राम मंदिर पर फैसला मंडल पर भारी पड़ा  कमंडल

अयोध्या में राम मंदिर बनने से देश में अंधआस्था का कारोबार बढ़ेगा. इस से देश और समाज का लंबे समय तक भला नहीं होगा, क्योंकि जिन देशों में धार्मिक कट्टरपन हावी रहा है, वहां गरीबी और पिछड़ापन बढ़ा है. भारत की जीडीपी बढ़ोतरी 8 सालों में सब से नीचे के पायदान पर है. बेरोजगारी सब से ज्यादा बढ़ी है.

80 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर की राजनीति गरम होनी तेज हो गई थी. उस समय केंद्र में सरकार चला रही कांग्रेस धर्म की राजनीति के दबाव में आ गई थी. तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पहले अयोध्या में राम मंदिर में पूजा के लिए ताला खुलवा दिया था, इस के साथ ही राम मंदिर शिलान्यास के लिए भी कोशिश तेज कर दी थी.

धर्म की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी को अपने लिए यह सही नहीं लग रहा था. ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस से अलग हुए राजीव गांधी के करीबी विश्वनाथ प्रताप सिंह को समर्थन दिया और उन्होंने केंद्र में अपनी सरकार बनाई.

प्रधानमंत्री बनने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस बात का अंदाजा हो चुका था कि भाजपा धर्म की राजनीति कर रही है. ऐसे में वह बहुत दिन सरकार की सहयोगी नहीं रह पाएगी. भाजपा की धर्म की राजनीति को मात देने के लिए उन्होंने पिछड़ों और वंचितों को इंसाफ दिलाने के लिए मंडल कमीशन लागू कर दिया.

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मंडल कमीशन के लागू होने से अगड़ों बनाम पिछड़ों की गुटबाजी सामने आ गई. ऐसे में पिछड़े धर्म का साथ छोड़ कर मंडल कमीशन के फैसले के साथ खड़े हो गए. पिछड़ा वर्ग अब मुख्यधारा में आ गया. 40-50 फीसदी पिछड़े वर्ग को भाजपा भी छोड़ने को तैयार नहीं थी. ऐसे में पार्टी ने पिछड़े वर्ग के नेताओं को आगे किया.

30 अक्तूबर, 1990 को जब राम मंदिर बनाने के लिए कारसेवा आंदोलन की नींव पड़ी तो धर्म की राजनीति ने उत्तर प्रदेश में अपना गढ़ बना लिया. हिंदुत्व का उभार तेजी से शुरू हुआ.

धर्म की इस राजनीति को रोकने का काम पिछड़ी जातियों के नेता मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसों के कंधों पर आ गया. कारसेवा को सख्ती के साथ रोकने के चलते मुलायम सिंह यादव को मुसलिमों का मजबूत साथ मिला.

इस के बाद ‘मंडल’ और ‘कमंडल’ की राजनीति के बीच दलितों में भी जागरूकता आई. दलितों की अगुआ बहुजन समाज पार्टी द्वारा की गई दलित और पिछड़ा वर्ग की राजनीति ने सवर्ण राजनीति को प्रदेश से बाहर कर दिया.

साल 1990 से साल 2017 के बीच यानी 27 साल में केवल 2 मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और राम प्रकाश गुप्ता ही सवर्ण जाति के मुख्यमंत्री बने. इन का कार्यकाल केवल 3 साल का रहा. बाकी के 24 साल उत्तर प्रदेश में दलित और पिछड़ी जाति के मुख्यमंत्री राज करते रहे.

‘मंडल’ से उभरे पिछड़े

मंडल कमीशन लागू होने का सब से बड़ा असर हिंदी बोली वाले प्रदेशों दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में हुआ. यहां की राजनीति में पिछड़ों का बोलबाला दिखने लगा.

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सवर्ण जातियों की अगुआई करने वाली भाजपा को अपने जातीय समीकरण ‘ठाकुर, ब्राह्मण और बनिया’ को छोड़ कर दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों को आगे करना पड़ा, तो भाजपा को मध्य प्रदेश में उमा भारती, उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह को आगे कर के मंदिर की राजनीति को अहमियत देनी पड़ी.

मंदिर के बहाने इन पिछड़े नेताओं ने धर्म की राजनीति के सहारे भाजपा में खुद को मजबूत किया. आगे चल कर भाजपा में लंबे समय तक पिछड़ों की बादशाहत कायम रही.

साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा में पिछड़े नेताओं को दोबारा किनारे किया गया. अयोध्या के नायक कहे जाने वाले कल्याण सिंह को भाजपा छोड़ कर बाहर तक जाना पड़ा.

लेकिन, भाजपा से अलग देश की राजनीति में पिछड़ों को दरकिनार करना मुमकिन नहीं रह गया था.

उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पिछड़ी जातियों का उभार कुछ इस कदर हुआ कि सवर्ण जातियां पीछे चली गईं. राम के प्रदेश अयोध्या में तो दलित और पिछड़ा गठजोड़ पूरी तरह से हावी हो गया. इस में मुसलिमों के मिल जाने से प्रदेश में ऊंची जातियों की राजनीति खत्म सी हो गई थी.

नतीजतन, भाजपा ने दलितों और पिछड़ों को पार्टी से जोड़ना शुरू किया. यहां दलितों और पिछड़ों की अगुआई करने वाली बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी अपने लोगों को जोड़ने से चूक गई और भाजपा ने मौके का फायदा उठा कर दलितपिछड़ों को धर्म से जोड़ कर मुसलिम वोट बैंक को हाशिए पर डाल दिया.

धर्म के घेरे में दलितपिछड़े

भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार को मजबूत करने के लिए साल 2014 से दलितपिछड़ों को पार्टी से जोड़ना शुरू किया. धीरेधीरे दलित और पिछड़े धर्म की ओर झुकने लगे. ऐसे में दलित और पिछड़ी जातियां ‘मंडल’ के मुद्दों को दरकिनार कर ‘कमंडल’ की धर्म की राजनीति पर भरोसा जताना शुरू करने लगीं. यहीं से प्रदेश की राजनीतिक दिशा कमजोर होने लगी.

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धर्म को केंद्र में रख कर राजनीति करने वाली भाजपा को उत्तर प्रदेश में जबरदस्त समर्थन हासिल होने लगा. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वोट का धार्मिक धु्रवीकरण शुरू किया. प्रदेश में हिंदुत्व का उभार साल 1992 के समय चक्र में वापस घूम गया. ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत से सरकार बनाने का मौका मिला.

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व के उभार को देखते हुए भाजपा ने विकास के मुद्दे को वापस छोड़ कर धर्म के मुद्दे को हवा देना शुरू किया.

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा को यह उम्मीद नहीं थी कि हिंदुत्व का मुद्दा कारगर साबित होगा, इसलिए चुनाव के पहले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया गया था.

चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को जब मुख्यमंत्री बनाया, तो भी हिंदुत्व के मुद्दे पर इतना भरोसा नहीं था. यही वजह थी कि उपमुख्यमंत्री के रूप में भाजपा ने ब्राह्मण जाति से डाक्टर दिनेश शर्मा और अति पिछड़ी जाति से केशव प्रसाद मौर्य को चुना.

पर, बाद में उत्तर प्रदेश में जिस तरह से योगी आदित्यनाथ को लोगों ने पसंद किया और 2019 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में भाजपा की वापसी हुई, उस के बाद हिंदुत्व को हिट फार्मूला मान लिया गया.

