मेरे देश के नौजवान

लेखक- शिव शंकर गोयल

इस का ‘आईक्यू’ या ‘ईक्यू’ ही नहीं, बल्कि सब तरह के क्यू ऊंचे होंगे. मसलन:

एक जगह पर किसी समाज का परिचय सम्मेलन हो रहा था. वहां एक छोटा बच्चा खो गया. नहींनहीं, मैं आप को गलत बता गया. बच्चा तो आयोजकों के पास मंच पर था, लेकिन उस के मम्मीपापा कहीं खो गए थे. बच्चा भीड़ देख कर रो रहा था.

एक कार्यकर्ता ने उस बच्चे के मांबाप को ढूंढ़ने की खातिर उस से पूछा, ‘‘बताओ बेटा, तुम्हारा नाम क्या?है?’’

‘‘पप्पू…’’ वह बोला.

‘‘तुम्हारे पिताजी का नाम क्या है?’’ दूसरे कार्यकर्ता ने पूछा.

‘‘पापा…’’ बच्चे ने बताया.

‘‘वे क्या काम करते हैं?’’ पहले कार्यकर्ता ने पूछा.

‘‘जो मम्मी कहती हैं…’’ लड़के ने रोतेरोते बताया.

‘‘तुम कहां रहते हो?’’ दूसरे कार्यकर्ता ने पूछा.

‘‘मम्मी के पास…’’ उस बच्चे ने जवाब दिया.

देखा आप ने… कहते हैं न कि पूत के पांव पालने में दिखाई देते हैं. अब आप ही बताइए कि ऐसे बच्चे बड़े हो कर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बनने लायक हैं कि नहीं? कोई भी पत्रकार इन से कुछ नहीं उगलवा सकता है.

इतना ही नहीं, समय से पहले होशियारी आ जाने का उदाहरण भी देखते हैं.

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बचपन में हम सभी ने प्यासे कौए की कहानी पढ़ी है. अब भी वही कहानी पढ़ाई जाती है, जो इस तरह है:

एक प्यासा कौआ था. पानी ढूंढ़तेढूंढ़ते उसे एक घड़े में कुछ पानी दिखाई दिया, लेकिन पानी इतना कम था कि उस की चोंच वहां तक नहीं पहुंच सकती थी, इसलिए उस ने घड़े में एकएक कर के कई कंकड़पत्थर ला कर डाले, जिस से घड़े में पानी ऊपर आ गया. तब कौए ने अपनी प्यास बुझाई और फिर वह उड़ गया.

अपने बच्चे को यह कहानी पढ़ते देखा, तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘अच्छा बेटा बताओ, इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?’’

‘‘सीख यही कि खाओपीओ और वहां से खिसक लो,’’ वह बोला.

एक बच्चे से उस के रिश्तेदार ने पूछा, ‘‘बेटे, बड़े हो कर क्या बनोगे?’’

‘‘दांतों का डाक्टर बनूंगा अंकल,’’ बच्चा बोला.

‘‘क्यों? ऐसी क्या बात है, जो तुम दांतों के डाक्टर बनोगे?’’

‘‘अंकल, आंख, कान वगैरह तो 2-2 ही होते हैं, जबकि दांत 32 होते हैं, उस में ज्यादा स्कोप है,’’ लड़का बोला.

इतिहास की क्लास थी. मुगलकाल की पूरी पढ़ाई हो जाने के बाद मास्टरजी ने एक लड़के से पूछा, ‘‘बताओ, अकबर कौन था और वह कब मरा?’’

‘‘अकबर अपने बाप का बेटा था और जब उस की मौत आ गई, तब वह मरा,’’ एक छात्र ने जवाब दिया.

क्या सटीक टैलीग्राफिक जवाब था. ऐसे लोग ही आगे चल कर क्रिकेट के कमेंटेटर बन कर बोलेंगे कि गेंदबाज ने गेंद फेंकी, बल्लेबाज ने शौट लगाया और फील्डर ने गेंद रोकी.

गणित के टीचर ने एक छात्र से पूछा कि एक को एक से कैसे जोड़ें कि 3 हो जाए?

‘‘दोनों की शादी करा दीजिए सर,’’ एक छात्र ने जवाब दिया. अब बताइए कि इस पीढ़ी को आप और क्या पढ़ाना चाहते हैं?

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कैमिस्ट्री के एक मास्टरजी ने क्लासरूम में आ कर छात्रों से कहा, ‘‘तुम में से एक छात्र जा कर लैबोरेटरी से बोतल में तेजाब भर लाए.’’

एक छात्र गया और बोतल में तेजाब भर लाया. मास्टरजी ने अपनी जेब से एक सिक्का निकाल कर बोतल में डाल दिया और सारी क्लास से पूछा, ‘‘अब बताओ कि यह सिक्का तेजाब में घुलेगा या नहीं?’’

सभी छात्रों ने एक आवाज में जवाब दिया, ‘नहीं घुलेगा.’

मास्टरजी सभी छात्रों के जवाब से बहुत खुश हुए और बच्चों से पूछा, ‘‘क्यों नहीं घुलेगा?’’

एक छात्र ने खड़े हो कर बताया, ‘‘मास्टरजी, अगर यह सिक्का तेजाब में घुल जाता, तो आप हमारा सिक्का लेते. आप ने इस में अपना सिक्का डाला, इस का मतलब यह है कि यह तेजाब में नहीं घुल सकता…’’ यह सुन कर मास्टरजी बगलें झांकने लगे.

ऐसी ही उम्र के बच्चे जब कभी अपनी मम्मी या पापा के साथ किसी ‘जिम’ में चले जाते हैं, तो वहां का नजारा देख कर अनायास ही उन के मुंह से निकल पड़ता है, ‘‘अरे, सबकुछ दिखता है.’’

कई साल पहले राज कपूर ने फिल्म ‘जागते रहो’ बनाई थी, जिस में दिखाया गया था कि सफेदपोश लोग रात के अंधेरे में क्याक्या गुल खिलाते रहते हैं. राज कपूर ने सबकुछ दिखा दिया, पर समाज में से कोई कुछ बोला क्या? उलटे, वह फिल्म बौक्स औफिस पर पिट गई. भला कौन अपनी पोल खुलवाना चाहता है?

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शिव सेना का बड़ा कदम

हिंदुत्व को देश पर एक बार फिर से थोप कर पंडेपुजारियों को राजपाट देने की जो छिपी नीति अपनाई गई थी उस में शिव सेना एक बहुत बड़ी पैदल सेना थी जिस के कट जाने का भाजपा को बहुत नुकसान होगा और हो सकता है कि महाराष्ट्र को बहुत फायदा हो.

