भूपेश बघेल: धान खरीदी का दर्द!

छत्तीसगढ़ में  किसान के लिए धान बेचना एक दर्द, यातना बन गया है, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए धान खरीदी सरदर्द बन चुकी है. सरकार का एक ऐसा कदम, जिसके लिए कहा जा सकता है कि “ना उगलते बने न निगलते बने”. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, यहां  धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर, सरकार बोनस के साथ किया करती थी.

एक उत्सव के रूप में, गांव गांव में किसान खुशहाल दिखाई देते थे.धान मंडियों में किसानों का मेला लगा रहता था. रमन सिंह के समयकाल में  2100 रुपए कुंटल में सरकार धान खरीदी किया करती थी. मगर किसानों को खुश करने के लिए भूपेश बघेल ने एक बड़ा दांव चला कि कांग्रेस सरकार आती है तो 2500 रुपये  क्विंटल धान का दिया जाएगा. और 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी मुद्दे पर भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया. अब स्थितियां बदल रही है भूपेश सरकार के पास किसानों के लिए  25 सौ रुपये  तो है नहीं, हां! आश्वासन का एक बड़ा पिटारा जरूर है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली चुनाव: बहुत हुई विकास की बात, अबकी बार शाहीन बाग… क्या BJP का होगा बेड़ा पार?

इस रिपोर्ट में हम धान खरीदी को लेकर के ग्राउंड की सच्चाई को आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे. हमारे संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों रायपुर, बेमेतरा,  जांजगीर, कोरबा  के किसानों से बातचीत की जिस का सारांश प्रस्तुत है-

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने 

धान खरीदी मामले को लेकर भाजपा कांग्रेस  आमने-सामने है. भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के बयान को लेकर बीजेपी ने बड़ा आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा कि मंत्री अमरजीत भगत का ये कहना कि खरीदी की तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी!कांग्रेस सरकार की किसान विरोधी मानसिकता को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि “पंचायत चुनाव” निपटते कांग्रेस का नकाब उतर गया है. कांग्रेस ने अब अपना असल चेहरा दिखा दिया है. कांग्रेस का यही चरित्र है. बीजेपी लगातार कांग्रेस की मंशा को लेकर सवाल उठाती रही है.

उसेंडी ने कहा कि किसानों को धान ख़रीदी के नाम पर “ख़ून के आँसू” रुलाने वाली सरकार ने धान ख़रीदी की मियाद नहीं बढ़ाने का एलान करके अपने अकर्मण्यता का  परिचय दिया है. भूपेश सरकार द्वारा पहले धान ख़रीदी एक माह विलंब से शुरू की गई और किसानों का पूरा धान 25सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर ख़रीदने से बचने के लिए नित-नए नियमों के तुगलकी फ़रमानों का छल-प्रपंच रचा गया, धान की लिमिट तय करके किसानों को चिंता में डाला, धान का रक़बा घटाने तक का  कृत्य तक किया, ख़रीदी केंद्रों से धान का समय पर उठाव नहीं करके धान ख़रीदी में दिक़्क़तें पैदा कीं और इस तरह पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस साल लाखों मीटरिक टन धान कम ख़रीदा गया.

ये भी पढ़ें- पौलिटिकल राउंडअप : दिल्ली में चुनावी फूहड़ता

भाजपा के एक बड़े नेता शिवरतन शर्मा ने ने कहा कि खाद्य मंत्री का यह एलान किसानों के साथ दग़ाबाज़ी का प्रदेश सरकार द्वारा लिखा गया काला अध्याय है और कांग्रेस को इस दग़ाबाज़ी की समय पर भारी क़ीमत  चुकानी  पड़ेगी.

भाजपा के समय काल में संसदीय सचिव रहे लखन देवांगन कहते हैं  पंचायत चुनावों के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धान ख़रीदी की समय-सीमा बढ़ाने की बात कही थी, तो अब मुख्यमंत्री को यह सफाई देनी ही होगी कि उनके वादे के बावजूद उनकी सरकार के मंत्री किस आधार पर समय-सीमा नहीं बढ़ाने की बात कह रहे हैं?

छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े नेता चाहे वे डॉ रमन सिंह हों अथवा विक्रम उसेंडी सभी एक सुर में भूपेश बघेल सरकार को धान खरीदी के मसले पर घेर चुके हैं. मगर कहते हैं ना सत्ता कठोर होती है वह हाथी की मदमस्त चाल से अपनी ही धुन में चलती है वही सत्य छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है.

किसानों के चेहरे मुरझाए क्यों हैं?

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के दरमियान किसान और आम आदमी जहां प्रसन्न दिखाई देता था वहीं आजकल किसान और गांव के आम आदमी दुखी, पीड़ित दिखाई देते हैं. किसान को पटवारी के यहां, राजस्व निरीक्षक के यहां, तहसीलदार के यहां कई कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. खाद्य अधिकारियों की नकेल कसी हुई है. एसडीएम और कलेक्टर की निगाह एक एक किसान पर लगी हुई है. कहीं कोई किसान पीछे दरवाजे से सरकार को इधर उधर का धान न थमा दे.

ये भी पढ़ें- गंगा यात्रियों को खाना खिलाने का काम करेंगे शिक्षक

किसानों की ऐसी निगरानी की जा रही है, मानो किसान कोई अपराधी हो. एक किसान ने बताया कि स्थिति इतनी बदतर है कि हमारे बच्चों के लिए चॉकलेट खरीदने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं! एक अन्य  किसान के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में धान बिक नहीं पाया तो चुनाव में हम कुछ भी खर्च  नहीं कर पाए. इन्हीं विसंगतियों के बीच धान खरीदी का उपक्रम जारी है. जो मात्र अब 10 दिन बच गया है. मगर बीते दो महीने किसानों के लिए एक त्रासदी, पीड़ा और दर्द छोड़ कर गया है जो शायद किसान कभी नहीं भूल पाएगा.

इस दरमियान छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ की अनेक जिलों में किसानों ने चक्का जाम किया आंदोलन किया मगर सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी .  शायद भूपेश बघेल सरकार यह कहना चाहती है कि हे किसान! अगर पच्चीस सौ रुपये कुंटल में धान बचोगे तो सरकार के नियम कायदे रूपी प्रताड़ना से तो गुज़रना ही होगा. अंतिम  मे यह कि भूपेश बघेल स्वयं को किसान कहते हैं उनसे यही गुजारिश है कि एक  दिन भेष बदलकर किसी अनजान गांव, अनजान किसानों के बीच पहुंच जाएं और उनसे बात कर ले तो सारा सच उनके सामने खुली किताब की तरह होगा.

Valentine से पहले यूं रोमांटिक होंगे कार्तिक-नायरा, ऐसे मनाएंगे शादी की 10th Anniversary

स्टार प्लस (Star Plus) के सबसे पौपुलर और हिट सीरियल्स में से एक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehelata Hai) लंबे समय से दर्शकों का फेवरेट बना हुआ है. साथ ही इस सीरियल में लीड रोल निभाने वाली जोड़ी यानी कि कार्तिक (Mohsin Khan) और नायरा (Shivangi Joshi) भी दर्शकों के दिलों की जान बन चुकी है. इस सीरियल में आए दिन कोई ना कोई नया ट्विस्ट देखने को मिलता है जो इस शो को और ज्यादा इंट्रस्टिंग बनाता है. पिछले कुछ एपिसोड्स में हमने देखा कि काफी कोशिशों के बाद कार्तिक और नायरा का मिलन हो पाया है और वेदिका इन दोनों के रिश्ते से काफी दूर जा चुकी है.

