Family Story in Hindi- अपना अपना रास्ता: भाग 1

अस्पताल की खचाखच भरी हुई गैलरी धीरधीरे खाली होने लगी. सुरेंद्र ने करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. पूरी शाम गैलरी से गुजरते उन अनजान, अपरिचित चेहरों के बीच कोई जानापहचाना सा चेहरा ढूंढ़ने का प्रयत्न करतेकरते जब आंखें निराशा के सागर में डूबनेउतराने लगती हैं तो वह इसी प्रकार करवट बदल कर अपनी थकी आंखों पर पलकों का शीतल, सुखद आंचल फैला देता है.

क्यों करता है यह इंतजार? किस का करता है इंतजार?

‘‘सो गए, बाबूजी?’’ लाइट का स्विच औन कर जगतपाल ने कमरे में प्रवेश किया तो जैसे नैराश्य के अंधकार में भटकते सुरेंद्र के हाथ में ढेर सी उजलीउजली किरणें आ गईं.

‘‘कौन, जगतपाल? आओ बैठो.’’

‘‘बाबूजी, माफ कीजिएगा. बिना पूछे अंदर घुस आया हूं,’’

बैसाखी के सहारे लंगड़ा कर चलते हुए वह उस के बैड के पास आ कर खड़ा हो गया. चेहरे पर वही चिरपरिचित सी मुसकान और उस के साथ लिपटा एक कोमलकोमल सा भाव.

धीरे से करवट बदल कर सुरेंद्र ने अपनी निराश व सूनी आंखें उस के चेहरे पर टिका दीं. क्या है इस कालेस्याह चेहरे के भीतर जो इन थोड़े से दिनों में ही नितांत अजनबी होते हुए भी उन्हें इतना परिचित, इतना अपनाअपना सा लगने लगा है.

‘‘आप शाम के समय इतने अंधेरे में क्यों लेटे थे, बाबूजी? मैं समझा शायद सो गए.’’

‘‘बस, यों ही. सोच रहा था, सिस्टर किसी काम से इधर आएंगी तो खुद ही लाइट जला देंगी. छोटेछोटे कामों के लिए किसी को दौड़ाना अच्छा नहीं लगता, जगतपाल.’’ दिनरात फिरकी की तरह नाचती, शिष्टअशिष्ट हर प्रकार के रोगियों को झेलती, उन छोटीछोटी उम्र की लड़कियों के प्रति उन के मन में इन 16-17 दिनों में ही न जाने कैसी दयाममता भर आई थी.

और सच पूछो तो जगतपाल, कभीकभी मन के भीतर का अंधेरा इतना गहन हो उठता है कि बाहर का यह अंधकार उसे छू भी नहीं पाता. लगता है जैसे…’’ अवसाद में डूबा उन का स्वर कहीं गहरे और गहरे डूबता जा रहा था.

‘‘आप तो बड़ीबड़ी बातें करते हैं, बाबूजी. अपने दिमाग में यह सब नहीं घुसता. यह बताइए, आज तबीयत कैसी है आप की? कुछ खाने को मिला या वही दूध की बोतल…’’

उदास वातावरण को जगतपाल ने अपने ठहाके से चीर कर रख दिया.

सुरेंद्र का चेहरा खिल गया, ‘‘हां, जगतपाल, आज तबीयत बहुत हलकी लग रही है. रात को नींद भी अच्छी आई और जानते हो, आज से डाक्टर ने दूध के साथ ब्रैड खाने की इजाजत दे दी है.’’

15 दिनों से केवल दूध और बिना नमकमिर्च के सूप पर पड़े सुरेंद्र के चेहरे पर मक्खन लगे 2 स्लाइस खाने की तृप्ति और संतुष्टि बिखर आई थी. ‘‘सच कहता हूं, जगतपाल, दूध पीतेपीते इस कदर उकता गया हूं  कि दूध का गिलास देखते ही उसे लाने वाले के सिर पर दे मारने को जी हो आता है.’’

‘‘बसबस, बहुत अच्छे. अब आप 2-4 दिनों में जरूर घर चले जाएंगे. देख लीजिएगा…’’ उस का चेहरा प्रसन्नता के अतिरेक से चमक रहा था. धीरेधीरे वह सुरेंद्र का हाथ सहला रहा था.

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घर? सुबह डाक्टर शशांक ने भी तो यही कहा था, ‘आप की हालत में ऐसे ही सुधार होता रहा तो इस हफ्ते आप को जरूर यहां से छुट्टी मिल जाएगी.’

सिरहाने रखा चार्ट देख कर वे अपने नियमित राउंड पर चले गए थे.

तो क्या वे सचमुच फिर से घर जा सकेंगे? किस का घर? कौन सा घर? क्या उन का कोई घर है?

‘‘एक काम कर दोगे, जगतपाल? जरा यह कंबल पांवों पर डाल दो. कुछ ठंड सी महसूस हो रही है.’’

कंबल सुरेंद्र के पैर पर डाल कर जगतपाल ने मेज पर पड़ा अखबार उठा लिया और कुरसी घसीट कर उस पर पसर गया. एकएक खबर जो सुरेंद्र सुबह से न जाने कितनी बार पढ़ चके थे, अपनी टिप्पणियों सहित जगतपाल उसे सुनाए जा रहा था. और सुरेंद्र उस के चेहरे पर दृष्टि टिकाए एकटक उसे घूर रहे थे.

‘आखिर किस मिट्टी का बना हुआ है यह आदमी? अबोध मासूम बच्चे, अनपढ़, भोली पत्नी, सामने मुंहबाए अंधकारमय भविष्य और यह है कि चेहरे पर शिकन तक नहीं पड़ने देता.’

जगतपाल एक फैक्टरी में काम करता था. वह लोकल ट्रेन से आवाजाही करता था. रेलवे की स्थिति तो जानते ही हैं. आजीवन कुछ न कुछ हादसा होता रहता है और दशकों पुरानी तकनीक के बल पर विकसित देशों की बराबरी करने के ढोल पीटे जा रहे हैं. जगतपाल एक ट्रेन हादसे में अपनी एक टांग गंवा बैठा. 3 महीनों से अस्पताल में पड़ा है. अब चलनेफिरने की आज्ञा मिली है तो बैसाखी के सहारे सारे अस्पताल में चक्कर लगाता फिरता है. अपनी जीवनगाथा दोहरा कर हरेक को जीने के लिए उत्साहित किया करता है.

टांग चली गई, नौकरी की आशा टूट गई. पर माथे पर चिंता की रेखा तक नहीं आने देता. कहता है, ‘फैक्टरी में नौकरी नहीं रहेगी तो न सही, मुआवजा तो देंगे. बाबूजी 12 साल हो गए इस फैक्टरी में खटतेखटते. मुआवजे के रुपए से कोई धंधा शुरू करूंगा.’

