रात का तीसरा पहर था. जाहिर है इस वक्त नींद अपने चरम पर होती है. तभी अचानक गोली चलने की आवाज के साथ एक चीख उभरी. मुझे लगा जैसे गैस का सिलेंडर फट गया हो. लाइट जला कर मैं किचन की ओर भागा, वहां सबकुछ ठीकठाक था. तभी मेरी नजर अपने घर के सामने वाले मकान पर पड़ी, जो कैप्टन अनूप का था. वहां से किसी के रोने की आवाज आ रही थी.

देखतेदेखते आसपास के सारे लोग जाग गए थे. एकाध हिम्मत दिखा कर बाहर आया. अमूमन कालोनी के लोग एकदूसरे से दूरी बना कर रखते हैं. इसलिए लोग अपनेअपने हिसाब से अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे थे. जब मैं ने देखा कि एक पड़ोसी तहकीकात में लगा है तो मैं भी बाहर आ गया.

‘‘यह चीख कहां से उभरी?’’ मैं ने वहां मौजूद पड़ोसी से पूछा.

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा. मेरा खयाल है गोली की आवाज इसी घर से आई थी.’’

उन का भी वही अनुमान था, जो मेरा था. वह मकान कैप्टन अनूप का था. मेरी अनूप से ज्यादा बोलचाल नहीं थी. वैसे भी वह यहां कम ही रहता था. उस की फैशनेबल बीवी साधना भी कालोनी वालों से ज्यादा वास्ता नहीं रखती थी. वह अपने आप में ही खोई रहती थी.

अनूप ने इस मकान को 5 साल पहले खरीदा था. बाद में उसे तुड़वा कर आधुनिक शैली का बनवाया. घर में 2 बेटे उस की बूढ़ी मां व साधना के अलावा कोई नहीं था. बाकी नौकरचाकर कितने थे मुझे पता नहीं था. बड़ा बेटा 16 साल का था और छोटा 14 साल का.

उसी दौरान किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था, सो पुलिस आ गई. वहां मौजूद सभी लोग जानने के लिए उत्सुक थे कि आखिर गोली किसे लगी. मरा कौन और वजह क्या थी? तभी पुलिस वाले खून से लथपथ एक महिला को स्ट्रेचर पर लाद कर बाहर आए. जिसे वह अस्पताल ले गए. वह महिला कैप्टन अनूप की पत्नी साधना थी. पुलिस साधना के बड़े बेटे अर्नव से पूछताछ करने लगी.

‘‘क्या कोई अंदर आया था?’’ पुलिस इंस्पेक्टर ने पूछा.

‘‘मुझे नहीं मालूम. मैं सो रहा था.’’ अर्नव डरते हुए बोला

‘‘डरो मत. तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा. सचसच बता दो. पुलिस तुम्हारी मां के हत्यारे का जरूर पता लगा लेगी.’’अधेड़ पुलिस इंस्पेक्टर ने अर्नव को पुचकारा तो वह फफक कर रो पड़ा. उस के छोटे भाई का तो पहले से ही रोरो कर बुरा हाल था. वह दादी की गोद में बैठा था. खबर पा कर साधना का एक चचेरा देवर तेजबहादुर भागते हुए वहां आया. वह सरकारी विभाग के किसी ऊंचे ओहदे पर था.

‘‘अचानक यह सब कैसे हो गया?’’ तेज बहादुर ने हैरत से पूछा.

‘‘आप इस परिवार को जानते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने उस से पूछा.

‘‘सर, साधना मेरी भाभी थीं.’’ तेज बहादुर ने बताया, ‘‘मैं इस परिवार का स्थानीय गार्जियन हूं…’’ तेज बहादुर अपनी बात पूरी करते उस से पहले अस्पताल से खबर आ गई कि साधना की मौत हो गई. यह खबर सुन कर सब सदमे में आ गए. तेजबहादुर की आंखें भर आईं. अनूप उस समय लंदन में था. खबर मिली तो जल्दबाजी कर के वह भी घर लौट आया. अनूप भी नहीं समझ पाया कि साधना का कत्ल क्यों हुआ?

पुलिस ने अनूप से सवाल किया,‘‘आप को किसी पर शक है?’’

