बिकिनी में नजर आईं Anupamaa की काव्या तो फैंस ने दिया ये रिएक्शन

मदालशा शर्मा स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) फैंस का फेवरेट शो बन चुका है. शो का हर किरदार काफी एंटरटेनिंग है. फैंस इस शो के हर कैरेक्टर को खूब पसंद करते हैं. इसी बीच मदालशा शर्मा (काव्या) का स्टाइलिश  लुक सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस फोटो में काव्या काफी स्टाइलिश दिख रही हैं. अनुपमा में  काव्या का निगेटिव किरदार है.

काव्या का ग्लैमरस अंदाज

 

हाल ही में मदालसा शर्मा (काव्या) ने इंस्टाग्राम पर ये फोटो शेयर की है. इस फोटो में उन्होंने खूबसूरत मोनोकिनी पहनी हुई है. मदालसा के फोटो शेयर करते ही उनके फैंस उनकी जमकर तारीफ कर रहे हैं. एक्ट्रेस का ये ग्लैमरस रूप फैंस को खूब पसंद आ रहा है. एक यूजर ने लिखा हॉटी तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा है कि बेहद खूबसूरत…

मदालसा शर्मा लुक्स के मामले में अपनी मां के जैसी ही लगती हैं. मां-बेटी की फोटोज देखने के बाद आप कहेंगे कि मदालसा अपनी मां की कॉपी हैं. मदालसा शर्मा की मां भी कई टीवी शोज में काम कर चुकी हैं.  उन्हें आखिरी बार ‘संजीवनी’ में देखा गया था.

 

‘अनुपमा’ में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि पाखी घरवालों के सामने अनुपमा (Anupamaa) की रीयूनियन पार्टी की तस्वीरें दिखाती है. वह सबके सामने कहती है कि अनुज वो ही लड़का है, जिसका क्रश उसकी मम्मी थी. ये सुनने के बाद तो काव्या अनुपमा से कई सवाल करती हैं. अनुपमा और वनराज काव्या को शांत रहने के लिए कहते हैं लेकिन वह नहीं मानती है.

 

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तो दूसरी तरफ शाह परिवार में जन्माष्टमी त्यौहार मनाने की तैयारी कर रहे हैं. अनुपमा समर को फोन करके घर आने के लिए कहती है. समर रोते हुए अनुपमा से कहेगा कि वह घर नहीं आएगा. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि समर का एक्सीडेंट हो जाएगा और फोन पर ही अनुपमा जोर से चिल्लाएगी. अनुज कपाड़िया समर को बचाने की कोशिश करेगा.

भोजपुरी एक्ट्रेस रक्षा गुप्ता अपनी तीसरी फिल्म ‘‘कमांडो अर्जुन’’ में बिखेरेंगी जलवा, देखें Photos

नवोदित अभिनेत्री रक्षा गुप्ता के अभिनय जलवा भोजपुरी फिल्मों के दर्शकों के बीच कमाल दिखा रहा है.रक्षा गुप्ता ने गत वर्ष भोजपुरी फिल्म ‘‘दोस्ताना’’ से भोजपुरी फिल्म उद्योग में कदम रखा था. अब वह अपनी नई फिल्म ‘‘कमांडो अर्जुन’’ को लेकर काफी उत्साहित हैं,जिसका ट्रेलर वायरल हो चुका है.इस फिल्म में रक्षा गुप्ता की जोड़ी प्रदीप पांडेय चिंटू के साथ नजर आएगी.

‘कमांडो अर्जुन’’ रक्षा गुप्ता की पहली फिल्म होगी,जिसमें वह लीड किरदार कर रही हैं. रक्षा गुप्ता का दावा है कि इस फिल्म में प्रदीप पांडेय चिंटू के साथ उनकी केमेस्ट्री शानदार है,जो लोगों के दिलों में उतर जाएगी.मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘‘कमांडो अर्जुन’’ के ट्रेलर से यह बात साफ तौर पर सामने आती है कि इसमें वह बोल्ड दृश्यों में नजर आने वाली हैं. ट्रेलर में वह समंदर किनारे बिकनी में नजर आ रही है.वैसे भी रक्षा अपने इंस्टाग्राम पर अपनी अति ग्लैमरस तस्वीरें पोस्ट करती रहती हैं.

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राक्षा गुप्ता कहती हैं-‘‘ फिल्म ‘कमांडो अर्जुन’ में काम करने का मेरा अनुभव खास रहा. हमारी फिल्म के गाने भी बेहद शानदार हैं. यह दर्शकों को बेहद पसंद आने वाली है.’’ बिहार के पूर्वी चंपारण के चकिया निवासी रक्षा गुप्ता की शिक्षा दिखा दिल्ली में हुई है. भोजपुरी फिल्मों से जुड़ने से पहले रक्षा गुप्ता ने दिल्ली के श्रीराम सेंटर स्थित यथार्थ आर्ट एंड कल्चरल ग्रुुप के साथ जुड़कर थिएटर करने के बाद कुछ टीवी सीरियलों में भी अभिनय कर चुकी हैं.

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वह कहती हैं-‘‘मैं भोजपुरी भाषी हूं.यह भाषा मेरे दिल के करीब है. इसलिए मैं भोजपुरी भाषी फिल्मों को प्राथमिकता दे रही हूं. हर इंडस्ट्री की कुछ चुनौतियां हैं.भोजपुरी इंडस्ट्री में नई हिरोइनों के लिए चुनौतियां ज्यादा हैं.मेरी राय में हीरो प्रधान इस इंडस्ट्री में बेहतर किरदार निभाने के लिए हिरोइनों को संघर्ष करना पड़ता है.पर अब यह दौर तेजी से बदल रहा है.मैं यहां काम करते हुए इंज्वाॅय कर रही हूं. आने वाले समय में हिरोइनों के लिए यहां भी दमदार कहानियां लिखी जाएंगी.भोजपुरी इंडस्ट्री की खासियत यह है कि यह लोग प्रोफेशनल के साथ पर्सनल भी हैं.यानी कि यहां काम के साथ-साथ रिश्ते पारिवारिक भी बनते हैं.यहां एक-दूसरे का ख्याल रहता है.इसे यहां के कल्चर से भी आप जोड़ सकते हैं.’’

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रक्षा गुप्ता ने फिल्म ‘‘कमांडो अर्जुन’’के अलावा संतोष मिश्रा निर्देशित भोजपुरी फिल्म ‘ठीक है’’में दिनेशलाल यादव निरहुआ के साथ अभिनय किया है.तो वहीं वह यश कुमार के साथ ‘‘घर वाली बाहर वाली 2’,‘नसीहत’ और ‘किंग’ भी कर चुकी हैं. वैसे रक्षा गुप्ता इन दिनों हैदराबाद में खेसारीलाल यादव के साथ एक अनाम फिल्म की शूटिंग हैदराबाद में कर रही हैं.इस अनाम फिल्म में उनकी जोड़ी खेसारीलाल यादव के साथ है.जबकि खेसारी लाल यादव संग रक्षा गुप्ता का गाना ‘आरा में दोबारा..’ भी खूब धूम मचा रहा है. तो वहीं रक्षा गुप्ता व खेसारी लाल यादव का गाना

‘दरद उठेला’ को चंद घंटों में तीस लाख से अधिक व्यूज मिल चुके हैं,जिसमें खेसारी लाल यादव संग रक्षा गुप्ता रोमांस चुके हैं,जिसमें खेसारी लाल यादव संग रक्षा गुप्ता रोमांस करते हुए नजर आ रही हैं.

Imlie: अपर्णा देगी मालिनी का साथ, क्या इमली-आदित्य होंगे दूर?

सुंबुल तौकीर खान स्टारर सीरियल इमली में अब तक आपने देखा कि आदित्य कहता है कि अब मैं सत्यकाम को उसकी असली जगह दिखाकर ही रहूंगा. आदित्य ने ये भी कहा कि मैं समझता था कि सत्यकाम एक क्रांतिकारी है लेकिन अब उसके करनामों की सजा जरूर मिलेगी. तो इमली और उसकी मां आदित्य को समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, सीरियल के नए ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में.

शो में त्रिपाठी परिवार जन्माष्टमी का त्यौहार मनाने की तैयारी कर रहा है. ऐसे में आदित्य कृष्ण बनने वाला है तो वहीं इमली राधा बनने वाली है. तो इसी बीच मालीनी एक बार फिर से दोनों को दूर करने के लिए नया प्लान बनाएगी.

 

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तो वहीं सारी बातों को भूलकर इमली-आदित्य जन्माष्टमी के लिए डांस परफॉर्मेंस की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन बीच में मालिनी आती है और दोनों को अलग करने की कोशिश करेती है. वह पत्नी धर्म का पाठ पढ़ाएगी. वह कहेगी कि एक पत्नी अपने पति के लिए वो सबकुछ करती है, जो उसे पसंद होता है. वह खुद की तुलना रुकमणी से करेगी और कहेगी की पत्नी पत्नी ही होती है, राधा चाहे कोई भी बनें.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप ये भी देखेंगे कि आदित्य की मां अपर्णा चाहेगी कि मालिनी आदित्य के साथ डांस करे और वह ही राधा बने. अपर्णा घर का सारा काम इमली को सौंप देगी. वह कहेगी कि इमली को ही ये सारा काम करना है. ऐसे में इमली कहेगी कि उसे आदित्य के साथ डांस करना है और काम करेगी तो देरी हो जाएगी.

 

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अपर्णा कहेगी कि आदित्य के साथ जिसे होना चाहिए, वह उसके साथ है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इमली आदित्य के साथ डांस परफॉर्म कर पाएगी या नहीं?

साढ़े चार वर्षाें में प्रदेश ने खाद्यान्न उत्पादन में बनाया नया रिकॉर्ड

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व व मार्गदर्शन में देश ने सर्वांगीण विकास के नये प्रतिमान स्थापित किये हैं. कृषि एवं कृषि कल्याण के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है. देश में पहली बार मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किये गये. न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य प्रदान करने के साथ ही, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अन्तर्गत किसानों को आर्थिक सहायता सुलभ करायी गयी. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना सहित विभिन्न योजनाएं प्रभावी ढंग से क्रियान्वित की गयीं.

मुख्यमंत्री जी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने के सम्बन्ध में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. वर्चुअल माध्यम से 03 चरणों में इस सम्मेलन का आयोजन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है. सम्मेलन को केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर एवं केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल ने भी सम्बोधित किया.

