एक साल पूरा होने से चार दिन पहले ही इस TV एक्ट्रेस ने तोड़ी अपनी शादी, पढ़ें खबर

‘मकड़ी’, ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ और ‘ताश्कंद फाइल्स’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री श्वेता बसु प्रसाद ने अपने पति रोहित मित्तल से शादी की पहली सालगिरह मनाने से चार दिन पहले ही सोशल मीडिया से अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर जाकर अपने पति रोहित मित्तल से अलगाव की खबर से सभी को चौंका दिया. ज्ञातब्य है कि रोहित मित्तल और श्वेता बसु प्रसाद 13 दिसंबर 2018 को ग्रैंड हयात होटल, पुणे में शादी के बंधन में बंधे थे.

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दोनो ने बंगाली रीति रिवाज से विवाह किया था. अभिनेत्री ने बाद में अपने पति के साथ सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा कीं थी. इतना ही नही अप्रैल माह में एक खास मुलाकात के दौरान श्वेता बसु प्रसाद ने हमसे अपने पति रोहित मित्तल की जमकर तारीफें की थी. लेकिन शादी की सालगिरह का जश्न मनाने की बजाय चार दिन पहले नौ दिसंबर को इंस्टाग्राम पर जाकर श्वेता बसु ने पति रोहित मित्तल से अलग होने की बात लिख डाली.

इंस्टाग्राम से दी खबर…

 

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इंस्टाग्राम पर श्वेता बसु प्रसाद ने लिखा है- “हाय, सभी लोग, रोहित मित्तल और मैंने आपसी सहमति से हमारी शादी को समाप्त करने का फैसला लिया है. कई महीनों के चिंतन के बाद, हम इस फैसले पर कुछ माह पहले पहुंचे कि एक-दूसरे के सर्वोत्तम हित में हमें अलग हो जाना चाहिए. हर किताब को कवर से कवर तक पढ़ना जरुरी नही है. इसका मतलब यह नहीं है कि किताब खराब है, या कोई भी नहीं पढ़ सकता है, कुछ चीजें सिर्फ सबसे अच्छी हैं. रोहित को अपूरणीय यादों और हमेशा मुझे प्रेरणा देने के लिए धन्यवाद. आगे एक महान जीवन है, हमेशा के लिए.’’

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अपनी इस पोस्ट में श्वेता बसु प्रसाद ने अपने पति रोहित मित्तल के खिलाफ किसी तरह की कडवाहट वाले शब्द कहने की बजाय रोहित मित्तल को प्रेरित करने के लिए धन्यवाद अदा करने के साथ ही उनके आगे महान जीवन की कामना भी की है.

फिल्म ‘‘मकड़ी’’ से बाल कलाकार के रूप में अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली अदाकारा श्वेता बसु प्रसाद बाद में कई टीवी सीरियल व फिल्मों में नजर आयीं. अप्रैल 2019 में पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘ताश्कंद फाइल्स’’ में उन्हे पत्रकार के किरदार में काफी पसंद किया गया था.

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अक्षरा सिंह ने की इस भोजपुरी सुपरस्टार से शादी, फोटोज वायरल

भोजपुरी की जानीमानी एक्ट्रेस अक्षरा सिंह अक्सर शादी के सवाल पर यही कहती रहीं है की अभी उनकी शादी में बहुत वक्त है. लेकिन उन्होंने भोजपुरी के सुपर स्टार अरविन्द अकेला से गुपचुप तरीके से शादी रचा डाली. और जब अक्षरा – कल्लू की शादी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं तो दोनों के फैन्स की तरफ से बधाइयों का तांता लग गया. लोग बढ़-चढ़ कर दोनों कलाकारों को शादी की बधाईयां दे रहे हैं.

कुछ लोगों को अक्षरा और कल्लू की शादी की यह तस्वीरें चौंका गई. क्यों की शादी को लेकर जब भी अक्षरा से सवाल किया जाता रहा है तो वह टाल जाती थीं. वह शादी के नाम से चिढ़ती रहीं हैं. ऐसे में कुछ फैन्स को झटका भी लगा है. वायरल फोटो में अक्षरा सिंह और कल्लू सात फेरे लेते नजर आ रहें है. लाल सुर्ख जोड़े में अभिनेत्री अक्षरा और कल्लू की जोड़ी खूब भा रही है.

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लेकिन अक्षरा और कल्लू की शादी की वायरल हो रहीं यह तस्वीरें सचमुच शादी की नहीं हैं. बल्कि यह तस्वीरें उनकी आने वाली फिल्म की एक सीन की है.  जिसमें सीन के मुताबिक अक्षरा और कल्लू को शादी के बंधन में बंधना था. फिर अचानक ही इस दौरान की उतारी गई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. जिसमें देख कर यह नहीं लग रहा है की यह तस्वीरें किसी फिल्म के सीन की है, बल्कि यह तस्वीरें वास्तविक शादी की लग रहीं है. इसी वजह से तस्वीरें देखने वाले मात खा गए और फिल्मी शादी को सचमुच की शादी मान बैठे हैं.

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उनके पीआरओ संजय भूषण पटियाला  के सोशल मीडिया अकाउंट के जरिये यह बात पता चली की अक्षरा और कल्लू की शादी सचमुच की शादी नहीं हुई है. बल्कि उनकी आने वाली फिल्म ‘शुभ घड़ी आयो’ के सेट से ली गई है. वह दोनों निर्देशक चंदन उपाध्‍याय की इस फिल्म में शादी जोड़े में इतने फिट बैठ रहे थे की लोगों ने उनकी बनावटी शादी को सचमुच की शादी समझ लिया.

उनके पोस्ट के मुताबिक इस फिल्म को लेकर पूरी टीम बहुत ही उत्साहित है. इन दिनों अरविन्द अकेला कल्लू और अक्षरा के फैन्स की संख्या लाखों में हैं, और यह दोनों चेहरे आज के निर्माता निर्देशकों की पहली पसंद बने हुए है. बताया जा रहा है की यह फिल्म पारिवारिक और सामाजिक ताने बाने में बुनी कहानी पर आधारित है जिसे दर्शक काफी पसंद करेंगें.

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Bigg Boss 13: झगड़े के बाद बढ़ीं नजदीकियां, मधुरिमा ने किया विशाल को Kiss

बिग बौस के घर में हर दिन दर्शकों को कोई ना कोई ड्रामा जरूर देखने को मिलता है. इस सीजन की सबसे खास बात ये है कि दर्शकों को ना सिर्फ टास्क देखने में बल्कि कंटेस्टेंट्स की पर्सनल लाइफ के बारे में जानने का मौका भी मिल रहा है. बीते वीकेंड के वौर में सलमान ने अरहान खान से जुड़ी कुछ ऐसी बातों का खुलासा किया था जिसे सुनकर सारे दंग रह गए थे. जी हां शो के होस्ट सलमान खान ने सभी को ये बता कर चौंका दिया था कि अरहान खान पहले से ही शादीशुदा हैं और इतना ही नहीं बल्कि उनका एक बच्चा भी है. ये सब सुनकर तो जैसे रश्मि के पैरों तले जमीन ही खिसक गई.