‘‘मैं यहां रहता ही कितना हूं, जो किसी पर शक करूं.’’ वह बोला.

‘‘हो सकता है किसी से पुश्तैनी जमीन जायदाद का झगड़ा हो?’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है.’’ अनूप बोला. तभी एक बूढ़ी महिला नजर आई. इंस्पेक्टर ने उस की तरफ इशारा कर के पूछा, ‘‘ये कौन हैं?’’

‘‘मेरी मां हैं.’’ अनूप ने जवाब दिया.

‘‘यहीं रहती हैं?’’

‘‘हां, मेरी गैरमौजूदगी में घर की देखभाल यही करती हैं.’’

‘‘तेजबहादुर कौन है, क्या यह आप की मरजी से यहां रहता है?’’ तेजबहादुर का नाम सुनते ही अनूप का चेहरा बन गया. जिसे इंस्पेक्टर की पारखी नजर ताड़ गई.

अनूप ने सफाई दी, ‘‘वह मेरा चचेरा भाई है. उसे इजाजत की क्या जरूरत है. अगर मेरे परिवार को रातबिरात डाक्टर या दवा की जरूरत हुई तो कौन ला कर देगा?’’

इंस्पेक्टर ने घर में मौजूद अनूप की मां से पूछा, ‘‘मांजी, साधना की दिनचर्या क्या थी?’’ जवाब देने की जगह वह सुबकने लगीं. वह उठ कर जाने लगीं. अनूप ने रोकने की कोशिश की मगर रुकी नहीं. इंस्पेक्टर को अटपटा लगा. कहां लोग हत्यारों की तलाश के लिए पुलिस की मदद करते हैं वही यहां कोई कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं था.

कम पढ़ेलिखे लोग ज्यादा दिमाग नहीं लगाते. इसलिए इंस्पेक्टर साधना की आया को थाने ले आए. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘तुम साधना के यहां कब से हो?’’

‘‘पिछले 2 सालों से.’’ वह सहमी हुई थी.

‘‘साधना के यहां कौनकौन आता था.’’ इस सवाल पर वह नजरें चुराने लगी. तभी इंस्पेक्टर ने अपना पुलिसिया रौब दिखाया तो वह असलियत पर आ गई.

‘‘ज्यादातर तेज साहब.’’ उस ने बताया.

‘‘उन के अलावा और कौनकौन आता था?’’

‘‘और लोग आते थे तो नीचे ड्राइंगरूम में बैठते थे. मेरा काम था उन्हें चायपानी देना. मैं उन्हें शायद ही पहचानूं.’’

‘‘तेज अंकल कब आते थे?’’

‘‘अकसर सुबह आते थे. कभीकभी रात में भी आ जाते थे.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चलता कि वे रात में भी आते थे?’’

‘‘मैं काम खत्म कर के रात 9 बजे के आसपास चली जाती हूं. उस समय उन्हें कई बार मेमसाहब के कमरे में आते देखती थी. मेमसाहब उन्हें देख कर खुश हो जाती थीं. उन्हें अपने बेडरूम में बिठातीं, वह बेडरूम जहां बिना पूछे उन के बेटों को भी जाने की इजाजत नहीं थी. कहती थीं यह उन का निजी कमरा है.’’

‘‘बच्चे कहां रहते थे?’’

‘‘उन का अलग कमरा है.’’

‘‘और उन की बूढ़ी सास?’’

‘‘उन का भी अपना अलग कमरा है.’’

यहां भले ही हाई सोसाइटी के लोग रहते थे, मगर अंदर से परिवार बिखरा हुआ था. पति शिप पर था. पत्नी की अलग दुनिया. बच्चों को हर सुखसुविधा दे कर साधना उन का मुंह बंद कराने की भरसक कोशिश करती. बातोंबातों में आया ने बताया कि एक नेपाली कुक भी है, जो मकान में ही बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था.

कुक लापता था. उस की तलाश जारी थी. साधना का हार गायब था, जिस की कीमत 5 लाख रुपए थी. तफ्तीश में पता चला कि कुक एक दिन पहले ही छुट्टी ले कर चला गया था. पुलिस पेशोपेश में पड़ गई. अब शक करे तो किस पर. पुलिस को साधना की मित्रमंडली पर भी शक था.

