आपकी पर्सनैलिटी पर खूब जचेंगे ‘कंटेम्पररी किंग’ टेरेंस लुईस के ये लुक्स

अक्सर आपने देखा होगा कि डांसर्स काफी ढ़ीले-ढ़ाले कपड़े पहनते हैं जैसे कि लोवर और टीशर्टस्, लेकिन हम आज आपको एक ऐसे डांसर के बारे में बताएंगे जिनके ना सिर्फ डांस की दुनिया दीवानी है बल्कि उनके लुक्स भी लोगों में काफी पौपुलर हैं. जी हां, हम यहां बात कर रहे हैं कंटेम्पररी डांस फोर्म के किंग यानी टेरेंस लुईस की. टेरेंस का डांस फोर्म जितना पौपुलर है उससे कई ज्यादा पौपुलर उनका फैशन है. तो हम आपको दिखाते हैं टेरेंस लुईस के कुछ ऐसे लुक्स जिसे ट्राय कर आप किसी को भी आसानी से इम्प्रेस कर सकते हैं.

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ट्रेंडी शूज़…

इस लुक में टेरेंस नें व्हाइट कलर की शर्ट के ऊपर ब्लैक कलर का बेस कोट और साथ ही ग्रे कलर का स्टाइलिश ब्लेजर कैरी किया हुआ है. इस लुक के साथ जो टेरेंस नें ट्रेंडी शूज़ पहने हुए हैं वो वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं. उन्होनें ब्लैक कलर के कीलों वाले शूज़ पहने हुए जो कि आप कल काफी ट्रेंड में हैं.

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स्टाइलिश हाई नेक जैकेट…

इस लुक में टेरेंस लुईस नें ब्लैक कलर की ‘rugged’ जींस के साथ ब्लैक कलर की ही हाई नेक जैकेट कैरी की हुई है जो काफी स्टाइलिश दिख रही है. इस लुक के साथ टेरेंस नें मल्टीकलर शूज पहने हुए हैं जो कि काफी फंकी लग रहे हैं.

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पार्टी वियर लुक…

इस पार्टी वियर लुक में टेरेंस नें ब्लैक कलर की शर्ट के साथ ब्लैक कलर का ट्राउसर पहना हुआ है. इस लुक के साथ उन्होनें व्हाइट कलर का ब्लेजर कैरी किया हुआ है जो कि इस लुक के साथ काफी सूट कर रहा है. आप भी टेरेंस का ये लुक किसी भी पार्टी में ट्राय कर सबको इम्प्रेस कर सकते हैं.

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फंकी लुक…

इस फंकी लुक में टेरेंस नें ब्लैक कलर की शर्ट के साथ ब्लू कलर की ‘rugged’ जींस पहनी हुई है और साथ ही इसके ऊपर उन्होनें ब्लू कलर की फंकी जैकेट कैरी की हुई है जो कि इस लुक में चार चांद लगा रही है. इस लुक के साथ टेरेंस नें गोल्डन कलर के ट्रेंडी शूज़ पहने हुए हैं.

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धोखाधड़ी: क्लर्क से बना कल्कि अवतार

तब मेरी उम्र 14-15 साल रही होगी. मेरी मौसी के बेटे की शादी थी. गरमी की छुट्टियां थीं तो वहां जाना कोई बड़ा मसला नहीं था. एक दिन की बात है. खेतों में गेहूं की कटाई चल रही थी. मौसी का पूरा परिवार खेत में था.

दोपहर में कोई नौजवान बाबा वहां आया और सब के हाथ देख कर भविष्य बताने लगा. मेरे बारे में उस बाबा ने 2 अहम बातें कही थीं.

पहली यह कि मैं 84 साल तक जिऊंगा और दूसरी यह कि बड़ा हो कर मैं वकील बनूंगा. बाद में मौसी ने उस बाबा को खाना और अनाज दिया था.

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अब उस बाबा की भविष्यवाणी पर आते हैं. मेरी उम्र के बारे में बाबा ने शिगूफा छोड़ा था, क्योंकि यह तो कोई नहीं बता सकता कि कोई कितना जिएगा, पर बाबा की कही दूसरी बात भी गलत ही साबित हुई. मैं वकील नहीं बना. मतलब, मेरे मन में कभी दूरदूर तक खयाल नहीं आया कि इस फील्ड में हाथ आजमाया जाए.

लेकिन उस बाबा की कही ये बातें आज भी मेरे मन में क्यों उमड़घुमड़ रही हैं? शायद उस बाबा के गेटअप का असर था. दाढ़ीमूंछ, भगवा कपड़े, हाथ में लाठी और कमंडल. उस बाबा के बात करने का तरीका भी लुभावना था और चूंकि उसे किसी के भी भविष्य को बताने या उस की मुसीबतों से छुटकारा दिलाने का धार्मिक लाइसैंस मिला हुआ था, इसलिए इधरउधर की हांक कर वह अपने 2-4 दिन के खाने का जुगाड़ कर गया था, बिना अपने शरीर या दिमाग को कष्ट दिए.

यह तो हुआ एक अनजान बाबा का किस्सा. अब आप को एक ऐसे आदमी से रूबरू कराते हैं, जिस ने खुद को कल्कि अवतार बता कर लोगों से इतना पैसा ऐंठा कि भगवान के साथसाथ वह धन्ना सेठ भी हो गया.

मजे की बात तो यह है कि उस ने ऐसे लोगों को अपना भक्त बनाया जो अच्छेखासे पढ़ेलिखे हैं और समाज में जिन का रुतबा भी है.

हम बात कर रहे हैं 70 साल के वी. विजय कुमार नायडू की, जो कभी एलआईसी में क्लर्क था. बाद में नौकरी छोड़ कर उस ने एक ऐजुकेशनल संस्थान बनाया था, पर जब वह संस्थान नहीं चला तो वह अंडरग्राउंड हो गया. इस के बाद साल 1989 में वह खुद को विष्णु का 10वां अवतार कल्कि भगवान बताते हुए चित्तूर में प्रकट हुआ.

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अब तमिलनाडु के उसी अवतार के यहां 600 करोड़ रुपए की बेनामी जायदाद मिली है. इस में 20 करोड़ के अमेरिकी डौलर हैं और 44 करोड़ रुपए की भारतीय करंसी है. 88 किलो सोना बरामद हुआ है. 1271 कैरेट के बेशकीमती हीरे भी मिले हैं. कैश की रसीदें मिली हैं जिन से पता चलता है कि उस के पास 600 करोड़ रुपए की बेनामी जायदाद है.

नए जमाने के इस कल्कि भगवान के 40 ठिकानों पर रेड चली थी, जिन में उस के नाम पर बनी एक यूनिवर्सिटी और एक आध्यात्मिक स्कूल शामिल है. इस बाबा का मुख्य आश्रम आंध्र प्रदेश में चित्तूर जिले के वैरादेहपलेम इलाके में है.

इनकम टैक्स डिपार्टमैंट के सूत्रों के मुताबिक, आश्रम के ऊपर जमीनों को हड़पने और टैक्स चोरी के आरोप हैं. इस के अलावा कल्कि ट्रस्ट के फंड में भी गड़बडि़यां हो सकती हैं.

क्लर्क से कल्कि बने इन महाशय ने दूसरे तमाम बाबाओं की तरह अध्यात्म को ही अपना हथियार बनाया. उस ने अपना मायाजाल लाखों भारतीय लोगों के साथसाथ कई विदेशियों पर भी फेंका और उन्हें जम कर ठगा. बाद में कमाई का यह धंधा फलताफूलता गया और कल्कि भगवान देखते ही देखते करोड़पति बन गया.

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कुछ अलगअलग वैबसाइट से पता चलता है कि इस कल्कि भगवान के आशीर्वाद से बहुत से लोगों के बच्चों के अच्छे संस्थाओं में दाखिले हो गए. यह इतना दयालु था कि इस के चमत्कारों से बहुत से लोगों के डूबे हुए पैसे वापस मिल गए.

