यह तो ठीक है कि 1911 से बनने शुरू हुए दिल्ली के ये भवन जो 1935 तक बने थे, अब पुराने पड़ गए और काम के नहीं रह गए हैं पर इस तरह की धरोहर वाली इमारतों को तो कई पीढि़यों तक रखा जाता है. जिस तरह लालकिला 400 वर्षों बाद आज भी अपना वजूद रखता है वैसे ही संसद भवन और उस के आसपास के धौलपुर स्टोन के विशाल भवन एक युग के परिचायक हैं.

नया युवा नए की उम्मीद करता है पर वह आनंद पुराने में ही लेता है. आज देशभर में सैकड़ों साल पुराने किलों, महलों में होटल खुल रहे हैं. दुनियाभर में पुरानी गुफाओं को पर्यटन स्थलों में तबदील किए जाने के साथ उन्हें रहने लायक बनाया जा रहा है.

संसद भवन चाहे छोटा हो, थोड़ा तकलीफ वाला हो, लेकिन उसे बदला जाना ठीक नहीं है. उस के बरामदों में बरामदे बना कर उन्हें एयरकंडीशंड किया जा सकता है. गुंबदों में हेरफेर कर के उन्हें आधुनिक बनाया जा सकता है. लेकिन अगर भाजपा का इरादा इसे पूरी तरह बदलना है, तो यह बेमतलब में सरकारी पैसा बरबाद करना है. एक तरफ तो भाजपा मंदिर के लिए लड़मर रही है जिस का न अता है न पता है, गाय के लिए लोगों का गला काट रही है, भारतमाता के मंदिर बनवा रही है, अयोध्या में दीयों को लगा कर विश्व रिकौर्ड बनाने के दावे ठोंक रही है जबकि दूसरी ओर महज 100 साल पुराने संसद क्षेत्र से ऊबना जता रही है.

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शायद उस का इरादा ऐसा भवन बनाना है जिस में मूर्तियों की जगह हो, घंटेघडि़याल दिखें, नयापन नहीं बल्कि पुरातन का ढोल पीटा जाए. जैसे भाजपा मंडली हर पढ़ेलिखे के हाथ में मैला सा लाल धागा बंधवाने में सफल हो गई है और नयों को पुराना बना सकी है, वैसे ही वह ससंद क्षेत्र को नए की जगह पुराना ही बनाएगी और इसीलिए अहमदाबाद की ही फर्म को ठेका दिया गया है जो शायद पुरातनपंथी डिजाइन बना दे. वैसे, यह कंपनी अब तक आधुनिक डिजाइन के साथ विश्वनाथ धाम, वाराणसी  डिजाइन कर चुकी है.

संसद भवन कहीं पार्लियामैंट हाउस की जगह परमानंद हाउस न बन जाए, ऐसी आशंका भी उठती है. हाल के सालों में अहमदाबाद की उक्त फर्म को ऐसे कामोंकी वजह से पुरस्कार मिले हैं.

संसद भवन आज भी पुराना नहीं लगता. भारतीय पत्थर से बना यह एंग्लोमुगल राजपूती स्टाइल अभिनव है और इसे थोड़ाबहुत ठीक करना ज्यादा अच्छा है, बजाय दूसरा बनाने के.

सरकार की ठेकेदारी प्रथा

देशभरमें अधिकांश युवाओं का मुख्य काम सरकारी नौकरियों की तलाश ही रहता है. जब उन्हें मोबाइल पर टिकटौक या फेसबुक से फुरसत होती है तो नौकरी की फिक्र सताती है, पर नौकरी सरकारी ही हो. कुछ नौकरियां, जैसे मैक्डोनल्ड, स्विगी और जमैटो भी चल सकती हैं, क्योंकि उन में एक चमक है, इंग्लिश में बोलने का मौका है. लेकिन ये नौकरियां थोड़ी ही हैं और थकाऊ हैं.

सरकारी नौकरियों में काम कम, वेतन ठीक और रोब की पूरी गुंजाइश होती है लेकिन अब यह सब है कहां, सरकारों ने हर तरह के काम ठेकों पर देने जो शुरू कर दिए हैं. रेलवे का एक विज्ञापन था कि उस की सीएनसी लेथ मशीनों के ऐनुअल मैंटेनैंस के लिए कौंटै्रक्टर चाहिए. यानी कि जो काम नौकरी पर रखे गए कामगारों को करना होता था, वह अब ठेकेदार के जरिए कराया जाएगा.

