Satyakatha: प्रेमी के सिंदूर की चाहत

सौजन्य- सत्यकथा

17मई की शाम करीब साढ़े 5 बजे थे जब दिल्ली में द्वारका सेक्टर 29 से सटे छावला के थाने के टेलीफोन की घंटी बजी. ड्यूटी औफिसर ने तुरंत फाइल समेटते हुए अपना हाथ टेलीफोन का रिसीवर उठाने के लिए आगे बढ़ाया. जैसे ही ड्यूटी औफिसर ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से किसी ने घबराते हुए बोला, ‘‘छावला पुलिस स्टेशन?’’

ड्यूटी औफिसर, ‘‘मैं छावला थाने से बोल रहा हूं. बताइए आप क्या कहना चाहते हैं?’’ ड्यूटी औफिसर ने कहा.

‘‘साहब, निर्मलधाम के पास सड़क किनारे एक आदमी की लाश पड़ी है. मैं यहां से गुजर रहा था तो मैं ने देखा. आप यहां आ कर देख लीजिए.’’

ड्यूटी औफिसर ने फोन के रिसीवर को अपने दांए कंधे और कान के सहारे दबाया, अपने दोनों हाथों को आजाद किया और टेबल पर कहीं पड़े नोट्स वाली डायरी ढूंढने लगे. वह लगातार फोन पर उस राहगीर से वारदात की घटना के बारे में पूछ रहे थे और डायरी ढूंढ रहे थे. टेबल पर बिखरे सारे सामान को उलटने पुलटने के बाद जब डायरी नहीं मिली तो एक फाइल के पीछे ही उन्होंने वारदात की जगह समेत बाकी जरूरी जानकारियां लिख डालीं. ड्यूटी औफिसर ने उस राहगीर को वारदात की जगह से कहीं भी हिलने से मना कर दिया और फोन काट दिया.

ये सारी जानकारी ड्यूटी औफिसर ने उस समय थाने में मौजूद थानाप्रभारी राजवीर राणा को दी. राजवीर राणा बिना किसी देरी के थाने में मौजूद स्टाफ को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

वहां पहुंचते ही पुलिस की टीम ने उस सुनसान सी सड़क के एक किनारे पर एक बाइक खड़ी देखी. बाइक के बिलकुल बगल में खून से लथपथ एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. लाश को देखते ही वहां मौजूद पुलिस टीम चौकन्नी हो गई और सबूत जमा करने के मकसद से घटनास्थल के इर्दगिर्द फैल गई.

थानाप्रभारी राजवीर राणा जब लाश का मुआयना करने के लिए बौडी के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उस के बदन पर किसी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. जो साफ दिखाई दे रहे थे. उन्होंने लाश के अगलबगल नजर घुमाई तो एक मोबाइल फोन वहीं पास में पड़ा था, जो कि संभवत: मरने वाले शख्स का रहा होगा.

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रात होने को थी. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने बिना किसी देरी के बाइक और मोबाइल जब्त कर लिया और लाश की काररवाई आगे बढ़ाने के लिए क्राइम इनवैस्टीगैशन टीम के आने का इंतजार करने लगे.

उस सड़क से पैदल आने जाने वाले लोगों ने पुलिस और वहां मौजूद लाश को देख कर घटनास्थल पर जमावड़ा लगा दिया. सब टकटकी लगाए पुलिस को अपना काम करते देख आपस में फुसफुसाहट करने लगे.

जब वहां मौजूद पुलिस ने आसपास के मूकदर्शक बने लोगों से लाश की पहचान करने के लिए पूछताछ की तो कुछ लोगों ने लाश की शिनाख्त करते हुए कहा कि इस का नाम अशोक कुमार है और यह पेशे से टैक्सी ड्राईवर है.

तब तक मौके पर क्राइम इनवैस्टीगैशन टीम भी आ पहुंची. टीम ने अपना काम शुरू किया. उन्होंने सब से पहले लाश की फोटोग्राफी की. उन्होंने सबूत के तौर पर घटनास्थल से खून लगी मिट्टी के नमूने इकट्ठा कर लिए. यह सब काम कर लेने के बाद थानाप्रभारी राजवीर राणा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

सारे काम निपटा लेने के बाद पुलिस की टीम थाने लौट आई तथा इस केस के संबंध में काम आगे बढ़ाने लगी. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी राजवीर राणा ने स्वयं संभाली.

केस की तफ्तीश को आगे बढ़ाने के लिए थानाप्रभारी राणा ने सब से पहले घटनास्थल से बरामद किए गए मोबाइल फोन को निकलवाया. यह फोन टूटा नहीं था. सिर्फ बैटरी चार्जिंग खत्म होने की वजह से बंद हो गया था.

उस की काल डिटेल्स निकलवाई और देखा कि आखिरी बार एक नंबर से अशोक कुमार को कई बार काल की गई थी. इस के कुछ देर बाद ही अशोक कुमार की हत्या हो गई थी.

शक की सूई अब इसी आखिरी नंबर पर आ कर रुक गई थी. राजवीर राणा ने अपने फोन से इस नंबर को डायल किया तो दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई. थानाप्रभारी ने पहले अपना परिचय दिया और उस के बाद उस महिला से अशोक कुमार के रिश्ते के बारे में पूछा.

महिला ने अपना नाम शीतल और खुद को अशोक कुमार की बेटी बताया. राजवीर ने फोन पर बड़े दु:ख के साथ शीतल को बताया कि उस के पिता सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो चुके हैं, यह जानने के बाद शीतल उसी समय ही बिलखने लगी. उन्होंने उस से उस की मां के बारे में पूछा तो शीतल ने अपनी मां राजबाला से उन की बात करा दी.

थानाप्रभारी ने राजबाला को अशोक की मौत की खबर देते हुए उन से शीघ्र ही थाने पहुंचने को कहा 2-3 घंटे बाद जब राजबाला थाने पहुंची तो वह राजवीर राणा को देखते ही फफकफफक कर रोने लगी.

अपने पति की हत्या की खबर सुन कर वह आहत थी. राजवीर राणा ने राजबाला को हौसला रखने को कहा और उस से उस के पति से किसी से साथ दुश्मनी होने के बारे में पूछा. राजबाला ने रोते हुए कहा कि अशोक की किसी के साथ भी कोई दुश्मनी नहीं थी.

राजबाला से बात करते समय थानाप्रभारी राजवीर राणा को उस की बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे पति की मौत का दुख है. बेशक राजबाला राजवीर राणा के सामने रो रही थी और दुखी दिखाई दे रही थी. लेकिन राजवीर को राजबाला पर शक हो चुका था.

राजबाला के आंसू घडि़याली लग रहे थे. दाल में कहीं तो कुछ काला जरुर था, जिस का पता लगाना जल्द से जल्द जरुरी था. आखिर एक व्यक्ति का कत्ल जो हुआ था.

राजबाला से पूछताछ खत्म होने पर वह अपने घर के लिए रवाना हो गई और पीछे कई तरह के शक और सवाल छोड़ गई.

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इन सभी शकों को दूर करने के लिए और इस मामले से जुडे़ सभी सवालों के जवाब ढूंढने के लिए थानाप्रभारी ने शीतल और राजबाला की काल डिटेल्स मंगवाई. उन्होंने दोनों की काल डिटेल्स को बेहद बारीकी से परखी और उस की जांच की तो वह बेहद हैरान रह गए.

काल डिटेल्स से उन्हें यह पता लगा कि शीतल जिस समय अशोक को लगातार काल कर रही थी उस के ठीक बाद उस ने एक अन्य नंबर पर काफी देर तक बातचीत की थी. यह सब देख कर पुलिस ने यह अनुमान लगाया कि यदि इस मामले में शीतल को थोडा ढंग से कुरेदा जाए तो शायद इस केस में एक और लीड मिल सकती है. राजवीरने बिना देरी किए फिर से एक बार राजबाला और शीतल को थाने बुला लिया.

उन्होंने इस बार दोनों से अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने पहले शीतल से इस घटना के बारे में विस्तार से पूछा. शीतल का बयान लेने के बाद उन्होंने राजबाला से इस मामले में फिर से पूछताछ की. क्रास पूछताछ में दोनों की चोरी पकड़ी गई.

दोनों के बयान एक दूसरे से अलग थे. जब राजवीर राणा ने दोनों को कानून का थोड़ा डर दिखा कर उन पर दबाव बनाया तो शीतल ज्यादा देर टिक नहीं सकी. शीतल ने रोतेबिलखते, अपने हाथ से अपना सिर पीटते हुए अपनी मां राजबाला और उस के प्रेमी वीरेंद्र उर्फ ढिल्लू के साथ साजिश रच कर अपने पिता की हत्या कराने की बात कबूल कर ली.

यह सब सुनते ही बेटी के सामने राजबाला का चेहरा पीला पड़ गया. उसे जैसे न तो कुछ सुनाई दे रहा था और न ही कुछ दिखाई दे रहा था. थाने में शीतल के सामने राजबाला अपनी बेटी को घूरे जा रही थी. वह उसे ऐसे घूर रही थी जैसे मानो अगर उसे मौका मिलता तो वह वहीं पर शीतल का भी कत्ल कर बैठती.

शीतल द्वारा जुर्म कबूल करते ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. फिर राजबाला की निशानदेही पर उस के प्रेमी वीरेंद्र को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

वीरेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने अशोक की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. वीरेंद्र के बताए हुए पते पर जा कर पुलिस टीम ने अशोक कुमार की हत्या में इस्तेमाल किए जाने वाले चाकू और उस की कार बरामद कर ली. तीनों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में अशोक कुमार की हत्या के पीछे अवैध संबंधों की जो सनसनीखेज दास्तान सामने आई, कुछ इस तरह थी—

अशोक कुमार दिल्ली के नजफगढ़ के नजदीक भरथल गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस का 3 सदस्यों का छोटा परिवार था जिस में अशोक, उस की पत्नी राजबाला और बेटी शीतल ही थी. अशोक की कमाई का जरिया उस की टैक्सी थी. वह बेटी शीतल की शादी जाफरपुर कला के पास इशापुर गांव के रहने वाले हिमांशु से कर चुका था. शीतल अपने पति के साथ बेहद खुश थी. बेटी की शादी के बाद अशोक के सिर पर अब कोई और जिम्मेदारी नहीं थी.