पुलिस ने उन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला वे सब की सब शहर के नामीगिरामी उच्चपदाधिकारियों की पत्नियां थीं. पूछताछ में पुलिस को उन से सुराग नहीं मिला. अलबत्ता पुलिस को यह जरूर पता चला कि तेजबहादुर और साधना ने साझे में एक जिम खोल रखा था.

वह शहर का मशहूर जिम था. साधना के उच्च संपर्कों के चलते वहां सिर्फ धनाढ्य लोगों की भीड़ रहती थी. पुलिस को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि जिम के पैसों को ले कर दोनों में विवाद बढ़ गया हो और बात हत्या तक जा पहुंची हो. इसलिए इंस्पेक्टर ने तेजबहादुर से पूछा, ‘‘जिम आप लोगों के साझे में था?’’

‘‘हां.’’ तेज ने जवाब दिया.

‘‘सालाना कितनी आमदनी हो जाती है?’’

‘‘इनकम टैक्स वालों से पूछो,’’ वह चिढ़ गया. जाहिर था वह ऐसी कोई निजी जानकारी साझा नहीं करना चाहता था.

‘‘वही बता दीजिए जो इनकम में दिखाते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘10 लाख.’’

‘‘आप का हिस्सा कितना था?’’

‘‘हिस्से को ले कर कोई समस्या नहीं थी. साधना मेरी भाभी थीं. वह जो हिसाब लगा कर देती थीं, वह मुझे मंजूर था.’’ कहने को तो तेज ने कह दिया मगर वह यह भूल गया कि शायद ही कोई हिसाबकिताब के मामले में कोताही बरतता हो. यदि बरतता है तो उस की कोई मजबूरी होगी.

इंस्पेक्टर के लिए यह पता लगाना बेहद जरूरी था कि तेजबहादुर की ऐसी क्या मजबूरी थी, जो वह पैसों के मामले में हुज्जत नहीं करता था. एकबारगी पुलिस को लगा कि हो न हो इस कत्ल के पीछे अनूप का हाथ हो? उस की चुप्पी यही साबित कर रही थी. इंस्पेक्टर ने उस से पूछा, ‘‘आप अपनी पत्नी के बारे में कुछ बताएंगे.’’

यह सुन कर अनूप के माथे पर बल पड़ गए. तभी इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘मसलन उन का बैकग्राउंड क्या था, आप लोगों के बीच सब ठीक चल रहा था न?’’

‘‘मैं ने उस से प्रेमविवाह किया था. वह मेरे एक सीनियर अधिकारी की बेटी थी.’’ अनूप ने बताया.

‘‘वह आजादखयाल की थीं. उन के तौरतरीकों को ले कर आप को कोई ऐतराज नहीं था?’’ इंस्पेक्टर ने अगला सवाल किया.

‘‘जी बिलकुल नहीं, घर में अकेले रह कर वह क्या करती. उस की एक मित्रमंडली थी, जिम था. वह अपना समय उन लोगों के बीच गुजारती थी.’’

‘‘महीनों बाद जब आप आते थे, तब उन का व्यवहार कैसा होता था?’’
‘‘सामान्य रहता था.’’

‘‘उम्र के इस पड़ाव पर आने के बाद भी उन का उन्मुक्त लिबास जैसे जींसटौप पहनना, घर में बच्चों से ज्यादा न घुलनामिलना, अपने निजी कमरे में बच्चों को बिना इजाजत न आने देना. इस से आप को नहीं लगता कि सब कुछ सामान्य नहीं था.’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘वह क्या पहनती थी क्या नहीं, इस से आप को कोई मतलब नहीं होना चाहिए. उस की पसंद और नापसंद पर जब मुझे कोई ऐतराज नहीं था तो आप को भी नहीं होना चाहिए.’’ अनूप उखड़ा.

‘‘अच्छा यह बताइए कि आप रिवौल्वर रखते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने प्रसंग बदला.

‘‘हां, मेरे पास लाइसेंसी रिवौल्वर है.’’ अनूप ने बताया.

‘‘क्या मैं उसे देख सकता हूं.’’

“क्यों नहीं.’’ अनूप ने अपने बड़े बेटे से अलमारी में रखा रिवौल्वर मंगा लिया.