हिंदुत्व की गोलबंदी

हिंदुत्व की कामयाब गोलबंदी करने के बाद भाजपा राम मंदिर की राह पर आगे बढ़ गई. अब भाजपा को यह सम झ आ चुका था कि दलित और पिछड़े जाति नहीं धर्म के मुद्दे पर चल रहे हैं. ऐसे में भाजपा को उत्तर प्रदेश में पकड़ बनाए रखने के लिए राम मंदिर पर बड़ा फैसला लेना जरूरी हो गया था.

भाजपा पर यह आरोप लग रहा था कि वह राम मंदिर की राजनीति कर के खुद तो सत्ता की कुरसी हासिल कर चुकी है और अयोध्या में रामलला तंबू में रह रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भाजपा की अब रणनीति यह है कि साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले राम मंदिर बनना शुरू हो जाए और साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर बन कर तैयार हो जाए. इस बीच अयोध्या को भव्य धर्मनगरी बनाने के लिए काम चलता रहे.

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मोदी और योगी

नरेंद्र मोदी भी अयोध्या मसले से चर्चा में आए थे. साल 2002 में अयोध्या से शिलादान कार्यक्रम से वापस आते कारसेवकों पर ट्रेन के डब्बे पर हमला हुआ था. इस को गोधरा कांड के नाम से जाना जाता है. गोधरा कांड के बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदुत्व के नए सियासी नायक के रूप में उभरे.

दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में धार्मिक आस्था को जनजन तक पहुंचाने के लिए हिंदू त्योहारों को बड़े रूप में मनाने का काम किया. कुंभ ही नहीं, बल्कि कांवड़ यात्रा तक को अहमियत दी गई. अयोध्या में भव्य दीपोत्सव और राम की मूर्ति लगाने का संकल्प भी इस का हिस्सा बना.

साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद जब नरेंद्र मोदी दोबारा केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुए तो राम मंदिर आंदोलन को पूरा करने की कोशिश तेज कर दी.

अब अयोध्या के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद केंद्र सरकार के लिए मंदिर बनाना कामयाब हो गया है.

साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव भी राम मंदिर के मुद्दे पर लड़े जाएंगे.

हाशिए पर धर्मनिरपेक्षता

धर्म की राजनीति ने देश में कट्टरपन को बढ़ावा दिया है. धार्मिक कट्टरता के असर में धर्मनिरपेक्षता को राष्ट्र विरोधी मान लिया गया है.

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धार्मिक निरपेक्षता की बात करने वाले राजनीतिक दल मुखर विरोध करने की हैसियत में नहीं रह गए हैं. 80 के दशक में जो हालत भाजपा की थी, उस में अब बाकी दल शामिल हो गए हैं. कट्टरपन ने देश के माहौल को बिगाड़ा है. धर्म की राजनीति इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है. धर्म की राजनीति देश के भविष्य के लिए खतरनाक है.

पूरी दुनिया के देशों को देखें तो विकास वहीं हुआ है, जहां कट्टरपन कम रहा है. भारत के 2 पड़ोसी देश पाकिस्तान और बंगलादेश की तुलना करें तो कम कट्टर बंगलादेश ने ज्यादा तरक्की की है.

हालांकि सोवियत संघ में कम्यूनिस्ट कट्टरपन तानाशाही में बदल गया था, जिस के बाद वहां बंटवारे के हालात बन गए. जो सोवियत संघ एक समय में अमेरिका के साथ खड़ा हो कर दुनिया की नंबर वन की रेस में शामिल था, पर अपने कट्टरपन के चलते अमेरिका से विकास की दौड़ में कई साल पीछे चला गया.

मिडिल ईस्ट के देशों में इराक, ईरान, सीरिया, लेबनान जैसे देश धार्मिक कट्टरपन में सुलग रहे हैं. माली तौर पर मजबूत होने के बाद भी वे पिछड़े हुए हैं. इस की वजह यही है कि वहां धार्मिक कट्टरपन आगे नहीं बढ़ने दे रहा है.

भारत अपने धार्मिक कट्टरपन में जिस राह पर चल रहा है, वहां से वापस आना आसान नहीं है.

धार्मिक कट्टरपन के बहाने विकास, रोजगार के मुद्दों को हाशिए पर धकेल दिया गया है.

इतना ही नहीं, देश की माली हालत और बेरोजगारी सब से खराब हालत में है. चुनाव जीतने के लिए जहां तरक्की और रोजगार की बात होनी चाहिए, वहां धर्म के आधार पर वोट लेने के लिए धार्मिक मुद्दों का सहारा लिया जाता है. करतारपुर कौरिडोर और राम मंदिर को ही विकास का रोल मौडल माना जा रहा है.

साल 1992 के बाद उत्तर प्रदेश में रोजगार की हालत पर अगर सरकार एक श्वेतपत्र जारी कर दे तो हालात पता चल जाएंगे. उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहरों में शामिल कानपुर, आगरा, फिरोजाबाद, अलीगढ़, मुरादाबाद, वाराणसी और सहारनपुर में चमड़ा, कांच, ताला, पीतल, बनारसी साड़ी और लकड़ी का कारोबार बुरे दौर में है.

ये उद्योगधंधे कभी प्रदेश की पहचान हुआ करते थे. सरकार अब इन को आगे बढ़ाने के बजाय धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है.

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आज यह बात आम लोगों को सम झाई जा रही है कि राम मंदिर बनने से प्रदेश में पर्यटन बढ़ जाएगा, बेरोजगारी खत्म हो जाएगी. यह बात वैसे ही है, जैसे नोटबंदी के बाद यह कहा जा रहा था कि इस से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा.

सिगरेट की लत

लेखक- मंजरी सक्सेना

उन की इस आदत से मैं वाकिफ हूं फिर भी पतिदेव की हुक्मउदूली नहीं कर सकती. खाना मेज पर रखेरखे ठंडा हो गया. अपनी आदत के अनुसार वह घंटे भर बाद वापस आए. चाहे कितना कुछ कहूं पर चिकने घड़े की तरह उन पर कुछ असर ही नहीं होता है. मेरा दिल तो शादी के बाद से ही पतिदेव को सिगरेट पीता देख कर सुलगना शुरू हो गया था. मैं जब भी उन के होंठों पर सौतन की तरह सिगरेट को चिपके देखती कसमसा कर रह जाती.

अब तो सिगरेट पीने की लत, शौक से जनून की हद तक बढ़ गई है और घर की तमाम कीमती चीजें फुंकनी शुरू हो गई हैं. कभी सोफे के कवर पर सिगरेट का जला निशान दिखाई देता है तो कभी कारपेट पर. सिगरेट पीने की कोई एक जगह तो बन नहीं सकती, इसलिए तकिए के कवर भी सिगरेट के वार से बच नहीं पाते. अखबार या पत्रिका पढ़तेपढ़ते हाथ में सिगरेट दबाए कब पतिदेव नींद में खर्राटे लेने लगते हैं, उन्हें खुद पता नहीं चलता है.

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वह तो जब मैं काम खत्म कर सोने के लिए कमरे में आती हूं तो रजाई व गद्दे से उठते धुएं का रहस्य समझ में आता है. दुखी हो कर एक बार तो मैं ने पतिदेव को धमकी भी दे डाली थी, ‘‘या तो तुम सिगरेट पीना बंद कर दो, वरना मैं तुम से दोगुनी सिगरेट पीना शुरू कर दूंगी.’’ पतिदेव ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘यह शुभ काम तुम जितनी जल्दी चाहो शुरू कर लो.’’

पति को खुश देख कर सोचा कोई और चाल चलनी होगी, सो मैं ने ऐलान कर दिया, ‘‘आज से आप घर के अंदर सिगरेट नहीं पिएंगे.’’ ‘अंधा क्या चाहे दो आंखें.’ यह कहावत यहां बिलकुल सटीक बैठी. अब तो पान की दुकान पर देर रात तक मित्रमंडली में जमे रहने का उन्हें एक बहाना मिल गया. अब मैं पति के इंतजार में कुढ़ती रहती हूं. कुछ कह भी नहीं पाती.