उस की छोटीछोटी आंखों में आत्मविश्वास छलक आता है. ‘‘वक्त ने साथ दिया तो कौन जाने इस पराई चाकरी की अपेक्षा अधिक सुखचैन का जीवन कटे. कौन जानता है, वक्त कब क्या दिखा दे?’’ और उस की ये बातें सुन कर सुरेंद्र उसे देखते रह जाते हैं. कितना खुश, कितना मस्त, चिंता और दुख के सागर में डूब कर भी आशा की किरणें ढूंढ़ निकालता है. नित्य कुछ देर उन के पास आ कर हंसबोल कर उन्हें जीवन के प्रति विश्वास दिला जाता है. वरना 24 घंटे अस्पताल की इन सूनी सफेद दीवारों में घिरेघिरे उन्हें ऐसा महसूस होने लगता है जैसे वे दुनिया से कट गए हों. किसी को उन की जरूरत नहीं, दुनिया में उन का कोई अपना नहीं.

‘‘अच्छा, बाबूजी, अब आप आराम कीजिए,’’ बैसाखी उठा कर जगतपाल कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘अब जरा जनरल वार्ड की तरफ जाऊंगा. नमस्ते, बाबूजी.’’

सुरेंद्र उसे बैसाखी के सहारे जाते देखते रहे. अब किसी और अकेले पड़े रोगी के पास कुछ क्षण हंसबोल कर उस में जीवन के प्रति विश्वास घोलने का यत्न करेगा. फिर किसी और…और यही उस की दिनचर्या है. अपना भी समय कट जाता है, दूसरों का भी.

पहले वे स्वयं भी तो बिलकुल ऐसे ही थे. मस्त, बेफिक्र, भविष्य के प्रति पूर्णतया आश्वस्त. सपने में भी नहीं सोचा था कि जिंदगी कभी इतनी कड़वी व बोझिल हो जाएगी. जीवन को बांधने वाले स्नेहप्यार का एकएक धागा छिन्नभिन्न हो कर बिखर जाएगा.

‘काश, उन्हें भी जगतपाल की तरह कोई भोलीभाली सी सीधीसरल पत्नी मिली होती, जिस के होंठों की खिलीखिली सी मुसकान उन की दिनभर की थकान धोपोंछ कर साफ कर डालती. जिस के हाथों की गरमगरम रोटियों में प्यार घुला होता. जो उन के बच्चों को स्नेहप्यार से जीवन के संघर्षों से जूझना सिखाती. जिस के प्रेम और विश्वास में डूब कर वे समस्त संसार को भुला देते. वे सोचने लगे, ‘ओह, यह उन्हें क्या हो गया है? क्या सोचे जा रहे हैं? निरर्थक, अस्तित्वहीन, बेकार…जिन विचारों को ठेल कर दूर भगाना चाहते हैं, वे ही उन्हें चारों ओर से दबोचे चले जाते हैं.’

आंखों पर हाथ रख कर उन्होंने आंखें मूंद लीं. कहां गया जीवन का वह उल्लास, वह माधुर्य, उन्होंने कितने सपने देखे थे. लेकिन सपने भी कभी सच होते हैं कहीं?

‘‘क्या मैं अंदर आ सकती हूं?’’ और इस के साथ ही दरवाजे पर लटका सफेद परदा सरकाते हुए इंद्रा ने अस्पताल के उस स्पैशल वार्ड में प्रवेश किया तो जैसे अतीत की सूनी, उदास पगडंडियों में भटकते सुरेंद्र के पांव एकाएक ठिठक गए. विचारों की कडि़यां झनझनाती हुई बिखर गईं. ‘‘तुम? आज कैसे रास्ता भूल गई, इधर का?’’

कमरे में बिखरी दवाइयों की तीखी गंध से नाक सिकोड़ती इंद्रा ने कुरसी पर पसर कर कंधे से लटका बैग मेज पर पटक दिया. ‘‘बस, कुछ न पूछो. बड़ी कठिनाई से समय निकाल कर आई हूं.’’

सेंट की भीनीभीनी खुशबू कहीं भीतर तक सुरेंद्र को सुलगाती चली गई. कभी कितना प्यार था उन्हें इस महक से?

‘‘कुछ अमेरिकी औरतें आई हुई हैं आजकल एशिया का टूर करने. बस, उन्हीं के साथ व्यस्त रही इतने दिन. पता ही नहीं चला कि 8-10 दिन कैसे बीत गए.’’

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एक उड़तीउड़ती सी दृष्टि पूरे कमरे में डाल उस ने पति के दुर्बल, कुम्हलाए चेहरे पर आंखें टिका दीं, ‘‘बस, अभीअभी उन्हें एयरपोर्ट पर छोड़ कर आ रही हूं. इधर से जा रही थी. सोचा, 5 मिनट आप से मिलती चलूं. कल फिर एक सैमिनार के सिलसिले में बाहर जाना है. 3-4 दिनों के लिए अचला और रमेश भी आज आने वाले थे. तुम्हारी बीमारी के बारे में बता दिया था. शायद घर पहुंच भी गए होंगे.’’

वह अपनी रौ में बोले जा रही थी और सुरेंद्र पत्नी के चेहरे पर दृष्टि टिकाए विचारों में उलझे हुए थे.

कम उम्र में सेक्स के लिए उकसाता है रैप म्यूजिक

शोधकर्ताओं ने चेताया है कि बार-बार रैप म्यूजिक सुनने वाले किशोर-किशोरियां जल्दी सेक्स की शुरुआत कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि दूसरी तरह के संगीत की अपेक्षा रैप म्यूजिक में स्पष्ट यौन संदेश ज्यादा होते हैं.

अमेरिका के ह्यूस्टन राज्य में स्थित टेक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, मध्य विद्यालय के जो किशोर-किशोरी तीन घंटे या उससे अधिक देर तक रोजाना रैप संगीत का आनंद उठाते हैं, वे नौवीं कक्षा से ही सेक्स करने लगते हैं और समझते हैं कि उनके संगी-साथी भी ऐसा कर रहे हैं.

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शोध प्रमुख और यूटीहेल्थस स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के संकाय सहयोगी किमबर्ले जोनसन बेकर का कहना है कि रैप संगीत आपके उस विश्वास को बढ़ाता है कि आपके साथी क्या कर रहे हैं. यह हमें समझाता है कि कुछ चीजें करना ठीक है, जैसे शराब पीना या सेक्स करना. यह आपको यह सोच देता है कि हर कोई यही कर रहा है. जोनस बेकर कहते हैं कि जितना आप इसे सुनते हैं, उतना आप इस पर यकीन करते हैं.

सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक, जो किशोर-किशोरी रोजाना तीन घंटों या उससे ज्यादा समय तक संगीत सुनते हैं, वे दो सालों बाद 2.6 गुना ज्यादा सेक्स करते हैं. जोनसर बेकर कहते हैं कि जब किशोरावस्था में कोई रैप गाने में सेक्स की बातें सुनता है तो वह अपने दोस्तों से ताकीद करता है कि उसके आसपास लोग ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं या नहीं. अगर उसके दोस्त इसकी पुष्टि करते हैं तो फिर उनका यौन जीवन शुरू हो जाता है. लेकिन अगर दोस्त कहता है कि ऐसा नहीं होता है तो वे आश्वस्त हो जाते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता.

