Bigg Boss: 13 दिवाली के मौके पर इस कंटेस्टेंट पर भड़क उठे ‘भाईजान’, जानें क्यों

ये बात तो हम सब जानते हैं कि बिग बौस का ऐसा कोई एपिसोड नहीं जाता जब घर में लड़ाई झगड़े देखने को ना मिलें, लेकिन इस बार घर की एक कंटेस्टेंट ने बिग बौस 13 के होस्ट यानी सलमान खान को गुस्सा दिलाने में देरी ना की. जी हां बीते वीकेंड के वौर में कंटेस्टेंट माहिरा शर्मा नें अपनी आदतों के चलते सलमान को जबरदस्त गुस्सा दिखाने पर मजबूर कर दिया. यहां तक की सलमान खान ने काफी कोशिश की कि वे दिवाली के मौके पर किसी किसी कंटेस्टेंट पर गुस्सा नहीं होंगे लेकिन उनकी ये कोशिश नाकाम रही.

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सलमान नें माहिरा को कई बार कहा कि वे चुप रहें…

दरअसल सलमान खान ने सभी घरवालों को एक टास्क दिया जिसमें घरवालों को किसी और के बारे में बताना था कि वे उनसे क्यों बहतर हैं और सामने वाले को वोट क्यों नहीं मिलने चाहिए. इसी दौरान जब बारी आई कंटेस्टेंट असीम रियाज की तो उन्हें ये बताने को कहा गया कि वे माहिरा से क्यों बहतर हैं और माहिरा को क्यों वोक्स नहीं मिलने चाहिए. इसके चलते जब असीम माहिरा के बारे में बोल रहे थे तो वे बार बार कुछ ना कुछ बोली जा रहीं थी तो सलमान खान नें उन्हें कई बार चुप रहने को कहा क्योंकि जब माहिरा की बारी थी को किसी भी कंटेस्टेंट नें बीच में उन्हें नहीं टोका था.

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अपनी आदतों से बाज नहीं आईं माहिरा…

इसके बाद सलमान खान नें सभी घरवालों को एक और टास्क दिया जिसमें सभी कंटेस्टेंट के पास एक लाइट हेडगियर था और टास्क ये था कि उन्हें उन कंटेस्टेंट के बल्ब को जगाना था जिन्हें अपनी दिमाग की बत्ती जगाने के जरूरत है. इसी टास्क के दौरान सिद्धार्थ शुक्ला माहिरा की ओर जाते हैं और उनके हेलमेट का स्विच औन कर देते हैं और फिर माहिरा सिद्धार्थ के बारे में बोलना शुरू कर देते हैं.

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गेम को गेम की तरह ही खेलें…

बता दें, इस दौरान सलमान खान को माहिरा शर्मा पर काफी गुस्सा आ जाता है और वे सभी को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि कोई भी कंटेस्टेंट किसी के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलेगा और गेम को गेम की तरह ही खेलें.

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टेलीविजन इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा टी.आर.पी गेन करने वाला कलर्स टी.वी का रीएलिटी शो बिग बौस के सीजन 13 में अब मामला गंभीर होता दिखाई दे रहा है. जहां एक तरफ बीते शनिवार को वीकेंड के वौर में सलमान खान नें सभी मुद्दों को लेकर घरवालों की जमकर क्लास लगाई तो वहीं दूसरी तरफ सलमान नें एक बहुत बड़ा खुलासा भी किया. सलमान खान नें दो वाइल्डकार्ड एंट्रीज का स्वागत काफी अच्छे से किया जिसमें हिन्दुस्तानी भाऊ (विकास पाठक) और तहसीन पूनेवाला का नाम शामिल था.

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आदित्य नारायण, हर्ष लंबाचिया के साथ-साथ ढिंचैक पूजा भी आईं नजर…

रविवार यानी कल के वीकेंड के वौर में घरवाले खूब मस्ती करते नजर आए. बिग बौस के घर में जाकर आदित्य नारायण, हर्ष लंबाचिया के साथ-साथ ढिंचैक पूजा ने सभी कंटेस्टेंट्स के साथ कई टास्क दिए और उन्हीं टास्क में सबने जमकर मस्ती की. जहां एक तरफ ढिंचैक पूजा ने अपने गानों से सबको गुदगुदाया तो वहीं दूसरी तरफ आदित्य नारायण और हर्ष लंबाचिया नें रश्मि देसाई और देवोलिना भट्टाचार्जी को एक टास्क दिया जिसमें दोनों को डांस करना था और उसी दौरान पूजा और शहनाज़ गिल नें गाना गाकर सभी को एंटरटेन किया.

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सुपरस्टार खेसारी लाल यादव लेंगे वाइल्डकार्ड एंट्री…

बात करें अगर तीसरे वाइल्डकार्ड एंट्री की तो उनका नाम सुनते ही दर्शक काफी खुश हो गए. जी हां बिग बौस के घर में भोजपुरी तड़का लगाने आ रहे हैं भोजपुरी इंडस्ट्री के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव. बीते दिन खेसारी लाल यादव नें बिग बौस में सलमान खान के सामने ग्रैंड एंट्री ली और दर्शकों को खूब हसाया. खेसारी लाल यादव के फैंस उनका इंतजार काफी वक्त से कर रहे थे. खेसारी ने इस मौके का फयदा उठाते हुए सलमान से उनकी फिल्मों के डायलौग्स भोजपुरी में भी बुलवाए.

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अब देखने वाली बात ये होगी की घर के अंदर खेसारी लाल यादव का कौनसा रूप हमें देखने को मिलेगा और किस तरह वे अपने फैंस को एटरटेन करेंगे.

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रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः साजिद नाड़ियाडवाला और फौक्स स्टार स्टूडियो

निर्देशकः फरहाद सामजी

कलाकारः अक्षय कुमार, बौबी देओल, रितेश देशमुख, कृति सैनन, कृति खरबंदा,  पूजा हेगड़े, चंकी पांडे, रंजीत, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, जौनी लीवर व अन्य.

अवधिः दो घंटे 26 मिनट

सफलतम फ्रेंचाइजी को बार बार भुनाना गलत नही है, मगर सफल फ्रेंचाइजी के नाम पर दर्शकों को मूर्ख बनाते हुए कुछ भी उल जलूल परोसना शर्मनाक है. हर फिल्म फिर चाहे वह सफल फ्रेंचाइजी ही क्यों न हो, का मकसद दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन करना होता है. मगर सफल फ्रेंचाइजी ‘हाउसफुल’ की नई प्रस्तुति ‘‘हाउसफल 4’’ खरी नही उतरती. इस हास्य फिल्म में वही पुरानी कहानी को अति घटिया संवादों के साथ पेश कर दिया गया है.