मसूरी में हिमपात हुआ तो पति ने मुझे खुश करने के लिए स्नोफाल देखने का प्रोग्राम बना डाला. वहां पहुंचे तो स्नोफाल नहीं देख सके, क्योंकि दिल्ली की बरसात की तरह स्नोफाल रूपी बादल बरस चुके थे. हां, वहां पहुंच कर बर्फ पर पैर फिसलने का खतरा मुझे जरूर लग रहा था. नीचे से आते हुए लोगों पर वहां पहले पहुंचे लोग बर्फ का गोला बना कर फेंक रहे थे.

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मेरी कनपटी पर ऐसे ही एक बर्फ का गोला लगने से मैं स्वयं को संभाल नहीं पाई और फिसल गई. आखिर वही हुआ जिस के लिए मैं डर रही थी. हिम्मत कर के उठी तब तक दूसरा गोला सिर पर पड़ा और दोबारा गिर पड़ी. अब दर्द से कराहती हुई मैं वापस उतरने लगी. दूर से अपनी गाड़ी के पास भीड़ लगी देख कर मन में एकसाथ शंका के कई बुलबुले बनने व फूटने लगे.

आखिर में मेरी सोच सिगरेट पर जा कर अटक गई. मुझे लगा कि शायद गाड़ी चलाते समय पति के हाथ में सिगरेट जलती ही होगी और नींद का झोंका आया होगा और हाथ की जलती सिगरेट छूट कर नीचे गिर गई होगी. जब फर्श का कारपेट जल कर गाड़ी में धुआं भर गया होगा तो उसे देख कर लोगों ने शीशा तोड़ कर आग बुझाई होगी. पता नहीं क्या सोच कर मैं दुखी नहीं थी.

शायद मैं सोच रही थी कि आज के बाद पति हमेशा के लिए ही सिगरेट छोड़ देंगे, क्योंकि बहुत बड़ा नुकसान होतेहोते बच गया. रात को खाना खाने से पहले मैं ने पति को बाहर जाते देख कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हैं?’’ ‘‘सिगरेट खत्म हो गई है. बाहर पीने जा रहा हूं.’’ ‘‘क्या…आप ने अब भी सिगरेट छोड़ने का फैसला नहीं किया?’’ ‘‘तुम क्या समझती हो कि मेरी सिगरेट से गाड़ी जलने लगी थी?’’ ‘‘और क्या.

इस में कोई शक है क्या?’’ ‘‘मैडम, तुम्हारी पूजापाठ की वजह से आज गाड़ी में आग लग जाती. घर से कहीं जाओगी तो गाड़ी में अगरबत्ती जलाना नहीं भूलती हो. आगे से यह सब नहीं चलेगा, समझीं.’’ मैं आंखें फाड़े आश्चर्य से पति को देख रही थी.

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अफवाह के चक्कर में

जैसे ही बड़े साहब के कमरे में छोटे साहब दाखिल हुए, बड़े साहब हत्थे से उखड़ पड़े, ‘‘इस दीवाली पर प्रदेश में 2 अरब की मिठाई बिक गई, आप लोगों ने व्यापार कर वसूलने की कोई व्यवस्था ही नहीं की. करोड़ों रुपए का राजस्व मारा गया और आप सोते ही रह गए. यह देखिए अखबार में क्या निकला?है? नुकसान हुआ सो हुआ ही, महकमे की बदनामी कितनी हुई? पता नहीं आप जैसे अफीमची अफसरों से इस मुल्क को कब छुटकारा मिलेगा?’’

बड़े साहब की दहाड़ सुन कर स्टेनो भी सहम गई. उस के हाथ टाइप करतेकरते एकाएक रुक गए. उस ने अपनी लटें संभालते हुए कनखियों से छोटे साहब के चेहरे की ओर देखा, वह पसीनेपसीने हुए जा रहे थे. बड़े साहब द्वारा फेंके गए अखबार को उठा कर बड़े सलीके से सहेजते हुए बोले, ‘‘वह…क्या है सर? हम लोग उस से बड़ी कमाई के चक्कर में पड़े हुए थे…’’

उन की बात अभी आधी ही हुई थी कि बड़े साहब ने फिर जोरदार डांट पिलाई, ‘‘मुल्क चाहे अमेरिका की तरह पाताल में चला जाए. आप से कोई मतलब नहीं. आप को सिर्फ अपनी जेबें और अपने घर भरने से मतलब है. अरे, मैं पूछता हूं यह घूसखोरी आप को कहां तक ले जाएगी? जिस सरकार का नमक खाते हैं उस के प्रति आप का, कोई फर्ज बनता है कि नहीं?’’

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यह कहतेकहते वह स्टेनो की तरफ मुखातिब हो गए, ‘‘अरे, मैडम, आप इधर क्या सुनने लगीं, आप रिपोर्ट टाइप कीजिए, आज वह शासन को जानी है.’’

वह सहमी हुई फिर टाइप शुरू करना ही चाहती थी कि बिजली गुल हो गई. छोटे साहब और स्टेनो दोनों ने ही अंधेरे का फायदा उठाते हुए राहत की कुछ सांसें ले डालीं. पर यह आराम बहुत छोटा सा ही निकला. बिजली वालों की गलती से इस बार बिजली तुरंत ही आ गई.

‘‘सर, बात ऐसी नहीं थी, जैसी आप सोच बैठे. बात यह थी…’’ छोटे साहब ने हकलाते हुए अपनी बात पूरी की.

‘‘फिर कैसी बात थी? बोलिए… बोलिए…’’ बड़े साहब ने गुस्से में आंखें मटकाईं. स्टेनो ने अपनी हंसी को रोकने के लिए दांतों से होंठ काट लिए, तब जा कर हंसी पर कंट्रोल कर पाई.

‘‘सर, हम लोग यह सोच रहे थे कि मिठाई की बिक्री तो 1-2 दिन की थी, जबकि फल और सब्जियों की बिक्री रोज होती है, पापी पेट भरने के लिए सब्जियां खरीदा जाना आम जनता की विवशता है. तो क्यों न उस पर…’’

इतना सुनना था कि बड़े साहब की आंखों में चमक आ गई, वह खुशी से उछल पडे़, ‘‘अरे, वाह, मेरे सोने के शेर. यह बात पहले क्यों नहीं बताई? अब आप बैठ जाइए, मेरी एक चाय पी कर ही यहां से जाएंगे,’’ कहतेकहते फिर स्टेनो की तरफ मुड़े, ‘‘मैडम, जो रिपोर्ट आप टाइप कर रही?थीं, उसे फाड़ दीजिए. अब नया डिक्टेशन देना पड़ेगा. ऐसा कीजिए, चाय का आर्डर दीजिए और आप भी हमारे साथ चाय पीएंगी.’’

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अगले दिन से शहर में सब्जियों पर कर लगाने की सूचना घोषित कर दी गई और उस के अगले दिन से धड़ाधड़ छापे पड़ने लगे. अमुक के फ्रिज से 9 किलो टमाटर निकले, अमुक के यहां 5 किलो भिंडियां बरामद हुईं. एक महिला 7 किलो शिमलामिर्च के साथ पकड़ी गई?थी, पर 2 किलो के बदले में उसे छोड़ दिया. जब आईजी से इस बाबत बात की गई तो पता चला कि वह सब्जी बेचने वाली थी, उस ने लाइसेंस के लिए केंद्रीय कार्यालय में अरजी दी हुई है. शहर में सब्जी वालों के कोहराम के बावजूद अच्छा राजस्व आने लगा. बड़े साहब फूले नहीं समा रहे थे.

