छोटी छोटी खुशियां- भाग 6: शादी के बाद प्रताप की स्थिति क्यों बदल गई?

Writer- वीरेंद्र सिंह

सुधीरजी के जाने के बाद प्रताप अपने घर पहुंचा. सुधा बैठी टीवी पर फिल्म देख रही थी. वातावरण में निस्तब्धता थी. प्रताप ने कपड़े उतार कर पलंग पर फेंके और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

नहा कर बाहर निकला तो दोनों होंठों को गोलगोल कर के वह कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा था. लेकिन कमरे में आते ही उस का गुनगुनाना बंद हो गया. सुधा पर नजर पड़ते ही वह सहम उठा. क्रैडिट सोसायटी में लोन के लिए उस ने जो फौर्म भरा था उस की रसीद लिए सुधा खड़ी थी. 80 हजार रुपए के कर्ज के लिए उस ने अर्जी दी है, यह जान कर वह गुस्से से कांप रही थी. आंखें आग उगल रही थीं. नाक फूलपचक रही थी. वह पूरी ताकत से चीख कर बोली, ‘‘यह क्या है? मैं ने तुम्हें मना किया था, फिर भी तुम नहीं माने. राजा हरिश्चंद्र बन कर घर लुटाने पर तुल गए हो?’’

प्रताप चुपचाप खड़ा था. अपनी बातों का कोई जवाब न पा कर सुधा चिढ़ गई. वह पहले से भी ज्यादा तेज आवाज में चीखी, ‘‘मैं ने जो कहा, तुम ने सुना नहीं. मैं जो पूछ रही हूं, उस का जवाब दो. उन भिखारियों को पैसा क्यों दे रहे हो?’’

‘‘क्या कहा तुम ने?’’ प्रताप ने आगे बढ़ कर कहा.

‘‘मैं ने मना किया था, फिर भी तुम अपने भिखमंगे भाई को 80 हजार रुपए दे रहे हो?’’

‘‘तड़ाक…’’ बिजली की गति से एक तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा. 4 साल में पहली बार ऐसा किया था प्रताप ने. उस का तमाचा इतना जोरदार था कि सुधा गिर पड़ी थी. प्रताप चीखा, ‘‘मेरे बड़े भाई को भिखमंगा कहते तुझे शर्म नहीं आती.’’

सुधा उठ कर बैठ गई. आंखें फाड़े वह प्रताप को एकटक ताक रही थी. फिर ने स्वयं को संभाला और बलखाती नागिन की तरह उठ खड़ी हुई. साड़ी का पल्लू खिसक गया था, बाल बिखर गए थे. आंखों के साथ चेहरा भी लाल हो गया था. दांत भींच कर वह प्रताप की ओर बढ़ी, ‘‘मवाली, हलकट… एक तो चोरीछिपे अपने घर वालों को पैसा देता है. दूसरे, जब मैं पूछती हूं तो मेरे ऊपर हाथ उठाता है,’’ सुधा ने प्रताप को मारने के लिए हाथ उठाते हुए कहा, ‘‘मुझ पर हाथ उठाने का मजा मैं अभी तुम्हें चखाए देती हूं.’’

प्रताप ने उस का हाथ बीच में ही थाम लिया और इस तरह ऐंठ दिया कि मारे दर्द के वह बिलबिला उठी. उस की आंखों में आंसू आ गए. प्रताप ने शब्दों को चबाते हुए कहा, ‘‘सुन, वह मेरा सगा भाई है. आज के बाद फिर कभी भिखारी कहा तो हड्डियां तोड़ कर रख दूंगा.’’

प्रताप ने सुधा के साथ ऐसा पहली बार किया था. उस के इस व्यवहार से सुधा एकदम से सहम उठी. प्रताप ने कहा, ‘‘ये 4 साल मैं ने किस तरह बिताए हैं, यह मैं ही जानता हूं. हर पल अपमान की आग में झुलसता रहा. तुम ने मुझे कुत्ते की तरह रखा. मेरी जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने,’’ इतना कहतेकहते प्रताप की आवाज थोड़ी धीमी पड़ गई, ‘‘तुम्हारा बाप पैसे वाला है तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी गुलामी करूंगा. मेरी भलमनसाहत का फायदा उठा कर, तुम ने मेरे साथ क्या नहीं किया. मेरे मांबाप मेरे साथ कुछ दिन रहने के लिए आए थे, तुम ने उन्हें भगा दिया. मेरे किसी भी नातेरिश्तेदार से तुम ने कभी प्रेम से नहीं बात की. मेरी किसी भी बात में तुम्हें कोई रुचि नहीं है.’’

दो पल रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘तुम कान खोल कर सुन लो, तुम्हारी दादागीरी मैं ने बहुत सहन कर ली है. अब तुम्हारे दिन लद गए. आज के बाद जो करना होगा, मैं करूंगा और तुम सहोगी.’’

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सुधा एकटक प्रताप को ही देख रही थी. उस की दुबलीपतली काया क्रोध और क्षोभ से कांप रही थी. सारी देह पसीने से भीग गई थी. आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. प्रताप ने जैसे ही उस का हाथ ढीला किया, सुधा ने पलट कर प्रताप के चेहरे पर थूका, ‘‘आक थू…’’

प्रताप ने झटके से मुंह फेर लिया. इस का फायदा उठा कर सुधा ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. हाथ छूटते ही वह रसोई की ओर जाते हुए बोली, ‘‘नीच हरामी, मैं तुझे किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगी.’’

तभी हाथ बढ़ा कर प्रताप ने सुधा के खुले बाल पकड़ कर अपनी ओर इस तरह जोर से खींचे कि मारे दर्द के वह तड़प उठी. उस के मुंह से एक भयानक चीख निकली. फिर दांत भींच कर प्रताप ने 2 तमाचे सुधा के गाल पर जड़ दिए.

सुधा जोरजोर से रोते हुए दोनों हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगी. सुधा के गोरेगोरे गालों पर प्रताप की उंगलियों के लाललाल निशान स्पष्ट झलक रहे थे. सुधा की आंखों में आंखें डाल कर प्रताप ने कहा, ‘‘अब ठीक से रहना. मेरे खयाल से अब तुम ऐसा कोई काम नहीं करोगी कि मुझे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करना पड़े.’’

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुका कर रो रही थी. प्रताप सुधा को छोड़ कर वहीं पड़े पलंग पर बैठ गया. सुधा ने प्रताप की ओर देखा. फिर दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आज क्या हो गया है तुम्हें?’’

प्रताप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुधा उठी और धीरेधीरे चलती हुई कमरे से बाहर निकल गई. प्रताप ने तौलिया खींच कर पसीना पोंछा. उस ने सोचा, अब सब ठीक हो जाएगा. लेकिन सुधा इतनी जल्दी कहां हार मानने वाली थी. वह कमरे से सीधे रसोई में पहुंची. रसोई में रखा मोटा डंडा निकाला और दोनों हाथों से मजबूती से थामे वह प्रताप की ओर बढ़ी. फिर उस ने जिस तरह से प्रताप पर हमला किया, उस की प्रताप ने कभी कल्पना नहीं की थी. उस ने हाथों में थामे डंडे से पूरी ताकत के साथ प्रताप के सिर पर प्रहार कर दिया. एक ही वार में प्रताप बैड पर लेट गया. उस का सिर फट गया था. खून निकल कर बैड पर बिछी चादर को भिगोने लगा था. उस की आंखें बंद होने लगी थीं. थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया था.

आईसीयू में भरती प्रताप की चारपाई के पास उस रात कोई नहीं था. अगले दिन खबर पा कर गांव से मांबाप आए तो बड़े भाई और भाभी उन के साथ अस्पताल आ गए थे. रोरो कर चारों की आंखें सूज गई थीं. दीवार का सहारा लिए बैठी सुधा अभी भी सिसक रही थी. थोड़ी दूर पर खड़े सुधा के पापा न्यूरोसर्जन से गंभीरतापूर्वक बातचीत कर रहे थे. उस दुख की घड़ी में सभी की नजरें उन्हीं पर जमी थीं. उन लोगों के लिए दिक्कत की बात यह हो गई थी कि डाक्टरों ने प्रताप के घायल होने की सूचना पुलिस को दे दी थी. डाक्टरों का कहना था कि प्रताप के सिर पर किसी भारी चीज से किसी ने प्रहार किया है. जबकि सुधा के पापा ने डाक्टरों को बताया था कि स्कूटर से गिरने की वजह से प्रताप के सिर और पैर में चोट लगी थी. उस पर डाक्टरों का तर्क था कि पैर की चोट में तो पट्टी बंधी थी जबकि सिर की चोट ताजी थी. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप का बयान लेने 2 बार अस्पताल आ चुका था. परंतु प्रताप के बेहोश होने की वजह से वह बयान नहीं ले सका था. तब उस ने कहा था कि जब इन्हें होश आ जाए, उसे तुरंत सूचना दी जाए. इन का बयान लेना बहुत जरूरी है.

