रात का तीसरा पहर था. जाहिर है इस वक्त नींद अपने चरम पर होती है. तभी अचानक गोली चलने की आवाज के साथ एक चीख उभरी. मुझे लगा जैसे गैस का सिलेंडर फट गया हो. लाइट जला कर मैं किचन की ओर भागा, वहां सबकुछ ठीकठाक था. तभी मेरी नजर अपने घर के सामने वाले मकान पर पड़ी, जो कैप्टन अनूप का था. वहां से किसी के रोने की आवाज आ रही थी.
देखतेदेखते आसपास के सारे लोग जाग गए थे. एकाध हिम्मत दिखा कर बाहर आया. अमूमन कालोनी के लोग एकदूसरे से दूरी बना कर रखते हैं. इसलिए लोग अपनेअपने हिसाब से अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे थे. जब मैं ने देखा कि एक पड़ोसी तहकीकात में लगा है तो मैं भी बाहर आ गया.
‘‘यह चीख कहां से उभरी?’’ मैं ने वहां मौजूद पड़ोसी से पूछा.
‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा. मेरा खयाल है गोली की आवाज इसी घर से आई थी.’’
उन का भी वही अनुमान था, जो मेरा था. वह मकान कैप्टन अनूप का था. मेरी अनूप से ज्यादा बोलचाल नहीं थी. वैसे भी वह यहां कम ही रहता था. उस की फैशनेबल बीवी साधना भी कालोनी वालों से ज्यादा वास्ता नहीं रखती थी. वह अपने आप में ही खोई रहती थी.
अनूप ने इस मकान को 5 साल पहले खरीदा था. बाद में उसे तुड़वा कर आधुनिक शैली का बनवाया. घर में 2 बेटे उस की बूढ़ी मां व साधना के अलावा कोई नहीं था. बाकी नौकरचाकर कितने थे मुझे पता नहीं था. बड़ा बेटा 16 साल का था और छोटा 14 साल का.
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