सुपरस्टार सलमान खान के बिग बौस होस्ट करने की वजह से बिग बौस के हर सिजन की फैन फौलोविंग बहुत ज्यादा होती हैं. साथ ही, अब की बार का सिजन थोडा ‘तेढा’ होने की वजह से और ज्यादा दिलचस्प बन गया हैं. 13वें सीजन में पहले से ज्यादा ट्विस्ट रहें और इस बार चुने गये सेलिब्रिटीज की वजह से भी इस सिजन की लोकप्रियता अधिक बढ़ गयी है.
बिग बौस के 13 प्रतियोगियों की रैंकिंग पर नजर डाले तो, सारे प्रतियोगीयों में सबसे ज्यादा लोकप्रियता टेलिविजन की फेवरेट ‘बहु’ रश्मि देसाई को मिली दिखाई दे रही हैं. बिग बौस शुरू होने से पहले रश्मि के एक्स बौयफ्रेंड अभिनेता सिध्दार्थ शुक्ला नंबर वन स्थान पर थे. सिध्दार्थ को पिछे छोड कर रश्मि अब बिग बौस के 13 कंटेस्टंट्स में अव्वल स्थान पर पहुंच गयी हैं. रश्मि 100 अंकों के साथ चार्ट पर पहले स्थान पर हैं, तो सिद्धार्थ 80.39 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर हैं.
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टेलीविजन सीरियल्स की लोकप्रिय अभिनेत्री दलजीत कौर ने 71.93 अंकों के साथ तिसरा स्थान हासिल किया हैं. तो पारस छाबड़ा 71.64 अंको के साथ चौथे स्थान पर हैं. दलजीत कौर दूसरे सप्ताह में ही बाहर हो गई थीं. लेकिन टेलिविजन की इस लोकप्रिय बहु की पौपुलैरिटी फिर भी बरकरार हैं. पांचवें स्थान पर हैं, बौलीवुड अदाकारा कोएना मित्रा. कोयना ने 69.87 अंक हासिल करके शेफाली बग्गा को पिछे छोड दिया हैं.
बिग बौस की सिजलिंग हौट कंटेस्टंट माहिरा शर्मा 56.49 अंकों के साथ सांतवें स्थान पर हैं. तो, टेलिविजन के लोकप्रिय लेखक सिद्धार्थ डे 52.14 अंकों के साथ आठवें स्थान पर हैं. टेलिविजन के दुनिया के सबसे ज्यादा लोकप्रिय हास्य कलाकार और अभिनेता कृष्णा अभिषेक की बहन अभिनेत्री आरती सिंह बिग बौस का सिजन लांच होते वक्त चौथे स्थान पर थी. लेकिन सिजन शुरू होने के बाद अब वह आंठवें स्थान पर पहुंच गई हैं.
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बिग बौस शो लांच होने से पहले और बाद अभी भी शहनाज गिल दसवें स्थान पर ही बनी हुए हैं. लेकिन देवोलिना भट्टाचार्य के लोकप्रियता में काफी गिरावट देखी गई हैं. लौन्च से पहले पाचवें स्थान पर रही देवोलिना अब ग्यारहवे स्थान तक पहुंच गई हैं. पिछले हफ्ते बिग बौस से बाहर हुए अबु मलिक 12वें स्थान पर हैं. तो कश्मीरी मौडल असीम रियाज़ लोकप्रियता में 13 वे स्थान पर हैं.
यह आंकड़े अमरिका की मीडिया टेक कंपनी स्कोर ट्रेंड्स इंडिया द्वारा प्रमाणित किए गयें हैं. स्कोर ट्रेंड्स के सह-संस्थापक, अश्वनी कौल कहतें हैं, “सलमान खान तो निर्विवाद सुपरस्टार हैं. साथ ही, उनका शो बिग बौस 13 और उनके प्रतियोगी भी काफी लोकप्रिय हैं. शो शुरू होने से पहले हमने मीडिया का विश्लेषण किया. 14 भाषाओं में 600 से अधिक समाचार स्रोतों से डेटा एकत्र किया. इनमें फेसबुक, ट्विटर, प्रिंट प्रकाशन, सोशल मीडिया, वायरल खबरें, और डिजिटल प्लेटफौर्म भी शामिल हैं.”
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अश्वनी कौल आगे कहतें हैं, “हमने यह शो लांच होने के बाद भी उनकी रैंकिंग जांची, और उनकी रैंकिंग में भारी बदलाव भी पाया. कई अत्याधुनिक एल्गोरिदम इस विशाल डेटा की प्रक्रिया में हमें सहायता करते हैं. जिससे बौलीवुड सितारों के स्कोर और रैंकिंग तक हम पहुंच पाते हैं”
लेखिका- किरण डी. कुमार
अब सुशांत बारबार घर जाने की जिद करने लगा. हालांकि उस जैसे मरीज की अस्पताल में ही अच्छी देखभाल हो सकती थी पर पति की इच्छा को देखते हुए नलिनी ने सब को आश्वासन दिया कि वह घर में सुशांत की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ेगी बल्कि घर के माहौल में सुशांत जल्दी ठीक हो जाएगा. अंत में डाक्टरों ने उसे घर ले जाने की इजाजत दे दी.
घर पर सुशांत की देखरेख का सारा जिम्मा नलिनी के सिर पर डाल कर भानुमति बेन तो मुक्त हो गईं. घर पर ही फिजियोेथेरैपी चिकित्सा देने के लिए एक डाक्टर आते.
सुशांत की नौकरी तो छूट गई थी. दोनों भाइयों का कारोबार अच्छा चल रहा था. सुशांत और नलिनी का खर्च भी उन्हें ही वहन करना पड़ रहा था. प्रत्यक्षत: तो कोई कुछ न कहता, पर घर के ऊपरी काम करने के लिए जो महरी आती थी, उसे निकाल दिया गया था. सुशांत को नहलानेधुलाने, खिलानेपिलाने के बाद जो वक्त बचता था, वह नलिनी कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, झाडूपोंछा करने और रसोई का काम करने में बिता देती. वह बेचारी दिन भर घर के कामों में लगी रहती.
मैं कभी उन के घर बैठने जाती तो मुझे नलिनी को देख कर तरस आता कि किस तरह यह समय की मार झेल रही है. दिनभर घर के कामों के साथ अपाहिज पति की देखभाल करती है पर चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आती. मैं कभी आंटीजी से कहती तो वह खीज उठतीं, ‘इस के कर्मों का फल तो सुशांत भुगत रहा है. उस की सेवा कर के यह अपने पूर्व जन्म के पापों का प्रायश्चित्त ही कर रही है,’ मुझे उन की बातों का बुरा जरूर लगता पर मैं सोचती कि सुशांत वक्त के साथ ठीक होगा तो सब के मुंह अपनेआप बंद हो जाएंगे.
फिजियोथेरैपिस्ट और नलिनी की अथक मेहनत से सुशांत अब उठताबैठता, बैसाखी की मदद से चलता. अपने तमाम छोटेमोटे काम वह खुद ही करता. अब नलिनी उसे जयपुर फुट लगवाने की सलाह देने लगी. जब जयपुर फुट की मदद से सुशांत चलने का प्रयास करने लगा तो नलिनी को तो मानो सारे जहान की खुशियां मिल गईं.