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कहानीः

लंदन में नाई की दुकान चला रहे हैरी (अक्षय कुमार) अपनी भूलने की आदत के चलते खतरनाक माफिया डान माइकल (मनोज पाहवा) के पांच मिलियन डौलर्स को कपड़े समझकर वाशिंग मशीन में धो देते है. बस तभी से माइकल, हैरी और उसके दोस्तों मैक्स (बौबी देओल) और रौय (रितेश देशमुख) की जान के पीछे पड़ जाते हैं. पैसों का जुगाड़ करने के लिए यह तीनों मिलकर अरबपति ठकराल (रंजीत) की तीनों खूबसूरत बेटियों कृति (कृति सेनन),  नेहा (कृति खरबंदा) और पूजा (पूजा हेगड़े) से शादी करने की योजना बनाते हैं.

ठकराल के गले में एक नंगी औरत की तस्वीर है और वह हमेशा तीन अर्धनग्न लड़कियों के कंधे पर अपना हाथ रखे नजर आते हैं. खैर, ठकराल भी इस शादी के लिए रजामंद हो जाते हैं. ठकराल की यह तीनों बेटियां डिस्टीनेशन वेडिंग करना चाहती हैं. इसके लिए ग्लोबल मैप को घुमाकर जगह तय की जाती है और यह जगह आती है भारत में स्थित सितमगढ़. पता चलता है कि 1419 में सितमगढ़ रियासत थी और उसी रियासत का एक किला है, जो कि अब होटल में तब्दील हो चुका है. होटल का मैनेजर( जौनी लीवर) और बेल ब्वाय पास्ता (चंकी पांडे) है.

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शादी की रस्म के लिए जब यह सभी लंदन से भारत के सितमगढ़ पहुंचते हैं, तो हैरी को याद आता है कि वह आज से तकरीबन 600 पहले अर्थात 1419 में सितमगढ़ का राजकुमार बाला देव सिंह था. उसे यह बात उसका विश्वासपात्र नौकर पास्ता (चंकी पांडे) याद दिलाता है. फिर कहानी 600 साल पहले चली जाती है. जब हैरी उर्फ बाला के सिर पर बाल नही थे. और किस तरह शादी के दिन ही दुश्मनों की चाल के चलते वह सब मारे गए थे.

अतीत की कहानी खत्म होते ही हैरी को अहसास होता है कि इस जन्म में वह और उसके दोस्त अपने पूर्व जन्म की प्रेमिकाओं की बजाय अपनी पूर्व जन्म की भाभियों से शादी करने जा रहे हैं, तो वह अपने दोस्तों और उनकी प्रेमिकाओं को याद दिलाता है कि कैसे कृति पिछले जन्म में राजकुमारी मधु, रौय नृत्य के गुरु बांगड़ू,  मैक्स राजकुमारी का अंगरक्षक धरमपुत्र थे और नेहा राजकुमारी मीना, जबकि नेहा राजकुमारी माला थी. अब सभी सितमगढ़ पहुंच गए हैं, तो बाकी किरदार भी पहुंचेंगे ही तो 600 साल पहले के गामा (राणा दुगुबत्ती) अब कव्वाल पप्पू रंगीला और राघवन (शरद केलकर) भी इस जन्म में सितमगढ़ आ पहुंचते हैं. फिर शुरू होती है पिछले जन्म की बदले की कहानी को पूरा करने का खेल पर अंततः प्रेम की ही जीत होती है.

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निर्देशनः

फिल्म का कुछ हिस्सा साजिद खान ने निर्देशित किया था,  मगर ‘‘मी टू’’ में साजिद खान के फंसने के बाद असफल फिल्म ‘‘इंटरटेनमेंट’’ के निर्देशक फरहाद सामजी ने इसका निर्देशन किया. फिल्म में वही किरदारों की अदला बदली का अति पुराना फार्मुला उपयोग कर लोगों को जबरन हंसाने का प्रयास किया गया है, पर दर्शकों को हंसी बजाय रोना आता है. इसमें ‘माइंडलेस कौमेडी’ के साथ कई घटिया, अति सतही व बचकाने पंच भी डाले पिरोए गए हैं. फिल्म का क्लायमेक्स भी बचकाना है. फिल्म के संवाद तो बहुत ही ज्यादा वाहियात हैं. अफसोस की बात यह है कि इसे छह लेखकों की फौज ने मिलकर लिखा है.

‘‘माइंडलेस कौमेडी” की कल्पना की पराकास्ठा यह है कि क्लायमेक्स में अक्षय कुमार के पिछवाड़े चार चार चाकू लगे हैं, पर खून नहीं निकलता और वह आगे बढ़ते रहते हैं. मगर कुछ देर बाद वह चाकू गायब भी हो जाते हैं. इतना ही नही हर कलाकार अष्लील हाव भाव करते हुए दर्शकों को हंसाने का असफल प्रयास करते हैं.

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600 साल पुराना सितमगढ़ का किला 600 साल बाद भी उसी स्थिति में है. वाह..फिल्मकार की क्या कल्पना है. दर्शक सिनेमाघर से निकलते समय ही कहता रहता है कि ‘कहां फंसायो नाथ.’ कुछ दर्शक तो यह भी कहते सुने गए कि इस तरह की फिल्म बनाते समय निर्माता व कलाकारों का शर्म नहीं आयी.

अभिनयः

फिल्म देखकर अहसास होता है, जैसे कि हर कलाकार के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है कि कौन सबसे घटिया/वाहियात अभिनय कर सकते है. हीरोईनों के हिस्से करने के लिए कुछ खास रहा ही नहीं. छोटे से किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दिकी और जौनी लीवर जरुर अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

राज्य में चौटाला राजनीति का सूर्योदय, 11 महीने में बदल दी हरियाणा की राजनीति

हरियाणा में बीजेपी ने 75 पार का सपना देखा था लेकिन महज 40 सीटों पर सिमट गई. जबकि 2014 में बीजेपी को 47 सीटें हासिल हुईं थी. यानी की बीजेपी को सात सीटों का नुकसान हुआ है. कांग्रेस को यहां बढ़त मिली है. कांग्रेस ने यहां 31 सीटें जीती हैं. इन सबके के बीच 11 महीने पहले बनी पार्टी जेजेपी ने दमदार प्रदर्शन करते हुए 10 सीटें जीती हैं. इस पार्टी के मुखिया हैं दुष्यंत चौटाला. इनेलो से निकाले जाने के बाद दुष्यंत चौटाला ने नई पार्टी जननायक जनता पार्टी बनाई और अब हरियाणा की राजनीति में दमदार एंट्री की है.

