देश के कुदरती संसाधनों यानी जल, जंगल, जमीन पर सभी नागरिकों का समान हक है. कहने को यह बात बड़ी अच्छी लगती है, मगर असलियत में हो क्या रहा है, इस समझने के लिए हाल ही में राजस्थान में घटे 2 मामले काफी हैं:
मामला 1
झुंझुनूं के गुढ़ा उदयपुरवाटी गांव में 25 सदस्यों की वन विभाग की टीम बाबूलाल सैनी के घर में पहुंचती है और घर को हटाने की तैयारी करती है.
बाबूलाल का यहां टीनशैड का पुश्तैनी मकान है, जो उसे अपने बापदादा से विरासत में मिला है.
जोरआजमाइश के बीच बाबूलाल खुद को तेल डाल कर आग के हवाले कर देता है. गंभीर हालत में वह झुंझुनूं के एक अस्पताल से होते हुए जयपुर अस्पताल में भरती हो जाता है.
बाबूलाल का भाई मोतीलाल कहता है कि उन को पहले कोई कानूनी नोटिस नहीं दिया गया.
मामला 2
नागौर के राउसर की बंजारा बस्ती को हटाने के लिए जेसीबी समेत भारी पुलिस व प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचता है. जेसीबी चला कर कच्चेपक्के मकानों को तोड़ दिया जाता है.
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इस दौरान बस्ती के तमाम लोगों व प्रशासनिक अमले के बीच झड़प शुरू हो जाती है. नतीजतन, जेसीबी चालक के सिर पर चोट लगने से उस की मौके पर ही मौत हो जाती है.
इस देश में विकास के नाम पर 14 राज्यों में करोड़ों आदिवासियों को उन जमीनों से खदेड़ कर फेंका गया है, जिन पर वे सैकड़ों साल से रह रहे थे.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में 10 आदिवासियों को भी गुंडों ने इसीलिए मार दिया था.