एक दिन मैं दोपहर के खाली समय में बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी कि किसी ने दरवाजा खट- खटाया. दरवाजा खोलने पर सामने नलिनी को देख कर मैं खुश हो गई और बोली, ‘आओ, नलिनी, कितने दिनों बाद तुम घर से बाहर निकली हो. मैं कल आशुतोष से तुम्हारी ही बात कर रही थी. किस तरह तुम ने विपरीत परिस्थितियों में हार न मानी. मौत के मुंह से अपने पति को बाहर ले आईं. सच, सारे विश्व में एक हिंदुस्तानी नारी इसलिए ही पतिव्रता मानी जाती होगी.’
‘बस, दीदी, अब मेरी तारीफ करना छोडि़ए, मैं आप को यह बताने आई थी कि सुशांत ने फिर से नौकरी कर ली है. भूकंप में दुर्घटनाग्रस्त होने के पहले सुशांत जिस प्रेस में काम करते थे, उस के मालिक ने उन को फिर से काम पर बुलाया है. सुशांत को पहले भी घर के व्यापार में दिलचस्पी नहीं थी. प्रेस का प्रिय काम पा कर वह खुश हैं.’
‘यह तो बहुत अच्छी बात है, नलिनी…2-3 साल बहुत कष्ट सह लिए तुम ने, अब जल्दी से सुशांत को वह प्यारा तोहफा देने की तैयारी करो जिस के आने से जीवन में बहार आ जाती है. वैसे भी सुशांत को बच्चे बहुत पसंद हैं.’
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मेरे यह कहते ही नलिनी की आंखों में आंसू भर आए, ‘दीदी, पति के जिस प्यार को पाने के लिए मैं ने इतने कष्ट सहे, वह तो आज तक मेरे हिस्से में नहीं आया. सुशांत काफी समय से मुझ से कटेकटे रहते थे. पहले तो मैं समझती थी कि दुर्घटना के कारण उन में बदलाव आया होगा. पर आजकल मुझ से बात करना तो दूर वह मेरी तरफ देखते तक नहीं हैं.
‘कल रात को मैं ने जब उन से इस बेरुखी की वजह पूछी तो वह मुझ पर बिफर उठे कि क्या बात करूं, मैं तुम से? अरे, तुम से शादी कर के तो अब मैं पछता रहा हूं. कैसी मनहूस पत्नी हो तुम? तुम्हारे मांगलिक होने के कारण मेरी तो जान ही जाने वाली थी. वह तो जोशी बाबा की पूजा, अम्मां की मन्नतें, घर वालों का प्यार ही था, जो मैं बच गया.
‘मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. पहली बार पता चला कि सुशांत के दिल में मेरे लिए इतना जहर भरा है. मैं ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की. मैं ने यह भी कहा कि आप तो जन्मकुंडली मांगलिक अमांगलिक यह सब नहीं मानते थे.
‘मेरी बात सुनते ही सुशांत गुस्से में भड़क गए थे कि उसी का तो अंजाम भुगत रहा हूं. अम्मां और पिताजी तो तुम से शादी करने के पक्ष में ही नहीं थे. काश, उस वक्त मैं ने उन का और जोशी बाबा का कहा माना होता तो कम से कम मेरी जान पर तो न बन आती.
‘आप यह क्या कह रहे हैं? 2 साल मैं ने कितने जी जान से आप की सेवा की, इस उम्मीद में कि हम आप के ठीक होने के बाद, अपने प्यार की दुनिया बसाएंगे. अब आप ठीक हो गए तो अंधविश्वास को आधार बना कर मुझ से इतनी नफरत कर रहे हैं? मैं सबकुछ सह सकती हूं, पर आप की नफरत नहीं सह सकती.
‘वह बोले कि नहीं सह सकतीं तो चली जाओ अपने बाप के घर, रोका किस ने है? तुम से जितनी जल्दी पीछा छूटे, उसी में मेरी बेहतरी है और ऐसी क्या सेवा की है तुम ने? जो तुम ने किया है वह तो चंद पैसों के बदले कोई नर्स भी तुम से बेहतर कर सकती थी. यह कह सुशांत बिना कुछ खाए ही काम पर चले गए.’
इतना बता कर नलिनी फूटफूट कर रो पड़ी.
कई बार तो ऐसे वायरस हमारे डिवाइस में आ जाते हैं जिनसे हमारे डिवाइस खराब हो जाते हैं इससे भी ज्यादा खतरनाक ये होता है कि ये वायरस आपके फोन की गोपनीय सामाग्री भी चुरा सकते हैं. ऐसे वायरसों से सावधान रहना चाहिए. इसके अलावा एक और चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है.
भारत को दो बार विश्व खिताब दिलाने वाले देश के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ियों में से एक महेंद्र सिंह धोनी मैकफे की मोस्ट डेंजरस सेलिब्रिटी सूची में पहले स्थान पर हैं. अपने 13वें संस्करण में मैकफे की शोध ने लोकप्रिय सेलिब्रिटीज की पहचान की है, जो सर्वाधिक जोखिमभरे सर्च परिणाम निर्मित करते हैं और जिनसे उनके फैंस को मैलिशियस वेबसाइट्स एवं वाइरस का खतरा रहता है.
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धोनी ने 2011 के विश्व कप में 28 सालों के बाद भारत के सर पर ताज का सेहरा बांधने के लिए टीम का नेतृत्व किया था. धोनी पूरी दुनिया में अपने धैर्य व स्थिर चित्त के लिए मशहूर हैं. उनकी अपार लोकप्रियता ने साइबर अपराधियों को उपभोक्ताओं को मैलिशियस वेबसाइट्स की ओर लुभाने का मौका दे दिया, जो मालवेयर इंस्टॉल कर व्यक्तिगत जानकारी एवं पासवर्ड चुरा सकते हैं.
सूची में दूसरे स्थान पर क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर हैं. सर्वाधिक जोखिमभरे सर्च परिणाम निर्मित करने वाली टॉप-10 हस्तियों में धोनी और सचिन के अलावा महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर, विश्व चैम्पियनशिप जीत चुकीं बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु और पुर्तगाल के महान फुटबाल खिलाड़ी क्रिस्टीयानो रोनाल्डो शामिल हैं.
साथ ही टौप-10 में रियल्टी टीवी शो-बिग बौस के विजेता गौतम गुलाटी, बौलीवुड अभिनेत्री सनी लियोन, पौप आइकौन बादशाह, अभिनेत्री राधिका आप्टे और श्रृद्धा कपूर भी शामिल हैं. मैकफे इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट ऑफ इंजीनियरिंग एवं मैनेजिंग डायरेक्टर वेंकट कृष्णापुर ने कहा, “इंटरनेट की आसान उपलब्धता एवं अनेक कनेक्टेड डिवाईसेस ने यूजर्स को पूरी दुनिया से कंटेंट प्राप्त करना आसान बना दिया है.
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जहां भारत में सब्सक्रिप्शन पर आधारित कंटेंट प्लेटफार्म बढ़ रहे हैं, वहीं नेटिजंस बड़ी स्पोटिर्ंग ईवेंट्स, मूवीज, टीवी शो एवं अपने चहेते सुपरस्टार की इमेजेस के लिए निशुल्क एवं पायरेटेड कंटेंट तलाशते हैं. दुर्भाग्य से उन्हें इस तरह का कंटेंट प्रदान करने वाली मैलिशियस वेबसाइट्स द्वारा उत्पन्न जोखिम का अनुमान नहीं होता.”
