संबंध जब अवैध हो

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को दोपहर 12 बजे के करीब थाना फीलखाना से सूचना मिली कि भाजपा के दबंग नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर माहेश्वरी मोहाल में जानलेवा हमला किया गया है. दोनों को मरणासन्न हालत में हैलट अस्पताल ले जाया गया है.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए वह एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह मौजूद थे. सत्तापक्ष के नेता पर हमला हुआ था, इसलिए मामला बिगड़ सकता था.

इस बात को ध्यान में रख कर एसएसपी साहब ने कई थानों की पुलिस और फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुला लिया था. माहेश्वरी मोहाल के कमला टावर चौराहे से थोड़ा आगे संकरी गली में बालाजी मंदिर रोड पर दिनदहाड़े यह हमला किया गया था. सड़क खून से लाल थी. अखिलेश कुमार मीणा ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद फोरैंसिक टीम ने अपना काम किया.

घटनास्थल पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसरा हुआ था. दुकानों के शटर गिरे हुए थे, आसपास के लोग घरों में दुबके थे. वहां लोग कितना डरे हुए थे, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वहां कोई कुछ भी कहनेसुनने को तैयार नहीं था. बाहर की कौन कहे, छज्जों पर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. यह 29 नवंबर, 2017 की बात है.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद अखिलेश कुमार मीणा हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां कोहराम मचा हुआ था. इस की वजह यह थी कि जिस भाजपा नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर हमला हुआ था, डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया तो दहल उठे.

मृतक सतीश कश्यप का पूरा शरीर धारदार हथियार से गोदा हुआ था. जबकि ऋषभ पांडेय के शरीर पर मात्र 3 घाव थे. इस सब से यही लगा कि कातिल के सिर पर भाजपा नेता सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन को मारने का जुनून सा सवार था.

अस्पताल में मृतक सतीश कुमार की पत्नी बीना और दोनों बेटियां मौजूद थीं. सभी लाश के पास बैठी रो रही थीं. ऋषभ की मां अर्चना और पिता राकेश पांडेय भी बेटे की लाश से लिपट कर रो रहे थे. वहां का दृश्य बड़ा ही हृदयविदारक था. अखिलेश कुमार मीणा ने मृतकों के घर वालों को धैर्य बंधाते हुए आश्वासन दिया कि कातिलों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक सतीश कश्यप की पत्नी बीना और बेटी आकांक्षा से हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो आकांक्षा ने बताया कि उस के पिता की हत्या शिवपर्वत, उमेश कश्यप और दिनेश कश्यप ने की है. एक महिला से प्रेमसंबंधों को ले कर शिवपर्वत उस के पिता से दुश्मनी रखता था. उस ने 10 दिनों पहले धमकी दी थी कि वह उस के पिता का सिर काट कर पूरे क्षेत्र में घुमाएगा.

मृतक सतीश कश्यप ने इस की शिकायत थाना फीलखाना में की थी, लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और एक महिला सपा नेता के कहने पर समझौता करा दिया. अगर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया होता और शिवपर्वत पर काररवाई की होती तो आज भाजपा नेता सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय जिंदा होते.

अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक ऋषभ के घर वालों से पूछताछ की तो उस की मां अर्चना पांडेय ने बताया कि उन का बेटा अकसर नेताजी के साथ रहता था. वह उन का विश्वासपात्र था, इसलिए वह जहां भी जाते थे, उसे साथ ले जाते थे. आज भी वह उन के साथ जा रहा था. ऋषभ स्कूटी चला रहा था, जबकि नेताजी पीछे बैठे थे. रास्ते में कातिलों ने हमला कर के दोनों को मार दिया.

मृतक सतीश कश्यप की बेटी आकांक्षा ने जो बताया था, उस से साफ था कि ये हत्याएं प्रेमसंबंध को ले कर की गई थीं. इसलिए एसएसपी साहब ने थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह को आदेश दिया कि वह लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर तुरंत रिपोर्ट दर्ज करें और हत्यारों को गिरफ्तार करें.

मृतक सतीश कश्यप के घर वालों ने शिवपर्वत पर हत्या का आरोप लगाया था, इसलिए देवेंद्र सिंह ने सतीश कश्यप के बड़े भाई प्रेम कुमार की ओर से हत्या का मुकदमा शिवपर्वत व 2 अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि बंगाली मोहाल का रहने वाला शिवपर्वत नगर निगम में सफाई नायक के पद पर नौकरी करता था. वह दबंग और अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के इटावा बाजार निवासी राकेश शर्मा की पत्नी कल्पना शर्मा से अवैधसंबंध थे. इधर कल्पना शर्मा का मिलनाजुलना सतीश कश्यप से भी हो गया था. इस बात की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो वह सतीश कश्यप से दुश्मनी रखने लगा. इसी वजह से उस ने सतीश की हत्या की थी.

शिवपर्वत को गिरफ्तार करने के लिए एसपी अनुराग आर्या ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, चौकीप्रभारी फूलचंद, एसआई आशुतोष विक्रम सिंह, सिपाही नीरज, गौतम तथा महिला सिपाही रेनू चौधरी को शामिल किया.

शिवपर्वत की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका. इस के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन के आधार पर उसे फूलबाग चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. शिवपर्वत को गिरफ्तार कर थाना फीलखाना लाया गया.

एसपी अनुराग आर्या की मौजूदगी में उस से पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी बहानेबाजी के सीधे सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस की प्रेमिका कल्पना शर्मा की बेटी की शादी 30 नवंबर को थी. इस शादी का खर्च वही उठा रहा था, जबकि सतीश कश्यप भी शादी कराने का श्रेय लूटने के लिए पैसे खर्च करने लगे थे. यही बात उसे बुरी लगी थी.

उस ने उन्हें चेतावनी भी दी थी, लेकिन वह नहीं माने. उस की नाराजगी तब और बढ़ गई, जब कल्पना शर्मा ने सतीश कश्यप को भी शादी में निमंत्रण दे दिया. इस के बाद उस ने सतीश कश्यप की हत्या की योजना बनाई और शादी से एक दिन पहले उन की हत्या कर दी. ऋषभ को वह नहीं मारना चाहता था, लेकिन वह सतीश कश्यप को बचाने लगा तो उस पर भी उस ने हमला कर दिया. इस के अलावा वह जिंदा रहता तो उस के खिलाफ गवाही देता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उस से हथियार, खून सने कपड़े बरामद कराने के लिए कहा तो उस ने फेथफुलगंज स्थित जगमोहन मार्केट के पास के कूड़ादान से चाकू और खून से सने कपडे़ बरामद करा दिए. बयान देते हुए शिवपर्वत रोने लगा तो अनुराग आर्या ने पूछा, ‘‘तुम्हें दोनों की हत्या करने का पश्चाताप हो रहा है क्या?’’

शिवपर्वत ने आंसू पोंछते हुए तुरंत कहा, ‘‘सर, हत्या का मुझे जरा भी अफसोस नहीं है. मैं यह सोच कर परेशान हो रहा हूं कि मेरी प्रेमिका इस बात को ले कर परेशान हो रही होगी कि पुलिस मुझे परेशान कर रही होगी.’’

सतीश कश्यप और ऋषभ की हत्याएं कल्पना शर्मा की वजह से हुई थीं, इसलिए पुलिस को लगा कि कहीं हत्या में कल्पना शर्मा भी तो शामिल नहीं थी. इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने कल्पना शर्मा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना से पहले और बाद में शिवपर्वत की उस से बात हुई थी.

इसी आधार पर पुलिस पूछताछ के लिए कल्पना को भी 3 दिसंबर, 2017 को थाने ले आई, जहां पूछताछ में उस ने बताया कि सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन की हत्या की योजना में वह भी शामिल थी. इस के बाद देवेंद्र सिंह ने उसे भी साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. शिवपर्वत और कल्पना शर्मा से विस्तार से की गई पूछताछ में भाजपा नेता सतीश कश्यप और उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

महानगर कानपुर के थाना फीलखाना का एक मोहल्ला है बंगाली मोहाल. वहां की चावल मंडी में सतीश कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी बीना के अलावा 2 बेटियां मीनाक्षी, आकांक्षा और एक बेटा शोभित उर्फ अमन था.

सतीश कश्यप काफी दबंग था. उस की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी, इसलिए वह किसी से भी नहीं डरता था. इस की वजह यह थी कि उस का संबंध बब्बन गैंग के अपराधियों से था. इसीलिए बाद में उसे लोग छोटे बब्बन के नाम से पुकारने लगे थे.

इसी नाम ने सतीश को दहशत का बादशाह बना दिया था.फीलखाना के बंगाली मोहाल, माहेश्वरी मोहाल, राममोहन का हाता और इटावा बाजार में उस की दहशत कायम थी. लोग उस के नाम से खौफ खाते थे. उस पर तमाम मुकदमे दर्ज हो गए. वह हिस्ट्रीशीटर बन गया. 10 सालों तक इलाके में सतीश की बादशाहत कायम रही. लेकिन उस के साथ घटी एक घटना से उस का हृदय परिवर्तित हो गया. उस के बाद उस ने अपराध करने से तौबा कर ली.

दरअसल उस के बेटे का एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की जान बच गई. इसी के बाद से सतीश ने अपराध करने बंद कर दिए. अदालत से भी वह एक के बाद एक मामले में बरी होता गया.

अपराध से किनारा करने के बाद सतीश राजनीति करने लगा. पहले वह बसपा में शामिल हुआ. सपा सत्ता में आई तो वह सपा में चला गया. सपा सत्ता से गई तो वह भाजपा में आ गया. राजनीति की आड़ में वह प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करता था. वह विवादित पुराने मकानों को औनेपौने दामों में खरीद लेता था. इस के बाद उस पर नया निर्माण करा कर महंगे दामों में बेचता था. इस में उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

ऋषभ सतीश कश्यप का दाहिना हाथ था. उस के पिता राकेश पांडेय इटावा बाजार में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना के अलावा बेटा ऋषभ और बेटी रेनू थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. 8वीं पास कर के ऋषभ सतीश कश्यप के यहां काम करने लगा था.

वह उम्र में छोटा जरूर था, लेकिन काफी होशियार था. सतीश कश्यप का सारा काम वही संभालता था. हालांकि सतीश का बेटा अमन और बेटी आकांक्षा भी पिता के काम में हाथ बंटाते थे, लेकिन ऋषभ भी पूरी जिम्मेदारी से सारे काम करता था. इसलिए सतीश हमेशा उसे अपने साथ रखते थे. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.

बंगाली मोहाल में ही शिवपर्वत वाल्मीकि रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह नगर निगम में सफाई नायक था. उसे ठीकठाक वेतन तो मिलता ही था, इस के अलावा वह सफाई कर्मचारियों से उगाही भी करता था. लेकिन वह शराबी और अय्याश था, इसलिए हमेशा परेशान रहता था. उस की नजर हमेशा खूबसूरत महिला सफाईकर्मियों पर रहती थी, जिस की वजह से कई बार उस की पिटाई भी हो चुकी थी.

एक दिन शिवपर्वत इटावा बाजार में बुटीक चलाने वाली कल्पना शर्मा के घर के सामने सफाई करा रहा था, तभी उस की आंख में कीड़ा चला गया. वह आंख मलने लगा और दर्द तथा जलन से तड़पने लगा. उसे परेशान देख कर कल्पना शर्मा ने रूमाल से उस की आंख साफ की और कीड़ा निकाल दिया. कल्पना शर्मा की खूबसूरत अंगुलियों के स्पर्श से शिवपर्वत के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. वह भी काफी खूबसूरत थी, इसलिए पहली ही नजर में शिवपर्वत उस पर मर मिटा.

इस के बाद शिवपर्वत कल्पना के आगेपीछे घूमने लगा, जिस से वह उस के काफी करीब आ गया. वह उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. कल्पना अनुभवी थी. वह समझ गई कि यह उस का दीवाना हो चुका है. कल्पना का पति राजेश कैटरर्स का काम करता था. वह अकसर बाहर ही रहता था. ज्यादातर रातें उस की पति के बिना कटती थीं, इसलिए उस ने शिवपर्वत को खुली छूट दे दी, जिस से दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

नाजायज संबंध बने तो शिवपर्वत अपनी पूरी कमाई कल्पना पर उड़ाने लगा, जिस से उस के अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई. पत्नी और बच्चे भूखों मरने लगे.

पत्नी वेतन के संबंध में पूछती तो वह वेतन न मिलने का बहाना कर देता. पर झूठ कब तक चलता. एक दिन रामदुलारी को पति और कल्पना शर्मा के संबंधों का पता चल गया. वह समझ गई कि पति सारी कमाई उसी पर उड़ा रहा है.

औरत कभी भी पति का बंटवारा बरदाश्त नहीं करती तो रामदुलारी ही कैसे बरदाश्त करती. उस ने पति का विरोध भी किया, लेकिन शिवपर्वत नहीं माना. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो आजिज आ कर वह बच्चों को ले कर मायके चली गई. इस के बाद तो शिवपर्वत आजाद हो गया. अब वह कल्पना के यहां ही पड़ा रहने लगा. उस की बेटी उसे पापा कहने लगी.

खूबसूरत और रंगीनमिजाज कल्पना शर्मा की सतीश कश्यप से भी जानपहचान थी. सतीश की उस के पति राजेश से दोस्ती थी. उसी ने कल्पना से उस को मिलाया था. उस के बाद दोनों में दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई थी. लेकिन ये संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं चल सके. दोनों अलग हो गए थे.

कल्पना शर्मा की बेटी सयानी हुई तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगी. बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए वह मकान का एक हिस्सा बेचना चाहती थी. सतीश कश्यप को जब इस बात का पता चला तो वह कल्पना शर्मा से मिला और उस का मकान खरीद लिया. मकान खरीदने के लिए वह कल्पना शर्मा से मिला तो एक बार फिर दोनों का मिलनाजुलना शुरू हो गया. सतीश ने उसे आश्वासन दिया कि वह उस की बेटी की शादी में हर तरह से मदद करेगा.

मदद की चाह में कल्पना शर्मा का झुकाव सतीश की ओर हो गया. अब वह शिवपर्वत की अपेक्षा सतीश को ज्यादा महत्त्व देने लगी. एक म्यान में 2 तलवारें भला कैसे समा सकती हैं? प्रेमिका का झुकाव सतीश की ओर देख कर शिवपर्वत बौखला उठा. उस ने कल्पना शर्मा को आड़ेहाथों लिया तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा, ‘‘शिव, तुम्हें किसी ने झूठ बताया है. हमारे और नेताजी के बीच कुछ भी गलत नहीं है.’’

कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी तय कर दी थी. शादी की तारीख भी 30 नवंबर, 2017 रख दी गई. गोकुलधाम धर्मशाला भी बुक कर लिया गया. वह शादी की तैयारियों में जुट गई. शिवपर्वत शादी की तैयारी में हर तरह से मदद कर रहा था. लेकिन जब उसे पता चला कि सतीश कश्यप भी शादी में कल्पना की मदद कर रहा है तो उसे गुस्सा आ गया.

शिवपर्वत ने कल्पना शर्मा को खरीखोटी सुनाते हुए कहा कि अगर सतीश उस की बेटी की शादी में आया तो ठीक नहीं होगा. अगर उस ने उसे निमंत्रण दिया तो अनर्थ हो जाएगा. प्रेमिका को खरीखोटी सुना कर उस ने सतीश को फोन कर के धमकी दी कि अगर उस ने कल्पना से मिलने की कोशिश की तो वह उस का सिर काट कर पूरे इलाके में घुमाएगा. देखेगा वह कितना बड़ा दबंग है.

शिवपर्वत सपा का समर्थक था. सपा के कई नेताओं से उस के संबंध थे. उस के भाई भी सपा के समर्थक थे और उस का साथ दे रहे थे. सतीश ने शिवपर्वत की धमकी की शिकायत पुलिस से कर दी. सीओ कोतवाली ने शिवपर्वत को थाने बुलाया तो वह सपा नेताओं के साथ थाने आ पहुंचा. सपा नेताओं ने विवाद पर लीपापोती कर के समझौता करा दिया.

शिवपर्वत के मना करने के बावजूद कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी का निमंत्रण सतीश कश्यप को दे दिया था. जब इस की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो उस ने कल्पना शर्मा को आड़ेहाथों लिया. तब कल्पना ने कहा कि सतीश कश्यप दबंग है. उस से डर कर उस ने उसे शादी का निमंत्रण दे दिया है. अगर वह चाहे तो उसे रास्ते से हटा दे. इस में वह उस का साथ देगी.

‘‘ठीक है, अब ऐसा ही होगा. वह शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.’’ शिवपर्वत ने कहा.

इस के बाद उस ने शादी के एक दिन पहले सतीश कश्यप की हत्या करने की योजना बन डाली. इस के लिए उस ने फेरी वाले से 70 रुपए में चाकू खरीदा और उस पर धार लगवा ली. 29 नवंबर की सुबह सतीश किसी नेता से मिल कर घर लौटे तो उन्हें किसी ने फोन किया. फोन पर बात करने के बाद वह ऋषभ के साथ स्कूटी से निकल पड़े. पत्नी बीना ने खाने के लिए कहा तो 10 मिनट में लौट कर खाने को कहा और चले गए.

करीब 11 बजे वह बालाजी मंदिर मोड़ पर पहुंचे तो घात लगा कर बैठे शिवपर्वत ने स्कूटी रोकवा कर उन पर हमला कर दिया. सतीश कश्यप सड़क पर ही गिर पड़े. सतीश को बचाने के लिए ऋषभ शिवपर्वत से भिड़ गया तो उस ने उस पर भी चाकू से वार कर दिया. ऋषभ जान बचा कर भागा, लेकिन आगे गली बंद थी. वह जान बचाने के लिए घरों के दरवाजे खटखटाता रहा, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

पीछा कर रहे शिवपर्वत ने उसे भी घायल कर दिया. ऋषभ जमीन पर गिर पड़ा. इस पर शिवपर्वत का गुस्सा शांत नहीं हुआ. लौट कर उस ने सड़क पर पड़े तड़प रहे सतीश कश्यप पर चाकू से कई वार किए. एक तरह से उस ने उस के शरीर को गोद दिया. इस के बाद इत्मीनान से चाकू सहित फरार हो गया.

शिवपर्वत ने इस बात की सूचना मोबाइल फोन से कल्पना शर्मा को दे दी थी. इस के बाद रेल बाजार जा कर कपड़ों की दुकान से उस ने एक जींस व शर्ट खरीदी और सामुदायिक शौचालय जा कर खून से सने कपड़े उतार कर नए कपड़े पहन लिए और फिर रेलवे स्टेशन पर जा कर छिप गया.

इस वारदात से इलाके में दहशत फैल गई थी. दुकानदारों ने शटर गिरा दिए थे और गली के लोग घरों में घुस गए थे. लेकिन किसी ने घटना की सूचना पुलिस और सतीश कश्यप के घर वालों को दे दी थी.

खबर पाते ही सतीश कश्यप की पत्नी बीना अपनी दोनों बेटियों मीनाक्षी और आकांक्षा तथा बेटे अमन के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचीं. उन की सूचना पर ऋषभ के पिता राकेश और मां अर्चना भी आ गईं. थाना फीलखाना के प्रभारी देवेंद्र सिंह भी आ गए. उन्होंने घायलों को हैलट अस्पताल भिजवाया और वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

पूछताछ के बाद थाना फीलखाना पुलिस ने अभियुक्त शिवपर्वत और कल्पना शर्मा को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं. कल्पना शर्मा के जेल जाने से उस की बेटी का रिश्ता टूट गया.

सोचने वाली बात यह है कि शिवपर्वत को मिला क्या? उस ने जो अपराध किया है, उस में उसे उम्रकैद से कम की सजा तो होगी नहीं. उस ने जिस कल्पना के लिए यह अपराध किया, क्या वह उसे मिल पाएगी? उस ने अपनी जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही कल्पना और उस की बेटी का भी भविष्य खराब कर दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जनता पर गौ आतंक की मार

रामपुर गांव के रहने वाले देवराज के पास गांव में 6 बीघा खेत हैं. वे अपने खेतों में धान, गेहूं, सरसों, आलू जैसी फसलों की खेती करते हैं. उन के पास अपने खुद के 5 मवेशी हैं जिन में एक गाय, एक भैंस और 2 बैल हैं. वे उन्हें अच्छे ढंग से रखते हैं. इस के अलावा वे अपने खेतों में भी उन से काम लेते हैं.