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हरियाणा विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को 11 सीटें मिलती दिख रही हैं. जेजेपी पिछले साल दिसंबर में जब आईएनएलडी (इंडियन नेशनल लोक दल) से निकलकर जेजेपी बनी तो पहले ही लिटमस टेस्ट में हरियाणा की जनता ने दिखा दिया था कि उसका रुख किधर है. जेजेपी ने अपनी ताकत का एहसास पहली बार तब कराया जब जींद विधानसभा के लिए इस वर्ष 28 जनवरी को उपचुनाव हुए.

बीजेपी, कांग्रेस, आईएनएलडी के साथ लड़ाई में दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय ने जेजेपी कैंडिडेट के तौर पर 37,631 वोट हासिल किए जबकि 2014 में इस सीट पर जीत हासिल करने वाली आईएनएलडी को महज 3,454 वोटों से संतोष करना पड़ा. 2014 के विधानसभा चुनावों में आईएनएलडी को पूरे हरियाणा में 19 सीटें मिली थीं.

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हरियाणा की राजनीति में चौटाल परिवार सबसे मजबूत माना जाता है. पिछले साल इस परिवार में अनबन हो गई थी. जिसका अजय चौटाला की अपने पिता और आईएनएलडी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला और भाई अभय चौटाला के साथ अनबन हो गई. उसके बाद नवंबर 2018 में अजय चौटाला और हिसार से उनके सांसद पुत्र दुष्यंत चौटाला को आईएनएलडी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उसके अगले ही महीने दिसंबर 2018 में दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन कर लिया. जेजेपी के बनने से आईएनएलडी को तगड़ा झटका लगा और उसके ज्यादातर पदाधिकारियों ने जेजेपी का रुख कर लिया.

इंडियन नेशनल लोकदल ने हरियाणा पर 2000 से 2004 के बीच आखिरी बार राज किया था और ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने थे. उस वक्त पार्टी को 90 में से 47 सीटें हासिल हुई थीं. 2005 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 9 सीटें मिलीं. 2009 में कुछ राहत मिली और आईएनएलडी ने 31 सीटों पर जीत दर्ज की.

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आईएनएलडी प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा काटने के लिए तिहाड़ जेल में बंद हैं. चौटाला अगर जेल से छूट भी जाते हैं तो उनसे पार्टी में दोबारा जान फूंकने की उम्मीद नहीं के बराबर है क्योंकि वह 84 वर्ष के हो चुके हैं. अभय चौटाला अच्छे मैनेजर बताए जाते हैं, लेकिन वह अपने पिता की तरह जनता के बीच उतने लोकप्रिय नहीं हैं. इस चुनाव ने यह साबित कर दिया है.

Bigg Boss 13: इस कंटेस्टेंट ने दी सिद्धार्थ शुक्ला को ‘Me Too’ की धमकी, पढ़ें खबर

बिग बौस सीजन 13 की शुरूआत से ही दर्शकों को लड़ाई झगड़े देखने को मिले और इसका सबसे बड़ा कारण था कि इस सीजन का फिनाले सिर्फ 4 ही हफ्तों में आने वाला है. फिनाले के चलते हर कंटेस्टेंट इसी उम्मीद में लगे हैं कि उन्हें हर हाल में सबको पीछे छोड़ फिनाले तक पहुंचना है. ये बात तो हम सब जानते हैं कि बिग बौस का ऐसा कोई एपिसोड नहीं जाता जब घर में लड़ाई झगड़े देखने को ना मिलें, लेकिन इस बार कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला पर काफी बड़ा बोम्ब गिरा है.

सिद्धार्थ शुक्ला ने तोड़ीं सभी घरवालों की सीढियां…

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दरअसल, बीते एपिसोड में बिग बौस नें सभी घरवालों को सांप-सीढ़ी का टास्क दिया था जिसे पूरा करने के लिए सभी घरवाले अपनी सारी हदें पार करते दिखाई दिए. इस दौरान कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला काफी गुस्से में आ गए और उन्होनें सभी घरवालों की सीढियां तोड़ दीं और इतनी ही नहीं बल्कि उन्होनें टेबल तक पलत दी. इस बार सिद्धार्थ के गुस्से की वजह टेलिविजन क्वीन देवोलीना भट्टाचार्य बनीं.

माहिरा के साथ मिलकर रश्मि और शेफाली ने सुनाई खूब खरी-खोटी…

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जहां एक तरफ घर की लड़कियां पारस छाबड़ा से खफा थीं तो इस दौरान सभी ने पारस की गलतियां भुला कर सिद्धार्थ शुक्ला को टारगेट किया. टास्क के दौरान घर की सबसे हौट कंटेस्टेंट माहिरा शर्मा सिद्धार्थ तो धक्का मारती दिखाई देती हैं और सिद्धार्थ उन्हें साइड करने की कोशिश करते हैं और इसी कोशिश में माहिरा को सिद्धार्थ का धक्का लग जाता है. इसके बार घर की सभी लड़कियां सिद्धार्थ शुक्ला के खिलाफ हो जाती हैं और माहिरा के साथ मिलकर रश्मि देसाई और शेफाली बग्गा उनको खूब खरी-खोटी सुनाती हैं.

देवोलीना ने दी ‘Me Too’ की धमकी…

बता दें, जब सिद्धार्थ शुक्ला ने टास्क में देवोलीना भट्टाचार्य की सीढियां तोड़ी थीं तब कंटेस्टेंट आसिम रियाज ने सिद्धार्थ को रोकने की खूब कोशिशें की पर वे सिद्धार्थ के गुस्से के आगे कुछ ना कर पाए. इसी दौरान सिद्धार्थ और देवोलीना में खूब लड़ाई होती नजर आती है और गुस्से में देवोलीना कहती हैं कि,- “अगर सिद्धार्थ ने मुझे दोबारा टच किया तो मैं उस पर Me Too लगा दूंगी”. अब देखने वाली बात ये होगी कि आखिर ये लड़ाई अब किस मोड़ पर जा कर रुकती है.

