16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति ट्रंप से लेकर तमाम बड़े नेताओं को सुनाई खरी-खोटी

ग्रेटा ने बड़े तीखे शब्दों से विश्व के कई नेताओं पर इस त्रासदी से निपटने के लिए कुछ नहीं करने का भी आरोप लगाया. आपने हमें फेल कर दिया है. युवा पीढ़ी ये समझती है कि आपने हमसे धोका किया है. हम युवाओं की नजरें आप पर हैं और अगर आप लोगों ने हमें असफल किया तो हम आपको कभी भी माफ नहीं करेंगे.

आपको यहीं पर एक लाइन खींचनी होगी. दुनिया जाग चुकी है और चीजें अब बदल रही हैं..ये चाहे आपको पसंद हो या न हो.’ जानते  हैं ये भाषण किसका है. ये किसी देश के बड़े राजनेता का नहीं है न ही किसी मोटीवेशनल स्पीकर का है बल्कि ये कहना है 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग का. जोकि स्वीडन की पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं.

यूएन में आयोजित क्लाइमेट एक्शन समिट में दुनिया भर के नेताओं को फटकार लगाई. यूएन महासचिव गुतारेस के सामने दी गई ग्रेटा की स्पीच अब वायरल हो रही है और उनके सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. इस स्पीच के अलावा ग्रेटा थनबर्ग की एक तस्वीर भी वायरल हो रही है. क्लाइमेट एक्शन समिट में पहुंचे ट्रंप के पीछे खड़ी ग्रेटा जिस निगाह से ट्रंप को देख रही हैं वो लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. ग्रेटा की आंखों में नाराजगी साफ नजर आ रही है.

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ग्रेटा ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और इस आंदोलन को ‘Friday for future’ नाम दिया है. ग्रेटा कौन हैं, स्कूल जाने की उम्र में धरती बचाने का जिम्मा उठाने की प्रेरणा कहां से मिली, आइए ये सब जानते हैं.

10वीं क्लास की छात्रा ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 2003 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था. मां मलेना अर्नमैन स्वीडन की मशहूर ओपेरा सिंगर और पिता स्वांते थनबर्ग एक्टर हैं.‘Charity begins at home’ वाली कहावत से प्रभावित ग्रेटा ने पर्यावरण बचाने की शुरुआत अपने घर से की.

इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने माता पिता को लाइफ स्टाइल बदलने के लिए मनाया. पूरे परिवार ने नॉनवेज खाना छोड़ दिया और जानवरों के अंगों से बनी चीजों का इस्तेमाल बंद कर दिया. कार्बन उत्सर्जन जिन चीजों से होता है उन सब चीजों का इस्तेमाल सीमित कर दिया.

9 सितंबर 2018 को स्वीडन में आम चुनाव होने वाले थे. उससे पहले ही स्वीडन के जंगलों में आग लगी हुई थी और 262 सालों की सबसे भीषण गर्मी पड़ रही थी. ग्रेटा 9वीं क्लास में थीं और फैसला किया कि जब तक चुनाव नहीं निपट जाते, वो स्कूल नहीं जाएंगी.

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क्लाइमेट चेंज के खिलाफ ग्रेटा ने 20 अगस्त 2018 यानी आम चुनाव से पहले मोर्चा खोल दिया. सरकार के खिलाफ स्वीडन की संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. तीन हफ्ते तक प्रदर्शन करते हुए ग्रेटा ने पर्चियां बांटीं जिन पर लिखा होता था ‘मैं इसलिए ये कर रही हूं क्योंकि आप अडल्ट लोग मेरे भविष्य से खेल रहे हो.’ उस वक्त भी उनकी एक तस्वीर वायरल हुई थी.

ग्रेटा ने जमीन पर प्रदर्शन करते हुए सोशल मीडिया की ताकत को पहचाना और उसे अपना हथियार बनाया. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर अपने प्रोटेस्ट की तस्वीरें शेयर करके लोगों को इस मुहिम से जोड़ा. उन्हें कम समय में भारी समर्थन मिला.

फरवरी 2019 में ग्रेटा को वैश्विक पहचान तब मिली जब 224 शिक्षाविदों ने उनके समर्थन में एक ओपन लेटर पर साइन किए. पिछले महीने अमेरिका पहुंची ग्रेटा से एक रिपोर्टर ने पूछा कि क्या वो ट्रंप से मिलने वाली हैं? इस पर उन्होंने कहा कि जब ट्रंप मेरी बातों को सुनने वाले नहीं हैं तो उनसे मिलकर मैं अपना समय क्यों बरबाद करूंगी?डॉनल्ड ट्रंप ने ग्रेटा की स्पीच पर रिएक्शन दिया है. ट्वीट करते हुए ट्रंप ने लिखा ‘वह हैप्पी यंग गर्ल नजर आ रही है, जो उज्ज्वल और अद्भुत भविष्य की तलाश में है. देख कर अच्छा लगा.’ इस व्यंग्यात्मक कमेंट पर भी लोगों ने ट्रंप को आड़े हाथों लिया है.

Video Credit – Sky News

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मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कबड्डी

कबड्डी का खेल बड़ा ही दिलचस्प होता है. इस में कौन किस की टांग लाइन तक खींच रहा है, इस का सटीक अंदाजा तो कई बार रैफरी भी लगाने में गच्चा खा जाता है, तो मैदान से दूर खड़े दर्शकों की बिसात ही क्या, जो धूल फांकते किसी के आउट होने या पकड़े जाने पर तालियां पीटते रहते हैं.

आधी दौड़ और आधी कुश्ती के मिश्रण वाले इस देहाती खेल को मध्य प्रदेश के बड़ेबड़े कांग्रेसी इन दिनों पूरे दिलोदिमाग से खेल रहे हैं और जनता आंखें मिचमिचाते हुए इंतजार कर रही है कि कोई फैसला हो तो घर को जाए.

वैसे, नियमों और कायदेकानूनों के हिसाब से तो कबड्डी में 2 ही टीमें होनी चाहिए, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस का हाल जरा सा अलग है. यहां कांग्रेस की 3 टीमें एकदूसरे से भिड़ रही हैं और उस से भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि कौन सा खिलाड़ी किस टीम से खेल रहा है, इस का अतापता भी किसी को नहीं है. फिर यह तय कर पाना तो और भी मुश्किल काम है कि कौन किस की टांग खींच रहा है.

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लेकिन, इन तमाम गफलतों के बाद भी खेल जारी है और राह चलते लोग तमाशा देखते ताजा गड्ढों में गिर रहे हैं. मनोरंजन का कोई दूसरा साधन उन के पास है भी नहीं, क्योंकि अघोषित बिजली कटौती के चलते घरों में टैलीविजन बंद पड़े हैं और पत्नियां भी अंबानी के ‘जियो’ की कृपा से मायके वालों और सहेलियों से चैटिंग करने में बिजी हैं.

इन तीनों टीमों में से पहली टीम के कैप्टन घोषित मुख्यमंत्री और विधायक दल द्वारा पूरे विधिविधान से चुने गए कमलनाथ हैं, वहीं दूसरी टीम की कैप्टनशिप मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह के पास है, जो घोषित तौर पर कांग्रेस विधायक दल द्वारा न चुने गए मुख्यमंत्री हैं और तीसरी टीम के उस्ताद चिकनेचुपड़े चेहरे वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं जो घोषित टीम के कैप्टन बनतेबनते रह गए थे, लेकिन लाइन में अभी भी लगे हैं, पर दिक्कत यह है कि न कोई छींक रहा है और न कोई छीका टूट रहा है.