लेकिन पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से पूरे देश में लौकडाउन लगा तो ज्यादातर लोगों की तरह अशोक भी अपने घर में कैद हो कर रह गया. उस का काम न के बराबर रह गया. घर पर रहने पर अशोक बहुत ज्यादा परेशान नहीं था.

अशोक को महसूस हुआ कि वैसे भी अपने काम के दौरान वह अकसर अपने घर से बाहर ही रहता है, ऐसे में न जाने कितने अरसे बाद उसे इतने लंबे समय के लिए घर में रहना नसीब हुआ है. अपने काम से हमेशा बाहर रहने वाले व्यक्ति को जब घर में कैद होना पड़ जाए तो जाहिर सी बात है कि वह घर की हर एक चीज को बारीकी से परखता है, गौर करता है.

ऐसे ही लौकडाउन के एक दिन अशोक घर का सामान लेने के लिए गांव में निकला तो दुकानदार से बातचीत के दौरान उस ने जो सुना उस से उस के होश ही उड़ गए.

दुकानदार ने कहा, ‘‘क्या भई अशोक. मजा आ रहा है घर में कैद हो कर?’’

‘‘कैद होना किस को अच्छा लगता है भला. अब समस्या सिर पर बैठी है तो हम बस उसे झेलने को मजबूर हैं. घर में रहने के अलावा और कुछ कर भी तो नहीं सकते.’’ अशोक बोला.

‘‘अब तो तुम्हारी महरिया भी तुम्हारे साथ कैद हो गई होगी. अब तो लोग आ जा भी नहीं सकते तुम्हारे घर. दुकानदार ने जोर देते हुए कहा.’’

‘‘वो घर में कैद हो गई…? क्या मतलब. और घर में लोगों के आने की क्या बात कह रहे हो.’’ अशोक भौंहें चढ़ाते हुए बोला.

दुकानदार ने धीमी, दबी आवाज में कहा, ‘‘अरे वो तो लौकडाउन लग गया तब जा कर तुम्हारी महरिया घर पर रुकने को मजबूर है. नहीं तो तुम्हारे घर से निकलते ही तुम्हारी महरिया आशिकी करने निकल जाती थी.’’

‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो. कौन है उस का आशिक?’’ अशोक ने गुस्से से पूछा.

दुकानदार दबी आवाज में बोला, ‘‘अरे ढिल्लू का नाम सुना है न तुम ने? वीरेंद्र का? वही तो है जो शीतल की मां के साथ आशिकी करता फिरता है. यह बात तो पूरे गांव वालों को पता है. चाहे तो पूछ लो.’’

ये सब सुनते ही अशोक के दाएं हाथ में थामी पौलिथिन थैली छूट गई. थैली फटने से चीनी, आटा, दाल और घर का कुछ और सामान नीचे पथरीली सड़क पर गिर कर फैल गया. अशोक को इस बात पर जितना सदमा लगा था उस से कहीं ज्यादा उसे इस बात को सुन कर गुस्सा आ रहा था. लोग उस की पत्नी राजबाला और गांव के बदमाश वीरेंद्र के बारे में उलटी सीधी बातें कर रहे थे.

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दुकानदार से यह सब सुन कर उस ने 2-4 और लोगों से इस बारे में पूछताछ की. हर किसी ने दबी आवाज में अशोक को वही बताया जो कि उस दुकानदार ने बताया था.

दरअसल 43 वर्षीय वीरेंद्र उर्फ ढिल्लू भरथल का ही निवासी था. वीरेंद्र उस इलाके का नामचीन बदमाश था. दिल्ली के कई थानों में उस के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. एक तरह से जेल उस का दूसरा घर था.

लोगों के अनुसार जब अशोक घर पर नहीं रहता था तब उस के पीठ पीछे वीरेंद्र राजबाला के साथ गुलछर्रे उड़ाता था. अशोक ने बिना किसी हिचकिचाहट के राजबाला से इस बारे में पूछा.

लेकिन राजबाला ने पति की बात से कन्नी काट ली. उस ने उस की बात से साफ इनकार कर दिया. लेकिन उस दिन के बाद राजबाला अशोक की नजरों का ज्यादा देर तक सामना नहीं कर पाई.

राजबाला के मोबाइल पर जब कभी भी वीरेंद्र का फोन आता तो वह पति से दूर जा कर बात करती, जब अशोक उस से पूछता कि किस का फोन आया था तो वह रिश्तेदार होने का बहाना बनाने लगती. यह सब कुछ देख कर अशोक को यह यकीन जरूर हो गया कि दाल में जरूर कुछ काला है.

अकसर पति के घर पर रहने से पत्नी को खुशी होती है लेकिन अशोक के घर पर होने से राजबाला की खुशियों पर मानो बादल छा गए थे.

राजबाला वीरेंद्र से मिलने के लिए तड़पने लगी. उसे अपने पति से ज्यादा वीरेंद्र पसंद था. वीरेंद्र के साथ मां की आशिकी के किस्से बेटी शीतल से भी नहीं छिपे थे. वह भी उन के रिश्ते के बारे में बखूबी जानती थी और वह भी तो वीरेंद्र से पिता का महत्त्व देती थी.

शीतल वीरेंद्र को पिता अशोक से ज्यादा पसंद करती थी. क्योंकि अशोक जब घर पर नहीं रहता था, उस समय वीरेंद्र राजबाला से मिलने आता तो शीतल के लिए महंगे तोहफे साथ लाता था. दरअसल लौकडाउन की वजह से अशोक अपनी पत्नी राजबाला, बेटी शीतल और वीरेंद्र के लिए गले की हड्डी बन गया था.

लौकडाउन के चलते जेल में बंद वीरेंद्र को भी पैरोल पर छोड़ दिया गया था. एक दिन अशोक की नजरों से बचते बचाते वीरेंद्र राजबाला से मिला. उस दिन राजबाला ने वीरेंद्र पर इस कदर प्यार लुटाया जैसे वीरेंद्र के पर लग गए हों.

शारीरिक सुख भोग लेने के बाद जब राजबाला और वीरेंद्र एकदूसरे से अलग हुए तो उस ने वीरेंद्र्र से कहा कि अगर उस ने उस के पति अशोक को जल्द ठिकाने नहीं लगाया तो वह आत्महत्या कर लेगी.

तब वीरेंद्र ने प्रेमिका से कहा, ‘‘तुम्हें आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है. मैं उसे ही निपटा दूंगा.’’

इस के बाद राजबाला और वीरेंद्र ने योजना बनाई. इस योजना में उन्होंने शीतल को शामिल कर लिया. शीतल इस काम के लिए खुशी से तैयार हो गई.

17 मई, 2021 को शीतल ने अपने पिता अशोक को मिलने के लिए निर्मलधाम बुलाया. अशोक अपनी बाइक से निर्मलधाम के रास्ते में ही था. शीतल पलपल पिता को काल कर उस से खबर लेती रही. जब अशोक निर्मलधाम के नजदीक पहुंचा तो शीतल ने वीरेंद्र को काल कर यह बात बता दी.

वीरेंद्र अपनी हुंडई कार से वहां पहुंच गया और अशोक को सड़क किनारे रोक कर चाकू से गोद दिया. अशोक की लाश को वहीं छोड़ कर वीरेंद्र्र वहां से फरार हो गया.

काम हो जाने पर वीरेंद्र्र ने राजबाला और शीतल को इस बात की जानकारी फोन कर के दी.

राजबाला, शीतल और वीरेंद्र्र तीनों अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे थे लेकिन पुलिस ने अपनी सूझबूझ के साथ 12 घंटे के अंदर ही अशोक कुमार हत्याकांड का परदाफाश कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी राजवीर राणा कर रहे थे.

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सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली.

ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों ओर खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

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‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स से रिवौल्वर निकालते हुए कहा, ‘‘हां, तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली.

शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, मैं 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया. तुम ने लगभग 100 मीटर दूर पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

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‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग की तो मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान पुलिस को दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.

यह कैसा प्यार- भाग 1

वे दोनों बचपन से एक ही कालोनी में आसपड़ोस में रहते हुए बड़े हुए थे. दोनों ने एकसाथ स्कूल व कालेज की पढ़ाई पूरी की. उन के संबंध मित्रता तक सीमित थे, वो भी सीमित मात्रा में. दोनों एक ही जाति के थे. सो, स्कूल समय तक एकदूसरे के घर भी आतेजाते थे. कालेज में भी एकदूसरे की पढ़ाई में मदद कर देते थे. एकदूसरे के छोटेमोटे कामों में भी सहयोग कर देते थे. लेकिन कालेज के समय से उन का एकदूसरे के घर आनाजाना बहुत कम हो गया. जाना हुआ भी तो अपने काम के साथ में एकदूसरे के परिवार से मिलना मुख्य होता था.

दोनों अपने समाज, जाति की मर्यादा जानते थे. अब दोनों जवानी की उम्र से गुजर रहे थे. रमा तभी विजय के घर जाती जब विजय की बहन से उसे काम होता. विजय से तो एक औपचारिक सी हैलो ही होती. कालेज में भी उन का मिलना बहुत जरूरत पर ही होता. रमा को यदि विजय से कोई काम होता तो वह विजय की बहन या मां से कहती. विजय को वैसे तो जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी रमा के घर, पर कई बार ऐसे मौके आते कि जाना पड़ता. जैसे रमा को नोट्स देने हों या कालेज की लाइब्रेरी से निकाल कर पुस्तकें देनी हों.

विजय जाता तो रमा के मम्मी या पापा घर पर मिलते. रमा चाय बना कर दे जाती. विजय पुस्तकें रमा के मातापिता को दे देता. रमा के मातापिता उसे बैठा कर घरपरिवार, पढ़ाईलिखाई, भविष्य की बातें पूछते, कुछ अपनी बताते. विजय वापस आ जाता.

रमा के मातापिता अपनी इकलौती बेटी के लिए अच्छे वर की तलाश में जुटे थे. बात विजय की भी निकली. रमा के पिता ने कहा, ‘‘लड़का तो ठीकठाक है लेकिन करता तो कुछ नहीं है फिलहाल.’’