एक दिन बड़े साहब सपरिवार आउटिंग पर थे. आफिस में सूचना भेज दी थी कि कोई पूछे तो मीटिंग में जाने की बात कह दी जाए. छोटे साहब और स्टेनो, दोनों की तो जैसे लाटरी लग गई. उस दिन सिवा चायनाश्ते के कोई काम ही नहीं करना पड़ा. अभी हंसीमजाक शुरू ही हुआ था कि चपरासी ने उन्हें यह कह कर डिस्टर्ब कर दिया कि कोई मिलने आया है.

छोटे साहब ने कहा, ‘‘मैं देख कर आता हूं,’’ बाहर देखा तो एक नौजवान अच्छे सूट और टाई में सलाम मारता मिला. उसे कोई अधिकारी जान छोटे साहब ने अंदर आने का निमंत्रण दे डाला. उस ने हिचकिचाते हुए अपना परिचय दिया, ‘‘मैं छोटामोटा सब्जी का आढ़ती हूं. इधर से गुजर रहा था तो सोचा क्यों न सलाम करता चलूं,’’ यह कहते हुए वह स्टेनो की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘मैडम, यह 1 किलो सोयामेथी आप के लिए?है और ये 6 गोभी के फूल और 2 गड्डी धनिया, छोटे साहब आप के लिए.’’

छोटे साहब ने इधरउधर देखा और पूछा, ‘‘बड़े साहब के लिए?’’

उस ने दबी जबान से बताया, ‘‘एक पेटी टमाटर उन के घर पहुंचा आया हूं.’’

बड़े साहब की रिपोर्ट शासन से होती हुई जब अमेरिका पहुंची तो वहां के नए राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि अगर लोग हिंदुस्तान की सब्जी मार्किट में इनवेस्ट करना शुरू कर दें तो वहां के स्टाक मार्किट में आए भूचाल को समाप्त किया जा सकता है.

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एक अखबार ने हिंदुस्तान की फुजूलखर्ची पर अफसोस जताते हुए खबर छापी, ‘‘अगर चंद्रयान के प्रक्षेपण पर खर्च किए धन को सब्जी मार्किट में लगा दिया जाता तो उस के फायदे से लेहमैन जैसी 100 कंपनियां खरीदी जा सकती थीं.’’

जैसे आयकर के छापे पड़ने से बड़े लोगों के सम्मान में चार चांद लगते हैं, बड़ेबड़े घोटालों के संदर्भ में छापे पड़ने से राजनीतिबाज गर्व का अनुभव करते हैं, आपराधिक मुकदमों की संख्या देख कर चुनावी टिकट मिलने की संभावना बढ़ती है वैसे ही सब्जी के संदर्भ में छापे पड़ने से सदियों से त्रस्त हम अल्पआय वालों को भी सम्मान मिल सकता है, यह सोच कर मैं ने भी अपने महल्ले में अफवाह उड़ा दी कि मेरे घर में 5 किलो कद्दू है.

छापे के इंतजार में कई दिन तक कहीं बाहर नहीं निकला. अपनी गली से निकलने वाले हर पुलिस वाले को देख कर ललचाता रहा कि शायद कोई आए. मेरा नाम भी अखबारों में छपे. 15 दिन की प्रतीक्षा के बाद जब मैं यह सोचने को विवश हो चुका था कि कहीं कद्दू को बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) में तो नहीं रख दिया गया? तभी एक पुलिस वाला आ धमका. मेरी आंखों में चमक आ गई. मैं ने बीवी को बुलाया, ‘‘सुनती हो, इन को कद्दू ला के दिखा दो.’’

बीवी मेरे द्वारा बताए गए दिशा- निर्देशों के अनुसार पूरे तौर पर सजसंवर कर…बड़े ही सलीके से 250 ग्राम कद्दू सामने रखती हुई बोली, ‘‘बाकी 15 दिन में खर्च हो गयाजी.’’

पुलिस वाले ने गौर से देखा कि न तो चायपानी की कोई व्यवस्था थी और न ही मेरी कोई मुट्ठी बंद थी. उस की मुद्रा बता रही थी कि वह मेरी बीवी के साजशृंगार और मेरे व्यवहार, दोनों ही से असंतुष्ट था. वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आप को अफवाह फैलाने के अपराध में दरोगाजी ने थाने पर बुलवाया है.’’

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पैसों की बेजा मांग, स्कूल संचालक की हत्या!

महत्वपूर्ण तथ्य उभर कर आया है कि कैसे  एक  शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्षरत नवयुवक को जब पैसों के लिए परेशान हलाकान किया गया तब, एक नाबालिग  मित्र  के साथ मिलकर उन्होंने  दो लोगों की नृशंस हत्या कर दी. जिसे उजागर करने में पुलिस के भी पसीने छूट गए.

यह भी  की एक करार (एग्रीमेंट)  कब, कितना भारी पड़ जाता है, यह इस हत्याकांड से समझा जा सकता है. वहीं हमारी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को नंगा करता   यह हत्याकांड, यह सवाल भी हमारे बीच छोड़ जाता है कि आज की शिक्षा व्यवस्था पैसों को लेकर कितनी बदतर हालात मे हैं.

परीक्षा में पास करा, मांगते थे पैसे

दरअसल, इस सनसनीखेज हत्या में स्कूल संचालक और आरोपी के बीच 10 वीं कक्षा  में उत्तीर्ण कराने के एवज में पैसे का करार  कारण बना. आरोपी से मृतक द्वारा लगातार पैसे की मांग की जा रही था. जिससे  हालाकान होकर आरोपी ने वारदात को अंजाम दे दिया. पुलिस ने मामले में मुख्य आरोपी व उसके नाबालिग साथी को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है.

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यह मामला छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के अंडा थाना क्षेत्र के विनायकपुर व रनचिरई थाना क्षेत्र  का है,जहां  मिले शव की शिनाख्त पुलिस द्वारा एक निजी श्रेया पब्लिक स्कुल के संचालक विजय नंदा वानखेड़े व उनके साथी एकाउंटेंट आनंद बीबे के रूप में की गई. एसएसपी अजय यादव ने हमारे संवाददाता को  बताया कि मुख्य आरोपी पुरेन्द्र साहू (21 वर्ष) स्कूल संचालक व उसके साथी से परेशान और भयभीत हो चला था.

इस घटनाक्रम में महत्वपूर्ण तथ्य है कि मृतको द्वारा आरोपी पुरेन्द्र साहू को दसवीं कक्षा में उत्तीर्ण कराने के एवज में 20 हजार रुपए मांगा जा रहा था. इसके लिए वे उसे बेहद परेशान करते थे.  दोनों से बचने के लिए आरोपी ने पैसे देने के बहाने से दोनों  को बुलाकर आरोपी  ने अपने एक नाबालिक साथी के साथ मिलकर हत्या की घटना कारित की.

और कर दी हत्या!

इस मामले में शव मिलने के बाद पहले मृतकों की शिनाख्त अंडा थाना  क्षेत्र में तस्दीक की गई. पुलिसिंग पूछताछ में मृतकों के  दो लड़कों के साथ देखे जाने की जानकारी सामने  आई. पुलिस ने दोनों  को हिरासत में लेकर जब  पूछताछ की तो  आरोपियों ने हत्या  को अंजाम देने स्वीकार किया. पुलिस ने आरोपियों के पास से घटना में इस्तेमाल हथियार,  बाईक व दस्तावेज बरामद किया है.

