लेखक – सुरेशचंद्र मिश्र  

कानपुर नगर से करीब 30 किलोमीटर दूर बेला विधूना रोड पर एक गांव है

अंगदपुर. राजबली अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी अनीता के अलावा 2 बेटे थे राजू व भीम. साथ ही 2 बेटियां शिववती व रामवती भी थीं. राजबली की कहिंजरी बस स्टाप पर मिठाई की दुकान थी, उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था. उस के दोनों बेटे भी काम में उस का हाथ बंटाते थे.

दुकान बस स्टाप पर होने की वजह से अच्छी चलती थी. जैसेजैसे उस के बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. छोटी बेटी शिववती की शादी उस ने थाना शिवली के अंतर्गत आने वाले गांव लुधौरा बाघपुर निवासी विजय लाल से करदी थी. विजय लाल खेतीकिसानी में अपने पिता गोपीचंद के हाथ बंटाता था.

शिववती से शादी कर के वह बहुत खुश था, लेकिन सुहागरात को वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. पति की यह हालत देख कर शिववती के सारे सपने बिखर गए. पति को ले कर उस ने जो अरमान सजाए थे, आंसुओं में बह गए.

विजय ने पत्नी को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन शिववती की सुहागरात आंसुओं के साथ गुजरी. बहरहाल, शिववती ने संयम और समझदारी से काम लिया. चूंकि उसे विजय लाल के साथ ही रहना था, इसलिए उस ने पति को किसी डाक्टर से मिलने की सलाह दी. विजय ने अपना इलाज कराया और वह ठीक हो गया. बहरहाल, उस की गृहस्थी ठीक से चलने लगी.

सुंदरी की साजिश

समय अपनी गति से गुजरता रहा और करीब 4 साल बाद विजय एक बच्चे का बाप बन गया. बच्चा हो जाने के बाद पत्नी का खर्च बढ़ गया.

अब शिववती के खर्च के लिए घर में रोजरोज तो पैसे मांगे नहीं जा सकते थे, लिहाजा वह कोई दूसरा काम करने की सोचने लगा. उस के पास इतना पैसा तो था नहीं, जिस से वह कोई ढंग की दुकान वगैरह खोल लेता. लिहाजा वह कहीं नौकरी पाने की कोशिश करने लगा.

 

काफी कोशिश करने के बाद भी जब कोई नौकरी नहीं लगी तो विजय लाल शिवली कस्बा स्थित भगवती जनरल स्टोर पर नौकरी करने लगा. कस्बा शिवली उस के गांव से करीब 5 किलोमीटर दूर था. वह सुबह 8 बजे साइकिल से अपने काम पर निकलता था और रात 8 बजे घर लौटता था. दिन भर दुकान पर काम कर के वह काफी थक जाता था, जिस से वह पत्नी की शारीरिक जरूरत को नहीं समझ पाता था.

पति की कमाई से शिववती के हाथ में पैसा आने लगा तो उस की घरगृहस्थी की गाड़ी चलने लगी. शिववती आर्थिक रूप से तो पति से संतुष्ट थी, लेकिन शारीरिक रूप से नहीं. उस का दिन तो किसी तरह कट जाता, लेकिन रात की गहरी खामोशी उसे खाने को दौड़ती थी.

विजय लाल के साथ दीपू और श्यामू नाम के 2 युवक काम करते थे. तीनों में खूब पटती थी. दोनों ही पियक्कड़ थे. उन्होंने विजय लाल को भी शराब का चस्का लगा दिया था. शिववती को पति का शराब पीना पसंद नहीं था. वह जब भी शराब पी कर घर पहुंचता तो उस की पत्नी घर में कलह शुरू कर देती थी.

शिववती कहती, ‘एक तो तुम वैसे भी किसी काम के नहीं हो, ऊपर से शराब पी कर आ जाते हो. तुम्हें न मेरी चिंता है और न बच्चे की.’

