कभीकभीजिंदगी में वही शख्स आप को सब से ज्यादा दुख पहुंचाता है, जिसे आप सब से ज्यादा प्यार करते हैं. विसंगति यह कि आप उस से कुछ कह भी नहीं पाते, क्योंकि आप को हक ही नहीं उस से कुछ कहने का. जब तक रिश्ते को नाम न दिया जाए कोई किसी का क्या लगता है? कच्चे धागों सा प्यार का महल एक झटके में टूट कर बिखर जाता है.
‘इन बिखरे एहसासों की किरचों से जख्मी हुए दिल की उदास दहलीज के आसपास आप का मन भटकता रह जाता है. लमहे गुजरते जाते हैं पर दिल की कसक नहीं जाती.’ एक जगह पढ़ी ये पंक्तियां शैली के दिल को गहराई से छू गई थीं. आखिर ऐसे ही हालात का सामना उस ने भी तो किया था. किसी को चाहा पर उसी से कोई सवाल नहीं कर सकी. चुपचाप उसे किसी और के करीब जाता देखती रही.
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‘‘हैलो आंटी, कहां गुम हैं आप? तैयार नहीं हुईं? हमें चलना है न मंडी हाउस, पेंटिंग प्रदर्शनी में मम्मी को चीयर अप करने?’’ सोनी बोली.
‘‘हां, बिलकुल. मैं आ रही हूं मेरी बच्ची’’, शैली हड़बड़ा कर उठती हुई बोली.
आज उस की प्रिय सहेली नेहा के जीवन का बेहद खास दिन था. आज वह पहली दफा वर्ल्ड क्लास पेंटिंग प्रदर्शन में हिस्सा ले रही थी.
हलके नीले रंग का सलवार सूट पहन कर वह तैयार हो गई.
अब तक सोनी स्कूटी निकाल चुकी थी. बोली, ‘‘आओ आंटी, बैठो.’’
वह सोनी के पीछे बैठ गई. स्कूटी हवा से बातें करती मिनटों में अपने नियत स्थान पर
पहुंच गई.
शैली बड़े प्रेम से सोनी को देखने लगी. स्कूटी किनारे लगाती सोनी उसे बहुत स्मार्ट और प्यारी लग रही थी.
सोनी उस की सहेली नेहा की बेटी थी. दिल में कसक लिए घर बसाने की इच्छा नहीं हुई थी शैली की. तभी तो आज तक वह तनहा जिंदगी जी रही थी. नेहा ने सदा उसे सपोर्ट किया था. नेहा तलाकशुदा थी, दोनों सहेलियां एकसाथ रहती थीं. नेहा का रिश्ता शादी के बाद टूटा था और शैली का रिश्ता तो जुड़ ही नहीं सका था.
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पेंटिंग्स देखतेदेखते शैली नेहा के साथ काफी आगे निकल गई. नेहा की एक पेटिंग क्व1 लाख 70 हजार में बिकी तो शैली ने हंस कर कहा, ‘‘यार, मुझे तो इस पेटिंग में ऐसा कुछ भी खास नजर नहीं आ रहा.’’
‘‘वही तो बात है शैली,’’ नेहा मुसकराई, ‘‘किसी शख्स को कोई पेंटिंग अमूल्य नजर आती है तो किसी के लिए वही आड़ीतिरछी रेखाओं से ज्यादा कुछ नहीं होती. जरूरी है कला को समझने की नजरों का होना.’’
‘‘सच कहा नेहा. कुछ ऐसा ही आलम जज्बातों का भी होता है न. किसी के लिए जज्बातों के माने बहुत खास होते हैं तो कुछ के लिए इन का कोई मतलब ही नहीं होता. शायद जज्बातों को महसूस करने वाला दिल उन के पास होता ही नहीं है.’’
शैली की बात सुन कर नेहा गंभीर हो गई. वह समझ रही थी कि शैली के मन में कौन सा तूफान उमड़ रहा है. यह नेहा ही तो थी जिस ने सालों विराज के खयालों में खोई शैली को देखा था और दिल टूटने का गम सहती शैली को फिर से संभलने का हौसला भी दिया था. शैली ने आज तक अपने जज्बात केवल नेहा से ही तो शेयर किए थे.
नेहा ने शैली का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘नो शैली. उन यादों को फिर से खुद पर हावी न होने दो. बीता कल तकलीफ देता है. उसे कभी याद नहीं करना चाहिए.’’
‘‘कैसे याद न करूं नेहा जब उसी कल ने मेरे आज को बेस्वाद बना दिया. उसे कैसे भूल सकती हूं मैं? जानती हूं कि जिस विराज की खातिर आज तक मैं सीने में इतना दर्द लिए जी रही हूं, वह दुनिया के किसी कोने में चैन की नींद सो रहा होगा, जिंदगी के सारे मजे ले रहा होगा.’’
‘‘तो फिर तू भी ले न मजे. किस ने मना किया है?’’
‘‘वही तो बात है नेहा. उस ने हमारे इस प्यार को महसूस कर के भी कोई अहमियत नहीं दी. शायद जज्बातों की कोई कद्र ही नहीं थी. मगर मैं ने उन जज्बातों की बिखरी किरचों को अब तक संभाले रखा है.’’
‘‘तेरा कुछ नहीं हो सकता शैली. ठंडी सांस लेती हुई नेहा बोली तो शैली मुसकरा पड़ी.
‘‘चल, अब तेरी शाम खराब नहीं होने दूंगी. अपनी प्रदर्शनी की सफलता का जश्न मना ले. आखिर रिश्तों और जज्बातों के परे भी कोई जिंदगी होती है न,’’ नेहा ने कहा.
शैली और नेहा बाहर आ गईं. सोनी किसी लड़के से बातें करने में मशगूल थी. मां को देख उस ने लड़के को अलविदा कहा और इन दोनों के पास लौट आई.
‘‘सोनी, यह कौन था?’’ नेहा ने पूछा.
‘‘ममा, यह मेरा फ्रैंड अंकित था.’’
‘‘खास फ्रैंड?’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं है ममा. बट हां, थोड़ा खास है,’’ कह कर वह हंस पड़ी.
तीनों ने रात का खाना बाहर ही खाया.
रात में सोते वक्त शैली फिर से पुरानी यादों में खो गई. एक समय था जब उस के सपनों में विराज ही विराज था. शालीन, समझदार और आकर्षक विराज पहली नजर में ही उसे भा गया था. मगर बाद में पता चला कि वह शादीशुदा है. शैली क्या करती? उस का मन था कि मानता ही नहीं था.
नेहा ने तब भी उसे टोका था, ‘‘यह गलत है शैली. शादीशुदा शख्स के बारे में तुम्हें कुछ सोचना ही नहीं चाहिए.’’