सियासी उठापटक के लिए पहचाने जाने वाले दिग्विजय सिंह ने कुछ दिन पहले मंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी थी, जिस में उन के द्वारा तबादलों के लिए की गई सिफारिशों पर कार्यवाही का हिसाब मांगा गया था.

इस धोबीपछाड़ दांव से कई मंत्री सही में घबरा उठे थे कि क्या जवाब दें. और मूल सवाल कहीं हिस्साबांटी का तो नहीं कि अच्छा, सारा का सारा खुद ही हजम कर गए और जिन मुलाजिमों और अफसरों से हम ने पेशगी ले रखी है, उन की फाइलें दबा गए.

अब सच जो भी हो, चिट्ठी का वाजिब असर हुआ और उन की टीम के मंत्री ब्योरा ले कर उन के बंगले पर पहुंच गए और एनओसी हासिल कर ली.

टीम नंबर 1 और टीम नंबर 3 के मंत्री यह कहते हुए बिदक गए कि आप होते कौन हैं हम से हिसाब मांगने वाले… एक युवा खिलाड़ी उमर सिंघार ने तो सीधे सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख डाली कि टीम नंबर 2 के कैप्टन बेवजह टीम नंबर 1 यानी असली टीम के मुखिया बनने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें जनता यानी दर्शकों ने तकरीबन 15 साल पहले ही फाउल पर फाउल करने के चलते खेल से बाहर कर दिया था.

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चूंकि वे पकड़े जाने से बचने के लिए बदन पर सरसों का तेल लगाए रहते हैं, इसलिए उन के खिलाफ ऐक्शन लिया जाए, जिस से असली टीम बेहिचक खेल कर जनता का मनोरंजन कर सके. आखिर विधानसभा की 114 सीटें कबड्डी खेलने के लिए ही तो मिली हैं, नहीं तो जनता का टाइम पास कैसे होगा.

जैसा कि पुराना व पुश्तैनी कांग्रेसी रिवाज है, राष्ट्रीय टीम की अध्यक्ष जिन्हें पहले से ही स्कोर और नतीजा मालूम था, चुप रहीं और चश्मा पोंछते हुए कंप्यूटर स्क्रीन पर अपने ‘स्वाभिमान

से संविधान यात्रा’ वाले प्रोजैक्ट का गुणाभाग लगाते हुए उस का रूट देखते हुए सोचती रहीं कि इन 3 राज्यों से कब, क्यों और कैसे कांग्रेस की जड़ें उखड़ी थीं और क्या अब भी ऐसा कोई टोटका है, जिसे आजमा कर नवहिंदुत्व का चक्रव्यूह बेधा जा सके.

अपने अभिमन्यु ने तो कुरुक्षेत्र छोड़ दिया है, लेकिन वे नहीं छोड़ सकतीं क्योंकि तेजी से देशभर के दलितों को हिंदू बना कर छला जा रहा है और यहां ये आपस में ही लड़ेमरे जा रहे हैं. जिन्हें अपने प्रदेश की परवाह नहीं, वे देश की परवाह क्या खाक करेंगे.

इस अनदेखी से भले ही तीनों टीमों के कप्तानों को ज्ञान प्राप्त हो गया है कि आलाकमान तो पहले से ही दुखी है, उसे और दुखी करना बेवकूफी की हद ही होगी.

लिहाजा, अब कबड्डी धीरेधीरे खेली जाए और लाइन छू कर वापस आ जाने का स्टाइल अपनाया जाए, क्योंकि बात अगर बढ़ी तो अब दूर तलक नहीं जा पाएगी और जनता बजाय तालियां पीटने के मुक्के मारने लगेगी. फिर सालोंसाल तक कबड्डी खेलने के लिए सत्ता का मैदान सपनों में भी नहीं मिलेगा, इसलिए बेहतरी इसी में है कि तीनों टीमों के कैप्टन पैवेलियन वापस लौट कर पंजा लड़ा कर मसला हल कर लें.

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चालान का डर

छोटेछोटे गुनाहों पर भारी रकम वसूल करना आज किसी भी कोने में खड़े वरदीधारी के लिए वैसा ही आसान हो गया है जैसा पहले सूनी राहों में ठगों और डकैतों के लिए हुआ करता था.

ट्रैफिक को सुधारने की जरूरत है, इस में शक नहीं है पर ट्रैफिक सुधारने के नाम पर कागजों की भरमार करना और किसी को भी जब चाहे पकड़ लेना एक आपातकाल का खौफ पैदा करना है. नियमकानून बनने चाहिए क्योंकि देश की सड़कों पर बेतहाशा अंधाधुंध टेढ़ीमेढ़ी गाडि़यां चलाने वालों ने अपना पैदायशी हक मान रखा था पर जिस तरह का जुर्माना लगाया गया है वह असल में उसी सोच का नतीजा है जिस में बिल्ली को मारने पर सोने की बिल्ली ब्राह्मण को दान में देने तक का विधान है.

ट्रैफिक कानून को सख्ती से लागू करना जरूरी था पर इस में फाइन बढ़ाना जरूरी नहीं. पहले भी जो जुर्माने थे वे कम नहीं थे और यदि उन्हें लागू किया जाता तो उन से ट्रैफिक संभाला जा सकता था, पर लगता है नीयत कुछ और है. नीयत यह है कि हर पुलिस कौंस्टेबल एक डर पैदा कर दे ताकि उस के मारफत घरघर में सरकार के बारे में खौफ का माहौल पैदा किया जा सके. यह साजिश का हिस्सा है.

इस की एक दूरगामी साजिश यह भी है कि ट्रक, टैंपो, आटो, टैक्सी, ट्रैक्टर, बस ड्राइवरों को इस तरह गरीब रखा जाए कि वे कभी न तो चार पैसे जमा कर सकें और न ही अपनी खुद की गाडि़यों के मालिक बन सकें. उन्हें आधा भूखा रखना ऐसे ही जरूरी है जैसे सदियों तक देश के कारीगरों को साल में 2 बार अनाज और कपड़े ही वेतन के बदले दिए जाते थे.

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पहले भी गाड़ीवानों, ठेला चलाने वालों, तांगा चलाने वालों, घोड़े वालों को बस इतना मिलता था कि वे घोड़े पाल सकें. मालिक तो कोई और ही होते थे. ये जुर्माने इतने ज्यादा हैं कि अगर सख्ती से लागू किए गए तो देश फिर पौराणिक युग में पहुंच जाएगा. यह गाज आम शहरी पर कम, उन पर ज्यादा पड़ेगी जो दिन में 10-12 घंटे गाडि़यां चलाते हैं.

आजकल इन कमर्शियल ड्राइवरों के लिए गाड़ी चलाते हुए मोबाइल पर बात करना जरूरी हो गया है ताकि ग्राहक मिलते रहें. ट्रैफिक फाइन ज्यादातर उन्हीं से वसूले जाएंगे या फिर हफ्ता चालू कर दिया जाएगा जैसा शराब के ठेकों, वेश्याओं के कोठों, जुआघरों में होता है. एक इज्जत का काम सरकार ने बड़ी चालाकी से अपराध बना दिया है ताकि एक पूरी सेवादायी कौम को गुलाम बना कर रखा जा सके. यही तो हमारे पुराणों में कहा गया है.