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सिद्धार्थ और पारस पहुंचे सीक्रेट रूम…

बीते एपिसोड में हमने देखा बिग बौस ने सिद्धार्थ की तबीयत का ख्याल रखते हुए उन्हें अलग से एक सीक्रेट रूम में कुछ दिन आराम करने को कहा जहां थोड़ी देर बाद ही पारस छाबड़ा की एंट्री हुई. दरअसल, पारस छाबड़ा को चोट लगने की वजह से कुछ दिन बाहर जाने को कहा गया था उनकी सर्जरी के लिए पर अब वे लौट आए हैं और सिद्धार्थ के साथ सीक्रेट रूम में बैठ कर सभी कंटेस्टेंट्स को देख रहे हैं.

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मधुरिमा ने सुनाई विशाल को खरी-खोटी…

कल राल के एपिसोड में बिग बौस ने सभी सदस्यों को नोमिनेशन से बचने का एक टास्क दिया जिसमें उन्हें ज्यादा से ज्यादा फुटेज लेनी थी. इस टास्क के वीजेता कौन होंगे इसका फैसला सिद्धार्थ शुक्ला और पारस छाबड़ा को अपसी सेहमती से लेना था. टास्क के दौरान मधुरिमा तुली और विशास आदित्य सिंह के बीच काफी बहस हुई और मधुरिमा ने विशाल को बहुत खरी खोटी भी सुनाई जिसका अंदाजा विशाल को बिल्कुल भी नहीं था.

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फिर से जाग उठा मधुरिमा और विशाल का प्यार…

इसी दौरान माहिरा शर्मा को सबी लोग इग्नोर कर रहे थो मगर फिर भी वे सबके पास जाकर बात कर रहीं थी तो इसलिए सिद्धार्थ और पारस ने इस टास्क का वीजेता माहिरा को चुना. मधुरिमा और विशाल की टकरार के बाद विशाल काफी इमोशनल दिखाई दिए. घर के नए कंटेस्टेंट विकास गुप्ता ने काफी कोशिश की दोनो के बीच सुलह करवाने की और कह सकते हैं की के कामयाब भी हुए. मधुरिमा खुद विशाल के पास आईं और उनसे माफी मांगी और कहा कि जो भी उन्होनें टास्क के दौरान कहा वे वो सब नहीं कहना चाहती थीं.

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ये सदस्य हैं इस हफ्ते नोमिनेटिड…

इसके बाद दोनो एक दूसरे के साथ अच्छा समय बिताते नजर आए और इतना ही नहीं बल्कि मधुरिमा ने विशाल को किस भी किया. अब देखने वाली बात ये होगी की क्या इस दोनो के बीच फिर से सब कुछ ठीक हो पाएगा या नहीं. आपको बता दें. इस हफ्ते घर से बेघर होने के लिए जो सदस्य नोमिनेटिड हैं उनका नाम है सिद्धार्थ शुक्ला, विकास पाठक यानी हिंदुस्तानी भाऊ, शहनाज गिल और मधुरिमा तुली.

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मर्दों की नसबंदी: खत्म नहीं हो रहा खौफ

सियासत में तानाशाही ताकत के साथ बढ़ती जाती है. यह किसी एक दल की बपौती नहीं होती है. साल 1975 में कांग्रेस सरकार के समय इमर्जैंसी में मर्दों की नसबंदी को ले कर संजय गांधी के खौफ को हिटलर की तानाशाही से भी बड़ा माना गया था. उस समय संजय गांधी केंद्र सरकार तो छोडि़ए, कांग्रेस दल में भी किसी तरह के पद पर नहीं थे. इस के बाद भी उन का आदेश सब से ऊपर था, क्योंकि वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे जो थे.

उस के बाद इस मुहिम का डर मर्दों में इस कदर बैठा कि आज 44 साल के बाद भी सरकार मर्दों की नसबंदी कराने के अपने टारगेट से काफी पीछे है. आज भी देश की परिवार नियोजन योजना में मर्दों का योगदान औरतों के मुकाबले काफी कम है.

इमर्जैंसी में मर्दों की जबरदस्ती नसबंदी कराने से नाराज लोगों ने तब कांग्रेस सरकार को यह बताते हुए भी उस का तख्ता पलट कर दिखा दिया था कि सियासत में तानाशाही का जवाब देना जनता को आता है. तब लोगों ने मर्दों की नसबंदी को राजनीतिक मुद्दा बना दिया था.

वैसे, आज भी ज्यादातर मर्दों को यही लगता है कि नसबंदी कराने से उन की सैक्स ताकत घट जाएगी. ऐसे में वे नसबंदी से दूर रहते हैं.

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मर्दों की नसबंदी का जिक्र आते ही पिछली पीढ़ी के सामने साल 1975 की इमर्जैंसी की ज्यादती की घटनाएं आंखों के सामने घूम जाती हैं. आज की पीढ़ी ने भले ही उस दौर को न देखा हो, पर गांवगांव, घरघर में ऐसी कहानियां सुनने को मिलती हैं, जब गांव में मर्दों को पकड़ कर जबरदस्ती नसबंदी करा दी जाती थी. गांव के गांव घेर कर पुलिस नौजवानों तक को उठा लेती थी.

सरकारी मुलाजिमों के लिए तो यह काम सब से जरूरी हो गया था. उन की नौकरी पर संकट खड़ा हो गया था. इस दायरे में बड़ी तादाद में स्कूली टीचर भी आए थे. कई जगहों पर अपना कोटा पूरा करने के लिए गैरशादीशुदा और बेऔलाद लोगों को भी नसबंदी करानी पड़ी थी. कई गरीब इस के शिकार हुए थे.

इस से देश के आम जनमानस में उस समय की कांग्रेस सरकार के खिलाफ गुस्सा भड़का था और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था.

मर्दों में नसबंदी का यह खौफ आज भी जस का तस कायम है. भारत में औरतों के मुकाबले बहुत कम मर्द नसबंदी कराते हैं. 70 के दशक में जब परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, तो भारत में आबादी पर रोक लगाने के लिए औरतों पर ही ध्यान दिया गया. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि औरतें इस के लिए आसानी से तैयार हो जाती थीं.

70 के दशक में भारत गरीबी के दौर से गुजर रहा था. गरीबी को खत्म करने के लिए हरित क्रांति जैसे कार्यक्रम चलाए गए थे, जिस से देश में ज्यादा से ज्यादा अनाज उगाया जा सके और देश खाने के मामले में आत्मनिर्भर रह सके.

इस के लिए दूसरा बेहद जरूरी कदम आबादी को काबू में रखने का भी था. इस की जरूरत हर जाति और धर्म में महसूस की जा रही थी.

संजय गांधी को लगा था कि इमर्जैंसी इस के लिए सब से बेहतर समय है. उन्होंने मुसलिम धर्म के लोगों को भी इस दायरे में लिया था, पर तब मुसलिमों को लगता था कि यह उन की आबादी को कम करने के लिए किया जा रहा है.

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संजय गांधी का दबदबा

साल 1975 में इमर्जैंसी के दौरान संजय गांधी ने आबादी पर काबू पाने से जुड़े कानून के सहारे अपने असर को पूरे देश में दिखाने का काम किया था. इस के लिए उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने नसबंदी को ले कर ‘उग्र’ अभियान शुरू किया था. उन्होंने उस समय टैलीग्राफ के जरीए अपना एक संदेश हर प्रदेश के सरकारी अफसरों को भेजा था कि ‘सब को सूचित कर दीजिए कि अगर महीने के टारगेट पूरे नहीं हुए तो न सिर्फ तनख्वाह रुक जाएगी बल्कि निलंबन और कड़ा जुर्माना भी देना होगा. सारी प्रशासनिक मशीनरी को इस काम में लगा दें और प्रगति की रिपोर्ट रोज वायरलैस से मु झे और मुख्यमंत्री के सचिव को भेजें.’