 

विजय लाल अपनी कमजोरी समझता था, इसलिए वह बीवी की जलीकटी बातें सुन लेता था. विजय लाल के घर अजय कुमार का आनाजाना था. अजय कुमार रसूलाबाद थाने के अंतर्गत आने वाले गांव संभरपुर का रहने वाला था. विजय लाल उस का ममेरा भाई था.

अजय कुमार जब भी शिवली कस्बे से बीजखाद लेने आता था, मामा के घर जरूर जाता था. अजय कुमार शादीशुदा था और 2 बच्चों का बाप भी. उस की पत्नी अनपढ़ और सामान्य सी महिला थी, इसलिए वह उसे मन से नहीं चाहता था. अपनी पत्नी से उस की बिलकुल नहीं पटती थी.

शिववती ने अजय के आने पर पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब वह कामना की आग में झुलसने लगी तो उस ने अजय पर नजरें गड़ानी शुरू कर दीं. अब अजय जब भी घर आता, शिववती उसे चाहत भरी नजरों से देखती. उस से हंसीमजाक करती.

नशे और ग्लैमर का चक्रव्यूह

 

अजय पहले तो सकुचाया, क्योंकि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. लेकिन जब उस ने शिववती की आंखों में चाहत देखी तो उस ने भी कदम आगे बढ़ा दिए.

अजय का शिववती के घर कभीकभी ही आ पाता था. उस रोज वह कई दिनों बाद आया तो काफी रोमांटिक मूड में था. शिववती भाभी के लिए वह गिफ्ट में एक साड़ी ले कर आया था, लेकिन वह उसे घर में दिखाई नहीं दी. उस की बेचैन निगाहें शिववती को देखने को बेचैन थीं. अजय को घर में बैठे काफी देर हो गई थी. लेकिन उसे भाभी का दीदार नहीं हुआ था.

कुरसी पर बैठेबैठे वह पहलू बदलने लगा. तभी गुसलखाने की किवाड़ें खुलीं और शिववती बाहर निकली. भीगे तनबदन पर लपेटी हुई साड़ी शरीर से चिपकी पड़ी थी. ऐसे में देह के सारे कटाव और उभार साफ दिख रहे थे.

 

अजय हैरान नजरों से शिववती के हुस्न और शबाब को देखता रहा. अजय को देख शिववती अपनी हालत पर थोड़ी लजाई, फिर गीले बालों को पीछे झटकते हुए बोली, ‘‘अजय, तुम कब आए?’’

‘‘अभीअभी आया हूं भाभी.’’ अजय की निगाहें अनीता के बदन पर ही चिपकी हुई थीं. वह बोला, ‘‘विजय भैया नजर नहीं आ रहे, कहीं गए हैं?’’

‘‘हां, वह दुकान पर गए हैं. अब तो रात तक ही वापस लौटेंगे. तुम बैठो, मैं कपड़े बदल कर आती हूं.’’ शिववती ने कहा तो अजय बोल पड़ा, ‘‘भाभी, एक मिनट ठहरो.’’

उस ने अपने बैग से साड़ी का एक लिफाफा निकाला और उसे शिववती की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लो भाभी, यह मैं तुम्हारे लिए ही लाया हूं. कपड़े बदलने जा ही रही हो तो इसे ही पहन लो. मैं भी तो देखूं कि इस साड़ी में कैसी लगोगी.’’

शिववती ने साड़ी ली और मादक निगाहों के तीर चलाती हुई दूसरे कमरे में चली गई. कुछ देर बाद शिववती साड़ी पहन कर आई तो उस के हाथ में पानी का गिलास था. अजय ने पानी लिया और एक ही सांस में पी गया.

‘‘क्या बात है अजय, बहुत प्यासे नजर आ रहे हो.’’ शिववती ने चुहल की.

‘‘प्यासा था नहीं, पर अब प्यास जाग गई है.’’ अजय ने शिववती को गौर से देखा, ‘‘तुम पर साड़ी खूब फब रही है. अच्छी है न?’’

‘‘बहुत अच्छी है, तुम लाओ और अच्छी न हो, भला ऐसा हो सकता है?’’ शिववती मुसकराई.

