Best of Manohar Kahaniya: प्रेम या अभिशाप

यह कहानी है एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की सीमा की. सीमा एक साधारण परिवार में पली बढ़ी और आगे अपने जीवन संघर्ष को पुरजोर किया. जब सीमा 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी तब उसके पिता की मृत्यु बीमारी के कारण हो जाती है . उसके पिता के अकस्मात् मृत्यु के कारण पारिवारिक और अर्थिक स्तिथि पूरी तरह डावाडोल हो जाती है . घर में कोई कमाने वाला नही. बड़ी मुश्किल से उसके पिता के पेंशन के पैसे से दो वक्त की रोटी का गुजारा हो रहा था . ऐसी स्थिति में सीमा अपने आगे की पढ़ाई जैसे-तैसे पूरी की और पारिवारिक स्तिथि को सुधारने के लिए स्वयं एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करने लगी. सीमा बाहर काम करने जाती तो उसकी माँ घर संभालती. सीमा को अपने पिता की कमी बहुत खलती थी और अपने पिता को याद करके अकेले में रोती थी . छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च भी और घर का खर्च स्वयं सीमा ही उठा रही थी . इन्हीं कारणों से उसकी शादी भी नहीं हो पाई थी . कहीं से अच्छे रिश्ते भी नहीं आ रहे थे उसके लिये. सीमा घर और काम में उलझ गई थी. सोचती की मै अगर शादी कर लूंगी तो घर में माँ और भाई का क्या होगा, कौन उनका ध्यान रखेगा, उनकी जरूरतों को पूरा करेगा. 30 वर्ष पार कर चुकी सीमा अब तो शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दी.

सीमा और उसके परिवार का जीवन जैसे-तैसे चल रहा रहा था लेकिन सीमा हार नहीं मानी . उसने अच्छे स्कूल में शिक्षिका पद के लिए आवेदन किया और वहाँ उसको काम मिल गया . तन्ख्वाह भी अच्छी मिलने लगी. परिवार की स्तिथि देखते-देखते सुधरने लगी. नये-नये कपड़े बर्तन खरीदा जाने लगे
घर का मरम्मत करवाई. पूरे परिवार में खुशहाली छा गई.

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तभी इसी बीच उसकी मुलाकत रमेश नामक युवक से हुई. रमेश सीमा के स्कूल में कंप्यूटर पर कार्य करता था और शहर में नया आया था . रमेश सीमा के घर के पास ही किराए में रहने लगा. उसे कुछ सहयता और सहयोग की आवश्यकता होती तो वह सीमा के घर पहुँच जाता . सीमा को मदद के लिए बोलता और सीमा झट से उसकी मदद कर देती. अब दोनो का मेलजोल बढ़ गया. घर आने-जाने का सिलसिला हो गया. रमेश मनही मन सीमा को पसंद करने लगा और सीमा भी रमेश को चाहने लगी. दोनों एक दूसरे से मन की बात नहीं कह पा रहे थे और समय बीत रहा था . फिर सीमा लगभग 1 माह के लिए अपने रिश्तेदार के यहां छुट्टियां मनाने चली गई और रमेश भी अपने घर चला गया . रमेश सीमा को बहुत याद करता . वह रोजाना उसे फोन करता और उसका हाल चाल पूछता . उसे अहसास हो गया की वह उसके बगैर नहीं रह पायेगा . सीमा भी रमेश से अपने मन की बात नहीं कह पाई. अब दोनों की छुट्टियां समाप्त हो गई और दोनो फिर स्कूल जाने लगे. दोनो का मिलना-जुलना पहले की तरह ही चलता रहा . लोग भी उनके बारे में तरह तरह की बातें करने लगे . रमेश ने एक दिन हिम्मत जुटाई और मौका देखकर सीमा से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रमेश उससे बोला कि वह उससे बहुत प्यार करता है और उसके बगैर नहीं रह सकता . रमेश ने सीमा से पूछा कि वह उससे शादी भी करना चाहता है . सीमा ने जवाब दिया कि वह भी रमेश को बहुत चाहती है लेकिन शादी नही कर सकती.

रमेश सीमा की जात-बिरादरी का नही था और सीमा ने समाज-परिवार को देखते हुये यह निर्णय लिया . लेकिन रमेश उसको हमेशा शादी के लिए मनुहार करते रहता लेकिन सीमा बात टाल जाती . देखते-देखते 5वर्ष बीत गया . अब रमेश की नौकरी बिलासपुर के वन विभाग मे कांस्टेबल पद पर हो गई. तब से वह बिलासपुर में रहने लगा . लेकिन छुट्टी में वह सीमा से मिलने आता और सब से मिलता, उनके लिए उपहार लाता और खुशी खुशी वापस चला जाता. सीमा की माँ भी रमेश के घर आने से बहुत खुश होती और सोचती कि काश मुझे भी ऐसा दामाद मिल जाए जो मेरी बेटी को बहुत खुश रखे.

सात साल हो गये दोनो के प्रेम प्रसंग को लेकिन विवाह की कोई राह नहीं दिखी . अब सीमा सोचने लगी कि आखिर एक दिन किसी न किसी से विवाह करनी ही है तो क्यों न रमेश को ही हां कर दूँ . फिर उसने रमेश को अपने घर बुलवाया और शादी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया . उसने अपना निर्णय अपनी मां को बताया . पहले उसकी माँ जात बिरादरी और समाज के डर से नहीं मानी फिर बेटी का भला सोच कर हामी भर दी . माँ का आशीर्वाद लेकर दोनो ने मन्दिर में विवाह कर लिया . सीमा की सहेलियां, पड़ोसी और रिश्तेदार इस शादी से बहुत खुश हुए . सभी यही कहते हैं कि देर से ही सही बेचारी का घर तो बस गया. उसको जीवन साथी तो मिला.

शादी को 4 माह हो गये. सीमा अपने ससुराल भी जाकर आ गई . उसके ससुराल वाले उसे पूरी तरह से नहीं अपनाये थे. वह अभी भी अपनी मायके मे थी और स्कूल मे ही पढ़ा रही थी . रमेश भी बिलासपुर से सीमा के मायके आते-जाते रहता था.