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छठ पर रिलीज होगी भोजपुरी सुपरस्टार ‘खेसारीलाल यादव’ की ये फिल्म, पढ़ें खबर

खेसारीलाल यादव की यह एक महत्वाकांक्षी फिल्म है. इस फिल्म में लंबे समय के बाद खेसारीलाल यादव के साथ उनकी पुरानी सह कलाकार स्मृति सिन्हा भी नजर आने वाली हैं, जिस वजह से बौक्स औफिस पर फिल्म ‘भाग खेसारी भाग’ का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है.

स्मृति सिन्हा भी आएंगी नजर…

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इससे पहले फिल्म के ट्रेलर और मोशन पोस्टर को दर्शकों ने खूब पसंद किया था. फिल्म के ट्रेलर को अब तक 3,118,861 बार देखा जा चुका है. यह फिल्म में भोजपुरी सिनेप्रेमियों के स्वस्थ मनोरंजन के लिए बनाई गई है. युनिक कथानक वाली इस फिल्म का निर्माण भव्य पैमाने पर हुआ है. इस फिल्म का नया विषय दर्शकों का खूब मनोरंजन करने वाला है.

छठ के अवसर पर रिलीज होगी फिल्म…

फिल्म को लेकर निर्देशक प्रेमांशु सिंह ने बताया कि बदलाव कोई नया आदमी ही करता है. फिल्म ‘भाग खेसारी भाग’ का निर्माण हमारी एक कोशिश थी, जो छठ के अवसर पर रिलीज होगी. उल्लेखनीय है कि फिल्म ‘‘भाग खेसारी भाग’’ के निर्माता उमाशंकर प्रसाद हैं, उनकी यह पहली भोजपुरी फिल्म है. वह अपने प्रोडक्शन हाउस ‘जे पी स्टार पिक्चर्स’ के बैनर में आगे भी कई बेहतरीन फिल्मों का निर्माण करने वाले हैं.

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फिल्म के निर्देशक प्रेमांशु सिंह, एसोसिएट प्रोड्यूसर आयुष राज गुप्ता, लेखक मनोज कुशवाहा, संगीतकार ओम झा, कैमरामैन सरफराज खान, नृत्य राम देवन, रिक्की गुप्ता, मारधाड़ हीरालाल यादव, कला शेरा का है. प्रोडक्शन कंट्रोलर मोतीराम व प्रोडक्शन मैनेजर राजन पांडेय हैं.

फिल्म के मुख्य कलाकार हैं- खेसारीलाल यादव, स्मृति सिन्हा, अमित शुक्ला, अयाज खान, संजय वर्मा, अर्जुन यादव, राहुल शाहू, प्रीतम कुमार, अविनाश मधुकर, अमित चैधरी, सत्य प्रकाश सिंह आदि.

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दंतैल हाथी से ग्रामीण भयजदा: त्राहिमाम त्राहिमाम!

छत्तीसगढ़  के महासमुंद जिले के सिरपुर अंचल  में विगत कुछ सालों में  दंतैल हाथी 16 ग्रामीणों को मौत के घाट उतार चुका है. यही नहीं  किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन में खड़ी फसल को भी बुरी तरह  नुकसान पहुंचाता रहा  है.

इस हाथी से अंचल के ग्रामीण त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं. दुखी और आक्रोशित ग्रामीण सिरपुर क्षेत्र के लगभग 55 गांव के हजारों ग्रामीणों ने शहर में रैली निकालकर जिलाधीश कार्यालय  का घेराव कर दिया और वन मंत्री  मुर्दाबाद के नारे भी लगाये.

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दरअसल, छत्तीसगढ़ के जंगलों में इन दिनों हाथियों के झुंड विचरण कर रहे हैं लगभग ढाई सौ हाथी छत्तीसगढ़ में विभिन्न वन मंडल क्षेत्रों में आतंक का पर्याय बने हुए हैं आए दिन लोग हाथी के द्वारा मारे जा रहे हैं और फसल आदि का नुकसान भी जारी है ग्रामीण असहाय हैं तो शासन भी असहाय हो चुका है.प्रस्तुत है हाथी एवं मानव के संघर्ष को रेखांकित करती एक रिपोर्ट –

हाथी के उन्माद से हलाकान

छत्तीसगढ़ के सिरपुर के 50 से अधिक गांव के लोग हाथियों के आतंक से बेहद भयभीत हैं ग्रामीणों ने  महासमुंद की सड़कों पर उतर कर हाथी के खिलाफ अपने गुस्से का प्रदर्शन करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार और विभाग से मांग की कि हाथी किए भयंकर आतंक से मुक्ति दिलाई जाए

कलेक्टर सुनील जैन से मिलकर ग्रामीणों ने 10 बिन्दु्ओं पर मांग पत्र प्रस्तुत कर हाथी के इस भय के  तत्काल निराकरण की मांग की .

निरंतर  ग्रामीणों और किसानों की मौत से गुस्साये 55 गांव के किसानो ने कलेक्टर सुनील जैन से मिलकर दंतैल हाथी को विक्षिप्त  घोषित करने व हाथियों को सिरपुर क्षेत्र से बाहर करने की मांग की है.आक्रोशित ग्रामीणों ने कलेक्टर व वन विभाग से कहा है पिछले पांच  बरस  में किसानों की हालत बद से बदतर सिर्फ हाथियों  के वजह से हो गई है.

सैकड़ों एकड़ खेत के फसल नष्ट हो गये है जिसका मुआवजा भी किसानों को नहीं मिला है. वन विभाग पर ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि वन विभाग हाथी प्रभावित क्षेत्र में आज तक विद्युत  की व्यवस्था नहीं कर पाई है. ग्रामीण जन अंधेरे में जीवन बिताने मजबूर हैं इस कारण भी अनेक दो घटनाएं हो चुकी हैं. किसानों और ग्रामीणों के लगातार निवेदन के बाद भी किसानों के जान बचाने और उनके फसल को नष्ट होने से बचाने के लिए कोई कारगार फैसला छत्तीसगढ़ सरकार नहीं ले सका है.

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आक्रोशित ग्रामीणों ने वन विभाग के वन मंडल अधिकारी और जिलाधीश से कहा कि महोदय, लगातार ग्रामीण शासन प्रशासन से अपनी जान माल की रक्षा के लिए निवेदन पर निवेदन  कर रहे है लेकिन  पिछले 5 सालों से ग्रामीणों के मांग को अनसुना किया गया  है.

