लेखक- डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

दुकान जब बंद हो जाती तो वे रात में बनारस की सड़कों पर रिकशा चलाते थे. उन के 4 बच्चे थे, 3 बेटियां और सब से छोटा बेटा, जिस का नाम गोविंद रखा गया था.

पिता ने कुछ पैसे जोड़ कर धीरेधीरे एक रिकशे से 4 रिकशे बना लिए. समय बीतता रहा. पिता ने तीनों बेटियों को बीए तक पढ़ाया और उन की शादी कर दी.

इस परिवार का सब से छोटा सदस्य गोविंद बहुत मेधावी था. वे लोग जिस महल्ले में रहते थे, उस के बगल में ही एक पौश कालोनी थी. 12 साल का गोविंद चूंकि मेधावी था, इसलिए पौश कालोनी के एक बच्चे से उस की दोस्ती हो गई.

एक दिन गोविंद उस के घर गया, जहां दोस्त के पिताजी उस से मिले.

दोस्त के पिताजी ने अपने बेटे से पूछा, ‘‘यह बच्चा कौन है?’’

दोस्त ने कहा, ‘‘मेरा दोस्त है.’’

उन्होंने गोविंद से पूछा, ‘‘किस क्लास में पढ़ते हो?’’

ये भी पढ़ें- CAA PROTEST: उ.प्र. में तनाव, रद्द हुईं परीक्षाएं, अब तक 15 लोगों की मौतें, 705 गिरफ्तारियां

गोविंद ने बताया, ‘‘7वीं क्लास में.’’

‘‘तुम्हारे पापा क्या करते हैं?’’

‘‘जी, वे रिकशा चलाते हैं.’’

इतना सुनते ही दोस्त के पिताजी आगबबूला हो गए. उन्होंने अपने बेटे को फटकारा, ‘‘अब यही बचा है... रिकशे वालों से दोस्ती करोगे.’’

दोस्त चुप हो कर रह गया और दोस्त के अमीर पिता ने गोविंद को वहां से बेइज्जत कर के निकाल दिया.

मासूम गोविंद को यह समझ ही नहीं आया कि उस के साथ ऐसा क्यों हुआ? उस ने अपने एक रिश्तेदार को यह बात बताई. रिश्तेदार ने कहा कि इन हालात से बाहर निकलने का बस एक ही रास्ता है कि तुम आईएएस बन जाओ.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...