फिर एक दिन रमेश ने सीमा से कहा कि वह उसे बिलासपुर घुमाने ले जाना चाहता है . सीमा ने कहा कि वह अभी नहीं जा सकती, स्कूल से छुट्टी नहीं मिलेगी . रमेश ने कहा कि शाम तक कैसे भी करके वह उसे वापस घर छोड़ देगा . सीमा मान गई . दोनो बिलासपुर जाने के लिए तैयार हुए और माँ की अनुमति लेकर हँसी खुशी घर से निकले. माँ ने सीमा से कहा कि ध्यान से जाना और अपना ख्याल रखना . सीमा बोली कि हम लोग शाम तक वापस लौट आयेंगे तुम खाना बनाकर रखना . अब दोनो चले गये .
शाम को सीमा की माँ खाना बनाकर सीमा और रमेश का रास्ता देख रही थी लेकिन दोनो की कोई खबर नही थी. मां ने फोन किया पर उनका फोन भी बन्द था. मां बहुत परेशान हो गई. सोची कि ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ था कि उसकी बेटी का मोबाईल बन्द हो.

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अगले दिन सुबह ऐसी खबर आई कि सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई . पता चला कि सड़क हादसे में सीमा की जान चली गई और रमेश बच गया था. फिर दुर्घटना स्थल से ही सीमा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया . कई पुलिस भी साथ में थे. इस दुखद घटना के बारे में सीमा की माँ को कुछ भी ज्ञात नहीं था . सीमा के छोटे भाई ने अपनी मां को बड़ी मुश्किल से बताया कि दीदी अब इस दुनिया में नहीं रही . मां ने जैसे ही सीमा की मौत की खबर सुनी तो होश खो बैठी और रो रो कर बुरा हाल हो गया. सीमा की मौत के दूसरे दिन लाश को घर लाया गया और उसके बाद मुक्तिधाम में उसका अन्तिम संस्कार कर दिया गया .

सीमा की मौत सच मे एक दुर्घटना थी या हत्या यह कह पाना मुश्किल है किन्तु लोगों की बातों को यदि गौर करें तो मामला हत्या का ही लग रहा था . क्योंकि उसकी माँ ने ही लोगों को बताया कि सीमा जब विवाह के लिए राजी हुई तब रमेश सीमा से विवाह नही करना चाहता था . रमेश के घरवाले उसे अपनी जाति की लड़की से विवाह करने के लिए दबाव डाल रहे थे और रमेश अपने परिवार की पसंद से शादी करना चाहता था . लेकिन सीमा ने रमेश को विवाह के लिए दबिश दी और रमेश ने हालात से घबराकर सीमा से विवाह किया था. शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनो के बीच मनमुटाव और झगड़े होने लगे. दोनो का वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं था . रमेश ने सीमा को स्पष्ट बोल दिया कि वह उसे तलाक़ दे दे या दुसरी शादी करने की अनुमति दे. सीमा इस बात के लिए कतई राजी नहीं हुई . अब रमेश उससे पीछा छुड़ाने का उपाय सोचने लगा . और आखिरकार उसने इस शर्मनाक घटना को अंजाम दे दिया . उसने न केवल सीमा का बल्कि विश्वास और प्रेम का भी खून किया.

यह बात कितना सच है या मिथ्या यह तो सीमा को, रमेश को और इश्वर को ही पता होगा क्यौंकि आंखो देखा कोई साक्ष्य नहीं था . लेकिन सीमा की लाश उसके पति के झूठे प्रेम का हाल सुना रहे थे कि उसके ही पति ने किस तरह बेरहमी से उसे मौत के घाट उतारा था . सड़क दुर्घटना और लाश में एक भी चोट नहीं, रमेश भी बिल्कुल सही सलामत, उसके चेहरे पर न दुख न शिकन . तो कोई शक भी क्यो न करे . पुलिस और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार सीमा की मृत्यु को दुर्घटना घोषित किया .

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सीमा का प्रेम उसके लिए अभिशाप बन गया . उसकी जान ले के ही छोड़ा. काश वह समय रहते ही सम्भल गई होती, उसने रमेश से विवाह ही न किया होता. काश वह उस दिन अपने पति की बातों में आकर उसके साथ बाहर ही नहीं गई होती तो शायद आज सीमा सबके बीच जीवित होती. स्कूल में काम कर रही होती और जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रही होती . लेकिन किस्मत के लिखे को कौन टाल सकता है . सीमा के जाने के बाद उसकी माँ बिल्कुल अकेले हो गई. कही आना जाना भी छोड़ दी, घर मे ही चुपचाप पड़ी रहती और सीमा की याद में खोई रहती . आज रमेश दूसरी शादी कर खुशी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहा है . यह भी उसके अपराधी होने का सबसे बड़ा साक्ष्य जान पड़ता है . सीमा, उसका प्यार, और उसकी यादें अब रमेश के जीवन से काफी ओझल हो चुका है. काश हर युवती और महिलायें अपने प्रेम के साथ वक्त और हालात की नजाकत को समझते हुए कुछ निर्णय लें तो इस दुनिया में ऐसे दुखद हादसे होना कुछ कम हो जायें .

Sunny Leone पहली बार बहुभाषी फिल्म ‘‘शेरो’’ में आएंगी नजर

इन दिनों पूर्व पाॅर्न स्टार और बौलीवुड अदाकारा सनी लियोन दक्षिण भारत में अपने कैंरियर की पहली बहुभाषी मनोवैज्ञानिक रोमांचक फिल्म ‘‘शेरो” की  शूटिंग पूरी करने के बाद अति उत्साहित हैं. मूलतः तमिल भाषा में फिल्मायी गयी श्रीजीत विजयन निर्देशित फिल्म ‘‘शेरो’’ हिंदी, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम भाषा में भी प्रदर्तशि की जाएगी.

फिल्म ‘‘शेरो’’ में सनी लियोन अमेरिका में जन्मी एक महिला सारा माइक की भूमिका में नजर आएंगी, जिनकी जड़ें भारत में हैं.सारा अपनी छुट्टियां बिताने के लिए जब भारत आती है,तब उसके साथ जिस तरह की घटनाएं घटित होतीहैं,उसी का इस फिल्म में चित्रण है.