ये भी पढ़ें- त्रिशा के साथ ऐसी हरकत करेंगे लव-कुश, सच्चाई जानकर उड़ जाएंगे नायरा-कार्तिक के होश

शो के सेट से कार्तिक और नायरा की कुछ फोटोज हुईं लीक…

हाल ही में सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के सेट से कार्तिक और नायरा की कुछ फोटोज लीक हुई हैं जिसे देख साफ साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि शो के मेकर्स ने कार्तिक और नायरा की एनिवर्सरी पर दर्शकों के लिए एक कमाल का सर्प्राइज प्लैन किया है. आने वाले एपिसोड्स के अनुसार कार्तिक और नायरा अपना एनिवर्सरी के मौके पर सब कुछ भूल कर एक दूसरे से साथ जी भर कर रोमांस करते दिखाई देंगे.

ये भी पढ़ें- शराब पीते हुए पकड़े गए लव-कुश, नायरा-कार्तिक ऐसे देंगे सजा

जमकर रोमांस करेंगे कार्तिक-नायरा…

 

लीक हुईं कुछ फोटोज देख साफ पता चल रहा है कि कार्तिक और नायरा अपने ही घर की छत पर एक दूसरे के साथ टाइम बिताते नजर आएंगे जिसके चलके दोनों एक दूसरे के साथ जमकर रोमांस भी करेंगे और साथ ही एक दूसरे की बाहों में डांस भी करेंगे.

ये भी पढ़ें- लव कुश की ये सच्चाई जानने के बाद उड़े कार्तिक-नायरा के होश, पढ़ें खबर

दर्शक भी कर रहे थे इस दिन का इंतजार…

कार्तिक और नायरा अपने घर की परेशानियों की वजह से एक दूसरे के साथ रोमांटिक पल नहीं बिता पा रहे थे और इसी को ध्यान में रखते हुए शो के मेकर्स ने कार्तिक और नायरा की एनिवर्सरी मनाने का प्लैन किया और साथ ही दर्शकों को ये सरप्राईज भी देने का सोचा क्योंकि दर्शक भी काफी समय से इंतजार कर रहे थे कि आखिर कब कार्तिक और नायरा अपने घर की परेशानियों को भूल एक दूसरे के साथ रोमांस करते नजर आएंगे.

ये भी पढ़ें- नायरा-कार्तिक के सामने आएगी लव-कुश की सच्चाई, ऐसे लगाएंगे फटकार

‘हैलो कौन’ से चर्चा में आई सोशल मीडिया सनसनी बन रही हैं ये भोजपुरी एक्ट्रेस

सोशल मीडिया में तेजी से सनसनी बनती जा रही भोजपुरी गायिका स्नेह उपाध्याय (Sneh Upadhyay) के सितारे इन दिनों बुलंदी पर हैं. वहीं सोशल मीडिया पर उनके द्वारा शेयर किए जा रहे फोटो ने तो फैन्स को और भी दीवाना बना दिया है. वह आए दिन अपने ग्लैमरस (Glamourous) लुक वाले फोटो अपने फेसबुक (Facebook) और इन्स्टाग्राम (Instagram) अकाउंट पर शेयर करती हुई नजर आती रहती हैं. उनके द्वारा किए गए फोटो पर मिलने वाले लाइक और कमेन्ट को देख कर उनके फैन्स की दीवानगी का अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है.

भोजपुरी सिंगर और अभिनेता रितेश पाण्डेय (Ritesh Pandey) के साथ हाल ही में आये एक गीत “हेलो कौन” (Hello Kaun) को दर्शकों ने इतना पसंद किया की यह वीडियो एलबम यूट्यूब (YouTube) पर सारे रिकौर्ड तोड़ने में कामयाब रही. इस गाने को करीब 2 महीने के भीतर ही यूट्यूब पर 293 मिलियन से भी ज्यादा व्यूज़ मिल चुके हैं. भोजपुरी गायकों में अभी तक जिनके गीतों को यूट्यूब पर सर्वाधिक बार सुना गया है उनमें खेसारी लाल और पवन सिंह का नाम सबसे ऊपर है.

ये भी पढ़ें- इस भोजपुरी फिल्म में देखने को मिलेगा काजल राघवानी और पवन सिंह का जलवा

इन दोनों गायकों में से खेसारी लाल के गीत ‘मिलते मरद हमके भूल गइलू है’ के 32 करोड़ से भी ज्यादा व्यूज हो चुके हैं. लेकिन इसके इतने व्यूज में लगभग 3 साल के करीब का वक्त लगा वहीं पवन सिंह के गाने ‘रात दिया बुता के’ को 30 करोड़ से ज्यादा देखा और सुना गया है उसमें भी काफी वक्त लग गया था. ऐसे में करीब तीन महीने के भीतर ‘हैलो कौन’ को करीब 29 करोड़ बार सुना जा चुका है. जो स्नेह उपाध्याय के लिए बड़ी उपलब्धि है. यह उपलब्धि और भी बढ़ जाती है क्यों की स्नेह और रितेश दोनों भोजपुरी के गायक है इसके बावजूद यह गाना भोजपुरी में न होते हुए रिकौर्ड तोड़ने में कामयाब रहा है.

इस गाने की सफलता का अंदाज हम ऐसे ही लगा सकते हैं क्यों की यह गाना टिक टौक और दूसरे एप के अलावा सोशल मीडिया पर वीडियो बनाने में काफी ट्रेंड कर रहा है. इस गाने को गाने वाले रितेश पाण्डेय भोजपुरी के स्टार तो थे ही लेकिन स्नेह को मिली इस सफलता ने उनको स्टारडम की ओर बढ़ा दिया है. जिसका परिणाम है की दर्शकों और श्रोताओं को उनके गाये गीतों का बेसब्री से इंतजार रहता है.

ये भी पढ़ें- Valentine Week में रिलीज होगी भोजपुरी की ‘लैला-मजनू’, लीड रोल में दिखेंगी अक्षरा सिंह

स्नेह उपाध्याय के गाये गीत “हैलो कौन” का लिंक-

स्नेह उपाध्याय के गाये गीत “छुए लटगेनवां” का लिंक-

स्नेह उपाध्याय के गाये गीत “सजना पटना निकल गया” का लिंक-

स्नेह उपाध्याय के गाये गीत “गोरखपुर के” का लिंक-

स्नेह उपाध्याय के गाये गीत “गमकेलू चमेली नियन” का लिंक-

कालगर्ल के चक्कर में गांव के नौजवान

एक किस्सा हमें यह सबक देने वाला है कि गांवदेहात के पिछड़े तबके के नौजवान कैसे अपने सीधेपन के चलते शहरी कालगर्ल के चक्कर में फंस कर लुटपिट कर खिसियाए से वापस गांव आ जाते हैं और फिर डर और शर्म के मारे किसी से कुछ कह भी नहीं पाते हैं.

इस मामले में भी यही होता, अगर घर वालों ने पैसों का हिसाब नहीं मांगा होता. जब कोई बहाना या जवाब नहीं सूझा तो इन तीनों ने सच उगल देने में ही भलाई समझी, जिस से न केवल इन्हें लूटने वाली कालगर्ल पकड़ी गई, बल्कि उस के साथी लुटेरे भी धर लिए गए.

बात नए साल की पहली तारीख की है, जब पूरी दुनिया ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के जश्न और मस्ती में डूबी थी. दोपहर के वक्त कुछ बूढ़ों ने भोपाल के अयोध्या नगर थाने आ कर अपने बेटों के लुट जाने की रिपोर्ट लिखाई.

ये भी पढ़ें- बदहाल अस्पताल की बलि चढ़े नौनिहाल

दरअसल हुआ यों था कि 3 दिन पहले ही भोपाल के नजदीक सीहोर जिले के गांव श्यामपुर का विष्णु मीणा भोपाल में अपनी कार का टायर बदलवाने आया था. वक्त काटने और कुछ मौजमस्ती की गरज से वह अपने साथ 2 दोस्तों हेम सिंह और उमेश दांगी को भी ले आया था.

साल के आखिर के दिनों में उन तीनों नौजवानों पर भी मौजमस्ती करने का बुखार चढ़ा था. कार के टायर बदलवाने के लिए उन्होंने शोरूम पर कार खड़ी कर दी. उस वक्त विष्णु मीणा की जेब में तकरीबन 80 हजार रुपए नकद रखे थे.

टायर बदलवाने में 2-4 घंटे लगते, इसलिए उन्होंने तय किया कि तब तक आशमा नाम की कालगर्ल के साथ मौजमस्ती करते हैं, जिस में तकरीबन 3-4 हजार रुपए का खर्च आएगा, जो उन लोगों के लिए कोई बड़ी रकम नहीं थी.

विष्णु मीणा और उस के दोनों दोस्तों की गिनती भले ही पिछड़े तबके में होती हो, लेकिन इस तबके के ज्यादातर  लोग पैसे वाले हैं. इन लोगों के पास खेतीकिसानी की खूब जमीनें हैं और ये मेहनत भी खूब करते हैं.

उन्होंने आशमा को फोन किया, तो वह झट से राजी हो गई और अपनी फीस के बाबत भी उस ने ज्यादा नखरे नहीं दिखाए. दिक्कत जगह की थी तो वह भी आशमा ने ही दूर कर दी. मोबाइल फोन पर ही उस ने उन्हें बताया कि वे देवलोक अस्पताल के नजदीक के एक फ्लैट में आ जाएं.

आशमा की हां सुनते ही कड़कड़ाती ठंड में उन नौजवानों के जिस्म गरमा उठे. गदराए बदन की खूबसूरत 22 साला आशमा उन के लिए नई नहीं थी, इसलिए वे बेफिक्र थे कि जब तक शोरूम पर कार के टायर बदलते हैं, तब तक वे आशमा को ड्राइव कर आते हैं.

आशमा का बताया फ्लैट ज्यादा दूर नहीं था. वहां पहुंचते ही उन तीनों ने सुकून की सांस ली, क्योंकि फ्लैट में आशमा अकेली थी और आसपास के लोगों को उन के वहां जाने का कुछ नहीं पता चला था.

ये भी पढ़ें- नकारात्मक विचारों को कहें हमेशा के लिए बाय

उन तीनों का यह सोचना सही निकला कि शहरों में गांवों की तरह कोई अड़ोसपड़ोस में ताकझांक नहीं करता कि कौन किस के यहां क्यों आ रहा है. जैसे ही वे फ्लैट के अंदर पहुंचे, तो आशमा ने जानलेवा मुसकराहट के साथ सैक्सी अदा से दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

आशमा का बस इतना करना काफी था और वे तीनों अपनेअपने तीरके से आशमा को टटोलने लगे.

बात पूरी हो पाती, इस के पहले ही आशमा बोली, ‘‘पहले चाय पी कर तो गरम हो लो. शराब तो तुम लोग पीते नहीं, फिर इतमीनान से गरम और ठंडे होते रहना,’’ इतना कह कर वह चाय बनाने रसोईघर में चली गई. वे तीनों बेचैनी से उस के आने का इंतजार करने लगे.

आशमा रसोईघर से बाहर आती, उस के पहले ही फ्लैट में बिलकुल फिल्मी अंदाज में 3 लोग दाखिल हुए और खुद को सीआईडी पुलिस बताया तो उन तीनों के होश उड़ गए. पुलिस वाले काफी दबंग और रोबीले थे और उन के पास वायरलैस सैट भी था.

एक पुलिस वाले ने कट्टा निकाल कर उन तीनों को हैंड्सअप करवा दिया, तो वे थरथर कांपने लगे. आशमा भी बेबस खड़ी रही.

कुछ देर बाद बात या सौदेबाजी शुरू हुई कि साहब कुछ लेदे कर छोड़ दो तो पुलिस वालों के तेवर कुछ ढीले पड़े, लेकिन उन्होंने उन तीनों की जेबें ढीली करवा लीं. विष्णु मीणा की जेब में रखे नकद 80 हजार रुपए भी उन्हें कम लगे तो उन्होंने 3 हजार रुपए औनलाइन भी योगेंद्र विश्वकर्मा नाम के पुलिस वाले के खाते में ट्रांसफर कराए.

घर लौटे बुद्धू

एकाएक ही टपक पड़े पुलिस वालों के चले जाने के बाद उन तीनों ने राहत की सांस ली और जातेजाते आशमा के भरेपूरे बदन को आह भर कर देखा, जिसे वे सिर्फ टटोल पाए थे, पर लुत्फ नहीं उठा पाए थे.

रास्ते में उन तीनों ने तय किया कि अब गांव जा कर अगर वे सच बताएंगे, तो बदनामी तो होगी ही. साथ ही, ठुकाईपिटाई होगी सो अलग, इसलिए बेहतरी इसी में है कि बात दबा कर रखी जाए.

लेकिन ऐसा हो नहीं पाया, क्योंकि जैसे ही विष्णु मीणा के पिता ने पैसों का हिसाब मांगा तो वह हड़बड़ा गया और सच उगल दिया.

ये भी पढ़ें- शराबखोरी : कौन आबाद कौन बरबाद?

पिता बखूबी समझ गए कि वे तीनों कार्लगर्ल आशमा की साजिश का शिकार हो गए हैं. लिहाजा, उन्होंने भोपाल आ कर थाना इंचार्ज महेंद्र सिंह को सारी बात बता कर इंसाफ की गुहार लगाई.

पुलिस वाले भी समझ गए कि एक बार फिर देहाती लड़के योगेंद्र विश्वकर्मा और आशमा के गिरोह का शिकार हो गए, जो पहले भी एक बार इसी तरह ठगी के मामले में पकड़ा जा चुका है.

उन तीनों के पास सिर्फ आशमा का मोबाइल नंबर था, जिसे ट्रेस कर पुलिस वालों ने पहले आशमा और फिर उस के तीनों साथियों को गिरफ्तार कर सच उगलवा लिया.

एहतियात जरूरी है

भोपाल के नजदीक बैरसिया के एक गांव के 70 साला लल्लन सिंह कुशवाहा (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि अब से तकरीबन 30-40 साल पहले वे भी भोपाल के कोठों पर जाया करते थे, जो पुराने भोपाल और लक्ष्मी सिनेमाघर के आसपास हुआ करते थे. शाम ढलते ही इन कोठों पर मुजरा होता था, जिसे देखने के 20 रुपए लगते थे.

लेकिन जिन्हें रात काटनी होती थी उन्हें 300-400 रुपए देने पड़ते थे, वह भी इन के दलालों की मारफत तब ऐसी ठगी कभीकभार होती थी. दलाल पैसा ले कर छूमंतर हो जाते थे या फिर तवायफ ही जेब का सारा पैसा झटक लेती थी, क्योंकि इन बदनाम इलाकों की पुलिस वालों से मिलीभगत होती थी, इसलिए वह वहां दखल नहीं देती थी.

लल्लन सिंह एक दिलचस्प खुलासा यह भी करते हैं कि तब भी तवायफों के पास जाने वालों में हम पिछड़ों की तादाद ज्यादा हुआ करती थी. दबंग तो अपनी हवेलियों में ही मुजरा करवा लिया करते थे और रात भी रंगीन करते थे. मुसीबत हम पिछड़ों की थी, जिन्हें अपने घरों से महफिल सजाने की इजाजत नहीं थी. यह हक दबंगों को ही था. कोई और महफिल सजाता था, तो इन की शान और रसूख पर बट्टा लगता था, इसलिए ये लोग अकसर मारपीट और हिंसा पर उतर आते थे.

अब पिछड़े नौजवान नई गलती करते हैं, जो विष्णु मीणा, हेम सिंह और उमेश दांगी ने की कि कालगर्ल पर आंखें मूंद कर भरोसा किया. किसी भी अनहोनी से बचना जरूरी है. ऐसी अनहोनी से बचने के लिए जरूरी है कि इस तरह के एहतियात बरते जाएं:

ये भी पढ़ें- बोल्ड अवतार कहां तक सही

* कालगर्ल के पास जाते वक्त ज्यादा नकदी साथ न रखें.

* कालगर्ल पर आंख बंद कर के भरोसा न करें.

* अगर एक से ज्यादा लड़के हों, तो एक लड़का बाहर पहरा दे और कोई गड़बड़झाला दिखे, तो तुरंत साथी को मोबाइल पर खबर करे.

* कालगर्ल के साथ मौजमस्ती के दौरान पुलिस वाले या पुलिस वालों की वरदी में कोई धड़धड़ाता आ जाए तो डरें नहीं, बल्कि उस से सवालजवाब करें और गिरफ्तारी की धौंस से भी न डरें.

* जिस जगह जाना तय हुआ है, उस का एकाध चक्कर पहले से लगा कर मुआयना कर लें.

* मौजमस्ती के दौरान कालगर्ल का मोबाइल बंद करा लें, जिस से वह वीडियो रेकौर्डिंग कर बाद में ब्लैकमेल न कर पाए.

* कमरे की भी तलाशी लें कि कहीं छिपा हुआ कैमरा न लगा हो.

* कालगर्ल ज्यादा जोर दे कर खानेपीने को कहे तो मना कर दें.

* शराब का नशा कर कालगर्ल के पास न जाएं.

* कालगर्ल से मोलभाव करें और पैसा कम होने का रोना रोएं.

* कालगर्ल की बताई जगह के बजाय खुद की जगह पर उसे बुलाएं. जगह का इंतजाम पहले से करें.

* इस के बाद भी ऐसी कोई वारदात हो जाए, जो इन तीनों नौजवानों के साथ हुई तो थाने जाने से हिचकिचाएं नहीं. बदनामी तो हर हाल में होगी या फिर लंबा चूना लगेगा, इसलिए बदनामी से न डरें.

* अगर लुटपिट जाएं और थाने जाने की हिम्मत न पड़े तो दोस्तों और घर वालों की मदद लें. डांटफटकार तो पड़ेगी, लेकिन पैसे वापस मिलने की उम्मीद रहेगी.

वैसे, पहली कोशिश शहरी कालगर्ल से बचने की होनी चाहिए. शहरों में अब इन का कोई भरोसा नहीं रह गया है. ये गिरोह बना कर गांवदेहात के लड़कों का सीधापन देख कर तरहतरह से उन की जेबें ढीली कराने से गुरेज नहीं करतीं, इसलिए इन से परहेज ही करना चाहिए.

ये भी पढ़ें- जवान बेवा: नई जिंदगी की जद्दोजहद

दिल्ली चुनाव: बहुत हुई विकास की बात, अबकी बार शाहीन बाग… क्या BJP का होगा बेड़ा पार?

दिल्ली चुनाव के लिए मतदान होने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा. इन चुनावों में कांग्रेस कहीं भी नजर नहीं आ रही है. लड़ाई आप और बीजेपी के बीच है. इन चुनावों की घोषणा हुई तो लोगों ने कहा कि इस बार तो केजरीवाल ही सरकार बनाएगा. उसके पीछे का कारण है दिल्ली में विकास. सीएम केजरीवाल अब तो मंजे हुए नेता बन गए हैं लेकिन जब वो सीएम के पद पर बैठे थे तब वो राजनीति के दांव-पेंच से वाकिफ़ नहीं थे. फिर भी दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य पर अच्छा काम किया. इसके अलावा 200 यूनिट तक बिजली फ्री और पानी भी फ्री. इससे जनता को बहुत बड़ी राहत मिली. चुनाव आते-आते महिलाओं के लिए डीटीसी बस सेवा को भी मुफ्त कर दिया गया. ये भी सोने पर सुहागा.

इन सब कामों के आगे ‘रिंकिया के पापा’ की एक नहीं चल पा रही. सभी सर्वे एक सुर में यही कह रहे थे कि इस बार भी केजरीवाल को 60 से ऊपर सीटें मिलेंगी. फिर बीजेपी ने अपनाया अपना ब्रम्हास्त्र रूपी राष्ट्रवाद. दिल्ली में बीजेपी 2500 से ज्यादा छोटी बड़ी रैली कर चुकी है. गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली में शाहीन बाग का मसला बार-बार उठा रहे हैं. शाहीन बाग में लोग सीएए-एनआरसी के विरोध में पिछले 50 दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं. बीजेपी ने दिल्ली के चुनाव इसी पर केंद्रित कर दिया है.

ये भी पढ़ें- पौलिटिकल राउंडअप : दिल्ली में चुनावी फूहड़ता

भाजपा की हताशा इसी बात से समझ लीजिए कि अब तक जो पार्टी विकास-विकास का राग अलापती थी वो अब शाहीन बाग-शाहीन बाग चिल्ला रही है. भाजपा ने शाहीन बाग को ही चुनावी मुद्दा बना लिया है और वो काफी हद तक इसमें कामयाब भी होती दिख रही है लेकिन इससे चुनाव जीत लिया जाएगा ये कहना मुश्किल होगा. दिल्ली में भले ही केजरीवाल की सरकार हो लेकिर यहां की पुलिस तो केंद्र सरकार के अंडर में हैं. केंद्र में मोदी सरकार और इस सरकार के गृह मंत्री हैं अमित शाह. शाह खुद कई जगह भाषणों में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को कोसते रहते हैं लेकिन जब यहां की पुलिस आपके अंडर है तो फिर आप क्यों नहीं उठवा देते. लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे.

भाजपा नेता और वित्त राज्य मंत्री ने बयान दिया ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को’. जिसके बाद एक नाबालिग युवक ने उसी दिन गोली चलाई जिसदिन नाथूराम गोडसे ने बापू को गोली मारी थी. गोली मारी गई जामिया के पास. पहले जामिया में गोली चली, फिर शाहीन बाग में और अब फिर से जामिया में. पहले गोली चलाने वाले दोनों ही लड़के कोई पेशेवर अपराधी नहीं हैं. उनके नाम कोई पुराना अपराध का रिकॉर्ड नहीं है. अब दोनों ही अपराधी हैं और भारत के भविष्य भी. एक नाबालिग है जबकि दूसरा भी महज 25 साल का. रविवार रात को हुई तीसरी घटना में उन दो स्कूटी सवारों की तलाश है, जो फायरिंग कर भाग निकले. इस तीसरी घटना को अंजाम देने वालों की सोच भी पहले दो से अलग होगी, ऐसा लगता नहीं.

शाहीन बाग में फायरिंग करने वाला कपिल कहता है कि इस देश में सिर्फ हिन्दुओं की चलेगी, किसी और की नहीं. जामिया में गोली चलाने वाला नाबालिग भगवान राम की भक्ति के लिए नहीं, बल्कि हिंसक भावावेश के साथ ‘जय श्री राम’ के नारे लगाता है. नागरिकता कानून के विरोधियों को गोली मारकर ‘आजाद’ कर देने की बात करता है. ये सब क्यों हो रहा है इसके पीछे महज एक ही कारण है कि इन लोगों के दिलों पर महज नफरत भर दी गई है.

ये भी पढ़ें- गंगा यात्रियों को खाना खिलाने का काम करेगे शिक्षक

फिजूल की बातें हैं. गलत आरोप हैं. जामिया के गोलीबाज को किसी ने कट्टा नहीं थमाया. शाहीन बाग के सिरफिरे को भी किसी ने हथियार नहीं दिया. शरजील को भी किसी राजनीतिक दल ने एएमयू में दिया उसका भाषण लिखकर नहीं दिया. मुंबई के आजाद मैदान में शरजील के समर्थन में नारे किसी राजनीतिक खेमे ने नहीं लगवाए. हमारे राजनीतिक दल और नेता इतनी टुच्ची बातें और काम नहीं करते. वे तो एक साथ लाखों लोगों पर असर डालने वाले प्रपंच करते हैं. फिर उसी असर में कोई शरजील देश विरोधी नारे लगाता है, तो कोई सिरफिरा (वस्तुत: बेचारा) शाहीन बाग या जामिया में कट्टा लहराता है.

अब भाजपा दिल्ली के हर तबके को साधना चाहती है. इसके लिए पार्टी अध्यक्ष ने नेताओं की फौज इकट्ठा कर दी है. इन नेताओं को वहां-वहां भेजा जा रहा है जहां की जनता या तो उनको पहचानती है या फिर उनका क्षेत्रीय या जातीय रिश्ता हो. दिल्ली में बिहार से आए लोगों की संख्या खूब है इसलिए नीतीश कुमार ने यहां की जनता को लुभाया. उसके बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तो हैं हीं स्टार और फायरब्रांड नेता. वो दिल्ली क्या पूरे देश में कहीं भी चुनाव होता है तो बीजेपी उनको भेजती है. दिल्ली में पूर्वांचली और जाटों के बाद दक्षिण भारत के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. तकरीबन 12 लाख मतदाता दक्षिण भारत के बताए जा रहे हैं. ऐसे में इन बिखरे हुए वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने दक्षिण भारत के अपने 42 सांसदों के साथ लगभग 100 बड़े नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है.

ये भी पढ़ें- डर के साए में अवाम

Bigg Boss 13: रातों रात ये कंटेस्टेंट होगा घर से बेघर, पारस की गेम पर पड़ेगा असर

बिग बौस का सीजन 13 (Bigg Boss 13) अब फिनाले (Finale) से ज्यादा दूर नहीं है और जो कि फिनाले नजदीक आ चुका है तो घर के हर सदस्य ने अपनी गेम स्ट्रौंग कर ली है और सभी कंटेस्टेंटस् बिग बौस की ट्रौफी जीतने के लिए सर से एड़ी तक का जोर लगा रहे हैं. कंटेस्टेंट्स के साथ साथ बिग बौस शो के दर्शक भी अपने चहीते कंटेस्टेंट को जितवाने के लिए काफी महनत कर रहे हैं. कोई सोशल मीडियो पर पोस्ट करके अपने फेवरेट कंटेस्टेंट को सपोर्ट कर रहा है तो कोई उनके लिए वोट कर रहा है.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: विकास ने शहनाज के सामने खोली असीम की पोल, गर्लफ्रेंड को लेकर कही ये बात

क्या सच में पारस की वजह से माहिरा पहुंची इतनी आगे…

बिग बौस के घर के अंदर एक शख्स ऐसा है जिसे ज्यादातर ये ताना सुनने को मिलता है कि ‘वे अकेली कुछ भी नहीं है, अगर वो गेम में इस मुकाम तक पहुंची हैं तो सिर्फ कंटेस्टेंट पारस छाबड़ा (Paras Chhabra) की वजह से’. जी हां अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे कि यहां बात और किसी की नहीं बल्कि माहिरा शर्मा (Mahira Sharma) की हो रही है. जब भी उन्हें कोई ये बोलता है कि वे अपनी बात खुद नहीं रख पाती और उनका हर बात पर स्टैंड पारस लेते हैं तो वे गुस्से से आग बबूला हो जाती थीं.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: सलमान के मुंह से निकला शो के विनर का नाम, आप भी सुनकर रह जाएंगे दंग

माहिरा होने वाली हैं घर से बेघर…

पर अब ऐसा लग रहा है कि माहिरा शर्मा बहुत ही जल्द बिग बौस के घर से बेघर होने वाली हैं. खबरों के अनुसार इस हफ्ते मिड वीक इविक्शन (Mid Week Eviction) होने वाला है जिसमें बिग बौस माहिरा शर्मा को घर से बाहर का रास्ता दिखाने वाले हैं. पिछले कुछ समय से ऐसा देखने में आ रहा है कि पारस छाबड़ा और माहिरा शर्मा एक साथ मिलकर गेम खेल रहे हैं और दोनो को किसी और से कोई लेना देना नहीं है. हालांकि पारस और माहिरा के अनुसार वे दोनो सिर्फ अच्छे दोस्त हैं लेकिन दर्शकों के साथ साथ घर के सदस्यों को भी इन दोनो का रिश्ता दोस्ती से बढ़ कर ही लगता है.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: बिग बौस ने खोली इन 2 कंटेस्टेंटस की पोल, पारस-माहिरा का चढ़ा पारा

पारस की मां ने भी दी थी चेतावनी…

देखा जाए तो बिग बौस शो के फैंस बिग बौस के इस फैसले से काफी खुश हैं और साथ उनका कहना ये भी है कि माहिरा को तो पहले ही घर से बाहर कर देना चाहिए था. यहां तक की जब पारस का मां बिग बौस के घर के अंगर आईं थी तब उन्होनें भी पारस को ये चेतावनी (Warning) दी थी कि उन्हें माहिरा के इतना क्लोज़ (Close) नहीं आना चाहिए और अपनी गेम पर ध्यान देना चाहिए.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 13: Weekend Ke Vaar में फूटा सलमान का गुस्सा, सिद्धार्थ-असीम को दिखाया बाहर का रास्ता

अब देखने वाली बात ये होगी माहिरा शर्मा के शो से निकलने के बाद पारस छाबड़ा का क्या हाल होने वाला है और क्या अब पारस अपनी गेम पर ध्यान दे कर फिनाले में पहुंच पाएंगे या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा.

