कांग्रेस में खींचतान

कांग्रेस के कई जिलाध्यक्ष शनिवार, 12 अक्तूबर को खुल कर दिल्ली के प्रभारी पीसी चाको के समर्थन में आ गए. इन जिलाध्यक्षों ने उन नेताओं के खिलाफ ऐक्शन की मांग की है, जिन्होंने पीसी चाको को पद से हटाने की मांग की थी.

इस से पहले शुक्रवार, 11 अक्तूबर को शीला दीक्षित की कैबिनेट में रहे मंगतराम सिंघल, रमाकांत गोस्वामी, किरण वालिया, पूर्व पार्षद जितेंद्र कोचर और रोहित मनचंदा ने पीसी चाको को हटाने की मांग की थी. यह खबर भी आई थी कि शीला दीक्षित के बेटे और सांसद रह चुके संदीप दीक्षित ने शीला दीक्षित की मौत के लिए पीसी चाको को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हीं को चिट्ठी लिखी थी.

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अखिलेश दिखे रंग में

लखनऊ. काफी दिनों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रहे और अपनों में उलझे अखिलेश यादव ने हाल  में सरकारी बंगले में तथाकथित तोड़फोड़ को ले कर चल रही खबरों को उन्हें बदनाम करने की सरकारी साजिश करार देते हुए 13 अक्तूबर को कहा कि हाल के उपचुनावों में मिली हार और विपक्षी दलों के गठबंधन से परेशान भाजपा ने यह हरकत की है.

अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘सरकार मुझे बताए कि मैं कौन सी सरकारी चीज अपने साथ ले गया. मैं ने जो चीजें अपने पैसे से लगवाई थीं, वे मैं ले गया… भाजपा यह इसलिए कर रही है क्योंकि वह गोरखपुर और फूलपुर की हार स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वह यह समझ ले कि इस बेइज्जती के लिए जनता उसे सबक सिखाएगी.’’

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मोदी को घेरा

चेन्नई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समुद्र किनारे कचरा साफ करने वाले एक वीडियो पर रविवार, 13 अक्तूबर को कांग्रेस ने सवाल उठाया कि यहां उन के दौरे से पहले पूरे इलाके को साफ कर दिया था, तो क्या यह ‘नाटक’ था?

दरअसल, नरेंद्र मोदी 11 और 12 अक्तूबर को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अपनी दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्त्ता के लिए चेन्नई से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर तटीय शहर मामल्लापुरम आए थे. 12 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन की सुबह की सैर के दौरान समुद्र तट से प्लास्टिक और दूसरी तरह का कूड़ा बीनते देखा गया था. इस शूट में बहुत से कैमरामैन थे और शायद पहले सुरक्षा वालों ने जांचा था कि कहीं कोई बम तो नहीं है. उन सब ने सफाई की थी, ऐसा समाचार सरकार ने जारी नहीं किया.

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मंत्री पर फेंकी स्याही

पटना. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे 15 अक्तूबर को पटना मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल में डेंगू पीडि़तों का हाल जानने के लिए पहुंचे थे. इसी दौरान एक शख्स ने अचानक उन के ऊपर स्याही फेंक दी और मौके से फरार हो गया.

इस बारे में अश्विनी चौबे ने कहा, ‘‘सारे मीडिया पर स्याही फेंकी गई, उस के छींटे मुझे लगे. यह स्याही जनता पर, लोकतंत्र पर और लोकतंत्र के स्तंभ पर फेंकी गई है. ऐसे लोग निंदनीय हैं, उन की कड़ी बुराई होनी चाहिए.’’

बता दें कि अश्विनी चौबे कई विवादित बयानों को ले कर चर्चा में रहे हैं. पटना में भारी बारिश को उन्होंने हथिया नक्षत्र से जोड़ा था. इस के साथ ही एक पुलिस वाले को भी उन्होंने वरदी उतरवाने की धमकी दी थी.

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राहुल का बयान

सूरत. कांग्रेस नेता राहुल गांधी मानहानि के एक मामले में 10 अक्तूबर को सूरत की मजिस्ट्रेट अदालत में पेश हुए और उन्होंने कहा कि आपराधिक मानहानि के इस मामले में वे कुसूरवार नहीं हैं. यह मामला राहुल गांधी की तथाकथित टिप्पणी ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है’ से जुड़ा है.

सूरत (पश्चिम) से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ यह मामला दर्ज करवाया था. अदालत ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या वे इन आरोपों को स्वीकार करते हैं, तो उन्होंने कहा कि वे बेकुसूर हैं.

याद रहे कि कर्नाटक में 13 अप्रैल को कोलार में अपनी एक प्रचार रैली के दौरान राहुल ने कथित तौर पर कहा था, ‘‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी… आखिर इन सभी का उपनाम मोदी क्यों है? सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है?’’

यह मुकदमा किसी आरोपित मोदी ने दायर नहीं किया और पहली नजर में मामला बनता ही नहीं है.

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उबल गए कमलनाथ

झाबुआ. मध्य प्रदेश? के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 9 अक्तूबर को राज्य की झाबुआ विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के समर्थन में हुए एक रोड शो में हिस्सा लिया था और उस के बाद एक जनसभा को भी संबोधित किया था.

तब कमलनाथ ने कहा था, ‘‘भाजपा ने जो काम 15 सालों में नहीं किए, वे काम कांग्रेस की सरकार 15 महीने में कर दिखाएगी… भाजपा का काम सिर्फ झूठ बोलना है. इन का तो मुंह बहुत चलता है. सिर्फ बोलते जाएंगे, गुमराह करते जाएंगे… कहेंगे कि हिंदू धर्म खतरे में है और आगे कुछ नहीं बताएंगे. यह इन की ध्यान मोड़ने की राजनीति है. वे सचाई से आप का ध्यान मोड़ना चाहते हैं.’’

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पूनिया का प्रलाप

जयपुर. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने ‘भाजपा अल्पसंख्यक मोरचा’ की तरफ से देश के राष्ट्रपति रह चुके डा. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कांग्रेस को कोसते हुए कहा कि मुसलिमों को ले कर कांग्रेस का नजरिया हमेशा सिर्फ वोट बैंक ही रहा है, जबकि भाजपा ‘सब का साथ, सब का विकास’ पर यकीन करती है.

सतीश पूनिया यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने 55 सालों तक लूट और झूठ की ही राजनीति की है, जबकि भाजपा ने अटल बिहारी वापजेयी के काल से ले कर मोदी सरकार-2 तक अल्पसंख्यकों की तरक्की के लिए अनेक काम कर उन का भरोसा मजबूत किया है.

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नड्डा का नया शिगूफा

शिमला. भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद जगत प्रकाश नड्डा 9 अक्तूबर को पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के गृह जिले मंडी में गए थे. वहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यह प्यार और अपनापन उन्हें ताकत देता है. अमित शाह की अगुआई में भाजपा भारत की सब से बड़ी पार्टी बनी है और अब वे यह तय करेंगे कि भाजपा दुनिया की सब से बेहतरीन पार्टी बने. पार्टी के पास नए भारत का नजरिया है और वह हिम्मत भरे फैसले लेने से नहीं डरती.

दामोदर राउत का इस्तीफा

भुवनेश्वर. भाजपा के एक बड़े कद के नेता दामोदर राउत ने पार्टी में अपनी अनदेखी के चलते 16 अक्तूबर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वे इसी साल मार्च महीने में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) से निकाले जाने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे. बीजापुर उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों में उन का नाम शामिल नहीं किया गया था, इस बात से वे बड़े दुखी थे.

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बीजापुर उपचुनाव से पहले विधायक रह चुके अशोक कुमार पाणिग्रही भी भाजपा छोड़ चुके थे.

अंधविश्वास की पराकाष्ठा: भाग 1

साइंस ने भले ही कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, भले ही हम डिजिटल युग में आ गए हों, जहां ज्यादातर जरूरी काम बैठेबैठे हो जाते हैं. लेकिन इस के बावजूद अंधविश्वास ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा है. आश्चर्य तब होता है जब पढ़ेलिखे लोगों को अंधविश्वास के आगे सिर झुकाते देखा जाता है.

हमारे समाज के कितने ही लोग अपनी गलीसड़ी मानसिकता के साथ अभी तक अंधविश्वास की खाइयों में पड़े हैं. यह पिछले दिनों कौशांबी जिले के गांव बेरूई में देखने को मिला. खबर फैली कि 6 साल का बच्चा बीमार लोगों को छू कर इलाज कर रहा है. बीमारी कोई भी हो 6 वर्षीय गोलू बाबा के छूने भर से दूर हो जाती है.

इसी के चलते बेरुई में उस के घर के सामने लंबीलंबी कतारें लग रही हैं. आश्चर्य की बात यह कि उस के पास गांव कस्बों के लोग भी नहीं महानगरों के पढ़ेलिखे लोग भी आ रहे हैं. जिन के चलते गांव में मेला सा लग जाता है.

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6 वर्षीय गोलू बाबा का मकान गांव के बाहर खेत पर बना था. उस के पिता का नाम है- राजू पासवान, गोलू उस का एकलौता बेटा था. बेरूई गांव में रोजाना हजारों की भीड़ जुट रही थी. राजू के मकान से कुछ दूर साइकिल स्टैड, मोटरसाइकिल स्टैंड बना दिए गए थे. वहां सैकड़ों की संख्या में साइकिलें, मोटरसाइकिलें खड़ी होने लगी थीं. थोड़ी दूर आगे टैंपो स्टैंड बनाया गया था. कुछ कारें भी वहां आने लगी थीं. प्रशासन की ओर से वहां 2 सिपाहियों और 2 होम गार्डों की ड्यूटी भी लगाई गई थी.