फिल्म ‘‘शेरो’’ के निर्देशक श्रीजीत विजयन कहते हैं-‘‘ रोमांचक फिल्म का नाम सुनते ही हर इंसान के दिमाग मेें पहली बात अपराध के घटित होने की आती है.उसके बाद जांच और उससे जुड़ी हर तरह की बातें आती हैं.लेकिन हमारी फिल्म ‘शेरो‘ एक ऐसी फिल्म है,जो चरित्र के मनोविज्ञान में गहराई से उतरती है.”

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श्रीजीत विजयन अभिनेत्री सनी लियोन की तारीफें करते हुए कहते हैं-‘‘सनी लियोन एक बेहतरीन पेशेवर कलाकार हैं.चाहे सेट पर पहुंचने की उनकी समयबद्धता हो या चरित्र को समझने की उनकी कोशिश, सनी  लियोन अपने काम को लेकर बहुतगंभीर हैं. हमने शूटिंग से पहले एक वर्कशॉप आयोजित की थी.यहाँ दक्षिण में हम आमतौरपर कार्यशालाएं नहीं करते हैं. लेकिन, इस कार्यशाला ने वास्तव में काम को गति देने में हमारी मदद की.

उसने एक सप्ताह की कार्यशाला में भाग लिया, हमने चरित्र पर अच्छी तरह से चर्चा की और इसलिए शूटिंग तुलनात्मक रूप से आसान थी, यह देखते हुए कि वह कितनी बड़ी स्टार है.” फिल्म ‘शेरो‘ का निर्माण अंसारी नेक्सटल और रविकिरण द्वारा स्थापित ‘इकीगाई मोशन पिक्चर्स’ के बैनर तले किया गया है.‘इकीगााई’’ एक जापानी शब्द है.जिसका अर्थ है ‘एक होने का कारण‘ और ‘इकोगाई मोषन पिक्चर्स’ अच्छी फिल्मों के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन, उत्साहित और प्रेरित करने की दृष्टि से स्थापित किया गया है. फिल्म के कैमरामैन मनोज कुमार खटोरी, संगीतकार घिबरन हैं.‘शेरो‘ की कार्यकारी निर्माता जयश्री डी.,एडीटर वी.साजन द्वारा संपादन,कास्ट्यूम डिजायनर स्टेफी जेवियर हैं.

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Sidharth Shukla के जाने से दुखी हुए भोजपुरी एक्टर रवि किशन, कहा ‘बहुत शॉकिंग है’

बिग बॉस 13 के विनर और फेमस टीवी सिद्धार्थ शुक्ला की मौत हार्ट अटैक की वजह से हो गई. एक्टर की मौत से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में शोक की लहर छाई है. ऐसे में भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार रवि किशन ने भी दुख व्यक्त किया है. उन्होंने सिद्धार्थ शुक्ला की मौत को लेकर एक पोस्ट किया है.

रवि किशन ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर करते हुए कहा है कि सिद्धार्थ का इतनी छोटी उम्र में चले जाना बेहद दुखद है.

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रवि किशन  वीडियो में यह कहते हुए नजर आ रह हैं कि यह बहुत ही दुखद खबर है. सिद्धार्थ शुक्ला ने इतनी कम उम्र में सक्सेस की दहलीज पर अपना कदम रख दिया था. बिग बॉस के घर से उन्हें बहुत प्यार मिला था. उनका ऐसे चले जाना बहुत शॉकिंग है.

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आप इस वीडियो में ये भी दख सकते हैं कि रवि किशन सिद्धार्थ शुक्ला की तारीफ करते हुए कह रह हैं कि वे तुम हमेशा महिलाओं के लिए और ह्यूमन राइट्स के लिए लड़ते थे. मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या कहूं.

 

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हाल ही में बिग बॉस ओटीटी में  सिद्धार्थ शुक्ला और  शहनाज गिल गेस्ट के रूप में दिखाई दिए थे. उन दोनों को देख बिग बॉस ओटीटी के सभी कंटेस्टेंट के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी. वूट सिलेक्ट ने अपने ऑफिशल इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया. जिसमें दोनों  ‘तुहाडा कुत्ता टॉमी’ सॉन्ग पर धमाकेदार डांस कर रहे थे.

इसके बाद सिद्धार्थ शुक्ला डांस रियलिटी शो डांस दीवाने 3 में भी दिखाई दिए. जहां उन्होंने  फिल्म दिल तो पागल है के फेमस डायलॉग को फिर से रीक्रिएट किया. कलर्स टीवी ने अपने सोशल मीडिया पर प्रोमो शेयर करते हुए लिखा, जब सिद्धार्थ शुक्ला बने राहुल और माधुरी दीक्षित एक बार फिर बनी पूजा. हमारा दिल तो पागल होना ही था.

कल्याण सिंह हालात के हिसाब से बदलते रहें!

राजनीति‘मेरा उद्देश्य अब पिछड़ों को उन का हक दिलाना है. राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी इस काम को पूरा करेगी…’ साल 2002 में अपनी अलग पार्टी का गठन करते समय कल्याण सिंह ने ऐसा कहा था.

‘भाजपा में वापस जाना मेरी भूल थी. राम मंदिर पर अपनी भूमिका को ले कर भी मुझे खेद है. इस बार मैं ने हमेशाहमेशा के लिए भाजपा से संबंध खत्म कर लिए हैं,’ 21 जनवरी, 2009 को कल्याण सिंह ने भाजपा से अलग होने के बाद कहा था.

कल्याण सिंह अपनी बात पर कायम होने वाले नेता नहीं बन सके. वे जबजब भाजपा से अलग हुए, तबतब पार्टी को बुरी तरह से कोसा. इस के बाद वापस भाजपा में गए.

वैसे तो कल्याण सिंह साल 1967 में पहली बार विधायक चुने गए थे, लेकिन भाजपा में उन का उपयोग उस समय किया गया, जब तब के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ी जातियों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए मंडल कमीशन की सिफारिशों को पूरे देश में लागू किया था.

हर दल में पिछड़ी जाति के नेताओं को अहमियत दी जाने लगी थी और उस दौर में भाजपा ने भी कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे पिछड़े तबके के नेताओं को आगे कर के सत्ता हासिल की थी.

जनता पार्टी में जनसंघ का विलय होने के बाद जब जनता पार्टी टूटी, तब जनसंघ से आए नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी नाम से नया दल बनाया था. इस के पीछे संघ का पूरा हाथ था.

