी उस से मिले.

दोस्त के पिताजी ने अपने बेटे से पूछा, ‘‘यह बच्चा कौन है?’’

दोस्त ने कहा, ‘‘मेरा दोस्त है.’’

उन्होंने गोविंद से पूछा, ‘‘किस क्लास में पढ़ते हो?’’

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गोविंद ने बताया, ‘‘7वीं क्लास में.’’

‘‘तुम्हारे पापा क्या करते हैं?’’

‘‘जी, वे रिकशा चलाते हैं.’’

इतना सुनते ही दोस्त के पिताजी आगबबूला हो गए. उन्होंने अपने बेटे को फटकारा, ‘‘अब यही बचा है… रिकशे वालों से दोस्ती करोगे.’’

दोस्त चुप हो कर रह गया और दोस्त के अमीर पिता ने गोविंद को वहां से बेइज्जत कर के निकाल दिया.

मासूम गोविंद को यह समझ ही नहीं आया कि उस के साथ ऐसा क्यों हुआ? उस ने अपने एक रिश्तेदार को यह बात बताई. रिश्तेदार ने कहा कि इन हालात से बाहर निकलने का बस एक ही रास्ता है कि तुम आईएएस बन जाओ.

लेकिन 12 साल के बच्चे को यह जानकारी न थी कि आईएएस क्या होता है? पर उस ने यह ठान लिया था कि उसे आईएएस ही बनना है. उस ने बनारस से ही पहले इंटर किया, फिर गणित से बीए. साथसाथ वह यूपीएससी की तैयारी करने लगा.

उधर पिता रिकशा चला कर परिवार पाल रहे थे और एक के बाद एक बेटियों की शादियां भी कर रहे थे, साथ ही, वे बेटे को पढ़ा भी रहे थे.

यह वह समय था, जब बनारस में 14 घंटे के पावर कट लगते थे और उस दौरान सब लोग जनरेटर चलाया करते थे. किराए के जिस छोटे से कमरे में उन का परिवार रहता था, उस के इर्दगिर्द चारों तरफ जनरेटर चलते थे और उन का भयंकर शोर और धुआं होता था. ऐसे में गोविंद सभी खिड़कियांदरवाजे बंद कर अपने कानों में रुई ठूंस कर पढ़ा करता था.

ग्रेजुएशन करने के बाद गोविंद को यूपीएसएसी की तैयारी के लिए दिल्ली जाना था. लेकिन उस के पिता को एक दिन पैर में हलकी सी चोट लग गई. उन का कायदे से इलाज नहीं हुआ और न ही उन्हें आराम मिला, जिस के चलते घाव बढ़ने लगा, जो बाद में सैप्टिक की हालत तक पहुंच गया.

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उधर गोविंद दिल्ली के मुखर्जी नगर में यूपीएससी की तैयारी के लिए रहने लगा. वह घर से पैसे मंगाता नहीं था. वह दिल्ली में बच्चों को ट्यूशन के रूप में गणित पढ़ाता था और फिर उस के बाद अपनी यूपीएससी की तैयारी करता था.

गोविंद के पास कोचिंग में पढ़ने तक के पैसे नहीं थे. पिता का पैर खराब होता जा रहा था. ट्यूशन भी साल में सिर्फ 8 महीने ही मिलती थी. इस माली मुसीबत के चलते धीरेधीरे सभी रिकशे बिक गए. एकमात्र जमीन का टुकड़ा बचा था, वह पिताजी ने मजबूरी में सिर्फ 4,000 रुपए में बेच दिया. घर में फाका होने लगा था. ऐसे में बहनों ने अपने पति व परिवार से छिपा कर भाई की मदद की.

गोविंद इतिहास और मनोविज्ञान पढ़ रहा था. मनोविज्ञान की कोचिंग में उस की दोतिहाई फीस माफ हो गई. इतिहास की कोचिंग के लिए पैसे न थे, इसलिए उस की तैयारी खुद की. वह अनगिनत रातें भूखे पेट सोया होगा, तब जा कर कड़ी मेहनत से पहली ही कोशिश में गोविंद को यूपीएससी के इम्तिहान में 48वां रैंक मिला और अब वह अरुणाचल प्रदेश में बतौर आईएएस तैनात है.

