मलंगः “निराश करती फिल्म”

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः लव रंजन,अंकुर गर्ग,भूषण कुमार,किशन कुमार

निर्देशकः मोहित सूरी

कलाकारः अनिल कपूर,आदित्य रौय कपूर,दिशा पटानी,कुणाल केमू,एवलीन शर्मा व अन्य

अवधिः दो घंटे 14 मिनट

बदला लेने के लिए इंसान किस तरह हिंसात्मक हो सकता है, इसी पर मोहित सूरी रोमांटिक अपराध फिल्म ‘‘मलंग’ ’लेकर आए हैं, जो कि पूरी तरह से निराश करती है.

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कहानीः

अपने माता पिता के संबंधों से परेशान अद्वैत (आदित्य रौय कपूर) मौज मस्ती और सकून के लिए गोवा पहुंचता है, जहां उसकी मुलाकात एक खूबसूरत लड़की सारा (दिशा पाटनी) से होती है.अद्वैत चुप रहने वाला लड़का है, जबकि सारा लंदन से आई एक मस्तमौला लड़की है. सारा पहली बार भारत आयी है और वह तुरंत ही अद्वैत की तरफ आकर्षित हो जाती है. सारा की दोस्ती ड्रग्स के शिकंजे में कैद चैसी (इवलीन) से भी जाती है.

सब कुछ ठीक था लेकिन अचानक ही इनकी जिंदगी में बहुत सारी घटनाएं घटती हैं. उधर 5 साल बाद दो पुलिस औफिसर अंजनी अगाशे (अनिल कपूर) और माइकल रौड्रिक्स (कुणाल खेमू) अद्वैत की तलाश में हैं. पुलिस अफसर अंजनी अगाशे कानून को न मानते हुए अपराधी को अपने तरीके से सजा देने में यकीन करते हैं. जबकि माइकल सब कुछ कानून के दायरे में रहकर करना पसंद करता है. तो वहीं सारा के साथ मिलकर बदला लेने के लिए माइकल सहित चार पुलिस वालों की हत्या करता है.

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लेखन व निर्देशनः

पटकथा के स्तर पर यह अति कमजोर फिल्म है. लार्जर देन लाइफ किरदार परोसने और फिल्म को रहस्यमयी जामा पहनाने के चक्कर में लेखक ने कथा कथन की जिस शैली को अपनाया है, उससे दर्शक कन्फ्यूज होता रहता है. कहानी बार बार वर्तमान से अतीत में जाती है, मगर ऐसा जिस अंदाज में होता है, उससे दर्शक समझ नहीं पाता कि यह हो क्या रहा है? इसके अलावा पति पत्नी के रिश्ते, मर्दांनगी और बदले की भावना के साथ हत्याएं सहित कई चीजों को पेशकर चूंचूं का मुरब्बा बना दिया गया है.

निर्देशक के तौर पर मोहित सूरी की फिल्म पर कोई पकड़ नजर नहीं आती. परिणामतः गोवा और मौरीशस की खूबसूरत लोकेशन भी दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती. फिल्म के संवाद भी घटिया हैं. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ है. इंटरवल से पहले दर्शक सोचता रहता है कि कहां फंस गया. इंटरवल के बाद कहानी कुछ ठीक होती है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो कानून के दायरे से बाहर निकलकर काम करने वाले पुलिस अफसर के किरदार में अनिल कपूर जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. मगर उनकी हंसी उन्हे अति छिछोरा बना देता है. आदित्य रौय कपूर काफी निराश करते हैं. दिशा पटानी केवल खूबसूरत लगी हैं. एवलीन जरुर अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान आकर्षित करती हैं. कुणाल खेमू व अमृता खानविलकर ने ठीक ठाक अभिनय किया है. छोटे किरदार में एवलीन शर्मा अपनी छाप छोड़ जाती हैं.

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फिर होगी कार्तिक-नायरा की दादी से तकरार, त्रिशा बनेगी वजह

स्टार प्लस (Star Plus) के सबसे पौपुलर और हिट सीरियल्स में से एक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehelata Hai) में जब से गोयनका परिवार में लव-कुश (Luv-Kush) की रीएंट्री हुई है तब से शो में कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है जिससे कि कार्तिक (Mohsin Khan) और नायरा (Shivangi Joshi) काफी परेशान हो रहे हैं. दरअसल जब से लव-कुश बोर्डिंग स्कूल (Boarding School) से वापस लौटे हैं तब से वे दोनों कुछ ज्यादा ही बिगड़ गए हैं और ऐसी हरकतें करने लगे हैं जिसे देख ना सिर्फ कार्तिक-नायरा परेशान होते हैं बल्कि दर्शकों के भी होश उड़ जाते हैं.

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गोयनका परिवार में आएगी त्रिशा…

पिछले कुछ एपिसोड्स में हमने देखा कि लव-कुश ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर त्रिशा (Trisha) को मोलेस्ट किया था जिस कारण त्रिशा ने सुसाइड करने का कदम उठाया. कार्तिक-नायरा (Kartik-Naira) ने मिलकर त्रिशा की जान बचाई और अब जब वे ठीक होने जा रही है तो लव-कुश (Luv-Kush) के होश उड़ते दिखाई दे रहे हैं. त्रिशा जैसे ही ठीक होगी तो कार्तिक और नायरा मिलकर उसे गोयनका परिवार में लेकर आने का फैसला करेंगे.

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दादी करेंगी इस बात से इंकार…

आने वाले एपिसोड्स में ऐसा देखने को मिलने वाला है कि जब कार्तिक और नायरा त्रिशा को अपने घर लाने का फैसला करेंगे तो दादी इस फैसले के सख्त खिलाफ होंगी. ऐसे में दादी को लगेगा कि त्रिशा को अपने घर रखने से समाज में उनकी इज्जत पर असर पड़ेगा. लेकिन कार्तिक और नायरा दादी की इस बात को नहीं मानेंगे और वे उनसे कहेंगे कि जब तक वो हैं तब तक त्रिशा कहीं और नही जाएगी.

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गोयनका परिवार में होंगे भरपूर हंगामें…

अब देखने वाली बात ये होगी कि जब कार्तिक और नायरा दादी की बात मानने से इंकार कर देंगे तब गोयनका परिवार में कैसे कैसे हंगामें दर्शकों को देखने को मिलने वाले हैं.

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‘लव आजकल’ से लेकर ‘थप्पड़’ तक, इस महीने धमाल मचाएंगी ये 7 बड़ी फिल्में

फरवरी महीना बौलीवुड फिल्मों के रिलीजिंग के नजरिये से बहुत अहम् रहने वाला है. इस महीने पड़ने वाले शुक्रवार के दिन में दर्जनों फिल्में रिलीज को तैयार हैं. जिसमें से तो कुछ बहु प्रतिक्षित भी हैं जिसका दर्शक बेसब्री से रिलीज का इंतजार कर रहें हैं. यह फिल्में दर्शकों पर अपनी कितनी छाप छोड़ पाएंगी यह तो फिल्मों के रिलीज के बाद ही पता चलेगा. लेकिन यह तय है की शुभमंगल ज्यादा सावधान , लव आज कल, भूत, मलंग जैसी फ़िल्में दर्शकों की भीड़ को सिनेमाहाल तक खींचने में कामयाब रहेंगी. आइये जानते हैं की इस माह कौन सी फिल्में रिलीज होने वाली हैं.

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– मलंगट्रेलर लांच होने के बाद से ही यह फिल्म चर्चा में हैं. इस फिल्म का दर्शक बेसब्री से इंतजार कर रहें हैं. यह फिल्म 7 फरवरी को रिलीज होने जा रही हैं. जिसकी मुख्य भूमिका में अनिल कपूर दिशा पाटनी, कुणाल खेमू और आदित्य राय कपूर है फिल्म के निर्देशक मोहित शूरी हैं .

फिल्म के ट्रेलर का लिंक –

– हैक्ड- यह फिल्म भी 7 फरवरी को रिलीज होने जा रही है. फिल्म की मुख्य भूमिका में हिना खान और रोहन शाह है फिल्म का निर्देशन  विक्रम भट्ट हैं.

फिल्म ट्रेलर का लिंक

– शिकाराइस फिल्म का निर्देशन विधु विनोद चोपड़ा ने किया है. फिल्म की कहानी कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार पर आधारित है. इस फिल्म के सफल होने के अनुमान पहले से लगाए जा रहें हैं.

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फिल्म ट्रेलर लिंक –

– लव आजकल 14 फरवरी को रिलीज हो रही इस इस फिल्म की मुख्य भूमिका में कार्तिक आर्यन, सारा अली खान, रणदीप, अरुषि शर्मा, नजर आने वाले हैं. फिल्म का निर्देशन इम्तियाज अली ने किया है इस फिल्म के निर्मात दिनेश हैं.

मूवी ट्रेलर का लिंक-

– शुभ मंगल ज्यादा सावधान- इस बहु प्रतीक्षित फिल्म के रिलीजिंग की डेट 21 फरवरी तय हुई है फिल्म के निर्देशक हितेश केवल्या हैं. निर्माता आनंद एल राय, भूषण कुमार, कृष्णा कुमार, हिमांशु शर्मा है. फिल्म की मुख्य भूमिका में आयुष्मान खुराना, जीतेन्द्र कुमार, नीना गुप्ता, सुनीता राजवार और मानवी गागरू नजर आएंगी.

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फिल्म ट्रेलर का लिंक

– भूत पार्ट – 1 फरवरी माह के 21 तारीख को रिलीज हो रही इस फिल्म में विक्की कौशल और भूमि पेड्नेकर नजर आयेंगी. फिल्म का निर्देशन भानु प्रताप सिंह ने किया है और निर्माता हीरो यश जौहर, करण जौहर, अपूर्व मेहता और शशांक खेतान हैं.

फिल्म के ट्रेलर का लिंक 

– थप्पड़- तापसी पन्नू अभिनीत यह फिल्म महिला हिंसा पर करारा चोट करने वाली है. फिल्म थप्पड़ का ट्रेलर रिलीज हो हो चुका है . पूरे फिल्म की रिलीजिंग28 फरवरी को होंगी . इस टाइटल की तरह फिल्म की कहानी भी एक थप्पड़ के इर्द-गिर्द घूमती है.

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ट्रेलर लिंक –

बीमा पौलिसी के नाम पर ठगी

8-10  महीने पहले की बात है. जयपुर शहर के उनियारों का रास्ता में रहने वाले नेमीचंद सैन एक दिन अपने घर पर आराम कर रहे थे. दोपहर का समय होने वाला था, वे भोजन करने का मन बना रहे थे. इसी दौरान उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेमीचंद ने मोबाइल का स्विच औन कर के कान पर लगाया और हैलो बोलने ही वाले थे कि दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘हैलो, नेमीचंदजी बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं.’’ नेमीचंद ने सहज भाव से जवाब दिया, लेकिन पूछा भी कि आप कौन बोल रहे हैं? मैं ने आप को पहचाना नहीं.

‘‘नेमीचंदजी, हम दिल्ली से बीमा कंपनी के कस्टमर केयर से बोल रहे हैं.’’ काल करने वाले ने बताया.

‘‘हां, ठीक है, बताइए आप को क्या काम है?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, हम ने इसलिए फोन किया है कि आप को कुछ फायदा हो सके. अगर आप की इच्छा हो तो आगे बात करें.’’ दूसरी ओर से फोन करने वाले ने कहा.

‘‘मेरी समझ में नहीं आया कि तुम कैसे फायदे की बात कर रहे हो?’’ नेमीचंद ने फिर सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, आप के पास बीमा पौलिसी है. बीमा कंपनी तो आप को कुछ देगी नहीं, लेकिन हम आप का फायदा करवा सकते हैं. इस पर आप को अच्छाभला बोनस मिल जाएगा.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘ठीक है, लेकिन अभी मैं कहीं बाहर जा रहा हूं. तुम 1-2 दिन बाद फोन करना.’’ नेमीचंद ने उस समय टालने के लिहाज से कहा.

‘‘ठीक है सर, आप की जैसी इच्छा. हम 1-2 दिन में आप को फिर फोन करेंगे. तब तक आप विचार बना लेना.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कहा. इस के बाद फोन कट गया.

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नेमीचंद हाथमुंह धो कर भोजन करने लगे. भोजन करते हुए उन के मन में फोन करने वाले की बात घूमती रही कि बीमा पौलिसी पर बोनस दिलवा देंगे. नेमीचंद के पास जीवन बीमा पौलिसियां थीं. ये पौलिसियां उन्होंने अपने भविष्य के हिसाब से ले रखी थीं, ताकि जीवन में जरूरत के समय पर पैसा मिल जाए.

मोटे बोनस का लालच दे कर फंसाया नेमीचंद को

उन्हें यह तो पता था कि जब पौलिसी की समयावधि पूरी हो जाएगी तो उन्हें पूरी रकम मिल जाएगी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि पौलिसी पर कोई बोनस भी मिलता है. इसलिए फोन करने वाले ने जब बोनस दिलाने की बात कही तो उन की दिलचस्पी बढ़ गई थी.

इस बात के तीसरे दिन नेमीचंद के मोबाइल पर दिल्ली से फिर फोन आ गया. इस बार एक युवती बोल रही थी. उस ने नेमीचंद से कहा कि साहब 2 दिन पहले हमारी कंपनी के मैनेजर ने आप को फोन कर के बीमा पौलिसी पर बोनस दिलाने की बात बताई थी. उस के बारे में आप ने क्या सोचा है?

‘‘हां, फोन तो आया था लेकिन मैं ने अभी तक कुछ भी नहीं सोचा है. तुम ये बताओ, मुझे करना क्या होगा?’’ नेमीचंद ने उस युवती से सवाल किया.

‘‘पहले आप यह बताइए कि आप के पास कितनी राशि की बीमा पौलिसियां हैं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मेरे पास कोई 10-20 लाख रुपए की पौलिसियां नहीं हैं, मैं तो गरीब आदमी हूं. अपना पेट काट कर बुढ़ापे के लिए 2-3 लाख रुपए की पौलिसियां करवा रखी हैं.’’ नेमीचंद ने कहा साथ ही यह भी पूछा कि इन पर कितना बोनस मिल जाएगा?

‘‘नेमीचंदजी, अगर आप के पास 10 लाख रुपए की पौलिसी होती तो हम आप को करीब 2 लाख रुपए बोनस दिलवा देते. लेकिन आप बता रहे हैं कि 2-3 लाख रुपए की ही पौलिसियां हैं.’’ युवती ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘अगर 3 लाख रुपए की पौलिसी है तो हम आप को 50-60 हजार रुपए बोनस दिलवा देंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं घर में सलाह करने के बाद 1-2 दिन बाद बताऊंगा.’’ कहते हुए नेमीचंद ने फोन काट दिया.

उसी दिन शाम को नेमीचंद ने अपने परिवार वालों से इस मुद्दे पर बात की. परिवार वालों को भी पौलिसियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने कहा कि जैसा आप ठीक समझो, कर लो. इस के 2-3 दिन बाद नेमीचंद के मोबाइल पर दिल्ली से फिर फोन आया. इस बार कोई तीसरा आदमी बोल रहा था. उस ने नेमीचंद से सीधे ही पूछा कि पौलिसी के बारे में आप ने अपने परिवार में बात कर ली होगी. अब आप ने क्या विचार बनाया है?

‘‘विचार तो हम ने बना लिया है, लेकिन मुझे करना क्या होगा?’’ नेमीचंद ने पूछा.

‘‘सर, आप अपनी पौलिसियों के नंबर, कंपनी और उन की मैच्योरिटी डेट बताइए.’’

नेमीचंद ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पौलिसी क्या मैं जेब में रख कर घूमता हूं, जो उन के नंबर और दूसरी चीजें बता दूं.’’

‘‘साहब, नाराज होने की बात नहीं है. मैं 10 मिनट बाद आप को फोन करूंगा. आप तब तक अपनी पौलिसी निकाल लें, फिर मुझे बता देना.’’

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फोन कटने के बाद नेमीचंद ने अलमारी से पौलिसी निकाल कर देखी. इतनी देर में दिल्ली से फिर उसी आदमी का फोन आ गया. उस ने जो बातें पूछीं, वह नेमीचंद ने पौलिसी देख कर बता दीं. फोन करने वाले ने सारी बातें पूछने के बाद कहा, ‘‘नेमीचंदजी, आप को 50 हजार रुपए से ज्यादा बोनस मिल जाएगा, लेकिन इस के लिए पहले आप को कंपनी के खाते में 15 हजार रुपए जमा कराने होंगे.’’

‘‘15 हजार रुपए क्यों?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, बीमा कंपनी वैसे तो पौलिसी होल्डर को सीधे तौर पर कोई बोनस नहीं देती है, लेकिन हम कंपनी के एजेंट हैं. कंपनी हमें बिजनैस प्रमोशन के नाम पर इंसेंटिव देती है. हम उस इंसेंटिव में से आप को बोनस की रकम देंगे. आप जो 15 हजार रुपए देंगे, वह पैसा कंपनी के खाते में ही जमा होगा.’’ फोन करने वाले ने नेमीचंद को संतुष्ट करते हुए कहा.

नेमीचंद को उस की बातें ज्यादा समझ नहीं आईं. फिर भी उन्होंने सोचा कि अगर 15 हजार रुपए दे कर 50 हजार रुपए बोनस मिल जाए तो क्या बुराई है. यही सोच कर उन्होंने फोन करने वाले से पूछा, ‘‘मुझे पैसे कहां जमा कराने होंगे?’’

फोन करने वाले ने नेमीचंद से कहा कि उस के मोबाइल नंबर पर एसएमएस के जरिए एक खाता नंबर भेजा जा रहा है, इसी खाते में पैसे जमा कराने हैं.

इस के बाद फोन कट गया. एक मिनट बाद ही नेमीचंद के मोबाइल पर मैसेज आ गया. मैसेज में एक खाता नंबर लिखा था. नेमीचंद ने वह खाता नंबर एक कागज पर नोट कर लिया. फिर उसे ध्यान आया कि वह पैसे तो भेज देगा, लेकिन बोनस की रकम कब और कैसे मिलेगी? यह बात तो उस ने पूछी ही नहीं.

नेमीचंद ने सोचा कि 1-2 दिन रुक जाता हूं. दोबारा फोन आएगा तो सारी बातें पूछने के बाद ही पैसा भेजूंगा. दिल्ली से फिर 2-3 दिन बाद फोन आ गया. इस बार एक युवती बोल रही थी. युवती ने कहा, ‘‘नेमीचंदजी, आप ने अभी तक कंपनी के खाते में 15 हजार रुपए नहीं भेजे. आप जितनी देर करेंगे, आप के बोनस के भुगतान में उतनी ही देर होती जाएगी. इसलिए आप तुरंत पैसे भेज दीजिए.’’

‘‘अरे भई, पैसे तो मैं आज ही भेज दूंगा, लेकिन यह बताओ कि मुझे बोनस कब और कैसे मिलेगा?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘आप को बोनस एक महीने के अंदर मिल जाएगा. बोनस की रकम सीधे आप के खाते में आएगी. जब चैक तैयार हो जाएगा, तब आप से आप का खाता नंबर पूछेंगे और उसी में रकम ट्रांसफर कर दी जाएगी.’’ युवती ने नेमीचंद की शंका का समाधान कर दिया.

बड़ी ही चालाकी से करते थे ठगी

नेमीचंद ने उसी दिन 15 हजार रुपए उस बैंक खाते में जमा करा दिए. इस के बाद कई दिन गुजर गए. इस बीच न तो नेमीचंद के पास फिर कोई फोन आया और न ही बोनस की रकम उन के खाते में आई.

एक दिन नेमीचंद ने उन नंबरों पर फोन किया, जिन से उस के पास 4-5 बार फोन आए थे. वहां बात हुई तो एक आदमी ने खुद को बिजनैस प्रमोशन मैनेजर बताते हुए कहा कि आप का चैक तैयार हो गया है. आप अपना खाता नंबर बता दीजिए. 2-4 दिन में चैक आप के खाते में जमा हो जाएगा.

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नेमीचंद ने अपना खाता नंबर बता दिया.

2-4 दिन क्या, करीब एक महीना बीत गया लेकिन खाते में कोई पैसा नहीं आया. नेमीचंद ने फिर उन्हीं नंबरों पर फोन किया, लेकिन इस बार उसे कोई रिस्पौंस नहीं मिला. नेमीचंद को मामला गड़बड़ नजर आया. उस ने अपने परिचितों से बात की तो लोगों ने ठगी की आशंका जताते हुए उसे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

नेमीचंद ने 15 सितंबर, 2017 को जयपुर कमिश्नरेट के नाहरगढ़ रोड थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने 420 व 406 आईपीसी में मामला दर्ज कर लिया. जयपुर कमिश्नरेट के विभिन्न पुलिस थानों में इस से पहले भी बीमा पौलिसी के नाम पर ठगी के कई मुकदमे दर्ज हुए थे.

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने साइबर अपराधों के ऐसे मामलों का खुलासा करने के लिए एडीशनल पुलिस कमिश्नर (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन व डीसीपी (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया. इस में क्राइम ब्रांच की संगठित अपराध शाखा के एसीपी राजवीर सिंह तथा सबइंसपेक्टर मनोज कुमार व तकनीकी शाखा के कर्मचारियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने कई दिनों की लंबी जांचपड़ताल में पता लगाया कि अभियुक्त संगठित रूप से कालसेंटर की आड़ में अपराधों को अंजाम दे रहे हैं. यह बात भी पता चली कि अभियुक्त सफेदपोश बन कर अलगअलग कंपनियों की आड़ में उत्तर प्रदेश के नोएडा में कालसेंटर चलाते हैं और धोखाधड़ी के जरिए लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी कर रहे हैं.

एसीपी राजवीर सिंह के नेतृत्व में जयपुर पुलिस की टीम 9 अक्तूबर को नोएडा पहुंची. नोएडा पुलिस को सूचना दे कर जयपुर पुलिस की टीम ने सैक्टर-2 के मकान नंबर ए-23 पर दबिश दी. इस मकान में डेस्टिमनी सिक्योरिटी प्राइवेट लिमिटेड, एचडीएफसी तथा भारती एक्सा के नाम से कंपनियां चल रही थीं. कालसेंटर भी इसी मकान में चल रहा था. पुलिस इस कालसेंटर को देख कर चौंक गई. इस कालसेंटर में 150 से अधिक युवकयुवतियां काम करते थे.

देश के हर राज्य में फैला था ठगों का नेटवर्क

यहां से पुलिस ने एक युवती सहित 9 लोगों को गिरफ्तार किया. इन में दिलशाद गार्डन, सीमापुरी, दिल्ली निवासी नेहा त्यागी, टीम लीडर हरमपुर, लोनी, गाजियाबाद निवासी गौरव त्यागी, गाजियाबाद के मुरादनगर के रहने वाले भारत सिंह, शामली के कृष्णानगर निवासी संजीव कुमार, दिल्ली के कबीरनगर निवासी यतींद्र कुमार शर्मा, दिल्ली के पांडवनगर कौंप्लेक्स निवासी नितिन शर्मा, बुलंदशहर जिले में औरंगाबाद थाना क्षेत्र के बखोरा गांव निवासी शिवराज सिंह, एटा के कैलाशगंज निवासी राम कन्हैया और बिहार के सहरसा जिले के रहने वाले अमूल्य कुमार तोमर को गिरफ्तार कर लिया. तोमर दिल्ली के जैतपुर में रह रहा था.

पुलिस ने यहां से बड़ी संख्या में मोबाइल फोन, सिम कार्ड्स, इंटरकौम फोन व वाकीटाकी सहित बड़ी संख्या में दस्तावेज बरामद किए. पुलिस ने इस कालसेंटर पर काम करने वाले युवकयुवतियों को भी हिरासत में ले लिया. गिरफ्तार किए गए 9 आरोपियों व हिरासत में लिए गए कालसेंटर के कर्मचारियों से पूछताछ में पता चला कि नोएडा के सेक्टर-2 में ही 2 साल से अभियुक्त इस कालसेंटर के जरिए लोगों को फोन कर के औनलाइन ठगी कर रहे थे. ये लोग रोजाना देश भर में बड़ी संख्या में लोगों को फोन करते थे और लाइफ इंश्योरेंस में बोनस दिलवाने के बहाने उन से अपने खातों में औनलाइन पैसे डलवा लेते थे.

गिरफ्तार आरोपी फरजी आईडी के जरिए ली गई दर्जनों सिम व मोबाइलों को ठगी की वारदातों के काम में लाते थे ताकि पुलिस उन तक न पहुंच सके. ठगी गई राशि को ये लोग खुद के और अपने परिवार के सदस्यों के नाम से खोले गए विभिन्न बैंक खातों में जमा करवाते थे.

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जांचपड़ताल में सामने आया कि आरोपियों ने एक साल के दौरान देश के लगभग 23 राज्यों में 4,755 से ज्यादा काल फरजी नंबरों से किए थे. इन में से राजस्थान में 249 काल की गई थीं. राजस्थान के 18 जिलों में इस गिरोह ने 37 लोगों से एक करोड़ 30 लाख 68 हजार 400 रुपए की ठगी की थी.

क्राइम ब्रांच ने पीडि़तों से संपर्क कर के इन तथ्यों की पुष्टि की है. गिरोह की ठगी का शिकार हुए लोग जयपुर के अलावा भीलवाड़ा, जोधपुर, अजमेर, सीकर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, उदयपुर, कोटा, जालौर, झालावाड़, नागौर, टोंक, अलवर, भरतपुर, पाली तथा श्रीगंगानगर के रहने वाले हैं. गिरोह ने सब से बड़ी ठगी 30 लाख रुपए की भीलवाड़ा के एक व्यक्ति से थी. इस का मुकदमा जयपुर के साइबर थाने में दर्ज है. इस के अलावा 16 लाख रुपए, 14 लाख रुपए, 2 लाख रुपए और 1 लाख रुपए से ले कर 3400 रुपए की धोखाधड़ी इस गिरोह ने की है.

गिरोह के संचालक कालसेंटर पर काम करने वाले युवकयुवतियों को 8-10 हजार रुपए वेतन देते थे. इस के अलावा लोगों को झांसा दे कर खाते में रकम डलवाने के लिए अलग से कमीशन देते थे. पुलिस ने हिरासत में लिए इस कालसेंटर के कर्मचारियों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

बीमा पौलिसी की ठगी करने वाले गिरोह में सीए तथा एमबीए के छात्र भी शामिल   

बीमा पौलिसी की किस्त औनलाइन जमा करवाने पर डिसकाउंट मिलने का झांसा दे कर लोगों से 50 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी करने वाले 4 बदमाशों को जयपुर पुलिस ने इसी साल मई के दूसरे सप्ताह में गिरफ्तार किया था. इन में एक सीए और एक एमबीए का छात्र था.

इसी साल 6 मई को जयपुर के प्रतापनगर थाने में हरेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि मेरी मैक्स लाइफ इंश्योरेंस पौलिसी की सालाना 49 हजार 500 रुपए किस्त जाती है. एक दिन एक अज्ञात आदमी ने मोबाइल पर काल कर के कहा कि आप पौलिसी का औनलाइन पेमेंट कर दोगे तो आप को डिसकाउंट मिलेगा. इस के लिए 45 हजार 500 रुपए जमा कराने होंगे. उस आदमी ने मुझे मोबाइल पर मैसेज भेजा. मैसेज में मोबाइल नंबर नहीं आया, बल्कि मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का नाम आया और खाता नंबर लिखा था.

एकाउंट होल्डर की जगह मैक्स लाइफ कंपनी का नाम लिखा था, जिस से हरेंद्र को भरोसा हो गया. उस ने औनलाइन बैंकिंग के जरिए 4 मई को अपने बैंक खाते से 45 हजार 500 रुपए उस खाते में ट्रांसफर कर दिए. इस के बाद हरेंद्र ने जमा कराई रकम की रसीद लेने के लिए जब मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में संपर्क किया तो उसे पता चला कि वह औनलाइन ठगी का शिकार हो चुका है.

जयपुर पुलिस ने दिल्ली जा कर जांचपड़ताल की तो पता चला कि जिस खाते में हरेंद्र से रकम डलवाई गई थी, वह एसबीआई दिल्ली का खाता था. यह खाता दिल्ली के मंगोलपुरी निवासी अमन छीपी का था.

बाद में पुलिस ने अमन के अलावा मूलरूप से पंजाब के मोहाली निवासी और आजकल दिल्ली में रह रहे जीत सिंह संधूजा, यूपी के पंचशील नगर निवासी और हाल दिल्ली में बादली मेट्रो स्टेशन के पास रहने वाले संदीप कुमार छीपी तथा दिल्ली के मंगोलपुरी निवासी राहुल खटीक को गिरफ्तार कर लिया. इन से पुलिस ने 15 फरजी सिम कार्ड भी बरामद किए. इन में अमन छीपी सीए और जीत सिंह संधूजा एमबीए का छात्र है.

पूछताछ में पता चला कि इस गिरोह ने लोगों को ठगने के लिए 13 बैंक खाते खुलवा रखे थे. सितंबर, 2016 से इन्होंने औनलाइन ठगी की करीब 100 वारदातें की थीं.

इन वारदातों में लोगों से 50 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी. पूछताछ में यह बात भी पता चली कि आरोपियों का मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में संपर्क था.

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वे वहां कंपनी के अफसरों और कर्मचारियों से मिल कर पौलिसीधारक की डिटेल्स हासिल कर के उस की पौलिसी की किस्त आदि पता कर लेते थे. इस के बाद ये लोग पौलिसी धारकों को फोन कर के अपने जाल में फंसाते थे.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

तुम रोको, हम तो खेलेंगी फुटबाल

जब कभी हम किसी गलत सोच के विरोध की बात करते हैं तो हाथ में किताब या हथियार उठाने को कहते हैं, पर कुछ संथाली लड़कियों ने विरोध के अपने गुस्से की फूंक से फुटबाल में ऐसी हवा भरी है जो उन की एक लात से उस सोच को ढेर कर रही है, जो उन्हें फुटबाल खेलने से रोकती है.

मामला उस पश्चिम बंगाल का है, जहां आप को फुटबाल हर अांगन में उगी दिखाई देगी, पर जब इन बच्चियों ने इस की नई पौध लगाने की सोची तो कट्टर सोच के कुछ गांव वालों को लगा कि घुटने के ऊपर शौर्ट्स पहने हुई ये बालिकाएं उन के रिवाजों की घोर बेइज्जती कर रही हैं. इस बेइज्जती के पनपने से पहले ही उन्होंने लड़कियों में ऐसा खौफ पैदा करने की सोची कि दूसरे लोग भी सबक ले कर ऐसी ख्वाहिश मन में न पाल लें.

पर वे लड़कियां ही क्या, जो मुसीबतों से घबरा जाएं. पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के पिछड़े आदिवासी संथाल समाज की इन लड़कियों में से एक है 16 साल की हांसदा. 5 भाईबहनों में सब से छोटी इस बच्ची के पिता नहीं हैं और मां बड़ी मुश्किल से रोजाना 300 रुपए कमा पाती हैं.

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ऐसे गरीब परिवार की 10वीं जमात में पढ़ने वाली हांसदा फुटबाल खेल कर अपने समाज और देश का नाम रोशन करना चाहती है. वह पहलवान बहनों गीताबबीता की तरह साबित करना चाहती है कि संथाली लड़कियां किसी भी तरह किसी से कमजोर नहीं हैं. वह पति की गुलाम पत्नी बन कर अपनी जिंदगी नहीं बिताना चाहती है कि बच्चों की देखभाल करो और घुटो घर की चारदीवारी के भीतर.

इसी तरह किशोर मार्डी भी मानती है कि वह फुटबाल से अपनी जिंदगी बदल सकती है. वह तो डंके की चोट पर कहती है कि ऐसे किसी की नहीं सुनेगी, जो उसे फुटबाल खेलने से रोकने की कोशिश करेगा.

गांव गरिया की 17 साला लखी हेम्ब्रम ने बताया कि 2 साल पहले उस का फुटबाल को ले कर जुनून सा पैदा हो गया था. एक गैरसरकारी संगठन उधनाऊ ने उसे खेलने के लिए बढ़ावा दिया था. तब ऐसा लगा था कि फुटबाल उस के परिवार को गरीबी से ऊपर उठा सकती है. पर कुछ गांव वालों के इरादे नेक नहीं थे. जब कुछ जवान लड़कों ने इन लड़कियों को शौर्ट्स में खेलते देखा तो उन्होंने इन पर बेहूदा कमैंट किए.

हद तो तब हो गई, जब नवंबर, 2018 को गांव गरिया में फुटबाल की प्रैक्टिस कर रही इन लड़कियों पर गांव के कुछ लोगों ने धावा बोल दिया. उन्होंने फुटबाल में पंचर कर के अपनी भड़ास निकाली. लेकिन जब लड़कियां नहीं मानीं तो उन सिरफिरों ने लातघूंसों से उन्हें पीटा. साथ ही, धमकी भी दी कि अगर फुटबाल खेलना नहीं छोड़ोगी तो इस से भी ज्यादा गंभीर नतीजे होंगे.

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ये गंभीर नतीजे क्या हो सकते हैं, इस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि लड़कियां नहीं मानीं तो उन का रेप हो सकता है, तेजाब से मुंह झुलसा दिया जा सकता है या फिर जान से ही मार दिया जा सकता है.

पर क्या इस से लड़कियों के बीच डर का माहौल बना? नहीं. वे अब जगह बदल कर फुटबाल की प्रैक्टिस करती हैं. उन के पास गांव वालों की नफरत तो खूब है, पर फुटबाल से जुड़ी बुनियादी जरूरतें नहीं हैं. वे जंगली बड़ी घास और झाडि़यों से घिरी जमीन पर फुटबाल खेलती हैं, जहां रस्सियों से बंधे बांस गोलपोस्ट के तौर पर खड़े कर दिए जाते हैं.

ऐसे उलट हालात में फुटबाल खेलती रामपुरहाट ब्लौक की गरिया और भलका पहाड़ा गांव की रहने वाली ये संथाली लड़कियां आत्मविश्वास से भरी हैं और मानो पूरे समाज से पंगा ले रही हैं कि तुम कितना भी विरोध कर लो, एक दिन हमारी लगन साबित कर देगी कि हम ने जो देखा है, उस सपने को पूरा कर के रहेंगी.

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इलाहाबाद में तिरंगे के साथ धरना

इलाहाबाद से प्रयागराज हुए इस शहर के रोशनबाग इलाके में पिछले 100 साल की ठंड का रिकौर्ड असर भी प्रदर्शनकारियों के हौसले के आगे हार गया. प्रशासन की मानमनौव्वल के बाद भी एनआरसी, सीएए और एनपीआर को ले कर रविवार, 12 जनवरी, 2020 को दोपहर के 3 बजे से शुरू हुआ प्रदर्शन तीसरे दिन भी जोश और जज्बे के साथ रहा. लगातार भीड़ बढ़ती जा रही थी.

सब से बड़ी बात यह थी कि इस प्रदर्शन में वे औरतें भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थीं, जो अपने घरों से बहुत कम बाहर निकलती हैं. धरना पूरे दिन और पूरी रात चलता रहा.

इस आंदोलन की यह भी खासीयत है कि यह शांति से हो रहा था और पार्क के अंदर था. आंदोलनकारी अपने बैनर सड़क पर लगाना चाह रहे थे, लेकिन पुलिस द्वारा कानून का हवाला देने पर उन्हें वहां से हटा लिया गया.

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विरोध जता रहे लोगों के हाथों में तिरंगा भी था. वे मानते हैं कि तिरंगे का साया उन्हें ताकत देता है.

इस आंदोलन में आई एक औरत ने कहा, ‘‘देश की शान तिरंगा हमें एक राष्ट्र, एक देश और एक समाज के रूप में बांधता है. हम कभी अशांति नहीं फैलाएंगे.’’

दिल्ली से चला यह प्रदर्शन अब छोटे शहरों में भी फैल रहा है. प्रयागराज में रात में प्रदर्शनकारियों की भीड़ बढ़ रही थी. लोग रजाईगद्दे ले कर आ रहे थे.

इस आंदोलन की शुरुआत करने वाली सायरा को समर्थन देने के लिए औरतें बड़ी तादाद में दुधमुंहे बच्चों के साथ पहुंच रही थीं. मर्द व बूढ़े भी आंदोलन में बराबर से भागीदारी निभा रहे थे.

सै. मो. अस्करी ने बताया कि खुलदाबाद थाना क्षेत्र के मंसूर अली पार्क में चल रहे प्रदर्शन में तिरंगे  झंडे, भीमराव अंबडेकर की तसवीर व एनआरसी, सीएए और एनपीआर जैसे काले कानून को वापस लेने की मांग से शहर के पुराने इलाके रोशनबाग का ऐतिहासिक मंसूर अली पार्क दिल्ली का शाहीन बाग बन गया था.

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क्षेत्रीय पार्षद रमीज अहसन, अब्दुल्ला तेहामी, काशान सिद्दीकी, मोहम्मद हमजा वगैरह प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे. इस के अलावा वे खाने और पानी, चाय व अलाव के इंतजाम के साथसाथ लोगों की मदद में दिनरात जुटे हुए थे.

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे कोई भी दस्तावेज नहीं दिखाएंगे. वे हिंदुस्तानी हैं और कई पुश्तों से यहां रह रहे हैं. उन के बापदादा, परदादा सब इसी जमीन में दफन हैं और वे भी इसी जमीन में दफन होंगे, लेकिन वे न तो एनसीआर और एनपीआर का विरोध करना छोड़ेंगे और न ही किसी कागजात पर दस्तखत करेंगे. उन का आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकार यह काला कानून वापस नहीं ले लेती.

सीमेंट : भूपेश, विपक्ष और अफवाहें

छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सीमेंट के मसले पर इन दिनों विपक्ष भाजपा और आम जनता के निशाने पर है. कांग्रेस की सरकार आने के बाद अब धीरे-धीरे ही सही माफियाओं के मुंह खुलने लगे हैं. जिनमें सबसे आगे है- सीमेंट के बड़े कारोबारी और फैक्ट्रियां.  यह चर्चा सरगम है कि फैक्ट्रियों को खुली छूट दे दी गई है, की दाम आप बढ़ा लो! सत्ता और सीमेंट किंग आपस में एक हो चुके हैं. परिणाम स्वरूप सीमेंट के भाव बेतहाशा बढ़ते चले गए. लगभग प्रति बैग 20 रुपये  का अतिरिक्त भार अब उठाना होगा.

प्रदेश में इस मसले पर एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है सीमेंट के साथ-साथ रेत माफिया भी करोड़ों रुपए का खेल कर रहा है. वहीं यह भी खबर आ रही है कि स्टील के दाम भी बढ़ने जा रहे हैं. यह सब भूपेश बघेल की सरकार के समय हो रहा है जिन्होंने लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति करते हुए इन्हीं मसलों पर डॉक्टर रमन सरकार को घेरा था.

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इधर सीमेंट की कीमतों में हो चुके  इजाफे से  सियासत गरमाते जा रही है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर राज्य सरकार पर उद्योगपतियों से सांठगांठ का खुला  आरोप लगा दिया  है. कौशिक ने कहा कि महीनेभर के भीतर दो बार सीमेंट के दाम बढ़ना कई सवाल खड़ा करता है. उद्योगपतियों और सरकार की मिलीभगत से छत्तीसगढ़ की जनता के जेब मे “डाका” डाला जा रहा है.कौशिक ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से गुपचुप तरीके से उनके साथ बैठकें कर रही है, उस समय आरोप लगाया था कि सीमेंट के दामों में वृध्दि होगी. लेकिन उनके प्रवक्ता ने कहा था कि धरमलाल कौशिक के पास कोई काम नहीं है. मैं जिस बात को बोलता हूं प्रमाणिकता के साथ बोलता हूं, आज वो बात सच साबित हो गई कि ये लोग सीमेंट के रेट को कैसे बढ़ा रहे हैं. सरकार ने उद्योगपतियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, इसका क्या कारण है वो मैं नहीं जानता लेकिन इनकी मिलीभगत से ये संभव नहीं है.

एक करोड़ का डाका!!

धरमलाल कौशिक ने जो आरोप लगाए हैं वह सोचने को विवश करते हैं और सच्चाई के निकट प्रतीत होते हैं  उन्होंने कहा,  छत्तीसगढ़ में सीमेंट के जो उपभोक्ता हैं खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो काम चल रहा है, अब उसका रेट बढ़ेगा. छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से 1 करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से डाका डाला जा रहा है.

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महीने के हिसाब से छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से निकाला जा रहा है ये अत्यंत दुर्भाग्य जनक घटना है.  भूपेश सरकार को इस पर रोक लगानी होगी मै उद्योगपतियों से भी आग्रह करूंगा कि रेट कम करें. छत्तीसगढ़ की फिजा में सीमेंट रेट  स्टील चर्चा का सबब बने हुए हैं गली चौराहे और नुक्कड़ पर सीमेंट की बेतहाशा दाम बढ़ने पर चर्चा हो गई है सीधे-सीधे इसका असर कांग्रेश की भूपेश सरकार की छवि पर पड़ रहा है.

सीमेंट के दाम पर घमासान

छत्तीसगढ़ में सीमेंट के बढ़ते  दाम  सियासी मुद्दा बन जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय काल 2003 में यहां सीमेंट की कीमत  प्रति बैग सौ स्र्पये से  भी कम थी.राजनीति  घुसी तो 2004 में दाम सीधे 120 स्र्पये प्रति बैग हो गया. 2005 के शुरूआत में डॉ रमन सिंह के आशीर्वाद से सीमेंट के दाम 155  रुपए और 2006 में यह दाम सीधे 200 के पार पहुंच गया.

जब- जब दाम बढ़े तब-तब इसका विरोध भी होता  है .आगे सन 2008 में दाम सीधे 250 से 300 पहुंच गये.अजीत जोगी  और जनता ने इस वृद्धि का  तीव्र विरोध  किया.भाजपा  सरकार पर सीमेंट कंपनियों से मिलीभगत सरंक्षण  का आरोप लगा. आगे  आर्थिक मंदी के कारण सीमेंट के दाम गिर कर  250 तक पहुंच गये. दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के समय दाम 225 से 230 रुपये ही था.

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लव-कुश के बाद अब कायरव की वजह से होंगे कार्तिक-नायरा परेशान, पढ़ें खबर

स्टार प्लस (Star Plus) के सबसे पौपुलर और हिट सीरियल्स में से एक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehelata Hai) लंबे समय से दर्शकों का फेवरेट बना हुआ है. साथ ही इस सीरियल में लीड रोल निभाने वाली जोड़ी यानी कि कार्तिक (Mohsin Khan) और नायरा (Shivangi Joshi) भी दर्शकों के दिलों की जान बन चुकी है. इस सीरियल में आए दिन कोई ना कोई नया ट्विस्ट देखने को मिलता है जो इस शो को और ज्यादा इंट्रस्टिंग बनाता है. जब से लव-कुश (Luv-Kush) की शो में रीएंट्री हुई है तब से ही ऐसा देखने में आ रहा है कि दिन ब दिन लव-कुश कार्तिक (Kartik) और नायरा (Naira) की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं.

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त्रिशा के ठीक होते ही उड़े लव-कुश के होश…

बीते एपिसोड्स में तो लव-कुश ने त्रिशा (Trisha) के साथ बदत्तमीजी करके अपनी सारी हदें ही पार कर दी थीं जिसकी बाद से कार्तिक (Kartik) और नायरा (Naira) दोनो काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं. जैसे ही लव-कुश को ये पता चला था कि त्रिशा कोमा में चली गई है तो दोनों ने राहत की सांस ली थी और सोचा था कि अब वे दोनों बच जाएंगे पर जल्द ही त्रिशा वापस से ठीक होने वाली है और त्रिशा के ठीक होने की खबर सुन लव-कुश के होश उड़ गए हैं. इसी के चलते लव-कुश मिलकर सुरेखा (Surekha) को भी अपनी तरफ कर लेंगे और साथ ही अभिषेक (Abhishek) को भी पैसे देने के लिए मना लेंगे.

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कायरव के स्कूल से आया नायरा-कार्तिक को फोन…

बात करें अप्कमिंग एपिसोड की तो कायरव (Kairav) की वजह से कार्तिक और नायरा परेशान होने वाले हैं और दोनो को ये एहसास होगा कि लव-कुश और त्रिशा की वजह से वे कायरव पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. इस सब के चलते कायरव के स्कूल से उसकी टीचर का फोन कार्तिक और नायरा के पास आएगा और कायरव की टीचर कुछ ऐसा बोलेगी जिसे सुन दोनो के होश उड़ जाएंगे.

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आखिर क्या बीत रही है कायरव पर…

 

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खबरों की माने तो कायरव की टीचर कार्तिक और नायरा से ये सवाल पूछेगी कि क्या उनके घर में लड़के और लड़की में भेदभाव किया जाता है?. इस सवाल को सुन कर दोनो काफी हैरान हो जाएंगे और इसका जवाब देंगे कि उनके घर में ऐसा बिल्कुल नहीं होता. अब देखने वाली बात ये होगी कि आखिर कायरव के साथ ऐसा क्या हुआ है जिसे देख उसकी टीचर ने कार्तिक और नायरा से ये सवाल किया है.

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आने वाले एपिसोड्स में ये भी पता चलेगा कि अब कार्तिक और नायरा कायरव की देखभाल करने के लिए क्या क्या कदम उठा सकते हैं और लव-कुश आगे चलकर और क्या क्या गुल खिलाने वाले हैं.

तानाशाह है सरकार एसआर दारापुरी: रिटायर्ड आईपीएस और सामाजिक कार्यकर्ता

साल 1972 के बैच के आईपीएस एसआर दारापुरी पुलिस की सर्विस से साल 2003 में आईजी के पद से रिटायर हुए थे. वे अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की इंदिरानगर कालोनी में रहते हैं.

पुलिस से रिटायर होने के बाद एसआर दारापुरी ने सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक पार्टी के जरीए जनता की सेवा का काम करना शुरू किया.

उन की पहचान दलित चिंतक के रूप  में भी है.

76 साल के एसआर दारापुरी आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता  हैं. नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.

14 दिन जेल में रहने के बाद वे जेल से छूट कर वापस आए और कहा, ‘‘सरकार के दमन का हमारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ है. हम ने नागरिकता कानून का पहले भी विरोध किया था, आज भी कर रहे हैं और आने वाले कल में भी करेंगे. हम ने पहले भी हिंसा नहीं की, आज भी नहीं कर रहे और आगे भी नहीं करेंगे. शांतिपूर्ण तरीके से हम अपना विरोध दर्ज कराते रहेंगे.’’

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गैरकानूनी थी हिरासत

एसआर दारापुरी अपनी गिरफ्तारी पर जानकारी देते हुए कहते हैं, ‘‘5 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के खिलाफ हजरतगंज पर बनी डाक्टर अंबेडकर की प्रतिमा के नीचे धरना दिया गया था. वहां बहुत सारे सामाजिक संगठनों के लोग थे. वहां पर 19 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के विरोध की घोषणा हुई थी.

‘‘बाद में हमारे इस अभियान में दूसरे कई राजनीतिक लोग भी जुड़ गए थे.

19 दिसंबर, 2019 को विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुझे अपने घर में पुलिस ने नजरबंद कर दिया था.

‘‘19 दिसंबर की सुबह 7 बजे जब मैं अपने घर से टहलने के लिए सामने बने पार्क में गया तो गाजीपुर थाने के पुलिस के 2 सिपाही वहां बैठे मिले. इस की मुझे पहले से कोई जानकारी नहीं थी. जब मैं वापस आया और सिपाहियों से पूछा तो बोले कि हमें थाने से यहां ड्यूटी पर भेजा गया है.

‘‘तकरीबन 2 घंटे के बाद सीओ गाजीपुर और एसओ गाजीपुर यहां जीप से आए. उस समय मुझे यह बताया कि घर से बाहर नहीं जाना है. तब मैं ने घर से अपने हाउस अरैस्ट होने और नागरिकता कानून के विरोध का फोटो अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया.

‘‘शाम के तकरीबन 5 बजे मुझे नागरिकता कानून के विरोध और हिंसा की खबरें मिलीं तो मैं ने अपने कुछ साथियों से पीस कमेटी बना कर काम करने के लिए कहा, जिस में यह तय हुआ कि शनिवार को हम लोग प्रशासन से मिल कर इस काम को अंजाम देंगे.

‘‘20 दिसंबर की सुबह 11 बजे पुलिस मेरे घर आई. सीओ और एसओ गाजीपुर ने मुझे थाने चलने के लिए कहा. मैं ने उन से पूछा कि क्या मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है? तो वे बोले कि नहीं, आप को थाने चलना है.

‘‘मैं अपने साधारण कपड़ों में ही पुलिस की जीप में बैठ कर थाने चला आया. मुझे लगा कि शाम तक वापस छोड़ देंगे. मैं दिनभर गाजीपुर थाने में बैठा रहा. शाम के तकरीबन 6 बजे मुझे हजरतगंज थाने चलने के लिए बोला गया.

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‘‘मैं पुलिस के साथ हजरतगंज थाने आ गया. वहां मैं ने फिर अपनी गिरफ्तारी की बात पूछी तो इंस्पैक्टर हजरतगंज ने कहा कि 39 पहले हो चुके हैं, आप 40वें हैं. उम्र में बड़ा होने या पहले पुलिस में रहने के चलते मुझे बैठने के लिए कुरसी दे दी गई थी, पर खाने के लिए कुछ नहीं दिया गया.

‘‘रात को तकरीबन 11 बजे मुझे रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए रिवर बैंक कालोनी ले जाया गया. वहां मजिस्ट्रेट के सामने मैं ने पूरी बात बताई. पुलिस ने मुझ पर हिंसा की साजिश रचने की धारा 120 बी का मुकदमा कायम किया था. पुलिस तथ्यों और अपनी बात से मजिस्ट्रेट को सहमत नहीं कर पाई. ऐसे में मजिस्ट्रेट ने रिमांड नहीं दी.’’

नहीं दिया कंबल

‘‘रात तकरीबन 12 बजे मुझे वापस हजरतगंज थाने लाया गया. उस समय तक मुझे सर्दी लगने लगी थी. मैं साधारण कपड़ों में था. मैं ने कंबल मांगा, तो पुलिस ने नहीं दिया.

‘‘मैं ने किसी तरह से घर पर फोन कर बेटे को कंबल लाने के लिए कहा, तो वह डरा हुआ था. उस को यह जानकारी मिल रही थी कि जो भी ऐसे लोगों से मिलने जा रहा है, उस को पकड़ा जा रहा है. इस डर के बाद भी वह किसी तरह से कंबल ले कर घर से थाने आया.

‘‘इस दौरान मुझे खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया था. मेरे पास पानी की बोतल थी, वही पी कर प्यास बुझा रहा था. पुलिस ने मनगढं़त लिखापढ़ी की और बताया कि रिमांड मजिस्ट्रेट मिले नहीं थे. फिर मेरी गिरफ्तारी को घर से न दिखा कर महानगर के किसी पार्क से होना दिखाया.

‘‘21 दिसंबर की शाम मुझे जेल भेजा गया. जेल में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने मुझे पेश किया गया. जेल में जाने के समय रात के 9 बज गए थे. मैं रात को भूखा ही सो गया. 22 दिसंबर की सुबह मुझे जेल में नाश्ता मिला.

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‘‘तकरीबन 37 घंटे मुझे पुलिस ने बिना किसी तरह के खाने के रखा. मेरा 161 का बयान नहीं कराया गया.

‘‘जेल में मुझे तमाम ऐसे लोग मिले, जिन को लखनऊ में दंगा फैलाने के आरोप में पकड़ा गया था. ऐसे लोगों को शारीरिक प्रताड़ना की भी जानकारी मिली.

‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दंगा करने वालों से बदला लेने के बयान के बाद पुलिस बेहद क्रूर हो गई. हिंसा में पकड़े गए लोगों को हजरतगंज थाने से अलग ले जा कर मारा गया.

‘‘एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि इन को इतना मारो कि पीठ डेढ़ इंच से कम सूजी नहीं होनी चाहिए. जेल में दिखे कई लोगों के चेहरे ऐसे सूजे थे कि वे पहचान में नहीं आ रहे थे.’’

निचली अदालत से जमानत खारिज होने के बाद एसआर दारापुरी को सैशन कोर्ट से जमानत मिली.

एसआर दारापुरी जितने दिनों जेल में थे, उन की बीमार पत्नी घर पर थीं. इस बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उन से मिलने उन के घर भी गई थीं.

इन की मिलीभगत

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘हमारा नागरिकता कानून का विरोध शांतिपूर्ण था. इस को दबाने के लिए हिंसा फैलाई गई. सदफ जफर नामक महिला फेसबुक पर लाइव करते पुलिस से कह रही थीं कि इन लोगों को पकड़ो. पुलिस ने उन को नहीं पकड़ा. थाने में लाने के बाद भी कुछ लोगों को छोड़ दिया गया.

‘‘जिन के बारे में सुना गया कि वे लोग भाजपा समर्थन के चलते छोड़ दिए गए. ऐसे में साफ है कि पुलिस की मिलीभगत से भाजपा और आरएसएस के लोगों ने यह काम कराया.’’

एसआर दारापुरी लखनऊ पुलिस को खुलेआम चुनौती देते हुए कहते हैं, ‘‘अगर पुलिस ने सही लोगों को पकड़ा है तो 19 दिसंबर के दंगे के सारे वीडियो फुटेज सार्वजनिक करे. यह दिखाए कि जिन लोगों को पकड़ा है, ये वही लोग हैं जो दंगा फैलाने में शामिल थे. पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.

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‘‘यही नहीं, लखनऊ की हिंसा में मारा गया वकील नामक आदमी पुलिस की गोली से ही मरा है. अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस वीडियो के जरीए यह क्यों नहीं दिखाती कि वह किस की गोली से मरा है. मरने वाले का परिवार पुलिस के दबाव में है.’’

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘यह सरकार का एक दमनकारी कदम है, जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. यह तानाशाही सरकार है. यह तो खुला दमन है. योगी राज में पुलिस पूरी तरह से क्रूर और हत्यारी हो चुकी है. इस सरकार के दौरान पुलिस के ऐनकाउंटर में 95 फीसदी मामले झूठे हैं. पुलिस जब घटना के दिन वाले वीडियो जारी करेगी, तो सच खुद सामने आ जाएगा.’’

जाति ने बांट दिए दो कौड़ी के बरतन

घटना थोड़ी पुरानी है, पर सुनो तो आज भी सिहरा देती है. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में एक गांव है खेतलपुर भंसोली. वहां पर बरतन छू जाने से एक दलित औरत सावित्री की पिटाई और इलाज के दौरान मौत होने का शर्मनाक मामला सामने आया था. वह भी तब जब सावित्री पेट से थी.

हुआ यों था कि कूड़ेदान को हाथ लगाने से नाराज अंजू देवी और उस के बेटे रोहित कुमार ने कथित तौर पर सावित्री को डंडे और लातों से बहुत मारापीटा था.

सावित्री के पति दिलीप कुमार ने बताया था कि सावित्री को पीटने की घटना 15 अक्तूबर, 2017 को हुई थी. उस के चलते सावित्री के पेट में पल रहे बच्चे की मौत हो गई थी और उस के बाद मामूली इलाज कर के डाक्टर ने सावित्री को जिला अस्पताल से घर भेज दिया था.

घर आने के बाद एक दिन सावित्री अचानक बेहोश हो गई और जब उसे अस्पताल ले जाया गया, तो डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.

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ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब किसी को जाति के आधार पर अछूत समझ कर उस के साथ जोरजुल्म किया गया हो. जब कूड़ेदान पर हाथ लगने की इतनी बड़ी सजा दी जा सकती है, तो फिर खाने के बरतन को छूने पर तो पता नहीं क्या और कैसा बवाल मचा दिया जाएगा.

यही वजह है कि आज भी अनेक गांवों में चाय की दुकानों पर दलितों और पिछड़ों को निचला समझ कर मिट्टी के कुल्हड़ या फिर प्लास्टिक के ऐसे गिलासों में चाय परोसी जाती है, जिन्हें एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है, जबकि अगड़ों को कांच या चीनीमिट्टी के बरतन में चाय थमाई जाती है.

इतना ही नहीं, ऐसी दुकानों पर निचलों के लिए अलग बैंचें बना दी जाती हैं या फिर ये जमीन पर दुकान से दूर बैठ कर चाय पीते हैं.

ऐसा नहीं है कि हमारे संविधान में सब को बराबरी का हक नहीं दिया गया है. संविधान का अनुच्छेद 15 जाति, धर्म, नस्ल, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को वर्जित करता है.

साल 1989 का एससी व एसटी कानून भी जाति आधारित अत्याचारों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही तय करता है, इस के बावजूद भारत में जाति आधारित भेदभाव अब भी एक कड़वा सच है. देखने में तो दलित को अलग बरतन में चाय देना मामूली सी बात लगती है, पर इस की जड़ में जातिवाद का वह जहर है, जो उन्हें कभी उबरने नहीं देगा.

दलितों को पता होता है कि कुल्हड़ या प्लास्टिक के गिलास में चाय देने का क्या मतलब है, पर वे जानबूझ कर अनजान बने रहते हैं या फिर यही सोच कर खुश हो लेते हैं कि चाय मिल तो रही है. अगर कल को सवाल उठाया तो उन्हें दूसरी तरह से तंग किया जाएगा. अमीर अगड़ों के खेतों में काम मिलना बंद हो सकता है या किसी भी मामूली बात को मुद्दा बना कर ठुकाई कर दी जाएगी.

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जातिवाद के इस जहर का असर स्कूलों में दिखाई देता है. पिछले साल की बात है. उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक स्कूल में बच्चों को दिए जाने वाले मिड डे मील में जातिगत भेदभाव देखने को मिला था.

रामपुर इलाके के प्राइमरी स्कूल में ऊंची जाति के कुछ छात्र खाना खाने के लिए अपने घरों से बरतन ले कर आते थे और वे अपने बरतनों में खाना ले कर एससीएसटी और पिछड़े समुदाय के बच्चों से अलग बैठ कर खाना खाते थे.

जब इस बारे में स्कूल के प्रिंसिपल पी. गुप्ता से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम बच्चों को कहते हैं कि वे साथ बैठें और खाएं, लेकिन वे नहीं मानते हैं. वे लोग घर से अपनी थाली ले कर आते हैं और अलग बैठ कर खाते हैं.

इस गंभीर मुद्दे पर स्कूल के प्रिंसिपल का इतना सतही सा जवाब देना गले के नीचे नहीं उतरता है, क्योंकि अगर स्कूल के बच्चे अपने प्रिंसिपल की ही नहीं सुनेंगे, तो फिर वे किस की बात मानेंगे? आज अगर बच्चे अपने बरतन में अलग बैठ कर खाने की बात कर रहे हैं, तो कल को वे यह मांग रख देंगे कि आगे से दलितवंचितों के बच्चों को स्कूल में ही दाखिल न किया जाए. तब प्रिंसिपल पी. गुप्ता जैसे लोग क्या करेंगे?

दरअसल, हमारे समाज में जातिवाद इतनी गहराई तक अपनी पैठ बना चुका है कि अगड़ों द्वारा दलित व पिछड़ों को जानवरों से भी बदतर समझा जाता है. कोई दलित अगर अपनी शादी में घोड़ी पर बैठ गया तो उस की खाल उतार लो. किसी दलित ने मूंछ ऊंची कर दी तो उस की हड्डियां तोड़ दो. पढ़नेपढ़ाने के नाम पर कोई गरीब अगर ज्यादा सिर पर चढ़े तो उस के घर की औरतों को सरेआम बेइज्जत कर दो. एक नहीं हजार तरीके हैं दलितपिछड़ों पर नकेल कसने के.

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और जब तक जाति का यह बेताल हमारी पीठ पर लदा रहेगा, तब तक तरक्की की बात तो पीछे छोड़ दो, हम राजा विक्रम की तरह अपनी नफरत के घने बियाबान में ही चक्कर काटते रहेंगे.

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