उन्होंने आगे कहा, “साइबर अपराधी इस अवसर का लाभ उठाकर उपभोक्ताओं की कमजोरियों पर सेंध लगाते हैं, क्योंकि वो सुविधा के बदले अपनी सुरक्षा से समझौता करते हैं. उपभोक्ताओं के लिए यह जरूरी है कि वो इन जोखिमों को समझें, क्लिक करने से पहले विचार करें और ऐसे संदेहास्पद लिंक्स पर न जाएं, जो उन्हें निशुल्क कंटेंट दिखाने के लिए लुभाता हो. ऐसे में मैकफे ने उपभोक्ताओं को ऑनलाइन सुरक्षित रखने में मदद करने के लिए कुछ सुझाव जारी किए हैं.
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तकनीकि के युग में जहां हम बहुत तेजी से आगे बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन तकनीकि की बारीक जानकारियां हमें नहीं होती जिसकी वजह से हम किसी बड़ी समस्या में फंस सकते हैं. हम अपने मोबाइल में तरह-तरह के मोबाइल एप डाउनलोड करते हैं. इन ऐप्स को जब आप इन्सटॉल करते हैं तो ये आपसे परमिशन मांगते हैं आपके मोबाइल के कॉन्टेक्ट, फोटोज, वीडियो, कैमरा आदि के एक्सेस का. हम आप बड़ी आसानी से उसको ओके कर देते हैं. हम जाने अनजाने में उस ऐप को ये एक्सेस दे देते हैं कि वो हमारी हर चीज को देख सके. इस तरह हम खुद ही अपनी प्राइवेसी को ऐप के हवाले कर देते हैं.
‘‘उस के बारे में क्या कहूं, बेटी. नरेश कभी हमारे महल्ले का हीरा था. आज वह क्या से क्या हो गया है. महल्ले वाले उस की चीखपुकार और गालियों से परेशान हो गए हैं. किसी दिन मारमार कर उस की हड्डीपसली तोड़ देंगे. किसी तरह मैं ने लोगों को रोक रखा है. बात यही नहीं है, बेटी, इस से भी गंभीर है. नरेश ने घर किशोरी महाजन के पास गिरवी रख दिया है,’’ रामप्रसाद उदास स्वर में बोले.
‘‘क्या?’’ अर्चना एकाएक चीख उठी.
मां सूखे पत्ते के समान कांपने लगीं.
‘‘ताऊजी, फिर तो हम कहीं के न रह जाएंगे,’’ अर्चना ने उन की ओर देखा.
‘‘मैं भी बहुत चिंता में हूं. वैसे किशोरी महाजन आदमी बुरा नहीं है. आज मेरे घर आ कर उस ने सारी बात बताई है. कह रहा था कि वह सूद छोड़ देगा. मूल के 25 हजार उसे मिल जाएं तो मकान के कागज वह तुम्हें सौंप देगा.’’
अर्चना की आंखें हैरत से फैल गईं, ‘‘25 हजार?’’
‘‘बहू को तो तुम्हारे दादा ने दिल खोल कर जेवर चढ़ाया था. संकट के समय उन को बचा कर क्या करोगी?’’ ताऊजी ने धीरे से कहा. दुख में भी मनुष्य को कभीकभी हंसी आ जाती है. अर्चना भी हंस पड़ी, ‘‘आप क्या समझते हैं, जेवर अभी तक बचे हुए हैं. शराब की भेंट सब से पहले जेवर ही चढ़े थे, ताऊजी.’’
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‘‘तब कुछ…और?’’
‘‘हमारे घर की सही दशा आप को नहीं मालूम. सबकुछ शराब की अग्नि में भस्म हो चुका है. घर में कुछ भी नहीं बचा है,’’ अर्चना दुखी स्वर में बोली, ‘‘लेकिन ताऊजी, एकसाथ इतनी रकम की जरूरत पिताजी को क्यों आ पड़ी?’’
‘‘शराब के साथसाथ नरेश जुआ भी खेलता है. और मैं क्या बताऊं. देखो, कोशिश करता हूं…शायद कुछ…’’ रामप्रसाद उठ खड़े हुए.
‘‘मुझे मौत क्यों नहीं आती?’’ मां हिचकियां लेले कर रोने लगीं.
‘‘उस से क्या समस्या सुलझ जाएगी?’’
‘‘अब क्या होगा? कहां जाएंगे हम?’’
‘‘कुछ न कुछ तो होगा ही, तुम चिंता न करो,’’ अर्चना ने मां को सांत्वना देते हुए कहा.
कार्यालय में अचानक सरला दीदी अर्चना के पास आ खड़ी हुईं.
‘‘क्या सोच रही हो?’’ वह अर्चना से बहुत स्नेह करती थीं. अकेली थीं और कामकाजी महिलावास में ही रहती थीं.
‘‘मैं बहुत परेशान हूं, दीदी. कैंटीन में चलोगी?’’
‘‘चलो.’’
‘‘आप के कामकाजी महिलावास में जगह मिल जाएगी?’’ अर्चना ने चाय का घूंट भरते हुए पूछा.
‘‘तुम रहोगी?’’
‘‘आशा भी रहेगी मेरे साथ.’’
‘‘फिर तुम्हारी मां का क्या होगा?’’
‘‘मां नानी के पास आश्रम में जा कर रहना चाहती हैं.’’
‘‘फिर…घर?’’
‘‘घर अब है कहां? पिताजी ने 25 हजार में गिरवी रख दिया है. जल्दी ही छोड़ना पड़ेगा.’’
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‘‘शराब की बुराई को सब देख रहे हैं. फिर भी लोगों की इस के प्रति आसक्ति बढ़ती जा रही है,’’ सरला दीदी की आंखें भर आई थीं, ‘‘अर्चना, तुम को आज तक नहीं बताया, लेकिन आज बता रही हूं. मेरा भी एक घर था. एक फूल सी बच्ची थी…’’
‘‘फिर?’’
‘‘इसी शराब की लत लग गई थी मेरे पति को. नशे में धुत एक दिन उस ने बच्ची को पटक कर मार डाला. शराब ने उसे पशु से भी बदतर बना दिया था.’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’
‘‘मैं सीधे पुलिस चौकी गई. पति को गिरफ्तार करवाया, सजा दिलवाई और नौकरी करने यहां चली आई.’’
‘‘हमारा भी घर टूट गया है, दीदी. अब कभी नहीं जुड़ेगा,’’ अर्चना की रुलाई फूट पड़ी.
‘‘समस्या का सामना तो करना ही पड़ेगा. अब यह बताओ कि प्रशांत से और कितने दिन प्रतीक्षा करवाओगी?’’
अर्चना ने सिर झुका लिया, ‘‘अब आप ही सोचिए, इस दशा में मैं…जब तक आशा की कहीं व्यवस्था न कर लूं…’’
‘‘तुम्हारा मतलब है, कोई अच्छी नौकरी या विवाह?’’
‘‘हां, मैं यही सोच रही हूं.’’
ऐसा होगा, यह अर्चना ने नहीं सोचा था. शीघ्र ही बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया था उस के घर में. मां की मृत्यु हो गई थी. वह आशा को ले कर सरला दीदी के कामकाजी महिलावास में चली गई थी. अब समस्या यह थी कि वह क्या करे? आशा का भार उस पर था. उधर प्रशांत को विवाह की जल्दी थी.