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शोधकर्ताओं ने अभिभावकों को सलाह दी है कि वे अपने बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करें. खासतौर पर रैप गानों और उनके बोल के बारे में अवश्य बातचीत करें और उनमें यौन व्यवहार और डेटिग के बारे में उनकी समझ स्पष्ट करें. वहीं, जोनसन बेकर अब 5वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के यौन व्यवहार पर अपना अगला अध्ययन कर रहे हैं.

Satyakatha- कहानी खूनी प्यार की: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

30मई, 2021 की सुबह छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के गांव तुमान में दिगपाल सिंह वैष्णव जब अपनी कोरा बाड़ी की ओर हमेशा की तरह दातून कर के चहलकदमी

करते हुए पहुंचा था तो उस ने देखा कि उस की बेटी कृष्णा बेसुध पड़ी हुई है. गले में साड़ी का फंदा फंसा हुआ है.

दिगपाल यह देखते ही घबरा गया. उस ने दातून एक तरफ फेंकी और तेजी से बेटी कृष्णा के पास पहुंच गया. उस ने सब से पहले उस के गले में पड़ी साड़ी की गांठ खोल दी. उस ने अपनी बेटी को खूब हिलायाडुलाया. लेकिन उस में कोई हरकत नहीं हुई तो वह घबरा गया. उस के आंसू टपकने लगे. उसे लगा कि कहीं कृष्णा ने आत्महत्या तो नहीं कर ली है या फिर उस की यह हालत किस ने की है.

वह समझ गया कि कृष्णा की सांसें थम चुकी हैं. दिगपाल चिल्लाता हुआ अपने घर की ओर भागा, ‘‘कृष्णा की मां… कृष्णा की मां, देखो यह कैसा अनर्थ हो गया है. किसी ने हमारी बेटी को मार कर घर के पिछवाड़े बाड़ी में फेंक दिया है.’’

यह सुन कर दिगपाल की पत्नी भी रोने लगी. कहने लगी कि किस ने मार दिया बेटी को.

थोड़ी ही देर में यह खबर तुमान गांव में फैल गई. इस के बाद तो दिगपाल के घर के बाहर लोगों की भीड़ जुटने लगी.

उसी समय गांव के सरपंच सचिन मिंज ने कटघोरा थाने फोन कर के घटना की जानकारी थानाप्रभारी अविनाश सिंह को दे दी.

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थानाप्रभारी अविनाश सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हुए और सुबह लगभग 8 बजे तुमान गांव पहुंच कर घटनास्थल का मुआयना करने में जुट गए. थानाप्रभारी ने घटनास्थल से ही अनुविभागीय अधिकारी (पुलिस) रामगोपाल कारियारे, एसपी अभिषेक सिंह मीणा को घटना की जानकारी दे दी.

कुछ ही देर में कोरबा से डौग स्क्वायड टीम वहां पहुंच गई. जांच के लिए खोजी कुत्ता बाघा को मृत शरीर के पास ले जा कर अपराधी को पकड़ने के लिए छोड़ दिया गया.

यह अजूबा पहली बार गांव वालों ने देखा. जब खोजी कुत्ता अपराधी को पकड़ने के लिए शव को सूंघ रहा था तो लोग यह मान रहे थे कि अब जल्द ही वह आरोपी को पकड़ लेगा.

मगर लोगों ने आश्चर्य से देखा कुत्ता इधरउधर घूमते हुए मृतका कृष्णा कुमारी के पिता दिगपाल वैष्णव और भाई राजेश के आसपास मंडराने लगा. यह देखते ही थानाप्रभारी अविनाश सिंह ने कृष्णा के पिता दिगपाल और राजेश को हिरासत में लेने का निर्देश दिए.

दिगपाल वैष्णव स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कंपाउंडर था. क्षेत्र में उस की अच्छी इज्जत थी. इसलिए वह थानाप्रभारी से गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘साहब, मैं भला क्यों अपनी ही बेटी को मारूंगा. आप यकीन मानिए, मैं ने कृष्णा को नहीं मारा है.’’

वह बारबार कह रहा था, मगर 2 सिपाहियों ने उसे हिरासत में ले लिया और एक कमरे में ले जा कर के उस से इकबालिया बयान देने को कहा. तब वह आंसू बहाते हुए हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मैं बिलकुल सच कह रहा हूं कि मैं ने कृष्णा को नहीं मारा है, कृष्णा मुझे जान से भी ज्यादा प्यारी थी, मैं उसे नहीं मार सकता.’’

इस पर अविनाश सिंह ने कहा, ‘‘देखो, पुलिस के सामने सचसच बता दो, जितना हो सकेगा हम तुम्हारे साथ रियायत करेंगे. खोजी डौग गलत नहीं हो सकता, यह जान लो.’’

इस पर आंसू बहाते हुए दिगपाल वैष्णव ने कहा, ‘‘साहब, मेरा यकीन मानिए मैं ने कृष्णा को नहीं मारा है. मैं तो  सुबह जब गया तो उसे मृत अवस्था में देखा था और उसे अपनी गोद में ले कर के रोता रहा था.’’

दिगपाल को याद आया कि यही कारण हो सकता है कि कुत्ते ने उसे आरोपी माना है. जब यह बात उस ने जांच अधिकारी अविनाश सिंह को बताई तो उन्हें समझ में आया.

उन्होंने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारी बात सही हो सकती है, मगर यह जान लो कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. हमारी जांच में और भी बहुत सारे ऐसे सबूत हमें आखिर मिल ही जाएंगे, जिस से यह सिद्ध हो जाएगा कि आरोपी कौन है. अच्छा है कि अभी भी अपना अपराध कबूल कर लो.’’

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‘‘नहींनहीं साहब, मैं ने यह कर्म नहीं किया है.’’ दिगपाल ने कहा.

विवेचना अधिकारी और अन्य पुलिस जो जांच कार्य में लगी हुई थी, ने यह निष्कर्ष निकाला कि हो सकता है सुबह जब कृष्णा की लाश दिगपाल ने देखी तो उसे स्पर्श किया होगा. शायद यही कारण है कि खोजी कुत्ता उसे आरोपी मान रहा है.

इस तरह जांच आगे एक नई दिशा में आगे बढ़ने लगी.

जांच में पता चला कि पिछले लंबे समय से कृष्णा कुमारी का प्रेमसंबंध पास के गांव पुटुंवा निवासी संजय चौहान (23 साल) नामक युवक से था और उन के संबंध इतने मजबूत थे कि कृष्णा कुमारी ने संजय चौहान को एक बाइक और मोबाइल भी गिफ्ट किया था.

जांच अधिकारी अविनाश सिंह ने गौर किया. जब संजय चौहान घटनास्थल पर पहुंचा था तो उस समय उस का चेहरा उतरा हुआ था और आंखें लाल थीं, ऐसा लग रहा था कि वह बहुत रोया हो. अविनाश सिंह ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने उन के सामने अपना मोबाइल रख दिया, जिसे देख कर थानाप्रभारी चौंक गए.

