शादी के बंधन में बंधीं भोजपुरी एक्ट्रेस सोनालिका, देखें फोटोज

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहली फिल्म से ही बुलंदियों को छू लेने वाली अभिनेत्री सोनालिका प्रसाद ने नैनीताल के हसीन वादियों शादी कर ली है. सोनालिका का दूल्हा भोजपुरी के स्टार व गायक भी हैं जिनका नाम है दीपक दिलदार है. इनके साथ रचाई शादी में सोनालिका लाल सुर्ख जोड़े में खुबसूरत नजर आ रहीं हैं. सोनालिका ने शादी रचाने के बाद अपनी तस्वीर अपने फेसबुक अकाउंट पर शेयर भी की है.

फेसबुक अकाउंट से शेयर की शादी की फोटो…

सोनालिका की शादी की बात सुन कर आप भी चौंक गए ना की जिस अभिनेत्री ने अभी भोजपुरी में अपना पांव जमाना शुरू किया था उसने इतनी जल्दी शादी रचा कर अपने पावों पर कुल्हाड़ी क्यों मार ली. तो भाई चौंकिए न सोनालिका ने यह सब रियल लाइफ में नहीं बल्कि रील लाइफ में किया है.

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दीपक दिलदार लाइव आकर अपने प्रशंसकों से हुए रूबरू…

फिल्म की शूटिंग का हिस्सा थी ये शादी…

सोनालिका की शादी की जो तस्वीरें वायरल हो रहीं है वह उनकी आने वाली फिल्म ‘लव के चक्कर में’ के सेट का है. जहां फिल्म के एक सीन के मुताबिक सोनालिका प्रसाद फिल्म के हीरो दीपक दिलदार के साथ शादी रचाती हुई नजर आईं. सोनालिका के शादी की यह तस्वीर भी इसी फिल्म की शूटिंग का एक हिस्सा है. शादी की शूटिंग के दौरान दीपक दिलदार लाइव आकर अपने प्रशंसकों से रूबरू भी हुए थे.

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शादी के जोड़े में सोनालिका और दीपक की जोड़ी का कोई जवाब नहीं…

सोनालिका की शादी की तस्वीरें जैसे ही वायरल हुई तो इनके फैन बहुत निराश हो गए थे. लेकिन प्रशंसकों को जैसे ही पता चला की सोनालिका के शादी की तस्वीरें फिल्म का हिस्सा थीं तो लोगों ने राहत की सांस ली. वैसे कुछ भी कह लिया जाए लेकिन फिल्म के सेट पर ही शादी के जोड़े में सोनालिका और दीपक दिलदार की जोड़ी खुबसूरत नजर आ रही है.

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नैनीताल में कर रही हैं शूटिंग…

सोनालिका इन दिनों अपनी फिल्म ‘लव के चक्कर में” के चलते नैनीताल में शूटिंग में व्यस्त है. यह फिल्म एक रोमांटिक लव स्टोरी है. जो झंकार टेलीमीडिया के बैनर तले बन रही है. इस फिल्‍म के निर्माता संजय रैलहन व विजय रैलहन हैं. निर्देशक मनोज तोमर हैं. फिल्‍म के पीआरओ संजय भूषण पटियाला हैं. डीओपी यश जी, संगीत शिशिर पांडेय और मनोज आर्यन, गीतकार अरूण बिहारी और विनय निर्मल हैं.

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फिल्म ‘वो मेरी स्टूडेंट है’ में  दिखेगी बिग बौस की ये जोड़ी, देखें फोटोज

पिछले वर्ष सलमान खान द्वारा होस्ट किए गए रियलिटी शो बिग बौस की सबसे चर्चित और विवादित जोड़ी थी अनूप जलोटा और जसलीन मथारू की. उस समय इन दोनों के रिलेशनशिप में होने की बातें सामने आई थीं, लेकिन शो के बाहर आते ही दोनों ने अपने रिश्ते को टीचर और स्टूडेंट का रिश्ता बता दिया था. हालांकि लोगों को दोनों की जोड़ी बहुत पसंद आई थी. ऐसे में दोनों सितारों के फैंस के लिए एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है.

जसलीन के पिता केसर मथारू ही हैं डायरेक्टर…

अब जसलीन और अनूप जलोटा की जोड़ी एक बार फिर साथ में नजर आएगी और इस बार इनकी जोड़ी टीवी पर नहीं बल्कि सिल्वर स्क्रीन पर देखने को मिलेगी. दोनों फिल्म ‘वो मेरी स्टूडेंट है’ में नजर आएंगे. फिल्म के लेखक और डायरेक्टर जसलीन के पिता केसर मथारू हैं.  फिल्म का मुहूर्त शौट मुंबई में शूट किया गया है जहां अनूप और जसलीन समेत मीडिया भी मौजूद थी.

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हौट अंदाज में नजर आ रही हैं जसलीन…

 

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फिल्म के मुहूर्त शौट से अनूप जलोटा और जसलीन की कई सारी तस्वीरें सामने आई हैं. जिसमें जसलीन एक स्कूल स्टूडेंट के रूप में अपने हौट अंदाज में नजर आ रही है. जसलीन सफेद शर्ट और लाल स्कर्ट में कहर ढा रही थीं जबकि अनूप जलोटा भी यहां काफी अलग लुक में नजर आए. बेहद रंगीली टी-शर्ट, हाथ में बंदूक और गले में AJ की लौकेट, कई चैन, सर पे कैप पहने अनूप एक रैपर के रंग में नजर आए.

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दिवाली से पहले का बड़ा धमाका…

इस कौमेडी फिल्म में अनुप जलोटा सिंगर रैपर बनेंगे और जसलीन उनकी शिष्या. मुंबई के फ्यूचर स्टूडियो में फिल्म के मुहूर्त के समय अनूप जलोटा ने कहा कि,- “पिछले साल, दिवाली के पहले बिग बौस में जाकर एक धमाका किया था और अब ये फिल्म इस दिवाली से पहले का बड़ा धमाका है. जसलीन के साथ मेरे रिश्ते को लेकर लोगों के मन में बहुत सारी गलत धारणाएं हैं इस फिल्म से सब क्लियर हो जाएगा. अनूप जलोटा ने कहा कि मूवी में वो मेरे पास म्यूजिक सीखने आती हैं”.

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अपने रिलेशन को लेकर जलसीन ने कहा…

बिग बौस में अनूप जलोटा के संग अपने रिलेशन के बारे में जलसीन ने कहा कि,- “उस समय मजाक में कही गईं बात इतनी बड़ी हो जाएगी मुझे अंदाजा नहीं था. उसी रिश्ते के बारे में फैली गलतफहमियां दूर करने के लिए यह फिल्म बनाई जा रही है”. फिल्म के एक सीन के साथ इसकी शूटिंग भी शुरू हो गई है. फहीम कुरैशी द्वारा निर्मित फिल्म अगले साल रिलीज़ होगी.