यहां तक कि बाबा की कृपा से बहुत से भक्तों के सारे बरतन अपनेआप साफ हो गए. कुछकुछ वैसे ही, जैसे कभी निर्मल बाबा की बरसती कृपा से लोगों की जिंदगी में खुशहाली आ जाती थी. वह समोसे खिला कर लोगों को भरमाता था तो यह अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से लोगों की जेब हलकी कर देता था.

इस कल्कि भगवान ने खुद को और पत्नी पद्मावती को देवीदेवता के समान बताया था. इस के आश्रमों में देश के अमीर लोगों के अलावा विदेशी और एनआरआई लोगों की भी कतारें लगती थीं. यही वजह थी कि इस कल्कि भगवान के साधारण दर्शन के लिए लोगों को 5,000 रुपए और विशेष दर्शन के लिए 25,000 रुपए देने पड़ते थे.

देखा जाए तो अब सरकारी महकमे की दबिश पड़ने के बाद ही पता चला कि दक्षिण भारत के एक छोटे से इलाके में कोई रईस कल्कि भगवान रहता है. इस के अलावा न जाने कितने ऐसे तथाकथित भगवान अपनीअपनी दुकान लगाए लोगों के दुखों का कारोबार कर रहे हैं और मजे की जिंदगी गुजार रहे हैं. बहुत से कानून के शिकंजे में फंस कर जेल की हवा तक खा रहे हैं, पर जनता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है.

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अभी हाल ही में जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब हर पार्टी का नेता चाहता था कि राम रहीम के अनुयायी उसे ही वोट दें. सब ने उन्हें लुभाने की पूरी कोशिश की थी, जबकि राम रहीम अभी रेप के सिलसिले में जेल में बंद है.

ऐसे बाबा लोग आम जनता की उस दुखती रग पर हाथ रखते हैं, जैसी रग कभी उस अनजान बाबा ने खेत में आ कर हमारे परिवार के लोगों की पकड़ी थी. उसे पता था कि वह  झूठ बोल रहा है या तुक्का मार रहा है, लेकिन साथ ही उसे यह भी पता था कि ये लोग उस के तुक्के को तीर सम झ कर उस की रोजीरोटी का इंतजाम तो कर ही देंगे.

यह तो पता नहीं कि मेरी भविष्यवाणी बताने वाले उस बाबा का आगे क्या हुआ, लेकिन अगर कहीं उस की गोटी सैट बैठ गई होगी तो किसी छोटे से गांव के मंदिर में उस ने यकीनन ऐश की जिंदगी गुजारी होगी, वहां का कल्कि भगवान बन कर.

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व्यथा दो घुड़सवारों की

जो  भी घोड़ी पर बैठा उसे रोता हुआ ही देखा है. घोड़ी पर तो हम भी बैठे थे. क्या लड्डू मिल गया, सिवा हाथ मलने के. एक दिन एक आदमी घोड़ी पर चढ़ रहा था. मेरा पड़ोसी था इसलिए मैं ने जा कर उस के पांव पकड़ लिए और बोला, ‘‘इस से बढि़या तो बींद राजा, सूली पर चढ़ जाओ. धीमा जहर पी कर क्यों घुटघुट कर मरना चाहते हो?’’

मेरा पड़ोसी बींद राजा, मेरे प्रलाप को नहीं समझ सका और यह सोच कर कि इसे बख्शीश चाहिए, मुझे 5 का नोट थमाते हुए बोला, ‘‘अब दफा हो जा, दोबारा घोड़ी पर चढ़ने से मत रोकना मुझे,’’ यह कह कर पैर झटका और मुझ से पांव छुड़ा कर वह घुड़सवार बन गया. बहुत पीड़ा हुई कि एक जीताजागता स्वस्थ आदमी घोड़ी पर चढ़ कर सीधे मौत के मुंह में जा रहा है.

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मैं ने उसे फिर आगाह किया, ‘‘राजा, जिद मत करो. यह घोड़ी है बिगड़ गई तो दांतमुंह दोनों को चौपट कर देगी. भला इसी में है कि इस बाजेगाजे, शोरशराबे तथा बरात की भीड़ से अपनेआप को दूर रखो.’’

बींद पर उन्माद छाया था. मेरी ओर हंस कर बोला, ‘‘कापुरुष, घोड़ी पर चढ़ा भी और रो भी रहा है. मेरी आंखों के सामने से हट जा. विवाह के पवित्र बंधन से घबराता है तथा दूसरों को हतोत्साहित करता है. खुद ने ब्याह रचा लिया और मुझे कुंआरा ही देखना चाहता है, ईर्ष्यालु कहीं का.’’

मैं बोला, ‘‘बींद राजा, यह लो 5 रुपए अपने तथा मेरी ओर से यह 101 रुपए और लो, पर मत चढ़ो घोड़ी पर. यह रेस बहुत बुरी है. एक बार जो भी चढ़ा, वह मुंह के बल गिरता दिखा है. तुम मेरे परिचित हो इसलिए पड़ोसी धर्म के नाते एक अनहोनी को मैं टालना चाहता हूं. बस में, रेल में, हवाईजहाज में, स्कूटर पर या साइकिल पर चढ़ कर कहीं चले जाओ.’’

बींद राजा नहीं माने. घोड़ी पर चढ़ कर ब्याह रचाने चल दिए. लौट कर आए तो पैदल थे. मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘लाला, कहां गई घोड़ी?’’

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‘‘घोड़ी का अब क्या काम? घोड़ी की जहां तक जरूरत थी वहीं तक रही, फिर चली गई.’’

‘‘इसी गति से तुम्हें साधनहीन बना कर तुम्हारी तमाम सुविधाएं धीरेधीरे छीन ली जाएंगी. कल घोड़ी पर थे, आज जमीन पर. कल तुम्हारे जमीन पर होने पर आपत्ति प्रकट की जाएगी. तब तुम कहोगे कि मैं ने सही कहा था.’’

इस बार भी बींद ने मेरी बात पर गौर नहीं फरमाया तथा ब्याहता बींदणी को ले कर घर में घुस गया. काफी दिनों बाद बींद राजा मिले तो रंक बन चुके थे. बढ़ी हुई दाढ़ी तथा मैले थैले में मूली, पालक व आलूबुखारा ले कर आ रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘राजा, क्या बात है? क्या हाल बना लिया? कहां गई घोड़ी. इतना सारा सामान कंधे पर लादे गधे की तरह फिर रहे हो?’’

‘‘भैया, यह तो गृहस्थी का भार है. घोड़ी क्या करेगी इस में.’’

‘‘लाला, दहेज में जो घोड़ी मिली है, उस के क्या हाल हैं. वह सजीसंवरी ऊंची एड़ी के सैंडलों में बनठन कर निकलती है और आप चीकू की तरह पिचक गए हो. भला ऐसे भी घोड़ी से क्या उतरे कि कोई सहारा देने वाला ही नहीं रहा?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इस बीच मुझे पुत्र लाभ हो चुका है तथा अन्य कई जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. बाकी विशेष कुछ नहीं है,’’ बींद राजा बोले.

‘‘अच्छाभला स्वास्थ्य था राजा आप का. किस मर्ज ने घेरा है कि अपने को भुरता बना बैठे हो.’’

‘‘मर्ज भला क्या होगा. असलियत तो यह है, महंगाई ने इनसान को मार दिया है.’’

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‘‘झूठ मत बोलो भाई, घोड़ी पर चढ़ने का फल महंगाई के सिर मढ़ रहे हो. भाई, जो हुआ सो हुआ, पत्नी के सामने ऐसी भी क्या बेचारगी कि आपातकाल लग जाता है. थोड़ी हिम्मत से काम लो. पत्नी के रूप में मिली घोड़ी को कामकाज में लगा दो, तभी यह उपयोगी सिद्ध होगी. किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर बनवा दो,’’ मैं ने कहा.