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भाजपा के संस्थापकों में अगड़ी जातियों के नेता प्रमुख थे. इन में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी व विजयाराजे सिधिंया जैसे नेता प्रमुख थे.

भाजपा के बनने के बाद संघ ने तय किया कि राम मंदिर आंदोलन को तेज किया जाएगा. इसी दौर में मंडल कमीशन को ले कर पिछड़ों की राजनीति भी शुरू हो रही थी.

भाजपा को उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति के किसी ऐसे नेता की तलाश थी, जो मुलायम सिंह यादव का मुकाबला कर सके, वह जमीन से जुड़ा हो और उस में हिंदुत्व की भी धार हो.

कल्याण सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उसी बैल्ट से आते थे, जिस से मुलायम सिंह यादव आते थे. अलीगढ़ के रहने वाले कल्याण सिंह साल 1967 में पहली बार विधायक बने थे. इसी साल मुलायम सिंह यादव भी चुनाव जीते थे.

मुलायम सिंह यादव भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इटावा से आते थे. वे साल 1977 में जनता पार्टी की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे. ऐसे में भाजपा ने कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश की बागडोर सौंपने का फैसला लिया.

कल्याण सिंह की खूबी थी कि वे पिछड़ी लोधी जाति से आते थे. वे हिंदुत्व की राजनीति कर सकते थे. वे अक्खड़ और रूखे स्वभाव के नेता थे. उन की छवि साफ थी. साल 1984 में कल्याण सिंह को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बना कर उन का इस्तेमाल शुरू किया था.

आमनेसामने 2 ओबीसी नेता

साल 1986 में राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम किया गया, तो कल्याण सिंह सब से उपयोगी नेता साबित हुए. भाजपा ने कल्याण सिंह के कंधे पर बंदूक रख कर चलाना शुरू किया. उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के लोग एकजुट न रह सके, जिस से मंडल कमीशन का फायदा पिछड़ी जातियों को मिल सके.

इस राजनीति ने कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव को आमनेसामने खड़ा कर दिया. मुलायम सिंह यादव संघ की हिंदुत्व वाली राजनीति के खिलाफ थे. कल्याण सिंह ने राम मंदिर आंदोलन की कमान खुद संभाल रखी थी. उन दोनों के बीच राजनीतिक मुठभेड़ शुरू  हो गई.

भाजपा में ऊंची जातियों के नेता दूर से इस लड़ाई को देख रहे थे. साल 1989 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब कल्याण सिंह भाजपा विधानमंडल दल के नेता थे.  इस दौरान राम मंदिर आंदोलन शिखर पर था.

साल 1990 में राम मंदिर बनाने के लिए कारसेवा की घोषणा हुई. उस समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने कहा था कि अयोध्या में कोई भी कारसेवक घुसने नहीं पाएगा. वहां परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा. दूसरी तरफ कल्याण सिंह इस बात पर अडिग थे कि कारसेवक अयोध्या पहुंचेंगे. 30 अक्तूबर और 6 नवंबर को हिंसक झड़पें हुईं.

कारसेवकों को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव को गोलियां चलवानी पड़ीं. इस के बाद उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की लहर उठी. कल्याण सिंह इस के प्रतीक बने. मंडल कमीशन और पिछड़ों की राजनीति का नुकसान हुआ. मुलायम सिंह की सरकार गिर गई.

साल 1991 में उत्तर प्रदेश में दोबारा चुनाव हुए और तब पहली बार कल्याण सिंह की अगुआई में भाजपा की सरकार बनी. 221 सीटों वाली भाजपा ने कल्याण सिंह को अपना मुख्यमंत्री बनाया. कल्याण सिंह ने अपनी सरकार का कामकाज रामलला के दर्शन करने के बाद शुरू किया.

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हिंदुत्व की लहर पर सवार कल्याण सिंह भले ही मुख्यमंत्री बने पर पिछड़ी जातियों के सामाजिक न्याय के साथ धोखा हो गया. कल्याण सिंह केवल पिछड़ी जातियों के न्याय और मंडल कमीशन लागू होने की राह में रोड़ा ही नहीं बने, बल्कि मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ कर कानून और व्यवस्था के प्रति न्याय नहीं कर सके. अदालत में शपथपत्र देने के बाद भी वे अयोध्या के विवादित ढांचे की हिफाजत नहीं कर सके.

जब गिर गया विवादित ढांचा

कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद राम मंदिर की राजनीति करने वाली विश्व हिंदू परिषद ने दबाव बनाना शुरू किया कि राम मंदिर मसला जल्दी हल किया जाए.

कल्याण सिंह राम मंदिर बनाने का रास्ता मजबूत करना चाहते थे, पर उन के पास कोई हल नहीं था. मसला कोर्ट में था. बिना कोर्ट के फैसले के कुछ हो नहीं सकता था. वे इस मामले में थोड़ा वक्त चाहते थे.

राम मंदिर आंदोलन से जुड़े ऊंची जातियों के नेता इस के लिए वक्त देने को तैयार नहीं थे. ऐसे में 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवा की घोषणा कर दी गई. कल्याण सिंह ने केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों को वचन दिया कि कारसेवा के दौरान अयोध्या में कोई गड़बड़ नहीं होने  दी जाएगी.

6 दिसंबर के पहले से ही देशभर में माहौल गरम था. कारसेवा करने वालों के हौसले बुलंद थे, क्योंकि इस बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे, जो रामभक्त थे. उन से यह उम्मीद नहीं की जा रही थी कि वे कारसेवकों पर गोली चलवाएंगे. कारसेवक, जो काम साल 1990 में नहीं कर पाए थे, वह 2 साल बाद साल 1992 में करना चाहते थे.  कल्याण सिंह ने अयोध्या की सुरक्षा के ऐसे इंतजाम किए थे, जिस में केंद्र सरकार की फोर्स पीछे थी. उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथों में अयोध्या की मुख्य कमान थी. घटना के दिन उत्तर प्रदेश पुलिस पीछे हट चुकी थी. उसे यह आदेश थे कि किसी भी कीमत पर कारसेवकों पर गोली नहीं चलाई जाएगी.

कारसेवक गुंबदों पर चढ़ कर उन्हें तोड़ने लगे. इस बात की जानकारी देश के तब के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को मिली. वे मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से फोन पर संपर्क करने की कोशिश करने लगे.