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पुलिस के अनुसार आरोपी पुरेन्द्र साहू 10 वीं कक्षा में  अनुत्तीर्ण हो गया था. जिसके बाद 2018 में विजयनंदा वानखेड़े व आनंद बीबे से संपर्क में आया. दोनों ने पुरेन्द्र को पत्राचार के माध्यम से पास कराने का भरोसा देते हुए पैसे का सौदा किया.  मृतकों के मार्गदर्शन में पुरेन्द्र  साहू ने पत्राचार से परीक्षा दी और  परिणाम स्वरूप उत्तीर्ण हो गया. लेकिन बाद  मे आरोपी द्वारा करार  किये गये  पैसे  नहीं देने पर स्कूल संचालक एवं अकाउंटेंट आरोपी से  20 हजार रुपए देने के लिए लगातार मांगते रहे.

लेकिन आरोपी पैसे देने में असमर्थ था. और  जब दोनों  द्वारा लगातार फोन करके व उनके घर दबिश देकर  20 हजार के लेने के लिए धमकियां  देते थे. लगातार धमकियों से परेशान आरोपी ने हत्या की योजना बनाई. इसके लिए उसने अपने एक नाबालिग दोस्त के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया.  आरोपियों ने 2 दिसम्बर को मृतकों को पैसे देने के लिए बुलाया फिर   को मिलते ही  स्कूल संचालक विजय नंदा वानखेड़े को हथौड़ी से सर पर वारकर और उनके साथी आनंद बीबे का हथौड़ी व पत्थर से चहेरे-सिर पर वार व पत्थर से गला दबाकर कर हत्या कर दी.

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भोजपुरी एक्टर रवि किशन की खूबसूरत बेटी ने इस फिल्म में किया डेब्यू, ट्रेलर हुआ लौन्च

भोजपुरी, बौलीवुड और दक्षिण की फिल्मों के जाने माने अभिनेता और गोरखपुर के सांसद रवि किशन की बेटी रीवा किशन ने बौलीवुड फिल्म ‘सब कुशल मंगल है’ के जरिए डेब्यू किया है. फिल्म का ट्रेलर लौन्च हो चुका है और यह फिल्म 3 जनवरी 2020 को देश भर में एक साथ रिलीज होने वाली है.

रीवा किशन के साथ ही अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री रही पद्मिनी कोल्हापुरे के बेटे प्रियांक शर्मा ने भी इस फिल्म से डेब्यू किया है. फिल्म की कहानी बिहार और झारखंड में शादी से जुड़ी विशेष प्रथा पर आधारित मानी जा रही है. ट्रेलर देख कर यह माना जा रहा है की फिल्म के डायलौग बेहद कसे हुए होंगे. ट्रेलर के शुरू में ही रीवा किशन लड़कों की पतंग काटते हुए नजर आती हैं. उस दौरान का उनका डायलॉग “कि अभी किस्मत वाले हैं ऐसे मां-बाप जिनकी लड़कियों ने लड़कों की नाक काट रखी है” खासा फेमस हो रहा है.

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ट्रेलर के नजरिये से फिल्म में भोजपुरी – हिंदी भाषा बेल्ट में बोली जाने वाली आम भाषा से जुड़े संवाद दर्शकों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब होते नजर आयेंगे. एक संवाद “मंदिरा तुम्हें शर्म नहीं है हगडू बच्चों के साथ मस्ता रही हो” चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी है.

इस फिल्म में रीवा किशन व प्रियांक शर्मा के साथ अक्षय खन्ना, सतीश कौशिक, सुप्रिया पाठक, युविका चौधरी, मृणाल जैन, अपूर्वा नेमलेकर, ने मुख्य भूमिका निभाई है. फिल्म की कहानी बृजेंद्र काला और करण विश्वनाथ कश्यप ने लिखी है. फिल्म के डायरेक्टर करण विश्वकप है और प्रोड्यूसर प्राची नितिन मनमोहन है. संगीत हर्षित सक्सेना का है और बोल समीर अंजन ने दिया है. फिल्म में ना केवल गंभीर सामाजिक समस्या को उठाया गया है बल्कि या लोगों को हंसाने और गुदगुदाने में भी कामयाब होती नजर आएगी.

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ट्रेलर का लिंक –

Bigg Boss 13: रश्मि के साथ रिश्ते को लेकर भड़कीं अरहान की गर्लफ्रेंड, पुलिस में दर्ज की शिकायत

कलर्स टीवी के बेहद पौपुलर रिएलिटी शो बिग बौस का सीजन 13 दर्शकों को खूब एंटरटेन कर रहा है. जहां एक तरफ घर में लड़ाई झगड़े देखने को मिल रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बिग बौस के घर में प्यार के फूल भी खिल रहे हैं. जी हां, जैसा कि हम सबने देखा कि सोमवार के एपिसोड में कंटेस्टेंट अरहान खान ने बिग बौस के घर में दोबारा एंट्री मार कर रश्मि देसाई से अपने प्यार का इजहार किया और उन्हें वे रिंग भी दिखाई जो वे बाहर से उनके लिए लाए थे.

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एक्स गर्लफ्रेंड ने लगाया अरहान पर आरोप…

इसी के साथ साथ एक और शख्स का नाम बेहद सुर्खियों में बना हुआ है और वो नाम है अमृता धनोआ का. आपको बता दें कि अमृता धनोआ अरहान खान की एक्स गर्लफ्रेंड रह चुकी हैं. जैसे जैसे अरहान का नाम रश्मि के साथ जुड़ता जा रहा है वैसे वैसे अमृता अरहान की पोल खोलती दिखाई दे रही हैं. जी हां, अमृता ने बताया कि वे और अरहान 5 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में रहे हैं और इतना ही नहीं बल्कि काम ना होने पर अरहान ने उनसे 5 लाख रूपए तक लिए थे जो अरहान ने अभी तक वापस नहीं किए हैं.

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पुलिस स्टेशन में दर्ज की शिकायत…

अमृता धनोआ ने अरहान के खिलाफ पुलिस में कंम्पलेंट भी दर्ज करवाई है और मीडिया के सामने रिपोर्ट तक दिखाई है. अमृता का दावा है कि उन्होंने ओशिवारा पुलिस स्टेशन में अरहान खान के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है और ये सब सुनते ही रश्मि देसाई के फैंस को काफी बड़ा झटका लगा है.

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क्या करेंगे अरहान खान…

सबसे बड़ी बात का खुलासा जो अमृता ने किया है वो ये है कि रिलेशनशिप में होते हुए भी अरहान ने काफी बार उन्हें धोखा दिया था तो इसी बात को ले कर उन्होनें रश्मि और अरहान के रिश्ते को लेकर भी बयान दिया है कि ये सब एक ड्रामा है और कुछ भी नहीं. अब देखने वाली बात ये होगी कि अरहान खान इस सब बातों पर कैसा रिएक्ट करेंगे. खैर ये सब तो तभी पता चलेगा जब अरहान खान बिग बौस के घर से बाहर आएंगे.

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आधा है चंद्रमा रात आधी

‘‘मान्यवर, महंगाई के बारे में आप से कुछ बात करनी थी.’’

वह गुस्से से थर्रा उठे थे. कुरसी उन से टकराई थी या वह कुरसी से, मैं नहीं बता सकता.

‘‘इस के लिए आप ने कितनी बार लिख डाला? गिनती में आप बता सकते हैं?’’

‘‘जी, जितनी बार वामपंथियों ने समर्थन वापस लेने की धमकियां दे डालीं,’’ मैं ने विनम्रता से कहा.