सिरपुर के हाथी प्रभावित क्षेत्र में  मंत्री-अधिकारी  एक रात बिताएं तो उन्हें जानकारी होगी कि रात में हाथी जब गांव की गलियों में  तांडव करते है तो उन्हें कैसा महसूस होता है. किसानों ने दंतैल हाथी को मारने के साथ-साथ फसल मुआवजा की राशि में बढ़ोत्तरी, मृतक के परिवारों को 10 लाख मुआवजा व उनके परिवार को वन विभाग में नौकरी देने की भी मांग की है.

ग्रामीणों की इस पीड़ा को गंभीरता से लेते हुए जनपद अध्यक्ष धरमदास महिलांग  ने कलेक्टर से कहा की समस्या का निराकरण शीघ्र किया जाये अन्यथा जेल भरो आंदोलन एवं चक्काजाम करने के लिए क्षेत्र के कृषक एवं ग्रामीण बाध्य होंगे.

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हाथियों से भयाक्रांत छत्तीसगढ़

वन्य संरक्षण प्राणी हाथी झुंड छत्तीसगढ़ के जंगलों में स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं हाथियों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है परिणाम स्वरूप मानव एवं हाथी के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है वन्य प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार हाथी एवं ग्रामीणों के बीच संघर्ष का कारण जंगलों की लगातार कटाई एवं जंगल में खेतीकिसानी एवं सहवास प्रमुख कारण है धीरे-धीरे जंगल कम हो रहे हैं परिणाम स्वरूप हाथी एवं अन्य वन्य प्राणी जब ग्रामीणों के रहवास क्षेत्र में आ जाते हैं तो संघर्ष बढ़ जाता है.

छत्तीसगढ़ की रायगढ़ अंबिकापुर कोरबा महासमुंद सहित लगभग 12 जिले हाथी के आतंक से भया क्रांत हैं मगर शासन प्रशासन मौन है. छत्तीसगढ़ के महासमुंद में निकली ग्रामीणों की रैली यह संदेश देती है कि सरकार को जल्द से जल्द इस दिशा में परियोजना बनाकर लोगों को एवं हाथियों को राहत देने के महती काम को अमलीजामा पहनाना  होगा.

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मेरी मां के नाम

लेखिका- रेनू खटोर

इस बात को लगभग 1 साल हो गया लेकिन आज भी एक सपना सा ही लगता है. अमेरिका के एक बड़े विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी औफ ह्यूस्टन के बोर्ड के सामने मैं इंटरव्यू के लिए जा रही थी. यह कोई साधारण पद नहीं था और न ही यह कोई साधारण इंटरव्यू था. लगभग 120 से ज्यादा व्यक्ति अपने अनुभव और योग्यताओं का लेखाजोखा प्रस्तुत कर चुके थे और अब केवल 4 अभ्यर्थी मैदान में चांसलर का यह पद प्राप्त करने के लिए रह गए थे.

मुझे इस बात का पूरा आभास था कि अब तक न तो किसी भी अमेरिकन रिसर्च यूनिवर्सिटी में किसी भारतीय का चयन चांसलर की तरह हुआ है और न ही टैक्सास जैसे विशाल प्रदेश ने किसी स्त्री को चांसलर की तरह कभी देखा है. इंटरव्यू में कई प्रश्न पूछे जाएंगे. हो सकता है वे पूछें कि आप में ऐसी कौन सी योग्यता है जिस के कारण यह पद आप को मिलना चाहिए या पूछें कि आप की सफलताएं आप को इस मोड़ तक कैसे लाईं?

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इस तरह की चिंताओं से अपना ध्यान हटाने के लिए मैं ने जहाज की खिड़की से बाहर अपनी दृष्टि डाली तो सफेद बादल गुब्बारों की तरह नीचे दिख रहे थे. अचानक उन के बीच एक इंद्रधनुष उभर आया. विस्मय और विनोद से मेरा हृदय भर उठा…अपनी आंखें ऊपर उठा कर तो आकाश में बहुत इंद्रधनुष देखे थे लेकिन आंखें झुका कर नीचे इंद्रधनुष देखने का यह पहला अनुभव था. मैं ने अपने पर्स में कैमरे को टटोला और जब आंख उठाई तो एक नहीं 2 इंद्रधनुष अपने पूरे रंगों में विराजमान थे और मेरे प्लेन के साथ दौड़ते से लग रहे थे.

आकाश की इन ऊंचाइयों तक उठना कैसे हुआ? कैसे जीवन की यात्रा मुझे इस उड़ान तक ले आई जहां मैं चांसलर बनने का सपना भी देख सकी? किसकिस के कंधों ने मुझे सहारा दे कर ऊपर उठाया है? इन्हीं खयालों में मेरा दिल और दिमाग मुझे अपने बचपन की पगडंडी तक ले आया.

यह पगडंडी उत्तर प्रदेश के एक शहर फर्रुखाबाद में शुरू हुई जहां मैं ने अपने बचपन के 18 साल रस्सी कूदते, झूलाझूलते, गुडि़यों की शादी करते और गिट्टे खेलते बिता दिए. कभी अमेरिका जाने के बारे में सोचा भी नहीं था, वहां के आकाश में उड़ने की तो बात ही दूर थी. बचपन की आवाजें मेरे आसपास घूमने लगीं:

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‘अच्छा बच्चो, अगर एक फल वाले के पास कुछ संतरे हैं. अब पहला ग्राहक 1 दर्जन संतरे खरीदता है, दूसरा ग्राहक 2 दर्जन खरीदता है और तीसरा ग्राहक सिर्फ 4 संतरे खरीदता है. इस समय फल वाले के पास जितने संतरे पहले थे उस के ठीक आधे बचे हैं. जरा बताओ तो कि फल वाले के पास बेचने से पहले कितने संतरे थे?’ यह मम्मी की आवाज थी.

‘मम्मी, हमारी टीचर ने जो होमवर्क दिया था, उसे हम कर चुके हैं. अब और नहीं सोचा जाता,’ यह मेरी आवाज थी.

‘अरे, इस में सोचने की क्या जरूरत है? यह सवाल तो तुम बिना सोचे ही बता सकती हो. जरा कोशिश तो करो.’

सितारों वाले नीले आसमान के नीचे खुले आंगन में चारपाइयों पर लेटे सोने से पहले यह लगभग रोज का किस्सा था.

