लेखक- शिव शंकर गोयल

इस का ‘आईक्यू’ या ‘ईक्यू’ ही नहीं, बल्कि सब तरह के क्यू ऊंचे होंगे. मसलन:

एक जगह पर किसी समाज का परिचय सम्मेलन हो रहा था. वहां एक छोटा बच्चा खो गया. नहींनहीं, मैं आप को गलत बता गया. बच्चा तो आयोजकों के पास मंच पर था, लेकिन उस के मम्मीपापा कहीं खो गए थे. बच्चा भीड़ देख कर रो रहा था.

एक कार्यकर्ता ने उस बच्चे के मांबाप को ढूंढ़ने की खातिर उस से पूछा, ‘‘बताओ बेटा, तुम्हारा नाम क्या?है?’’

‘‘पप्पू...’’ वह बोला.

‘‘तुम्हारे पिताजी का नाम क्या है?’’ दूसरे कार्यकर्ता ने पूछा.

‘‘पापा...’’ बच्चे ने बताया.

‘‘वे क्या काम करते हैं?’’ पहले कार्यकर्ता ने पूछा.

‘‘जो मम्मी कहती हैं...’’ लड़के ने रोतेरोते बताया.

‘‘तुम कहां रहते हो?’’ दूसरे कार्यकर्ता ने पूछा.

‘‘मम्मी के पास...’’ उस बच्चे ने जवाब दिया.

देखा आप ने... कहते हैं न कि पूत के पांव पालने में दिखाई देते हैं. अब आप ही बताइए कि ऐसे बच्चे बड़े हो कर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बनने लायक हैं कि नहीं? कोई भी पत्रकार इन से कुछ नहीं उगलवा सकता है.

इतना ही नहीं, समय से पहले होशियारी आ जाने का उदाहरण भी देखते हैं.

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बचपन में हम सभी ने प्यासे कौए की कहानी पढ़ी है. अब भी वही कहानी पढ़ाई जाती है, जो इस तरह है:

एक प्यासा कौआ था. पानी ढूंढ़तेढूंढ़ते उसे एक घड़े में कुछ पानी दिखाई दिया, लेकिन पानी इतना कम था कि उस की चोंच वहां तक नहीं पहुंच सकती थी, इसलिए उस ने घड़े में एकएक कर के कई कंकड़पत्थर ला कर डाले, जिस से घड़े में पानी ऊपर आ गया. तब कौए ने अपनी प्यास बुझाई और फिर वह उड़ गया.

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