मुख्यमंत्री जी ने सम्मेलन के आयोजन के लिए केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री तथा केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के प्रति आभार जताते हुए कहा कि इस आयोजन से राज्यों को कृषि एवं किसान कल्याण के सम्बन्ध में रणनीति बनाने में सहायता मिलेगी. इस प्रकार निर्मित रणनीति का सफल क्रियान्वयन करके प्रधानमंत्री जी के किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकेगा.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कृषि प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. विषम परिस्थितियों में भी कृषि और किसानों का कल्याण प्रदेश सरकार का मुख्य लक्ष्य है. कोविड-19 की वैश्विक महामारी देश के लिए चुनौतीपूर्ण रही है. स्वस्थ जीवन, व्यक्ति की सबसे बड़ी आवश्यकता है. समुचित पोषण एवं सुरक्षित भोजन वर्तमान परिवेश की सबसे बड़ी चुनौती है. कोविड कालखण्ड में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किसानों द्वारा अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जी, फल, दूध आदि की प्रचुर उपलब्धता आमजन को सुनिश्चित करायी गई है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विगत लगभग साढ़े चार वर्षाें में प्रदेश ने खाद्यान्न उत्पादन में नया रिकॉर्ड स्थापित किया है. वर्ष 2012 से वर्ष 2017 की अवधि में प्रति वर्ष धान का औसत उत्पादन 139.40 लाख मीट्रिक टन था. वर्तमान सरकार के साढ़े चार वर्ष में यह औसत बढ़कर 163.45 लाख मीट्रिक टन हो गया. वर्ष 2012 से वर्ष 2017 की अवधि में धान की खरीद 123.61 लाख मीट्रिक टन रही. वर्तमान सरकार के साढ़े चार वर्ष में यह बढ़कर 214.56 लाख मीट्रिक टन हो गई. वर्ष 2012 से वर्ष 2017 की अवधि में 14,87,519 कृषकों को 17,119 करोड़ रुपए धान मूल्य का भुगतान हुआ. वर्तमान सरकार के साढ़े चार वर्ष की अवधि में 31,88,529 कृषकों को अब तक 37,885 करोड़ रुपए धान मूल्य का भुगतान किया जा चुका है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2012 से वर्ष 2017 की अवधि में गेहूं उत्पादन 288.14 लाख मीट्रिक टन था. वर्तमान सरकार के साढ़े चार वर्ष की अवधि में यह बढ़कर 369.47 लाख मीट्रिक टन हो गया है. वर्ष 2012 से वर्ष 2017 की अवधि में 94.38 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी. वर्तमान सरकार के साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल में ही 209.67 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की जा चुकी है. वर्ष 2012 से वर्ष 2017 के मध्य 19,02,098 कृषकों को 12,808 करोड़ रुपए गेहूं मूल्य का भुगतान किया गया. वर्तमान सरकार के साढ़े चार वर्ष की अवधि में ही 43,75,574 कृषकों को 36,405 करोड़ रुपए गेहूं मूल्य का भुगतान किया जा चुका है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि खरीफ फसलों की बुआई के समय डी0ए0पी0 उर्वरक की कीमतें अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ने के कारण प्रति बोरी मूल्य 2400 रुपए हो गया था. प्रधानमंत्री जी द्वारा 500 रुपए अनुदान प्रति बोरी से बढ़ाकर 1200 रुपए प्रति बोरी कर दिया गया. इससे किसानों को पूर्व की भांति 1200 रुपए प्रति बोरी की दर पर पर्याप्त मात्रा में डी0ए0पी0 उपलब्ध हुई. खरीफ 2020-21 में 57 लाख मीट्रिक टन उर्वरक वितरण लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 52.95 लाख मीट्रिक टन उर्वरक की उपलब्धता कराते हुए 36.76 लाख मीट्रिक टन उर्वरक का वितरण कराया गया है. दानेदार यूरिया के स्थान पर इफ्को द्वारा विकसित नैनो तरल यूरिया का कृषकों द्वारा उपयोग किए जाने के लिए प्रचार-प्रसार किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गन्ना किसानों को वर्ष 2012 से वर्ष 2017 तक की अवधि में 95,215 करोड़ रुपए गन्ना मूल्य का भुगतान हुआ. वर्तमान सरकार द्वारा 45.74 लाख गन्ना कृषकों को अब तक 1,42,366 करोड़ रुपए से अधिक का रिकॉर्ड गन्ना मूल्य का भुगतान कराया जा चुका है. वर्ष 2020-21 में कुल 21.80 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में कुल 1783.40 लाख मीट्रिक टन गन्ने का उत्पादन हुआ है, जो 818.07 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि माह जुलाई, 2021 तक प्रदेश में कुल 165.55 लाख किसान क्रेडिट कार्ड का वितरण किया गया. वर्ष 2012 से वर्ष 2017 के मध्य 239515.07 करोड़ रुपए का ऋण वितरण हुआ था, जबकि वर्तमान सरकार के साढ़े चार वर्ष में यह बढ़कर 471723.82 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है. इस प्रकार वर्तमान सरकार के कार्यकाल में फसली ऋण वितरण में पूर्व की सरकार के सापेक्ष 96.95 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्तमान सरकार द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत 36 जनपदों में 585 क्लस्टर के 11,700 हेक्टेयर क्षेत्रफल में जैविक खेती कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है. प्राकृतिक खेती के क्रियान्वयन हेतु 35 जनपदों के 38,670 हे0 क्षेत्रफल की 03 वर्ष के लिए 197 करोड़ रुपए की कार्य योजना भारत सरकार को प्रेषित की गई है. नमामि गंगे परियोजना के अन्तर्गत 3,309 क्लस्टर (66,180 हे0) स्थापित कर 1,03,442 कृषकों को लाभान्वित किया गया है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा भारत सरकार द्वारा कृषि अवसंरचना निधि की स्थापना की गयी है, जिससे कृषक अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें. इस उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु भारत सरकार द्वारा फार्मगेट एवं समेकन केन्द्र (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, किसान उत्पादन संगठन, कृषि उद्यमी, स्टार्टअप, मण्डी समिति, एफ0पी0ओ0) के वित्त पोषण के लिए एक लाख करोड़ रुपए की वित्तीय सुविधा कृषि अवसंरचना निधि द्वारा प्रदान की गयी है. उन्होंने सुझाव दिया कि कृषि अवसंरचना निधि का पोर्टल अंग्रेजी भाषा में होने के कारण कृषकों को योजना समझने एवं आवेदन करने में कठिनाई हो रही है. अतः पोर्टल को हिन्दी भाषा में भी संचालित कराया जाए.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि योजना के अन्तर्गत प्रदेश के शेड्यूल कॉमर्शियल बैंकों को कुल 197 परियोजनाओं के आवेदन प्राप्त हुए, जिनकी लागत 218 करोड़ रुपये है. इन आवेदनों में से लगभग 20 करोड़ रुपए की 20 परियोजनाओं की स्वीकृति के बाद प्रथम किस्त वितरित की गई है. वर्तमान में सेण्ट्रल पी0एम0यू0 तथा विभिन्न शेड्यूल कॉमर्शियल बैंक के स्तर पर 74 आवेदन प्रक्रियाधीन हैं. इनकी परियोजना लागत 126 करोड़ रुपए है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कृषि अवस्थापना निधि के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश के पैक्स को नाबार्ड की मल्टी सर्विस सेण्टर योजना के तहत लगभग 1,100 पैक्स के आवेदन पोर्टल पर प्राप्त हुए हैं. इनमें से नाबार्ड द्वारा 549 पैक्स के लगभग 120 करोड़ रुपए की डी0पी0आर0 स्वीकृत की गई है. इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश द्वितीय स्थान पर है. लगभग 45 करोड़ रुपए की लागत के 250 पैक्स के प्रस्ताव स्वीकृत हैं. 170 पैक्स को, प्रति पैक्स 4.25 लाख रुपए की दर से, प्रथम किस्त के रूप में कुल 10 करोड़ रुपए वितरित किए जा चुके हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थी कृषक 250.09 लाख हैं. 165.55 लाख किसान क्रेडिट कार्ड वितरित किए जा चुके हैं.योजना के प्रारम्भ से वित्तीय वर्ष 2021-22 के माह अगस्त, 2021 तक 250.09 लाख कृषकों के बैंक खातों में कुल 32571.29 करोड़ रुपए की धनराशि डी0बी0टी0 के माध्यम से हस्तान्तरित की गई है. कुल 07 जनपदों में 100 प्रतिशत तथा 14 जनपदों में 90 प्रतिशत या उससे अधिक किसान क्रेडिट कार्डधारक कृषक हैं. 17 जनपदों में 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक तथा केवल 01 जनपद में 25 प्रतिशत से कम किसान क्रेडिट कार्डधारक कृषक हैं. इन जनपदों में अभियान चलाकर किसान क्रेडिट कार्ड बनाए जाने की कार्यवाही प्रगति पर है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि माह जनवरी, 2020 तक कुल 111.13 लाख किसान क्रेडिट कार्ड बने थे, जबकि जुलाई, 2021 तक कुल 165.55 लाख किसान क्रेडिट कार्ड बन गए थे. इस प्रकार जनवरी, 2020 से जुलाई, 2021 तक की अल्प अवधि में ही कुल 54.42 लाख किसान क्रेडिट कार्ड बनाए गए हैं. कुछ जनपदों में किसान क्रेडिट कार्ड कम बनने का मुख्य कारण, कृषकों का अप्रवासी होना तथा छोटी जोत के कृषकों द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड बनवाए जाने में रुचि न लेना है. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि पीएम किसान के लाभार्थियों का डाटाबेस तथा किसान क्रेडिट कार्ड का डाटाबेस भारत सरकार के पास है, यदि दोनों डाटा की मैचिंग राज्य सरकार को उपलब्ध करा दी जाए, तो किसान क्रेडिट कार्ड बनाने में गति आएगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारत सरकार द्वारा देश के किसानों का एक डाटाबेस तैयार किए जाने की योजना है, जिसमें किसानों के कल्याण के लिए संचालित सभी योजनाओं को लिंक किया जाएगा, किसानों को समय-समय पर एडवाइजरी उपलब्ध करायी जाएगी तथा उनके उत्पादों के उचित विपणन की व्यवस्था की जाएगी. पायलट प्रोजेक्ट के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के 03 जनपदों-मथुरा, मैनपुरी तथा हाथरस को सम्मिलित किया गया है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि तिलहनी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हेतु भारत सरकार द्वारा पुरोनिधानित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (ऑयल सीड्स) योजना प्रदेश के समस्त 75 जनपदों में संचालित है. कृषकों की आय में वृद्धि करने हेतु योजना के अन्तर्गत तिलहनी फसलों के मिनीकिट भारत सरकार द्वारा निःशुल्क प्रदान किए जाते हैं. वर्तमान वर्ष में खरीफ में 13,960 तिल एवं मूंगफली के बीज मिनीकिट कृषकों को निःशुल्क वितरित कराए जा चुके हैं. राई/सरसों एवं अलसी के 4,77,500 बीज मिनीकिट का वितरण कराया जाना प्रस्तावित है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गत वर्ष कुल तिलहनी फसलों (खरीफ व रबी) से 11.93 लाख हे0 भूमि आच्छादित की गई तथा कुल 12.71 लाख मीट्रिक टन तिलहनी फसलों का उत्पादन हुआ. वर्ष 2021-22 हेतु कुल तिलहनी फसलों से 13.68 लाख हे0 क्षेत्रफल को आच्छादित करने का लक्ष्य है तथा कुल 15 लाख मीट्रिक टन तिलहनी फसलों का उत्पादन सम्भावित है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोविड से प्रभावित होने के बावजूद वर्ष 2020-21 के दौरान प्रदेश से कृषि निर्यात 17,58,479.29 मीट्रिक टन रहा, जिसका मूल्य 2,389,89 मिलियन यू0एस0 डॉलर था. गत वर्ष 2019-20 में उत्तर प्रदेश से 15,15,784.59 मीट्रिक टन कृषि निर्यात, जिसका 2,227.87 मिलियन यू0एस0 डॉलर था. रुपए के सन्दर्भ में यह कीमत बढ़कर 17,699.12 करोड़ रुपए हो गई, जबकि गत वर्ष 2019-20 में 15,902.78 करोड़ रुपए थी. वित्तीय वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक वृद्धि नॉन-बासमती चावल के निर्यात में रही. मात्रा के सन्दर्भ में यह वृद्धि 50.34 प्रतिशत बढ़कर 3,60,897.38 मीट्रिक टन हो गयी है. वित्तीय वर्ष 2019-20 में यह निर्यात 24,0043.93 मीट्रिक टन था. रुपए के सन्दर्भ में यह बढ़कर 913.16 करोड़ रुपए हो गई है. वर्ष 2019-20 में 689.70 करोड़ रुपए का निर्यात हुआ था.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारत सरकार की कृषि निर्यात नीति के सामंजस्य में प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2019 में अपनी राज्य कृषि निर्यात नीति अधिसूचित की गई है. इसका उद्देश्य राज्य से वर्ष 2019 के निर्यात से वर्ष 2024 तक कृषि निर्यात को दोगुना करना है. राज्य स्तर की निर्यात निगरानी समिति, मण्डल स्तरीय कृषि निर्यात निगरानी समिति और जिला स्तर पर क्लस्टर फैसिलिटेटिंग सेल बनाकर राज्य, मण्डल और जिला स्तर पर कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए संस्थागत तंत्र विकसित किया गया है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विगत 06 माह में कानपुर से गंगा जी के किनारे उत्पादित जामुन का मई-जून, 2021 में लगभग 5,000 किलोग्राम का प्रथम बार यूनाईटेड किंगडम को निर्यात किया गया है. जामुन निर्यात से किसानों को 35 रुपए से 40 रुपए प्रति किलोग्राम के स्थान पर लगभग 70 रुपए प्रति किलोग्राम प्राप्त हुआ है. प्रदेश में कृषि निर्यात हेतु दो पैक हाउस लखनऊ एवं सहारनपुर में स्थापित हैं. लखनऊ पैक हाउस का इण्टीग्रेटेड पैक हाउस के रूप में आधुनिकीकरण किया जा रहा है तथा अमरोहा एवं वाराणसी में नये पैक हाउस निर्मित किये जा रहे हैं.

