साल 2019 भाजपा के लिए ज्यादा अच्छा नहीं रहा. दो बड़े प्रदेशों से सत्ता का छिनना बीजेपी को रास नहीं आ रहा. लेकिन इन हारों के पीछे भाजपा की कुछ कमियां जरुर थीं. महाराष्ट्र में जनता ने बहुमत दिया लेकिन 30 साल का रिश्ता मुख्यमंत्री पद के लिए तोड़ दिया गया. शायद ये जो गठबंधन टूटा था उसमें कहीं न कहीं शिवसेना को समझ आ गया था कि महाराष्ट्र की राजनीति से उनका पत्ता साफ होता जा रहा है. खैर, सबसे ज्यादा चिंतनीय बात तो ये है कि झारखंड का सीएम भी अपनी सीट नहीं बचा सके. उनको सरयू राय ने हरा दिया. सरयू राय भी बीजेपी के बागी नेता थे और रघुबर दास की नीतियों से खफा थे.

अगर मुख्यमंत्री रहते हुए रघुवर दास कुछ विवादित विधेयक विधानमंडल से पास न कराते तो विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति अच्छी हो सकती थी. ये दो विधेयक छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) में संशोधन से जुड़े थे. इन दोनों विधेयकों का जिन 28 विधानसभा क्षेत्रों की आदिवासी जनता पर असर पड़ना था, वहां की 26 सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है. भाजपा सिर्फ खूंटी और तोरपा ही जीत पाई। राज्य में भाजपा से आदिवासियों की नाराजगी के पीछे यही दोनों विधेयक जिम्मेदार माने जा रहे हैं.

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दरअसल, रघुवर सरकार ने विपक्ष के वॉकआउट के बीच छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम(एसपीटी) में संशोधन के लिए बिल पास कराए थे. भूमि अधिग्रहण कानूनों में भी रघुवर सरकार ने संशोधन की कोशिशें की थी. ये कानून कभी आदिवासियों की जमीनों से जुड़े अधिकारों की रक्षा के लिए बने थे.

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