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पहनी बार बिकिनी में नजर आईं हिना खान, Maldives में दिखा हौट अवतार

हमेशा सुर्खियों में रहने वाली टीवी एक्ट्रेस हिना खान हमेशा फैंस के लिए कुछ नया लेकर आती हैं फिर वो चाहे उनकी लाइफ की नई अपडेट हो या फिर उनके नए काम की. वे हमेशा सोशल मीडिया पर अप टू डेट रहती है जिसके चलते फैंस उनसे काफी कनेक्टिड फील करते है. इसी के साथ ही हिना ने बीते दिनों कुछ फोटोज अपने औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट से शेयर की जिसमें उन्होनें ओरेंज कलर की बिकिनी पहनी हुई है.

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वायरल हुआ ओरेंज बिकिनी फोटोशूट…

 

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Aaahhhh this smell of salt and sand.. I am wild, beautiful within and free.. just like the sea 🌊 @kurumba_maldives PC- @rockyj1

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समुंदर किनारे ओरेंज कलर की बिकिनी पहनीं हिना खान सचमुच कयामत ढ़ा रही हैं. वैसे तो उनकी हर फोटो सोशल मीडियो पर इतनी वायरल होती है की क्या ही कहें और उनके फैंस उनकी हर फोटो को काफी प्यार भी देते हैं. हर बार की तरह इस बार भी हिना के फैंस ने उनके इस ओरेंज बिकिनी फोटोशूट को भी काफी प्यार दिया है और लगातार लाइक्स और कमेंट्स की बरसात कर रहे हैं.

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फैंस ने की जमकर तारीफ…

 

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A few more😀

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हिना खान के इस बिकिनी फोटोशूट में उनकी अदाएं देख कोई भी उनका दीवाना हो जाएगा. ऐसे में ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि हिना को अपने फैंस को खुश करना बेहद अच्छे से आता है. जैसे ही हिना अपनी कोई भी फोटो सोशल मीडियो पर शेयर करती हैं उनके फैंस बिना देर किए उन फोटोज को वायरल कर देते हैं और खूब सारा प्यार देते हैं.

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अप्सरा से कम नही लग रहीं हिना खान…

 

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Smelling the sea, Feeling the sky @kurumba_maldives

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वैसे हिना खान है हीं इतनी प्यारी की कोई भी उनकी तोरीफ किए बिना रह ही नहीं पाता और उनकी एक झलक देख ही उनको दिल दे बैठता है. अब इन्हीं फोटाज की बात करें तो हिना की इन फोटोज ने तो तहलका ही मचा रखा है. ओरेंज बिकिनी में इतनी हौट अदाएं दिखाती हिना खान किसी अप्सरा से कम नही लग रहीं.

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हिना खान की प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो उन्होनें कलर्स टीवी के सबसे बड़े रिएलिटी शो बिग बौस सीजन 11 में हिस्सा लिया था और उनको पौपुलैरिटी स्टार प्लर के फेमस सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है से मिली थी जिसमें उन्होनें अक्षरा सिंघानिया की भूमिका निभाई थी.

अंधविश्वास: समाधि ने ले ली बलि!

एक समुदाय विशेष के शख्स चमन लाल जोगी  ने यह ऐलान किया कि मैं समाधि लूंगा यह खबर सुर्खियों में रही. शासन प्रशासन अर्ध निंद्रा में उंघता रहा. हालात यह हो गए कि सार्वजनिक रूप से भीड़ की उपस्थिति मे उसने समाधि ले ली. और उसे रोका भी नहीं जा सका.

दरअसल, छत्तीसगढ़ की छवि वैसे भी देश दुनिया में अंधविश्वास रूढ़िवादिता और भोले भाले लोगों की स्वर्ण भूमि के रूप में जाना जाता रहा है. अक्सर यहां अंधविश्वास की घटनाएं घटती रहती हैं शासन सिर्फ औपचारिकता निभाता है, कुछ विज्ञापन जारी कर देता है. कुछ आंसू बहा देता है और फिर सब कुछ वही ढाक के तीन पात होने लगता है. महासमुंद के पचरी गांव में बाजे-गाजे और धूम धाम के साथ समाधि लेने वाले बाबा को जब लोग निर्धारित तिथि पर पांच  दिवस पश्चात  समाधि से निकालने पहुँचे तो सभी की आँखे फटी की फटी रह गयी….!!