कोई भी देश या समाज तब बनता है जब कामगार हाथों को फैसले करने का भी मौका मिले. पश्चिमी यूरोप, अमेरिका, चीन, जापान, कोरिया की सफलता का राज यही रहा है कि वहां गैराज से काम शुरू करने वाले एकड़ों में फैले कारखानों के मालिक बने थे. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई देश के पैसे वालों की राजधानी है पर जो बदहाली वहां के कामगारों की है कि वे आज भी चालों, धारावी जैसी झोपड़पट्टियों में, पटरियों पर रहने को मजबूर हैं.

महाराष्ट्र और मुंबई का सारा पैसा कैसे कुछ हाथों में सिमट जाता है, यह चालाकी समझना आसान नहीं, पर इतना कहा जा सकता है कि शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन इस के लिए वर्षों से जिम्मेदार है, चाहे सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की. यह बात पार्टी के बिल्ले की नहीं पार्टियों की सोच की है.

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शिव सेना से उम्मीद की जाती है कि वह अब ऐसे फैसले लेगी जो आम कामगारों की मेहनत को झपटने वाले नहीं होंगे. जमीन से निकल कर आए, छोटी सी चाल में जिन्होंने जिंदगी काटी, सीधेसादे लोगों के बीच जो रहे, वे समझ सकते हैं कि उन पर कैसे ऊंचे लोग शासन करते हैं और कैसे चाहेअनचाहे वे उन्हीं के प्यादे बने रहने को मजबूर हो जाते हैं.

पिछड़ों की सरकारें उत्तर प्रदेश व बिहार में भी बनी थीं, पर उस का फायदा नहीं मिला, क्योंकि तब पिछड़ों की कम पढ़ीलिखी पीढ़ी को सत्ता मिली थी. अब उद्धव ठाकरे, उन के बेटे आदित्य ठाकरे, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले जैसों को उन बाहरी सहायकों की जरूरत नहीं जो जनमानस की तकलीफों को पिछले जन्मों के कर्मों का फल कह कर अनदेखा कर देते हैं. वे रगरग पहचानते होंगे, कम से कम उम्मीद तो यही है.

मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल आदि में भगवाई लहर मंदी हो गई है और महाराष्ट्र का झटका अब फिर मेहनती, गरीबों को पहला मुद्दा बनाएगा. ऐसा नहीं हुआ तो समझ लें कि देश को कभी भूख और बदहाली से आजादी नहीं मिलेगी.

शौचालय का सच

भारत सरकार ने बड़े जोरशोर से शौचालयों को ले कर मुहिम शुरू की थी, पर 5 साल हुए भी नहीं कि शौचालयों की जगह मंदिरों ने ले ली है. अब सरकार को मंदिरों की पड़ी है. कहीं राम मंदिर बन रहा है, कहीं सबरीमाला की इज्जत बचाई जा रही है. कहीं चारधाम को दोबारा बनाया जा रहा है, कहीं करतारपुर कौरिडोर का उद्घाटन हो रहा है.

भाजपा सरकार के आने से पहले 19 नवंबर को 2013 से संयुक्त राष्ट्र संघ ‘वर्ल्ड टौयलेट डे’ मनाने लगा है, जब नरेंद्र मोदी का अतापता भी न था. दुनियाभर में खुले में पाखाना फिरा जाता है, पर भारत इस में उसी तरह सब से आगे है जैसे मंदिरों, मठों में सब से आगे है. भारत की 60-70 करोड़ से ज्यादा आबादी खुले में पाखाना फिरने जाती है और कहने को लाखों शौचालय बन गए हैं, पर पानी की कमी की वजह से अब तो वे जानवरों को बांधने या भूसा भरने के काम में आ रहे हैं.

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शहरों के आसपास कहींकहीं चमकदार शौचालय बन गए हैं, पर अभी पिछले सप्ताह से दिल्ली के ही अमीर बाजारों कनाट प्लेस और अजमल खां रोड पर दीवारों पर पेशाब के ताजे निशान दिख रहे थे. ये दोनों इलाके भाजपा समर्थकों से भरे हैं. हर दुकानदार ने अपनी दुकान में एक छोटा मंदिर बना रखा है, हर सुबह बाकायदा एक पंडा पूजा करने आता है. हर थोड़े दिन के बाद लंगर भी लगता है. पर वर्ल्ड टौयलेट और्गेनाइजेशन बनी थी सिंगापुर में जहां के एक व्यापारी ने ही 2001 में इसे शुरू किया था. सिंगापुर दुनिया का सब से ज्यादा साफ शहर माना जाता है. वहां हर जने की आय दिल्ली के व्यापारियों की आय से भी 30 गुना ज्यादा है. वहां मंदिर न के बराबर हैं. हिंदू तमिलों के मंदिर जरूर दिखते हैं और उन के सामने बिखरी चप्पलें भी और जमीन पर तेल की चिक्कट भी.

सड़क पर पड़ा पाखाना कितना खतरनाक है, इस का अंदाजा इस बात से लगाइए कि 1 ग्राम पाखाने में 10 लाख कीटाणु होते हैं और जहां पाखाना खुले में फिरा जाता है, वहां बच्चे ज्यादा मरते हैं.

भारत सरकार ने खुले में शौच पर जीत पा लेने का ढोल पीट दिया है पर लंदन से निकलने वाली पत्रिका ‘इकौनोमिस्ट’ ने इस दावे को खोखला बताया है. अभी 2 माह पहले ही तो मध्य प्रदेश में 2 बच्चों की पिटाई घर के सामने पाखाना फिरने पर हुई है, वह भी भरी बस्ती में जहां पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं. मारने वाले का कहना था कि दलितों की हिम्मत कैसे हुई कि उन से ऊंचे पिछड़ों के घरों के सामने फिरने जाए. पिछड़ों की हालत भी ज्यादा बेहतर नहीं हुई है, क्योंकि लाखों बने शौचालयों में पानी ही नहीं है.

यह ढोल जो 2 अक्तूबर को पीटा गया था, यह तो 5,99,000 गांवों के खुद की घोषणा पर टिका था. अब जब शौचालय के मिले पैसे सरपंच ने डकार लिए हों तो वह कैसे कहेगा कि खुले में पाखाना हो रहा है.

जब तक गांवों में घरघर पानी नहीं पहुंचेगा, जब तक सीवर नहीं बनेंगे, खुले में पाखाना होगा ही. दिल्ली की ही 745 बस्तियों में अभी भी सीवर कनैक्शन नहीं है तो 5,99,000 गांवों में से कितनों में सीवर होगा?

