लेखक- रमेश चंद्र सिंह
अगर नीलेश कुंआरा होता और उस से संध्या का प्रेम संबंध होता तो वह खुल कर रजनी से अपने मन की बात कह देती, क्योंकि इस में शर्मिंदगी वाली कोई बात नहीं थी लेकिन अब नीलेश उस का प्रेमी नहीं. रसिक भर था जो तभी तक उस के साथ था जब तक उस का मन उस से भर न जाता और वह यह भी जानती थी कि हवस के ऐसे संबंध बहुत दिनों तक नहीं टिकते, एक न एक दिन उन्हें टूटना ही है.
इन्हीं विचारों में खोई हुई संध्या काफी उदास हो गई. अभी तक उस के इलाज में जो भी खर्च हुआ था उस का भुगतान नीलेश ही कर रहा था और उस के इस एहसान तले वह अपने को दबी हुई महसूस कर रही थी.
संध्या नौकरी करते हुए तकरीबन एक वर्ष हो गया था. अकेले होने के चलते उस का खर्चा सीमित था. रजनी का खर्चा तो उस से भी कम था क्योंकि वह स्वभाव से ही कम खर्च करती थी और मकान किराए से भी कुछ न कुद आमदनी हो जाती थी.
फिर पारिवारिक हालात ऐसी कभी नहीं रहे कि उसे फुजूलखर्ची की आदत लगे. उस की मां चपरासी थी और पारिवारिक पैंशेन ऐसे भी मूल पैंशेन की आधी होती?है. सीमित आमदनी से ही उसे 2-2 बेटियों को पढ़ाना था, साथ ही घर बनाने में भी बहुत खर्च आ रहा था.
संध्या का ज्यादातर खर्च नीलेश ही संभाल लेता, इसलिए उस के अकाउंट में अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उस ने तय किया कि वह अस्पताल का सारा खर्चा नीलेश को लौटा देगी और आगे से खुद इस को वहन करेगी.
संध्या ने सोचा कि रजनी को वह अपने क्वार्टर से चैक बुक लाने के लिए कहेगी, चाबी नीलेश के पास ही होगी, क्योंकि उसी ने आते वक्त उस का फ्लैट लौक किया होगा.
यही सब सोचते हुए शाम हो गई. नीलेश औफिस बंद कर सीधे अस्पताल पहुंचा. तब तक रजनी भी जाग गई थी.
‘‘अब कैसी हो, संध्या,’’ आते ही नीलेश ने पूछा.
‘‘ठीक हूं, सिर में थोड़ा दर्द?है,’’ संध्या ने कहा तो नीलेश बोला, ‘‘डाक्टर से नहीं कहा?’’
‘‘कहा था. दवा लिख कर दे गया है.’’
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‘‘परचा मुझे दो, मैं दवा ला देता हूं,’’ नीलेश ने कहा तो रजनी ने दीदी के हाथ से परचा लेते हुए कहा, ‘‘तुम क्यों परेशान होते हो. मैं ला देती हूं न.’’
‘‘तुम दवा के पैसे लेते जा, फार्मेंसी वाले नकद भुगतान लेते?हैं,’’ नीलेश ने कहा तो संध्या कुछ न बोली, क्योंकि उस के पास पैसे नहीं थे और रजनी तो अभी दूसरों की मुहताज थी.
‘‘रहने दो, मैं पैमेंट कर दूंगी.’’
‘‘अभी तुम्हें पैसे की बहुत जरूरत है.’’ संभाल कर रखो, ‘‘कहते हुए नीलेश रजनी को 2,000 रुपए का एक नोट थमा दिया.
रजनी ने दवा ला कर संध्या को दी और कहा, ‘‘अगर दीदी ठीक रहती हैं तो मैं नीलेश के घर जा कर भाभी से मिलूंगी मैं यह जानना चाहती हूं कि वे अब तक दीदी से मिलने कभी अस्पताल क्यों नहीं आई.’’