दलितों की अनसुनी

देश का दलित समुदाय आजकल होहल्ला तो मचा रहा है कि उस के हकों पर डाके डालने की तैयारी हो रही है पर यह हल्ला सामने नहीं आ रहा क्योंकि न अखबार, न टीवी और न सोशल मीडिया उन की बातों को कोई भाव दे रहे हैं. दलितों में जो थोड़े पढ़ेलिखे हैं वे देख रहे हैं कि देश किस तरफ जा रहा है पर अपनी कमजोरी की वजह से वे वैसे ही कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे जैसे अमेरिका के काले नहीं कर पा रहे जिन्हें ज्यादातर गोरे आज भी गुलामों की गुलाम सरीखी संतानें मानते हैं. दलितों का हल्ला अनसुना करा जा रहा है.

1947 के बाद कम्यूनिस्ट या समाजवादी सोच के दलितों को थोड़ी जगह देनी शुरू की थी क्योंकि तब गिनती में ज्यादा होने के बावजूद उन का कोई वजूद नहीं था. धीरेधीरे आरक्षण के कारण उन्हें कुछ जगह मिलने लगी तो ऊंची जातियों को एहसास हुआ कि सदियों से जो सामाजिक तौरतरीका बनाया गया है वह हाथ से निकल रहा है.

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उन्होंने मंडल कमीशन लागू करवा कर पिछड़ों को उन गरीब दलितों से अलग किया जो पहले जातिभेद के बावजूद साथ गरीबी में रहते थे और फिर इन पिछड़ों को भगवाई रस पिला कर अपनी ओर मिला लिया. यह काम बड़ी चतुराई और चुपचाप किया गया. लाखों ऊंची जातियों के कर्मठ और अपना पैसा लगाने वाले अलग काम करते हुए, अलग पार्टियों में रहते हुए धीरेधीरे उस समाज की सोच फिर से थोपने लगे जिस में खाइयां सिर्फ गरीबअमीर की नहीं हैं, जाति और वह भी जो जन्म से मिली है और पिछले जन्मों के कर्म का फल है, चौड़ी होने लगीं.

मजे की बात है कि दलितों और पिछड़ों ने इन खाइयों को बचाव का रास्ता मान लिया और खुद गहरी करनी शुरू कर दीं. आज इस का नतीजा देखा जा सकता है कि मायावती को भारतीय जनता पार्टी के पाले में बैठने को मजबूर होना पड़ रहा है और सभी पार्टियों के ऊंची जातियों के लोग बराबरी, आजादी, मेहनत वगैरह के हकों की जगह धर्म का नाम ले कर बहुतों की आवाज दबाने में अभी तो सफल हो रहे हैं.

जातिगत भेदभाव का सब से बड़ा नुकसान यह है कि उस से वे ताकतवर हो जाते हैं जो करतेधरते कम हैं और वे अधपढ़े आलसी हो जाते हैं जिन पर देश बनाने का जिम्मा है. हमारे समाज में खेती, मजदूरी, सेना, कारीगरी हमेशा उन हाथों में रही है जिन के पास न पढ़ाई है, न हक है. आज की तकनीक का युग हर हाथ को पढ़ालिखा मांगता है और जो पढ़ालिखा होगा वह हक भी मांगेगा. दलितों की आवाज दबा कर ऊंची जातियां खुश हो लें पर इस खमियाजा देश को भुगतना होगा. देश के किसान, मजदूर, कारीगर, सैनिक, छोटे काम करने वाले बहुत दिन चुप नहीं रहेंगे. वे या तो देश की जड़ें खोखली कर देंगे या कुछ करने के लिए खुल्लमखुल्ला बाहर आ जाएंगे.

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नहीं रहे ‘शोले’ के ‘कालिया’, 300 से ज्यादा फिल्मों में किया था काम

अपनी एक्टिंग के टैलेंट से पहचान बनाने वाले मराठी एक्टर विजू खोटे का आज निधन हो गया है. 77 साल के विजू खोटे ने बौलीवुड इंडस्ट्री में अपने डायलौग डिलीवरी सबका दिल जीत लिया था. विजू अब तक 300 से भी ज्यादा फिल्मों के साथ टेलीविजन में भी कई सीरियल्स में बेहतरीन किरदार निभा चुके थे.

विजू खोटे के सबसे पौपुलर डायलौग हैं, – अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की फिल्म ‘शोले’ से “सरदार मैने आपका नमक खाया है”, आमिर खान और सलमान खान की फिल्म ‘अंदाज अपना अपना’ में रोबर्ट के किरदार में “गल्ति से मिस्टेक हो गया”, और भी काफी सारे डायलौग्स से विजू खोटे दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहे थे.

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इतना ही नहीं बल्कि 90’s के सबसे पौपुलर सीरियल ‘जबान संभाल के’ जो कि एक ब्रीटिश सीरियल ‘माइंड योर लैंग्वेज’ का इंडियन वर्जन था उसमें भी विजू खोटे ने करोडों लोगों को एंटरटेन कर अपनी एक अलग पहचान बनाई खी. भले ही इस सीरियल में पंकज कपूर लीड रोल निभा रहे थे लेकिन फिर भी लोगों ने विजू खोटे के किरदार को ज्यादा पसंद किया था.

विजू खोटे के किरदार इतने लोकप्रिय रहे थे कि लोग उन्हें उनके किरदारों के नाम से ही जानने लग गए थे. बल्कि आज भी लोग उन्हे ‘कालिया’ जो कि फिल्म ‘शोले’ में उनका नाम था और ‘रोबर्ट’ के नाम से ही जानते हैं.

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बता दें, विजू खोटे ने फिल्म ‘गोलमाल 3’, ‘अतिथी तुम कब जाओगे’, ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’, में अहम किरदार निभाए हैं और उन्हें आखिरी बार फिल्म ‘जाने क्यों दे यारों’ में देखा गया था. उनके निधन से ना ही बौलिवुड इंडस्ट्री को सदमा लगा है बल्कि मराठी इंडस्ट्री को भी काफी दुख पहुंचा है.

चांदनी सिंह की फिल्म ‘‘बंसी बिरजू’’ की शूटिंग का वीडियो वायरल

‘‘यूट्यूब’ की सनसनी और भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री चांदनी सिंह जब भी कोई नयी फिल्म साईन करती हैं, वह अपने आप चर्चा का विषय बन जाता है. इन दिनों चांदनी सिंह अपनी नई फिल्म ‘‘बंसी बिरजू’’ को लेकर सोशल मीडिया पर छायी हुई हैं.

उन्होने इस फिल्म की शूटिंग भी शुरू कर दी है. इन दिनों सोशल मीडिया पर चांदनी सिंह का एक वीडियो जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें वह परवेश लाल यादव के साथ डांस करती नजर आ रही हैं. चांदनी सिंह प्रोफेशनल डांसर की तरह अपने डांस मूव्स दिखा रही हैं, जो कि फिल्म ‘‘बंसी बिरजू’’ के एक गाने के फिल्मांकन के दौरान का है. इस गाने का नृत्य निर्देशन कानू मुखर्जी ने किया है. इस फिल्म का निर्माण वर्ल्ड वाईड के रत्नाकर कुमार कर रहे हैं, जबकि निर्देशक हैं अजय कुमार झा.