इस संदेश ने नौकरशाही में खौफ पैदा कर दिया था, जिस की वजह से नसबंदी कराने के लिए लोगों को तैयार करने के काम में पुलिस की मदद भी ली गई थी.

इस में सब से ज्यादा गरीब आदमी परेशान हुए थे. पुलिस ने पूरे गांव को घेर लिया और मर्दों को जबरन घरों से खींच कर उन की नसबंदी करा दी गई थी. साल के भीतर ही तकरीबन 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी. इस में गलत आपरेशनों से 2,000 लोगों की मौत भी हुई थी.

साल 1933 में जरमनी में भी ऐसा ही एक अभियान चलाया गया था. इस के लिए एक कानून बनाया गया था जिस के तहत किसी भी आनुवांशिक बीमारी से पीडि़त आदमी की नसबंदी का प्रावधान था. तब तक जरमनी नाजी पार्टी के कंट्रोल में आ गया था.

इस कानून के पीछे हिटलर की सोच यह थी कि आनुवांशिक बीमारियां अगली पीढ़ी में नहीं जाएंगी तो जरमन इनसान की सब से बेहतर नस्ल वाला देश बन जाएगा जो बीमारियों से दूर होगा. बताते हैं कि इस अभियान में तकरीबन 4 लाख लोगों की नसबंदी कर दी गई थी.

भारत में नसबंदी को ले कर संजय गांधी के अभियान का खौफ पूरे देश पर इस कदर छाया था कि वे हिटलर से भी आगे निकल गए. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि संजय गांधी कम से कम समय में एक प्रभावी नेता के रूप में पूरे देश में छा जाना चाहते थे. ऐसे में वे नसबंदी के बहाने तानाशाही को दिखाने लगे थे.

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साल 1975 में इमर्जैंसी लगने के बाद राजनीति में आए संजय गांधी को लगने लगा था कि गांधीनेहरू परिवार की विरासत वे ही संभालेंगे. कम से कम समय में एक प्रभावशाली नेता बनने की फिराक में वे इस कदम को उठाने के लिए तैयार हुए थे.

लेकिन संजय गांधी की हवाई हादसे में हुई मौत और कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद उस के बाद आई जनता पार्टी सरकार ने नसबंदी के इस उग्र अभियान को दरकिनार कर दिया था और परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रचार और प्रोत्साहन के बल पर आगे बढ़ाने का काम किया था.

खत्म नहीं हो रहा खौफ

इमर्जैंसी के 44 साल के बाद भी मर्दों में नसबंदी का खौफ खत्म नहीं हो रहा है. आज सरकार मर्दों की नसबंदी पर 3,000 रुपए नकद प्रोत्साहन राशि दे रही है, जबकि औरतों की नसबंदी पर केवल 2,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है.

सरकारी अस्पतालों में नसबंदी के आंकड़े देखे जाएं तो यह अनुपात 10 औरतों पर एक मर्द का आता है. हैरान करने वाली बात यह है कि पतिपत्नी जब सरकारी अस्पताल आते हैं, तो पत्नी खुद कहती है, ‘डाक्टर साहब, इन को कामकाज करना होता है. खेतीकिसानी में बो झ उठाना पड़ता है. साइकिल चलानी पड़ती है. ऐसे में इन की जगह पर हम ही नसबंदी करा लेते हैं.’

जब पत्नी को सम झाने की कोशिश की जाती है, तो वह बताती है कि उस की सास भी यही चाहती है. असल में पत्नी पर पति का ही नहीं, बल्कि सास और दूसरे घर वालों के साथसाथ समाज तक का दबाव होता है.

आजमगढ़ जिले के रानी सराय ब्लौक के बेलाडीह गांव की रानी कन्नौजिया कहती हैं कि औरतों को यह भी लगता है कि नसबंदी न होने से बारबार बच्चा पैदा करने से उन को ही परेशानी होगी. ऐसे में वे आसानी से खुद ही नसबंदी करा कर परिवार नियोजन का काम कर लेती हैं.

कई गांवों में मर्दों की नसबंदी को अंधविश्वास से भी जोड़ दिया जाता है. कई बार मर्दों को यह बताया जाता है कि इस को कराने से किस तरह लोग प्रभावित होते हैं. ऐसे में डर के मारे वे नसबंदी नहीं कराते हैं. बहुत सारी कोशिशों के बाद भी मर्दों की नसबंदी अभी भी बहुत पिछड़ी हालत में है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2016-17 के दौरान 40 लाख नसबंदियां की गई थीं. इन में मर्दों की नसबंदी के मामले में यह आंकड़ा एक लाख से भी कम रहा.

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महफूज है मर्द नसबंदी

मक्कड़ मैडिकल सैंटर के सर्जन डाक्टर जीसी मक्कड़ कहते हैं कि मर्दों की नसबंदी ज्यादा आसान और सुरक्षित होती है. इस में समय भी कम लगता है. उन की नसबंदी भी औरतों की नसबंदी जितनी ही असरदार है. मर्दों की नसबंदी को ले कर गलतफहमियों को दूर करने की जरूरत होती है.

इस नसबंदी में मर्द के बच्चा पैदा करने वाले अंग व अंडकोष को नहीं काटा जाता और न ही नसबंदी से उन को कोई नुकसान होता है.

नसबंदी के बाद न तो अंग और अंडकोष सिकुड़ते हैं और न ही छोटे होते हैं. नसबंदी के चलते किसी भी तरह की जिस्मानी कमजोरी नहीं आती है. मर्द की मर्दानगी में कोई फर्क नहीं आता है. पतिपत्नी को जिस्मानी संबंधों में भी पहले जैसा ही मजा मिलता है.

मर्दों की नसबंदी बिना चीरे, बिना टांके के होती है. इस में सब से पहले अंडकोषों के ऊपर वाली खाल को एक सूई लगा कर सुन्न की गई खाल में एक खास चिमटी से एक बहुत बारीक सुराख करते हैं. ऐसा करने में न दर्द होता है और न ही खून निकलता है.

इस बारीक सुराख से उस नली को बाहर निकालते हैं जो अंडकोष से मर्दाना बीजों को पेशाब की नली तक पहुंचाती है. फिर इस नली को बीच से काट देते हैं. नली के कटे हुए दोनों छोरों को बांध कर उन का मुंह बंद कर देते हैं और अंडकोष वापस थैली के अंदर डाल देते हैं.

कम समय, आसान तरीका

नलियों को अंडकोष की थैली में वापस डालने के बाद सुराख पर डाक्टर टेप चिपका देते हैं. इस तरह खाल के लिए किए गए सुराख पर टांका लगाने की जरूरत भी नहीं पड़ती है. 3 दिन बाद वह सुराख खुद ही बंद हो जाता है. इस तरीके से नसबंदी करने में 5 से 10 मिनट का समय लगता है.

नसबंदी कराने के आधे घंटे बाद आदमी घर भी जा सकता है. 48 घंटे बाद वह सामान्य काम भी कर सकता है.

अगर नसबंदी के बाद 2 दिन तक लंगोट पहने रखें तो इस से अंडकोष को आराम मिलता है. 3 दिन सुराख पर टेप चिपकी रहनी चाहिए और जगह को गीला होने, मैल और खरोंच से बचाना चाहिए.