ठेकेदार अपने निरीक्षण में दिहाड़ी मजदूरों से काम कराएगा. वह उन्हें मेहनताना कम देगा, न दे तो भी चलेगा. ठेकदार सरकारी अधिकारियों को खिलानेपिलाने वाला हो, अपने हाथ गंदे न करे, ऐसा होगा. ईटैंडर से ठेका मिलेगा, तो यही होगा न.

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कर्नाटक में बेंगलुरु का मैट्रो विभाग मैट्रो के नीचे बागबगीचे डैवलप करने के लिए कौंट्रैक्टर रख रहा है. यानी जो माली, सुपरवाइजर पक्की नौकरी पर रखे जाते थे, अब वार्षिक ठेके पर रखे जाएंगे. कौंट्रैक्टर खुद कच्ची नौकरी पर और उस के कारीगर भी. ऐक्सपीरियंस और इनोवेशन की अब कोई गुंजाइश ही नहीं. काम अच्छा हो, करने वालों को सैटिस्फैक्शन हो, इस की भी गुंजाइश नहीं.

किसी भी अखबार को खोल कर देख लें, किसी भी ईटैंडर साइट पर चले जाएं, ऐसे विज्ञापन भरे हैं जिन में कौंट्रैक्टरों की जरूरत है. सरकारी नौकरियों के विज्ञापन नहीं दिखेंगे. सरकारी नौकरियां जिन्हें मिलेंगी वे तो टैंडर पास करेंगे, रिश्वत लेंगे. सरकारी नौकरियां कम हैं पर हैं बहुत वजनदार.

अब अगर आप सरकारी नौकरी में आ गए, तो काम न करने के भी बहाने ही बहाने. जिस कौंटै्रक्टर के लेबर भाग गए उस का दिवाला निकल गया. वह गायब हो गया. वह निकम्मा है. टैंडर कैंसिल हो गया. नया जारी कर रहे हैं. काम न हो, तो चिंता नहीं. मुश्किल यह है कि सरकारी नौकरी मिले, तो कैसे मिले?

लगता है देश में 2 जातियां रह जाएंगी. एक सरकारी नौकरी वालों की और दूसरी कौंट्रैक्टर के लेबर वालों की. सम झ सकते हैं कि कौन ऊंचा होगा, कौन अछूत. ऐसे में देश का हाल बेहाल न हो, कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. जब धर्म के इशारों पर देश चलाया जाएगा, तो ऐसा ही होगा.

डैमोक्रेसी और भारतीय युवा

हौंगकौंग और मास्को में डैमोक्रेसी के लिए हजारों नहीं, लाखों युवा सड़कों पर उतरने लगे हैं. मास्को पर तानाशाह जैसे नेता व्लादिमीर पुतिन का राज है जबकि हौंगकौंग पर कम्युनिस्ट चीन का. वहां डैमोक्रेमी की लड़ाई केवल सत्ता बदलने के लिए नहीं है बल्कि सत्ता को यह जताने के लिए भी है कि आम आदमी के अधिकारों को सरकारें गिरवी नहीं रख सकतीं.

अफसोस है कि भारत में ऐसा डैमोक्रेसी बचाव आंदोलन कहीं नहीं है, न सड़कों पर, न स्कूलोंकालेजों में और न ही सोशल मीडिया में. उलटे, यहां तो युवा हिंसा को बढ़ावा देते नजर आ रहे हैं. वे सरकार से असहमत लोगों से मारपीट कर उन्हें डराने में लगे हैं. यहां का युवा मुसलिम देशों के युवाओं जैसा दिखता है जिन्होंने पिछले 50 सालों में मिडिल ईस्ट को बरबाद करने में पूरी भूमिका निभाई है.

डैमोक्रेसी आज के युवाओं के लिए जरूरी है क्योंकि उन्हें वह स्पेस चाहिए जो पुराने लोग उन्हें देने को तैयार नहीं. जैसेजैसे इंसानों की उम्र की लौंगेविटी बढ़ रही है, नेता ज्यादा दिनों तक सक्रिय रह रहे हैं. वे अपनी जमीजमाई हैसियत को बिखरने से बचाने के लिए, स्टेटस बनाए रखने का माहौल बना रहे हैं. वे कल को अपने से चिपकाए रखना चाह रहे हैं, वे अपने दौर का गुणगान कर रहे हैं. जो थोड़ीबहुत चमक दिख रही है उस की वजह केवल यह है कि देश के काफी युवाओं को विदेशी खुले माहौल में जीने का अवसर मिल रहा है जहां से वे कुछ नयापन भारत वापस ला रहे हैं. हमारी होमग्रोन पौध तो छोटी और संकरी होती जा रही है. देश पुरातन सोच में ढल रहा है. हौंगकौंग और मास्को की डैमोक्रेसी मूवमैंट भारत को छू भी नहीं रही है.