‘‘इस मुद्दे पर आप हमारा कितना कीमती समय बरबाद कर चुके हैं, कुछ मालूम है. आप को तो मुल्क की कोई दूसरी समस्या ही नजर नहीं आती… पाकिस्तानी सीमा पर आएदिन गोलीबारी होती रहती है. चीनी सीमा अभी तक विवादित पड़ी है. हम देश की अस्मिता बचाने में परेशान हैं. हमारी आधी सेना उन से लोहा लेने में लगी हुई है…’’

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उन के इस धाराप्रवाह उपदेश के दौरान ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘और बाकी आधी…’’

उन्होंने गुर्रा कर कहा, ‘‘मुल्क के तमाम हिस्सों में बोरवेलों में गिरने वाले बच्चों को निकालने में…कभी आप ने यह जानना नहीं चाहा कि अंदरूनी हालात भी कम खराब नहीं चल रहे हैं. मुंबई, बनारस, अक्षरधाम, हैदराबाद, बंगलौर, जयपुर के बाद अभी हाल में दिल्ली में आतंकवादी हमलों से देश कांप उठा है. हमारे आधे सुरक्षाबल तो उन्हीं से जूझ रहे हैं.’’

मैं ने प्रश्नवाचक मुंह बनाया, ‘‘बाकी आधे…’’

उन्होंने खट्टी डकार लेते हुए बताया, ‘‘वी.आई.पी. सुरक्षा में मालूम नहीं क्यों लोग अधिकारियों और मंत्रियों का घेराव करते रहते हैं. हमारे पास जादुई चिराग तो है नहीं. किसान कहते हैं अनाज की कीमतें बढ़ाइए, आप कहते हैं घटाइए. आप ही बताइए हम इसे कैसे संतुलित करें? हम तो बीच में कुछ अनाज धर्मकर्म पर या व्यवस्था के नाम पर ही तो लेते हैं. शेष का आधा आप लोगों की सेवा में ही लगाया जाता है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘और बाकी आधा…’’

वह बहुत जोर से झल्ला उठे, ‘‘बाकी आधा सरकारी गोदामों में सड़ जाता है. आप लोग यह जो नेतागीरी करते रहते हैं, हमें काम करने का समय ही नहीं मिल पाता. गोदाम से अनाज निकलवाने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट तक बेकार की दौड़ करनी पड़ती है. यह काम सुप्रीम कोर्ट का है कि दिल्ली की सड़कों की सफाई के लिए भी लोग वहां पहुंच जाते हैं. उस का आधा समय तो यों ही निकल जाता है.’’

‘‘और शेष आधा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आतंकवादियों के मुकदमे सुनने में, पुलिस वालों के मुकदमे सुनने में और सरकारी व संवैधानिक संकट के समय उन को सलाहमशविरा देने में.

‘‘हमारी तो दिली इच्छा है कि हम सरकारों या सियासी पार्टियों को इस दलदल से निकालें. पर ये दोनों ही जनता की आड़ ले कर निकलना ही नहीं चाहते. जो बच्चे बोरवेल से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जिन कपड़ों को मौडलों के बदन से निकलना था, निकल लिए. जो आतंकवादी मुल्क से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जो अपराधी जेल से निकलना चाहते थे, निकल लिए.

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जो नेता पार्टी से निकलना चाहते थे, निकल लिए जो ‘बड़े’ घोटालों से निकलना चाहते थे, निकल लिए. स्वाभाविक नींद सोने वालों को तो जगाया जा सकता है, पर जो बन के सो रहे हों, उन्हें कौन जगा सकता है? क्योंकि तेल कंपनियां मुसीबत से निकलना चाहती थीं, प्रधानमंत्री से अपना रोना रोईं, उन्होंने आश्वासन दिया कि वे उन को परेशान नहीं देखना चाहते, कुछ दाम तो बढ़ाने ही होंगे. इस के बाद ‘ब्रांडेड’ पेट्रोल और बढ़े हुए दामों पर आ गया, रसोई गैस के नए कनेक्शन मिलने बंद हो गए हैं, आप जानते हैं कि आप मिट्टी के तेल, रसोई गैस आदि के असली मूल्य का आधा ही चुकाते हैं.’’

‘‘और आधा…’’ मेरे मुंह से आदतानुसार निकल गया.

‘‘अभी तक हम चुका रहे थे, अब बंद कर देंगे. आप का समय ‘पूरा’ खत्म हो गया.’’

मैं बाहर निकलते समय सोच रहा था कि वह सचमुच कितनी कंजूसी से काम चलाते हैं. आधे सांसदों से भी कम खर्च कर के सरकार बना भी लेते हैं और चला भी लेते हैं. जो तनाव ले कर मैं उन से मिलने गया था, आधा कम हो चुका था. ‘आधा है चंद्रमा रात आधी…’ गीत गुनगुनाते हुए मैं लौट पड़ता हूं क्योंकि अच्छा संगीत तनाव को आधा कर देता है.

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किस काम का हिंदू विवाह कानून

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में प्रवीण व नीलम का विवाह 1998 में हुआ जब नीलम 18 साल की थी. दोनों को एक बेटी भी हुई. फिर दोनों के बीच मतभेद खड़े हो गए और वे अलगअलग रहने लगे. तब 2009 में पति ने तलाक का मुकदमा पारिवारिक अदालत में डाला. होना तो यह चाहिए था कि पत्नी की जो भी वजहें रही हों, पति और पत्नी को जबरन ढोए जा रहे संबंधों से कानूनी मुक्ति दिला दी जानी चाहिए थी पर पारिवारिक अदालत ने ऐप्लिकेशन रद्द कर दी.

चूंकि साथ रहना संभव न था, इसलिए पति ने जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया. जिला अदालत ने 3 साल इंतजार करा कर 2012 में तलाक मंजूर करने से इनकार कर दिया. नीलम अब 32 साल की हो चुकी थी.

प्रवीण उच्च न्यायालय पहुंचा. उच्च न्यायालय ने मई, 2013 में तलाक नामंजूर कर दिया, जबकि मामला शुरू हुए 15 साल गुजर चुके थे. दोनों जवानी भूल चुके थे.

प्रवीण अब सुप्रीम कोर्ट आया. समझौता वार्त्ता के दौरान प्रवीण ने क्व10 लाख पत्नी को देने की पेशकश की और क्व3 लाख का फिक्स्ड डिपौजिट करने का प्रस्ताव रखा, पर यह करतेकराते सुप्रीम कोर्ट में 6 साल लग गए.

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इस दौरान दोनों पक्षों ने कई मुकदमे शुरू कर दिए. 2009 में गुजारेभत्ते के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के अंतर्गत जिला अदालत इटावा में एक मुकदमा दायर किया गया. 2009 में ही घरेलू हिंसा का एक और मुकदमा नीलम ने इटावा में दायर किया. एक दहेज के बारे में 2002 में केस दायर किया गया था. एक मामला इटावा में ही इंडियन पीनल कोड की धारा 406 में अमानत में खयानत यानी ब्रीच औफ ट्रस्ट पर दायर किया गया था.

यहां तक कि पति के खिलाफ डकैती तक का मामला दायर किया गया था कि वह 5 जनों के साथ घर लूटने आया था.

आंतरिक विवाद जो भी हों विवाह के मामले में इतनी मुकदमेबाजी आज आम हो गई है और इस में पिसती औरत ही है.

18 साल की लड़की, जिस की शादी 1998 में हुई हो, न जाने कितने सपने ले कर ससुराल आई होगी पर जो भी मतभेद हों, वे अगर हल नहीं होते तो अलग हो कर चाहे तलाकशुदा का तमगा लगाए घूमना पड़े पर 20 साल अदालतों के चक्कर तो नहीं लगाने पड़ने चाहिए.

लाखों की वकीलों की फीस के बदले क्व13 लाख मिले पर क्या ये काफी हैं? क्या यह जवानी की अल्हड़ता फिर आएगी जब बेटी खुद शादी के लायक हो रही है?