‘‘बकवास मत करो. तुम मुझे समझते क्या हो? इतना कायर तो मैं नहीं कि बीवी की कमाई पर बसर करूं.’’

‘‘भैया, बीवी की कमाई ही अब तुम्हारे जीवन की नैया पार लगा सकती है. ज्यादा वक्त कंधे पर बोझ ढोने से फायदा नहीं है. सोचो और फटाफट पत्नी को घोड़ी बना दो. सच, तुम अब बिना घुड़सवार बने सुखी नहीं रह सकते,’’ मैं ने कहा.

पर इस बार भी राजा बनाम रंक पर मेरी बातों का असर नहीं हुआ और हांफता हुआ घर में जा घुसा तथा रसोईघर में तरकारी काटने लगा.

एक दिन बींद राजा की बींदणी मिली. मैं ने कहा, ‘‘बींदणीजी, बींद राजा पर रहम खाओ. दाढ़ी बनाने को पैसे तो दिया करो और इस जाड़े में एक डब्बा च्यवनप्राश ला दो. घोड़ी से उतरने के बाद वह काफी थक गए हैं?’’

बींदणी ने जवाब दिया, ‘‘लल्ला, अपनी नेक सलाह अपनी जेब में रखो और सुनो, भला इसी में है कि अपनी गृहस्थी की गाड़ी चलाते रहो. दूसरे के बीच में दखल मत दो.’’

मैं ने कहा, ‘‘दूसरे कौन हैं. आप और हम तो एकदूसरे के पड़ोसी हैं. पड़ोसी धर्म के नाते कह रहा हूं कि घोड़े के दानापानी की व्यवस्था सही रखो. उस के पैंटों पर पैबंद लगने लगे हैं. कृपया उस पर इतना कहर मत बरपाइए कि वह धूल चाटता फिरे. किस जन्म का बैर निकाल रही हैं आप. पता नहीं इस देश में कितने घुड़सवार अपने आत्मसम्मान तथा स्वाभिमान के लिए छटपटा रहे हैं.’’

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बींदणी ने खींसें निपोर दीं, ‘‘लल्ला, अपना अस्तित्व बचाओ. जीवन संघर्ष में ऐसा नहीं हो कि आप अपने में ही फना हो जाओ.’’

वह भी चली गई. मैं सोचता रहा कि आखिर इस गुलामी प्रथा से एक निर्दोष व्यक्ति को कैसे मुक्ति दिलाई जाए. अपनी तरह ही एक अच्छेभले आदमी को मटियामेट होते देख कर मुझे अत्यंत पीड़ा थी. एक दिन फिर राजा मिल गए. आटे का पीपा चक्की से पिसा कर ला रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘अरे, राजा, तुम चक्की से पीपा भी लाने लगे. मेरी सलाह पर गौर किया?’’

‘‘किया था, वह तैयार नहीं है. कहती है हमारे यहां प्रथा नहीं रही है. औरत गृहशोभा होती है और चारदीवारी में ही उसे अपनी लाज बचा कर रहना चाहिए.’’

‘‘लेकिन अब तो लाज के जाने की नौबत आ गई. उस से कहो, तुम्हारे नौकरी करने से ही वह बचाई जा सकती है. तुम ने उसे घोड़ी पर बैठने से पहले का अपना फोटो दिखाया, नहीं दिखाया तो दिखाओ, हो सकता है वह तुम्हारे तंग हुलिया पर तरस खा कर कोई रचनात्मक कदम उठाने को तैयार हो जाए. स्त्रियों में संवेदना गहनतम पाई जाती है.’’

इस पर पूर्व घुड़सवार बींद राजा बिदक पड़े, ‘‘यह सरासर झूठ है. स्त्रियां बहुत निष्ठुर और निर्लज्ज होती हैं. तुम ने घोड़ी पर बैठते हुए मेरा पांव सही पकड़ा था. पर मैं उसे समझ नहीं पाया. आज मुझे सारी सचाइयां अपनी आंखों से दीख रही हैं.’’

‘‘घबराओ नहीं मेरे भाई, जो हुआ सो हुआ. अब तो जो हो गया है तथा उस से जो दिक्कतें खड़ी हो गई हैं, उन के निदान व निराकरण का सवाल है.’’

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इस बार वह मेरे पांव पड़ गया और रोता हुआ बोला, ‘‘मुझे बचाओ मेरे भाई. मेरे साथ अन्याय हुआ है. मैं फिल्म संगीत गाया करता था, तेलफुलेल तथा दाढ़ी नियमित रूप से बनाया करता था. तकदीर ने यह क्या पलटा खाया है कि तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया.’’

मैं ने उसे उठा कर गले से लगाया और रोने में उस का साथ देते हुए मैं बोला, ‘‘हम एक ही पथ के राही हैं भाई. जो रोग तुम्हें है वही मुझे है. इसलिए दवा भी एक ही मिलनी चाहिए. परंतु होनी को टाले कौन, हमें इसे तकदीर मान कर हिम्मत से काम करना चाहिए.’’

दोनों घोड़ी से उतरे और जमीन से जुड़े आदमी अपने घरों की ओर देखने लगे. अंधेरा वहां तेजी से घना होता जा रहा था. हम ने एकदूसरे को देखा और टप से आंसू आंखों से ढुलक पड़े. भारी मन से अपनेअपने घरों में जा घुसे.

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औप्शंस: भाग 2

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कितने अरसे तक दिलोदिमाग में विराज को सजाने के बाद शैली को महसूस हुआ था कि भले ही विराज को उस की भावनाओं का एहसास था, प्यार के सागर में उस ने भी शैली के साथ गोते लगाए थे, मगर वह इस रिश्ते में बंधने को कतई तैयार नहीं था. तभी तो बड़ी सहजता से वह किसी और के करीब होने लगा और ठगी सी शैली सब चुपचाप देखती रही, न वह कुछ बोल सकी और न ही सवाल कर सकी. बस उदासी के साए में गुम होती गई. अंत में उस ने वह औफिस भी छोड़ दिया.

आज इस बात को कई साल बीत चुके थे, मगर शैली के मन की कसक नहीं गई थी. ऐसा नहीं था कि शैली के पास विकल्पों की कमी थी. नए औफिस में पहली मुलाकात में ही उस का इमीडिएट बौस राजन उस से प्रभावित हो गया था. हमेशा उस की आंखें शैली का पीछा करतीं. आंखों में प्रशंसा और आमंत्रण के भाव होते पर शैली सब इगनोर कर अपने काम से काम रखने का प्रयास करती. कई बार शैली को लगा जैसे वह कुछ कहना चाहता है. मगर शैली की खामोशी देख ठिठक जाता. उधर शैली का कुलीग सुधाकर भी शैली को प्रभावित करने की कोशिश में लगा रहता था. मगर दिलफेंक और बड़बोला सुधाकर उसे कभी रास नहीं आया.

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शैली के पड़ोस में रहने वाला आजाद जो विधुर था, मगर देखने में स्मार्ट लगता

था, अकसर शैली से मिलने के बहाने ढूंढ़ता. कभी भाई की बच्ची को साथ ले कर घर आ धमकता तो कभी औफिस तक लिफ्ट देने का आग्रह करता. एक दिन जब शैली उस के घर गईं तो संयोगवश वह अकेला था. उसे मौका मिल गया और उस ने शैली से अपनी भावनाओं का इजहार कर दिया.

शैली कुछ कह नहीं सकी. आजाद की कई बातें वैसे भी शैली को पसंद नहीं थीं. उस पर विराज को भूल कर आजाद को अपनाने का हौसला उस में बिलकुल भी नहीं था. मन का वह कोना अब भी किसी गैर को स्वीकारने को तैयार नहीं था. शैली कुछ बोली नहीं, मगर उस दिन के बाद वह आजाद के सामने पड़ने से बचने का प्रयास जरूर करने लगी.

