1992 में श्याम बेनेगल के निर्देशन में फिल्म ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ से फिल्मों में कदम रखने वाले रजित कपूर पिछले चालिस वर्षों से थिएटर से जुड़े हुए हैं. उन्होने टीवी पर भी काफी काम किया है. 1996 में फिल्म ‘‘द मेकिंग औफ महात्मा’’ के लिए उन्हे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया. 27 वर्षों से फिल्मों में काम करते आ रहे हैं. फिल्म ‘राजी’ से उन्हे एक नई पहचान मिली. अब वह नमन नितिन मुकेश निर्देशित फिल्म ‘‘बायपास रोड’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि आठ नवंबर को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

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हाल ही में उनसे एक्सक्लूसिब बातचीत हुई....

आप खुद अपने 27 साल के कैरियर कों किस जगह देख रहे हैं?

- पता नहीं.यह ऊपर वाले की मेहरबानी है. इन 27 सालों में इतने अच्छे अच्छे किरदार निभाने का मौका मिला है. इसी तरह आगे भी अच्छे किरदार निभाने का मौका मिलता रहे, यही इच्छा है.

आपके कैरियर में कौन-कौन से टर्निंग प्वाइंट्स रहे?

- सबसे पहला टर्निंग प्वाइंट फिल्म ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ रही. क्योंकि वह मेरी पहली फिल्म थी. इसमें मुझे श्याम बेनेगल के निर्देशन में काम करने का असवर मिला था. उसके बाद ‘द मेकिंग ऑफ महात्मा’ के लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. यह भी मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट था. व्यावसायिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए, तो फिल्म ‘‘गुलाम’’ थी, यह भी व्यावासयिक दृष्टिकोण से मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट था. शायद कुछ हद तक इसके बीच में औफर इतने ज्यादा खराब थे कि मैंने काम करना छोड़ दिया था. इसलिए फिल्म ‘‘राजी’’ के बाद फिर से वापस दर्शकों की निगाहों में बस जाना भी एक टर्निंग प्वाइंट हो सकता है. क्योंकि ‘राजी’और ‘उरी’ दोनों लगभग एक साथ आई थीं.  तो कई लोगों को लगा कि मैं बीच में गायब क्यों हो गया था. मैंने कहा कि अच्छे किरदार कहां थे? जब अच्छे किरदार ही नहीं थे, तो मैं उन्हें कैसे निभाता.

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