यह हिंदू विवाह कानून किस काम का जो औरतों को 20-30 साल इंतजार कराए और बिना तलाक के रखे? यह आतंक तीन तलाक से कम नहीं है, लेकिन हिंदू धर्माधीश इसे सिर पर पगड़ी और माथे पर तिलक मान कर चल रहे हैं.

औरतें उन के पैरों की जूतियां हैं, जो चरणामृत पीती हैं. विवाह तो धर्म के दुकानदारों के हिसाब से संस्कार है. कुंडलियां मिला कर होने वाला विवाह जिस में लड़की की रजामंदी नहीं ली जाती पहले सुधार मांगती है. मुसलिम औरतें कम से कम दासी नहीं हैं, यह निर्णय तो यही कहता है.

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सामाजिक दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन धार्मिक कथाएं किस तरह दिमाग खराब करती हैं और किस तरह औरतों के अत्याचारों के लिए जिम्मेदार हैं, यह रामायण और महाभारत से साफ है. हजारों औरतों को देशभर में अपने पाकसाफ होने के सुबूत में हाथपैर जलाने पड़ते हैं. पति अगर आरोप लगा दे कि पत्नी की किसी से आशनाई चल रही है तो राम और सीता के प्रसंग का लाभ उठा कर घरवाले ही नहीं, बल्कि पूरा समाज औरत को अग्नि परीक्षा सी देने को मजबूर करता है, जिस में स्वाभाविक है वह दोषी पाई जाती है और सदा के लिए बदनाम हो जाती है.

इसी तरह युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी को जुए में हारने की कहानी इतनी बार कही जाती है कि आम लोगों में इसे सही मान कर अपनी पत्नी को दांव पर लगाने का हक सा मिल गया है. रामसीता के प्रदेश उत्तर प्रदेश में जौनपुर में एक पति ने एक बार नहीं 2 बार अपनी पत्नी को जुए में दांव पर लगा दिया और हार गया.

जाफराबाद में पुलिस स्टेशन में जुलाई 2019 में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार एक नशेड़ी व जुआरी पति ने 2 दोस्तों के साथ जुआ खेलते हुए सबकुछ हार कर अपनी पत्नी को ही दांव पर लगा दिया. शायद उस के मन में बैठा होगा कि हारने पर कोई कृष्ण उस की पत्नी को भी बचा ही लेगा. अफसोस वह हार गया और दोनों दोस्तों ने उस की पत्नी का रेप किया, पति की इच्छा के हिसाब से.

नाराज पत्नी के पास घर छोड़ने के अलावा कोई चारा न था, क्योंकि पति ने तो धर्मनिष्ठ काम किया था, जो शायद स्वयं पत्नी की निगाह में अपराध न था. उस ने पहली बार न पुलिस में शिकायत की, न तलाक मांगा. वह घर छोड़ गई तो पति माफी मांगता पहुंचा. बेचारी हिंदू औरत उसे लौटना पड़ा, समाज का दबाव जो था. पति ने तो धर्म की मुहर लगा काम ही किया था न.

पति के सिर पर तो धर्म का भूत सवार था कि पत्नी उस की मिल्कीयत है, हाथ की घड़ी, पैरों के जूतों की तरह. उस ने उसे फिर धर्मराज युधिष्ठिर बन कर दांव पर लगा दिया. इस बार द्रौपदी नाराज हो गई. कोई कृष्ण नहीं आया बचाने के लिए तो पुलिस स्टेशन पहुंची.

अभियुक्तों को पकड़ लिया पर आगे होगा क्या? कुछ नहीं. औरत को झख मार कर लौटना पड़ेगा.

रामायण, महाभारत का नाम ले कर तो कहानियां रातदिन इतनी बार दोहराईर् जाती हैं कि औरतों को अपना पूरा जीवन सेवा और हुक्म मानने के लिए तैयार रहना पड़ता है. जब तलाक मांगो तब अदालतें भी नहीं देतीं. उन के दिमाग में भी बैठा है कि पति के बिना पत्नी कमजोर, असहाय है. इस सामाजिक दुर्दशा के लिए भाजपा सरकार तो कुछ न करेगी. औरतों को खुद ही आगे आना होगा पर वे आएंगी तो तब न जब उन्हें पूजापाठ, व्रतों, संतों की सेवा, तीर्थयात्राओं, जलाभिषेकों, मूर्तिपूजाओं से फुरसत मिले.

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बिजली मुफ्त औरतें मुक्त

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का 2 बत्ती, 1 टीवी, 1 पंखा, 1 फ्रिज, 1 कूलर, 1 कंप्यूटर के लायक 200 यूनिट तक की बिजली मुफ्त करने का फैसला चतुराईभरा है. 200 यूनिट तक का बिल अब माफ कर दिया गया है. शहर के

45 लाख उपभोक्ताओं को इस से लाभ होगा और बिजली का बिल भुगतान न होने के कारण बिजली इंस्पैक्टरों की धौंस का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से वैसे भी 33% घरों में 200 यूनिट से कम बिजली खर्च होती है. अब तक लोग 200 यूनिट के क्व600-700 देते थे. इस से पहले खर्च क्व1,200 था जिस की खपत ज्यादा है, वे पक्की बात है कि अब कम बत्ती का इस्तेमाल कर के 200 यूनिट के नीचे रहना चाहेंगे. सब से बड़ी बात यह है जब बत्ती मुफ्त मिल रही है तो घर के सामने खुले तारों पर कांटा डाल कर बत्ती जलाने की आदत भी खत्म हो जाएगी.

इस पर खर्च क्व1,400 करोड़ तक आ सकता है पर 60,000 करोड़ के बजट में यह कोई खास नहीं. खासतौर पर तब जब सरकार को कम बिल भेजने पड़ेंगे. एक बिल छापने, भेजने, पैसा वसूल करने में ही 50 से 100 रुपए लग जाना मामूली बात है. बिजली दफ्तर जा कर बिल जमा कराने में शहरी गरीब जनता को न जाने कितना खर्च करना पड़ता है.

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जब सरकार जगहजगह वाईफाई फ्री कर ही रही है कि लोग मोबाइलों का इस्तेमाल कर के हर समय सरकार के फंदे में रहें तो गरीबों को यह छूट देना गलत नहीं है. गरीब औरतों के लिए यह वरदान है कि अब उन की बिजली कटेगी नहीं और वे न रातभर खुले में सोने को मजबूर होंगी और न उन के बच्चे रातभर पढ़ने से रह जाएंगे.

सरकारें बहुत पैसा वैसे भी जनहित के कामों के लिए खर्च करती हैं. हर शहर में पार्क बनते हैं पर पार्क में जाने के लिए पैसे नहीं लिए जाते. सड़कें, गलियां बनती हैं जिन पर चलने की फीस नहीं ली जाती. सस्ते सरकारी स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय हैं जहां बहुत कम पैसों में पढ़ाई होती है. बहुत अस्पतालों में तामझाम का पैसा न ले कर इलाज होता है.

जो लोग इसे टैक्सपेयर की जेब पर डाका मान रहे हैं यह भूल रहे हैं कि उन के अपने कर्मचारी अब ज्यादा सुरक्षित, सुखी और प्रोडक्टिव हो जाएंगे, क्योंकि वे अंधेरे के खौफ में न रहेंगे.

जनहित काम केवल कांवड़ यात्रा का नहीं होता, पटेल की मूर्ति का नहीं होता, मन की बात का जबरन प्रसारण नहीं होता, बिजलीपानी भी जरूरी है. साफ हवा की तरह गरीब औरतों के लिए थोड़ी सी बिजली मुफ्त हो तो एतराज नहीं. यह उन्हें कटने के खौफ से मुक्त रखेगा.