एक दिन सरला दीदी समझाने लगीं, ‘‘तुम विवाह कर लो, अर्चना. देखो, कहीं ऐसा न हो कि प्रशांत तुम्हें गलत समझ बैठे.’’
‘‘पर दीदी, आप ही बताइए कि मैं कैसे…’’
‘‘देखो, प्रशांत बड़े उदार विचारों वाला है. तुम खुल कर उस से अपनी समस्या पर बात करो. अगर आशा को वह बोझ समझे तो फिर मैं तो हूं ही. तुम अपना घर बसा लो, आशा की जिम्मेदारी मैं ले लूंगी. मेरा अपना घर उजड़ गया, अब किसी का घर बसते देखती हूं तो बड़ा अच्छा लगता है,’’ सरला दीदी ने ठंडी सांस भरी.
‘‘कितनी देर से खड़ा हूं,’’ हंसते हुए प्रशांत ने कहा.
‘‘आशा को कामकाजी महिलावास पहुंचा कर आई हूं,’’ अर्चना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘चलो, चाय पीते हैं.’’
‘‘आशा तो सरला दीदी की देखरेख में ठीक से है. अब तुम मेरे बारे में भी कुछ सोचो.’’
अर्चना झिझकते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, मैं कह रही थी कि…तुम थोड़ी प्रतीक्षा और…’’
लेकिन प्रशांत ने बीच में ही टोक दिया, ‘‘नहीं भई, अब और प्रतीक्षा मैं नहीं कर सकता. आओ, पार्क में बैठें.’’
‘‘बात यह है कि मेरे वेतन का आधा हिस्सा तो आशा को चला जाएगा.’’
‘‘यह तुम क्या कह रही हो, क्या मुझे इतना लोभी समझ रखा है,’’ प्रशांत ने रोष भरे स्वर में कहा.
‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा नहीं सोचती. पर विवाह से पहले सबकुछ स्पष्ट कर लेना उचित है, जिस से आगे चल कर ये छोटीछोटी बातें दांपत्य जीवन में कटुता न घोल दें,’’ अर्चना ने प्रशांत की आंखों में झांका.
‘‘तुम्हारे अंदर छिपा यह बचपना मुझे बहुत अच्छा लगता है. देखो, आशा के लिए चिंता न करो, वह मेरी भी बहन है. चाहो तो उसे अपने साथ भी रख सकती हो.’’
सुनते ही अर्चना का मन हलका हो गया. वह कृतज्ञताभरी नजरों से प्रशांत को निहारने लगी.
प्रशांत के मातापिता दूर रहते थे, इसलिए कचहरी में विवाह होना तय हुआ. प्रशांत का विचार था कि दोनों बाद में मातापिता से आशीर्वाद ले आएंगे.
रविवार को खरीदारी करने के बाद दोनों एक होटल में जा बैठे.
‘‘तुम बैठो, मैं आर्डर दे कर अभी आया.’’
अर्चना यथास्थान बैठी होटल में आनेजाने वालों को निहारे जा रही थी.
‘‘मैं अपने मनपसंद खाने का आर्डर दे आया हूं. एकदम शाही खाना.’’
‘‘अब थोड़ा हाथ रोक कर खर्च करना सीखो,’’ अर्चना ने मुसकराते हुए डांटा.
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‘‘अच्छाअच्छा, बड़ी बी.’’
बैरे ने ट्रे रखी तो देखते ही अर्चना एकाएक प्रस्तर प्रतिमा बन गई. उस की सांस जैसे गले में अटक गई थी, ‘‘तुम… शराब पीते हो?’’
प्रशांत खुल कर हंसा, ‘‘रोज नहीं भई, कभीकभी. आज बहुत थक गया हूं, इसलिए…’’
अर्चना झटके से उठ खड़ी हुई.
‘‘अर्चना, तुम्हें क्या हो गया है? बैठो तो सही,’’ प्रशांत ने उसे कंधे से पकड़ कर झिंझोड़ा.
परंतु अर्चना बैठती कैसे. एक भयानक काली परछाईं उस की ओर अपने पंजे बढ़ाए चली आ रही थी. उस की आंखों के समक्ष सबकुछ धुंधला सा होने लगा था. कुछ स्मृति चित्र तेजी से उस की नजरों के सामने से गुजर रहे थे- ‘मां पिट रही है. दोनों बहनें पिट रही हैं. घर के बरतन टूट रहे हैं. घर भर में शराब की उलटी की दुर्गंध फैली हुई है. गालियां और चीखपुकार सुन कर पड़ोसी झांक कर तमाशा देख रहे हैं. भय, आतंक और भूख से दोनों बहनें थरथर कांप रही हैं.’
अर्चना अपने जीवन में वह नाटक फिर नहीं देखना चाहती थी, कभी नहीं.
जिंदगी के शेष उजाले को आंचल में समेट कर अर्चना ने दौड़ना आरंभ किया. मेज पर रखा सामान बिखर गया. होटल के लोग अवाक् से उसे देखने लगे. परंतु वह उस भयानक छाया से बहुत दूर भाग जाना चाहती थी, जो उस के पीछेपीछे चीखते हुए दौड़ी आ रही थी.
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बिग बौस सीजन 13 की शुरूआत से ही दर्शकों को लड़ाई झगड़े देखने को मिले और इसका सबसे बड़ा कारण था कि इस सीजन का फिनाले सिर्फ 4 ही हफ्तों में आने वाला है. फिनाले के चलते हर कंटेस्टेंट इसी उम्मीद में लगे हैं कि उन्हें हर हाल में सबको पीछे छोड़ फिनाले तक पहुंचना है. ये बात तो हम सब जानते हैं कि बिग बौस का ऐसा कोई एपिसोड नहीं जाता जब घर में लड़ाई झगड़े देखने को ना मिलें, लेकिन इस बार कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा पर काफी बड़ा बोम्ब गिरा है.
शेफाली ने पूछा पारस से ये सवाल…
दरअसल, बीते एपिसोड में बिग बौस नें सभी घरवालों को एक टास्क दिया था जिसमें कंटेस्टेंट शेफाली बग्गा को एक पत्रकार की भूमिका निभाने को कहा था और शेफाली को सभी घरवालों के इंटरव्यू लेने थे. इसी दौरान जब बारी पारस छाबड़ा की आई तो शेफाली ने पारस पर कड़े सवालों की बारिश कर दी. जब शेफाली नें पारस से पूछा कि वे लड़कियों के पीछे छिपकर क्यों गेम खेल रहे हैं?
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पारस ने बोला लड़कयों के बारे में ये…
इस सवाल का जवाब देते हुए पारस ने लड़कयों के बारे में काफी आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया. पारस के ऐसे शब्दों को सुन शेफाली अपना आपा खो बैठीं और पारस के साख जमकर लड़ाई और बहस की. इसी के चलते खुद को सही साबित करने के चक्कर में पारस छाबड़ा को अब लोगों कि खरी खोटी सुनने को मिल रही है. बिग बौस और खुद पारस के फैंस को पारस की ये हरकत काफी बुरी लगी और अब वे सब पारस छाबड़ा को सोशल मीडिया पर काफी भला बुरा बोल रहे हैं.
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करनवीर बोहरा नें किया ये ट्वीट…
Not impressed with #paraschabra for demeaning the #media in #BB13 media shud shunn him away completely.