उस मैसेज से यह बात स्पष्ट थी कि हत्यारा दिगपाल वैष्णव ही है. संजय चौहान के मोबाइल में कृष्णा कुमारी का  मैसेज था, जिस में लिखा था, ‘आज की रात मैं नहीं बच पाऊंगी, मेरे पिता मुझे मार डालेंगे, मुझे बचा लो…’

यह मैसेज यह बता रहा था कि हत्या दिगपाल ने ही की है. इस सबूत के बाद अविनाश सिंह ने दिगपाल को फिर तलब किया और उसे मैसेज दिखाते हुए कठोर शब्दों में कहा, ‘‘दिगपाल, अब तुम सचसच बता दो, अब हमारे हाथ में सबूत आ गया है. यह देखो, तुम्हारी बेटी ने कल रात संजय को यह मैसेज किया था. बताओ, रात को क्याक्या हुआ था.’’

यह सुन कर दिगपाल भयभीत होते हुए बोला, ‘‘साहब, क्या मैसेज लिखा है मुझे बताया जाए.’’

इस पर थानाप्रभारी ने संजय के मोबाइल में लिखा हुआ मैसेज उसे पढ़ कर सुना दिया. उसे सुन कर वह आंसू बहाने लगा और सिर पकड़ कर बैठ गया.

थानाप्रभारी ने थोड़ी देर बाद उस से कहा, ‘‘अब बताओ, तुम स्वीकार करते हो कि कृष्णा की हत्या तुम्हीं ने की है. हमें यह जानकारी भी मिली है कि तुम उस का विवाह दूसरी जगह करने वाले थे, जिस से वह बारबार मना भी कर रही थी. मगर इस बात पर घर में विवाद भी चल रहा था. इन सब बातों को देखते हुए स्पष्ट है कि हत्या कर के तुम्हीं लोगों ने की है.’’

दिगपालरोआंसा हो गया. उस ने कहा, ‘‘साहबजी, मैं फिर हाथ जोड़ कर बोल रहा हूं कि कृष्णा मेरी जान से भी प्यारी थी. मैं ने उसे नहीं मारा है.’’

यह सुन कर जांच अधिकारी अविनाश सिंह ने कहा, ‘‘तुम चाहे जितना भी कहो, सारे सबूत चीखचीख कर तुम्हें हत्यारा बता रहे हैं. साक्ष्य तुम्हारे खिलाफ हो चुके हैं. तुम बताओ, तुम्हारे पास ऐसा क्या सबूत है, जिस से यह सिद्ध हो सके कि तुम ने बेटी की हत्या नहीं की.’’

यह सुन कर दिगपाल बोला, ‘‘मैं क्या बताऊं मेरे पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है. मगर मैं यही कहूंगा कि मैं ने अपनी बेटी को नहीं मारा है.’’

इस पर अविनाश सिंह ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम पुलिस को चाहे कितना ही चक्कर पर चक्कर लगवाओ, मैं यह जान चुका हूं कि कृष्णा का मर्डर तुम्हारे ही हाथों से हुआ है. तुम बड़े ही शातिर और चालाक हत्यारे हो.’’

थानाप्रभारी अविनाश सिंह ने वहां मौजूद अपने स्टाफ से कहा, ‘‘इसे हिरासत में ले कर  थाने ले चलो, बापबेटे से आगे की पूछताछ वहीं पुलिसिया अंदाज में करेंगे.’’

छत्तीसगढ़ का औद्योगिक जिला कोरबा ऊर्जा राजधानी के रूप में जाना जाता है. इस के अलावा यह कोयला खदानों के कारण एशिया भर में विख्यात है. कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर तुमान गांव स्थित है.

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यह ऐतिहासिक तथ्य है कि तुमान छत्तीसगढ़ यानी दक्षिण कौशल की प्रथम राजधानी हुआ करती थी. यहां का एक रोमांचक इतिहास अभी भी लोगों को पर्यटनस्थल के रूप में तुमान की ओर आकर्षित करता है.

इतिहास के अनुसार, सन 850-1015 के मध्य कलचुरी राजाओं का शासन था. वर्तमान जिला बिलासपुर की रतनपुर नगरी  राजा रत्नसेन प्रथम का प्राचीन काल में यहां शासन था और हैहय वंश ने यहां अपनी राजधानी बनाई थी. यहीं से पूरे छत्तीसगढ़ का राजकाज संभाला जाता था.

थाना कटघोरा में जब दिगपाल और उन के बेटे राजेश से पूछताछ की गई तो वह एक ही बात कहते रहे कि उन्होंने कृष्णा को नहीं मारा है… नहीं मारा है.

मगर विवेचना के बाद सारे सबूत यही कह रहे थे कि मामला सीधेसीधे औनर किलिंग का है.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि कृष्णा कुमारी की हत्या पिता दिगपाल और भाई राजेश ने ही की है.

जांच अधिकारी अविनाश सिंह यही सब सोचते हुए अपने कक्ष में बैठे कुछ दस्तावेजों को देख रहे थे कि थोड़ी देर में एक एसआई ने उन के सामने मृतका कृष्णा के एक दूसरे प्रेमी नेवेंद्र देवांगन को सामने ला कर खड़ा कर दिया.

कटघोरा निवासी नेवेंद्र देवांगन जोकि रायपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुका था. कृष्णा उस से भी कुछ समय से वाट्सऐप पर चैट यानी बातचीत करती थी.

नेवेंद घबराया हुआ सामने खड़ा था. अविनाश सिंह ने उस की आंखों में देखते हुए  कहा, ‘‘कृष्णा कुमारी को तुम कब से जानते हो? सब कुछ सचसच बताओ, कोई भी बात छिपाना नहीं. देखो तुम पढ़ेलिखे नौजवान हो और मामला हत्या का है.’

अगले भाग में पढ़ें- संजय चौहान से एक बार फिर हुई पूछताछ

‘125 वां साल ओलंपिक’ का ऐतिहासिक आगाज!

खेलों का महाकुंभ ओलम्पिक हर चार साल पर होता है मगर कोरोना कोविड 19 वायरस महामारी के कारण 2020 मे इसका आयोजन अंततः स्थगित हो गया था. 23 जुलाई को इसका इतिहासिक शुभारंभ हुआ. मानव सभ्यता में ओलंपिक का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है इस दफा इसलिए भी कि आश्चर्यजनक तरीके से यह ओलंपिक की 125 वीं ऐतिहासिक वर्षगांठ भी है.

यह सच है कि अगर कोरोना के कारण 2020 में ओलंपिक का आयोजन हो जाता है तो यह 125 वां साल ओलंपिक के इतिहास में दर्ज नहीं हो पाता.

