Bigg Boss 13: सबसे ज्यादा रकम चार्ज करने वाला कंटेस्टेंट होगा घर से बेघर

टेलीविजन इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा टी.आर.पी गेन करने वाला कलर्स टी.वी का रीएलिटी शो बिग बौस का सीजन 13 इन दिनों काफी सुर्खियों में है. दरअसल ऐसा हर बार देखने को मिलता है कि बिग बौस के घर में लड़ाई झगडे और एंटरटेनमेंट का तड़का लगता ही रहता है लेकिन इस बार सीजन की शुरूआत से ही घरवालों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहां. बिग बौस सीजन 13 की शुरूआत से ही घरवालों ने अपने असली रूप दिखाने शुरू कर दिए थे.

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7 सदस्य हैं नोमिनेटिड…

हाल ही में केटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला को माहिरा शर्मा को चोंट पहुंचाने के लिए 2 बिग बौस नें 2 हफ्ते तक नोमिनेट रहने की सजा सुनाई थी तो वहीं बीते एपिसोड में पंजाब की कैटरीना कैफ यानी शहनाज गिल को बिग बौस नें उनकी बात ना मानने के लिए 1 हफ्ते के लिए नोमिनेट कर दिया है. इस समय घर के अंदर 7 सदस्य नोमिनेटिड हैं जिसमें से पारस छाबड़ा, शहनाज गिल, सिद्धार्थ शुक्ला, शैफाली जरीवाला, अरहान खान, तहसीन पूनावाला और माहिरा शर्मा का नाम शामिल है.

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सिद्धार्थ शुक्ला को मिले सबसे ज्यादा वोट्स…

हाल ही में आई खबरों की मानें तो कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा, शहनाज गिल, सिद्धार्थ शुक्ला, शैफाली जरीवाला, को सबसे ज्यादा वोट्स मिले हैं तो इन में से कोई घर से बेघर नहीं होगा पर कंटेस्टेंट अरहान खान, तहसीन पूनावाला और माहिरा शर्मा के ऊपर खतरे की तलवार लटक रही है. वोटिंग ट्रेंड की मानें तो सिद्धार्थ शुक्ला इस लिस्ट में सबसे पहले नंबर पर हैं तो वहीं इस शो की एंटरटेनर शहनाज गिल दूसरे स्थान पर हैं. शैफाली जरीवाला और पारस छाबड़ा तीसरे और चौथे स्थान पर है. लेकिन इसके बाद अरहान खान पांचवे स्थान पर हैं और माहिरा शर्मा छठे स्ठान पर. अगर बार करें उस कंटेस्टेंट की जिसे इस सब में से सबसे कम वोट्स मिले हैं तो वो हैं तहसीन पूनावाला.

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1 हफ्ते के 21 लाख रूपए…

ये सब देखने से तो ऐसा लग रहा है कि सबसे कम वोट्स की वजह से कंटेस्टेंट तहसीन पूनावाला इस हफ्ते घर से बेघर हो सकते हैं. खबरों के आधार पर एक और बात सामने निकल कर आई है जो ये है कि तहसीन पूनावाला इस शो में सबसे ज्यादा रकम लेने वाले कंटेस्टेंट हैं. तहसीन को बिग बौस के घर से 1 हफ्ते के 21 लाख रूपए मिल रहे हैं. दर्शकों के मन में इस बार को लेकर काफी खलबली मची हुई है कि इस वीकेंड के वौर में कौन होगा बिग बौस के घर से बेघर.

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सेक्स स्कैंडल में फंसे नेता और संत

इस कड़ी में नया नाम मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता, राम मंदिर के आंदोलनकारी, केंद्र में गृह राज्यमंत्री और सांसद रह चुके स्वामी चिन्मयानंद का है.

इन्हीं स्वामी चिन्मयानंद के ऊपर यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाया गया है. ऐसे आरोप लगने वाले संतों में आसाराम बापू, नित्यानंद, राम रहीम के साथसाथ नेताओं में उत्तर प्रदेश से भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर, समाजवादी पार्टी में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति, बहुजन समाज पार्टी के नेता पुरुषोत्तम द्विवेदी के अलावा अमरमणि त्रिपाठी और आनंदसेन जैसे कई नाम शामिल हैं.

इन सभी संतों और नेताओं में स्वामी चिन्मयानंद का नाम सब से चौंकाने वाला है क्योंकि वे नेता और संत दोनों रहे हैं और राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहे हैं.

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शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम को मोक्ष मिलने की जगह बताया जाता है. शाहजहांपुर में यह आश्रम धार्मिक आस्था का एक बड़ा केंद्र माना जाता है. यह आश्रम शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर और बसअड्डे से तकरीबन 2 किलोमीटर दूर है.

शाहजहांपुरबरेली हाईवे पर मुमुक्षु आश्रम तकरीबन 21 एकड़ जमीन पर बना है. इस के परिसर में ही इंटर कालेज से ले कर डिगरी कालेज तक 5 शिक्षण  संस्थान चलते हैं.

मुमुक्षु आश्रम का दायरा शाहजहांपुर के बाहर दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश तक फैला है.

मुमुक्षु आश्रम की ताकत का ही फायदा ले कर साल 1985 के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के साथसाथ अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई थी. वे 3 बार सांसद और एक बार केंद्र सरकार में गृह राज्यमंत्री बने. दूसरों को मोक्ष देने का दावा करने वाला मुमुक्षु आश्रम स्वामी चिन्मयानंद को मोक्ष की जगह जेल के पीछे भेजने का जरीया बन गया.

स्वामी सुखदेवानंद ला कालेज में कानून की पढ़ाई करने वाली 24 साल की एक लड़की ने जब मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाया, तो पूरा देश सन्न रह गया. लेकिन बाद में स्वामी चिन्मयानंद ने यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भिजवा दिया.

नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते वीडियो के सामने आने पर खुद स्वामी चिन्मयानंद ने जनता से कहा था कि वे अपनी इस हरकत पर शर्मिंदा हैं.

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स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वे राम मंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में शामिल थे, जो मंदिर बनवाने की राजनीति कर रहे थे. भाजपा ने स्वामी चिन्मयानंद को 3 बार लोकसभा का टिकट दे कर सांसद बनाया और अटल सरकार में मंत्री बनने का मौका भी दिया.

स्वामी चिन्मयानंद उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के परसपुर क्षेत्र के त्योरासी गांव में साल 1947 में जनमे थे. उन का असली नाम कृष्णपाल सिंह है. साल 1967 में 20 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद वे हरिद्वार पहुंच गए. वहां उन का नाम स्वामी चिन्मयानंद हो गया.

तथाकथित संत होने के साथसाथ स्वामी चिन्मयानंद ने जेपी आंदोलन में भाग लिया. इमर्जैंसी में वे जेल गए. जनता पार्टी की सरकार बनी तो चिन्मयानंद शाहजहांपुर आ गए और स्वामी सुखदेवानंद के साथ रहने लगे.

स्वामी सुखदेवानंद की भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी से जानपहचान थी. यहीं चिन्मयानंद की मुलाकात भी उन से होती थी. राजनीति में दिलचस्पी रखने के चलते चिन्मयानंद उन के बेहद करीब हो गए.

‘सुखदेवानंद आश्रम’ की कुरसी पर चिन्मयानंद के बैठने के बाद वे उत्तर प्रदेश में प्रमुख संत नेता के रूप में उभरने लगे. यहीं से वे विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में भी आ गए.

यही वह समय था, जब विश्व हिंदू परिषद उत्तर प्रदेश में राम मंदिर को ले कर आंदोलन चला रही थी. उस के लिए मठ, मंदिर और आश्रम में रहने वाले संत मठाधीश बहुत खास हो गए थे.