समाधि, ढोंग और अंधविश्वास

सबसे त्रासद  स्थिति यह है कि छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला में एक श्वेत कपड़ा धारी शख्स  ने जब यह घोषणा की कि वे समाधि लेगा और दो चार घंटे नहीं, बल्कि 5 दिन की समाधि लेगा.तब  यह घोषणा  आग की तरह फैल गई . पक्ष में लोग खड़े हो गए . धार्मिक मामला होने के कारण  पुलिस प्रशासन के हाथ बंधे हुए थे,  उसमें इतना साहस नहीं था कि  लोगों को समझा सके  कि ऐसा कतई संभव नहीं है.

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परिणाम स्वरूप समुदाय विशेष की धार्मिक गतिविधि सार्वजनिक रूप से घटित होती चली गई.

पांच दिन होने पर जब समाधि स्थल  पर लोग पहुंचे और सच देखा तो हतप्रभ रह गए.क्योंकि समाधि से बाहर निकलने से पूर्व  का समाधि के अंदर उस शख़्स  का दम घूंट चुका था . सच तो यह है कि समाधि साधना के जूनून ने आखिर एक युवक की जान ले ली… पांच दिनों तक समाधि लेने के बाद जब उसे निकाला गया तो वह मृत था.

जिला प्रशासन ने आत्महत्या रोकने यहां नाम मात्र का ‘नवजीवन’ कार्यक्रम चला रखा है…वहीं अंधविश्वास की आंधी के प्रवाह में  बहकर  ग्राम पचरी का रहवासी  चम्मन लाल जोगी ने समाधि के दौरान दम तोड़ दिया. कुल जमा यह की तपोबल से समाधि लगाना महासमुंद जिले के ग्राम पचरी के एक युवक के लिए जानलेवा साबित हो गया.

दम घुटने से हो गई मौत

दरअसल, 30 वर्षिय चमनदास  ग्राम पचरी के निवासी पिछले पांच सालों से अलग  अलग  अवधि की  खतरनाक समाधि लिया  करता  रहा था. इस समाधि में उसने पहले साल 24 घंटे, दूसरे साल 48 घंटे, तीसरे साल 72 घंटे, चौथे साल 96 घंटे की समाधि ली थी. समाधि लेने के बाद हर साल किसी तरह जान बच जाने की वजह से इस दफे 16 दिसंबर 2019 को 108 घंटों की समाधि के लिए 4 फिट गड्ढे में भुमिगत समाधि के लिए उतरा था.

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पर उसको और उसके भक्तों को क्या मालूम था कि अंधविश्वास की ये समाधि चमनदास को मौत के बाद ही बाहर निकालेगी. पांच दिन बाद जब चमनदास को जब गड्ढे से बाहर निकाला गया तब वह बेहोश था…जहाँ उसे आनन  फानन मे जिला चिकित्सालय ले जाया गया. महासमुंद जिला अस्पताल में जांच  के बाद चिकित्सकों नें उसे मृत घोषित कर दिया.मृतक के रिश्तेदार का कहना है कि  हमने लंबे समय तक समाधि लेने को मना किया था लेकिन  वह नही माना और जान गवा दी. चिकित्सक जी. आर. पंजवानी ने इस संदर्भ में बताया कि  जमीन के अंदर ऑक्सीजन की कमी के वजह से दम घुटने से उसकी मौत हुई है.