Crime Story: एकतरफा चाहत में प्यार की दीवानगी

रोहिणी के सैक्टर-5 में रहने वाले पीयूष मलिक रोजाना की तरह 4 फरवरी, 2017 को भी शाम का खाना खा कर सड़क पर टहल रहे थे. उस दिन उन के साथ उन का एक दोस्त भी था. दोनों लोग बातें करते हुए मेनरोड पर टहल रहे थे. उसी समय किसी ने उन पर गोली चलाई, जो उन के पैरों के पास से निकल कर सड़क पर जा लगी.

पीयूष और उन के दोस्त ने तुरंत पीछे पलट कर देखा तो एक युवक काले रंग की मोटरसाइकिल से तेजी से उन के बगल से निकल गया. वह इतनी तेजी से निकला कि वह उसे पहचान नहीं सके. इस के बाद वह तुरंत घर आए और यह बात अपने घर वालों को बताई.

पीयूष के पिता गुलशन मलिक परेशान हो गए कि रात को उन के बेटे पर हमला किस ने किया? उन की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. पीयूष प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. उन्होंने सोचा कि कहीं उस की किसी से कोई कहासुनी तो नहीं हो गई.

इस बारे में उन्होंने पीयूष से पूछा तो उन्होंने ऐसी किसी बात से मना कर दिया. गुलशन मलिक मूलरूप से हरियाणा के रहने वाले थे. वहां उन की अच्छीखासी जमीनजायदाद है. नारनौल में एक पैट्रोल पंप भी है. कहीं हरियाणा के ही किसी व्यक्ति ने तो यह हमला नहीं किया. इस बारे में वह गंभीरता से सोचने लगे.

पीयूष की पत्नी इरा मलिक और मां तो बहुत ज्यादा घबरा गईं. इरा की 2 महीने पहले ही पीयूष से शादी हुई थी. गुलशन मलिक बेटे को ले कर थाना विजय विहार पहुंचे, थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन को पीयूष ने अपने साथ घटी घटना के बारे में बताया. अभिनेंद्र जैन ने भी उन से यही पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी तो नहीं है.

मलिक परिवार शरीफ और शांतिप्रिय था, इसलिए उन की किसी से कोई दुश्मनी का सवाल ही नहीं था. पुलिस ने एक बार यह भी सोचा कि कहीं हमलावर का निशाना पीयूष का वह दोस्त तो नहीं था, जो साथ में टहल रहा था. हमलावर से हड़बड़ाहट में गोली पीयूष की तरफ चल गई हो. इसलिए पुलिस ने पीयूष के दोस्त से भी पूछताछ की. उस ने भी किसी से दुश्मनी होने की बात से इनकार कर दिया.

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crime

पुलिस से शिकायत कर के गुलशन मलिक घर लौट आए. घर आ कर सभी हमलावर के बारे में कयास लगाने लगे. उधर पुलिस ने मामला दर्ज तो नहीं किया था, पर थानाप्रभारी के निर्देश पर एसआई पवन कुमार मलिक मामले की जांच में जुट गए थे. इस घटना के बाद पीयूष सतर्क हो गए थे. अब रात को उन्होंने मेनरोड पर घूमना बंद कर दिया था. कुछ दिनों की सतर्कता के बाद वह सामान्य तरीके से रहने लगे.

पीयूष की पत्नी इरा मलिक नोएडा की एक निजी कंपनी में नौकरी करती थीं. वह मैट्रो से नोएडा आतीजाती थीं. सुबह पीयूष अपनी कार या स्कूटी से उन्हें रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन पर छोड़ आते थे और जब वह ड्यूटी पूरी कर के लौटती थीं तो पति को फोन कर देती थीं. तब पीयूष उन्हें लेने मैट्रो स्टेशन पहुंच जाते थे.

20 अप्रैल, 2017 को भी पत्नी के फोन करने पर पीयूष रात 8 बजे के करीब उन्हें लेने स्कूटी से रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन पर गए. उन के घर से मैट्रो स्टेशन यही कोई एक, डेढ़ किलोमीटर दूर था, इसलिए वहां आनेजाने में ज्यादा वक्त नहीं लगता था. पीयूष को इरा मैट्रो स्टेशन के गेट के बाहर तय जगह पर खड़ी मिल गईं.

सैक्टर-5, 6 के डिवाइडर के पास स्थित जूस की दुकान के पास उन्होंने स्कूटी रोक दी. वह वहां रोजाना जूस पीते थे. जूस पी कर दोनों स्कूटी से घर के लिए चल पड़े. स्कूटी इरा चला रही थी और पीयूष पीछे बैठे थे. जैसे ही पीयूष अपने घर के पास वाली गली के चौराहे के नजदीक पहुंचे, पीयूष को अपने दाहिने कंधे पर पीछे की ओर कोई चीज चुभती महसूस हुई. इस के तुरंत बाद बम फटने जैसी आवाज हुई. इस के बाद उन के पास से एक मोटरसाइकिल सवार तेजी से गुजरा. उस की मोटरसाइकिल काले रंग की थी.

पीयूष को जिस जगह चुभन महसूस हुई थी, वहां अब दर्द होने लगा था. उन्होंने उस जगह हाथ रखा तो वहां से खून बह रहा था. खून देख कर वह घबरा गए. इरा ने उन का कंधा देखा तो रो पड़ीं, क्योंकि वहां गोली लगी थी. इरा के रोने की आवाज सुन कर उधर से गुजरने वाले लोग रुक गए. उन में से कुछ पीयूष को जानते थे. उसी बीच किसी ने पीयूष के घर जा कर इस बात की सूचना दे दी. पिता गुलशन मलिक जल्दी से मौके पर पहुंचे और बेटे को नजदीक के डा. अंबेडकर अस्पताल ले गए.

मौके पर मौजूद किसी व्यक्ति ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के पीयूष को गोली मारने की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. चूंकि वह इलाका रोहिणी के थाना विजय विहार के अंतर्गत आता था, इसलिए थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन एसआई पवन कुमार मलिक के साथ मौके पर पहुंच गए.

वहां पहुंचने पर पता चला कि जिस युवक को गोली लगी थी, उसे डा. अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया था. वह डा. अंबेडकर अस्पताल पहुंचे तो वहां के डाक्टरों ने बताया कि पीयूष मलिक नाम के जिस युवक के कंधे में गोली लगी थी, उस के घर वाले उसे सरोज अस्पताल ले गए हैं.

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थानाप्रभारी ने जब अस्पताल में भरती पीयूष को देखा तो वह चौंके, क्योंकि यह वही पीयूष था, जिस पर किसी ने 4 फरवरी, 2017 को गोली चलाई थी. इलाज कर रहे डाक्टरों से बात कर के एसआई पवन कुमार मलिक ने पीयूष का बयान लिया. पीयूष ने पुलिस को जो बताया, उस से यही लगा कि कोई व्यक्ति है, जो उन्हें जान से मारने पर तुला है.

पुलिस ने पीयूष की तहरीर पर अज्ञात हमलावर के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर लिया. रोहिणी जिले के डीसीपी के निर्देश पर थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन के नेतृत्व में एक पुलिस टीम इस केस के खुलासे के लिए लग गई. टीम में एसआई पवन कुमार मलिक, विजय कुमार, ट्रेनी एसआई अनुज कुमार, हैडकांस्टेबल जितेंद्र, कांस्टेबल सूबाराम आदि शामिल थे.

पुलिस ने सरोज अस्पताल पहुंच कर पीयूष से बात की. पीयूष प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. कहीं ऐसा तो नहीं था कि पीयूष ने किसी विवादित प्रौपर्टी का सौदा किया हो? बातचीत में उन्होंने पुलिस को बताया कि वह विवादित प्रौपर्टी पर हाथ ही नहीं डालते. उन का किसी से कभी कोई झगड़ा भी नहीं हुआ.

पुलिस के लिए यह मामला एकदम ब्लाइंड था. कोई भी ऐसा क्लू नहीं मिल रहा था, जिस से केस की जांच शुरू की जा सके. पुलिस ने इस मामले पर गौर किया तो पता चला कि पीयूष पर की गई दोनों ही वारदातों में काले रंग की मोटरसाइकिल पर सवार युवक उन के सामने से निकला था. पर उस मोटरसाइकिल का नंबर पुलिस के पास नहीं था, जिस से उस की जांच की जा सकती.

अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर पीयूष घर आ गए तो पुलिस ने उन्हें थोड़ा सतर्क रहने को कहा. वारदात के एक महीने बाद 4 मई की शाम को इरा की ससुराल के पास एक शख्स काले रंग की मोटरसाइकिल से आया और एक पत्र फेंक कर चला गया.

इरा ने जब वह पत्र पढ़ा तो पता चला वह किसी युवती की ओर से लिखा गया था. उस ने लिखा था कि पीयूष उस का प्रेमी है. उस ने किसी दूसरी लड़की से शादी कर के उस के साथ धोखा किया है. गुलशन मलिक ने उस पत्र की जानकारी पुलिस को दी. उस पत्र से यही लगा कि यह मामला प्रेमप्रसंग का है, पर जब इस बारे में पीयूष से बात की गई तो उन्होंने ऐसी किसी बात से इनकार कर दिया.

6 मई की शाम को काले रंग की मोटरसाइकिल से एक युवक पीयूष के घर के सामने वाली सड़क पर घूम रहा था. इत्तफाक से उस समय पीयूष के पिता गुलशन मलिक घर के सामने खड़े थे. चूंकि काले रंग की मोटरसाइकिल शक के दायरे में आ चुकी थी, इसलिए उन्होंने उस मोटरसाइकिल को रुकवा लिया.

उन्होंने उस का नंबर नोट कर के उस युवक से नातपता पूछा तो उस ने बताया कि उस का नाम विक्की है और वह बुद्धविहार में रहता है. उन्होंने उस का फोन नंबर पूछा तो उस ने अपना फोन नंबर भी बता दिया. उसी समय उन्होंने अपने फोन से उस का नंबर मिलाया तो उस के फोन की घंटी बज उठी. उन्हें लगा कि यह युवक गलत नहीं है. अगर यह गलत होता तो अपना फोन नंबर सही न बताता.

पीयूष के साथ घटी घटना को एक महीने से ज्यादा हो चुका था, पर काफी भागदौड़ के बावजूद पुलिस को हमलावर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी. गुलशन मलिक बारबार थाने के चक्कर लगा रहे थे. एक दिन वह एसआई पवन कुमार मलिक से बात कर रहे थे, तभी उन्हें बुद्धविहार के रहने वाले विक्की के बारे में याद आ गई.

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काले रंग की मोटरसाइकिल के बारे में सुन कर एसआई पवन कुमार मलिक चौंके. क्योंकि घटना के समय काले रंग की ही मोटरसाइकिल नजर आई थी. विक्की नाम के उस युवक का फोन नंबर पवन कुमार मलिक ने अपने फोन के ट्रूकालर में डाल कर चैक किया तो उस में नाम विवेक अग्रवाल आया. उन्होंने उस का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. नंबर बंद मिलने पर उन्हें शक हुआ. विक्की को बुद्धविहार में बिना पते के ढूंढना आसान नहीं था.

