लेखक- रामकिशोर पंवार

इन सब के अलावा वर पक्ष को दहेज के रूप में बिना मांगे उस गांव का दैय्यत बाबा भी मिल जाता है, जो उस लड़की के साथ उस की ससुराल में तब तक रहता है, जब तक उस के पहले बेटे या बेटी की चोटी उस के स्थान पर न उतारी जाए.

कहनेसुनने में आप को भले ही यह बात अजीबोगरीब लगे, पर मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील के सैकड़ों गांवों में आज भी दर्जनों दैय्यत बाबा अपने क्षेत्र की लड़कियों के

साथ दहेज में बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह जाते हैं. ऐसा आज से नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से हो रहा है.

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अंधविश्वास से भरे इस रिवाज का पालन करने वालों में इस मुलताई तहसील के गरीब मजदूर तबके से ले कर धन्नासेठ भी शामिल हैं. कुछ लोग तो विदेशों से अपने गांव के दैय्यत बाबा के पास अपने बच्चे की चोटी उतारने आ चुके हैं.

पैर पसार चुकी प्रथा

हमारे समाज में प्राचीन काल से ही कई रूढि़यां जारी हैं. पंवारों की रियासत धारा नगरी पर मुगलों के लगातार हमलों से लड़ती, थकीहारी व धर्म परिवर्तन के डर से घबराई पंवार राजपूतों की फौज ने जानमाल की सुरक्षा के लिए धारा नगरी को छोड़ना उचित समझा था.

धारा नगरी छोड़ कर गोंडवाना क्षेत्र में आ कर बसे पंवार राजपूतों के वंशजों ने इस क्षेत्र में खुद की पहचान को छुपा कर अपनी पहचान भोयर जाति के रूप में कराई और वे यहीं पर बस गए.

आदिवासियों के बीच रह कर उन का रहनसहन सीख कर वे भी आदिवासी क्षेत्र में मौजूद बाबा भगतों के चक्कर में आ कर उन्हीं की तरह दैय्यत बाबाओं के पास जा कर मन्नतें मांगने लगे.

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