देश की छोड़ो, वह तो बहुत बड़ी चीज है. इंसान भी मैं मैं मैं कर रहा है. देश के प्रधानमंत्री हो या राज्य के मुख्यमंत्री! मुंह से सिर्फ मैं मै ही निकल रहा है. प्रधानमंत्री इत्ते ऊंचे पद पर पहुंच गए हैं मगर हम नहीं कहते. अमेरिका गए, ऑस्ट्रेलिया गए, जापान और नेपाल गए कहीं भी हम, हमारा देश हमारी मातृभूमि नहीं कहा. कहा तो सिर्फ, मैं मैं मैं .जिसमें कुछ भी सत्य समाहित नहीं है. देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच गए इतने बड़े ज्ञानी धुरंधर मगर मैं मैं मैं.

मैं सोचता हूं आखिर इंसान मे,- मैं मैं आया कहां से ? हर साधु महात्मा ज्ञानी यही कहता है कभी मैं मैं मैं मत करो, यह अज्ञान का प्रतीक है.मगर मुझे कोई भी नहीं मिलता जो मैं मैं मैं नहीं करता हो .

एक बड़े साहित्यकार फेसबुक पर हैं .मै उनकी कृपा दृष्टि पाने उनकी हर एक स्टेट्स पर लाइक करता हूं .आंखें मूंद कर बिना पढ़े लाइक करता .मैं सोचता मेरी लाइक से कभी तो पिघलेंगे. मैं अनवरत नाटक करता रहा. मगर उन्होंने कभी मेरी और झांका तक नहीं .मैं फोटो अपलोड करूं या कुछ लिखूं, कभी लाइक नहीं किया, मैं तरस गया एक लाइक के लिए.

ये भी पढ़ें- हमसफर: भाग 1

एक दिन उनके स्टेटस पर किसी क्षुब्ध आदमी ने विपरीत टिप्पणी कर दी .मैंने सोचा, आज मै को परखूंगा .मैंने उस टिप्पणी के खिलाफ टिप्पणी की .और चुपचाप इंतजार करने लगा. आश्चर्य, मै मैं पिघलने लगा, मेरी टिप्पणी को साहित्यकार ने लाइक किया । मैं समझ गया, वहां एक मैं नहीं, मैं मैं का साम्राज्य है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...