कल्याण सिंह अपने सरकारी आवास में थे. इस के बाद भी फोन पर बात नहीं की. वे भाजपा के नेताओं के संपर्क में थे. जैसा निर्देश मिल रहा था, वैसा काम कर रहे थे. पुलिस ने गोली नहीं चलाई और अयोध्या में कारसेवकों का  कब्जा हो गया. 1-1 कर के तीनों गुंबद गिरते गए.

केंद्र सरकार ने कैबिनेट मीटिंग शुरू की. उस में यह फैसला लिया जाना था कि उत्तर प्रदेश की कल्याण सरकार को बरखास्त कर दिया जाए.

यह सूचना मिलते ही जैसे ही साढ़े 5 बजे तीनों गुंबद गिर गए, कल्याण सिंह 30 मिनट बाद राजभवन गए और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

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जब तक गुंबद पूरी तरह से गिर नहीं गए और वहां पर अस्थायी राम मंदिर नहीं बन गया, कल्याण सिंह ने कुरसी नहीं छोड़ी.

कल्याण सिंह ने इस के बाद पूरे देश में ‘जनादेश यात्रा’ निकाली. उन को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ और ‘अयोध्या का नायक’ कहा गया.

‘चरित्र हनन’ की राजनीति

साल 1997 में बहुजन समाज पार्टी और भाजपा के बीच 6-6 महीने की सरकार चलाने का समझौता हुआ. कल्याण सिंह 21 अक्तूबर को मुख्यमंत्री बने. कल्याण सिंह को यह लगा कि वे अब भाजपा के बड़े नेता हो चुके हैं. इस सोच के बाद ही उन का टकराव उस समय के नेता अटल बिहारी वाजपेयी से हो गया.

अगड़ी जाति के नेताओं को यह लग चुका था कि कल्याण सिंह को अब जमीन पर लाना है. इस के बाद कल्याण सिंह के साथ राजाजीपुरम क्षेत्र की सभासद कुसुम राय के संबंधों को ले कर ‘चरित्र हनन’ की राजनीति शुरू हुई. ऊंची जातियों के समर्थक मीडिया में रोज नई खबरें गढ़ी जाने लगीं. लोग राजाजीपुरम के नाम को मजाक में ‘रानीजीपुरम’ कहने लगे.

अहम की इस लड़ाई में अयोध्या के नायक कल्याण सिंह की हार हुई. उन को भाजपा से बाहर कर दिया गया.

साल 2002 में कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी का गठन किया, पर इस में वे कामयाब नहीं हुए. साल 2004 में वे वापस भाजपा में आए. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान कल्याण भाजपा से बाहर हो गए.  उस समय उन्होंने कहा कि अब वे वापस भाजपा में नहीं जाएंगे. यह दौर वह था, जब भाजपा में पिछड़ी  जातियों की जगह अगड़ी जातियों का कब्जा था.

साल 2013 में जब भाजपा में पिछड़ी जातियों को अहमियत दी जाने लगी, तो कल्याण सिंह को वापस भाजपा में लाया गया. साल 2014 में राजस्थान और साल 2015 में हिमाचल प्रदेश के प्रभारी राज्यपाल बने.

साल 2017 में कल्याण सिंह के पोते संदीप को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री बनाया गया. साल 2019 में कल्याण सिंह वापस भाजपा कार्यकर्ता के रूप में काम करने लगे.

साल 2021 के अगस्त महीने में कल्याण  सिंह की मौत हो गई, जिस के बाद भाजपा ने पूरे सम्मान के साथ उन का अंतिम संस्कार किया.

Photo Credit- Social Media

Film Review- हेलमेटः कमजोर लेखन व निर्देशन

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताःसोनी पिक्चर्स और डीनो मोरिया

निर्देशकः सतराम रमानी

कलाकार: अपारशक्ति खुराना, प्रनूतन बहल, अभिषेक बनर्जी, आशीष विद्यार्थी, शारिब हाशमी, रोहित तिवारी, सानंद वर्मा, हिमांशु कोहली, दीपक वर्मा,जयशंकर त्रिपाठी,अनुरीता झा, श्रीकांत वर्मा और अन्य.

अवधिः एक घंटा 44 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5

भारत में बहुत से विषयों पर बात करने से लोग हिचकते हैं. कुछ चीजों पर बात करना ‘टैबू’बना हुआ है. उन्हीं में से जनसंख्या नियंत्रण के उपाय के तौर पर कंडोम का उपयोग करना भी षामिल है. हमारे देश में कंडोम खरीदते हुए लोग झिझकते हैं.कंडोम के बारें में बात करना भी गंवारा नही है.इसी मुद्दे पर फिल्मकार सतराम रमानी फिल्म ‘‘हेलमेट’’ लेकर आए हैं,जो कि तीन सितंबर से ‘जी 5’’पर स्टीम हो रही है.

कहानीः

जोगी(अशीष विद्यार्थी) के साले गुप्ता(श्रीकांत वर्मा ) की शादी व्याह में बैंड बाजा बजाने वाली बैंड कंपनी है, जिसमें गीत गाने वाले अनाथ युवक लक्की(अपारषक्ति खुराना ) संग जोगी की बेटी रूपाली(प्रनूतन बहल) को प्यार है. लक्की और रूपाली के बीच प्यार की खिचड़ी पकते हुए चार वर्ष हो गए हैं. एक शादी के मौके पर जहां फूलों से सजावत करने का काम रूपाली करते हैं.वहीं रूपाली व लक्की को एक कमरे में एकांत मिलता है,पर हमबिस्तर होने केे लिए रूपाली,लक्की से कंडोम लेकर आने के लिए कहती है.

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लक्की, शंभू मेडिकल स्टोर पर जाने के बावजूद कंडोम नहीं खरीद पाता. रूपाली कहती है कि लक्की उसके पिता जोगी से उसका हाथ मांगकर शादी कर ले. लक्की जोगी के पास जाता है, मगर रूपाली के सामने ही जोगी,लक्की से कहते हैं कि वह रूपाली की शादी अमरीका में रह रहे विक्रम से करेंगे,जिसकी कमायी तीन लाख है. इतना ही नहीं गुप्ता जी लक्की को अपने बैंड से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं.अब लक्की के पास नौकरी नही है.अपना खुद का बैंड शुरू करने के लिए पैसे नही है.