वस्तुत:ओलम्पिक खेलों का आयोजन सन् 1896 मे यूनान की राजधानी ऐथेंस मे हुआ था.और इसका “ओलम्पिक नामकरण” ओलम्पिया पर्वत पर खेले जाने के कारण रखा गया था. तब से लेकर आज तलक ओलम्पिक खेलों की यशस्वी परंपरा अबाध गति से चली आ रही है.

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उल्लेखनीय है कि ओलम्पिक ध्वज की पृष्ठभूमि सफेद है,सिल्क के बने ध्वज के मध्य मे ओलम्पिक प्रतीक के रूप में पांच रंगीन छल्ले नीला-यूरोप,पीला-एशिया,काला-अफ्रीका ,हरा -आस्ट्रेलिया,लाल-उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका को एक-दूसरे से मिले हुए दर्शाए गए है जो विश्व के पांच महाद्वीपों के प्रतिनिधित्व करने के साथ ही मुक्त स्पर्धा का प्रतीक है.

2021 मे खेले जाने वाले ओलम्पिक की शुरुआत जापान के टोक्यो शहर से 23 जुलाई 2021को आरंभ हो गई है. दुनिया भर में बड़े ही रोमांच के साथ देखा जा रहा है.इस दफा का जो ओलम्पिक 32 वां ओलम्पिक है.

टोक्यो मे खेले जाने वाले ओलम्पिक मे 206 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं।इसमे लगभग 11,000 से अधिक एथलीट भाग ले रहे हैं.इस ओलम्पिक में 33 खेलों की स्पर्धा होगी.

2021 के ओलम्पिक में भारत के 127 एथलीट भाग ले रहे हैं जो कि इस बार का सबसे बड़ा दल है. ओलम्पिक को जापान मे जापानी शब्द ‘मीराइतोवा’ नाम दिया गया है. मीराइतोवा जापानी शब्द का अर्थ होता है ‘भविष्य और अंतकाल’.

ओलंपिक: भारत की हस्ती

ऐतिहासिक ओलंपिक खेलों में भारत की हस्ती आखिर क्या है यह जानना भी आपके लिए बहुत रोचक और जरूरी है.

इस दफा 195 देश टोक्यो ओलंपिक में शिरकत कर रहे हैं. कुल 206 टीमें भाग ले रही हैं. और सबसे बड़ी बात 23 जुलाई से 8 अगस्त तक ओलंपिक के महोत्सव को सारी दुनिया आंखों में संजोने के लिए लालायित है.

खेल प्रेमियों के लिए ओलंपिक एक लंबा इंतजार होता है. वहीं खिलाड़ी, जो कुछ कर दिखाने का जज्बा रखते हैं उनके लिए ओलंपिक से बड़ा दुनिया में कोई खेल महोत्सव नहीं है. इसलिए जहां खिलाड़ी अपनी पूरी ताकत परिश्रम लगा देते हैं वही दुनियाभर के देश भी ओलंपिक के लिए निरंतर तैयारियां करते रहते हैं.

जहां तक हमारे देश भारत की बात है इन सवा सौ सालों में भारत को सिर्फ 28 मेडल मिले हैं. जिनमें सिर्फ 9 गोल्ड मेडल हैं. इसमें भी निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा ने एक व्यक्तिगत रूप से गोल्ड जीतकर के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया है. अब की दफा भारत के अनेक खिलाड़ी ओलंपिक में भाग्य आजमाने पहुंच चुके हैं.

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हमारे देश भारत से अट्ठारह खेलों में 119 खिलाड़ी शिरकत करेंगे. यहां यह भी आपको मालूम होना चाहिए कि पीवी संधू विगत ओलंपिक में गोल्ड से महरूम रह गई थीं. इस दफा बैडमिंटन कि यह विश्व स्तरीय खिलाड़ी गोल्ड के लिए लंबे समय से तैयारी कर रही है और देश के खेल प्रेमी यह अपेक्षा कर रहे हैं कि पीवी संधू कुछ कमाल कर दिखाएंगी.

इसी तरह कुश्ती, निशानेबाजी, मुक्केबाजी में भी भारत को बड़ी उम्मीद है कि उसके खिलाड़ी अपना बेहतरीन प्रदर्शन दिखा सकते हैं.

निशानेबाजी में तेजस्विनी सावंत मुक्केबाजी में अमित पंघाल मेरी कॉम, कुश्ती में बजरंग पुनिया विनेश फोगाट शूटिंग में सौरभ चौधरी, टेबल टेनिस में मनिका बत्रा तीरंदाज दीपिका कुमारी नीरज चोपड़ा टेनिस में सानिया मिर्जा ऐसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी ओलंपिक में अपनी क्षमता दिखाने पहुंच चुके हैं.

अब देखना यह है कि परिणाम क्या आता है. बाहरहाल देश के खेल प्रेमियों की शुभकामनाएं अपने लाड़ले खिलाड़ियों के साथ है.

एक्स पॉर्न स्टार Mia Khlifa ने दिया पति को तलाक, पोस्ट शेयर कर लिखी ये बात

एक्स पॉर्न स्टार मिया खलीफा (Mia Khalifa) अपनी बोल्ड तस्वीरों के कारण सोशल मीडिया पर छाये रहती हैं. दो साल पहले ही उन्होंने रॉबर्ट सैंडबर्ग संग शादी की थी. अब मिया खलीफा ने पति से अलग होने का फैसला किया है. जी हां, यह जानकारी सोशल मीडिया से मिली है,

दरअसल मिया ने सोशल मीडिया के जरिए पति से रिश्ता खत्म करने की जानकारी दी हैं. उन्होंने एक पोस्ट के जरिए बताया है कि हम पूरे भरोसे के साथ कह सकते हैं कि हमने इस शादी को बचाने के लिए सब कुछ किया लेकिन एक साल तक कोशिश करने के बाद हम एक-दूसरे से अलग हो रहे हैं ये जानते हुए कि हम हमेशा के लिए अच्छे दोस्त रहेंगे.

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मिया खलीफा ने लिखा हम खुश हैं कि हमने पूरा समय लिया और इस रिश्ते को सब कुछ दिया…

उन्होंने आगे लिखा कि हम हमेशा एक-दूसरे को प्यार और सम्मान देते रहेंगे क्योंकि हम जानते हैं कि ये रिश्ता किसी एक घटना की वजह से नहीं टूटा है. बल्कि यह ऐसे मतभेदों पर हुआ जिन्हें बदला नहीं जा सकता था. ये निर्णय लेने में काफी देर कर दी लेकिन हम खुश हैं कि हमने पूरा समय लिया और इस रिश्ते को सब कुछ दिया.

 

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मिया खिलाफ हुईं ट्रोल

आपको बता दें कि मिया खिलाफ अपने तलाक की खबर सोशल मीडिया पर शेयर करने के बाद ने एक और ट्वीट किया. इस ट्वीट में मिया ने लिखा कि जब कोई तलाक लेता है तो आई एम सॉरी की जगह ‘बधाई हो’ कहना सीखें.  तो वहीं कुछ लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं तो वहीं कुछ यूजर्स उनका समर्थन कर रहे हैं.