गोलू बाबा के दरबार में 2 लाइनें लगती थीं. एक पुरुषों की दूसरी औरतों की. भीड़ बढ़ी तो गांव के 4-5 युवकों ने 10 रुपए फीस ले कर टोकन बांटने शुरू कर दिए. मतलब यह कि गोलू बाबा उसी का स्पर्श करता था, जिस के पास टोकन होता था. टोकन नंबर से उस के पास जाया जाता था.

बेरूई गांव उतर प्रदेश के नवनिर्मित जिले कौशांबी में है. कौशांबी पहले इलाहाबाद जिले का कस्बा था. बाद में इलाहाबाद की 2 तहसीलों को सम्मिलित कर कौशांबी को नया जिला बना दिया गया.

कौशांबी के थाना अंकिल सराय क्षेत्र का गांव बेरुई दलित बाहुल्य है. इस गांव में रहने वाले राजू पासवान के परिवार में पत्नी गोमती देवी के अलावा एक बेटी सरोजनी और एक बेटा गोलू था.

राजू के पास नाममात्र की जमीन थी. वह मेहनत मजदूरी कर के परिवार का भरणपोषण करता था. गांव में उस का मिट्टी का घर था, जो बरसात में गिर गया था. इस की जगह उस ने अपने खेत के किनारे पक्का मकान बनवा लिया था और उसी में परिवार के साथ रहने लगा था.

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राजू पासवान का बेटा गोलू एकलौता बेटा था, इसलिए घरपरिवार के लोग उसे बहुत प्यार करते थे. चाचा मनोज का तो वह आंख का तारा था. घर आंगन में खेलकूद कर जब गोलू ने 4 वर्ष की उम्र पार की तो उसे बेरुई गांव के प्राथमिक स्कूल में दाखिल करा दिया गया. गोलू गांव के हमउम्र बच्चों के मुकाबले पढ़ने में कमजोर था. एक वर्ष बाद गोलू दूसरी कक्षा में आ गया.

अभी तक सब कुछ सामान्य था. राजू का परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा था. उस का बेटा गोलू सामान्य बालक की तरह हंसखेल कर बचपन व्यतीत कर रहा था. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी जिस ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया.

अफवाह और अंधविश्वास ने रातोंरात राजू के बेटे गोलू को चमत्कारिक बना दिया. गोलू सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रौनिक मीडिया की सुर्खियों में आ गया.

गोलू बन गया चमत्कारी

6 वर्षीय बालक गोलू व उस की मां गोमती देवी के अनुसार 10 अगस्त, 2019 को गोलू अपनी नानी के घर से चाचा मनोज के साथ घर वापस लौट रहा था. अचानक वह यमुना नदी के पुल पर रुक गया. उस ने मनोज से कहा, ‘‘चाचा तुम थोड़ी देर रुको, मुझे मछलियां देखनी हैं.’’

मनोज थका हुआ था. वह यमुना किनारे पेड़ की छांव में लेट कर आराम करने लगा. जबकि गोलू यमुना के पानी में मछलियां देखने लगा. अचानक पानी में उसे एक बड़ी मछली दिखाई दी, जो नथुनी पहने थी. बड़ी मछली देख कर राजू डर कर मूर्छित हो गया. उस की मूर्छा तब टूटी, जब मछली ने उछल कर उस के मुंह पर पानी उड़ेला. मूर्छा टूटी तो मछली बोली, ‘‘तुम डरो नहीं, मैं ने तुम्हें दैवीय शक्ति दे दी है. आज के बाद तुम जिस व्यक्ति को अपने हाथों से छू दोगे, वह निरोगी हो जाएगा.’’

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घर वापस आने पर गोलू ने मछली वाली कहानी अपने मातापिता व अन्य परिजनों को बताई तो उन्होंने सहजता से उस की बात पर विश्वास कर लिया. दूसरे दिन गोलू स्कूल गया तो उस ने साथ पढ़ने वाले बच्चों को मछली वाली कहानी बताई. बाल बुद्धि बच्चों ने कौतूहलवश गोलू की कहानी को सच मान लिया.

बच्चों ने गोलू से अपने शरीर को छूने को कहा. गोलू ने उन्हें छुआ तो वह चिल्लाने लगे कि मेरे शरीर का दर्द चला गया. बच्चों की बात स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर कृपाशंकर तक पहुंची तो उन्होंने बच्चों को डांटा और अफवाह न फैलाने की बात कही.

मास्टरजी ने बच्चों को तो डांट दिया. लेकिन अपने बारे में सोचने लगे, क्योंकि वह खुद कमर दर्द से पीडित थे. उन्हें लगा कि कहीं बच्चे सच तो नहीं कह रहे. उन्होंने गोलू को एकांत में बुला कर कमर छूने को कहा. गोलू ने जैसे ही कमर पर हाथ रखा तो उन्हें चट्ट की आवाज सुनाई दी और दर्द से राहत मिल गई.

स्कूल कर्मचारी सपना सिर दर्द से परेशान थी. गोलू के स्पर्श से उसे सिर दर्द में आराम मिल गया. इन दोनों को अपनेअपने दर्द में कोई राहत मिली थी या नहीं, यह तो वही जानें, लेकिन इस सब से स्कूल में गोलू की इज्जत बढ़ गई.

बेरूई गांव के आसपास के गांवों में अफवाह फैली तो लोग राजू के घर आ कर बालक गोलू से इलाज कराने लगे. गोलू जब स्कूल में होता तो लोग वहां भी पहुंच जाते और गोलू को जबरन स्कूल से बाहर ले आते. लोगों का स्कूल में आनाजाना शुरू हुआ तो हेडमास्टर ने राजू पासवान को बुलवा कर गोलू को स्कूल न भेजने का फरमान जारी कर दिया.

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गोलू का स्कूल जाना बंद हुआ तो लोग उस के घर पर आने लगे. गोलू के मातापिता उसे सुबहसुबह नहलाधुला कर घर के बाहर तख्त पर बिठा देते. इस के बाद गोलू आने वाले लोगों को स्पर्श कर उन का रोग दूर करता. कहते हैं, अफवाह की चाल हवा से भी तेज होती है. शुरू में तो सौपचास लोग ही इलाज के लिए आते थे, लेकिन जब अफवाह एक गांव से दूसरे गांव में फैली तो राजू पासवान के घर पर भीड़ जुटने लगी.

अफवाह, अंधविश्वास और भीड़ जुटने की जानकारी जब थाना सराय अंकिल के थानाप्रभारी मनीष कुमार पांडेय को लगी तो वह पुलिस टीम के साथ बेरूई गांव पहुंचे. उन्होंने वहां मौजूद लोगों को समझाया कि विज्ञान के इस युग में आप लोग अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें. इस बालक में ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि किसी के मर्ज ठीक कर सके. यह सब आप का वहम है.

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि वे कई ऐसे बाबाओं को जानते हैं, जो चमत्कार दिखा कर लोगों को बेवकूफ बनाते थे. मैं उन का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन आज वे जेल में हैं और अदालत से जमानत की भीख मांग रहे हैं. इसलिए सभी से गुजारिश है कि आप अफवाह न फैलाएं और अंधविश्वास से दूर रहें.

लेकिन अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं होता. यहां भी ठीक ऐसा ही हुआ. अंधविश्वासी लोगों को इंसपेक्टर मनीष कुमार पांडेय की नसीहत नागवार लगी. इंसपेक्टर की नसीहत के बावजूद दूसरे रोज और ज्यादा भीड़ उमड़ पड़ी.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

जड़ें: भाग 1

मेरी पत्नी शिखा की कविता मौसी रविवार की सुबह 11 बजे बिना किसी पूर्व सूचना के जब मेरे घर आईं तब रितु भी वहीं थी. उन दोनों का परिचय कराते हुए मैं कुछ घबरा उठा था.

2 मिनट रितु से बातें कर के जब वे पानी पीने के लिए रसोई की तरफ चलीं तो मैं भी उन के पीछे हो लिया.

‘‘शिखा कहां गई है?’’ उन्होंने शरारती अंदाज में सवाल किया तो मेरी घबराहट कुछ और बढ़ गई.

‘‘वह मायके गई हुई है, मौसीजी,’’ मैं ने अपनी आवाज को सामान्य रखते हुए जवाब दिया.

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‘‘रहने के लिए?’’

‘‘हां, मौसीजी.’’

‘‘कब लौटेगी?’’

‘‘अगले रविवार को.’’

‘‘बालक, शिखा के पीछे यह कैसा चक्कर चला रहे हो? यह रितु कौन है?’’

मौसी की झटके से कैसा भी खुराफाती सवाल पूछ लेने की आदत से मैं पहले से परिचित न होता तो जरूर हकला उठता. पर मुझे ऐसे किसी सवाल के पूछे जाने का अंदेशा था, इसलिए उन के जाल में नहीं फंसा था.

मैं ने बड़े संजीदा हो कर जवाब दिया, ‘‘मौसीजी, यह रितु शिखा की ही सहेली है. यह पड़ोस में रहती है और उसी से मिलने आई थी. आप उस के और मेरे बारे में कोई गलत बात न सोचें. मैं वफादार पतियों में से हूं.’’

‘‘वे तो सभी होते हैं… जब तक पकड़े न जाएं,’’ अपने मजाक पर जब मौसी खूब जोर से हंसीं तो मैं भी उन का साथ देने को झेंपी सी हंसी हंस पड़ा.