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नसबंदी कराने के अगले दिन आदमी नहा सकता है. इस जगह को गीला होने से बचा कर नहाएं. 3 दिन बाद अगर लगे कि सुराख बिलकुल ठीक हो गया है, तो टेप हटा कर उसे साबुन और पानी से धो लें.

किसी तरह की असुविधा से बचने के लिए नसबंदी के 7 दिन बाद ही साइकिल चलाएं. सुराख वाली जगह ठीक होने के बाद आदमी सैक्स संबंध भी बना सकता है.

सैक्स संबंधों में कमी नहीं

नसबंदी के बाद कम से कम 20 वीर्यपात या संभोगों तक आदमी कंडोम या उस की पत्नी दूसरे गर्भनिरोधक तरीके का इस्तेमाल जरूर करे. आपरेशन के 3 महीने बाद वीर्य की डाक्टरी जांच कराएं कि वह शुक्राणुरहित हो गया है या नहीं. वीर्य के शुक्राणुरहित पाए जाने के बाद सैक्स के लिए कंडोम या किसी दूसरे गर्भनिरोधक तरीके की जरूरत नहीं रहती है.

नसबंदी के बाद आदमी में किसी भी तरह की सैक्स समस्या नहीं आती है. वह पहले की ही तरह से सैक्स कर सकता है. आम लोगों को यह लगता है कि मर्दों की नसबंदी के बाद उन की सैक्स ताकत कम हो जाती है. यह बात पूरी तरह से गलत है.

नसबंदी करने से पहले यह देखा जाता है कि मर्द शादीशुदा हो. मर्द की उम्र 50 साल से कम और उस की पत्नी 45 साल से कम हो. पति या पत्नी दोनों में से किसी ने भी पहले नसबंदी न कराई हो या पिछली नसबंदी नाकाम हो गई हो. उस जोड़े का कम से कम एक जीवित बच्चा हो, उस की उम्र एक साल से ज्यादा हो. मर्द की दिमागी हालत ऐसी हो कि वह नसबंदी के नतीजों को सम झ सकता हो. उस ने नसबंदी कराने का फैसला अपनी इच्छा से और बगैर किसी दबाव के लिया हो.

नसबंदी कराने के लिए सरकारी अस्पताल से जानकारी ले सकते हैं. मर्दों की नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रोत्साहन के रूप में पैसे भी देती है.

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भला सा अंत: भाग 1

लेखिका- रेणु दीप

मनमौजी काली जब मन आता रानी को अपने निश्छल प्रेम की बूंदों से भिगो देता और मन आता तो दुत्कार देता. बेचारी रानी काली के स्वभाव से दुखी तो थी ही, साथ ही उस का फक्कड़पन उसे भीतर तक तोड़ देता. फिर भी जीवन पथ पर अकेली कठिनाइयों से जूझती रानी हर बार अपने ही दिल के हाथों हार जाती.

रविवार की सुबह मरीजों की चिंता कम रहती है. अत: सुबह टहलते हुए मैं रानी के घर की ओर चल दिया. वह एक शिशु रोगी के उपचार के बारे में कल मुझ से बात कर रही थी इसलिए सोचा कि आज उस बारे में रानी के साथ तसल्ली से बात हो जाएगी और काली के साथ बैठ कर मैं एक प्याला चाय भी पी लूंगा.

मैं काली के घर के दरवाजे पर थपकी देने ही वाला था कि घर के भीतर से आ रही काली की आवाज को सुन कर मेरे हाथ रुक गए.

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‘‘रानी प्लीज, इस गजरे को यों बेकार मत करो, कितनी मेहनत से फूलों को चुन कर मैं ने मालिन से कह कर तुम्हारे लिए यह गजरा बनवाया है. बस, एक बार इसे पहन कर दिखा दो. आज बरसों बाद मन में पुरानी हसरत जागी है कि एक बार फिर तुम्हें फूलों के गजरे से सजा देखूं.

‘‘मैं तुम्हारे इस रूप को सदासदा के लिए अपनी आंखों में कैद कर लूंगा और जब हम 80 साल के हो जाएंगे तब मन की आंखों से मैं तुम्हारे इस सजेधजे रूप को देख कर खुश हो लूंगा.’’

काली की बातें सुन कर मुझे हंसी आ रही थी. यह काली भी इतना उग्र हो गया कि 20 साल का बेटा होने को आया लेकिन इस का शौकीन मिजाज अभी तक बरकरार है.

‘‘आप यह क्या बचकानी बातें कर रहे हैं? अब क्या इन फूलों से बने गजरे पहनने व सजने की मेरी उम्र है? जब आशीष की बहू आएगी तब उसे रोज नए गहनों से सजानाधजाना,’’ रानी ने हंसते हुए काली से कहा था.

‘‘तो तुम ऐसे नहीं मानोगी. लाओ, मैं ही तुम्हें गजरों से सजा देता हूं,’’ कहते हुए शायद काली रानी को जबरन फूलों से सजा रहा था और वह उन्मुक्त हो कर जोरों से खिलखिला रही थी.

रानी का यह खिलखिला कर हंसना सुन मन भीतर तक सुकून से भर गया था.

उन दोनों को इस प्यार भरी तकरार के बीच छेड़ना अनुचित समझ मैं उन के घर के दरवाजे तक पहुंच कर भी वापस लौट गया था. मेरा मनमयूर कब अतीत में उड़ कर चला गया, मुझे एहसास तक नहीं हुआ था.

काली मेरा बचपन का अंतरंग मित्र था. रानी उस की पत्नी थी. काली, रानी और मैं, हम तीनों एक अनाम, अबूझ रिश्ते में जकड़े हुए थे. काली के घर छोड़ कर जाने के बाद मैं ने ही रानी को मानसिक संबल दिया था. वह किसी भी तरह मेरे लिए सगी छोटी बहन से कम नहीं थी.

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16 साल की कच्ची उम्र में रानी मेरे पड़ोस वाले मकान में काली के साथ ब्याह कर आई थी. ब्याह कर आने के बाद रानी ने काली की गृहस्थी बहुत सुगढ़ता से संभाली लेकिन काली ने उसे पत्नी का वह मान- सम्मान नहीं दिया जिस की वह हकदार थी.

काली एक फक्कड़, मस्तमौला स्वभाव का इनसान था. मन होता तो महीनों रानी को सिरआंखों पर बिठा कर उस की छोटी से छोटी इच्छा पूरी करता. उसे दुनिया भर का हर सुख देता. सुंदर कपड़ों और गहनों में सजेसंवरे उस के अपूर्व रूपरंग को निहारता और फिर मेरे पास आ कर रानी की सुंदरता और मधुर स्वभाव की प्रशंसा करता.

मुझ से काली के जीवन का कोई पहलू अछूता नहीं था. यहां तक कि मूड में होने पर रानी के साथ बिताए हुए अंतरंग क्षणों की वह बखिया तक उधेड़ कर रख देता. काली खानेपीने का भी बहुत शौकीन था. वह जब भी घर पर होता, रसोई में स्वादिष्ठ पकवानों की महक उड़ती रहती. हम दोनों के घर के बीच बस, एक दीवार का फासला था इसलिए काली के साथ मुझे भी आएदिन रानी के हाथ के बने स्वादिष्ठ व्यंजनों का आनंद मिला करता.