विश्व हिंदू परिषद के अघ्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने उत्तर प्रदेश में जिन आश्रम के लोगों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा, उन में गोरखपुर जिले के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ और शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद और अयोध्या के महंत परमहंस दास प्रमुख थे.

विश्व हिंदू परिषद ने जब ‘राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति’ का गठन किया तो स्वामी चिन्मयानंद को उस का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया.

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बचाव के लिए वीडियो

पीडि़त लड़की ला कालेज में एलएलएम यानी मास्टर औफ ला की पढ़ाई कर रही थी. वह यहीं होस्टल में रहती थी. होस्टल में रहने के दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद की उस पर निगाह पड़ी. पढ़ाई के साथसाथ उसे कालेज में ही नौकरी भी दे दी गई थी.

लड़की सामान्य कदकाठी और गोरे रंग की थी. कालेज में पढ़ने वाली दूसरी लड़कियों की तरह उसे भी स्टाइल के साथ सजसंवर कर रहने की आदत थी. स्वामी चिन्मयानंद ने कई बार उस के जन्मदिन की पार्टी में भी हिस्सेदारी की थी.

लड़की की स्वामी चिन्मयानंद के करीबी होने की अपनी अलग कहानी है. पीडि़त लड़की का कहना है कि उसे योजना बना कर फंसाया गया. वह कहती है कि जब वह होस्टल में रहने आई तो एक दिन नहाते समय चोरी से उस का वीडियो बना लिया गया. इस के बाद उस वीडियो को वायरल कर के बदनाम करने की धमकी दे कर स्वामी चिन्मयानंद ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बलात्कार की भी वीडियो बनाई गई. इस के बाद उस के शोषण का सिलसिला चल निकला.

स्वामी चिन्मयानंद को मसाज कराने का बेहद शौक था. मसाज के दौरान ही वे कई बार सेक्स भी करते थे. अपने शोषण से परेशान लड़की ने अब इस तरह के वीडियो को बनाने का काम शुरू किया.

पीडि़त लड़की ने स्वामी चिन्मयानंद के तमाम वीडियो पुलिस को सौंपे हैं. इन में से 2 वीडियो वायरल भी हो गए. इन वीडियो में चिन्मयानंद नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते हुए देखे जाते हैं. इस में वे लड़की से बात कर रहे हैं. स्वामी खुद पूरी तरह से नग्नावस्था में हैं. लड़की से संबंध की बातें करते भी सुने जाते हैं. उन की आपसी बातचीत से ऐसा लग रहा है, जैसे उन दोनों के बीच यह सामान्य घटना है.

पीडि़त लड़की ने मसाज वाले ये दोनों वीडियो अपने चश्मे में लगे खुफिया कैमरे से तैयार किए थे. खुद को फ्रेम में रखने के लिए वह अपना चश्मा मेज पर उतार कर रखती थी, जिस से स्वामी चिन्मयानंद के साथ वह भी कैमरे में दिख सके. यह चश्मा लड़की ने औनलाइन शौपिंग से मंगवाया था.

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आरोप में घिरी सरकार

स्वामी चिन्मयानंद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच गहरा रिश्ता है. 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर बनवाने के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम किया था. दोनों ने मिल कर ‘राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति’ बनाई थी. ऐसे में उन के बीच एक करीबी रिश्ता था.

अटल सरकार में मंत्री पद से हटने के बाद ही स्वामी चिन्मयानंद का राजनीतिक रसूख हाशिए पर सिमट गया था. साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो स्वामी चिन्मयानंद का रसूख काफी बढ़ गया था. मुमुक्षु आश्रम का दरबार सत्ता का एक केंद्र बन गया था.

स्वामी चिन्मयानंद पर शोषण और बलात्कार का आरोप लगने के बाद जिस तरह से पीडि़त लड़की के खिलाफ रंगदारी मांगने और उस को पकड़

कर जेल में भेजा गया. उस के बाद विरोधी दल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ स्वामी चिन्मयानंद को बचाने के आरोप लगाने लगे.

समाजवादी पार्टी की नेता रिचा सिंह एक प्रतिनिधिमंडल के साथ शाहजहांपुर जेल में रंगदारी मांगने के आरोप में बंद आरोपी लड़की से मिलने गईं. जेल प्रशासन ने उन को मिलने नहीं दिया. इस बात के विरोध में सपा नेता जेल के गेट पर ही धरना देने लगे.

प्रतिनिधिमंडल में सपा नेता रिचा सिंह के साथ साबिया मोहानी, नाहिद लारी खान, निधि यादव, खुशनुमा, रेखा उपाध्याय प्रमुख थीं. सपा नेता पीडि़त लड़की के परिवार से मिले. परिवार के लोगों का दर्द सुन कर सपा नेताओं ने आरोप लगाया कि एक तरफ बलात्कार व शोषण के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद को इलाज के नाम पर अस्पताल में रखा गया, वहीं रंगदारी के फर्जी मुकदमे में लड़की को जेल भेज दिया गया.

समाजवादी पार्टी ही नहीं, ‘एडवा’ की नेताओं ने भी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गांधी प्रतिमा के पास धरना दिया.

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‘एडवा’ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली ने कहा कि पीडि़ता के बयान में बलात्कार का आरोप लगाने के बाद भी केस को कमजोर करने के लिए स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ जांच करने वाली एसआईटी ने बलात्कार का मुकदमा न दर्ज कर धारा 376 सी का मुकदमा लिखा है.

सुभाषिनी अली ने कहा कि सरकार किस तरह से स्वामी चिन्मयानंद को बचाने का काम कर रही है, यह दोनों मुदकमों में सम झा जा सकता है. कानून कहता है कि 7 साल से कम सजा के मामले में गिरफ्तारी जरूरी नहीं होती. रंगदारी के मामले में 3 साल की सजा का प्रावधान है. इस के बाद भी बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की को जेल भेज दिया गया.

‘एडवा’ नेताओं में सीमा कटियार, सुमन सिंह, सीमा राणा, नीलम तिवारी और सुधा सिंह शामिल रहीं.

कांग्रेस ने भी लखनऊ से शाहजहांपुर तक ‘न्याय यात्रा’ का आयोजन किया, पर सरकार ने कांग्रेस नेताओं को ‘न्याय यात्रा’ नहीं निकालने दी.

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क्या करें जब लग जाए आग

19 जून को लखनऊ के व्यस्ततम इलाके चारबाग में 2 होटलों में भीषण आग लगने से 5 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए.

13 जून को मुंबई के वर्ली में प्रभादेवी इलाके की व्यूमौंट बिल्डिंग में भीषण आग लग गई. आग इतनी भीषण थी कि दमकल की 6 बड़ी गाडि़यों व 5 टैंक मिल कर भी आग को घंटों बाद काबू कर पाए. 33 मंजिला इस टावर में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का भी एक फ्लैट है. आग पर काबू पाने में लगा घंटों का समय बताता है कि अगर सुरक्षा के इंतजाम न होते तो कई जानें जातीं.

बहरहाल, आग लगते ही धुएं से भरे स्थान पर, बस, एक ही पल में हम क्या निर्णय लेते हैं, उसी निर्णय पर, उसी पल पर निर्भर करता है कि हम अपने जीवन की सुरक्षा कर पाएंगे या नहीं. हम में से कोई भी किसी अनिष्ट की कल्पना नहीं करना चाहता, पर आगे के कदम के बारे में प्लान बना कर हम खुद को और अपने प्रियजनों को सुरक्षित कर सकते हैं.