फ्रिज में से ठंडे पानी की बोतल निकालते हुए उन्होंने मुझे फिर से छेड़ा,

‘‘बालक, तुम दोनों की शादी को मुश्किल से 3 महीने हुए हैं और तुम ने उसे घर भेज रखा है? क्या तुम्हें मनचाही पत्नी नहीं मिली है?’’

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‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मौसीजी. शिखा को मैं बहुत प्यार करता हूं. वही जिद कर के मायके भाग जाती है. मेरा बस चले तो मैं उसे 1 रात के लिए भी कहीं न छोड़ूं,’’ मैं ने अपनी आवाज को इतना भावुक बना लिया कि वे मेरी नीयत पर किसी तरह का शक कर ही न सकें.

‘‘देखो, अगर तुम दोनों के बीच कोई मनमुटाव पैदा हो गया है तो मुझे सब सचसच बता दो. मैं तुम्हारी प्रौब्लम यों चुटकी बजा कर हल कर दूंगी,’’ उन्होंने बड़े स्टाइल से चुटकी बजाई.

‘‘हमारे बीच प्यार की जड़ें बहुत मजबूत हैं. आप किसी तरह की फिक्र न करो, मौसीजी,’’ मैं ने यह जवाब दिया तो वे मुसकरा उठीं.

‘‘यू आर ए गुड बौय, नीरज. मेरी बातों का कभी बुरा नहीं मानना,’’ कह उन्होंने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगाया और फिर पीने के लिए बोतल से गिलास में पानी डालने लगीं.

ड्राइंगरूम में लौट कर उन्होंने बिना कोई भूमिका बांधे रितु की मुसकराते हुए तारीफ कर डाली, ‘‘रितु, तुम बहुत सुंदर हो.’’

‘‘थैंक यू, मौसीजी,’’ रितु खुश हो गई.

‘‘तुम ने शादी करने के लिए कोई लड़का देख रखा है या मैं तुम्हारे लिए कोई अच्छा सा रिश्ता ढूंढ़ कर लाऊं?’’

‘‘न कोई लड़का ढूंढ़ रखा है न मैं अभी शादी करना चाहती हूं, मौसीजी.’’

‘‘अरे, शादी करने में बहुत ज्यादा देर मत कर देना. शादी के बाद भी लड़की बहुत ऐश कर सकती है. फिर कभीकभी ऐसा भी हो जाता है कि बाद में अच्छे लड़कों के रिश्ते आने बंद हो जाते हैं. मेरी सलाह तो यही है कि तुम शादी के लिए अब फटाफट हां कर दो.’’

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‘‘आप इतना जोर दे कर समझा रही हैं तो मैं राजी हो ही जाती हूं मौसीजी. अब आप ढूंढ़ ही लाइए मेरे लिए कोई अच्छा सा रिश्ता,’’ उस ने नाटकीय ढंग से शरमाने का बढि़या अभिनय किया तो मौसीजी खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘तुम सुंदर होने के साथसाथ स्मार्ट और आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की भी हो. तुम जिसे मिलोगी वह सचमुच खुशहाल इंसान होगा,’’ मौसीजी ने भावविभोर हो उसे प्यार से गले लगा कर आशीर्वाद दिया और फिर अचानक पूछा, ‘‘तुम कौन सा सैंट लगाती हो, रितु? बड़ी अच्छी महक आ रही है.’’

‘‘यह सैंट मैं ने आर्चीज की शौप से लिया है, मौसीजी. ज्यादा महंगा भी नहीं है.’’

‘‘मैं भी यह सैंट जरूर खरीद कर लाऊंगी. आज तो नीरज और शिखा के साथ कहीं घूम आने की इच्छा ले कर मैं घर से निकली थी. अब मुझे यह साफसाफ बता दो कि तुम दोनों ने पहले से कहीं जाने का कोई प्रोग्राम तो नहीं बना रखा है?’’

‘‘कोई प्रोग्राम नहीं है हमारा. मैं अब चलती हूं. शिखा के आने पर फिर आऊंगी,’’ रितु जाने को उठ खड़ी हुई.

मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं करी तो वह मौसीजी को नमस्ते कर अपने घर चली गई.

उस के जाते ही मौसीजी ने मुझे फिर छेड़ा, ‘‘मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं ने बिना बताए यहां आ कर रंग में भंग डाल दिया है?’’

‘‘मौसीजी, आप भी बस बेकार में मुझ पर शक किए जा रही हो. शिखा के सामने ऐसा कोई मजाक मत कर देना नहीं तो वह बेकार ही मुझ पर शक करने लग जाएगी,’’ मैं कुछ नाराज हो उठा था.

‘‘तुम टैंशन मत लो, क्योंकि मेरी मजाक करने की आदत से वह भलीभांति परिचित है, बालक. अच्छा, अब तुम मेरे साथ चलने के लिए जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

‘‘हमें जाना कहां हैं, मौसीजी?’’

‘‘मैं आज तुम्हारी मुलाकात बड़े खास इंसान से करवाने जा रही हूं,’’ वे रहस्यमयी अंदाज में मुसकरा उठी थीं.

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‘‘कौन है यह इंसान, मौसीजी?’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हारे मौसाजी से दूसरी शादी करी है?’’

‘‘आप मुझ से मजाक मत करो?’’ मैं

चौंक पड़ा.

‘‘अरे, मैं सच बता रही हूं. अपनी पहली शादी के 6 महीने बाद ही मैं ने अपने पहले पति राजीव से तलाक लेने का मन बना लिया था.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कारण बाद में बताऊंगी. हम उन्हीं से मिलने चल रहे हैं.’’

‘‘आप उन से मिलती रहती हैं.’’

‘‘हां. आज के दिन तो जरूर ही मैं उन से मिलने जाती हूं, क्योंकि आज उन का जन्मदिन है.’’

‘‘तलाक होने के बावजूद उन से आप ने अपने संबंध पूरी तरह से खत्म नहीं किए हैं?’’

‘‘करैक्ट.’’

‘‘बस, यह और समझा दो कि आप मुझे उन से क्यों मिलाने ले चल रही हैं?’’

‘‘अरे, अपने भूतपूर्व पति से अकेले मिलने जाना क्या मेरे लिए समझदारी की बात होगी? पता नहीं शराब पी कर मारपीट करने का शौकीन वह बंदा किस मूड में हो? अपनी हिफाजत के लिए मैं तुम्हें साथ ले जा रही हूं, बालक.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि उन की शराब पी कर मारपीट करने की आदत के कारण आप ने उन्हें तलाक दिया था?’’

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‘‘यह नंबर 2 पर आने वाला महत्त्वपूर्ण कारण था.’’

‘‘और नंबर 1 वाला कारण क्या था?’’

‘‘वह कारण तुम्हें उन से मिलाने के बाद बताऊंगी,’’ उन्होंने इस विषय पर आगे कोई चर्चा न करते हुए मुझे तैयार हो जाने के लिए बैडरूम की तरफ धकेल दिया था.

घंटेभर बाद घंटी बजाए जाने पर मौसीजी के पहले पति राजीव के घर का दरवाजा उन के पुराने नौकर रामदीन ने खोला. वह मौसीजी को पहचानता था. मैं ने नोट किया कि वह उन्हें देख कर खुश नहीं हुआ. मौसीजी उस से कोई बात किए बिना ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ गईं.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

तुम प्रेमी क्यों नहीं: भाग 1

लेखक- परशीश

शेखर के लिए मन लगा कर चाय बनाई थी, पर बाहर जाने की हड़बड़ी दिखाते हुए एकदम झपट कर उस ने प्याला उठा लिया और एक ही घूंट में पी गया. घर से बाहर जाते वक्त लड़ा भी तो नहीं जाता. वह तो दिनभर बाहर रहेगा और मैं पछताती रहूंगी. ऐसे समय में उसे घूरने के सिवा कुछ कर ही नहीं पाती.

मैं सोचती, ‘कितना अजीब है यह शेखर भी. किसी मशीन की तरह नीरस और बेजान. उस के होंठों पर कहकहे देखने के लिए तो आदमी तरस ही जाए. उस का हर काम बटन दबाने की तरह होता है.’ कई बार तो मारे गुस्से के आंखें भर आतीं. कभीकभी तो सिसक भी पड़ती, पर कहती उस से कुछ भी नहीं.

शादी को अभी 3 साल ही तो गुजरे थे. एक गुड्डी हो गई थी. सुंदर तो मैं पहले ही थी. हां, कुछ दुबली सी थी. मां बनने के बाद वह कसर भी पूरी सी हो गई. आईने में जब भी अपने को देखती हूं तो सोचती हूं कि शेखर अंदर से अवश्य मुरदा है, वरना मुझे देख कर जरा सी भी प्रशंसा न करे, असंभव है. कालिज में तो मेरे लिए नारा ही था, ‘एक अनार सौ बीमार.’

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दूसरी ओर पड़ोस में ही किशोर बाबू की लड़की थी नीरू. बस, सामान्य सी कदकाठी की थी. सुंदरता के किसी भी मापदंड पर खरी नहीं उतरती थी. परंतु वह जिस से प्यार करती थी वह उस की एकएक अदा पर ऐसी तारीफों के पुल बांधता कि वह आत्मविभोर हो जाती. दिनरात नीरू के होंठों पर मुसकान थिरकती रहती. कभीकभी उस की बहनें ही उस से जल उठतीं.