इंस्पेक्टर रिवौल्वर को उलट पलट कर देखने लगे. उसी समय इंस्पेक्टर के मोबाइल पर थाने से फोन आया. उन्हें बताया गया कि साधना वाले केस से संबंधित एक शख्स को हिरासत में लिया गया है.

यह सुनते ही इंस्पेक्टर जीप ले कर थाने लौट गए. जब वह थाने पहुंचे तो उन्हें थाने में एक आदमी बैठा मिला. देखने से वह नेपाली लग रहा था. एक कांस्टेबल ने बताया कि यह वही नेपाली है जो साधना के यहां खाना बनाने का काम करता था. एसएसआई साहब इसे लखनऊ से ढूंढ़ कर लाए हैं.

‘‘मेम साहब के यहां कब से काम करते हो?’’ इंस्पेक्टर ने कुक से पूछा.

2 साल से साहब,’’ उस का जवाब था.

‘‘मेमसाहब कैसी महिला थीं? सचसच बताना नहीं तो तुम्हें ही खून के इल्जाम में जेल भेज दूंगा.’’ इंस्पेक्टर ने धौंस जमाई.

वह घबरा गया और बोला, ‘‘साहबजी, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं इस खून से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. घटना से एक दिन पहले मैं मेमसाहब से छुट्टी ले कर लखनऊ अपने रिश्तेदारों से मिलने गया था.’’

‘‘झूठ बोल रहे हो तुम. तुम ने 5 लाख के हीरे के हार के लिए मेमसाहब का कत्ल कर दिया.’’ इंस्पेक्टर उस पर गरजे.

‘‘हीरे, कौन से हीरे का हार साहब?’’ वह बोला, ‘‘मैं सच कह रहा हूं. मैं किसी हार के बारे में नहीं जानता. मेरा तो मेमसाहब के कमरे में घुसना भी मना था. मेरा काम था खाना बनाना. उन के कमरे में फूलमती ही नाश्तापानी ले जाती थी.’’

कुछ सोच कर इंस्पेक्टर ने आगे कहा, ‘‘चलो मान लेते हैं फिर यह बताओ कि कौन हो सकता है? तुम्हें किसी पर शक है?’’

डरतेडरते उस ने एक राज उगल कर सब को सकते में डाल दिया, ‘‘मेमसाहब का तेजबहादुर से चक्कर था. जब भी वह मेमसाहब से मिलने आते थे तो बहुत देर तक उन के कमरे में बैठ कर खुसुरफुसुर करते थे.’’

‘‘तुम ने उन्हें कभी आपत्तिजनक अवस्था में देखा था?’’

‘‘नहीं, पता नहीं दोनों बंद कमरे में अकेले क्या करते थे?’’

‘‘उस समय उन के बेटे कहां रहते थे.’’

‘‘साहबजी, वे तो सुबह ही स्कूल चले जाते थे. तेजबहादुर तभी आते थे जब बाबा लोग घर पर नहीं रहते थे.’’

नेपाली साधना के बच्चों को बाबा कहता था. इंस्पेक्टर ने सोचा कि मान भी लिया जाए कि दोनों में अवैध संबंध थे तो भी हत्या की वजह उन की समझ में नहीं आ रही. हो न हो इस हत्या के पीछे किसी और का हाथ हो.

वह दूसरे बिंदु से हत्या का कारण तलाशने लगे. क्या अनूप को अपनी बीवी के चालचलन की जानकारी नहीं थी? जरूर होगी क्योंकि उस की मां साधना के साथ रहती थी. वह जरूर बहू के चालचलन से उसे अवगत कराती होगी. हो सकता है अनूप ने ही भाड़े के हत्यारे से उस की हत्या करवा दी हो?

पत्नी की चरित्रहीनता भला कौन पति स्वीकारेगा. इंस्पेक्टर पुन: अनूप के पास पहुंच गए. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘कैप्टन साहब, तेज साहब का कितना दखल है आप के घर में यानी आप लोग उन पर कितना भरोसा करते थे?’’