 

यह देख कर कुरसी पर बैठा अजय खड़ा हो गया. वह शिववती की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘जानती हो भाभी, मैं यहां बारबार क्यों आता हूं.’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है, तुम हमारे रिश्तेदार हो, जब चाहे आ सकते हो.’’ शिववती मुसकराई.

‘‘सच कहा तुम ने. पर मुझे तुम्हारी चाहत खींच लाती है. मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं.’’ अजय ने एकाएक उस का हाथ पकड़ लिया. फिर उसे अपनी बांहों में भर लिया. इस से शिववती की सांसें धौंकनी की तरह चलने लगीं.

वह कसमसाई, ‘‘यह ठीक नहीं है अजय.’’

‘‘ठीक तब नहीं होगा भाभी, जब हम अपनी चाहतों को अधूरा छोड़ देंगे.’’ कह कर अजय ने अपने हाथों की हरकत बढ़ा दी.

आखिर शिववती ने अपनी आंखें बंद कर के खुद को अजय की बांहों में छोड़ दिया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस रोज शिववती ने वह सुख पा लिया, जो उसे पति से कभी नहीं मिला था. वह अजय की दीवानी हो गई.

उस दिन के बाद शिववती व अजय को जब भी मौका मिलता, वह मिलन कर लेते. जब विजय घर पर नहीं होता, तब अजय उस के ही कमरे में घुसा रहता. चूंकि अजय व शिववती करीबी रिश्ते में थे, इसलिए काफी दिनों तक गांव में किसी को उन के संबंधों पर शक नहीं हुआ. सब की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपनी मन की मुराद पूरी करते रहे.

खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी

शिववती अब पति के बजाए अजय के लिए शृंगार करने लगी. शिववती के व्यवहार में भी अब काफी बदलाव आ गया था. उस की चंचलता बढ़ गई थी और चेहरे पर लुनाई छाने लगी थी. उस का पति विजय इस बदलाव को महसूस कर रहा था, लेकिन उसे इस की वजह पता नहीं थी.

लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों से हकीकत छिपी न रह सकी. विजय की गैरमौजूदगी में अजय का बारबार उस के घर आना लोगों के मन में शक पैदा कर रहा था. एक रोज एक पड़ोसी ने विजय को टोक ही दिया. उसे सारी बात बताई तथा सलाह दी कि वह नौकरी के साथसाथ घरवाली का भी खयाल रखे.

पड़ोसी की बात सुन कर विजय का माथा ठनका. उस रोज उस का मन काम में नहीं लगा और शाम को जल्द घर आ गया. आते ही उस ने पत्नी से सीधा सवाल किया, ‘‘ये अजय यहां बारबार क्यों आता है?’’

‘‘तुम्हारा रिश्तेदार है. तुम ममेरे भाई हो, इसलिए आता है.’’ शिववती बोली.

‘‘लेकिन वह मेरी गैरमौजूदगी में क्यों आता है?’’

‘‘तुम सुबह काम पर चले जाते हो और रात को लौटते हो. यदि वह तुम्हारी गैरमौजूदगी में आता है तो क्या मैं उसे घर से निकाल दूं.’’

‘‘निकालो या कुछ भी करो, लेकिन वह मेरी गैरहाजिरी में घर नहीं आना चाहिए.’’ विजय ने गुस्से में कहा.

‘‘पर हुआ क्या है, यह तो बताओ. आप इतने खफा क्यों हो?’’ शिववती ने पूछा.

‘‘देखो शिववती, मोहल्ले वाले तुम्हारे बारे में तरहतरह की बातें कर रहे हैं. इस से हमारी बदनामी हो रही है. मैं नहीं चाहता कि आज के बाद अजय के मनहूस कदम इस घर में पड़ें.’’ विजय ने तेज आवाज में कहा.

तभी शिववती चीख कर बोली, ‘‘मैं कौन होती हूं उसे रोकने वाली. तुम खुद रोको.’’