नीरू मुझ से कहती, ‘‘क्या करूं, दीदी. वह मुझ से खूब प्यार भरी बातें करता है. हर समय मेरी प्रशंसा करता रहता है. मैं मुसकराऊं कैसे नहीं. कल मैं उस के लिए गाजर का हलवा बना कर ले गई तो उस ने इतनी तारीफ की कि मेरी सारी मेहनत सफल हो गई.’’

वास्तव में नीरू की बात गलत न थी. अब कोई मेहनत कर के आग की आंच में पसीनेपसीने हो कर खाना बनाए और खाने वाला ऐसे खाए जैसे कोई गुनाह कर रहा हो तब बनाने वाले पर क्या गुजरती है, यह कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है.

जाने शेखर ही ऐसा क्यों है. कभीकभी सोचती हूं, उस की अपनी परेशानियां होंगी, जिन में वह उलझा रहता होगा. दफ्तर की ही क्या कम भागदौड़ है. बिक्री अधिकारी है. आज यहां है तो कल वहां है. आज इस समस्या से उलझ रहा है तो कल किसी दूसरी परेशानी में फंसा है. परंतु फिर यह तर्क भी बेकार लगता है. सोचती हूं, ‘एक शेखर ही तो बिक्री अधिकारी नहीं है, हजारों होंगे. क्या सभी अपनी पत्नियों से ऐसा ही व्यवहार करते होंगे?’

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वैसे आर्थिक रूप से शेखर बहुत सुरक्षित है. उस का वेतन हमारी गृहस्थी के लिए बहुत अधिक ही है. वह एक भरेपूरे घर का ऐसा मालिक भी नहीं है कि रोज नईनई उलझनों से पाला पड़े. परिवार में पतिपत्नी के अलावा एक गुड्डी ही तो है. सबकुछ तो है शेखर के पास. बस, केवल नहीं हैं तो उस के होंठों में शब्द और एक प्रेमी अथवा पति का उदार मन. इस के साथ नीरू तो दो पल भी न रहे.

मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी शेखर ने मुंह पर मेरे व्यवहार या सुंदरता की तारीफ की हो. मुझ पर कभी मुग्ध हो कर स्वयं को सराहा हो.

अब उस दिन की ही बात लो. नीरू ने गहरे पीले रंग की साड़ी पहन ली थी, जोकि उस के काले रंग पर बिलकुल ही बेमेल लग रही थी. परंतु रवि जाने किस मिट्टी का बना था कि वह नीरू की प्रशंसा में शेर पर शेर सुनाता रहा.

नीरू को तो जैसे खुशी के पंख लग गए थे. वह आते ही मेरी गोद में गिर पड़ी थी. मैं ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ नीरू, कोई बात हुई?’’

‘‘बात क्या होगी,’’ नीरू ने मेरी बांह में चिकोटी काट कर कहा, ‘‘आज क्या मैं सच में पीली साड़ी में कहर बरपा रही थी. कहो तो.’’

मैं क्या उत्तर देती. पीली साड़ी में वह कुछ खास अच्छी न लग रही थी, पर उसे खुश करने की गरज से कहा, ‘‘हां, सचमुच तुम आज बहुत सुंदर लग रही हो.’’

‘‘बिलकुल ठीक,’’ नीरू चहक उठी, ‘‘रवि भी ऐसा ही कहता था. बस, वह मुझे देखते ही कवि बन जाता है.’’

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मुझे याद है, एक बार पायल पहनने का फैशन चल पड़ा था. ऐसे में मुझे भी शौक चढ़ा कि मैं भी पायल पहन लूं. मेरे पैर पायलों में बंध कर निहायत सुंदर हो उठे थे. जिस ने भी उन दिनों मेरे पैर देखे, बहुत तारीफ की. पर चाहे मैं पैर पटक कर चलूं या साड़ी उठा कर चलूं, पायलों का सुंदर जोड़ा चमकचमक कर भी शेखर को अपनी ओर न खींच पाया था. एक दिन तो मैं ने खीझ कर कहा, ‘‘कमाल है, पूरी कालोनी में मेरी पायलों की चर्चा हो रही है, पर तुम्हें ये अभी तक दिखाई ही नहीं दीं.’’?

‘‘ऐं,’’ शेखर ने चौंक कर कहा, ‘‘यह वही पायलों का सेट है न, जो पिछले महीने खरीदा था. बिलकुल चांदी की लग रही हैं.’’

अब कैसे कहती कि चांदी या पायलों को नहीं, शेखर साहब, मेरे पैरों के बारे में कुछ कहिए. असल बात तो पैरों की तारीफ की है, पर कह न पाई थी.

यह भी तो तभी की बात है. नीरू ने भी मेरी पसंद की पायलें खरीदी थीं. उन्हें पहन कर वह रवि के पास गई थी. बस, जरा सी ही तो उन की झंकार होती थी, मगर बड़ी दूर से ही वे रवि के कानों में बजने लगी थीं. रवि ने मुग्ध भाव से उस के पैरों की ओर देखते हुए कहा था, ‘‘तुम्हारे पैर कितने सुंदर हैं, नीरू.’’

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कितनी छोटीछोटी बातों की समझ थी रवि में. सुनसुन कर अचरज होता था. अगर नीरू ने उस से शादी कर ली तो दोनों की जिंदगी कितनी प्रेममय हो जाएगी.

मैं नीरू को सलाह देती, ‘‘नीरू, रवि से शादी क्यों नहीं कर लेती?’’

पर नीरू को मेरी यह सलाह नहीं भाती. मुसकरा कर कहती, ‘‘रवि अभी प्रेमी ही बना रहना चाहता है, जब तक कि उस के मन की कविता खत्म न हो जाए.’’

‘‘कविता?’’ मैं चौंक कर रह जाती. रवि का मन कविता से भरा है, तभी उस से इतनी तारीफ हो पाती है. कितना आकुल रहता है वह नीरू के लिए. शेखर के मन में कविता ही नहीं बची है, वह तो पत्थर है, एकदम पत्थर. सामान्य दिनों को अगर मैं नजरअंदाज भी कर दूं तो भी बीमारी आदि होने पर तो उसे मेरा खयाल करना ही चाहिए. इधर बीमार पड़ी, उधर डाक्टर को फोन कर दिया. फिर दवाइयां आईं और मैं दूसरे दिन से ही फिर रसोई के कामों में जुट गई.

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

Bigg Boss 13: इस दिन होगी घर के अंदर बहुओं की एंट्री, जानें किसकी लगेगी वाट

बिग बौस के घर में आए दिने कुछ ना कुछ अलग और नया दर्शकों को देखने को मिलता ही रहता है. हाल ही में कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला को बिग बौस नें घर से बेघर कर दिया था जिसके बाद से सभी घरवाले और दर्शकों को काफी दुख हुआ था. लेकिन बाद में पता चला कि सिद्धार्थ शुक्ला घर से बेघर नहीं हुए हैं बल्कि कंटेस्टेंट माहिरा शर्मा को चोट पहुंचाने के लिए बिग बौस नें उनको 2 हफ्तों के लिए नोमिनेट रहने की सजा सुनाई है.

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घर की बहुएं घर के अंदर…

अब बात करते हैं घर की बहुएं यानी रश्मि देसाई और देवोलीना भट्टाचार्य की तो जब उन्हें बिग बौस नें सबसे कम वोट्स मिलने के चलते घर से बेघर किया था तो घरवालो को काफी बड़ा झटका लगा था. लेकिन खबरें कुछ ऐसी आने लगीं कि रश्मि देसाई और देवोलीना भट्टाचार्य घर से बेघर नहीं हुए हैं बल्कि उनहें बिग बौस नें एक सीक्रेट रूम में रखा गया है.

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रश्मि देसाई और देवोलीना भट्टाचार्य की वापसी…

हाल ही में आईं खबरों के अनुसार घर की बहुएं घर में वापस लौट रही हैं. जी हां, रश्मि देसाई और देवोलीना भट्टाचार्य बिग बौस के घर में बुद्धवार या फिर गुरुवार तक वापसी कर सकती हैं. ये कहना अभी मुश्किल होगा कि क्या वाकई कंटेस्टेंट रश्मि और देवोलीना को किसी सीक्रेट रूम नें रखा गया था या नहीं. पर इतना तय है कि जब इन दोनों बहुओं की बिग बौस के घर में एंट्री होगी तब काफी हंगामें दर्शकों को देखने को मिलने वाले हैं.

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सिद्धार्थ शुक्ला को केरेंगे टारगेट…

जहां एक तरफ वाइल्डकार्ड एंट्री अरहान खान बात बात पर सिद्धार्थ शुक्ला को टारगेट करते दिखाई दे रहे हैं तो वहीं जब रश्मि देसाई घर के अंदर होंगी तब सिद्धार्थ का क्या हाल होगा. इन सब के चलते ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि अरहान खान और रश्मि देसाई मिलकर सिद्धार्थ का घर में जीना हराम करने में कोई कसर नहीं छोडेंगे.

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Bigg Boss 13: हिमांशी से लड़ाई के चलते पंजाब की कैटरीना नें कर डाला कुछ ऐसा, पढ़ें खबर

बिग बौस के घर में हमेशा से ही रिश्ते बनते बिगड़ते देखने को मिलते रहते हैं और इसी के चलते बिग बौस के 13वें सीजन में एक ऐसा रिश्ता जुड़ता देखने को मिलने वाला है जो लंबे समय से टूटा हआ था. हाल ही में हुईं वाइल्डकार्ड एंट्रीज में एक नाम पंजाब इंडस्ट्री की मशहूर मौडल और एकट्रेस हिमांशी खुराना का था. हिमांशी के घर के अंदर आते ही पंजाब की कैटरीना कैफ यानी शहनाज गिल के तो जैसे होश ही उड़ गए.