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इस फिल्म में चांदनी सिंह के साथ परवेशलाल यादव की जोड़ी है. फिल्म की शूटिंग इन दिनों नयी मुंबई के खारघर में चल रही है. चांदनी सिंह, रत्नाकर कुमार की जमकर तारीफ करते हुए कहती हैं- ‘‘वह हमेशा सेट पर कलाकारों का ध्यान रखते हैं.’’ इस फिल्म में परवेशलाल यादव, आदित्य ओझा, चांदनी सिंह की मुख्य भुमिका है.

बता दें, चांदनी सिंह ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत भोजपुरी सुपरस्टार अरविंद अकेला कल्लू के साथ फिल्म मैं नागिन तू सपेरा से की थी और उन्होनें कई म्यूजिक वीडियो में भी बेहतरीन काम किया है और अपने टैलेंट के दम पर उन्होने बहुत ही जल्द अपनी खुद की काफी अच्छी फैन फौलोविंग हासिल कर ली है. इसी के साथ वे सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं और अपने फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं.

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‘‘किसिंग सीन करने से परहेज नहीं’’- करिश्मा शर्मा

‘प्यार का पंचनामा 2,’ ‘होटल मिलन’ व ‘फंसते फंसाते’ फिल्मों के अलावा करिश्मा कई वैब सीरीज व म्यूजिक वीडियो में भी नजर आ चुकी हैं.

करिश्मा शर्मा हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘सुपर 30’ के एक गाने में रितिक रोशन के साथ डांस करते हुए नजर आईं. पर इस मुकाम तक वे कठिन संघर्ष करते हुए पहुंची हैं.

क्या आप की परवरिश कला के माहौल में हुई है?

ऐसा नहीं है. मैं पटना की रहने वाली हूं. मेरे पापा बैंक मैनेजर हैं. मैं ने कौन्वैंट स्कूल में पढ़ाई की. जब मैं 8वीं कक्षा में थी, तो मुझे पुणे में अपनी मौसी के पास आ कर रहना पड़ा. मैं ने पुणे के सिंबायोसिस से बीबीए किया. सिंबायोसिस में मीडिया व फैशन डिजाइनिंग की भी पढ़ाई होती है. वहीं पर मैं ने रैंप पर चलना शुरू किया. उस के बाद मुंबई आ कर बीएमडब्लू के साथ मैं ने इंटर्नशिप की. लेकिन 3 महीने बाद मुझे एहसास हुआ कि यह नौकरी मेरे बस की बात नहीं है. तब मैं ने नौकरी छोड़ कर अभिनय के लिए कोशिश करनी शुरू कर दी. मैं ने काफी औडिशन दिए. निखिल आडवाणी के साथ मैं ने बतौर सहायक भी काम किया. एकता कपूर निर्मित सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ में प्रिया का किरदार निभाते हुए मैं ने अभिनय कैरियर की शुरुआत की.

सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ में काम कैसे मिला था?

एकता कपूर को मेरा चेहरा पसंद आ गया. उन्होंने मुझे बुलाया. औडिशन देने के बाद मुझे इस में पिया का किरदार निभाने के लिए चुना गया. इस में मुझे अच्छी शोहरत मिली, जिस के चलते मुझे फिल्म ‘प्यार का पंचनामा 2’ में अभिनय करने का मौका मिला. इस के बाद मैं ने कुछ फिल्में मेन लीड में भी कीं. पर जब मैं ने वैब सीरीज ‘रागिनी एमएमएस रिटर्न’ की तो मुझे जरूरत से ज्यादा शोहरत मिली. इस वैब सीरीज में अभिनय करते वक्त मुझे एहसास हुआ कि मुझे अभिनय की ट्रेनिंग लेनी चाहिए.

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तो आप ने अभिनय की ट्रेनिंग ली?

जी हां, ‘रागिनी एमएमएस’ करते समय मेरी समझ में आया कि लोग न्यूयौर्क फिल्म अकादमी या दूसरे इंस्टिट्यूट में क्यों जाते हैं. मैं तो हर नए कलाकार को सलाह देती हूं कि वह अभिनय की ट्रेनिंग ले कर ही बौलीवुड से जुड़े. सिर्फ सुंदर चेहरा है, इसलिए आप काम पा जाएंगे, ऐसा न समझें. यदि आप के पास अभिनय की ट्रेनिंग के लिए पैसा नहीं है, तो कम से कम थिएटर ही करें. अभिनय की ट्रेनिंग लेने से आप को अपने अंदर की अच्छाइयां व कमियां पता चल जाती हैं.

क्या आप को किसी बात का रिग्रैट है?

मुझे किसी बात का कोई रिग्रैट या गम नहीं है. जब मैं ने ‘रागिनी एमएमएस रिटर्न’ किया था तो कई लोगों ने मुझे इसे करने से मना किया था. पर मैं ने किया. लोगों ने कहा था कि जब तुम्हें अलग तरह के किरदार करने हैं तो ‘रागिनी एमएमएस रिटर्न’ में बोल्ड किरदार न निभाओ. पर उस वक्त मेरी जो समझ थी, मेरी जो संजीदगी थी, उस के अनुसार मुझे इसे करने में कोई बुराई नजर नहीं आई. जब तक आप की फिल्म बौक्सऔफिस पर हिट न हो जाए तब तक कोई आप के नाम पर पैसा नहीं लगाता. फिल्म बनाने में करोड़ों रुपए लगते हैं. अब जब कलाकार के तौर पर मेरी इमेज बन गई है, एक पहचान बन गई है तो अब मुझे अलग तरह के किरदार निभाने हैं.

जब आप ने ‘रागिनी एमएमएस रिटर्न’ में बोल्ड किरदार निभाया था, उस वक्त आप की क्या सोच थी?

उस वक्त जब मैं ने किरदार पढ़ा था तब मुझे लगा था कि यह तो एक कालेज में पढ़ने वाली लड़की की यात्रा है. कालेज में उस के तमाम दोस्त हैं. कुछ दोस्तों से उस के झगड़े हैं और एक साथी को वह ऐसे लड़कों से बचाती है. उसे एक लड़के से प्यार भी है. पूरी वैब सीरीज में उस के अपने प्रेमी के साथ रिश्ते को ले कर सिर्फ 2 दृश्य हैं जोकि मुझे बहुत और्गेनिक लगे. मुझे उन दोनों दृश्यों में हौआ वाली कोई बात नहीं लगी.

भविष्य में बोल्ड किरदार करने से आप को परहेज नहीं होगा?

भविष्य में भी यदि किसी फिल्म में स्क्रिप्ट की मांग के अनुसार किसिंग सीन होंगे तो मुझे करने में परहेज नहीं होगा. लेकिन सबकुछ खुल कर नहीं करना चाहूंगी, कुछ तो मैं ने सीमाएं बना रखी हैं.

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आप फिल्म ‘सुपर 30’ में सिर्फ एक गाने में नजर आईं?

डांस में महारत रखने वाले रितिक रोशन के साथ काम करने का अवसर नहीं गंवाना चाहती थी. उन के साथ एक गाना कर के भी मुझे पहचान मिली. फिर मेरा मकसद अपनी अभिनय प्रतिभा को लोगों तक पहुंचाना है. यह एक बड़े बजट की फिल्म थी जिसे दर्शक मिलना तय था और वही हुआ.