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‘‘जैकलीन आई एम कमिंगः अधेड़ उम्र की साधारण प्रेम कहानी’’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः मंजेष गिरी

निर्देशकः बंटी दुबे

कलाकारः रघुबीर यादव, किरण डी पाटिल, दिव्या धनोवा,शक्ति कुमार व अन्य.

अवधिः एक घंटा पचास मिनट

प्रेम कहानी और रोमांस पर अनगिनत फिल्में बन चुकी हैं. मगर अब तक इन सभी प्रेम कहानी प्रधान फिल्मों में टीन एजर प्रेम कहानी ही पेश की जाती रही हैं. मगर फिल्म निर्देशक बंटी दुबे पहली बार एक बेहतरीन व प्यारी सी अधेड़ उम्र के इंसान की प्रेम कहानी फिल्म ‘‘जैकलीन आई एम कमिंग’’ में लेकर आए हैं. फिल्म की गति बहुत धीमी होने के चलते मजा किरकिरा हो जाता है.

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कहानीः

फिल्म शरू होती है नर्मदा नदी के किनारे अकेले बाल बढ़ाए अंट शंट बक रहे एक बूढ़े इंसान से, जब उन्हे तलाशते हुए केशव आते हैं, तो पता चलता है कि यह पागल खाना से भागे हुए काशी तिवारी हैं. जब केशव, डौक्टर अर्जुन से कहता है कि काशी तिवारी का इस संसार में कोई नहीं है. इसलिए वह उनका इलाज करे या न करें, मौत ही दे दें. तब डाक्टर अर्जुन, काशी की इस हालत के लिए खुद को जिम्मेदार बताते हैं.

उसके बाद कहानी अतीत में जाती है. 40 साल के पीडब्लूडी में कार्यरत काशी तिवारी (रघुवीर यादव) आगरा में अकेले रहते हैं. अब काशी के जीवन में थोड़ा आनंद है. अन्यथा उनके अनाथ हो जाने पर उनकी परवरिश उनके रूढ़िवादी चाचा ने की थी. काशी तिवारी के दोस्त केशव (किरण डी पाटिल) हमेशा उनकी मदद के लिए मौजूद रहते हैं. एक दिन काशी तिवारी चर्च में एक खूबसूरत महिला जैकलीन (दिव्या धनोवा) को देख मोहित हो जाते हैं.

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फिर जैकलीन से शादी करने के लिए वह टीनएजर लड़कों की तरह जैकलीन का पीछा करने लगते हैं. एक दिन मिठाई खिलाने के बहाने वह जैकलीन से अपने मन की बात कह देते है. काशी के चाचा इसके खिलाफ हैं, क्योकि जैकलीन क्रिष्चियन हैं. पर पूरी दुनिया से लड़कर काशी किसी तरह जैकलिन से शादी कर लेते हैं. लेकिन उनकी जिंदगी में यह खुशी ज्यादा समय तक नहीं रहती. मानसिक रूप से बीमार जैकलिन को अंततः एक दिन मेंटल अस्पताल भेज दिया जाता है. आशा मेंटल अस्पताल के डीन डौक्टर अर्जुन (शक्ति कुमार) बहुत अभिमानी हैं.

पीडब्ल्यूडी की नौकरी से सेवानिवृत्ति होने के बाद उन्हे अकेलापन खलने लगता है और वह सोचते हैं कि अब तो वह दिन भर घर पर जैकलीन की सेवा कर सकते हैं. उधर जैकलीन का स्वास्थ्य भी सुधर गया है. मगर डा.अर्जुन, जैकलीन को छुट्टी देने से इंकार कर देते हैं. केशव व काशी, मेंटल अस्पताल के ट्रस्टी से मदद मांगते है. इससे डा. अर्जुन के अभिमान को चोट पहुंचती है. पर केशव की मदद से रात के अंधेरे में मेंटल अस्पताल से जैकलीन को भगाकर काशी दूर रहने चले जाते हैं. पर डा.अर्जुन हर हाल में जैकलीन को वापस लाने की कसम खा लेते हैं.

अंततः एक दिन जबरन जैकलीन को मेंटल अस्पताल में पुनः पहुंचा दिया जाता है.इसी सदमें मे काशी भी पागल हो जाते हैं और उन्हे भी मेंटल अस्पताल में भर्ती कर दिया जाता है.अंत में डौक्टर अर्जुन यह कह कर अपना त्यागपत्र दे देते हैं कि अनुशासन उनके अंदर कब अभिमान में परिवर्तित हो गया कि वह सारी मानवता ही भूल गए.

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लेखन व निर्देषनः

फिल्मकार ने इस रोमांटिक प्रेम कहानी में भरपूर ड्रामा पिरोने का प्रयास किया है. अकेलपन की जिंदगी जी रहे अधेड़ उम्र के इंसान के किरदार को बेहतरीन तरीके से गढ़ा गया है. इसके अलावा चमक खोती प्रेम कहानी को भी बेहतर तरीके से चित्रित किया गया है. मगर पटकथा कुछ कमजोर है. फिल्म की गति बहुत धमी है. इस तरह की प्रेम कहानियांं साठ व सत्तर के दषक में काफी पसंद की जाती रही हैं.

पर अब तेज गति, मोबाइल, इंटरनेट, व्हाट्सअप, फेसबुक का जमाना है. यदि इस बात पर फिल्मकार ने ध्यान दिया होता, तो फिल्म के साथ लोग ज्यादा रिलेट कर पाते. इसके अलावा इसमें इमोशंस की भी कमी है. फिल्मकार ने जैकलीन की मानसिक बीमारी को भी परिभाशित नहीं किया है. फिल्म लंबी भी है.

अभिनयः

काशी के किरदार में रघुवीर यादव ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि अभिनय में उनका कोई सानी नही है. दिव्या धनोवा सिर्फ सुंदर व मासूम लगी हैं. पर रघुबीर यादव व दिव्या के बीच केमिस्ट्री कहीं नजर ही नहीं आती. शक्ति कुमार व किरण डी पाटिल ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

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ऐसी मांगने वालियों से तोबा: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- ऐसी मांगने वालियों से तौबा: भाग 1

लेखिका- विभावरी सिन्हा

मैं ठंडी पड़ गई, ‘‘हांहां, क्यों नहीं?’’

थोड़े से मालपुए बचे थे. कुछ निकाल कर मैं ने उन्हें दिए.