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हिमांशी खुराना की मां ने दी कसम…

दरअसल, हिमांशी खुराना और शहनाज गिल की काफी समय से बातचीत बंद है और जब बिग बौस के घर में हिमांशी के आते ही शहनाज नें उनसे बात करने की कोशिश की तो हिमांशी ने शहनाज से बात करने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि उनकी मां ने उन्हें कसम देकर भेजा है कि वे शहनाज से बात नहीं करेंगी.

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शहनाज नें की हिमांशी की बौडी शेमिंग…

 

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शहनाज गिल इस दौरान बहुत रोईं और यहां तक की हिमांशी खुराना के आते ही उन्होनें घर छोड़ कर जाने की भी बात कही. सभी दर्शकों को और यहां तक की घर में रह रहे कंटेस्टेंटस् को ये बात जाननी थी कि आखिर इन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ था जो इनकी लडाई इस हद तक बढ़ गई. हिमांशी खुराना ने इस बात पर से पर्दा उठाते हुए कंटेंस्टेंट्स को बताया कि शहनाज ने एक बार उनकी बौडी शेमिंग की थी तो वहीं दूसरी तरफ उन्होनें भी शहनाज को मुंह तोड़ जवाब दिया था.

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पारस के कहने पर मांगी माफी…

इसके बाद हिमांशी खुराना नें अपनी एक शर्त सबके सामने रखी थी कि अगर शहनाज गिल उनकी मां से नैशनल टी.वी. पर मांफी मांग लेती हैं तो वे उनसे बात करने की सोचेंगी. तो वहीं दूसरी तरफ शहनाज नें हिमांशी की ये शर्त मानते हुए बीते एपिसोड में हिमांशी की मां से माफी मांग ली है. हालांकि शहनाज नें ये माफी कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा के कहने पर मांगी है. लेकिन अभी तक हिमांशी की तरफ से कोई रिस्पौंस नहीं आया है.

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अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या हिमांशी खुराना और शहनाज गिल इस शो के जरिए एक अच्छे दोस्त बन पाएंगे या नहीं

पानी पानी नीतीश, आग लगाती भाजपा

इस वजह से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में काफी अजीबोगरीब हालत पैदा हो गई है. अगले साल बिहार विधानसभा का चुनाव है और नीतीश कुमार पर हमला कर भाजपाई नए राजनीतिक समीकरण गढ़ने की ओर इशारा कर रहे हैं.

भाजपा के अंदरखाने की मानें तो भाजपा आलाकमान इस बार नीतीश कुमार की बैसाखी के बगैर अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का माहौल बना रहा है और इस काम के लिए गिरिराज सिंह जैसे मुंहफट नेताओं को आगे कर रखा है.

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ऐसे में नीतीश कुमार के सामने बड़े अजीब हालात पैदा हो गए हैं. अगर भाजपा उन से दामन छुड़ा लेती है, तो उन के सामने दूसरा सियासी विकल्प क्या होगा? क्या वे दोबारा लालू प्रसाद यादव की लालटेन थामेंगे? कांग्रेस की हालत ऐसी नहीं है कि उस से हाथ मिला कर जद (यू) को कोई फायदा हो सकेगा. हमेशा किसी न किसी के कंधे का सहारा ले कर 15 साल तक सरकार में बने रहने वाले नीतीश कुमार क्या अकेले विधानसभा चुनाव में उतरने की हिम्मत दिखा पाएंगे?

नीतीश कुमार की इसी मजबूरी का फायदा भारतीय जनता पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में उठाना चाहती है. कई मौकों पर कई भाजपा नेता कह चुके

हैं कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग के मुखिया को बदलने की जरूरत है. इस बार भाजपा के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए. इस से जद (यू) के अंदर उबाल पैदा हो गया था.

हालांकि भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यह कह कर मामले को ठंडा कर दिया था कि जब कैप्टन ही अच्छी तरह से कप्तानी कर रहा हो और चौकेछक्के लगा रहा हो तो कैप्टन बदलने की जरूरत नहीं होती है.

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6 अक्तूबर, 2019 को भाजपा की राजनीति कुछ दिलचस्प अंदाज में नजर आई. कुलमिला कर हालत ‘नीतीश से मुहब्बत, नीतीश से ही लड़ाई’ वाली रही. बारिश के पानी में पटना के डूबने के मसले पर भाजपा और जद (यू) के कई नेताओं के बीच जबानी जंग तेज होती गई थी.

एक ओर जहां भाजपा के नेता पटना को डूबने से बचाने के मामले में नीतीश कुमार को पूरी तरह से नाकाम बता रहे थे, वहीं दूसरी ओर ऐसे में एक बार फिर सुशील कुमार मोदी ढाल ले कर नीतीश कुमार के बचाव में उतर पड़े.

उन्होंने आपदा से निबटने के लिए नीतीश कुमार की जम कर तारीफ की और उन के दोबारा जद (यू) अध्यक्ष बनने पर बधाई भी दी.

वहीं भाजपा के कुछ नेता दबी जबान में कहते हैं कि सुशील कुमार मोदी 3 दिनों तक खुद ही राजेंद्र नगर वाले अपने घर में 7-8 फुट से ज्यादा पानी में फंसे रहे. नीतीश कुमार ने उन की कोई खोजखबर तक नहीं ली.

जब भाजपा के कुछ नेताओं ने सुशील कुमार मोदी को ले कर हल्ला मचाया, तब पटना के जिलाधीश लावलश्कर के साथ ट्रैक्टर और जेसीबी ले कर मोदी के घर पहुंचे और डिप्टी सीएम का रैस्क्यू आपरेशन किया.

जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि भाजपा के कुछ नेता मुख्यमंत्री पर राष्ट्रीय जनता दल से ज्यादा तीखा हमला कर रहे हैं. हमारे घटक दल ही विरोधी दल की तरह काम कर रहे हैं. इस से सरकार और गठबंधन दोनों की फजीहत हो रही है.

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मुंबई महानगरपालिका का बजट 70,000 करोड़ रुपए का है और हर साल बारिश के मौसम में पानी जमा होता है. चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलुरु और मध्य प्रदेश में भी भारी पानी जमा हुआ. आपदा के इस माहौल में साथ मिल कर काम करने के बजाय कुछ भाजपा नेता बयानबाजी करने में लगे रहे.

गौरतलब है कि पटना नगरनिगम का इलाका 109 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस की आबादी 17 लाख है. नगरनिगम का सालाना बजट 792 करोड़ रुपए का है और 75 वार्ड हैं.

बारिश का पानी जमा होने को ले कर सत्ताधारी दलों के नेता आपस में उलझे रहे और सचाई यह सामने आई कि पटना के सारे नाले जाम पड़े थे और पटना नगरनिगम नालों के नक्शे की खोज में लगा हुआ था. नालों का नक्शा ही निगम को नहीं मिला, जिस से सफाई को ले कर अफरातफरी का माहौल बना रहा और जनता गले तक पानी में डूबती रही.

दरअसल, पटना नगरनिगम के नालों को बनाने का जिम्मा किसी एक एजेंसी के पास नहीं है. शहरी विकास विभाग, बुडको, नगरनिगम, राज्य जल पर्षद और सांसदविधायक फंड से यह काम कराया जाता रहा है. जिसे जितने का ठेका मिला, उसे बना कर चलता बना. नगरनिगम ने भी उस से नालों की पूरी जानकारी ले कर रिकौर्ड में नहीं रखा.

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भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के नीतीश कुमार पर हमलावर होते ही जद (यू) के कई नेता उन पर तीर दर तीर चलाने लगे. जद (यू) के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि गिरिराज सिंह डीरेल हो गए हैं. वे नीतीश कुमार के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं. अगर जद (यू) नेताओं का मुंह खुल गया, तो गिरिराज सिंह पानीपानी हो जाएंगे.

भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी कहते हैं कि गिरिराज सिंह का राजनीतिक आचरण कभी ठीक नहीं रहा है और वे अंटशंट बयान देने के आदी हैं. उन्हें कोई सीरियसली लेता भी नहीं है.

गिरिराज सिंह कहते हैं कि पटना एक हफ्ते तक पानी में डूबा रहा और नीतीश कुमार के अफसर भाजपा नेताओं का फोन नहीं उठाते थे. पटना के जिलाधीश तक ने फोन रिसीव नहीं किया और न ही कौल बैक किया. इस से यह साफ है कि अफसरों को मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि किस का फोन उठाना?है, किस का नहीं. ताली सरदार को मिली है तो गाली भी सरदार को ही मिलेगी, इस बात को नीतीश कुमार को नहीं भूलना चाहिए.

शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि गिरिराज सिंह के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. उन की चिंता है कि जद (यू) के साथ भाजपा भी सरकार में है. ऐसे में भाजपा को भी जनता के सवालों का जवाब देना होगा.

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गिरिराज सिंह से पूछा गया था कि नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से सत्ता में हैं, तो क्या जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? तो उन का जवाब था कि बिलकुल लेनी चाहिए. इसी बात का बतंगड़ बना दिया गया है और कहा जा रहा है कि राजग टूटने के कगार पर है.

सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार राजग में खींचतान की बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि बिहार में कुदरती आपदा आई है, ऐसे में राजनीतिक आपदा का कयास लगाना बेमानी है. राजग में टूट की बात करने वाले दिन में सपना देख रहे हैं. राजग अटूट है. वैसे भी गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की बयानबाजी का कोई सियासी असर नहीं होता है.