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आदित्य को गुंडों से पिटवाएगी मालिनी का मां, क्या बचा पाएगी Imlie?

स्टार प्लस का सीरियल इमली में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो की कहानी एक नया मोड़ ले रही है. शो में अब तक आपने देखा कि  अनु मालिनी के मन में इमली के खिलाफ जहर भर रही है. तो वहीं आदित्य-इमली को साथ में देखकर अनु का गुस्सा सातवे आसमान पर होता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में महाट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

इमली के अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि अनु हर तरह से कोशिश करेगी कि इमली बेस्ट बहू का खिताब ना जीते लेकिन इमली बेस्ट बहू का कम्पटीशन जीत जाएगी. शो में ये दिखाया जाएगा कि इमली ने जिस तरह से अपर्णा को निस्वार्थ भाव से बचाने की कोशिश की है, ये बात जजेज के दिलों को छू लेगी.

इमली को मिलेगा बेस्ट बहू का अवार्ड

 

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तो वहीं मालिनी की मां अनु ये सब देखकर भड़क जाएगी. वह इमली और आदित्य को दूर करने  के लिए नया प्लान बनाएगी. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि वह इमली के खिलाफ मालिनी की कान भरेगी.

अनु इमली के खिलाफ मालिनी की भरेगी कान 

 

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अनु मालिनी से कहेगी कि इमली ने उसका हक छीन लिया है लेकिन उसेअपने हक से पीछे नहीं हटना चाहिए. तो उधर मालिनी को भी अनु की बातें सही लगने लगेगी.

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अनु आदित्य को किडनैप करवा लेगी. और वह गुडों से कहेगी कि वो आदित्य को तब तक पीटें जब तक उसकी हड्डियां ना टूट जाए. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या इमली आदित्य को बचा पाएगी?

 

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Anupamaa ने ऑनस्क्रीन सास-ससुर संग किया डांस, वायरल हुआ Video

स्टार प्लस का सुपरहिट सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) फेम  रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं.  शो में भले ही वह इमोशनल हैं लेकिन रियल लाइफ में वह जमकर मस्ती करती हैं. आए दिन अनुपमा यानी रूपाली गांगुली फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं.

अब रूपाली गांगुली ने अपने ऑनस्क्रीन सास-ससुर बा अल्पना बुच (Alpana Buch) और बापूजी (Arvind Vaidya) के साथ डांस करते हुए वीडियो शेयर किया हैं. जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

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‘अनुपमा’ ने किया बा और बापू जी संग डांस, देखें Video

 

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उन्होंने बॉलीवुड सॉन्ग ‘शोला जो भड़के’ पर जमकर डांस किया है. इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि बा, बापू जी और अनुपमा जमकर डांस कर रहे हैं.

 

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रुपाली गांगुली  शो की कास्ट के साथ मिलकर खूब बनाती हैं इंस्टा रील्स 

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) शो की कास्ट के साथ मिलकर खूब इंस्टा रील्स बनाती हैं और वह आए दिन अपने फैंस के लिए शो की बिहाइंड द सीन्स तस्वीरें और वीडियो भी शेयर करती रहती हैं.

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एक्ट्रेस ने शूटिंग के दौरान बनाई गई एक रील शेयर की है, जिसमें वह टीवी एक्ट्रेस बा और बापु जी के साथ नजर आ रही हैं. पहले अनुपमा और बा डांस करते हैं फिर बापू जी उन्हें ज्वाइन करते हैं और जमकर ठुमके लगाते हैं.

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बाप की छोटी दुकान का मजाक न उड़ाएं

आधुनिकता के मौजूदा दौर में छोटीमोटी दुकान के टिके रहने के लिए बाजार में हो रहे परिवर्तनों के ऊपर सतत निगरानी रखते हुए मौडर्न ट्रैंड को अपनाया जाना जरूरी है. ऐसे में पिता की दुकान से कन्नी काटने या उस का मजाक बनाने की जगह उस में हाथ बंटाना फायदे का सौदा है.

विनय गुप्ता निर्मल डेरी एवं किराना एजेंसी नामक एक किराना स्टोर के मालिक हैं. किराने की यह दुकान उन के पिताजी ने उन्हें आज से 25 वर्षों पहले तब खुलवाई थी जब वे मात्र 21 वर्ष के थे. तब से वे अपनी दुकान को अपने अनुकुल ही चला रहे हैं. वे बताते हैं कि दुकान ही उन की आजीविका का साधन है, इसलिए सुबह 8.30 से ले कर रात्रि 11 बजे तक दुकान पर ही उन का समय बीतता है. कुछ दिनों पूर्व मैं उन की दुकान पर सामान लेने गई तो दुकान में काफी कुछ बदलाव सा अनुभव किया. विनयजी भी पहले की अपेक्षा काफी खुश और संतुष्ट नजर आ रहे थे. पूछने पर पता चला कि उन का बेटा जो कि दिल्ली के किसी कालेज से एमबीए कर रहा था अपनी पढ़ाई पूरी कर के वापस आ गया है और अब उस ने अपनी इच्छानुसार दुकान में काफी बदलाव किए हैं.

विनय हंसते हुए कहते हैं, ‘‘बेटे के आने के बाद से ग्राहकी और दुकान का स्टैंडर्ड बढ़ने के साथसाथ मेरा सुकून भी बढ़ा है.’’ वहीं उन का युवा बेटा अंकित कहता है, ‘‘हां, यह सही है कि पहले मु  झे दुकान पर बैठना बिलकुल भी पसंद नहीं था परंतु अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद मैं ने अनुभव किया कि किसी दूसरी कंपनी में किसी दूसरे के अधीन काम करने की अपेक्षा अपनी ही दुकान में पिताजी के अधीन काम कर के उसे ही एक कंपनी का रूप क्यों न दे दिया जाए. क्यों न अपनी शिक्षा का उपयोग दूसरों की अपेक्षा अपने लिए ही किया जाए. बस, यह खयाल आते ही मैं ने अपने पिताजी की नौकरी जौइन कर ली. मेरे आने से यहां एक ओर मेरे पिता को एक हैंड मिला है वहीं मु  झे अपने पिता को सपोर्ट कर पाने का सुकून.’’

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अपनी बात को जारी रखते हुए अंकित आगे कहते हैं, ‘‘दुकान पर काम प्रारंभ करने से पूर्व हम ने सर्वप्रथम अपने काम के घंटे और तरीकों पर बहुत तरह का विचारविमर्श किया ताकि मु  झे स्पेस भी मिले और पिताजी को आराम भी, साथ ही हमारी दुकान का आउटपुट भी बढ़ कर मिले. मैं खुशनसीब हूं कि पिताजी ने मेरे हर सु  झाव को न केवल ध्यान से सुना बल्कि उन पर अमल करने के लिए पर्याप्त बजट और आजादी भी दी और अब मैं अपने बिजनैस को बढ़ाने के लिए सतत प्रयासरत हूं.’’

