अपने कैरियर की शुरुआत से ठाकरे परिवार ने यदि कोई सही फैसला लिया है, तो अब भारतीय जनता पार्टी के साथ बिना मुख्यमंत्री बने सरकार न बनाने का फैसला लिया है. वरना तो यह पार्टी बेमतलब में कभी दक्षिण भारतीयों, कभी बिहारियों, कभी हिंदू पाखंडवादियों के नाम पर हल्ला मचाती रहती थी. शिव सेना का असर महाराष्ट्र में गहरे तक है. महाराष्ट्र की मूल जनता जो पहले खेती करती थी, छोटी कारीगरी करती थी, बाल ठाकरे की नेतागीरी में ही अपना वजूद बना पाई थी.

अफसोस यह है कि 1966 में जन्म से ही शिव सेना भगवा दास की तरह बरताव कर रही है. उस ने वे काम किए जो भारतीय जनता पार्टी सीधे नहीं कर सकती थी. उस ने तोड़फोड़ की नीति अपनाई जिस से वह भगवा एजेंडे का दमदार चेहरा बनी, पर हमेशा भारतीय जनता पार्टी की हुक्मबरदार थी. महाराष्ट्र के मराठे लोग खेती करने वालों में से आते हैं. उन्होंने ही महाराष्ट्र को ऊंचाइयों पर पहुंचाया था. शिवाजी ने ही औरंगजेब से तब दोदो हाथ किए थे, जब उस की सत्ता को चुनौती देने वाला कोई न था. मुगल राज को खत्म करने में मराठों की सेना का बड़ा हाथ था.

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लेकिन शिवाजी के बाद मराठों की नेतागीरी फिर पुरोहितपेशवाओं के हाथों में आ गई. वे ही मराठा साम्राज्य को चलाने लगे थे. 1966 में बाल ठाकरे ने जिस भी वजह से शिव सेना बनाई हो, उस को इस्तेमाल किया गया. उस के लोग महाराष्ट्र के गांवगांव में हैं. वे ही कारखानों की यूनियनों में  झंडा गाड़े रहे. कम्यूनिस्ट आंदोलन को उन्होंने ही हराया, लेकिन वे हरदम चाह कर या अनजाने में सेवक बने रहे. जब मुख्यमंत्री पद एक बार मिला था तो भी भाजपा की कृपा से.

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