पत्नी की इस बेहयाई पर विजय ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया, ‘‘बदचलन, अगर तू ही उसे मुंह नहीं लगाएगी तो वह कैसे आएगा?’’

 

पति का रौद्र रूप देख वह सकते में आ गई. अगले रोज जैसे ही विजय घर से काम पर जाने के लिए निकला, वैसे ही शिववती ने अजय को फोन मिलाया और उसे पूरी बात बता दी. अजय ने उसे दिलासा दी, ‘‘भाभी, तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. मैं हूं न.’’

‘‘नहीं अजय, मेरा दिल घबरा रहा है. हमारे रिश्तों की भनक विजय को लग गई है, इसलिए अब तुम यहां मत आना.’’

‘‘ऐसा मत कहो भाभी. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘अच्छा, ऐसी बात है तो कुछ दिन रह लो. फिर मैं कोई रास्ता निकालती हूं.’’

इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अजय शिववती से मिलने नहीं आया. लेकिन जब शिववती को अजय की याद सताने लगी तो उस ने फोन कर के अजय को देर रात अपने यहां आने को कहा.

अजय की लुधौरा गांव के पश्चिमी छोर पर रहने वाले रमेश सरस से दोस्ती थी. दोनों हमउम्र थे. अजय और शिववती के नाजायज रिश्ते की जानकारी उसे भी थी. शराब के लालच में रमेश अजय को रात में अपने यहां ठहरा लेता था. शिववती ने जब उसे बुलाया तो वह देर शाम लुधौरा बाघपुर गांव पहुंच गया. उस ने अपनी साइकिल दोस्त रमेश के घर खड़ी कर दी फिर शिववती से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

दिल्ली के लव कमांडो: हीरो नहीं विलेन

शिववती उसी का इंतजार कर रही थी. उस का पति थकाहारा आ कर खाना खाने के बाद कब का सो चुका था. अजय के आते ही शिववती उसे छत पर बने कमरे में ले गई. वहां दोनों मौजमस्ती में जुट गए.

इस के बाद अजय दोस्त के घर चला गया. विजय के सोने के बाद उस के घर में कौन आया, कौन गया, उसे पता नहीं चला. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. अजय सप्ताह में 1-2 बार शिववती से मिलने पहुंच जाता था.

गलत काम चाहे कितनी भी चालाकी से किया जाए, एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. एक रात विजय दोस्तों के साथ शराब पी कर नशे में धुत हो कर घर आया. ज्यादा नशे में होने की वजह से वह बिस्तर पर गिरा और सो गया.

संयोग से उस शाम अजय भी गांव में अपने दोस्त रमेश के यहां आया हुआ था. शिववती ने अजय को फोन कर के घर बुला लिया. नशे में धुत विजय को खर्राटे लेते देख कर अजय का मन मचल उठा. उस ने शिववती से कहा, ‘‘भाभी, आज तो भैया इतने नशे में हैं कि इन की आंखें सुबह होने से पहले नहीं खुलने वालीं.’’

‘‘तभी तो मैं ने तुम्हें बुलाया है.’’ शिववती बोली.

इस के बाद दोनों इत्मीनान से कामलीला में मग्न हो गए.

संयोग से तभी विजय को प्यास लगी तो उस की नींद टूट गई. उस ने देखा कि शिववती चारपाई पर नहीं है. वह पानी पीना भूल गया और पत्नी को ढूंढने लगा, वह नहीं मिली. दबेपांव विजय सीढि़यों से छत पर जा पहुंचा. वहां कमरे में शिववती को अजय की बांहों में समाया देखा तो विजय के तनबदन में आग लग गई. उस दिन उसे पत्नी की सच्चाई का प्रमाण मिल गया था.