देवराज के 6 बीघा खेत 2-2 बीघा के टुकड़ों में गांव के 3 अलगअलग हिस्सों में बंटे हैं. पिछले एक साल से गांव में छुट्टा जानवरों का इतना आतंक है कि देवराज केवल 2 बीघा खेत में ही खेती कर पा रहे हैं. इस खेत में उन्होंने तारबंदी कर रखी है.

वे बताते हैं कि अब खेत की तारबंदी किए बिना फसल को बचाया नहीं जा सकता. तारबंदी कराने में पैसा खर्च होता है. यह भी एक बोझ की तरह है. बहुत सारे किसानों को छुट्टा जानवरों का आतंक सता रहा है.

झगड़े की वजह

छुट्टा जानवर केवल खेती को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं, बल्कि वे गांव के सामाजिक और सांप्रदायिक माहौल को भी खराब कर रहे हैं.

बुलंदशहर जैसी बड़ी घटनाएं तो सामने आ जाती हैं, पर ऐसे तमाम झगड़े भी होते हैं जो बड़ी घटना भले न बन सकें, पर गांव के लैवल पर तो बड़े बन जाते हैं.

किसी जानवर के मारे जाने पर शरारती तत्त्व उस को गौमांस कह कर प्रचारित करते हैं. लखनऊ की बक्शी का तालाब तहसील में गोमती नदी में

23 जानवर डूब कर मर गए तो लोगों ने उन्हें गाय बता कर सनसनी फैलाने की कोशिश की. लिहाजा, प्रशासन को हर जानवर का पोस्टमौर्टम करा कर यह बताना पड़ा कि वे गौवंश के नहीं थे.

कई बार गाय या दूसरे छुट्टा जानवर किसी दूसरे धर्म के किसान के खेत में चले जाते  हैं तो आपस में झगड़ा होने लगता है. गांव के लोग अब अपने गांव से इन जानवरों को पकड़ कर दूसरे गांवों में छोड़ने का काम करने लगे हैं.

इस बात को ले कर गांव वालों के बीच आपस में झगड़े बढ़ गए हैं. गांव के लोग अब स्कूलों और पंचायत भवनों में इन जानवरों को कैद करने लगे हैं.

मोहनलालगंज विधानसभा के विधायक अंबरीष सिंह पुष्कर ने इस के खिलाफ आवाज उठाई और तहसील के ब्लौक भवन में ही ऐसे जानवरों को कैद कर अपना विरोध प्रदर्शन किया.

हादसे की वजह

छुट्टा जानवर केवल गांव में ही आतंक की वजह नहीं हैं, बल्कि शहरों में भी इन का आतंक कम नहीं है. ये सड़कों पर चलती गाडि़यों से टकरा जाते हैं.

अपनी भाभी को इलाज के लिए अस्पताल ले जा रहे बीघापुर के रामकुमार की मोटरसाइकिल एक गाय से टकरा गई, जिस से गिर कर भाभी घायल हुईं और खुद रामकुमार की मौत हो गई थी.

ऐक्सप्रैस हाईवे पर बाउंड्री वाल बनी होने के बाद भी ये हादसे हो जाते हैं. छुट्टा जानवरों की तादाद बढ़ने से ऐसे हादसे और भी ज्यादा बढ़ गए हैं.

खरीद फरोख्त हुई बंद

पहले जानवर किसान की पूंजी का काम करते थे. जब किसान को पैसों की जरूरत होती थी तो वे अपने कुछ जानवर बेच लेते थे.

बिकने वाले जानवरों में गाय, बैल, बकरी, भैंस और भैंसा अहम होते थे. पिछले कुछ सालों से जानवरों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल भरा काम होने लगा है.

गौरक्षक ऐसे कारोबारियों को परेशान करने, जान से मारने और पैसा वसूलने में पीछे नहीं रहते हैं.

जानवरों की खरीदफरोख्त में ज्यादातर मुसलिम बिरादरी के ही लोग होते थे. ऐसे में उन के साथ झगड़ा बढ़ने लगा. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में ऐसे झगड़े बहुत बार देखने को मिले. नोएडा का अखलाक, राजस्थान का पहलू हत्याकांड, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की घटना इस के खास उदाहरण हैं.

इन घटनाओं का असर यह पड़ा कि गांव के आसपास लगने वाले जानवरों के बाजार खत्म होने लगे. अब किसी भी बाजार में जानवर बिकते नहीं दिखते हैं.

इस कारोबार में लगे फैजाबाद के बाशिंदे रफीक अहमद बताते हैं, ‘‘हमारे लिए जानवरों को बाहर से लाना बहुत खतरनाक हो चुका है. पुलिस भी हमारी मदद नहीं करती और ऐसे में हमें इस कारोबार को ही बंद करना पड़ गया.’’

गाय पर राजनीति

भारतीय जनता पार्टी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लगता है कि गाय के सहारे ही उन की राजनीति परवान चढ़ेगी. जिंदगी के आखिरी समय में गौदान के सहारे सारे पाप धो कर पुनर्जन्म के लिए तैयार होने की परंपरा पुरानी है. अब उत्तर प्रदेश सरकार गाय को ही केंद्र में रख कर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है. गाय और दूसरे छुट्टा जानवरों को ले कर गांव और शहर में आतंक है.

जनता के इस आतंक को खत्म करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने संरक्षण केंद्र खोलने की शुरुआत की है, पर इस का भी कुछ खास असर नहीं दिख रहा है.

भारतीय जनता पार्टी आम लोकसभा चुनाव की तैयारी में ‘राम’ नहीं तो ‘गाय’ सही के मुद्दे पर आगे बढ़े रही है.

3 राज्यों की चुनावी हार ने यह साफ कर दिया है कि लोकसभा चुनाव में वहां भाजपा के लिए पूरे देश में 2014 जैसे हालात नहीं हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश पर भाजपा की उम्मीदों का बोझ बढ़ गया है.

भाजपा ने जब राम मंदिर पर अपने पैर वापस खींचे तो प्रदेश में हिंदुत्व को धार देने के लिए गौरक्षा और उस के संरक्षण को मुद्दा बनाया जाने लगा.

उत्तर प्रदेश की सरकार ने कांजी हाउस का नाम बदल कर गौ संरक्षण केंद्र रखने का फैसला किया है. सैस टैक्स लगा कर वसूली से गाय के संरक्षण पर खर्च किया जाएगा.

इस पर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती कहती हैं, ‘‘आबकारी और टोल टैक्स पर सैस लगाना भाजपा और आरएसएस की सोच है. अगर इस से गाय का संरक्षण मुमकिन है तो भाजपा की केंद्र सरकार को इसे राष्ट्रीय स्तर पर लगाना चाहिए.’’

सराओ होटल के मालिक : कौन गलत, कौन सही

18 अक्तूबर, 2017 की सुबह मोहाली पुलिस कंट्रोल रूम को हैरान करने वाली सूचना  दी गई कि फेज-10 के मानवमंगल स्कूल के पास एक आदमी ने अपनी पत्नी को रिवौल्वर से 6 की 6 गोलियां मार दी हैं, जो शायद सब की सब उस के सिर में ही लगी हैं. लेकिन अभी उस औरत की सांसें चल रही हैं. आप तुरंत आ कर उसे किसी अच्छे अस्पताल में पहुंचा दीजिए तो शायद उस की जान बच जाए.

‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’ पूछा गया तो फोन करने वाले ने कहा, ‘‘मैं तो राहगीर हूं. अपनी आंखों से इस दर्दनाक हादसे को देखा, इसलिए इंसानियत के नाते आप को फोन कर दिया. पर आप लोग समय बरबाद मत कीजिए. किसी की जिंदगी का सवाल है. वह औरत मर सकती है. जल्दी आ कर उस बदनसीब को बचा लीजिए.’’

इस के बाद तुरंत पीसीआर वैन को सूचना में बताए गए पते पर भेज दिया गया, साथ ही घटना के बारे में उस इलाके के थाना फेज-2 को भी सूचना दे दी गई. फेज-2 के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अमरप्रीत सिंह उस समय थाने में ही थे. उन्होंने एएसआई सतनाम सिंह, नरिंदर कुमार, सतिंदरपाल सिंह, हवलदार जसवीर सिंह और निर्मल सिंह को साथ लिया और घटनास्थल की ओर चल पडे़.

थाना पुलिस के पहुंचने तक पीसीआर की गाड़ी पहुंच चुकी थी. घटनास्थल पर काफी लोग इकट्ठा थे. मानवमंगल स्कूल की ओर सड़क के किनारे सिल्वर रंग की एक इंडिगो कार खड़ी थी, जिस का बाईं ओर वाला अगला दरवाजा खुला था. उसी के पास एक औरत जमीन पर पड़ी थी.

उस से कुछ दूरी पर सड़क पर एक बूढ़ा लेटा था, जिस की दोनों टांगें ऊपर की ओर थीं. सिर को उस ने अपने दोनों हाथों से कुछ इस तरह से सहारा दे रखा था, जैसे वह बुरी तरह से किसी मानसिक परेशानी से घिरा हो.

पुलिस के आते ही वह धीरे से उठा. उस के उठते ही भीड़ में से किसी ने उस की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, यही वह आदमी है, जिस ने पहले इस औरत से झगड़ा किया, उस के बाद रिवौल्वर निकाल कर उसे धड़ाधड़ गोलियां मार दीं.’’

इंसपेक्टर अमरप्रीत सिंह ने पलट कर उस बूढ़े की ओर देखा तो वह उन्हीं की ओर आ रहा था. इस बीच अमरप्रीत सिंह ने सुना कि लोग कह रहे थे, ‘‘यह बुड्ढा तो बहुत खतरनाक है. बच के रहो, अब पता नहीं किस को गोली मार दे.’’

बूढ़े ने भी अपने बारे में कही जाने वाली बातें सुन ली थीं. इसलिए अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा कर अमरप्रीत सिंह की ओर देखते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, मैं आत्मसमर्पण करने के लिए ही आप का इंतजार कर रहा था. मेरा खाली रिवौल्वर कार में पड़ा है. मैं ने उस की सारी गोलियां चला दी हैं, जो शायद उस के सिर में ही लगी हैं. फिर भी आप इसे अस्पताल पहुंचा दीजिए, शायद यह बच जाए.’’

‘‘इस का मतलब राहगीर बन कर पुलिस को आप ने ही फोन किया था?’’ अमरप्रीत सिंह ने पूछा.

‘‘जी हां, मैं ने ही फोन किया था. मैं अपनी गिरफ्तारी देने को तैयार हूं. लेकिन मेहरबानी कर के पहले आप घायल पड़ी मेरी पत्नी को अस्पताल पहुंचा दीजिए. शायद डाक्टर इसे बचा लें. मैं इसे इस तरह मरते नहीं देख सकता.’’ बूढ़े ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘आप परेशान मत होइए, हम इन्हें अस्पताल ही ले जा रहे हैं. फिलहाल आप हमारी गाड़ी में बैठ जाइए.’’ अमरप्रीत सिंह ने पुलिस की गाड़ी की ओर इशारा कर के कहा.

ऐंबुलैंस को पहले ही फोन कर दिया गया था. थोड़ी देर में ऐंबुलैंस आ गई. उस के बाद महिला को फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया. डाक्टरों ने चैकअप के बाद महिला को मृत घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

पत्नी को गोलियां मारने वाले उस बूढ़े को हिरासत में ले तो लिया गया था, लेकिन उस के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज कराने को तैयार नहीं था. बूढे़ ने ही 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को घटना की सूचना दी थी. वही इस अपराध का दोषी था. वारदात में प्रयुक्त लाइसैंसी रिवौल्वर भी कब्जे में ले ली गई थी.

कोई दूसरा चारा न देख अमरप्रीत सिंह ने अपनी ओर से एक तहरीर तैयार की और एफआईआर दर्ज करवाने को हवलदार जसवीर सिंह के हाथों थाना भिजवा दिया. कुछ ही देर में थाना फेज-2 में भादंवि की धारा 302 के अलावा शस्त्र अधिनियम की धाराओं 25 और 27 के अंतर्गत निरंकार सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई, क्योंकि उस बूढ़े का नाम निरंकार सिंह था.

सारी काररवाई पूरी कर के निरंकार सिंह और उस की कार को कब्जे में ले कर पुलिस थाने लौट आई. थाना पहुंचते ही निरंकार सिंह की तबीयत बिगड़ने लगी. इस के बाद उन के कहने पर उन के मैनेजर अनीश शर्मा को फोन कर के उन की दवाएं मंगवाई गईं. अनीश शर्मा के आने पर निरंकार सिंह ने एक साथ 10 तरह की टैबलेट्स खाईं, तब कहीं जा कर उन की स्थिति में सुधार आना शुरू हुआ.

अनीश को जब इस दर्दनाक घटना के बारे में पता चला तो वह हैरान रह गए. पुलिस को उन्होंने जो बताया, उस के अनुसार सुबह दोनों पीजीआई अस्पताल जाने के लिए एक साथ निकले थे. निरंकार सिंह ने हलका नाश्ता किया था, जबकि उन की पत्नी ने ठीकठाक नाश्ता किया था. दोनों की बातचीत में किसी तरह का तनाव या मनमुटाव नहीं दिखाई दिया था. निरंकार सिंह जो इंडिगो कार ले कर आए थे, वह उन्हीं की थी.

निरंकार सिंह से पूछताछ करना आसान नहीं था. उन का मैडिकल करवाया गया तो पता चला कि वह दवाओं के सहारे जिंदगी जी रहे थे. दिल के मरीज होने के साथसाथ हाइपरटेंशन, शुगर और अन्य कई तरह की बीमारियों से वह इस तरह गंभीर रूप से ग्रस्त थे कि उन्हें अपना जीवन चलाने के लिए दिन में 3 बार 10 तरह की दवाओं को नियमित खाना पड़ता था. अगर एक भी गोली नहीं खाते थे तो उन की तबीयत इस तरह खराब हो जाती थी कि उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता था.

जो भी था, चिकित्सीय सुविधा के साथ पुलिस ने निरंकार सिंह से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की. इस पूछताछ में निरंकार सिंह और उन के मैनेजर अनीश शर्मा के बयान से जो कहानी सामने आई, वह एक अजीबोगरीब कहानी थी—

60 साल के निरंकार सिंह सराओ का मोहाली के फेज-10 में अच्छाखासा सराओ होटल था. उसी होटल के टौप फ्लोर में वह खुद रहते थे. सन 1977 में उन की शादी उन से 2 साल बड़ी कुलवंत कौर से हुई थी. कुलवंत कौर अनिवासी भारतीय थीं, जो लंदन में रहती थीं. शादी के बाद वह भारत में रहने आईं तो वहां के मुकाबले उन्हें भारत का रहनसहन अच्छा नहीं लगा.

इसलिए कुलवंत कौर ने पति से भी इंडिया छोड़ कर लंदन चल कर रहने को कहा, लेकिन निरंकार इस के लिए तैयार नहीं थे. उन्हें अपने देश में रहना ज्यादा अच्छा लगता था. उन्हें मोहाली से कुछ ज्यादा ही लगाव था. वहां उन का बढि़या होटल था, जो ठीकठाक चल रहा था.

कुलवंत कौर कभी लंदन चली जातीं तो कभी भारत आ कर पति के साथ रहतीं. उन के पास इंडिया और इंग्लैंड दोनों जगहों की नागरिकता थी. कभीकभी निरंकार सिंह भी इंग्लैंड चले जाते थे. जिस तरह कुलवंत कौर को इंडिया में अच्छा नहीं लगता था, उसी तरह निरंकार सिंह को इंग्लैंड में अच्छा नहीं लगता था. इसलिए वह कुछ दिनों के लिए ही इंग्लैंड जाया करते थे. इसी तरह यह सिलसिला चलता रहा.

देखतेदेखते सालों बीत गए. इस बीच दोनों बेटी अमनप्रीत कौर और बेटे नवप्रीत सिंह के मांबाप बन गए. दोनों बच्चे लंदन में ही रह रहे थे. वहीं पर उन की शादियां हो गई थीं. उन के भी बच्चे हो गए. लेकिन उन का लगाव पिता से कम, मां से ज्यादा था. अमनप्रीत कौर इस समय 39 साल की है तो नवप्रीत सिंह 37 साल को हो चुका है.

उम्र के साथ निरंकार सिंह को कई बीमारियां हो गई थीं. उन का इलाज चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल से चल रहा था. कुलवंत कौर तो पहले ही से कहती रहती थीं कि जो सुविधाएं इंग्लैंड में हैं, भारत में नहीं है. इधर वह पति से स्पष्ट कहने लगी थीं कि अगर उन्हें लंबा स्वस्थ जीवन जीना है तो वह अपनी सारी संपत्ति बेच कर हमेशाहमेशा के लिए इंग्लैंड चल कर बस जाएं, वरना यहां के अस्पतालों के आधारहीन इलाजों से वह जल्दी ही मौत के आगोश में समा जाएंगे.

लेकिन निरंकार सिंह किसी भी सूरत में ऐसा करने के हक में नहीं थे, इसलिए उन्होंने पत्नी से साफ कह दिया था कि वह चाहें तो उन की प्रौपर्टी से अपना हिस्सा ले उन से अलग रहने का अधिकार ले लें, लेकिन वह किसी भी कीमत पर भारत छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. वह मरते दम तक मोहाली में ही रहेंगे.

घटना से करीब 2 हफ्ते पहले ही कुलवंत कौर अकेली ही भारत आई थीं. इस बार पति को अपने साथ इंग्लैंड ले जाने के चक्कर में उन्होंने भारत और इंग्लैंड के बीच बराबर तुलना करती रहीं. उस दिन कार में जाते समय भी वह वही सब कहती रहीं. पीछे से अगर कोई हौर्न बजाता तो कुलवंत कौर कहतीं, ‘‘इंग्लैंड में ऐसा नहीं होता.’’

होटल मैनेजर अनीश शर्मा ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार निरंकार सिंह उस दिन चैकअप के लिए पीजीआई अस्पताल जा रहे थे. वह सुबह 9 बजे ही तैयार हो गए थे. उन के पास .32 बोर का लाइसैंसी रिवौल्वर था, जिसे उन्होंने अपने पास रख लिया था.

निरंकार सिंह के पास बीएमडब्ल्यू कार थी. लेकिन उस दिन उन्होंने अपनी कार सर्विस के लिए भिजवाने के लिए अनीश शर्मा को बोल कर उन की इंडिगो कार ले ली थी. नाश्ता वगैरह कर के वह पत्नी को साथ ले कर कार को खुद चलाते हुए होटल से निकल पड़े थे.

इस के बाद जो कुछ हुआ, उस के बारे में निरंकार ने पुलिस को बताया, ‘‘कार में बैठते ही कुलवंत ने हमेशा की तरह इंग्लैंड चलने को ले कर मेरा दिमाग चाटना शुरू कर दिया. उन का कहना था कि इंडिया के घटिया अस्पतालों में इलाज करवा कर मैं अपनी मौत को क्यों बुला रहा हूं. इंडिया छोड़ कर उन के साथ इंग्लैंड चलूं, जहां इतने बढि़या अस्पताल हैं कि वहां के इलाज से मैं एकदम भलाचंगा हो जाऊंगा.’’

इस के बाद एक लंबी सांस ले कर उन्होंने आगे कहा, ‘‘कुछ ही देर में मुझे पत्नी की इस बकबक पर ऐसा गुस्सा आया कि मैं ने कार को सड़क किनारे खड़ी की और कुलवंत कुछ समझ पाती, उस के पहले ही अपना रिवौल्वर निकाला और छहों की छहों गोलियां उस पर दाग दीं.

‘‘इस के बाद अचानक मुझे पछतावा हुआ. मैं कार से निकल कर दूसरी तरफ आया, कार का दरवाजा खोलते ही वह सड़क पर गिर गई. उस की सांसें अभी चल रही थीं. मैं ने अपना परिचय छिपाते हुए 100 नंबर पर फोन कर दिया.’’

पूछताछ के बाद पुलिस ने 19 अक्तूबर, 2017 को निरंकार सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. 28 नवंबर को विदेश से उन के बेटेबेटी ने मोहाली पुलिस को ईमेल भेजा है कि उन के सनकी पापा को मां से कभी प्यार नहीं था. यह सोचीसमझी साजिश के तहत की गई हत्या थी. इस के लिए उन के पिता को सख्त से सख्त सजा दिलाई जाए.

बहरहाल, इस मामले में अभी भी चर्चा चल रही है कि आखिर किस की सोच गलत थी और किस की सही, इस का फैसला अब शायद ही हो पाए.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कविता की प्रेम कविता का अंत

18 नवंबर की सुबह 8 बज कर 9 मिनट पर पूर्वी दिल्ली के थाना गाजीपुर को फोन पर सूचना मिली कि गाजीपुर के पेपर मार्केट में सीएनजी पंप के सामने खड़े एक ट्रक के पिछले टायर के आगे एक युवक की रक्तरंजित लाश पड़ी है. लाश मिलने की सूचना पर एएसआई धर्मसिंह, हेड कांस्टेबल राजकुमार को साथ ले कर मोटरसाइकिल से पेपर मार्केट पहुंचे. वहां एक 22 पहियों वाली विशालकाय ट्रक खड़ी थी, जिस के बाईं तरफ पहिए के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी, जिस की गरदन को बेरहमी से रेता गया था. गरदन के नीचे काफी खून पड़ा था.

मृतक लाल रंग की चैकदार शर्ट और ग्रे कलर की पैंट पहने हुए था. हत्या का मामला था. एएसआई ने तत्काल इस की सूचना गाजीपुर के थानाप्रभारी अमर सिंह को दे दी. थोड़ी देर में थानाप्रभारी अमर सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और लाश का बारीकी से मुआयना करने लगे.

मृतक नंगे पैर था और उस के पैर फुटपाथ की तरफ थे. उस का नंगे पैर होना शक पैदा करता था कि उस की हत्या किसी और जगह की गई होगी. उस की गरदन पर दाहिनी ओर किसी धारदार हथियार का गहरा घाव था.

थानाप्रभारी ने आसपास के लोगों और वहां से आनेजाने वालों को रोक कर मृतक की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. तब उन्होंने क्राइम टीम बुला कर लाश और घटनास्थल की फोटो करा लीं और लाश 7 घंटे के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी.

एएसआई राजेश को घटनास्थल की निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अमर सिंह थाने लौट आए. उन्होंने थाने में आइपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया. इस केस की तफ्तीश की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं अपने हाथ में ली. थानाप्रभारी अमर सिंह ने अब तक की सारी काररवाई का ब्यौरा एसीपी आनंद मिश्रा और डीसीपी ओमबीर सिंह को दे दिया.

कल्याणपुरी के एसीपी आनंद मिश्रा ने थानाप्रभारी अमर सिंह, सब इंसपेक्टर सोनू तथा कांस्टेबल नीरज की एक टीम बना कर इस मामले को जल्द से जल्द हल करने के आदेश दिए. पुलिस टीम इस ब्लाइंड मर्डर केस की जांच में जुट गई. थानाप्रभारी टीम के साथ गाजीपुर के पेपर मार्केट में घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने हत्या से जुड़े संभावित सुरागों की तलाश में वहां के पासपड़ोस के बहुत से लोगों से पूछताछ की. लेकिन उन्हें वहां ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो मृतक को पहचानता हो.

कई घंटे तक घटनास्थल की खाक छानने के बाद भी जब अमर सिंह को इस हत्याकांड से जुड़ा कोई सुराग नहीं मिला तो वह वापस थाने लौट आए. उन्होंने सभी निकटवर्ती थानोंं को इस वारदात की जानकारी दे कर उन के यहां हाल ही में गुम हुए लोगों के बारे में पूछताछ की, लेकिन किसी का भी हुलिया मृतक के हुलिए से मेल नहीं खा रहा था.

उसी दिन शाम के वक्त एक औरत अपने 2 जानने वालों के साथ गाजीपुर थाने के ड्यूटी औफिसर के पास पहुंची. उस ने बताया कि उस का पति मिथिलेश ओझा पिछली रात से घर वापस नहीं लौटा है. वह नोएडा में नौकरी करता था. उस ने अपने पति का फोटो भी दिखाया. जब थाने में मौजूद ड्यूटी औफिसर ने उसे अज्ञात मृतक की फोटो दिखाई तो उसे देखते ही वह बुरी तरह से बिलख उठी.

उस ने रोते हुए बताया कि यह फोटो उस के पति मिथिलेश ओझा का है. इस के बाद उसे लाश दिखाने के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में ले जाया गया, जहां उस ने लाश को देखते ही उस की शिनाख्त अपने पति मिथिलेश ओझा के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उसे थाना गाजीपुर ला कर फिर से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि उस का नाम कविता है. वह अपने पति और 2 बच्चों के साथ दल्लूपुरा में किराए के एक मकान में रहती है. कल यानी 16 नवंबर को उस का पति रोज की तरह सुबह घर से काम पर नोएडा के लिए निकला था. वह नोएडा के सेक्टर 63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर था.

काम खत्म होने के बाद वह रात को 9 बजे तक घर लौट आता था. लेकिन कल रात वह घर नहीं लौटा. पति के नहीं लौटने से वह बहुत परेशान थी. उस ने पति के मोबाइल पर काल भी की लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था.

कविता ने अपने सभी नातेरिश्तेदारों को फोन कर के पति के बारे में पूछा. लेकिन उसे कहीं से भी मिथिलेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पूरे दिन पति को इधरउधर तलाश करने के बाद वह अपने जीजा अरविंद मिश्रा और पति के दोस्त विजय कुमार के साथ पति की गुमशुदगी दर्ज करवाने थाने आ गई.

कविता के पति मिथिलेश ओझा के कातिलों का सुराग हासिल करने के लिए उस से मिथिलेश की किसी से संभावित दुश्मनी के बारे में पूछताछ की गई. उस ने बड़ी मासूमियत से बताया कि उस का पति बहुत मिलनसार स्वभाव का था. उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. उस की बात सुन कर थानाप्रभारी अमर सिंह सोच में पड़ गए.

दरअसल, ऐसा कोई कारण जरूर था, जिस की वजह से बीती रात उस के पति मिथिलेश ओझा की हत्या हो गई थी. अब या तो कविता को अपने पति की हत्या के कारण की जानकारी नहीं थी, या वह जानबूझ कर पुलिस से कुछ छिपा रही थी. निस्संदेह यह तफ्तीश का विषय था. थानाप्रभारी ने कविता से उस के और उस के पति के साथ उस के सभी नजदीकी परिजनों के मोबाइल नंबर पूछ कर अपनी डायरी में नोट कर लिए. इस के बाद उन्होंने कविता को घर जाने को इजाजत दे दी.

जब इन सभी नंबरों की काल डिटेल्स मंगवाई गई तो विजय कुमार और कविता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स की जांच पड़ताल के दौरान थानाप्रभारी अमर सिंह की आंखें चमक उठीं. उन्होंने देखा कि दोनों के बीच मोबाइल पर अकसर बातें होती थीं. घटना वाले दिन शाम के वक्त विजय ने ही मिथिलेश के मोबाइल पर आखिरी काल की थी. यह देख कर उन्हें विजय कुमार और मृतक की पत्नी कविता पर शक हुआ.

उन्होंने विजय को थाने बुला कर उस के और कविता के बीच होने वाली बातचीत के बारे में पूछताछ की. पहले तो विजय कुमार ने उन्हें अपनी बातों से बरगलाने की कोशिश की, लेकिन बाद में वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. कविता से भी उस के तथा विजय के संबंधों के बारे में काफी पूछताछ की गई.

पूछताछ के दौरान कविता ने स्वीकार किया कि उस के और विजय कुमार के बीच अवैध संबंध हैं, लेकिन पति की हत्या में उस की संलिप्तता नजर नहीं आई. जबकि विजय ने अपने इकबालिया बयान में बताया कि उस ने अपने दूसरे साथी दुर्गा प्रसाद के साथ मिल कर इस जघन्य वारदात को अंजाम दिया था.

विजय को उसी वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. विजय की सुरागरसी पर उस के साथी दुर्गाप्रसाद को भी उसी दिन उस के घर दल्लूपुरा से गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के दौरान उस ने मिथिलेश की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. दोनों आरोपियों के बयान तथा कविता से हुई पूछताछ के बाद मिथिलेश ओझा की हत्या की एक ऐसी सनसनीखेज दास्तान उभर कर सामने आई.

35 वर्षीय मिथिलेश ओझा बिहार के जिला रोहतास का मूल निवासी था. अपनी पत्नी कविता तथा 2 बच्चों के साथ वह नोएडा के हरौला गांव में किराए के मकान में रहता था. वह नोएडा के सेक्टर-63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी की लोडर गाड़ी चलाता था. उस की पत्नी कविता सुंदर और चंचल स्वभाव की थी.

उन्हीं दिनों हरौला गांव मं विजय कुमार ने सुनार की दुकान खोली. दुकान की ओपनिंग के मौके पर उस ने बिहार के लोगों को अपनी दुकान पर आमंत्रित किया था. उस प्रोग्राम में कविता भी काफी सजधज कर आई थी. विजय की नजर जब कविता पर पड़ी तो वह उसे एकटक देखता रह गया. विजय को अपनी तरफ देखता देख कर वह एकदम शरमा गई.

उस वक्त वहां बहुत सारे लोग एकत्र थे, इसलिए विजय ने कविता से कुछ नहीं कहा. फिर भी प्रोग्राम के दौरान उस ने चलाकी से कविता से उस का नाम और मोबाइल नंबर ले लिया. कविता को भी विजय का यह अपनापन बहुत अच्छा लगा. वहां से जाते वक्त उस ने अपने घर का पता बता कर उसे अपने घर चाय पीने के लिए आमंत्रित किया.

एक दिन बाद ही विजय कविता से मिलने उस के घर जा पहुंचा. विजय को अपने घर आया देख कर कविता बहुत खुश हुई. उस ने विजय को बिठा कर उस की खूब आवभगत की. थोड़ी देर के बाद कविता का पति मिथिलेश ओझा भी वहां आ गया. कविता ने विजय का परिचय मिथिलेश से कराया तो वह बड़ी गर्मजोशी से मिला. विजय ने बताया कि वह भी बिहार के रोहतास का रहने वाला है.

कुछ देर वहां रहने के बाद विजय वहां से चला गया, लेकिन इस दौरान आंखों ही आंखों में अपने दिल की बात कविता पर जाहिर कर दी. जवाब में कविता ने भी उस की ओर देख कर आंखों के इशारे से यह जता दिया कि जो आग उस के दिल में लगी है, वही आग उस के सीने में भी धधक रही है.

इस तरह कविता के घर आतेजाते विजय और कविता का मिलनाजुलना शुरू हो गया. एक दिन विजय जानबूझ कर कविता के घर उस समय पहुंचा, जब मिथिलेश घर में नहीं था. कविता ने विजय को घर में बिठा कर उस से मीठीमीठी बातें शुरू कर दीं.

विजय को इसी दिन का इंतजार था. उस ने कविता कोे दरवाजा बंद करने का इशारा किया तो कविता ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और उस के पास आ कर बैठ गई. एकांत का फायदा उठाते हुए विजय ने कविता को अपनी बांहों में भर लिया.

प्रेमी की गर्म सांसों में पिघल कर कविता ने उसे मनमानी करने की खूली छूट दे दी. उस दिन के बाद जब भी उन्हें मौका मिलता, वे जमाने की आंखों से छिप कर शारीरिक संबंध बना लेते थे. इस तरह 4-5 साल किसी को भी उन के प्रेमिल संबंधों की जानकारी नहीं हुई.

लेकिन बाद में कुछ लोगों ने मिथिलेश को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में विजय उस के घर आता है और काफी देर तक रुकता है. यह जानने के बाद मिथिलेश ने कविता को डांटा और भविष्य में विजय से नहीं मिलने को कहा. उस वक्त तो कविता ने उस की बात मान ली, लेकिन बाद में उस का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी रहा.

कुछ दिन तक तो मिथिलेश को लगा कि उस की पत्नी सुधर गई है, लेकिन बाद में जब उसे पता चला कि उस की गैरहाजिरी में कविता और विजय का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी है तो इस से परेशान हो कर वह हरौला छोड़ कर दिल्ली के दल्लूपुरा में शिफ्ट हो गया.

दूसरी ओर विजय कुमार कविता के इश्क में इस तरह पागल था कि जिस दिन उस की कविता से बात नहीं होती थी, उस के दिल को चैन नहीं मिलता था. कविता के नोएडा से दिल्ली आ जाने के बाद वह सारा दिन कविता से मिलने के बारे में सोचता रहता था.

जब उसे कविता की बहुत याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर बातें कर के अपने दिल की चाहत बयां कर लिया करता था. कुछ दिनों के बाद विजय ने कविता से उस के घर का पता पूछा और उस से मिलने उस के घर आना शुरू कर दिया.

अभी मिथिलेश ओझा दल्लूपुरा में नया शिफ्ट हुआ था. वहां उसे जानने वालों की संख्या बहुत कम थी. उस के घर कौन कब आता है… कब जाता है, इस से किसी को कोई मतलब नहीं था. विजय कभी कविता से मिलने उस के घर आ जाता तो कभी कविता उस से मिलने चली जाती थी.

विजय के पास इंडिका कार थी. वह कविता को कार में बिठा कर लौंग ड्राइव पर ले जाता. रास्ते में कहीं एकांत जगह पर कार खड़ी कर के दोनों अपनी वासना की आग ठंडी कर लेते थे. इस तरह कविता और विजय दोनों मिथिलेश की आंखों में धूल झोंक कर काफी दिनों तक शारीरिक संबंध बनाते रहे.

घटना से कुछ दिन पहले एक दिन मिथिलेश ओझा के मकान मालिक ने उसे अपने घर पर बुला कर कहा कि उस ने कल उस के दोस्त विजय की मोटर-साइकिल पर कविता को बैठे देखा था. कविता विजय की मोटरसाइकिल के पीछे उस की कमर में हाथ डाले बैठी थी.

यह सुन कर मिथिलेश के तनबदन में आग लग गई. उस ने मकान मालिक का शुक्रिया अदा किया और घर लौट कर कविता को खूब डांट पिलाई. दूसरे दिन वह अपने दोस्त विजय से मिला और उसे अपने घर आने से मना कर के धमकी दी कि अगर उस ने कविता से मिलनाजुलना नहीं छोड़ा तो अपने भतीजे मुन्ना की मदद से उस की हत्या करा देगा.

विजय मिथिलेश की बात सुन कर डर गया. वह जानता था कि गुड़गांव में रहने वाला मिथिलेश का भतीजा मुन्ना कई खतरनाक बादमाशों को जानता है और अगर मुन्ना चाहे तो बड़ी आसानी से बदमाशों से उस की हत्या करा सकता है. दूसरे वह कविता के बिना भी रह नहीं सकता था.

मिथिलेश की धमकी के बाद विजय के मन में सदा यह डर बना रहता था कि अगर उस ने मिथिलेश को अपने रास्ते से नहीं हटाया तो किसी भी दिन उस की हत्या की जा सकती है. इस बारे में कई दिनों तक सोचने के बाद उस ने मन में मिथिलेश की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन यह बात उस ने कविता को नहीं बताई.

एक दिन उस ने अपने दोस्त दुर्गा प्रसाद को विश्वास में ले कर उसे पूरी बात बताई. साथ ही कहा भी कि अगर वह मिथिलेश की हत्या में उस का साथ दे तो इस के बदले उसे अच्छी खासी रकम देगा.

40 वर्षीय दुर्गाप्रसाद दिल्ली में छोटामोटा काम कर के अपने परिवार की गुजरबसर कर रहा था. उस की बड़ी बेटी शादी के लायक हो गई थी, इसलिए उसे बड़ी रकम की जरूरत थी. वह विजय कुमार का साथ देने के लिए राजी हो गया. बदले में विजय ने उस की बेटी की शादी में आर्थिक मदद करने की बात मान ली.

17 नवंबर, 2017 की शाम विजय कुमार ने फोन कर के दुर्गाप्रसाद को अपनी दुकान पर बुलाया. दुकान के बाहर उस की सिल्वर कलर की इंडिका कार खड़ी थी.

योजना के अनुसार दोनों कार में सवार हो कर नोएडा के सेक्टर-11 की रेड लाइट पर पहुंच कर मिथिलेश ओझा के काम से लौटने का इंतजार करने लगे. करीब साढ़े 8 बजे मिथिलेश ओझा अपनी साइकिल पर उधर से आता हुआ दिखाई दिया तो विजय ने उसे आवाज दे कर बुला लिया.

फिर उस से बातें करते हुए अपनी कार के पास आ कर बोला, ‘‘यार, बड़ी सर्दी हो रही है, चलो कार में बैठ कर बातें करते हैं.’’ बातें करतेकरते विजय कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और मिथिलेश ओझा ने अपनी साइकिल वहीं पर खड़ी कर दी और कार की पिछली सीट पर बैठे दुर्गा प्रसाद की बगल में जा बैठ गया.

मिथिलेश से विजय ने कहा कि एक जगह चलना है. उस की बात सुन कर मिथिलेश ओझा उस के साथ जाने को राजी हो गया. इस के बाद कार टी पौइंट से हो कर कोंडली में शराब के ठेके के पास पहुंची. वहां से शराब की बोतल और कोल्डड्रिंक ले कर विजय ने कार में बैठ कर तीनों के लिए पैग बनाए.

इसी बीच मिथिलेश की नजर बचा कर विजय ने मिथिलेश के पैग में नींद की गोलियां मिला कर उसे पैग पीने के लिए दे दिया. थोड़ी देर में आने वाली मौत की आहट से बेखबर मिथिलेश जाम से जाम टकराने के बाद शराब की चुस्कियां लेने लगा. बोतल की शराब खत्म होने पर भी जब मिथिलेश को अधिक नशा नहीं हुआ, तब विजय फिर ठेके पर पहुंचा और शराब का एक अद्धा और खरीद लाया.

विजय और दुर्गा प्रसाद ने कम शराब पी और मिथिलेश को जानबूझ कर इतनी अधिक पिला दी जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बेहोश होते ही विजय और दुर्गा प्रसाद एक दूसरे की ओर देख कर मुसकराए.

विजय कार चलाते हुए गाजीपुर के पेपर मार्केट में पहुंचा, जहां एक सुनसान सी जगह पर 22 पहियों वाला ट्रक खड़ा था. उस के बराबर कार में रोक कर विजय पिछली सीट पर पहुंचा और दुर्गा प्रसाद की मदद से एक रस्सी से मिथिलेश का गला घोंट दिया.

मिथिलेश की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को घसीट कर कर की पिछली सीट से नीचे उतारा और उस विशालकाय ट्रक के पिछले पहिए के सामने रख दिया. विजय ने दुर्गा प्रसाद से सड़क पर निगरानी करने के लिए कहा और खुद एक पेपर कटर ले कर बेदर्दी से मिथिलेश का गला रेत दिया.

विजय ने सोचा कि रात के अंधेरे में ड्राइवर ट्रक चलाएगा तो मिथिलेश का चेहरा बुरी तरह कुचला जाएगा, जिस से पुलिस उस की शिनाख्त नहीं कर पाएगी. मिथिलेश की जेब में रखे कागजात, मोबाइल फोन और उस की चप्पलनिकाल कर विजय और दुर्गा प्रसाद कार से वापस नोएडा के टी प्वाइंट पर पहुंचे. रास्ते में उन्होंने मिथिलेश की चप्पल, मोबाइल की बैटरी फेंक दी. इस के बाद दुर्गाप्रसाद को उस के घर दल्लूपुरा में छोड़ कर विजय अपने घर लौट गया.

सुबह साढ़े 7 बजे विजय फिर लाश के पास पहुंचा तो ट्रक को वहीं खड़ा देख कर उसे डर सा लगा. उस ने वहीं से दुर्गा प्रसाद को फोन कर के मिथिलेश की साइकिल को रात वाली जगह से हटा कर कहीं पर छिपा देने के लिए कहा. इस के बाद वह अपने घर आ गया.

थोड़ी देर बाद उस के मोबाइल पर कविता का फोन आया. कविता ने उसे बताया कि रात में उस का पति घर नहीं लौटा है. उसकी बात सुन कर वह सहानुभूति का नाटक करने उस के घर दल्लूपुरा पहुंचा. फिर वह कविता और उस के जीजा अरविंद मिश्रा के साथ मिथिलेश ओझा की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए गाजीपुर थाने पहुंच गया.

थानाप्रभारी अमर सिंह ने 11 नवंबर को मिथिलेश हत्याकांड में दोनों आरोपियों विजय कुमार और दुर्गा प्रसाद को दिल्ली के कड़कड़डुमा की अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

फोन बना दोधारी तलवार

पूनम का मूड सुबह से ही ठीक नहीं था. बच्चों को स्कूल भेजने का भी उस का मन नहीं हो रहा था. पर बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी था, इसलिए किसी तरह उस ने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया. पूनम के चेहरे पर एक अजीब सा खौफ था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी परेशानी किस से कहे. वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई. पूनम का मूड खराब देख कर उस के पति विनय ने हंसते हुए पूछा, ‘‘डार्लिंग, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. आखिर बात क्या है?’’

पूनम ने पलकें उठा कर पति को देखा. फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह फूटफूट कर इस तरह रोने लगी, जैसे गहरे सदमे में हो.

विनय ने करीब आ कर उसे सीने से लगा लिया और उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ पूनम, तुम मुझ से नाराज हो क्या? क्या तुम्हें मेरी कोई बात बुरी लग गई?’’

‘‘नहीं,’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

‘‘तो फिर क्या बात है, जो तुम इस तरह रो रही हो?’’ विनय ने हमदर्दी दिखाई.

पति का प्यार मिलते ही पूनम ने मोबाइल की ओर इशारा कर के सुबकते हुए बोली, ‘‘मेरी परेशानी का कारण यह मोबाइल है.’’

विनय ने हैरत से एक नजर मेज पर रखे मोबाइल फोन पर डाली, उस के बाद पत्नी से मुखातिब हुआ, ‘‘मैं समझा नहीं, इस मोबाइल से तुम्हारी परेशानी का क्या संबंध है? साफसाफ बताओ, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

पूनम मेज से मोबाइल उठा कर पति के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘आप खुद ही देख लो. इस के मैसेज बौक्स में क्या लिखा है?’’

विनय की उत्सुकता बढ़ गई. उस ने फटाफट फोन के मैसेज का इनबौक्स खोल कर देखा. जैसे ही उस ने मैसेज पढ़ा, उस के चेहरे पर एक साथ कई रंग आएगए.

मैसेज में लिखा था, ‘मेरी जान, तुम ने मुझे अपने रूप का दीवाना बना दिया है. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, चैन से जी नहीं पा रहा हूं. मैं तुम्हें जब भी विनय के साथ देखता हूं, मेरा खून खौल जाता है. आखिर तुम उस के साथ जिंदगी कैसे गुजार रही हो. मैं ने जिस दिन से तुम्हें देखा है, मेरी आंखों से नींद उड़ चुकी है.’

मैसेज पढ़ कर विनय को गुस्सा आ गया. फोन को मेज पर रख कर उस ने पत्नी से कहा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती.’’ पूनम दबी जुबान से बोली.

विनय कुछ देर सोचता रहा, फिर उस ने पत्नी की आंखें में झांका. उसे लगा कि पत्नी सच बोल रही है, क्योंकि अगर वह उस के साथ गेम खेल रही होती तो इस तरह परेशानी और रुआंसी नहीं होती. उसे लगा कि वाकई कोई उस की पत्नी को परेशान कर रहा है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कल्याणपुर थाने का एक मोहल्ला है शारदानगर. इसी मोहल्ले के इंद्रपुरी में विनय झा अपने परिवार के साथ रहता था. उस का अपना आलीशान मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उस का हौजरी का व्यवसाय था. इस से उसे अच्छीखासी आमदनी होती थी, जिस से उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी.

विनय झा इस से पहले अपने भाइयों के साथ दर्शनपुरवा में रहता था. वहां उस का अपना छोटा सा कारखाना था. उस का परिवार काफी दबंग किस्म का था. दबंगई से ही इन लोगों ने पैसा कमाया और फिर उसी पैसे से हौजरी का काम शुरू किया. व्यवसाय अच्छा चलने लगा तो विनय ने इंद्रपुरी में मकान बनवा लिया.

पूनम से विनय की शादी कुछ साल पहले हुई थी. पूनम बेहद खूबसूरत थी. पहली ही नजर में विनय उस का दीवाना हो गया था. उस की दीवानगी पूनम को भी भा गई. दोनों की पसंद के बाद उन की शादी हो गई. दोनों ही अपने गृहस्थ जीवन में खुश थे. 8 साल के अंतराल में पूनम 2 बच्चों की मां बन गई.

ससुराल में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. पति भी चाहने वाला मिला था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक पूनम को अश्लील मैसेज तथा प्रेमप्रदर्शन वाले फोन आने लगे. पूनम पति का गुस्सा जानती थी, अत: पहले तो उस ने पति को कुछ नहीं बताया, पर जब अति हो गई तो मजबूरी में बताना पड़ा.

विनय झा ने जब पत्नी के फोन में आए हुए मैसेज पढ़े तो उस की आंखों में खून उतर आया. जिस फोन नंबर से मैसेज आए थे, विनय ने उस नंबर पर काल की तो फोन रिसीव नहीं किया गया. इस पर विनय गुस्से में बड़बड़ाया, ‘‘कमीने…तू एक बार सामने आ जा. अगर तुझे जिंदा दफन न कर दिया तो मेरा नाम विनय नहीं.’’

गुस्से में कांपते विनय ने पूनम से पूछा, ‘‘क्या वह तुम्हें फोन भी करता है?’’

‘‘हां,’’ पूनम ने सिर हिलाया.

‘‘क्या कहता है?’’

‘‘नाजायज संबंध बनाने को कहता है. अब कैसे बताऊं आप को, इस ने तो मेरी जान ही सुखा दी है. लो, आप दूसरे मैसेज भी पढ़ लो. इन से पता चल जाएगा कि उस की मानसिकता क्या है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि वह तुम्हें फोन कब करता है या मैसेज कब भेजता है?’’ विनय ने पूछा.

‘‘जब आप घर पर नहीं होते, तभी उस के फोन आते हैं. जब आप घर पर होते हो तो न फोन आता है न मैसेज.’’ वह बोली.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह मुझ पर निगाह रखता है. उसे मेरे घर जानेआने का वक्त भी मालूम है.’’ कहते हुए विनय ने मैसेज बौक्स खोल कर दूसरे मैसेज भी पढ़े. एक मैसेज तो बहुत जुनूनी था, ‘‘तुम मुझ से क्यों नहीं मिलतीं? रात को सपने में तो खूब आती हो. अपने गोरे बदन को मेरे बदन से सटा कर प्यार करती हो. आह जान, तुम कितनी प्यारी हो. एक बार मुझ से साक्षात मिल कर मेरी जन्मों की… नहीं तो समझ लेना मैं तुम्हारी चौखट पर आ कर जान दे दूंगा. अभी तो मैं इसलिए चुप हूं कि तुम्हें रुसवा नहीं करना चाहता.’’

मैसेज पढ़ कर विनय की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘कमीने, तेरी प्यास तो मैं बुझाऊंगा. तू जान क्या देगा, मैं ही तेरी जान ले लूंगा.’’

पति का रूप देख कर पूनम का कलेजा कांप उठा. उसे लगा कि उस ने पति को बता कर कहीं गलती तो नहीं कर दी. विनय ने डरीसहमी पत्नी को मोबाइल देते हुए समझाया, ‘‘अब जब उस का फोन आए तो उस से बात करना. मीठीमीठी बातें कर के उस का नाम व पता हासिल कर लेना. इस के बाद मैं उस के सिर से प्यार का भूत उतार दूंगा.’’

पति की बात पर सहमति जताते हुए पूनम ने हामी भर दी.

एक दिन विनय जैसे ही घर से निकला, पूनम के मोबाइल पर उस का फोन आ गया. पूनम के हैलो कहते ही वह बोला, ‘‘पूनम, तुम मुझे भूल गई, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूला और न भूलूंगा. याद है, हम दोनों की पहली मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

पूनम अपने दिमाग पर जोर डाल कर कुछ याद करने की कोशिश करने लगी. तभी उस ने कहा, ‘‘2 साल पहले, जब मैं तुम्हारे घर फर्नीचर बनाने आया था. याद है, उस समय मैं तुम्हारे इर्दगिर्द रहा करता था. तुम्हारी खूबसूरती को निहारता रहता था. तुम इतरातीइठलाती होंठों पर मुसकान बिखेरती इधर से उधर निकल जाती थी और मैं तड़पता रह जाता था.’’

‘‘अच्छा, तब से तुम मेरे दीवाने हो. पागल, तब प्यार का इजहार क्यों नहीं किया? अच्छा, तुम्हारा नाम मुझे याद नहीं आ रहा, अपने बारे में थोड़ा बताओ न.’’ पूनम खिलखिला कर हंसी.

‘‘हाय मेरी जान, तुम हंसती हो तो मेरे दिल में घंटियां सी बज उठती हैं. सो स्वीट यू आर.’’ उधर से रोमांटिक स्वर में कहा गया, ‘‘मैं तुम्हारा दीवाना विजय यादव बोल रहा हूं.’’

विजय यादव का नाम सुनते ही पूनम चौंकी. अब उसे उस की शक्लसूरत भी याद आ गई. इस के बाद पूनम ने उसे समझाया, ‘‘देखो विजय, अब बहुत हो गया. मैं किसी की पत्नी हूं, तुम्हें ऐसे मैसेज भेजते हुए शर्म आनी चाहिए. मैं कह देती हूं कि आइंदा मुझे न फोन करना और न मैसेज करना, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

पूनम ने फोन काटा ही था कि उस का पति विनय आ गया. उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘उसी का जो फोन करता है और अश्लील मैसेज भेजता है. आज मैं ने जान लिया कि वह कौन है.’’ पूनम ने विनय को बताया, ‘‘विजय यादव जो अपने यहां फर्नीचर बनाने आया था, वही यह सब कर रहा है. वैसे मैं ने उसे ठीक से समझा दिया है, शायद अब वह ऐसी हरकत न करे.’’

विजय यादव उर्फ इंद्रबहादुर यादव के पिता रामकरन यादव रावतपुर क्षेत्र के केशवनगर में रहते थे. रामकरन फील्डगन फैक्ट्री में काम करते थे. उन के 3 बेटों में इंद्रबहादुर मंझला था. वह बजरंग दल का नेता था और प्रौपर्टी तथा फर्नीचर का व्यवसाय करता था. ब्रह्मदेव चौराहा पर उस की फर्नीचर की दुकान थी. दुकान पर करीब आधा दर्जन से ज्यादा कारीगर काम करते थे.

इंद्रबहादुर आर्थिक रूप से संपन्न होने के साथ दबंग भी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह बजरंग दल का जिला संयोजक था. उस की एक बड़ी खराब आदत थी उस का अय्याश होना. घर में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद वह इधरउधर मुंह मारता रहता था.

करीब 2 साल पहले इंद्रबहादुर इंद्रपुरी मेंविनय झा के घर फर्नीचर बनाने आया था. उस समय जब उस ने खूबसूरत पूनम को देखा तो वह उस पर मर मिटा. उस ने उसी समय उसे अपने दिल में बसा लिया. उस के बाद वह किसी न किसी बहाने उस के आगेपीछे मंडराने लगा. किसी बहाने से उस ने पूनम का फोन नंबर ले लिया. फिर वह उसे फोन करने लगा और अश्लील मैसेज भेजने लगा.

पूनम के समझाने के बाद वाकई कुछ दिनों तक इंद्रबहादुर ने उसे न तो फोन किया और न ही मैसेज भेजे. इस से पूनम को तसल्ली हुई. पर 15-20 दिनों बाद उस की यह खुशी परेशानी में बदल गई. वह फिर से उसे फोन करने लगा.

एक रोज तो विजय ने हद कर दी. उस ने फोन पर पूनम से कहा कि अब उस से रहा नहीं जाता. उस की तड़प बढ़ती जा रही है. वह उस से मिल कर अपने अरमान पूरे करना चाहता है. गुरुदेव चौराहा आ कर मिलो. उस ने यह भी कहा कि अगर वह नहीं आई तो वह खुद उस के घर आ जाएगा.

इंद्रबहादुर की धमकी से पूनम डर गई. वह नहीं चाहती थी कि वह उस के घर आए. क्योंकि वह पति व परिवार के अन्य सदस्यों की निगाहों में गिरना नहीं चाहती थी. इसलिए वह उस से मिलने गुरुदेव चौराहे पर पहुंच गई. वहां वह उस का इंतजार कर रहा था. पूनम ने उस से घरपरिवार की इज्जत की भीख मांगी, लेकिन वह नहीं पसीजा. वह एकांत में मिलने का दबाव बनाता रहा.

इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. इंद्रबहादुर जब बुलाता, पूनम डर के मारे उस से मिलने पहुंच जाती. इस मुलाकात की पति व परिवार के किसी अन्य सदस्य को भनक तक न लगती. एक दिन तो इंद्रबहादुर ने पूनम को जहरीला पदार्थ देते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, तुम इसे अपने पति को खाने की किसी चीज में मिला कर खिला देना. कांटा निकल जाने पर हम दोनों मौज से रहेंगे.’’

पूनम जहरीला पदार्थ ले कर घर आ गई. उस ने उस जहर को पति को तो नहीं दिया, लेकिन खुद उस का कुछ अंश दूध में मिला कर पी गई. जहर ने असर दिखाना शुरू किया तो वह तड़पने लगी. विनय उसे तुरंत अस्पताल ले गया, जिस से पूनम की जान बच गई. विनय ने पूनम से जहर खाने की बाबत पूछा तो उस ने सारी सच्चाई बता दी.

इस के बाद पूनम को ले कर इंद्रबहादुर और विनय में झगड़ा होने लगा. दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे. इसी झगड़े में एक दिन आमनासामना होने पर इंद्रबहादुर ने छपेड़ा पुलिया पर विनय के पैर में गोली मार दी. विनय जख्मी हो कर गिर पड़ा. उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां किसी तरह विनय की जान बच गई.

विनय ने थाना कल्याणपुर में इंद्रबहादुर के खिलाफ भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. विनय ने घटना के पीछे की असली बात को छिपा लिया. उस ने लेनदेन तथा महिला कर्मचारी को छेड़ने का मामला बताया. पुलिस ने भी अपनी विवेचना में पूनम का जिक्र नहीं किया. पुलिस ने इंद्रबहादुर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

लगभग 10 महीने तक इंद्रबहादुर जेल में रहा. इस के बाद 9 अक्तूबर, 2017 को वह कानपुर जेल से जमानत पर रिहा हुआ. जेल से बाहर आने के बाद वह फिर पूनम से मिलने की कोशिश करने लगा. लेकिन इस बार पूनम की ससुराल वाले सतर्क थे. उन्होंने पूनम का मोबाइल फोन बंद करा दिया था और घर पर कड़ी निगरानी रख रहे थे.

काफी मशक्कत के बाद भी जब वह पूनम तक नहीं पहुंच पाया, तब उस ने एक षडयंत्र रचा.

षडयंत्र के तहत उस ने एक लड़की को सेल्सगर्ल बना कर विनय के घर भेजा और उस के जरिए पूनम को अपने नाम से लिया गया सिमकार्ड और मोबाइल फोन भिजवा दिया. पूनम के पास फोन पहुंचा तो विजय एक बार फिर पूनम के संपर्क में आ गया.

अब वह दिन में कईकई बार पूनम को फोन करने लगा. दोनों के बीच घंटों बातचीत होने लगी. बातचीत में विजय पूनम से एकांत में मिलने की बात कहता था. पूनम ने उसे उस की शादीशुदा जिंदगी और परिवार की इज्जत का हवाला दिया तो वह पूनम को बरगलाने की कोशिश करने लगा.

उस ने पूनम को समझाया कि वह अपने पति विनय की कार में चरस, स्मैक और तमंचा रख दे. यह सब चीजें वह उसे मुहैया करा देगा. इस के बाद वह पुलिस को फोन कर के विनय को पकड़वा देगा. विनय के जेल जाने के बाद दोनों आराम से साथ रहेंगे.

पूनम ने इंद्रबहादुर द्वारा फोन देने तथा बातचीत करने की जानकारी पति विनय को नहीं दी थी. दरअसल पूनम डर रही थी कि पति को बताने से वह भड़क जाएगा और उस से झगड़ा करेगा. इस झगड़े और मारपीट में कहीं उस के पति की जान न चली जाए. क्योंकि इंद्रबहादुर गोली मार कर विनय को पहले भी ट्रेलर दिखा चुका है.

इधर पति का साथ छोड़ने और अवैध संबंध बनाने की बात जब पूनम ने नहीं मानी तो इंद्रबहादुर ने एक और षडयंत्र रचा. उस ने पूनम को बदनाम करने के लिए रिचा झा और राधे झा नाम की फरजी आईडी से फेसबुक एकाउंट बना लिया. इस के बाद इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव ने पूनम के साथ अपनी अश्लील फोटो फेसबुक पर अपलोड कर इस की जानकारी उस के पति विनय, परिवार के अन्य लोगों तथा रिश्तेदारों को दे दी, ताकि वह बदनाम हो जाए.

विनय झा ने जब पूनम के साथ इंद्रबहादुर की अश्लील फोटो फेसबुक पर देखी तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पूनम से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी सच्चाई विनय को बता दी.

सच्चाई जानने के बाद विनय ने इस गंभीर समस्या पर अपने बड़े भाई विनोद झा और भतीजे सत्यम उर्फ विक्की से बात की. विनोद व सत्यम भी फेसबुक पर पूनम अश्लील फोटो देख चुके थे. वे दोनों भी इस समस्या का निदान चाहते थे.

गहन मंथन के बाद पूनम, विनय, विनोद तथा सत्यम उर्फ विक्की ने इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव की हत्या की योजना बनाई. हत्या की योजना में विनय ने अपने मामा के साले के लड़के अनुपम को भी शामिल कर लिया.

अनुपम गाजियाबाद का रहने वाला था. उस का आपराधिक रिकौर्ड था. वह पूर्वांचल के एक बड़े माफिया के संपर्क में भी रहा था. इस के बाद अनुपम ने पूनम, विनय, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की के साथ विजय की हत्या की अंतिम रूपरेखा तैयार की और हत्या के लिए एक चापड़ खरीद कर रख लिया. इस के बाद अनुपम वापस गाजियाबाद चला गया.

24 सितंबर, 2017 को अनुपम अपने एक अन्य साथी के साथ कानपुर आया और विनय झा के घर पर रुका. उस ने इंद्रबहादुर की हत्या के संबंध में एक बार फिर पूनम, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की से विचारविमर्श किया. इस के बाद वह उन के साथ वह जगह देखने गया, जहां इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव को षडयंत्र के तहत बुलाना था.

शाम पौने 6 बजे पूनम झा ने योजना के तहत इंद्रबहादुर को फोन किया. उस ने उसी मोबाइल से बात की, जो उस ने पूनम को भिजवाया था.

फोन पर पूनम ने उस से कहा कि वह पति विनय को फंसा कर जेल भिजवा कर उस के साथ रहने को तैयार है, लेकिन इस से पहले वह उस की सारी योजना समझना चाहती है, इसलिए वह उस से मिलने अरमापुर थाने के पीछे मजार के पास आ जाए. चरस, स्मैक व असलहा भी साथ ले आए, ताकि मौका देख कर वह उस सामान को पति की गाड़ी में रख सके.

पूनम की बातों में फंस कर इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव अपनी बोलेरो गाड़ी से अरमापुर थाने के पीछे पहुंच गया. यह सुनसान इलाका है. वहां पूनम व उस का पति तथा अन्य साथी पहले से मौजूद थे.

इंद्रबहादुर पूनम से बात करने लगा. उसी समय अनुपम ने रेंच से विजय के सिर पर पीछे से वार कर दिया. विजय लड़खड़ा कर जमीन पर गिरा तो पूनम के पति विनय झा, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा अनुपम ने उसे दबोच लिया.

उसी समय पूनम विजय की छाती पर सवार हो गई और बोली, ‘‘कमीने, तूने मेरी और मेरे परिवार की इज्जत नीलाम कर बदनाम किया है. आज तुझे तेरे पापों की सजा दे कर रहूंगी.’’ कहते हुए पूनम ने चापड़ से विजय की गरदन पर वार कर दिया.

गरदन पर गहरा घाव बना और खून बहने लगा. इस के बाद विनय ने चापड़ से कई वार किए. इस के बाद वे सब उसे मरा समझ कर वहां से भाग निकले. चापड़ उन्होंने पास की झाड़ी में छिपा दिया.

इंद्रबहादुर गंभीर घायलावस्था में पड़ा कराह रहा था. कुछ समय बाद उधर से एक राहगीर निकला तो इंद्रबहादुर ने आवाज दे कर उसे रोक लिया. उस ने राहगीर को अपने बड़े भाई वीरबहादुर यादव का नंबर दे कर कहा कि वह फोन कर के उसे उस के घायल होने की सूचना दे दे. उस राहगीर ने वीरबहादुर को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही वीरबहादुर अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया. गंभीर रूप से घायल इंद्रबहादुर ने अपने बड़े भाई को बता दिया कि उस की यह हालत पूनम झा, उस के पति विनोद, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा रिश्तेदार अनुपम व उस के साथी ने की है. यह बता कर विजय बेहोश हो गया. वीरबहादुर ने भाई विजय यादव के बयान की मोबाइल पर वीडियो बना ली थी.

वीरबहादुर अपने घायल भाई इंद्रबहादुर को साथियों के साथ हैलट अस्पताल ले गया. पर उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए उसे वहां से रीजेंसी अस्पताल भेज दिया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बजरंग दल के नेता इंद्रबहादुर की हत्या की खबर फैली तो हड़कंप मच गया.

उस के सैकड़ों समर्थक अस्पताल पहुंच गए. एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को खबर लगी तो वह भी रीजेंसी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने मृतक के परिजनों व समर्थकों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.

मीणा ने अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाएं तथा रिपोर्ट दर्ज कर अभियुक्तों के खिलाफ सख्त काररवाई करें. मीणा ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया और पोस्टमार्टम हाउस व अस्पताल के बाहर भारी पुलिस फोर्स भी तैनात कर दिया.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा का आदेश पाते ही अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता ने मृतक विजय यादव के भाई वीरबहादुर यादव से घटना के संबंध में बात की. उस ने भाई के मरने से पहले रिकौर्ड किया वीडियो उन्हें सौंप दिया.

वीरबहादुर की तहरीर पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत पूनम झा, उस के पति विनय, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की, रिश्तेदार अनुपम तथा उस के साथी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

चूंकि हत्या का यह मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी ने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता, क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर मनोज मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी विनोद मिश्रा, सर्विलांस सेल प्रभारी देवी सिंह, कांस्टेबल चंदन कुमार गौड़, देवेंद्र कुमार, भूपेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, ललित, राहुल कुमार तथा महिला कांस्टेबल पूजा को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर 25 नवंबर की दोपहर पूनम झा, उस के पति विनय झा, जेठ विनोद झा तथा भतीजे सत्यम उर्फ विक्की को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई.

प्रारंभिक पूछताछ में आरोपी खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने पूनम झा के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में इंद्रबहादुर से घंटों बातचीत होने और घटना से पहले भी इंद्रबहादुर से बातचीत होने का रिकौर्ड सामने आ गया.

इस के बाद सख्ती करने पर सभी आरोपी टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर झाडि़यों में छिपाया गया चापड़ तथा पूनम ने अपनी साड़ी बरामद करा दी, जो उस ने हत्या के समय पहनी थी.

पुलिस टीम ने सभी आरोपियों को एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा के सामने पेश किया. मीणा ने आननफानन प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर पत्रकारों के समक्ष घटना का खुलासा कर दिया. आरोपी विनय ने पत्रकारों को बताया कि इंद्रबहादुर जबरन उस की पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहता था.

इस के लिए वह पूनम पर दबाव बना रहा था. वह पूनम की मार्फत उसे तथा उस के परिवार को गलत धंधे में भी फंसाना चाहता था.

पूनम जब तैयार नहीं हुई तो उस ने फरजी फेसबुक आईडी बना कर पूनम को बदनाम किया. इसी के बाद उस ने विजय की हत्या की योजना बनाई और उसे मौत की नींद सुला दिया.

पुलिस ने 26 नवंबर, 2017 को सभी अभियुक्तों को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अभियुक्त अनुपम व उस का साथी फरार था. पुलिस उन की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी.

 -कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाप बेटे की एक बीवी

उस दिन, 2018 की 18 तारीख थी. थानाप्रभारी सीआई पुष्पेंद्र सिंह अपने औफिस में बैठे थे. उन्होंने महिला कांस्टेबल सावित्री को बुला कर हवालात में बंद हत्यारोपी पूजा को लाने को कहा.

23-24 वर्षीय सांवले रंग की पूजा छरहरे बदन और आकर्षक नैननक्श की महिला थी. एक दिन पहले ही 2 पुरुषों के साथ पूजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302 (हत्या) 201 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था.

थानाप्रभारी पुष्पेंद्र खुद इस केस की जांच कर रहे थे. पूजा आ गई तो उन्होंने उस से पूछताछ शुरू करते हुए पूछा, ‘‘पूजा, तू ने अपने पति कालूराम को क्यों मारा?’’

‘‘हां, यह सच है कि मैं ने अपने पति को मारा है.’’ संक्षिप्त सा उत्तर दिया पूजा ने.

‘‘हत्या के इस मामले में तेरे साथ और कौनकौन थे?’’ सीआई ने अगला सवाल किया.

‘‘साहब, इस काम में कौर सिंह और उस के बेटे संदीप कुमार ने मेरा साथ दिया था.’’

‘‘पूजा, ये बापबेटे न तो तेरी जाति के हैं न रिश्तेदार, फिर भी इन लोगों ने इस जघन्य अपराध में तेरा साथ दिया. आखिर क्यों?’’ इस पर पूजा चुप्पी साध गई.

‘‘साहब, ये दोनों बापबेटे मुझे चाहते हैं. पिछले कुछ दिनों से मैं बापबेटे की पत्नी बन कर रह रही थी. मेरा पति कालूराम हमारी राह का कांटा बन रहा था. इसलिए हम तीनों ने मिल कर उस की हस्ती ही मिटा दी.’’ पूजा के मुंह से यह सुन कर पुष्पेंद्र सिंह हतप्रभ रह गए. क्योंकि भाईभाई की एक पत्नी तो संभव है, पर बापबेटे की नहीं.

 

अपनी सालों की सर्विस में पुष्पेंद्र सिंह सैकड़ों आपराधिक मामलों से रूबरू हुए थे. पर इस मामले ने जैसे उन के अंतरमन को झकझोर दिया था. भोलीभाली सूरत वाली अनपढ़ पूजा ग्रामीण युवती थी. लेकिन उस के भोले चेहरे के पीछे का डरावना सच यह था कि उस ने अपने शारीरिक सुख की चाह में न केवल अपने भोलेभाले पति का कत्ल किया, बल्कि अपने भविष्य को भी अंधकारमय बना लिया था.

पूछताछ के बाद सीआई पुष्पेंद्र सिंह ने पूजा, कौर सिंह और उस के बेटे संदीप को नौहर के एसीजेएम की अदालत में पेश कर के उन का रिमांड मांगा. अदालत ने तीनों हत्यारोपियों का 3 दिन का पुलिस रिमांड दे दिया. रिमांड अवधि में पूछताछ के बाद जो कहानी निकल कर सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

राजस्थानके जिला हनुमानगढ़ की एक तहसील है टिब्बी. इसी तहसील के गांव कमरानी में रहता था हंसराज. सन 2012 में उस की 2 बेटियों पूजा व मंजू की शादी सीमावर्ती जिला चुरू के गांव बांय निवासी धन्नाराम के 2 बेटों कालूराम व दीपक के साथ हुई थी.

दोनों भाई अपनी पत्नियों के साथ मेहनतमजदूरी कर के अमनचैन से जिंदगी गुजार रहे थे. शुरू में सब ठीक था, लेकिन बाद में पूजा को ससुराल की बंदिशें और सास की रोकटोक अखरने लगी.

वह चाहती थी कि पति के साथ कहीं अलग रहे. उस की यह जिद बढ़ने लगी तो घर में झगड़ा होने लगा. पूजा की वृद्ध सास ने समझदारी दिखाते हुए कालूराम को कहीं दूसरी जगह रहने को कह दिया. तब तक पूजा एक बेटी की मां बन चुकी थी. पूजा की चाहत पर सन 2014 में कालूराम पत्नी व बेटी को ले कर अपनी ससुराल कमरानी में रहने लगा.

कमरानी में कालूराम मेहनतमजदूरी कर के अपने छोटे से परिवार का पेट पालने लगा. हाड़तोड़ मेहनत की वजह से कालू का शरीर कमजोर होने लगा था. शारीरिक क्षमता बनाए रखने की लालसा में उस ने अपने साथियों की सलाह पर नशा करना शुरू कर दिया. कोई अन्य पदार्थ नहीं मिलता तो वह मैडिकल स्टोर पर मिलने वाली गोलियां खा कर काम चला लेता था. वैसे भी अफीमपोस्त की बनिस्बत ऐसी गोलियां आसानी से मिल जाती हैं.

पूजा के घर के पास ही मजहबी सिख काका सिंह का मकान था. काका सिंह ने हनुमानगढ़ निवासी कौर सिंह की बेटी से प्रेमविवाह किया था. कौर सिंह का बेटा संदीप 15-20 दिन में अपनी बहन से मिलने कमरानी आता रहता था. संदीप जब भी अपनी बहन से मिलने आता तो 2-3 दिन रुक कर जाता था.

उस दिन संदीप कमरानी पहुंचा तो उस की बहन की पड़ोसन पूजा भी वहीं बैठी थी. संदीप की बहन ने अपने भाई संदीप से पूजा का परिचय करवा दिया. संयोग से पूजा ने कुछ देर पहले ही स्नान किया था. भीगे बालों से उस का भीगा वक्षस्थल व मादक यौवन युवा संदीप को इतना भाया कि वह उस का दीवाना बन गया. एकांत पा कर उस ने पूजा के सौंदर्य की तारीफ भी कर डाली. साथ ही कहा भी, ‘‘भाभी, आप से तो जानपहचान हो ही गई, अब भैया से भी मिलवा दो.’’

संदीप के मुसकान भरे आग्रह ने पूजा के अंतरमन में हिलोरे पैदा कर दी थीं. संदीप भी पूजा को भा गया था. उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, कल आप के भैया काम पर नहीं जाएंगे, वह पूरा दिन घर में ही रहेंगे. जब मन करे आ जाना.’’

अगले दिन दोपहर बाद संदीप अपनी बहन को बाजार जाने का कह कर पूजा के घर जा पहुंचा. पूजा आंगन में खड़ी थी. वह उसे देखते ही बोला, ‘‘लो भाभी, हम आ गए हैं.’’

जवाब में पूजा ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘आओ देवर जी, आप का स्वागत है.’’

अपनी बात कह कर पूजा कमरे में चली गई. संदीप भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

उस दिन पूजा और संदीप में काफी देर बातें हुईं. इन बातों से संदीप समझ गया कि पूजा अपने पति से संतुष्ट नहीं है. इस के पीछे एक वजह यह भी रही कि बीते दिन पूजा ने उस से कहा था कि उस का पति दिन भर घर पर रहेगा, जबकि वह घर पर नहीं था. इस से संदीप उस की मंशा को भांप गया. इसलिए उस ने पूजा से उसी तरह की बातें कीं. पूजा उस की बातों का रस लेती रही. नतीजा यह निकला कि 2 दिन में ही पूजा और संदीप के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

उस दिन सांझ ढले कालूराम काम से लौटा. घर आते ही उस ने अपनी नशे की खुराक ली और खाना खा कर बिस्तर पर पसर गया. कुछ ही देर में उसे नींद आ गई. हालांकि पूजा व उस की मां ने कालूराम को नशाखोरी के बावत समझाया था, पर उस पर कोई असर नहीं हुआ था.

रात घिर आई थी. पूजा व काका सिंह के परिवार के लोग खर्राटें भर रहे थे. पर पूजा व संदीप की आंखों से नींद कोसों दूर थी. लगभग 11 बजे संदीप दबे पांव आ कर पूजा के बाहर वाले कोठे में छुप गया था. संदीप को आया देख पूजा भी कोठे में आ गई. दिन की तरह एक बार फिर दोनों ने शारीरिक खेल खेला. घंटा भर बाद संदीप बहन के घर चला गया.

अगली सुबह संदीप अपने गांव हनुमानगढ़ लौट गया. संदीप के दिलोदिमाग में पूजा बस चुकी थी. हफ्ते 10 दिन बाद कमरानी आने वाला संदीप इस बार तीसरे दिन ही बहन के घर आ गया. वह सीधा पूजा के घर में चला गया. घर पर पूजा की मां व कालूराम मौजूद थे. पूजा ने दोनों को संदीप का परिचय दिया.

कालूराम के कहने पर पूजा ने संदीप के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम किया. कालू व पूजा ने संदीप से खाना खा कर जाने को कहा. इस पर वह बोला, ‘‘दोपहर का खाना दीदी के यहां है और रात का आप के यहां.’’ कहते हुए संदीप ने कालू के साथ दोस्ती बढ़ाने का रास्ता बनाना शुरू कर दिया.

सांझ ढलते ही संदीप शराब की बोतल ले कर पूजा के घर आ गया. पूजा भी अपने आशिक की आवभगत में जुट गई. आंगन में कालू व संदीप की महफिल सजी. पूजा ने सलाद बना कर दी. कालू को जैसे लंबे अंतराल के बाद शराब मयस्सर हुई थी. वह पैग पर पैग गटकने लगा. संदीप की भी यही चाहत थी कि कालू नशे में टल्ली हो जाए.

कालू आधी से ज्यादा बोतल पी कर मदहोशी की हालत में पहुंच गया. पूजा ने दोनों के लिए चारपाई पर खाना लगा दिया. पूजा की मां विद्या सो चुकी थी. संदीप की चाहत पर पूजा भी अपने लिए खाने की थाली ले आई. कालू बिना भोजन किए ही चारपाई पर लुढ़क गया. पूजा और संदीप के लिए मनचाहा माहौल बन चुका था.

दोनों आंगन में बने दूसरे कमरे में चले गए. एकांत में दोनों ने जीभर के मौजमस्ती की. अगले दिन भी यही क्रम दोहराया गया. अगली सुबह पूजा काका सिंह के घर गई. एकांत पा कर पूजा ने संदीप से कहा, ‘‘तुम्हारा सरेआम मेरे घर आना मां को अखर रहा है, कुछ पड़ोसी भी अंगुली उठाने लगे हैं.’’

‘‘ऐसीतैसी लोगों की, मैं किसी से भी नहीं डरता. अब मैं तेरे बिना जिंदा नहीं रह सकता. तू चाहे तो मुझ से ब्याह रचा कर मुझे अपना बना ले.’’ संदीप बोला.

‘‘संदीप, ब्याह कर नहीं तू मुझे भगा ले जा और अपनी बना ले. फिर हम दोनों अपनी मर्जी से जिंदगी जी सकेंगे. सच्चाई यह है कि मैं भी तेरे बिना नहीं जी सकती.’’ पूजा ने उदासी भरे लहजे में कहा. उसी वक्त दोनों ने रात को भूसे वाले कोठे में मिलने की योजना भी बना ली.

नियत समय पर दोनों कोठे में पहुंच गए. मिलन के बाद संदीप ने पूजा के बालों में अंगुलियां फिराते हुए कहा, ‘‘देखो पूजा, भागनेभगाने के चक्कर में मुकदमेबाजी या छिपनेछिपाने का भय बना रहेगा. मैं ने एक ऐसी योजना बनाई है, जिस में सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. बस योजना में तेरा साथ चाहिए.’’ संदीप ने कहा.

पूजा के पूछने पर संदीप ने पूरी योजना उसे समझा दी. योजना सुन कर पूजा खुशी से उछल पड़ी.

अगले दिन से पूजा ने योजना पर अमल करना शुरू कर दिया. शाम के समय कालू मजदूरी से लौट आया. मां रोटियां सेंक रही थीं. कालू आंगन में खाना खाने बैठ गया. उसी वक्त पूजा ने मां से कहा, ‘‘मां, तू इन्हें समझा कि यह काम छोड़ कर किसी जमींदार से 2-4 बीघा जमीन बंटाई पर ले लें. मिलजुल कर खेती कर लेंगे. कम से कम मेहनतमजदूरी तो नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘यह सब इतना आसान है क्या?’’ कालू ने कहा तो पूजा बोली, ‘‘संदीप की कई बडे़ जमींदारों से जानपहचान है. वह हमें बंटाई पर जमीन दिला देगा. इस बार संदीप आए तो बात कर लेना.’’

पूजा का यह सुझाव कालू और मां को पसंद आ गया. 2 दिन बाद ही संदीप कमरानी आ गया. पूजा उसे अपने घर ले आई. संयोग से उस वक्त कालू व विद्या घर पर ही थे.

‘‘संदीप भाई, सुना है तुम्हारी कई जमींदारों से जानपहचान है. हमें भी थोड़ी सी जमीन बंटाई पर दिलवा दो. संभव है, हमारे भी दिन फिर जाएं.’’ कालू राम ने कहा.

‘‘भैया मेरे पिताजी रावतसर क्षेत्र के चक 2 के एम के बड़े दयालु स्वभाव के किसान सुखदेव सिंह कांबोज के यहां कई वर्षों से बंटाई पर खेती कर रहे हैं. मैं आज ही उन के पास जा रहा हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि वहां आप का काम बन जाएगा.’’ संदीप ने जवाब दिया.

मजहबी सिख कौर सिंह हनुमानगढ़ टाउन में रहता था. उस के 2 ही बच्चे थे, संदीप और एक बेटी जिस ने कमरानी निवासी काका सिंह के साथ प्रेम विवाह कर लिया था. करीब 5 वर्ष पूर्व कौर सिंह की पत्नी की संदिग्ध हालत में मौत हो गई थी. उस के मायके वालों ने कौर सिंह के खिलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज करवा दिया था.

पुलिस ने इस केस में कौर सिंह को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. कालांतर में दोनों पक्षों में राजीनामा हो गया. फलस्वरूप कौर सिंह 12 महीनों बाद जेल से बाहर आ गया. हनुमानगढ़ में अपनी जायदाद बेच कर कौर सिंह रावतसर क्षेत्र में चक 2 केएम के किसान सुखदेव सिंह के यहां ढाणी में रह कर बंटाई पर खेती करने लग गया. जबकि संदीप आवारागर्दी करने के अलावा कोई काम नहीं करता था.

2 दिन बाद संदीप फिर कमरानी लौटा. उस ने पूजा व कालूराम को खुशखबरी दी कि पिताजी के यहां उन दोनों को काम मिल जाएगा. सितंबर 2017 में संदीप, कालूराम व पूजा को ले कर चक 2 केएम कौर सिंह के पास पहुंच गया. इस दौरान संदीप भी नशेड़ीबन गया था.

‘‘पापा ये लोग दीदी के पड़ोसी हैं. कालूराम खेतीबाड़ी के सारे काम जानता है. इन्हें बंटाई पर जमीन दिलवा दो ताकि इन की गुजरबसर हो सके.’’ संदीप ने कहा.

‘‘हां हां क्यों नहीं, वह साइड वाली ढाणी खाली पड़ी है. दोनों उस में डेरा जमा लें. अभी तो सारी जोत बंटाई पर उठा दी गई है. फिर भी मैं कोई न कोई रास्ता निकाल दूंगा. यहां काम की कोई कमी नहीं है. दोनों मियांबीवी 7 सौ रुपए रोजाना आराम से कमा लेंगे.’’ कौर सिंह ने कहा.

अगले दिन से कालू व पूजा ने दिहाड़ी मजदूरी का काम शुरू कर दिया. दोनों ने खाली पड़ी ढाणी में अपना बोरियाबिस्तर जमा लिया था. संदीप पूजा का सान्निध्य पाने की गरज से उन के साथ दिहाड़ी पर काम करने लगा. हाड़तोड़ मेहनत करने से संदीप भी कालू की तरह रोजाना नशे की खुराक लेने लग गया था. खाना खाते ही कालू व संदीप नींद के आगोश में चले जाते थे.

पिछले कुछ दिनों से पूजा पुरुष सुख से वंचित थी. ऐसे में उस की नजर नारी सुख से वंचित कौर सिंह पर पड़ी तो वह उस की ओर आकर्षित होने लगी. उस ने कौर सिंह की अधेड़ उम्र को भी नहीं देखा. कौर सिंह ने पूजा की नजरों को पहचान लिया और वह भी इशारोंइशारों में उस से मन की बात कहने लगा.

आखिर एक रात जब कालू और संदीप सो रहे थे तो पूजा कौर सिंह की ढाणी में पहुंच गई. उसी दिन से दोनों के बीच संबंध बन गए. एक सप्ताह तक कौर सिंह और पूजा का अनैतिक खेल बेरोकटोक जारी रहा. पर एक रात कालू ने पूजा को कौर सिंह के साथ आपत्तिजनक हालत में रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन कालू ने गुस्से से पूजा की पिटाई कर डाली. साथ ही कौर सिंह को भलाबुरा भी कहा. कभी संदीप की दीवानी पूजा अब कौर सिंह पर फिदा हो गई थी. पूजा ने संदीप से रिश्ता होने की बात भी कौर सिंह को बता दी थी.

कालू को शक हुआ तो उस ने पूजा की निगरानी शुरू कर दी. अब पूजा कौर सिंह या संदीप से एकांत में नहीं मिल पा रही थी. वह मौका तलाश कर कौर सिंह से मिली और उस के सीने पर सिर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तेरे बिनारह नहीं सकती.’’ कहने के साथ ही पूजा सिसकने लगी.

‘‘पूजा, तू घबरा मत, मैं कल ही इस काम का तोड़ निकाल लूंगा.’’ कौर सिंह ने उसे सांत्वना दी. तब तक उन तीनों को वहां आए केवल 20 दिन ही हुए थे.

अगली रात योजना के अनुरूप पूजा ने कालू के खाने में नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. रात 11 बजे के करीब कौर सिंह कालू की ढाणी में आया. उस ने गहरी नींद में सोए अपने बेटे संदीप को उठाया. पूजा पहले से जाग रही थी. कौर सिंह ने पूजा व संदीप को बेसुध पड़े कालू के हाथपांव पकड़ने को कहा. दोनों ने वैसा ही किया.

कौर सिंह ने पूजा का दुपट्टा ले कर कालू के गले में डाला और जोर से खींच दिया. नशे में ही कालू ने दम तोड़ दिया. तीनों ने ठाणी के पीछे पहले से बनाए गड्ढे में कालू के शव को डाल कर दफना दिया. उस रात पूजा ने बापबेटे दोनों के साथ बीच सैक्स का आनंद उठाया.

कौर सिंह भी पूजा का दीवाना हो चुका था. 5 रोज बाद उस ने संदीप को भी डराधमका कर भगा दिया. अब पूजा पर उस का एकाधिकार हो गया था. दोनों ने 10 रोज मजे से गुजार दिए.

एक दिन पूजा के पास उस की मां विद्या का फोन आया. उस ने मां को बताया कि वह मजे में है. विद्या ने कालू से बात करवाने को कहा तो पूजा ने कहा कि वह काम पर गए हैं. विद्या ने रात को फिर फोन किया तो पूजा ने कहा कि वह एक जरूरी काम से गांव चले गए हैं. कल बात करवा दूंगी.

लेकिन कई दिन तक विद्या की कालू राम से बात नहीं हो सकी. अनहोनी की आशंका के चलते विद्या ने कालू के छोटे भाई दीपक को बुलाया. दीपक कमरानी आ गया. दीपक को बताया गया कि 4 दिन से पूजा का फोन बंद है और कई दिनों से कालू का भी कोई अतापता नहीं है.

सलाह मशविरा कर के दोनों परिवारों ने 12 फरवरी, 2018 को टिब्बी पुलिस थाने में दीपक की ओर से कालू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. इस मामले की जांच सहायक उप निरीक्षक लेखराम को सौंप दी गई.

शुरुआती जांच पड़ताल में लेखराम को पूजा के अनैतिक संबंधों की जानकारी मिली तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया. तब तक कौर सिंह को पुलिस की भागदौड़े का पताचल चुका था. वह पूजा को ले कर फरार हो गया था.

कई दिनों तक पुलिस और संदिग्धों के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा. एक दिन विद्यावती के पास पूजा का फोन आया और उस ने अपनी कुशलक्षेम बताते हुए मायके के हालात के बारे में पूछा. फोन आने की सूचना लेखराम तक पहुंचा दी गई. उस अनजान नंबर को ट्रेस किया गया तो वह नंबर पंजाब के गांव वरियामखेड़े के एक किसान का पाया गया.

पुलिस ने दबिश दी तो पूजा और गौर सिंह वहां से भी भाग निकले. अगले दिन कौर सिंह का बेटा संदीप पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने प्रारंभिक पूछताछ में यह राज उगल दिया कि तीनों ने मिल कर कालू की हत्या कर के उस की लाश ठाणी के पिछवाड़े दबा दी है.

गुमशुदगी का मामला हत्या में तब्दील हो चुका था. वारदात रावतसर क्षेत्र में हुई थी. एएसआई लेखराम की रिपोर्ट पर 17 फरवरी को रावतसर में तीनों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत अभियोग दर्ज कर लिया गया.

थानाप्रभारी पुष्पेंद्र सिंह ने शेष हत्यारोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी हेतु अमर सिंह प्रहलाद, अविनाश व महिला कांस्टेबल सावित्री की एक टीम गठित की और अपराधियों को ढूंढने लगे. अपराधबोध से ग्रस्त व भागदौड़ से थके कौर सिंह व पूजा लुकछिप कर विद्या के पास पहुंच गए. पुलिस को सूचना मिली तो दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अगले दिन तीनों को नोहर की अदालत में पेश कर के 3 दिन का पुलिस रिमांड ले लिया. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने कालू का शव, जो हड्डियों में तब्दील हो चुका था, बरामद कर लिया. हत्या में इस्तेमाल किया गया पूजा का दुपट्टा भी जब्तहो गया. व्यापक पूछताछ के बाद पुलिस ने अदालत के आदेश पर पूजा व उस के दोनों आशिक बापबेटे कौर सिंह और संदीप को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

सैक्स की आंच में अंधी हो कर एक वर्षीय अपनी बच्ची के भविष्य को अंधियारे में धकेलने वाली पूजा ने न केवल अपने पति को परलोक पहुंचाया बल्कि स्वयं के साथसाथ बापबेटे को भी काल कोठरी में पहुंचा दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

एक ऐसी भी औरत

बीना कानपुर शहर के मोहल्ला दीनदयालपुरम की केडीए कालोनी निवासी मेवालाल की बड़ी बेटी थी. बीना के अलावा उस की 2 और बेटियां थीं. बेटियों से छोटा एक बेटा था करन. मेवालाल की पत्नी कुसुम घरेलू महिला थी जबकि वह फेरी लगा कर कपड़े बेचा करता था.

बीना जवान हो चुकी थी. मेवालाल चाहता था कि कोई सही लड़का मिल जाए तो वह उस के हाथ पीले कर दे. थोड़ी खोजबीन के बाद उसे कानपुर देहात के कस्बा मूसानगर निवासी भीखाराम का बड़ा बेटा रामबाबू पसंद आ गया. भीखाराम के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी और कस्बे के मुर्तजा नगर में अपना मकान भी था.

रामबाबू व उस के घर वालों ने जब खूबसूरत बीना को देखा तो वह उन्हें पसंद आ गई. बीना को देख कर भीखाराम बिना किसी दहेज के बेटे की शादी करने के लिए तैयार हो गया. अंतत: सामाजिक रीतिरिवाज से 10 जून, 2008 को बीना और रामबाबू का विवाह हो गया. इस शादी से रामबाबू भले ही खुश था लेकिन बीना खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि बीना ने जिस तरह पढ़ेलिखे और स्मार्ट पति के सपने संजोए थे, रामबाबू वैसा नहीं था.

बीना ससुराल में हफ्ते भर रही, पर वह पति के साथ भावनात्मक रूप से नहीं बंध सकी. हफ्ते बाद वह मायके आई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. कुसुम ने कारण पूछा तो वह रोआंसी हो कर बोली, ‘‘मां, तुम लोगों ने सिर्फ ये देखा कि वे दहेज नहीं मांग रहे, पर यह नहीं देखा कि लड़का कैसा है.’’

‘‘सब कुछ तो है उन के पास, तुझे किस चीज की कमी है. तुझे तो पता है कि अभी तेरी 2 बहनें और हैं. हमें उन्हें भी ब्याहना है.’’ कुसुम ने अपनी मजबूरी जाहिर की तो बीना चुप हो गई.

मां के इस जवाब के बाद बीना ने हालात से समझौता कर लिया. वह ससुराल में पति के साथ रहने लगी. ससुराल का वातावरण दकियानूसी था. बातबात पर रोकटोक होती थी. पति की कमाई भी सीमित थी, जिस के कारण बीना को अपनी इच्छाएं सीने में ही दफन करनी पड़ती थीं.

वक्त के साथ बीना 2 बच्चों शिवम और शिवानी की मां बन गई. परिवार बढ़ा तो खर्चे भी बढ़ गए. जब बीना को लगा कि रामबाबू की कमाई से घर का खर्च नहीं चल पाएगा तो उस ने पति को कानपुर शहर जा कर नौकरी या कोई काम करने की सलाह दी. पत्नी की यह बात रामबाबू को भी ठीक लगी.

रामबाबू का एक दोस्त था सजीवन, जो कानपुर शहर की योगेंद्र विहार कालोनी में रहता था. वह किसी फैक्ट्री में काम करता था. कहीं काम दिलाने के संबंध में उस ने सजीवन से बात की. सजीवन ने उसे सुझाव दिया कि वह साइकिल मरम्मत का काम शुरू करे. पंक्चर लगाने आदि से उसे अच्छी कमाई होने लगेगी.

रामबाबू को दोस्त की सलाह पसंद आ गई, उस ने खाडे़पुर कालोनी मोड़ पर साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली और योगेंद्र विहार कालोनी में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.

रामबाबू का साइकिल रिपेयरिंग का काम अच्छा चलने लगा. पैसा आने लगा तो रामबाबू पत्नी और बच्चों को भी शहर ले आया. शहर आ कर बीना खुश थी. शहर आने के बाद वह बनसंवर कर रहने लगी. बीना ने घर के पास ही स्थित शिशु मंदिर में बच्चों का दाखिला करा दिया. बच्चों को स्कूल भेजने व लाने का काम वह खुद करती थी.

पिंटू नाम का एक युवक रामबाबू की दुकान पर अपनी साइकिल रिपेयर कराने आता था. पिंटू बर्रा 8 में रहता था और नौबस्ता स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करता था. पिंटू की रामबाबू से दोस्ती हो गई. जरूरत पड़ने पर रामबाबू पिंटू से पैसे भी उधार ले लेता था. कभीकभी दोनों साथ बैठ कर शराब भी पी लेते थे. पीनेपिलाने का खर्च पिंटू ही उठता था.

एक दिन पिंटू दुकान पर आया तो रामबाबू बोला, ‘‘पिंटू, आज मेरे बेटे शिवम का जन्मदिन है. मेरी तरफ से आज तुम्हारी दावत है. शाम को फैक्ट्री से सीधे घर आ जाना, भूलना मत.’’

‘‘ठीक है, मैं जरूर आऊंगा.’’ कहते हुए पिंटू फैक्ट्री चला गया. शाम को पिंटू गिफ्ट ले कर रामबाबू के घर पहुंच गया. रामबाबू उस का ही इंतजार कर रहा था. उस ने पिंटू को गले लगाया फिर पत्नी को आवाज दी, ‘‘बीना, देखो तो कौन आया है.’’

बेटे का जन्मदिन होने की वजह से बीना पहले से ही सजीधजी थी. पति की आवाज सुन कर वह आ गई. वह पिंटू की ओर देख कर बोली, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘भाभीजी, जब मैं आप के घर कभी आया ही नहीं तो पहचानेंगी कैसे? मैं रामबाबू भैया का दोस्त हूं, नाम है पिंटू.’’ वह बोला.

पिंटू की बीना से यह पहली मुलाकात थी. पहली ही मुलाकात में बीना पिंटू के दिलोदिमाग पर छा गई. रामबाबू ने पिंटू की खूब खातिरदारी की. उस समय बीना भी मौजूद रही. इस के बाद पिंटू ने ठान लिया कि वह किसी भी तरह बीना को हासिल कर के रहेगा.

वह उसे हासिल करने का प्रयास करने लगा. पिंटू जानता था कि बीना तक पहुंचने का रास्ता रामबाबू ही है. अत: उस ने रामबाबू को शराब का आदी बनाने की सोची. इसी के चलते वह शराब की बोतल ले कर रामबाबू के घर जाने लगा. घर में दोनों बैठ कर शराब पीते फिर खाना खाते. इस बीच पिंटू की निगाहें बीना के जिस्म पर ही गड़ी रहती थीं. शराब के नशे में पिंटू कभीकभी बीना से मजाक व छेड़खानी भी कर लेता था.

बीना जल्द ही पिंटू के आने का मकसद समझ गई थी. वह बीना की आर्थिक मदद भी करने लगा. बच्चों की जरूरत का सामान और खानेपीने की चीजें भी लाने लगा. धीरेधीरे पिंटू ने अपने अहसानों व लच्छेदार बातों से बीना के दिल में जगह बना ली. अब बीना भी पिंटू से खुल कर हंसनेबोलने लगी थी.

एक दिन बीना सजधज कर बाजार के लिए घर से निकलने वाली थी, तभी पिंटू आ गया. वह बीना को एकटक देखता रहा, फिर बोला, ‘‘भाभी बनठन कर किस पर बिजली गिराने जा रही हो?’’

‘‘मक्खनबाजी बंद करो, अभी मुझे कहीं जाना है. बाद में बात करेंगे. ओके…’’ कहते हुए बीना बाजार के लिए चल दी. पिंटू भी वहां से चला गया.

एक दिन बीना का पति रामबाबू मूसानगर गया हुआ था और बच्चे स्कूल. बीना घर के काम निपटाने के बाद बच्चों को स्कूल से लाने की तैयारी कर रही थी, तभी पिंटू आ गया. इस अकेलेपन में पिंटू खुद को रोक नहीं सका और उस ने बीना को अपनी बांहों में भर लिया. बीना ने कसमसा कर हलका प्रतिरोध किया, लेकिन पिंटू की पकड़ मजबूत थी सो वह छूट नहीं सकी.

हकीकत में बीना पिंटू की बांहों में एक अकल्पनीय सुख महसूस कर रही थी. यही वजह थी कि उस के सोए हुए अरमान जाग उठे. वह भी पिंटू से अमरबेल की तरह लिपट गई. इस के बाद उन्माद के तूफान में उन की सारी मर्यादाएं बह गईं.

उस दिन बीना तो मर्यादा भूल ही गई थी, पिंटू भी भूल गया था कि वह अपने दोस्त की गृहस्थी में आग लगा रहा है. जल्दी ही बीना पिंटू के प्यार में इतनी दीवानी हो गई कि वह पति से ज्यादा प्रेमी का खयाल रखने लगी. पिंटू भी अपनी कमाई बीना पर खर्च करने लगा. बीना जो भी डिमांड करती, पिंटू उसे पूरी करता. रामबाबू उन दोनों के मिलन में बाधक न बने, इसलिए पिंटू रामबाबू को शराब की दावत दे कर उस का विश्वासपात्र दोस्त बना रहता था.

ऐसे रिश्तों को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रखा जा सकता, देरसबेर पोल खुल ही जाती है. जब पिंटू का रामबाबू की अनुपस्थिति में बीना के यहां ज्यादा आनाजाना हो गया तो पड़ोसियों को शक होने लगा. कालोनी में उन के संबंधों को ले कर कानाफूसी शुरू हो गई. किसी तरह बात रामबाबू के कानों तक भी पहुंच गई. रामबाबू अपने दोस्त पिंटू पर अटूट विश्वास करता था, इसलिए उस ने सुनीसुनाई बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन उस के मन में शक का कीड़ा जरूर कुलबुलाने लगा.

शक के आधार पर एक रोज रामबाबू ने बीना से पिंटू के बारे में पूछा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘पिंटू तुम्हारा दोस्त है. तुम्हीं उसे ले कर घर आए थे. वह आता है तो मैं उस से हंसबोल लेती हूं. पासपड़ोस के लोग जलते हैं, पड़ोसियों की झूठी बातों में आ कर तुम भी मुझ पर शक करने लगे.’’

‘‘मैं शक नहीं कर रहा, केवल पूछ रहा हूं.’’ रामबाबू प्यार से बोला.

‘‘पूछना क्या है, अगर तुम्हें मुझ से ज्यादा पड़ोसियों की बातों पर भरोसा है तो पिंटू को घर आने से मना कर दो. लेकिन सोच लो, पिंटू हमारी मदद भी करता है और तुम्हारी पार्टी भी. तुम्हारी कमाई से मकान का किराया, बच्चों की फीस और घरगृहस्थी का खर्च क्या चल पाएगा?’’

पत्नी की बात पर विश्वास कर रामबाबू शांत हो गया.

एक दिन रामबाबू दुकान पर गया और काम भी किया. लेकिन 2 घंटे बाद उसे लगा कि बदन टूट रहा है और बुखार है. वह दुकान बंद कर के घर पहुंच गया. कमरा अंदर से बंद था. कुंडी खुलवाने के लिए उस ने जंजीर की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि तभी उसे कमरे के अंदर से पत्नी के हंसने की आवाज आई. रामबाबू ने अपना हाथ रोक लिया. उस ने दरवाजे की झिर्री से देखा तो दंग रह गया. उस की पत्नी आपत्तिजनक स्थिति में थी.

रामबाबू का खून खौल उठा. लेकिन उस समय वह बोला कुछ नहीं. वह कुछ देर जड़वत खड़ा रहा. फिर खटखटाने पर दरवाजा खुला तो उसे देख कर बीना व पिंटू अपराधबोध से कांपने लगे. दोनों ने रामबाबू से माफी मांगी और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का वादा किया.

दोनों को माफ करने के अलावा रामबाबू के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. पत्नी की बेवफाई से रामबाबू को गहरी ठेस लगी थी. उसे अब अपनी इज्जत बचानी थी, इसलिए उस ने कानपुर शहर छोड़ कर घर जाने का निश्चय कर लिया.

बीना को घर वापस जाने की बात पता चली तो उस ने बच्चों की पढ़ाई का सवाल उठाया. लेकिन रामबाबू मानने को तैयार नहीं हुआ. पत्नी और बच्चों को साथ ले कर वह मूसानगर स्थित अपने घर आ गया. रामबाबू खेतीकिसानी व मजदूरी कर के बच्चों का पालनपोषण करने लगा. उस ने दोनों बच्चों का दाखिला कस्बे के प्राइमरी स्कूल में करा दिया.

बीना के गांव चले जाने के बाद पिंटू परेशान हो उठा. उसे बीना की याद आने लगी. पिंटू से जब नहीं रहा गया तो वह बीना की ससुराल पहुंच गया. वहां रामबाबू ने उसे बेइज्जत किया और बीना से नहीं मिलने दिया. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. पिंटू आता और बेइज्जत हो कर वापस हो जाता.

कुछ महीने ससुराल में रहने के बाद बीना ने विरोध शुरू कर दिया. दरअसल बीना ससुराल में कैदी जैसा जीवन व्यतीत कर रही थी. घर से बाहर निकलने पर पाबंदी थी, जबकि वह स्वतंत्र विचरण करना चाहती थी. साथ ही वह अभावों से भी जूझ रही थी.

एक दिन बीना ने रामबाबू से साफ कह दिया कि वह शहर जा कर खुद कमाएगी और अपना व बच्चों का पालनपोषण करेगी. रामबाबू ने विरोध किया लेकिन वह नहीं मानी. बीना ससुराल छोड़ कर कानपुर शहर चली गई.

नौबस्ता थाने के अंतर्गत धोबिन पुलिया कच्ची बस्ती में किराए पर मकान ले कर वह अकेली ही रहने लगी. उस ने नौकरी के लिए दौड़धूप की तो उसे आवासविकास नौबस्ता स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई.

