विगत दिनों क्वाड शिखर सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे  प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने कहा कि क्वॉड ‘वैश्विक विकास के लिए एक शक्ति’ के रूप में अहम भूमिका निभा सकता है. उन्होंने भरोसा जताया कि चार लोकतांत्रिक देशों का यह संगठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने का काम करेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने क्वॉड की पहली व्यक्तिगत बैठक को संबोधित करने के लिए सबसे पहले पीएम मोदी को आमंत्रित किया था जिसमें मोदी ने अपनी बात को अपने ही अंदाज में रखा मगर चीन का जो तेवर देखने को मिल रहा है वह एक चिंता का सबब बन सकता है.

यही कारण है कि आने वाले समय में भारत और चीन के संबंध तल्ख होने वाले हैं. चीन दुनिया की एक महाशक्ति बन चुका है और अमेरिका भी जब उसकी तरफ देखने से झिझकता रहा है, ऐसे में भारत का चीन से 36 का संबंध, देश को किस मुकाम पर ले जाकर खड़ा करेगा यह चिंता का सबब बनता जा रहा है.

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यहां यह याद रखने वाली बात है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात जहां उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति पर गलबहियां डालीं, चीन के राष्ट्रपति को भी भारत बुला करके संबंध मधुर बनाने की पहल की थी. मगर अब धीरे-धीरे दुनिया के परिदृश्य में भारत अमेरिका की तरफ आगे बढ़ता चला जा रहा है. ऐसे में आने वाला समय कैसा होगा यह जानना समझना आवश्यक है.

दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन आगामी 24 सितंबर को व्यक्तिगत उपस्थिति वाले पहले क्वाड शिखर सम्मेलन 2021 की मेजबानी करने जा रहे हैं. अब इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  और उनके ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरिसन  तथा जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा भी  शामिल होंगे.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के इस शिखर सम्मेलन में शामिल होने पर चीन की वक्र दृष्टि है.

क्योंकि यह शिखर सम्मेलन एक तरफ से चीन के लिए एक चुनौती बन कर के सामने है. और चीन या नहीं चाहता कि कोई उसके हितों के खिलाफ गोल बंद हो, ऐसे में दुनिया की महाशक्ति अमेरिका के साथ भारत का हाथ मिलाना, चीन के लिए चिंता का सबब बन गया है, जिसका जवाब ढूंढने का प्रयास करते हुए चीन ने अपनी तरफ से भारत को कड़ा संदेश दे दिया है मगर भारत अभी मौन है.

अमेरिकी हित और भारत

और जैसा कि दुनिया की राजनीति में इन दिनों देखने को मिल रहा है. अमेरिका अब पहले जैसा अमेरिका नहीं है. अफगानिस्तान के मामले पर दुनिया सहित देश में भी अमेरिका की किरकिरी हुई है राष्ट्रपति जो बायडन की लोकप्रियता तेज़ी से घटी है.इस सवाल का जवाब अभी नहीं मिल पाया है कि भारत के हितों को नकार कर के जिस तरीके से अफगानिस्तान में अमेरिका ने अपनी सेना को वापस बुलाया और एक तरह से आतंक के हवाले अफगानिस्तान को कर दिया गया, क्या उसके लिए इतिहास में कभी अमेरिका को माफी मिल पाएगी?

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एक तरफ आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात करने वाला अमेरिका जिस तरीके से आत्मसमर्पण करता हुआ देखा गया है. उससे यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि अमेरिका का शिखर नेतृत्व आज कितना कमजोर हो गया है और उसके साथ भारत का खड़ा होना भारत को क्या कमजोर नहीं बनाएगा?

क्योंकि कहा जाता है कि मजबूत मित्र के साथ आपको सरंक्षण मिल सकता है.एक मजबूत मगर आत्मविश्वास से कमजोर मित्र आपके लिए किसी काम का नहीं है. कुछ कुछ हालात आज अमेरिका और भारत की मित्रता के संदर्भ में भी ऐसे ही हैं.

नवीन संदर्भ में व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी के अनुसार   यह शिखर सम्मेलन मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने और जलवायु संकट से निबटने के बारे में बात करेगा. देश अपने संबंधों को और प्रगाढ़ करने तथा कोविड-19 एवं अन्य क्षेत्रों में व्यवहारिक सहयोग को बढ़ाने के बारे में भी वार्ता करेंगे. इस मौके पर उभरती प्रौद्योगिकियों तथा साइबर स्पेस के बारे में भी बात की जाएगी. साकी ने कहा, ‘राष्ट्रपति जोसफ आर बाइडन जूनियर व्हाइट हाउस में 24 सितंबर को व्यक्तिगत उपस्थिति वाले पहले क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेंगे. राष्ट्रपति बाइडन व्हाइट हाउस में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा का स्वागत करने के लिए उत्सुक हैं.’

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साकी ने कहा कि क्वाड को बढ़ावा देना बाइडन प्रशासन के लिए प्राथमिकता है, जो मार्च में क्वाड नेताओं के पहले सम्मेलन में साफ नजर आया था. तब यह सम्मेलन ऑनलाइन आयोजित हुआ था और अब प्रत्यक्ष हो रहा है. स्मरण हो कि ऑनलाइन सम्मेलन की मेजबानी राष्ट्रपति बाइडन ने ही की थी तथा इसमें मुक्त, खुले, समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रयास करने का संकल्प लिया गया था. मगर अब तक दुनिया की परिस्थितियां बहुत कुछ बदल चुकी है ऐसे में यह शिखर सम्मेलन भारत के लिए भी एक नई उम्मीद का कारण बन सकता है, वही थोड़ी सी भी चूक भारत को आने वाले समय में नई नई मुसीबतों में भी घेर सकती है. मगर जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री  अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे हम पड़ोसी नहीं बदल सकते मगर हां, मित्र बदल सकते हैं.  ऐसे में आने वाले समय में भारत चीन की रिश्ते किस करवट बैठेंगे यह देखना होगा.

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