सुधा के पापा नहीं चाहते थे कि इस मामले में पुलिस आए. क्योंकि यदि होश में आने पर बयान देते समय प्रताप ने असलियत बता दी तो सुधा फंस जाएगी. इसी विषय पर वे न्यूरोसर्जन से बातें कर रहे थे. परंतु न्यूरोसर्जन ने साफ कह दिया था कि अब उन के हाथ में कुछ नहीं है.

4 दिनों बाद प्रताप को होश आया. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर यह बात बताई. मांबाप और भाईभाभी उसे एक नजर देखने के लिए बेचैन हो उठे. सुधा भी उठ कर आईसीयू के गेट पर जा खड़ी हुई थी. डाक्टर ने प्रताप के होश में आने की सूचना पुलिस इंस्पैक्टर को भी दे दी थी. इसलिए थोड़ी ही देर में इंस्पैक्टर आ गया. इंस्पैक्टर के आने पर ही सब को आईसीयू में प्रवेश करने दिया गया. ऐसा शायद पुलिस इंस्पैक्टर के इंस्ट्रक्शन के अनुसार किया गया था. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप की चारपाई के पास पड़े स्टूल पर बैठ गया. प्रताप के मांबाप और भाईभाभी उस के पैरों की ओर खड़े एकटक उसी को ताक रहे थे. सुधा अपने पापा के साथ पुलिस इंस्पैक्टर के पीछे खड़ी थी.

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पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रताप को गौर से देखा. फिर पूछा, ‘‘आप को किस ने मारा, जिस से आप का सिर फट गया?’’

प्रताप ने सुधा की ओर देखा. सुधा उसे ही ताक रही थी. इसलिए प्रताप से उस की नजरें मिल गईं. प्रताप से नजरें मिलते ही उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे. प्रताप को लगा शायद उसे अपने किए पर पश्चात्ताप है. प्रताप ने सुधा पर से नजरें हटा कर एक बार सब की ओर देखा. फिर इंस्पैक्टर की ओर देख कर बोला, ‘‘मुझे कोई क्यों मारेगा? कल की दुर्घटना में मेरे पैर में चोट लग गई थी. जिस की वजह से मैं ठीक से चल नहीं

पा रहा था. रात सीढ़ी उतरते समय पैर लड़खड़ा गया, जिस से मैं सीढि़यों पर सिर के बल गिर पड़ा. फिर क्या हुआ, मुझे कुछ पता नहीं.’’

प्रताप का इतना कहना था कि सुधा फफकफफक कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर उठा और सब पर एक नजर डाल कर बाहर निकल गया. अब उस के वहां रुकने का कोई सवाल ही नहीं था.

इंस्पैक्टर के जाते ही सुधा आगे बढ़ी और प्रताप का हाथ थाम कर बोली, ‘‘मैं ने आप को कितना परेशान किया, यहां तक कि आप को इस स्थिति में पहुंचा दिया, फिर भी आप ने मुझे बचाने के लिए झूठ बोला.’’

दूसरे हाथ से सुधा का हाथ दबाते हुए प्रताप बोला, ‘‘यह पतिपत्नी का झगड़ा था. पतिपत्नी के झगड़े में किसी तीसरे की कोई जरूरत नहीं होती. तुम ने जो किया, आखिर उस में मेरी भी तो कुछ गलती थी.’’

‘‘लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ कह कर सुधा ने प्रताप के दोनों हाथ अपने हाथों में भींच लिए. इस बीच बाकी लोग बाहर चले गए थे.

‘निर्भया-एक पहल’ 75,000 महिलाओं के लिए जागरूकता कार्यक्रम

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी कल 29 सितम्बर, 2021 को यहां मिशन शक्ति के अन्तर्गत ‘निर्भया-एक पहल’ कार्यक्रम का शुभारम्भ करेंगे. इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी द्वारा ‘एक जनपद, एक उत्पाद योजना’ के विशेष आवरण तथा विशेष विरूपण का विमोचन भी किया जाएगा.

‘निर्भया-एक पहल’ कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रदेश के सभी 75 जनपदों मेें प्रति जनपद 1,000 महिलाओं का एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम तथा 03 दिवसीय कौशल क्षमता विकास प्रशिक्षण संचालित किया जाएगा. 75,000 महिलाओं को इस कार्यक्रम के माध्यम से लाभान्वित किया जाएगा.

प्रदेश के सभी 75 जनपदों में कल सम्बन्धित जनपद के ओ0डी0ओ0पी0 उत्पाद के सम्बन्ध में भारतीय डाक विभाग के सहयोग से एक विशेष कवर तथा विशेष विरूपण का अनावरण एवं विमोचन किया जाएगा. इस प्रकार, एक ही दिवस और समय पर प्रदेश में 75 विशेष आवरण जारी किए जाएंगे. यह सभी आवरण देश के विभिन्न डाक घरों में भेजे जाएंगे, जिससे प्रदेश के ओ0डी0ओ0पी0 उत्पादों को व्यापक राष्ट्रीय पहचान मिलेगी.

मीत- बदलेगी दुनिया की रीत: आशी सिंह ने पहनी रील लाइफ मां की शादी की साड़ी

महज भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कामकाजी औरतों को काम और जिम्मेदारियों के मामले में लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है. इसी मुद्दे को लेकर जीटीवी पर हरियाणा की पृष्ठभूमि पर एक सीरियल ‘‘मीत: बदलेगी दुनिया की रीत’’ प्रसारित हो रहा है. इस सीरियल के माध्यम से दर्शकों में जागरुकता पैदा की जा रही है कि कार्यक्षेत्र हो या घर, कहीं भी लैंगिक भेदभाव नही होने चाहिए. काम व जिम्मेदारी को लेकर लैगिंक भेदभाव झेल रही औरतों का प्रतिनिधित्व इस सीरियल में मीत (आशी सिंह) कर रही है.

मीत और मीत की शादी…

मीत के किरदार में आशी सिंह काफी शोहरत बटोर रही हैं और अब इस सीरियल में नया दिलचस्प मोड़ आने जा रहा है. मीत की बहन मानुषी घर से भाग चुकी है, इसलिए अब मीत (आशी सिंह) की शादी मीत अहलावत (शगुन पांडे) से बड़ी अजीब परिस्थितियों में होने जा रही है.

 

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आशी ने पहनी वैष्णवी मैकडोनाल्ड की शादी की साड़ी…

इस दृश्य के फिल्मांकन के दौरान आशी दुल्हन की तरह सजी नजर आईं, जिसमें उन्होंने लाल और हरे रंग की खूबसूरत साड़ी पहनी थी. हालांकि खास बात यह है कि यह साड़ी असल में उनकी ऑनस्क्रीन मां वैष्णवी मैकडोनाल्ड की है, जिसे उन्होंने भी पर्दे पर अपनी शादी के लिए पहनी थी. है ना कमाल?

बेहद खास था ये साड़ी पहनना- आशी

इस साड़ी में आशी वाकई बहुत खूबसूरत नजर आईं, हालांकि शुरुआत में आशी को इस बात की फिक्र थी कि वह छोटे बालों के साथ वेडिंग दृश्य कैसे कर पाएंगी, लेकिन अब लगता है कि उन्हें यह लुक बहुत पसंद आया. आशी बताती हैं- ‘‘सीरियल ‘मीत: बदलेगी दुनिया की रीत’ में मैने मीत को शादी लुक के लिए अपनी ऑन स्क्रीन मां वैष्णवी मैकडोनाल्ड की साड़ी पहनी है, जिसे उन्होंने अपनी उन्होने भी रील लाइफ वेडिंग के लिए पहनी थी. मुझे यह बहुत पसंद आई. यह हम दोनों के लिए ही बेहद खास पल था. मैंने सोचा कि यह साड़ी इस अनोखी शादी में चार चांद लगा देगी. यह बहुत ही साधारण और खूबसूरत साड़ी है, जिसे मैं अपनी निजी जिंदगी में भी पहनना पसंद करूंगी. यूं भी मेरा मीत का किरदार बड़ा सीधा सादा है, तो यह कहानी के साथ भी बखूबी मेल खाती है.

Ashi Singh

पसंद नहीं भारी ज्वैलरी और कपड़े- आशी

असल में मुझे भारी भरकम ज्वेलरी और आउटफिट्स पहनकर बड़ा असहज लगता है, लेकिन यह परफेक्ट था. मुझे इस बात की फिक्र थी कि ब्राइडल अवतार में मीत के छोटे बाल कैसे दिखेंगे, लेकिन मुझे खुशी है कि यह बहुत बढ़िया नजर आए और मैं इसे बखूबी निभा सकी. मीत बाकी की दुल्हनों की तरह ही सुंदर नजर आई. अब वह शादी करके अपनी जिंदगी के एक नए चरण में कदम रख रही है.