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फायर ऐंड सेफ्टी एसोसिएशन के प्रमुख पंकज का कहना है, ‘‘हमारे देश में आग से बचने के तरीकों व सावधानियों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. ज्यादातर बिल्डर्स इसे गैरजरूरी समझते हैं कि आग लगने पर इस्तेमाल किए जाने वाले आवश्यक साधनों पर खर्च किया जाए. आप जब नई बिल्डिंग्स के विज्ञापन देखते हैं तो आप को उस में स्विमिंग पूल और लैंडस्केप दिखाए जाते हैं, लेकिन कभी यह नहीं बताया जाता कि आग लगने पर सुरक्षा के क्या साधन उपलब्ध हैं.’’

फायर एडवायजर पी देशमुख का इस बारे में कहना है, ‘‘रोकथाम और सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए. हर प्रौपर्टी, रैजीडैंशियल हो या कौमर्शियल, में बाहर निकलने के लिए उपयुक्त सीढि़यां होनी चाहिए. साल में कम से कम 2 बार सेफ्टी औडिट्स होने चाहिए और यह चैक कर लेना चाहिए कि आग बुझाने वाले सभी यंत्र, अलार्म सही हैं और ठीक तरह से काम कर रहे हैं.’’

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आग से बचाव के लिए विशेषज्ञों के मुताबिक निम्न बातों की सभी को जानकारी होनी आवश्यक है-

  • सीढि़यों, दरवाजों और गलियारों में सामान न रखें. आग लगने पर लोग इन्हीं रास्तों से बाहर भागते हैं. आग लगते ही बिल्डिंग से बाहर निकल जाना चाहिए.
  • आग लगने पर फायर ब्रिगेड की गाड़ी को पहुंचने में 20 से 30 मिनट लग ही जाते हैं, इसलिए सुरक्षा आप की जागरूकता पर निर्भर करती है. अकसर कई बिल्ंिडग्स में आग बुझाने वाले यंत्र ऐसी जगह पर रहते हैं जहां वे दिखते ही नहीं हैं. याद रखिए, ऐसी स्थिति में आप के पास क्षणिक समय होता है, जिस में कुछ आवश्यक कदम उठा कर आप अपना और अपने प्रियजनों का जीवन बचा सकते हैं.

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  • लोग इस आशंका पर कम ही ध्यान देते हैं कि उन के घरों में उन की अनुपस्थिति में भी आग लग सकती है. यदि आप के घर में बुजुर्ग मातापिता, छोटे बच्चे हैं तो अपने पड़ोसियों को इन के बारे में जरूर बता कर रखें. आग लगने पर सब से पहले खुद को सुरक्षित करें, फिर परिवार के अन्य सदस्यों की सहायता करें. याद रखें, यदि आप अक्षम हो गए तो किसी की भी सहायता नहीं कर पाएंगे.
  • यदि धुआं है तो अपना सिर नीचे रखें. यदि कोई भी सुरक्षा उपाय नहीं है तो अपना रूमाल पानी में भिगोएं और उसे अपनी नाक पर रख लें. यह कार्बन कणों को कुछ दूर करेगा, आप अच्छी तरह सांस ले सकेंगे.
  • यदि कमरे में आग लग गई है और दरवाजा बंद है तो तुरंत दरवाजा न खोलें. पहले हाथ से दरवाजा छुएं कि कितना गरम है. यदि ज्यादा गरम नहीं है तो घुटनों पर झुक जाएं ताकि जब आप दरवाजा खोलें तो लपटों या धुएं से नुकसान कम से कम हो. धुआं या लपटें दिखें तो फौरन दरवाजा बंद कर दें. आपातकालीन सेवा से संपर्क करें और स्थान खाली कर दें.

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  • आग लगने पर तुरंत बाहर चले जाएं. यदि बाहर नहीं जा सकते और कमरा धुएं से भर गया है, तो ताजी हवा के लिए तुरंत खिड़कियां खोल दें. जितना धुआं आप की सांसों में जाएगा, उतनी ही स्थिति प्रतिकूल हो जाएगी. धुएं से अगर कोई बेहोश हो जाए तो यथाशीघ्र उसे हवादार जगह पर शिफ्ट कर दें.
  • हर व्यक्ति को बेसिक लाइफ सपोर्ट की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. इस से आप विषम परिस्थितियों में भी लोगों की जान बचा सकते हैं.
  • आग लगने पर लिफ्ट का प्रयोग न करें. सीढि़यों से उतरने में ही सुरक्षा है.
  • यदि कोई व्यक्ति आग से झुलस गया हो तो उसे जमीन पर न लिटाएं. उसे कंबल या किसी भारी कपड़े में लपेटने की कोशिश करें.

विशेषज्ञों द्वारा बताई गई इन बातों की सभी को जानकारी होनी जरूरी है ताकि अनहोनी होने पर सभी अपनी व अपने प्रियजनों की जान बचा सकें.

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“बायपास रोड”: ऊंची दुकान फीका पकवान

रेटिंग: दो स्टार

निर्माताः मदन पालीवल और नील नितिन मुकेश

निर्देशकः नमन नितिन मुकेश

कलाकारः नील नितिन मुकेश, अदा शर्मा, शमा सिकंदर, गुल पनाग, सुधांशु पांडे, रजित कपूर, मनीश चैधरी, ताहिर शब्बीर

अवधिः दो घंटे 17 मिनट

धन दौलत के लोभ में इंसान किस कदर गिर गया है, उसी के इर्द गिर्द घूमती कहानी पर नमन नितिन मुकेश के रहस्यप्रधान रोमांचक फिल्म ‘‘बाय पास रोड’’ लेकर आए हैं, जो कि प्रभावित नही करती.

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कहानीः

अलीबाग में रह रहे मशहूर फैशन डिजाइनर विक्रम कपूर (नील नितिन मुकेश) जिस दिन घातक दुर्घटना का शिकार होते है, उसी दिन उनकी कंपनी की सेक्सी और नंबर वन मौडल सारा ब्रिगेंजा (शमा सिकंदर) की अपने घर में रहस्यमयी मौत होती है. मीडिया को लगता है कि इन दोनों हादसों का आपस में कोई न कोई गहरा रिश्ता जरूर है. सारा की मौत पहली नजर में आत्महत्या लगती है. जबकि इस हादसे में विक्रम को कुचल कर मारने की कोशिश की जाती है.

फिर कहानी अतीत में जाती है, जहां विक्रम और सारा के अतिनजदीकी रिश्तों का सच सामने आता है. हालांकि विक्रम अपनी ही कंपनी में इंटर्नशिप करने वाली डिजाइनर राधिका (अदा शर्मा) से प्यार करते है और सारा ब्रिगेंजा भी जिम्मी (ताहिर शब्बीर) की मंगेतर हैं.

अस्पताल में पता चलता है कि विक्रम के दोनों पैर बेकार हो चुके हैं और अब उन्हें सिर्फ व्हील चेअर का ही सहारा हैं. जब विक्रम अस्पताल से अपने पिता प्रताप कपूर (रजित कपूर) के साथ अपने घर पहुंचता है, तो घर पर उनकी सौतेली मां रोमिला (गुल पनाग), सात आठ वर्षीय सौतेली बहन नंदिनी (पहल मांगे) और नौकर की मौजूदगी के बावजूद हादसे का शिकार होते-होते बचते हैं.

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उधर पुलिस अफसर हिमांशु रौय (मनीष चैधरी) सारा की मौत का सच जानने उजागर करने पर आमादा है. हिमांशु रौय को सारा के मंगेतर जिम्मी के अलावा विक्रम के व्यावसायिक प्रतिद्वंदी नारंग (सुधांशु पांडे) पर शक है. पुलिस की जांच अलग चल रही है, तो वहीं व्हील चेअर पर रहेन वाले विक्रम को मारने की कई बार कोशिश होती है. इसी बीच कुछ अन्य हत्याएं भी हो जाती हैं. अंततः सच सामने आता ही है.