‘जरा यह बताओ, बच्चो कि अमेरिका के राष्ट्रपति का क्या नाम है?’

‘कुछ भी हो, हमें क्या करना है?’

‘यह तो सामान्य ज्ञान की बात है और सामान्य ज्ञान से तो सब को काम है.’

फिर किसी दिन होम साइंस की बात आ जाती तो कभी राजनीति की तो कभी धार्मिक ग्रंथों की.

‘अच्छा, जरा बताओ तो बच्चो कि अंगरेजी में अनार को क्या कहते हैं?’

‘राज्यसभा में कितने सदस्य हैं?’

‘गीता में कितने अध्याय हैं?’

‘अगले साल फरवरी में 28 दिन होंगे या 29?’

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हम कार में हों या आंगन में, गरमी की दोपहर से बच कर लेटे हों या सर्दी की रात में रजाई में दुबक कर पड़े हों, मम्मी के प्रश्न हमारे इर्दगिर्द घूमते ही रहते थे. न हमारी मम्मी टीचर हैं, न कालिज की डिगरी की हकदार, लेकिन ज्ञान की प्यास और जिज्ञासा का उतावलापन उन के पास भरपूर है और खुले हाथों से उन्होंने मुझे भी यही दिया है.

एक दिन की बात है. हमसब कमरे में बैठे अपनाअपना होमवर्क कर रहे थे. मम्मी हमारे पास बैठी हमेशा की तरह स्वेटर बुन रही थीं. दरवाजे की आहट हुई और इस से पहले कि हम में से कोई उठ पाए, पापा की गुस्से वाली आवाज खुले हुए दरवाजे से कमरे तक आ पहुंची.

‘कोई है कि नहीं घर में, बाहर का दरवाजा खुला छोड़ रखा है.’

‘तुझ से कहा था रेनु कि दरवाजा बंद कर के आना, फिर सुना नहीं,’ मम्मी ने धीरे से कहा लेकिन पापा ने आतेआते सुन लिया.

‘आप सब इधर आइए और यहां बैठिए, रेशमा और टिल्लू, तुम दोनों भी.’ पापा गुस्से में हैं यह ‘आप’ शब्द के इस्तेमाल से ही पता चल रहा था. सब शांत हो कर बैठ गए…नौकर और दादी भी.

‘रेनु, तुम्हारी परीक्षा कब से हैं?’

‘परसों से.’

‘तुम्हारी पढ़ाई सब से जरूरी है. घर का काम करने के लिए 4 नौकर लगा रखे हैं.’ उन्होंने मम्मी की तरफ देखा और बोले, ‘सुनो जी, दूध उफनता है तो उफनने दीजिए, घी बहता है तो बहने दीजिए, लेकिन रेनु की पढ़ाई में कोई डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए,’ और पापा जैसे दनदनाते आए थे वैसे ही दनदनाते कमरे से निकल गए.

मैं घर की लाड़ली थी. इस में कोई शक नहीं था लेकिन लाड़ में न बिगड़ने देने का जिम्मा भी मम्मी का ही था. उन का कहना यही था कि पढ़ाई में प्रथम और जीवन के बाकी क्षेत्रों में आखिरी रहे तो कौन सा तीर मार लिया. इसीलिए मुझे हर तरह के कोर्स करने भेजा गया, कत्थक, ढोलक, हारमोनियम, सिलाई, कढ़ाई, पेंटिंग और कुकिंग. आज अपने जीवन में संतुलन रख पाने का श्रेय मैं मम्मी को ही देती हूं.

अमेरिका में रिसर्च व जिज्ञासा की बहुत प्रधानता है. कोई भी नया विचार हो, नया क्षेत्र हो या नई खोज हो, मेरी जिज्ञासा उतावली हो चलती है. इस का सूत्र भी मम्मी तक ही पहुंचता है. कोई भी नया प्रोजेक्ट हो या किसी भी प्रकार का नया क्राफ्ट किताब में निकला हो, मेरे मुंह से निकलने की देर होती थी कि नौकर को भेज कर मम्मी सारा सामान मंगवा देती थीं, खुद भी लग जाती थीं और अपने साथ सारे घर को लगा लेती थीं मानो इस प्रोजेक्ट की सफलता ही सब से महत्त्वपूर्ण कार्य हो.

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मैं छठी कक्षा में थी और होम साइंस की परीक्षा पास करने के लिए एक डिश बनाना जरूरी था. मुझे बनाने को मिला सूजी का हलवा और वह भी बनाना स्कूल में ही था. समस्या यह थी कि मुझे तो स्टोव जलाना तक नहीं आता था, सूजी भूनना तो दूर की बात थी. 4 दिन लगातार प्रैक्टिस चली…सब को रोज हलवा ही नाश्ते में मिला. परीक्षा के दिन मम्मी ने नापतौल कर सामान पुडि़यों में बांध दिया.

‘अब सुन, यह है पीला रंग. सिर्फ 2 बूंद डालना पानी के साथ और यह है चांदी का बरक, ऊपर से लगा कर देना टीचर को. फिर देखना, तुम्हारा हलवा सब से अच्छा लगेगा.’

‘जरूरी है क्या रंग डालना? सिर्फ पास ही तो होना है.’

‘जरूरी है वह हर चीज जिस से तुम्हारी डिश साधारण से अच्छी लगे बल्कि अच्छी से अच्छी लगे.’

‘साधारण होने में क्या खराबी है?’

‘जो काम हाथ में लो, उस में अपना तनमन लगा देना चाहिए और जिस काम में इनसान का तनमन लग जाए वह साधारण हो ही नहीं सकता.’

आज लोग मुझ से पूछते हैं कि आप की सफलता के पीछे क्या रहस्य है? मेरी मां की अपेक्षाएं ही रहस्य हैं. जिस से बचपन से ही तनमन लगाने की अपेक्षा की गई हो वह किसी कामचलाऊ नतीजे से संतुष्ट कैसे हो सकता है? उस जमाने में एक लड़के और एक लड़की के पालनपोषण में बहुत अंतर होता था, लेकिन मेरी यादों में तो मम्मी का मेरे कोट की जेबों में मेवे भर देना और परीक्षा के लिए जाने से पहले मुंह में दहीपेड़ा भरना ही अंकित है.