यह सुनते ही वहां सन्नाटा सा पसर गया. न संध्या ने कुछ कहा नीलेश ने. अब वे कहते भी क्या उन्हें अचानक रजनी से इस तरह के प्रस्ताव की उम्मीद नहीं थी.
दोनों को चुप देख कर रजनी बोली, ‘‘दीदी, क्या मैं ने कुछ गलत कह दिया.’’
‘‘नहीं, लेकिन अभी तुम्हारा वहां जाना ठीक नहीं है. तुम मुझे देखने आई हो, इसलिए अभी अस्पताल में ही रहो. जब मैं यहां से डिस्चार्ज हो जाऊंगी तब तुम्हें खुद साथ ले कर चलूंगी.’’
‘‘लेकिन दीदी, मुझे वहां रहना थोड़े है, मैं तो मिल कर तुरंत नीलेश के साथ ही लौट जाऊंगी.’’
‘‘मैं बोल रही हूं न, अभी तुम्हारा वहां जाना ठीक नहीं?है,’’ संध्या ने कुछ नाराजगी भरे तेवर में कहा तो रजनी ने आगे कुछ नहीं कहा.
नीलेश ने इस समय कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा और 1-2 घंटे रह कर तथा डाक्टर से मिल कर और फोन पर जरूरत पड़ने पर बात करने के लिए कह कर घर लौट गया.
उस रात रजनी संध्या के साथ ही रही. दूसरे दिन नीलेश आया तो उस ने पूछने पर बताया कि उस के फ्लैट की चाबी उसी के पास?है. संध्या नीलेश से बोली, ‘‘मेरी अलमारी की चाबी मेरे बैडरूम में बिस्तर के नीचे रखी है. तुम रजनी को साथ ले कर जाओ. उसे चाबी दे देना, वह अलमारी से मेरी चैकबुक और एटीएम निकाल कर ले आएगी. वह मेरे फ्लैट में एक बार पहले आ चुकी है. उसे पता है.
संध्या के कहने पर रजनी नीलेश के साथ चाबी लेने उस के फ्लैट में गई. वहां उस ने देखा कि फ्लैट के बैडरूम में कंडोम का एक डब्बा और शराब की 2 बोतलें फर्श पर गिरी थीं और बैडरूम के बिस्तर पर सलवटें पड़ी हुई थीं.
रजनी यह सब देख कर हैरान होती हुई बोली, ‘‘दीदी के बैडरूम में कंडोम और शराब की बोतलें… समझ में नहीं आता ये सब यहां कहां से आए.’’
नीलेश चुप रहा. अब बोलता भी क्या. यह सब उस की ही कारिस्तानी थी. वह संध्या की गैरहाजिरी में अपने औफिस के एक नई लेडी असिस्टैंट को इसी फ्लैट में बुलाता था.
अचानक रजनी को संध्या ने चाबी लाने के लिए भेजा. उस ने सोचा, रजनी संध्या की गैरहाजिरी में उस के बैडरूम में थोड़े ही जाएगी. वह उसे ड्राइंगरूम में बैठा कर चाबी लाने जाएगा. इसी बीच बैड को झाड़ कर वहां से वे चीजें हटा देगा, लेकिन रजनी ने उसे ऐसा करने का मौका ही नहीं दिया. आते ही सीधे संध्या के बैडयम में घुस गई.
अब नीलेश चारों ओर से घिर गया था. कई सवाल उस के चारों ओर मंडराने लगे थे.
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खास कर यह सवाल उसे सब से ज्यादा परेशान कर रहा था कि उस का और संध्या के बीच क्या संबंध है. दूसरे सवाल भी थे जिस का उस के पास कोई जवाब नहीं था. मसलन वह रजनी को अपने घर ले जाने से न यों बच रहा है, जबकि रजनी अब तक इस बारे में उस से 2 बार कह चुकी है. उस से अब तक किसी ने पूछा तो नहीं था लेकिन यह सवाल भी उठ सकता था कि वह संध्या पर इस तरह क्यों पैसे खर्च कर रहा है, जबकि संध्या अब खुद एक कालेज में नौकरी कर रही है, लेकिन इस का उस के पास जवाब था. वह कह सकता था कि अचानक संध्या बीमार हुई थी, इसलिए उस ने ऐसा इनसानियत के तौर पर किया.