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खजाने के चक्कर में खोदे जा रहे किले

लेखक- रामकिशोर पंवार

गोंड राजाओं, मुगलों और मराठों के राज के इन किलों में सब से ज्यादा मशहूर खेड़ला राजवंश का किला है, जिस के बारे में पारस पत्थर से जुड़ी हुई कई कहानियां भी सुनाई जाती हैं.

मध्य प्रदेश के बनने से पहले बैतूल सीपी ऐंड बरार स्टेट का हिस्सा था. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा की निशानदेही करती सतपुड़ा की हरीभरी वादियों व महाराष्ट्र के मेलघाट क्षेत्र से लगा सतपुड़ामेलघाट टाइगर का रिजर्व्ड कौरिडोर इस में शामिल है. धारूल की अंबा देवी की पहाडि़यों में मौजूद गुफाओं के राज की खोजबीन व उन को बचाए रखने की आ पड़ी जरूरत ने सब को चौंका दिया है.

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आदिमानव की कला

धारूल की इन पहाडि़यों में अनेक राज दबे होने के बारे में कहा जाता है कि अंबा देवी क्षेत्र में अजंता, एलोरा, भीमबेठिका की तरह पाषाणकालीन आदिमानव द्वारा बनाए गए शैलचित्र, भित्तिचित्र और अजीबोगरीब आकृतियां देखने को मिलती हैं. इस पूरी पहाड़ी में साल 2007 से 2012 में 100 से ज्यादा प्राचीन गुफाओं की खोज की गई. अब तक की खोज में पाया गया है कि 35 गुफाओं में पेड़पौधों के रंगों से अनेक तरह की आकृति बनाई गई हैं.

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बनी इन गुफाओं पर बाकायदा लघु फिल्में बनी हैं और कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं. बैतूल जिले में इस समय 5 किले होने के सुबूत मिलते हैं. 4 किले पहाड़ी पर बने हैं, जिन में सब से प्राचीन खेड़ला राजवंश का खेड़ला किला है. उस के बाद असीरगढ़, भंवरगढ़, सांवलीगढ़ के किले हैं, जो गवासेन के पास एक पहाड़ी पर मौजूद हैं. खेड़ला किले में 35 परगना शामिल थे.

खेड़ला राज्य की राजधानी वर्तमान महाराष्ट्र का शहर अचलपुर है, जो उस समय राजा ईल-एल के नाम पर एलिजपुर के रूप में पहचाना जाता था. इस राजा के बारे में यहां पर यह किस्सा मशहूर है कि राजा के पास सोने का इतना भंडार था कि वह खेड़ला से एलिजपुर तक सोने की सड़क बनवा सकता था.

खेड़ला राज्य का सोने का भंडार और राजा के पास पारस पत्थर का होना ही खेड़ला राजवंश के खत्म होने की वजह बना. मुगल शासक ने अपने सेनापति रहमान शाह दुल्हा को उसी पारस पत्थर को हासिल करने के लिए हजारों सैनिकों के साथ इस किले पर हमला करने के लिए भेजा था. उस के बाद यह किला मुगलों के कब्जे में आ गया और खेड़ला महमूदाबाद के रूप में अपनी पहचान को सामने लाया. मराठों ने इस किले को मुगलों से छीन कर एक बार फिर यहां पर राजा जैतपाल को राजा बना कर भेजा.

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खेड़ला के राज खजाने की खोज में खेड़ला से एलिजपुर तक बनी सुरंगों को अनेक बार खोदा जा चुका है. पूरा किला बेइंतिहा खुदाई के चलते खंडहर बन चुका है. पारस पत्थर को किले से रावण बाड़ी के तालाब में फेंके जाने की कहानी के बाद हाथियों के पैरों में लोहे की चेन बांध कर उन्हें तालाब के चारों ओर घुमाया गया. आज भी पारस पत्थर की तलाश में तालाब के पानी के सूखते ही उस की खुदाई शुरू हो जाती है.

मुलताई नगर से 8 किलोमीटर दूर गांव शेरगढ़ के पास वर्धा नदी के तट पर शेरगढ़ किला बना हुआ है. यह बैतूल जिले का एकमात्र मैदानी किला है, जिस का वजूद पूरी तरह खत्म होने की कगार पर आ गया है. समय के साथ इस किले की दीवारें ढहने लगी हैं. पूरे किले में झाडि़यां उग आई हैं. यहां पर भी खजाने की खोज में सोने के सिक्कों की अफवाह के चलते चोरों द्वारा की गई जगहजगह खुदाई से किले की बुनियाद को नुकसान हो रहा है.

बेरहम वक्त की मार ने भले ही इस किले को आज खंडहर में बदल दिया हो, पर किले का भीमकाय दरवाजा आज भी आसमान को चुनौतियां देता लगता है. बहुत ही सुंदर क्षेत्र में बने इस किले का मेन दरवाजा व परकोटा पत्थरों को काट कर बनाया गया है.

किले के भीतर पानी की एक बावड़ी भी बनी हुई है, जो ठीकठाक हालात में दिखाई देती है. इस के साथ ही इस की लंबी सुरंग का मुहाना भी दिखाई देता है. माना जाता है कि इस सुरंग का इस्तेमाल बाहर निकलने के लिए भी किया जाता था.

खस्ताहाल होने के बावजूद भी इस किले की बनावट और कुदरती छटा मन को मोह लेती है. एक ही पत्थर को काट कर मेहराब की शक्ल में बनाए गए दरवाजे कारीगरी के बेहतरीन नमूने से रूबरू कराते हैं. हालांकि दीवारें टूटने के बाद ये पत्थरों की बनी चौखट जैसे ही दिखाई देते हैं, पर फिर भी इस की खूबसूरती देखते ही बनती है.

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‘नायरा-कार्तिक’ की संगीत सेरेमनी बर्बाद करने के लिए नई चाल चलेगी ‘वेदिका’, पढ़ें खबर

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों ‘कार्तिक-नायरा’ की सगाई के बाद संगीत सेरेमनी की तैयारियां चल रही हैं. दूसरी तरफ ‘वेदिका’ भी अपनी चालें चलने से बाज नही आ रही है. वहीं अब संगीत सेरेमनी में ‘वेदिका’ ने ‘नायरा और कार्तिक’ की खुशियों पर ग्रहण लगाने के लिए एक और प्लान बना लिए हैं. आइए आपको बताते हैं संगीत सेरेमनी में क्या करेगी ‘वेदिका’…

‘कार्तिक’ के लिए चली ये चाल

हाल ही में हमने आपको बताया था कि अपकमिंग एपिसोड में ‘वेदिका’ को प्रपोज करेगा. पर दरअसल ‘कार्तिक’ ‘नायरा’ को प्रपोज करने वाला होता है और ‘वेदिका’ अंधेरा का फायदा उठा कर ‘नायरा’ की जगह खड़ी हो जाएगी.