बंगलों के चोर

लेखक- रविंद्र शिवाजी दुपारगुडे  

मुंबई शहर के मुलुंड इलाके के रहने वाले सुरेश एस. नुजाजे एक होटल व्यवसायी थे. मुंबई के अलावा उन के बेंगलुरु और दुबई में भी होटल थे. इस के अलावा ठाणे जिले की तहसील शहापुर के खंडोबा गांव में उन का एक फार्महाउस के रूप में ‘ॐ’ नाम का बंगला भी था. वैसे तो 48 वर्षीय सुरेश एस. नुजाजे अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते थे, लेकिन समय निकाल कर अपने परिवार के साथ वह ठाणे स्थित बंगले में आते रहते थे. यहां 4-5 दिन रह कर वह मुंबई लौट जाते थे.

जुलाई, 2019 के दूसरे सप्ताह में भी वह 8 दिनों के लिए परिवार के साथ अपने इस बंगले में आए थे. मुंबई पहुंचने के बाद उन्हें खबर मिली कि बंगले में रहने वाले 8 कुत्तों में से एक कुत्ता बीमार है. उस की बीमारी की खबर सुन कर वह परिवार को मुंबई छोड़ कर अकेले ही कुत्ते के इलाज के लिए फिर से अपने बंगले पर पहुंच गए.

उन्होंने अपने बीमार कुत्ते का इलाज कराया. उन के बंगले की सफाई आदि करने के लिए दीपिका नामक एक महिला आती थी. हमेशा की तरह 19 जुलाई, 2019 को भी वह सुबह करीब 7 बजे बंगले पर पहुंची. उसे सुरेश नुजाजे के बैडरूम की भी सफाई करनी थी, लिहाजा उन के बैडरूम में जाने से पहले उस ने दरवाजा खटखटाया.

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दरवाजा खटखटाने और आवाज देने के बाद भी जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह अपने साहब को आवाज देते हुए उन के कमरे में चली गई. तभी उस ने देखा कि उस के मलिक सुरेश नुजाजे बैड से नीचे पड़े थे. उन के हाथ बंधे दिखे.

दीपिका ने उन्हें गौर से देखा तो वह लहूलुहान हालत में थे. उन के हाथों के अलावा पैर भी बंधे थे और उन के पेट पर घाव थे. दीपिका ने उन्हें उठाने की कोशिश की पर वह नहीं उठे और न ही कुछ बोले. वह डर गई और बाहर की ओर भागी. वह सीधे वहां रहने वाले जगन्नाथ पवार के कमरे पर गई. उस ने जगन्नाथ पवार को यह खबर दी.

जगन्नाथ पवार ने उसी समय फोन द्वारा उपसरपंच नामदेव दुधाले और भाई रमेश पवार को बता दिया कि सुरेश नुजाजे बंगले में लहूलुहान हालत में हैं. जगन्नाथ पवार के बुलावे पर दोनों उस के पास पहुंच गए.

इस के बाद वे तीनों इकट्ठे हो कर सुरेश नुजाजे के बंगले पर दीपिका के साथ गए. जब उन्होंने बंगले में जा कर देखा तो सुरेश नुजाजे अपने बैडरूम में मृत हालत में थे. यानी किसी ने उन की हत्या कर दी थी.

इस के बाद जगन्नाथ पवार ने मोबाइल फोन से शहापुर पुलिस को सूचना दे दी. हत्या की सूचना मिलने के बाद शहापुर थाने से इंसपेक्टर घनश्याम आढाव, एसआई नीलेश कदम, हवलदार बांलू अवसरे, कैलाश पाटील, कांस्टेबल सुरेश खड़के को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

खून से लथपथ मिली लाश

जब वे ‘ॐ’ बंगले में गए तब वहां उन्हें सुरेश नुजाजे की खून से लथपथ लाश मिली. लाश फर्श पर लकड़ी की मेज के पास पड़ी थी. उन के बगल में एक नीले रंग का तकिया गिरा पड़ा था. साथ ही उन के बैडरूम में लकड़ी की 2 अलमारियां उखड़ी हुई थीं.

अलमारियों का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. शोकेस भी टूटा हुआ था. साथ ही बैड पर मच्छर मारने का इलैक्ट्रिक रैकेट टूटी हुई अवस्था में नजर आया. किसी ने सुरेश के दोनों पैर टावेल से मजबूती से बांधे थे और दोनों हाथ लाल रंग की शर्ट से बांधे थे.