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रमा की मां ने कहा, ‘‘अभी तो पढ़ाई कर रहा है. पास का देखापरखा लड़का है. रमा से पटती भी है.’’ मां की बातें रमा के कानों से होती हुईं उस के दिल में पहुंचीं, पहली बार. और पहली बार ही रमा के हृदय में कंपन सी हुई. रमा के पिता ने एक सिरे से नकारते हुए कहा, ‘‘पढ़ाई पूरी होने के बाद नौकरी की कोई गांरटी नहीं है और मैं अपनी इकलौती बेटी का विवाह किसी बेरोजगार से नहीं कर सकता. फिर इतनी पास रिश्ता करना भी ठीक नहीं है. अभी तो विजय की बहन बैठी हुई है शादी के लिए. मुझे विजय के पिता का व्यवहार और उन की क्लर्की की नौकरी दोनों खास पसंद नहीं हैं.’’

रमा की मां ने कहा, ‘‘मैं ने तो ऐसे ही बात कह दी थी. आप उस के परिवार के बारे में क्यों उलटासीधा कह रहे हैं?’’

रमा के पिता ने कहा, ‘‘उलटासीधा नहीं, सच कह रहा हूं. मैं अपनी हैसियत वाले घर में ही रिश्ता करूंगा. इंजीनियर हूं. क्लर्क के घर में क्यों रिश्ता करूं?’’

पति को आवेश में देख रमा की मां किचन में जा कर घरेलू कामों में जुट गई. विजय को जब मालूम हुआ कि रमा के लिए लड़के वाले देखने आ रहे हैं तो पता नहीं क्यों पहली बार उसे लगा कि उस की प्रियवस्तु कोई उस से छीन रहा है. उस ने हिम्मत कर के अपनी मां से रमा के साथ शादी की बात चलाने के लिए कहा.

विजय की मां ने कहा, ‘‘बेटा, पहले नौकरी करो. फिर बहन के हाथ पीले करो. उस के बाद अपनी शादी के विषय में सोचना.’’ मां ने कह तो दिया लेकिन बेटे के चेहरे को भी पढ़ लिया. उन्हें स्पष्ट नजर आया कि उन का बेटा रमा से प्रेम करता है. बेटे की तसल्ली के लिए मां ने कहा, ‘‘अच्छा, देखती हूं, तुम्हारे पिता से बात करती हूं.’’ विजय के चेहरे पर प्रसन्नता छा गई, जिसे मां से छिपाने के लिए वह दूसरे कमरे में चला गया.

विजय की मां ने रात को भोजन के बाद अपने कमरे में पति से बेटे के मन की बात कही. पति ने कहा, ‘‘वे लोग ऊंची हैसियत वाले हैं. अपने से बड़े घर की लड़की लाने का मतलब समझती हो. सह पाओगी बड़े घर की बेटी के नखरे. फिर इतनी पास में रिश्ता. घर में जवान बेटी बैठी है. बेटा बेरोजगार है. किस मुंह से शादी का रिश्ता ले कर जाएंगे. अपना अपमान नहीं कराना मुझे. फिर मैं ठहरा ईमानदार आदमी और मामूली सा क्लर्क. वे हैं इंजीनियर और 2 नंबर के पैसे वाले.’’

विजय की मां ने कहा, ‘‘वो मैं समझती हूं. बेटे के दिल में है कुछ रमा के लिए, इसलिए कहा.’’

विजय के पिता ने कुछ पल ठहर कर कहा, ‘‘मैं तो बात करने नहीं जाऊंगा. तुम चाहो तो किसी और के माध्यम से बात चलवा कर देख लो. बेटे की तरफदारी करने से अच्छा है, बेटे को समझाओ कि अपने पैरों पर खड़े हो कर उन के बराबर बन कर दिखाए.’’

पत्नी ने करवट ली और सोने का प्रयास करने लगी. वे इस बात को यहीं खत्म कर देना चाहती थी.

बाजार से जरूरी सामान मंगवाना था. रमा के पिता कुछ अस्वस्थ थे. रमा की मां ने विजय को आवाज दे कर बुलाया और कहा, ‘‘रमा को देखने वाले आ रहे हैं. यह लिस्ट ले जाओ. बाजार से सामान ले कर जल्दी आना.’’

सामान की लिस्ट और रुपए ले कर विजय बाजार की ओर चल दिया. लेकिन मन उस का उदास था. वह सोच रहा था कि रमा किस तरह उसे मिलेगी. कैसे वह रमा को अपना जीवनसाथी बनाएगा. एमएससी का अंतिम वर्ष था उस का. नौकरी मिलने में समय लगेगा.

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विजय के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह रमा के पिता से अपने विवाह की बात कर पाता. मां ने अपने एक परिचित से रिश्ते की खबर भेजी थी, लेकिन उत्तर अनुकूल न था. बात औकात, हैसियत, बेरोजगारी पर आ कर अटक गई थी. विजय के मन में अजीब से अंधड़ चल रहे थे. स्वयं को संभालते हुए बाजार से सामान ला कर उस ने रमा के पिता को सौंप दिया. लड़के वाले आ चुके थे, इसलिए रमा के मातापिता ने विजय को बैठने को भी नहीं कहा.

विजय पास के गार्डन में पहुंचा. थकेहारे, टूटे हुए व्यक्ति की तरह मन में सोचने लगा, ‘रमा का ये रिश्ता टूट जाए, रमा का विवाह हो तो मुझ से, अन्यथा न हो.’

हार से गुस्सा उपजता है और गुस्से से मस्तिष्क बेकाबू हो कर किसी भी दिशा में भटकने लगता है. पास बैठे एक अंकल से उस ने कहा, ‘‘क्या जिंदगी में जिसे चाहो वह मिल जाता है?’’

अंकल ने रूखे स्वर में कहा ‘‘हां, शायद.’’

अंकल की बात से असंतुष्ट विजय उठ कर घर की तरफ चल दिया. रातभर वह यही सोचता रहा कि उसे रमा से इतना लगाव, इतना प्यार कैसे हो गया? यदि पहले से था तो उसे पता क्यों नहीं चला? यही तड़प पहले होती तो वह रमा से इस विषय में कालेज में बात कर लेता. क्या पता रमा के मन में कुछ है भी या नहीं. होता तो कभी तो वह कहती बातों में, इशारों में. प्रेम कहां छिपता है? कहीं यह एकतरफा प्यार का मामला तो नहीं. वह खुद से कहने लगा, ‘रमा का ग्रैजुएशन का अंतिम वर्ष है. शादी आज नहीं तो कल हो ही जाएगी. फिर मेरा क्या होगा? क्या मैं रमा से बात करूं? कहीं ऐसा तो नहीं कि बात और बिगड़ जाए.’

विचारों के आंधीतूफान से उलझता विजय घर आ गया. रात में बिस्तर पर उसे नींद नहीं आई. वह करवटें बदलते हुए सोचने लगा कि रमा को कैसे हासिल किया जाए. पत्रपत्रिकाओं में छपने वाले तांत्रिक बाबाओं, वशीकरण विधा के जानकारों वाले विज्ञापन उस के दिमाग में कौंधने लगे. बाजार से उस ने कुछ तंत्रमंत्र की किताबें खरीद कर उन्हें आजमाने पर विचार किया. यदि लड़की वशीभूत हो कर विवाह के लिए तैयार हो जाए तो फिर कोई क्या कर सकता है?

तंत्रमंत्र की पुस्तकें पढ़ कर विजय को निराशा हाथ लगी. वशीकरण मंत्र के लाखों की संख्या में जाप कर के  उन्हें सिद्ध करना, फिर पूरे नियम से उन का दसवां हिस्सा हवनतर्पण, मार्जन करना, उस के बाद विशेष तिथि, योग में ऐसी सामग्री जुटाना जो उस के लिए क्या, किसी भी साधारण आदमी के लिए संभव नहीं थी. विजय ने पुस्तकें एकतरफ फेंक कर इंटरनैट पर वशीकरण संबंधी प्रयोग तलाशने शुरू किए, उसे मिले भी. सारे प्रयोग एकएक कर के किए भी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

विजय समझ गया कि सारे प्रयोग झूठे हैं. फिर उस ने तंत्रमंत्र, वशीकरण के विज्ञापनों पर दृष्टि डाली जहां 24 घंटे से ले कर 4 मिनट में वशीकरण के दावे किए गए थे. विजय ने कई बाबाओं से मुलाकात की. रुपए इधरउधर से इंतजाम कर के फीस भरी. कभी नीबू के प्रयोग, कभी नारियल वशीकरण, कभी लौंग वशीकरण प्रयोग बाबाओं द्वारा बताए गए. लेकिन नतीजा शून्य निकला.

रमा की तरफ से उसे कोई जवाब नहीं मिला. विजय समझ गया कि वशीकरण, तंत्रमंत्र जैसा कुछ नहीं, सब बेवकूफ बनाते हैं. लेकिन रमा की तरफ विजय का लगाव निरंतर बढ़ता जा रहा था. फिर वह सोचने लगा कि शायद मुझ से ही कोई चूक हो गई हो. सब तो गलत नहीं हो सकते. क्यों न अब की बार प्रयोग तांत्रिक से ही करवाया जाए.

विजय ने बंगाली बाबा नाम के व्यक्ति को फोन लगाया. बाबा ने कहा, ‘‘मैं सौ टके तुम्हारा काम कर दूंगा. लेकिन तुम्हें श्मशान की राख, उल्लू का जिगर, किसी मुर्दे की हड्डी लानी पड़ेगी. यदि नहीं ला सकते तो हम सामान की अलग से फीस लेंगे. साथ में, हमारी फीस. जिस का वशीकरण करना है उस की पूरी जानकारी नाम, पता, फोटो, मोबाइल सब हमारे मेल पर भेजना होगा. और अपना विवरण भी. फीस हमारे बताए अकाउंट में जमा करनी होगी.’’

विजय जानतेसमझते हुए भी बेवफूफ बन गया. रमा की फोटो कालेज फंक्शन के गु्रप में उस के पास थी. उस ने उस फोटो की एक और फोटो निकाल कर पोस्टकार्ड साइज में रमा की फोटो स्टूडियो से बनवा ली. सारी सामग्री बाबा को मेल कर दी. फीस अकाउंट में जमा कर दी. लेकिन कई दिन बीतने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ. विजय समझ गया कि तंत्रमंत्र का बाजार झूठ और धोखे पर आधारित है.

Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 4: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह अपने कुत्ते डोरा के साथ जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर वह बुरी तरह घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान कराना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. ऐसे में हत्यारे तक पहुंचने का जरिया सिर्फ वह नीला परदा था, जिस में उस लड़की की लाश थी. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा. एक रोज क्रिस्टी के पास किसी जैनेट नाम की लड़की का फोन आया, जो पेशे से नर्स थी. वह क्रिस्टी से मिल कर नीले परदे के बारे में कुछ बताना चाहती थी.

अब आगे पढ़ें…

मौयरा की मदद से जैनेट एक गत्ते का बड़ा सा डब्बा कमरे के बीचोबीच खींच लाई. बीच में बिछे गलीचे पर नीचे बैठ कर उस ने सभी चीजें तरतीब से सजा दीं. फैमी नाम की इस स्त्री का फोटो करीब 9५12 इंच के स्टील के फ्रेम में जड़ा था. उस में क्रिस्टी द्वारा प्रसारित खिड़की के अनुमानित चित्र से मिलतीजुलती एक खिड़की के सामने एक काले चमड़े से मढ़ा सोफा पड़ा था और उस पर एक युवती लगभग 3 साल के गोलमटोल बच्चे को गालों से सटाए बैठी मुसकरा रही थी.

‘‘क्या नाम बताया जैनेट आप ने?’’

‘‘फैमी.’’

‘‘सरनेम पता है?’’

‘‘नहीं, बताया तो था परंतु विदेशी नामों को याद रखना बेहद कठिन लगता है.’’

‘‘क्यों, क्या किराए की कोई लिखतपढ़त नहीं है?’’

जैनेट का मुंह उतर गया. घबरा कर हकलाती हुई वह बोली, ‘‘लड़की भली थी. ऐडवांस किराया नकद दे कर यहां रहने आई थी. कोई किरायानामा तो मैं ने नहीं लिखवाया, मगर रसीद मैं उसे जरूर दे देती थी. पहली तारीख को वह महीने का किराया कैश दे देती थी. मैं कुसूरवार हूं अफसर, पर यह कोई ऐसी बड़ी आमदनी तो न थी जिसे छिपाया जाए…’’

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‘‘घबराओ नहीं, ऐसे गैरकानूनी अनुबंध अनेक बेवकूफ लोग कर लेते हैं. अब खुद ही देखो न क्या हो सकता है लापरवाही का अंजाम…’’

‘‘क्यों, क्या कोई संगीन मामला है?’’

‘‘हो भी सकता है. हम तुम्हें डराना नहीं चाहते, क्योंकि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. बहरहाल, हम एक लापता लड़की को ढूंढ़ रहे हैं. क्या कोई सुराग तुम हमें दे सकती हो? कोई इस का मित्र? यह तसवीर वाला बच्चा?’’

‘‘शायद यह बच्चा उस का बेटा है, जो अपने बाप के पास रहता है. फैमी छुट्टी वाले दिन शायद इस से मिलने जाती थी.’’

‘‘इस का मतलब वह तलाक ले चुकी थी?’’

‘‘नहीं पता.’’

‘‘बाकी समय वह क्या करती थी?’’

‘‘ठीक से नहीं पता, मगर कहीं 9 से 5 तक नौकरी करती थी. घर जल्दी आ जाती थी और मेरी ही रसोई में पकातीखाती थी. अफसर, बात यह है कि मैं ज्यादातर यूरोप में रहती हूं. मैं ने खुद ही नहीं पूछा.’’

‘‘जैनेट, यहां उस का कोई परिचित तो आता होगा?’’

‘‘विदेशियों पर मेरा इतना विश्वास नहीं है, इसलिए मैं ने उसे साफ मना कर दिया था कि वह किसी मेहमान को नहीं लाएगी. आप को तो पता ही है कि यहां जवान लड़कियां क्याक्या कर्म करती हैं. मगर मेरी पीठ पीछे अगर कोई आता हो तो कह नहीं सकती.’’

‘‘जब रखा तब कोई रेफरेंस लैटर तो लिया होगा उस के बौस का या बैंक का?’’

‘‘हां, मगर जब वह वापस नहीं आई तो मैं ने फेंक दिया.’’

‘‘कुछ कह कर गई थी तुम से?’’

‘‘हां, उस ने कहा कि वह क्रिसमस की छुट्टियों में मोरक्को अपने वतन जा रही है.’’

‘‘अच्छा, मदद के लिए शुक्रिया. अगर आप को कोई एतराज न हो तो मैं सामान का यह डब्बा संग ले जाऊं?’’

‘‘बेशक, बेशक.’’

अपने औफिस में ला कर क्रिस्टी ने सारा सामान खोला, मगर उस स्त्री की पहचान के सभी कागजात गायब थे. कहीं नाम तक का सुबूत नहीं था. क्रिस्टी ने अनुमान लगाया कि किसी ने जानबूझ कर सभी कागजात गायब किए होंगे. मगर मेज पर रखी तसवीर शायद इसलिए फेंक गया कि उस की अब जरूरत नहीं थी. फिर भी कुछ भी ठीक नहीं बैठ रहा था.

क्रिस्टी ने पुलिस फाइल के अगले कार्यक्रम में इस चित्र को प्रसारित किया. टीवी स्क्रीन पर बड़ा कर के दिखाया, मगर उस स्त्री को जानने वाला कोई भी सामने नहीं आया. उस का अगला कदम था, मोरक्को जाने वाली सभी सवारियों की पड़ताल. पिछले 1 साल के सभी यात्रियों के रिकार्ड उस ने हीथ्रो एअरपोर्ट से मंगवाए, मगर कोई सफलता नहीं मिली. हो सकता है कि वह स्त्री किसी अन्य देश में गई हो और फिर वहां से मोरक्को चली गई हो. हो सकता है, फैमी नाम केवल बुलाने का नाम हो. मगर उस का असली नाम क्या होगा?

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मौयरा ने सुझाया कि जाने वाले यात्रियों के बजाय वह मोरक्को से आ कर यहां बस जाने वाली लड़कियों के रिकार्ड तफतीश करे. क्रिस्टी को यह बात जंच गई.

उस ने मोरक्को के दूतावास से संपर्क किया. वहां से आए नागरिकों को पासपोर्ट औफिस में ढूंढ़ा. आखिरकार एक लड़की का पता मिला, जो 7-8 साल पहले पढ़ाई करने के लिए यहां आई थी. उस का नाम फहमीदा सादी था. फहमीदा सादी के वापस मोरक्को जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला. यह आसानी से अपना नाम फैमी रख सकती थी. क्रिस्टी ने इसे भी एक सूत्र मान लिया और अपनी खोज जारी रखी, मगर अन्य तथ्यों की तरह यह भी एक हवाईकिला था. केवल मान्यता पर की गई खोज से क्या हत्यारा मिल जाएगा?

लंदन में फहमीदा सादी कहां रह रही थी, यह पता लगाना कठिन काम था, मगर पासपोर्ट औफिस से उस के अपने देश में उस का पता मिल गया. क्रिस्टी ने जैसेतैसे अपने विभाग को दलीलें दे कर खर्चे के लिए राजी कर लिया और वह मोरक्को चला गया फहमीदा के परिवार से मिलने.

फहमीदा का परिवार बहुत अमीर नहीं था. 1 विधवा अधेड़ उम्र की मां, 1 अंधा भाई और 3 कुंआरी छोटी बहनें. पर ये लोग बड़े शिष्ट और विनम्र थे.

क्रिस्टी को देख कर वे लोग घबरा न जाएं, इसलिए उस ने अपनेआप को उन की पुत्री का प्रोफेसर बताया. बताया कि फहमीदा उन से कई महीनों से नहीं मिली है. वह इत्तफाक से किसी रिसर्च के सिलसिले में यहां आए थे. उन्होंने सोचा वह यहां होगी. अत: मिलने चले आए.

फहमीदा की मां ने कौफी और खजूर चांदी की तश्तरी में पेश किए और हंस कर बोली कि उन की बेटी लंदन में ही है और उस के खत बराबर आते हैं.

अब क्रिस्टी यह कैसे सोच लेता कि फहमीदा मर गई है? उस का यहां आना बेकार की कोशिश साबित हो रहा था. उसे लग रहा था कि वह गलत जगह झक मार रहा है. अपनी नकली मित्रता की साख बरकरार रखने के लिए वह बेकार के हंसीमजाक और बातचीत की कडि़यां पिरोता रहा, लेकिन कुछ बातों पर मां और भाई की तरफ से अनापेक्षित बातें सुनने को मिलीं. मसलन, उस के यह कहने पर कि वह हिजाब पहनती है, इसीलिए मैं ने यहां से उस के लिए 2 बढि़या रूमाल खरीदे हैं. मां आश्चर्य से उसे देख कर बोली, ‘‘अरे वह कब से रूमाल सिर पर बांधने लगी?

वह तो नित नए फैशन रचती है केशों के.’’

क्रिस्टी सकपका गया. बोला, ‘‘नहीं, लंदन में विवाहित स्त्रियां हिजाब पहनने लगी हैं. उस का बेटा कैसा है?’’

‘‘हमारी बेटी तो अभी तक कुंआरी है. आप गलत पते पर आ गए हैं,’’ मां ने कहा.

‘‘हो सकता है. आप के पास आप की बेटी का कोई फोटो है?’’

मां झटपट फोटो ले आई. निस्संदेह यह फैमी का ही चित्र है. हालांकि इस में उस

के केश लंबे और वेशभूषा मोरक्कन थी. अब क्रिस्टी का माथा ठनका. उस ने दुभाषियों के माध्यम से बातचीत जारी रखते हुए पूछा, ‘‘क्या मैं आप की पुत्री के पत्र देख सकता हूं?’’

फैमी की मां को भी कुछ संदेह हुआ, मगर फिर वह पत्र ले आई. क्रिस्टी ने बहाने से मां को समझाया कि उसे ये पत्र दे दे ताकि वह फैमी को इन्हें दिखा कर चकित कर सके.

दुभाषियों के समझाने पर मां ने पत्र दे दिए.

‘‘1-2 दिन शहर घूम लूं. फिर आप से आ कर मिलूंगा जाने से पहले,’’ यह कह कर क्रिस्टी उठ खड़ा हुआ. फहमीदा सादी की मां को असमंजस में छोड़ कर वह भारी मन से बाहर आ गया.

2 बातें पक्की हो गई थीं. एक तो यह कि लड़की यही चित्र वाली लड़की थी, दूसरी यह कि उस का नाम फैमी ही था.