लेखनः

अभिनय करने के साथ फिल्म की पटकथा व संवाद नील नितिन मुकेश ने ही लिखी है. उन्होने पूरी कहानी को अपनी तरफ से जलेबी की तरह घुमाते हुए रहस्य का जामा पहनाने का भरसक प्रयास किया है. पर वह पूरी तरह से इसमें सफल नहीं हुए.

कहानी पुरानी ही है. इस तरह की कहानी तमाम सीरियल व अतीत में कुछ फिल्मों में आ चुकी है. फिल्म का क्लायमेक्स तो लगभग हर रहस्यप्रधान सीरियल से मिलता जुलता है. वर्तमान से बार बार अतीत में जाने वाली कहानी काफी कन्फ्यूजन पैदा करती है. कहानी में कई कमियां हैं. एक दृष्य में सारा का प्रेमी जिम्मी पुलिस से भगते हुए कदई मंजिल उपर से नीचे गिरता है. पुलिस उसके पास पहुंच जाती है. और उसे देखकर वह मृत समझती है, पर इंटरवल के बाद जिम्मी पुनः कहानी में नजर आने लगते हैं. कुछ चरित्र ठीक से विकसित नही किए गए. फिल्म के कुछ संवाद बहुत सतही है. कुल मिलाकर फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी नील नितिन मुकेश का लेखन है.

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निर्देशनः

अपने समय के मशहूर गायक स्व.मुकेश के पोते, गायक नितिन के बेटे व नील नितिन मुकेश के छोटे भाई नमन नितिन मुकेश ने ‘‘बायपास रोड’’ से पहली बार निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा है. तकनीकी दृष्टिकोण से देखें, तो वह पूरी तरह  से सफल रहे हैं. मगर कथा व पटकथा की मदद न मिलने के कारण उनका सारा प्रयास विफल हो गया.

अभिनयः

विक्रम के किरदार को नील नितिन मुकेश ने इमानदारी व शानदार अभिनय के साथ निभाया है. अदा शर्मा ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है. रजित कपूर, शमा सिकंदर और मनीश चैधरी अपनी छाप छोड़ जाते हैं. इसके अलावा अन्य कलाकारों के चरित्र लेखक की कमजोरी की भेंट चढ़ गए.

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‘‘सोशल मीडिया की वजह से नकारात्कमता फैल गई है.’’ -रजित कपूर

1992 में श्याम बेनेगल के निर्देशन में फिल्म ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ से फिल्मों में कदम रखने वाले रजित कपूर पिछले चालिस वर्षों से थिएटर से जुड़े हुए हैं. उन्होने टीवी पर भी काफी काम किया है. 1996 में फिल्म ‘‘द मेकिंग औफ महात्मा’’ के लिए उन्हे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया. 27 वर्षों से फिल्मों में काम करते आ रहे हैं. फिल्म ‘राजी’ से उन्हे एक नई पहचान मिली. अब वह नमन नितिन मुकेश निर्देशित फिल्म ‘‘बायपास रोड’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि आठ नवंबर को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

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हाल ही में उनसे एक्सक्लूसिब बातचीत हुई….

आप खुद अपने 27 साल के कैरियर कों किस जगह देख रहे हैं?

– पता नहीं.यह ऊपर वाले की मेहरबानी है. इन 27 सालों में इतने अच्छे अच्छे किरदार निभाने का मौका मिला है. इसी तरह आगे भी अच्छे किरदार निभाने का मौका मिलता रहे, यही इच्छा है.

आपके कैरियर में कौन-कौन से टर्निंग प्वाइंट्स रहे?

– सबसे पहला टर्निंग प्वाइंट फिल्म ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ रही. क्योंकि वह मेरी पहली फिल्म थी. इसमें मुझे श्याम बेनेगल के निर्देशन में काम करने का असवर मिला था. उसके बाद ‘द मेकिंग ऑफ महात्मा’ के लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. यह भी मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट था. व्यावसायिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए, तो फिल्म ‘‘गुलाम’’ थी, यह भी व्यावासयिक दृष्टिकोण से मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट था. शायद कुछ हद तक इसके बीच में औफर इतने ज्यादा खराब थे कि मैंने काम करना छोड़ दिया था. इसलिए फिल्म ‘‘राजी’’ के बाद फिर से वापस दर्शकों की निगाहों में बस जाना भी एक टर्निंग प्वाइंट हो सकता है. क्योंकि ‘राजी’और ‘उरी’ दोनों लगभग एक साथ आई थीं.  तो कई लोगों को लगा कि मैं बीच में गायब क्यों हो गया था. मैंने कहा कि अच्छे किरदार कहां थे? जब अच्छे किरदार ही नहीं थे, तो मैं उन्हें कैसे निभाता.

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मैंने सुना है कि आप पहले ‘‘राजी’’ करना ही नहीं चाह रहे थे..

– नही.. ऐसी बात नहीं है कि मैं करना नहीं चाह रहा था. शुरूआत में उन्हे जो तारीखें चाहिए थीं, वह मेरे पास नही थी. पर बाद में उनकी शूटिंग की तारीखें बदलीं, तो मैने कर लिया. शायद जो होना होता है, वह होता ही है. शायद ‘राजी’ का हिस्सा बनना मेरे लिए तय था.

अभी आपने कहा कि बीच में आपको काम नहीं मिल रहा था?

– ऐसा नहीं है कि काम नहीं मिल रहा था, काम तो थे, लेकिन वह दिलचस्प नहीं थे.

जिस तरह के किरदार या जिस तरह की फिल्मों से आप जुड़ना चाह रहे थे, वह नहीं मिल रहे थे, यदि ऐसा है. तो क्या उस समय सिनेमा में कुछ गड़बड़ी थी?

– शायद लोग लेखनी पर, स्क्रीनप्ले पर काम नहीं कर रहे कर रहे थे. बहुत ही वाहियात चीजें लिखकर आती थीं. लोग ऐसी चीजें लिखकर मेरे पास आ रहे थे, जिनमें मुझे दिलचस्पी नहीं थी. पर मुझे लगता है कि अब लोग लेखक व लेखकी की लेखनी की कद्र करने लगे हैं.

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यह बदलाव कैसे आया, क्या अब फिल्मकार लेखक को अच्छे पैसे देते हैं?

– पता नहीं. मगर अब फिल्मकार लेखक को इज्जत तो देने लगे हैं. और अब लेखक को पैसे भी मिलने लगे हैं. अब फिल्में भी पैसा कमाने लगी हैं. अगर आप उसकी कद्र करोगे, आप उसके कद्र के पैसे भी दोगे, तो फायदा आपको होगा. यह तो होना ही था. अब क्यों यह चीज हुई? जब एक बार खाई में गिरते हैं, तो उसके बाद आप फिर से उठना चाहेंगें ही.

सिनेमा काफी बदल गया. मल्टीप्लेक्स का जाल फल गया. स्टूडियो सिस्टम हो गया. क्या इससे वास्तव में सिनेमा बदला है या सिर्फ बातें हो रही?

– बदलाव इस मायने में है कि प्लेटफौर्म बढ़ गए हैं. पहले सिर्फ सिनेमा व टीवी था. अब यूट्यूब है. वेब सीरीज है. कंप्यूटर है. नेटफ्क्लिस, अमेजौन, आल्ट बालाजी सहित कई ओटीटी प्लेटफार्म हैं.अब तो लोग फोन से भी फिल्में बनाकर दे रहे हैं. यह जो फैलाव हुआ है, उसके चलते अब ज्यादा लोग इसमें जुड़ रहे है. इससे कलाकार ही नही लेखक व निर्देशक सहित हर तरह के लोगों को काम मिल रहा है. अब तकनीक के कारण तकनीशियन को भी फायदा हो रहा है.

