बहुत दिनों से नीमा से बात नहीं हो पा रही थी. जब भी फोन मिलाने की सोचती कोई न कोई काम आ जाता. नीमा मेरी छोटी बहन है और मेरी बहुत प्रिय है.
‘‘मौसी की चिंता न करो मां. वे अच्छीभली होंगी तभी उन का फोन नहीं आया. कोई दुखतकलीफ होती तो रोनाधोना कर ही लेतीं.’’
मानव ने हंस कर बात उड़ा दी तो मुझे जरा रुक कर उस का चेहरा देखना पड़ा. आजकल के बच्चे बड़े समझदार और जागरूक हो गए हैं, यह मैं समझती हूं और यह सत्य मुझे खुशी भी देता है. हमारा बचपन इतना चुस्त कहां था, जो किसी रिश्तेदार को 1-2 मुलाकातों में ही जांचपरख जाते. हम तो आसानी से बुद्धू बन जाते थे और फिर संयुक्त परिवारों में बच्चों का संपर्क ज्यादातर बच्चों के साथ ही रहता था. बड़े सदस्य आपस में क्या मनमुटाव या क्या मेलमिलाप कर के कैसेकैसे गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं, हमें पता ही नहीं होता था. आजकल 4 सदस्यों के परिवार में किस के माथे पर कितने बल आए और किस ने किसे कितनी बार आंखें तरेर कर देखा बच्चों को सब समझ में आता है.
‘‘मैं ने कल मौसी को मौल में देखा था. शायद बैंक में जल्दी छुट्टी हो गई होगी. खूब सारी शौपिंग कर के लदीफंदी घूम रही थीं. उन की 2 सहयोगी भी साथ थीं.’’
‘‘तुम से बात हुई क्या?’’
‘‘नहीं. मैं तीसरे माले पर था और मौसी दूसरे माले पर.’’
‘‘कोई और भी तो हो सकती है? तुम ने ऊपर से नीचे कैसे देख लिया?’’
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