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‘नायरा’ को करेगी संगीत सेरेमनी से दूर

अपकमिंग आप देखेंगे कि ‘वेदिका’ ‘नायरा’ से कहेगी कि लैंडलाइन पर कोई फोन आया था और उस फोन पर किसी ने कहा है कि डांसिंग एकाडमी में कुछ गलत हुआ है. ‘वेदिका’ की बातें सुनकर ‘नायरा’ परेशान हो जाएगी और वह जल्द से जल्द डांसिंग एकाडमी जाने की बात करेगी.

क्या संगीत सेरेमनी में पहुंच पाएगी ‘नायरा’


‘वेदिका’ ‘नायरा’ साथ जाएगी और डांसिंग एकाडमी तक जाने के लिए लम्बा रस्ता चुनेगी, जिसके साथ वह ‘नायरा’ के रास्ते में काफी मुश्किलें खड़ी करेगी. जिससे ‘नायरा’ ना तो समय पर डांसिंग एकाडमी पहुंच पाए और ना ही वह अपनी संगीत सेरेमनी पर टाइम पर.

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‘कार्तिक’ होगा परेशान

‘नायरा’ के संगीत सेरेमनी में न पहुंचने से ‘कार्तिक’ के साथ-साथ सभी घरवाले परेशान होंगे और ‘कार्तिक’ ‘नायरा’ को ढूंढने लग जाएगा.

अब देखना ये है कि क्या ‘नायरा’ इन बातों से ‘वेदिका’ की असलियत जान पाएगी और ‘कार्तिक’ की हो पाएगी.

समर्पण: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- समर्पण: भाग 1

‘‘चाहे इस की वजह से हम जैसों को सदा लोगों के ताने ही क्यों न सुनने पड़ें… हमारी सारी सामाजिक समरसता ही क्यों न चौपट होने लगे…और फिर आप किन दलितों और पिछड़ों की बात कर रहे हैं? क्या वास्तव में उन्हें आरक्षण का लाभ मिल पाता है? मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि असली मलाई तो हम या आप जैसे लोग ही जीम जाते हैं. क्या यह सच नहीं है कि साधनसंपन्न होते हुए भी आप के बेटे को इंजीनियरिंग में दाखिला आरक्षित कोटे से ही मिला था?’’

‘‘आखिर इस में बुराई क्या है?’’

‘‘बुराई है, जब आप आरक्षण पा कर आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो गए हैं तो क्या अब भी आरक्षण के प्रावधान को अपनाकर आप किसी जरूरतमंद का हक नहीं छीन रहे हैं?’’

‘‘बहुत बकरबकर किए जा रहे हो, तुम जैसा नीच इनसान मैं ने पहले नहीं देखा. जिस थाली में अब तक खाते रहे हो उसी में छेद करने की सोचने लगे. अब तुम चले जाओ. वरना…’’ मंत्रीजी अपना आपा खो बैठे और अपना रौद्र रूप दिखाते हुए क्रोध से भभक उठे.

डा. सीताराम ने भी उन से ज्यादा उलझना ठीक नहीं समझा और चुपचाप चले गए.

आलोक यह सब देख कर स्तब्ध था. डा. सीताराम के पिता मंत्रीजी के अच्छे मित्रों में हुआ करते थे, उन के गर्दिश के दिनों में उन्होंने उन्हें बहुत सहारा दिया था और मंत्रीजी के कंधे से कंधा मिला कर उन की हर लड़ाई में वह साथ खड़े दिखते थे. यह बात और है कि जैसेजैसे मंत्रीजी का कद बढ़ता गया, डा. सीताराम के पिता पीछे छूटते गए या कहें मंत्रीजी ने ही यह सोच कर कि कहीं वह उन की जगह न ले लें, उन से पीछा छुड़ा लिया.

आलोक मंत्रीजी के साथ तब से था जब वह अपने राजनीतिक कैरियर के लिए संघर्ष कर रहे थे, उस समय वह बेकार था. पता नहीं उस समय उस ने मंत्रीजी में क्या देखा कि उन के साथ लग गया. उन्हें भी उस जैसे एक नौजवान खून की जरूरत थी जो समयानुसार उन की स्पीच तैयार कर सके, उन के लिए भीड़ जुटा सके और उन के आफिस को संभाल सके. उस ने ये सब काम बखूबी किए. उस की लिखी स्पीच का ही कमाल था कि लोग उन को सुनने के लिए आने लगे. धीरेधीरे उन की जनता में पैठ मजबूत होने लगी और वह दिन भी आ गया जब वह पहली बार विधायक बने. उन के विधायक बनते ही आलोक के दिन भी फिर गए पर आज डा. सीताराम के साथ ऐसा व्यवहार…वह सिहर उठा.

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अपने पिता की उसी दोस्ती की खातिर डा. सीताराम अकसर मंत्रीजी के घर आया करते थे तथा एक पुत्र की भांति जबतब उन की सहायता करने के लिए भी तत्पर रहते थे पर आज तो हद ही हो गई…उन की इतनी बड़ी इंसल्ट…जबकि उन का नाम शहर के अच्छे डाक्टरों में गिना जाता है. क्या इनसान कुरसी पाते ही इस हद तक बदल जाता है?

वास्तव में मंत्रीजी जैसे लोगों की जब तक कोई जीहजूरी करता है तब तक तो वह भी उन से ठीक से पेश आते हैं पर जो उन्हें आईना दिखाने की कोशिश करता है उन से वे ऐसे ही बेरहमी से पेश आते हैं…अगर बात ज्यादा बिगड़ गई तो उस को बरबाद करने से भी नहीं चूकते.

आलोक अब तक सुनता रहा था पर आज वह वास्तविकता से भी परिचित हुआ…सारे मंत्री तथा वरिष्ठ आफिसर कुछ भी होने पर विदेश इसीलिए भागते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन्होंने डाक्टरों की एक ऐसी जमात पैदा की है जो ज्ञान के नाम पर शून्य है फिर वह क्यों रिस्क लें? जनता जाए भाड़ में, चाहे जीए या मरे…उन्हें तो बस, वोट चाहिए.