अजीब सवाल करते हैं. कल को आप मेरे ही घर में मुझ से ही ऐसा सवाल करने लगेंगे.’’ अनूप को बुरा लगा. उस ने आगे कहा, ‘‘तेज मेरा चचेरा भाई है. वह इस घर का एक तरह से केयरटेकर था. मेरी गैरमौजूदगी में वही सब कुछ देखता था.’’

‘‘सब का मतलब क्या?’’

‘‘इमरजेंसी में जब भी मेरी मां या घर का कोई सदस्य उसे बुलाता था वह तुरंत आ जाता था.’’

‘‘वह इतने बड़े अधिकारी हैं, क्या उन्हें यह असम्मानजनक नहीं लगता था?’’

‘‘होगा अधिकारी अपने औफिस का. मगर हमारे लिए तो वह सिर्फ तेज था.’’

‘‘आप ने एक बार भी अपनी बीवी के हत्यारे के बारे में जानने की पहल नहीं की. न ही आप को कोई गरज है.’’

‘‘मैं भला क्यों नहीं जानना चाहूंगा. साधना मेरी बीवी थी. जब से वह गई है, मैं पूरी तरह से टूट चुका हूं. कौन पति नहीं चाहेगा कि उस की पत्नी के कातिल का पता चले.’’

‘‘आप मुझे सहयोग दीजिए. मैं आप की मां से कुछ पूछना चाहता हूं.’’ इंस्पेक्टर को लगा लोहा गरम है. अनूप ने मां को बुलाया. इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘‘मांजी रात क्या हुआ था?’’

सुन कर वह कहीं खो गईं. मानो उस रात की घटना उन की नजरों के सामने तैर गई हो. वह बोली,‘‘मैं सो रही थी तभी अचानक चीख की आवाज आई. मैं कुछ समझ पाती तभी अर्नव भागते हुए मेरे पास आया. बोला मां को किसी ने गोली मार दी है. इतना सुनते ही मैं घबरा कर उठी. साधना के कमरे में गई तो देखा वह बेसुध जमीन पर पड़ी थी.’’

‘‘किसी को आप ने भागते हुए देखा था?”

‘‘कहां से देखती अंधेरा था.’’ मां की बात सुन कर इंस्पेक्टर के दिमाग में आया कि पहला चश्मदीद व्यक्ति अर्नव ही है. कोई सुराग न मिलने पर इंस्पेक्टर ने अर्नव से पूछा तो उस का भी वही जवाब था. जब गोली के साथ चीख उभरी तब उस की नींद टूटी. मां के कमरे में भागते हुए पहुंचा तो वह दर्द से छटपटा रही थी. घबरा कर वह दादी के कमरे में आया.

‘‘तुम ने किसी को भागते हुए देखा?’’ इंस्पेक्टर ने अर्नव से दूसरा सवाल किया.

‘‘नहीं.’’

कोई जानकारी न मिलने पर वह थाने लौट आए. उन्हें भरोसा था कि साधना की सास ही कोई सुराग बता सकती है. मगर वह भी दिग्भ्रमित थीं. बहरहाल इंस्पेक्टर ने हार नहीं मानी. उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. उन्हें वह गोली भी मिल गई. जिस से साधना का जिस्म छलनी किया गया था. उन्होंने उस गोली को अच्छी तरह से देखा. कुछ सोच कर उन की बांछें खिल गईं. वह तुरंत अनूप के पास पहुंच गए. अनूप कहीं जाने की तैयारी कर रहा था.

‘‘कहां जा रहे हैं?’’ इंस्पेक्टर ने पूछा.

‘‘मुंबई.’’

‘‘इतनी जल्दी. मुझे आप से कुछ और जानकारियां चाहिए.’’

‘‘सब तो जान चुके हैं. अब क्या बाकी रह गया है. कितने दिन मैं यहां अपनी नौकरी छोड़ कर रहूंगा?’’

‘‘आज के बाद आप को परेशान नहीं करूंगा. क्या आप उस रिवौल्वर को दोबारा दिखा सकते हैं?’’

अनूप ने अर्नव को रिवौल्वर लाने के लिए कहा. रिवौल्वर देखने के बाद इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘यह वह रिवौल्वर नहीं है जिसे कुछ दिन पहले आप ने मुझे दिखाया था.’’