‘‘नहीं, नीराजी, मैं तो बस थोड़ा सा चख लूंगी,’’ यह कह कर उन्होंने पूरा खाना खाया. फिर बोलीं, ‘‘वाह, बहुत स्वादिष्ठ हैं. अभी मैं बच्चों को बुला कर लाती हूं. वे भी थोड़ा चख लेंगे. फिर रात को पूरा खाना खाने हम लोग आएंगे’’

मेरी आंखों के आगे तो पूरी पृथ्वी घूम गई. अभी इस आघात से उबर भी नहीं पाई थी कि वह सपरिवार चहकते हुए आ पहुंचीं. साथ में फफूंदी लगा आम का मरियल सा अचार एक छोटी कटोरी में था. पति व बिटिया मेहमानों को छोड़ने बस अड्डे गए थे. सोचा, आज हमारा उपवास ही सही. किसी तरह लड़खड़ाते कदमों से रसोई की ओर बढ़ी.

पर उस से पहले मधुरिमा ने कहा, ‘‘आप बैठिए, नीराजी. थक गई होंगी. मैं निकाल लेती हूं.’’

मेरे मना करतेकरते उन्होंने सारी बचीखुची रसद निकाल कर बाहर की और सब लोग चखने बैठ गए.

मेरे हाथ में अचार की कटोरी थी और मैं मन ही मन सुलग रही थी. सोचा, कटोरी कूड़ेदान में फेंक दूं. खैर, सब लोग रात में खाना खाने का वादा कर के जल्दी ही मेरे पुए चख कर चले गए. मेरे लिए कुछ भी नहीं बचा था.

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पति के आने पर मैं ने सारी बातें कहीं. वह भी बहुत दिनों से इसी समस्या पर विचार कर रहे थे. पहले तो उन्होंने मेरी बेवकूफी पर मेरी ख्ंिचाई की. फिर होटल से ला कर खाना खाया. शाम तक वह कुछ विचार करते रहे और फिर रात में खुश हो कर मधुरिमा के आने से पहले ही हमें सैर कराने ले गए. बाहर ही हम ने खाना खा लिया. उन्होंने 10 दिन की छुट्टी ली. मैं ने कारण पूछा तो बोले कि समय पर सब जान जाओगी. मैं मूक- दर्शक बन कर अगली खतरे की घंटी का इंतजार करने लगी.

दूसरे दिन सुबह ही मधुरिमा अपनी चिरपरिचित मुद्रा में खड़ी हो गईं. मैं तो पहले ही अंदर छिप चुकी थी. आज मेरे पति ने मोरचा संभाला था.

‘‘अरे, भाई साहब, आप? नीराजी किधर गईं?’’

‘‘वह तो अपनी सहेली के घर गई हैं. मुझ से कह गई हैं कि आप के आने पर जो कुछ भी चाहिए आप को मैं दे दूं. बोलिए, क्या चाहती हैं आप?’’

मधुरिमा सकपका गईं. अपने जीवन में शायद पहली बार उन को इस तरह की बातों का सामना करना पड़ रहा था. वह रुकरुक कर बोलीं, ‘‘बात यह है, भाई साहब कि आज पिंकू के सिर में दर्द है. मैं तो खुद बाजार नहीं जा सकती. मिट्टी का तेल भी खत्म हो गया है. सोचा, आप से मांग लूं. मैं कनस्तर ले कर आई हूं. 4 लिटर दे दीजिए.’’

‘‘देखिए, मधुरिमाजी, मैं अभी बाजार जा रहा हूं. आप पैसे दे दें. मैं अभी तेल ले आता हूं. मेरा भी खत्म हो चुका है,’’ मेरे पति ने हंस कर कहा.

अब तो मधुरिमा को काटो तो खून नहीं. मरियल आवाज में बोलीं, ‘‘रहने दीजिए, फिर कभी मंगवा लूंगी. अभी तो मुझे कहीं जाना है,’’ यह कह कर वह तेजी से चली गईं. मैं छिप कर देख रही थी और हंसहंस कर लोटपोट हो रही थी.

3-4 दिन चैन से गुजरे. मेरे वे 200 रुपए तो कभी लौटे नहीं. लेकिन खैर, एक घटना के बाद मुझे हमेशा के लिए शांति मिल गई. एक दिन सुबहसुबह फिर वह मुझे खोजती हुई सीधे मेरे कमरे में पहुंचीं. पर मैं तो पहले ही खतरे की घंटी सुन कर भंडारगृह में छिप गई थी. वह निराश हो कर वहीं बैठ गईं. मेरे पति ने अंदर आ कर उन को नमस्ते की और आने का कारण पूछा.

मधुरिमा ने सकपका कर कहा, ‘‘भाई साहब, नीराजी को बुला दीजिए. यह बात उन्हीं से कहनी थी.’’

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‘‘मधुरिमाजी, आप को मालूम नहीं, नीरा की बहन को लड़का हुआ है. इसलिए वह तड़के ही उठ कर शाहदरा अपनी बहन के पास गई हैं. अब तो कल ही लौटेंगी आप मुझ से ही अपनी समस्या कहिए.’’

पहले तो वह घबराईं. फिर कुछ सहज हो कर कहा, ‘‘भाई साहब, मेरे पति आप की बहुत तारीफ कर रहे थे. सचमुच आप जैसा पड़ोसी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘यह तो आप का बड़प्पन है.’’

‘‘नहींनहीं, सचमुच नीराजी भी बहुत अच्छी हैं. मेरे घर में तो सभी उन से बहुत प्रभावित हैं. इतना अच्छा स्वभाव तो कम ही देखनेसुनने को मिलता है.’’

मेरे पति आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे और सोच रहे थे कि क्या यही बात इन को कहनी थी.

फिर मधुरिमा ने वाणी में मिठास घोल कर कहा, ‘‘भाई साहब, जब तक नीराजी नहीं आती हैं, मैं आप का खाना बना दिया करूंगी.’’

‘‘जी शुक्रिया, खाना तो मैं खुद भी बना लेता हूं.’’

इस के बाद 1 घंटे तक वह भूमिका बांधती रहीं. पर असली बात बोलने का साहस ही नहीं कर पा रही थीं. अंत में उन्होंने मेरे पति से विदा मांगी. पर जैसे ही पति ने दरवाजा बंद करना चाहा, वह अचानक बोल पड़ीं, ‘‘भाई साहब, 50 रुपए यदि खुले हों तो दे दीजिए.’’