वक्त ऐसे ही गुजरता जा रहा था. शैली कभी आकर्षण की

नजरों से तो कभी ललचाई नजरों से पीछा छुड़ाने का प्रयास करती रहती.

कुछ दिन बाद जब राजन ने उस से 2 दिनों के बिजनैस ट्रिप पर साथ चलने को कहा तो शैली असमंजस में पड़ गई. वैसे इनकार करने का मन वह पहले ही बना चुकी थी, पर सीनियर से साफ इनकार करते बनता नहीं. सो सोमवार तक का समय मांग लिया. वह जानती थी कि इस ट्रिप में भले ही कुछ लोग और होंगे, मगर राजन को उस के करीब आने का मौका मिल जाएगा. उसे डर था कि कहीं राजन ने भी आजाद की तरह उस का साथ मांग लिया तो वह क्या जवाब देगी?

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देर रात तक शैली पुरानी बातें सोचती रही. फिर पानी पीने उठी तो देखा बाहर बालकनी में सोनी खड़ी किसी से मोबाइल पर बातें कर रही है. थोड़ी देर तक वह उसे बातें करता देखती रही, फिर आ कर सो गई.

अगली रात फिर शैली ने गौर किया कि

11 बजे के बाद सोनी कमरे से बाहर निकल कर बालकनी में खड़ी हो कर बातें करने लगी. शैली समझ रही थी कि ये बातें उसी खास फ्रैंड के साथ हो रही हैं.

सोनी के हावभाव और पहनावे में भी बदलाव आने लगा था. कपड़ों के मामले में वह काफी चूजी हो गई थी. अकसर मोबाइल पर लगी रहती. अकेली बैठी मुसकराती या गुनगुनाती रहती. शैली इस दौर से गुजर चुकी थी, इसलिए सब समझ रही थी.

एक दिन शाम को शैली ने देखा कि सोनी बहुत उदास सी घर लौटी और फिर कमरा बंद कर लिया. वह फोन पर किसी से जोरजोर से बातें कर रही थी. नेहा उस दिन रात में देर से घर लौटने वाली थी. शैली को बेचैनी होने लगी तो वह सोनी के कमरे में घुस गई, देखा सोनी उदास सी औंधे मुंह बैड पर पड़ी हुई है. प्यार से माथा सहलाते हुए शैली ने पूछा, ‘‘क्या हुआ डियर, परेशान हो क्या?’’

सोनी ने उठते हुए न में सिर हिलाया.

शैली ने देखा कि उस की आंखें आंसुओं से

भरी है. अत: शैली ने उसे सीने से लगाते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ, किसी फ्रैंड से झगड़ा हो गया है क्या?’’

सोनी ने हां में सिर हिलाया.

‘‘उसी खास फ्रैंड से?’’

‘‘हां. सिर्फ झगड़ा नहीं आंटी, हमारा ब्रेकअप भी हो गया है, फौरएवर. उस ने मुझे

डंप किया… कोई और उस की जिंदगी में आ गई और मैं…’’

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‘‘आई नो बेटा, प्यार का अकसर ऐसा ही सिला मिलता है. अब तुझ से कैसे

कहूं कि उसे भूल जा? यह भी मुमकिन कहां

हो पाता है? यह कसक तो हमेशा के लिए रह जाती है.’’

‘‘नो वे आंटी, ऐसा नहीं हो सकता. उसे मेरे बजाय कोई और अच्छी लगने लगी है, तो क्या मेरे पास औप्शंस की कमी है? बस आंटी, आज के बाद मैं दोबारा उसे याद भी नहीं करूंगी. हिज चैप्टर हैज बीन क्लोज्ड इन माई लाइफ. आप ही बताओ आंटी, यदि वह मेरे बगैर रह सकता है तो क्या मैं किसी और के साथ खुश नहीं रह सकती?’’

शैली एकटक सोनी को देखती रही. अचानक लगा जैसे उसे अपने सवाल का

जवाब मिल गया है, मन की कशमकश समाप्त हो गई है.

अगले दिन उस का मन काफी हलका था. वह जिंदगी का एक बड़ा फैसला ले चुकी थी. उसे अब अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना था. औफिस पहुंचते ही राजन ने उसे बुलाया. शैली को जैसे इसी पल का इंतजार था.

राजन की आंखों में सवाल था. उस ने पूछा, ‘‘फिर क्या फैसला है तुम्हारा?’’

शैली ने सहजता से मुसकरा कर जवाब दिया, ‘‘हां, मैं चलूंगी.’’

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बेरहम बेटी: भाग 2

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महत्त्वाकांक्षी राशि देखने में स्मार्ट थी. गठा बदन व अच्छी लंबाई के कारण वह अपनी उम्र से अधिक की दिखाई देती थी. उसे फैशन के हिसाब से कपड़े पहनना पसंद था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो मौडलिंग, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही बात होती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि एक बार परिवार को गुमराह कर के राशि अपनी सहेलियों के साथ शहर से बाहर घूमने के बहाने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. मुंबई में 4 दिन रह कर उस ने कई फोटो शूट कराए थे और फैशन शो में भी भाग लिया.

उस ने मुंबई से अपनी मां को फोन कर बताया था कि वह मुंबई में है और 5 दिन बाद घर लौटेगी. बेटी के चुपचाप मुंबई जाने की जानकारी जब पिता जयकुमार को लगी तो वह बेहद नाराज हुए. राशि के लौटने पर उन्होंने उस की बेल्ट से पिटाई की और उस का मोबाइल छीन लिया.

जयकुमार को बेटी की सहेलियों से पता चला था कि राशि उन के साथ नहीं, बल्कि अपने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. इस जानकारी ने उन के गुस्से में आग में घी का काम किया.

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बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता जयकुमार को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता रहती थी. जबकि राशि के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने प्रवीण की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का दीवाना हर पल उस की आंखों के सामने रहे. पिता द्वारा जब राशि पर ज्यादा पाबंदियां लगा दी गईं, तब दोनों चोरीचोरी शौपिंग मौल में मिलने लगे.

पिता द्वारा मोबाइल छीनने की बात जब राशि ने अपने प्रेमी को बताई तो उस ने राशि को दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया. अब राशि चोरीछिपे प्रवीण के दिए मोबाइल से बात करने लगी. जल्दी ही इस का पता राशि के पिता को चल गया. उन्होंने उस का वह मोबाइल भी छीन लिया. इस से राशि का मन विद्रोही हो गया.

पिता की हिदायत व रोकटोक से नाराज राशि ने प्रवीण को पूरी बात बताने के साथ अपनी खोई आजादी वापस पाने के लिए कोई कदम उठाने की बात कही. हत्या के आरोप में गिरफ्तार मृतक की नाबालिग बेटी ने खुलासा किया कि वह पिछले एक महीने से पिता की हत्या की योजना बना रही थी.

इस दौरान उस ने टीवी सीरियल, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हत्या करने के विभिन्न तरीकों की पड़ताल की थी. उस ने प्रेमी दोस्त प्रवीण के साथ मिल कर हत्या की योजना को अंजाम देने का षडयंत्र रचा. दोनों जुलाई महीने से ही जयकुमार की हत्या के प्रयास में लगे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.

अंतत: 17 अगस्त को जब राशि की मां और भाई एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पुडुचेरी गए तो उन्हें मौका मिल गया. यह कलयुगी बेटी अपने पिता की हत्या करने तक को उतारू हो गई. उस ने हत्या की पूरी योजना बना डाली.

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जालिम बेटी

राशि ने घर में किसी के नहीं होने का फायदा उठा कर योजना के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद पिता को पीने को जो दूध दिया, उस में नींद की 6 गोलियां मिला दी थीं. कुछ ही देर में पिता बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

पिता को सोया देख राशि ने उन्हें आवाज दे कर व थपथपा कर जाना कि वह पूरी तरह बेहोश हुए या नहीं.