Awesome interview by #ShefaliBagga she didn’t care what the HM’s would think in the house.
Watch #thebiggbreakdown of #biggboss13 by #kvandtj https://t.co/OHbeWVURsL
— Karanvir Bohra 🇮🇳 (@KVBohra) October 22, 2019
बीते दिनों पारस छाबड़ा नें मीडिया को लेकर भी काफी बुरा बोला था और पारस कि इन दोनों हरकतें देख और शेफाली की तारीफ करते हुए खुद टेलिविजन इंडस्ट्री के स्टार करनवीर बोहरा नें एक ट्वीट करते हुए लिखा कि,- “Not impressed with Paras Chabra for demeaning the media in BB13 media shud shunn him away completely. Awesome interview by Shefali Bagga. She didn’t care what the HM’s would think in the house.”
चलिए आपको दिखाते हैं फैंस के गुस्से भरे ट्वीट्स जिन्हें पारस छाबड़ा का बिग बौस के घर में ये बिहेवियर बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है.-
#ParasChhabra khud Bola start se ladkio ke sath Hee khelega
khud Akanksha and apne bare me bola,khud apne baaten sabko share kar chuka National TV per!shayad humne yeh sab nahi dekha hoga tabhi to yeh sab baaten hume kal hee pata chali ki wo aisa hai
Thanks 2 #ShefaliBagga
— DskTalks (@Dsk_Talks) October 23, 2019
Paras lies so much .. glad sana is out of his “group”
Mahira had a chance to understand him today too but she dint 🤷🏼♀️— Kishwer M Rai (@KishwerM) October 22, 2019
Paras lies so much .. glad sana is out of his “group”
Mahira had a chance to understand him today too but she dint 🤷🏼♀️— Kishwer M Rai (@KishwerM) October 22, 2019
#ParasChhabra 1 no ka fattu he
Jaise hi #ShefaliBagga ne kha k i want to talk #BiggBoss turant hal milake sortout karne chala gya
Or #SidhartShukla ko jaisa pata chala k “bolne pe aaya to fad dunga n bla bla” to usse kehne chale gya aiysa ku6 bola bhar ka bhar rehne dete#BB13
— kalpesh bhanushali (@kalpesh989899) October 23, 2019
#ParasChhabra jis tarh interview me girls ke bare apni think bta rha h pure india me koi aisa ni bacha hoga jise iski baton se gussa na aaya ho
Aise logon ko sanskari play boy ni balki gali ka awara ladka b ni bol sakte aur sanskar word to isse chhu ke ni nikle #BiggBoss13— Bineet Gupta (@BineetGupta2) October 23, 2019
सवाल-
मैं 34 साल का हूं. मुझे बचपन से ही दोनों आंखों से कम दिखाई देता है. इलाज बताएं?
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जवाब-
कुछ बच्चे दृष्टिहीन या देखने की गंभीर कमी के साथ जन्म लेते?हैं. इस के पीछे कई वजहें हो सकती हैं. इन में आंख के विकास में हुई गड़बड़ी या समय से पहले हुई पैदाइश से संबंधित रेटिनोपैथी जैसी चीजों की वजह से आंखों के ढांचे को हुए नुकसान या संक्रमण या विकास संबंधी समस्या
या आंखों के लिए जिम्मेदार दिमाग के हिस्सों को पहुंचे नुकसान जैसी वजहें भी शामिल हैं. आंखों के किसी अच्छे डाक्टर से मिल कर सलाह लें.
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मुसलिमों की बात करें, तो इस समुदाय में सजायाफ्ता कैदियों का अनुपात 15.8 फीसदी है, जो आबादी में उन की भागीदारी से थोड़ा सा ज्यादा है.
लेकिन विचाराधीन कैदियों में उन का हिस्सा कहीं ज्यादा 20.9 फीसदी है. सारे दोषसिद्ध अपराधियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की आबादी क्रमश: 20.9 फीसदी और 13.7 फीसदी है, जिसे काफी ज्यादा कहा जा सकता है.
अगर भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों की बात करें, तो विचाराधीन कैदियों को उन के कुसूरवार साबित होने से पहले तक बेकुसूर माना जाता है, लेकिन जेल में बंद किए जाने के दौरान उन पर अकसर मानसिक और शारीरिक जुल्म किए जाते हैं और उन्हें जेल में होने वाली हिंसा का सामना करना पड़ता है.
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इन में से कई तो पारिवारिक, आसपड़ोस और समुदाय के रिश्तों के साथसाथ अकसर अपनी आजीविका भी गंवा देते हैं. इस से भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि जेल में बिताया गया समय उन के माथे पर कलंक लगा देता है. यहां तक कि उन के परिवार, सगेसंबंधियों और समुदाय को भी उन की बिना किसी गलती के शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है.
विचाराधीन कैदियों की पहुंच कानूनी प्रतिनिधियों तक काफी कम होती है. कई विचाराधीन कैदी तो काफी गरीब परिवार से होते हैं, जो मामूली अपराधों के आरोपी हैं. अपने अधिकारों की जानकारी न होने और कानूनी मदद तक पहुंच नहीं होने के चलते उन्हें काफी समय तक जेलों में बंद रहना पड़ रहा है.
पैसे और मजबूत सपोर्ट सिस्टम की कमी और जेल परिसर में वकीलों से बातचीत करने की ज्यादा क्षमता न होने के चलते अदालत में अपना बचाव करने की उन की ताकत कम हो जाती है.
ये हालात सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले के बावजूद हैं, जिस में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 21 बंदियों को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के तहत निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई का अधिकार देता है.
साल 2005 से प्रभाव में आने वाले अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अनुच्छेद 436 (ए) के प्रावधानों के बावजूद विचाराधीन कैदियों को अकसर अपनी जिंदगी के कई साल सलाखों के पीछे गुजारने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
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इस अनुच्छेद के मुताबिक, अगर किसी विचाराधीन कैदी को उस पर लगे आरोपों के लिए तय अधिकतम कारावास की सजा के आधे समय के लिए जेल में बंद रखा जा चुका है, तो उसे निजी मुचलके पर जमानत के साथ या बिना जमानत के रिहा किया जा सकता है.
यह अनुच्छेद उन आरोपियों पर लागू नहीं होता, जिन्हें मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है. लेकिन जैसा कि प्रिजन स्टैटिस्टिक्स, 2014 दिखाता है, किसी अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता के तहत आरोपित 39 फीसदी विचाराधीन कैदियों को आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा नहीं दी जा सकती थी.
जेलों में अफसरों की 33 फीसदी सीटें खाली पड़ी हैं और सुपरवाइजिंग अफसरों की 36 फीसदी रिक्तियां नहीं भरी गई हैं. मुलाजिमों की भीषण कमी के मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल देश में तीसरे नंबर पर है. इस जेल के भीतर बहाल मुलाजिमों की तादाद जरूरत से तकरीबन 50 फीसदी कम है.
औरत कैदी, मासूम बच्चे
भारत की जेलों में विचाराधीन कैदियों में एक बड़ा तबका औरतों का भी है. वे औरतें जेलों में अकेली नहीं हैं. उन के साथ उन के बच्चे भी इस यातना के बीच पलबढ़ रहे हैं. बात सिर्फ जेल में बंद होने भर की नहीं होती.