आज यहां हड़ताल, कल वहां बंद, कहीं रैली तो कहीं धरना…अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए तोड़फोड़ करवाने से भी नेता नहीं चूकते. ऐसा करते वक्त ये लोग भूल जाते हैं कि वे किसी और की नहीं, अपने ही देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं. आम जनजीवन अलग अस्तव्यस्त हो जाता है, अगर इस सब में किसी की जान चली गई तो वह परिवार तो सदा के लिए बेसहारा हो जाता है पर इस की किसे परवा है. आखिर ऐसे दंगों में जान तो गरीब की ही जाती है. सामाजिक समरसता की परवा आज किसे है जब इन जैसों ने पूरे देश को ही विभिन्न जाति, प्रजातियों में बांट दिया है.

आलोक का मन कर रहा था कि वह मंत्रीजी का साथ छोड़ कर चला जाए. जहां आदमी की इज्जत नहीं वहां उस का क्या काम, आज उन्होंने डा. सीताराम के साथ ऐसा व्यवहार किया है कल उस के साथ भी कर सकते हैं.

मन ने सवाल किया, ‘तुम जाओगे कहां? जीवन के 30 साल जिस के साथ गुजारे, अब उसे छोड़ कर कहां जाओगे?’

‘कहीं भी पर अब यहां नहीं.’

‘बेकार मन पर बोझ ले कर बैठ गए… सचसच बताओ, जो बातें आज तुम्हें परेशान कर रही हैं, क्या आज से पहले तुम्हें पता नहीं थीं?’

‘थीं…’ कहते हुए आलोक हकला गया था.

‘फिर आज परेशान क्यों हो… अगर तुम छोड़ कर चल दिए, तो क्या मंत्रीजी तुम्हें चैन से जीने देंगे… क्या होगा तुम्हारी बीमार मां का, तुम्हारी 2 जवान बेटियों का जिन के हाथ तुम्हें पीले करने हैं?’

तभी सैलफोन की आवाज ने उस के अंतर्मन में चल रहे सवालजवाबों के बीच व्यवधान पैदा कर दिया. उस की पत्नी रीता का फोन था :

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‘‘मांजी की हालत ठीक नहीं है… लगता है उन्हें अस्पताल में दाखिल करना पड़ेगा. वहीं शुभदा को देखने के लिए भी बरेली से फोन आया है, वे लोग कल आना चाहते हैं… उन्हें क्या जवाब दूं, समझ में नहीं आ रहा है.’’

‘‘बस, मैं आ रहा हूं… बरेली वालों का जो प्रोग्राम है उसे वैसा ही रहने दो. इस बीच मां की देखभाल के लिए जीजी से रिक्वेस्ट कर लेंगे,’’ संयत स्वर में आलोक ने कहा. जबकि कुछ देर पहले उस के मन में कुछ और ही चल रहा था.

‘‘आलोक, कहां हो तुम…गाड़ी निकलवाओ…हम 5 मिनट में आ रहे हैं,’’ मंत्रीजी की कड़कती आवाज में रीता के शब्द कहीं खो गए. याद रहा तो केवल उन का निर्देश…साथ ही याद आया कि आज 1 बजे उन्हें एक पुल के शिलान्यास के लिए जाना है.

उस के पास मंत्रीजी का आदेश मानने के सिवा कोई चारा नहीं था…घर के हालात उसे विद्रोह की इजाजत नहीं देते. शायद उसे ऐसे माहौल में ही जीवन भर रहना होगा, घुटघुट कर जीना होगा. अपनी मजबूरी पर वह विचलित हो उठा पर अंगारों पर पैर रख कर वह अपने और अपने परिवार के लिए कोई मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता था. और तो और, अब वह जब तक शिलान्यास नहीं हो जाता, घर भी नहीं जा पाएगा.

सैलफोन पर ‘हैलो…क्या हुआ…’ सुन कर उसे याद आया कि वह रीता से बात कर रहा था…न आ पाने की असमर्थता जताते हुए मां को तुरंत अस्पताल में शिफ्ट करने की सलाह दी. वह जानता था, रीता उस की बात सुन कर थोड़ा भुनभुनाएगी पर उस की मजबूरी समझते हुए सब मैनेज कर लेगी. आखिर ऐसे क्षणों को जबतब उस ने बखूबी संभाला भी है.

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Bollywood का नया स्टार: साल 2019 आयुष्मान खुराना के नाम

न कोई खान और न ही कोई कपूर. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का साल 2019 उस हीरो के नाम रहा, जिस ने कभी हिंदी के बड़े लेखक धर्मवीर भारती के नाटक ‘अंधा युग’ में अश्वत्थामा का किरदार निभाने के लिए बैस्ट हीरो का अवार्ड जीता था. चंडीगढ़ में जन्मे और पले-बढ़े इस कलाकार का नाम है आयुष्मान खुराना, जिनकी इस साल आई इस की 3 फिल्मों ‘आर्टिकल 15’, ‘ड्रीम गर्ल’ और ‘बाला’ ने कामयाबी के नए झंडे गाड़ दिए.

रेडियो जौकी से लेकर बौलीवुड हीरो तक का सफर…

आयुष्मान खुराना से मेरी पहली मुलाकात साल 2010 में तब हुई थी, जब मैं आईपीएल 2010 के दिल्ली में हुए मैचों को बतौर खेल संवाददाता कवर कर रहा था. वहां आयुष्मान खुराना ‘एक्स्ट्रा इनिंग्स टी 20’ की एंकरिंग टीम का हिस्सा थे. तब मैं ने उन की अपने काम के प्रति लगन देखी थी कि किस तरह वे इंटरवल के दौरान अपनी स्क्रिप्ट याद करते थे. वहां डिनर टेबल पर ‘मुक्ता’ पत्रिका के लिए हम दोनों में उन के वीडियो जौकी के कैरियर पर लंबी बातचीत हुई थी.

उस समय आयुष्मान खुराना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपने पैर जमाने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे. उन की मेहनत साल 2012 में तब रंग लाई, जब उन्हें फिल्म ‘विकी डोनर’ मिली थी, जो बड़ी हिट भी साबित हुई.

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इस के बाद आयुष्मान खुराना के आने वाले 2 साल बतौर हीरो ज्यादा अच्छे नहीं थे, पर साल 2015 में आई फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ से उन्हें एक नई हिट मिली. इस के बाद अगर साल 2017 में आई फिल्म ‘मेरी प्यारी बिंदु’ को अलग कर दिया जाए तो बाकी सभी फिल्मों ने खूब कमाई की और देखते ही देखते आयुष्मान खुराना बड़े और कामयाब कलाकार बन गए.

‘आर्टिकल 15’ ने की तिगुनी कमाई…

साल 2019 की बात करें तो आयुष्मान खुराना की पहली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ आई थी. 28 जून को बड़े परदे पर आई यह एक ऐसे गंभीर मुद्दे पर बनी फिल्म थी जिस में आयुष्मान खुराना को देखना अपने आप में रोचक था, क्योंकि इस से पहले उन्होंने कभी किसी पुलिस वाले का ऐसा संजीदा किरदार नहीं निभाया था.