‘‘अच्छा तो रुपए चाहिए थे. आप को पहले कहना चाहिए था. मैं आप को 50 के बदले 100 रुपए दे देता. पर आप ने मेरा समय क्यों बरबाद किया? खैर, कोई बात नहीं,’’ मेरे पति ने जल्दी से पर्स खोल कर 150 रुपए निकाले और कहा, ‘‘मैं आप को 150 रुपए दे रहा हं. मुझे वापस भी नहीं चाहिए. पर कृपया, हमारा समय बरबाद न किया करें.’’

मधुरिमा खिसियानी बिल्ली की तरह दरवाजे की लकड़ी को टटोलने लगीं.

‘‘भाई साहब, इतने रुपए देने की क्या जरूरत थी. मुझे तो बस…’’

‘‘नहींनहीं, मधुरिमाजी, आप सब ले जाइए. मैं खुशी से दे रहा हूं. हां, कल मैं आप के घर खाना खाने आ रहा हूं. नीरा ने कहा था कल आप छोले बनाने वाली हैं. सचमुच आप बहुत स्वादिष्ठ छोले बनाती हैं. यहां से प्याज, अदरक आप खुशी से ले जा सकती हैं.’’

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‘‘नहीं, भाई साहब, ऐसी कोई बात नहीं. कल ही तो स्वादिष्ठ खीर बनाई थी, पर बच्चों ने सारी खत्म कर दी. सोचा था, आप को जरूर खिलाऊंगी,’’ मेरे पति ने आश्चर्य से मुंह फैला कर कहा, ‘‘अच्छा फिर दूध, चावल और पतीला किस के घर से लिया था आप ने?’’

अब तो मधुरिमा का रुकना मुश्किल था, ‘‘अच्छा, भाई साहब, चलती हूं,’’ कहती हुई और बेचारगी से मुंह बना कर वह तेजी से घर की ओर भागीं.

उस दिन के बाद मधुरिमा ने मांगने की आदत छोड़ दी. इस घटना का जिक्र भी उन्होंने किसी से नहीं किया क्योंकि इस में उन की ही बेइज्जती का डर था. मेरे परिवार से नाराज भी नहीं हो सकीं क्योंकि इस से बात खुलने का डर था. फलस्वरूप उन से हमारे संबंध भी ठीक हैं और हम शांति से गुजरबसर कर रहे हैं.

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DIWALI 2019: फेस्टिव सीजन के लिए परफेक्ट है शाहरुख खान के ये लुक्स

बौलीवुड के बादशाह यानी शाहरुख खान आज किसी इंट्रोडक्शन के मोहताज नहीं हैं. सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि पूरे वर्लड में शाहरुख की एक्टिंग और लुक्स के दीवाने हैं. 53 साल की उम्र में भी शाहरुख इतने ट्रेंडी हैं कि आज कल की युवा पीड़ी उनके हर लुक से काफी इम्प्रेस रहते हैं. जैसा कि आप सब जानते हैं कि फेस्टिव सीजन आ गया है और इन दिनों हमें ये तय करने में काफी मुश्किल आती है कि हमें किस तरह के आउटफिट पहनने चाहिए जिससे हम अपने आस पास वालों को इम्प्रेस कर सकें.

फेस्टिव सीजन में देखा गया है कि शाहरुख खान के ट्रेडिशनल लुक्स काफी चर्चा में हैं तो हम आपको दिखाएंगे शाहरुख के कुछ ऐसे चुनिंदा लुक्स जिसे आप फेस्टिव सीजन में ट्राय करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे.

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शाहरुख खान का शेरवानी लुक्स…

इस लुक में शाहरुख खान ने डार्क ब्लू कलर की शेरवानी के साथ सेम कलर की ही धोती पहनी हुई है. शाहरुख का ये लुक इतना इम्प्रेसिव है कि आप ये लुक अपने किसी भी फेस्टिव ओकेजन में ट्राय कर सबको चौंका सकते हैं.

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शाहरुख खान का कुर्ता पयजामा लुक…

इस लुक में शाहरुख ने व्हाइट कलर का ट्रेंडी कुर्ता और साथ में व्हाइट कलर का ही पयजामा पहना हुई है. इस लुक में कार्तिक काफी डैशिंग दिखाई दे रहे हैं तो अगर आप भी चाहते हैं कार्तिक की तरह डैशिंग दिखना और करना चाहते हैं अपने लुक्स से आस पास वालों को इम्प्रेस तो ये लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा.

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शाहरुख खान का ट्रेंडी लुक…

इस ट्रेंडी लुक में शाहरुख खान ने व्हाइट कलर के कुर्ते पयजामे के ऊपर ब्लैक कलर का ट्रेंडी इंडो वेस्टर्न पहना हुआ है जो बेहद अच्छा लग रहा है. आप ये लुक किसी भी फेस्टिवल में ट्राय कर अपनी क्रश को इम्प्रेस कर सकते हैं.

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शाहरुख खान का डीसेंट लुक…

अपने इस डीसेंट लुक में शाहरुख ने ऐसी शेरवानी पहनी हुई है जिसे देख किसी का भी दिल इस शेरवानी को ट्राय करने के लिए ललचा जाए. इस व्हाइट प्रिंटेड शेरवानी में शाहरुख सच में कहर बरसा रहे हैं. अगर आप भी चाहते हैं अपने यूनीक लुक्स से सकको इम्प्रेस करना तो जरूर ट्राय करें शाहरुख का ये डीसेंट लुक.

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मायानगरी में मौत

पर्ल पंजाबी एक प्रौडक्शन हाउस में वीडियो एडिटर का काम कर रही थी और वह मुंबई में हीरोइन बनना चाहती थी. फिलहाल वह अपनी मां के साथ लोखंडवाला इलाके के एक अपार्टमैंट्स में रह रही थी.

पर्ल पंजाबी की निजी जिंदगी में भी काफी दिक्कतें चल रही थीं. वह दिमागी तौर पर डिस्टर्ब हो गई थी. उस की अपनी मां के साथ भी नहीं बनती थी.

इसी साल जनवरी महीने में संघर्ष कर रहे एक कलाकार राहुल दीक्षित ने खुदकुशी कर ली थी. वह एक किराए के मकान में रहता था. इस मौके पर उस

के साथ उस की लिव इन पार्टनर प्रिया भी थी. प्रिया जब सुबह 4 बजे नींद से उठी तो उस ने राहुल को पंखे से लटका पाया.

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इस मामले में पुलिस का कहना था कि शायद राहुल ने प्रिया के साथ उस की शराब पीने की लत को ले कर हुई बहस के बाद यह कदम उठाया था.

साल 2018 में गुजराती फिल्मों के जूनियर कलाकार और एक नई फिल्म बना रहे हितेश परमार ने भी खुदकुशी कर ली थी, क्योंकि उस ने एक फाइनैंसर से कर्ज लिया था, जिस के बदले में वह बहुत ज्यादा ब्याज वसूल रहा था.