तब, शैली ने अपने तर्क रखे थे, ‘‘मैं क्या करूं नेहा? जो एहसास मैं ने उसे के लिए
महसूस किया है वह कभी किसी के लिए नहीं किया. मुझे उस के विवाहित होने से क्या वास्ता? मेरा रिश्ता तो भावनात्मक स्तर पर है दैहिक परिधि से परे.’’
‘‘पर यह गलत है शैली. एक दिन तू भी समझ जाएगी. आज के समय में कोई इस तरह के रिश्तों को नहीं मानता.’’
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‘‘यह क्या राजीव, तुम अभी तक कंप्यूटर में ही उलझे हुए हो?’’ रिया घर में घुसते ही तीखे स्वर में बोली थी.
‘‘कंप्यूटर में उलझा नहीं हूं, काम कर रहा हूं,’’ राजीव ने उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया था.
‘‘ऐसा क्या कर रहे हो सुबह से?’’
‘‘हर बात तुम्हें बतानी आवश्यक नहीं है और कृपया मेरे काम में विघ्न मत डालो,’’ राजीव ने झिड़क दिया तो रिया चुप न रह सकी.
‘‘बताने को है भी क्या तुम्हारे पास? दिन भर बैठ कर कंप्यूटर पर गेम खेलते रहते हो. कामधंधा तो कुछ है नहीं. मुझे तो लगता है कि तुम काम करना ही नहीं चाहते. प्रयत्न करने पर तो टेढ़े कार्य भी बन जाते हैं पर काम ढूंढ़ने के लिए हाथपैर चलाने पड़ते हैं, लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है.’’
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‘‘तो अब तुम मुझे बताओगी कि काम ढूंढ़ने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’
‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं होती कौन हूं तुम से कुछ कहने वाली. मैं तो केवल घर बाहर पिसने के लिए हूं. बाहर काम कर के लौटती हूं तो घर वैसे का वैसा पड़ा मिलता है.’’
‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया था कि अब तुम ही तो घर की कमाऊ सदस्य हो. मुझे तो सुबह उठते ही तुम्हें साष्टांग प्रणाम करना चाहिए और हर समय तुम्हारी सेवा में तत्पर रहना चाहिए. मैं अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न कर भी रहा हूं कि महारानीजी को कोई कष्ट न पहुंचे. फिर भी कोई कोरकसर रह जाए तो क्षमाप्रार्थी हूं,’’ राजीव का व्यंग्यपूर्ण स्वर सुन कर छटपटा गई थी रिया.
‘‘क्यों इस प्रकार शब्दबाणों के प्रयोग से मुझे छलनी करते हो राजीव? अब तो यह तनाव मेरी सहनशक्ति को चुनौती देने लगा है,’’ रिया रो पड़ी थी.
‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि बेकार बैठे निखट्टू पति को तुम सह नहीं पा रही हो. दिन पर दिन कटखनी होती जा रही हो.’’
क्रोधित स्वर में बोल राजीव घर से बाहर निकल गया था. रिया अकेली बिसूरती रह गई थी.
मातापिता को आपस में तूतू मैंमैं करते देख दोनों बच्चे किशोर और कोयल अपनी किताबें खोल कर बैठ गए थे और कनखियों से एकदूसरे को देख कर इशारों से बात कर रहे थे. शीघ्र ही इशारों का स्थान फुसफुसाहटों ने ले लिया था.
‘‘मम्मी बहुत गंदी हैं, घर में घुसते ही पापा पर बरस पड़ीं. पापा कितना भी काम करें मम्मी उन्हें चैन से रहने ही नहीं देतीं,’’ कोयल ने अपना मत व्यक्त किया था.
‘‘मम्मी नहीं पापा ही गंदे हैं, घर में काम करने से कुछ नहीं होता. बाहर जा कर काम करने से पैसा मिलता है और उसी से घर चलता है. मम्मी बाहर काम न करें तो हम सब भूखे मर जाएं.’’ किशोर ने प्रतिवाद किया तो कोयल उस पर झपट पड़ी थी और दोचार थप्पड़ जमा दिए थे. फिर तो ऐसा महाभारत मचा कि दोनों के रोनेबिलखने पर ही समाप्त हुआ था.
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कोहराम सुन कर रिया दौड़ी आई थी. वह पहले से ही भरी बैठी थी. उस ने दोनों बच्चों की धुनाई कर दी और उन का कं्रदन धीरेधीरे सिसकियों में बदल गया था.
रिया बच्चों को मारपीट कर देर तक शून्य में ताकती रही थी, जबकि चारों ओर फैला अस्तव्यस्त सा उस का घर उसे मुंह चिढ़ा रहा था.
‘मेरे हंसतेखेलते घर को न जाने किस की नजर लग गई,’ उस ने सोचा और फफक उठी. कभी वह स्वयं को संसार की सब से भाग्यशाली स्त्री समझती थी.
आर्थिक मंदी के कारण 6 माह पूर्व राजीव की नौकरी क्या गई घर की सुखशांति को ग्रहण ही लग गया था. वहीं से प्रारंभ हुआ था उन की मुसीबतों का सिलसिला.
80 हजार प्रतिमाह कमाने वाले व्यक्ति के बेरोजगार हो जाने का क्या मतलब होता है. यह राजीव को कुछ ही दिनों में पता चल गया था.
जो नौकरी रिया ने शौकिया प्रारंभ की थी इस आड़े वक्त में वही जीवन संबल बन गई थी. न चाहते हुए भी उसे अनेक कठोर फैसले लेने पड़े थे.
उच्ववर्गीय पौश इलाके के 3 शयनकक्ष वाले फ्लैट को छोड़ कर वे साधारण सी कालोनी के दो कमरे वाले फ्लैट में चले आए थे. पहले खाना बनाने, कपड़े धोने तथा घर व फर्नीचर की सफाई, बरतन धोने वाली अलगअलग नौकरानियां थीं पर अब एक से ही काम चलाना पड़ रहा था. नई कालोनी में 2 कारों को खड़े करने की जगह भी नहीं थी. ऊपर से पैसे की आवश्यकता थी अत: एक कार बेचनी पड़ी थी.
सब से कठिन निर्णय था किशोर और कोयल को महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर साधारण स्कूल में डालने का. रियाराजीव ने बच्चों को यही समझाया था कि पढ़ाई का स्तर ठीक न होने के कारण ही उन्हें दूसरे स्कूल में डाल रहे हैं पर जब एक दिन किशोर ने कहा कि वह मातापिता की परेशानी समझता है और अच्छी तरह जानता है कि वे उसे महंगे स्कूल में नहीं पढ़ा पाएंगे तो राजीव सन्न रह गया था. रिया के मुंह से चाह कर भी कोई बोल नहीं फूटा था.