पहली नजर में छोटी उम्र के बच्चों का कुसूर सिर्फ इतना है कि उन्हें पता ही नहीं कि उन की मां कुसूरवार है भी या नहीं. इन जेलों में बंद औरतों की सेहत का मुद्दा भी किसी अस्पृश्य विषय की तरह सा लगने लगता है. आखिर वे ‘विचाराधीन’ जो हैं.
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सुबह के 9 बज रहे हैं. नन्हेमुन्ने बच्चों की यह जमात यूनीफौर्म पहने जगदलपुर केंद्रीय कारागार से कतार में निकल रही है. अपनेअपने बस्ते पीठ पर टांगे हुए पास के ही सरकारी स्कूल की तरफ इन का रुख है. वैसे तो ये जेल के बाशिंदे हैं, लेकिन ये यहां सजा नहीं काट रहे हैं. चूंकि ये छोटे हैं, इसलिए ये अपनी माताओं के साथ जेल में रह रहे हैं.
अफसर बताते हैं कि इन में से कुछ बच्चों का जन्म जेल में ही हुआ है. यहां 97 औरत कैदी हैं, जिन में से महज 29 विचाराधीन हैं, जबकि बाकी वे हैं जो सजायाफ्ता हैं या फिर विशेष सुरक्षा अधिनियम के तहत बंद हैं.
इन औरत कैदियों के साथ रह रहे 12 बच्चे, अब जेल प्रशासन की ही जिम्मेदारी हैं. इन के रहने, खानेपीने, पढ़ाईलिखाई और सेहत का इंतजाम जेल प्रशासन को ही करना पड़ता है.
जेल के अफसर कहते हैं कि जिन बच्चों की उम्र 6 साल से ऊपर है, उन्हें सरकारी स्कूल के छात्रावास में रखा गया है, जबकि छोटे बच्चे अपनी माताओं के साथ औरतों के वार्ड में ही रह रहे हैं.शशिकला पिछले 6 महीनों से जगदलपुर की जेल में बंद है. उस पर अपने ही पति की हत्या का मामला चल रहा है. लेकिन इस दौरान उस को किसी भी तरह की न्यायिक मदद नहीं मिल पाई है.
इस की वजह वह बताती है कि उस का इस दुनिया में कोई नहीं है. उस की कोई औलाद भी नहीं है. उस से जेल में मिलने भी कोई नहीं आता है. उस का कहना है कि वह अब तक अपने लिए कोई वकील तक नहीं कर पाई है.
आंकड़ों के अनुसार 1,603 औरतें अपने बच्चों के साथ जेलों में हैं. इन के बच्चों की तादाद 1,933 है.
जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी के ‘सरोजनी नायडू फौर वुमन स्टडीज’ की कानून विशेषज्ञ तरन्नुम सिद्दीकी कहती हैं कि औरतों में तालीम की कमी उन के जेल जाने की सब से बड़ी वजह है. वे मर्दवादी सोच को ही औरतों के खिलाफ दर्ज मामलों की अहम वजह मानती हैं.
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उन का कहना है कि पुलिस में औरतों की तादाद काफी कम है. पुलिस कई बार अपनी इस सोच की वजह से औरतों को उठा कर जेलों में डाल देती है और वहां उन का शोषण भी किया जाता है.
हालांकि, सैंट्रल जेलों के हालात थोड़े बेहतर हैं, लेकिन कई जेलें ऐसी हैं जहां औरत कैदियों को खराब हालत में रखा गया है, जिस से सेहत को ले कर उन्हें काफी सारी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. कई जेलों में तो उन्हें दूसरी रोजमर्रा की चीजें भी नहीं मिल पाती हैं. उपजेलों या जिला जेलों में बंद ऐसे कैदियों का हाल ज्यादा खराब है.
देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली की जेलें सब से ज्यादा भरी हुई हैं और इन में जेल सिक्योरिटी वालों और सीनियर सुपरवाइजरी मुलाजिमों की भारी किल्लत है. उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों की जेलों में सिक्योरिटी वालों के नाम पर सब से कम लोग तैनात हैं. यहां जेलरों, जेल सिक्योरिटी और सुपरवाइजर लैवल पर 65 फीसदी से ज्यादा रिक्तियां हैं.
जेल मुलाजिमों की भारी कमी और जेलों पर क्षमता से ज्यादा बो झ, जेलों के भीतर बड़े पैमाने पर हिंसा और दूसरी आपराधिक गतिविधियों जैसी कई
वजहें कैदियों का फरार होना बनती हैं. अलगअलग घटनाओं में साल 2015 में पंजाब में 32 कैदी जेलों से फरार हो गए, जबकि राजस्थान में ऐसे मामलों की तादाद बढ़ कर 18 हो गई. महाराष्ट्र में 18 कैदी फरार होने में कामयाब रहे.
साल 2015 में हर रोज औसतन 4 कैदियों की मौत हुई. कुलमिला कर 1,584 कैदियों की जेल में मौत हो गई. इन में 1,469 मौतें स्वाभाविक थीं, जबकि बाकी मौतों के पीछे अस्वाभाविक वजह का हाथ माना गया.
अस्वाभाविक मौतों में दोतिहाई यानी 77 खुदकुशी के मामले थे, जबकि 11 की हत्याएं साथी कैदियों द्वारा कर दी गईं. इन में से 9 दिल्ली की जेलों में थे. साल 2001 से साल 2010 के बीच 12,727 लोगों की जेलों के भीतर मौत होने की जानकारी है.
अगर कोई पेशेवर सरगना या कोई सफेदपोश अपराधी जेल के अफसर की मुट्ठी गरम करने को तैयार है, तो वह जेल परिसर के भीतर मोबाइल, शराब और हथियार तक रख सकता है, जबकि दूसरी तरफ सामाजिक व माली तौर पर पिछड़े हुए विचाराधीन कैदियों को सरकारी तंत्र द्वारा उन की बुनियादी गरिमा से भी वंचित रखा जा सकता है, इसलिए इस में कोई हैरानी की बात नहीं कि जेल महकमा देश के उन कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों की पसंद रहा है, जिन के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं.
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मजबूत ह्विसिल ब्लोवर प्रोटैक्शन ऐक्ट की गैरमौजूदगी और जेलों पर जरूरत से ज्यादा बो झ और मुलाजिमों की भारी कमी के चलते भारतीय जेलें राजनीतिक रसूख वाले अपराधियों के लिए एक आरामगाह और कमजोर विचाराधीन कैदियों के लिए नरक के समान बनी रहेंगी. मीडिया में कभीकभार मचने वाले शोरशराबे का इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
लेखिका- किरण डी. कुमार
जेठानियां तो पहले से ही नलिनी से मन ही मन जलती थीं, पर भानुमति बेन को भी जेठानियों के सुर में बोलते हुए देख कर मुझे बड़ी हैरत हुई. वह बोलीं, ‘सुशांत नलिनी को अपनी पसंद से ब्याह कर लाया था. शादी से पहले दोनों की कुंडलियां मिलाई गईं तो पाया गया कि नलिनी मांगलिक है. हम ने सुशांत को बहुत समझाया कि नलिनी से विवाह कर के उस का कोई हित न होगा.
पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा कि अगर विवाह करेगा तो केवल नलिनी से वरना किसी से नहीं. अंत में हम ने बेटे की जिद के आगे हार मान ली. 2 साल तक नलिनी की गोद नहीं भरी. पर बाकी सब ठीक था. अब तो सुशांत शारीरिक रूप से अपंग हो गया है. वह कोमा से बाहर आएगा, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है. यह तो पति के लिए अपने साथ दुर्भाग्य ले कर आई है. जोशी बाबा भी यही कह गए हैं.’
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भानुमति बेन के घर में एक जोशी बाबा हर दूसरेतीसरे दिन चक्कर लगाते थे. उन के आते ही सारा घर उन के चारों ओर घूमने लगता. वह किसी की कुंडली देखते, किसी का हाथ. जोशी बाबा का कई परिवारों से संबंध था इसलिए उस के माध्यम से बहुत से सौदे हो जाते थे. जिसे जोशी बाबा ऊपर वाले की कृपा कहने पर अपनी दक्षिणा जरूर वसूलते थे.
नलिनी उन से सदा कतराती थी क्योंकि वह उसे सदा तीखी निगाहों से घूरते थे. दोनों जेठानियों को आशीर्वाद देते समय उन का हाथ कहीं भी फिसल जाए, वे उसे धन्यभाग समझती थीं पर नलिनी ने पहली ही बार में उन की नीयत भांप ली थी. वह हमेशा कटीकटी रहती थी. अब जोशी बाबा हर सुबह पंचामृत ले कर आते थे और डाक्टरों के विरोध के बावजूद एक बूंद सुशांत के मुंह में डाल ही जाते थे.
‘पर आंटीजी, भूकंप में तो जितने आदमियों की जानें गईं, क्या उन सब की बीवियां मांगलिक थीं? फिर अंकल भी तो नहीं रहे, क्या आप की कुंडली में कुछ दोष था? सुशांत फिर से पूर्ववत हो जाएगा, कम से कम मेरा दिल तो यही कहता है,’ मैं ने कहा.
‘बेटी, अंकल के साथ मेरे विवाह को 40 वर्ष से ऊपर हो चुके थे. मेरा और तुम्हारे अंकल का इतना लंबा साथ भी तो रहा है. औरोें के घरों का तो मैं नहीं जानती, पर नलिनी के ग्रह सुशांत पर जरूर भारी पड़े हैं.’
भानुमति बेन को अपनी बातों पर अड़ा जान कर मैं चुप हो गई.
भूकंप की तबाही को 8 महीने बीत चुके थे. एक दिन मेरा बेटा रिंकू बाहर से दौड़ते हुए घर में आया और कहने लगा, ‘मम्मी, सुशांत अंकल को होश आया है. उन के घर के सभी लोग अस्पताल गए हैं.’
रिंकू की बातें सुन कर मैं भी जाने के लिए निकली ही थी कि आशुतोष ने मुझे रोका, ‘पहले, उस के घर वालों को तो मिल लेने दो. कितने अरसे से तरस रहे थे कि सुशांत को होश आ जाए. जब सभी मिल लें, फिर कलपरसों जाना,’ मुझे आशुतोष की बात ठीक लगी.
2 दिन बाद जब मैं अस्पताल पहुंची तो माहौल खुशी का न था. बाकी सब पहले से ज्यादा गमगीन थे. सुशांत होश में तो आया था और घर के सभी लोगों को पहचान भी रहा था पर वह सामान्य रूप से बात करने में और हाथपैर हिलाने में असमर्थ था. उस की देखरेख गुजरात के जानेमाने न्यूरोलोजिस्ट डा. नवीन देसाई कर रहे थे. उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि सिर पर लगी गंभीर चोट के कारण सुशांत धीरेधीरे ही सामान्य हो पाएगा.
नलिनी मुझे देखते ही मेरी ओर लपकी और बोली, ‘दीदी, आप ने जो कहा था अब सच हो गया है. सुशांत ठीक हो रहे हैं.’
‘देखना, सुशांत धीरेधीरे पूरी तरह ठीक हो जाएगा,’ मैं ने उत्तर दिया.
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सुशांत के होश में आने से नलिनी का हौसला बुलंद हो गया था. अस्पताल में नर्सों के होते हुए भी उस ने अपनी खुशी से पति की देखरेख का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया. वह हर रोज उस की दाढ़ी बनाती, कपड़े बदलती. घर के बाकी सदस्य हर दूसरेतीसरे दिन अस्पताल आते और 5-10 मिनट सुशांत का हालचाल पूछने की खानापूर्ति कर के चले जाते.
करीब 2 महीने बाद सुशांत स्पष्ट रूप से बात करने लगा. हिलनेडुलने की आत्मनिर्भरता अब तक उस में नहीं आई थी, लेकिन उसे कुदरती तौर पर ही पता चल गया था कि उस की दाईं टांग घुटने तक आधी काट दी गई थी.
हुआ यों कि एक दिन वह कहने लगा, ‘नलिनी, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है, कि मैं दाएं पैर की उंगलियों को हिला नहीं पा रहा हूं, जरा चादर तो उठाओ, मैं अपना पैर देखना चाहता हूं,’ बेचारी नलिनी क्या जवाब देती, वह सुशांत के आग्रह को टाल गई, तो सुशांत ने पास से गुजरती एक नर्स से अनुरोध कर के चादर हटाई तो अपने कटे हुए पैर को देख कर हतप्रभ रह गया.
उस की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछ कर नलिनी ने उस का हाथ अपने हाथों में ले लिया. डा. देसाई ने सुशांत को समझाया कि किन हालात में उन्हें उस का पैर काटने का निर्णय लेना पड़ा. सुशांत ने ऐसी चुप्पी साध ली कि किसी से बात न करता. मैं ने नलिनी को समझाया, ‘तुम्हीं को धैर्य से काम लेना होगा. वह बच गया. 8 महीने कोमा में रहने के बाद होश में आया है…क्या इतना कम है. अभी तो उसे अपने पिता की मौत का सदमा भी बरदाश्त करना है. तुम्हें हर हाल में उस का साथ निभाना है.’
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घर के अंदर पैर रखते ही अर्चना समझ गई थी कि आज फिर कुछ हंगामा हुआ है. घर में कुछ न कुछ होता ही रहता था, इसलिए वह विचलित नहीं हुई. शांत भाव से उस ने दुपट्टे से मुंह पोंछा और कमरे में आई.
नित्य की भांति मां आंखें बंद कर के लेटी थीं. 15 वर्षीय आशा मुरझाए मुख को ले कर उस के सिरहाने खड़ी थी. छत पर पंखा घूम रहा था, फिर भी बरसात का मौसम होने के कारण उमसभरी गरमी थी. उस पर कमरे की एकमात्र खिड़की बंद होने से अर्चना को घुटन होने लगी. उस ने आशा से पूछा, ‘‘यह खिड़की बंद क्यों है? खोल दे.’’
आशा ने खिड़की खोल दी.
अर्चना मां के पलंग पर बैठ गई, ‘‘कैसी हो, मां?’’
मां की आंखों में आंसू डबडबा आए. वह भरे गले से बोलीं, ‘‘मौत क्या मेरे घर का रास्ता नहीं पहचानती?’’
‘‘मां, हमेशा ऐसी बातें क्यों करती रहती हो,’’ अर्चना ने मां के माथे पर हाथ रख दिया.
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‘‘तुम्हारे लिए बोझ ही तो हूं,’’ मां के आंसू गालों पर ढुलक आए.