आज के सवाल का नीलेश के पास कोई जवाब नहीं था. फिर भी उसे अपनी चुप्पी तो तोड़नी ही थी, इसलिए वह झूठ बोला, ‘‘इस का जवाब तो तुम्हारी दीदी ही दे सकती है, मैं तो तुम्हारी दीदी के अस्पताल जाने के बाद पहली बार यहां आया हूं.’’
नीलेश ने सोचा कि अब ऐसी बातों के बारे में रजनी अपनी बहन से तो पूछेगी नहीं, इसलिए इस से बढि़या बहाना कोई दूसरा हो नहीं सकता था. अब रजनी क्या बोलती. उस ने सोचा कि दीदी अकेली रहती है, हो सकता?है किसी से उन का संपर्क हो, लेकिन दीदी को तो उस ने कभी शराब पीते नहीं देखा.
हो सकता है कि उन का कोई बौयफ्रैंड हो जो शराब का लती हो और यहां भी साथ में शराब की बोतलें ले कर आ गया हो. लेकिन ये बातें उसे संतुष्ट न कर पा रही थीं. दीदी कभी ऐसी न थी. अगर ऐसा होता तो भी ये चीजें वे कमरे में यों ही न छोड़ती. वे जरूर इन्हें साफ कर देतीं.
नीलेश जरूर झूठ बोलता?है, यह इसी की कारिस्तानी हैं, लेकिन बिना किसी ठोस प्रश्न के वह यह भी तो नहीं कह सकती थी कि नीलेश उस से कुछ छिपा रहा है.
नीलेश एक आशिकमिजाज आदमी था, इसलिए उस की नजर रजनी पर भी टिकी हुई थी लेकिन संध्या बुरा न मान जाए और रजनी कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे, यह सोच कर वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता था जिस से संध्या की नजरों में वह गिर जाएं.
संध्या नीलेश के लिए एक सौफ्ट टारगेट थी जिस का वह मनचाहा इस्तेमाल कर रहा था और जिस से वह बिछड़ना भी न चाहता था. रजनी ने भी कई बार महसूस किया कि नीलेश की कामुक निगाहें उस को भेद रही हैं. सच तो यह था कि वह नीलेश के साथ अकेले दीदी के फ्लैट में भी न आना चाहती थी लेकिन दीदी ने जब कह दिया तो वह उन की बात को टाल भी न सकी.
नीलेश ने बैडरूम में बिखरे समान को फेंकना चाहा तो रजनी ने मना कर दिया कहा, ‘‘मैं दीदी से पूछूंगी कि इतनी लापरवाह वे क्यों हैं, इसलिए इन चीजों को ऐसे ही छोड़ दो.’
रजनी के सख्त तेवर देख कर नीलेश ने कमरे को वैसे ही छोड़ दिया. अब वह कमरे को साफ करने की जिद करता तो शक उसी के प्रति गहराता. अब रजनी फ्लैट से जल्दी से जल्दी निकल जाना चाहती थी.
फिर उस के मन में जाने क्या आया कि बोली, ‘‘इधर से लौटते हुए भाभी से मिल कर अस्पताल लौटना चाहती हूं, इसलिए अपने घर से हो कर अस्पताल चलो.’’
यह सुन कर नीलेश घबराया, लेकिन बात को उस ने संभाल लिया और बोला, ‘‘मेरा घर यहां से काफी दूर है, जानती ही हो दिल्ली में कितना ट्रैफिक है, किसी दूसरे दिन चलेंगे.’’