इस तरह की परिस्थिति में संघर्ष करने वाला केवल उन का ही परिवार नहीं था, राजीव के कुछ अन्य मित्र भी वैसी ही कठिनाइयों से जूझ रहे थे. वे सभी मिलतेजुलते, एकदूसरे की कठिनाइयों को कम करने का प्रयत्न करते. इस तरह हंसतेबोलते बेरोजगारी का दंश कम करने का प्रयत्न करते थे.
अपनी ओर से रिया स्थिति को संभालने का जितना ही प्रयत्न करती उतनी ही निराशा के गर्त्त में गिरती जाती थी. पूरे परिवार को अजीब सी परेशानी ने घेर लिया था. बच्चे भी अब बच्चों जैसा व्यवहार कहां करते थे. पहले वाली नित नई मांगों का सिलसिला तो कब का समाप्त हो गया था. जब से उन्हें महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर दूसरे मध्यवर्गीय स्कूल में डाला गया था, वे न मित्रों की बात करते थे और न ही स्कूल की छोटीमोटी घटनाओं का जिक्र ही करते थे.
रिया को स्वयं पर ही ग्लानि हो आई थी. बिना मतलब बच्चों को धुनने की क्या आवश्यकता थी. न जाने उन के कोमल मन पर क्या बीत रही होगी. भाईबहनों में तो ऐसे झगड़े होते ही रहते हैं. कम से कम उसे तो अपने होश नहीं खोने चाहिए थे पर नहीं, वह तो अपनी झल्लाहट बच्चों पर ही उतारना चाहती थी.
रिया किसी प्रकार उठ कर बच्चों के कमरे में पहुंची थी. किशोर और कोयल अब भी मुंह फुलाए बैठे थे.
रिया ने दोनों को मनायापुचकारा, ‘‘मम्मी को माफ नहीं करोगे तुम दोनों?’’ बच्चों का रुख देख कर रिया ने झटपट क्षमा भी मांग ली थी.
‘‘पर यह क्या?’’ डांट खा कर भी सदा चहकती रहने वाली कोयल फफक पड़ी थी.
‘‘अब हमारा क्या होगा मम्मी?’’ वह रोते हुए अस्पष्ट स्वर में बोली थी.
‘‘क्या होगा का क्या मतलब है? और ऐसी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’’
‘‘पापा की नौकरी चली गई मम्मी. अब आप उन्हें छोड़ दोगी न?’’ कोयल ने भोले स्वर में पूछा था.
‘‘क्या? किस ने कहा यह सब? न जाने क्या ऊलजलूल बातें सोचते रहते हो तुम दोनों,’’ रिया ने किशोर और कोयल को झिड़क दिया था पर दूसरे ही क्षण दोनों बच्चों को अपनी बाहों में समेट कर चूम लिया था.
‘‘हम सब का परिवार है यह. ऐसी बातों से कोई किसी से अलग नहीं होता. हमसब का बंधन अटूट है. पापा की नौकरी चली गई तो क्या हुआ? दूसरी मिल जाएगी. तब तक मेरी नौकरी में मजे से काम चल ही रहा है.’’
‘‘कहां काम चल रहा है मम्मी? मेरे सभी मित्र यही कहते हैं कि अब हम गरीब हो गए हैं. तभी तो प्रगति इंटरनेशनल को छोड़ कर हमें मौडर्न स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. ‘टाइगर हाइट्स’ छोड़ कर हमें जनता अपार्टमेंट के छोटे से फ्लैट में रहना पड़ रहा है.’’ किशोर उदास स्वर में बोला तो रिया सन्न रह गई थी.
‘‘ऐसा नहीं है बेटे. तुम्हारे पुराने स्कूल में ढंग से पढ़ाई नहीं होती थी इसीलिए उसे बदलना पड़ा,’’ रिया ने समझाना चाहा था. पर अपने स्वर पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था. बच्चे छोटे अवश्य हैं पर उन्हें बातों में उलझाना बच्चों का खेल नहीं था.
कुछ ही देर में बच्चे अपना गृहकार्य समाप्त कर खापी कर सो गए थे पर रिया राजीव की प्रतीक्षा में बैठे हुए ऊंघने लगी थी.
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नई दिल्ली: तीस हजारी कोर्ट का तमाशा पूरी दुनिया ने देखा. लोगों ने देखा कि कैसे कानून के रखवाले और संविधान के रक्षक दोनों कैसे जूझ रहे हैं. हालांकि आम आदमी को लूटने में दोनों ही माहिर होते हैं. हमने तो एक कहावत भी सुनी थी कि काले, सफेद, और खाकी वालों के दर्शन न हीं हो तो बेहतर है.
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले भी दिल्ली में वकील और पुलिस आमने-सामने आ चुके हैं लेकिन तब दिल्ली में डीसीपी थीं किरण बेदी. वही किरण बेदी जिन्हें ‘क्रेन बेदी’ भी कहा जाता है. दिल्ली के अलावा चेन्नई में भी वकील और पुलिस आमने-सामने आई थी.
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तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों की बीच हुई हिंसक झड़प के बाद अब पुलिसकर्मी विरोध प्रदर्शन पर उतर आए हैं. कमिश्नर की अपील के बाद भी मंगलवार को पुलिसकर्मियों ने पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की.
दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के जवानों ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक (Amulya Patnaik IPS) के सामने ‘हमारा सीपी(कमिश्नर) कैसा हो, किरण बेदी (Kiran Bedi) जैसा हो’ के नारे लगे. किरण बेदी ने ऐसा क्या किया जिसके कारण आज पुलिस कमिश्नर के सामने उनके जैसा कमिश्नर के नारे लगने लगे.
यह घटना 17 फरवरी 1988 की है. इस दिन डीसीपी किरण बेदी के दफ्तर में वकील पहुंचे हुए थे. इस बीच किसी बात पर बहस हो गई जो झड़प में बदल गई, इस दौरान बेकाबू भीड़ के कारण हालात ऐसे हो गए कि किरण बेदी को लाठीचार्ज कराना पड़ा. इस असर यह हुआ कि वकीलों ने दिल्ली की सभी अदालतों को बंद करा दिया. हालांकि इसके बाद भी एक न्यायाधीश ऐसे थे, जिन्होंने अपनी अदालत को खोले रखा और फैसले सुनाए.
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बवाल वाले दिन 17 फरवरी 1988 को याद करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस.एन. ढींगरा ने बताया था कि उस दिन डीसीपी दफ्तर में वकीलों की वजह से हालात बेकाबू हो गए थे, ऐसे में नौबत लाठीचार्ज तक आ पहुंची थी. उन्होंने कहा कि जब तक हालात बेकाबू न हो कोई पुलिस अधिकारी लाठीचार्ज नहीं कराता. आखिर वह बैठे-बिठाए मुसीबत क्यों मोल लेना चाहेगा.