इस के बाद पवन कुमार मलिक मोटरसाइकिल के नंबर डीएल4एस एनडी 1560 के आधार पर जांच में जुट गए. उन्होंने मोटरसाइकिल के उक्त नंबर की जांच कराई तो वह पश्चिमी दिल्ली के कीर्तिनगर के रहने वाले बबलू के नाम रजिस्टर्ड थी. पुलिस उस पते पर पहुंची तो वहां कोई और ही मिला. आसपास के लोगों ने बताया कि बबलू और उस का परिवार पहले यहीं रहता था. 2 साल पहले वह यहां से कहीं और चला गया है. पुलिस कीर्तिनगर से बैरंग लौट आई.

इस के बाद पुलिस की जांच एक बार फिर ठहर गई. ट्रूकालर में जो विवेक अग्रवाल का नाम आया था, उस के बारे में पीयूष से बात की गई तो उस ने साफ मना कर दिया कि वह किसी विवेक अग्रवाल को नहीं जानता.

एक दिन गुलशन मलिक के घर में विवेक अग्रवाल के बारे में बात चल रही थी, तभी पीयूष की पत्नी इरा कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘कहीं यह विवेक अग्रवाल वही तो नहीं, जो मुझे फोन पर तंग करता था?’’

इरा के मुंह से यह सुन कर घर के सभी लोग उस की तरफ देखने लगे. पीयूष ने कहा, ‘‘तुम ने इस बारे में कभी बताया नहीं.’’

‘‘आप को बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी, मैं ने फोन पर ही उसे ठीक कर दिया था. अब फोन में देखती हूं कि यह वही है या कोई और.’’ कह कर इरा अपने फोन के वाट्सऐप मैसेज देखने लगी. वाट्सऐप मैसेज भेजने वाले उस नंबर को इरा ने ब्लौक कर दिया था. जब उस ने उस नंबर को अनब्लौक कर पूर्व में भेजे गए मैसेज देखे तो एक मैसेज में उस युवक का नाम मिल गया. उस का नाम विवेक अग्रवाल ही था.

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पीयूष पत्नी के साथ पवन कुमार मलिक के पास पहुंचे. इरा ने पूरी बात पवन कुमार मलिक को बता दी. इस के बाद उस के नंबर पर भेजे गए वाट्सऐप मैसेज पढ़ कर पवन कुमार मलिक को पीयूष पर वारदात करने की वजह समझ में आने लगी.

उन्होंने विवेक अग्रवाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. वह अकसर जिन नंबरों पर बात करता था, वे उस के परिजनों और दोस्तों के निकले. पहले दोस्तों को पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया. दोस्तों से पुलिस को विवेक के घर का पता मिल गया. पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

पुलिस विवेक के पिता जगदीश प्रसाद को थाने ले आई. विवेक घर से फरार जरूर था, पर उसे यह जानकारी मिल गई कि पुलिस उस के पिता को थाने ले गई है. यह खबर मिलते ही वह घर लौट आया और आत्महत्या करने के लिए ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं. कुछ ही देर में जब विवेक की हालत बिगड़ने लगी तो उसे डा. अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया. यह 8 मई, 2017 की बात है.

पुलिस को यह जानकारी मिली तो पवन कुमार मलिक हैडकांस्टेबल जितेंद्र के साथ डा. अंबेडकर अस्पताल पहुंचे. वहां डाक्टर विवेक का इलाज कर रहे थे. इलाज होने तक पुलिस विवेक की निगरानी करती रही. 11 मई को विवेक जैसे ही अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ, थाना विजय विहार पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

थाने में विवेक से पीयूष पर की गई फायरिंग के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने उस पर 2 बार जानलेवा हमला किया था. उस ने उस पर हमले की जो वजह बताई, वह एकतरफा प्यार की चाशनी में सराबोर थी—

वेक अग्रवाल पश्चिमी दिल्ली के मानसरोवर गार्डन में रहने वाले जगदीश प्रसाद का बेटा था. विवेक नजदीक ही रमेशनगर में ओम साईं प्रौपर्टी के नाम से अपना धंधा करता था. उस का काम ठीकठाक चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. उस के प्रौपर्टी डीलिंग के औफिस से कुछ ही दूरी पर कीर्तिनगर में डब्ल्यूएचएस (वेयरहाउस स्कीम) का औफिस था. यह कंपनी विभिन्न हाउसिंग डेवलपमेंट द्वारा बनवाए गए फ्लैटों की मार्केटिंग करती थी.

चूंकि विवेक का काम प्रौपर्टी डीलिंग का था, इसलिए वह भी इस औफिस में आताजाता रहता था. उसी औफिस में एक लड़की को देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा. बेहद खूबसूरत उस लड़की को देख कर अविवाहित विवेक पर ऐसा असर हुआ कि वह किसी न किसी बहाने उस के औफिस के चक्कर लगाने लगा.

उस के लिए उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. अपने स्तर से उस ने उस लड़की के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि उस का नाम इरा है और वह रोहिणी सेक्टर-1 में रहती है. इतना ही नहीं, उस ने किसी तरह उस का मोबाइल नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद विवेक ने इरा का पीछा करना शुरू किया. इरा को इस बात का अहसास भी नहीं हुआ कि कोई उसे चाहने लगा है. उसे देख लेने भर से विवेक को मानसिक संतुष्टि मिल जाती थी. यह बात सन 2014 की है.

कुछ दिनों बाद इरा का औफिस कीर्तिनगर से नोएडा शिफ्ट हो गया तो उसे भी नौकरी के लिए रोहिणी से नोएडा जाना पड़ा. विवेक को पता चला कि इरा मैट्रो द्वारा रोहिणी वेस्ट स्टेशन से नोएडा जाती है. तब वह सुबह उस के घर से रोहिणी मैट्रो तक उस का पीछा करता. उसी दौरान उस ने इरा को वाट्सऐप पर मैसेज भेजने शुरू कर दिए. इरा ने उस के मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उस का नंबर ब्लौक कर दिया.

विवेक तो इरा का जैसे दीवाना हो चुका था. उस ने किसी तरह उस के औफिस का फोन नंबर हासिल कर लिया. वह उस के औफिस फोन करने लगा. इरा ने उसे लताड़ा ही नहीं, बल्कि पुलिस में शिकायत करने की धमकी दी तो उस ने उस के औफिस के लैंडलाइन पर फोन करना बंद कर दिया.

विवेक को लगा कि उस की दाल गलने वाली नहीं है तो उस ने किसी तरह खुद को कंट्रोल किया और इरा की तरफ से अपना ध्यान हटाने की कोशिश की. उस के दिल में इरा बसी हुई थी, पर उस की धमकी की वजह से वह उसे फोन करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

सन 2015 की बात है. एक दिन विवेक मोतीनगर मैट्रो स्टेशन के बाहर खड़ा था, तभी उस की नजर कार से उतर रही इरा पर पड़ी. कार कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति चला रहा था. शायद वह उस का पिता था. चूंकि इरा उसे पहचानती नहीं थी, इसलिए वह इरा को तब तक देखता रहा, जब तक वह मैट्रो स्टेशन में नहीं चली गई.

इरा को देख कर विवेक का सोया प्यार फिर जाग उठा. उस ने अब तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करेगा. अब वह फिर से रोजाना उस का पीछा करने लगा. इतना ही नहीं, उस ने एक नया नंबर खरीदा और उसी नंबर से अपने प्यार का हवाला देते हुए उसे वाट्सऐप मैसेज भेजने लगा.

इरा ने उस के नंबर को ब्लौक कर दिया तो विवेक ने उसे फोन कर के अपने दिल के हालात से रूबरू कराने की कोशिश की. पर इरा ने उसे डपट दिया, साथ ही चेतावनी भी दी. पर विवेक तो जुनूनी प्रेमी बनता जा रहा था. एकतरफा प्यार में वह अपने बिजनैस तक पर ध्यान नहीं दे रहा था. इतना ही नहीं, वह नशा भी करने लगा था.

चूंकि इरा रोहिणी में रहती थी, इसलिए विवेक भी अपने परिवार के साथ रोहिणी के बुद्धविहार में आ कर रहने लगा. उस ने इरा का घर देख ही लिया था. उस के औफिस जाने के टाइम पर वह उस के घर के बाहर मेनरोड पर खड़ा हो जाता और रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन तक उस का पीछा करता. यही काम वह उस के औफिस से घर लौटते वक्त करता. वह उसे परेशान नहीं करता था. केवल चुपचाप पीछा करता था.

नवंबर, 2016 के अंतिम सप्ताह में इरा ने अचानक औफिस जाना बंद कर दिया. विवेक परेशान हो गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि इरा कहां चली गई? जब 2-3 दिन वह नहीं दिखी तो उसे लगा कि शायद उस की तबीयत खराब हो गई है. पर वह लंबे समय तक नहीं दिखी तो उसे यही लगा कि इरा ने शायद नौकरी छोड़ दी है.

विवेक की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. लिहाजा उस ने इरा के औफिस में संपर्क किया तो पता चला कि 10 दिसंबर, 2016 को उस की शादी है.

इस खबर ने विवेक के दिल पर हथौड़े की तरह वार किया. उसे लगा कि उस की प्रेमिका उस के हाथ से निकलने वाली है. उस ने यहां तक पता लगा लिया कि इरा की शादी सेक्टर-15 रोहिणी के रहने वाले पीयूष मलिक के साथ तय हुई है. उस की शादी को वह रोक सके, ऐसी विवेक की क्षमता नहीं थी. क्योंकि पीयूष का परिवार हर तरह से उस के परिवार से ज्यादा सामर्थ्यवान था, लिहाजा विवेक मन मसोस कर रह गया.

शादी के बाद इरा ने जनवरी, 2017 में फिर से औफिस जाना शुरू कर दिया तो विवेक ने फिर से उस का पीछा करना शुरू कर दिया. विवेक ने महसूस किया कि शादी के बाद इरा के रूपरंग में और ज्यादा निखार आ गया है. एकतरफा प्यार में सुलगते हुए विवेक को कई साल बीत गए थे.

इरा को उस का पति ही रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन अपनी कार या स्कूटी से छोड़ने आता और शाम को लेने जाता. इरा को जब अपने पति के साथ वह देखता तो उस के सीने पर सांप लोटने लगता. उसे इरा का पति दुश्मन दिखने लगता.

विवेक ने कई साल पहले शाहरुख खान और जूही चावला की फिल्म ‘डर’ देखी थी. इस फिल्म में शाहरुख खान जूही चावला को प्यार करता था. उसी दौरान जूही की शादी सनी देओल से हो गई थी. तब शाहरुख को सनी देओल दुश्मन दिखता था. जूही को पाने के लिए उस ने सनी देओल पर कई बार जानलेवा हमला किया था. ठीक यही स्थिति विवेक अग्रवाल की भी थी.

विवेक ने अब तय कर लिया कि अपने प्यार को पाने के लिए वह इरा के पति पीयूष को रास्ते से हटा देगा. विवेक ने अपने एक दोस्त से पहले कभी एक देसी तमंचा और कुछ कारतूस लिए थे. वह अपनी मोटरसाइकिल नंबर डीएल 4एसएन डी 1560 से पीयूष की रेकी करने लगा. पीयूष को गोली मारने का वह ऐसा मौका ढूंढने लगा कि अपना काम कर के आसानी से फरार हो सके.

पीयूष शाम को खाना खा कर अपने परिजन या किसी दोस्त के साथ घर के सामने वाली सड़क पर घूमने के लिए निकल जाते थे. यही समय विवेक को उपयुक्त लगा. 4 फरवरी, 2017 की रात करीब 10 बजे पीयूष अपने एक दोस्त के साथ घूम रहे थे. विवेक तो घात लगाए ही था. मौका देख कर उस ने पीयूष को निशाना बनाते हुए गोली चला दी.