आप काफी म्यूजिक वीडियो कर रही हैं?

जी हां, 2018 के अंत में गजेंद्र वर्मा का म्यूजिक वीडियो ‘तेरा घाटा’ आया था जिसे काफी पसंद किया गया था. इस साल मैं ने दर्शन रावल का म्यूजिक वीडियो ‘काश ऐसा होता’ किया है. वहीं सोनल प्रधान का म्यूजिक वीडियो ‘नीदें’ किया है.

क्या वैब सीरीज करने से कलाकार को ज्यादा फायदा मिलता है?

ईमानदारी से कहूं तो मैं फायदा व नुकसान कभी नहीं सोचती. मैं सिर्फ यह देखती हूं कि मुझे अभिनय का स्कोप कितना मिल रहा है. लोगों तक पहुंचने का सवाल है, तो फिल्म व वैब सीरीज दोनों से हम विशाल दर्शक वर्ग तक पहुंच सकते हैं. अब तो सभी बड़े कलाकार वैब सीरीज कर रहे हैं. फिल्म और वैब सीरीज की शूटिंग में अंतर नहीं है. हां, कलाकार के तौर पर यह माने रखता है कि हम किस तरह के कंटैंट पर काम कर रहे हैं.

कोई ऐसा किरदार जिसे निभाना चाहती हैं?

मैं ने मीना कुमारी की किताब पढ़ी है. उन में बहुत दर्द था. उन्हें बहुत कुछ सहना पड़ा था. मैं उन का किरदार निभाना चाहती हूं. इस के अलावा मैं ने माताहारी की किताब पढ़ी है. मैं माताहारी का किरदार निभाना चाहती हूं. माताहारी डच की रहने वाली सैंसुअल डांसर थीं. उन्हें जासूसी के आरोप में 1917 में मार दिया गया था. मैं ने उन की एक किताब पढ़ी जिस में एक सीन है, जब उन्हें शूट किया जाना है तो उन से पूछा जाता है कि क्या आप की आंखों पर पट्टी बांध दी जाए? तो वे कहती हैं, ‘नहीं, मैं ने कुछ भी गलत नहीं किया.’ फिर वे हवा में किस करती हैं. उन की यात्रा भी दिल को छू लेने वाली है. बहुत दर्दनाक कहानी है. मेरे अंदर भी बहुत दर्द है, जो बाहर निकालना चाहती हूं. केवल हौट व सैक्सी का लैवल लगाना नहीं चाहती. अब मेरी कोशिश है कि ऐसा किरदार निभाऊं जिस से लोगों को मेरे अंदर की अभिनय प्रतिभा का पता चल सके.

कुछ नया कर रही हैं?

एकता कपूर की कंपनी एएलटी बालाजी के लिए एक वैब सीरीज ‘फिक्सर’ की है, जोकि बहुत जल्द रिलीज होगी. यह अंडरवर्ल्ड और एटीएस के बीच टकराव की कहानी है. यह कहानी देश की राजधानी दिल्ली के भ्रष्ट एटीएस औफिसर की है जो मुंबई के नकली अंडरवर्ल्ड और उद्योगपतियों की सांठगांठ का शिकार है. निजी जीवन के संघर्षों से जूझ रहे एटीएस अफसर की भूमिका में शब्बीर अहलूवालिया हैं. तिग्मांशु धूलिया ने मलिक नामक अंडरवर्ल्ड की भूमिका निभाई है जो देश व विदेश में अंडरवर्ल्ड का संचालन करता है.

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आप के शौक क्या हैं?

यात्रा करना, डांस करना, गीत गाना. मैं बचपन में गायक बनना चाहती थी. मैं ने संगीत की ट्रेनिंग ली थी. पर जब मैं 8वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी मेरे मातापिता का तलाक हो जाने के बाद सबकुछ भूल गई थी. पढ़ने का भी शौक है.

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’: गरीबों के लिए बनी मुसीबत

गरीबों को लगा था कि उन का पक्का मकान बनाने का सपना पूरा हो जाएगा. पर सरकार का एक कार्यकाल खत्म होतेहोते योजना की कछुआ चाल, नेताओं और अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार ने साबित कर दिया कि साल 2022 तक देश के सभी गरीबों को पक्का मकान देने का मोदी सरकार का वादा पूरा होने वाला नहीं है.

देश में गरीबों को मकान देने के लिए पहले ‘इंदिरा आवास योजना’ चलती थी, जिस का साल 2015 में नाम बदल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ रख दिया था और ऐलान किया था कि साल 2022 तक सभी के सिर पर छत होगी. इस के लिए यह भी योजना बनी थी कि सरकारी विभागों से घर बना कर देने के बजाय खुद जरूरतमंद के खाते में पैसे जमा कराया जाए.

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‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत गांवदेहात के इलाकों में एक लाख, 60 हजार की रकम और शहरी इलाकों में 2 लाख, 40 हजार की रकम सीधे जरूरतमंद के बैंक खाते में जमा करने का काम किया गया था. इस रकम से एक कमरा, एक रसोई, एक स्टोररूम का नक्शा भी दिया गया था.

पर हुआ यह कि जिन लोगों के पास पहले से मकान थे, उन्हें रकम मिल गई और जो लोग बिना छत के प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना आशियाना बना कर रह रहे थे, उन्हें पक्का मकान देने के बजाय झुनझुना पकड़ा दिया गया.

ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव और नगरपालिकाओं की अध्यक्ष, सीएमओ की मिलीभगत से जरूरतमंदों से 10,000 से 20,000 रुपए ले कर योजना की रकम की बंदरबांट कुछ इस तरह हुई कि बिना नक्शे और बिना सुपरविजन के योजना की रकम खर्च कर ली गई.

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत साल 2022 तक देश में सभी लोगों को छत देने की बात कही जा रही है. इस के लिए लक्ष्य और उस के पूरा होने के आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत देख कर आप दंग रह जाएंगे.

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मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की नगरपरिषद साईंखेड़ा के वार्ड नंबर 14 के लाभार्थी हरिगोपाल श्रीवास्तव की दास्तान ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ की असलियत को उजागर करती है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव को मई, 2018 में पक्का घर बनाने के लिए पहली किस्त के रूप में एक लाख की रकम मिली थी. उन्होंने अपने कच्चा मकान तोड़ कर जून महीने में ही पक्का मकान बनाने का काम शुरू कर दिया था. एक महीने में एक लाख रुपए खर्च कर छत तक का काम पूरा हो गया था, लेकिन दूसरी किस्त की रकम उन्हें नहीं दी गई.

हरिगोपाल श्रीवास्तव के परिवार के लोग पूरी बरसात, ठंड और भीषण गरमी में प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन एक साल के बाद भी उन्हें दूसरी किस्त की रकम नहीं मिली है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव ने कई बार इस की शिकायत सरकारी अफसरों के साथसाथ चुने हुए जनप्रतिनिधियों से की, मगर कोई समाधान नहीं निकला. परेशान हो कर जब उन्होंने एसडीएम, गाडरवारा को अनशन पर बैठने की अर्जी दी, तो उन्हें इस की भी इजाजत नहीं दी गई.

नगरपरिषद के अधिकारी विधानसभा और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता का बहाना बना कर इसी तरह अनेक लोगों को दूसरी किस्त की रकम देने में आनाकानी कर रहे हैं. वोट का सौदा करने वाली सरकार के नुमाइंदे भी अब चुप्पी साध कर बैठे हैं.

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खिरका टोला वार्ड नंबर 8 के दीपक कुशवाहा और बासुदेव अहिरवार बताते हैं कि उन्हें भी जून, 2018 में पहली किस्त की रकम मिल चुकी है, पर दूसरी किस्त की रकम के लिए नगरपरिषद के अधिकारी और पार्षद और रुपयों की मांग कर रहे हैं. पीडि़त परिवार के छोटेछोटे बच्चों ने पूरी गरमी खुले आसमान के नीचे बिताई है और अब बरसात का मौसम है. ऐसे में उन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं.

जनता की सेवा के लिए चुने गए पार्षद दूसरी किस्त दिलाने के लिए दलाली कर लाभार्थियों से 10,000 से ले कर 20,000 रुपए की रकम खुलेआम मांग रहे हैं. जो लोग पैसे दे देते हैं, उन्हें दूसरी किस्त का पैसा आसानी से मिल जाता है.

इन की बल्लेबल्ले

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का फायदा किसी को मिला हो या न मिला हो, पर ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिव की दुकानदारी खूब चल निकली है.

सरपंच सचिव ने गरीबों को रकम दिलाने के एवज में पैसे वसूल तो किए ही हैं, साथ ही मिल कर गांवगांव में अपनी ईंट, गिट्टी, लोहा, सीमेंट की दुकानें खोल ली हैं. अगर इन की दुकान से सामान खरीदा तो समय पर किस्त मिल जाती है, नहीं तो सालों दूसरी किस्त की रकम नहीं मिलती है. कई सरपंचों ने नेताओं के इशारों पर गांव की रेत खदानों पर गैरकानूनी कब्जा कर के करोड़ों रुपए की रेत साफ कर दी है. गांवदेहात के इलाकों में 500 रुपए प्रति ट्रौली मिलने वाली रेत आज 2,000 रुपए प्रति ट्रौली मिल रही है.

मध्य प्रदेश में सरपंच सचिव द्वारा किए भ्रष्टाचार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नरसिंहपुर जिले की हीरापुर ग्राम पंचायत के सचिव भागचंद कौरव के घर आयकर विभाग द्वारा जून, 2019 में मारे गए छापे के दौरान आमदनी से ज्यादा 2 करोड़ रुपए की जायदाद का खुलासा हुआ है.

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गांवदेहात के लोग बताते हैं कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के आने से घरघर पक्के मकान बनने से गांव की नदियों की रेत बहुत महंगी हो गई है. जिला प्रशासन के अधिकारी ट्रैक्टरट्रौली जब्त कर उन्हें परेशान करते हैं, जबकि रेत से भरे भारीभरकम डंपर रातदिन शहरों के लिए गैरकानूनी रेत सप्लाई कर रहे हैं. योजना का सुपरविजन कर रहे इंजीनियर मकान के वैल्युएशन के नाम पर लोगों से 10,000 रुपए की वसूली कर रहे हैं.

दूसरा पहलू यह भी

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ में अकेले नेता, अधिकारी, कर्मचारी ही गड़बड़झाला नहीं कर रहे हैं, बल्कि जनता भी पीछे नहीं है. सरकार मकान बनाने के लिए गरीबों के खाते में पैसे डाल रही है, लेकिन लोग पैसा ले कर उसे दूसरे कामों में खर्च कर लेते हैं. किसी ने उस पैसे से मोटरसाइकिल खरीद ली है तो कोई दूसरी पत्नी ले आया. मकान के नाम पर कहीं पत्थरों का टीला है तो कहीं झोंपडि़यां. किसी ने पैसे बीमारी पर खर्च कर लिए तो कोई शराब और जुए में उड़ा गया.

बांसखेड़ा गांव के मिहीलाल का घर ऐसा है जिन्हें पहली किस्त नवंबर, 2017 में मिली थी और 10 दिन के अंदर ही सारे पैसे निकाल लिए गए. घर बनाने के नाम पर एक ईंट भी नहीं रखी गई.

अब सरकारी अधिकारी मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे रहे हैं तो उन का कहना है कि पैसे रखे हैं, लेकिन ईंटभट्ठों व रेत खनन पर रोक होने के चलते वे मकान नहीं बना पा रहे हैं.

होशंगाबाद जिले के बारछी गांव के चंदन नौरिया के 3 बेटे हैं. तीनों को अलगअलग ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा मिल गया. 2 बेटों के पैसों से मकान बना लिया तो तीसरे बेटे के पैसे में मोटरसाइकिल और दूसरा सामान खरीद लिया, जबकि गांव में कटिंगदाढ़ी बना कर अपनी आजीविका चलाने वाले कमलेश को ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा नहीं मिला है. वे खपरैल के कच्चे मकान में अपने बूढ़े मांबाप समेत 7 सदस्यों के परिवार के साथ रह रहे हैं.

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इसी तरह रायसेन जिले के पटना गांव के अरविंद ने अपना पक्का मकान बनाने के लिए पुराने खपरैल के मकान को तोड़ दिया था. यह सोच कर वे किराए के मकान में रहने लगे थे कि 4 महीने बाद अपने मकान में वापस रहने लगेंगे, लेकिन उन्हें भी सालभर बीत जाने के बाद दूसरी किस्त का पैसा नहीं मिला है और उन का पैसा किराए के मकान में खर्च हो रहा है.

लोगों का मानना है कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के जमीनी हकीकत पर सही न उतरने से प्रधानमंत्री की यह योजना कामयाब होती नजर नहीं आ रही है. अगर सरकार एक से नक्शे और डिजाइन के मुताबिक गरीबों को मकान तैयार कर के देती तो उन्हें पक्के मकान भी मिल जाते और सरकारी पैसे की बंदरबांट भी न होती.

हर्ष ना था हर्षिता के ससुराल में: भाग 3

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हर्षिता की जिंदगी में आया उत्कर्ष

इस शादी में कानपुर शहर के उद्योगपतियों के अलावा अनेक जानीमानी हस्तियां शामिल हुई थीं. पदम अग्रवाल ने इस शादी में लगभग 40 लाख रुपया खर्च किए. उन्होंने बेटी को ज्वैलरी के अलावा उस की ससुराल वालों को वह सब दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी.

शादी के बाद 6 माह तक हर्षिता के जीवन में बहार रही. सासससुर व पति का उसे भरपूर प्यार मिला. लेकिन उस के बाद सास व ननद के ताने शुरू हो गए. उस पर घरगृहस्थी का बोझ भी लाद दिया गया. घर की साफसफाई कपडे़ व रसोई का काम भी उसे ही करना पड़ता.

नौकरानी कभी रख ली जाती तो कभी उस की छुट्टी कर दी जाती. काम करने के बावजूद हर्षिता के हर काम में टोकाटाकी की जाती. सास ताने देती कि तुम्हारी मां ने यह नहीं सिखाया, वह नहीं सिखाया.

धीरेधीरे हर्षिता की सास रानू अग्रवाल के जुल्म बढ़ने लगे. रानू हर्षिता के उठनेबैठने, सोने पर आपत्ति जताने लगी थी. खानेपीने व घर के बाहर जाने पर भी आपत्ति जताती और प्रताडि़त करती थी. हर्षिता जब कभी घर से ब्यूटीपार्लर जाती तो सजासंवरा देख कर ऐसे ताने मारती कि हर्षिता का दिल छलनी हो जाता.

