दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 2
जीवज्योति के मना करने के बाद राजगोपाल का इशारा पा कर उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने शांताकुमार को जबरन एक कार में बिठाया और राजगोपाल के के.के. नगर स्थित पुराने गोदाम में ले गए.
जीवज्योति की आंखों के सामने उस के पति का अपहरण हुआ था. वह इसे कैसे सहन कर सकती थी. उस ने के.के. नगर थाने में राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ शांताकुमार के अपहरण की नामजद तहरीर दी. लेकिन पुलिस ने उस का मुकदमा दर्ज नहीं किया.जीवज्योति कई दिनों तक थाने के चक्कर काटती रही, लेकिन उस का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ. इस बीच वह अपने स्तर पर पति का पता लगाती रही लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.
पति को ले कर जीवज्योति निराश हो गई थी. वह सोचती थी कि पता नहीं राजगोपाल के आदमियों ने शांताकुमार के साथ कैसा सुलूक किया होगा. उस ने पति के जीवित होने की आशा छोड़ दी थी. बस वह यही प्रार्थना करती थी कि वह जहां भी हो, सहीसलामत रहे.
अपहरण के 14वें दिन यानी 12 अक्तूबर, 2001 को शांताकुमार अपहर्ताओं के चंगुल से बच निकला और सीधे पुलिस कमिश्नर के औफिस पहुंच गया. उस ने अपनी आपबीती कमिश्नर को सुना दी.
पुलिस ने बात तो सुनी पर नहीं की ठोस काररवाई
शांताकुमार की पूरी बात सुन कर पुलिस कमिश्नर हतप्रभ रह गए. उन्होंने के.के. नगर थाने के थानेदार को जम कर फटकार लगाई और पीडि़त शांताकुमार का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया. इस के बाद पुलिस को राजगोपाल के खिलाफ मुकदमा लिखना ही पड़ा.
ये भी पढ़ें- एक तीर कई शिकार: भाग 3
पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद शांताकुमार और जीवज्योति को यकीन हो गया था कि पुलिस दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई करेगी. इस के बाद वे दोनों अपनी तरफ से यह सोच कर थोड़ा लापरवाह हो गए थे कि मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद राजगोपाल की हेकड़ी कम हो जाएगी, वह दोबारा कोई ओछी हरकत नहीं करेगा.
लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद पी. राजगोपाल और भी आक्रामक हो गया था. एक अदना सी औरत उस से टकराने की जुर्रत कर रही थी, यह उसे यह बरदाश्त नहीं था. उस ने सोच लिया कि जीवज्योति को इस की सजा मिलनी चाहिए.
2-4 दिन तक जब राजगोपाल की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो शांताकुमार और जीवज्योति को लगा कि अब मामला सुलझ जाएगा.
लेकिन यह उन का भ्रम था. 6 दिन बाद 18 अक्तूबर, 2001 को एक बार फिर से शांताकुमार का अपहरण हो गया. अपहरण राजगोपाल ने ही करवाया था.
शांताकुमार का अपहरण करवाने के बाद पी. राजगोपाल फिर से जीवज्योति पर शादी के लिए दबाव डालने लगा. उस ने फिर से फोन करना शुरू कर दिया. जीवज्योति ने भी साफ कह दिया कि वह मर जाएगी लेकिन शादी के लिए तैयार नहीं होगी.
14 दिनों बाद 31 अक्तूबर, 2001 को कोडैकनाल के टाइगर चोला जंगल में शांताकुमार की डेडबौडी मिली. पति की लाश बरामद होने के बाद जीवज्योति ने थाने जाने के बजाय अदालत की शरण लेना बेहतर समझा. उस का पुलिस से भरोसा उठ चुका था, इसलिए उस ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट का फैसला जीवज्योति के पक्ष में आया और अदालत ने केस दर्ज करने का आदेश दे दिया.
कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन के खिलाफ अपहरण, हत्या की साजिश और हत्या का केस दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस राजगोपाल की तलाश में जुट गई.
आखिर झुकना पड़ा कानून के सामने
अंतत 23 नवंबर, 2001 को राजगोपाल ने चेन्नई पुलिस के समने सरेंडर कर दिया. उस के सरेंडर करने से पहले पुलिस पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. करीब डेढ़ साल तक जेल में रहने के बाद 15 जुलाई, 2003 को पी. राजगोपाल को जमानत मिल गई.
ये भी पढ़ें- दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी: भाग 3
पी. राजगोपाल के जमानत पर बाहर आते ही जीवज्योति फिर से कोर्ट पहुंच गई. उस समय शांताकुमार का केस बहुचर्चित केस था, सो मामला स्पैशल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.
सन 2004 में सेशन कोर्ट का फैसला आ गया. कोर्ट ने अपहरण, हत्या की कोशिश और हत्या के मामले में पी. राजगोपाल और 5 दूसरे लोगों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई.
जीवज्योति इस सजा से खुश नहीं थी. उस ने हाईकोर्ट में अपील कर दी. करीब 5 साल तक मामला हाईकोर्ट में चलता रहा और फिर मार्च, 2009 में हाईकोर्ट का फैसला भी आ गया.
19 मार्च, 2009 को हाईकोर्ट के जस्टिस बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने इसे हत्या और हत्या की साजिश का मामला करार देते हुए सभी दोषियों को मिली 10-10 साल की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. साथ ही पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया, जिस में से 50 लाख रुपए जीवज्योति को दिए जाने थे.
जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.
29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि राजगोपाल को 7 जुलाई, 2019 तक सरेंडर करना होगा.
ये भी पढ़ें- फेसबुक से निकली मौत: भाग 2
पी. राजगोपाल का पासा पलट गया था. अब उस का साथ न तो वक्त दे रहा था और न ही ज्योतिषी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद राजगोपाल की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया. लेकिन वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था.
उस ने नया पैंतरा चला. पी. राजगोपाल 4 जुलाई को अस्पताल में दाखिल हो गया. 7 जुलाई को सरेंडर करने की तारीख बीत गई तो उस ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उस ने कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है. उसे थोड़ी और मोहलत दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट पर उस की दलीलों का कोई असर नहीं हुआ.
जस्टिस एन.वी. रमन्ना की खंडपीठ ने कहा कि उसे हर हाल में कोर्ट में सरेंडर करना ही होगा. क्योंकि उस ने केस की सुनवाई के दौरान अपनी बीमारी का जिक्र नहीं किया था. इस के बाद 9 जुलाई, 2019 को वह मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. एक एंबुलेंस उसे कोर्ट ले कर गई थी. नाक में औक्सीजन मास्क लगा हुआ था. कोर्ट के आदेश पर पी. राजगोपाल को जेल भेज दिया गया. 10 दिन जेल में रह कर उस की हालत सचमुच बिगड़ गई.
उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां 19 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल का निधन हो गया. राजगोपाल के निधन के बाद केस की काररवाई बंद कर दी गई. बाकी पांचों आरोपी जेल में सजा काट रहे हैं. – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां