अजमेर विद्युत वितरण निगम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन कई दिनों से परेशान थीं. वह कर्मचारियों के वेतन, कैश वाउचर, चैक आदि का हिसाब रखती थीं. उन की परेशानी का कारण यह था कि कई वाउचर नहीं मिल रहे थे.

इस के अलावा कर्मचारियों की वेतन स्लिप और उन के बैंक खातों में जमा हो रही राशि में भी अंतर आ रहा था. शीतल की नजर में कई ऐसे बैंक खाते भी आए, जिन में निगम की ओर से वेतन जमा कराया जा रहा था. लेकिन उन खाताधारक कर्मचारियों का कोई रिकौर्ड नहीं मिल रहा था. शीतल जैन इस औफिस में कुछ समय पहले ही आई थीं.
कर्मचारियों की हाजिरी देख कर उन का मासिक वेतन बनाना, बिल वाउचर और कैश का हिसाबकिताब रखना उन के लिए कोई नई बात नहीं थी. न ही पहले इस काम में उन से कोई गड़बड़ हुई थी, लेकिन उन्हें यहां का काम समझ नहीं आ रहा था.
वह रोजाना कर्मचारियों का रजिस्टर ले कर बैठतीं और उन के वेतन के हिसाबकिताब देखतीं, उन्हें हर जगह भारी गड़बडि़यां नजर आ रही थीं. कई दिनों की माथापच्ची के बाद भी वह यह नहीं समझ पाईं कि यह गड़बडि़यां किस ने, कैसे और क्यों कीं.

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अलबत्ता यह बात उन की समझ में आ गई थी कि राजस्थान सरकार की अजमेर बिजली वितरण कंपनी में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा, बल्कि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो रही हैं. यह गड़बड़ी किस स्तर पर हो रही हैं, यह पता जांच के बाद ही चल सकता था.
शीतल ने इस गड़बड़ी की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देने का फैसला किया. यह दिसंबर 2018 की बात है.
एक दिन उन्होंने एक सहायक लेखाधिकारी के साथ अजमेर बिजली वितरण निगम यानी अजमेर डिस्काम के प्रबंध निदेशक बी.एम. भामू और डायरैक्टर फाइनैंस एस.एम. माथुर के पास पहुंच कर उन्हें इस बारे में बताया. साथ ही उन्हें कुछ सबूत भी दे दिए. सरकारी रकम में गड़बड़ी के सबूत देख कर भामू साहब और माथुर साहब को यकीन हो गया कि अजमेर डिस्काम में बड़ा घपला हो रहा है.

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