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पुलिस को वैसे तो लग ही रहा था कि सुरेश नुजाजे की मृत्यु हो चुकी है लेकिन वहां मौजूद लोगों के अनुरोध पर पुलिस उन्हें इलाज के लिए शहापुर के सरकारी अस्पताल ले गई लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने प्रारंभिक जांच में पाया कि गंभीर रूप से घायल करने के बाद हत्यारों ने इन का गला घोंटा था.

इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने इस वारदात की खबर एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर और एसडीपीओ दीपक सावंत, क्राइम ब्रांच के इंचार्ज व्यंकट आंधले को दी. कुछ ही देर में ये सभी अधिकारी अस्पताल पहुंच गए.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. जांच में पुलिस ने देखा कि बंगले के पीछे का गेट खुला था. इस के अलावा बंगले की खिड़की का ग्रिल भी उखड़ा हुआ था. हत्यारे ग्रिल उखाड़ कर सरकने वाली कांच की खिड़की सरका कर बैडरूम में घुसे थे.

बैडरूम की उखड़ी अलमारियों और शोकेस के टूटने पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि ये हत्यारों ने लूटपाट के इरादे से किया होगा, तभी तो अलमारियों का सामान कमरे में फैला है. इस जांच से यही पता चल रहा था कि सुरेश नुजाजे की हत्या लूट के इरादे से की गई होगी.

पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंदर घुसने पर बंगले के मालिक सुरेश नुजाजे ने शायद बदमाशों का विरोध किया होगा, फिर बदमाशों ने हाथपैर बांधने के बाद उन की हत्या कर दी होगी.

मृतक के घर वाले भी आ चुके थे. उन्होंने पुलिस को बताया कि सुरेश के हाथ की अंगूठियां, ब्रेसलेट, गले में सोने की चेन रहती थी. अलमारी में भी लाखों रुपए रखे रहते थे. ये सब गायब थे. क्राइम ब्रांच ने मौके से कई साक्ष्य जुटाए. एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर ने हत्या के इस केस को खोलने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया.

पुराने अपराधियों की हुई धरपकड़

पुलिस टीम ने पुराने अपराधियों के रिकौर्ड खंगालने शुरू किए. उन में से कुछ को पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया. उन से पूछताछ की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. कोंकण परिक्षेत्र के स्पैशल आईजी निकेत कौशिक टीम के सीधे संपर्क में थे. इस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीम भी मामले की समानांतर जांच कर रही थी.

क्राइम ब्रांच की टीम में सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले, इंसपेक्टर प्रमोद गड़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, गणपत सुले, शांताराम महाले, कांस्टेबल आशा मुंडे, जगताप राय, एएसआई वेले, हैडकांस्टेबल चालके, अमोल कदम, गायकवाड़ पाटी, सोनावणे, थापा आदि शामिल थे.

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पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच की. जांच के दौरान एक खबरची ने पुलिस को सूचना दी कि जिन लोगों ने सुरेश नुजाजे के बंगले में वारदात को अंजाम दिया, वे भिवंडी इलाके के नवजीवन अस्पताल के पीछे स्थित एक टूटीफूटी इमारत में छिपे हुए हैं.

इस सूचना पर सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले अपनी पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए और वहां उस बिल्डिंग को चारों ओर से घेर कर उस में छिपे चमन चौहान (25 वर्ष), अनिल सालुंखे (32 वर्ष) और संतोष सालुंखे (35 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने सुरेश नुजाजे की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उन से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर पुलिस ने 22 जुलाई, 2019 को औरंगाबाद से उन के साथी रोहित पिंपले (19 वर्ष), बाबूभाई चौहान (18 वर्ष) व रोशन खरे (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया. ये सभी बदमाश महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले थे.

पूछताछ में पता चला कि कत्लेआम के साथ डकैती करने वाली यह अंतरराज्यीय टोली दिन में गुब्बारे या अन्य चीजें बेचने का बहाना कर रेकी करती और रात में वारदात को अंजाम देती थी. इसी तरह इस टोली के सदस्यों ने सुदेश नुजाजे के बंगले की रेकी की थी.

