मकान बनने बंद हो गए हैं. मोबाइलों की बिक्री में ठहराव आ गया है. सरकार को तो पास्ट सुधारना है, इसलिए वह कश्मीर के पीछे पड़ी है और सुरक्षा पर खरबों रुपए खर्च कर रही है. वहां की एक करोड़ जनता आज गुलामी की जेल में बंद है.
सरकार का निशाना तो पी चिदंबरम, शरद पंवार, राहुल गांधी हैं, सदियों पुराने देवीदेवता हैं, भविष्य नहीं. युवाओं को सुधरा हुआ कल चाहिए. घरघर में तकनीक का लाभ उठाने के लिए गैजेट मौजूद हों. सिक्योर फ्यूचर हो. जौब हो. मौज हो. पर सरकार तो टैक्स लगाने में लगी है. वह महंगे पैट्रोल के साथ युवाओं को बाइक से उतारने में लगी है. यहां तक कि एग्जाम की फीस बढ़ाने में भी उसे हिचक नहीं होती.
देश का कल आज से अच्छा होगा, यह सपना अब हवा हो रहा है. नारों में कल की यानी भविष्य की बड़ी बातें हैं पर अखबारों की सुर्खियां तो गिरते रुपए, गिरते स्टौक मार्केट और बंद होती फैक्ट्रियों की हैं. सरकार भरोसा दिला रही है कि हम यह करेंगे वह करेंगे, पर हर युवा जानता व समझता है कि कल का भरोसा नहीं है.
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फ्लिपकार्ट और अमेजन, जो बड़ी जोरशोर से देश में आई थीं और जिन्होंने युवाओं को लुभाया था, अब हांफने लगी हैं. उन की बढ़ोतरी की दर कम होने लगी है जो साफ सिग्नल दे रही है कि आज के युवाओं के पास अब पैसा नहीं बचा.
दोष युवाओं का भी है. पिछले 8-10 सालों में युवाओं ने खुद अपने भविष्य को आग लगा कर फूंका है. कभी वे धार्मिक पार्टियों से जुड़ कर मौज मनाते तो कभी रेव पार्टियों में. हर शहर में हुक्का बार बनने लगे, फास्टफूड रैस्तरांओं की भरमार होने लगी. लोग लैब्स में नहीं, अड्डों पर जमा होने लगे. जिन्हें रातदिन लाइब्रेरी और कंप्यूटरों से ज्ञान बटोरना था वे सोशल मीडिया पर बासी वीडियो और जोक्स को एक्सचेंज करने में लग गए.