इस भोजपुरी फिल्म में देखने को मिलेगा काजल राघवानी और पवन सिंह का जलवा

भोजपुरी (Bhojpuri) फिल्मों के सलमान खान (Salman Khan) माने जाने वाले मेगास्टार अभिनेता और गायक पवन सिंह (Pawan Singh) अपने सभी फिल्मों में छाप छोड़ने में कामयाब रहते हैं. भोजपुरी फिल्मों में उनके एक्शन (Action) सीन को खूब पसंद किया जाता है. इसी लिए उन्हें अभिनय में एंग्रीयंगमैन (Angry Young Man) का खिताब भी मिला हुआ है. वहीं भोजपुरी में गायन में भी उन्हें सरताज माना जाता है. उनकी पिछली सभी फिल्मों का रिस्पौंस बहुत अच्छा रहा है. भोजपुरी फिल्म वांटेड (Wanted), सत्या (Satya), सरकार राज (Sarkar Raj) जैसी फिल्मों में उनके एक्शन सीन को दर्शक आज भी नहीं भुला पाते हैं.

वहीं फिल्म की एक्ट्रेस काजल राघवानी (Kajal Raghwani) के साथ पवन सिंह की जोड़ी को सबसे हिट जोड़ियों में शामिल किया गया है. काजल राघवानी का पवन सिंह के साथ फिल्माया गया एक गाने का डांस बेहद पापुलर रहा था. ‘छलकत हमरो जवानिया’ गाने पर फिल्माए गए इस जोड़ी के डांस को दर्शकों ने इतना पसंद किया था की यूट्यूब पर इसे 30 करोड़ से ज्यादा बार देखा जा चुका है. वहीं चोलिये में अटकल बा प्राण, आरा होठ्लाली लगवलू, को भी दर्शकों का काफी रिस्पौंस मिला था.

ये भी पढ़ें- 7 फरवरी को प्रदर्शित होगी प्रदीप पाण्डेय चिंटू और अक्षरा सिंह की ये सुपरहिट फिल्म

पवन सिंह की सफल भोजपुरी फिल्मों की कड़ी में एक नाम और जुड़ने जा रहा है जिसका नाम है ‘कइसे हो जाला प्यार’ (Kaise Ho Jaala Pyaar). इस फिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के खूबसूरत लोकेशन में जोर शोर से चल रही है. गीता देवतोष सिने विजन बैनर के तले बन रही इस फिल्म के निर्माता राजीव रंजन सिंह व अमित कुमार सिंह हैं. जबकि फिल्म के निर्देशन का जिम्मा जाने-माने फिल्म निर्देशक जगदीश शर्मा संभाल रहे हैं. फिल्म की मुख्य भूमिका में मेगास्टार पवन सिंह , काजल राघवानी, बृजेश त्रिपाठी, राज प्रेमी, धामा वर्मा, सोनिया मिश्रा, करण सिंह , प्रतिभा सिंह, संजय वर्मा और अमित शुक्ला में नजर आने वाले हैं.

फिल्म से जुड़े अभिनेता धामा वर्मा ने बताया की इस फिल्म में एक्शन किंग पवन सिंह का जबरदस्त अभिनय देखने को मिलेगा. इस फिल्म में सभी कलाकारों का अभिनय खासा रोमांचित करने वाला है. वहीं यह फिल्म पवन सिंह की अब तक आई सारी फिल्मों से काफी अलग हटकर है. जाने माने कैमरामैन देवेन्द्र तिवारी इस फिल्म में फिल्माए जा रहे सीन और लखनऊ के खूबसूरत लोकेशन को बहुत ही उम्दा तरीके से अपने कैमरे मे कैद कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- ‘मेरी होड़ खुद से है’ – सीपी भट्ट

इस फिल्म के निर्देशक जगदीश शर्मा हिंदी फिल्मों के भी सफल निर्देशक माने जाते रहें हैं. उन्होंने हिंदी में अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी की फिल्म सपूत और अनिल कुमार मीनाक्षी शेषाद्री की फिल्म लव मैरिज का भी निर्देशन किया है. फिल्म की पटकथा लिखी है मनोज कुशवाहा ने और प्रोडक्शन इंचार्ज की जिम्मेदारी मिथुन मधुकर निभा रहें हैं.

छलकत हमरो जवनिया गाने का लिंक –

चोलिये में अटकल प्राण गाने का लिंक –

Valentine Week में रिलीज होगी भोजपुरी की ‘लैला-मजनू’, लीड रोल में दिखेंगी अक्षरा सिंह

भोजपुरी फिल्मों के स्टार प्रदीप पाण्डेय चिंटू और अक्षरा सिंह की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘लैला मजनू’ के प्रदर्शन की तारीख घोषित हो चुकी है. इस फिल्म का प्रदर्शन आने वाले शुक्रवार यानी 7 फरवरी को बिहार और झारखण्ड के सिनेमाघरों में भव्य लेवल पर किया जायेगा.

प्रदीप पाण्डेय चिंटू और अक्षरा सिंह के फैन्स को इस फिल्म का बेसब्री से इन्तजार था क्योंकि दर्शकों को विश्वास है की यह फिल्म भोजपुरी में आई फिल्मों में सबसे अलग हट कर होगी. इस इन्तजार का एक कारण अक्षरा सिंह भी है क्योंकि इन दिनों अक्षरा सिंह अपनी बेहतरीन गायकी और ऐक्टिंग के चलते दर्शकों के दिलों पर राज कर रहीं हैं. आये दिन अक्षरा सिंह अपनी बोल्ड और हौट तस्वीरों को सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं. फिल्म से जुड़े लोगों का कहना है की इस फिल्म का हिंदी के ‘लैला मजनू’ फिल्म से कोई लेना देना नही है और इसके गाने भी कर्णप्रिया है. फिल्म का एक गाना भी खूब वायरल हो रहा है ‘पहिले पाण्डेय जी के चुम्मा’ खूब पसंद किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- ‘मेरी होड़ खुद से है’ – सीपी भट्ट

bhojpuri-laila-majnu

फिल्‍म की कहानी दो मजहब के जोड़ों के बीच उपजी प्रेम कहानी पर आधारित है. जिसमें रिक्‍शा चलाने वाले प्रदीप पाण्डेय (मजनू) को मुस्लिम समुदाय के एक हसीन लड़की से प्रेम हो जाता है. यह लड़की कोई और नहीं बल्कि युवा दिलों की धड़कन अक्षरा सिंह हैं जो लैला के रोल में खूब जंच रही हैं.

इस फिल्म के ट्रेलर को देख कर लगता है की इस फिल्म का डायलाग बेहद कसा हुआ है फिल्म का एक डायलौग “लैला को कोई लल्लू नहीं लैला को तो मजनू लेकर जाएगा” खासा पसंद किया जा रहा है. वहीं एक डायलाग यह पैसा भी बड़ी कुत्ती चीज है इंसान को हैवान बना देती है भी दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा रहा है. डायलौग ‘मोहब्‍बत वो सांस है, जो चले तो जिंदगी बन जाती है और रूके तो मौत बन जाती है’ भी दर्शकों को रिझाने में कामयाब होती नजर आ रहा है.

ये भी पढ़ें- भोजपुरी फिल्म “यमदूत” में नजर आने वाले हैं ये बड़े अभिनेता, देखें फोटोज

akshara-singh

इस फिल्म का निर्देशन महमूद आलम नें किया है जब की फिल्म के निर्माता जाने-माने फिल्म मेकर राजकुमार आर पांडेय है. संगीत – राजकुमार आर.पाण्डेय व  प्रमोद गुप्ता का है वहीं गीत लिखा है राजकुमार आर.पाण्डेय, श्याम देहाती, नोशाद खान,आशुतोष नें. फिल्म का संवाद संदीप के. कुशवाहा ने लिखा है और छायांकन- नागेन्द्र कुमार ने किया है.

