लेखिका- वंदना सोलंकी

रज्जो गांव की सीधीसादी,अल्हड़ पर बेहद खूबसूरत लड़की थी. उम्र यही कोई 18 या 19 साल रही होगी. 2 साल पहले उस के मांबाप की एक हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद भैयाभाभी ने उस की शादी रमेश से करा दी और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया. तब तक वह 12वीं जमात तक ही पढ़ पाई थी.

रमेश तकरीबन 25 साल का नौजवान था जो फौज में तैनात था. इस समय उस की पोस्टिंग पुणे में थी. शादी के समय रमेश को 15 दिन की छुट्टी मिली थी. तब से वह अब घर आया था और इस बार अपनी नई ब्याहता पत्नी रज्जो को साथ ले जा रहा था.

पति के साथ रेल के एयरकंडीशनर डब्बे में बैठी रज्जो बहुत रोमांचित हो रही थी. वह पहली बार ऐसे ठंडे डब्बे में सफर कर रही थी, वह भी अपने नएनवेले पति के साथ.

खिड़की के पास बैठी रज्जो भविष्य के सपने बुनने में इतनी तल्लीन थी कि उस का पति रमेश कब उस की बगल में आ कर बैठ गया, इस बात का उसे भान ही नहीं रहा.

जब रमेश ने रज्जो को कुहनी मार कर छेड़ा तब वह वर्तमान के धरातल पर आई. उस ने प्यार से पति को मुसकरा कर देखा और उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

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रमेश की बर्थ रज्जो की बर्थ के ऊपर की थी. सामने की सीट पर एक नौजवान बैठा था, जो अजीब सी नजरों से रज्जो को घूरे जा रहा था. उस की गहरी नीली आंखें मानो रज्जो के शरीर के अंदर तक का मुआयना कर रही थीं.

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