अब इस लड़ाई में दिल्ली पुलिस रिटायर्ड गजटेड औफिसर एसोसियेशन ने भी बुधवार को छलांग लगा दी. इसकी पुष्टि तब हुई जब एसोसियेशन के अध्यक्ष पूर्व आईपीएस और प्रवर्तन निदेशालय सेवा-निवृत्त निदेशक करनल सिंह ने दिल्ली के उप-राज्यपाल और पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा. पत्र में जिम्मेदारी वाले पदों पर मौजूद दोनो ही शख्शियतों से आग्रह किया गया है कि अब तक हाईकोर्ट में जो कुछ हुआ है दिल्ली पुलिस उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाने का विचार गंभीरता से करे.
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कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु देश का तीसरा सब से बड़ा नगर है. बेंगलुरु के राजाजी नगर थाना क्षेत्र में भाष्यम सर्कल के पास वाटल नागराज रोड स्थित पांचवें ब्लौक के 17वें बी क्रौस में जयकुमार जैन अपने परिवार के साथ रहते थे.
जयकुमार जैन का कपड़े का थोक व्यापार था. पत्नी पूजा के अलावा उन के परिवार में 15 वर्षीय बेटी राशि (काल्पनिक नाम) और उस से छोटा एक बेटा था. जयकुमार मूलरूप से राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर के पास स्थित मेढ़ गांव के निवासी थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐशोआराम की जिंदगी जीने में यकीन करते थे.
जैन परिवार को देख कर कोई भी वैसी ही जिंदगी की तमन्ना कर सकता था. इस परिवार में सब कुछ था. सुख, शांति और समृद्धि के अलावा संपन्नता भी. ये सभी चीजें आमतौर से हर घर में एक साथ नहीं रह पातीं. मातापिता अपनी बेटी व बेटे पर जान छिड़कते थे. 41 वर्षीय जयकुमार जैन चाहते थे कि उन की बेटी राशि जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे.
उन की पत्नी पूजा व बेटे को पुडुचेरी में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना था. जयकुमार जैन शाम 7 बजे पत्नी व बेटे को कार से रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए गए. इस बीच घर पर उन की बेटी राशि अकेली रही. यह बात 17 अगस्त, 2019 शनिवार की है.
पत्नी व बेटे को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद जयकुमार घर वापस आ गए. घर आने के बाद बापबेटी ने साथसाथ डिनर किया. रात को उन की बेटी राशि पापा के लिए दूध का गिलास ले कर कमरे में आई और उन्हें पकड़ाते हुए बोली, ‘‘पापा, दूध पी लीजिए.’’
वैसे तो प्रतिदिन रात को सोते समय ये कार्य उन की पत्नी करती थी. लेकिन आज पत्नी के चले जाने पर बेटी ने यह फर्ज निभाया था. दूध पीने के बाद जयकुमार जैन अपने कमरे में जा कर सो गए.
दूसरे दिन यानी 18 अगस्त रविवार को सुबह लगभग 7 बजे पड़ोसियों ने जयकुमार जैन के मकान के बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें और धुआं निकलते देख कर फायर ब्रिगेड के साथसाथ पुलिस को सूचना दी. इस बीच जयकुमार की बेटी राशि ने भी शोर मचाया.
सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी बताए गए पते पर पहुंची और जयकुमार के मकान के अंदर पहुंच कर उन के बाथरूम में लगी आग को बुझाया. दमकलकर्मियों ने बाथरूम के अंदर जयकुमार जैन का झुलसा हुआ शव देखा.
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कपड़ा व्यापारी जयकुमार के मकान के बाथरूम में आग लगने और आग में जल कर उन की मृत्यु होने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते जयकुमार जैन के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा हो गई. जिस ने भी सुना कि कपड़ा व्यवसाई की जलने से मौत हो गई, वह सकते में आ गया.
आग बुझाने के दौरान थाना राजाजीपुरम की पुलिस भी पहुंच गई थी. मौकाएवारदात पर पुलिस ने पूछताछ शुरू की.
बेटी का बयान
मृतक जयकुमार की बेटी ने पुलिस को बताया कि सुबह पापा नहाने के लिए बाथरूम में गए थे, तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट से आग लगने से पापा झुलस गए और उन की मौत हो गई. घटना के समय जयकुमार के घर पर मौजूद युवक प्रवीण ने बताया कि आग लगने पर हम दोनों ने आग बुझाने का प्रयास किया. आग बुझाने के दौरान हम लोगों के हाथपैर भी झुलस गए.
मामला चूंकि एक धनाढ्य प्रतिष्ठित व्यवसाई परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया था. खबर पा कर सहायक पुलिस आयुक्त वी. धनंजय कुमार व डीसीपी एन. शशिकुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. मौके से आवश्यक साक्ष्य जुटाने व जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने व्यवसाई जयकुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए विक्टोरिया हौस्पिटल भेज दी.
पुलिस ने भी यही अनुमान लगाया कि व्यवसाई जयकुमार की मौत शौर्ट सर्किट से लगी आग में झुलसने की वजह से हुई होगी. लेकिन जयकुमार के शव की स्थिति देख कर पुलिस को संदेह हुआ. प्राथमिक जांच में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया, इसलिए पुलिस ने इसे संदेहास्पद करार देते हुए मामला दर्ज कर गहन पड़ताल शुरू कर दी.
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डीसीपी एन. शशिकुमार ने इस सनसनीखेज घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए तुरंत अलगअलग टीमें गठित कर आवश्यक निर्देश दिए. पुलिस टीमों द्वारा आसपास रहने वाले लोगों व बच्चों से अलगअलग पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली बात सामने आई.
पुलिस को मृतक जयकुमार की बेटी राशि व पड़ोसी युवक प्रवीण के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिली. घटना के समय भी प्रवीण जयकुमार के घर पर मौजूद था.
पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जरूर दाल में कुछ काला है. मकान में जांच के दौरान फोरैंसिक टीम को गद्दे पर खून के दाग मिले थे, जिन्हें साफ किया गया था. इस के साथ ही फर्श व दीवार पर भी खून साफ किए जाने के चिह्न थे.
दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के झुलसने से पहले उस की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. इस के बाद उच्चाधिकारियों को पूरी जानकारी से अवगत कराया गया. पुलिस का शक मृतक की बेटी राशि व उस के बौयफ्रैंड प्रवीण पर गया.
पुलिस ने दूसरे दिन ही दोनों को हिरासत में ले कर उन से घटना के संबंध में अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही दोनों के मोबाइल भी पुलिस ने कब्जे में ले लिए. जब राशि और प्रवीण से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और सवालों में उलझ कर पूरा घटनाक्रम बता दिया. दोनों ने जयकुमार की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप देने की बात कबूल कर ली.