अपने बेटे के बारे में बात करते हुए विनय गुप्ता कहते हैं, ‘‘ये आज के युवा हैं. यह सही है कि अनुभव में हम इन से काफी आगे हैं परंतु मौडर्न तकनीक व नईर् पीढ़ी की पसंद से ये लोग हम से बहुत आगे हैं. यदि हम चाहते हैं कि वे हमारे साथ काम करें तो इस के लिए उन्हें उन के तरीके से काम करने की आजादी देनी ही होगी. आखिर जब वे आजाद होंगे तभी तो अपने पंख फैला कर उड़ पाएंगे.’’

अपनी दुकान के बदलावों के बारे में बात करते हुए अंकित कहते हैं, ‘‘अपनी दुकान के आधारभूत ढांचे में बिना कोई बदलाव किए मैं ने उसे कुछ आधुनिक रूप देने का प्रयास किया है. आज हर चीज एक्सपोजर मांगती है तो उस के लिए कुछ रैक्स की व्यवस्था कर के दुकान के सामान को एक्सपोज करने का प्रयास किया ताकि ग्राहक को दुकान में निहित सारा सामान दिख सके क्योंकि ग्राहक कितने भी सामान की लिस्ट बना कर ले आए परंतु दुकान पर सामान देख कर उसे अधिकांश सामान याद आ जाता है. परंतु यह तभी संभव है जब दुकान का सामान उसे दिखाई देगा.’’

इसी प्रकार मिलतीजुलती कहानी कानपुर के एक मिठाई दुकान के संचालक सुनील की है. उन्होंने अपनी युवावस्था में इस दुकान को खोला था. तब से उन की दुकान दूध से बनाए जाने वाले पेड़ों की विशेषता के लिए प्रसिद्ध है. आज कानपुर में उन की दुकान की लगभग 10 ब्रांचें हैं और व्यापार के इस प्रचारप्रसार का पूरा श्रेय वे अपने दोनों बेटों को ही देते हैं.

होटल मैनेजमैंट में स्नातक उन का बेटा कार्तिक कहता है, ‘‘पिताजी के बनाए पेड़ों की दूरदूर तक प्रसिद्धि थी. सच पूछा जाए तो उन की मेहनत का पूरा आउटपुट उन्हें नहीं मिल पा रहा था. हम ने उसे आधुनिक तकनीक के सहारे से चैनलाइज करने का प्रयास किया है. आज न केवल कानपुर बल्कि देश के सभी बड़े शहरों में हमारे पेड़े अपनी खुशबू बिखेर रहे हैं.

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‘‘हम ने अपने व्यवसाय को पूरी तरह औनलाइन कर दिया है जिस से कोई भी कहीं से भी हमें और्डर कर सकता है. होटल मैनेजमैंट से स्नातक करने के कारण मैं ने पेड़ों के बेसिक इंग्रीडिएंट्स में कुछ नए प्रयोग कर के उन्हें विभिन्न फ्लेवर्स में बनाने का प्रयास किया है जिस से उन की डिमांड में बेहताशा वृद्धि हुई है.

‘‘आजकल नवीनता, पैकिंग, डैकोरेशन और एक्सपोजर का जमाना है. मैं ने पहले स्वयं को एक ग्राहक महसूस किया कि मैं एक मिठाई की दुकान पर जा कर क्या अपेक्षा करूंगा और फिर अपनी अपेक्षाओं के अनुकूल अपने व्यवसाय में परिवर्तन लाने का प्रयास किया. हां, इस में पापा का योगदान सब से बड़ा है कि उन्होंने हम पर भरोसा किया. हमें दुकानरूपी एक उन्मुक्त आकाश दिया जिस में हम ने अपनी शिक्षारूपी ब्रश के माध्यम से कल्पनाओं के रंग भर कर उसे सजाया है.’’

अपने बेटों के बारे में बात करते हुए सुनीलजी कहते हैं, ‘‘मु  झे मेरे बेटों की शिक्षा का बहुत लाभ हो रहा है. आज न केवल हमारी बिक्री बढ़ी है, बल्कि हमारी साख भी बढ़ी है. मेरा अनुभव और बच्चों की तकनीक दोनों का जब तालमेल हुआ तो परिणाम तो सुखद आना ही था. हां, मैं ने उन्हें उन के मनमुताबिक काम करने की पूरी छूट दी ताकि वे हमारे व्यवसाय को बढ़ाने में अपना भरपूर योगदन दे सकें. आखिर किसी भी प्रकार के बंधन में रह कर कोई कैसे अपने मन का कर सकता है और जब मन का कर नहीं पाएगा तो मन का लगातार काम करना संभव नहीं है.’’

वास्तव में आज की नई पीढ़ी बहुत अधिक सम  झदार, प्रयोगधर्मी और बाजार की डिमांड के अनुकूल कार्य करने वाली है. आवश्यकता है उन के विचार, सु  झाव और तरीकों को भरोसापूर्वक सुनने की और उस के अनुकूल उन्हें बजट व आजादी देने की. परंतु कई बार अभिभावक अपने आगे बच्चों की बात को तवज्जुह नहीं दे पाते.

इंजीनियरिंग से स्नातक 20 वर्षीय नमन कहता है, ‘‘मैं जानता हूं कि किसी भी महानगर में पूरे दिन खपने के बाद मैं जो कमाऊंगा, उस से कहीं अधिक मैं अपने पिता की कपड़े की दुकान से कमाऊंगा. साथ में, अच्छा खानापीना और मातापिता व भाईबहन का साथ भी रहेगा. हां, यह सही है कि परिवार के साथ रहने पर कुछ बंदिशें तो होती हैं परंतु आगामी सुखद भविष्य के लिए वे बंदिशें भी अच्छी हैं. पर मैं पुराने ढर्रे पर चलने की अपेक्षा आज के समय के अनुसार बदलाव अवश्य करना चाहूंगा और इस के लिए अपने अभिभावकों से मेरी इच्छाओं को मानने की अपेक्षा भी रखता हूं.’’

भोपाल के अग्रवाल किराना स्टोर के 24 वर्षीय युवा संचालक रोहन अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध किराना स्टोर संचालकों में माने जाते हैं. वे बताते हैं, ‘‘इंजीनियरिंग करने के बाद मैं ने एक प्राइवेट कंपनी में बतौर सौफ्टवेयर इंजीनियर 2 वर्ष नौकरी की. मैं जब भी अवकाश में घर आता तो दुकान पर पापा को विभिन्न कंपनियों के और्डर्स लेने वाले बंदों और ग्राहकों के बीच संघर्ष करते देखता था क्योंकि पापा और्डर्स देते थे तो कस्टमर को इंतजार करना पड़ता. यही नहीं, कई बार देर होने पर वह दूसरी दुकान से सामान ले लेता था जिस का नुकसान हमें ही उठाना होता था.