इत्तफाक से गोली पीयूष के बराबर से निकलती हुई सड़क से टकरा गई. गोली चला कर विवेक मोटरसाइकिल से भाग गया. गोली की आवाज सुन कर पीयूष घबरा गए. वह सीधे अपने घर गए और पिता को जानकारी दी. बाद में पीयूष ने पुलिस को भी यह जानकारी दे दी.

अगले दिन विवेक ने पीयूष की कालोनी में जा कर पता लगाया तो उसे पता चला कि पीयूष को गोली लगी ही नहीं थी. इस के बाद विवेक उस एरिया में कुछ दिनों तक नहीं गया. पर उस ने इरा का दीदार करने के लिए मैट्रो स्टेशन जाना बंद नहीं किया.

पीयूष को मारने की उस ने ठान ही रखी थी. लिहाजा 2 महीने बाद वह फिर से पीयूष की रेकी करने लगा. पूरी योजना के बाद विवेक 20 अप्रैल, 2017 को रोहिणी सेक्टर-5 में एक डिवाइडर के पास खड़ा हो गया. इरा को रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन से ले कर लौटते समय पीयूष ने जूस की दुकान पर जूस पिया. जूस पीने के बाद वह जैसे ही स्कूटी से इरा के साथ घर की ओर चले, विवेक ने पीछे से पीयूष को निशाना बनाते हुए गोली चला दी.

गोली पीयूष के कंधे पर लगी. गोली चला कर विवेक अपनी मोटरसाइकिल से फरार हो गया. इस बार विवेक को उम्मीद थी कि पीयूष मर गया होगा. पर उस की सोच गलत साबित हुई. बाद में जब विवेक को पता चला कि पीयूष इस बार भी बच गया है तो उसे बड़ा दुख हुआ. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने वाली बात उसे पता चल गई थी. उस ने ऐसा कोई सबूत नहीं छोड़ा था, जिस से पुलिस उस तक पहुंच पाती.

पुलिस को गुमराह करने के लिए उस ने लड़की की ओर से एक चिट्ठी लिख कर इरा की ससुराल में डाल दी थी, जिस से पुलिस की जांच की दिशा बदल जाए. पर जब पीयूष ने कह दिया कि उस का किसी लड़की के साथ कोई चक्कर नहीं था तो पुलिस ने उस ओर ध्यान नहीं दिया.

काले रंग की मोटरसाइकिल ही शक के घेरे में थी और फिर एक दिन पीयूष के पिता ने उसे अपने घर के सामने काले रंग की मोटरसाइकिल पर घूमते देखा तो रोक लिया. उस समय विवेक ने जल्दबाजी में अपना फोन नंबर सही बता दिया था. उसी फोन नंबर की वजह से वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने विवेक अग्रवाल को भादंवि की धारा 307, 27/54/59 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस मामले की तफ्तीश एसआई पवन कुमार मलिक कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शर्मनाक: पकड़ौआ विवाह- बंदूक की नोक पर शादी

कहते हैं कि शादी ऐसा लड्डू है, जो खाए वह पछताए और जो न खाए वह भी पछताए. लेकिन वहां आप क्या करेंगे, जहां जबरन गुंडई से आप की मरजी के खिलाफ आप के मुंह में यह लड्डू ठूंसा जाने लगे? हम बात कर रहे हैं ‘पकड़ौवा विवाह’ की, जो बिहार के कुछ जिलों में आज भी हो रहे हैं.

22 साल के शिवम का सेना के टैक्निकल वर्ग में चयन हो गया था और वह 17 जनवरी को नौकरी जौइन करने वाला था. हमेशा की तरह एक सुबह जब वह अपने कुछ दोस्तों के साथ सैर पर निकला, तभी कार में सवार कुछ लोगों ने उसे अगवा कर लिया.

शिवम के दोस्तों ने बताया कि उन पांचों लोगों के हाथों में हथियार थे, इसलिए वे कुछ कर नहीं पाए.

शिवम को अगवा कर के वे बदमाश एक मंदिर में ले गए और जबरन उस की शादी एक लड़की से करा दी. शादी की तसवीरें सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थीं.??

क्या है ‘पकड़ौवा विवाह’

बिहार में इसे ‘पकड़वा’ या ‘पकड़ौवा विवाह’ या फिर ‘फोर्स्ड मैरिज’ भी कहते हैं. इस में लड़के का अपहरण कर के मारपीट और डराधमका कर उसे शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है.

इस शादी में कम पढ़ेलिखे, नाबालिग से ले कर नौकरी करने वाले नौजवानों का अपहरण कर जबरन शादी करा दी जाती है. कुछ साल पहले इसी मुद्दे पर एक फिल्म ‘जबरिया जोड़ी’ भी बनी थी.

बिहार में बंदूक की नोक पर शादी कराना कोई बड़ी बात नहीं है. यह तो बहुत ही पुरानी परंपरा है. साल 1980 के दशक में उत्तरी बिहार में खासतौर पर बेगूसराय में ‘पकड़ौवा विवाह’ के मामले खूब सामने आए थे और आज भी इस तरह की शादियां हो रही हैं. बता दें कि ऐसी शादी कराने वाला एक गैंग होता है.

कैसे काम करता है गैंग

1980 के दशक में बिहार में कई ऐसे गैंग बनाए गए थे, जिन की शादी के सीजन में काफी डिमांड रहती थी. ये गिरोह लड़की के लिए सही लड़के की तलाश करते थे और मौका देख कर उसे अगवा कर बंदूक की नोक पर शादी कराते थे. शादी के बाद लड़के के घर वालों पर लड़की को बहू के तौर पर स्वीकारने के लिए दबाव बनाते थे.

बिहार के नालंदा जिले के एक बुजुर्ग रामकिशोर सिंह की शादी भी आज से तकरीबन 40 साल पहले अपहरण कर के ही हुई थी. रामकिशोर का कहना है कि  ऐसी शादी में न दहेज देने की चिंता होती है और न ही ज्यादा खर्चे की.

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हालांकि यह सब करना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन इस मामले में पुलिस की भूमिका बहुत ही सीमित है. राज्य पुलिस मुख्यालय इसे आपराधिक से ज्यादा सामाजिक समस्या के रूप में देखता है. राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक गुप्तेशर पांडेय कहते हैं कि जबरन होने वाली शादियों को भी बाद में सामान्य शादियों की तरह ही सामाजिक मान्यता मिलती रही है. इस में पुलिस की भूमिका काफी सीमित है.

पुलिस महकमे के अफसरों का भी मानना है कि ऐसे में लड़के के परिवार वाले तो अपहरण का मामला थाने में दर्ज करवाते हैं, लेकिन जब पता चलता है कि शादी के लिए अगवा किया गया है तो कार्यवाही में ढिलाई दे दी जाती है, क्योंकि किसी लड़की की शादी तो नेक काम है. कई मामले की जांच होतेहोते दोनों पक्ष समझौता कर चुके होते हैं. ऐसे में पुलिस के पास भी करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है.

ऐसी शादी में ऐसे लड़के पहले से ही निशाने पर होते हैं, जो अपनी ही जाति के होते हैं. यह शादी किसी पंडित द्वारा तय नहीं कराई जाती है, बल्कि कभीकभी लड़के का कोई अपना सगा ही होता है, जो धोखे से उसे मंडप तक ले जाता है.

‘पकड़ौवा विवाह’ में आननफानन ही मंडप तैयार कर लड़की को दुलहन की तरह तैयार कर उस की मांग किडनैप किए लड़के से भरवा दी जाती है. ऐसी शादी के लिए न तो लड़का मानसिक रूप से तैयार होता है और न ही लड़की.

एक औरत बताती है कि जब वह  15 साल की थी, तब जबरन उस की शादी करवा दी गई. मरजी पूछना तो दूर की बात है, उस 15 साल की बच्ची को यह तक पता नहीं था कि आज उस की शादी होने वाली है. मांबाप लड़की को ले जा कर मंडप में बैठा देते हैं और कुछ ही मिनटों में एक अनजान शख्स, जिसे उस ने देखा तक नहीं है, उस का पति बन जाता है.

उस औरत ने आगे बताया कि उसे गुस्सा आता था कि मेरे साथ यह क्या हो गया. पति ने 3 साल तक उसे नहीं स्वीकारा. लड़के का कहना था वह फांसी लगा कर मर जाएगा, पर इस शादी को नहीं स्वीकारेगा.

लड़के का यह भी कहना था कि जिस लड़की को वह जानता तक नहीं, उसे उस से रिश्ता नहीं रखना. उसे उस लड़की से कोई मतलब नहीं. उसे पढ़लिख कर अपनी जिंदगी बनानी है. लेकिन फिर बाद में सुलहसफाई के लिए पंचायत बैठी, तब जा कर लड़की को ससुराल विदा करा कर ले जाया गया.

‘‘तब मैं 7वीं क्लास में पढ़ती थी, जब मेरा ‘पकड़ौवा विवाह’ करा दिया गया था,’’ यह कहना है 48 साल की मालती का, जो अब 3 बच्चों की मां है और उस के सभी बच्चों की भी शादी हो चुकी है.

उस समय को याद कर के मालती आगे बताती है कि रोजाना की तरह उस दिन भी वह रसोई में खाना पकाने में अपनी मां की मदद कर रही थी, तभी मां ने उसे उठाते हुए कहा कि ये कपड़े लो और जा कर जल्दी से तैयार हो जाओ. आज तुम्हारी शादी है.

कुछ ही मिनटों में एक लड़के से उस की शादी करा दी गई. उसे नहीं पता था कि जिस लड़के को उस के घर वालों ने पूरे दिन घर में बंद रखा था, उसी से उस की शादी करा दी जाएगी.

लेकिन फिर वह जो बताती है, किसी यातना से कम नहीं है. मालती कहती है कि गुस्से से खार खाए पति और उस के घर वाले सालों तक उसे विदा करा कर नहीं ले गए.

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लेकिन फिर सामाजिक दबाव में आ कर उन्हें उसे विदा करा कर ले जाना पड़ा. लेकिन आज तक मालती को अपने पति से वह प्यार और इज्जत नहीं मिली, जो एक पत्नी को अपने पति से मिलनी चाहिए.

मालती कहती है कि वह निर्दोष थी, लेकिन अपने मातापिता की गलती की सजा वह आज तक भुगत रही है.

पति और ससुराल वाले ताना मारते थे कि बिना दहेज के मुसीबत पल्ले बांध दी गई. लेकिन हैरत तो इस बात की होती है कि जिस मालती के पति ने कभी उसे स्वीकार नहीं किया, तो क्या दहेज मिल जाने से उसे स्वीकार कर लेता?

सच तो यही है कि ‘पकड़ौवा विवाह’ की सब से बड़ी वजह दहेज प्रथा ही है. ‘पकड़ौवा विवाह’ में दूल्हे की हालत का अंदाजा आप 27 साल के प्रमोद की बातचीत से लगा सकते हैं.

प्रमोद का कहना है कि उस के एक दोस्त ने ही धोखे से उस का अपहरण करवाया और फिर बंदूक की नोक पर मंडप तक ले गया. न चाहते हुए भी उसे उस लड़की से शादी करनी पड़ी, जिसे वह जानता तक नहीं था.

इस शादी को अमान्य घोषित करवाने के लिए उस ने लड़ाई भी लड़ी. लेकिन आखिरकार थोपी गई उस शादी को उसे मानना ही पड़ा. आज भी जब अपनी पत्नी को देखता है, तो वह डरावना सच उसे याद आने लगता है.

हमारे देश में विवाह जैसी संस्था आज भी मजबूत है. अगर एक बार लड़कालड़की की शादी हो जाए तो बड़ी मुश्किल से टूटती है. यही वजह है कि लड़की वाले ऐसी ओछी हरकतें करने से बाज नहीं आते हैं. सोचते हैं कि लड़की ससुराल में टिक गई तो ठीक, वरना  देखा जाएगा.