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डीसीपी एन. शशिकुमार ने सोमवार 19 अगस्त को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर गहन पड़ताल की. इस के साथ ही जयकुमार जैन हत्याकांड 24 घंटे में सुलझा कर मृतक की 15 वर्षीय नाबालिग बेटी राशि और उस के 19 वर्षीय प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया गया.
उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जिसे घर में छिपा कर रखा गया था, बरामद कर लिया गया. साथ ही खून से सना गद्दा, कपड़े व अन्य साक्ष्य भी जुटा लिए गए.
हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी…
जयकुमार जैन की बेटी बेंगलुरु शहर के ही एक इंटरनैशनल स्कूल में पढ़ती थी. उसी स्कूल में जयकुमार के पड़ोस में ही तीसरे ब्लौक में रहने वाला प्रवीण कुमार भी पढ़ता था. प्रवीण के पिता एक निजी कंपनी में काम करते थे.
कुछ महीने पहले उस के पिता सहित कई कर्मचारियों को कुछ लाख रुपए दे कर कंपनी ने हटा दिया था. ये रुपए पिता ने प्रवीण के नाम से बैंक में जमा कर दिए थे. इन रुपयों के ब्याज से ही परिवार का गुजारा चलता था. प्रवीण उन का एकलौता बेटा था.
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राशि और प्रवीण में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे. प्रवीण राशि से 3 साल सीनियर था. फिलहाल राशि 10वीं की छात्रा थी, जबकि इंटर करने के बाद प्रवीण ने शहर के एक प्राइवेट कालेज में बी.कौम फर्स्ट ईयर में एडमीशन ले लिया था. अलगअलग कालेज होने के कारण दोनों का मिलना कम ही हो पाता था. इस के चलते राशि अपने प्रेमी से अकसर फोन पर बात करती रहती थी.
मौडल बनने की चाह
अकसर देर तक बेटी का मोबाइल पर बात करना और चैटिंग में लगे रहना पिता जयकुमार को पसंद नहीं था. बेटी को ले कर उन के मन में सुनहरे सपने थे. राशि और प्रवीण की दोस्ती को ले कर भी पिता को आपत्ति थी. जयकुमार ने कई बार राशि को प्रवीण से दूर रहने को कहा था. राशि को पिता की ये सब हिदायतें पसंद नहीं थीं.
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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
रेटिंगः साढ़े तीन स्टार
निर्माताः दिनेश वीजन
निर्देशकः अमर कौशिक
कलाकारः आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यामी गौतम, दीपिका चिखालिया, धीरेंद्र कुमार, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, सौरभ शुक्ला, अभिषेक बनर्जी व अन्य.
अवधिः दो घंटे सत्रह मिनट
हमारे यहां शारीरिक रंगत, मोटापा, दुबलापन, छोटे कद आदि के चलते लड़कियों को जिंदगी भर अपमान सहना पड़ता है. वह हीनग्रंथि कर शिकार होकर खुद को बदलने यानी कि चेहरे को खूबसूरत बनाने के लिए कई तरह की फेअरनेस क्रीम लगाती हैं, कद बढ़ाने के उपाय, मोटापा कम करने के उपाय करती रहती है. तो वही लड़के अपने सिर के गंजेपन से मुक्ति पाने के उपाय करते नजर आते हैं.
फिल्मकार अमर कौशिक ने इन्ही मुद्दों को फिल्म ‘बाला’ में गंजेपन को लेकर कहानी गढ़ते हुए जिस अंदाज में उठाया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. अंततः वह सदियों से चली आ रही इन समस्यओं से मुक्ति का उपाय देते हुए कहते हैं कि ‘खुद को बदलने की जरुरत क्यों? अपनी कहानी में वह काली लड़की के प्रति समाज के संकीर्ण रवैए को बताने में वह पीछे नही रहते.
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कहानीः
यह कहानी कानपुर निवासी बालमुकुंद शुक्ला उर्फ बाला (आयुष्मान खुराना) के बचपन व स्कूल दिनों से शुरू होती है. जब उसके सिर के बाल घने और सिल्की होते थे और वह अपने बालों पर इस कदर घमंड करता था कि स्कूल में हर खूबसूरत लड़की उसकी दीवानी थी. वह भी श्रुति का दीवाना था. मगर गाहे बगाहे बाला अपनी सबसे अच्छी दोस्त लतिका के काले चेहरे को लेकर उसका तिरस्कार भी करता रहता था. स्कूल में कक्षा के बोर्ड पर वह अपने गंजे शिक्षक की तस्वीर बनाकर उसे तकला लिखा करता था. मगर पच्चीस साल की उम्र तक पहुंचते ही बाला के सिर से बाल इस कदर झड़े कि वह भी गंजे हो गए.
उनकी बचपन की प्रेमिका श्रुति ने अन्य युवक से शादी कर ली. समाज में उसका लोग मजाक उड़ाने लगे हैं. बाला अब एक सुंदर बनाने वाली क्रीम बनाने वाली कंपनी में नौकरी कर रहे हैं. इसके प्रचार के लिए वह औरतों के बीच अपने अंदाज में बातें कर प्रोडक्ट बेचते हैं. एक बार लतिका (भूमि पेडणेकर) भी अपनी मौसी के साथ पहुंच जाती है. और बाला के सिर से टोपी हटाकर कर लोगों के सामने उसका गंजापन ले आती है. बाला का मजाक उड़ता है. प्रोडक्ट नही बिकता. परिणामतः नौकरी मे उसे मार्केटिंग से हटाकर आफिस में बैठा दिया जाता है.
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लतिका ने ऐसा पहली बार नही किया. लतिका स्कूल दिनों से ही बाला को बार-बार आईना दिखाने की कोशिश करती रही है, वह कहती रही है कि खुद को बदलने की जरुरत क्यों हैं. मगर बाला लतिका से चिढ़ता है. पेशे से जानी- मानी दबंग वकील लतिका काले रंग के कारण नकारी जाती रही है.मगर उसने कभी खुद को हीन महसूस नहीं किया.
बाला के माता (सीमा पाहवा) व पिता (सौरभ शुक्ला) भी परेशान हैं. क्योंकि बाला की शादी नहीं हो रही है. बालों को सिर का ताज समझने वाला बाला, बालों को उगाने के लिए सैकड़ों नुस्खे अपनाता है, वह हास्यास्पद व घिनौने हैं. मगर बाला को यकीन है कि उसके बालों की बगिया एक दिन जरूर खिलेगी. पर ऐसा नहीं होता. अंततः वह बाल ट्रांसप्लांट कराने के लिए तैयार होता है, पर उसे डायबिटीज है और डायबिटीज के कारण पैदा हो सकने वाली समस्या से डरकर वह ऐसा नही कराता.