 

 

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हरियाणवी बोलना आसान नहीं था- वैष्णवी

‘‘ सीरियल ‘‘मीत: बदलेगी दुनिया की रीत’’ में मीत की मां का किरदार निभा रही अभिनेत्री वैष्णवी मैकडोनाल्ड कहती हैं- ‘‘हरियाणा की लड़की और फिर एक बेटी की मां का किरदार निभाना मेरी लिए चुनौती रही. हरियाणा की बोली बोलना मेरे लिए आसान नहीं था.

बेटी जैसी है आशी- वैष्णवी

इस सीरियल में मेरी बेटी का किरदार निभा रही आशी सिंह के साथ मैं इससे पहले सीरियल ‘यह उन दिनों की बात है’ कर चुकी हॅूं. वह बहुत अच्छी लड़की है. मैं तो उसे अपनी बेटी की ही तरह देखती हॅूं. सीरियल में अमूमन ऐसा कम होता है कि एक ही साड़ी दो अभिनेत्रियां पहने, मगर इसमें कोई हर्ज भी नही है. वैसे हमने कई बार देखा है कि बेटी शादी में वही साड़ी या लहंगा पहनती है, जो कि उसकी मां ने अपनी शादी में पहना था.’’

एडिट बाय- निशा राय

विषबेल- भाग 2: आखिर शर्मिला हर छोटी समस्या को क्यों विकराल बना देती थी

वापस लौट कर शर्मिला ने अपनी मां को फोन मिलाया और मनाली यात्रा के संस्मरण सुनाने लगी. हैरानपरेशान सा समीर दौड़भाग में जुटी अपनी मां को देखता, तो कभी पसीनेपसीने हो रही नंदिनी मौसी को. लेकिन पलंग पर आराम फरमाती शर्मिला को किसी से सरोकार न था.

दोपहर के 2 बज चुके थे. नंदिनी मौसी चौके में लंच तैयार कर रही थीं. शर्मिला ने उठ कर खाना खाया. फिर समीर को टैक्सी बुक करने के लिए कहा.

‘कहां जाना है?’

‘मां के पास.’

‘कल चली जाना, फिलहाल सफर की थकान तो उतार लो.’

‘2-3 घंटे में आ जाऊंगी समीर, मां की बहुत याद आ रही है.’

उस ने बच्चों की तरह मचल कर कहा, तो समीर ने टैक्सी बुक कर दी.

2 घंटे को कह कर शर्मिला जब रात तक वापस नहीं लौटी तो समीर ने फोन घुमा दिया, ‘कल शाम मां और पापा मेरठ जा रहे हैं. उन के जाने से पहले लौटने की कोशिश करना.’

‘यों अचानक…?’

‘पापा के बौस ने फोन किया था, इसीलिए अचानक प्रोग्राम बन गया.’

‘तो पापा अकेले चले जाएं.’

‘काफी दिन हो गए मां को भी घर छोड़े हुए, जाना जरूरी है, पता नहीं वहां भी घर किस हाल में होगा.’

‘कुछ दिन उन के साथ रह लेती, तो अच्छा लगता,’ उस ने अतिरिक्त मीठे स्वर में समीर से कहा.

तभी, पीछे से उस की मां और बहनों का स्वर सुनाई दिया, ‘इतनी खुशामद करेगी तो सिर पर चढ़ कर बैठ जाएंगे तेरे घर वाले. जाती हैं तो जाएं.’

‘खुशामद करूंगी, तभी तो समीर पल्लू से बंधा रहेगा.’

समीर ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया. 2 दिनों बाद शर्मिला वापस लौटी तो समीर का मूड उखड़ा हुआ था. शर्मिला ने बेपरवाही से अपना सामान व्यवस्थित किया, मैले कपड़े बाहर आंगन में नल के पास रखे और रिमोट उठा कर टीवी का स्विच औन कर के अपना मनपसंद सीरियल देखने लगी. बाहर निकली तो पटरे पर धुलने के बाद निचुड़े हुए कपड़े रखे थे. उस ने पैर से उन्हें नीचे गिरा दिया.

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‘यह क्या किया बहू? सुखाने के लिए पटरे पर कपड़े रखे थे.’

‘मैं सुखाने के लिए ही अपने कपड़े छांट रही थी,’ शर्मिला ने कहा और गंदे तरीके से नंदिनी मौसी की नाराजगी की प्रतीक्षा करने लगी.

‘रहने दो बहू, मैं तुम दोनों के कपड़े सुखा दूंगी,’ मौसी ने हंस कर कहा. तो शर्मिला ने शांत सरोवर में पत्थर फेंका, ‘आप को कोई भी काम ढंग से करना आता भी है?’

‘आज तक हमारे परिवार में नंदिनी मौसी से किसी ने इस तरह से बात नहीं की. और तुम…?’

‘सीधे क्यों नहीं कहते कि मु झे इस नौकरानी की इज्जत करनी होगी.’

‘नंदिनी मौसी नौकरानी नहीं, हमारे परिवार की घनिठ हैं. उन्होंने मु झे और अरविंद को गोद में खिलाया है.’

तब तक शर्मिला थाली खिसका चुकी थी, ‘मैं ने आज तक अपनी मां की दो कौड़ी की इज्जत नहीं की, इन की इज्जत क्या खाक करूंगी. शुक्र मनाओ, इन के हाथ का बना इतना बेस्वाद खाना खा रही हूं. एक बार मेरे हाथ का खाना खा कर तो देखना, उंगलियां चाटते रह जाओगे.’

‘30 वर्ष से अधिक हो गए रसोई बनाते हुए, हर चीज पूरी तरह कहां सीख पाई हूं. बहू, तुम जैसा कहोगी, वैसा बना दूंगी,’ नंदिनी मौसी की आंखों में आंसू आ गए.

‘अरे नहीं मौसी, घर में और भी बहुत काम हैं, शर्मिला को चौका संभालने दीजिए न.’

शर्मिला ने समीर की तरफ गौर से देखा, कहीं कटाक्ष तो नहीं कर रहा, किंतु वह निश्छल था और उस की हामी की प्रतीक्षा कर रहा था. अब शर्मिला घबरा गई. नंदिनी मौसी जैसी अनुभवी महिला के सामने उस का ज्ञान तो पासंगभर भी नहीं था. असल में शर्मिला तो वाकप्रहार के लिए हर समय आतुर रहती थी. शांतिपूर्ण वार्त्ता के लिए उस के पास तर्क ही कहां थे.

अगले दिन से रसोईघर से निकलने के लिए वह नुकसान पर नुकसान करने लगी. कभी कांच का गिलास तोड़ देती, कभी नई प्लेट पटक देती. गैस चूल्हे पर कभी दूध उफन जाता, कभी दालचावल बिखर जाते. मौसी ही समेटतीं और वह बिना पूछे गर्व से सफाई देती, ‘मैं उठाऊंगी तो धूलमिट्टी से मेरा रंग मैला हो जाएगा.’

कभी वह सब्जी से भरा बरतन सावधानी से लुढ़का देती, चूल्हे पर तवा और परात में पलेथन रह जाता वगैरहवगैरह.

एक दिन समीर को दफ्तर के काम से 2 दिनों के लिए हैदराबाद जाना था. ऊपर लौफ्ट में से बैग निकाल कर उस ने सामान सैट किया. फिर ताला बंद करने के लिए जैसे ही चाबी घुमाई, बैग का ताला हाथ में आ गया. उस ने कलाई में बंधी घड़ी पर नजर डाली. कुल एक घंटे का समय शेष रह गया था फ्लाइट छूटने में.

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‘सस्ता रोए बारबार, महंगा रोए एक बार,’ शर्मिला ने हंस कर ठिठोली की.

‘ब्रैंडेड कंपनी के बैग को तुम सस्ता कह रही हो? ऐसा क्या ले आईं तुम दहेज में?’

शर्मिला ने इसे जबरदस्ती का मौका बना लिया और रोने लगी, ‘तुम मु झे दहेज न लाने का ताना मार रहे हो.’

उस का रोना निराधार था. किंतु चूजे को सींक काफी, समीर स्तब्ध रह गया. उसे सम झ में नहीं आ रहा था बैग का ताला ठीक करे या पत्नी को संभाले? इधर घड़ी की सुई अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती जा रही थी. उधर, एअरलाइंस से फोन पर फोन आ रहे थे.

उस ने उस फ्लाइट का टिकट कैंसिल कराया और अगली फ्लाइट का बुक कर लिया. उस का जाना जरूरी था, बोर्ड मीटिंग जो थी.

नया बैग खरीदने के लिए उस ने कार की चाबी निकाली ही थी कि शर्मिला अचानक उदारता दिखलाते हुए बोली, ‘मार्केट जाने और आने में काफी समय निकल जाएगा, तुम मेरा बैग ले जाओ.’’

सु झाव अच्छा था. समीर मान गया. जैसे ही उस ने सामान बैग में रखा, शर्मिला ने चोट की, ‘संभाल कर ले जाना, कहीं खोंचा न लगे. पूरे 5,000 रुपए का है.’