संतुष्ट हो जाने पर राशि ने प्रवीण  को फोन कर घर बुला लिया. वह चाकू साथ ले कर आया था. घर में रखे चाकू व प्रवीण द्वारा लाए चाकू से दोनों ने बिस्तर पर बेहोश पड़े जयकुमार जैन के गले व शरीर पर बेरहमी से कई वार किए, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद दोनों शव को घसीट कर बाथरूम में ले गए.

हत्या के सबूत मिटाने के लिए कमरे में फैला खून व दीवार पर लगे खून के छींटे साफ करने के बाद बिस्तर की चादर वाशिंग मशीन में धो कर सूखने के लिए फैला दी. इस के बाद दोनों आगे की योजना बनाने लगे. सुबह 7 बजते ही राशि घर से निकली और 3 बोतलों में पैट्रोल ले कर आ गई. दोनों ने बाथरूम में लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

इस दौरान दोनों के पैर व प्रवीण के हाथ भी आंशिक रूप से झुलस गए. आग लगते ही पैट्रोल की वजह से तेजी से आग की लपटें और धुआं निकलने लगा. बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें व धुआं निकलता देख कर पड़ोसियों ने फायर ब्रिगेड व पुलिस को फोन कर दिया था.

इस बीच राशि ने नाटक करते हुए मदद के लिए शोर मचाया और लोगों को बताया कि उस के पिता बाथरूम में नहाने गए थे तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट होने से आग लग गई, जिस से वह जल गए. इस तरह दोनों ने हत्या को दुर्घटना का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए.

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बेटी को पिता की हत्या करने का फिलहाल कोई मलाल नहीं है. हत्याकांड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तब परिवार के सभी लोग अचंभित रह गए. सोमवार की शाम को राशि की मां व भाई भी लौट आए थे. मां ने कहा कि शायद हमारी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी.

हालांकि घर वालों ने उसे पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने को कहा, लेकिन राशि ने साफ इनकार कर दिया. उधर प्रवीण के मातापिता को अपने बेटे के प्रेम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी.

प्रवीण राशि के पिता से नाराज था. उस ने गिरफ्तारी के बाद बताया कि उन्होंने उसे सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए अपनी बेटी से दूर रहने को कहा था. साथ ही कुछ दिन पहले उन्होंने राशि का मोबाइल छीन लिया था.

इस पर उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को नया मोबाइल गिफ्ट किया तो उस के पिता ने वह भी छीन लिया. वह उस की गर्लफ्रैंड को पीटते, डांटते थे, जो उसे अच्छा नहीं लगता था. आखिर में प्रवीण ने अपनी गर्लफ्रैंड को पिता की प्रताड़ना से बचाने का फैसला लिया.

मंगलवार को हत्यारोपी बेटी से मिलने कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा. लड़की की मां भी घर पर ही रही. राशि ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने पिता को चाकू नहीं मारा, लेकिन घटना के समय वह मौजूद थी.

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राजाजीनगर पुलिस द्वारा मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सामने राशि को पेश किया, जहां के आदेश के बाद उसे बलकियारा बाल मंदिर भेज दिया गया. राशि सामान्य दिखाई दे रही थी.

जब उसे जेजेबी के सामने ले जाया गया तो उस के चेहरे पर अपने पिता की हत्या करने का कोई पश्चाताप नहीं दिखा. वहीं राशि के प्रेमी प्रवीण को मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

हत्या करना इतना आसान काम नहीं होता. प्रवीण और राशि ने योजना बनाते समय अपनी तरफ से तमाम ऐहतियात बरती. दोनों हत्या को हादसा साबित करना चाहते थे. लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता.

बेटा हो या बेटी, मांबाप को उन के चरित्र और व्यक्तित्व का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर गलत राहों पर उतर जाते हैं तो उन्हें संभाल पाना आसान नहीं होता. – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

समझौता: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- समझौता: भाग 1

रात के 11 बज गए तो उस ने मोबाइल उठा कर राजीव से संपर्क करने का प्रयत्न किया था. घर से रूठ कर गए हैं तो मनाना तो पड़ेगा ही. पर नंबर मिलाते ही खाने की मेज पर रखा राजीव का फोन बजने लगा था.

‘‘तो महाशय फोन यहीं छोड़ गए हैं. इतना गैरजिम्मेदार तो राजीव कभी नहीं थे. क्या बेरोजगारी मनुष्य के व्यक्तित्व को इस तरह बदल देती है? कब तक आंखें पसारे बैठी रहे वह राजीव के लिए. कल आफिस भी जाना है.’’ इसी ऊहापोह में कब उस की आंख लग गई थी, पता ही नहीं चला था.

दीवार घड़ी में 12 घंटों का स्वर सुन कर वह चौंक कर उठ बैठी थी. घबरा कर उस ने राजीव के मित्रों से संपर्क साधा था.

‘‘कौन? रमोला?’’ रिया ने राजीव के मित्र संतोष के यहां फोन किया तो फोन उस की पत्नी रमोला ने उठाया था.

‘‘हां, रिया, कहो कैसी हो?’’

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‘‘सौरी, रमोला, इतनी रात गए तुम्हें तकलीफ दी पर शाम 6 बजे के गए राजीव अभी तक घर नहीं लौटे हैं. तुम्हारे यहां आए थे क्या?’’

‘‘कैसी तकलीफ रिया, आज तो लगता है सारी रात आंखों में ही कटेगी. राजीव आए थे यहां. राजीव और संतोष ने साथ चाय पी. गपशप चल रही थी कि मनोज की पत्नी का फोन आ गया कि मनोज ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. दोनों साथ ही मनोज के यहां गए हैं. पर उन्हें तुम्हें फोन तो करना चाहिए था.’’

‘‘राजीव अपना मोबाइल घर ही भूल गए हैं. पर मनोज जैसा व्यक्ति ऐसा कदम भी उठा सकता है मैं तो सोच भी नहीं सकती थी. हुआ क्या था?’’

‘‘पता नहीं, संतोष का फोन आया था कि मनोज और उस की पत्नी में सब्जी लाने को ले कर तीखी झड़प हुई थी. उस के बाद वह तो पास के ही स्टोर में सब्जी लेने चली गई और मनोज ने यह कांड कर डाला,’’ रमोला ने बताया था.

‘‘हाय राम, इतनी सी बात पर जान दे दी.’’

‘‘बात इतनी सी कहां है रिया. ये लोग तो आकाश से सीधे जमीन पर गिरे हैं. छोटी सी बात भी इन्हें तीर की तरह लगती है.’’

‘‘पर इन्होंने एकदूसरे को सहारा देने के लिए संगठन बनाया हुआ है.’’

‘‘कैसा संगठन और कैसा सहारा? जब अपनी ही समस्या नहीं सुलझती तो दूसरों की क्या सुलझाएंगे.’’ रमोला लगभग रो ही पड़ी थी.

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‘‘संतोष भैया फिर भी तकदीर वाले हैं कि शीघ्र ही दूसरी नौकरी मिल गई.’’ रिया के शब्द रमोला को तीर की तरह चुभे थे.

‘‘तुम से क्या छिपाना रिया, संतोष के चाचाजी की फैक्टरी है. पहले से एकतिहाई वेतन पर दिनरात जुटे रहते हैं.’’

‘‘ऐसा समय भी देखना पड़ेगा कभी सोचा न था,’’ रिया ने फोन रख दिया था.

रिया की चिंता की सीमा न थी. इतनी सी बात पर मनोज ने यह क्या कर डाला. अपनी पत्नी और बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. रिया पूरी रात सो नहीं सकी थी. उस के और राजीव के बीच भी तो आएदिन झगड़े होते रहते हैं. वह तो दिन भर आफिस में रहती है और राजीव अकेला घर में. उस से आगे तो वह सोच भी नहीं सकी और फफक कर रो पड़ी थी.

राजीव लगभग 10 बजे घर लौटे थे.

‘‘यह क्या है? कल छह बजे घर से निकल कर अब घर लौटे हो. एक फोन तक नहीं किया,’’ रिया ने देखते ही उलाहना दिया था.