अपने बेटे को निराश देखकर उनके पिता (सौरभ शुक्ला) बाला के लिए दिल्ली से विग मंगवा देते हैं. विग पहनने से बाला का आत्म विश्वास लौटता है. इसी आत्मविश्वास के बल पर लखनउ की टिक टौक स्टार व कंपनी की ब्रांड अम्बेसेडर परी (यामी गौतम) को अपने प्रेम जाल में फंसाकर उससे शादी कर लेता है. मगर सुहागरात से पहले ही परी को पता चल जाता है कि उसका पति बाला गंजा है. परी तुरंत ससुराल छोड़कर मायके पहुंच जाती है. अपनी मां (दीपिका चिखालिया) की सलासह पर वह अदालत में बाला पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए शादी को निरस्त करने की गुहार लगाती है.बाला अपना मुकदमा लड़ने के लिए वकील के रूप में लतिका को ही खड़ा करता है. पर अदालती काररवाही के दौरान बाला को सबसे बड़ा ज्ञान मिलता है.
लेखन व निर्देशनः
अमर कौशिक ने लगभग हर लड़की के निजी जीवन से जुड़ी हीनग्रथि और समाज के संकीर्ण रवैए को हास्य के साथ बिना उपदेशात्मक भाषण के जिस शैली में फिल्म में पेश किया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. मगर इंटरवल के बाद भाषणबाजी पर जोर देकर फिल्म को थोड़ा कमजोर कर डाला. फिल्म के संवाद कहीं भी अपनी मर्यादा नहीं खोते और न ही अश्लील बनते हैं. कुछ संवाद बहुत संदर बने हैं. अमर कौशिक ने महज फिल्म बनाने के लिए गंजेपन का मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि वह इस मुद्दे को गहराई से उठाते हुए इसकी तह तक गए हैं.
अमूमन फिल्म की कहानी व किरदार जिस शहर में स्थापित होते हैं, वहां की बोलचाल की भाषा को फिल्मकार मिमिक्री की तरह पेश करते रहे हैं, मगर इस फिल्म में कानपुर व लखनउ की बोलचाल की भाषा को यथार्थ के धरातल पर पेश किया गया है. फिल्मकार ने अपरोक्ष रूप से ‘टिकटौक स्टारपना’ पर भी कटाक्ष किया है. फिल्मकार ने इमानदारी के साथ इस सच को उजागर किया है कि जो लड़की महज दिखावे की जिंदगी जीती है, वह जिंदादिल नही हो सकती.
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अभिनयः
बाला के किरदार में आयुष्मान खुराना ने शानदार अभिनय किया है. दर्शक गंजेपन को भूलकर सिर्फ बाला के गम का हिस्सा बनकर रह जाता है. बाला की गंजेपन के चलते जो हताशा है, उसे दर्शकों के दिलों तक पहंचाने में आयुष्मान खुराना पूरी तरह से सफल रहे हैं. पर बौलीवुड के महान कलाकारों की मिमिक्री करते हुए कुछ जगह वह थकाउ हो गए हैं. भूमि ने साबित कर दिखाया कि सांवले /काले रंग के चहरे वाली लड़की लतिका के किरदार को उनसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता था.
कई दृश्यों में वह चिंगारी पैदा करती हैं. टिकटौक स्टार परी के किरदार में यामी गौतम सुंदर जरुर लगी हैं, मगर कई दृश्यों में उन्होंने ओवर एक्टिंग की है. छोटे से किरदार में दीपिका चिखालिया अपनी उपस्थिति दर्ज करा जाती हैं. सौरभ शुक्ला, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, धीरेंद्र कुमार ने ठीक ठाक अभिनय किया है.
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बिग बौस के घर में आए दिने कुछ ना कुछ अलग और नया दर्शकों को देखने को मिलता ही रहता है. हाल ही में कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला को माहिरा शर्मा के साथ हाथापाई करने के लिए बिग बौस नें उन्हें 2 हफ्ते तक नोमिनेट रहनें की सजा सुनाई तो वहीं दूसरी तरफ पंजाब की कैटरीना कहे जाने वाली कंटेस्टेंट शहनाज गिल को बिग बौस नें उनकी बात ना मानने पर 1 हफ्ते के लिए नोमिनेट कर दिया.
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पारस छाबड़ा और माहिरा शर्मा हुए खुश…
बीते एपिसोड में बिग बौस के घर की बहुओं यानी रश्मि देसाई और देवोलीना भट्टाचार्य नें घर के अंदर एंट्री ली है. रश्मि और देवोलीना को देख घर के सदय्स काफी हैरान हुए और हैरानी के साथ साथ दोनों को देख पारस छाबड़ा और माहिरा शर्मा की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही ना था. वे दोनो इसलिए खुश थे क्योंकि उनकी टीम कमजार पड़ने लगी थी और जब पारस और माहिरा नें रश्मि और देवोलीना देखा तो वे काफी खुश दिखाई दिए.
घरवालों ने मिलकर किया सिद्धार्थ को टारगेट…
इन सब के बीच कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला काफी परेशान नजर आए क्योंकि शहनाज गिल समेत सब उनका साथ छोड़ कर दूसरी टीम के साथ मिल गए थे. सिद्धार्थ के पास अब बस एक असीम रियाज ही हैं जो उनका साथ दे सकते हैं. हाल ही में बिग बौस शो के मेकर्स नें एक प्रोमो रिलाज किया है जिसमें ये साफ दिखाई दे रहा है कि सभी घरवाले मिलकर सिद्धार्थ को टारगेट करने में लगे हुए हैं वो वही सिद्धार्थ के फैंस उनको जमकर सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं.
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गुस्से से लाल सिद्धार्थ शुक्ला कहते हैं कि…
प्रोमो में रश्मि देसाई समेत सभी घरवाले सिद्धार्थ शुक्ला पर काम का दबाव डाल रहे हैं और इसी बात से सिद्धार्थ ये समझ जाते हैं कि सारे उनके खिलाफ हो कर उन्हें टारगेट कर रहे हैं. इसी के चलते सिद्धार्थ और रश्मि के बीच काफी बहस होती नजर आती है और गुस्से से लाल सिद्धार्थ शुक्ला कहते हैं कि, ‘तुम सब कितने हो….11…12…भाड़ में जाओ सब…मैं तुम लोगों से यहां पर रिश्ता बनाने नहीं आया हूं’.
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देखिए ट्वीटर पर सिद्धार्थ शुक्ला के फैंस का सपोर्ट…
#BiggBoss13 sayad parash aur rashmi ki team ye nahi janti …..
