लेखिका- पूनम पांडे
वे दोनों तकरीबन एक महीने से एकदूसरे को जानने लगे थे. रोज शाम को अपनेअपने घर से टहलने निकलते और पार्क में बतियाते.
आज भी दोनों ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा कर अभिवादन किया.‘‘तो सुबह से ही सब सही रहा आज?’’ रमा ने पूछ लिया तो रमन ने ‘हां’ कह कर जवाब दिया.
‘‘और फिर दोनों में सिलसिलेवार मीठीमीठी गपशप शुरू हो गई. रमा रमन से 5 साल छोटी थीं. वे रमण की बातें गौर से सुनतीं और अपना विचार व्यक्त करतीं. रमन ने उन को बताया था कि वे परिवार से बहुत ही नाखुश रहने लगे हैं. सब को अपनीअपनी ही सू झती है. सब की अपनी मनपसंद दुनिया और अपने मनपसंद अंदाज हैं.
रमन का स्वभाव ही ऐसा था कि जब भी गपशप करते तो अचानक ही पोंगा पंडित जैसी बात करने लगते, कहते, ‘‘रमाजी, पता है...’’ तो वे तुरंत कहतीं, ‘‘जी नहीं, नहीं पता है.’’
तब वे बगैर हंसे अपनी रौ में बोलते रहते, ‘‘इस दुनिया में 2 ही फल हैं, एक तुम जो चाहो वह न मिले और दूसरा तुम जो चाहो वह मिल जाए.’’
यह सब सुन कर रमा अपनी हंसी दबा कर कहतीं, ‘‘अच्छा जी, तो आप का आश्रम कहां है. जरा दीक्षा लेनी थी.’’
यह सुन कर रमन काफी गंभीर और उदास हो जाते. तो वे मन बदलने को कुछ लतीफे सुनाने लगतीं, ‘‘रमनजी, ‘गुरुजी, जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे...’ उक्त गीत में नायक नायिका से क्या कहना चाहता है, संक्षेप में भावार्थ बताओ रमनजी?’’
रमन सवाल सुन कर सकपका ही जाते. वे बहुत सोचते, पर उन से उत्तर देते ही नहीं बनता था. रमा कुछ पल के बाद खुद ही कह देतीं, ‘‘रमनजी, इस गाने में नायक नायिका से कह रहा है कि ठीक है तुम से माथाफोड़ी कौन करे.’’
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