‘‘क्या फर्क पड़ता है रिया. मैं रहूं या न रहूं. तुम तो अपने पावों पर खड़ी हो.’’

‘‘ऐसी बात मुंह से फिर कभी मत निकालना और किसी का तो पता नहीं पर मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी,’’ रिया फफक उठी थी.

‘‘यह संसार ऐसे ही चलता रहता है रिया. देखो न, मनोज हमें छोड़ कर चला गया पर संसार अपनी ही गति से चल रहा है. न मनोज के जाने का दुख है और न ही उस के लिए किसी की आंखों में दो आंसू,’’ राजीव रो पड़ा था.

पहली बार रिया ने राजीव को इस तरह बेहाल देखा था. वह बच्चों के सामने ही फूटफूट कर रो रहा था.

रिया उसे अंदर लिवा ले गई थी. किशोर और कोयल आश्चर्यचकित से खड़े रह गए थे.

‘‘तुम दोनों यहीं बैठो. मैं चाय बना लाती हूं,’’ रिया हैरानपरेशान सी बच्चों को बालकनी में बिठा कर राजीव को सांत्वना देने लगी थी. वह नहीं चाहती थी कि राजीव की इस मनोस्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़े.

‘‘ऐसा क्या हो गया जो मनोज हद से गुजर गया. पिछले सप्ताह ही तो सपरिवार आया था हमारे यहां. इतना हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति अंदर से इतना उदास और अकेला होगा यह भला कौन सोच सकता था,’’ रिया के स्वर में भय और अविश्वास साफ झलक रहा था.

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उत्तर में राजीव एक शब्द भी नहीं बोला था. उस ने रिया पर एक गहरी दृष्टि डाली थी और चाय पीने लगा था.

‘‘मनोज की पत्नी और बच्चे का क्या होगा?’’ रिया ने पुन: प्रश्न किया था. वह अब भी स्वयं को समझा नहीं पाई थी.

‘‘उस के पिता आ गए हैं वह ही दोनों को साथ ले जाएंगे. पिता का अच्छा व्यवसाय है. मेवों के थोक व्यापारी हैं. वह तो मनोज को व्यापार संभालने के लिए बुला रहे थे पर यह जिद ठाने बैठा था कि पिता के साथ व्यापार नहीं करेगा.’’

रिया की विचार शृंखला थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मनोज की पत्नी मंजुला अकसर अपनी पुरातनपंथी ससुराल का उपहास किया करती थी. पता नहीं उन लोगों के साथ कैसे रहेगी. उस के दिमाग में उथलपुथल मची थी. कहीं कुछ भी होता था तो उन के निजी जीवन से कुछ इस प्रकार जुड़ जाता था कि वह छटपटा कर रह जाती थी.

राजीव भी अपने मातापिता की इकलौती संतान है. वे लोग उसे बारबार अपने साथ रहने को बुला रहे हैं. उस के पिता बंगलौर के जानेमाने वकील हैं पर रिया का मन नहीं मानता. न जाने क्यों उसे लगता है कि वहां जाने से उस की स्वतंत्रता का हनन होगा. धीरेधीरे जीवन ढर्रे पर आने लगा था. केवल एक अंतर आ गया था. अब रिया ने पहले की तरह कटाक्ष करना छोड़ दिया था. वह अपनी ओर से भरसक प्रयास करती कि घर की शांति बनी रहे.

उस दिन आफिस से लौटी तो राजीव सदा की तरह कंप्यूटर के सामने बैठा था.

‘‘रिया इधर आओ,’’ उस ने बुलाया था. वह रिया को कुछ दिखाना चाहता था.

‘‘यह तो शुभ समाचार है. कब हुआ था यह साक्षात्कार? तुम ने तो कुछ बताया ही नहीं,’’ रिया कंप्यूटर स्क्रीन पर एक जानीमानी कंपनी द्वारा राजीव का नियुक्तिपत्र देख कर प्रसन्नता से उछल पड़ी थी.

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‘‘इतना खुश होने जैसा कुछ नहीं है एक तो वह आधे से भी कम वेतन देंगे, दूसरे मुझे बंगलौर जा कर रहना पड़ेगा. यहां नोएडा में उन का छोटा सा आफिस है अवश्य, पर मुझे उन के मुख्यालय में रहना पड़ेगा.’’

‘‘यह तो और भी अच्छा है. वहां तो तुम्हारे मातापिता भी हैं. उन की तो सदा से यही इच्छा है कि हमसब साथ रहें.’’

‘‘मैं सोचता हूं कि पहले मैं जा कर नई नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं. तुम कोयल और किशोर के साथ कुछ समय तक यहीं रह सकती हो.’’

‘‘नहीं, न मैं अकेले रह पाऊंगी न ही कोयल और किशोर. सच कहूं तो यहां दम घुटने लगा है मेरा. मेरे मामूली से वेतन में 6-7 महीने से काम चल रहा है. तुम्हें तो उस से दोगुना वेतन मिलेगा. हमसब साथ चलेंगे.’’

कोयल और किशोर सुनते ही प्रसन्नता से नाच उठे थे. उन्होंने दादादादी के घर में अपने कमरे भी चुन लिए थे.

राजीव के मातापिता तो फोन सुनते ही झूम उठे थे.

‘‘वर्षों बाद कोई शुभ समाचार सुनने को मिला है,’’ उस की मां भरे गले से बोली थीं और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी.

‘‘पर तुम्हारी स्वतंत्रता का क्या होगा?’’ फोन रखते ही राजीव ने प्रश्न किया था.

‘‘इतनी स्वार्थी भी नहीं हूं मैं कि केवल अपने ही संबंध में सोचूं. तुम ने साथ दिया तो मैं भी सब के खिले चेहरे देख कर समझौता कर लूंगी.’’

‘‘समझौता? इतने बुरे भी नहीं है मेरे मातापिता, आधुनिक विचारों वाले पढ़ेलिखे लोग हैं और मुझ से अधिक मेरे परिवार पर जान छिड़कते हैं.’’

इतना कह कर राजीव ने ठहाका लगाया तो रिया को लगा कि इस खुशनुमा माहौल के लिए कुछ बलिदान भी करना पड़े तो वह तैयार है.

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‘मरजावां’ फिल्म रिव्यू: मैलोड्रामा से भरपूर

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः निखिल अडवाणी, मेानिशा अडवाणी, मधु भोजवाणी, भूषण कुमार, किशन कुमार, दिव्या खोसला कुमार

लेखक व निर्देशकः मिलाप मिलन झवेरी

कलाकारः सिद्धार्थ मल्होत्रा,रितेश देशमुख, रकुल प्रीत सिंह, तारा सुतारिया, रवि किशन, शाद रंधावा.

अवधिः दो घंटे 16 मिनट

अस्सी व नब्बे के लार्जर देन लाइफ वाले सिनेमा के शौकीन रहे लेखक व निर्देशक मिलाप मिलन झवेरी ‘सत्यमेव जयते’के सफल होने के बाद लार्जर देन लाइफ कथानक वाली फिल्म ‘‘मरजावां’’ लेकर आए हैं, मगर वह एक दमदार मसाला फिल्म बनाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं.

कहानीः

मुंबई में पानी के टैंकर माफिया अन्ना(नासर)ने गटर के पास पड़े एक लावारिस बच्चे रघु को अपनी छत्र छाया में पाल पोस कर उसे बड़ा किया.अब वही लड़का रघु (सिद्धार्थ मल्होत्रा)अन्ना के अपराध माफिया के तमाम काले कारनामों और खून-खराबे में अन्ना का दाहिना हाथ बना हुआ है.अन्ना के कहने पर रघु दशहरा के दिन एक दूसरे टैंकर माफिया गायतोंडे के बेटे को मार देता है.