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फिल्म‘‘बायपास रोड’’ क्या है. आप इसमें क्या कर रहे हैं?

– यह एक रोमांचक फिल्म है. पिछले चार-पांच वर्षों से शायद मैं स्पेशल अपियरेंस ही करता आ रहा हूं. पर इस फिल्म में मेरा स्पेशल अपियरेंस नहीं है. इसमें मेरा बाकायदा एक लबा किरदार है. मैंने विक्रम के पिता प्रताप का किरदार निभाया है. एक पिता जो अपने बेटे के साथ जुड़ा हुआ है.

आपको नहीं लगता फिल्म में बहुत लंबे समय से पारिवारिक रिश्ते गायब हो गए हैं?

– यह दौर दौर की बात है. जहां से हमने शुरुआत की थी. 1960 में तो संयुक्त परिवार हुआ करते थे. अब एकाकी परिवार हो गए हैं. अब तलाक सबसे ज्यादा हो रहे हैं. तो इसका प्रतिबिंब सिनेमा में नजर आ रहा है. जातीय जिंदगी में जो हो रहा है, उसका कहीं ना कहीं असर सिनेमा पर पड़ता ही है. निजी जिंदगी में लोगों में रिश्तो की अहमियत कम हो गई है. तो वही चीज पर्दे पर दिखना ही दिखना है. अब आप मोबाइल से सिर्फ संदेष भेजते हैं. अब आप शायद लोगों से जाकर मिलते भी नहीं हैं. रिश्तेदारों से या दोस्तों से अब ‘हेलो गुड मैर्निंग’ या‘ हैप्पी दिवाली’ व्हाट्सएप पर ही हो जाती है.

आप मानते है कि बदलते जमाने के चलते परिवार के साथ साथ सारे रिश्ते खत्म हो गए हैं?

– तेजी से हो रहे हैं. जो दिखता है, उसका असर तो होगा ही. लोग गांव छोड़कर शहर में आ रहे हैं. तो शहर फैलने लगे. पहले गांव ही थे. शहर तो थे नहीं. तो बदलाव तो होना ही है.

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रिश्तो में जो दरारे आ रही हैं. इसमें सोशल मीडिया की कितनी भूमिका है?

– यह एक अलग ही पहलू है. मेरे हिसाब से सोशल मीडिया की वजह से नकारात्कमता फैल गई है. कोई कुछ भी बकवास कर रहा है. किसी की भी आलोचना कर रहा है. किसी को भी नंगा करने का उसे हक मिल गया है. आपके पास ‘फ्रीडम औफ स्पीच’ है, आपके पास जुबान है. लेकिन बोलने से पहले सोचना जरूरी है. पर हमने समझना व सोचना छोड़ दिया है. शायद हम भूल गए कि हम जो कह रहे हैं, उसका प्रभाव क्या है? किस पर और कितना है?

आप कुछ सोशल मीडिया पर कितना रहना पसंद करते हैं?

– बिल्कुल नहीं…

आप थिएटर से भी जु़डे रहे हैं. भारत में हिंदी थिएटर को अच्छे साधन क्यों नहीं मिल पाते? दूसरी ओर पारसी थियेटर की परंपरा भी खत्म हो रही है. ऐसा क्यों हुआ?

– पहले पारसी थियेटर को आर्थिक मदद मिलती थी. हिंदी थिएटर को आर्थिक मदद कभी नहीं मिली. हर चीज को सरकार की मदद पर नही चलाया जा सकता. प्राइवेट इंडस्ट्री का जो कमर्शियल सेटअप है, उसे आगे आकर हिंदी थिएटर की मदद करनी चाहिए. अब तो हिंदी में बोलना भी कम हो गया है.

गुजराती और मराठी थिएटर तो काफी आगे बढ़ रहे हैं?

– जी हां. क्योंकि उनके पास सपोर्ट है. गुजराती थिएटर सपोर्ट करने के लिए प्रोड्यूसर हैं. वह अपने गुजराती नाटक सिर्फ भारत में ही नहीं अमरीका व कनाडा तक लेकर जाते हैं. इसलिए वह आज भी जिंदा है. मगर हिंदी थिएटर के पास कोई सपोर्ट नही है. इसके लिए आम लोग ही जिम्मेदार हैं. लोग हिंदी थिएटर देखने के लिए आते ही नहीं है. जब हिंदी नाटक ज्यादा लोग देखने जाएंगे, तो ज्यादा नाटकों का निर्माण होगा. मैं सिर्फ किसी एक इंसान को दोश नही दे रहा, बल्कि थिएटर को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सामूहिक है.

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आप टीवी से भी जुड़े रहे हैं. आज टीवी के जो हालात हैं, उसे किस तरह से देखते हैं?

– कहानी व पटकथा लेखन पर जब काम नहीं होगा, तो कचरा ही निकलेगा. सोच छोटी रहेगी. अक्ल छोटी रहेगी. सोच नजरिया सब छोटा रहेगा. तो टीवी को लेकर क्या बात करूं. इसे इससे जुड़े लोगो ने ही कमतर बना डाला.

अब आप किस तरह से आगे जाना चाह रहे हैं?

– सच कहूं तो मैंने सोचा नहीं है. पर चिंता इस बात की है कि हम अगली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं? हो सकता है कि अगले कुछ वर्ष में आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करना चाहूं. फिलहाल इसी दिशा में मेरा ध्यान है.

कोई नया नाटक कर रहे हैं?

– नया नहीं. मगर दो तीन नाटक चल रहे हैं. जिन्हें लेकर हम घूम रहे हैं. हम अपने नाटक को लेकर औस्ट्रेलिया भी जा रहे हैं. एक हिंदी नाटक नाटक ‘मौसमी नारंगी’ है. जबकि दूसरा अंग्रेजी नाटक ‘एल एन ग्री’ का हिंदी में एक अनुवाद हुआ था. फिर एक नाटक ‘फ्यू गुड मैन’ है. तीन चार नए नाटक है. अगले 2 माह मेरा समय इन्ही नाटको के साथ गुजरेगा.

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Bigg Boss 13: इस कंटेस्टेंट पर भड़के फैंस, सिद्धार्थ शुक्ला को दिखाया जूता

बिग बौस के घर में आए दिने कुछ ना कुछ अलग और नया दर्शकों को देखने को मिलता ही रहता है. हाल ही में कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला को माहिरा शर्मा के साथ हाथापाई करने के लिए बिग बौस नें उन्हें 2 हफ्ते तक नोमिनेट रहनें की सजा सुनाई. अगर बात करें बिग बौस के लक्जरी बजट टास्क बीबी ट्रांसपोर्ट की तो टास्क के दौरान दर्शकों को कंटेस्टेंट के बीच काफी लड़ाई झगड़े देखने को मिले.

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सिद्धार्थ नें उड़ाया माहिरा की हार का मजाक…

टास्क के पहले राउंड में सिद्धार्थ की टीम जीत जाती है जिसके बाद सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज पारस छाबड़ा और माहिरा शर्मा का खूब मजाक उड़ाते हैं. टास्क के बीच सिद्धार्थ और उनकी टीम माहिरा के सामनें बैठ जाती है और माहिरा का जमकर मजाक बनाती है. इसी के चलते माहिरा को काफी गुस्सा आता है और वे एक बार फिर सिद्धार्थ शुक्ला को अपना जूता दिखाती हैं.