क्यों धकेलते हैं दलदल में

पटना यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की प्रोफैसर रही भारती एस. कुमार कहती हैं कि यह सामंती सोच समाज की देन है. बिहार में सामाजिक दबाव इतना ज्यादा है कि लड़की के परिवार वाले इसी कोशिश में रहते हैं कि कैसे जल्द से जल्द अपनी जाति में बेटी की शादी करा कर अपने सिर का बोझ उतार लें. लेकिन इस बेमेल शादी का बुरा असर पतिपत्नी पर जिंदगीभर देखने को मिलता है.

कहींकहीं तो लड़की जिंदगीभर सताए जाने की शिकार होती है. वे कहती हैं कि ऐसी शादी वही मांबाप करवाते हैं, जिन के पास बेटी को देने के लिए दहेज नहीं होता.

लेकिन हैरानी की बात यह है कि जब लड़का लड़की को अपनाने से इनकार कर देता है तो फिर उसी शादी को वह दहेज के साथ स्वीकार भी कर लेता है मानो दहेज और शादी का एक चक्रव्यूह हो, जिस से निकलने का कोई सिरा नहीं है.

‘पकड़ौवा विवाह’ का शिकार हुए नवादा जिले के संतोष कुमार ने फिल्म कलाकार आमिर खान के टैलीविजन शो ‘सत्यमेव जयते’ और अभिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में बताया था कि उन की भी जबरन शादी कराई गई थी. लेकिन आज वे अपनी पत्नी के साथ खुश हैं.

वहीं बेगूसराय के रहने वाले और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लौटे अनीश कहते हैं कि ‘पकड़ौवा विवाह’ को सामाजिक मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए. किसी लड़के का अपहरण कर उस की शादी किसी से भी करा दी  जाए, तो क्या उस के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए?

अनीश का कहना है कि इस का विरोध न केवल लड़के को, बल्कि लड़की को भी करना चाहिए, क्योंकि नाइंसाफी दोनों के साथ हुई होती है.

मकसद क्या है

हमारे समाज में दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनी जुर्म हैं, लेकिन फिर भी दहेज का लेनदेन हो रहा है. यह कुप्रथा आज भी चली आ रही है. लोग आपसी सहमति से दहेज का लेनदेन कर रहे हैं.

समाज की अलगअलग जातियों के हिसाब से लड़के की काबिलीयत और पद के हिसाब से हर किसी का एक अघोषित ‘मार्केट रेट’ होता है. जो लड़की वाले इस रेट के हिसाब से शादी के लिए लड़के वालों की डिमांड पूरी करने की हैसियत रखते हैं, उन की लड़की की शादी तो आराम से हो जाती है, लेकिन जिन की दहेज देने की हैसियत नहीं होती, वे ऐसे ही रास्ते अपनाते हैं.

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ऐसे होता है ‘पकड़ौवा विवाह’

लड़की वाले लड़के को अगवा करने से पहले उसे टारगेट कर के रखते हैं. उस की बहुत सी बातों पर गौर किया जाता है, जैसे कि लड़के वाले लड़की वालों की तुलना में ज्यादा पैसे वाले हों. लड़का काबिल तो हो ही, साथ ही उस में अपनी भावी पत्नी का भरणपोषण करने की ताकत भी हो.

अगर लड़का अपनी जाति से हो तो और भी अच्छा. वैसे, ज्यादातर कोशिश यही होती है कि लड़का अपनी ही जाति का होना चाहिए.

शादी के बाद लड़की का उस घर में गुजारा हो सके, इस बात का भी ध्यान रखा जाता है.

लड़के के साथ क्या होता है

पहले तो लड़के के बारे में अच्छे से जानकारी हासिल कर ली जाती है कि लड़का कब और कहां आताजाता है. उस के बाद आसानी से उसे अगवा कर लिया जाता है. कई बार इस काम के लिए लड़की वाले प्रोफैशनल गुंडों को भी इस्तेमाल करते हैं.

वे बताते हैं कि अगर लड़का आने से आनाकानी करे, तो हलकी धुनाई कर दी जाए, पर ध्यान रहे कि लड़के का अंग भंग नहीं होना चाहिए. फिर लड़के को पकड़ कर एक कमरे में बंद कर दिया जाता है और आननफानन में मंडप सजा कर शादी करवा दी जाती है.

शादी के बाद दूल्हे को वे लोग कुछ दिन अपने घर पर ही रखते हैं, ताकि लड़का और लड़की आपस में मिल सकें. फिर लड़के को उस के घर भेजते समय धमकी देते हैं कि जल्द ही वह लड़की को विदा करा कर ले जाए वरना ठीक नहीं होगा.

लेकिन ऐसी शादियां अब कहींकहीं पर अमान्य होने लगी है. पेशे से इंजीनियर विनोद की शादी ऐसे ही जबरन करवा दी गई थी, जिस का वीडियो भी वायरल हुआ था. लेकिन विनोद ने यह ‘पकड़ौवा विवाह’ मानने से साफ इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि अगर कोई मेरी शादी भैंस से करवा दे तो क्या मैं उसे अपनी पत्नी मान लूंगा?

विनोद आपबीती बताते हुए कहते हैं कि लड़की वालों ने उन्हें 2 दिन तक कमरे में बंद रखा और जबरन लड़की को अपनाने के लिए मजबूर करते रहे. विनोद के घर वाले पुलिस के पास मदद के लिए गिड़गिड़ाए भी, लेकिन पुलिस वालों ने उन की कोई मदद नहीं की, बल्कि कहा कि आप के बेटे का अपहरण नहीं हुआ है, शादी ही तो हुई है.

मतलब, पुलिस की नजर में यह शादी सही थी. पुलिस ने यह भी कहा कि ये खतरनाक लोग हैं, इसलिए तुम अब लड़की को ले कर अपने घर चले जाओ, क्योंकि शादी तो हो ही गई है.

विनोद का कहना है कि पुलिस पूरी तरह से लड़की वालों से मिली होती है, इसलिए वह कोई एफआईआर दर्ज नहीं करती. लड़की वालों का मन इसलिए बढ़ा हुआ है, क्योंकि पुलिस इन के साथ है. यह तो कोर्ट का शुक्र है कि मुझे कुछ राहत मिली, नहीं तो मेरा जीना मुश्किल हो गया था.

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पटना के एएन सिन्हा संस्थान के निदेशक रह चुके डीएम दिवाकर का कहना है कि ‘पकड़ौवा विवाह’ का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन अभी इस में उछाल आने की 4 खास वजहें हैं. पहली तो पूंजी के दबाव में दहेज का विकराल रूप, दूसरी लड़कियों का पढ़ालिखा न होना, तीसरी गैरकृषि व्यवसाय में दूल्हे की चाहत लगातार बढ़ रही है और चौथी यह है कि सामाजिक तानेबाने में जातीय जकड़ अभी भी कायम है.

साल 2019 में कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए ‘पकड़ौवा विवाह’ को गैरकानूनी करार दिया. मतलब यह कि अब ऐसी शादी को कानूनी मंजूरी नहीं मिलेगी. लेकिन विनोद के ‘पकड़ौवा विवाह’ के मामले में कोर्ट फैसला इसलिए ले पाई, क्योंकि अपील करने वाले के पास मजबूत सुबूत था.

‘पकड़ौवा विवाह’ के मामले में  आप की शादी जबरन करवाई गई, यह साबित करने की जिम्मेदारी लड़के के ऊपर होती है.

पटना की परिवार कोर्ट में सालों से प्रैक्टिस कर रही एडवोकेट विभा कुमारी बताती हैं कि ‘पकड़ौवा विवाह’ को अमान्य घोषित करवाने के मामले बहुत ही कम आते हैं.

‘पकड़ौवा विवाह’ के आंकड़े

साल 2018 में ‘पकड़ौवा विवाह’ के 4,301 मामले दर्ज हुए थे, जबकि मई, 2019 तक 2,005 मामले दर्ज हो चुके थे. इस से पहले के सालों में भी ऐसी शादी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

बिहार पुलिस हैडक्वार्टर के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 में 2,526 मामले, 2015 में 3,000 मामले और साल 2016 में 3,070 और नवंबर, 2017 में 3,405 ‘पकड़ौवा विवाह’ के लिए अपहरण हुए थे.

राष्ट्रीय क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो, 2015 की रिपोर्ट भी कहती है कि बिहार में  18 से 30 साल के नौजवानों का सब से ज्यादा अपहरण हुआ है. देश में इस उम्र के नौजवानों का अपहरण का तकरीबन 16 फीसदी है.

पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, शादी के लिए अपहरण के 2,370 मामले जनवरी से सितंबर तक दर्ज किए गए थे और उन में से 1,804 मामले केवल लौकडाउन के महीनों में दर्ज किए गए.

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और भी लड़ रहे हैं लड़ाई

शेखपुरा जिले के रवींद्र कुमार झा ने बताया कि उन के 15 साल के बेटे की शादी साल 2013 में जबरन 11 साल की बच्ची से करा दी गई थी. उन्होंने इस शादी को मानने से इनकार कर दिया तो लड़की वालों ने उन के परिवार पर दहेज प्रताड़ना (498ए) का केस कर दिया. बाद में एंटीसिपेटरी बेल के बाद वह शादी अमान्य घोषित करवाई गई.

बोकारो में नौकरी करने वाले विनोद का पूरा परिवार पटना में रहता है.  4 भाईबहनों में से सिर्फ 2 की शादी हो पाई है. वे कहते हैं कि अपनी छोटी बहन की शादी के लिए जहां भी जाते हैं, सब यही कहते हैं कि ये लोग तो मुकदमे  में फंसे हुए हैं तो फिर रिश्ता कैसे हो सकता है.

‘पकड़ौवा विवाह’ में बेटी की जबरदस्ती शादी कर के मांबाप अपने सिर से बोझ तो उतार लेते हैं और दहेज व शादी के खर्चे से भी बच जाते हैं, लेकिन वे यह नहीं सोचते कि इस बेमेल शादी का बुरा असर पतिपत्नी पर जिंदगीभर पड़ेगा, उस की भरपाई कौन करेगा? लड़के के दिल में हमेशा एक टीस उठेगी कि उस के साथ धोखा हुआ है.

सच्चा प्यार- भाग 2: जब उर्मी की शादीशुदा जिंदगी में मुसीबत बना उसका प्यार

Writer- Girija Zinna

मैं ने तुरंत उस आवाज को पहचान लिया. हां वह और कोई नहीं शेखर ही था.

‘‘कैसी हैं आप? उम्मीद है आप मुझे याद करती हैं?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई आप को भूल सकता है क्या? बताइए, क्या हालचाल हैं? कैसे याद किया मुझे आप ने अपनी इतनी सारी गर्लफ्रैंड्स में?’’

‘‘आप के ऊपर एक इलजाम है और उस के लिए जो सजा मैं दूंगा वह आप को माननी पड़ेगी. मंजूर है?’’ उस की आवाज में शरारत उमड़ रही थी.

‘‘इलजाम? मैं ने ऐसी क्या गलती की जो सजा के लायक है… आप ही बताइए,’’ मैं भी हंस कर बोली.

शेखर ने कहा, ‘‘पिछले 1 हफ्ते से न मैं ठीक से खा पाया हूं और न ही सो पाया… मेरी आंखों के सामने सिर्फ आप का ही चेहरा दिखाई देता है… मेरी इस बेकरारी का कारण आप हैं, इसलिए आप को दोषी ठहरा कर आप को सजा सुना रहा हूं… सुनेंगी आप?’’

‘‘हां, बोलिए क्या सजा है मेरी?’’

‘‘आप को इस शनिवार मेरे फ्लैट पर मेरा मेहमान बन कर आना होगा और पूरा दिन मेरे साथ बिताना होगा… मंजूर है आप को?’’