शर्मिला को पूरा विश्वास था, समीर सामान निकाल कर बैग फर्श पर पटक देगा. किंतु वह अपमान का घूंट पी कर भी मुसकराता रहा, ‘मैं ने हमेशा महंगा सामान ही इस्तेमाल किया है शर्मिला. चिंता मत करो, तुम्हारा बैग सहीसलामत ही वापस लाऊंगा.’

2 दिनों बाद समीर वापस लौटा, तो उपहारस्वरूप शर्मिला के लिए हैदराबाद से मोतियों का पूरा सैट ले आया. शर्मिला सैट देख कर उछल पड़ी, ‘हैदराबाद में रंगीन मोतियों की माला भी मिलती है समीर?’ उस ने दूसरा डब्बा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया तो समीर बोला, ‘यह मां के लिए है.’

उस ने जैसे ही डब्बा खोल कर शर्मिला को दिखाया, उस का चेहरा मुर झा गया. सास के लिए मोतियों की माला उसे बरदाश्त नहीं हुई.

मां जल्दी आना- भाग 1: विनीता अपनी मां को क्यों साथ रखना चाहती थी?

औफिससे आ कर जैसे ही मैं ने घर में प्रवेश किया एक सोंधी सी महक मेरे पूरे तनमन में फैल गई. बैग को सोफे पर पटक हाथमुंह धो कर मैं सीधे किचन में जा घुसी. कड़ाही में सिक रहे समोसों को देख कर पीछे से मां के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘अरे वाह मां, आज तो आप ने समोसे बना कर मोगैंबो को खुश कर दिया. बोलिए आप को क्या चाहिए.’’

‘‘तू खुद मां बन गई है पर अभी भी बचपना नहीं गया तेरा, ले जल्दी से खा कर बता कैसे बने हैं.’’ प्लेट में 2 समोसे और धनिया की चटनी डाल कर देते हुए मां ने हलकी सी चपत मेरे गाल पर लगा दी.

‘‘मां बन गई तो क्या मैं आप की बच्ची नहीं रही,’’ कहते हुए मैं समोसे खाने लगी. सर्दियों में मां के हाथ के समोसों के हम सब दीवाने थे. मुझे याद है मां किलोकिलो मैदा के समोसे बनातीं पर हम भाईबहन खाने में प्रतियोगिता सी करते और सारे समोसों को चट कर जाते थे. मां को कुकिंग का बहुत शौक था इसीलिए शायद हम भाईबहन बहुत चटोरे हो गए थे. मैं बचपन की सुनहरी यादों में कुछ और खोती उस से पहले मेरे पतिदेव अमन ने घर में प्रवेश किया और आते ही फरमान जारी किया.

‘‘विनू, जल्दी से कड़क चाय पिला दो सिर में तेज दर्द हो रहा है.’’

‘‘बेटा तुम हाथमुंह धो कर आ जाओ मैं ने तुम्हारी पसंद के पनीर के समोसे बनाए हैं और कड़क चाय बस तैयार होने ही वाली है.’’

‘‘अरे मां, आप क्यों परेशान होती हो इतनी बार आप से कहा है कि आप बस आराम किया करिए पर नहीं आप मान नहीं सकतीं.’’

‘‘बेटा हाथपैर चलते रहेंगे तो बुढ़ापा आराम से कट जाएगा पर अगर जाम हो गए तो मेरे साथसाथ तुम लोग भी परेशान हो जाओगे. इसलिए हलकाफुलका काम तो करने ही देते रहो… जिंदगीभर तो काम में कोल्हू के बैल की तरह जुते रहे और अब तुम आराम करने को कह रहे हो तो बताओ कैसे हो पाएगा…’’ मां ने मुसकराते हुए कहा तो अमन निशब्द से हो गए.

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हमें खिला कर मां अपनी प्लेट लगा कर ले आईं और टीवी देखते हुए स्वयं भी खाने लगीं. मां की शुरू से आदत है कि जब तक घर के एकएक सदस्य को खिला नहीं लेंगी तब तक स्वयं नहीं खाएंगी.

मैं चेंज कर के कुछ देर आराम करने के उद्देश्य से बिस्तर पर लेट गई. लेटते ही मन आज से 2 वर्ष पूर्व जा पहुंचा जब एक दिन सुबहसुबह मेरे भाई अनंत का मेरे पास फोन आया. मां और बाबूजी उस समय अनंत के ही पास थे. मेरे फोन उठाते ही वह बोला, ‘‘मैं तो परेशान हो गया हूं इन दोनों से, जब भी घर में आओ तो लगता है मानो 2 जासूस बैठे हैं घर में, हमारा इन के साथ एडजस्ट करना बहुत मुश्किल हो रहा है. दीदी आप ही कोई तरीका बताओ जिस से ये दोनों यहां से चले जाएं,’’ अनंत की बातें सुन कर मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया था.

उस से उम्र में 10 वर्ष बड़ी होने के बावजूद समझ नहीं पाई कि उस के प्रश्न का क्या जवाब दूं. जिस बेटे के जन्म के लिए मांबाबूजी ने न जाने कितनी मन्नतें मांगी, कितने मंदिर मस्जिद के दरवाजे खटखटाए और जिस के जन्म होने पर लगा मानो उन के जीवन के समस्त दुखों का हरण हो गया हो वही बेटा आज उन्हें जासूस कह रहा था. अपनी संतान की प्रगति से खुश होने वाले मातापिता अपने ही बेटे के घर में जासूस कैसे हो सकते हैं. भारतीय संस्कृति में पुत्र को मोक्ष के द्वार तक पहुंचाने वाला कहा गया है.

हमारे धर्मरक्षकों ने इस पर और चाशनी चढ़ाई कि मरणोपरांत पुत्र के द्वारा दी गई मुखाग्नि से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है अन्यथा तो मानव बस नरक में ही जाता है बस इसी मानसिकता के शिकार धर्मभीरू मांबाबूजी इस कमर तोड़ती महंगाई में भी एक के बाद एक तीन बेटियों की कतार लगाते गए. इस बीच मां के गर्भ में पल रहीं कुछ बेटियों को तो जन्म ही नहीं लेने दिया गया. खैर इंतजार का फल मीठा होता है यह कहावत हमारे घर में भी चरितार्थ हुई और अंत में जब बेटा हुआ तो लगा मानो साक्षात स्वर्ग के द्वार खुल गए हों.

मांबाबूजी को उन का वह अनमोल हीरा मिल गया था जो उन की वृद्धावस्था को तारने वाला था. अपने हीरेमोती जैसे भाई को पा कर हम बहनों की खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि हर रक्षाबंधन और भाईदूज पर हमें ताऊजी के बेटों की राह देखनी पड़ती थी. अब वह औपचारिकता समाप्त हो गई थी. समय अपनी गति से बढ़ रहा था. हम तीनों बहनों की शादियां हो गईं. दोनों बड़ी बहनें अपने परिवार के साथ विदेश जा बसीं थी सो सालदोसाल में एक बार ही आ पातीं थी. न केवल भाई अनंत बल्कि हम बहनों को पढ़ाने लिखाने में भी मांबाबूजी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अब तक अनंत भी इंजीनियरिंग कर के दिल्ली में एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी करने लगा था. मैं भी यहां मुंबई में एक बैंक में कार्यरत थी.

भारतीय समाज में लड़केकी नौकरी लगते ही उस की बोली लगनी प्रारंभ हो जाती है सो अनंत के लिए भी रिश्तों की लाइन लगी थी. जब भी किसी लड़की का फोटो आता तो मांबाबूजी की खुशी देखते ही बनती थी. अपने बुढ़ापे का सुखमय होने का सपना देख रहे मांबाबूजी को उस समय तगड़ा झटका लगा जब एक बार अनंत छुट्टियों में घर आया और मांबाबूजी की लड़की देखने की तैयारी देख कर घोषणा की.

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‘‘मां मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और उसी से विवाह करूंगा. आप लोग

नाहक परेशान न हों.’’ अनंत एक वाक्य में अपनी बात कह कर घर से बाहर निकल गया.

‘‘मांबाबूजी को काटो तो खून नहीं. मां कभी उस दरवाजे को देखतीं जहां से अभी अनंत निकल कर गया था और कभी बाबूजी को. अपने कानों सुनी बात पर वे भरोसा ही नहीं कर पा रहीं थीं. अचानक किए गए अनंत के इस विस्फोट से वे बुरी तरह घबरा गईं और फूटफूट कर रोने लगीं और बोली,’’ इसी दिन के लिए पैदा किया था इसे. इसे पता भी है कि कितने बलिदानों के बाद हम ने इसे पाया है. क्याक्या सपने संजोए थे बहू को ले कर, इस ने एक बार भी नहीं सोचा हमारे बारे में. बाबूजी शायद मामले की गंभीरता को भांप नहीं पाए थे या अपने बेटे पर अतिविश्वास को सो वे मां को दिलासा देते हुए बोले, ‘‘मैं समझाऊंगा उसे, बच्चा है, समझ जाएगा. सब ठीक हो जाएगा. यह सब क्षणिक आवेश है. मेरा बेटा है अपने पिता की बात अवश्य मानेगा.’’