‘‘मां, ऐसा क्यों सोचती हो. तुम तो हम दोनों के लिए सुरक्षा हो.’’
‘‘पर बेटी, अब और नहीं सहन होता.’’
‘‘क्या आज भी कुछ हुआ है?’’
‘‘वही पुरानी बात. महीने का आखिर है…जब तक तनख्वाह न मिले, कुछ न कुछ तो होता ही रहता है.’’
‘‘आज क्या हुआ?’’ अर्चना ने भयमिश्रित उत्सुकता से पूछा.
‘‘आराम कर तू, थक कर आई है.’’
अर्चना का मन करता था कि यहां से भाग जाए, पर साहस नहीं होता था. उस के वेतन में परिवार का भरणपोषण संभव नहीं था. ऊपर से मां की दवा इत्यादि में काफी खर्चा हो जाता था.
आशा के हाथ से चाय का प्याला ले कर अर्चना ने पूछा, ‘‘मां की दवा ले आई है न?’’
आशा ने इनकार में सिर हिलाया.
अर्चना के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘क्यों?’’
आशा ने अपना माथा दिखाया, जिस पर गूमड़ निकल आया था. फिर धीरे से बोली, ‘‘पिताजी ने पैसे छीन लिए.’’
‘‘तो आज यह बात हुई है?’’
‘‘अब तो सहन नहीं होता. इस सत्यानासी शराब ने मेरे हंसतेखेलते परिवार को आग की भट्ठी में झोंक दिया है.’’
‘‘तुम्हारे दवा के पैसे शराब पीने के लिए छीन ले गए.’’
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‘‘आशा ने पैसे नहीं दिए तो वह चीखचीख कर गंदी गालियां देने लगे. फिर बेचारी का सिर दीवार में दे मारा.’’
क्रोध से अर्चना की आंखें जलने लगीं, ‘‘हालात सीमा से बाहर होते जा रहे हैं. अब तो कुछ करना ही पड़ेगा.’’
‘‘कुछ नहीं हो सकता, बेटी,’’ मां ने भरे गले से कहा, ‘‘थकी होगी, चाय पी ले.’’
अर्चना ने प्याला उठाया.
मां कुछ क्षण उस की ओर देखने के बाद बोलीं, ‘‘मैं एक बात सोच रही थी… अगर तू माने तो…’’
‘‘कैसी बात, मां?’’
‘‘देख, मैं तो ठीक होने वाली नहीं हूं. आज नहीं तो कल दम तोड़ना ही है. तू आशा को ले कर कामकाजी महिलावास में चली जा.’’
‘‘और तुम? मां, तुम तो पागल हो गई हो. तुम्हें इस अवस्था में यहां छोड़ कर हम कामकाजी महिलावास में चली जाएं. ऐसा सोचना भी नहीं.’’
रात को दोनों बहनें मां के कमरे में ही सोती थीं. कोने वाला कमरा पिता का था. पिता आधी रात को लौटते. कभी खाते, कभी नहीं खाते.
9 बजे सारा काम निबटा कर दोनों बहनें लेट गईं.
‘‘मां, आज बुखार नहीं आया. लगता है, दवा ने काम किया है.’’
‘‘अब और जीने की इच्छा नहीं है, बेटी. तुम दोनों के लिए मैं कुछ भी नहीं कर पाई.’’
‘‘ऐसा क्यों सोचती हो, मां. तुम्हारे प्यार से कितनी शांति मिलती है हम दोनों को.’’
‘‘बेटी, विवाह करने से पहले बस, यही देखना कि लड़का शराब न पीता हो.’’
‘‘मां, पिताजी भी तो पहले नहीं पीते थे.’’
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‘‘वे दिन याद करती हूं तो आंसू नहीं रोक पाती,’’ मां ने गहरी सांस ली, ‘‘कितनी शांति थी तब घर में. आशा तो तेरे 8 वर्ष बाद हुई है. उस को होश आतेआते तो सुख के दिन खो ही गए. पर तुझे तो सब याद होगा?’’
मां के साथसाथ अर्चना भी अतीत में डूब गई. हां, उसे तो सब याद है. 12 वर्ष की आयु तक घर में कितनी संपन्नता थी. सुखी, स्वस्थ मां का चेहरा हर समय ममता से सराबोर रहता था. पिताजी समय पर दफ्तर से लौटते हुए हर रोज फल, मिठाई वगैरह जरूर लाते थे. रात खाने की मेज पर उन के कहकहे गूंजते रहते थे…
अर्चना को याद है, उस दिन पिता अपने कई सहकर्मियों से घिरे घर लौटे थे.
‘भाभी, मुंह मीठा कराइए, नरेशजी अफसर बन गए हैं,’ एकसाथ कई स्वर गूंजे थे.
मानो सारा संसार नाच उठा था. मां का मुख गर्व और खुशी की लालिमा से दमकने लगा था.
मुंह मीठा क्या, मां ने सब को भरपेट नाश्ता कराया था. महल्लेभर में मिठाई बंटवाई और खास लोगों की दावत की. रात को होटल में पिताजी ने अपने सहकर्मियों को खाना खिलाया था. उस दिन ही पहली बार शराब उन के होंठों से लगी थी.
अर्चना ने गहरी सांस ली. कितनी अजीब बात है कि मानवता और नैतिकता को निगल जाने वाली यह सत्यानासी शराब अब समाज के हर वर्ग में एक रिवाज सा बन गई है. फलतेफूलते परिवार देखतेदेखते ही कंगाल हो जाते हैं.
एक दिन महल्ले में प्रवेश करते ही रामप्रसाद ने अर्चना से कहा, ‘‘बेटी, तुम से कुछ कहना है.’’
अर्चना रुक गई, ‘‘कहिए, ताऊजी.’’
‘‘दफ्तर से थकीहारी लौट रही हो, घर जा कर थोड़ा सुस्ता लो. मैं आता हूं.’’
अर्चना के दिलोदिमाग में आशंका के बादल मंडराने लगे. रामप्रसाद बुजुर्ग व्यक्ति थे. हर कोई उन का सम्मान करता था.
चिंता में डूबी वह घर आई. आशा पालक काट रही थी. मां चुपचाप लेटी थीं.
‘‘चाय के साथ परांठे खाओगी, दीदी?’’
‘‘नहीं, बस चाय,’’ अर्चना मां के पास आई, ‘‘कैसी हो, मां?’’
‘‘आज तू इतनी उदास क्यों लग रही है?’’ मां ने चिंतित स्वर में पूछा.
‘‘गली के मोड़ पर ताऊजी मिले थे, कह रहे थे, कुछ बात करने घर आ रहे हैं.’’
मां एकाएक भय से कांप उठीं, ‘‘क्या कहना है?’’
‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा.’’
आशा चाय ले आई. तीनों ने चुपचाप चाय पी ली. फिर अर्चना लेट गई. झपकी आ गई.
आशा ने उसे जगाया, ‘‘दीदी, ताऊजी आए हैं.’’
मां कठिनाई से दीवार का सहारा लिए फर्श पर बैठी थीं. ताऊजी चारपाई पर बैठे हुए थे.
अर्चना को देखते ही बोले, ‘‘आओ बेटी, बैठो.’’
अर्चना उन के पास ही बैठ गई और बोली, ‘‘ताऊजी, क्या पिताजी के बारे में कुछ कहने आए हैं?’’
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