मेरी सफलताओं पर मेरी मम्मी का गर्व भी प्रेरणादायी था. परीक्षा से लौट कर आते समय यह बात निश्चित थी कि मम्मी दरवाजे की दरार में से झांकती हुई चौखट पर खड़ी मिलेंगी. जिस ने बचपन से अपने कदमों के निशान पर किसी की आंखें बिछी देखी हों, उसे आज जीवन में कठिन से कठिन मार्ग भी इंद्रधनुष से सजे दिखते हों तो इस में आश्चर्य कैसा? इस का श्रेय भी मैं अपनी मम्मी को ही देती हूं.

मैं 18 वर्ष की थी कि जिंदगी में अचानक एक बड़ा मोड़ आ गया. अचानक मेरी शादी तय हो गई और वह भी अमेरिका में पढ़ रहे एक लड़के के साथ. जब मैं ने रोरो कर घर सिर पर उठा दिया तो मम्मी बोलीं, ‘बेटा, शादी तो होनी ही थी एक दिन…कल नहीं तो आज सही. तुम्हारे पापाजी जो कर रहे हैं, सोचसमझ कर ही कर रहे हैं.’

‘सब को अपनी सोचसमझ की लगती है. मेरी सोचसमझ कोई क्यों नहीं देखता. मुझे पढ़ना है और बहुत पढ़ना है. अब कहां गया उफनता हुआ दूध और बहता हुआ घी का टिन?’

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‘तुम्हें पढ़ना है और वे लोग तुम्हें जरूर पढ़ाएंगे.’

‘आज तक पढ़ाया है किसी ने शादी के बाद जो वे पढ़ाएंगे? कौन जिम्मेदारी लेगा मेरी पढ़ाई की?’

‘मैं लेती हूं जिम्मेदारी. मेरा मन है… एक मां का मन है और यह मन कहता है कि वे तुझे पढ़ाएंगे और बहुत अच्छे से रखेंगे.’

मुझे पता था कि यह सब बहलाने की बातें थीं. मेरा रोना तभी रुका जब मेरा एडमिशन अमेरिका के एक विश्व- विद्यालय में हो गया. मम्मी के पत्र बराबर आते रहे और हर पत्र में एक पंक्ति अवश्य होती थी, ‘यह सुरेशजी की वजह से आज तुम इतना पढ़ पा रही हो…ऊंचा उठ पा रही हो.’ जिंदगी का यह पाठ कि ‘हर सफलता के पीछे दूसरों का योगदान है,’ मम्मी ने घुट्टी में घोल कर पिला दिया है मुझे. इसीलिए आज जब लोग पूछते हैं कि ‘आप की सफलता के पीछे क्या रहस्य है?’ तो मैं मुसकरा कर इंद्रधनुष के रंगों की तरह अपने जीवन में आए सभी भागीदारों के नाम गिना देती हूं.

‘‘वी आर स्टार्टिंग अवर डिसेंट…’’ जब एअर होस्टेस की आवाज प्लेन में गूंजी तो मैं अतीत से वर्तमान में लौट आई. खिड़की से बाहर झांका तो इंद्रधनुष पीछे छूट चुके थे और नीचे दिख रहा था अमेरिका का चौथा सब से बड़ा महानगर- ह्यूस्टन. मेरा मन सुबह की ओस के समान हलका था, मेरा मस्तिष्क सभी चिंताओं से मुक्त था.

ठीक 8 घंटे के बाद चांसलर और प्रेसीडेंट का वह दोहरा पद मुझे सौंप दिया गया था. मैं ने सब से पहले फोन मम्मी को लगाया और अपने उतावलेपन में सुबह 5 बजे ही उन्हें उठा दिया.

‘‘मम्मी, एक बहुत अच्छी खबर है… मैं यूनिवर्सिटी औफ ह्यूस्टन की प्रेसीडेंट बन गई हूं.’’

?‘‘फोन जरा सुरेशजी को देना.’’

‘‘मम्मी, आप ने सुना नहीं क्या, मैं क्या कह रही हूं.’’

‘‘सब सुना, जरा सुरेशजी से तो बात कर लूं.’’

मैं ने एकदम अनमने मन से फोन अपने पति के हाथ में थमा दिया.

‘‘बहुतबहुत बधाई, सुरेशजी, रेनु प्रेसीडेंट बन गई. मैं तो यह सारा श्रेय आप ही को देती हूं.’’

हमेशा दूसरों को प्रोत्साहन देना और श्रेय भी खुले दिल से दूसरों में बांट देना – यही है मेरी मां की पहचान. आज उन की न सुन कर, अपनी हर सफलता और ऊंचाई मैं अपनी मम्मी के नाम करती हूं.

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रिवाजों की दलदल: भाग 1

गाड़ी छूटने वाली थी तभी डब्बे में कुछ यात्री चढ़े. आगेआगे कुली एक व्यक्ति को उस की सीट दिखाने में सहायता कर रहा था और पीछे से 2 बच्चों के साथ जो महिला थी उसे देख कर रजनी स्तब्ध रह गईं.

अपना सामान आरक्षित सीट पर जमा कर उस महिला ने अगलबगल दृष्टि घुमाई और रजनी को देख कर वह भी चौंक सी उठी. एक पल उस ने सोचने में लगाया फिर निकट आ गई.

‘‘नमस्ते, आंटी.’’

‘‘खुश रहो श्री बेटा,’’ रजनी ने कुछ उत्सुकता, कुछ उदासी से उसे देखा और बोलीं, ‘‘कहां जा रही हो?’’

श्री ने मुसकरा कर अपने परिवार की ओर देखा फिर बोली, ‘‘हम दिल्ली जा रहे हैं.’’

‘‘कहां हो आजकल?’’

‘‘दिल्ली में यश एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं. लखनऊ तो मम्मी के पास गए थे,’’ इतना कह कर वह उठ कर अपनी सीट पर चली गई. यश ने सीट पर अखबार बिछा कर एक टोकरी रख दी थी. बच्चे टोकरी से प्लेट निकाल कर रख रहे थे.

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‘‘अभी से?’’ श्री ने यश को टोका था.

‘‘हां, खापी कर चैन से सोएंगे,’’ यश ने कहा तो वह मुसकरा कर बैठ गई. सब की प्लेट लगा कर एक प्लेट उस ने रजनी की ओर बढ़ा दी, ‘‘खाइए, आंटी.’’