इस फिल्म ने भारतीय समाज में गहरे तक फैली जातिवाद की बुराई पर करारी चोट की थी. इस की कहानी में राजनीति और पुलिस को भी लपेटा गया था. बताया गया था कि ऊंची जाति और नीची जाति के फर्क पर कई राजनीतिक पार्टियां रोटी सेंक रही हैं और चाहती हैं कि यह फर्क बना रहे, तो दूसरी ओर ‘ब्राह्मण दलित एक हैं’ जैसे नारे भी राजनीतिक पार्टियां देती हैं. फिल्म में दलित नेताओं को भी नहीं छोड़ा गया था.

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आयुष्मान खुराना ने अपना किरदार इतने दमदार तरीके से निभाया था कि कहीं लगा ही नहीं कि वे ऐक्टिंग कर रहे थे. 29 करोड़ रुपए में बनी इस फिल्म ने 93 करोड़ रुपए की बढि़या कमाई की थी.

‘ड्रीम गर्ल’ ने तोड़े सक्सेस के रिकौर्ड…

फिर आई फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’. कौमेडी का भरपूर तड़का. इस जोनर में आयुष्मान खुराना खुद को सहज पाते हैं. इस फिल्म में उन्होंने एक छोटे से शहर में रहने वाले लड़के कर्मवीर का किरदार निभाया था, जो बचपन से ही लड़की की आवाज निकालने में माहिर है. धीरे-धीरे ऐसे हालात बनते हैं कि उसे एक काल सैंटर में ऐसी नौकरी मिलती है, जहां पर वह लड़की पूजा की आवाज में दुनियाभर से बातें करता है.

बाद में इसी पूजा के प्यार में पूरा शहर पड़ जाता है, लेकिन मामला वहां गड़बड़ा जाता है, जहां पर उस के आसपास के लोग भी पूजा से प्यार करने लगते हैं.

13 सितंबर को रिलीज हुई यह फिल्म भी दर्शकों के दिल में उतर गई थी. 30 करोड़ रुपए में बनी इस छोटे बजट की फिल्म ने बौक्स औफिस पर तहलका मचाते हुए 200 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की कमाई की थी.

‘बाला’ ने जीता बौलीवुड का दिल…

साल के आखिर में आई फिल्म ‘बाला’. एक ऐसे लड़के बाला की कहानी, जो अपनी घनी जुल्फों का दीवाना है और खुद को शाहरुख खान से कम नहीं समझता है. लेकिन जवानी की दहलीज पार करते ही वह अपने सिर के बाल खोने लगता है और धीरेधीरे गंजा हो जाता है. बाला की तो मानो दुनिया ही उजड़ जाती है.

यह फिल्म भी कमाई के मामले में आयुष्मान खुराना के लिए मलाई साबित हुई. 7 नवंबर को रिलीज हुई और 25 करोड़ से 30 करोड़ रुपए में बनी इस फिल्म ने भी नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते तक 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर ली थी.

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आने वाले साल में भी आयुष्मान खुराना कुछ ऐसी रोचक फिल्मों से जुड़े हैं जो उन्हें और ज्यादा कामयाब हीरो बना सकती हैं. इस की एक वजह यह भी है कि अब आयुष्मान खुराना आम आदमी से जुड़ी ऐसी कहानियों को ज्यादा चुनने लगे हैं, जो छोटे शहरों, कस्बों और गांव की होती हैं. इन की फिल्मों में कहानी किरदारों से बड़ी होती है. संवाद रोचक और कस्बाई पहचान लिए होते हैं. हीरो किसी सुपर पावर से लैस नहीं होता है, बल्कि एक ऐसा अदना इनसान होता है, जिस में अपनी कमियों पर रोने की हिम्मत होती है. वह सलमान खान जैसे किसी सुपर स्टार की तरह पूरी फिल्म को अपने कंधों पर नहीं ढोता है, बल्कि दूसरे किरदारों के चमकने के लिए आसमान धरती की ओर खींच लाता है.

‘गुलाबो सिताबो’ और  ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ से मचाएंगे धमाल…

साल 2020 में आयुष्मान खुराना फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ में अमिताभ बच्चन के साथ दिखाई देंगे. इस के अलावा वे फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में काम कर रहे हैं, जिस में वे एक समलैंगिक आदमी का किरदार निभा सकते हैं.

अपने नाम से ये दोनों फिल्में रोचक लग रही हैं. अमिताभ बच्चन उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, वहां वे बहुत सोचसमझ कर कोई फिल्म साइन करते हैं. फिर इस फिल्म में तो शूजित सिरकार भी बतौर डायरैक्टर शामिल हैं, जिन्होंने फिल्म ‘विकी डोनर’ बनाई थी.

फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में आयुष्मान खुराना के साथ जितेंद्र कुमार भी स्क्रीन शेयर करेंगे. यह फिल्म साल 2017 में आई हिट फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ का सीक्वल बताई जा रही है.

कुलमिलाकर आने वाला समय भी आयुष्मान खुराना के फिल्म कैरियर को नई ऊंचाइयां दे सकता है, जो उन के चाहने वालों के लिए अच्छी खबर है.

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एडिट बाय- निशा राय

अंधविश्वास: भक्ति या हुड़दंग

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

11 नवंबर, 2019 को लखनऊ से तकरीबन 110 किलोमीटर दूर सीतापुर रोड पर सीतापुर जिले के हरगांव नामक कसबे में एक वाकिआ देखने को मिला. यह मौका था कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले ‘दीपदान महोत्सव’ का, जो वहां के सूर्य कुंड तीर्थ में दीप जला कर मनाया जाता है.

आसपास के गांवों से सैकड़ों की तादाद में लोग वहां पहुंचे हुए थे और दीपदान कर रहे थे. वहीं पर शिव के मंदिर के ही पास एक मंच भी बनाया गया था. यहां तक तो सब अच्छा लग रहा था, पर हद तो तब हो गई, जब 2-3 किशोर लड़के राधाकृष्ण के वेश में आए और एक लड़का मोर के पंख लगा कर आ गया. वह लड़का एक अलग अंदाज में अपने पंखों को फैला रहा था और सब लोग उस के साथ सैल्फी लेने के लिए टूट पड़ रहे थे.