‘लैला मजनू’ फिल्म का ट्रेलर लिंक- 

पुलिस को फटकार

दिल्ली की जिला अदालत ने भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर को जमानत पर रिहा करने का आदेश तो दिया पर जो फटकार पुलिस को लगाई वह मजेदार है. आजकल पुलिस की आदत बन गई है कि किसी पर भी शांति भंग करने, देशद्रोह, भावनाएं भड़काने का आरोप लगा दो और जेल में बंद कर दो. आमतौर पर मजिस्ट्रेट पुलिस की बात बिना नानुकर किए मान जाते हैं और कुछ दिन ऐसे जने को जेल में यातना सहनी ही पड़ती है.

जिला न्यायाधीश कामिनी लाऊ ने पुलिस के वकील से पूछा कि क्या जामा मसजिद के पास धरना देना गुनाह है? क्या धारा 144 जब मरजी लगाई जा सकती है और जिसे जब मरजी जितने दिन के लिए चाहो गिरफ्तार कर सकते हो? क्या ह्वाट्सएप पर किसी आंदोलन के लिए बुलाना अपराध हो गया है? क्या यह संविधान के खिलाफ है? क्या बिना सुबूत कहा जा सकता है कि कोई भड़काऊ भाषण दे रहा था? पुलिस के वकील के पास कोई जवाब न था.

दलितों के नेता चंद्रशेखर से भाजपा सरकार बुरी तरह भयभीत है. डरती तो मायावती भी हैं कि कहीं वह दलित वोटर न ले जाए. छैलछबीले ढंग से रहने वाला चंद्रशेखर दलित युवाओं में पसंद किया जाता है और भाजपा की आंखों की किरकिरी बना हुआ है. वे उसे बंद रखना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- फेल हुए मोदी

सहारनपुर का चंद्रशेखर धड़कौली गांव के चमार घर में पैदा हुआ था और ठाकुरों के एक कालेज में छुटमलपुर में पढ़ा था. कालेज में ही उस की ठाकुर छात्रों से मुठभेड़ होने लगी और दोनों दुश्मन बन गए. जून, 2017 में उसे उत्तर प्रदेश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और महीनों तक बेबात में जेल में रखा और कानूनी दांवपेंचों में उलझाए रखा. कांग्रेस ने उसे सपोर्ट दी है और प्रियंका गांधी उस से मिली भी थीं, जब वह जेल के अस्पताल में था. उसे बहुत देर बाद रिहा किया गया था और फिर नागरिक कानून पर हल्ले में पकड़ा गया था.

पुलिस का जिस तरह दलितों और पिछड़ों को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, यह कोई नया नहीं है. हार्दिक पटेल भी इसी तरह गुजरात में महीनों जेल में रहा था. नागरिकता संशोधन कानून के बारे में सरकार ने मुसलिमों के साथ चंद्रशेखर की तरह बरताव की तैयारी कर रखी थी, पर जब असल में हिंदू ही इस के खिलाफ खड़े हो गए और दलितपिछड़ों को लगने लगा कि यह तो संविधान को कचरे की पेटी में डालने का पहला कदम है तो वे उठ खड़े हुए हैं. चंद्रशेखर को पकड़ कर महीनों सड़ाना टैस्ट केस था. फिलहाल उसे जमानत मिल गई है, पर कब उत्तर प्रदेश या कहीं और की पुलिस उस के खिलाफ नया मामला बना दे, कहा नहीं जा सकता.

सरकारों के खिलाफ जाना आसान नहीं होता.

जब पूर्व गृह मंत्री व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को 100 दिन जेल में बंद रखा जा सकता है तो छोटे नेताओं को सालों बंद रखने में क्या जाता है. अदालतें भी आमतौर पर पुलिस की मांग के आगे झुक ही जाती हैं.

देश दिवालिएपन की ओर

देश के छोटे व्यापारियों को किस तरह बड़े बैंक, विदेशी पूंजी लगाने वाले, सरकार, धुआंधार इश्तिहारबाजी और आम जनता की बेवकूफी दिवालिएपन की ओर धकेल रही है, ओला टैक्सी सर्विस से साफ है. उबर और ओला 2 ऐसी कंपनियां हैं, जो टैक्सियां सप्लाई करती हैं. कंप्यूटरों पर टिकी ये कंपनियां ग्राहकों को कहीं से भी टैक्सी मंगाने के लिए मोबाइल पर एप देती हैं और इच्छा जाहिर करने के 8-10 मिनट बाद कोई टैक्सी आ जाती है, जिस का नंबर पहले सवारी तक पहुंच जाता है और सवारी का मोबाइल नंबर ड्राइवर के पास.

ये भी पढ़ें- नागरिकता कानून पर बवाल

पर यह सेवा सस्ती नहीं है. बस, मिल जाती है. इस ने कालीपीली टैक्सियों का बाजार लगभग खत्म कर दिया है और आटो सेवाओं को भी धक्का पहुंचाया है. इन्होंने जवान, मोबाइल में डूबे, अच्छे जेबखर्च पाने वालों का दिल जीत लिया है. वे अपनी खुद की बाइक को भूल कर अब ओलाउबर पर नजर रखते हैं.

अब इतनी बड़ी कंपनियां हैं तो इन्हें मोटा मुनाफा हो रहा होगा? नहीं. यही तो छोटे व्यापारियों के लिए आफत है. ओला कंपनी ने 2018-19 में 2,155 करोड़ रुपए का धंधा किया, पर उस को नुकसान जानते हैं कितना है? 1,158 करोड़ रुपए. इतने रुपए का नुकसान करने वाले अच्छेअच्छे धन्ना सेठ दिवालिया हो जाएं पर ओलाउबर ही नहीं अमेजन, फ्लिपकार्ट, बुकिंगडौटकौम, नैटफिलिक्स जैसी कंपनियां भारत में मोटा धंधा कर रही हैं, जबकि भारी नुकसान में चल रही?हैं. उन का मतलब यही है कि भारत के व्यापारियों, धंधे करने वालों, कारीगरों, सेवा देने वालों की कमर इस तरह तोड़ दी जाए कि वे गुलाम से बन जाएं.

ओलाउबर ने शुरूशुरू में ड्राइवरों को मोटी कमीशनें दीं. ज्यादा ट्रिप लगाने पर ज्यादा बोनस दिया. ड्राइवर 30,000-40,000 तक महीना कमाने लगे, पर जैसे ही कालीपीली टैक्सियां बंद हुईं, उन्होंने कमीशन घटा दी. अब 10-12 घंटे काम करने के बाद भी 15,000-16,000 महीना बन जाएं तो बड़ी बात है.

यह गनीमत है कि आटो और ईरिकशा वाले बचे हैं, क्योंकि उस देश में हरेक के पास क्रेडिट कार्ड नहीं है और यहां अभी भी नकदी चलती है. ओलाउबर मोबाइल के बिना चल ही नहीं सकतीं. आटो, ईरिकशा 2 या 4 की जगह 6 या 10 जनों तक बैठा सकते हैं और काफी सस्ते में ले जा सकते है. यही हाल आम किराने की दुकानों का है. जो सस्ता माल, चाहे कम क्वालिटी का हो, हाटबाजार में मिल सकता है वह अमेजन और फ्लिपकार्ट पर नहीं मिल सकता, पर ये अरबों नहीं खरबों का नुकसान कर के छोटे दुकानदारों को सड़क पर ला देना चाहते हैं और सड़कों से अपना आटो और ईरिकशा चलाने वाले लोगों को भगा देना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- शिव सेना का बड़ा कदम

यह अफसोस है कि सरकार गरीबों की न सोच कर मेढकों की तरह छलांग लगाने के चक्कर में देश को साफ पानी तक पहुंचाने की जगह लूट और बेईमानी के गहरे गड्ढे में धकेलने में लग गई है.