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नतीजा यह है कि हमारे यहां के युवा तीर्थों में समय बिताते नजर आ रहे हैं. वे पढ़ने की जगह कोचिंग सैंटरों में बिना पढ़ाई किए परीक्षा कैसे पास करने के गुर सीखने में लगे हैं. वे टिकटौक पर वीडियो बना रहे हैं, डैमोक्रेसी की रक्षा नहीं कर रहे.

उन्हें यह नहीं मालूम कि बिना डैमोक्रेसी के उन के पास टिकटौक की आजादी भी नहीं रहेगी, ट्विटर का हक छीन लिया जाएगा, व्हाट्सऐप पर जंजीरे लग जाएंगी. हैरानी है कि देशभर में सोशल मीडिया पोस्टों पर गिरफ्तारियां हो रही हैं और देश का युवा चुप बैठना पसंद कर रहा है. वह सड़कों पर उतर कर अपना स्पेस नहीं मांग रहा, यह अफसोस की बात है. देश का भविष्य अच्छा नहीं है, ऐसा साफ दिख रहा है.

निजता के अधिकार पर हमला

भाजपा सरकार ने नैशनल इंटैलीजैंस ग्रिड तैयार किया है जिस में एक आम नागरिक की हर गतिविधि को एक साथ ला कर देखा जा सकता है. बिग ब्रदर इज वाचिंग वाली बात आज तकनीक के सहारे पूरी हो रही है. आज के कंप्यूटर इतने सक्षम हैं कि करोड़ों फाइलों और लेनदेनों में से एक नागरिक का पूरा ब्यौरा निकालने में कुछ घंटे ही लगेंगे, दिन महीने नहीं. अब एक नागरिक के घर के सामने गुप्तचर बैठाना जरूरी नहीं है. हर नागरिक हर समय फिर भी नजर में रहेगा.

इसे कपोलकल्पित न सम झें, एक व्यक्ति आज मोबाइल पर कितना निर्भर है, यह बताना जरूरी नहीं है. मोबाइलों का वार्तालाप हर समय रिकौर्ड करा जा सकता है क्योंकि जो भी बात हो रही है वह पहले डिजिटली कन्वर्ट हो रही है, फिर सैल टावर से सैटेलाइटों से होती दूसरे के मोबाइल पर पहुंच रही है. इसे प्राप्त करना कठिन नहीं है. सरकार इसलिए डेटा कंपनियों को कह रही है कि डेटा स्टोरेज सैंटर भारत में बनाए ताकि वह जब चाहे उस पर कब्जा कर सके.

नागरिक की बागडोर बैंकों से भी बंधी है. हर बैंक एक मेन सर्वर से जुड़ा है, नागरिक ने जितना जिस से लियादिया वह गुप्त नहीं है. अगर सैलरी, इंट्रस्ट, डिविडैंड मिल रहा है तो वह भी एक जगह जमा हो रहा है. सरकार नागरिक के कई घरों का ब्यौरा भी जमा कर रही है ताकि कोई कहीं रहे वहां से जोड़ा जा सके.

सरकार डौक्यूमैंट्स पर नंबर डलवा रही है. हर तरह का कानूनी कागज एक तरह से जुड़ा होगा. बाजार में नागरिक ने नकद में कुछ खरीदा तो भी उसे लगभग हर दुकानदार को मोबाइल नंबर देना होता है, यानी वह भी दर्ज.

सर्विलैंस कैमरों की रिकौर्डिंग अब बरसों रखी जा सकती है. 7 जुलाई, 2005 में जब लंदन की ट्यूब में आतंकी आत्मघाती हमला हुआ था तो लावारिस लाशें किसमिस की थी, यह स्टेशन पर लगे सैकड़ों कैमरों की सहायता से पता चल गया था. आदमी को कद के अनुसार बांट कर ढूंढ़ना आसान हो सकता है. अगर कोई यह कह कर जाए कि वह मुंबई जा रहा है पर पहुंच जाए जम्मू तो ये कंप्यूटर ढूंढ़ निकालेगा कि वह कहां किस कैमरे की पकड़ में आया. सारे कैमरे धीरेधीरे एकदूसरे से जुड़ रहे हैं.

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यह भयावह तसवीर निजता के अधिकार पर हो रहे हमले के लिए चेतावनी देने के लिए काफी है. देश की सुरक्षा के नाम पर अब शासक अपनी मनमानी कर सकते हैं, किसी के भी गुप्त संबंध को ट्रेस कर के ब्लैकमेल कर सकते हैं. इन कंप्यूटरों को चलाने वालों के गैंग बन सकते हैं जो किसी तीसरे जने को डेटा दे कर पैसा वसूलने की धमकी दे सकते हैं. हैकर, निजी लोग, सरकारी कंप्यूटर में घुस कर नागरिक की जानकारी जमा कर के ब्लैकमेल कर सकते हैं.

शायद इन सब से बचने के लिए लोगों को काले चश्मे पहनने होंगे, सारा काम नकद करना होगा, चेहरे पर नकली दाढ़ीमूंछ लगा कर चलने की आदत डालनी होगी. सरकार के शिकंजे से बचना आसान न होगा. यह कहना गलत है कि केवल अपराधियों को डर होना चाहिए, एक नागरिक का हक है कि वह बहुत से काम कानून की परिधि में रह कर बिना बताए करें. यह मौलिक अधिकार है. यह लोकतंत्र का नहीं जीवन का आधार है. हम सब खुली जेल में नहीं रहना चाहते ना.

 देहधंधे में मोबाइल की भूमिका

देहधंधा आजकल सड़क पर खड़े दलालों के जरिए नहीं बल्कि फेसबुक, ट्विटर आदि से चल रहा है. इन पर डायरैक्ट मैसेज की सुविधा है. कोई भी किसी भी लड़की को मैसेज भेज कर अपना इंटरैस्ट दिखा सकता है. एक बार आप ने किसी लड़की का अकाउंट खोल कर देखा नहीं कि ये सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स अपनेआप आप को ढूंढ़ कर बताने लगेंगे कि इस तरह के और अकाउंट कौनकौन से हैं जिन्हें फौलो किया जा सकता है.

दिखने में यह बड़ा सेफ लगता है पर अब चालाकों ने इसे लूट का जरिया बना लिया है. इस को इस्तेमाल कर के हनीट्रैप करना आसान हो गया है. डायरैक्ट मैसेज दिया तो हो सकता है कि कोई सुरीली, मदमाती, खनकती आवाज में फोन कर दे और फिर वह अपने शहर की किसी बताई जगह पर मिलने का इनविटेशन दे दे. सैक्स के भूखे हिंदुस्तानी बड़ी जल्दी फंस जाते हैं चाहे वे तिलकधारी और हाथ पर 4 रंगों के धागे बांधे क्यों न हों.

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अगर मुरगा फंस गया तो हजार तरीके हैं लूटने के. कई बार धमकियों से पैसे वसूले जाते हैं तो कई बार सैक्स सीन के फोटो खींच कर लंबे समय तक ब्लैकमेल किया जाता है. कोचीन में कतर के एक हिंदुस्तानी बिजनैसमैन की सैक्स करने के दौरान की वीडियो बना ली गई और उस के जरिए उस से 50 लाख रुपए मांगे गए. बिजनैसमैन ने हिम्मत दिखा कर पुलिस से शिकायत तो कर दी है पर यह पक्का है कि दलाल प्लेटफौर्म्स पकड़े नहीं जाएंगे. बस, लड़की को पकड़ लो, उस के कुछ साथी हों तो उन्हें पकड़ लो.

सोशल मीडिया की ये साइटें, जो लोकतंत्र की नई आवाज की तरह लगी थीं, अब प्रौस्टिट्यूशन मार्केट और नाइटक्लबों की कतार लगने लगी हैं जहां लड़कियों की भरमार है. अब चूंकि ग्राहक मौजूद हैं, लोग फंसने को तैयार हैं तो फंसाने वालों को भी तैयार किया ही जाएगा. लड़कियों को कभी पैसे का लालच दे कर तो कभी ब्लैकमेल कर के इस धंधे में उतार दिया जाता है. पहले लड़कियों को मारपीट का डर दिखाया जाता था, अब उन की नंगी तसवीरें या उन के रेप करते वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर मजबूर किया जाता है.

लड़कियों के लिए मोबाइल और सारे ऐप्स स्वतंत्रता की चाबी नहीं हैं, ये गुलामी की नई जंजीरें हैं जिन में जरा सी असावधानी या चूक उन्हें बेहद महंगी पड़ सकती है.

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