उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सिंगरा थाना क्षेत्र में एक गांव है बड़गांव. कल्लू निषाद अपने
परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे रमेश, दिनेश, संतोष के अलावा एक बेटी थी उमा. कल्लू किसान था. खेती की आय से परिवार चलता था. समय बीतते कल्लू ने अपने सभी बच्चों की शादियां कर दीं. तीनों भाइयों ने पिता के रहते ही घर और खेती की जमीन का बंटवारा भी कर लिया. भाईबहनों में संतोष सब से छोटा था. उस का विवाह गुडि़या से हुआ था. गुडि़या के पिता रघुवीर निषाद गाजीपुर जिले के सुहावल गांव के रहने वाले थे. गुडि़या से शादी कर के संतोष बहुत खुश था.

कातिल बहन की आशिकी

बंटवारे के बाद संतोष के पास खेती की इतनी जमीन नहीं बची थी जिस से परिवार का गुजारा हो सके. फिर भी सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद चलती रही.
धीरेधीरे वक्त गुजरता गया और इस गुजरते वक्त के साथ गुडि़या एक बेटे कृष्णा और 2 बेटियों की मां बन गई. गुडि़या 3 बच्चों की मां भले ही बन गई थी, लेकिन उस की देहयष्टि से ऐसा लगता नहीं था.
वह पति को अकसर खेती के अलावा कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन संतोष खेतीकिसानी में ही खुश था. बाहर जा कर नौकरी करने की बात न मानने पर संतोष का पत्नी के साथ झगड़ा होता रहता था.

संतोष अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ दूसरों की जमीन भी बंटाई पर लेता था. तब कहीं जा कर परिवार का भरणपोषण हो पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती तो उस के पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचता था. इस सब के चलते जब संतोष पर कर्ज हो गया तो उस ने गांव छोड़ दिया.
संतोष ने अपने गांव के कुछ लोगों से सुन रखा था कि कानपुर उद्योग नगरी है और वहां नौकरी आसानी से मिल जाती है. संतोष भी नौकरी की तलाश में कानपुर शहर पहुंच गया. वहां कई दिनों तक भागदौड़ करने के बाद संतोष को पनकी स्थित एक रिक्शा कंपनी में काम मिल गया. वह रिक्शा कंपनी किराए पर रिक्शा भी चलवाती थी.

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