भोजपुरी फिल्मों और टीवी सीरियलों में काम करने वाली अंजली श्रीवास्तव ने जुलाई, 2017 में मुंबई के पश्चिमी उपनगर अंधेरी में बने अपने घर में फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी.

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अमूमन जो लोग फिल्मी दुनिया में अपना भविष्य बनाने जाते हैं, उन्हें मन से बड़ा मजबूत माना जाता है. लोग उन के काम की तारीफ ही नहीं करते हैं, बल्कि उन्हें अपना आदर्श भी मान लेते हैं. लेकिन यह सब हासिल करना बड़ा ही मुश्किल काम होता है.

फिल्मी दुनिया में ‘जुबली कुमार’ का खिताब पाने वाले हिंदी फिल्मों के हीरो रहे राजेंद्र कुमार के बेटे कुमार गौरव की पहली फिल्म ‘लव स्टोरी’ बहुत बड़ी हिट फिल्म थी, लेकिन उस के बाद कुमार गौरव ज्यादा नहीं चल पाए. ऐसे में किसी भी इनसान का तनाव में चले जाना कोई बड़ी बात नहीं है, पर चूंकि कुमार गौरव फिल्मी दुनिया की नाकामी से बखूबी वाकिफ थे, इसलिए वे यह सब सह गए.

पर कम उम्र के नौजवान, जिन का पूरा दांव ही फिल्म इंडस्ट्री में अपना कैरियर बनाने का होता है, उन में से जब कोई बुरी तरह नाकाम होता है तो अपनी जान की भी परवाह नहीं करता है. मरना किसी भी समस्या से उबरने का कोई समाधान नहीं है. अगर जिंदा रहोगे तो हो सकता है कि कामयाब हो जाओ.

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इस का सब से बड़ा उदाहरण नवाजुद्दीन सिद्दीकी कहे जा सकते हैं. काफी साल तक फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं मिला, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. एकएक सीन के रोल किए, पर उलट हालात में भी जमे रहे. आज आप खुद ही देख सकते हैं कि वे किस मुकाम पर बैठे हैं.

अगर किसी में टैलेंट है तो उसे जरूर कामयाबी मिलेगी. हाल ही में मशहूर हुई रानू मंडल को भी तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने अपनाया है, लेकिन इस के लिए आप में गुण होना भी जरूरी है. हां, रानू मंडल की चमक कुछ दिनों की ही है.

ऐसी मांगने वालियों से तोबा: भाग 1

लेखिका- विभावरी सिन्हा

अभी मेरी नींद खुली ही थी कि मधुरिमा की मधुर आवाज सुनाई दी. वास्तव में यह खतरे की घंटी थी. मैं अपना मोरचा संभालती, इस से पहले ही स्थूल शरीर की वह स्वामिनी अंदर पहुंच चुकी थी. मैं अपने प्रिय प्रधानमंत्री की मुद्रा में न चाहते हुए भी मुसकरा कर खड़ी हो गई.

वह आते ही शुरू हो गईं, ‘‘अरे, नीराजी, आप सो कर उठी हैं? आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही. अभी मैं सिरदर्द की दवा भेज देती हूं. और हां, भाई साहब और छोटी बिटिया नहीं दिख रहे?’’

मैं जबरदस्ती मुलायमियत ला कर बोल पड़ी, ‘‘यह तो अभी स्नानघर में हैं और बिटिया सोई है.’’

‘‘आप की बिटिया तो कमाल की है. बड़ी होशियार निकलेगी. और हां, खाना तो बनाना शुरू नहीं किया होगा.’’

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मैं उन की भूमिका का अभिप्राय जल्दी जानना चाह रही थी. सारा काम पड़ा था और यह तो रोज की बात थी. ‘‘नहीं, शुरू तो नहीं किया, पर लगता है आप के सारे काम हो गए.’’

‘‘ओह हो,’’ मधुरिमा हंस कर बोलीं, ‘‘नहीं, मैं तो रोज दाल बनाती हूं न.’’

मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘‘दाल तो मैं भी रोज बनाती हूं.’’

‘‘पर मैं तो दाल में जीरे का छौंक लगाती हूं.’’

‘‘वह तो मैं भी करती हं, इस में नई बात क्या है?’’

‘‘वह क्या है, नीराजी कि आज दाल बनाने के बाद डब्बा खोला तो जीरा खत्म हो गया था. सोचा, आप ही से मांग लूं,’’ मधुरिमा ने अधिकार से कहा. फिर बड़ी आत्मीयता से मेरी पत्रिकाएं उलटने लगीं.

मैं ने तो सिर पकड़ लिया. थोड़ा सा जीरा मांगने में इतनी भूमिका? खैर, यह तो रोज का धंधा था. मुझे तो आदत सी पड़ गई थी. यह मेरे घर के पास रहती हैं और मेरी सभी चीजों पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार जताती हैं. इस अधिकार का प्रयोग इन्होंने दूसरों के घरों पर भी किया था, पर वहां इन की दाल नहीं गली. और फिर संकोचवश कुछ न कहने के कारण मैं बलि का बकरा बना दी गई.

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अब तो यह हालत है कि मेरी चीजें जैसे इस्तिरी, टोस्टर वगैरह इन्हीं के पास रहते हैं. जब मुझे जरूरत पड़ती है तो कुछ देर के लिए उन के घर से मंगवा कर फिर उन्हीं को वापस भी कर देती हूं क्योंकि जानती हूं कुछ ही क्षणों के बाद फिर मधुर आवाज में खतरे की घंटी बजेगी. भूमिका में कुछ समय बरबाद होगा और मेरा टोस्टर फिर से उन के घर की शोभा बढ़ाएगा.

पूरे महल्ले में लोग इन की आदतों से परिचित हैं. और घर में इन के प्रवेश से ही सावधान हो जाते हैं. यह निश्चित है कि यह कोई न कोई वस्तु अपना अधिकार समझ कर ले जाएंगी. फिर शायद ही वह सामान वापस मिले. सुबह होते ही यह स्टील की एक कटोरी ले कर किसी न किसी घर में या यों कहिए कि अकसर मेरे ही घर में प्रवेश करती हैं. मैं न चाहते हुए भी शहीद हो जाती हूं.

यह बात नहीं कि इन की आर्थिक स्थिति खराब है या इन में बजट बनाने की या गृहस्थी चलाने की निपुणता नहीं है. यह हर तरह से कुशल गृहिणी हैं. हर माह सामान एवं पैसों की बचत भी कर लेती हैं. पति का अच्छा व्यवसाय है. 2 बेटे अच्छा कमाते भी हैं. बेटी पढ़ रही है. खाना एवं कपड़े भी शानदार पहनती हैं. फिर भी न जाने क्यों इन्हें मांगने की आदत पड़ चुकी है. जब तक कुछ मांग नहीं लेतीं तब तक इन के हाथ में खुजली सी होती रहती है.