अच्छे मूड में काली, रानी को जितना सुखसुकून देता, मूड बिगड़ने पर उस से दोगुना दुख भी देता. गुस्सा होने के लिए छोटे से छोटा बहाना उस के लिए काफी था. अत्यधिक क्रोध आने पर वह घर छोड़ कर चला जाता और हफ्तों घर वापस नहीं आता था. काली की मां अपने बेटे के इस व्यवहार से बेहद दुखी रहा करती और रानी उस के वियोग में रोरो कर आंखें सुजा लेती.

वैसे काली की कपड़ों की एक दुकान थी लेकिन उस के मनमौजी होने की वजह से दुकान आएदिन बंद रहा करती और आखिर वह हमेशा के लिए बंद हो गई.

काली ज्योतिषी का धंधा भी करता था और इस ठग विद्या का हुनर उस ने अपने पिता से सीखा था. उस का दावा था कि उसे ज्योतिष में महारत हासिल है. लोगों के हाथ, मस्तक की रेखाएं तथा जन्मकुंडली देख कर वह उन के भूत, भविष्य और वर्तमान का लेखाजोखा बता देता तो लोग खुश हो कर उसे दक्षिणा में मोटी रकम पकड़ा जाते. शायद यही वजह थी कि कपड़े की दुकान पर मेहनत करने के बजाय उस ने लोगों को ठगने के हुनर को अपने लिए बेहतर धंधा समझा.

काली जब तक घर में रहता पैसों की कोई कमी नहीं रहती लेकिन उस के घर से जाने के बाद घरखर्च बड़ी मुश्किल से चलता, क्योंकि तब आमदनी का एकमात्र जरिया पिता की पेंशन रह जाती थी जो बहुत थोड़ी सी उस को मिलती थी.

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रानी की जिंदगी की गाड़ी हंसतेरोते आगे बढ़ती जा रही थी. बेटे के सनकी स्वभाव की वजह से बहू को रोते देख उस की सास का मन भीतर तक ममता से भीग जाया करता. वह अपनी तरफ से बहू को हर सुख देने की कोशिश करतीं लेकिन अपने बाद उस की स्थिति के बारे में सोचतीं तो भय से कांप उठती थीं.

रानी ने आगे पढ़ने का निश्चय किया तो उस की सास ने कहा, ‘अच्छा है, आगे पढ़ोगी तो व्यस्त रहोगी. इधरउधर की बातों में मन नहीं भटकेगा. पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करो.’

मैं ने भी रानी को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. सो, उस ने पढ़ना शुरू कर दिया और 12वीं कक्षा में वह प्रथम श्रेणी में पास हुई. बहू की इस सफलता पर सास ने सभी रिश्तेदारों में लड्डू बंटवाए.

रानी मुझ से तथा मेरे डाक्टरी के पेशे से बहुत प्रभावित थी. वह खाली समय में घंटों मेरे क्लीनिक में बैठ कर मुझे रोगियों के उपचार में व्यस्त देखा करती और चिकित्सा संबंधी ढेरों प्रश्न मुझ से पूछती.

काली के आएदिनों के झगड़े से वह बहुत उदास रहने लगी तो एक दिन मुझ से बोली, ‘भाई साहब, आजकल वह मुझे बहुत दुख देते हैं. मूड अच्छा होने पर तो उन से बढि़या कोई दूसरा इनसान नहीं मिलेगा लेकिन मूड खराब होने पर बहाने ढूंढ़ढूंढ़ कर मुझ से लड़ते हैं. मैं उन्हें बहुत चाहती हूं. मेरी जिंदगी में उन की बहुत अहमियत है. जब वह मुझ से गुस्सा हो जाते हैं तो मन होता है कि मैं आत्महत्या कर लूं.’

घोर निराशा के उन क्षणों में मैं ने रानी को समझाया था, ‘काली बहुत मनमौजी स्वभाव का फक्कड़ इनसान है लेकिन वह मन का बहुत साफ है. तुम काली को अपने जीवन में इतनी अहमियत मत दो कि उस के खराब मूड का असर तुम्हारे दिमाग और शिक्षा पर पड़े. निर्लिप्त रहो, व्यस्त रहो. 12वीं में तुम्हारे पास विज्ञान विषय था, क्यों न तुम एम.बी.बी.एस. की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करो. डाक्टर बन कर तुम आत्मनिर्भर बन जाओगी. पैसों की तंगी नहीं रहेगी. काली को अपनी जिंदगी की धुरी मानना बंद कर दो, अपनी जिंदगी अपने बल पर जीना सीखो.’

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मेरी सलाह मान कर रानी ने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी जोरशोर से शुरू कर दी. उस की मेहनत रंग लाई और वह प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई. मैं ने और उस की सास ने उस के इस काम में भरपूर सहयोग दिया और वह अपने ही शहर के प्रतिष्ठित मेडिकल कालिज में जाने लगी.

उस बार जो काली घर छोड़ कर गया तो 1 साल तक लौट कर नहीं आया. सुनने में आया कि वह बनारस में अपनी ज्योतिष विद्या का प्रदर्शन कर अपने दिन मजे से गुजार रहा था. कतिपय कारणों से जिस का भला हो गया उस ने काली को ज्योतिष का बड़ा जानकार माना. अनगिनत लोग उस के शिष्य बन गए थे तथा समाज में उसे बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता था. वह जिस रास्ते से गुजर जाता, लोग उस के पैरों पर झुकते नजर आते.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

मकड़जाल में फंसी जुलेखा: भाग 1

लेखक- अलंकृत कश्यप

जुलेखा लखनऊ के आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. नाम की रियल एस्टेट कंपनी में नौकरी करती थी. वह रोजाना की तरह 3 अगस्त,

2019 को भी हंसखेड़ा स्थित अपने घर से ड्यूटी के लिए निकली, लेकिन शाम को निर्धारित समय पर घर नहीं पहुंची तो मां शरबती को चिंता हुई.

भाई नफीस ने जुलेखा के मोबाइल नंबर पर फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब जुलेखा से फोन पर संपर्क नहीं हो सका तो उस ने मां शरबती को समझाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, हो सकता है कंपनी के काम में ज्यादा व्यस्त होने की वजह से जुलेखा ने अपना फोन बंद कर लिया हो. आप परेशान न हों, देर रात तक घर लौट आएगी.’’

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कभीकभी औफिस में ज्यादा काम होने पर जुलेखा को घर लौटने में देर हो जाती थी. तब वह घर पर फोन कर के सूचना दे दिया करती थी. लेकिन उस दिन उस ने देर से लौटने की कोई सूचना घर वालों को नहीं दी थी, इसलिए सब को चिंता हो रही थी.

जुलेखा का एक दोस्त था श्रेयांश त्रिपाठी. नफीस ने सोचा कि कहीं वह उस के साथ तो नहीं है, इसलिए उस ने बहन के बारे में जानकारी लेने के लिए श्रेयांश को फोन किया. लेकिन उस का फोन भी बंद मिला.

देर रात तक नफीस, उस की मां शरबती और पिता शरीफ अहमद जुलेखा के लौटने का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटी. सुबह होने पर नफीस ने पिता से कहा कि हमें यह सूचना जल्द से जल्द पुलिस को दे देनी चाहिए.