अनूप इस बार अपनी बात दोहराता रहा. अंत में जब कोई हल निकलता दिखाई नहीं दिया तब इंस्पेक्टर ने धमकी दी, ‘‘आप उस रिवौल्वर को नहीं दिखा रहे तो मैं यही समझूंगा कि हत्या में आप का ही हाथ है.’’

‘‘आप के पास सबूत क्या है?’’ अनूप बोला.

‘‘सबूत मिल चुका है.’’ सुन कर अनूप सिहर गया.

‘‘आप रिवौल्वर मुझे देते हैं या फिर…’’ इंस्पेक्टर की बात पूरी होने से पहले ही तेजबहादुर वहां आ गया. वह बोला, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, आप इन पर दबाव क्यों बना रहे हैं?’’

‘‘मैं दबाव नहीं बना रहा. मुझे सिर्फ वही रिवौल्वर चाहिए जिसे कुछ दिन पहले इन्होंने मुझे दिखाया था.’’

‘‘वह रिवौल्वर यही था.’’ तेज बहादुर बोला.

‘‘आप को कैसे पता?’’ इंस्पेक्टर का इतना कहना था कि वह बगलें झांकने लगा. इंस्पेक्टर को वह संदिग्ध लगा. संदिग्ध तो पहले से ही था मगर सरकारी अधिकारी होने के नाते बिना पर्याप्त सुबूत के उस पर हाथ डालना सही नहीं था.

‘‘इस का मतलब यह है कि आप दोनों को पता है कि असली रिवौल्वर कोई और है. देखिए, जितना जल्दी हो सच्चाई बता दीजिए वरना मुझे सख्ती करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.’’

अचानक अनूप ने अपनी जेब से रिवौल्वर निकाला. जब तक तेज बहादुर संभलता उस ने तड़ातड़ कई गोलियां उस के सीने में उतार दीं. इंस्पेक्टर ने तुरंत अनूप को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जब अनूप को ले जाने लगी तो उस का बेटा अर्नव फफकफफक कर रोने लगा, ‘‘पापा, हम दोनों भाइयों का अब क्या होगा?’’

‘‘बेटा तुम्हें जेल हो जाती तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाता. मुझे गर्व है कि तुम ने जो किया ठीक किया. तुम्हारी मां ने न केवल मेरे साथ बेवफाई की बल्कि अपने जवान होते बेटों को भी नहीं बख्शा. ऐसी औरत को तुम ने जो सबक सिखाया उस पर मुझे फख्र है. याद रखना दोनों कत्ल मैं ने ही किए हैं. इसे सिर्फ मैं और तुम ही जानते हैं. यह राज कभी मत खोलना.’’ अर्नव ने सिर हिला कर हामी भरी. क्षण भर में अच्छाखासा परिवार छिन्नभिन्न हो गया.

अब इंस्पेक्टर की समझ में सब कुछ आ चुका था. क्या नहीं था उस घर में. रुपयापैसा, आलीशान घर, लग्जरी कार, ऐशोआराम की सभी आधुनिक चीजें वहां थीं, जिन्हें पा कर कोई भी बच्चा निहाल हो जाता. आज के बच्चों को और क्या चाहिए? सारी भौतिकवादी सुविधाएं पाने वाली साधना के लिए सिर्फ रुपया ही सब कुछ नहीं था, उसे तेजबहादुर जैसे लोगों के साथ की भी जरूरत थी.

आजाद ख्याल की साधना को उस के बेटे ने जो दंड दिया था वह अकल्पनीय था. अर्नव को अपनी मां का चालचलन पसंद नहीं था. वह अच्छी तरह जानता था कि तेज का उस की मां से क्या संबंध था. अनूप आखिरी वक्त तक अर्नव को बचाने का प्रयास करता रहा. हार को गायब करने के पीछे अनूप का यही मकसद था. ताकि पुलिस अपनी तफ्तीश का रुख बदल दे.

मगर जब उसे आभास हो गया कि पुलिस के पास वह गोली है जिस का रिवौल्वर उस के पास है तब अनूप ने तेज को मारने का प्लान बनाया. ताकि दोनों कत्ल का जिम्मेदार उसे ठहराया जाए. वह अर्नव की जिंदगी बरबाद करना नहीं चाहता था.

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