तेलंगाना पुलिस जिंदाबाद के नारे लगाए. दोषियों को अदालत ने सजा ए मौत भले न दी हो लेकिन कानून के रखवालों ने तामील कर दी. आज मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि एक कुप्रथा का सहारा लेकर तथाकथित न्याय किया गया. आज चार आरोपियों के एनकाउंटर के साथ एक और एनकाउंटर किया गया वो एनकाउंटर हुआ कानून का.

अभी वो केवल आरोपी ही थे दोषी नहीं. आरोपियों को 10 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया था. अभी तक ये भी पता नहीं कि आरोपी वही है या फिर और कोई. आरोपियों को पुलिस की कस्टडी पर रखकर सारे साक्ष्य और सबूत इकट्ठा किए जा रहे थे. कहा जा रहा है कि उन्होंने पुलिस के सामने गुनाह कबूल किया था. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पुलिस कैसे गुनाह कबूल करा देती है. इसी वजह से अदालत में जज के सामने जब किसी मुजरिम को पेश किया जाता है तो जज पूछते हैं कि आप किसी दबाव में तो नहीं बयान नहीं दे रहे. मतलब की जज को भी पता होता है कि पुलिस रिमांड के दौरान पुलिस के पास कौन-कौन से तरीके होते हैं गुनाह को कबूल कराने के.

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दोषियों को सजा ए मौत मिलनी चाहिए. बेशक मिलनी चाहिए. गैंगरेप और हत्या के आरोपियों को सरे आम फांसी पर लटका देना चाहिए. अदालत चाहे तो आरोपियों की फांसी का लाइव टेलिकास्ट करा देते  ताकि जहां कहीं भी हैवान होते उनको रूह कांप जाती. अगर इससे भी मन नहीं भरता तो दुनिया की सबसे कठोर जो सजा होती वो दे दी जाती. किसी को कोई गम नहीं होता. उन आरोपियों से किसी को भी हमदर्दी नहीं हो सकती.

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