राधाकृष्ण और मोर बने लड़के मंच पर पहुंच गए और नाचना शुरू कर दिया. जनता तो जैसे इसी के लिए इंतजार में ही थी. तमाम नौजवान उन के वीडियो बनाते रहे, क्योंकि लोगों को उस समय धर्म से मतलब न हो कर उन लड़कों के नाच में ज्यादा मजा आ रहा था. जनता खुश हो कर पैसे लुटा रही थी और इस का मजा वहां की आयोजक समिति के लोग, जो मंदिर के पंडे ही थे, उठा रहे थे, जबकि इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा इन लोक कलाकारों और नर्तकों को दिया जाना चाहिए था, पर ऐसा होता नहीं दिखा, पैसे पर तो हक पंडे-पुजारियों का ही होता दिख रहा था. नतीजतन, लोगों के लिए वह एक डांस पार्टी जैसा कार्यक्रम हो गया था.

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उन्हीं लोगों में एक लड़का शिव के रूप में भी वहां पर आया था. अपने रौद्र रूप के चलते वह भी लोगों के कौतूहल और सैल्फी का केंद्र नजर आ रहा था और उस ने भी नाचनागाना शुरू किया. लोगों ने आस्था के नाम पर पैसे भी चढ़ाए.

माइक पर बोलता आदमी इस डांस को झांकी बोल रहा था, पर इस नाच में कलाकारों का अच्छा मेकअप था, उन के कपड़े अच्छे थे, उन की अच्छी भाव-भंगिमा थी, पर धार्मिकता कहीं नहीं थी. शायद सारी जनता इसे बस इस मनोरंजन का साधन मान कर देख रही थी और जी भर कर पैसा लुटा रही थी.

इस दीपदान नामक महोत्सव में ही थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर मौत के कुएं में मोटरसाइकिल चलाने का खेल चल रहा था, जिस में एक लड़का अपनी जान की बाजी लगा कर अपनी रोजीरोटी जुटाने की कोशिश कर रहा था.

कितना फर्क था एक ही जगह के 2 कार्यक्रमों और उन के पैसे कमाने के तरीके में.

इसी तरह का नजारा कांवड़ यात्रा में देखने को मिलता है. कुछ समय पहले सच्चे कांवड़ श्रद्धालु चुपचाप कांवड़ ले कर चलते जाते थे, फिर धीरेधीरे वे अपने साथ डीजे वगैरह ले जाने लगे और फिर इस तरह की झांकियां आने लगीं. झांकी वाले ये लड़के पूरे रास्ते डांस करते हुए जाते हैं. इन में न कोई श्रद्धा होती है और न ही कोई भक्ति, बल्कि जो हरकतें कांवडि़ए करते हैं, वे नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं लगती हैं. पर धार्मिक लोगों को धर्म और आस्था से बढ़ कर तो इन लोगों के डांस में मजा आता है और जितना ज्यादा मजा, उतना ज्यादा चढ़ावा. जितना ज्यादा चढ़ावा आता है, अगले साल कांवडि़यों की तादाद में उतना इजाफा होता जाता है. आज की कांवड़ यात्रा भक्ति कम और हुड़दंग व दिखावा ज्यादा हो गई है.

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हुड़दंगी कांवडि़ए न ही ट्रैफिक की परवाह करते हैं, न ही किसी नियम और कायदेकानून की. कांवड़ के बहाने उन के अंदर जो हिंसा छिपी होती है, वह इस दौरान खूब बाहर आती है. हालांकि, इन में बड़ी उम्र के कुछ सुलझे हुए कांवडि़ए भी होते हैं, जो इन को काबू में करने की कोशिश करते हैं, पर वे नाकाम ही रहते हैं.

आम जनता को लूटने का यह दोतरफा तरीका है. एक तो उसे कामधाम से हटा कर धर्म में लगाया कि उस की आमदनी कम हो जाए. दूसरा यह कि उस की जेब में जो भी रुपएपैसे हैं, वे नाचगाने, सैरसपाटे, चाटपकौड़ी और भगवान की भक्ति के नाम पर लूट लेना. इस माहौल में गरीबी कैसे  दूर होगी और नगर पार्षद व पंच से ले कर प्रधानमंत्री व अदालतें तक इसी का गुणगान कर रही हैं.

आखिर क्यों ‘कार्तिक’ ने किया ‘वेदिका’ को प्रपोज, क्या करेगी ‘नायरा’

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों ‘नायरा और कार्तिक’ का रोमांस फैंस को पसंद आ रहा है तो वहीं ‘वेदिका’ का दोनों के बीच रहना फैंस को खल रहा है. हाल ही में हमने आपको बताया था कि ‘वेदिका’ गोयनका हाउस में एंट्री करने के बाद ‘कार्तिक-नायरा’ को अलग करने की कोशिश करेगी. पर अब ऐसा लग रहा है कि ‘वेदिका’ की चालें कामयाब होती नजर आ रही हैं.

सिंघानिया हाउस पहुंची ‘वेदिका’

‘वेदिका’ अपने प्लान के मुताबिक जल्द ही ‘नायरा’ के साथ उसके घर यानी सिंघानिया सदन रहने आ गई है, जिसके बाद उसने अपनी चाले चलते हुए ‘नायरा’ के शादी के जोड़े में आग भी लगा दी थी.

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संगीत सेरेमनी में चलेगी ये चाल

खबरों के मुताबिक, संगीत सेरेमनी में ‘कार्तिक’ ‘नायरा’ को प्रपोज करने की प्लानिंग करेगा. लेकिन ‘वेदिका’ ‘कार्तिक’ की मेहनत पर पानी फेरते हुए ‘नायरा’ को प्रपोज करने से रोक देगी. दरअसल जब ‘कार्तिक’ ‘नायरा’ को प्रपोज करने जाएगा तो ‘नायरा’ से पहले ‘वेदिका’ ही स्पौटलाइट में एंट्री मार देगी और ‘कार्तिक’ गलती से ‘नायरा’ की बजाय ‘वेदिका’ को प्रपोज कर देगा. ये देखकर ‘वेदिका’ मन ही मन तो काफी खुश होगी लेकिन वह दिखावा करते हुए ‘कार्तिक’ से माफी मांगने का नाटक करेगी.

‘वेदिका’ पर फूटा दादी का गुस्सा

पहले से परेशान ‘दादी’ इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाई और सबके सामने ‘वेदिका’ पर चिल्ला उठीं कि उसने ऐसा क्यों किया. वहीं ‘नायरा और कार्तिक’ इस बात से शौक्ड हो गए.

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क्या ‘कार्तिक और नायरा’ को अलग कर पाएगी ‘वेदिका’

अब देखना ये है कि क्या शादी से पहले ‘वेदिका’ की शो से एक्जिट होगी. या फिर शादी में ‘वेदिका’ का धमाकेदार ड्रामा देखने को मिलेगा.