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पौलिटिकल राउंडअप: भाजपा की बढ़ी मुसीबत

लोक जनशक्ति पार्टी के ताजातरीन राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने सुर बदलते हुए ऐलान किया कि लोजपा आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी और पार्टी 50 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम की लिस्ट जारी कर देगी.

इस ऐलान से पहले लोजपा ने झारखंड में राजग के सहयोगी के तौर पर 6 सीटें मांगी थीं, लेकिन 10 नवंबर को भाजपा ने अपने 52 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी थी.

झारखंड में राजग के एक और सहयोगी दल आल झारखंड स्टूडैंट यूनियन ने बिना भाजपा से चर्चा किए 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया था.

वैसे, भाजपा को जिद पर न अड़े रहने की कला अच्छी तरह आती है. यदि दक्षिणा कम मिले तो वह कम से भी काम चला लेती है.

हवा में उड़ते विजय रूपाणी

अहमदाबाद. जहां एक तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल महिलाओं को सरकारी बसों में मुफ्त सफर करवा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ गुजरात की भाजपा सरकार ने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और दूसरे वीवीआईपी लोगों की यात्रा के लिए तकरीबन 191 करोड़ रुपए का हवाईजहाज खरीदा है.

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इस हवाईजहाज में एकसाथ 12 लोग सफर कर सकते हैं और इस की फ्लाइंग रेंज तकरीबन 7 हजार किलोमीटर है. इसे कनाडा के क्यूबेक इलाके की बोम्बार्डियर कंपनी ने बनाया है.

191 करोड़ रुपए कोई मामूली रकम नहीं है. अगर इसे जनता की भलाई के लिए खर्च किया जाता तो ज्यादा बेहतर रहता. जब पुजारियों के लिए अरबोंखरबों रुपए के मंदिर बन सकते हैं तो पुजारियों के रखवाले मुख्यमंत्री के लिए यह बड़ी रकम नहीं है, चाहे मेहनतमजदूरी करने वालों की जेब से जाए.

‘आप’ ने किया हमला

नई दिल्ली. विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आते ही आम आदमी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को घेरना शुरू कर दिया है. उस ने आरोप लगाया है कि भाजपा दिल्ली की कच्ची कालोनियों में रहने वाले लोगों को धोखा दे रही है. उस का कच्ची कालोनी में रहने वाले लोगों को रजिस्ट्री देने का कोई इरादा नहीं है, जबकि मनोज तिवारी मानते हैं कि ‘आप’ गुमराह कर रही है.

इस मसले पर आप नेताओं संजय सिंह और गोपाल राय ने कहा कि केंद्र सरकार का यह ऐलान पुरानी सरकारों के वादों की तरह ही छलावा साबित होता नजर आ रहा है, जबकि पिछले 4 साल में दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कच्ची कालोनियों को पक्का करने के लिए केंद्र सरकार पर खूब दबाव बनाया है और केंद्र को प्रस्ताव भी भेजा था, लेकिन कच्ची कालोनियों में रजिस्ट्री करने का भाजपा का कोई इरादा ही नहीं है.

रजिस्ट्री कार्यालय गरीब पिछड़ों को मुफ्त में पक्के मकान की पक्की रजिस्ट्री कभी देगा, यह भूल जाएं. हर मामले में बीसियों अड़चनें लगा कर दोष आधे पढ़ेलिखे बैकवर्डों और दलितों पर मढ़ दिया जाएगा कि कागज पूरे नहीं.

दिया सुप्रीम फैसला

बैंगलुरु. मामला कर्नाटक का है, पर फैसला दिल्ली में हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल सैक्युलर के 17 अयोग्य विधायकों को राहत देते हुए उन्हें 5 दिसंबर को होने वाला उपचुनाव लड़ने की इजाजत दे दी है.

बता दें कि विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने विधानसभा में एचडी कुमारस्वामी सरकार के विश्वास प्रस्ताव से पहले ही 17 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था. इस के बाद विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रहने पर कुमारस्वामी की सरकार ने इस्तीफा दे दिया था. नतीजतन, भाजपा के बीएस येदियुरप्पा की अगुआई में राज्य में नई सरकार बनी थी.

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इस नए फैसले से भाजपा की चुनौतियां बढ़ गई हैं. येदियुरप्पा सरकार को सत्ता में बने रहने के लिए 17 में से 15 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में हर हाल में 6 सीटें जीतना जरूरी हो गया है, चाहे 15 बागी विधायक उस के पाले में आ गए हैं.

अक्तूबर में हुए उपचुनावों में आमतौर पर दलबदलुओं की हार हुई है. गुजरात तक में अल्पेश ठाकुर हार गया, जो कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में चला गया था.

ओवैसी के खिलाफ शिकायत

भोपाल. हैदराबाद के तेजतर्रार मुसलिम नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी बाबरी मसजिद और राम मंदिर मसले पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाखुश दिखे. 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के मंदिर के पक्ष में लिए गए फैसले के बाद उन्होंने कहा था कि यह मेरी निजी राय है कि हमें मसजिद के लिए  5 एकड़ की जमीन के औफर को खारिज कर देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम जरूर है, लेकिन इनफिलेबल यानी अचूक नहीं है. मेरा सवाल है कि अगर 6 दिसंबर, 1992 को मसजिद न ढहाई जाती तो क्या सुप्रीम कोर्ट का यही फैसला होता?

असदुद्दीन ओवैसी के ऐसे बयान के खिलाफ वकील पवन कुमार यादव ने जहांगीराबाद पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया कि ओवैसी ने अयोध्या मसले पर उकसाने वाला बयान दिया और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की.

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इस शिकायत से ओवैसी का कुछ बिगड़े या न बिगडे़, पर ये वकीलजी जरूर सुर्खियों में आ गए.

जयराम रमेश की चिंता

गुवाहाटी. कांग्रेस के ‘थिंक टैंक’ और दिग्गज नेता जयराम रमेश बड़ी चिंता में हैं और भाजपा सरकार की कारगुजारियों से इतने नाराज हो गए हैं कि उन्होंने 13 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर आरोप लगाया कि वे ‘प्रवर्तन निदेशालय’, ‘सीबीआई’ और ‘आयकर विभाग’ के ‘त्रिशूल’ का इस्तेमाल अपने विरोधियों पर कर रहे हैं.

जयराम रमेश का मानना है, ‘मोदी और अमित शाह को अपने विरोधियों के खिलाफ नया शस्त्र ‘त्रिशूल’ मिल गया है. उस ‘त्रिशूल की 3 नोकें ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग हैं. वे अपने विरोधियों पर चोट करने के लिए इन्हीं 3 नोकों का इस्तेमाल करते रहते हैं.’

भाजपा ने जयराम रमेश को नेहरू मैमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी से निकाल दिया था. तब उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि यह लाइब्रेरी अब नागपुर मैमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी बन गई है.

मच गया बवाल

कोलकाता. ‘बुलबुल’ नाम के चक्रवाती तूफान की मार खाए पश्चिम बंगाल में सियासी तूफान भी जोर मार रहा है. वहां ममता बनर्जी और अमित शाह के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है. इसी सियासी बवाल में 13 नवंबर को कोलकाता में पुलिस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच दोबारा तनातनी हो गई. भीड़ को तितरबितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और भाजपा नेता रिमझिम मित्रा को हिरासत में ले लिया.

इतना ही नहीं, जब केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो चक्रवात ‘बुलबुल’ से प्रभावित इलाकों का दौरा करने निकले तो तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उन्हें काले झंडे दिखाए.

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