मां को भी बाबूजी की बातों पर और उस से भी ज्यादा अपने बेटे पर भरोसा था. सो बोलीं, ‘‘हां तुम सही कह रहे हो मुझे लगता है मजाक कर रहा होगा. ऐसा नहीं कर सकता वह. हमारे अरमानों पर पानी नहीं फेरेगा हमारा बेटा.’’

चूंकि अगले दिन अनंत वापस दिल्ली चला गया था सो बात आईगई हो गई पर अगली बार जब अनंत आया तो बाबूजी ने एक लड़की वाले को भी आने का समय दे दिया. अनंत ने उन के सामने बड़ा ही रूखा और तटस्थ व्यवहार किया और लड़की वालों के जाते ही मांबाबूजी पर बिफर पड़ा.

‘‘ये क्या तमाशा लगा रखा है आप लोगों ने, जब मैं ने आप को बता दिया कि मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और शादी भी उसी से करूंगा फिर इन लोगों को क्यों बुलाया. वह मेरे साथ मेरे ही औफिस में काम करती है. और यह रही उस की फोटो,’’ कहते हुए अनंत ने एक पोस्टकार्ड साइज की फोटो टेबल पर पटक दी.

अपने बेटे की बातों को किंकर्त्तव्यविमूढ़ सी सुन रहीं मां ने लपक कर टेबल से फोटो उठा ली. सामान्य से नैननक्श और सांवले रंग की लड़की को देख कर उन की त्यौरियां चढ़ गईं और बोलीं, ‘‘बेटा ये तो हमारे घर में पैबंद जैसी लगेगी. तुझे इस में क्या दिखा जो लट्टू हो गया.’’

‘‘मां मेरे लिए नैननक्श और रंग नहीं बल्कि गुण और योग्यता मायने रखते हैं और यामिनी बहुत योग्य है. हां एक बात और बता दूं कि यामिनी हमारी जाति की नहीं है,’’ अनंत ने कुछ सहमते हुए कहा.

‘‘अपनी जाति की नहीं है मतलब???’’ बाबूजी गरजते स्वर में बोले.

‘‘मतलब वह जाति से वर्मा हैं’’ अनंत ने दबे से स्वर में कहा.

‘‘वर्मा!!! मतलब!! सुनार!!! यही दिन और देखने को रह गया था. ब्राह्मण परिवार में एक सुनार की बेटी बहू बन कर आएगी… वाहवाह इसी दिन के लिए तो पैदा किया था तुझे. यह सब देखने से पहले मैं मर क्यों न गया. मुझे यह शादी कतई मंजूर नहीं,’’ बाबूजी आवेश और क्रोध से कांपने लगे थे. किसी तरह मां ने उन्हें संभाला.

‘‘तो ठीक है यह नहीं तो कोई नहीं. मैं आप लोगों की खुशी के लिए आजीवन कुंआरा रहूंगा.’’ अनंत अपना फैसला सुना कर घर से बाहर चला गया था. उस दिन न घर में खाना बना और न ही किसी ने कुछ खाया. प्रतिपल हंसीखुशी से गुंजायमान रहने वाले हमारे घर में ऐसी मनहूसियत छाई कि सब के जीवन से उल्लास और खुशी ने मानो अपना मुंह ही फेर लिया हो. विवाहित होने के बावजूद हम बहनों को भी इस घटना ने कुछ कम प्रभावित नहीं किया. मांबाबूजी का दुख हम से देखा नहीं जाता था और भाई अपने पर अटल था पर शायद समय सब से बड़ा मरहम होता है. कुछ ही माह में पुत्रमोह में डूबे मांबाबूजी को समझ आ गया था कि अब उन के पास बेटे की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं है. जिस घर की बेटियों को उन की मर्जी पूछे बगैर ससुराल के लिए विदा कर दिया गया था उस घर में बेटे की इच्छा का मान रखते हुए अंतर्जातीय विवाह के लिए भी जोरशोर से तैयारियां की गईं.

Manohar Kahaniya: डिंपल का मायावी प्रेमजाल- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

डिंपल उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि अब वह कहां जाएगी. मेहताजी के चक्कर में उस की जिंदगी बरबाद हो रही है. जबकि मेहताजी से उस ने खुद को कुंवारी बता कर मौजमजे के लिए संबंध बनाने की बात कही थी. लेकिन अब पता चला कि वह शादीशुदा है.

मेहताजी, डिंपल और उस के पति के झगड़े का तमाशा देखने के लिए वहां तमाम लोग इकट्ठा हो गए थे. सभी की सहानुभूति डिंपल के कथित पति और डिंपल के प्रति थी. सभी सारा दोष मेहताजी पर मढ़ रहे थे. वहां इकट्ठा लोग भी यही कर रहे थे कि जब डिंपल का पति उसे रखने को तैयार नहीं है तो मेहताजी को उसे अपने साथ ले जाना होगा.

शोरशराबा सुन कर वहीं पास ही रहने वाले एनसीपी के नेता नटवरभाई उर्फ नटुभाई ठाकोर भी अपने शागिर्दों के साथ वहां आ गए थे. पूरी बात सुनने के बाद पहले तो उन्होंने डिंपल के कथित पति से बात की, उस के बाद डिंपल से बात की.

मेहताजी को धमकाया जाने लगा

फिर उन्होंने मेहताजी को एक किनारे बुला कर कहा, ‘‘मेहताजी, अब आप को डिंपल से शादी करनी होगी. अगर शादी नहीं करोगे तो वह तुम्हारे ऊपर रेप का मुकदमा दर्ज करा देगी. उस के बाद तुम्हारा क्या हाल होगा, शायद यह बताने की जरूरत नहीं है. और

अगर उस से छुटकारा पाना चाहते हो तो एक काम करो. उसे इतना पैसा दे दो कि वह अकेली रह कर भी अपनी गुजरबसर कर ले.’’

यह सुन कर मेहताजी के तो होश ही उड़ गए. अगर डिंपल उन पर रेप का मुकदमा कर देगी तो उन की बदनामी तो होगी, जिंदगी भी बरबाद हो जाएगी. डिंपल के पास उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने के सबूत भी थे.

उस ने दोनों के शारीरिक संबंध बनाने के कई वीडियो बना रखे थे. वे वीडियो उस ने मेहताजी को भी भेजे थे. जो वीडियो वह अभी तक मौजमजे के लिए देखते थे, अब वही उन के गले की फांस बन गए थे.

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डिंपल से वह शादी कर नहीं सकते थे. अगर वह उस से शादी करते तो घर वाले उन्हें घर से निकाल तो देते ही, समाज में भी उन की काफी बदनामी होती. इसलिए उन्होंने पैसे दे कर डिंपल से छुटकारा पाने के बारे में विचार किया.

मेहताजी का सोचना था कि लाख, 2 लाख दे कर वह डिंपल से छुटकारा पा जाएंगे इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘इस से शादी तो मैं नहीं कर सकता. क्योंकि इस ने झूठ बोल कर मुझ से संबंध बनाया है. ऐसी औरत पर कैसे भरोसा किया जा सकता है. यह जो पैसा लेगी, मैं देने को तैयार हूं.’’

पैसे के लिए ही यह सारी साजिश रची गई थी. इसलिए जैसे ही मेहता ने पैसे की बात की तो एनसीपी नेता नटुभाई ठाकोर ने कहा, ‘‘ठीक है, 50 लाख रुपए दे दो. तुम भी आजाद और डिंपल भी आजाद.’’

‘‘क्या, 50 लाख?’’ 50 लाख सुन कर मेहताजी का मुंह खुला का खुला रह गया.

35 लाख में हुआ समझौता

मेहता को हैरानपरेशान देख कर नटुभाई ने कहा, ‘‘50 लाख तुम्हें ज्यादा लग रहे हैं क्या? किसी की जिंदगी का सवाल है. डिंपल को अब इसी रकम से पूरी जिंदगी बितानी है. पति छोड़ ही चुका है. तुम से जो रकम मिलेगी, उसी से उस का खर्च चलेगा.’’

‘‘फिर भी 50 लाख बहुत होते हैं. बताओ, इतनी बड़ी रकम मैं कहां से लाऊंगा.’’ मेहताजी ने इतना पैसा देने में असमर्थता व्यक्त की.

‘‘तब फिर तुम डिंपल के साथ शादी कर लो या फिर जेल जाने की तैयारी कर लो.’’ नटुभाई ने धमकी दी.

‘‘आप बीच में इतना क्यों उछल रहे

हैं? बात हम तीनों की है. आप बीच में

कहां से आ गए?’’ मेहता ने खीझ कर कहा.

‘‘मैं बीच में अपने आप नहीं आया. मुझे इन दोनों ने यह समझौता कराने के लिए बुलाया है.’’ नटुभाई ने डिंपल और उस के तथाकथित पति की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘अगर तुम्हें विश्वास न हो तो तुम खुद ही इन से पूछ लो.’’