क्या नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने से बच सकती हैं गैर भाजपाई सरकारें ?

असम में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया है. यहां कई इलाकों में कर्फ्यू लगाना पड़ा है. कर्फ्यू के बाद भी प्रदर्शकारी सड़कों पर आए. असम से उठे विरोध प्रदर्शन की आग बंगाल तक पहुंच गई. बंगाल में शनिवार को पांच रेलगाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. कई जगहों पर आगजनी की गई. दिल्ली में भी जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों ने प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों और पुलिस को बीच हिंसक झड़पें भी हुईं.

केंद्र सरकार ने इस कानून को रुप तो दे दिया लेकिन एक प्रश्न सबके दिमाग में आ रहा है. वो ये हैं कि क्या गैर भाजपाई सरकारें इस बिल को अपने प्रदेश में लागू करेंगी या नहीं. क्योंकि पं बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ, पंजाब की कैप्टन की सरकार सभी ने इसको लागू करने से मना कर दिया है लेकिन गृह मंत्रालय के अधिकारी ने इसका राज बताया है. उनका दावा है कि राज्य सरकारों को इसे लागू करना पड़ेगा.

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गृह मंत्रालय के एक उच्च अधिकारी बताया कि क्योंकि इसे संविधान की 7वीं अनुसूचि के तहत सूचिबद्ध किया गया है, इसलिए राज्य सरकारों के पास इसे अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है.गृह मंत्रालय के अधिकारी ने यह बयान उस समय दिया, जब पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ने इस कानून को असंवैधानिक बताया और अपने राज्यों में इसे लागू नहीं करने की बात कही. गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया, ‘केंद्रीय कानूनों की सूची में आने वाले किसी भी कानून को लागू करने से राज्य सरकार इनकार नहीं कर सकती हैं.’ उन्होंने बताया कि यूनियन सूची के 7वें शेड्यूल के तहत 97 चीजें आती हैं, जैसे रक्षा, बाहरी मामले, रेलवे, नागरिकता आदि.

संशोधित विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद कानून बन चुका है लेकिन, इस पर देशव्यापी स्तर पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई मुख्यमंत्रियों ने इसे असंवैधानिक बताया है. पंजाब के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह इस संबंध में अपने रुख को स्पष्ट करने वाले पहले व्यक्तियों में से हैं. उन्होंने गुरुवार को कहा कि उनकी सरकार राज्य में कानून को लागू नहीं होने देगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे मुखर आलोचकों में से एक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी ने यह स्पष्ट किया है कि वह अधिनियम को अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगी. उन्होंने इससे पहले कहा था कि एनआरसी को पश्चिम बंगाल में अनुमति नहीं दी जाएगी.

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चुनावी रणनीतिकार व जद (यू) उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने शुक्रवार को लगातार तीसरे दिन ट्वीट कर नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की. उन्होंने अपनी पार्टी के रुख के खिलाफ जाते हुए ट्वीट किया, “बहुमत से संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक पास हो गया. न्यायपालिका के अलावा अब 16 गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों पर भारत की आत्मा को बचाने की जिम्मेदारी है, क्योंकि ये ऐसे राज्य हैं, जहां इसे लागू करना है.”

उन्होंने आगे लिखा, “तीन मुख्यमंत्रियों (पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल) ने सीएबी और एनआरसी को नकार दिया है और अब दूसरे राज्यों को अपना रुख स्पष्ट करने का समय आ गया है.”

Bigg Boss 13: सिद्धार्थ की एंट्री होते ही टूटा शहनाज का दिल, पारस ने की ऐसी हरकत

बिग बौस में कुछ दिनों पहले ही आपने देखा कि कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा की धमाकेदार एंट्री के साथ साथ घर में खूब हंगामा भी हुआ जब धीरे धीरे पारस ने वापस आ कर सबकी असलीयत सामने रखी. बीते एपिसोड में घर के फैंस के सबसे चहीते शख्स की एंट्री हुई है जिसका नाम है सिद्धार्थ शुक्ला. दरअसल, सिद्धार्थ अपनी तबीयत को लेकर कुछ दिनो के लिए बिग बौस के घर से बाहर हो गए थे. सबसे पहले तो उन्हें बिग बौस ने सीक्रेट रूम में रखा जिससे की वे घर में हो रही सारी चीजों पर नजर रखे हुए थे लेकिन उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ने के कारण उन्हें हौस्पीटल में शिफ्ट कर दिया गया.

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घर में हुई सिद्धार्थ की वापसी…

फैंस सिद्धार्थ शुक्ला को शो में वापसी देख कर काफी खुश हैं, और सबसे ज्यादा खुश तो पंजाब की कैटरीना कैफ यानी की शहनाज गिल हुईं जब उन्होनें सिद्धार्थ को देखा और देखते ही उन्हें अच्छे से गले लगा लिया. आखिर जब से सिद्धार्थ शुक्ला शो से गए थे तब से ही शहनाज काफी अकेला महसूस कर रही थीं और सिद्धार्थ को काफी याद भी कर रहीं थी.

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पारस ने लिया माहिरा का नाम…

आने वाले एपियोड में दर्शकों को फिर से घर में एक बड़ा धमाका देखने को मिलने वाला है. दरअसल बिग बौस ने सभी कंटेस्टेंट को कैप्टेंसी टास्क दिया है जिसका नाम है चूहा और बिल्ली टास्क. इस टास्क में घर के सभी सदस्य दो टीमों में बट जाएंगे, एक होगी रेड टीम और दूसरी होगी ब्लू टीम. इस टास्क में जब बारी आएगी कैप्टेंसी के दावेदारी के लिए नाम देने की तो पारस छाबड़ा अपनी करीबी दोस्त माहिरा का नाम देंगे जिस बात से शहनाज का दिल टूट जाएगा.

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पारस ने तोड़ा शहनाज का दिल…

शहनाज कैमरे के आगे ये कहती नजर आ रही हैं कि वे पारस को हमेशा सबसे आगे रखती हैं लेकिन पारस उन्हें हमेशा माहिरा के बाद ही रखते हैं. इसी दौरान सभी कंटेस्टेंट मिल कर पारस को समझाते हैं कि शहनाज उनसे प्यार करती है लेकिन पारस छूटते ही जवाब देते हैं कि वे माहिरा से प्यार करते हैं और उन्हें ही कैप्टन बनाएंगे.

इसी बात पर आज घर में काफी बड़ा हंगामा देखने को मिलने वाला है और देखने वाली बात ये भी होगी की कौन बनेगा घर का अगला कैप्टन.

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