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मगर तीसरी बात एक विशाल प्रश्न के हुक से लटक रही थी, वह यह कि फैमी का बेटा कहां था, क्यों उस के बारे में मां को पता नहीं था. जरूर या तो वह अवैध था या गोद लिया. जैनेट ने साफसाफ कहा था कि उस का किसी से संबंध था. बच्चा अपने बाप के पास था और फैमी उस से बराबर मिलने जाती थी. लंदन में अनेक बच्चे अकेले अभिभावक पालते हैं, परंतु अधिकांश में स्त्री के पास बच्चा रहता है और पुरुष अपना आनाजाना भर रखता है. यहां स्थिति उलटी बैठ रही थी. शायद अपने अवैध रिश्ते को छिपाने के लिए फैमी ने बच्चे को पिता के पास रखा हुआ था, विचित्र.

फैमी के लिखे हुए शुरू के पत्र, खुले दिल से एक बेटी की ओर से अपनी मां को लिखे गए पत्र थे. वे बराबर हर हफ्ते लिखे गए थे. उन में पैसा घर भेजने का भी जिक्र था, मगर बाद वाले पत्र बेहद संक्षिप्त और औपचारिक समाचार भर थे. पैसों का कोई जिक्र नहीं था.

अगले 2-4 दिन बाद क्रिस्टी फैमी की मां से विदा लेने गया. बातोंबातों में उस ने पूछा कि जब एक कुंआरी लड़की को इतनी दूर परदेश भेजा था तो कोई तो मित्र या जानपहचान का परिवार वहां होगा. मां ने कई नाम गिना दिए.

क्रिस्टी ने उन के पते मांगे तो मां अचंभित रह गई, पूछने लगी, ‘‘आप क्या करेंगे?’’

‘‘वह कई दिनों से मिली नहीं है न, इसलिए उस के मित्रों से पूछ लूंगा. यों ही बस.’’

फैमी की बहन ने किसी पुरानी डायरी में से 1-2 पते दिए, जो कई साल पहले के रहे होंगे. पते ले कर वह लंदन लौट गया.

लंदन आ कर क्रिस्टी ने उन पतों पर तहकीकात करनी चाही. एक घर में अब कोई नाइजीरियन परिवार रह रहा था, तो दूसरे घर के व्यक्ति का रुख बड़ा टालमटोल वाला था. ये सभी पते लंदन के पूर्वी भाग के थे, जो मुख्य शहर से करीब 30-40 मील दूर पड़ते हैं. तीसरे व्यक्ति ने फहमीदा के बारे में अच्छा नहीं बोला, मगर क्रिस्टी ने बल दे कर उस से तहकीकात की. पुलिस का नाम सुन कर वह कुछकुछ बता पाया.

फहमीदा पहले इधर ही रहती थी और कैडबरी की फैक्टरी में काम करती थी. मगर

4 साल पहले वह यह जगह छोड़ कर पता नहीं कहां चली गई.

इस फैक्टरी में सब कुछ बदल गया था. कैडबरी कंपनी ने यहां का काम बंद कर दिया था और कारखाना कोटपैंट बनाने वाले एक भारतीय ने खरीद लिया था.

व्रत उपवास- भाग 2: नारायणी के व्रत से घर के सदस्य क्यों घबराते थे?

नारायणी ने फिर आवाज लगाई, ‘अरे, निम्मो, जा कर नमक की डली ले आ. एक डली मुंह में डाल लेंगे तो आराम मिलेगा.’

निर्मला ने दौड़ कर मां की आज्ञा का पालन किया. देवीलाल जानते थे कि अब दौरा कम हो रहा है. एकआध घंटे में सामान्य हो जाएगा. फिर भी नमक की डली मुंह में रख कर चूसने लगे.

‘अरे, चाय दी आप ने पिताजी को?’ कमरे से नारायणी की आवाज आई.

‘जी, अम्मां.’

निर्मला जाने क्यों सदा से मां को अम्मां ही कहती आई है. कुछ लोगों ने उसे टोका भी था. पर उसे आदत सी पड़ गई थी और अब कोई कुछ नहीं कहता था.

‘जा, एक प्याला और बना दे. अदरक डाल कर पानी खौला लेना,’  फिर नारायणी बड़बड़ाई, ‘कितनी बार कहा है कि तुलसी का पेड़ लगा लो, पर समझ में आए तब न.’

दिन चढ़ने लगा था. देवीलाल की खांसी दब गई थी. नारायणी उठ कर बाहर आ गई थी. वह आ कर देवीलाल को सामान गिनाने लगी जो उसे उपवास के लिए चाहिए था. उस की सूची सदा खोए की मिठाई और फलों से शुरू होती थी. व्रतों में फलाहार का प्रमुख स्थान है, पर आज उस की सूची में ऐसा कुछ नहीं था.

व्यंग्य से देवीलाल ने कहा, ‘क्या बात है, फलाहार नहीं होगा क्या?’

नारायणी ने उत्तर दिया, ‘आज निर्जल और निराहार रहना है. करवाचौथ है न, पर तुम जल्दी आना. दिनभर पूरीपकवान की तैयारी करनी है. हां, तुम्हें उड़द की दाल की कचौड़ी अच्छी लगती है न? लौटते समय बाजार से पीठी ले आना.’

देवीलाल चुपचाप चले गए. उन के जाते ही नारायणी ने बच्चों को काम में पेलना शुरू कर दिया, ‘निर्मला, तू यह पीस डाल.’

‘गोलू, तू भाग कर सामान ले आ. ‘तेरे पिताजी को कहना भूल गई थी. सोनू, तू किसी काम का नहीं. जा कर पंडिताइन से मेरी बड़ी घंटी ले आ. एक दिन को ले गई थीं. आज 1 हफ्ता हो गया. ऐसे मांगने आ जाते हैं, मानो सारे महल्ले में एक यही घंटी है.’

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सारा दिन ऐसी ही भागदौड़ में निकल गया. नारायणी का गालीगलौज जारी रहा. वह देवीलाल की खीज बच्चों पर उतारती रही. सब को 1-2 धौल भी पड़ गए. निर्मला रो पड़ी. गोलू दांत पीसता हुआ कोने में चला गया. सोनू ने आगे कोई काम करने से साफ इनकार कर दिया. नारायणी का क्रोध भी सातवें आसमान पर चढ़ता गया. वह बारबार व्रत और अपने कष्टों की दुहाई देती रही और सब को कोसती रही.

दोपहर में सब ने यों ही दो कौर मुंह में डाल कर पानी पी लिया. नारायणी की तानाशाही के नीचे सब दब गए थे.

7 बजतेबजते नारायणी ने पूजा की तैयारी कर ली. थाली सजा ली. वह असली घी का दीया, गुलगुले, 7 पूरियां, पानी का लोटा, कलावा, रोली सब बारबार देख कर संतुष्ट होने का प्रयत्न करती रही.

‘देख तो, चांद निकला या नहीं?’ सोनू को आज्ञा मिली.

‘नहीं निकला,’ सोनू ने बैठेबैठे कह दिया.

‘यहीं से कह दिया,’ नारायणी ने डांटा, ‘बाहर जा कर देख कर आने में क्या पैर घिसते हैं?’

‘कितनी बार तो देख आया. अब मैं नहीं जाता. गोलू से कह दो.’

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गोलू अपनी और पड़ोसिन की छत पर भी कई बार हो आया था. चौथ थी न. उस दिन विशेष तौर पर जाने कहां से बादल आ कर चांद पर छा जाते हैं. कल ही तो एकदम साफ गोल सा चांद चमक रहा था. नारायणी भूख के मारे तड़प रही थी. प्यास के मारे गला सूख रहा था. सारा खाना बड़ी मेहनत से बनाया था. कचौड़ी, दहीबड़े, जिमीकंद, आलूपरवल और गुलाब जामुन, सब उस की प्रतीक्षा कर रहे थे.

पौने 9 बजने को हुए तब कोई चिल्लाया, ‘देखो, वह रहा चांद.’

नारायणी लपक कर कमरे में गई. दोबारा अपना शृंगार देखा. मांग में गहरा लाल सिंदूर, माथे पर बड़ा सा टीका, गले में मंगलसूत्र के ऊपर सोने का भारी हार, कानों में झुमके, उंगलियों में 4 अंगूठियां और चौड़े बार्डर की गोटे वाली चमकीली जार्जेट की साड़ी. सबकुछ ठीक था.

नारायणी नईनवेली दुलहन की तरह पल्ले से सिर ढकती हुई हाथों में थाली और लोटा ले कर ऊपर छत पर गई, पर चांद कहीं दूरदूर तक दिखाई नहीं दिया. पता लगा कि किसी को भ्रम हो गया था. वह चांद नहीं था, एक चमकता बादल का टुकड़ा था, जो जैसे आया था वैसे ही चला गया.

नारायणी निराश हो गई. नीचे आ कर धम से बैठ गई.

कुछ देर में चिल्लाई, ‘अरे, सुनते हो? ये बच्चे तो किसी काम के नहीं हैं. तुम ही देख कर आओ कि चांद निकला या नहीं.’

देवीलाल ने झल्ला कर जवाब दिया, ‘अरे, जब निकलेगा तो सब को दिखेगा.’

बेचारे 4 बार तो वह खुद भी चक्कर काट चुके थे.

सोनू ने कहा, ‘पिताजी, कुतुब मीनार से तो अवश्य दिखाई देगा. टैक्सी ले कर आऊं?’

नारायणी ने उसे घूर कर देखा. सोनू जहां खड़ा था वहीं ठिठक कर रह गया. उस घर में मजाक की इजाजत नहीं थी.

चांद निकला साढ़े 9 बजे. पहले हलकी सी लाली दिखाई दी. फिर उस का एक टुकड़ा. जैसे ही समाचार मिला नारायणी अपना सामान उठा कर खड़ी हो गई.

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‘जरा यह थाली तो पकड़ना, मैं अपना सिर ठीक से ढक लूं,’ नारायणी ने थाली पति की ओर बढ़ाई.

नारायणी ने माथा ठोक कर कहा, ‘हाय, यह क्या बदशगुनी कर दी. एक भी काम ठीक से नहीं होता. सारे दिन का व्रत बेकार हो गया. तुम्हें तो मुझ से दुश्मनी है दुश्मनी.’