‘‘अपने अवकाश के दिनों में मैं बैठता तो था पर वहां मेरा मन नहीं लगता था क्योंकि हाथ से बिल बनाना, ग्राहक की

लिस्ट से सामान देना, ढेर सामान से भरी अव्यवस्थित दुकान, छोटीछोटी बातों पर ग्राहकों की  ि झक ि झक जैसी बातें मु  झे बहुत उबाऊ लगती थीं. जब भी मैं पापा से उस में बदलाव की बात करता तो वे आधुनिक तकनीक और चीजों को अपनाने की अपेक्षा मु  झे ही  ि झड़क देते.

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‘‘वे दुकान के ढर्रे को तनिक भी बदलने को तैयार नहीं होते थे. मैं जानता हूं बड़े लोगों को बदलाव करना जल्दी पसंद नहीं आता परंतु हमें अवसर मिलेगा हम तभी तो खुद को प्रूव कर पाएंगे. 2 वर्ष पूर्व स्पाइन में बीमारी के चलते पापा को डाक्टर ने 3 माह का टोटल बैड रैस्ट बताया और परिस्थितियों को देखते हुए मैं ने अपनी नौकरी को छोड़ कर अपने बिजनैस को जौइन कर लिया. बस, इस दौरान मु  झे अपने मनमुताबिक दुकान में परितर्वन करने का सुअवसर मिल गया. इस दौरान मैं ने कंप्यूटराइज्ड बिलिंग सिस्टम को डैवलप किया. शौप के सामान को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए टोटल पैकेजिंग सिस्टम अपना कर हर वस्तु को और्गेनाइज्ड किया, साथ ही, ग्राहकों की डिमांड को ध्यान में रख कर सामान लाना प्रारंभ किया.

‘‘दरअसल, आजकल मौल कल्चर का युग है, इसलिए हमें अपने सिस्टम को आधुनिक बनाना ही होगा अन्यथा कुछ ही समय में हमारे विकास के रास्ते ही बंद हो जाएगें. जब पिताजी बीमारी के बाद दुकान पर आए तो दुकान का कायापलट देख कर वे दंग रह गए, बोले, ‘यह मेरी ही दुकान है, पहचान ही नहीं पा रहा हूं मैं.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए रोहन कहते हैं, ‘‘इस से पहले मैं ने जब भी पापा से औनलाइन डिलिवरी के लिए ऐप डैवलप करने की बात की तो वे इस में इन्वैस्ट करने के लिए तैयार नहीं थे परंतु अब जब हम ऐप के माध्यम से औनलाइन और्डर्स ले कर होम डिलिवरी करते हैं तो पापा को ही बहुत अच्छा लगता है.’’

किसी भी दुकान को चलाने के लिए मैनपावर, अर्थात दुकान के कर्मचारी, सर्वाधिक आवश्यक तत्त्व है क्योंकि अकेला दुकान मालिक दुकान को संचालित नहीं कर सकता. इस बारे में बात करते हुए हाल ही में अपने पिता के व्यवसाय को जौइन करने वाले प्रणय गुप्ता कहते हैं, ‘‘मेरे आने से पहले कई बार ऐसे अवसर आए जब पापा के विरुद्ध सारे कर्मचारी वेतन या अवकाश बढ़ाने जैसी मांगों को ले कर एकजुट हो जाया करते थे और पापा को उन के समक्ष   झुकना ही पड़ता था. परंतु मेरे आने के बाद वे जानते हैं कि अब पापा के पास एक अतिरिक्त हैंड है जिस के सहारे वे आपातकाल में अकेले भी दुकान को संचालित कर सकते हैं.’’

पहले की अपेक्षा आज परिवार का स्वरूप 3 या 4 तक ही सिमट गया है. चारों ओर मुंहबाए खड़ी बेरोजगारी के इस दौर में अपने ही व्यवसाय को जौइन करना एक बुद्धिमत्तापूर्ण कदम है. इस में एक बेहतर भविष्य की गारंटी तो है ही, साथ ही, भले ही कितने भी कोरोना के स्ट्रेन क्यों न आ जाएं पर यहां रिसैशन का दौर नहीं आ सकता. इस में आप जितनी अधिक मेहनत करेंगे उतना अधिक फल पाएंगे. परंतु आधुनिकता के इस दौर में टिके रहने के लिए बाजार में हो रहे परिवर्तनों के ऊपर सतत निगरानी रखते हुए मौडर्न ट्रैंड को अपनाना भी अत्यंत आवश्यक है. आज के बच्चे अपने पिता के व्यवसाय को अपनाएं, इस के लिए मातापिता को भी कुछ बिंदुओं पर विचार अवश्य करना चाहिए.

 स्पेस देना है जरूरी

अकसर अपना बच्चा होने के कारण हम उसे स्पेस देना भूल जाते हैं. जबकि आवश्यक है कि उसे भी अन्य कर्मचारियों की ही भांति वेतन, अवकाश और सुविधाएं मिलनी चाहिए ताकि वह अपने काम को बो  झ सम  झने की अपेक्षा आनंदित हो कर कार्य करे. दुकान के अन्य कर्मचारियों के सामने उस का अपमान करने से बचें. विवादित विषयों पर चर्चा दुकान की अपेक्षा घर पर करने का प्रयास करें.

 आजादी दें

बच्चे को दुकान में अपने मनमुताबिक बदलाव करने की आजादी दें. हो सकता है कभी वह अपने प्रयास में असफल भी हो जाए परंतु इस के लिए उसे बारबार ताने देने से बचें. दुकान के हितों से जुड़े मुद्दों पर उस से राय अवश्य लें. इस से उसे विभिन्न विषयों की जानकारी तो होगी ही, साथ ही उसे अपने अस्तित्व व जिम्मेदारी की भावना का एहसास भी होगा.

ज्ञान को हवा में न उड़ाएं

अकसर अभिभावक बच्चों की बातों को ‘हमें सब पता है या हमारे बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं,’ कह कर उन की बातों को हवा में उड़ा देते हैं जबकि तकनीक और विज्ञान के इस युग में आज की युवा पीढ़ी अपने मातापिता से बहुत आगे है. आज हर चीज के लिए औनलाइन प्लेटफौर्म मौजूद है जिस से व्यापार का बहुत अधिक विस्तार किया जा सकता है. इसलिए उन के इस ज्ञान को हवा में उड़ाने की अपेक्षा उस से लाभ उठाने का प्रयास करें ताकि अनुभव और तकनीक के संयोजन से व्यापार उत्तरोतर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहे.

पिता नहीं, दोस्त बनें

यह कहावत हम सब ने सुनी ही है कि बाप का जूता जब बेटे के पैर में आने लगे तो पिता को उस का दोस्त बन जाना चाहिए परंतु कई बार पिता अपने युवा बेटे के सदैव पिता ही बने रहते हैं जिस से अकसर उन में वादविवाद या मनमुटाव की स्थिति आ जाती है. बेटे के दोस्त या पार्टनर बन कर उस की भावनाओं, निर्णयों और बदलावों का सम्मान करने से व्यापार में उत्तरोतर प्रगति होना निश्चित है क्योंकि तभी आप का बेटा खुल कर दुकान में काम कर सकेगा.

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