नौकरी मिल जाने के बाद बीना अपने दोनों बच्चों को भी साथ रखना चाहती थी. लेकिन रामबाबू ने बच्चों को उस के साथ भेजने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन बच्चों के लिए उस का मन तड़पता तो वह जबतब बच्चों से मिलने जाती और उन्हें खर्चा दे कर चली आती. कभीकभी वह बच्चों से मोबाइल पर भी बात कर लेती थी.

पिंटू को जब पता चला कि बीना वापस कानपुर शहर आ गई है तो उस ने फिर से बीना से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. पर बीना ने उसे पहले जैसी तवज्जो नहीं दी.

बीना जिस प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करती थी, वहीं पर 25-26 साल का सुनील भी काम करता था. सुनील बीना के घर से कुछ दूरी पर कच्ची बस्ती में ही रहता था.

बीना और सुनील हंसमुख स्वभाव के थे, इसलिए दोनों में खूब पटती थी. छुट्टी वाले दिन वह सुनील के साथ घूमने भी जाती थी, सुनील उसे चाहने लगा था.

धीरेधीरे सुनील और बीना नजदीक आते गए और दोनों में नाजायज संबंध बन गए. सुनील सुबह बीना के घर आता. दोनों साथ चायनाश्ता करते और फिर साथसाथ फैक्ट्री चले जाते. शाम को भी सुनील बीना का घर छोड़ देता. कभीकभी वह बीना के घर रुक जाता, फिर रात भर दोनों मौजमस्ती करते.

बीना के सुनील के साथ संबंध बन गए तो उस ने पहले प्रेमी पिंटू को भाव देना बंद कर दिया. अब पिंटू जब भी उस के पास आता तो बीना विरोध करती. वह उसे घर में शराब पीने को भी मना करती.

पिंटू को वह अपने पास फटकने नहीं देती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि बीना में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ गया. उस ने गुप्त रूप से पता किया तो सच्चाई सामने आ गई. उसे पता चल गया कि बीना के सुनील से संबंध बन गए हैं.

सुनील को ले कर बीना और पिंटू में झगड़ा होने लगा. पिंटू बीना पर दबाव डालने लगा कि वह सुनील का साथ छोड़ दे लेकिन बीना इस के लिए तैयार नहीं थी. प्रेमिका की इस बेवफाई से पिंटू परेशान रहने लगा.

10 फरवरी, 2018 को पिंटू रात 8 बजे शराब के ठेके से बोतल खरीद कर बीना के घर पहुंचा तो वहां सुनील मौजूद था. सुनील वहां से चला गया तो पिंटू ने बीना से सुनील के बारे में पूछा. बीना ने उसे सब कुछ सच बता दिया. इस पर पिंटू को गुस्सा आ गया.

पिंटू ने तेज धार वाला चाकू साथ लाया था. उस ने चाकू निकाला और उस की गरदन पर वार कर दिया. बीना जमीन पर गिर गई. उस के बाद पिंटू बीना के सीने पर बैठ गया और यह कहते हुए उस की गरदन रेत दी कि बेवफाई की सजा यही है. बीना की हत्या करने के बाद पिंटू ने शराब पी फिर बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर फरार हो गया.

11 फरवरी की सुबह सुनील बीना के घर पहुंचा तो दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. वह कुंडी खोल कर कमरे में गया तो उस के होश उड़ गए. फर्श पर बीना की खून से सनी लाश पड़ी थी. सुनील ने पहले पासपड़ोस के लोगों फिर थाना नौबस्ता पुलिस को सूचना दी.

सूचना पाते ही नौबस्ता थानाप्रभारी अखिलेश जायसवाल पुलिस टीम के साथ आ गए. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना अपने अधिकारियों को दे दी. कुछ देर बाद ही एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा, एसपी (साउथ) अशोक कुमार वर्मा वहां पहुंच गए.

मृतका की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी. फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर जांच की. पुलिस अधिकारियों ने सूचना देने वाले सुनील तथा मृतका के पति रामबाबू से पूछताछ की. रामबाबू ने पत्नी की हत्या का शक अपने दोस्त पिंटू करिया पर जताया. रामबाबू की तहरीर पर पुलिस ने पिंटू करिया के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी.

शाम करीब 5 बजे नौबस्ता थानाप्रभारी अखिलेश जायसवाल ने मुखबिर की सूचना पर पिंटू करिया को नौबस्ता के दासू कुआं के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि बीना ने उस के साथ विश्वासघात किया था. इसी खुन्नस में उस ने उसे मार डाला.

पुलिस ने पिंटू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने 12 फरवरी, 2018 को उसे कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी.

 -कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाची की यारी में कर दिया चाचा का कत्ल

17 अक्तूबर, 2016 की सुबह जिला गोरखपुर के चिलुआताल के महेसरा पुल के नजदीक जंगल में एक पेड़ के सहारे एक साइकिल खड़ी देखी गई, जिस के कैरियर पर एक बोरा बंधा था. बोरा खून से लथपथ था, इसलिए देखने वालों को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि बोरे में लाश हो सकती है. लाश  होने की संभावना पर ही इस बात की सूचना थाना चिलुआताल पुलिस को दे दी गई थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर रामबेलास यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. बोरे से उस समय भी खून टपक रहा था.

इस का मतलब था कि बोरा कुछ देर पहले ही साइकिल से वहां लाया गया था. उन्होंने बोरा खुलवाया तो उस में से एक आदमी की लाश निकली. मृतक की उम्र 35-36 साल रही होगी. उस के सिर पर किसी वजनदार चीज से वार किया गया था. वह रंगीन सैंडो बनियान और लुंगी पहने था. शायद रात को सोते समय उस की हत्या की गई थी.

पुलिस को लाश की शिनाख्त कराने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. वहां जमा भीड़ ने मृतक की शिनाख्त प्रौपर्टी डीलर सुरेश सिंह के रूप में कर दी थी. वह चिलुआताल गांव का ही रहने वाला था.

शिनाख्त होने के बाद रामबेलास यादव ने मृतक के घर वालों को सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को भेजा. दोनों सिपाही मृतक के घर पहुंचे तो घर पर कोई नहीं मिला. पड़ोसियों से पता चला कि सुरेश सिंह के बिस्तर पर भारी मात्रा में खून मिलने और उस के बिस्तर से गायब होने से घर के सभी लोग उसी की खोज में निकले हुए थे.

घर पर पुलिस के आने की सूचना मिलने पर मृतक सुरेश सिंह के बड़े भाई दिनेश सिंह घर आए तो जंगल में एक लाश मिलने की बात बता कर दोनों सिपाही उन्हें अपने साथ ले आए. लाश देखते ही दिनेश सिंह फफक कर रो पड़े. इस से साफ हो गया कि मृतक उन का भाई सुरेश सिंह ही था.

इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया और उस साइकिल को जब्त कर लिया, जिस पर लाश बोरे में भर कर वहां लाई गई थी.

थाने लौट कर रामबेलास यादव ने मृतक के बडे़ भाई दिनेश सिंह की तहरीर पर सुरेश सिंह की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया. मृतक सुरेश सिंह प्रौपटी डीलिंग का काम करता था. विवादित जमीनों को खरीदनाबेचना उस का मुख्य धंधा था. पुलिस ने इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई, लेकिन उस का ऐसा कोई दुश्मन नजर नहीं आया, जिस से लगे कि हत्या उस ने कराई है.

यह हत्याकांड अखबारों की सुर्खियां बना तो एसएसपी रामलाल वर्मा ने एसपी (सिटी) हेमराज मीणा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कराएं. उन्होंने सीओ देवेंद्रनाथ शुक्ला और थानाप्रभारी रामबेलास यादव को सुरेश सिंह तथा उस के घरपरिवार के आसपास जांच का घेरा बढ़ाने को कहा.

क्योंकि उन्हें लग रहा था कि यह हत्या दुश्मनी की वजह से नहीं, बल्कि अवैधसंबंधों की वजह से हुई है. क्योंकि मृतक को जिस तरह बेरहमी से मारा गया था, इस तरह लोग अवैध संबंधों में ही नफरत में मारे जाते हैं. इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई गई तो जल्दी ही नतीजा निकलता नजर आया.

किसी मुखबिर ने बताया कि पिछले कई सालों से सुरेश सिंह की अपनी पत्नी से पटती नहीं थी. दोनों में अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था और इस की वजह सुरेश सिंह का सगा भतीजा राहुल चौधरी था. क्योंकि उस के अपनी चाची राधिका से अवैध संबंध थे.

घटना से सप्ताह भर पहले भी इसी बात को ले कर सुरेश और राधिका के बीच काफी झगड़ा हुआ था. तब सुरेश ने पत्नी की पिटाई कर दी थी, जिस से नाराज हो कर वह बच्चे को ले कर मायके चली गई थी. रामबेलास यादव को हत्या की वजह का पता चल गया था. राहुल से पूछताछ करने के लिए वह उस के घर पहुंचा तो उस के पिता दिनेश सिंह ने बताया कि वह तो लखनऊ में है.

लखनऊ में राहुल गोमतीनगर में किराए का कमरा ले कर रहता है और सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहा है. पिता का कहना था कि हत्या वाले दिन के एक दिन पहले वह लखनऊ चला गया था. जबकि मुखबिर ने उन्हें बताया था कि घटना वाले दिन सुबह वह चिलुआताल में दिखाई दिया था.

पिता का कहना था कि घटना से एक दिन पहले यानी 16 अक्तूबर, 2016 को राहुल लखनऊ चला गया था, जबकि मुखबिर का कहना था कि घटना वाले दिन वह चिलुआताल में दिखाई दिया था. मुखबिर की बात पर विश्वास कर के रामबेलास यादव ने राहुल को लखनऊ से लाने के लिए 2 सिपाहियों को भेज दिया.

लखनऊ पुलिस की मदद से गोरखपुर पुलिस 22 अक्तूबर, 2016 को लखनऊ के गोमतीनगर से राहुल चौधरी को गिरफ्तार कर गोरखपुर ले आई. थाने ला कर उस से सुरेश सिंह की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के चाची से अवैध संबंधों की वजह से चाचा सुरेश सिंह की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. राहुल ने चाची के प्रेम में पड़ कर चाचा की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना चिलुआताल में सुरेश सिंह पत्नी राधिका सिंह और 6 साल के बेटे के साथ रहता था. उस का बड़ा भाई था दिनेश सिंह. राहुल उसी का बेटा था. दोनों भाइयों के परिवार भले ही अलगअलग रहते थे, लेकिन रहते एक ही मकान में थे. सुखदुख में भी एकदूसरे की मदद भी करते थे.

गांव वाले भाइयों के इस प्रेम को देख मन ही मन जलते थे. सुरेश सिंह चेन्नई में किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. लेकिन पत्नी राधिका बेटे के साथ गांव में रहती थी. वह साल में एक या 2 बार ही घर आता था. उस के न रहने पर जरूरत पड़ने पर घर के छोटेमोटे काम उस के बड़े भाई का बेटा राहुल कर दिया करता था.

राहुल और राधिका थे तो चाचीभतीजा, लेकिन हमउम्र होने की वजह से दोनों दोस्तों की तरह रहते थे, बातचीत भी वे दोस्तों की ही तरह करते थे. इस का नतीजा यह निकला कि धीरेधीरे उन के बीच मधुर संबंध बन गए. उन के मन में एकदूसरे के लिए चाहत के फूल खिले तो एकदूसरे के स्पर्श मात्र से उन का रोमरोम खिल उठने लगा.

राहुल चाची राधिका से जुनून के हद तक प्यार करने लगा तो राधिका ने भी उस के प्यार पर अपने समर्पण की मोहर लगा दी. एक बार मर्यादा टूटी तो उन्हें जब भी मौका मिलता, जिस्म की भूख मिटाने लगे. दोनों ने अपने इस अनैतिक रिश्ते पर परदा डालने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन पाप के इस रिश्ते को वे छिपा नहीं सके.

लोग राधिका और राहुल को ले कर तरहतरह की चर्चाएं भी करने लगे, पर उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. जब सुरेश सिंह के किसी शुभचिंतक ने उसे फोन कर के चाचीभतीजे के बीच पक रही खिचड़ी की जानकारी दी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव आ गया. यह सन 2014 की बात है.

सुरेश ने खूब पैसे कमाए थे. उन्हीं पैसों से उस ने गांव में रह कर प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया, जो थोड़ी मेहनत के बाद अच्छा चल निकला. कामधंधे की वजह से अकसर उसे दिन भर घर से बाहर रहना पड़ता था, इसलिए राहुल और राधिका को मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. लेकिन एक दिन अचानक वह दोपहर में घर आ गया तो उस ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया.

फिर क्या था, सुरेश ने न पत्नी को छोड़ा और न भतीजे को. उस ने इस बात को ले कर भाई से बात की तो बेटे की हरकत से वह काफी शर्मिंदा हुए. समाज और रिश्तों की दुहाई दे कर उन्होंने बेटे को घर से निकाल दिया तो वह लखनऊ आ गया और गोमतीनगर में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

यहां वह सरकारी नौकरी की परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. सुरेश की वजह से गांव में राहुल और उस की चाची की काफी बदनामी हुई थी. यही नहीं, उसे घर से भी निकाल दिया गया था. राधिका की खूब थूथू हुई थी. गांव से ले कर नातेरिश्तेदारों तक ने उस की खूब फजीहत की थी.

धीरेधीरे बात थमती गई. मांबाप से मांफी मांग कर राहुल फिर घर लौट आया. मांबाप ने उसे माफ जरूर कर दिया था, लेकिन उस पर कड़ी नजर रखी जा रही थी. राधिका से उसे मिलने की सख्त मनाही थी. जबकि वह चाची से मिलने के लिए तड़प रहा था. लेकिन सख्त पहरेदारी की वजह से दोनों का मिलन संभव नहीं हो पा रहा था.

चाचा सुरेश की वजह से राहुल प्रेमिका चाची से मिल नहीं पा रहा था. उसे लग रहा था कि जब तक चाचा रहेगा, वह चाची से कभी मिल नहीं पाएगा. चाचा प्यार की राह का कांटा लगा तो वह उसे हटाने के बारे में सोचने लगा. आखिर उस ने उसे हटाने का निश्चय कर लिया.

अब वह ऐसी राह खोजने लगा, जिस पर चल कर उस का काम भी हो जाए और वह फंसे भी न. काफी सोचविचार कर उस ने तय किया कि वह अपना मोबाइल फोन औन कर के बाइब्रेशन पर लखनऊ वाले कमरे पर ही छोड़ देगा और रात में गोरखपुर पहुंच कर चाचा की हत्या कर के लखनऊ अपने कमरे पर आ जाएगा.

पुलिस उस पर शक करेगी तो मोबाइल लोकेशन के सहारे वह बच जाएगा. तब वह शायद यह भूल गया था कि कातिल कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से उस का बचना आसान नहीं है.

राहुल जब से घर आ कर रहने लगा था, सुरेश और उस की पत्नी राधिका के बीच उसे ले कर अकसर झगड़ा होता रहता था. जबकि इस बीच राहुल एक बार भी चाची से नहीं मिला था.

रोजरोज के झगड़े से परेशान हो कर राधिका नाराज हो कर बेटे को ले कर मायके चली गई थी. राधिका के चली जाने से राहुल काफी दुखी था. उस का मन घर में नहीं लगा तो 16 अक्तूबर को मांबाप से कह कर वह लखनऊ चला गया.

चाची से न मिल पाने की वजह से राहुल तड़प रहा था. तड़प की वेदना से आहत हो कर उस ने योजना को अमलीजामा पहना दिया. योजना के अनुसार 17 अक्तूबर की शाम 4 बजे इंटरसिटी ट्रेन से वह गोरखपुर के लिए चल पड़ा. रात 11 बजे के करीब वह गोरखुपर पहुंचा. स्टेशन से टैंपो ले कर वह चिलुआताल के बरगदवां चौराहे पर पहुंचा और वहां से पैदल ही घर पहुंच गया.

उसे घर तो जाना नहीं था, इसलिए सब से पहले उस ने पिता के कमरे के दरवाजे की सिटकनी बाहर से बंद कर दी, ताकि शोर होने पर वह बाहर न निकल सकें.

इस के बाद पीछे की दीवार के सहारे वह सुरेश सिंह के कमरे में पहुंचा, जहां वह गहरी नींद सो रहा था. उसे देखते ही नफरत से राहुल का खून खौल उठा. उसे पता था कि चाचा के घर में लोहे की रौड कहां रखी है. उस ने लोहे की रौड उठाई और पूरी ताकत से सुरेश के सिर पर 3 वार कर के उसे मौत के घाट उतर दिया.

राहुल को विश्वास हो गया कि सुरेश की मौत हो चुकी है तो उस ने घर में रखा बोरा उठाया और उसी में उस की लाश भर कर रात के 4 बजे के करीब बाहर झांक कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा. जब उसे लगा कि कोई नहीं देख रहा है तो उस ने सुरेश की ही साइकिल घर उस की लाश वाले बोरे को कैरियर पर रख कर जंगल की ओर चल पड़ा.

लेकिन जब वह झील की ओर जा रहा था, तभी एक ट्रैक्टर आता दिखाई दिया. उसे देख कर वह घबरा गया और साइकिल को एक पेड़ से टिका कर भागा. ट्रैक्टर पर बैठे एक मजदूर ने उसे भागते देख लिया तो उस ने उस का नाम ले कर पुकारा भी, लेकिन रुकने के बजाए राहुल बरगदवां चौराहे की ओर भाग गया.

वहां से उस ने टैंपो पकड़ी और गोरखपुर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से ट्रेन पकड़ कर लखनऊ स्थित अपने कमरे पर चला गया. उस ने चालाकी तो बहुत दिखाई, लेकिन वह काम न आई और पकड़ा गया. राहुल चौधरी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड बरामद कर ली थी.

पूछताछ के बाद राहुल को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. राधिका के पति की हत्या की खबर पा कर ससुराल आ गई थी. राहुल ने जो किया था, उस से उसे काफी दुख पहुंचा. क्योंकि उस ने राहुल से कभी नहीं कहा था कि वह उस के पति की हत्या कर उसे विधवा बना दे.

राहुल के मांबाप भी काफी दुखी हैं. उन्होंने राहुल से अपना नाता तोड़ कर उसे उस के हाल पर छोड़ दिया है.

– कथा में राधिका सिंह बदला नाम है. कथा पुलिस सूत्रों एवं राहुल के बयानों पर आधारित

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बीमारियों की आड़ में खेला गया लूट का खेल

उस का असली नाम नीना नहीं, अंजलि कपलिश था. पढ़लिख कर वह विवाह के लायक हुई तो 24 फरवरी, 1996 को सामाजिक रीतिरिवाज से उस का विवाह कैमिकल इंजीनियर मंगतराम शर्मा से कर दिया गया था. मंगतराम एक निजी संस्था में बढि़या नौकरी करते थे. उन के घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने अंजलि को न केवल हर सुखसुविधा के साथ भरपूर प्यार दिया था, उस का नाम भी बदल कर नीना रख दिया था. समय अपनी गति से गुजरता रहा और इस बीच नीना एक बेटे और एक बेटी की मां बन गई थी. बीए एवं एमलिब (मास्टर औफ लाइब्रेरी साइंस) की डिग्रियां हासिल करने वाली नीना शादी के पहले रोपड़ के एक स्कूल में नौकरी करती थी. शादी के बाद भी वह 2 सालों तक नौकरी करती रही. लेकिन बाद में पति ने उसे घर संभालने की सलाह देते हुए नौकरी करने को मना कर दिया.

नीना नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी, पर पति की वजह से उसे नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा. पति से इस फैसले के बारे में वह ज्यादा कुछ कह तो नहीं सकी, पर अच्छीभली नौकरी छोड़ने का उसे काफी अफसोस था. पति का यह फैसला उसे सही नहीं लगा.

वजहें कुछ भी रही हों, शादी के 6 साल बाद उन के वैवाहिक रिश्ते में खटास पैदा होने लगी. इस का नतीजा यह निकला कि सन 2004 में नीना ने पति से तलाक ले लिया. नीना के इस फैसले से मंगतराम काफी आहत हुए. कुछ समय बाद वह इंडिया छोड़ कर आस्ट्रेलिया चले गए.