पौलिटिकल राउंडअप : दिल्ली में चुनावी फूहड़ता

दिल्ली. फरवरी की 8 तारीख को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे. लिहाजा, दिल्ली चुनावी रंग में रंगने लगी है. इसी सिलसिले में यहां की बड़ी सियासी पार्टियों ने सोशल मीडिया का नए अंदाज में इस्तेमाल किया. किसी ने कार्टून बनाया तो कोई मीम बनाने लगा. बात तीखे, मजेदार और फनी वीडियो तक जा पहुंची.

13 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी हिंदी फिल्म ‘नायक’ का ऐडिट किया गया ऐसा वीडियो सामने ले कर आई जिस में अरविंद केजरीवाल को अमरीश पुरी के रूप में दिखाया गया. इस के जवाब में आम आदमी पार्टी ने फिल्म ‘नायक’ का अपना वीडियो पेश किया, जिस में अरविंद केजरीवाल को ठेकेदारों को फटकार लगाते देखा गया.

वेंकैया का हिंदूवादी बयान

चेन्नई. नागरिकता संशोधन कानून और नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजंस पर पूरे देश के विरोध के साथसाथ सियासी तकरार लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी बीच 12 जनवरी को देश के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने श्री रामकृष्ण मठ द्वारा छपने वाली तमिल मासिक ‘श्री रामकृष्ण विजयम’ के शताब्दी समारोह और स्वामी विवेकानंद जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में कुछ लोगों को हिंदू शब्द से एलर्जी है. हाल?ांकि यह ठीक नहीं है, फिर भी उन्हें इस तरह का नजरिया रखने का हक है.

एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब दूसरे धर्मों की बेइज्जती नहीं है.

ये भी पढ़ें- गंगा यात्रियों को खाना खिलाने का काम करेगे शिक्षक

गरजीं मायूस मायावती

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाश रही बसपा सुप्रीमो मायावती का कभी पूरे प्रदेश में राजकीय उत्सव सा जन्मदिन मनाया जाता था. इस 15 जनवरी को वैसा माहौल तो नहीं दिखा, पर 64 किलो के केक ने सब का ध्यान जरूर खींचा कि हाथी अभी उतना भी कमजोर नहीं हुआ है.

उस दिन मायावती ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करती हैं. साथ ही यह भी कहा, ‘‘आज देश की तकरीबन 130 करोड़ जनता के सामने जो तकलीफें और तनाव खड़े हैं, उन के चलते देश में हर जगह गरीबी और बेरोजगारी फैली हुई है. देश में माली मंदी बीमार हालत में पहुंच गई है. यह भी कड़वा सच है कि देश की जनता ने ऐसी खराब हालत पहले कांग्रेस की सरकार में देखी है.’’

पर सच यह है कि मायावती अब न जाने क्यों सरकार को हाथी पर सवारी देने की तैयारी में लगती हैं.

किताब पर मचा बवाल

मुंबई. भाजपा का एक पैतरा उसी पर तब भारी पड़ गया, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना वाली किताब ‘आज के शिवाजी: नरेंद्र मोदी’ पर पार्टी ने यह कहते हुए दूरी बना ली कि पार्टी का इस पब्लिकेशन से कुछ भी लेनादेना नहीं है और इस किताब में लेखक के अपने ‘निजी विचार’ हैं.

14 जनवरी को भाजपा में मीडिया विभाग के सहइंचार्ज संजय मयूख ने कहा कि किताब के लेखक जय भगवान गोयल, जो भाजपा के एक सदस्य हैं, ने अपनी किताब वापस मंगाने की भी बात कही है.

याद रहे कि जय भगवान गोयल ने भाजपा से जुड़ने से पहले लंबे वक्त तक दिल्ली में शिव सेना के लिए काम किया था और वे कहते हैं कि किताब में जिस हिस्से को ले कर विपक्ष के नेताओं को दिक्कत है, उसे सुधार दिया जाएगा.

ममता बनर्जी का घेराव

कोलकाता. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोहा लेने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने ही राज्य में वामपंथियों से घिर गईं.

ये भी पढ़ें- डर के साए में अवाम

दरअसल, संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ 11 जनवरी को कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की रैली में वामपंथी छात्र कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेरा था, जिस के बाद 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इन में नुकसान पहुंचाने, आपराधिक धमकी देने के साथसाथ गैरजमानती धाराएं भी शामिल थीं और साथ ही, एक जनसेवक को उस की ड्यूटी करने से रोकने का मामला भी शामिल था.

इस के उलट माकपा से जुड़े छात्र संगठन एसएफआई ने आरोप लगाया कि उस ने ममता बनर्जी के खिलाफ इसलिए प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक कर सीएए के खिलाफ लड़ाई कमजोर कर दी थी.

दिग्विजय सिंह की सफाई

भोपाल. भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांग्रेस पार्टी और दिग्विजय सिंह पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस बड़े पैमाने पर इसलामिक उपदेशक जाकिर नाइक की फाउंडेशन से डोनेशन लेती है और उन के बीच हमेशा से ही अच्छे संबंध रहे हैं.

इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सफाई दी कि भाजपा की तरफ से लगाया गया यह आरोप एकदम गलत है. कांग्रेस ने कभी भी आधिकारिक रूप से डाक्टर जाकिर नाइक का समर्थन नहीं किया.

वैसे, दिग्विजय सिंह ने माना कि उन्होंने मुंबई में जाकिर नाइक के मंच से एक सांप्रदायिक सद्भाव सम्मेलन को संबोधित किया था.

लालू की खरीखरी

पटना. जेल में बंद लालू प्रसाद यादव बिहार की प्रदेश सरकार के साथसाथ केंद्र सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. उन्होंने मंगलवार,

14 जनवरी को फिर से बिहार और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि देश में प्यार लगातार घट रहा है, जबकि नफरत बढ़ रही है.

उन्होंने आगे कहा कि आजादी घटी है, जबकि तानाशाही बढ़ी है. विकास घटा विनाश बढ़ा, ईमान घटा बेईमानी बढ़ी काम घटा बेरोजगारी बढ़ी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इस से पहले नीतीश कुमार और भाजपा पर तंज कसते हुए लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट किया था, ‘एक गिरगिटिया दूसरा खिटपिटिया…कुल जोड़ मिला के शासन घटिया.’

ये भी पढ़ें- महाराष्ट्र राजनीति में हो सकता है गठबंधन का नया ‘सूर्योदय’, राज ठाकरे ने बदला झंडा और चिन्ह

पुलिस पदक लिया वापस

श्रीनगर. अर्श से फर्श पर. 15 जनवरी को जम्मूकश्मीर प्रशासन ने आतंकवादियों को जम्मूकश्मीर से बाहर निकलने में पैसे ले कर मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए पुलिस उपाधीक्षक देविंदर सिंह को बहादुरी के लिए दिया गया पुलिस पदक  ‘शेर ए कश्मीर’ वापस ले लिया.

याद रहे कि वहां की पुलिस ने शनिवार, 11 जनवरी को देविंदर सिंह को दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के मीर बाजार में हिजबुल मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किया था.

इसी बीच देविंदर सिंह ने आरोप लगाया था कि पुलिस बल में तैनात एक और बड़ा अफसर आतंकवादियों के लिए काम कर रहा है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें