लेखक - अलखदेव प्रसाद 'अचल'
ममता जब से कालेज में पढ़ने गई थी, उसी समय विनय से आंखें चार हो गई थीं. दोनों के बीच प्यार इतना गहराता जा रहा था कि वे रोजाना छुट्टी के पहले या छुट्टी के बाद मिल ही लिया करते थे. क्लास में भी बैठते थे, तो एकदूसरे का ध्यान रखते थे. उन दोनों के हावभाव देख कर कालेज के दूसरे छात्रछात्राएं भी इस प्यार के बारे में जान चुके थे.
विनय और ममत ने एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं, पर लोकलाज के डर से वे दोनों अपने मातापिता को इस प्यार के बारे में नहीं बता पाते थे.
यही सिलसिला चल रहा था कि ममता के पिता ने उस की शादी किसी देवेंद्र से तय कर दी. ममता ने यह बात विनय को बता दी. साथ ही यह भी कह दिया, "मैं वहां शादी करना नहीं चाहती हूं. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकूंगी. पर मातापिता के सामने मेरा मुंह खुल नहीं पाता है.
"ऐसा लगता है कि वे क्या सोचेंगे? गांवघर के लोग क्या कहेंगे? पर इतना तय है कि शादी के बाद भी मैं देवेंद्र को अपना प्यार नहीं दे सकूंगी. मैं ससुराल में नहीं रह पाऊंगी."
विनय इस खबर को सुन कर काफी तिलमिला गया. उसे लग रहा था कि अगर ममता विरोध नहीं करेगी, तो शादी के बाद ससुराल चली जाएगी. हो सकता है कि धीरेधीरे उस का मन भी बदल जाए. आखिर वह अपने घर में क्यों नहीं कहती है, 'मैं विनय से प्यार करती हूं. मैं जब भी शादी करूंगी, तो उसी से करूंगी.'