लेकिन मां शरबती ने कहा, ‘‘इस मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है. थाने जाने से पहले उस के औफिस जा कर कंपनी के मालिक संजय यादव से पूछताछ कर ली जाए कि उन्होंने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर तो नहीं भेजा है.’’

नफीस के दिमाग में बात आ गई. उस ने बहन के औफिस जा कर कंपनी मालिक संजय यादव से संपर्क किया तो उस ने बताया कि जुलेखा कल वृंदावन कालोनी स्थित किसी दूसरी कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंटरव्यू देने गई थी. वह तेलीबाग के चौराहे तक उसे अपनी कार में ले गया था और वहां पास ही स्थित वृंदावन कालोनी के गेट पर कार से उतर गई थी. उस के बाद वह कहां गई, उसे पता नहीं है. वह वृंदावन सोसायटी में रहने वाली बड़ी बहन रूबी के पास जाने को भी कह रही थी.

‘‘वह रूबी के यहां नहीं पहुंची.’’ नफीस बोला.

‘‘हो सकता है वह कहीं और चली गई हो. उस के आने का इंजजार करो. हो सकता है 2-4 दिन में लौट आए.’’

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संजय से भरोसा मिलने के बाद नफीस घर लौट आया. लेकिन उस का मन कई प्रकार की आशंकाओं से भर उठा.

नफीस और उस के मातापिता 3 दिन तक जुलेखा के घर आने का इंतजार करते रहे. जब वह नहीं आई तो 5 अगस्त, 2019 को नफीस थाना पारा पहुंचा और थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिल कर जुलेखा के बारे में उन्हें विस्तार से बताया.

थानाप्रभारी की टालमटोल

अमित इंफ्रा हाइट्स कंपनी का नाम सुन कर थानाप्रभारी टालमटोल करते हुए बोले कि 2 दिन और देख लो. 2 दिन बाद भी वह न आए तो थाने आ जाना.

थानाप्रभारी के आश्वासन पर नफीस घर चला गया. 2 दिन बाद भी जुलेखा नहीं आई तो 7 अगस्त, 2019 को नफीस फिर से थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिला और रिपोर्ट दर्ज कर बहन को तलाश करने की मांग की. लेकिन उन्होंने उसे समझाबुझा कर अगले दिन आने को कह दिया. उन्होंने रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

इस के बाद नफीस 9 अगस्त, 2019 को एसएसपी कलानिधि नैथानी से मिला और जुलेखा के गायब होने की बात बताते हुए कहा कि जुलेखा आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी में काम करने वाले संजय यादव, अवधेश यादव, गुड्डू यादव और अजय यादव के संपर्क में रहती थी.

इन दिनों पैसों के लेनदेन को ले कर जुलेखा का कंपनी मालिक संजय यादव से मनमुटाव चल रहा था. उसे शक है कि इन लोगों ने उस की बहन को कहीं गायब कर दिया है.

नफीस का दुखड़ा सुनने के बाद एसएसपी ने पारा के थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को आदेश दिया कि जुलेखा वाले मामले में जांच कर दोषियों के खिलाफ काररवाई करें. कप्तान साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी हरकत में आ गए. उन्होंने सब से पहले नफीस और उस के मातापिता से बात की. इस के बाद जुलेखा का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

काल डिटेल्स से पता चला कि जुलेखा ने अंतिम बार श्रेयांश त्रिपाठी को फोन किया था. त्रिपाठी ने उसे कंपनी में काम करने के बारे में बुला कर बात की थी. चौकी हंसखेड़ा के प्रभारी सुभाष सिंह ने श्रेयांश त्रिपाठी को बुला कर जुलेखा के बारे में उस से पूछताछ की.

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इस के बाद थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह एसआई रामकेश सिंह, सुभाष सिंह, धर्मेंद्र कुमार, सिपाही मयंक मलिक, आशीष मलिक और राजेश गुप्ता को साथ ले कर आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस पहुंचे. वहां कंपनी मालिक संजय यादव का साला गुड्डू यादव निवासी बिजनौर तथा आलमबाग आजादनगर के रहने वाले एक दरोगा का बेटा अजय यादव मिला.

पुलिस सभी को थाने ले आई. सीओ आलमबाग लालप्रताप सिंह की मौजूदगी में उन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जुलेखा की हत्या कर के उस की लाश हरचंद्रपुर में साई नदी के किनारे फेंक दी थी.

यह सुनने के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम आरोपियों को साथ ले कर हरचंद्रपुर में साई नदी के पास उस जगह पहुंच गई, जहां जुलेखा के शव को ठिकाने लगाया था.

पुलिस को नदी किनारे कीचड़ में एक शव मिला. शव एक युवती का था और पूरा गल गया था. हड्डियों के अलावा वहां लेडीज कपड़े मिले. जुलेखा के भाई नफीस और मां शरबती ने कपड़ों से उस की शिनाख्त जुलेखा के रूप में की. पिता शरीफ अहमद ने बताया कि जुलेखा के ये कपड़े उन्होंने ईद पर खरीद कर दिए थे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर जुलेखा के कंकाल को पोस्टमार्टम व डीएनए जांच के लिए भिजवा दिया. जुलेखा की हत्या और अपहरण में मुख्य आरोपी संजय यादव के साले गुड्डू यादव व अजय यादव से जुलेखा के संबंध में पूछताछ की तो उन्होंने जुलेखा का अपहरण कर उस की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह बड़ी सनसनीखेज थी-

शरीफ अहमद अपने परिवार के साथ लखनऊ के थाना पारा के अंतर्गत आने वाली कांशीराम कालोनी नई बस्ती में रहता था. बुद्धेश्वर चौराहे पर उस की आटो पार्ट्स की दुकान थी. परिवार में उस की पत्नी शरबती के अलावा 2 बेटियां रूबी व जुलेखा और एक बेटा नफीस था. बड़ी बेटी रूबी का पास के ही वृंदावन में विवाह हो चुका था.

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नफीस पिता के काम में हाथ बंटाता था. सन 2013 में उस ने छोटी बेटी जुलेखा की शादी मुंबई के रहने वाले एक युवक से कर दी थी. जुलेखा महत्त्वाकांक्षी थी. वह आत्मनिर्भर रह कर जीना चाहती थी. शादी के 2 साल बाद जुलेखा ने एक बेटे को जन्म दिया.

जुलेखा ने भरी उड़ान

बेटे के जन्म के बाद जुलेखा अपने मन की कमजोरी को छिपा कर न रख सकी क्योंकि वह स्वच्छंद जीवन जीने की आदी थी, जबकि उस का शौहर उस की आदतों के खिलाफ था. अंतत: एक दिन पति से लड़झगड़ कर वह अपने मायके आ गई. सन 2019 में पति ने भी जुलेखा को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह एकदम आजाद हो गई थी.

जुलेखा चारदीवारी में बैठने के बजाए नौकरी कर के आत्मनिर्भर होना चाहती थी, जिस से अपने बेटे की ढंग से परवरिश कर सके. पढ़ीलिखी होने के साथसाथ उसे कंप्यूटर की जानकारी थी. लिहाजा उस ने प्राइवेट कंपनियों में नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 15 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर कंप्यूटर औपरेटर की नौकरी मिल गई.