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शहनाज गिल माहिरा को कहती हैं कि…

इस दौरान सिद्धार्थ शुक्ला की सबसे अच्छी दोस्त और पंजाब की कैटरीना कैफ यानी कि शहनाज गिल माहिरा को कहती हैं कि, ‘जब दिखाना ही है तो ढंग से दिखा’. लेकिन इस बात का माहिरा पर कोई असर ना पड़ा और उन्होनें लगातार अपना जूता सिद्धार्थ की ओर ही रखा.

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माहिरा पर भड़के बिग बौस के फौलोवर्स…

इतना ही नहीं बल्कि माहिरा सिद्धार्थ के सामने काफी बेढंगे तरीके से आवाजें निकालती हैं जिस तरह से लोग कुत्ते को बुलाते हैं जिसके जवाब में सिद्धार्थ बोलते हैं कि,- “उसको घर पे ऐसे बुलाते होंगे”. इस सब के चलते बिग बौस के फैंस माहिरा के इस बिहेवियर से काफी गुस्सा होते दिखाई दिए और सबसे माहिरा के खिलाफ सोशल मीडिया पर कुछ ना कुछ लिखना शुरू कर दिया.

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चलिए देखते हैं फैंस के कुछ ट्वीट्स-

प्लास्टिक या जहर!

अगर हम सिर्फ किचन की बात करें तो नमक, घी, तेल, आटा, चीनी, ब्रेड, बटर, जैम और सौस…सब कुछ प्लास्टिक में ही पैक होकर आता है और हमारे घर पर भी तमाम चीजें प्लास्टिक के कंटेनर्स में ही रखी जाती हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि खाने-पीने की चीजों में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक आपकी सेहत के लिए कितना हानिकारक सिध्द हो सकता है.

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फूड कंटेनर्स

प्लास्टिक की थालियां और स्टोरेज कंटेनर्स खाने-पीने की चीज में केमिकल छोड़ते हैं. इन प्लास्टिक्स में बाइस्फेनाल ए (बीपीए) नामक केमिकल होता है जो प्लास्टिक आइटम्स में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला केमिकल है. यह प्लास्टिक को लोचदार बनाता है. ये केमिकल हमारे शरीर के हार्मोंस को प्रभावित करते हैं. एक रिसर्च में यह माना गया है कि सभी तरह के प्लास्टिक एक वक्त के बाद केमिकल छोडऩे लगते हैं, खासकर जिन्हें गर्म किया जाता है. ऐसा करने से प्लास्टिक के केमिकल्स टूटने शुरू हो जाते हैं और फिर ये खाने-पीने की चीजों में मिल जाते हैं, जिससे गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता है.

पानी की बोतल

पानी की बोतलों को एक बार इस्तेमाल करके तोड़ देना चाहिए. साथ ही यह भी ध्यान रखें कि अक्सर हम प्लास्टिक की बोतल को तेज धूप में खड़ी कार में रखकर छोड़ देते हैं. गर्म होकर इन प्लास्टिक बोतलों से केमिकल निकलकर पानी में रिएक्ट करता है. ऐसे पानी या साफ्ट ड्रिंक्स को नहीं पीना चाहिए.

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पालिथिन में चाय

अक्सर देखा गया है कि छोटी पालिथिन थैलियों में लोग गर्म चाय ले जाते हैं जो बेहद ही नुकसानदेह है. तुरंत तो कुछ पता नहीं चलता लेकिन लंबे समय तक इस्तेमाल करने से यह कैंसर का कारण बन सकता है.

दवा की शीशी

प्लास्टिक शीशी में होम्योपैथिक दवाएं सेफ होती हैं, बशर्ते शीशी लूज प्लास्टिक की न बनी हो.

एक रिसर्च के मुताबिक, पानी में न घुल पाने और बायोकेमिकल ऐक्टिव न होने की वजह से प्योर प्लास्टिक कम जहरीला होता है लेकिन जब इसमें दूसरे तरह के प्लास्टिक और कलर्स मिला दिए जाते हैं तो यह नुकसानदेह साबित हो सकता है.

प्लास्टिक के क्वालिटी की जांच

यूं तो हम सभी लोग पानी के लिए प्लास्टिक की बोतल या खाना रखने के लिए प्लास्टिक लंच बाक्स का इस्तेमाल करते हैं लेकिन क्या कभी हमने उन्हें पलटकर देखा है कि उनके पीछे क्या लिखा है? क्या इस पर कोई सिंबल तो नहीं बना हुआ है? दरअसल, अच्छी क्वालिटी के प्रोडक्ट पर सिंबल्स का होना जरूरी है. यह मार्क ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड जारी करता है. इन सिंबल्स के बीच में कुछ नंबर दिये होते हैं जिससे पता लगता है कि आपके हाथ में जो प्रोडक्ट है, वह किस तरह के प्लास्टिक से बना है और उसकी क्वालिटी कैसी है.

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नंबर्स का मतलब

अगर प्रोडक्ट पर नंबर 1 लिखा है तो यह प्रोडक्ट टेरेफथालेट से बना है. यह अच्छा प्लास्टिक है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन ने इसे खाने-पीने की चीजों की पैकेजिंग के लिए सुरक्षित बताया है. साफ्ट ड्रिंक, वाटर, केचअप, अचार, जेली और पीनट बटर ऐसी बोतलों में रखे जाते हैं.

नंबर 2 का मतलब है कि यह प्रोडक्ट हाई-डेंसिटी पालिथिलीन से बना है. वजन में हल्का और टिकाऊ होने की वजह से इसका इस्तेमाल आम है. दूध, पानी और जूस की बोतल, रिटेल बैग्स बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है.

नंबर 3 का मतलब है कि यह प्रोडक्ट पालीविनाइपाइरोलीडोन क्लोराइड से बना है.

इसका इस्तेमाल कन्फेक्शनरी प्रोडक्ट्स, डेयरी प्रोडक्ट्स, सौस, मीट, हर्बल प्रोडक्ट्स, मसाले, चाय और काफी आदि की पैकेजिंग में होता है.

नंबर 4 का मतलब है कि यह प्रोडक्ट लो डेंसिटी पालिथिलीन से बना है. यह नान-टाक्सिक मैटेरियल है. इससे सेहत को कोई नुकसान नहीं होता. इससे आउटडोर फर्नीचर, फ्लोर टाइल्स और शावर कर्टेन बनते हैं.

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नंबर 5 का मतलब है कि यह प्रोडक्ट पालीप्रोपोलीन से बना है. इससे बोतल के ढक्कन, ड्रिंकिंग स्ट्रा और योगर्ट कंटेनर बनाए जाते हैं.

नंबर 6 का मतलब है कि प्रोडक्ट पालिस्टरीन से बना है. यह फूड पैकेजिंग के लिए सेफ है लेकिन इसे रीसाइकल करना मुश्किल है इसलिए इसके ज्यादा इस्तेमाल से बचना चाहिए.

नंबर 7 का मतलब है कि इस प्रोडक्ट में कई तरह के प्लास्टिक का मिक्सचर होता है. यह काफी मजबूत होता है. हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इसमें हार्मोंस पर असर डालने वाले बाइस्फेनाल की मौजूदगी होती है इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

खाने की चीजें रखने के लिए 1, 2, 4 और 5 कैटेगरी का प्लास्टिक सही है. ये बेहतर फूडग्रेड कैटेगरी में आते हैं. जबकि 3 और 7 नंबर वाले कैटेगरी के कंटेनर खाने में केमिकल छोड़ते हैं, खासकर गर्म करने के बाद. 6 नंबर के प्लास्टिक भी नुकसानदेह होते हैं इसलिए इसका भी कम इस्तेमाल करें और इनमें खाने की चीजें न रखें.

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दहेज में जाने वाले दैय्यत बाबा

लेखक- रामकिशोर पंवार

इन सब के अलावा वर पक्ष को दहेज के रूप में बिना मांगे उस गांव का दैय्यत बाबा भी मिल जाता है, जो उस लड़की के साथ उस की ससुराल में तब तक रहता है, जब तक उस के पहले बेटे या बेटी की चोटी उस के स्थान पर न उतारी जाए.

कहनेसुनने में आप को भले ही यह बात अजीबोगरीब लगे, पर मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील के सैकड़ों गांवों में आज भी दर्जनों दैय्यत बाबा अपने क्षेत्र की लड़कियों के

साथ दहेज में बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह जाते हैं. ऐसा आज से नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से हो रहा है.

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अंधविश्वास से भरे इस रिवाज का पालन करने वालों में इस मुलताई तहसील के गरीब मजदूर तबके से ले कर धन्नासेठ भी शामिल हैं. कुछ लोग तो विदेशों से अपने गांव के दैय्यत बाबा के पास अपने बच्चे की चोटी उतारने आ चुके हैं.

पैर पसार चुकी प्रथा

हमारे समाज में प्राचीन काल से ही कई रूढि़यां जारी हैं. पंवारों की रियासत धारा नगरी पर मुगलों के लगातार हमलों से लड़ती, थकीहारी व धर्म परिवर्तन के डर से घबराई पंवार राजपूतों की फौज ने जानमाल की सुरक्षा के लिए धारा नगरी को छोड़ना उचित समझा था.

धारा नगरी छोड़ कर गोंडवाना क्षेत्र में आ कर बसे पंवार राजपूतों के वंशजों ने इस क्षेत्र में खुद की पहचान को छुपा कर अपनी पहचान भोयर जाति के रूप में कराई और वे यहीं पर बस गए.

आदिवासियों के बीच रह कर उन का रहनसहन सीख कर वे भी आदिवासी क्षेत्र में मौजूद बाबा भगतों के चक्कर में आ कर उन्हीं की तरह दैय्यत बाबाओं के पास जा कर मन्नतें मांगने लगे.

जब उन की तथाकथित मन्नतें पूरी होने लगीं तो वे दैय्यत बाबाओं को खुश करने के लिए उन के स्थान पर मुरगे या बकरे की बलि देने लगे.

ये हैं दैय्यत बाबा

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बसा बैतूल जिला अपने प्राचीन समय से ही गोंड राजाओं के अधीन रहा था. आदिवासी समाज के बारे में कहा जाता है कि ये लोग शिव के उपासक होते हैं. खुद को दैत्य गुरु शुक्राचार्य के अनुयायी के रूप मानने वाले इन लोगों ने अपने परिवार के कर्मकांडों में स्वयंभू ग्राम देवता के रूप में पहचान बना चुके दैय्यत (पत्थर से बनी घोड़े पर सवार सफेद कुरताधोती पहने बाबा की आकृति) बाबाओं के मंदिर बना कर उन्हें स्थापित कर दिया है. गांव के बाहर स्थापित ऐसे दैय्यत बाबाओं के स्थान पर चैत्र महीने में मुरगेबकरे की बलि दी जाती है.

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बैतूल जिले की मूल आदिवासी आबादी के बाद दूसरे नंबर पर गांवों में रहने वाली बहुसंख्यक पंवार जाति के लोगों ने आदिवासी के साथसाथ इन देवीदेवताओं को स्वीकार कर उन की तरह बलि प्रथा को भी अपना लिया है.

पंवार जाति की बेटियों की शादियों में दहेज के रूप में गांव के दैय्यत बाबा भी जाने लगे और इस बहाने गांव की बेटियां अपनी पहली औलाद होने के बाद दैय्यत बाबा को खुश करने के लिए मुरगे या बकरे की बलि देने लगीं.

बाबा जाते हैं दहेज में

बैतूल जिले की मुलताई तहसील में पंवार समाज की तादाद ज्यादा है. पंवार (भोयर) समाज में वर्तमान समय में चुट्टी (चोटी) नामक परंपरा जारी है, जो एक मन्नत का रूप होती है. इस में अपने पहले बच्चे की चोटी उतारी जाती है जो हिंदू महीने माघ से वैशाख महीने तक चलती रहती है. इन महीनों में चोटी उतरवाने का कार्यक्रम ज्यादातर बुधवार और रविवार के दिन होता है.

एक दिन में अलगअलग अपनेअपने दैय्यत बाबा, जिन के अलगअलग नाम होते हैं, जैसे खंडरा देव बाबा, एलीजपठार वाले दैय्यत बाबा, देव बाबा के पास सैकड़ों की तादाद में चोटी उतारने का कार्यक्रम होता है.

एक जानकारी के मुताबिक, एक ही दैय्यत बाबा के पास दिनभर में 10-10 चोटी उतारने के कार्यक्रम होते हैं. हर गांव में अलगअलग नामों से देव यानी दैय्यत बाबा के सामने उस गांव की विवाहिता बेटी अपने पहले बच्चे के नाम से मन्नतें मानती हैं.

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मुरगा या बकरा पार्टी

5 साल से 11 साल तक के बच्चों (चाहे वह लड़का हो या लड़की) के नाम से दैय्यत बाबा के सामने मुरगे या बकरे की बलि दी जाती है. बच्चों को नए कपड़े, मिठाई वगैरह दी जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में वहां मौजूद सभी लोगों को बांटा जाता है.

ग्राम चौथिया, चिल्हाटी, करपा, बरई, एनस, तुमड़ीडोल, मुलताई, पारबिरोली सहित सैकड़ों गांवों में कोई न कोई चोटी उतारने का कार्यक्रम आएदिन होता रहता है.

गांव चिल्हाटी के दुर्गेश बुआडे कहते हैं कि हिंदू धर्म में चोटी उतारने का रिवाज है, भले ही इन के नाम बदल दिए हों. चोटी बच्चों की सलामती के लिए एक मन्नत का नाम है जिस के पूरा होने पर मन्नत मांगने वाला आदमी अपनी पहली संतान से इसे शुरू करता है.

अकसर विवाहिता बेटी के बेटे या बेटी की ही चोटी उतारी जाती है. अगर पतिपत्नी दोनों एक ही गांव के हों तो फिर उसी गांव के दैय्यत बाबा के पास चोटी उतारने का कार्यक्रम होता है.

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अगर किसी लड़की की ससुराल किसी दूसरे गांव की होती है तो उसे अपनी ससुराल जा कर ही उस दैय्यत बाबा के पास अपने पहले बेटे या बेटी की चोटी 5 साल से 11 साल की उम्र में उतरवाई जाती है.

चोटी कार्यक्रम में दैय्यत बाबा के दरबार में उस गांव के भगत बाबा द्वारा पूजा कर के बकरे की बलि दी जाती है. चोटी के संबंध में मान्यता है कि जब तक पहले बच्चे की चोटी नहीं उतारी जाती, तब तक दैय्यत बाबा उसे सताता रहता है.

यह परंपरा समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. हालांकि इस तरह के कार्यक्रम में काफी रुपयापैसा खर्च होता है, लेकिन लोगों को समझाना भी आसान नहीं है. कुछ लोग तो अपनी ससुराल के दैय्यत बाबा के पास चोटी उतारने के बाद अपने गांव के दैय्यत बाबा के पास भी बकरे की बलि देते हैं.

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री रह चुकी मेनका गांधी भले ही टीवी पर ‘जीने की राह’ प्रोग्राम दिखा कर जीव हत्या से लोगों को सचेत करें, लेकिन बैतूल जिले में आज भी लोगों के बीच फैले अंधविश्वास के चलते हजारों मुरगेबकरे काटे जा रहे हैं.

