मनु के रचे ब्राह्मणवादियों के मूल ग्रंथ ‘मनुस्मृति’ में लिखा है कि ‘स्त्री शुद्रो ना धीयताम’ यानी औरत और शूद्र को पढ़नेलिखने नहीं देना चाहिए. इस बात का असर किसी न किसी रूप में आज तक है.

ऐसी धार्मिक किताबों में यह भी लिखा गया है कि जो शूद्र वेद की ऋचा सुने, उस के कान में पिघला सीसा डाल देना चाहिए. जो शूद्र वेद की ऋचा पढ़े, उस की जीभ काट लेनी चाहिए.

‘रामायण’ हो या ‘महाभारत’, इन सारे ग्रंथों में जिन देवीदेवताओं का बखान किया गया है, वे ज्यादातर ऊंची जाति के ही हैं. यही वजह रही है कि अगड़ों को आज तक ऊंचा दर्जा मिला हुआ है और निचलों को अछूत सम झा जाता रहा है.

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जिन लोगों ने आज भी पढ़ाईलिखाई पर कब्जा किया हुआ है, उन की आबादी देश में सिर्फ 15 फीसदी है और लोकतंत्र के चारों खंभों कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और पत्रकारिता पर भी इन्हीं अगड़ों का ही कब्जा है.

रिजर्वेशन की वजह से निचले तबके के जो लोग नौकरी पा गए और आरक्षित सीटों से जनप्रतिनिधि बने, वे भी ब्राह्मणवादियों के पालतू तोते की तरह उन का ही राग अलापते रहे हैं. एक साजिश के तहत वे सिर्फ अमीरों के लिए पढ़ाईलिखाई लागू करने में कामयाब हो गए हैं. अमीर बाप के बेटे, जो कंपीटिशन से डाक्टर या इंजीनियर नहीं बन पा रहे हैं, प्राइवेट कालेजों से देशविदेश कहीं से भी डाक्टरइंजीनियर की डिगरी ले कर नौकरी कर रहे हैं.

गरीब और मिडिल क्लास परिवार के बच्चे अगर कंपीटिशन में पास हो भी जाते हैं तो उन के लिए पढ़ाईलिखाई के सरकारी संस्थानों का खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता है.

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