वह उत्कर्ष से शिकायत करती तो उत्कर्ष मां का ही पक्ष लेता और उसे प्रताडि़त करता. ससुर सुशील अग्रवाल भी अपनी पत्नी रानू के उकसाने पर हर्षिता को दोषी ठहराते और प्रताडि़त करते.

हर्षिता मायके जाती, लेकिन ससुराल वालों की प्रताड़ना की बात नहीं बताती थी. वह सोचती थी कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. पर एक रोज मां ने प्यार से बेटी के सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो हर्षिता के मन का गुबार फट पडा.

वह बोली, ‘‘मां, आप लोगों से दामाद चुनने में भूल हो गई. उस के मातापिता का व्यवहार ठीक नहीं है. सभी मुझे प्रताडि़त करते हैं.’’

बेटी की व्यथा से व्यथित मां संतोष ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. इस पर उत्कर्ष ससुराल आया और हर्षिता तथा संतोष से माफी मांग कर हर्षिता को साथ ले गया.

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हर्षिता के ससुराल आते ही उसे फिर प्रताडि़त किया जाने लगा. उस पर अब 25 लाख रुपए दहेज के रूप में लाने का दबाव बनाया जाने लगा.

दरअसल हर्षिता की ननद परिधि की शादी तय हो गई थी. शादी के लिए ही पति, सासससुर हर्षिता पर रुपए लाने का दबाव बना रहे थे. रुपए न लाने पर उन का जुल्म बढ़ने लगा था.

23 नवंबर, 2018 को हर्षिता के चचेरे भाई की शादी थी. हर्षिता शादी में शामिल होने आई तो उस ने मां को 25 लाख रुपया मांगने तथा प्रताडि़त करने की बात बताई. इस पर पदम अग्रवाल ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. 2 हफ्ते बाद उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ आया और दोनों ने हाथ जोड़ कर माफी मांगी. सुशील ने अपनी पत्नी रानू के गलत व्यवहार के लिए भी माफी मांगी, साथ ही हर्षिता को प्रताडि़त न करने का वचन दिया, तभी हर्षिता को ससुराल भेजा गया.

सुशील कुमार अग्रवाल ने फैक्ट्री में नई मशीनें लगाने के लिए लगभग 2.5 करोड़ रुपए बैंक से लोन लिया था. इस लोन की भरपाई हेतु सुशील ने कभी 30 लाख, तो कभी 40 लाख की डिमांड की. लेकिन पदम अग्रवाल ने रुपया देने से मना कर दिया था.

हर्षिता की सास रानू अग्रवाल व पति उत्कर्ष ने भी हर्षिता के मार्फत लाखों रुपए मायके से लाने की बात कही. रुपए लाने से मना करने पर हर्षिता को परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी.

मई, 2019 में पदम अग्रवाल ने अमेरिका घूमने का प्लान बनाया. उन के साथ बड़ी बेटी गीतिका व उस का पति भी जा रहा था. पदम अग्रवाल ने हर्षिता व उस के पति उत्कर्ष को भी साथ ले जाने का निश्चय किया.

हर्षिता की सास रानू नहीं चाहती थी कि हर्षिता घूमने जाए. अत: उस ने हर्षिता का टिकट बुक कराने से मना कर दिया. तब पदम अग्रवाल ने ही बेटीदामाद का टिकट बुक कराया. 25 मई को पदम अग्रवाल अपनी पत्नी तथा दोनों दामाद व बेटियों के साथ टूर पर चले गए.

सास ने की बहू हर्षिता की पिटाई 16 जून को वे सब अमेरिका से लौट आए. टूर से लौटने के बाद हर्षिता मायके में ही रुक गई. वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी. लेकिन उत्कर्ष माफी मांग कर तथा समझा कर हर्षिता को ले गया. ससुराल पहुंचते ही सास रानू अग्रवाल हर्षिता को बातबेबात मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगी. उस ने हर्षिता के ब्यूटीपार्लर जाने पर भी रोक लगा दी. हर्षिता घर से निकलती तो वह कार की चाबी छीन लेती और मारपीट पर उतारू हो जाती.

6 जुलाई, 2019 को जब उत्कर्ष तथा सुशील फैक्ट्री चले गए तो घरेलू काम करने को ले कर सासबहू में झगड़ा होने लगा. कुछ देर बाद नौकरानी शकुंतला आ गई. तब भी दोनों में झगड़ा हो रहा था. तकरार ज्यादा बढ़ी तो किसी बात का जवाब देने पर सास रानू ने हर्षिता के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए तथा झाड़ू से पीटने लगी.

गुस्से में हर्षिता ने पर्स और कार की चाबी ली और घर के बाहर जाने लगी. यह देख कर रानू दरवाजे पर जा खड़ी हुई और उस ने मुख्य दरवाजा लौक कर दिया. इस पर गुस्से में हर्षिता किचन की बराबर वाली खिड़की पर पहुंची और वहां से कूदने लगी. लेकिन शकुंतला ने उसे खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद शकुंतला बरतन साफ करने लगी. लगभग साढ़े 12 बजे रानू चिल्लाई तो शकुंतला वहां पहुंची. लेकिन हर्षिता खिड़की से कूद चुकी थी. हर्षिता स्वयं कूदी या सास रानू ने उसे धक्का दिया, शकुंतला नहीं देख पाई. हर्षिता जीवित है या मर गई, यह देखने के लिए रानू अपार्टमेंट के नीचे आई. उस ने हर्षिता का पर्स व चाबी उठाई, फिर हर्षिता की कलाई पकड़ कर नब्ज टटोली. इस के बाद उस ने पति सुशील को फोन किया, ‘‘जल्दी घर आओ. हर्षिता खिड़की से कूद गई है.’’

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जानकारी पाते ही सुशील ने समधी पदम अग्रवाल को घर आने को कहा और उत्कर्ष के साथ घर आ गए. कुछ देर बाद पदम अग्रवाल भी अपनी पत्नी संतोष व बेटी गीतिका के साथ आ गए और बेटी का शव देखकर रो पड़े. उन्होंने थाना कोहना में ससुराली जनों के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रानू, उत्कर्ष, तथा सुशील कुमार अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

दहेज हत्या के आरोपी सुशील कुमार अग्रवाल की जमानत हेतु जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह की अदालत में बचाव पक्ष के वकील ने अरजी दाखिल की. जिस पर 9 अगस्त को सुनवाई हुई. बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी को आधार बना कर तथा दहेज न मांगने की बात कह कर अरजी दाखिल की थी.

बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी के तर्क के जरिए कोर्ट में जमानत की गुहार लगाई. वहीं पीडि़त पक्ष के वकील ने न्यायालय में जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि हर्षिता की मृत्यु विवाह के ढाई वर्ष के अंदर ससुराल में असामान्य परिस्थितियों में हुई है. विवेचना में भी विवेचक को पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं. दहेज हत्या का अपराध गैरजमानती होने के साथसाथ गंभीर भी है.