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इन की महानता भी है कि जब आप को किसी चीज की अचानक जरूरत आ पड़े और इन से कुछ मांग बैठें तो सीधे इनकार नहीं करेंगी. अपनी आवाज में बड़ी चतुराई से मिठास घोल कर आप को टाल देंगी और आप को महसूस भी नहीं होने देंगी. पहले तो आप का व परिवार का हालचाल पूछती हुई जबरदस्ती बैठक में बैठा लेंगी. फिर चाय की पत्ती में आत्मीयता घोल कर आप को जबरन चाय पिला देंगी. आप रो भी नहीं सकतीं और हंस भी नहीं सकतीं. असमंजस में पड़ कर उन की मिठास को मापती हुई घर लौट जाएंगी.

इधर कुछ दिनों से मैं इन की आदतों से बहुत परेशान हो गई थी. मेरे पास चीनी कम भी होती तो उन के मांगने पर देनी ही पड़ती. इस से मेरी दिक्कतें बढ़ जातीं. दूध कम पड़ने पर भी वह बड़े अधिकार से ले जातीं. पहले तो मेरे घर पर न होने पर वह मेरे नौकर से कुछ न कुछ मांग ले जाती थीं. अब खुद रसोई में जा कर अपनी आवश्यकता के अनुसार, हलदी, तेल वगैरह अपनी कटोरी में निकाल लेती हैं.

इस बीच अगर मैं लौट आई तो मुझ पर मधुर मुसकान फेंकती हुई आगे बढ़ जाती हैं. अदा ऐसी, मानो कोई एहसान किया हो मुझ पर. मैं तो बिलकुल आज की पुलिस की तरह हाथ बांध कर अपनी चीजों का ‘सती’ होना देखती रहती. उन के चले जाने पर पति से इस की चर्चा जरूर करती पर झुंझलाती खुद पर ही. मेरा बजट भी गड़बड़ाने लगा, सामान भी जल्दी खत्म होने लगा.

होली के दिन तो गजब ही हो गया. मैं जल्दीजल्दी पुए, पूरियां, मिठाई वगैरह बना कर मेज पर सजा रही थी. मेहमान आने ही वाले थे. इधर मेहमान आने शुरू हुए उधर मधुरिमा खतरे की घंटी बजाती हुई आ पहुंचीं. दृढ़ निश्चय कर के मैं अपना मोरचा संभालती कि उन्होंने एक प्यारी सी मुसकान मुझ पर थोप दी और मेरी मदद करने लगीं. मैं भीतर ही भीतर मुलायम पड़ने लगी.

सोचा, आज होली का दिन है, शायद आज कुछ नहीं मांगेंगी. पर थोड़ी भूमिका के बाद उन्होंने भेद भरे स्वर में मुझे अलग कमरे में बुलाया. मैं शंकित मन से उधर गई. उन्होंने अधिकारपूर्वक मुझ से कहा, ‘‘नीराजी, आज तो पिंकू के पिताजी बैंक नहीं जा सकते. कुछ रुपए, यही करीब 200 तक मुझे दे दो. मैं कल ही लौटा दूंगी.’’

मेरे ऊपर तो वज्र गिर पड़ा. मैं इनकार करती, इस के पहले ही वह बोल पड़ीं, ‘‘नीरा बहन, तुम तो दे ही दोगी. मैं जानती थी.’’

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मैं असमंजस में थी. वह फिर बोलीं, ‘‘देखो, जल्दी करना. तुम रुपए निकालो, तब तक मैं रसोई से 1 किलो चीनी ले आती हूं. थैली मेरे पास है. आज मेवों की गुझिया बनाने की सोच रही हूं. तुम लोगों को भी चखने को दे जाऊंगी.’’

मैं अभी कुछ कहना ही चाहती थी कि और भी मेहमान आ पहुंचे. मैं ने जल्दी से पर्स से 200 रुपए निकाले. सोचा, आगे देखा जाएगा. मधुरिमा ने जल्दी से रुपए लपक लिए और रसोई की ओर चली गईं. मैं इधर मेहमानों में फंस गई.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

थार की बेटी का हुनर: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- थार की बेटी का हुनर: भाग 1

रूमा देवी महिलाओं को ट्रेनिंग के साथ मार्केटिंग के गुर भी सिखाती हैं. वह इन महिलाओं के उत्पादों को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिला चुकी हैं.

लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो के फैशन वीक्स में भी उन के उत्पादों का प्रदर्शन हो चुका है. अपनी कला के सिलसिले में रूमा को पहली बार फैशन शो देखने दिल्ली जाने का मौका मिला था. वहां रूमा को पता चला कि वह दूसरे लोगों से कितनी पीछे हैं.

काफिला चला तो मंजिल मिलती गई

उस समय बाड़मेर की हस्तकला को कोई नहीं जानता था. अपने हुनर को पहचान दिलाने के लिए रूमा देवी ने कौटन की साडि़यों के साथ अन्य कपड़ों पर कशीदाकारी करानी शुरू की.

राजस्थान हेरिटेज वीक में पहली बार फैशन शो करने के लिए रूमा जयपुर गई थीं. वहां जितने भी नामचीन फैशन डिजाइनर आए हुए थे, वे उन सभी से मिलीं. लेकिन उन लोगों ने उन्हें निगेटिव रिस्पौंस दिया. उन्होंने कहा, ‘‘रूमाजी, फैशन शो में शामिल होना आप के स्तर का काम नहीं है.’’

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इस कटाक्ष ने रूमा के अंदर आग भर दी. इस के बाद रूमा ने अपना काम सुधारने की जिद ठान ली. उन्होंने एक महीने में अपने नए प्रोडक्ट तैयार किए, फिर बाड़मेर में अपना फैशन शो किया. रूमा और उन की टीम ने घूंघट में ही रैंप पर कैटवाक किया तो लोगों की तालियां रुक ही नहीं रही थीं. यह रूमा की पहली सफलता थी. इस के बाद रूमा को राजस्थान स्थापना दिवस पर जयपुर में हुए मेगा शो में प्रदर्शन का मौका मिला.

उस कार्यक्रम को 112 देशों में लाइव दिखाया गया. रूमा व उन की अन्य सहयोगियों ने खुद की कशीदाकारी की हुई पारंपरिक रंगबिरंगी वेशभूषा में जब रैंप पर वाक किया तो लोग देखते रह गए.