पटना की जनता एक हफ्ते तक पानी में फंसी परेशान रही और नीतीश सरकार के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा अपनी जवाबदेही से बचने की कवायद में लगे रहे. उन की बात सुनेंगे तो हंसी भी आएगी और गुस्सा भी.

मंत्री महोदय बड़ी ही मासूमियत से कहते हैं कि पटना में जलजमाव के लिए पटना नगरनिगम के पहले के कमिश्नर अनुपम कुमार सुमन जबावदेह हैं. वे किसी की बात ही नहीं सुनते थे. मुख्यमंत्री से भी इस की शिकायत कई दफा की गई थी. अनुपम कुमार सुमन की लापरवाही और मनमानी की वजह से ही पटना की बुरी हालत हुई है. विभाग की ओर से अनुपम कुमार सुमन पर कार्यवाही की सिफारिश की जाएगी.

सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि नीतीश कुमार ने जानबूझ कर पटना को पानी में डूबने दिया. वे भाजपा नेताओं को उन की औकात बताना चाहते थे और जनता के सामने उन्हें नीचा दिखाने की साजिश रची गई.

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पटना की 2 लोकसभा सीट और 14 विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा का कब्जा है. पटना शहरी इलाकों में भाजपा का दबदबा होने की वजह से  ही नीतीश कुमार ने इन इलाकों पर ध्यान नहीं दिया. नीतीश कुमार के मन में हमेशा यह चिढ़ रहती है कि पटना की जनता उन की पार्टी को तवज्जुह नहीं देती है. कई भाजपाई नेता दबी जबान में यह कह रहे हैं कि पटना को जानबूझ कर डुबोया गया. मेन नालों को जहांतहां जाम कर के रख दिया गया था. पंप हाउसों की मोटर खराब थी. जब मौसम विभाग ने बारिश को ले कर रेड अलर्ट जारी किया था तो पंप हाउस की मोटर को ठीक क्यों नहीं कराया गया?

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि पटना के ड्रेनेज सिस्टम, पंप हाउस जैसे बुनियादी मसलों पर पहले से पूरी तैयारी होती और मौनीटरिंग का इंतजाम होता तो इतनी बुरी हालत नहीं होती. सांसद अश्विनी चौबे कहते हैं कि पटना की तबाही के लिए लालफीताशाही जिम्मेदार है.

पटना के एक हफ्ते तक बारिश के पानी में डूबने का मामला शांत होता नहीं दिख रहा है. इस मसले को जिंदा रख कर भाजपा मजबूत सियासी फायदा उठाने की कवायद में लगी हुई है. इस साल के आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद से ही भाजपा बिहार में भी ‘एकला चलो रे’ का माहौल बनाने में लगी हुई है.

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पटना में भारी जल जमाव के बाद भाजपा ने खुल कर इस कोशिश को तेज कर दिया है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पटना के डूबने के बाद अब नीतीश कुमार की राजनीति के भी डूबने के आसार हैं?

रावण वध में हुआ राजग की एकता का वध? 

भाजपा और जद (यू)  के बीच तनातनी पूरी तरह से खुल कर तब सामने आ गई, जब 8 अक्तूबर को दशहरे के मौके पर पटना के गांधी मैदान में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम में भाजपा का एक भी नेता नहीं पहुंचा.

14 सालों के राजग के शासन में पहली बार ऐसा हुआ. इस मसले को ले कर जद (यू) खासा नाराज है कि भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री के प्रोटोकौल का उल्लंघन किया है.

जद (यू) के विधान पार्षद रणवीर नंदन कहते हैं कि अगर भाजपा नेताओं के मन कोई छलकपट है, तो वह किसी गलतफहमी में न रहें. विधानसभा चुनाव में जनता उन्हें करारा जवाब देगी.

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भाजपा आपदा के मौके पर भी सियासी फायदा उठाने की जुगत में है, वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि रावण वध कार्यक्रम से ज्यादा जरूरी जलजमाव में फंसी जनता को राहत पहुंचाना था और भाजपा उसी में मसरूफ रही.

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि इस साल जनता की परेशानियों को देखते हुए उन्होंने दशहरा नहीं मनाया और न ही किसी आयोजन में हिस्सा लिया. पटना के सातों शहरी विधानसभा क्षेत्र का विधायक जनता की सेवा का हवाला दे कर कन्नी कटाता रहा.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इस मामले में किसी तरह की राजनीति से इनकार करते हुए कहा है कि भाजपा और जद (यू) के बीच किसी भी तरह का मतभेद नहीं है. राजग अटूट है.

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कैसे कैसे बेतुके वर्ल्ड रिकौर्ड

लेखक- रामकिशोर पंवार

इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के राजेंद्र कुमार तिवारी उर्फ दुकानजीमकानजी की ही हरकतों को ले लीजिए. उन्होंने अपनी मूंछों पर जलती हुई मोमबत्तियों को नचा कर एक नया वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है.

हरियाणा के चंडीगढ़ शहर के रहने वाले गुप्ता बंधुओं ने किसी सामान के साथ मिलने वाली मुफ्त की चीजों को जमा करने का नया और अनोखा वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है.

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गुप्ता बंधुओं के पास मौजूदा समय में एक लाख रुपए से ज्यादा के गिफ्ट आइटम भरे पड़े हैं. इन गिफ्ट आइटमों को इकट्ठा करने में विश्व गुप्ता व विजय गुप्ता नामक इन दोनों भाइयों ने अपनी नौकरी की ज्यादातर तनख्वाह अपने इस शौक में फूंक डाली है.

नवां शहर, पंजाब के महल्ला सेरिया के बाशिंदे द्रविंद्र भिंडी ने अपने मुंह में सूई रखने का एक नया रिकौर्ड बनाने का दावा किया है. उन का कहना है कि वे 50 से भी ज्यादा सूइयों को हमेशा अपने मुंह में रखते हैं. खाना खाते, नहाते व सोते समय भी उन के मुंह में सूइयां रहती हैं.

अहमदाबाद, गुजरात के एक रैस्टोरैंट के मालिक ने 25 फुट लंबा डोसा बनाने का रिकौर्ड बनाया है. 15 रसोइयों की मदद से 25 फुट डोसा बनाने वाले कैलाश गोयल का नाम गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड में दर्ज है.

कुरुक्षेत्र, हरियाणा की मल्लिका सेठ ने अपने शरीर को मधुमक्खियों के हवाले कर के एक नया रिकौर्ड बनाया है.

संजय कुलकर्णी को ही ले लीजिए. पूना, महाराष्ट्र के संजय कुलकर्णी ने 2.6 किलोग्राम कांच खा कर वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है. यह नौजवान मजे के साथ बल्ब और कांच की बोतलों को ऐसे चबा जाता है, जैसे पापड़ खा रहा हो.

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मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पढ़ेलिखे नौजवान वकील महेंद्र सिंह चौहान ने लगातार 18 घंटे तक सिक्का घुमाने का एक नया रिकौर्ड बनाया है.

मध्य प्रदेश के सागर जिले के रहने वाले गिरीश शर्मा ने 55 घंटे, 35 मिनट खड़े रह कर एक नया वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है. इस नौजवान को बाद में पता चला कि लगातार 55 घंटे खड़े होने की वजह से उस के पैर की नस फट गई और खून बहने लगा.

इसी तरह का एक रिकौर्ड मंदसौर, मध्य प्रदेश के राधेश्याम प्रजापति ने बनाया है. यह नौजवान लगातार एक मुद्रा में 18 घंटे तक खड़ा रहा, जिस के चलते उस का नाम गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड में दर्ज किया गया.

इस वर्ल्ड रिकौर्ड में राधेश्याम प्रजापति को जितना समय खड़े रहने में लगा, अगर उतना समय वह अपनी नौकरी को ढूंढ़ने में लगाता, तो शायद उस के परिवार की दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाता.

वर्ल्ड रिकौर्ड बनाने के चक्कर में महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर के एक बालक ने अपने दोनों हाथों में हथकड़ी लगा कर तैरने का वर्ल्ड रिकौर्ड बना डाला.

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पंजाब के फरीदकोट के तेलिया महल्ले के एक बाशिंदे पीके सेठी के पास भारत सरकार के ऐसे दुर्लभ नोट हैं जिन्हें नियमानुसार बैंकों में जमा कर देना चाहिए, पर इन सज्जन ने अपना रिकौर्ड बनाने के चक्कर में भारत के उन नोटों को जमा कर के रखा हुआ है, जो गलत छपे हुए हैं.

दुनिया में सब से लंबा और वजनी कलैंडर बनाने का रिकौर्ड वीरेंद्र सिंह बिरदी के नाम दर्ज है. उन्होंने इतना लंबा कलैंडर बनाया है कि 40,000 लोग उस पर एकसाथ खड़े हो सकते हैं.

तकरीबन 10,475 मीटर लंबे इस कलैंडर को उठाने में 3 लोगों की जरूरत पड़ती है.

गायत्री मंत्र सहित 23 भाषाओं में लिखा गया वीरेंद्र सिंह बिरदी का यह कलैंडर दुनिया का सब से लंबा कलैंडर भारत को क्या फायदा पहुंचा सकता है, इस बात से तो वीरेंद्र सिंह बिरदी भी अनजान हैं.

इन वर्ल्ड रिकौर्ड धारकों से अच्छे तो भोपाल के वे 2 साइकिल चालक हैं, जो अपंग होने के बावजूद बैंगलुरु से दिल्ली और दिल्ली से कन्याकुमारी तक देश में सांप्रदायिक एकता, भाईचारे को कायम करने के मकसद से 3,000 किलोमीटर की यात्रा पर निकले थे.