देवीलाल से भूल हुई थी, इसलिए धीरे से कह दिया, ‘अरे, घी ही तो गिरा है, और ले आओ.’

नारायणी ने चिढ़ कर कहा, ‘घी गिरना तो एकदम अशुभ है. सुबह से सिवा मनहूसियत फैलाने के कर क्या रहे हो? मैं भूखप्यास से तड़प रही हूं, ऊपर से यह बदशगुनी. मेरे तो करम ही फूट गए.’

देवीलाल कड़क कर कुछ कहने ही वाले थे कि पड़ोस की छतों से आवाजें आने लगीं, ‘अरे, चाची, जल्दी आओ न. सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’

‘अरे, भौजी, बाद में झगड़ लेना, अभी तो ऊपर आओ.’

‘बहनजी, कितनी देर करोगी? बड़ी भूख लगी है.’

करवाचौथ के दिन पड़ोस की सारी सधवाएं एकसाथ मिल कर चांद की पूजा करती हैं. नारायणी ने ऐसे थूक सटका मानो जहर पी रही हो. देवीलाल को आग्नेय नेत्रों से देखा तो देवीलाल सिकुड़ गए. वह पैर पटकती हुई गई. दीए में फिर से घी डाला और बत्ती ठीक कर के थालीलोटा ले कर ऊपर चली गई. ऊपर से स्त्रियों के ‘खीखी’ कर के हंसने के स्वर आ रहे थे.

ऊपर जा कर स्त्रियों की हंसी में नारायणी भी शामिल हो गई. ठठा कर हंसने और ठिठोली करने में उस का सब से ऊंचा स्वर था. देवीलाल सोच रहे थे, ‘यह मुखौटा कैसा?’

जब नारायणी नीचे आई तो फिर से वैसी ही गंभीर थी. चेहरे पर तनाव था. बड़बड़ा रही थी, ‘हाय, मेरे तो करम फूट गए हैं.’

देवीलाल ने कहा, ‘अरे, पूजा कर के आ रही हो, कुछ तो शुभ बोलो.’

‘क्या शुभ बोलूं?’ नारायणी ने तड़क कर कहा, ‘तुम सब मेरे दुश्मन हो दुश्मन.’

‘कैसी बातें कर रही हो?’ देवीलाल ने डांट कर कहा, ‘क्यों मनहूसियत फैला रही हो?’

‘क्या कहा? मैं मनहूस हूं. अरे, जिस के लिए दिनभर भूखीप्यासी रह कर उपवास किया, वही मुझे मनहूस कह रहा है. यह मैं क्या सुन रही हूं, भगवान. ऐसा सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गई?’

‘किस ने कहा था यह मनहूस व्रत रखने को?’ देवीलाल ने चिल्ला कर कहा, ‘यह व्रत तो मेरे जीवन का सब से बड़ा शाप है. सुबह से सिर्फ रोनेधोने, उठापटक के और हो क्या रहा है?’

‘शाप है, शाप है?’ नारायणी की घिग्घी बंध गई. उस से आगे कुछ न बोला गया. वह कुछ क्षण रुक कर रोने लगी. जा कर औंधे मुंह बिस्तर पर पड़ गई.

‘भगवान, तू नरक दे दे या फिर इस घर से उठा ले,’ वह बारबार यही कह कर माथा पीट रही थी.

जब तक नारायणी शांत हुई, घर में सन्नाटा हो गया था. बच्चे सहम कर बैठे हुए थे. सब की भूख मर गई थी.

देवीलाल ने निर्मला से कहा, ‘बेटी, खाना गरम कर के तुम लोग खा लो.’

यह कह कर वह अपने बिस्तर पर हाथ से मुंह ढक कर लेट गए.

पर ऐसे में कोई खाना कैसे खा सकता था? निर्मला दोनों भाइयों को दाएंबाएं बगल में लिटा कर अपने बिस्तर पर पड़ गई. आखिर सब को नींद आ गई.

आधी रात हुई. नारायणी उठी. उस ने खाना गरम कर के मेज पर रखा. सब को हिलाहिला कर उठाया, पर किसी ने उठने का नाम नहीं लिया.

‘मरो सब लोग,’ नारायणी ने कहा. कपड़े बदल कर वह भी बिस्तर पर लेट कर करवटें बदलने लगी.

Romantic Story in Hindi- बात एक रात की: भाग 2

लेखक : श्री प्रकाश

‘‘इतनी देर रात में बिना फ्लैट नंबर तो उन्हें ढूंढ़ना संभव नहीं है. बस कुछ घंटों की तो बात है, मेरे घर चलो. अपने रिश्तेदार को इतनी रात में क्यों तंग करोगी?’’

‘‘नहीं, यह ठीक नहीं होगा. मैं टैक्सी स्टैंड में रुक जाऊंगी. सुबह उन्हें फोन कर बुला लूंगी.’’

‘‘नहीं, स्टैंड पर रुकना सेफ नहीं है,’’ कह कर तपन ने अपने घर फोन किया और बोला, ‘‘मां, तुम अभी तक सोई नहीं थीं. एक ही रिंग पर फोन उठा लिया. मां, मैं 10 मिनट के अंदर घर पहुंच रहा हूं,’’ कह कर चित्रा से बोला, ‘‘मेरी बूढ़ी मां अभी तक मेरे लिए जाग रही हैं. तुम्हें कोई प्रौब्लम नहीं होगी. तुम मेरे घर चलो.’’

चित्रा ने सिर हिला कर अपनी सहमति

जाता दी. थोड़ी देर में दोनों घर पहुंचे, तो चित्रा को देख उस की मां बोलीं, ‘‘क्यों, मीरा को मना लाया है क्या?’’

दरअसल, उस की मां की आंखों की रोशनी बहुत कमजोर थी और फिर रात की वजह से और परेशानी होती थी, इसलिए ठीक से नहीं देख पा रही थीं.

तपन बोला, ‘‘मां, आप समझती क्यों नहीं? अब वह यहां क्यों आएगी? आप जा कर सो जाओ.’’

पर मां ने जब उस से चित्रा के बारे में पूछा तो तपन ने संक्षेप में उस के बारे में बता कर मां को सोने के लिए भेज दिया.

फिर उस ने चित्रा को गैस्टरूम में आराम करने को कहा.

चित्रा ने तपन से पूछा, ‘‘बुरा न मानें तो एक बात पूछूं?’’

फिर तपन के हां कहने पर वह बोली, ‘‘मीरा आप की पत्नी है?’’

‘‘है नहीं थी. हमारा तलाक हो चुका है.’’

‘‘सौरी. क्या इत्तफाक है. कल कोर्ट में मेरे तलाक पर फाइनल फैसला होना है. फैसला क्या बस तलाक पर मुहर लगनी है. मेरा और चेतन का आपसी सहमति से तलाक हो रहा है.’’

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कुछ देर तक दोनों खामोश एकदूसरे को हैरानी से देखते रहे. फिर तपन ने कहा, ‘‘तुम तो पढ़ीलिखी हो, काफी खूबसूरत भी हो. तुम्हारे पति को तो तुम पर गर्व होना चाहिए.’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था. मेरी ससुराल यहीं है, पर अब हमारा तलाक हो रहा है, इसलिए मैं वहां नहीं जा सकती हूं. मेरे पति कोलकाता में बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करते हैं. मेरा मायके तो पटना में है. मैं भी सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मैं ने अपने कालेज के 3 सीनियर लड़कों के साथ मिल कर एक स्टार्टअप कंपनी खोली है. शुरू में तो यह कंपनी मेरे पति के गैराज में ही थी. लगभग 1 साल तक ठीकठाक रहा था. हम एक अमेरिकन कंपनी के लिए प्रोडक्ट बना रहे हैं. अकसर देर रात तक गैराज में ही हम चारों काम किया करते थे. बीचबीच में मैं चायकौफी भी बना लाती थी. कभी हम चारों होते तो कभी मैं किसी एक के साथ अकेले भी होती थी. अपना मूड ठीक करने के लिए कभी हंसीमजाक भी कर लेते थे. यह सब मेरे पति चेतन को ठीक नहीं लगा. अकसर झगड़ा होने लगा. इसी बीच हमें अमेरिकन कंपनी से कुछ फंड भी मिला, तो अपने घर की बगल में ही एक छोटा फ्लैट किराए पर ले लिया और कंपनी को वहां शिफ्ट करा लिया, पर अकसर रात में देर हो जाती थी. हालांकि यह नितांत आवश्यक था, क्योंकि प्रोडक्ट को समय पर देना होता है. इस से हम लोगों को लाखों रुपए का लाभ होता.’’

चित्रा ने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘पर चेतन हमारी मजबूरी समझने को तैयार नहीं था. एक दिन तो हद हो गई जब उस ने कहा कि काम के साथसाथ वहां रंगरलियां भी मनाते हो तुम लोग… या तो मैं कंपनी छोड़ दूं या हम दोनों को तलाक लेना होगा. मैं ने उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश की पर वह नहीं माना, उलटे उस ने मेरे चरित्र पर ऊंगली उठाई थी. फिर हम दोनों आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हो गए.’’

अब तक सुबह के 5 बज गए थे. तपन चाय ले कर चित्रा के पास गया और बोला, ‘‘अभी चाय के साथ कुछ बिस्कुट या स्नैक्स लोगी? नाश्ते में थोड़ा वक्त लगेगा.’’

चित्रा ने कहा कि फिलहाल सिर्फ चाय ही लेगी. फिर दोनों वहीं बैठ कर चाय पीने लगे. चित्रा ने अपने रिश्तेदार को फोन किया तो पता चला कि उन की ए शिफ्ट ड्यूटी है. प्लांट चले गए हैं. दोपहर 3 बजे तक लौटेंगे. चित्रा ने उन्हें फोन पर बता दिया कि वह थोड़ी देर में कोर्ट जाएगी और फिर वहां का काम कर सीधे कोलकाता लौट जाएगी.

चित्रा ने फिर तपन से कहा, ‘‘अगर उचित समझें तो बताएं कि आप और मीरा क्यों अलग हुए थे?’’

