लेखक- रविंद्र शिवाजी दुपारगुडे 

ये वक्त से लड़ कर अपना नसीब बदल दे, इंसान वही जो अपनी तकदीर बदल दे. कल क्या होगा उस की कभी न सोचो, क्या पता कि कल वक्त खुद अपनी लकीर बदल दे.पंक्तियां तब सार्थक हो जाती हैं जब हम रानू मंडल जैसे लोगों के बारे में सुनते हैं. कहते हैं कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती. ऐसा ही कुछ रानू मंडल के साथ हुआ.

अपनी सुरीली आवाज के दम पर उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई और आज वह ऐसी जगह मौजूद हैं, जहां पहुंचना उन लोगों का सपना होता है, जो संगीत की दुनिया में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं.

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कुछ दिनों पहले तक पश्चिम बंगाल के रानाघाट रेलवे स्टेशन पर रानू मंडल नाम की उम्रदराज महिला अकसर पुरानी फिल्मों के गीत गा कर भीख मांगती थी. इस तरह उसे पेट भरने लायक पैसे मिल जाते थे.

ऐसे ही एक दिन वह भीख मांगतेमांगते मशहूर गायिका लता मंगेशकर का गाया हुआ फिल्म शोर का गीत ‘एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है...’ गा रही थी. यह गीत इतना कर्णप्रिय लग रहा था कि उधर से गुजरने वाले लोगों के पैर वहां रुक गए.

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