ऐसे वर्ल्ड रिकौर्ड धारकों में डाक्टर एमसी मोदी का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने काम ही ऐसा किया था. उन्होंने मोतियाबिंद के 833  आपरेशन कर के सैकड़ों लोगों को आंखों की रोशनी दी.

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अब इंदौर, मध्य प्रदेश के ही अरविंद कुमार आगार को ले लीजिए. इन्होंने रक्तदान कर के वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है. दुनिया में सब से ज्यादा बार लोगों को खून दे कर उन की जान बचाने वाले अरविंद कुमार पर भारत को गर्व है.

केजी हनुमंत रेड्डी ने आज तक भारत सरकार के खिलाफ सब से ज्यादा मुकदमे दर्ज करने का एक अजीबोगरीब वर्ल्ड रिकौर्ड बना डाला है.

सरकार के खिलाफ जनहित के मामले दर्ज करना तो अच्छी बात है, पर सरकार को परेशान करने के लिए या फिर अपना नाम रिकौर्ड बुक में दर्ज कराने के लिए ऐसे मुकदमे दर्ज करने से क्या हनुमंत रेड्डी ने कोई नया तीर मारा है?

मिलिंद देशमुख की चर्चा करते हैं तो हमें पता चलता है कि उन्होंने 65 किलोमीटर की दूरी अपने सिर पर दूध की भरी बालटी रख कर तय कर के रिकौर्ड बुक में अपने नाम दर्ज कराया है.

मिलिंद देशमुख की तरह एक सज्जन अरविंद पंड्या भी हैं, जिन्होंने लौस एंजिल्स से न्यूयौर्क तक की दूरी पीछे की ओर दौड़ कर पूरी की है.

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यहां पर बाबा महेंद्र पाल की तारीफ करना बहुत जरूरी है, क्योंकि उन्होंने शारीरिक रूप से अपंग होने के बावजूद 7,360 मीटर ऊंची माउंट आबू की गामिन चोटी पर चढ़ाई कर के लोगों को प्रेरित किया है कि अपंगता किसी भी काम में बाधक साबित नहीं हो सकती.

जगदीश चंद्र नामक आदमी द्वारा 15 महीने तक रेंगते हुए 1,400 किलोमीटर की दूरी तय कर के बनाया गया रिकौर्ड समय की बरबादी ही कहा जा सकता है.

इसी तरह 9 साल के बालक चिराग शाह ने 72 घंटे तक 2 सीट वाले विमान को चला कर अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करवा लिया.

नागौर, राजस्थान के महेश प्रसाद ने एक साधारण साइकिल पर 21 छात्रों को 381 किलोमीटर का सफर करा कर वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया है.

महेश प्रसाद का यह रिकौर्ड उन के दोस्तों के लिए प्रेरणादायी हो सकता है, पर इन रिकौर्डों से देश की जनता को क्या मिला, यह नहीं पता है.

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पश्चिम बंगाल के सुकुमार दास ने रिकौर्ड बनाने के लिए एक दिन में 50 किलो भोजन करने के 2 दिन बाद 62 किलो सब्जियां खा कर अपना

नाम शामिल कराने का दावा किया है.

सुकुमार दास ईंट, ट्यूबलाइट, नाई की दुकान से इकट्ठे किए गए बाल, फटेपुराने कपड़े तक खा जाते हैं.

मुक्ति

लेखक- आर. केशवन

अचानक जया की नींद टूटी और वह हड़बड़ा कर उठी. घड़ी का अलार्म शायद बजबज कर थक चुका था. आज तो सोती रह गई वह. साढ़े 6 बज रहे थे. सुबह का आधा समय तो यों ही हाथ से निकल गया था.

वह उठी और तेजी से गेट की ओर चल पड़ी. दूध का पैकेट जाने कितनी देर से वैसे ही पड़ा था. अखबार भी अनाथों की तरह उसे अपने समीप बुला रहा था.

उस का दिल धक से रह गया. यानी आज भी गंगा नहीं आएगी. आ जाती तो अब तक एक प्याली गरम चाय की उसे नसीब हो गई होती और वह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाती. उसे अपनी काम वाली बाई गंगा पर बहुत जोर से खीज हो आई. अब तक वह कई बार गंगा को हिदायत दे चुकी थी कि छुट्टी करनी हो तो पहले बता दे. कम से कम इस तरह की हबड़तबड़ तो नहीं रहेगी.

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वह झट से किचन में गई और चाय का पानी रख कर बच्चों को उठाने लगी. दिमाग में खयाल आया कि हर कोई थोड़ाथोड़ा अपना काम निबटाएगा तब जा कर सब को समय पर स्कूल व दफ्तर जाने को मिलेगा.

नल खोला तो पाया कि पानी लो प्रेशर में दम तोड़ रहा?था. उस ने मन ही मन हिसाब लगाया तो टंकी को पूरा भरे 7 दिन हो गए थे. अब इस जल्दी के समय में टैंकर को भी बुलाना होगा.  उस ने झंझोड़ते हुए पति गणेश को जगाया, ‘‘अब उठो भी, यह चाय पकड़ो और जरा मेरी मदद कर दो. आज गंगा नहीं आएगी. बच्चों को तैयार कर दो जल्दी से. उन की बस आती ही होगी.’’

पति गणेश उठे और उठते ही नित्य कर्मों से निबटने चले गए तो पीछे से जया ने आवाज दी, ‘‘और हां, टैंकर के लिए भी जरा फोन कर दो. इधर पानी खत्म हुआ जा रहा है.’’

‘‘तुम्हीं कर दो न. कितनी देर लगती है. आज मुझे आफिस जल्दी जाना है,’’ वह झुंझलाए.

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‘‘जैसे मुझे तो कहीं जाना ही नहीं है,’’ उस का रोमरोम गुस्से से भर गया. पति के साथ पत्नी भले ही दफ्तर जाए तब भी सब घरेलू काम उसी की झोली में आ गिरेंगे. पुरुष तो बेचारा थकहार कर दफ्तर से लौटता है. औरतें तो आफिस में काम ही नहीं करतीं सिवा स्वेटर बुनने के. यही तो जबतब उलाहना देते हैं गणेश.

कितनी बार जया मिन्नतें कर चुकी थी कि बच्चों के गृहकार्य में मदद कर दीजिए पर पति टस से मस नहीं होते थे, ऊपर से कहते, ‘‘जया यार, हम से यह सब नहीं होता. तुम मल्टी टास्किंग कर लेती हो, मैं नहीं,’’ और वह फिर बासी खबरों को पढ़ने में मशगूल हो जाते.

मनमसोस कर रह जाती जया. गणेश ने उस की शिकायतों को कुछ इस तरह लेना शुरू कर दिया?था जैसे कोई धार्मिक प्रवचन हों. ऊपर से उलटी पट्टी पढ़ाता था उन का पड़ोसी नाथन जो गणेश से भी दो कदम आगे था. दोनों की बातचीत सुन कर तो जया का खून ही खौल उठता था.

‘‘अरे, यार, जैसे दफ्तर में बौस की डांट नहीं सुनते हो, वैसे ही बीवी की भी सुन लिया करो. यह भी तो यार एक व्यावसायिक संकट ही है,’’ और दोनों के ठहाके से पूरा गलियारा गूंज उठा था.

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जया के तनबदन में आग लग आई थी. क्या बीवीबच्चों के साथ रहना भी महज कामकाज लगता?था इन मर्दों को. तब औरतों को तो न जाने दिन में कितनी बार ऐसा ही प्रतीत होना चाहिए. घर संभालो, बच्चों को देखो, पति की फरमाइशों को पूरा करो, खटो दिनरात अरे, आक्यूपेशन तो महिलाओं के लिए है. बेचारी शिकायत भी नहीं करतीं.

जैसेतैसे 4 दिन इसी तरह गुजर गए. गंगा अब तक नहीं लौटी थी. वह पूछताछ करने ही वाली थी कि रानी ने कालबेल बजाते हुए घर में प्रवेश किया.

‘‘बीबीजी, गंगा ने आप को खबर करने के लिए मुझ से कहा था,’’ रानी बोली, ‘‘वह कुछ दिन अभी और नहीं आ पाएगी. उस की तबीयत बहुत खराब है.’’

रानी से गंगा का हाल सुना तो जया उद्वेलित हो उठी.  यह कैसी जिंदगी थी बेचारी गंगा की. शराबी पति घर की जिम्मेदारियां संभालना तो दूर, निरंतर खटती गंगा को जानवरों की तरह पीटता रहता और मार खाखा कर वह अधमरी सी हो गई थी.

‘‘छोड़ क्यों नहीं देती गंगा उसे. यह भी कोई जिंदगी है?’’ जया बोली.

माथे पर ढेर सारी सलवटें ले कर हाथ का काम छोड़ कर रानी ने एकबारगी जया को देखा और कहने लगी, ‘‘छोड़ कर जाएगी कहां वह बीबीजी? कम से कम कहने के लिए तो एक पति है न उस के पास. उसे भी अलग कर दे तो कौन करेगा रखवाली उस की? आप नहीं जानतीं मेमसाहब, हम लोग टिन की चादरों से बनी छतों के नीचे झुग्गियों में रहते हैं. हमारे पति हैं तो हम बुरी नजर से बचे हुए हैं. गले में मंगलसूत्र पड़ा हो तो पराए मर्द ज्यादा ताकझांक नहीं करते.’’

अजीब विडंबना थी. क्या सचमुच गरीब औरतों के पति सिर्फ एक सुरक्षा कवच भर ?हैं. विवाह के क्या अब यही माने रह गए? शायद हां, अब तो औरतें भी इस बंधन को महज एक व्यवसाय जैसा ही महसूस करने लगी हैं.

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गंगा की हालत ने जया को विचलित कर दिया था. कितनी समझदार व सीधी है गंगा. उसे चुपचाप काम करते हुए, कुशलतापूर्वक कार्यों को अंजाम देते हुए जया ने पाया था. यही वजह थी कि उस की लगातार छुट्टियों के बाद भी उसे छोड़ने का खयाल वह नहीं कर पाई.

रानी लगातार बोले जा रही थी. उस की बातों से साफ झलक रहा?था कि गंगा की यह गाथा उस के पासपड़ोस वालों के लिए चिरपरिचित थी. इसीलिए तो उन्हें बिलकुल अचरज नहीं हो रहा था गंगा की हालत पर.

जया के मन में अचानक यह विचार कौंध आया कि क्या वह स्वयं अपने पति को गंगा की परिस्थितियों में छोड़ पाती? कोई जवाब न सूझा.

‘‘यार, एक कप चाय तो दे दो,’’ पति ने आवाज दी तो उस का खून खौल उठा.

जनाब देख रहे हैं कि अकेली घर के कामों से जूझ रही हूं फिर भी फरमाइश पर फरमाइश करे जा रहे हैं. यह समझ में नहीं आता कि अपनी फरमाइश थोड़ी कम कर लें.

जया का मन रहरह कर विद्रोह कर रहा था. उसे लगा कि अब तक जिम्मेदारियों के निर्वाह में शायद वही सब से अधिक योगदान दिए जा रही थी. गणेश तो मासिक आय ला कर बस उस के हाथ में धर देता और निजात पा जाता. दफ्तर जाते हुए वह रास्ते भर इन्हीं घटनाक्रमों पर विचार करती रही. उसे लग रहा था कि स्त्री जाति के साथ इतना अन्याय शायद ही किसी और देश में होता हो.

दोपहर को जब वह लंच के लिए उठने लगी तो फोन की घंटी बज उठी. दूसरी ओर सहेली पद्मा थी. वह भी गंगा के काम पर न आने से परेशान थी. जैसेतैसे संक्षेप में जया ने उसे गंगा की समस्या बयान की तो पद्मा तैश में आ गई, ‘‘उस राक्षस को तो जिंदा गाड़ देना चाहिए. मैं तो कहती हूं कि हम उसे पुलिस में पकड़वा देते हैं. बेचारी गंगा को कुछ दिन तो राहत मिलेगी. उस से भी अच्छा होगा यदि हम उसे तलाक दिलवा कर छुड़वा लें. गंगा के लिए हम सबकुछ सोच लेंगे. एक टेलरिंग यूनिट खोल देंगे,’’ पद्मा फोन पर लगातार बोले जा रही थी.

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पद्मा के पति ने नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश प्राप्त कर लिया था और घर से ही ‘कंसलटेंसी’ का काम कर रहे थे. न तो पद्मा को काम वाली का अभाव इतनी बुरी तरह खलता था, न ही उसे इस बात की चिंता?थी कि सिंक में पड़े बर्तनों को कौन साफ करेगा. पति घर के काम में पद्मा का पूरापूरा हाथ बंटाते थे. वह भी निश्चिंत हो अपने दफ्तर के काम में लगी रहती. वह आला दर्जे की पत्रकार थी. बढि़या बंगला, ऐशोआराम और फिर बैठेबिठाए घर में एक अदद पति मैनसर्वेंट हो तो भला पद्मा को कौन सी दिक्कत होगी.

वह कहते हैं न कि जब आदमी का पेट भरा हो तो वह दूसरे की भूख के बारे में भी सोच सकता?है. तभी तो वह इतने चाव से गंगा को अलग करवाने की योजना बना रही थी.

पद्मा अपनी ही रौ में सुझाव पर सुझाव दिए जा रही थी. महिला क्लब की एक खास सदस्य होने के नाते वह ऐसे तमाम रास्ते जया को बताए जा रही थी जिस से गंगा का उद्धार हो सके.

जया अचंभित थी. मात्र 4 घंटों के अंतराल में उसे इस विषय पर दो अलगअलग प्रतिक्रियाएं मिली थीं. कहां तो पद्मा तलाक की बात कर रही?थी और उधर सुबह ही रानी के मुंह से उस ने सुना था कि गंगा अपने ‘सुरक्षाकवच’ की तिलांजलि देने को कतई तैयार नहीं होगी. स्वयं गंगा का इस बारे में क्या कहना होगा, इस के बारे में वह कोई फैसला नहीं कर पाई.

जब जया ने अपना शक जाहिर किया तो पद्मा बिफर उठी, ‘‘क्या तुम ऐसे दमघोंटू बंधन में रह पाओगी? छोड़ नहीं दोगी अपने पति को?’’

जया बस, सोचती रह गई. हां, इतना जरूर तय था कि पद्मा को एक ताजातरीन स्टोरी अवश्य मिल गई थी.

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महिला क्लब के सभी सदस्यों को पद्मा का सुझाव कुछ ज्यादा ही भा गया सिवा एकदो को छोड़ कर, जिन्हें इस योजना में खामियां नजर आ रही थीं. जया ने ज्यादातर के चेहरों पर एक अजब उत्सुकता देखी. आखिर कोई भी क्यों ऐसा मौका गंवाएगा, जिस में जनता की वाहवाही लूटने का भरपूर मसाला हो.

प्रस्ताव शतप्रतिशत मतों से पारित हो गया. तय हुआ कि महिला क्लब की ओर से पद्मा व जया गंगा के घर जाएंगी व उसे समझाबुझा कर राजी करेंगी.

गंगा अब तक काम पर नहीं लौटी थी. रानी आ तो रही?थी, पर उस का आना महज भरपाई भर था. जया को घर का सारा काम स्वयं ही करना पड़ रहा था. आज तो उस की तबीयत ही नहीं कर रही थी कि वह घर का काम करे. उस ने निश्चय किया कि वह दफ्तर से छुट्टी लेगी. थोड़ा आराम करेगी व पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार पद्मा को साथ ले कर गंगा के घर जाएगी, उस का हालचाल पूछने. यह बात उस ने पति को नहीं बताई. इस डर से कि कहीं गणेश उसे 2-3 बाहर के काम भी न बता दें.

रानी से बातों ही बातों में उस ने गंगा के घर का पता पूछ लिया. जब से महिला मंडली की बैठक हुई थी, रानी तो मानो सभी मैडमों से नाराज थी, ‘‘आप पढ़ीलिखी औरतों का तो दिमाग चल गया है. अरे, क्या एक औरत अपने बसेबसाए घर व पति को छोड़ सकती है? और वैसे भी क्या आप लोग उस के आदमी को कोई सजा दे रहे हो? अरे, वह तो मजे से दूसरी ले आएगा और गंगा रह जाएगी बेघर और बेआसरा.’’

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40 साल की रानी को हाईसोसाइटी की इन औरतों पर निहायत ही क्रोध आ रहा था.

खेसारी लाल यादव की ये नई भोजपुरी फिल्म पहुंची लंदन, देखें फोटोज

अपनी पारिवारिक फिल्मों के जरिये दर्शकों की नब्ज पकड़ने में माहिर ‘याशी फिल्म्स’ के अभय सिन्हा ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए अब अपनी नई भोजपुरी फिल्म ‘‘बलमुआ कईसे तेजब’’ की शूूटिंग लंदन में कर रहे हैं. इस फिल्म में भोजपुरी अभिनेता खेसारी लाल यादव के साथ मधु शर्मा, काजल राघवानी, पदम सिंह की मुख्य भुमिका है.

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खेसारी लाल यादव के साथ मधु शर्मा जैसे बड़े किरदार आएंगे नजर…

इस फिल्म का निर्माण अभय सिन्हा, निशांत पिट्टी और समीर आफताब द्वारा किया जार हा है, जबकि इसके निर्देशक रजनीश मिश्रा, कैमरामैन वासू हैं. फिल्म को संगीत से संवारने के साथ ही रजनीश मिश्रा ने ही कथा पटकथा और संवाद लिखे हैं.

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खेसारी लाल यादव कहते हैं…

इस फिल्म को लेकर अति उत्साहित अभय सिन्हा कहते हैं- ‘‘इस फिल्म की कहानी जब निर्देशक रजनीश मिश्रा ने सुनायी तो मैने तुरंत कह दिया कि हां हम यह फिल्म बनाएंगे.’’ जबकि खुद अभिनेता खेसारी लाल यादव कहते हैं- ‘‘अब तक भोजपुरी सिनेमा में इस तरह की फिल्म नहीं बनी है. फिल्म ‘बलमुआ कईसे तेजब’ की कहानी आम भोजपुरी फिल्मों से काफी हटकर है. याशी फिल्म के साथ काम करके मुझे काफी अच्छा लग रहा है. अभय सिन्हा भोजपुरी सिनेमा को नए आयाम देने का प्रयास करते रहे हैं. अब वह इसे लंदन में फिल्मा रहे हैं.

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खेसारी लाल यादव इन बिग बौस हाउस…

बता दें, भोजपुरी इंडस्ट्री के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव इन दिनों कलर्स टीवी के सबसे बड़े रिएलिटी शो बिग बौस के 13वें सीजन में दर्शकों को खूब एंटरटेन करते नजर आ रहे हैं. दर्शकों को खेसारी लाल यादव का बिग बौस शो में आना काफी पसंद आया है.

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