‘‘जी, मंजूर है,’’ कह मैं भी खूब हंसी.

उस शनिवार मुझे अपने फ्लैट में ले जाने के लिए खुद शेखर आया. मेरी खूब खातिरदारी की. एक लड़की को अति महत्त्वपूर्ण महसूस कैसे करवाना है यह बात हर मर्द को शेखर से सीखनी चाहिए. शाम को जब वह मुझे होस्टल छोड़ने आया तब हम दोनों को एहसास हुआ कि हम एकदूसरे को सदियों से जानते… यही शेखर की खूबी थी.

उस के बाद अगले 6 महीने हर शनिवार मैं उस के फ्लैट पर जाती और फिर रविवार को ही लौटती. हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब हो गए थे. मगर मैं एक विषय में बहुत ही स्पष्ट थी. मुझे मालूम था कि हम दोनों भारत से हैं. इस के अलावा हमारे बीच कुछ भी मिलताजुलता नहीं. हमारी बिरादरी अलग थी. हमारी आर्थिक स्थिति भी बिलकुल भिन्न थी, जो बड़ी दीवार बन कर हम दोनों के बीच खड़ी रहती थी.

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शुरू से ही जब मैं ने इस रिश्ते में अपनेआप को जोड़ा उसी वक्त से मेरे मन में कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे मालूम था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मगर जो समय मैं ने शेखर के साथ व्यतीत किया वह मेरे लिए अनमोल था और मैं उसे खोना नहीं चाहती थी. इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई जब शेखर ने बड़ी ही सरलता से मुझे अपनी शादी का निमंत्रण दिया, क्योंकि उस रिश्ते से मुझे यही उम्मीद थी. अगले हफ्ते ही वह भारत चला गया और उस के बाद हम कभी नहीं मिले. कभीकभी उस की याद मुझे आती थी, मगर मैं उस के बारे में सोच कर परेशान नहीं होती थी. मेरे लिए शेखर एक खत्म हुए किस्से के अलावा कुछ नहीं था.

शेखर के चले जाने के बाद मैं 1 साल के लिए अमेरिका में ही रही. इस दौरान मेरी मां भी अपनी अध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी थीं. उन्हें अमेरिका आना पसंद नहीं था, क्योंकि वहां का सर्दी का मौसम उन के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए मैं अपनी पीएच.डी. खत्म कर के भारत लौट आई.

अमेरिका में जो पैसे मैं ने जमा किए और मेरी मां के पीएफ से मिले उन से मुंबई में 2 बैडरूम वाला फ्लैट खरीद लिया. बाद में मुझे क्व30 हजार मासिक वेतन पर एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई.

मेरे मुंबई लौटने के बाद मेरी मां मेरी शादी करवाना चाहती थीं. उन्हें डर था कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो मैं इस दुनिया में अकेली हो जाऊंगी. मगर शादी इतनी आसान नहीं थी. शादी के बाजार में हर दूल्हे के लिए एक तय रेट होता था. हमारे पास मेरी तनख्वाह के अलावा कुछ भी नहीं था. ऊपर से मेरी मां का बोझ उठाने के लिए लड़के वाले तैयार नहीं थे.

जब मैं अमेरिका से मुंबई आई थी तब मेरी उम्र 25 साल थी. शादी के लिए सही उम्र थी. मैं भी एक सुंदर सा राजकुमार जो मेरा हाथ थामेगा उसी के सपने देखती रही. सपने को हकीकत में बदलना संभव नहीं हुआ. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में और महीने सालों में बदलते हुए 3 साल निकल गए.

मेरी जिंदगी में दोबारा एक आदमी का प्रवेश हुआ. उस का नाम ललित था. वह भी अंगरेजी का लैक्चरर था. मगर उस ने पीएचडी नहीं की थी. सिर्फ एमफिल किया था. पहली मुलाकात में ही मुझे मालूम हो गया कि वह भी मेरी तरह मध्यवर्गीय परिवार का है और उस की एक मां और बहन है. उस ने कहा कि उस के पिता कई साल पहले इस दुनिया से जा चुके हैं और मां और बहन दोनों की जिम्मेदारी उसी पर है.

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पहले कुछ महीने हमारे बीच दोस्ती थी. हमारे कालेज के पास एक अच्छा कैफे था. हम दोनों रोज वहां कौफी पीने जाते. इसी दौरान एक दिन उस ने मुझे अपने घर बुलाया. वह एक छोटे से फ्लैट में रहता था. उस की मां ने मेरी खूब खातिरदारी की और उस की बहन जो कालेज में पढ़ती थी वह भी मेरे से बड़ी इज्जत से पेश आई.

इसी दौरान एक दिन ललित ने मुझ से कहा, ‘‘उर्मी, क्या आप मेरे साथ कौफी पीने के लिए आएंगी?’’

उस का इस तरह पूछना मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, मगर फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘कोई खास बात है जो मुझे कौफी पीने को बुला रहे हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, बस ऐसा ही समझ लीजिए.’’

शाम कालेज खत्म होने के बाद हम दोनों कौफी शौप में गए और एक कोने में जा कर बैठ गए. मैं ने उस के चेहरे को देख कर कहा, ‘‘हां, बोलो ललित क्या बात करनी है मुझ से?’’

अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का- भाग 2: जब प्रभा को अपनी बेटी की असलियत पता चली!

2 रुपए का भी उपहार ले कर आए? और हमारी छोड़ो, क्या कभी उस ने अपनी भतीजी को एक खिलौना भी खरीद कर दिया है? नहीं, बस लेना जानती है. क्या मेरी आंखें नहीं हैं? देखता हूं मैं, तुम बहूबेटी में कितना फर्क करती हो. बहू का प्यार तुम्हें ढकोसला लगता है और बेटी का ढकोसला प्यार. ऐसे घूरो मत मुझे, पता चल जाएगा तुम्हें भी एक दिन.’’

‘‘कैसे बाप हो तुम, जो बेटी के सुख पर भी नजर लगाते रहते हो. पता नहीं क्या बिगाड़ा है रंजो ने आप का, जो हमेशा वह तुम्हारी आंखों की किरकिरी बनी रहती है?’’ अपनी आंखें लाल करते हुए प्रभा बोली.

‘‘ओ, कमअक्ल औरत, रंजो मेरी आंखों की किरकिरी नहीं बनी है बल्कि अपर्णा बहू तुम्हें फूटी आंख नहीं सुहाती है. पूरे दिन घर में बैठी आराम फरमाती रहती हो, हुक्म चलाती रहती हो. कभी यह नहीं होता कि बहू के कामों में थोड़ा हाथ बंटा दो और तुम्हारी बेटी, वह तो यहां आ कर अपना हाथपैर हिलाना भी भूल जाती है. क्या नहीं करती है बहू इस घर के लिए. बाहर जा कर कमाती भी है और अच्छे से घर भी संभाल रही है. फिर भी तुम्हें उस से कोई न कोई शिकायत रहती ही है. जाने क्यों तुम बेटीबहू में इतना भेदभाव करती हो?’’

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‘‘कमा कर लाती है और घर संभालती है, तो कौन सा एहसान कर रही है हम पर. घर उस का है, तो संभालेगा कौन?’’

‘‘अच्छा, सिर्फ उस का घर है, तुम्हारा नहीं? बेटी जब भी आती है उस की खातिरदारी में जुट जाती हो, पर कभी यह नहीं होता कि औफिस से थकीहारी आई बहू को एक गिलास पानी दे दो. बस, तानें मारना आता है तुम्हें. अरे, बहू तो बहू, उस की दोस्त को भी तुम देखना नहीं चाहती हो. जब भी आती है, कुछ न कुछ सुना ही देती हो. तुम्हें लगता है कहीं वह अपर्णा के कान न भर दे तुम्हारे खिलाफ. उफ्फ, मैं भी किस पत्थर से अपना सिर फोड़ रहा हूं, तुम से तो बात करना ही बेकार है,’’ कह कर भरत वहां से चले गए.

सही तो कह रहे थे भरत. अपर्णा क्या कुछ नहीं करती है इस घर के लिए. पर फिर भी प्रभा को उस से शिकायत ही रहती थी. नातेरिश्तेदार हों या पड़ोसी, हर किसी से वह यही कहती फिरती थी, ‘भाई, अब बहू के राज में जी रहे हैं, तो मुंह बंद कर के ही जीना पड़ेगा न, वरना जाने कब बहूबेटे हम बूढ़ेबूढ़ी को वृद्धाश्रम भेज दें.’ यह सुन कर अपर्णा अपना चेहरा नीचे कर लेती थी पर अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं बोलती थी. पर उस की आंखों के बहते आंसू उस के मन के दर्द को जरूर बयां कर देते थे.

अपर्णा ने तो आते ही प्रभा को अपनी मां मान लिया था, पर प्रभा तो आज तक उसे पराई घर की लड़की ही समझती रही. अपर्णा जो भी करती, प्रभा को वह बनावटी लगता था और रंजो का एक बार सिर्फ यह पूछ लेना, ‘मां आप की तबीयत तो ठीक है न?’ सुन कर कर प्रभा खुशी से कुप्पा हो जाती और अगर जमाई ने हालचाल पूछ लिया, तो फिर प्रभा के पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते थे.

उस दिन सिर्फ इतना ही कहा था अपर्णा ने, ‘मां, ज्यादा चाय आप की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती है और वैसे भी, डाक्टर ने आप को चाय पीने से मना किया है. वुमन हौर्लिक्स लाई हूं, यह पी लीजिए.’ यह कह कर उस ने गिलास प्रभा की ओर बढ़ाया ही था कि प्रभा ने गिलास उस के हाथों से झटक लिया और टेबल पर रखते हुए तमक कर बोली, ‘तुम मुझे ज्यादा डाक्टरी का पाठ मत पढ़ाओ बहू, जो मांगा है वही ला कर दो,’ फिर बुदबुदाते हुए अपने मन में ही कहने लगी, ‘बड़ी आई मुझे सिखाने वाली, अच्छे बनने का नाटक तो कोई इस से सीखे.’ अपर्णा की हर बात उसे नाटक सरीखी लगती थी.

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मानव औफिस के काम से शहर से बाहर गया हुआ था और अपर्णा भी अपने कजिन भाई की शादी में गई हुई थी. मन ही मन अपर्णा यह सोच कर डर रही थी कि अकेले सासससुर को छोड़ कर जा रही हूं, कहीं पीछे कुछ… यह सोच कर जाने से पहले उस ने रंजो को दोनों का खयाल रखने और दिन में कम से कम एक बार उन्हें देख आने को कहा. जिस पर रंजो ने आग उगलते हुए कहा, ‘‘आप नहीं भी कहतीं न, तो भी मैं अपने मांपापा का खयाल रखती. आप को क्या लगता हैख् एक आप ही हैं इन का खयाल रखने वाली?’’

पर अपर्णा के जाने के बाद वह एक बार भी अपने मायके नहीं आई वह इसलिए कि उसे वहां काम करना पड़ जाता. हां, फोन पर हालचाल जरूर पूछ लेती और साथ में यह बहाना भी बना देती कि वक्त नहीं मिलने के कारण वह उन से मिलने नहीं आ पा रही, पर वक्त मिलते ही आएगी.

एक रात अचानक भरत की तबीयत बहुत बिगड़ गई. प्रभा इतनी घबरा गई कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. उस ने मानव को फोन लगाया पर उस का फोन विस्तार क्षेत्र से बाहर बता रहा था. फिर उस ने अपनी बेटी रंजो को फोन लगाया. घंटी तो बज रही थी पर कोई उठा नहीं रहा था. जमाई को भी फोन लगाया, उस का भी वही हाल था. जितनी बार भी प्रभा ने रंजो और उस के पति को फोन लगाया, उन्होंने नहीं उठाया. ‘शायद सो गए होंगे’ प्रभा के मन में यह खयाल आया. फिर हार कर उस ने अपर्णा को फोन लगाया. इतनी रात गए प्रभा का फोन आया देख कर अपर्णा घबरा गई. प्रभा कुछ बोलती, उस से पहले ही वह बोल पड़ी.