तकिए से मुंह दबा कर घोंटा था गला

वारदात के दिन जब ये बदमाश उन के बंगले के पास गए, तब चोरों की आहट से सुरेश सतर्क हो चुके थे. फिर मौका देख कर ये किसी तरह उन के बंगले में घुस गए. सुरेश ने इन का विरोध किया, पर इतने लोगों का वह मुकाबला नहीं कर सके. बदमाशों ने उन के हाथपैर बांध कर उन पर फावड़े के हत्थे से प्रहार किया.

वहीं बैडरूम में पड़े तकिए से उन का मुंह दबा कर उन्हें मार दिया. कत्ल के बाद सुरेश के शरीर के सारे जेवरात उन्होंने उतार लिए. लकड़ी की अलमारी उखाड़ कर उन्होंने उस में रखे 28 हजार रुपए भी निकाल लिए. हत्या और डकैती की वारदात को अंजाम दे कर वे वहां से फरार हो गए.

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पूछताछ में उन्होंने उस इलाके में 17 वारदातों को अंजाम देने की बात स्वीकार की. सुरेश नुजाजे के बंगले के पास ही दूर्वांकुर और शिवनलिनी बंगले में भी इन अभियुक्तों ने दरवाजे तोड़ कर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था.

पुलिस ने इन बदमाशों से बरमा, तराजू, पेचकस, एक मोटरसाइकिल एवं बोलेरो कार के साथ सोनेचांदी के जेवरात भी बरामद किए. पुलिस को पता चला कि इस टोली के साथ कुछ महिलाएं भी अपराध में शामिल रहती हैं. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के साथ की 2 महिलाओं को भी हिरासत में ले लिया.

इस अपराध में पुलिस के पास कोई भी सुराग न होने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस ने न सिर्फ मर्डर और डकैती की घटना का खुलासा किया, बल्कि 17 अन्य वारदातों को भी खोल दिया. स्पैशल आईजी निकेत कौशिक ने इस केस को खोलने वाली टीम की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन किया.

Bigg Boss 13: ‘नागिन’ एक्ट्रेस ने किया सिद्धार्थ शुक्ला का सपोर्ट, रश्मि देसाई पर लगाए ये इल्जाम

बिग बौस का सीजन 13 काफी दिलचस्प होता जा रहा है और इस गेम को इंट्रस्टिंग कर रही है सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई की लड़ाई. बीते दिनो हमने देखा की सिद्धार्थ और रश्मि के बीच काफी भयंकर लड़ाई हुई और लड़ाई इस कदर बढ़ गई की दोनो ने एक दूसरे पर चाय तक फेंक दी. भले ही चाय फेंकने की शुरूआत रश्मि ने की हो लेकिन इस लड़ाई में एक कंटेस्टेंट ऐसा भी था जो बिना किसी मतलब के सिद्धार्थ से लड़ता दिखाई दिया और उस कंटेस्टेंट का नाम है अरहान खान.

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घटती जा रही है रश्मि देसाई की फैन फौलोविंग…

जी हां जब रश्मि देसाई और सिद्धार्थ शुक्ला आपस में लड़ रहे थे तो इतना तो सबको समझ में आ रहा था पर बिना किसी मतलब के अरहान ने भी सिद्धार्थ पर चाय फेंक दी जिस वजह से सिद्धार्थ का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया और वे आपे से बाहर हो गए. वैसे तो रश्मि देसाई और सिद्धार्थ शुक्ला दोनो ही टेलिवीजन इंडस्ट्री का जाना माना नाम है पर ऐसा देखने में आ रहा है कि रश्मि के इस तरह के बिहेवियर को देख उनकी फैन फौलोविंग घटती जा रही है.

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को-स्टार जैसमीन भसीन का आया बड़ा बयान…

रश्मि देसाई और सिद्धार्थ शुक्ला की लड़ाई को देख उन्के फैन क्लब्स भी दो हिस्सो में बट गए हैं. पर ज्यादातर लोगों का कहना यही है कि रश्मि देसाई जान बूझ कर सिद्धार्थ को टारगेट कर उन्हें गुस्सा दिलाती हैं और गर्लकार्ड प्ले करती हैं. इसी बीच उनके सीरियल “दिल से दिल तक” में रश्मि के साथ काम कर चुकीं उनकी को-स्टार जैसमीन भसीन का एक बयान भी सामने आया है.