मेहता ने दोनों की ओर देखा तो दोनों ने एक साथ कहा, ‘‘यह ठीक कह रहे हैं. हमारी ओर से यही बात करेंगे.’’

मेहताजी समझ गए कि वह बुरी तरह फंस चुके हैं. अब तक उन की समझ में यह भी आ चुका था कि उन्हें एक साजिश के तहत फंसाया गया है. ये लोग बिना पैसा लिए उसे छोड़ेंगे नहीं और रकम भी मोटी ही लेंगे. उस ने नटुभाई से कहा, ‘‘आप बहुत ज्यादा पैसा मांग रहे हैं. इतना पैसा मेरे पास नहीं है.’’

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‘‘यह सब तो तुम्हें किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने के पहले सोचना चाहिए था. मजे लिए हैं तो उस की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.’’ नटुभाई ने कहा.

मेहताजी गिड़गिड़ाते रहे, पर वे पैसे कम करने को तैयार नहीं थे. मेहता के बहुत रोनेगिड़गिड़ाने पर उस ने 15 लाख रुपए कम किए. इस तरह 35 लाख रुपए में समझौता हुआ. मेहता ने डिंपल से छुटकारा पाने के लिए 35 लाख रुपए ला कर दिए.

पैसा दे कर मेहता को लगा कि अब वह डिंपल नाम के झंझट से मुक्ति पा गए हैं. पर 10 दिन बाद ही डिंपल का फिर फोन आ गया, ‘‘यार बहुत गड़बड़ हो गई है. मुझे गर्भ ठहर गया है. यह तुम्हारा ही बच्चा है.’’

‘‘तुम यह कैसे कह सकती हो कि यह मेरा ही बच्चा है. तुम्हारा पति भी तो है. उस का भी तो हो सकता है,‘‘ मेहता ने कहा.

‘‘मेरा पति भले है, पर कई महीने से उस से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’ डिंपल बोली.

‘‘अगर ऐसी बात है तो बच्चा गिरवा दो.’’

‘‘उस में भी तो खर्च लगेगा. खर्च कौन देगा?’’ डिंपल तुनक कर बोली, ‘‘फिर आजकल गर्भपात भी कराना इतना आसान नहीं है.’’

‘‘खर्च तो मैं दे चुका हूं. उसी में से खर्च करो,’’ मेहता ने कहा.

‘‘वह मेरी जिंदगी बिताने का खर्च है. बच्चा गिरवाने या पालने के लिए नहीं है. बच्चा गिरवाने का खर्च तुम्हें ही देना होगा. और हां, सीधेसीधे दे दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा. अगर अंगुली टेढ़ी करनी पड़ी तो बुरे फंस जाओगे.’’ डिंपल ने धमकी दी.

‘‘क्या कर लोगी तुम?’’ मेहता ने भी सख्ती दिखाई. इतना कह कर उस ने फोन काट दिया.

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उस दिन वह शाम को औफिस से निकले तो गेट के बाहर डिंपल खड़ी मिल गई. उस के साथ 4 आदमी भी थे. उन सब को देख कर मेहताजी के हाथपैर फूल गए. सभी ने मेहता को घेर लिया.

डिंपल बोली, ‘‘मेहताजी, पैसा दोगे या यहीं पर अभी शोर मचाऊं?’’

मेहताजी बुरी तरह फंस गए थे. अगर शोरशराबा या किसी तरह का लड़ाईझगड़ा होता तो उन के औफिस के सामने उन की पोल खुल जाती. मजबूरन पैसे देने के लिए उन्हें हामी भरनी पड़ी. इस बार भी मेहताजी को 11 लाख रुपए देने पड़े.

अगले भाग में पढ़ें- ठग मंडली चढ़ गई पुलिस के हत्थे

Crime- हत्या: जर जोरू और जमीन का त्रिकोण

कहते हैं किसी अपराध के पीछे जर, जोरू और जमीन निश्चित रूप से होते हैं. इस प्राचीन सच के एक बार पुनः सत्य होने के प्रमाण मिल गए. जब एक पत्नी ने अपने अधेड़ पति की हत्या कुछ ऐसे ही कारणों से करवाई और अंततः पुलिस के हाथों पकड़े जाने पर आज जेल में हवा खा रही है.

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा के थाना कटघोरा अंतर्गत वन विभाग में कार्यरत एक डिप्टी रेंजर की हत्या के मामले को आखिरकार सुलझा लिया गया. अवैध संबंधों को लेकर की गयी ये हत्या सुपारी देकर कराइ गई थी. मामले के खुलासे के बाद पुलिस ने सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है. सनसनीखेज तथ्य यह की हत्या की ये सुपारी किसी और को नहीं बल्कि देह व्यापार करने वाली एक महिला को दी गई .

इस मामले का खुलासा करते हुए हमारे संवाददाता को एसडीओ पुलिस रामगोपाल करियारे ने बताया – डिप्टी रेंजर कंचराम पाटले कटघोरा वन मंडल में पदस्थ था और ड्यूटी के लिए तो घर से निकला, मगर वापस नहीं लौटा.

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दूसरे दिन उसकी लाश पुराने बैरियर के पास सड़क के किनारे मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डॉक्टर ने मौत की वजह पॉइजनिंग और रक्तश्राव और बताया. पुलिस जांच में धीरे-धीरे जो तथ्य सामने आए वह चौक आने वाले थे.

‘चुड़िहायी” पत्नी की भूमिका

पुलिस जांच में अंततः छत्तीसगढ़ की चूड़ी प्रथा के अंतर्गत पत्नी बनाकर लाई एक महिला को संदिग्ध पाया गया.

आगे देखिए! किस तरह पत्नी की भूमिका निभा रही महिला ने डिप्टी रेंजर की संपत्ति, उसकी नौकरी यानी कुल मिलाकर पति को रास्ते से हटाने क्या क्या धत्त कर्म किया.

पुलिस को पता चला कि कंचराम पाटले को किसी का फोन आया और वह ड्यूटी पर जाने की बात कहकर निकल पड़ा. पुलिस की साइबर टीम ने पाटले को आये मोबाइल कॉल के आधार पर मृतक कंचराम पाटले की चुड़ियाही पत्नी संतोषी पाटले और उसके जीजा नरेंद्र टंडन को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की. खुलासा हुआ कि कंचराम पाटले ने अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद संतोषी पाटले से चूडियाही विवाह कर लिया था. मगर संतोषी का अपने जीजा नरेंद्र टंडन से पूर्व में ही अवैध संबंध था जिसकी जानकारी कंचराम पाटले को हो गयी थी जिसके पश्चात घर में विवाद की स्थिति रहने लगी थी. प्रदीप जी स्वभाव और हाथ से निकलने से चिंतित संतोषी ने अपने जीजा से मिलकर एक षड्यंत्र बुना.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कंचराम पाटले और संतोषी के दो बच्चे हुए, वहीँ उसकी पहली पत्नी से एक पुत्री हुई थी जिसकी उम्र 24 वर्ष है, उसकी मिर्गी की बीमारी को लेकर कंचराम पाटले परेशान रहा करता था. वन विभाग में नौकरी करने वाले कंचराम पाटले के पास काफी संपत्ति थी, जिस पर उसके साढ़ू नरेंद्र टंडन की नजर गड़ गई. उसने संतोषी को लालच दिलाया की अगर कंचराम पाटले को रस्ते से हटा दिया जाये तो संतोषी को पेंसन के साथ नौकरी भी मिल जाएगी.

यह बात संतोषी को जच गई और वह अपने ही पति को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र बुनती चली गई.
पुलिस ने इस वारदात में लिप्त देह व्यापर से जुडी एक महिला पूर्णिमा साहू को सुपारी किलर का नाम दिया है, जिससे नरेंद्र टंडन के मित्र राजेश जांगड़े उर्फ़ राजू ने संपर्क किया. इसके बाद हत्या का षड्यंत्र रचा गया.महीने भर बाद पूरी कहानी तैयार करके कंचराम पाटले को संतोषी ने कटघोरा आकर फोन किया और कहा कि वह उसकी बेटी के मिर्गी के इलाज के लिए एक वैद्य लेकर आयी है. कंचराम पाटले उसके झांसे में आ गया , और उसके बताये गए जगह पर पहुँच गया. यहाँ योजना के मुताबिक कंचराम पाटले को एक कार में बिठाया गया और उसे पानी में सुहागा घोल कर पिला दिया गयाऔर उसके नाक मुंह को दबा दिया गया. बेहोश होते ही उसे सड़क के किनारे फेंक दिया गया. यहाँ उसके ऊपर टंगिये से हमला किया गया. परिणाम स्वरूप कंचराम की मौत हो गयी.

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झाड़-फूंक कर खात्मे का भरोसा!

हत्या की इस वारदात के मास्टर माइंड नरेंद्र टंडन द्वारा दो लाख पच्चास हजार रूपये में सुपारी किलर पूर्णिमा साहू से सौदा कर हत्या की योजना बनाई गई.

