लेखक- आर.के. राजू

वीरू सैनी अपनी पत्नी शारदा और बच्चों के साथ मुरादाबाद के मोहल्ला झांझनपुर में रहते थे. उनके परिवार में 2 बेटों संजय कुमार और प्रदीप कुमार के अलावा 2 बेटियां थीं. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. वैसे वीरू सैनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के ही जिला संभल के शहर चंदौसी के रहने वाले थे, जो करीब 30 साल पहले काम की तलाश में मुरादाबाद आ गए थे.

वह एक अच्छे कुक थे, इसलिए मुरादाबाद दिल्ली रोड पर पीएसी के सामने स्थित त्यागी ढाबे पर उन की नौकरी लग गई थी. कुछ साल पहले उन के बड़े बेटे संजय की भी शहर की आशियाना कालोनी स्थित एक होटल में नौकरी लग गई थी.

घर में सब कुछ ठीक चल रहा था, इसी बीच उन की पत्नी शारदा की तबीयत खराब हो गई और फिर मौत हो गई. पत्नी की मृत्यु के बाद घर में खाना बनाने की परेशानी होने लगी. इसलिए वीरू ने संजय की शादी करने की सोची.

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वैसे भी एकदो साल बाद उस की शादी करनी ही थी. बेटे की जल्द शादी कराने के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया. उन्होंने कह दिया कि लड़की चाहे गरीब परिवार से हो, लेकिन घर के कामकाज करने वाली होनी चाहिए.

एक दिन वीरू सैनी के दूर के रिश्ते का भांजा राजपाल उन के यहां आया. वह संभल के सरायतरीन मोहल्ले में रहता था. वीरू ने उस से संजय के लिए कोई लड़की बताने को कहा तो राजपाल ने बताया, ‘‘मामाजी, बरेली में एक ठेकेदार मेरे जानकार हैं. उन्होंने मुझ से एक लड़की की चर्चा की थी. लड़की अपनी ही जाति की है. उस के मांबाप नहीं हैं और अपनी मौसी के साथ रहती है. गरीब लोग हैं. चाहो तो उसे देख लो. बात बन गई तो आप को ही दोनों तरफ की शादी का खर्च उठाना होगा.’’

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