यह कंपनी राजधानी के बारह विरवा में काकोरी निवासी संजय यादव की थी. कुछ दिनों तक वह कंपनी में डाटा एंट्री का काम करती रही. इस दौरान वह संजय यादव के साले सरोजनीनगर निवासी गुड्डू यादव और आलमबाग आजादनगर के रहने वाले दरोगा के बेटे अजय यादव और अवधेश यादव के संपर्क में आई.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मैं… मैं…

देश की छोड़ो, वह तो बहुत बड़ी चीज है. इंसान भी मैं मैं मैं कर रहा है. देश के प्रधानमंत्री हो या राज्य के मुख्यमंत्री! मुंह से सिर्फ मैं मै ही निकल रहा है. प्रधानमंत्री इत्ते ऊंचे पद पर पहुंच गए हैं मगर हम नहीं कहते. अमेरिका गए, ऑस्ट्रेलिया गए, जापान और नेपाल गए कहीं भी हम, हमारा देश हमारी मातृभूमि नहीं कहा. कहा तो सिर्फ, मैं मैं मैं .जिसमें कुछ भी सत्य समाहित नहीं है. देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच गए इतने बड़े ज्ञानी धुरंधर मगर मैं मैं मैं.

मैं सोचता हूं आखिर इंसान मे,- मैं मैं आया कहां से ? हर साधु महात्मा ज्ञानी यही कहता है कभी मैं मैं मैं मत करो, यह अज्ञान का प्रतीक है.मगर मुझे कोई भी नहीं मिलता जो मैं मैं मैं नहीं करता हो .

एक बड़े साहित्यकार फेसबुक पर हैं .मै उनकी कृपा दृष्टि पाने उनकी हर एक स्टेट्स पर लाइक करता हूं .आंखें मूंद कर बिना पढ़े लाइक करता .मैं सोचता मेरी लाइक से कभी तो पिघलेंगे. मैं अनवरत नाटक करता रहा. मगर उन्होंने कभी मेरी और झांका तक नहीं .मैं फोटो अपलोड करूं या कुछ लिखूं, कभी लाइक नहीं किया, मैं तरस गया एक लाइक के लिए.

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एक दिन उनके स्टेटस पर किसी क्षुब्ध आदमी ने विपरीत टिप्पणी कर दी .मैंने सोचा, आज मै को परखूंगा .मैंने उस टिप्पणी के खिलाफ टिप्पणी की .और चुपचाप इंतजार करने लगा. आश्चर्य, मै मैं पिघलने लगा, मेरी टिप्पणी को साहित्यकार ने लाइक किया । मैं समझ गया, वहां एक मैं नहीं, मैं मैं का साम्राज्य है.

हर जगह मैं मै है .हमारे एक मित्र हैं कहते हैं- एक बच्चे में भी मैं मै होता है .जिसको आप ने पैदा किया है, उसमें भी मैं मैं होता है, वह भी आपकी बेवजह मैं मैं को स्वीकार नहीं करता, उसका मैं में जागृत हो  उठता है . वे बड़े ज्ञानी पुरुष है . मैं देखता हूं वे हर किसी के मैं में को बड़ी चतुराई से शांत करते हैं . बात मनवानी हो तो चार बार रोहरा जी… रोहरा जी करते हैं .इतने मीठे स्वर में कि मैं समझ जाता हूं वे मेरे मै को जागृत करके अपनी मै की संतुष्टि करना चाहते हैं .

एक शख्स इतने पहुंचे हुए मै हैं की दावा करते हैं, दुनिया के किसी भी महिला को ज्यादा नहीं आधा एक घंटा अकेले बात करने का वक्त दिया जाए मैं उसे काबू में कर लूंगा. पहले मै, जब वह यह  कहते, तो मन ही मन हंसता, मगर तीन-चार प्रकरण अपनी आंखों से देखें, मैं डर गया .यह आदमी है या सम्मोहन का जानकार. वह कहता है कुछ मोहनी या सम्मोहन नहीं होता, यह बातों का मायाजाल है .मैं… मैं …बस उसके मैं… मैं… को पकड़ता हूं, सहलाता  हूं ,उत्सर्जित करता हूं बस…

शहर में एक प्रखर अखबार नवीस है. मैं… मैं… उनका विश्वामित्र की तरह नाक पर बैठा रहता है .लोग उक्त पंडित जी की मैं मैं को उनके क्रोध के कारण आंखें बंद करके सुनते रहते हैं. कौन अग्नि कुंड में हाथ डाले ? बहुतेरे बड़े पदों में हैं । पैसे वाले हैं . लोग उनकी मैं में को सिर्फ इसलिए सहते हैं की पद है रुपया है . मैं भी तब ही सर चढकर बोलता है जब उसे सत्ता का धन का रस्सा पकड़ में आ जाता है. लोग बड़े समझदार होते हैं, जानते हैं इनसे मुंह लगाना फिजूल हैसो आत्मसमर्पण कर देते हैं.

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ऐसे लोगों में आपका यह शुद्र लेखक भी है.मैं अपनी यह योग्यता पहचानता नहीं था.जब कभी किसी सत्ताधारी से साबका पड़ता, मै सरेंडर कर जाता उसकी हर गलत बात में भी हां में हां मिलाता .कभी विनम्रता से बात काटता, मगर दुबारा अड़ते ही मै आत्मसमर्पण कर जाता. किसी धनपति के यहां भी यही स्थिति होती, मैं उसकी हर सही-गलत बात की हां में हां कहता.

मैं यह मानता हूं की धनाढृय आदमी का, अपना मैं होता है. वह कभी भी मुझ जैसे साधारण लेखक की मैं में को स्वीकार नहीं कर सकता.

मेरे एक ज्ञानी मित्र ने मेरी इस चलाकी को पकड़ा और हंस-हंस कर मित्रों को बताता .मैं दांत निकाल कर हंसता मुस्कुराता .मैं भी अनेक प्रकार के होते हैं .मैं एक दुर्लभ एक सहज मै. मेरा में सरल किस्म का है .मेरी प्रकृति के लोग सुखी रहते हैं, समन्ववादी . मगर जकड़ने वाला मै मैं खतरनाक होता है .जो इसकी जद में आते हैं, वह उन्हें निगल जाता है .मैं कहां नहीं है. संसार का निर्माण, संहार और पालन करने वालों मैं भी मैं मैं और मैं है .

उनकी तीनों देवियों में भी, मैं मैं मै है .वेदों में, स्मृतियों में, महाभारत में भी तो मैं मै ही मिलता है. सारी लड़ाई और अस्तित्व  मैं को लेकर ही है . यह मेरा घर है, यह मेरी जमीन, यहां का मै मालिक,यह मेरी बपौती.

यह सब जानते हैं, यह संसार  क्षण भंगुर है. यह मै निरा बेझडपन है,मगर हर कोई मैं मैं मैं कर रहा है . साधु हो या महात्मा हो, मतदाता हो या नेता, अथवा अभिनेता सभी मै की परिक्रमा कर रहे हैं .और क्यों न करें, जब गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- मैं मृत्यु में भी हूं, जीवन में भी हूं, आग में भी हूं और पानी में भी .जब भगवान “मैं” को नहीं छोड़ सके, फिर हम आदम जात कैसे छोड़ सकते हैं.

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सुपरहिट भोजपुरी फिल्मों के इस निर्देशक की जल्द ही रिलीज होने वाली हैं 3 फिल्में, पढें खबर

हाल ही में रिलीज हुई भोजपुरी फिल्म बद्रीनाथ जैसी हिट फिल्म देने वाले जाने-माने निर्देशक धीरू यादव की जल्द ही 3 फिल्मे रिलीज होंगी जिनमे रैम्बो राजा, लालटेन, व वचन है. धीरू यादव के पी आर ओ सोनू यादव ने बताया की निर्देशक धीरू यादव की हाल में रिलीज हुई “बद्रीनाथ” को दर्शकों का काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है.