‘‘अरे, नहीं श्री, मैं घर से खा कर चली हूं. तुम लोग खाओ,’’ रजनी ने विनम्रता से कहा और फिर आंखें मूंद कर वह अपनी सीट पर पैर उठा कर बैठ गईं.

कुछ यात्री उन की बर्थ पर बैठ गए थे. शायद ऊपर की बर्थ पर जाने का अभी उन लोगों का मन नहीं था इसलिए रजनी भी लेट नहीं पा रही थीं.

श्री का परिवार खातेखाते चुटकुले सुना रहा था. रजनी ने कई बार अपनी आंखें खोलीं. शायद वह श्री की आंखों में अतीत की छाया खोज रही थीं पर वहां बस, वर्तमान की खिलखिलाहट थी. श्री को देखते ही फिर से अतीत के साए बंद आंखों में उभरने लगे है.

श्रीनिवासन और उन का बेटा सुभग कालिज में एकसाथ पढ़ते थे. जाने कब और कैसे दोनों प्यार के बंधन में बंध गए. उन्हें तो पता भी नहीं था कि उन के पुत्र के जीवन में कोई लड़की आ गई है.

सुभग ने बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद प्रशासनिक सेवा का फार्म भर दिया और पढ़ाई में व्यस्त हो गया. सुभग की दादी तब तक जीवित थीं. उन के सपनों में सुभग पूरे ठाटबाट से आने लगा. कहतीं, ‘देखना, कितने बड़ेबड़े घरानों से इस का रिश्ता आएगा. हमारा मानसम्मान और घर सब भर जाएगा.’

उन के सपनों में अपने पोते का भविष्य घूमता रहता. सुभग के पापा तब कहते, ‘अभी तो सुभग ने खाली फार्म भरा है मां, अगर उस का चुनाव हो गया तो कुछ साल ट्रेनिंग में जाएंगे.’

‘अरे तो क्या? बनेगा तो जरूर एक दिन कलेक्टर,’ मांजी अकड़ कर कह देतीं.

श्री के पति ने खापी कर बर्थ पर बिस्तर बिछा लिया था. रजनी ने देखा अपनी गृहस्थी में श्री इतनी अधिक मग्न है कि उस ने एक बार भी रजनी से सुभग के बारे में नहीं पूछा. क्या उसे सुभग के बारे में कुछ भी पता नहीं है. मन ने तर्क किया, वह क्यों सुभग के बारे में जानने की चेष्टा करेगी. जो कुछ हुआ उस में श्री का क्या दोष. आह सी निकल गई. दोष तो दोनों का नहीं था, न श्री का न सुभग का. तो फिर वह सब क्यों हुआ, आखिर क्यों? कौन था उन बातों का उत्तरदायी?

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‘‘बहनजी, बत्ती बुझा दीजिए,’’ एक सहयात्री ने अपनी स्लीपिंग बर्थ पर पसरने से पहले रजनी से कहा.

रजनी को होश आया कि ज्यादातर यात्री अपनीअपनी सीट पर सोने की तैयारी में हैं. वह अनमनी सी उठीं और तकिया निकाल कर बत्ती बुझाते हुए लेट गईं.

हलकीहलकी रोशनी में रजनी ने आंखें बंद कर लीं पर नींद तो कोसों दूर लग रही थी. कई वर्ष लगे थे उन हालात से उबर कर अपने को सहज करने में पर आज फिर एक बार वह दर्द हर अंग से जैसे रिस चला है. यादों की लहरें ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा समुद्र उफन रहा था.

सुभग ने जिस दिन प्रशासनिक अधिकारी का पद संभाला था उसी दिन से मांजी ने शोर मचा दिया. रोज कहतीं, ‘इतने रिश्ते आने लगे हैं हम लड़कियों के चित्र मंगवा लेते हैं. जिस पर सुभग हाथ रख देगा वही लड़की ब्याह लाएंगे.’

सुभग ने भी हंस कर अपनी दादी के कंधे पर झूलते हुए कहा था, ‘सच दादी. फिर वादे से पलट मत जाइएगा.’

‘चल हट.’

घर के आकाश में सतरंगे सपनों का इंद्रधनुष सा सज गया था. खुशियां सब के मन में फूलों सी खिल रही थीं.

पापा ने अपने बेटे के लिए एक बड़ी पार्टी दे रखी थी. उन के बहुत से मित्रों में कई लड़कियां भी थीं. रजनी ने बारबार अनुभव किया कि सुभग के मित्र उसे श्री की ओर संकेत कर के छेड़ रहे थे. सुभग और श्री की मुसकराहट में भी कुछ था जो ध्यान खींच रहा था.

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पार्टी के बाद सुभग उसे घर तक छोड़ने भी गया था. लौटा तो रजनी ने सोचा कि बेटे से श्री के बारे में पूछ कर देखें. पर उस से पहले उस की दादी एक पुलिंदा ले कर आ पहुंचीं.

सुभग ने कहा, ‘दादी, यह मुझे क्यों दिखा रही हैं?’

‘शादी तो तुझे ही करनी है फिर और किसे दिखाएं.’

‘शादी…अभी से…’ सुभग कुछ परेशान हो उठा.

‘शादी का समय और कब आएगा?’ दादी का प्यार सागर का उफान मार रहा था.

‘नहीं, दादी, पहले मुझे सैटल हो जाने दीजिए फिर मैं स्वयं ही…’ वह बात अधूरी छोड़ कर जाने लगा तो दादी ने रोका, ‘हम कुछ नहीं जानते. कुछ तसवीरें पसंद की हैं. तू भी देख लेना फिर उन की कुंडली मंगवा लेंगे.’

‘कुंडली,’ सुभग चौंक कर घूम गया था. जैसेजैसे उस की दादी का उत्साह बढ़ता गया वैसेवैसे सुभग शांत होता गया.

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एक दिन वह अपने मन के सन्नाटे को तोड़ते हुए श्री को ले कर घर आ गया. रजनी चाय बनाने जाने लगीं तो सुभग ने बड़े अधिकार से श्री से कहा, ‘श्री, तुम बना लो चाय.’ तो वह झट से उठ खड़ी हुईं. उस के साथ ही सुभग ने भी उठते हुए कहा, ‘‘इसे रसोई में सब दिखा दूं जरा.’’

उस दिन उस की दादी का ध्यान भी इस ओर गया. श्री के जाने के बाद उन्होंने कहा, ‘शुभी, यह मद्रासी लड़की तेरी दोस्त है या कुछ और भी है?’

वह धीरे से मुसकराया.

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