नीना के मायके वाले भी तलाक के लिए नीना को ही दोषी मान रहे थे, इसलिए उन्होंने भी उस से नाता तोड़ लिया. नीना अब बेसहारा हो चुकी थी. ऐसी हालत में उस ने हिम्मत से काम लिया. किसी की परवाह न कर के उस ने आने वाली संभावित स्थितियों से मुकाबला करने के लिए कमर कस ली.

रोपड़ के दशमेशनगर में किराए का मकान ले कर वह अपने दोनों बच्चों के साथ रहने लगी और फिर से नौकरी हासिल करने की कोशिश करने लगी. पर काफी मेहनत के बाद भी नौकरी हाथ नहीं लगी. इस के बाद उस ने घर से ही ट्रेडिंग का काम करना शुरू कर दिया. थोक में दालें वगैरह खरीद कर लाती और उन के एक किलोग्राम और आधा किलोग्राम के पैकेट तैयार कर के वह उन्हें राशन की दुकानों पर सप्लाई करने लगी.

देखने में काम छोटा था, मगर अच्छा चल निकला. पैसों के लिए नीना अब किसी की मोहताज नहीं रही. इस के बावजूद ज्यादा कमाई वाला काम करने की उथलपुथल उसे बेचैन किए रहती थी. उसी बीच वह कई बीमारियों की चपेट में आ गई, जिन में हाई ब्लडपै्रशर, गौलब्लैडर में ट्यूमर व ब्लडकैंसर सरीखी बीमारियां थीं. वह अपनी इन बीमारियों का लगातार इलाज करवा रही थी.

दुख और बीमारी में जो काम दवा नहीं कर पाती, वह किसी अपने की प्यारभरी हमदर्दी और मीठे बोल कर जाते हैं. नीना भी इसी तरह के प्यार और हमदर्दी को तरस रही थी. इस दुख को वह अपने बच्चों से भी साझा नहीं करती थी. ऐसे में उसे यह बात बारबार कचोटती थी कि मंगतराम को तलाक दे कर उस ने भारी भूल की थी. उसे यह भी भरोसा था कि अगर वह मंगतराम के पास जा कर अपनी गलती मान ले तो वह निश्चित ही उसे माफ कर के फिर से अपना लेगा.

आखिर नीना आस्ट्रेलिया जाने की तैयारी करने लगी. पासपोर्ट उस के पास था ही. वह वीजा हासिल करने की कोशिश में लग गई, पर लाख कोशिशों के बावजूद भी उसे वीजा नहीं मिल सका. ट्रैवल एजेंटों ने उसे खासा परेशान किया. उस का वक्त तो बरबाद हुआ ही, वे लोग उस से पैसा भी खूब वसूलते रहे. यानी वह ठगी गई.

मंगतराम से समझौता करने नीना आस्ट्रेलिया तो नहीं जा पाई, अलबत्ता इन कोशिशों का एक फायदा उसे यह हुआ कि वह ट्रैवल एजेंटों द्वारा झांसा दे कर ठगी करने के कई गुर सीख गई. लिहाजा उस ने खुद भी यही सब कर के पैसा कमाने का निश्चय किया. उस की तमन्ना बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर लेने का था.

पूरी योजना बना कर नीना ने एक मैटर तैयार किया. ‘आप स्टूडेंट हो, घरपरिवार वाली औरत हो, पढ़ेलिखे हो या फिर मामूली पढ़ाईलिखाई व सीमित अनुभव के साथ छोटीमोटी नौकरी करने को मजबूर हो. विदेशों में मोटी तनख्वाह वाली एक से एक बढि़या नौकरी आप के इंतजार में है. दिशानिर्देशन व वर्क परमिट के लिए संपर्क करें.’

इस के नीचे अपने घर का पता देते हुए नीना ने कई अखबारों में विज्ञापन दे दिए. इस के बाद तो विदेश जाने के इच्छुक लोगों की नीना के यहां लाइनें लगनी शुरू हो गईं. वैसे भी विदेश जा कर पैसा कमाने का पंजाब में कुछ ज्यादा ही क्रेज है. नीना ने खुद को एक विदेशी कंसल्टैंट कंपनी की एजेंट बताया.

जो लोग उस के पास पूछताछ करने आते थे, वह उन्हें बताती कि जो लोग विदेश जाना चाहते हैं, उन का पहले रजिस्ट्रेशन होगा, उस के बाद विदेश से आ कर कंपनी के अधिकारी उन लोगों का इंटरव्यू लेंगे, जो लोग सफल होंगे, उन्हें पौने 2 लाख रुपए महीने की तनख्वाह पर रख लिया जाएगा. उस तनख्वाह से कंपनी 2 सालों तक हर महीने 50 हजार रुपए अपने पास कमीशन के रूप में रखेगी. 2 साल बाद यह समझौता खुद ब खुद खत्म हो जाएगा.

नीना ने यह भी बताया कि रजिस्टे्रशन फीस के रूप में हर आदमी को 25 हजार रुपए जमा करवाने होंगे. सिलैक्ट हुए उम्मीदवारों को वाजिब हवाई किराया व कुछ अन्य खर्चे भी देने होंगे. किसी वजह से जो लोग सिलेक्ट नहीं हो पाएंगे, उन्हें उन की रजिस्ट्रेशन फीस वापस कर दी जाएगी. बाद में नौकरियों की रिक्तियां निकलने पर फिर से रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.

रजिस्ट्रेशन फीस 25 हजार तय करते समय नीना को लगा था कि उस ने जल्दबाजी में फीस शायद ज्यादा रख दी है. पर कमाल की बात यह हुई कि पहले ही झटके में 20 लोगों ने 25-25 हजार रुपए दे कर नीना की झोली में 5 लाख रुपए डाल दिए.

इस के बाद तो नीना के जैसे पंख निकल आए. चंडीगढ़ के सेक्टर-35 में उस ने इमीग्रेशन कंसल्टैंट्स का अपना शानदार औफिस खोल कर बडे़ पैमाने पर लोगों को ठगना शुरू कर दिया.

नीना को कमाई का यह नया तरीका सूझ गया था. वह भी मोटी कमाई का. उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर कई लोगों ने अपनी जमीनजायदाद तक गिरवी रख कर उसे मुंहमांगी रकम दे दी. पैसा देने वाले का मुंह बंद रहे, इस के लिए वह कभी मैडिकल का तो कभी कोई अन्य फार्म भरवा लेती.

देखतेदेखते नीना ने करीब 500 लोगों से 4 करोड़ रुपए की रकम इकट्ठी कर ली. इन लोगों का काम वह तभी करवा पाती, जब उस के हाथ में कुछ होता. उसे तो इस ठगी से अधिक से अधिक मोटी रकम बटोरनी थी. जिस रफ्तार से उस के पास पैसा आ रहा था, 4 करोड़ की रकम भी उसे छोटी लग रही थी.

उसे उम्मीद थी कि आने वाले कुछ समय में उस के पास इस से कई गुना ज्यादा रकम इकट्ठी हो जाएगी. तब वह यहां से इतनी दूर चली जाएगी कि कोई भी उसे ढूंढ नहीं पाएगा. मगर उसी बीच परिस्थिति बदल गई. फातियाबाद, हरियाणा के 2 भाई कुलविंदर सिंह और हरमिंदर सिंह भी आस्ट्रेलिया व कनाडा में नौकरी लगवाने के लिए नीना से मिले.

नीना ने इन दोनों भाइयों से मोटी रकम ऐंठ ली. काफी दिनों बाद भी जब इन का काम नहीं हुआ तो इन्होंने नीना के खिलाफ चंडीगढ़ पुलिस में शिकायत कर दी. चंडीगढ़ पुलिस ने काररवाई करते हुए 28 नवंबर, 2005 को नीना को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने नीना को कोर्ट में पेश कर के उस का 4 दिनों का पुलिस रिमांड लिया. पुलिस को पता चला कि वह पहले से ही गंभीर बीमारियों से ग्रस्त है. इस वजह से पूछताछ के वक्त उस से ज्यादा सख्ती नहीं की जा सकी. मनोवैज्ञानिक तरीके से की गई पूछताछ मे वह करोडों रुपयों की ठगी करने की बात तो कबूलती रही, पर उस ने पैसा कहां छिपा कर रखा है, यह नहीं बताया.

पुलिस ने उस के बैंक खातों व लौकरों की जांच की तो वहां कुछ हजार रुपए ही मिले. 4 दिनों के कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर जब पुलिस नीना को अदालत में पेश करने ले जा रही थी, तभी ठगी का शिकार हुए लोगों  ने उस का रास्ता रोक लिया.

वह उस से अपने पैसों को मांग करने लगे. तब नीना ने उन से सपाट लहजे में कहा, ‘‘हां, मैं कसूरवार हूं, लेकिन मेरी भी अपनी मजबूरियां हैं, मैं गंभीर रूप से बीमार हूं, मुझे अपना इलाज करवाना है. इस के  अलावा मैं मानती हूं कि मैं ने आप लोगों से ठगी की है. मगर मैं यह पैसा लौटा नहीं सकती. आप लोगों से ज्यादा मुझे इस पैसे की जरूरत है. अदालत मुझे मेरे किए की सजा जरूर देगी. शायद मैं सजा भुगतते हुए जेल के भीतर मर ही जाऊं.’’

लेकिन वह न मरी और न ही जमानत पर छूटने के बाद उस ने ठगी का अपना कारोबार बंद किया. उस के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होते रहे, पुलिस उसे गिरफ्तार कर जेल भेजने के अलावा उस के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर अदालत में दाखिल करती रही.

16 दिसंबर, 2006 को नीना ने बलविंदर शर्मा नामक शख्स से दूसरा विवाह रचा लिया. उस के साथ मिल कर उस ने मोहाली में ‘एलीवेशन प्लेसमेंट सर्विस’ के नाम से अपना एक आलीशान औफिस खोला. इसी तरह के कई औफिस उस ने अलगअलग जगहों पर खोले और अपने धंधे को पहले की तरह ही अंजाम देती रही. उस के खिलाफ आपराधिक मामले भी लगातार दर्ज होते रहे. देखते ही देखते उस के ऊपर 50 से अधिक मुकदमे दर्ज हो गए.

विभिन्न केसों में बारबार रिमांड पर ले कर पुलिस उस से सिवाय सौफ्ट इंटेरोगेशन के और कुछ नहीं कर सकती थी. और तो और पुलिस उस से ठगी की रकम का भी पता नहीं लगा पाई कि उस ने कहां छिपा रखी है. वह सीधे कह देती थी कि बीमारी पर खर्च कर दी है.

नीना के खिलाफ भले ही कितने ही केस क्यों न चल रहे थे, पर उन में से तमाम अधर में ही लटके थे. कुछ केसों में वह बरी भी हो गई थी. मैडिकल आधारों पर उसे अदालत से जल्दी जमानत मिल जाती थी. इसी बात का वह फायदा उठा रही थी. ठगे गए लोग तो पुलिस पर भी उस के साथ सांठगांठ का आरोप लगा रहे थे.

अभी हाल ही में नीना को उस के खिलाफ दर्ज एक मामले में पहली बार सजा हुई है. करीब 4 साल पहले हिमाचल प्रदेश के कस्बा बरनी निवासी अशोक कुमार की शिकायत पर नीना के खिलाफ भादंवि की धारा 406 एवं 420 का यह केस मोहाली के थाना मटौर में दर्ज हुआ था.

शिकायतकर्ता का आरोप था कि उसे कनाडा भेजने के नाम पर नीना ने उस से 1 लाख 10 हजार रुपए ठगे थे. इस केस में मटोर थाना के थानाप्रभारी धर्मपाल ने नीना को गिरफ्तार कर के जेल भिजवाते हुए उस के खिलाफ चार्जशीट अदालत में दाखिल की थी.

सुनवाई करते हुए 16 दिसंबर, 2016 को मोहाली के विद्वान प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी हरप्रीत सिंह ने नीना को ठगी की कसूरवार मान कर 2 साल 10 महीने की कैद के अलावा 5 हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई थी. जुरमाना अदा न करने पर उसे 6 महीनों की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

सजा सुनने के बाद भी नीना मुसकुराती रही. फैसले के खिलाफ अपील करने की बात कह कर उस ने पूरे आत्मविश्वास से कहा,  ‘कोई बात नहीं, मैं इस कदर गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हूं कि जल्दी ही मुझे जमानत मिल जाएगी.’

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सैक्स की भूख ने जूली को बना दिया हत्यारा

वह सैक्स की आग में कई सालों से झुलस रही थी. उस का पति पिछले 2 सालों से दोहरे हत्याकांड के आरोप में जेल में बंद था. पति की गैरहाजिरी में उसे जिस्मानी सुख नहीं मिल पा रहा था. आखिर में उस ने एक रास्ता निकाल ही लिया. वह दोहरी जिंदगी जीने लगी. दिन के उजाले में वह घर वालों के सामने घूंघट ओढ़े आदर्श बहू की तरह रहती और जैसे ही रात का अंधेरा घिरता, वह आदर्श बहू का चोला उतार कर ऐयाशी में रम जाती. यह सिलसिला पिछले एक साल से चल रहा था. बहू की इस दोहरी जिंदगी का राज एक दिन घर वालों के सामने उजागर हो गया. एक रात दादी सास सुशीला राजावत ने बहू को किसी पराए मर्द के साथ सैक्स संबंध बनाते देख लिया. इस के बाद से दादी सास उस पर कड़ी नजर रखने लगीं.

इस से खफा उस औरत ने रची एक खौफनाक साजिश, जो दिल दहला देने वाली थी.

यह मामला मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के हजारी इलाके के बिरला मंदिर का है. जूली अपनी दादी सास सुशीला राजावत और अपने 6 साल के बेटे के साथ रहती थी.

पुलिस अधीक्षक हरिनारायणचारी मिश्र के मुताबिक, पिछले 3 साल से जूली का पति शिवा राजावत दोहरे हत्याकांड के आरोप में अपने पिता और छोटे भाई के साथ जेल में बंद है. पति के जेल चले जाने के बाद से जूली अकेली हो गई. पति के बिना उस का मन नहीं लगता था. वह अकसर अपनी दादी सास के सामने रोती रहती थी.

शिवा राजावत के कुछ करीबी दोस्त थे, जो जेल से उस की खबर ले कर उस के घर पर आते रहते थे. इसी दौरान जूली उन में से एक दोस्त की ओर आकर्षित हो गई. जल्दी ही दोनों नजदीक आ गए और चोरीछिपे मिलने लगे.

जूली काफी समय से सैक्स की भूखी थी. अपनी भूख मिटाने के लिए वह प्रेमी को रात के समय अपने कमरे पर बुलाने लगी. वह शख्स रात में उस के पास आता और सुबह होने से पहले ही वहां से निकल जाता. रात के अंधेरे में चलने वाले ऐयाशी के इस खेल के बारे में किसी को पता नहीं था.

एक रात दादी सास सुशीला राजावत ने जूली को पराए मर्द के साथ मस्ती करते देख लिया. उस रात जूली कुछ ज्यादा ही उतावली थी. इस चक्कर में कमरे का दरवाजा बंद करना भूल गई.

रात के समय दादी सास सुशीला राजावत की नींद खुल गई. उन्हें बहू के कमरे से सिसकारियों की आवाज सुनाई दी. उन के कान खड़े हो गए. वे दबे कदमों से कमरे के पास पहुंचीं. अंदर का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए.

जूली अपने यार के साथ सैक्स में इतनी खोई हुई थी कि उसे कमरे में किसी के आने का एहसास तक न हुआ. दादी सास ने उसी वक्त दोनों को काफी खरीखोटी सुनाई.

वह शख्स बिना कुछ बोले सिर नीचे कर के वहां से भाग गया, लेकिन उस दिन से जूली घर में कैद हो कर रह गई. दादी सास उस पर कड़ी निगाह रखने लगीं. उसे बाहर के किसी शख्स से बात करने, घर के बाहर कहीं जाने, यहां तक कि मोबाइल फोन से बात करने पर भी रोक लगा दी.

जूली अपने प्रेमी से मिलने के लिए तड़पने लगी. उस ने सास की नजरों से बच कर घर से बाहर निकलने की कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली. नतीजा यह हुआ कि वह गुस्से से बौखला गई. उस ने सास को ही खत्म करने का खतरनाक प्लान बना लिया.

5 अगस्त की सुबह 8 बजे अपने बेटे को स्कूल भेजने के बाद जूली ने इस खौफनाक वारदात को अंजाम दिया. जूली ने चाय में ढेर सारी नींद की गोलियां मिला कर अपनी दादी सास सुशीला को पिला दी.

चाय पीने के कुछ समय बाद ही सुशीला राजावत को नींद आने लगी. वे अपने कमरे में जा कर सो गईं. मौका पा कर जूली ने तौलिया से गला दबा कर उन की हत्या कर दी. सास की हत्या के बाद उस ने कमरे का सारा सामान इस तरह से बिखेर दिया, ताकि मामला लूटपाट का लगे.

तकरीबन 12 बजे जूली ‘मैं लुट गई… बरबाद हो गई’ चिल्लाने लगी. आवाज सुन कर आसपास के लोग जमा हो गए. पुलिस भी वहां पहुंच गई.

जूली ने पुलिस को बताया, ‘‘3 लोग उस के पति शिवा के दोस्त बता कर घर में घुसे. तीनों अंदर कमरे में कुरसी पर बैठ कर सास से बातें करने लगे. मैं उन के लिए अंदर रसोई में चाय बनाने चली गई.

‘‘थोड़ी देर में 2 लोग रसोई में आ गए. उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ लिया. एक ने मेरे सिर पर पिस्टल अड़ा दिया. दूसरे ने मेरा पेटीकोट उठा कर रेप करने की कोशिश की.

‘‘वह कुछ करने में कामयाब होता, उस बीच किसी ने दरवाजे पर आवाज दी. आवाज सुन कर तीनों भाग निकले. जाने से पहले वे अलमारी में रखा सोना लूट कर ले गए और उन्होंने सास की हत्या भी कर दी.’’

जूली ने पुलिस को जो कहानी सुनाई थी, पुलिस द्वारा अंदर तहकीकात करने पर झूठी निकली, जिस की वजह से जूली शक के घेरे में आ गई.

जूली ने तीनों लुटेरों को सामने कमरे में रखी कुरसियों पर बैठ कर सास से बातें करने की बात कही थी, जबकि कमरे में कुरसियां एक के ऊपर एक रखी थीं. दूसरी बात, जूली ने हत्यारे द्वारा उस का दुपट्टा ले जाने की बात कही थी, पर वह दुपट्टा अंदर कमरे में लाश के पास मिला.

तीसरी बात, जो सोना लुटेरों द्वारा लूट कर ले जाने की बात की थी, जांच में पता चला कि वह सोना बैंक में गिरवी रखा हुआ है. उस पर लोन लिया गया था. इस के अलावा जूली अपना बयान बारबार बदल रही थी.

पुलिस द्वारा कड़ाई से पूछताछ करने पर जूली ने दादी सास की हत्या करने की बात कबूल ली और सारी असलियत बयान कर दी.

जूली ने पुलिस को बताया कि वह पिछले 5 महीने से अपनी दादी सास की हत्या की साजिश रचने में लगी थी. उस ने टैलीविजन सीरियल देख कर हत्या करने व उस से बचने की प्लानिंग बनाई थी. उस ने सीरियल के द्वारा छोटेबड़े अपराध के बारे में जानकारी हासिल की थी. पहले उस ने बदमाशों द्वारा रेप किए जाने की कहानी पुलिस के सामने सुनाने की सोची थी, लेकिन रेप के मामले में मैडिकल एंगल को देखते हुए उस ने पिस्टल अड़ा कर रेप करने की कोशिश, लूट और हत्या की कहानी सुनाई.

जूली को यकीन था कि उस के द्वारा बताई गई सारी बातें पुलिस मान लेगी और वह साफतौर पर बच जाएगी, पर ऐसा हुआ नहीं. पुलिस ने तहकीकात कर उस की सारी पोल खोल कर रख दी.

जूली ने बताया कि उसे अपनी दादी सास की हत्या करने का कोई मलाल नहीं है, क्योंकि वे उसे प्रेमी से मिलने नहीं दे रही थीं. सैक्स के माहिर डाक्टरों का कहना है कि इनसान के लिए सैक्स की भूख जिस्मानी जरूरत है. इस पर रोक लगाने पर औरत हो या मर्द, हत्या करने जैसा खौफनाक कदम उठा सकते हैं.

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