इसके लिए उन्होंने कोरबी बलौदा निवासी राजेश जांगड़े उर्फ राजू 42 वर्ष के जरिए सरकंडा निवासी देहव्यापार में लिप्त पूर्णिमा से संपर्क किया उसने कंचराम के संबंध में पूरी जानकारी लेकर उसे झाड़फूक के जरिए मरवाने का विश्वास दिलाया. अपने प्रेमी कमल कुमार धुरी सरकंडा, ऋषि कुमार उर्फ गुड्‌डू सरकंडा और देह व्यापार में सहयोगी रामकुमार श्रीवास कोनी को योजना में शामिल कर लिया. घटना दिवस की शाम महिला अपने तीनों साथी के साथ कार में बिलासपुर से कटघोरा पहुंची. बाइक में नरेंद्र टंडन और राजेश जांगड़े भी वहां पहुंचे थे. और वारदात को अंजाम दिया.

इस मामले में पुलिस ने मृतक की पत्नी संतोषी पाटले, राजेश कुमार उर्फ़ राजू,कमल कुमार धुरी, ऋषि कुमार उर्फ गुड्डू और रामकुमार श्रीवास को गिरफ्तार करके हत्या के आरोप में जेल भेज दिया है.

कैसे सच होगा: “हाथी मेरा साथी”

परिणाम स्वरूप हाथी को जंगल में असुविधा हो रही है. क्योंकि आम आदमी जंगल में मकान बनाकर गांव पर गांव बसाता चला जा रहा है.

इस रिपोर्ट के लेखक स्वयं ऐसी जगह रहते हैं, जहां अक्सर हाथी सड़कों पर घूमते रहते हैं.
इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस तरह मनुष्य और हाथी का द्वंद बढ़ता चला जा रहा है और उसे किस तरह रोका जा सकता हैं क्योंकि पृथ्वी पर सभी यानी मनुष्य और वन्य जीवों का सहअस्तित्व जरूरी है. ऐसे में क्या होना चाहिए की हाथियों की मौत जो लगातार चिंता का सबब बनी हुई है वही मनुष्य की हाथियों के जद में आने से हो रही मौत भी रूकनी चाहिए.

हाथियों के जीवन को निकट से देखने वाले वन्य प्रेमी और अधिकारियों के मतानुसार
हाथियों के लिए डरावने शब्दों का उपयोग किया जाता है जब कभी हाथी गांव अथवा शहर आ जाते हैं तो उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है हाथियों को छेड़ा जाता है और तत्व की आवाज निकाल कर उन्हें परेशान किया जाता है इससे मानव हाथी द्वन्द बढ़ जाता है.भारत सरकार ने इस हेतु एक गाइडलाइन जारी की है. मगर उसे अनदेखा किया जाता है इसी तरह मीडिया में भी हाथी के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाता है जो आपत्तिजनक है.

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गजराज के लिए मीडिया यह करें और यह ना करें

हाथियों के लिए अक्सर अखबार व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपयोग हो रहे डरावने शब्दों के उपयोग बंद कराने के लिए भारत सरकार पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश के सत्रह प्रोजेक्ट एलीफेंट राज्यों के मुख्य वन जीव संरक्षकों को पत्र भेजकर अपने अपने प्रदेश में मीडिया के साथ सहयोग कर उचित कदम उठाने को कहा है. ताकि मीडिया हाथियों के लिए उचित एवं सौम्य शब्दों का उपयोग करे. क्योंकि अनुसंधान में यह बातें बारंबार आई है कि मीडिया द्वारा वन्य प्राणी हाथियों के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिससे आम लोगों में उनके प्रति दुराग्रह और कठोर भाव उत्पन्न हो जाता है. इसे रोकने के लिए वन मंत्रालय ने एक पहल की है और मीडिया से उपेक्षा की जा रही है कि मनुष्य और वन्यजीवों के बीच सम्बन्ध बनाने का काम करें ऐसी खबरें और रिपोर्टिंग नहीं आनी चाहिए जिससे हाथियों को नुकसान है क्योंकि देखा जाता है कि अक्सर बिजली लगाकर की या जहर खिलाकर के हाथियों को मारा जा रहा है.

वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने भारत सरकार को पत्र लिखकर आशंका जताई थी कि जिस प्रकार हाथियों के लिए डरावने शब्दों का उपयोग मीडिया में हो रहा है उस से आने वाली पीढ़ी हाथियों को उसी प्रकार दुश्मन मानने लगेगी. जैसे कि मानव अमूनन सांपों को दुश्मन मान लेता है और देखते ही मारने का प्रयत्न करता है. जबकि 95 प्रतिशत सांप तो जहरीले ही नहीं होते परंतु इसलिए मार दिए जाते हैं कि हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि साँप खतरनाक होते हैं. नितिन सिंघवी के मुताबिक
हाथियों के , साथ भी यही होगा. जबकि हम सबको हाथियों के साथ रहना सीखना पड़ेगा.

प्रेस और जनता की निगाह में हाथी!

हाथियों के व्यवहार के संदर्भ में मीडिया में जो भाषा पढ़ने को मिल रही है वह आपत्तिजनक है आप भी देखिए जैसे उत्पाती, हत्यारा हाथी , हिंसक , पागल, बिगड़ैल हाथी , गुस्सैल,दंतैल और दल से भगाया हुआ, हाथी ने मौत के घाट उतारा, सिरदर्द बना हुआ है हाथी, यहां जान का दुश्मन है हाथी इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है. जबकि हाथी ही एक मात्र ऐसा वन्य प्राणी है जिसके लिए दुनिया में सबसे अच्छे शब्दों जैसे कि मैजेस्टिक, रीगल, महान, जेंटल, डिग्निफाइड जीव, आला दर्जे का जीव जैसे शब्दों का उपयोग होता है. हाथी को दुनिया के सभी धर्मों में पवित्र प्राणी माना गया है. भारतीय शास्त्रों में हाथी को पूजना गणेश जी को पूजना माना जाता है, हाथी को शुभ शकुन वाला एव लक्ष्मी दाता माना गया है.भारत में राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थाई समिति की 13 अक्टूबर, 2010 को हुई बैठक में हाथियों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करा है.

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वन्य प्रेमियों का संदेश

जहां एक तरफ आपकी और मनुष्य का द्वंद जारी है वहीं सरंक्षण अभियान भी छोटे ही पैमाने पर सही लेकिन सतत चलता रहता है इसका एक उदाहरण है वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी. जिन्होंने हाथियों के लिए जहां सरकार को लगातार पत्र लिखे हैं वहीं उच्च न्यायालय तक दस्तक दी है.

हमारे संवाददाता से चर्चा में उन्होंने बताया वर्तमान में पदस्थ एवं पूर्व मे पदस्थ प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) छत्तीसगढ़ को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मिलकर सुझाव दिया था कि नकारात्मक शब्दों को प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए इस हेतु मीडिया को सुझाव दिया जा सकता है, परंतु ऐसा लगा कि मानव हाथी द्वंद के प्रति वे चिंतित नहीं है. अतः मजबूर होकर उन्होंने भारत सरकार को सुझाव प्रेषित किया था. परिणाम स्वरूप वन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों ने देशभर के सभी हाथी विचरण क्षेत्र के राज्यों को इस हेतु निर्देशित किया है.

सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम तिवारी के अनुसार हाथी और मनुष्य का साथ पूरा काल से चला आ रहा है और चलता रहेगा ऐसे में मीडिया के द्वारा उपयोग किए जा रहे शब्दों को सोच समझकर के प्रयोग करने की आवश्यकता है और इस हेतु लगातार प्रयास जारी है.

अपने हिस्से की जिंदगी- भाग 2: क्यों कनु मोबाइल फोन से चिढ़ती थी?

Writer- Er. Asha Sharma

घर में पैसा आने से जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. कनु की दादी से अब घर का कामकाज नहीं हो पाता था, इसलिए उन की इच्छा थी कि घर में जल्दी से बहू आ जाए जो घर के साथसाथ जवान होती कनु का भी खयाल रख सके. मगर सोनू चाहता था कि 2-4 साल टैक्सी चला कर कुछ बचत कर फिर खुद की टैक्सी खरीद कर अपने पैरों पर खड़ा हो तब शादी की बात सोचे. इसलिए वह देर रात तक टैक्सी चलाता था.

इन सालों में मोबाइल आम आदमी के शौक से होता हुआ उस की जरूरत बन चुका था, साथ ही उस में कई तरह के आकर्षक फीचर भी जुड़ गए थे. सोनू को भी मोबाइल का शौक शायद अपने पापा से विरासत में मिला था. वह जब रात में घर लौटता था तो कानों में इयर फोन लगा कर तेज आवाज में गाने सुनता था. रात में ट्रैफिक कम होने के कारण टैक्सी की स्पीड भी ज्यादा ही होती थी.