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रघु,अन्ना के हर हुक्म की तामील हर कीमत पर करता है. इसी के चलते अन्ना उसे अपने बेटे से बढ़कर मानते हैं.मगर इस बात से अन्ना का अपना बेटा विष्णु (रितेश देशमुख) को रघु से नफरत है. शारीरिक तौर पर बौना होने के कारण विष्णु को लगता है कि अन्ना का असली वारिस होने के बावजूद सम्मान रघु को दिया जाता है.पूरी बस्ती रघु को चाहती है. बार डांसर आरजू (रकुल प्रीत) भी रघु की दीवानी है.रघु के खास तीन दोस्त हैं.पर जब नाटकीय तरीके से कश्मीर से आई गूंगी लड़की जोया(तारा सुतारिया) से रघु की मुलाकात होती है, तो उसमें बदलाव आने लगता है.

जोया, रघु को एक वाद्ययंत्र देती है. फिर संगीत प्रेमी जोया, पुलिस अफसर रवि यादव (रवि किशन) के कहने पर रघु को अच्छाई के रास्ते पर बढ़ने के लिए प्रेरित करने लगती है.मगर विष्णु अपनी चाल चलता है,जिसमें फंसकर रघु को अपने प्यार जोया को अपने हाथों गोली मारनी पड़ती है और रघु जेल पहुंच जाता है. जोया के जाने के बाद जेल में रघु जिंदा लाश बनकर रह जाता है.जबकि  बस्ती पर विष्णु का जुल्म बढ़ता जाता है. अहम में चूर विष्णु, रघु को अपने हाथों मारने के लिए चाल चलता है और अदालत रघु को बाइज्जत बरी कर देती है. फिर कहानी में मोडत्र आता है. अंततःएक बारा फिर रावण दहन होता है.

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लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘‘मरजावां’’ के प्रदर्शन से पहले मिलाप झवेरी ने खुद बताया था कि कहानी व पटकथा उन्होने ही लिखी थी,पर पहले इस फिल्म को कोई दूसरा निर्देशक निर्देशित करने वाला था,मगर पटकथा पढ़ने के बाद उस निर्देशक ने इस फिल्म से खुद को अलग कर लिया था,तब मिलाप झवेरी ने खुद ही इसके निर्देशन की जिम्मेदारी स्वीकार की. फिल्म देखने के समझ में आया कि पहले वाले निर्देशक ने इसे क्यों नहीं निर्देशित किया.कुछ दृश्यों को जोड़कर बेसिर पैर की कहानी का निर्देशन करने से अच्छा है,घर पर खाली बैठे रहे.प्यार-मोहब्बत, बदला, भावनाएं,मारधाड़,कुर्बानी आदि पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं.

सफल फिल्म ‘‘बाहुबली’’ के मार्केटिंग वाले संवाद‘बाहुबली को कटप्पा ने क्यो मारा’ की तर्ज पर  अपनी फिल्म ‘मरजावां’ में इंटरवल से पहले ही हीरो के हाथ हीरोईन को मरवा कर फिल्म को सफल बनाने का उनका प्रयास विफल नजर आ रहा है. अतिकमजोर पटकथा, उथले व अविश्वसनीय किरदारों के चलते फिल्म संभल नही पायी.पानी के माफिया टैंकर को तो अब मुंबई वासी भी भूल चुके हैं.

मिलाप को यह भी नहीं पता कि पानी टैंकर माफिया के पास उस तरह की सशस्त्र सेना नही होती है, जैसी की विष्णु के पास है.फिल्म में रकुल प्रीत के किरदार आरजू को कोठेवाली बताया जा रहा है, पर वह बार डांस में नाचती नजर आती है. फिल्मकार को बार डांस व कोठे का अंतर ही नहीं पता? एक्शन के तमाम दृश्य अविश्वसनीय लगते हैं. व्हील चेअर पर बैठे शाद रंधावा एक भारी भरकम व छह फुट कद के इंसान को रामलीला मैदान से उठाकर ऐसा फेंकते हैं कि वह सीधे मस्जिद में जाकर गिरता है. फिल्म में इमोशन या रोमांस तो ठीक से उभरता ही नहीं.

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अभिनयः

सिद्धार्थ मल्होत्रा बुरी तरह से निराश करते हैं. रितेश देशमुख ने जरुर अच्छा अभिनय किया है. तारा सुतारिया छोटे किरदार में भी अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं. रकुल प्रीत सिंह के हिस्से सुंदर दिखने के अलावा कुछ खास करने को रहा ही नही. रवि किशन की प्रतिभा को जाया किया गया.

फिल्म रिव्यू: मोतीचूर चकनाचूर

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः राजेश भाटिया,किरण भाटिया और वायकौम 18

निर्देशकः देबामित्रा बिस्वास  

कलाकारः नवाजुद्दीन सिद्दिकी, आथिया शेट्टी,नवनी परिहार,विभा छिब्बर.

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

दहेज कुप्रथा के साथ  वर्तमान पीढ़ी की लड़कियों की विदेशी दूल्हों संग शादी करने की बढ़ती महत्वाकांक्षा पर कटाक्ष करने के साथ साथ छोटे शहरों में रहने वाली कुंठाओं को हास्य व्यंग के साथ फिल्मकार देबामित्रा विस्वास ने फिल्म ‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’में पेश करने का प्रयास किया है.मगर फिल्म कई जगह बहुत ढीली होकर रह गयी है.

कहानीः

यह कहानी है बुंदेलखंड इलाके के निवासी परिवारों की, जो कि भोपाल में बसे हुए हैं. अवस्थी परिवार की बेटी एनी उर्फ अनीता (आथिया शेट्टी) से उसके माता इंदू (नवनी परिहार) व पिता बहुत परेशान हैं. एनी के सिर पर शादी करके विदेश में बसने का भूत सवार है. उसे ऐसे युवक से शादी करना है, जो कि लंदन, अमरीका या सिंगापुर सहित किसी देश में रह रहा हो. वह सोशल मीडिया पर अपने पति के साथ विदेशी धरती पर खींची गयी सेल्फी पोस्ट करना चाहती हैं.

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इसी के चलते ऐनी अब तक दस लड़कों को ठुकरा चुकी है.लंदन में रहने वाले लड़के के परिवार वालों को अपमानित करके भगा देती है, क्योंकि वह लड़का शादी के बाद पत्नी को अपने साथ लंदन नहीं ले जाएगा. तो वहीं अवस्थी परिवार के पड़ोस में त्यागी परिवार रहता है. जिसकी बड़ी बेटी हेमा से ऐनी की अच्छी दोस्ती है. दोनों परिवारों के बीच काफी आना जाना है. इस परिवार में दो बेटे व एक बेटी हैं. परिवार का बड़ा लड़का पुशपिंदर त्यागी (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) दुबई में नौकरी करता है. 36 साल की उम हो गयी, पर अब तक उसकी शादी नहीं हुई.

पुशपिंदर की मां(विभा छिब्बर) को बेटे की शादी में दहेज 25 से तीस लाख रूप चाहिए. क्योंकि उनका बेटा दुबई मंे नौकरी करता है.बेटे की शादी मंे जो कुछ मिलेगा,वह सब वह बेटी हेमा की शादी में देना चाहती हैं. एक अति मोटी लड़की के साथ पुशंपिंदर शादी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. क्योंकि अब उम्र के इस पड़ाव पर लड़की को लेकर उनकी कोई पसंद नहीं है.पर सगाई के बाद जैसे ही पुशपिंदर की मां दहेज की रकम बताती हैं, शादी टूट जाती है. इससे पुशंपिंदर बहुत दुःखी हो जाते हैं.

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उधर पुशपिंदर को देखकर ऐनी की मौसी (करूणा पांडे) उसे समझाती है कि पुशंपिंदर में एक अच्छा चरित्रवान व दुबई मे रहने वाला लड़का है. दुबई भी विदेश ही है. उसके बाद ऐनी बिना अपने माता पिता को बताए, पुशंपिंदर के सामने प्रेम का इजहार कर चुपचाप मंदिर में शादी कर लेती है,जिससे पुशपिंदर की मां विघ्न न डाल पाए.घर पहुंचने पर दोनों परिवार हक्के बक्के रह जाते हैं.