‘‘मैं यहां के प्लांट में इंजीनियर हूं, परचेज डिपार्टमैंट में हूं. मशीनों के पार्ट्स खरीदने के लिए बीचबीच में कोलकाता जाना पड़ता है. मैं मध्यवर्गीय परिवार से हूं. मीरा के पिता का अपना अच्छाखासा बिजनैस है, पर मीरा भी इसी प्लांट में अकाउंट औफिस में काम करती थी. हम दोनों में जानपहचान हुई. आगे चल कर प्यार हुआ और हम ने शादी कर ली. शुरू में 6 महीने काफी अच्छे बीते. उस के बाद उस ने जिद पकड़ ली अलग घर लेने की. उस ने कहा कि मां को किसी अच्छे वृद्धाश्रम में छोड़ देंगे. मैं इस के लिए तैयार नहीं?था. रोज खिचखिच होने लगी. अंत में उस ने कहा कि मुझे मां या मीरा में से किसी एक को चुनना होगा. मैं ने जब कहा कि मैं मां को अकेली नहीं छोड़ सकता तो उस ने कहा कि फिर मुझे छोड़ दो. मैं ने इस रिश्ते को बचाने की बहुत कोशिश की, पर वह नहीं मानी और उस ने तलाक के विकल्प को ही बेहतर समझा.’’

‘‘आजकल हमारे देश में भी तलाक लेने वालों की संख्या काफी बढ़ गई है. यह दुख की बात है न? लड़कियां भी पढ़लिख कर कमाने लगी हैं मर्दों की तरह तो उन को भी घर में उतनी इज्जत देनी होगी जितना मर्द अपने लिए चाहते हैं. उन्हें भी अपना कैरियर बनाने का हक है न? क्या मैं गलत बोल रही हूं?’’

‘‘नहीं, पर लड़के क्या अपने मातापिता के भले के लिए कुछ करना चाहें तो यह गलत है?’’

आखिर चित्रा और चेतन के तलाक पर कोर्ट ने मुहर लगा दी. तपन ने कहा कि यह एक ऐसा फैसला है जिस पर खुशी भी जाहिर नहीं की जा सकती है. चित्रा और चेतन अब सदा के लिए अलग हो चुके थे.

इस के बाद तपन चित्रा को अपने घर ले कर आया. उस ने उस दिन छुट्टी ले ली थी. मां ने दोनों को भोजन परोसा. मां ने पूछा, ‘‘बेटी, तुम ने भविष्य के बारे में क्या सोचा है? अभी तुम्हारे आगे लंबी जिंदगी है.’’

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‘‘मैं ने अभी कुछ नहीं सोचा है. अभी मैं कंपनी के जरूरी काम में कुछ महीने इतनी व्यस्त रहूंगी कि कुछ और सोचने की फुरसत ही नहीं है,’’ चित्रा ने कहा.

‘‘चिंता नहीं करना, एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है…’’

Crime Story in Hindi: वर्चस्व का मोह- भाग 3: आखिर किसने दादजी की हत्या की?

‘‘क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद पापा ने मुझे अकेले ऊपर नहीं रहने दिया. हां, तो मैं बता रही थी कि उस रात पत्तों की आवाज सुन कर मुझे लगा कि आलोक आ गया है. मैं बाहर आई. पत्ते तो हिल रहे थे, लेकिन छत पर कोई नहीं था. मैं ने नीचे से झांक कर देखा तो पेड़ से उतर कोई भागता नजर आया और दादाजी के कमरे से उन के नौकर राजू के चिल्लाने की आवाजें आईं कि देखो दादाजी को क्या हो गया. मैं भाग कर नीचे आई और सब को राजू के चिल्लाने के बारे में बताया. हम लोग आलोक के घर गए. दादाजी के मुंह पर तकिया रख कर किसी ने दम घोंट कर उन की हत्या कर दी थी.

‘‘राजू दादाजी के लिए दूध ले कर ऊपर जा रहा था कि गिलास पर ढक्कन की जगह रखी कटोरी गिर सीढि़यों से झनझनाती हुई नीचे चली गई. शायद उसी की आवाज सुन कर हत्यारा कहीं छिप गया था. सब उस की तलाश करने लगे. मगर मैं ने किसी को नहीं बताया कि मैं ने हत्यारे को पेड़ से उतरते और दीवार फांदते देखा था. क्योंकि मैं ने उस की शक्ल तो नहीं सिर्फ लिबास देखा था.

‘‘वैसा ही रेशमी कुरतापाजामा जैसा आलोक पहने हुए था. पापा ने मेरे छोटे भाई बंटी को फंक्शन हौल से आलोक को लाने भेजा. मेरा खयाल था कि आलोक वहां नहीं होगा, लेकिन बंटी आलोक को ले कर आ गया. गौर से देखने पर भी आलोक के कपड़ों पर पेड़ पर चढ़नेउतरने के निशान नहीं थे. और आलोक भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही हैरान था…’’

‘‘फिर तुम्हें यह शक क्यों है कि हत्यारा आलोक ही है?’’ देव ने बीच में पूछा.

‘‘क्योंकि अगले दिन जब पुलिस ने पेड़ के नीचे जूतों के निशान देखे तो वे जोधपुरी जूतियों के थे जिन्हें आलोक उस समय भी पहने हुए था. सही साइज का पता नहीं चल रहा था क्योंकि भागने की वजह से निशान अधूरे थे. आलोक शक के घेरे में आ गया, मगर उस ने अपने बचाव में रवि की शादी की वे तसवीरें दिखाई, जिन में वह उस समय तक रवि के साथ था जब तक बंटी उसे बुलाने नहीं गया था. पुलिस ने भले ही उसे छोड़ दिया हो, लेकिन मुझे लगता है कि वह आलोक ही था. एक तो पेड़ पर से चढ़नेउतरने का रास्ता उसे ही मालूम है, दूसरे दादाजी की मौत से फायदा भी उसे ही हुआ.

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‘‘13वीं के तुरंत बाद उस ने एजेंसी लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. रहा सवाल तसवीर का, तो खाने और फेरों के दरम्यान तो लगातार तसवीरें कहां खिंचती हैं सर? फोटोग्राफर भी उसी दौरान खाना खाते हैं. फंक्शन हौल घर के पीछे ही तो था. दीवार फांद कर आनेजाने और तकिए से मुंह दबा कर किसी बुजुर्ग को मारने में समय ही कितना लगता है?’’

‘‘तुम ने इस बारे में आलोक से बात की?’’

‘‘नहीं सर, आज पहली बार आप को बता रही हूं.’’

‘‘तुम ने अपनी सगाई या शादी कैसे टाली?’’

‘‘दादाजी की मृत्यु के तुरंत बाद तो सवाल ही नहीं उठता था. उस के बाद आलोक भी बहुत व्यस्त हो गया था. घर पर आता तो था, मगर पापा से सलाहमशवरा करने और मैं अपनी तरफ से उस से अकेले मिलने की कोशिश ही नहीं करती थी. साल भर बाद जब मां ने सगाई की जल्दी मचाई तो मैं ने उन से साफ कहा कि मुझे शादी से पहले कुछ समय चाहिए. आलोक के घर वाले भी उस की व्यस्तता के चलते अभी शादी करने की जल्दी में नहीं थे सो मेरे घर वाले भी मान गए.’’

‘‘और आलोक से मिलनाजुलना कैसे कम किया?’’

किरण मुसकराई, ‘‘उसे समझा दिया सर कि हमें ज्यादा मिलतेजुलते देख कर मां शादी जल्दी करवा देंगी. चूंकि आलोक भी धंधा जमने के बाद ही शादी करना चाहता था सो मान गया. वैसे भी उसे फुरसत तो थी नहीं, लेकिन अब जब भी फुरसत मिलती है आ जाता है और मां का शादी वाला राग शुरू हो जाता है. अब आप ही बताइए सर, जिस आदमी पर मैं शक करती हूं उस से शादी करना मुनासिब होगा?’’

‘‘बिलकुल नहीं. मैं कल ही इस केस की फाइल देखता हूं. मुझे दादाजी का नाम और हत्या की तारीख बताओ,’’ देव ने कहा, ‘‘तुम भी अब शादी के लिए मना मत करो. जब तक घर वाले तैयारी करेंगे, तब तक मैं हत्यारे को पकड़ लूंगा. अगर आलोक हुआ तो शादी का सवाल ही नहीं उठता और कोई दूसरा हुआ तो तुम्हारे इनकार करने की, फिर मना कर के घर में सब को परेशान करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘जी सर.’’

रास्ते में देव ने नीना को बताया कि उस ने किरण को समझा दिया है और वह शादी के लिए मना नहीं करेगी. सोनिया को फिलहाल परेशान होने की जरूरत नहीं है.

अगले दिन देव ने कमिश्नर साहब को सारी बात बता कर केस की फाइल निकलवा ली. उस में लिखे तथ्यों के मुताबिक सुबूत न के बराबर थे, जिन के आधार पर हत्यारे को पकड़ना भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने के समान था. लेकिन देव ने कमिश्नर साहब से आग्रह किया कि वे यह केस उस के सुपुर्द कर दें.

आलोक के घर वालों को दोबारा तफ्तीश की बात सुन कर पहले हैरान और फिर खुश होना स्वाभाविक ही था. सब से ज्यादा खुश आलोक लगा.

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‘‘मैं अपने को जानबूझ कर व्यस्त रखता हूं सर क्योंकि जहां जरा सी फुरसत मिली, मैं

यही सोचने लगता हूं कि दादाजी की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘और क्यों की होगी?’’ देव ने जोड़ा.

‘‘चोरी के लिए सर दादाजी गले में सोने की मोटी चेन, उंगलियों में हीरेपन्ने की अंगूठियां, सोने की कलाई घड़ी और सोने के बटन वाले कुरते पहनते थे. उन के बटुए में भी हजारों रुपए रहते थे. कमरे में मेरा भी लैपटौप, आईपौड वगैरह पड़े थे, लेकिन इस से पहले कि चोर ये सब समेट सकता, राजू के हाथ से सीढि़यों में कटोरी गिर गई और उस की आवाज से वह डर कर भाग गया,’’ आलोक ने कहा.

‘‘पेड़ से चढ़नेउतरने का रास्ता नए आदमी को तो मालूम नहीं हो सकता?’’

‘‘यही तो परेशानी है सर, हत्या तो किसी जानपहचान वाले ने ही की है. आप को एक बात बतांऊ, पेड़ के नीचे मिले निशान मेरी राजस्थानी जूतियों से मेल खा रहे थे. मैं शक के घेरे में तो आ गया था, लेकिन उसी दिन मेरे एक दोस्त की शादी थी और हर तसवीर और वीडियो के फ्रेम में होने की वजह से मैं बच गया.’’