 

तेज कदमों से वह उन दोनों के करीब पहुंचा. लेकिन दोनों कामक्रीड़ा में इतने तल्लीन थे कि उन्हें विजय के आने का आभास तक नहीं हुआ. विजय ने अजय के बाल पकड़ कर उसे झिंझोड़ा. अचानक हुए इस हमले से अजय सकते में आ गया. उस ने खुद को संभालते हुए अपने कपड़े उठाए और फटाफट पहन कर वहां से भाग खड़ा हुआ. पति के रौद्र रूप को देख कर एक कोने में सिमटी शिववती समझ चुकी थी कि आज उस की खैर नहीं.

उस रात विजय ने शिववती को रुई की तरह धुना. उस के बाद उस ने पत्नी पर तमाम पाबंदियां लगा दीं. शिववती का प्रेमी से मिलन बंद हुआ तो वह घुटघुट कर जीने लगी. अजय भी परेशान था. लेकिन दोनों को मिलन की कोई राह नहीं सूझ रही थी.

 

आखिर जब शिववती से रहा नहीं गया तो उस ने एक रोज हिम्मत जुटा कर फोन कर अजय को घर बुला लिया. अजय घर आया तो शिववती उस के सीने से लग कर सुबकने लगी, ‘‘अजय, अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. मुझे कहीं भगा कर ले चलो.’’

‘‘पागल तो नहीं हो गई हो. विजय भैया का क्या होगा, पता है?’’ वह बोला.

‘‘तुम्हारी खातिर मैं उसे भी छोड़ दूंगी.’’

‘‘पर वह तो तुम्हें नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘हां, तुम्हारी यह बात सच है.’’ शिववती कुछ देर गहन सोच में डूबी रही फिर बोली, ‘‘तो फिर ऐसा करो कि किसी बदमाश से सौदा कर के विजय को जान से मरवा दो. कम से कम रोजरोज की कलह से तो मुक्ति मिलेगी.’’

शिववती के इरादे जान कर अजय हक्काबक्का रह गया कि यह औरत है या डायन, जो अपने ही पति की हत्या कराने की बात कर रही है.

वह सोचने लगा कि जो औरत आज अपने पति को कत्ल कराने पर आमादा है, कल वह उसे भी मरवा सकती है. यानी यह वफादार और भरोसेमंद नहीं है. इसलिए उस ने शिववती का साथ छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी.

एक हत्या ऐसी भी

अजय ने किसी तरह शिववती को समझाया कि वह बावली न बने. वह कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा. समझाबुझा कर अजय चला गया. अजय न तो ममेरे भाई का कत्ल करना चाहता था और न ही अपनी पत्नीबच्चों से दूर जाना चाहता था. वह तो बस शिववती से शारीरिक सुख चाहता था. शिववती ने समस्या खड़ी कर दी तो वह इस समस्या से निजात पाने की सोचने लगा.

3 जनवरी, 2019 की रात 8 बजे विजय घर आया तो घर में उसे पत्नी नहीं दिखी. पड़ोसी के घर उस का बेटा मनीष बच्चों के साथ खेल रहा था. उस ने मनीष से पूछा तो उस ने बताया कि मम्मी जंगल गई है. विजय लाल का माथा ठनका. उस ने पत्नी की खोज शुरू की लेकिन शिववती का पता नहीं चला. सवेरा होतेहोते पूरे गांव में बात फैल गई कि शिववती घर से गायब है.

लुधौरा बाघपुर गांव के बाहर छिद्दू यादव का खेत था. इस में उस ने अरहर की फसल बोई थी. छिद्दू सुबह 10 बजे के करीब अपने खेत पर पहुंचा तो उस ने खेत में एक महिला की लाश देखी. वह लाश के पास गया तो उस ने शिववती को पहचान लिया. छिद्दू ने यह जानकारी गांव में दी तो लोग दौड़ पड़े.

विजय लाल भी वहां पहुंचा. लाश देखते ही विजय लाल फफक कर रो पड़ा. क्योंकि लाश उस की पत्नी शिववती की थी. गांव वालों ने पुलिस को सूचना दी.

हत्या की सूचना पाते ही शिवली कोतवाली निरीक्षक चंद्रशेखर दूबे ने एसआई ए.के. सिंह, आर.पी. राजपूत, कांस्टेबल राजेश, उमाशंकर तथा महिला सिपाही पूनम को साथ लिया और घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. इसी बीच उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी.