राजस्थानी वेशभूषा को इस रूप में विदेश में पहली बार देखा जा रहा था. इस का फायदा यह हुआ कि रूमादेवी को कई फैशन डिजाइनरों से और्डर मिलने लगे.

इस बीच जर्मनी के टैक्सटाइल शो में रूमा को जाने का मौका मिला तो उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि जिस ने आठवीं की पढ़ाई बीच में छोड़ दी हो, वह विदेश जा रही है. रूमा की बारी आई तो वह सुईधागा ले कर अपना हुनर दिखाने लगीं. रूमा की कशीदाकारी देख कर विदेशी डिजाइनर अचंभित रह गए.

सन 2017 में दिल्ली फेयर रनवे शो में बाड़मेर क्राफ्ट से तैयार स्टाइलिश परिधानों में रूमा व उस की सहयोगियों ने प्रस्तुति दी.

अपने काम की बदौलत रूमा को सरकार व विदेश से ढेर सारे अवार्ड मिल चुके हैं. सन 2017 के गणतंत्र दिवस समारोह में प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह ने उसे प्रशस्ति पत्र दे कर सम्मानित किया.

इस के अलावा नीदरलैंड ने वूमन औफ विंग्स पुरस्कार दिया. जैपोर ई-कौमर्स ने उसे हुनरमंद अवार्ड दिया. हस्तशिल्प कला संवर्धन, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी इन्हें सम्मानित किया. इस के अलावा रूमा को विश्व के 51 प्रभावशाली लोगों में अंतरराष्ट्रीय सीएसआर अवार्ड, शिल्प सृजन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 8 मार्च, 2019 को रूमा देवी को राष्ट्रपति रामनाद कोविंद ने नारी शक्ति अवार्ड से सम्मानित किया. बाड़मेर में पहली बार किसी महिला को सर्वोच्च नारी शक्ति के रूप में सम्मान मिला है. यह सम्मान रूमा देवी को हस्तशिल्प कला में नवाचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने पर दिया गया.

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पुरस्कार में उन्हें प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपए की राशि प्रदान की गई. महिला व बाल विकास मंत्रालय, महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाली महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नारी शक्ति पुरस्कार प्रदान करता है.

नारी शक्ति पुरस्कार मिलने के बाद देश भर से आई तमाम अवार्ड पाने वाली महिलाओं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुलाकात की. प्रधानमंत्री ने रूमा देवी से बात की और उन्हें बधाई दी. मोदी ने कहा, ‘रूमादेवी जी, मैं आप के बारे में इंडिया टुडे में पढ़ चुका हूं. आप का काम व योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण है. राजस्थान के पिछड़े जिले में 75 गांवों की 22 हजार से ज्यादा महिलाओं को घर बैठे रोजगार देना कोई मामूली बात नहीं है. यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. आप और आगे बढ़ो, मेरी शुभकामनाएं आप के साथ हैं.’

लगने लगी पुरस्कारों की झड़ी

राष्ट्रपति से नारी शक्ति अवार्ड मिलने के बाद रूमा देवी को एक और कामयाबी मिली है. उन्हें अब डिजाइनर औफ द ईयर 2019 के अवार्ड से नवाजा गया है. रूमा देवी ने दिल्ली में कई फैशन डिजाइनर्स को पीछे छोड़ यह अवार्ड जीता है.

दिल्ली के प्रगति मैदान टैक्सटाइल फेयर्स इंडिया (टीएफआई) द्वारा फैशन शो प्रतियोगिता हुई, जिस में देश भर के नामी डिजाइनर्स के साथसाथ रूमा देवी ने भी अपने समूह के कलेक्शन रैंप पर उतारे थे.

इस प्रतियोगिता का पहला राउंड रूमा देवी ने मई 2019 में क्लियर कर लिया था, जिस में पूरे भारत से 14 प्रतिभावान यंग डिजाइनर्स को दूसरे राउंड के लिए चयनित किया गया.

16 जुलाई, 2019 को प्रतियोगिता के फाइनल राउंड में रूमादेवी का ब्लैक एंड वाइट कलेक्शन प्रथम स्थान पर रहा. टीएफआई की ओर से आयोजित फैशन शो प्रतियोगिता जीतने के साथ ही रूमा देवी को पेरिस (फ्रांस) का टूर पैकेज भी मिला है. रूमा देवी और उन का समूह फ्रांस जा कर वहां बाड़मेर के हस्तशिल्प के लिए नए संभावनाओं की तलाश करेंगी.

इस शो में फैशन गुरु एवं डायरेक्टर प्रसाद बिडप्पा, सुपर वुमन मौडल नयनिका चटर्जी, वरिष्ठ डिजाइनर अब्राहम एंड ठाकुर, पायल जैन, टी.एम. कृष्णमूर्ति एवं टैक्सटाइल इंडस्ट्री के 240 समूहों के प्रतिनिधि व 40 देशों के व्यापार प्रतिनिधियों सहित फैशन जगत की विभिन्न हस्तियां शामिल रहीं.

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बाड़मेर के पड़ोसी जिलों जैसलमेर, जोधपुर व बीकानेर आने वाले सात समंदर पार के विदेशी सैलानियों को रूमादेवी एवं उन के समूह के उत्पाद खास पसंद आने लगे हैं. रूमादेवी कहती हैं कि जब बिचौलिए एजेंट पहले उन से हस्तशिल्प के काम के बदले थोड़ी मजदूरी दे कर बाकी के रुपए डकार जाते थे, तब से ही उन्होंने कमर कस ली थी कि वह इन एजेंटों का खेल खत्म कर के कार्य करने वाली हस्तशिल्पी महिलाओं को उन के हक का पैसा दिलाएंगी.

लेकिन रूमा को दुख है कि हस्तशिल्प के काम में लगी महिलाओं को आज भी वाजिब मजदूरी नहीं मिल रही. उन की उन्नति के लिए वह रातदिन इसी काम में लगी रहती हैं. इस की वजह से वह अपने एकलौते बेटे को भी समय नहीं दे पातीं.

उन के पति टीकूराम हर कदम पर उन का साथ देते हैं. टीकूराम अपने बेटे को भी संभालते हैं. उन्हें पता है कि रूमा के पास बहुत काम है.

रूमा देवी ने बताया कि एंब्रायडरी का मतलब होता है धागे से कपड़े पर काम करना. समूह में काम करने वाली अधिकांश महिलाएं अनपढ़ हैं. ये अनपढ़ महिलाएं एक प्रकार की डिजाइन तैयार करती हैं.