गृहप्रवेश- भाग 2: किसने उज्जवल और अमोदिनी के साथ विश्वासघात किया?

अचानक मेरा हृदय कागज के फूल सा हलका हो कर उज्जवल के प्रति असीम कृतज्ञता से छलक उठा था. कैसी मूर्ख थी मैं, इतना प्यार करने वाले पति पर अविश्वास किया.

मेरी बुद्धि मेरे विश्वास को एक गुमनाम पत्र लिख चुकी थी. सबकुछ ऊपर से सामान्य नजर आ रहा था, लेकिन मेरे भीतर कुछ दरक गया था. मेरी नजरें जैसे कुछ तलाशती रहतीं. एक मालगाड़ी की तरह बिना किसी स्टेशन पर रुके, चोरों की भांति उज्जवल को निहारते, मैं जी रही थी. कभीकभी खुद के गलत होने का अनुभव भी होता.

फिर जब एक दिन ऐसा लगने लगा कि मैं इधरउधर से आई पटरियों के संगम पर हताश खड़ी हूं, तो दूर किसी इंजन की सर्चलाइट चमकी थी.

हम ने स्नेह के 10वें जन्मदिन पर शानदार पार्टी का आयोजन किया था. शाम होते ही मेहमान आने लगे थे. मैं और उज्जवल एक अच्छे होस्ट की तरह सभी का स्वागत कर रहे थे. तभी जैसे उज्जवल की आंखों में एक सुनहरी पतंग सी चमक आ गई, और उस के होंठों ने गोलाकार हो कर एक नाम पुकारा, ‘मो.’

मैं नाम तो सुन नहीं पाई लेकिन उस सुनहरी पतंग की डोरी को थामे उस चेहरे तक अवश्य पहुंच गई थी, जिस के हाथों में मां झा था. वहां मोहिनी मजूमदार खड़ी थी. उज्जवल के बचपन के दोस्त दीपक मजूमदार की पत्नी. उस की बेटी सारा, स्नेह की क्लास में ही पढ़ती थी.

अपने अंदर की शंका के सर्प को मैं ने डांट कर सुला दिया और अतिथियों के स्वागत में व्यस्त हो गई थी. केक कटा, गेम्स हुए और फिर खाना लगा.

कभीकभी नारी ही नारी के लिए जटिल पहेली बन जाती है, तो कभीकभी उस पहेली का हल भी. शंका के जिस विषम सर्प को मैं ने सुला दिया था, मोहिनी ने उसे जगा दिया. मैं ने देखा,  गिलास थामने के साथसाथ मोहिनी की कांपती उंगलियां उज्जवल की उंगलियों को थाम कर दबा दे रही थीं. मैं ने वह भी देखा, खाने की मेज पर आमनेसामने बैठते ही मोहिनी के कोमल पैरों में उज्जवल के बलिष्ठ पंजों का बंदी बन जाना, परदे की आड़ का बहाना बना, जानबू झ कर उन का टकरा जाना, और फिर ‘सौरीसौरी’ कह एकदूसरे को देख चुपके से चुंबन उछाल देना.

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मैं यह सब देख रही थी. सहसा मेरी तरफ देख कर मोहिनी ने एक आंख मूंद ली. तब मैं ने जाना कि वह चाहती थी कि मैं देखूं. उस की आंखों में जलते घमंड और वासना की ज्वाला ने मेरे वर्षों के प्रेम और समर्पण को भस्म कर दिया था.

मैं उज्जवल से कुछ पूछ ही नहीं पाई. शायद मैं डर रही थी कि मैं पूछूं और वह  झूठ बोल दे या उस से भी बुरा, अगर वह सच बोल दे.

मैं ने एक बनावटी जीवन जीना आरंभ कर दिया. बनावटी जीवन एक समय बाद आप को ही परेशान करने लगता है. जब तक आप इस बात को सम झ कर गंभीर होते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, क्योंकि तब आप की वास्तविक भावनाएं न तो कोई देखना चाहता है और न ही आप खुद उन्हें सम झ पाते हैं.

मैं शीशे के सामने खड़ी हो कर अपनी कमी को देखने का प्रयास करती. मु झे लगता कि मेरी ही किसी भूल के कारण उज्जवल मु झ से दूर हो गया था. मैं मोहिनी से खुद की तुलना करती. खुद को उस से बेहतर बनाने का प्रयास करती. उज्जवल को हरसंभव सुख देने का प्रयास करती. हमारे अंतरंग पलों को जीना, मैं ने कब का छोड़ दिया था. मेरा प्रयास मात्र उज्जवल का आनंद रह गया था. अपनी भावनाओं को दबा कर मैं खुद के प्रति इतनी कठोर हो गई थी कि हमेशा खुद को जोखिमभरे कामों में उल झा कर रखने लगी. मानो ये सब कर के मैं उसे मोहिनी के पास जाने से रोक लूंगी.

मैं यह भूल गई कि एक रिश्ता ऐसा भी होता है जिस की डोर आप से इतनी बंधी होती है कि आप के मन की दलदल में उन का जीवन भी फिसलने लगता है. वह रिश्ता होता है, एक मां और संतान का. इस का अनुभव होते ही मैं समाप्त होने से पहले जी उठी.

एक शाम जब मैं विवाहेतर संबंध क्यों बनते हैं, पर आर्टिकल पढ़ रही थी, स्नेह मेरे निकट आ कर बैठ गया.

‘‘मां.’’

‘‘हां,’’ मैं ने उस की तरफ देखे बिना पूछा था.

‘‘आई मिस यू.’’

मैं ने चौंक कर स्नेह को देखा, बोली, ‘‘क्यों बेटा?’’

‘‘आप खो गई हो, अब हंसती भी नहीं. मैं अलोन हो गया हूं.’’

दर्द के जिन बादलों को मैं ने महीनों से अपने भीतर दबा रखा था, वे फट पड़े और आंखें बरसने लगीं. जिस आदमी ने मेरे विश्वास और प्रेम को कुचलने से पहले एक बार भी नहीं सोचा, उस के लिए मैं अपने बच्चे और खुद के साथ कितना सौतेला व्यवहार करने लगी थी. मेरा मृतप्राय आत्मविश्वास जीवित हो उठा. मैं ने उस दिन मात्र स्नेह को ही नहीं, अपने घायल मैं को भी गले लगा लिया था.

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मैं ने पूरी रात सोच कर एक निर्णय लिया और अगले दिन सुबह ही दीपक मजूमदार को फोन कर दिया था.

2 दिनों बाद दीपक और मोहिनी मेरे लिविंगरूम में मेरे सामने बैठे थे. रविवार था, तो उज्जवल भी घर पर ही था. सारा को मैं ने स्नेह के कमरे में भेज दिया.

कमरे का तापमान गरम था. वहां की खामोशी में सभी की सांसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी. मैं और उज्जवल अलगअलग कुरसियों पर बैठे थे. मोहिनी और दीपक सोफे पर एकसाथ बैठे थे. सभी एकदूसरे से नजरें चुरा रहे थे.

‘‘इस रिश्ते का क्या भविष्य है?’’ उज्जवल की तरफ देख कर बात मैं ने ही शुरू की.

‘‘बताओ मोहिनी,’’ दीपक ने कहा.

उन के बीच बात हो गई थी. 2 दिनों पहले जब मैं ने दीपक को फोन किया था, तब दीपक ने मु झे उज्जवल और मोहिनी को रंगेहाथ पकड़ने की बात बताई थी. अपने और मोहिनी के मनमुटाव के बारे में भी बताया. मैं ने जब उन दोनों को घर आ कर बात करने को कहा, तो दीपक ने स्वीकार कर लिया था.

उस रात मोहिनी ने उज्जवल को फोन भी किया. लेकिन उज्जवल ने मु झ से कुछ नहीं पूछा. और मैं, मैं तो उस के कुछ कहने का इंतजार ही करती रह गई. मैं तो उस का परस्त्री के प्रति आकर्षण भी स्वीकार कर लेती, लेकिन यह छल और अनकहा अपमान मु झे स्वीकार्य नहीं था.

इसलिए जब उस दिन उज्जवल ने कहा, ‘मैं जानता हूं, जो हुआ ठीक नहीं हुआ, लेकिन प्रेम वायु है. उसे न तो सहीगलत की परिभाषा रोक सकती है और न समाज के बनाए नियम. प्रेम तो वह नदी है, जिस पर बनाए गए हर बांध को टूटना ही होता है. मैं और मोहिनी प्रेम में हैं, और सदा रहना चाहते हैं.’ उस की स्वीकारोक्ति सुन कर मेरी आंखें छलछला आई थीं.

मैं एक बार उज्जवल को देखती और फिर मोहिनी को, फिर उन दोनों को. पागल सी हो रही थी, पर मैं रोई नहीं, बहुत रो जो चुकी थी. विवाह के शुरुआती दिवसों की मधुर स्मृतियां, विवाहपूर्व उस सरल उज्जवल का प्रथम अनाड़ी चुंबन मु झे व्याकुल कर रहा था. उन दिनों वह मुस्तफा जैदी की एक शायरी मेरी आंखों को चूमते हुए कहती –

‘इन्ही पत्थरों पे चल कर

अगर आ सको तो आओ,

मेरे घर के रास्ते में

कोई कहकशां नहीं है’

आज कहां गया वह अनुरोध, वह प्रेम, वह आलिंगन. न चाहते हुए मेरी नजर मोहिनी के लंबे काले बालों पर चली गई. न जाने कितनी बार ये केश मेरे जीवन सहचर के नग्न वक्षस्थल पर लहराए होंगे. मैं ने घबरा कर नजरें नीची कर ली थीं.

‘हम सोलमेट्स हैं,’ मोहिनी ने

कहा था.

‘‘प्रेम थोपा तो जा नहीं सकता. जैसा कि मैं कल कह चुका हूं, अलग हो जाना सही विकल्प है,’’ दीपक ने इतना कह कर मेरी तरफ देखा. तीन जोड़ी आंखें मु झ पर ठहर गई थीं.

‘‘मैं अभी आर्थिक रूप से उज्जवल पर निर्भर हूं. जब शादी घरवालों की इच्छा के विरुद्ध की, तो इस का परिणाम उन पर क्यों थोपूं. मु झे नौकरी ढूंढ़ने के लिए कुछ समय चाहिए. तब तक स्नेह के साथ मेरी भी जिम्मेदारी उज्जवल को उठानी होगी. इस घर में हम दोनों का पैसा लगा है, तो शीघ्र ही उज्जवल को मेरा हिस्सा भी देना होगा. स्नेह तो खैर इन की जिम्मेदारी हमेशा रहेगा. उम्मीद करती हूं, तुम ने मात्र जीवनसाथी के पद से इस्तीफा दिया है, पिता तुम आज भी हो.’’

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न कोई आरोप, न आंसू, न क्रोध. उज्जवल खामोश मु झे देखता रहा था. जहां तूफान की आशंका हो, वहां अश्रुओं की रिम िझम का भी अभाव रहा. मेरी इस उदासीनता के लिए उज्जवल प्रस्तुत नहीं था. हमारे बीच एक छोटी सी बात अवश्य हुई, लेकिन मैं ने उज्जवल पर क्रोध नहीं किया. क्रोध तो वहां आता है जहां अधिकार हो, एक अपरिचित पर कैसा अधिकार.

उज्जवल और मोहिनी साथ रहने लगे थे. दीपक ने मोहिनी की जिम्मेदारियों से हाथ खींच लिया, जो सही भी था. वैसे सारा की जिम्मेदारियों से उस ने कभी इनकार नहीं किया. तलाक के पेपर कोर्ट में डाले जा चुके थे, जिस पर सालभर में फैसला आने की उम्मीद थी.

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