 

घटनास्थल कोतवाली से करीब 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस फोर्स को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जुटी थी. पुलिस को देखते ही भीड़ छंट गई. तब इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका गुलाबी रंग की साड़ी और उसी की मैचिंग का ब्लाउज पहने थी.

वह खूब शृंगार किए थी. उस के शरीर पर कोई जख्म नहीं था. ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या गला घोंट कर की गई हो. जोरजबरदस्ती किए जाने का कोई सबूत नहीं मिला.

इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (देहात) राधेश्याम विश्वकर्मा तथा सीओ अर्पित कपूर भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पति विजय लाल से हत्या के संबंध में पूछताछ की.

 

जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शिववती की लाश को पोस्टमार्टम हाउस माती भेज दिया. इस के बाद इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने विजय लाल की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. उन्होंने सब से पहले विजय लाल से ही पूछताछ की. उस ने बताया, ‘‘साहब, शिववती की हत्या संभरपुर गांव के रहने वाले अजय कुमार ने की है. वह हमारा रिश्तेदार है.’’

‘‘उस से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’ दूबे ने विजय को कुरेदा.

‘‘साहब, दुश्मनी नहीं है. अजय कुमार के मेरी पत्नी से नाजायज संबंध थे. मैं ने उसे रंगेहाथों पकड़ा था. इस के बाद उस के घर आने पर भी पाबंदी लगा दी थी.’’ उस ने बताया.

विजय से बात करने के बाद इंसपेक्टर दूबे को शिववती की हत्या का कारण समझने में देर नहीं लगी. उन्होंने अजय के गांव संभरपुर में छापा मारा, लेकिन वह घर से फरार था. अजय कुमार को पकड़ने के लिए पुलिस ने झींझक, रसूलाबाद, मैथा, भाऊपुर में उस के रिश्तेदारों के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह हाथ नहीं लगा.

फिर 7 जनवरी, 2019 को इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे को खास मुखबिर से जानकारी मिली कि हत्यारोपी अजय कुमार मैथा नहर पुल पर मौजूद है. इस सूचना पर दूबे अपनी पुलिस टीम के साथ मैथा नहर पुल पर पहुंचे. पुलिस जीप देखते ही अजय नहर की पटरी पर सरपट भागने लगा. पुलिस ने पीछा कर के उसे दबोच लिया. उसे थाना शिवली लाया गया.

सपनों के पीछे भागने का नतीजा

इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने जब अजय कुमार से शिववती की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गया. हत्या का जुर्म कबूलते हुए उस ने बताया कि विजय लाल उस के मामा का बेटा है. उस के घर आनेजाने पर विजय की पत्नी शिववती से उस के अवैध संबंध बन गए थे.

कुछ समय से शिववती उस पर शादी करने तथा घर से भाग जाने का दबाव बना रही थी. वह अपने पति विजय की हत्या भी कराना चाहती थी. लेकिन वह शादीशुदा तथा 2 बच्चों का बाप है, इसलिए यह सब करने के लिए तैयार नहीं हुआ.

जब शिववती ने उस पर दबाव बढ़ाया तो उस ने शिववती से छुटकारा पाने की योजना बना ली. घटना वाली शाम उस ने उसे गांव के बाहर मिलने को कहा. वह वहां पहुंचा तो शिववती उसे अरहर के खेत में ले गई. वह सजधज कर आई थी. उस ने उस पर दबाव बनाया कि वह उसे आज ही अपने साथ भगा कर ले चले.

उस ने शिववती को समझाना चाहा तो वह भड़क उठी. गुस्से में उस ने शिववती को दबोच लिया और उसी के शाल से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद फरार हो गया. जुर्म कबूलने के बाद अजय ने वह शाल भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने शिववती का गला घोंटा था.

8 जनवरी, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अजय कुमार को कानपुर देहात की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल माती भेज दिया गया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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