एक दिन मोबाइल में बजने वाले गाने का टै्रक चेंज करते समय सोनू मोड़ पर आने वाले ट्रक को देख नहीं पाया और टैक्सी ट्रक से टकरा गई. ट्रक ड्राइवर तो घबराहट में ट्रक छोड़ कर भाग गया और सोनू वहीं जख्मी हालत में तड़पता पड़ा रहा. लगभग 1 घंटे बाद पुलिस गश्ती दल की मोबाइल वैन ने गश्त के दौरान उसे घायल अवस्था में देखा तो हौस्पिटल ले गई. वक्त पर हौस्पिटल पहुंचने से उस की जान तो बच गई, मगर सिर में चोट लगने से उस के दिमाग का एक हिस्सा डैमेज हो गया और वह लकवे का शिकार हो कर हमेशा के लिए बिस्तर पर आ गया. डाक्टर्स को उस के बचने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए उन्होंने सोनू को कुछ जरूरी दवाएं घर पर ही देने की सलाह दे कर हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.

कनु पर एक बार फिर से मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब तक सोनू हौस्पिटल में रहा तब तक तो उस के पापा ने इलाज के लिए पैसा दिया, मगर हौस्पिटल से घर आने के बाद फिर उन्होंने बच्चों की कोई सुध नहीं ली. घर खर्च के साथसाथ सोनू की दवाइयों के खर्च की व्यवस्था भी अब कनु को ही करनी थी.

कहते हैं कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. एक दिन बूढ़ी दादी बाथरूम में फिसल गईं और रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से वे भी चलनेफिरने से लाचार हो गईं.

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घरबाहर की सारी जिम्मेदारी अब कनु की थी. वह अब तक ग्रैजुएशन कर चुकी थी. उस ने एक कौल सैंटर में पार्टटाइम जौब कर ली. सुबह 11 से शाम 5 बजे तक वह कौल सैंटर में रहती थी. इस दौरान सोनू और दादी की देखभाल करने के लिए उस ने एक नर्स की व्यवस्था कर ली थी. घर लौटने के बाद देर रात तक घर से ही औनलाइन जौब किया करती थी. घरबाहर संभालती, कभी दादी तो कभी सोनू को दवाएं देती, उन की दैनिक क्रियाएं निबटाती कनु अकेले में फूटफूट कर रोती थी. मगर अंदर से बेहद कमजोर कनु बाहर से एकदम आयरन लेडी थी. मजबूत, बहादुर और स्वाभिमानी.

यहीं कौलसैंटर में ही उसे निमेश का साथ मिला था. अपनेआप में सिमटी कनु निमेश को एक पहेली सी लगती थी. कनु ने अपने चारों तरफ कछुए सा कठोर आवरण बना रखा था और निमेश ने जैसे उसे बेधने की ठान रखी थी. पता नहीं कैसे और कहां से वह कनु के बारे में सारी जानकारी इकट्ठा कर लाया था. कनु अभी नए मोबाइल हैंडसैट को हाथ में ही लिए बैठी थी

कि उस का पुराना फोन बज उठा. देखा तो निमेश का ही फोन था. कनु ने अपने आंसू पोंछे फोन रिसीव किया.

‘‘कैसा है बर्थडे गिफ्ट?’’ निमेश ने फोन उठाते ही पूछा.

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‘‘गिफ्ट तो अच्छा ही है, मगर मेरे किसी काम का नहीं… अगर किसी और लड़की पर ट्राई किया होता तो शायद तुम्हारे पैसे वसूल हो जाते…’’ कनु ने अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते हुए मजाक किया.

‘‘कोई बात नहीं… अभी शायद तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, कल बात करते हैं,’’ कह कर निमेश ने फोन काट दिया.

कांग्रेस: कन्हैया और राहुल

जैसा कि लंबे समय से प्रतिक्षा थी कांग्रेस में कोई कन्हैया कुमार जैसा ऊर्जा वान युवक अकर  अखिल भारतीय कांग्रेस को ऊर्जा से भर दे. अखिल यह हो ही गया. आज कांग्रेस को कन्हैया कुमार जैसे समझ वाले युवाओं की आवश्यकता है जिससे अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का भविष्य उज्जवल होने की संभावना है.

क्योंकि जिस तरीके से देश में भारतीय जनता पार्टी और उसके प्रमुख नेताओं ने चक्रव्यूह बुना है उसे कोई कन्हैया कुमार जैसा नेता भी तोड़ सकता है. कन्हैया कुमार का कांग्रेस में आना जहां पार्टी के लिए शुभ है वही देश के लिए भी मंगलकारी कहा जा रहा है क्योंकि बहुत ही कम समय में कन्हैया कुमार ने अपनी राजनीतिक सोच और वक्तव्य से देशभर में बहुत लोगों को अपना मुरीद बना लिया है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जहां राहुल गांधी ने एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है कन्हैया कुमार को कांग्रेस पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर के कांग्रेस में एक नई ऊर्जा का संचार किया जा सकता है. कांग्रेस का यह मास्टर स्ट्रोक, पहल  इसलिए आज चर्चा का विषय बन गई है क्योंकि भाजपा के सामने कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है.इसका एक ही कारण है कि कांग्रेस में प्रभावशाली और लोकप्रिय नेताओं की कमी हो गई है. एक तरफ जहां भाजपा लगातार कांग्रेस को कमजोर करने में लगी है और उसके नेताओं को अपनी पार्टी में जोड़ने का प्रयास कर रही है जोड़ती चली जा रही है उससे कांग्रेस की हालत देखने लायक हो गई है.

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कांग्रेस और कन्हैया कुमार

कन्हैया कुमार 2015 में जेएनयू के प्रेसिडेंट बने थे और उसके बाद धीरे धीरे उनका व्यक्तित्व निखर कर सामने आया. आज उनकी उम्र सिर्फ 37 वर्ष है इतनी कम उम्र में इतनी राजनीतिक ऊंचाई नाप लेना अपने आप में महत्वपूर्ण है. जहां वे एक देशव्यापी नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं वहीं उन पर कथित रूप से देश के खिलाफ नारे लगाने का भी आरोप लगा और जेल यात्रा भी करके आ गए हैं, चुनाव लड़ने  का भी अनुभव हो चुका है.

कम्यूनिस्ट पार्टी में रहकर के उन्होंने एक तरह से अपने आप को तौल लिया है कि आखिर उनकी उड़ान कितनी हो सकती है.

दरअसल, कम्युनिस्ट पार्टी के अपने नियम कानून कायदे होते हैं और वहां व्यक्ति विशेष की नहीं बल्कि विचारधारा की चलती है. ऐसे में कन्हैया कुमार के पास एक ही विकल्प था कि वह कम्युनिस्ट दायरे से बाहर आकर के किसी राष्ट्रीय पार्टी का दामन थाम लें ऐसे में कांग्रेस और राहुल का आगे आकर के  कुमार को हाथों हाथ लेना जहां कन्हैया कुमार को एक नई धार तेवर दे गया है उन्हें देश में काम करने का मौका भी मिलेगा.

अब सिर्फ एक ही सवाल है कि कांग्रेस पार्टी अपनी संकीर्ण धाराओं से निकल कर के कन्हैया कुमार को कुछ ऐसा दायित्व दे जिससे पार्टी को भी लाभ हो और देश को भी. आने वाले समय में बिहार में भी कन्हैया कुमार की उपस्थिति का लाभ कांग्रेस पार्टी को मिलने की कोई संभावना है. यही कारण है कि कांग्रेस में आते ही पटना में कांग्रेस मुख्यालय में कन्हैया कुमार और राहुल गांधी के बड़े-बड़े पोस्टर दिखाई देने लगे.

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राहुल गांधी और कन्हैया कुमार

लंबे समय से यह कयास लगाया जा रहा था कि कांग्रेस पार्टी में कन्हैया कुमार और जिग्नेश पटेल युवा आ रहे हैं. इस खबर से जहां कांग्रेस पार्टी में एक नई ऊर्जा का संचार दिखाई दे रहा था वहीं भाजपा में भी इसको लेकर के चिंता की लकीरें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं. क्योंकि कन्हैया और जिग्नेश जैसे युवा किसी भी पार्टी को एक नई दिशा देने में सक्षम है. सिर्फ आवश्यकता है इनका उपयोग करने की समझ. यह माना जा रहा है कि अगर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कन्हैया कुमार जैसे नेताओं को आगे कर के देशभर में आम जनमानस से मिलने निकल पड़े और छोटी-छोटी सभाएं करके लोगों से सीधा संवाद करें भाजपा और नरेंद्र दामोदरदास मोदी की महत्वपूर्ण गलतियों पर चर्चा करें तो देखते-देखते माहौल बदल सकता है.

दरअसल, माना यह जा रहा है कि भाजपा के पास जो संगठननिक ताकत है जो अनुशासन है वह कांग्रेस में दिखाई नहीं देता इसे ला करके कांग्रेस पार्टी देश को एक नई दिशा दे सकती है.

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