उसका दोस्त माइनस(अषीष वर्मा ) भी बेरोजगार है.माइनस के दोस्त सुल्तान(अभिषेक बनर्जी ) को बंटी (शारिब हाशमी) का कर्ज चुकाना है. अब लक्की,माइनस व सुल्तान तीनों योजना बनाकर एक ट्क से मोबाइल से भरे डिब्बे समझ कर चुुराते हैं.पर उन डिब्बों में मोबाइल की बजाय कंडोम के छोटे छोटे डिब्बे निकलते हैं.अब क्या करेे?तब तीनो हेलमेट पहनकर अपनी शक्ल व पहचान छिपाकर कंडोम के छेटे डिब्बे बेचना शुरू करते हैं. रूपाली भी उनका साथ देती है.पैसे आते ही लक्की अपना ‘‘लक्की ब्रास बैंड’’ शुरू करता है. पर जोगी, गुप्ता से कहते हैं कि लक्की का बैंड शुरू न होने पाए.उसके बाद कई घटनाकम्र तेजी से बदलते हैं.

लेखन व निर्देशन:

आयुष्मान खुराना जिस तरह की फिल्में करते हैं,उसी तरह की फिल्म सतराम रमानी ‘हेलमेट’लेकर आए हैं,मगर पटकथा बहुत कमजोर हैं. कहानी में नयापनद नही है.इस तरह की प्रेम कहानी साठ व सत्तर के दशक में काफी नजर आती थीं.इतना ही नही फिल्म में लक्की व रूपाली के रोमांस को भी ठीक से चित्रित नहीं किया जा सका.सब कुछ एकदम मोनोटोनस है. फिल्म में ह्यूमर का घोर अभाव है. जबकि इस तरह के विषय वाली फिल्म में ह्यूमर तो अनिवार्य रूप से होना चाहिए.कुछ दृश्य बड़े अजीबोगरीब हैं.दो दशक पूर्व एड्स की बीमारी का हौव्वा पैदा हुआ था.

उस वक्त एड्स जागरूकता मिशन के तहत कई एनजीओ कार्यरत हुए थे, उसी की पृष्ठभूमि में 2021 में लोगों को जन्म नियंत्रण के बारे में शिक्षित करने के साथ-साथ ‘कंडोम’खरीदने की शर्म और शर्मिंदगी को पेश करने का यह असफल प्रयास है. इस तरह के विषयों में ह्यूमर व व्यंग्य अनिवार्य होता है.पर सतराम रामनी बुरी तरह से मात खा गए.हास्य के दृश्य मेलोडमौटिक हो गए हैं. हकीकत में लेखन व निर्देशन इस कदर कमजोर है कि एक बेहतरीन विषय का सट्टानाश हो गया है.

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अभिनय:

अफसोस अपारशक्ति अपने अभिनय को निखार नही सके.लक्की के किरदार में अपारशक्ति खुराना को देखकर इस बात का अहसास हुआ कि उनके अंदर की अभिनय क्षमता को निकालने का काम अच्छा निर्देषक ही कर सकता है.क्योकि पिछली फिल्मों में अपारशक्ति बेहतरीन अभिनय कर चुके हैं. अपारशक्ति खुराना और आशीष वर्मा के पास तो स्वाभावकि मजाकिया गुण है,मगर वह भी इस फिल्म में नजर नहीं आया.अभिषेक बनर्जी का काम अच्छा है.आशीष वर्मा भी जमे नही. प्रनूतन बहल खूबसूरत लगने के अलावा कुछ नही कर पायी.उन्हे अपनी अभिनय प्रतिभा को निखारने के लिए काफी मेहनत करने की जरुरत है.अशीष विद्यार्थी की प्रतिभा को जाया किया गया है.षारिब हाषमी ने फिल्म क्यों की,यह समझ से पर है.

अनुज कपाड़िया संग बढ़ेंगी अनुपमा की नजदीकियां, आएगा ये बड़ा ट्विस्ट

सुधांशु पांडे और रूपाली गांगुली स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) टीआरपी लिस्ट में लगातार टॉप में जगह बनाई हुई है. शो में अब तक आपने देखा कि नया किरदार अनुज कपाड़िया की एंट्री हो चुकी है. जिससे कहानी में कई दिलचस्प मोड़ आने वाला है. शो के अपकमिंग एपिसोड में महाट्विस्ट होने वाला है. आइए बताते हैं शो के ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि रियूनियन पार्टी में अनुपमा-अनुज कपाड़िया मिलते हैं. अनुपमा को वहां पता चलता है कि बिजनेसमैन अनुज कपाड़िया उसका क्लासमेट है. अनुज अनुपमा स शायराना अंदाज में अपने दिल का हाल बयां करता है लेकिन अनुपमा नहीं समझ पाती है.

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तो वहीं देविका अनुपमा को स्टेज के करीब ले जाती है और अनुज अपने कॉलेज के दिनों को याद करता है. देविका अनुज से कहती है कि यह मौका अपने हाथ से मत जाने दो, अनुपमा के साथ तुम डांस कर सकते हो. अनुज- अनुपमा स्टेज पर धमाकेदार डास करते हैं.

 

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तो दूसरी तरफ समर और नंदिनी के रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. नंदिनी का एक्स बॉयफ्रेंड आ चुका है. वह नंदिनी को फोर्स कर रहा है कि वो दोनों फिर से पैचअप कर ले लेकिन नंदिनी कहती है कि अब वह सिर्फ समर से प्यार करती है.

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अनुपमा- अनुज का डांस दखकर वनराज की गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है. तो वहीं काव्या हैरान हो जाती है कि अनुज- अनुपमा क्लासमेट है. हालांकि वनराज अनुज कपाड़िया के साथ अपनी डील को लेकर परेशान दिखाई पड़ता है. तो वहीं काव्या अनुपमा- अनुज की दोस्ती का फायदा उठाना चाहती है.

 

मैं एक्टर बनना चाहता हूं, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 18 साल का एक गरीब घर का लड़का हूं. मैं बीए पास हूं और देखने में हैंडसम भी हूं. मैं फिल्मों में जाना चाहता हूं, पर मुझे ऐक्टिंग का कोई अनुभव नहीं है. क्या मेरा यह सपना पूरा हो सकता है? इस सिलसिले में मुझे सही राह दिखाएं?