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कांग्रेस में खींचतान

कांग्रेस के कई जिलाध्यक्ष शनिवार, 12 अक्तूबर को खुल कर दिल्ली के प्रभारी पीसी चाको के समर्थन में आ गए. इन जिलाध्यक्षों ने उन नेताओं के खिलाफ ऐक्शन की मांग की है, जिन्होंने पीसी चाको को पद से हटाने की मांग की थी.

इस से पहले शुक्रवार, 11 अक्तूबर को शीला दीक्षित की कैबिनेट में रहे मंगतराम सिंघल, रमाकांत गोस्वामी, किरण वालिया, पूर्व पार्षद जितेंद्र कोचर और रोहित मनचंदा ने पीसी चाको को हटाने की मांग की थी. यह खबर भी आई थी कि शीला दीक्षित के बेटे और सांसद रह चुके संदीप दीक्षित ने शीला दीक्षित की मौत के लिए पीसी चाको को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हीं को चिट्ठी लिखी थी.

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अखिलेश दिखे रंग में

लखनऊ. काफी दिनों से उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रहे और अपनों में उलझे अखिलेश यादव ने हाल  में सरकारी बंगले में तथाकथित तोड़फोड़ को ले कर चल रही खबरों को उन्हें बदनाम करने की सरकारी साजिश करार देते हुए 13 अक्तूबर को कहा कि हाल के उपचुनावों में मिली हार और विपक्षी दलों के गठबंधन से परेशान भाजपा ने यह हरकत की है.

अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘सरकार मुझे बताए कि मैं कौन सी सरकारी चीज अपने साथ ले गया. मैं ने जो चीजें अपने पैसे से लगवाई थीं, वे मैं ले गया… भाजपा यह इसलिए कर रही है क्योंकि वह गोरखपुर और फूलपुर की हार स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वह यह समझ ले कि इस बेइज्जती के लिए जनता उसे सबक सिखाएगी.’’

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मोदी को घेरा

चेन्नई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समुद्र किनारे कचरा साफ करने वाले एक वीडियो पर रविवार, 13 अक्तूबर को कांग्रेस ने सवाल उठाया कि यहां उन के दौरे से पहले पूरे इलाके को साफ कर दिया था, तो क्या यह ‘नाटक’ था?

दरअसल, नरेंद्र मोदी 11 और 12 अक्तूबर को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अपनी दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्त्ता के लिए चेन्नई से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर तटीय शहर मामल्लापुरम आए थे. 12 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन की सुबह की सैर के दौरान समुद्र तट से प्लास्टिक और दूसरी तरह का कूड़ा बीनते देखा गया था. इस शूट में बहुत से कैमरामैन थे और शायद पहले सुरक्षा वालों ने जांचा था कि कहीं कोई बम तो नहीं है. उन सब ने सफाई की थी, ऐसा समाचार सरकार ने जारी नहीं किया.

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मंत्री पर फेंकी स्याही

पटना. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे 15 अक्तूबर को पटना मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल में डेंगू पीडि़तों का हाल जानने के लिए पहुंचे थे. इसी दौरान एक शख्स ने अचानक उन के ऊपर स्याही फेंक दी और मौके से फरार हो गया.

इस बारे में अश्विनी चौबे ने कहा, ‘‘सारे मीडिया पर स्याही फेंकी गई, उस के छींटे मुझे लगे. यह स्याही जनता पर, लोकतंत्र पर और लोकतंत्र के स्तंभ पर फेंकी गई है. ऐसे लोग निंदनीय हैं, उन की कड़ी बुराई होनी चाहिए.’’

बता दें कि अश्विनी चौबे कई विवादित बयानों को ले कर चर्चा में रहे हैं. पटना में भारी बारिश को उन्होंने हथिया नक्षत्र से जोड़ा था. इस के साथ ही एक पुलिस वाले को भी उन्होंने वरदी उतरवाने की धमकी दी थी.

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राहुल का बयान

सूरत. कांग्रेस नेता राहुल गांधी मानहानि के एक मामले में 10 अक्तूबर को सूरत की मजिस्ट्रेट अदालत में पेश हुए और उन्होंने कहा कि आपराधिक मानहानि के इस मामले में वे कुसूरवार नहीं हैं. यह मामला राहुल गांधी की तथाकथित टिप्पणी ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है’ से जुड़ा है.

सूरत (पश्चिम) से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ यह मामला दर्ज करवाया था. अदालत ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या वे इन आरोपों को स्वीकार करते हैं, तो उन्होंने कहा कि वे बेकुसूर हैं.

याद रहे कि कर्नाटक में 13 अप्रैल को कोलार में अपनी एक प्रचार रैली के दौरान राहुल ने कथित तौर पर कहा था, ‘‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी… आखिर इन सभी का उपनाम मोदी क्यों है? सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है?’’

यह मुकदमा किसी आरोपित मोदी ने दायर नहीं किया और पहली नजर में मामला बनता ही नहीं है.

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उबल गए कमलनाथ

झाबुआ. मध्य प्रदेश? के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 9 अक्तूबर को राज्य की झाबुआ विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के समर्थन में हुए एक रोड शो में हिस्सा लिया था और उस के बाद एक जनसभा को भी संबोधित किया था.

तब कमलनाथ ने कहा था, ‘‘भाजपा ने जो काम 15 सालों में नहीं किए, वे काम कांग्रेस की सरकार 15 महीने में कर दिखाएगी… भाजपा का काम सिर्फ झूठ बोलना है. इन का तो मुंह बहुत चलता है. सिर्फ बोलते जाएंगे, गुमराह करते जाएंगे… कहेंगे कि हिंदू धर्म खतरे में है और आगे कुछ नहीं बताएंगे. यह इन की ध्यान मोड़ने की राजनीति है. वे सचाई से आप का ध्यान मोड़ना चाहते हैं.’’

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पूनिया का प्रलाप

जयपुर. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने ‘भाजपा अल्पसंख्यक मोरचा’ की तरफ से देश के राष्ट्रपति रह चुके डा. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कांग्रेस को कोसते हुए कहा कि मुसलिमों को ले कर कांग्रेस का नजरिया हमेशा सिर्फ वोट बैंक ही रहा है, जबकि भाजपा ‘सब का साथ, सब का विकास’ पर यकीन करती है.

सतीश पूनिया यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने 55 सालों तक लूट और झूठ की ही राजनीति की है, जबकि भाजपा ने अटल बिहारी वापजेयी के काल से ले कर मोदी सरकार-2 तक अल्पसंख्यकों की तरक्की के लिए अनेक काम कर उन का भरोसा मजबूत किया है.

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नड्डा का नया शिगूफा

शिमला. भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद जगत प्रकाश नड्डा 9 अक्तूबर को पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के गृह जिले मंडी में गए थे. वहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यह प्यार और अपनापन उन्हें ताकत देता है. अमित शाह की अगुआई में भाजपा भारत की सब से बड़ी पार्टी बनी है और अब वे यह तय करेंगे कि भाजपा दुनिया की सब से बेहतरीन पार्टी बने. पार्टी के पास नए भारत का नजरिया है और वह हिम्मत भरे फैसले लेने से नहीं डरती.

दामोदर राउत का इस्तीफा

भुवनेश्वर. भाजपा के एक बड़े कद के नेता दामोदर राउत ने पार्टी में अपनी अनदेखी के चलते 16 अक्तूबर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वे इसी साल मार्च महीने में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) से निकाले जाने के बाद भाजपा में शामिल हुए थे. बीजापुर उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों में उन का नाम शामिल नहीं किया गया था, इस बात से वे बड़े दुखी थे.

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बीजापुर उपचुनाव से पहले विधायक रह चुके अशोक कुमार पाणिग्रही भी भाजपा छोड़ चुके थे.

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