इस फिल्म में मुख्य भूमिका में पावरस्टार संजीव मिश्रा, चांदनी सिंह, प्रियंका पंडित, अंजना सिंह, रितु सिंह, संजय पांडे, चांदनी सिंह, अनूप अरोरा, महेश आचार्य थे. दर्शकों ने इनकी एक्टिंग को खूब पसंद किया था.
उनकी अगली फिल्म “लालटेन” के  पोस्ट प्रोडक्शन का काम भी जोरों पर चल रहा है. जिसका बहुत जल्द ट्रेलर और फर्स्ट लुक आउट होने वाला है.

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धीरू यादव ने हांल ही में “वचन” फिल्म के फर्स्ट शेड्यूल की शूटिंग भी पूरी कर ली है. जिसके पोस्ट प्रोडक्शन का काम चल रहा है और सेकेण्ड शेड्यूल की शूटिंग अगले महीने से उत्तर प्रदेश के विभिन्न लोकेशनो पर की जायेगी. धीरू यादव ने अपने आने वाली फिल्मों को लेकर बताया की मैं जितनी भी फिल्मे करता हूं उनको अपनी भोजपुरी भाषा और संस्कृति को लेकर बनाता हूं. ताकि आप लोग अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्म को देख सके और अपनी भाषा और संस्कृति न भूले.

निर्देशक धीरू यादव मूलत: बिहार के रहने वाले हैं. फिल्मों के निर्देशन में आने के सवाल पर उन्होंने बताया की उनके पिता उन्हें इंजीनियर बनना चाहते थे. 12 वी पास करने के बाद उनका राजस्थान के कोटा के एक कालेज में सेलेक्शन भी हो गया था. लेकिन उन्होंने दो साल इंजीनियरिंग करने के बाद अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर मुम्बई का रुख अख्तियार कर लिया और सिनेमा में अपनी तकदीर अजमाने लगे, जहां उन्हें काफी संघर्ष करना पडा.

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इस दौरान उन्होंने कई धारावाहिकों और फिल्मों में  में मुख्य निर्देशक की भूमिका निभाई. उसी वक्त में उन्हें बाला जी फिल्म्स के सीरियल “पवित्र रिश्ता” में काम करने का अवसर मिला. जहां से उन्होंने भोजपुरी फिल्मों के निर्माण की तरफ रुख किया और वर्तमान में वह अपनी आने वाली तीन फिल्मों पर फोकस हैं. इनमें से फिल्म “लालटेन” की मुख्य भूमिका में यश कुमार, स्मृति सिन्हा, चांदनी सिंह, संजय पाण्डेय, महेश आचार्य, अनूप अरोड़ा, गोपाल राय, राव रणविजय सिंह, सोनू पाण्डेय होंगें. वहीं फिल्म “वचन” में यश कुमार, निधि झा, चांदनी सिंह, माया यादव, देव सिंह, अनूप अरोड़ा, आदि कई कलाकार नजर आयेंगे.

सुपरहिट भोजपुरी फिल्म बद्रीनाथ का यूट्यूब लिंक –

दिल्ली की आग से देश की आंखें नम, पढ़िए आग की नौ बड़ी घटनाएं

नई दिल्ली: लुटियंस दिल्ली के लोग इस काली सुबह को कभी भूल नहीं पाएंगे. सर्दी के मौसम में सुबह पांच बजे लोग आराम से सो रहे होते हैं. लेकिन उनको क्या पता था कि जब उनकी आंखे खुलेगी तो सामने आग की लपटों पर लिपटे जिस्म की चीखें सुनाई देंगी. कुछ ऐसा ही हुआ. दिल्ली में अनधिकृत बैग मैन्युफैक्चरिंग फैक्टरी में रविवार को लगी आग में 43 लोगों की मौत हो गई और बहुत से दूसरे लोग अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह घटना बीते 25 सालों में देश में हुई आग दुर्घटनाओं में सबसे गंभीर है.

देश में आग की नौ बड़ी घटनाएं

8 दिसंबर, 2019

लुटियंस दिल्ली में अनधिकृत बैग मैन्युफैक्चरिंग फैक्टरी में रविवार को लगी आग में 43 लोगों की मौत हो गई और बहुत से दूसरे लोग अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जिनके साथ ये हादसा हुआ अगर उनकी जुबानी सुनें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. यह घटना बीते 25 सालों में देश में हुई आग दुर्घटनाओं में सबसे गंभीर है.

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23 दिसंबर, 1995-डबवाली-हरियाणा

स्कूल के वार्षिक दिवस समारोह के बाद आग व भगदड़ मचने से 442 लोगों की मौत हो गई, जिसमें 225 स्कूली बच्चे थे. हॉल परिसर में 1500 लोग एक शामियाने में जमा थे, जिसके गेट बंद थे.

23 फरवरी 1997-बारिपदा-ओडिशा

यह आग एक संप्रदाय के धार्मिक कार्यक्रम के दौरान लगी और भगदड़ के बाद बारिपदा में 23 फरवरी 1997 को 206 लोगों की मौत हो गई. यह आग हताहतों की संख्या के मामले में दूसरी सबसे बड़ी आग त्रासदी थी. इसके अतिरिक्त भगदड़ में 200 लोगों को चोटें आई, जब भक्त आग से बचने की कोशिश कर रहे थे.

10 अप्रैल 2006-मेरठ-उत्तर प्रदेश

यहां एक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स मेले के दौरान लगी भीषण आग से 100 लोगों की मौत हो गई. आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट था.

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16 जुलाई, 2004-कुंभकोणम-तमिलनाडु

एक अस्थायी मिडडे मील रसोई घर में लगी आग से 94 स्कूली बच्चों की मौत हो गई. रसोई घर की आग की लपटें पहली मंजिल की कक्षाओं तक पहुंच गई जहां 200 छात्र मौजूद थे.

9 दिसंबर, 2011-कोलकाता-पश्चिम बंगाल

इमारत के बेसमेंट में इलेक्ट्रिक शॉर्ट सर्किस से आग लग गई और इससे आग व धुआं एएमआरआई अस्पताल तक पहुंच गई और 89 लोगों की मौत हो गई.

13 जून, 1997-उपहार सिनेमा

आग की यह भयावह घटना बॉलीवुड फिल्म ‘बॉर्डर’ की स्क्रिनिंग के दौरान हुई, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.

5 सितंबर 2012-शिवकाशी-तमिलनाडु

यह हादसा शिवकाशी में पटाखा मैन्युफैक्चरिंग के दौरान मजदूरों के रासायनों के मिलाने की वजह से विस्फोट से हुआ और आग लग गई, जिसमें 54 लोग मारे गए और 78 लोग घायल हो गए.

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23 जनवरी, 2004-श्रीरंगम-तमिलनाडु

शादी के समारोह के दौरान आग लगने से 50 लोगों की मौत हो गई और 40 लोग घायल हो गए.

15 सितंबर, 2005-खुसरोपुर-बिहार

तीन अनधिकृत पटाखा मैन्युफैक्चरिंग ईकाई में विस्फोट से आग लगने से 35 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग घायल हुए.

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