Group me to suar aate hain…. Aur sher akela hi aata hai…. Aur us sher ki dahad se sare suar tilmila jate hain … Jaisa ki BB 13 me dikh raha hai#SidharthShukla keep it up… Sid… I love you…— Smart (@Smart89257206) November 8, 2019
Hats off to SID for Tolerating SUVAR gang’s Never Ending Nonsense and To Asim for Trolling them Like A Boss!#BB13 #SidharthShukla #AsimRiaz
— Johnny Balraj (@JohnnyBalrajS) November 8, 2019
Yes 😂😂😂
— Sima Shah 🇮🇳💞👸(SID S BB13)☺️🔥 (@Simashah24) November 8, 2019
It’s clearly 1 vs the whole house! Remember, the winner is always the one who’s the most targeted and cornered! We know how everyone wants to make #SidharthShukla alone! He’s a lone warrior! He’ll battle it till the end and come out with the #BiggBoss13 trophy! @sidharth_shukla
— Sidharth Shukla🔥 Fans😍🖤 (@sidharthfanpage) November 8, 2019
Rashmi- I am not comfortable with shukla.
Shukla- So you go home.
😂😂😂😂
Epic😂😂 #BiggBoss13 #SidharthShukla @sidharth_shukla 🔥— Aayushi (@iAayushi_) November 8, 2019
रेटिंगः दो स्टार
निर्माताः मुराद खेतानी और अश्विन वर्दे
निर्देशकः इरफान कमल
कलाकारः सूरज पंचोली,मेघा आकाश, उपेंद्र लिमये,अनिल के रेजी,पालोमी घोष,राज अर्जुन व अन्य.
अवधिः दो घंटे बीस मिनट
फिल्मकार इरफान कमल फिल्म‘‘सेटेलाइट’’शंकर में भारतीय सेना के एक जवान की जिंदगी की व उसकी प्रेम कथा लेकर आए हैं, जो कि एक बेहतरीन रोमांचक और रोमांटिक फिल्म बन सकती थी, मगर फिल्मकार ने उसे देशभक्त और हर मुसीबत के समय लोगों की मदद के लिए कूद पड़ने वाले हीरो के रूप में पेश करने के चक्कर में फिल्म को चैपट कर डाला.
कहानीः
कहानी के केंद्र में केरला निवासी भारतीय सेना का जवान शंकर (सूरज पंचोली) है, जो कि कश्मीर सीमा पर कार्यरत है. उसकी बटालियन से जुड़े लोग उसे सैटेलाइट के नाम से जानते हैं, क्योकि उसके पास बचपन में उसके पिता द्वारा दिया गया एक उपकरण है, जिसकी मदद से वह किसी की भी मिमिक्री करके लोगों का मनोरंजन भी करता रहता है.
वह केरला का रहने वाला है मगर उसे हिंदी सहित कई दूसरे राज्यों की भाषाओं में भी महारत हासिल है. सैटेलाइट शंकर दूसरों की वाजें निकालकर कई बार विषम परिस्थिति को भी अनुकूल बनाकर लोगों के बीच खुशियों की बहार ले आता है.
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सीमा पर गोलीबारी में घायल होने के बाद जब आर्मी अस्पताल के डाक्टर शंकर को आठ दिन अस्पताल में आराम करने की हिदायत देते हैं, तो वह अपने वरिष्ठ से बात कर आठ दिन अस्पताल में बिताने की बजाय अपने घर जाकर अपनी मां की आंख का आपरेशन कराकर वापस आने की आठ दिन की छुट्टी ले लेता है. उसके वरिष्ठ उसे सैनिक की शपथ दिलवाते हैं कि आठवें दिन वह अपने बेसकैंप सुबह मौजूद रहेगा.
जब शंकर अपने शहर पोलाची के लिए रवाना होता है, तो उसकी बटालियन के साथी उसे अपने घरों के लिए संदेश और तोहफे उसके हाथ से भिजवाते हैं. घर जाते हुए ट्रेन में वह अपनी मां के कहने पर नर्स प्रमिला (मेघा आकाश) से बात कर उसे अपने दोस्त श्रीधर से बात करने के लिए कहता है. क्योंकि उसे प्रमिला की तस्वीर पसंद नहीं आयी थी. पर श्रीधर की बातें सुनकर शंकर को अपनी गलती का अहसास होता है. आगे चलकर रास्ते में वह पुनः प्रमिला से बात करते हैं.
कश्मीर से पोलाची जाते समय उसका एक सैनिक की तरह मददगार और निस्वार्थ स्वभाव उसके लिए मुसीबतें खड़ी कर देता है. एक बंगाली बुजुर्ग दंपति को उनकी सही ट्रेन में बैठाने के चक्कर में उसकी अपनी ट्रेन छूट जाती है. अब उसे पठानकोट टैक्सी से जाकर उसी ट्रेन को पकड़ना है.
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टैक्सी वाला दो हजार रूपए मांगता है. पर उसकी मुलाकात एक विडियो ब्लौगर मीरा (पालोमी घोष) से होती है, जिसके साथ मिलकर वह टैक्सी माफिया का पर्दाफाश करता है. वहां भी उसकी ट्रेन छूट जाती है. वह सड़क के रास्ते चलकर पंजाब में अपने साथी के घर उसका समान पहुंचाता है. वह अपने दोस्त की आवाज में बातें करके उसकी कोमा में जा चुकी मां को होश में लाता है, फिर वह आगरा फोर्ट पहुंचाता है, पर उसे एक बार फिर ट्रेन छोड़नी पड़ती है, क्योंकि वह दुर्घटनाग्रस्त बस में फंसे लोगों को मौत के मुंह से बचाने लग जाता है.
फिर ग्वालियर के नजदीक के एक शहर में अपनी बटालियन के साथी अनवर के घर जाकर भाइयों के आपसी मनमुटाव को दूर करता है. फिर महाराष्ट् में वह टेंपो ड्राइवर को गुंडों से बचाता है. इस समाज सेवा के चक्कर में अब सैटेलाइट शंकर के पास अपने बेस कैंप में पहुंचने में सिर्फ दो दिन बचे हैं. इसलिए अब वह अपनी मां के पास जाने की बजाय वापस लौटना चाहता है. पर एक शहीद महाड़िक की पत्नी के कहने पर मां के पास जाने का मन बना लेता है.
उसी वक्त प्रमिला से उसकी बात होती है. वह अपनी समस्या बताता है. तब मेघा, शंकर को न केवल उसकी मां से मिलने की तरकीब बताती है, बल्कि उसके वापस कश्मीर लौटने का रास्ता भी सुझाती है. मेघा व शंकर की मुलाकात हो जाती है. शंकर, मेघा को दिल दे बैठता है. शंकर अपनी मां से मिलकर, उनकी आंखों का आपरेशन करवाकर किस तरह आर्मी बेस में हाजिर होता है, वह अपने आप में रोचक है.