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जवाब

न तो ऐक्टिंग ही आसान काम है और न ही फिल्म इंडस्ट्री में मुकाम हासिल कर पाना हंसीखेल है. अगर आप खूबसूरती के दम पर फिल्मों का सपना देख रहे हैं तो वक्त रहते जाग जाएं, नहीं तो इन सपनों में आप का बहुत वक्त बरबाद हो जाएगा.

अगर आप वाकई संजीदा हैं, तो ऐक्टिंग का कोई कोर्स करें. इस के लिए अपने शहर के किसी ऐक्टिंग स्कूल या नाटक मंडली में दाखिला लें और फिर देखें कि ऐक्टिंग आप के बस की बात है या नहीं. लगन और मेहनत से कोई भी सपना पूरा हो जाता है, लेकिन ऐक्टिंग का होगा, इस की कोई गारंटी नहीं है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कहीं किसी रोज- भाग 1: आखिर जोया से विमल क्या छिपा रहा था?

स्विमिंग पूल के किनारे एक तरफ जा कर विमल ने हाथ में लिए होटल के गिलास से ही सूर्य को जल चढ़ाया, सुबह की हलकीहलकी खुशनुमा सी ताजगी हर तरफ फैली थी, जल चढ़ाते हुए उस ने कितने ही शब्द होठों में बुदबुदाते हुए कनखियों से पूल के किनारे चेयर पर बैठी महिला को देखा, आज फिर वह अपनी बुक में खोई थी.

कुछ पल वहीं खड़े हो कर वह उसे फिर ध्यान से देखने लगा, सुंदर, बहुत स्मार्ट, टीशर्ट, ट्रैक पैंट में, शोल्डर कट बाल, बहुत आकर्षक, सुगठित देहयष्टि.

विमल को लगा कि वह उस से उम्र में कुछ बड़ी ही होगी, करीब चालीस की तो होगी ही, वह उसे निहार ही रहा था कि उस स्त्री ने उस की तरफ देख कर कहा, ‘‘इतनी दूर से कब तक देखते रहेंगे, आप की पूजाअर्चना हो गई हो और अगर आप चाहें तो यहां आ कर बैठ सकते हैं.‘‘

विमल बहुत बुरी तरह झेंप गया. उसे कुछ सूझा ही नहीं कि चोरी पकडे जाने पर अब क्या कहे, चुपचाप चलता हुआ उस स्त्री से कुछ दूर रखी चेयर पर जा कर बैठ गया.

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स्त्री ने ही बात शुरू की, ‘‘आप भी मेरी तरह लौकडाउन में इस होटल में फंस गए हैं न? आप को रोज देख रही हूं पूजापाठ करते. और आप भी मुझे देख ही रहे हैं, यह भी जानती हूं.‘‘

विमल झेंप रहा था, बोला, ‘‘हां, यहां देहरादून में औफिस के टूर पर आया था, अचानक लौकडाउन में फंस गया, मैं लखनऊ में रहता हूं और आप…?‘‘

‘‘मैं देहरादून घूमने आई थी. मैं बैंगलोर में रहती हूं, वहीं जौब भी करती हूं.‘‘

‘‘अकेले आई थीं घूमने?‘‘ विमल हैरान हुआ.

‘‘जी, मगर आप इतने हैरान क्यों हुए?‘‘

विमल चुप रहा, महिला उठ खड़ी हुई, ‘‘चलती हूं, मेरा एक्सरसाइज का टाइम हो गया. थोड़ी रीडिंग के बाद ही मेरा दिन शुरू होता है.‘‘

विमल ने झिझकते हुए पूछा, ‘‘आप का शुभ नाम?‘‘

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‘‘जोया.‘‘

‘‘आगे?‘‘

‘‘आगे क्या?‘‘

‘‘मतलब, सरनेम?‘‘

‘‘मुझे बस अपना नाम अच्छा लगता है, मैं सरनेम लगा कर किसी धर्म के बंधन में नहीं बंधना चाहती, सरनेम के बिना भी मेरा एक स्वतंत्र व्यक्तित्व हो सकता है. आप भी मुझे अपना नाम ही बताइए, मुझे किसी के सरनेम में कभी कोई दिलचस्पी नहीं होती.‘‘

विमल का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘यह औरत है, क्या है,’’ धीरे से बोला विमल.

‘‘ओके, बाय,‘‘ कह कर जोया चली गई. विमल जैसे एक जादू के असर में बैठा रह गया.

लौकडाउन के शुरू होने पर रूड़की के इस होटल में 8-10 लोग फंस गए थे, कुछ यंग जोड़े थे जो कभीकभी दिख जाते थे, कुछ ऐसे ही टूर पर आए लोग थे, दिनभर तो विमल लैपटौप पर औफिस के काम में बिजी रहता. वह बहुत ही धर्मभीरु, दब्बू किस्म का इनसान था, उस की पत्नी और दो बच्चे लखनऊ में रहते थे, जिन से वह लगातार टच में था, जोया को वह अकसर ऐसे ही स्विमिंग पूल के आसपास खूब देखता. अकसर वह इसी तरह बुक में ही खोई रहती.

जोया एक बिंदास, नास्तिक महिला थी, बैंगलोर में अकेली रहती थी, एक कालेज में फाइन आर्ट्स की प्रोफेसर थी, विवाह किया नहीं था. पेरेंट्स भाई के पास दिल्ली रहते थे, घूमनेफिरने का शौक था, खूब सोलो ट्रैवेलिंग करती, खूब पढ़ती, हमेशा बुक्स साथ रखती, अब लौकडाउन में फंसी  थी तो बुक्स पढ़ने के शौक में समय बीत रहा था. वह बहुत इंटेलीजेंट थी, कई फिलोसोफर्स को पढ़ चुकी थी, कई दिन से देख रही थी कि विमल उसे चोरीचोरी खूब देखता है, उसे मन ही मन हंसी भी आती, विमल देखने में स्मार्ट था, पर उसे एक नजर देखने से ही जोया को अंदाजा हो गया था कि वह धर्म में पोरपोर डूबा इनसान है.

होटल में स्टाफ अब बहुत कम  था, खानेपीने की चीजें सीमित थीं, पर काम चल रहा था. विमल का आज काम में दिल नहीं लगा, आंखों के आगे जोया का जैसे एक साया सा लहराता रह गया.