‘‘मैं वह अलबम और वीडियो देख सकता हूं?’’

‘‘जरूर सर. मैं रवि के घर से अलबम और वीडियो कैसेट ला कर आप को फोन करूंगा,’’ आलोक ने कहा.

कुछ देर बाद आलोक ने देव को फोन किया कि उसे अलबम तो मिल गया है, मगर वीडियो कैसेट बारबार चलाने के कारण इतनी घिस गई है कि देखने में उलझन होती है सो न जाने कहां रख दी है. ढूंढ़ने को कह दिया है.

‘‘ठीक किया. फिलहाल अलबम मेरे औफिस में ला या भिजवा सकते हो?’’

‘‘अभी भेज देता हूं सर और अगर मेरी जरूरत हो तो फोन कर दीजिएगा, मैं फौरन हाजिर हो जाऊंगा.’’

अलबम देखने के बाद देव ने किरण को फोन किया, ‘‘किरण, उस रात तुम ने भागने वाले के कपड़ों का रंग भी देखा था?’’

‘‘नहीं सर, इतनी रोशनी नहीं थी…सिर्फ चमक और कुरते की लंबाई देखी थी.’’

‘‘वैसे उस शादी में आलोक के अलावा और कई लोग सिल्क के कुरतेपाजामों में थे.’’

‘‘हां सर, यह उस समय का खास फैशन था.’’

‘‘तो फिर भागने वाला आलोक ही क्यों, कोई और भी तो हो सकता है?’’

‘‘आलोक इसलिए सर कि एक तो भागने का रास्ता सिर्फ उसे ही मालूम था और दूसरे दादाजी के न रहने से फायदा भी तो उसी को हुआ.’’

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किरण के तर्क में दम तो था, लेकिन देव फिलहाल उस से सहमत होने को तैयार नहीं था. उस ने तसवीरों को फिर गौर से देखा. फिर आलोक को फोन कर के बुलाया.

‘‘इन तसवीरों में दूल्हा और तुम्हारे दूसरे सभी दोस्त तो अपने कालेज के साथी ही हैं सिवा एक के जो हर तसवीर में तुम से सट कर खड़ा है,’’ देव ने टिप्पणी की.

‘‘वह मेरा बिजनैस पाटर्नर नकुल है सर. अमेरिका से कंप्यूटर में डिप्लोमा कर के आया है. आप को तो मालूम ही होगा सर, आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए कंप्यूटर स्पैशलिस्ट होना अनिवार्य है, इस के अलावा इलैक्ट्रौनिक प्रोडक्ट्स बेचने का अनुभव और एक बड़े एअरकंडीशंड शोरूम का मालिक होना भी. मैं ने और नकुल ने साथ मिल कर ये सब शर्तें पूरी कर के जोनल डिस्ट्रिब्यूटरशिप ली है.’’

‘‘कब से जानते हो नकुल को?’’

डुप्लीकेट- भाग 1: आखिर क्यों दुखी था मनोहर

कल्पना सिनेमाघर में काफी पुरानी फिल्म ‘अपना कौन’ चल रही थी. बहुत कम दर्शक थे. मनोहर भी फिल्म देखने आया था. जैसेजैसे वह सीन निकट आ रहा था, उस के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. एक घंटे बाद वह सीन आया. अचानक फिल्म की हीरोइन सीढि़यों से लुढ़कती हुई फर्श पर आ गिरती है.

यह देखते हुए मनोहर के मुंह से दुखभरी चीख निकली. वह बुरी तरह कांप उठा. उस का मन बहुत भारी हो गया. वह सीट से उठा और सिनेमाघर से बाहर निकल गया. वह बस इतनी ही फिल्म देखने आया था.

सिनेमाघर से बाहर आ कर मनोहर ने एक रिकशा वाले को जनकपुरी चलने को कहा.

मनोहर के चेहरे पर दुख की रेखाएं फैलती जा रही थीं. 20 साल पहले बनी थी यह फिल्म ‘अपना कौन’. किसी को क्या पता था कि सीढि़यों से लुढ़क कर फर्श पर गिरने वाली हीरोइन नहीं, बल्कि हीरोइन की डुप्लीकेट नीलू थी. नीलू उस की पत्नी ऊंचे जीने से बुरी तरह लुढ़कती हुई फर्श पर गिरी. उस के बाद वह कभी उठ ही न पाई.

फिल्म नगरी की नकली सुनहरी चमकदमक. खिंचे चले जा रहे हैं अनेक नौजवान. न जाने कितने चेहरे इस चमक के पीछे छिपे गहरे अंधकार में हमेशा के लिए खो जाते हैं.

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा. उसे याद आ रहा था जब वह नौजवान था, हैंडसम था. उसे ऐक्टिंग करने का शौक था. शहर के कुछ मंचों पर नाटकों में भी ऐक्टिंग की थी. उसे भी फिल्मों में काम करने का भूत सवार हो गया था. वह घर से मुंबई भाग आया था. महीनों मारामारा घूमता रहा. जो रुपए लाया था, खत्म हो गए.

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तभी उस की दोस्ती विजय से हो गई जो फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करता था. विजय उसे भी स्टूडियो में साथ ले जाने लगा. वहां वह फिल्मों की शूटिंग देखता और सोचता कि काश, मुझे भी किसी फिल्म में काम मिल जाता.

वह दिन मनोहर की खुशी का दिन था जब एक फिल्म में विजय ने उसे भी डुप्लीकेट का काम दिला दिया था. उस ने मन ही मन सोचा था कि आज वह डुप्लीकेट बना है, कल हीरो भी जरूर बनेगा.

पर, यह सोचना कितना गलत रहा, क्योंकि फिल्म नगरी में हीरो कभी डुप्लीकेट नहीं बनता और डुप्लीकेट कभी हीरो नहीं बनता. जो जिस लाइन पर चल निकला, सो चल निकला. जिस पर जो लेबल यानी ठप्पा लग गया, सो लग गया.

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया था. वह कुछ नामचीन हीरो के लिए काम करने लगा था. शीशे तोड़ कर कमरे में घुसता. ऊंचीऊंची इमारतों पर विलेन के डुप्लीकेट से लड़ाई के शौट देता. कभी वह पहाडि़यों से लुढ़कता तो कभीकभी ऐसे स्टंट भी करने पड़ते जिन्हें देख कर दर्शक अपनी सांसें रोक लेते.

फिल्मों की शूटिंग पर मनोहर सुंदर सलोनी सी एक लड़की को देखा करता था. एक दिन जब उस से बात की गई, तो उस ने बताया था कि उस का नाम नीलिमा है. पर सभी उसे नीलू कहते हैं. उसे भी थोड़ीबहुत ऐक्टिंग आती थी. वह भी अपने शहर में कई नाटकों में रोल कर चुकी थी. वह भी फिल्मों में हीरोइन बनना चाहती थी.

यहां मुंबई में नीलू के दूर के एक रिश्ते का मामा रहता है. उस से फोन पर बात हुई तो उस ने एकदम कह दिया कि आ जाओ, मेरी बहुत जानपहचान है फिल्म नगरी में.

नीलू ने जब मम्मीपापा को मुंबई में जाने के बारे में बताया तो दोनों ने साफ मना कर दिया था. फिल्मी दुनिया में फैली अनेक बुराइयों व परेशानियों के बारे में भी उसे समझाया था.

पापा ने कहा था, ‘नए लोगों को वहां पैर जमाने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. उन लड़कियों के लिए दलदल में गिरने जैसी बात हो जाती है जिन का फिल्म नगरी या मुंबई में कोई अपना नहीं होता.’

‘वहां पर मामा जगत प्रसाद तो हैं. उन्होंने फोन पर मुझ से कहा है कि उन की बहुत जानपहचान है,’ नीलू बोली थी.

‘नीलू बेटी, वह तेरा सगा मामा तो है नहीं. दूर के रिश्ते में मेरा भाई लगता है. तू फिल्मी दुनिया के सपने छोड़ कर यहीं पढ़ाईलिखाई में अपना ध्यान दे,’ मम्मी ने कहा था.

पर नीलू नहीं मानी. उस की जिद के सामने वे मजबूर हो गए. उन दोनों को नाराज कर वह मुंबई पहुंच गई. जगत मामा व मामी उसे देख कर बहुत खुश हुए.

जगत मामा ने नीलू को फिल्मी दुनिया के अनेक लोगों के साथ अपने फोटो भी दिखाए. उसे पूरा विश्वास हो गया था कि मामा उसे जल्द ही किसी न किसी फिल्म में रोल दिला देंगे.

एक दिन मामी बाजार गई हुई थीं. मामा और वह घर पर अकेले ही थे. वह एक फिल्मी पत्रिका पढ़ रही थी.

‘नीलू, एक दिन तुम्हारी तसवीरें भी इसी तरह पत्रिकाओं व अखबारों में छपेंगी.’

‘सच, मामाजी,’ नीलू की आंखों में खुशी भरी चमक तैरने लगी मानो उस की फिल्म की शूटिंग हो रही है. उसे हीरोइन की सहेली का रोल मिला है. उस के फोटो भी अखबारों में छप रहे हैं.

तभी नीलू चौंक उठी. मामा ने एक झटके से उसे अपनी तरफ खींचना चाहा था. वह एकदम बोल उठी, ‘यह क्या करते हो आप मामाजी?’

मामा ने मुसकरा कर उस की ओर देखा था. मामा की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

‘मामाजी, आप से मैं क्या कहूं? आप को तो शर्म आनी चाहिए. आप अपनी भांजी के साथ ऐसी हरकत कर रहे हो.’

‘अरे, तुम मेरी सगी भांजी तो हो नहीं. मेरी 2-3 निर्माताओं से बात चल रही है. उन्होंने कहा है कि वे जल्द ही तुम्हें स्क्रीन टैस्ट के लिए बुला लेंगे. स्क्रीन टैस्ट के नाम पर यह सब होना मामूली बात है.

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‘अगर तुम इस से बचना चाहोगी तो नामुमकिन हो जाएगा काम मिलना. अखबारमैगजीनों में तुम ने पढ़ा होगा कि बहुत सी हीरोइन अपने इंटरव्यू में बता देती हैं कि फिल्मों में काम देने के नाम पर उन का यौन शोषण हुआ है.’

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