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निर्देशनः
फिल्मकार इरफान कमल ने यदि थोड़ी सावधानी के साथ इस फिल्म का निर्माण किया होता,तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. क्योंकि वर्तमान समय में हमारे देश को जिस तरह के नायक की जरुरत है, फिल्म में उसी तरह देश को अखंड करने वाले नायक की कहानी बयां की गयी है. मगर फिल्म की शुरूआत से ही फिल्मकार इशारा कर देते है कि वह विषयवस्तु के साथ गंभीर नहीं है.
पहले दृश्य में गोलीबार के दृश्य को जिस तरह से मजाकिया अंदाज में पेश किया गया,उसे सही नही ठहराया जा सकता. फिल्मकार ने अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग करते हुए एक सैनिक को निजी जीवन में भी नायक बताने के चक्कर में फिल्म का गुड़गोबर कर डाला. फिल्म की पटकथा कई जगह मैलोड्रामैटिक हो गयी है. इंटरवल से पहले फिल्म बेवजह लंबी कर दी गयी है, इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी.
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एक ही फिल्म में आपसी भाईचारा, भ्रष्टाचार को दूर करने सहित तमाम सामाजिक मुद्दे रखकर फिल्म को चूंचूं का मुरब्बा बना दिया गया. इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ठीक हो जाती है,जब सैटेलाइट शंकर के रोमांस व सोशल मीडिया द्वारा शंकर की मदद के दृश्य रोचक बने हैं. फिल्मकार ने यदि एक सैनिक की प्रेम कहानी को कुछ ज्यादा तवज्जो दी होती, तो भी फिल्म रोचक बन सकती थी.
वीडियो ब्लागर के किरदार को भी अतशयोक्तिपूर्ण और कई जगह अति बचकाना बना दिया गया है. फिल्म में जितने भी मुद्दे उठाए गए हैं,वह अपना प्रभाव डालने में असफल रहे हैं. फिल्म की लंबाई हर हाल में कम की जानी चाहिए थी.
अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है,तो चार साल बाद सूरज पंचोली ने इस फिल्म से वापसी की है. 2015 में वह असफल फिल्म ‘हीरो’ में नजर आए थे. सूरज पंचोली ने एक्शन व नृत्य के दृश्यों में अच्छा काम किया है, मगर संवाद अदायगी सहित इमोशनल दृश्यों के लिए उन्हे अभी और मशक्कत करने की जरुरत है.
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प्रमिला के किरदार में दक्षिण भारत की अदाकारा मेघा आकाश सुंदर व प्यारी लगी हैं. उनकी संवाद अदायगी आपको अपना बना लेती है. सूरज पंचोली और मेघ आका की औन स्क्रीन केमिस्ट्री बहुत क्यूट है. वीडियो ब्लागर के किरदार में पालोमी घोष ने ठीक ठाक अभिनय किया है,मगर कई जगह उन्होने ओवर एक्टिंग की है.
टेलीविजन इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा टी.आर.पी गेन करने वाला कलर्स टी.वी का रीएलिटी शो बिग बौस का सीजन 13 इन दिनों काफी सुर्खियों में है. दरअसल ऐसा हर बार देखने को मिलता है कि बिग बौस के घर में लड़ाई झगडे और एंटरटेनमेंट का तड़का लगता ही रहता है लेकिन इस बार सीजन की शुरूआत से ही घरवालों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहां. बिग बौस सीजन 13 की शुरूआत से ही घरवालों ने अपने असली रूप दिखाने शुरू कर दिए थे.
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7 सदस्य हैं नोमिनेटिड…
हाल ही में केटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला को माहिरा शर्मा को चोंट पहुंचाने के लिए 2 बिग बौस नें 2 हफ्ते तक नोमिनेट रहने की सजा सुनाई थी तो वहीं बीते एपिसोड में पंजाब की कैटरीना कैफ यानी शहनाज गिल को बिग बौस नें उनकी बात ना मानने के लिए 1 हफ्ते के लिए नोमिनेट कर दिया है. इस समय घर के अंदर 7 सदस्य नोमिनेटिड हैं जिसमें से पारस छाबड़ा, शहनाज गिल, सिद्धार्थ शुक्ला, शैफाली जरीवाला, अरहान खान, तहसीन पूनावाला और माहिरा शर्मा का नाम शामिल है.
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सिद्धार्थ शुक्ला को मिले सबसे ज्यादा वोट्स…
हाल ही में आई खबरों की मानें तो कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा, शहनाज गिल, सिद्धार्थ शुक्ला, शैफाली जरीवाला, को सबसे ज्यादा वोट्स मिले हैं तो इन में से कोई घर से बेघर नहीं होगा पर कंटेस्टेंट अरहान खान, तहसीन पूनावाला और माहिरा शर्मा के ऊपर खतरे की तलवार लटक रही है. वोटिंग ट्रेंड की मानें तो सिद्धार्थ शुक्ला इस लिस्ट में सबसे पहले नंबर पर हैं तो वहीं इस शो की एंटरटेनर शहनाज गिल दूसरे स्थान पर हैं. शैफाली जरीवाला और पारस छाबड़ा तीसरे और चौथे स्थान पर है. लेकिन इसके बाद अरहान खान पांचवे स्थान पर हैं और माहिरा शर्मा छठे स्ठान पर. अगर बार करें उस कंटेस्टेंट की जिसे इस सब में से सबसे कम वोट्स मिले हैं तो वो हैं तहसीन पूनावाला.
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1 हफ्ते के 21 लाख रूपए…
ये सब देखने से तो ऐसा लग रहा है कि सबसे कम वोट्स की वजह से कंटेस्टेंट तहसीन पूनावाला इस हफ्ते घर से बेघर हो सकते हैं. खबरों के आधार पर एक और बात सामने निकल कर आई है जो ये है कि तहसीन पूनावाला इस शो में सबसे ज्यादा रकम लेने वाले कंटेस्टेंट हैं. तहसीन को बिग बौस के घर से 1 हफ्ते के 21 लाख रूपए मिल रहे हैं. दर्शकों के मन में इस बार को लेकर काफी खलबली मची हुई है कि इस वीकेंड के वौर में कौन होगा बिग बौस के घर से बेघर.
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Voting Trend 10AM Thursday #BB13
Sidharth Shukla
Shehnaz Gill
Shefali Jariwala
Paras Chabbra
Arhaan Khan❌
Mahira Sharma❎
Tehseen Poonawalla❎#BB13 #BB13OnVoot #BiggBoss13— The Khabri (@TheKhbri) November 7, 2019