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शाम होते ही लैपटौप बंद कर स्विमिंग पूल की तरफ भागा, जोया अपनी बुक में डूबी थी. विमल उस के पास जा कर खड़ा हो गया, ‘‘गुड ईवनिंग, जोयाजी.”

बुक बंद कर जोया मुसकराई, ‘‘गुड ईवनिंग, आइए, फ्री हैं तो बैठिए.”

विमल तो उस के पास बैठने के लिए ही बेचैन था, जोया बहुत प्यारी लग रही थी, नेवई ब्लू, टीशर्ट में उस का गोरा सुनस
सुंदर चेहरा खिलाखिला लग रहा था. जोया ने छेड़ा, ‘‘देख लिया हो तो कोई बात करें.”

हंस पड़ा विमल, ‘‘आप बहुत स्मार्ट हैं, नजरों को खूब पढ़ती हैं.”

‘‘हां जी, यह तो सच है,” जोया ने दोस्ताना ढंग से कहा, तो दोनों में कुछ बढ़ा, जोया ने कहा, ‘‘आजकल तो यहां जितनी भी सुविधाएं मिल रही हैं, बहुत हैं, मेरी सुबहशाम तो स्विमिंग पूल पर कट रही है और दिन होटल के कमरे में. आप क्या करते रहते हैं?”

Crime Story: शादी के बीच पहुंची दूल्हे की प्रेमिका तो लौटानी पड़ी बरात

एक लड़की, जिसकी शादी हो रही हो, हाथों में मेहंदी लगी हो, फेरे चल रहे हों, उस वक्त होने वाले पति की प्रेमिका आ जाए, तो उसका क्या हाल होगा, कहना सहज ही समझा जा सकता है. अगर किसी शादी के खूबसूरत माहौल में ऐसा मोड़ आता है तो लड़की व उस के परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग जाता है.

भले ही लड़की के परिवार वालों ने पुलिसिया कार्यवाही से मना कर दिया हो, पर उस घर में मातम पसरा रहता है. प्रेमिका को धोखा देकर शादी करना कितना भारी पड़ सकता है, यह इस वाकए से उजागर होता है.

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घटना 7 जुलाई की है. जालंधर जिले के गोराया में उस दिन शादी समारोह चल रहा था. माहौल खुशियों से भरा था. दूल्हा-दुलहन फेरे ले रहे थे. इसी बीच एक लड़की वहां पहुंचीं और जोर-जोर से अपनी बात कहनी शुरू कर दी. वह लड़की दूल्हे की बचकाना हरकत को ऐसे बखान कर रही थी जैसे उस ने शादी कर के आफत मोल ले ली हो. हालात ऐसे हो गए कि दूल्हे को भीगी बिल्ली बन वहां से रफूचक्कर हो जाना पड़ा.

दरअसल, वह लड़की दूल्हे की प्रेमिका थी. दूल्हा उसे धोखा दे कर शादी कर रहा था, वह भी चोरीछिपे. ऐसा कैसे हो सकता था. प्रेमिका की पैनी नजर से वह बच न सका. तभी तो ऐसे हालात हो गए कि दूल्हे को बरात के संग बिना शादी किए लौट जाना पड़ा.

शेरपुर गांव के जसकरन कुमार उर्फ जस्सी बरात ले कर गोराया गांव में एक लड़की से शादी करने पहुंचा था. गुरुद्वारा साहिब में फेरों की रस्म चल रही थी. तभी वहां एक लड़की अचानक ही पहुंच गई. उस लड़की ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि लोगों की नजरें उधर ही घूम गईं. उस लड़की ने खुद को जसकरन उर्फ जस्सी की प्रेमिका बताया. उस के ऐसा कहने पर समारोह में हड़कंप मच गया.

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इस सब के बीच लड़की ने दुल्हन के परिवार को दूल्हे जसकरन से अपने प्रेम संबंध की जानकारी दी. साथ ही, जसकरन के साथ की कुछ तस्वीरें दिखाईं. तस्वीरों की सचाई की बाबत जब पूछा गया तो जसकरन ने हामी भर दी. फिर क्या था, घड़ा तो फूटना ही था. गनीमत यह थी कि कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.

उस लड़की ने यह भी बताया कि उस का जसकरन कुमार उर्फ जस्सी के साथ तकरीबन डेढ़ साल से प्रेम प्रसंग चल रहा है. वह उस के साथ रहती थी और घूमने के लिए वे दोनों दुबई भी गए थे. वह लड़की गांव में उस के परिवार के साथ भी रह चुकी है.

जस्सी ने उसे गुमराह किया था कि उस के बड़े भाई की शादी है. उसे बीती रात ही यह पता चला कि शादी जसकरन की हो रही है. तुरंत ही वह उस के गांव शेरपुर पहुंची तो सारा मामला साफ हो गया.

दुल्हन के घर वालों ने दूल्हा जसकरन से पूछा तो उस ने बताया कि उसे दुबई से लौटे 8 महीने हुए हैं. 4 महीने पहले ही उस की दोस्ती इस लड़की से हुई थी. जब उस से लड़की द्वारा दिखाई गई तस्वीरों के बारे में पूछा गया, तो उस ने प्रेम प्रसंग को स्वीकारा. इस के बाद दुल्हन के परिवार ने शादी से मना कर दिया.

थाना गोराया के प्रभारी ने इस संबंध में कहा कि जस्सी के परिवार वाले लड़की के परिवार (जिस से शादी हो रही थी) से राजीनामा कर बारात वापस ले गए. दुल्हन के परिवार ने भी मामले में किसी तरह की पुलिसिया कार्यवाही से मना कर दिया.

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शादी से बैरंग लौटना भले ही दूल्हे जस्सी के लिए इज्जत का सवाल हो गया, पर दुल्हन के परिवार वालों पर क्या बीती होगी. शादी में खर्च तो हुआ ही साथ ही सामाजिक अपमान भी झेलना पड़ा होगा. ऐसी शादियां कितने दिन तक टिक पातीं, यह तो पता नहीं, पर ऐसी शादियां न हों, तो ही बेहतर है. इसीलिए तो कहा जाता है कि शादी भले ही देर मेंं हो, पर तहकीकात बहुत जरूरी है.

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