वे गिनगिन कर अलगअलग रंग के धागों से कशीदाकारी करती हैं. महीन कढ़ाई की जाती है. कपड़े पर एंब्रायडरी देख कर लगता नहीं कि ये हुनर अनपढ़ ग्रामीण महिलाओं के हाथों का है. मगर सच यही है कि ये महिलाएं फैशन डिजाइनर्स को पीछे छोड़ देती हैं.

महिलाएं एप्लीक का काम भी करती हैं. एप्लीक के काम में 2 कपड़े लिए जाते हैं. कपड़े की कटिंग कैंची से नहीं, छेनी और हथौड़ी से की जाती है. छेनी से खांचे बना कर कपड़े पर एप्लीक की जाती है. लकड़ी के गट्ठे पर कागज रख कर कागज पर तह किया कपड़ा रख कर छेनी से कपड़े पर खांचे बनाए जाते हैं.

खांचे छेनी और हथौड़ी से एक बार में कम से कम 10 पीस बनाए जाते हैं. अगर थोड़ी सी भी छेनी इधरउधर हो गई तो कपड़े का पूरा डिजाइन खराब हो जाने की संभावना रहती है. इसलिए कपड़े पर बहुत सावधानी से खांचे बनाए जाते हैं.

कटिंग के बाद कपड़े को ग्वार के गम के पानी से भिगो कर कड़क किया जाता है. फिर पेस्ट कर के महिलाओं को तुरपाई के लिए दिया जाता है. महिलाएं तुरपाई कर के कपड़े पर हाथ से सुईधागे द्वारा डिजाइन बनाती हैं. बड़ी डिजाइन कपड़े पर बनाने में कम समय लगता है जबकि छोटी डिजाइन में समय ज्यादा लगता है.

एक कुशन कवर 2 दिन में तैयार होता है. इसी से आप समझ सकते हैं कि इन शिल्पकारों को कितना परिश्रम करना पड़ता है. उस के हिसाब से इन्हें मजदूरी कम मिलती है.

कपड़े पर डिजाइन करने के बाद उस कपड़े को 12 घंटे तक पानी में भिगो कर रखते हैं ताकि ग्वार गम का कड़कपन उतर कर कपड़ा मुलायम हो जाए. इस से कपड़े का डिजाइन निखर आता है. यह कपड़ा बाजार में मांग के हिसाब से बेच दिया जाता है. इस तरह थार की महिलाएं घर बैठे काम कर के पैसे कमा रही हैं.

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कई महिलाओं के निठल्ले पति तो शराब पी कर घर पर पड़े रहते हैं. उन का पालनपोषण ये महिलाएं कर रही हैं. ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के सचिव विक्रम सिंह चौधरी ने रूमा देवी को जो राह दिखाई, वह उसी पर चल कर आज इस मुकाम तक पहुंची हैं. रूमा देवी उन्हें अपना गुरु मानती हैं.

रूमा देवी की लगन और परिश्रम ने बाड़मेर के क्राफ्ट डिजाइनरों और शिल्पकारों के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं. रूमा देवी ने 20 सितंबर को टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में भी भाग लिया, जिस में उन्होंने साढ़े 12 लाख रुपए जीते थे. इस मौके पर महानायक अमिताभ बच्चन ने भी उन के हस्तशिल्प कार्य की सराहना की.

रूमा देवी ने अपने हुनर से न केवल राजस्थान का नाम रोशन किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि कामयाबी के लिए अगर मन में लगन हो तो दुनिया में हुनर बोलता है.

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KBC 11: ‘रावण’ से जुडे़ इस सवाल ने यूपी के टीचर को हराया, हुआ लाखों का नुकसान

सोनी टी.वी का सबसे पसंदीदा रिएलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ सीजन 11 ने अब तक कई लोगों को मौका दिया है कि वे अपने सपने पूरे कर सकें. इस रिएलिटी शो के होस्ट और बौलीवुड इंडस्ट्री के महानायक यानी अमिताभ बच्चन का अंदाज इस कदर निराला है कि वे अपने सामने हौट सीट पर खेल रहे कंटेस्टेंट को बिल्कुल परेशान नहीं होने देते बल्कि समय समय पर उनका हौसला बढ़ाते ही रहते हैं.

अखिलेश कुमार अंबेश आए हौट सीट पर…

‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो के बीते ऐपिसोड में दर्शकों को एक कहावत सच होती नजर आई और वो कहावत है कि,- जिसके नसीब में जितना है उसको उतना ही मिलेगा फिर चाहे वे लाख कोशिशें ही क्यों ना कर ले. दरअसल ‘फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट’ का सही और सबसे जल्दी जवाब देकर हाथरस, उत्तर प्रदेश के अखिलेश कुमार अंबेश को बिग बी के साथ ‘कौन बनेगा करोड़पती’ खेलने का मौका मिला.

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रावण के ऊपर 25 लाख का सवाल…

एक के बाद एक सही जवाब दे कर अखिलेश कुमार अंबेश 12 लाख 50 हजार रूपय जीत चुके थे पर उनकी कुण्डली में तो जैसे कल रावण खुद घुसा हुआ था. बिग बी ने अखिलेश कुमार से 25 लाख का सवाल ये पूछा कि,- “किस ऐतिहासिक या पौराणिक पात्र के नाम पर श्रीलंका ने अपने पहले उपग्रह का नाम रखा?” और इस सवाल के साथ 4 औप्शन थे, “कुबेर”, “बुद्ध”, “ विभीषण”, और आखिरी औप्शन था “रावण”.

12 लाख 50 हजार से सीधा 3 लाख 20 हजार…

ओवर कौंफिडेंस और सही जवाब मालूम ना होते हुए भी अखिलेश कुमार अंबेश ने तुक्का मारते हुए इस सवाल का जवाब दिया “बुद्ध” जबकी इसका सही जवाब था “रावण”. जब बिग बी ने अखिलेश से पूछा कि क्या सोचकर उन्होनें इस सवाल का जबाद “बुद्ध” दिया है तो फिर अखिलेश ने बताया कि,- श्रीलंका में बौद्ध धर्म की काफी मान्यता है इसलिए उन्हें इसका जवाब “बुद्ध” लगा. इस सवाल का गलत जवाद देते ही हाथरस, उत्तर प्रदेश के अखिलेश कुमार अंबेश 12 लाख 50 हजार से सीधा 3 लाख 20 हजार पर आ गए.

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बता दें, अखिलेश कुमार अंबेश पेशे से एक अध्यापक हैं और जब बिग बी ने उनसे बच्चों को पढ़ाने का तरीका पूछा तो उन्होनें बताया कि वे गाना गा कर बच्चों को गिन्ती याद करवाते हैं और उनकी इस बात ने बिग बी को काफी प्रभावित किया.

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