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रश्मि साध रही हैं सिद्धार्थ पर निशाना…

एक इंटरव्यू के दौरान जैसमीन भसीन ने बताया कि, ‘सिद्धार्थ कभी भी किसी लड़की के साथ बदतमीजी नहीं कर सकते हैं. मैं उनके साथ काम कर चुकी हूं तो मुझे अच्छे से पता है कि वह कैसे इंसान हैं. रश्मि आए दिन उन पर निशाना साध रही है, जोकि बिल्कुल गलत है.’ इसी विषय पर आगे बात करते हुए जैसमीन ने बताया कि, ‘सिद्धार्थ सिर्फ गेम के लिए ऐसी बातें नहीं कहेंगे, उनका दिल दुखा है और इसी वजह से वह आपे से बाहर हो गए. रश्मि को सोच-समझकर इस गेम में आगे बढ़ने की जरुरत है.’

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यही सदस्य रहेंगे नोमिनेटिड…

बीते एपिसोड में आपने देखा कि शो के होस्ट सलमान खान ने सभी घरवालों की गलतफहमियां दूर करवाईं और असीम को एक अच्छी खबर सुनाई कि वे कैप्टन होने की वजह से नोमिनेट होने से बच गए हैं. बीते वीकेंड के वौर में घर से कोई भी सदस्य घर से बेघर नहीं हुआ और यही नोमिनेटिज सदस्य अगले हफ्ते के लिए भी नोमिनेटिड ही रहेंगे जिसमें से सिद्धार्थ शुक्ला, अरहान खान, विशाल अदित्य सिंह, मधुरिमा तुली, शेफाली बग्गा और आरती सिंह का नाम शामिल है.

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‘अबकी बार 65 पार’ का हुआ सूपड़ा साफ, झारखंड में सोरेन सरकार

इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘अबकी बार 65 पार’ का नारा पसंद नहीं आया और मतदाताओं ने इस नारे को नकार दिया. झारखंड के मतदाताओं ने ‘अबकी बार सोरेन सरकार’ नारे को अपना लिया है. अभी तक के रुझानों से साफ है कि कांग्रेस, राजद और झामुमो गठबंधन के मुख्यमंत्री प्रत्याशी हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य की अगली सरकार बनेगी.

भाजपा 30 से कम सीटों पर सिमटती दिख रही है. जबकि झामुमो गठबंधन 41 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार कर रही है. गौरतलब है कि भाजपा इस चुनाव में अकेले मैदान में उतरी थी. ऐसे में उसके साथ कोई सहयोगी भी नहीं है, जो किसी तरह उसकी नैया पार लगा सके. भाजपा के लिए सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास स्वयं जमशेदपुर पूर्व सीट से चुनाव हार गए और उनके प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय सरयू राय ने जीत दर्ज की.

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दूसरी ओर, झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने हेमंत सोरेन को चुनाव पूर्व ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया था, जिसका लाभ भी गठबंधन को हुआ है. भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने यहां जोरदार चुनाव प्रचार किया था. जबकि गठबंधन की ओर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी हेमंत सोरेन के साथ साझा रैलियों को संबोधित किया था.

भाजपा की इस स्थिति के संबंध में जब मुख्यमंत्री रघुवर दास से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जनादेश का सम्मान है. उन्होंने ’65 पार’ के नकारने के संबध में पूछे जाने पर कहा कि लक्ष्य कभी भी बड़ा रखना चाहिए, और उसी के अनुरूप लक्ष्य बड़ा रखा गया था. झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा ने यह नारा झामुमो गठबंधन के लिए दिया था.

पिछले चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन तब सरकार बनाने के करीब थी और उसके साथ सहयोगी भी थे. 2014 में भाजपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी। चुनाव के बाद झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के छह विधायक भी उसके साथ आ गए थे.

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