बहरहाल, किसी तरह वह मान जाते हैं. पर समाज की नजरों में दोनो की पुनः रीतिरिवाज के साथ शादी होती है. मगर सुहागरात से पहले ही त्यागी परिवार के साथ ऐनी को भी पता चल जाता है कि पुशंपिंदर की दुबई की नौकरी छूट गयी है और उसे अब भोपाल में ही नौकरी मिल गयी है. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः पुशपिंदर की मां और ऐनी को भी बहुत कुछ समझ में आ जाता है.

लेखन व निर्देशनः

कथानक के स्तर पर नवीनता न होते हुए भी फिल्म की प्रस्तुतिकरण कमाल की है.फिल्म में छोटे शहरों और संयुक्त परिवार के जीवन मूल्यों को बेहतरीन भी उकेरा गया है. फिल्म में ह्यूमर के साथ साथ दहेज व वैवाहिक जीवन को सफल बनाने सहित कई सामाजिक संदेश भी अच्छे ढंग से बिना भाषणबाजी के परोसे गए हैं. मगर इंटरवल तक फिल्म की गति काफी धीमी है.

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इंटरवल के बाद फिल्म तेज गति से दर्शकों को अपने साथ लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करती है, मगर यहां भी कुछ ज्यादा ही खींच दिया गया. क्लायमेक्स में नवाजुद्दीन सिद्दिकी और आथिया शेट्टी के बीच एक दूसरे से मिलने के उतावले पन के दृश्य को इस कदर खींचा गया कि दर्शक कह उठता है कि अब बस भी करो. फिल्म को एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी.

अभिनयः

गंभीर किस्म की भूमिकां निभाने में महारत रखने वाले नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने इसमें हलकी फुलकी भूमिका में बेहतरीन अभिनय किया है. वह भावनात्मक दृश्यों में छा जाते हैं. आथिया शेट्टी ने ऐनी के किरदार में जान डाल दी है. पहली फिल्म ‘हीरो’ की असफलता का दंश झेल रही आथिया शेट्टी के करियर को इस फिल्म से नई गति मिलेगी. नवनी परिहार, विभा छिब्बर व करूणा पांडे ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है.

Bigg Boss 13: इस कंटेस्टेंट नें दी हिन्दुस्तानी भाऊ को जमकर गालियां, जानें यहां

बिग बौस सीजन 13 में आए दिन दर्शकों को सदस्यों के एक से एक नए रूप देखने को मिल रहे है. जहां एक तरफ विकास पाठक यानी हिंदुस्तानी भाऊ जब से आए हैं सबको हंसाने में लगे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ सभी सदस्य उनको मजबूर कर रहे हैं अपना दूसरा रूप दिखाने के लिए. दरअसल बीते दिनों घर के सभी सदस्यों नें हिंदुस्तानी भाऊ के ज्यादा सोने के चलते काफी हंगामा किया था. उसी समय हिंदुस्तानी भाऊ भी सभी घरवालों पर भड़कते दिखाई दिए और कहा कि, दवाईयों के चलते उन्हें काफी नींद आ रही है.

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बड़े होठों वाली छिपकली…

इसी के चलते शो के मेकर्स नें आज के एपिसोड का प्रोमो रिलाज किया है जिसमें हिंदुस्तानी भाऊ अपना गुस्सा कंटेस्टेंट माहिरा शर्मा पर निकालते दिखाई दे रहे हैं. प्रोमो में हिंदुस्तानी भाऊ माहिरा शर्मा को बड़े होठों वाली छिपकली कहते नजर आ रहे हैं. उनकी ये बात सुनकर माहिरा जेल के अंदर ही रोने लगती हैं.

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लक्जरी बजत कार्य…

बात करें लक्जरी बजत कार्य की तो आज सभी घरवाले लक्जरी बजत कार्य को पूरा करते दिखाई देंगे जिसमें काफी हंगामा मचने वाला है. इस दौरान शहनाज गिल सामने वाली टीम की गेम खराब करती दिखाई देंगी तो वही कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा भी शहनाज की गेम खराब करेंगे. इसी के चलते बिग बौस द्वारा दिए गए टास्क में सारे फ्रेम टूट जाएंगे.

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देवोलीना को लगी चोट…

हिंदुस्तानी भाऊ जब सामने वाली टीम के फ्रेम तोड़ेंगे तो इसी बीच गलती से देवोलीना को चोट लग जाती है जिससे की देवोलीना काफी भड़क जाती हैं. हिंदुस्तानी भाऊ तुरंत ही अपनी गलती मान उनसे माफी मांगते नजर आते हैं पर देवोलीना उनकी एक बात नहीं सुनतीं और उनको काफी कुछ भला बुरा सुना देती हैं. इस बीज देवोलीना हिंदुस्तानी भाऊ को जमकर गालियां देती भी दिखाई देंगी.

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ये 11 सदस्य हैं नोमिनेटिड…

बता दें, इस हफते घर से बेघर होने के लिए जो सदस्य नोमिनेटिड हैं उनका नाम है, सिद्धार्थ शुक्ला, शहनाज गिल, देवोलीन भट्टचार्य, असीम रियाज, माहिरा शर्मा, आरती सिंह, पारस छाबड़ा, विशाल आदित्य सिंह, अरहान खान, हिमांशी खुराना, खेसारी लाल यादव. अब देखने वाली बात ये होगी कि इन 11 सदस्यों में से कौन इस हफ्ते शो छोड़ के अपने घर जाएगा.

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भोजपुरी सिनेमा की ‘एंजल गर्ल’ की फिल्म ‘सईयां है अनाड़ी’ की शूटिंग शुरू, पढ़ें खबर

टीवी की किशमिश भौजी यानी भोजपुरी सिनेमा की एंजल गर्ल गुंजन पंत अब एक बार फिर से बड़े पर्दे की ओर लौट आईं है. तभी वे इन दिनों गौरव झा के साथ एक और फिल्म की शूटिंग में लग गईं है. फिल्म का नाम  ‘सईयां है अनाड़ी’ है, जिसकी शूटिंग मुंबई में शुरू हो चुकी है. इस फिल्म के निर्देशक नीलाभ तिवारी हैं. फिल्म पूरी तरह कमर्सिअल है और इसकी कहानी काफी फ्रेश है.

वहीं फिल्म को लेकर गौरव झा और गुंजन पंत बेहद उत् फिल्म में कई ऐसे मोड़ हैं, जो दर्शकों को आकर्षित करते रहेंगे. हालांकि अभी फील्म की शूटिंग शुरू ही हुई है, इसलिए कहानी को रिवील नहीं करूंगा. इतना जरूर कहूंगा, फिल्म अच्छी है और इसमें मेरे साथ गुंजन पंत हैं. उनके साथ काम कारने  में मज़ा आ रहा है.

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वहीं गुंजन पंत ने भी फिल्म को नायाब बताया और कहा कि इसमें उनकी भूमिका बेहद सशक्त है. गुंजन कहती हैं कि इन दिनों उनके पास जितनी भी फिल्में हैं, उनमें से ये सबसे अलग है. इसलिए मुझे बेहद खुशी है. गौरव झा के साथ काम करने का अनुभव अच्छा होने वाला है.

उनके साथ मेरी पहली फिल्म है. लेकिन अब हमारी अंडरस्टैंडिंग काफी अच्छी हो चली है, तो मुझे पूरी उम्मीद है फिल्म सबों को पसंद आएगी. आपको बता दें कि फ़िल्म ‘सईयां है अनाड़ी’ में गौरव झा और गुंजन पंत के अलावा संजना राज, दीपक सिन्हा, राम मिश्र और अरुण सिंह मुख्य भूमिका में नज़र आने वाले हैं.

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