दोनों वकीलों की दलील सुनने के बाद जज ने कहा कि दहेज हत्या जैसे मामले में उदारता नहीं बरती जा सकती. इस से पीडि़तों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होगा. जहां तक आवेदक के बीमार होने की बात है, उसे जेल में इलाज मुहैया कराया जा सकता है. इस पर जज ने सुशील की जमानत खारिज कर दी. कथा संकलन तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

अपने लुक्स से सभी एक्ट्रेसेस को पीछे छोड़ेगी BIGG BOSS 12 की ये कंटेस्टेंट, देखें फोटोज

कलर्स टी.वी के सबसे पौपुलर शो बिग बौस में आना नए कलाकारों के करियर के लिए काफी दिलचस्प मोड़ रहता है. इस शो के जरिए कई कलाकारों ने अपने करियर की शुरूआत की है, और उन्ही कलाकारों में से एक नाम है सबा खान. सबा ने इंडिया के सबसे बड़े रीएलिटी शो में से एक शो बिग बौस सीजन 12 में अपनी बहन सोमी खान के साथ एंट्री मारी थी और इस शो से निकलने के बाद सबा को टेलिविजन इंजस्ट्री में काम करने का काफी अच्छा मौका मिला. अपने सिंपल अंदाज से सबका दिल जीतने वाली सबा खान इन दिनों काफी ग्लैमरस लुक में नजर आ रही हैं.

सबा खान का ग्लैमरस लुक…

 

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दरअसल सबा खान अपने औफिशियल इंस्टाग्राम पर काफी एक्टिव रहती हैं और इसी के साथ वे अपनी फोटोज फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. हाल ही में सबा ने अपनी कुछ फोटोज सोशल मीडिया पर शेयर की थी जिससे की वे फैंस के बीच चर्चा में आ गई हैं. उनका ग्लैमरस लुक देख कर फैंस काफी हैरान रह गए और हैरानी के साथ-साथ उनके फैंस को उनका ऐसा लुक काफी पसंद भी आया है.

बाकी एक्ट्रेसेस को पीछे छोडेंगी सबा…

 

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ऐसा देखने से लग रहा है कि सबा खान बहुत ही जल्द कामयाबी के शिखर पर चड़ जाएंगी. सबा की एंक्टिंग ने तो लोगों का दिल जीता ही था पर अब वे अपने लुक से बाकी एक्ट्रेसेस को पीछे छोडने की तैय्यारी में लगी हुई हैं. बिग बौस सीजन 12 के बाद अब वे अपने ग्लैमरस अवतार में लोगों को नजर आ रही हैं. सबा के फैंस भी उनकी ऐसी फोटोज पर जमकर लाइक्स बरसा रहे हैं और लाइक्स के साथ-साथ उनकी तारीफ में प्यार भरे कमेंट्स भी कर रहे हैं.

बिग बौस से पहले रिसेप्शनिस्ट थीं सबा खान…

बता दें, सबा खान ने एक्टिंग करियर की शुरूआत सीरियल द्वारकाधीश – भगवान श्रीकृष्ण के दूसरे सीजन से कर रही हैं. बिग बौस सीजन 12 में आने से पहले सबा एक होटल में रिसेप्शनिस्ट का काम करती थीं और देखा जाए तो बिग बौस ने उनके करियर को काफी अच्छे मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है.

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धोनी मामले में बड़ा खुलासा, पीठ दर्द की समस्या के कारण नहीं हैं टीम का हिस्सा

धोनी इस वक्त टीम का हिस्सा नहीं हैं लेकिन उनकी खबरें हमेशा से ही सुर्खियों में बनी रहती हैं. हाल ही में हुए हुई दो महत्वपूर्ण सीरीज पहली वेस्टइंडीज और दूसरी साउथ अफ्रीका के साथ खेली गई लेकिन इसमें धोनी टीम का हिस्सा नहीं थे. विश्व कप के बाद से ही टीम का हिस्सा नहीं है. हर बार चयनकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने अपने आपको अनुपलब्ध बताया है. विश्व कप के बाद धोनी ने परिवार संग कुछ वक्त बिताया और फिर वो सेना के साथ पैरा कमांडोंज की ट्रेनिंग करने लगे थे. इस दौरान भारत ने वेस्टइंडीज और साउथ अफ्रीका के साथ सीरीज खेली थी लेकिन इस वक्त धोनी टीम का हिस्सा नहीं थे. अब खबर आ रही है कि धोनी के पीठ में दर्द की शिकायत है जिसकी वजह से वो टीम से बाहर चल रहे हैं.

धोनी के टीम से बाहर होने पर तरह-तरह की बातें की जा रहीं थी. कोई कह रहा था कि धोनी की खराब प्रदर्शन के कारण उनको टीम में जगह नहीं मिली कोई कह रहा था कि वो सीधे अगले साल ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी-20 विश्व कप में दिखेंगे लेकिन अब जो खुलासा हो हुआ है वो वाकई चौंकाने वाला है. रिपोर्ट्स की मानें, तो बीसीसीआई सूत्रों ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा है कि धोनी के नवंबर तक फिट हो जाने की उम्मीद है. धोनी की उम्र 38 साल की है और वो हमेशा से ही उनकी गिनती फिट खिलाड़ियों में की जाती है लेकिन इस वक्त धोनी पीठ दर्द की समस्या से गुजर रहे हैं इस वजह से धोनी टीम का हिस्सा नहीं है.

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रिपोर्ट्स के मुताबिक धोनी पीठ में दर्द की शिकायत के साथ वर्ल्ड कप खेलने गए थे. और उनके पीठ का दर्द वर्ल्ड कप के दौरान और बढ़ गया. इसके अलावा विश्व कप के दौरान उन्हें कलाई में भी चोट लगी थी. टीम इंडिया के वर्ल्ड कप से बाहर हो जाने के बाद धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से ब्रेक ले लिया. धोनी वेस्टइंडीज दौरे के लिए भारत के सीमित ओवरों के स्क्वॉड से बाहर रहे. उन्होंने इस दौरान टेरिटोरियल आर्मी यूनिट के साथ कश्मीर में 15 दिन बिताए. वह दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हाल ही में संपन्न तीन मैचों की घरेलू टी-20 इंटरनेशनल सीरीज में भी नहीं खेले.

धोनी पीठ की चोट से पिछले सीजन में भी परेशान रहे थे. पिछले साल मोहाली में किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ आईपीएल मैच में उन्होंने नाबाद 79 रन बनाए थे. मैच के बाद चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान धोनी ने अपनी चोट के बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था, ‘यह बुरा है. यह कितना बुरा है, मैं नहीं जानता.’ इस साल (2019) आईपीएल के दौरान भी धोनी ने अपनी चोट का जिक्र किया था और माना था कि वर्ल्ड कप आ रहा है और यह उनके लिए बेहद अहम है.

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इस बीच भारतीय टीम प्रबंधन ने संकेत दिया कि पूर्व कप्तान को ‘बाहर’ मानकर नहीं चला जा सकता. धर्मशाला में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 मैच से पहले विराट कोहली ने कहा था, ‘उनके (धोनी) बारे में एक बड़ी बात यह है कि वह भारतीय क्रिकेट के लिए सोचते हैं. और जो भी हम (टीम प्रबंधन) सोचते हैं, वह भी वही सोचते हैं. ‘ कोहली ने कहा था कि युवा खिलाड़ियों को तैयार करने और उन्हें अवसर देने के बारे में उनकी जिस तरह की मानसिकता थी, वह आज भी है.

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